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________________ मंत्र: ॐ पितृभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधा नमः पितामहेभ्वः स्वघाविभ्यः स्वाधा नमः। प्रपितामहेभ्य स्वाधायिभ्यः स्वधा नमः, अक्षन्न पितरोभीमदंत पितरोऽती तृपंतपितरः पितरः शुन्यध्वम् । ॐ पितरेभ्ये नमः। जप संख्याः 10,000 बार। पूर्वा फाल्गुनीः बुखार, खांसी, नजला, पसली चलना। उपचार: नीले फूल की कटैली की जड़ को तिहरा कर भुजाओं में बांधे। मंत्रः भगप्रणेतर्भगसत्य राधो भगे मां धियमुदवाददन्नः भगणोजनगो गोभिरवर्भगप्रनृभिनृर्वतेस्याम। ॐ भगाय नमः। जप संख्याः 10,000 बार। उत्तरा फाल्गुनीः बुखार, सिरदर्द, वायु प्रकोप। पितृ पीड़ा। उपचारः श्वेत आक की जड़ भुजाओं में बांधे। मंत्रः देव्यावह्वआगतं रथेन सूर्यत्वचा। मध्वा यज्ञ समंजाये तं प्रत्नया यं वेनचित्रम देवानाम।। ॐ अर्यम्णे नमः। जप संख्याः 10,000 बार। (कुछ विद्वान इसकी संख्या 5000 भी मानते हैं।) हस्तः उदर दर्द, पैरों में दर्द, पसीने का आधिक्य । उपचार: जावित्री की जड़ भुजाओं में बांधे। मंत्रः ॐ विभ्राबृहस्पतिबतु सौम्यं मञ्वायुर्दघद्यज्ञपतावविहुँतम वातजूतो यो अभि रक्षतित्मना प्रजाः पुपोष पुरुधा विराजति। ॐ सवित्रे नमः। जप संख्या: 5,000 बार। चित्राः अनेक रोगों की आशंका। उपचारः असगंध की जड़ भुजाओं में धारण करें। मंत्र: ॐ त्वष्टानुरोयो अद्भुत इन्द्राग्नी पुष्टिवर्धना द्विपदाच्छन्दऽइन्द्रयमक्षा गौनविमोदधु। ॐ विश्वकर्मणे नमः। जप संख्या: 10,000 बार। (कुछ विद्वजन 5000 भी मानते हैं) ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 45 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002762
Book TitleJyotish Kaumudi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDurga Prasad Shukla
PublisherMegh Prakashan Delhi
Publication Year2004
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size9 MB
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