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________________ ऊंचे पद पर भी पहुँच सकते हैं। उनकी शिक्षा भी अच्छी होती है। उन्हें अनेक विषयों का ज्ञान भी होता है। ऐसे जातकों की काम-प्रवृत्ति उन्हें सदा दूसरे ‘सेक्स' के लोगों के साथ बिताने के लिए प्रेरित करती है। ऐसे जातक अठारह-उन्नीस वर्ष की अवस्था में ही आजीविका कमाने में लग जाते हैं। ऐसे जातक अपने पिता के भक्त तो होते ही हैं, साथ ही उनकी सख्ती से कुछ खिन्न भी। उन्हें अपने पिता से कोई विशेष लाभ नहीं होता। सामान्यत: बचपन उपेक्षित ही बीतता है। ऐसे जातकों का पारिवारिक जीवन सुखी बीतता है। पत्नी एवं बच्चों से उसे पूर्ण सुख मिलता है। यद्यपि ऐसे जातक अपने स्वास्थ्य के प्रति किंचित लापरवाह रहते हैं तथापि उनका स्वास्थ्य प्रायः ठीक ही रहता है। __इस नक्षत्र में जन्मी जातिकाएं भी उपरोक्त गुणों एवं चारित्रिक विशेषताओं से संपन्न होती है। व्यक्तित्व आकर्षक, मध्यम कद तथा विशाल, सुंदर नेत्र। ऐसी जातिकाएं किसी भी परिवार के लिए साक्षात 'लक्ष्मी' ही कही गयी हैं। व्यवहार-कुशलता, विनम्रता, परिस्थितियों के अनुरूप ढल जाना उनकी एक विशेषता है। ऐसी जातिकाएं वकालत के क्षेत्र में पर्याप्त सफलता पा सकती हैं। उनमें वे कुशल नर्स या चिकित्सक बनने के भी क्षमता होती है। ऐसी जातिकाओं को पुनर्वसु नक्षत्र में जन्मे जातक से विवाह न करने की चेतावनी मिलती है। उसे पति से बिछुड़ना पड़ सकता है। ऐसी जातिकाओं को अपच, कब्ज, हर्निया एवं तपेदिक की बीमारी हो सकती है, अतः उन्हें इन रोगों को जन्म देने वाले वातावरण से बनना चाहिए। उत्तराभाद्रपद के प्रथम चरण का स्वामी सूर्य, द्वितीय का बुध, तृतीय का शुक्र तथा चतुर्थ का मंगल माना गया है। उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में सूर्य की स्थिति के फल प्रथम चरण: यहाँ सूर्य जातक को समाज में प्रतिष्ठित स्थान दिलाता है। जातक का पारिवारिक जीवन भी सुखी होता है। द्वितीय चरण: यहाँ जातक कृषि विषयक कार्यों से पर्याप्त धन कमा सकता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 231 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002762
Book TitleJyotish Kaumudi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDurga Prasad Shukla
PublisherMegh Prakashan Delhi
Publication Year2004
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size9 MB
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