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________________ करते। उन्हें अपनी स्वतंत्रता में किसी का भी कोई हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं होता। अतः आश्लेषा नक्षत्र में जन्मे जातकों से निभाव का एकमात्र उपाय है कि उनकी बात न काटी जाए। आश्लेषा नक्षत्र में जन्मे जातकों में एक विशेषता यह भी होती है कि आँख मूंदकर उनका अनुसरण करने वाले लोगों के हित के लिए वे किसी भी सीमा तक जा सकते हैं। यद्यपि वे न किसी से विश्वासघात करते हैं, और न किसी को धोखा देना पसंद करते हैं, तथापि अक्सर वे समाज में अवैध कार्यों में लिप्त लोगों के जानेअनजाने खैर-ख्वाह बने रहते हैं। उनमें एक दोष यह होता है कि वे कृतज्ञता व्यक्त करना नहीं जानते। उनका उग्र स्वभाव लोगों को उनका विरोधी बना देता है और अवसर मिलते ही ऐसे लोग उन्हें धोखा देने से नहीं चूकते। __ आश्लेषा नक्षत्र में जन्मे जातकों की शैक्षिक रुचि के विषय अक्सर कला एवं वाणिज्य व्यवसाय के होते हैं। ऐसे जातकों की पत्नियां अक्सर उन्हें समझ नहीं पाती। दूसरे उसमें स्वार्थपरता की भावना भी अधिक होती है। ऐसे जातकों को नशे से बचने की सलाह दी गयी है। ___आश्लेषा नक्षत्र में जन्मी जातिकाएं विशेष सुंदर नहीं होती। वे नैतिकता के उच्च आदर्शों से प्रेरित होती हैं तथा अपने इस गुण के कारण समादृत भी होती हैं। उनमें आत्म संयम एवं लज्जा की भावना भी प्रचुर मात्रा में होती है। वे कार्यदक्ष होती हैं। घरेलू कामकाज में भी और अवसर मिलने पर प्रशासनिक कार्यों में भी। आश्लेषा के विभिन्न चरणों में सूर्य की स्थिति __ आश्लेषा के विभिन्न चरणों में सूर्य सामान्य फल देता है। लग्न में विभिन्न नक्षत्रों की स्थिति फलों में गुणात्मक परिवर्तन कर देती है। इसी तरह शुभ ग्रहों की दृष्टि से भी फलों में परिवर्तन आ जाता है। ___ आश्लेषा के विभिन्न चरणों के स्वामी हैं-प्रथम चरण: गुरु, द्वितीय चरणः शनि, तृतीय चरणः शनि एवं चतुर्थ चरणः गुरु। - प्रथम चरणः यहाँ सूर्य सामान्य फल देता है। यदि लग्न में अनुराधा नक्षत्र हो तो जातक यायावर बन जाता है। यह स्थिति वैराग्य की भावना को भी जन्म देती है। परिवार से विरक्त साधु संन्यासी बना देती है। तीर्थाटन के लिए प्रेरित करती है। उदार एवं परोपकारी बनाती है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 116 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002762
Book TitleJyotish Kaumudi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDurga Prasad Shukla
PublisherMegh Prakashan Delhi
Publication Year2004
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size9 MB
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