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तीनों रूपों से संबद्ध है। आंतरिक व्यक्तित्व की विशेषता एवं शक्ति के कारण मनुष्य के भौतिक, मानसिक, आध्यात्मिक जगत का संचालन होता है । मनुष्य के बाह्य व्यक्तित्व के तीन एवं आंतरिक स्वरूप के तीन रूपों एवं अंतःकरण का सौर मंडल में विचरण करने वाले मुख्य ग्रहों से संबंध माना गया है । इन ग्रहों को इन रूपों एवं अंतःकरण का प्रतीक कहा गया है। सारांश में ये ग्रह ही हमारे बाह्य एवं आंतरिक व्यक्तित्व को संचालित और प्रभावित करते हैं । तात्पर्य यह है कि अच्छा ज्योतिषी बनने के लिए हमें भारतीय अध्यात्म का भी पर्याप्त ज्ञान रखना चाहिए ।
लेकिन आज कितने 'स्वनाम धन्य' ज्योतिषियों को इन सब बातों का 'हस्तकमलावत्' ज्ञान है ? 'नीम हकीम' सदा 'खतरा-ए-जान' साबित होता है ! पर आज ज्योतिष शास्त्र में बहुलता ऐसे ही नीम-हकीमों की है, फलतः एक सनातन ज्ञान मृत परंपरा का बोझ या अंधविश्वास लगने लगता है।
भारतीय ज्योतिष शास्त्र के सिद्धांतों का प्रतिपादन करने वाले अनेक ग्रंथ हैं । 'ज्योतिष कौमुदी' के लेखन एवं प्रकाशन का एकमात्र उद्देश्य यही है कि पाठकों को एक ही स्थल पर इन ग्रंथों की सामग्री का सार प्राप्त हो जाए।
पं. दुर्गाप्रसाद शुक्ल एक अनुभवी पत्रकार एवं लेखक हैं। मेरे अनुरोध पर उन्होंने ज्योतिष शास्त्र पर अनेक परिचयात्मक पुस्तकें लिखी हैं, जिनका पाठकों ने स्वागत किया है। एक परिचित युवा पुजारी पंडितजी पं. शुक्ल रचित 'द्वादश भाव रहस्य' के आधार पर कुंडलियों में विभिन्न ग्रहों का फल विवेचन किया करते हैं। उनका कहना है कि उनके यजमान उनकी कुंडलियों में प्रस्तुत फल कथन से बहुत प्रभावित होते हैं। दिलचस्प बात यह है कि स्वयं शुक्लजी कभी ऐसा कोई भविष्य कथन नहीं करते । हाँ, वे अपने पास मित्रों, परिचितों द्वारा लायी जाने वाली कुंडलियों के आधार पर ज्योतिष सिद्धांतों की उपयोगिता - सत्यता जानने का प्रयत्न अवश्य किया करते हैं ।
मेघ प्रकाशन की अन्य कृतियों की तरह पाठक 'ज्योतिष कौमुदी के इस प्रथम खंड से भी लाभान्वित होंगे, ऐसा विश्वास है । पाठक अपनी प्रतिक्रियाओं से हमें अवश्य अवगत कराएं, यह अनुरोध है ।
-अशोक सहजानंद
ज्योतिष - कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र विचार 10
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