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आश्लेषा
आश्लेषा की राशिपथ में स्थिति 106.40 अंश से 120.00 अंशों के मध्य मानी गयी है । आश्लेषा के अन्य पर्यावाची नाम हैं-अहि, भुजंग, सार्पी । अरबी में आर्द्रा को अल-तर्फ कहा जाता है ।
आश्लेषा का स्वरूप चक्र की भांति माना गया है । सर्प को देवता तथा बुध को इस नक्षत्र का स्वामी ग्रह माना गया है। इस नक्षत्र में पांच तारों की स्थिति मानी गयी है। यह नक्षत्र कर्क राशि के अंतर्गत आता है, जिसका स्वामी चंद्र है ।
गणः राक्षस, योनिः बिल्ला (मार्जर) तथा नाड़ी: अन्त्या कही जाती है । नक्षत्र के चरणाक्षर है: डी, डू, डे, डो ।
वाल्मीकी रामायण के अनुसार दशरथ पुत्र लक्ष्मण एवं शत्रुघ्न का जन्म इसी नक्षत्र में हुआ था ।
आश्लेषा नक्षत्र में जन्मे जातक जातिकाओं के लिए कहा गया है कि उनकी दृष्टि भेदक होती है। उनकी दृष्टि मात्र में एक शक्ति होती है जो सामने वाले को प्रभावित किये बिना नहीं छोड़ती।
आश्लेषा नक्षत्र में जन्मे जातक भाग्यशाली, हष्ट-पुष्ट होते हैं तथापि वे रुग्ण व्यक्तित्व का आभास दिलाते हैं। वे वाचाल भी होते हैं, तथापि उनकी वाणी में लोगों को मुग्ध करने की शक्ति होती है। उनमें निहित बुद्धिमानी एवं नेतृत्व की क्षमता उन्हें शीर्षस्थ पर पहुँचने की प्रेरणा देती है ।
इस नक्षत्र में जातक किसी भी बात पर आँख मूंदकर विश्वास नहीं
ज्योतिष - कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र विचार 115
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