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विशाखा
(गुरु) ज्येष्ठा
(बुध)
पूर्वाभाद्रपद
(गुरु)
रेवती
(बुध)
रोहिणी
(चंद्र)
पूर्वाफाल्गुनी (शुक्र)
उत्तरा फाल्गुनी
(सूर्य)
हस्त
(चंद्र)
पूर्वाषाढ़ा
(शुक्र)
उत्तराषाढ़ा
(सूर्य)
श्रवण
(चंद्र)
आर्द्रा
(मंगल)
पुष्य
(शनि)
मघा
(केतु)
चित्रा
(मंगल)
स्वाति
(राहु)
अनुराधा
(शनि)
मूल
(केतु)
धनिष्ठा
(राहु)
शतभिषा
(मंगल)
उत्तरा भाद्रपद
(बुध)
वर-वधू
की कुंडली मिलान में क्या नक्षत्रों पर भी ध्यान दिया जाता है ? जी हाँ, वर-वधू की कुंडली मिलान में नक्षत्रों की बहुत अहम् भूमिका होती है। मिलान के लिए जो नियम बनाये गये हैं, उनकी तालिका मेलापक सारणी कहलाती है । इसी मेलापक सारिणी के आधार पर विवाह के समय वर-वधू की कुंडली मिलाने का आम प्रचलन है। कुंडली मिलान का एकमात्र उद्देश्य यही जानना था कि दो लोगों के मध्य आजीवन संबंध शुभ, सुखद और फलप्रद होगा या नहीं ।
पहले जब आज जैसे विवाह योग्य कन्याओं और युवकों के परिचय - सम्मेलन के आयोजनों का न प्रचलन था और न लड़की या लड़के को एक-दूसरे को मिलाने-दिखाने का रिवाज, तब दोनों की कुंडली के अध्ययन से ही यह ज्ञात किया जाता था कि प्रस्तावित संबंध करने योग्य है या नहीं। इस कार्य में सुविधा के लिए जिस मेलापक सारिणी की रचना ज्योतिष- कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र विचार 30
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