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'यहाँ अपने में स्थित' को थोड़ा और स्पष्ट कर दें।
नक्षत्र ग्रहों से भी बहुत दूर होते हैं। कुछ नक्षत्रों को मिलाकर राशियों की कल्पना की गयी है, यह हम जानते ही हैं।
जब हम कहते हैं कि कोई ग्रह विशेष, किसी विशिष्ट राशि में है तो तात्पर्य यही कि हमें धरती से देखने पर वह ग्रह विशेष, उसी विशिष्ट राशि के सामने नजर आता है।
या यों कहें कि राशिपथ के मंच पर वह राशि उस ग्रह की पृष्ठभूमि में पड़े परदे की भांति होती है। ___ मगर राशि तीस अंशों की होती है। उसमें सवा दो नक्षत्रों की कल्पना की गयी है। सूक्ष्मता के लिए ज्योतिष में यह जानने की विधि विकसित की गयी कि राशि में भी ग्रह उस राशि के किस नक्षत्र और उसके किस चरण में हैं। ___ जैसे कोई कहे कि मैं दिल्ली में रहता हूँ। लेकिन दिल्ली तो बहुत बड़ी है। पूछने पर वह अपनी कॉलोनी या मोहल्ले का नाम बताता है। पर कॉलोनी भी कोई छोटी नहीं होती। अतः वह अपने घर का नंबर, गली आदि । बताता है।
बस, कुछ ऐसा ही ग्रहों की राशि, नक्षत्र और उसके चरण विशेष में उसकी स्थिति के बारे में समझ लीजिए।
इस प्रकार जब कोई ग्रह किसी राशि के घटक किसी नक्षत्र विशेष के सामने होता है तो हम कहते हैं कि वह ग्रह उस नक्षत्र में है। ___ हमारे यहाँ तीन गुणों की विशेष महिमा बतायी गयी है। मनुष्यों में भी इन्हीं गुणों का वास बताया गया है।
ये गुण हम सभी जानते हैं। ये हैं-सात्विक गुण, राजसिक गुण और तामसिक गुण।
निम्न तालिका से ज्ञात होता है कि किस नक्षत्र पर कौन-सा गुण आरोपित किया गया है।
नक्षत्र, उनका गुण एवं स्वामी ग्रह
सत्व गुण रजोगुण पुनर्वसु
भरणी (गुरु)
(शुक्र) आश्लेषा
कृत्तिका (सूर्य)
तमोगुण अश्विनी (केतु) मृगशिरा (राहु)
(बुध)
ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 29
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