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स्वातिः
वायु प्रकोप, पेट में अफारा, टांगों में दर्द। उपचार: जावित्री की जड़ भुजदंड में बांधे। मंत्रः ॐ वायो ये ते सहस्त्रिणो स्थासस्तेभिरागहि मित्युत्वान सोम
पीतये। ऊँ वायवे नमः। जप संख्याः 10,000 बार। (कुछ विद्वजन 5000 भी मानते हैं)
विशाखाः
पूरे शरीर में दर्द । फोड़े-फुसी आदि। उपचार: चौटली की जड़ को भुजदंड में बांधे। मंत्र: ऊँ इंद्राग्नी आगतं सुतं गीर्भिर्नमो वरेण्यम् अस्पातं घियेषिता।
ॐ इन्द्राग्निभ्यां नमः जप संख्या : 10,000 बार।
अनुराधाः
तेज बुखार, सिर-दर्द। उपचार: गुलाब की जड़ भुजदंडों में बांधे। मंत्र: ॐ नमो मित्रस्य वरुणस्य चक्षसे महादेवाय तदृतं सर्पयतं दूरदृशे
देवजाताय केतवे, दिवस्पुत्राय सूर्याय शंसत।
ॐ मित्राय नमः। जप संख्या : 10,000 बार।
ज्येष्ठाः
पित्त प्रकोप, चित्त में व्याकुलता। उपचारः चिरचिटे की जड़ चौहरी कर बांधे। मंत्र: ॐ त्रातारभिन्द्रमवितारमिद्रं हवे हवे सुद्दवं शूरमिन्द्रम्।
ह्वयामि शक्रं पुरुहूतमिन्द्र स्वस्ति नो मधवा धात्विन्द्रः ।
ॐ शक्रायः नमः ____ जप संख्याः 10,000 बार। (कुछ विद्वान 5000 भी मानते हैं)
मूलः
सन्निपात ज्वर, उदर दर्द, मंद रक्तचाप। उपचार: मंदार की जड़ हाथ में बांधे।
ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 46
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