________________
यदि शनि के साथ गुरु भी हो तो जातक शासन में उच्च पद पर होता है। जातक में धार्मिक प्रवृत्ति भी प्रचुर होती है ।
द्वितीय चरणः यहाँ जातक अक्सर विश्वासघात का शिकार होता है। तृतीय चरणः शनि यदि बुध के साथ हो तो जीवन सुखमय बीतता है। मंगल की दृष्टि से उसे जोड़ों का रोग हो सकता है।
चतुर्थ चरणः शनि पैंतालिस वर्ष की अवस्था के बाद ही जीवन में स्थिरता लाता है। उससे पूर्व का समय संघर्ष एवं बाधाओं से जूझने में बीतता है ।
पूर्वाषाढा नक्षत्र स्थित शनि पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि
सूर्य की दृष्टि हो तो जातक यशस्वी, धनी और सौभाग्यशाली होता है । चंद्र की दृष्टि माता के लिए अशुभ होती है। यों जातक का अपना पारिवारिक जीवन सुखी होता है।
मंगल की दृष्टि जातक में कुटिल वृत्ति का संचार करती है, जिसके कारण उसे परेशानी भी उठानी पड़ सकती है।
बुध की दृष्टि शुभ फल देती है। जातक मंत्री-तुल्य प्रतिष्ठा पाता है। गुरु की दृष्टि उसे अध्ययन एवं शोध के क्षेत्र में ले जाती है। शुक्र की दृष्टि हो तो जातक अनेक जिम्मेदारियां निभाता है। माता के अलावा किसी अन्य स्त्री से भी मातृ - स्नेह प्राप्त होता है।
पूर्वाषाढा नक्षत्र में राहु के फल
पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में चतुर्थ चरण में ही राहु के शुभ फल मिलते हैं। यदि चतुर्थ चरण में राहु हो तो जातक प्रभावशाली, परोपकारी, कलाप्रिय होता. है । वह लोगों के विश्वास की रक्षा करता है।
पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में केतु के फल
पूर्वाषाढ़ा के चतुर्थ चरण में केतु हो तो जातक राजनीति से जुड़े लोगों के संपर्क में आकर अधिकार संपन्न बनता है। लेकिन धन का अभाव उसे बना ही रहता है। इस कारण भी कि जातक लोगों पर प्रभाव जमाने के लिए अपनी गाढ़ी कमाई भी उड़ा डालता है।
ज्योतिष- कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र विचार 202
Jain Education International
For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org