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द्वितीय चरण: इस चरण में बुध हो तो जातक हष्ट-पुष्ट, धनी तथा प्रसन्नचित्त होता है । एकाधिक विवाह के योग भी मिलते हैं। चालीस वर्ष की अवस्था के बाद जातक में संन्यास के प्रति रुझान बढ़ सकता है 1
तृतीय चरण: यहाँ स्थित बुध शुभ फल देता है। जातक दृढ़ निश्चयी और जीवन में व्यावहारिक बुद्धि से काम लेता है। शनि के साथ बुध की युति जातक को वैज्ञानिक एवं बौद्धिक ज्ञान अर्जन के लिए प्रवृत्त करती है ।
चतुर्थ चरणः इस चरण में बुध जातक को व्यावहारिक, कर्त्तव्यनिष्ठ एवं सौंपी गयी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाने वाला बनाता है। जातक में नेतृत्व के भी गुण होते हैं । पुत्रों की संख्या ज्यादा होती है ।
कृत्तिका नक्षत्र स्थित बुध पर अन्य ग्रहों की दृष्टि
सूर्य की दृष्टि का फल शुभ नहीं होता । जातक के दरिद्र एवं रोगमुक्त होने के फल कहे गये हैं ।
चंद्र की दृष्टि जातक को कठोर परिश्रमी, धनी एवं प्रसिद्ध बना देती है ।
मंगल की दृष्टि अशुभ फल देती है। जातक के सत्ता पक्ष से दंडित होने की आशंका रहती है।
गुरु की दृष्टि शुभ फल देती है । जातक बुद्धिमान एवं नेतृत्व के गुणों से युक्त होता है।
दृष्टि जातक में स्त्रियों के प्रति विशेष आकर्षण पैदा
शुक्र की
करती है ।
शनि की दृष्टि पारिवारिक जीवन को दुःखमय बनाती है । पत्नी एवं संतानों से कलह होती रहती है।
कृत्तिकास्थित गुरु के फल
प्रथम चरणः यहाँ गुरु जातक को ज्ञान-पिपासु बनाता है। जातक शुद्ध हृदय एवं यात्रा - प्रिय भी होता है। वह जीवन जीना जानता है। एक ओर उसकी इतिहास एवं साहित्य के अध्ययन में रुचि होती है तो दूसरी ओर सुरा - सुंदरी का सेवन भी उसे भाने लगता है ।
द्वितीय चरण: यहाँ गुरु जातक को लंबे कद का, मातृभक्त तथा धार्मिक कार्यों के कारण प्रसिद्धि दिलाता है। युवतियों के प्रति वह एक विशेष कमजोरी लिए होता है।
तृतीय चरण: यहाँ गुरु हो तो जातक का व्यक्तित्व भव्य होता है । वह
ज्योतिषकौमुदी : (खंड-1 ) नक्षत्र-विचार 76
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