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प्रथम चरणः यहाँ शनि व्यक्ति को घोर स्वार्थी बनाता है। उसकी परिवार में किसी से नहीं बनती। हाँ, ऐसा व्यक्ति परिश्रमी अवश्य होता है और स्व प्रयत्नों से ही जीवन में आगे बढ़ता है ।
द्वितीय चरण: यहाँ शनि व्यक्ति को उदार और करुणामय बनाता है तथापि उसे तरह-तरह के रोग घेरे रहते हैं ।
तृतीय चरणः यहाँ शनि जातक को शासकीय अथवा व्यावसायिक क्षेत्र में सफलता प्रदान करता है। शासकीय सेवा में हो तो जातक उच्च पद पर आसीन होता है I
चतुर्थ चरण ः यहाँ शनि हो तो ऐसे व्यक्ति को बचपन में माता-पिता का सुख नसीब नहीं होता। उसका लालन-पालन अन्य संबंधी करते हैं । उन्हीं के कारण उसे विरासत में संपत्ति भी मिलती है ।
पुष्य स्थित शनि पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि
सूर्य की दृष्टि जातक के बचपन को कष्टकारक बना देती है । उसे पिता का सुख नही मिलता ।
चंद्र की दृष्टि उसे विशेष शिक्षा नहीं दिलाती । माता के लिए भी यह दृष्टि अशुभ है।
मंगल की दृष्टि संपन्न और स्वस्थ बनाती है। उसे जीवन के सभी सुख प्राप्त होते हैं ।
बुध की दृष्टि उसे समाजसेवी, परोपकारी बनाती है ।
गुरु की दृष्टि उसे परिवार का पूरा सुख प्रदान करती है। सुशील पत्नी और समझदार संतान । वह धनी भी होता है ।
शुक्र की दृष्टि उसे सामान्यतः सुखी रखती है। अपने व्यवहार के कारण वह सभी को प्रिय होता है।
पुष्य के विभिन्न चरणों में राहु की स्थिति
पुष्य स्थित राहु शुभ फल प्रदान करता है। व्यक्ति कला- प्रिय, धनी और प्रसिद्ध भी होता है।
प्रथम चरणः यहाॅ राहु काव्य प्रेमी बनाता है। जातक स्वयं भी कवि होता है। ऐसे व्यक्ति का बचपन कष्टमय बीतता है। प्रेम में भी निराशा मिलती है फलतः जातक के मन में स्त्रियों के प्रति उपेक्षा और कुछ अंशों तक घृणा उत्पन्न हो जाती है।
द्वितीय चरणः यहाँ शनि जमीन-जायदाद का मालिक बनाता है । जातक को दुग्ध-व्यवसाय से लाभ मिल सकता है।
ज्योतिष-कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र विचार 113
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