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चंद्रमा की दृष्टि का फल अशुभ है। वह उसे क्रूर और कुसंगति करने वाला बनाती है।
मंगल की दृष्टि उसे कृतघ्न, अनैतिक और पग-पग पर बाधाओं का शिकार बनाती है।
बुध की दृष्टि तो और भी अशुभ प्रभाव डालती है। उसके कारण व्यक्ति मिथ्याभाषी और चोर भी बन जाता है।
गुरु की दृष्टि का फल शुभ है। एक ओर वह समृद्धिपूर्ण जीवन बिताता है तो दूसरी ओर राजनीति के क्षेत्र में भी सफलता पाता है।
शुक्र की दृष्टि उसे यायावर बनाती है। वह कामतृप्ति के लिए बांझ स्त्रियों के पीछे भागने से भी बाज नहीं आता।
भरणी के विभिन्न चरणों राहु
भरणी के विभिन्न चरणों में स्थित राहु के प्रायः शुभ फल मिलते हैं।
प्रथम चरणः यहाँ राहु की स्थिति जातक को शक्तिशाली, प्रसिद्ध और धनी बनाती है परंतु उसकी मृत्यु विपन्न अवस्था में होती है।
द्वितीय चरण: यहाँ राहु व्यक्ति को बेहद मान-सम्मान और यश देता है। उसे चर्मरोग का भय होता है।
तृतीय चरण: यहाँ राहु काव्य रचयिता बनाता है। इसमें जातक को यश भी मिलता है। पुलिस और सेना में भी उसे सफलता मिलती है।
चतुर्थ चरणः यहाँ राहु की स्थिति व्यक्ति को उदार बनाती है। दुग्ध व्यवसाय से उसे लाभ मिलता है।
भरणी के विभिन्न चरणों में केतु
भरणी के प्रथम दो चरणों में केतु की स्थिति के अच्छे फल नहीं मिलते। शेष दो में केतु की स्थिति शुभ मानी गयी है।
प्रथम चरणः यहाँ केतु आयु के लिए अशुभ माना गया है।
द्वितीय चरणः यहाँ केतु अच्छी आयु प्रदान करता है। पर जातक को मिर्गी अथवा मस्तिष्क के किसी रोग की आशंका बनी रहती है।
तृतीय चरणः इस चरण में स्थित केतु व्यक्ति को योग विद्या में पारंगत बनाता है। वह स्पर्श चिकित्सक भी होता है।
चतुर्थ चरणः इस चरण में स्थित केतु दीर्घायु कारक माना गया है। ऐसा जातक आर्किटेक्ट हो सकता है। उसे चर्मरोग या गुप्त रोग का भी भय बना रहता है।
ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 71
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