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________________ ऐसे जातकों का वैवाहिक जीवन सुखी बीतता है। पत्नी गुणवती, गृह कार्य में दक्ष तथा सुशील होती है। प्रायः उनकी पत्नी उनके परिवार की पूर्व परिचित ही होती है। प्रेम-विवाह के भी संकेत मिलते हैं। ऐसे जातकों का स्वास्थ्य भी सामान्यतः ठीक ही रहता है तथापि उन्हें दंत-पीड़ा, नेत्र-विकार, क्षय, बवासीर आदि रोग जल्दी ही पकड़ सकते हैं। कृत्तिका नक्षत्र में जन्मी जातिकाएं मध्यम कद की बहुत रूपवती तथा साफ-सफाई पसंद होती हैं। वे अनावश्यक रूप से किसी से 'दबना' पसंद नहीं करतीं, फलतः जाने-अनजाने उनका स्वभाव कलह पैदा करने वाला बन जाता है। उनमें संगीत, कला के प्रति रुचि होती है तथा वे शिक्षिका का कार्य बखूबी कर सकती हैं। कृत्तिका के प्रथम चरण में जन्मी जातिकाएं उच्च अध्ययन में सफल होती हैं तथा प्रशासक, चिकित्सक, इंजीनियर आदि भी बन सकती हैं। . कृत्तिका नक्षत्र में जन्मी जातिकाओं का वैवाहिक जीवन पूर्णतः सुखी नहीं रह पाता। पति से विलगाव या कभी-कभी प्रजनन क्षमता की हीनता भी इसका एक कारण हो सकती है। कृत्तिका के विभिन्न चरणों के स्वामी इस प्रकार हैं: प्रथम एवं चतुर्थ चरण-गुरु, द्वितीय एवं तृतीय चरण-शनि। कृत्तिका नक्षत्र में सूर्य के फल कृत्तिका के द्वितीय चरण में ही सूर्य की स्थिति के शुभ फल मिलते हैं। प्रथम चरणः अन्य शुभ ग्रहों की युति हो तो अधिक संतानें तथापि दरिद्र जीवन। सेना या पुलिस विभाग में सेवा के अवसर। जातक की ज्योतिष शास्त्र में भी रुचि होती है। द्वितीय चरणः सुखी जीवन के संकेत। जातक दीर्घायुष्य एवं संतति सुख से पूर्ण होता है। जातक की संगीत में भी रुचि होती है। प्रौढ़ावस्था के बाद संपन्नता के अवसर। तृतीय चरणः सूर्य की स्थिति यहाँ शुभ नहीं होती। जातक को दरिद्रतापूर्ण जीवन बिताना पड़ता है। कोई रोग भी घेर सकता है। चतुर्थ चरण: यहाँ भी सूर्य की स्थिति अच्छे फल नहीं देती। जातक क्रूर--मना, गैर-जिम्मेदार तथा दुर्बल स्वास्थ्य वाला होता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 73 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002762
Book TitleJyotish Kaumudi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDurga Prasad Shukla
PublisherMegh Prakashan Delhi
Publication Year2004
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size9 MB
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