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भारतीय ज्योतिष सिद्धांतों पर अनेक ग्रंथ हैं। उन्हें पढ़ते हुए हमें यह तथ्य भी याद रखना चाहिए कि जिस तरह रीतिकालीन एवं बाद के कवियों ने अपने आश्रयदाताओं की तुष्टि-संतुष्टि के लिए काव्यग्रंथों की रचना की, उसी तरह कुछ ज्योतिषाचार्यों ने भी अपने आश्रयदाताओं की प्रसन्नता के लिए ज्योतिष सिद्धांतों की अलग-अलग व्याख्या की है। यही कारण है कि अनेक ज्योतिषाचार्यों के कुछ ग्रहों के प्रभावों के बारे में सर्वथा विपरीत फल भी मिलते हैं। इसलिए हमारी राय में ज्योतिष सिद्धांतों को जांच-परख कर ही अपनाना चाहिए। कर्मकांड एवं पुरोहित परंपरा ने ज्योतिष सिद्धांतों पर जो आवरण चढ़ा दिये हैं, हमें उन्हें हटाकर उनके वास्तविक अर्थ को समझने की चेष्टा करनी चाहिए।
विडंबना यह है कि हम किसी भी शास्त्र का क्रैशकोर्स कर उसमें पारंगत होना चाहते हैं। जिस तरह आज योग, रेकी, वास्तु शास्त्र का ज्ञान देने वाली अनेक संस्थाएं, शालाएं और गुरु हैं, उसी तरह ज्योतिष शास्त्र का ज्ञान कराने का दावा करने वाली भी अनेक संस्थाएं एवं ज्योतिषाचार्य हैं। इनसे ज्योतिष शास्त्र का प्रचार-प्रसार तो हो रहा है, और यह एक शुभ संकेत भी है, तथापि शीघ्रातिशीघ्र 'भविष्यवक्ता बन, ज्ञान को आय का स्रोत बना लेने की जल्दबाजी ज्योतिष के नये अध्येताओं को 'गहरे पानी नहीं पैठने देती। ज्योतिष शास्त्र हो या वास्तुशास्त्र, अथवा योग, अथवा रेकी के सच्चे ज्ञान के लिए हमें अपने जीवन को आध्यात्मिक अनुशासन में ढालना पड़ेगा। यही आध्यात्मिक अनुशासन हममें एक अंतर्ज्ञान शक्ति विकसित करेगा, जिसकी सहायता से दृष्टिमात्र में हम किसी भी कुंडली के मर्म तक पहुंचने में सफल हो सकते हैं। __ समस्त भारतीय ज्ञान की पृष्ठभूमि दर्शनशास्त्र है। भारतीय दर्शन आत्मा को अजर एवं अमर मानता है। इस आत्मा का अनादिकाल से कर्मप्रवाह के फलस्वरूप लिंग शरीर और भौतिक शरीर से संबंध है। आत्मा मनुष्य के भौतिक शरीर में रहते हुए भी अनेक जगतों से संबंध रखता है। हमारा यह शरीर मुख्यतः ज्योति, मानसिक और पौद्गलिक, इन तीन उप-शरीरों में विभक्त है। वह ज्योति उपशरीर द्वारा नक्षत्र जगत से, मानसिक-उपशरीर द्वारा मानसिक जगत से तथा पौद्गलिक-उपशरीर द्वारा भौतिक जगत से संबद्ध रहता है। आत्मा की क्रियाविशेषता के कारण मनुष्य के व्यक्तित्व को दो भागों में बांटा गया है। एक बाह्य व्यक्तित्व एवं दूसरा आंतरिक व्यक्तित्व । ज्योतिष इस व्यक्तित्व चेतना के तीन रूप मानता है-ये हैं, रूप, अनुभव और क्रिया। बाह्य व्यक्तित्व के तीन रूप आंतरिक व्यक्तित्व के इन
ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 9
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