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दुर्घटनाओं का शिकार भी होता है, पर उसकी प्राण- हानि नहीं होती । वह किसी भी प्रतिस्पर्धा से सफल हो सकता है।
चतुर्थ चरणः यहाँ गुरु जातक को कृषि कार्यों में निपुण होने के अतिरिक्त तांत्रिक-मांत्रिक भी बनाता है। ऐसा व्यक्ति चतुर और अपना काम निकालने में चतुर होता है।
भरणी स्थित गुरु पर अन्य ग्रहों की दृष्टि
सूर्य की दृष्टि व्यक्ति को सत्य वक्ता समाजसेवी, भाग्यशाली और प्रसिद्ध बनाती है ।
चंद्र की दृष्टि प्रसिद्ध, शांति-प्रिय और परोपकारी स्वभाव देती है । मंगल की दृष्टि उसे निर्मम, अपकारी बनाती है किंतु उसके अधीन व्यक्ति कार्य करते हैं।
बुध की दृष्टि का फल अशुभ है। ऐसा व्यक्ति झगड़ालू, मिथ्याभाषी और प्रदर्शन प्रिय होने के साथ-साथ स्त्रियों का विलासी होता है।
शुक्र की दृष्टि उसे जीवन में हर सुख प्रदान करती है। उसे स्त्री-सुख, शैय्या सुख, वाहन, निजी मकान का सुख मिलता है ।
शनि की दृष्टि दुर्भाग्य सूचक मानी गयी है । वह जातक को पत्नी और संतति सुख से वंचित रखती है। ऐसा व्यक्ति क्रूर हृदय और सदैव सलाह देने वाला होता है ।
भरणी के विभिन्न चरणों में शुक्र
भरणी में शुक्र की स्थिति के प्रायः शुभ फल मिलते हैं पर ऐसे व्यक्तियों को नेत्र रोग की अथवा नेत्रों के ऊपर चोट लगने की आशंका बलवती होती है।
प्रथम चरणः यहाँ शुक्र व्यक्ति को संगीतज्ञ, ओजस्वी वक्ता और सबका प्रिय बनाता है। ऐसा व्यक्ति भोग-विलास का भी शौकीन होता है । उसे आँख के ऊपर चोट लगने का भय होता है।
द्वितीय चरण: यहाँ शुक्र व्यक्ति को विलासी और परस्त्रीगामी बनाता है । उसे गुप्त रोग भी हो सकते हैं । यहाँ आँखों के ऊपर चोट लगने का भय होता है ।
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तृतीय चरणः यहाँ शुक्र के कारण बेहद सुंदर पत्नी मिलती है। ऐसा व्यक्ति कर्त्तव्यनिष्ठ भी होता है। यहाँ भी आँखों के ऊपर चोट लगने के संकेत बतलाये गये हैं ।
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ज्योतिष - कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र-विचार 69
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