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अश्विनी नक्षत्र से जुड़ी हुई कुछ कथाएं भी हैं। एक कथा के अनुसार सृष्टि के प्रारंभ में ब्रह्मा ने स्वयं को बहुत एकाकी पाया। अपने इसी एकाकीपन को दूर करने के लिए उन्होंने देवों की रचना की । ब्रह्मा द्वारा जिस सर्वप्रथम देव की रचना की गयी, वही अश्विनी है, जिसके दो हाथ हैं।
एक अन्य कथा सूर्य को अश्विनी का पिता मानती है। सूर्य की पत्नी का नाम संज्ञा था। सूर्य की किरणों का ताप न सह सकने के कारण वह भाग कर आर्कटिक प्रदेश में जाकर एक मादा- अश्व के रूप में विचरने लगी। सूर्य ने भी एक अश्व का रूप धर कर संज्ञा का पीछा किया। संज्ञा उसे आर्कटिक प्रदेश में मिली । यहीं दोनों के संयोग से अश्विनी कुमारों का जन्म हुआ । यही अश्विनी कुमार बाद में देवताओं के वैद्य बने ।
यह कथा इस एक ज्योतिषीय धारणा को भी पुष्ट करती है कि सृष्टि के प्रारंभ में अपने अक्ष पर घूमती पृथ्वी पर सूर्य किरणें ध्रुवों तक पहुँचा करती। उस समय वसंत संपात अश्विनी नक्षत्र में था । उसी समय पृथ्वी पर जीवन का भी प्रारंभ हुआ ।
अश्विनी नक्षत्र में जन्मे जातक/जातिका
अश्विनी नक्षत्र को समूची मेष राशि का प्रतिनिधित्व करने वाला नक्षत्र माना गया है। मेष राशि का स्वामित्व मंगल को दिया गया है।
'जातक पारिजात' में कहा गया है
अश्विन्यामति बुद्धिवित विनय प्रज्ञा यशस्वी सुखी
अर्थात् अश्विनी नक्षत्र में जन्म लेने का फल है: अति बुद्धिमान, धनी, विनयान्वित, अति प्रज्ञा वाला यशस्वी और सुखी ।
इसकी व्याख्या करते हुए स्व. पं. गोपेश कुमार ओझा लिखते हैं- 'अति प्रारंभ में आया है, इस कारण 'अति' सब विशेषणों के पहले अतिधनी भी जुड़ सकता है। मूल में प्रज्ञा यशस्वी शब्द आया है, जिसके दो अर्थ हो सकते हैं- 1. प्रज्ञावान तथा यशस्वी, 2. अपनी प्रज्ञा के कारण यशस्वी (और अर्थान्तर में सुखी भी) । बुद्धि और प्रज्ञा साधारणतः एक ही अर्थ में प्रयुक्त होते हैं परंतु यहाँ ग्रंथकार ने बुद्धि और प्रज्ञा दोनों शब्दों का प्रयोग किया है । बुद्धि की परिभाषा है, संकल्प-विकल्पात्मकं मन विश्लयात्मकं बुद्धिः । प्रज्ञा का अर्थ होगा प्रकृष्ट- ज्ञा नीतिज्ञ में प्रज्ञा विशेष मात्रा में होती है ।
अश्विनी नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातकों का व्यक्तित्व सुंदर, माथा चौड़ा, नासिका कुछ बड़ी तथा नेत्र बड़े एवं चमकीलें होते हैं ।
ज्योतिष - कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र - विचार 50
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