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________________ उत्तराभाद्रपद उत्तराभाद्रपद नक्षत्र राशि पथ में 333.20 अंशों से 346.40 अंशों तक स्थित है। इसका एक अन्य नाम अहिर्बुध्न्य । अरबी में उसे अल फर्ग अल मुखीर कहते हैं। उत्तराभाद्रपद नक्षत्र की तीन तारों को मिलाकर रचना की गयी है। देवता अहिर्बुध्य है। अर्थ दो कहे गये हैं। कुछ इसका अर्थ सूर्य देवता से लगाते हैं तो कुछ कहते हैं, इसका अर्थ है तल में रहने वाला सर्प या द्वीप का सर्प। उत्तराभाद्रपद नक्षत्र का आधिपत्य शनि को दिया गया है। गणः मनुष्य, योनिः गौ, और नाड़ी: मध्य है। चरणाक्षर हैं: टू, थ, झ, ञ। इस नक्षत्र में जन्मे जातक आकर्षक एवं चुंबकीय व्यक्तित्व वाले होते हैं। चेहरे पर सदैव स्मित हास्य, एक अबोधपन दर्शाता है। वे बुद्धिमान, ज्ञानवान एवं समझदार भी होते हैं। ऐसे जातक सभी से सम व्यवहार करने वाले होते हैं, अर्थात् वे ऊंच-नीच का कोई भेद नहीं रखते। निर्दोष हृदय के ऐसे जातक दूसरों को कष्ट नहीं देना चाहते। ऐसे जातकों में एक ही दोष होता है कि गुस्सा उनकी नाक पर चढ़ा रहता है। लेकिन वह क्षणिक होता है। मन से वे एकदम स्वच्छ एवं निर्मल होते हैं। जिनसे स्नेह करते हैं, उनके लिए वे प्राण तक देने को तत्पर रहते हैं, पर यदि उन्हें कोई चोट पहुँचाये तो वे खूखार शेर की तरह हो जाते हैं। उनकी वाणी में माधुर्य होता है। वे शत्रुहंता भी कहे जा सकते हैं। वे ज्योतिष कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार . 230 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002762
Book TitleJyotish Kaumudi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDurga Prasad Shukla
PublisherMegh Prakashan Delhi
Publication Year2004
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size9 MB
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