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पुनर्वसु
पुनर्वसु नक्षत्र राशि पथ में 80.00 अंशों से 93.20 अंशों के मध्य स्थित माना गया है। अन्य पर्यायवाची नाम हैं- आदित्य, सुरजननी । अरबी में इसे अध-धीरा कहते हैं, अर्थात् 'सिंह का पंजा' । इसमें चार तारे हैं। पुनर्वसु का देवता अदिति एवं स्वामी ग्रह गुरु को माना गया है। गणः देव, योनिः मार्जार तथा नाड़ी: आदि कही गयी है। चरणाक्षर हैं-के, को, ह, ही ।
इस नक्षत्र के तीन चरण मिथुन (स्वामी चंद्र) राशि में आते हैं। पुनर्वसु नक्षत्र में जन्मे जातक सुंदर, ईश्वर पर अगाध आस्था रखने वालें तथा परंपरा-प्रिय होते हैं । अवैध या अनैतिक कार्यों का वे जमकर प्रतिरोध करते हैं। सादगी भरा जीवन बिताने के आकांक्षी ऐसे जातक परोपकारी, दूसरों की सहायता करने वाले तथापि कुछ गर्म-मिजाज होते हैं। अपनी बहुमुखी प्रतिभा के कारण वे जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफल हो सकते हैं । अध्यापन का क्षेत्र हो, अथवा अभिनय का लेखन का हो या चिकित्सा का, वे सर्वत्र यशस्वी होते हैं ।
ऐसे जातक मातृ-पितृ भक्त, गुरुजन का आदर करने वाले भी होते हैं । उनका वैवाहिक जीवन प्रायः सफल नहीं रहता। संबंध-विच्छेद एवं पुनर्विवाह के भी फल कहे गये हैं ।
पुनर्वसु नक्षत्र में जन्मी जातिकाएं शांतिप्रिय तथापि तार्किक प्रकृति की होती हैं, फलतः दूसरों से प्रायः उनकी बनती नहीं । तथापि ऐसी जातिकाएं परोपकारी, सबका सम्मान करने वाली तथा सुखी होती हैं। उन्हें पति का पूर्ण सुख मिलता है। बच्चे भी अच्छे होते हैं ।
सामान्यतः ऐसी जातिकाओं का स्वास्थ्य प्रायः ठीक ही रहता है। पुनर्वसु के विभिन्न चरणों के स्वामी हैं- प्रथम चरण: मंगल, द्वितीय चरणः शुक्र, तृतीय चरणः बुध, चतुर्थ चरणः चंद्र ।
पुनर्वसु के विभिन्न चरणों में सूर्य की स्थिति
पुनर्वसु के चतुर्थ चरण को छोड़कर अन्य सभी चरणों में सूर्य के शुभ फल प्राप्त होते हैं ।
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ज्योतिष-कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र - विचार ■ 101
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