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बुध की दृष्टि उसे खर्चीला बनाती है। ऐसे व्यक्ति को सरकार के, समाज के परिवार के नियमों की अवहेलना करने में मजा भी आता है। संभवतः समाज के रुढ़िवादी सिद्धांत उसे जंचते नहीं। वह लेखक भी होता है और अपनी बात सफलतापूर्वक रखता है। ___ गुरु की दृष्टि के फलस्वरूप उसकी शिल्प शास्त्र में रुचि होती है। वह एक सफल वास्तु-शिल्पी होता है लेकिन धार्मिक स्थलों, समाजोपयोगी भवनों, उद्यानों को बनाने में उसकी विशेष रुचि होती है। .
शुक्र की दृष्टि का फल शुभ नहीं होता। जातक का व्यवहार उसे सबकी नजरों में हेय बना देता है।
शनि की दृष्टि जीवन में तरह-तरह की बाधाएं उत्पन्न करती है। मघा के विभिन्न चरणों में चंद्र
मघा के विभिन्न चरणों में चंद्र प्रायः अच्छे फल ही देता है। विभिन्न ग्रहों की दृष्टि के फलस्वरूप फलों में अंतर आ जाता है।
प्रथम चरण: यहाँ चंद्र व्यक्ति को समाजसेवी बनाता है। अपनी मृदु वाणी और सद व्यवहार के फलस्वरूप वह सर्वत्र आदर पाता है। वह अल्प संतति होता है।
द्वितीय चरणः यहाँ चंद्र व्यक्ति को युवावस्था तक अभावग्रस्त रखता है। व्यक्ति के मन में स्त्रियों के प्रति विद्वेष का भाव होता है। तीस वर्ष के उपरांत उसके जीवन में संपन्नता आती है।
तृतीय चरण: यहाँ चंद्र के कारण प्रांरभिक जीवन संघर्षमय होता है। पत्नी भी रुष्ट रहती है। पैंतीस वर्ष की अवस्था के बाद सामाजिक एवं पारिवारिक जीवन में भी परिवर्तन आता है।
चतुर्थ चरणः यहाँ चंद्र अल्पायु का कारक बताया गया है। तथापि कहा गया है कि यदि जातक तैंतीस वर्ष की आयु पार कर जाता है तो अत्यधिक अधिकार-संपन्न और समाज में समादृत होता है। मघा स्थित चंद्र पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि
सूर्य की दृष्टि अत्यधिक शुभ फल देती है। जातक धनी, प्रसिद्ध और अधिकार-संपन्न होता है। __ मंगल की दृष्टि समाजसेवी बनाती है। जातक राजनीति के क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है।
बुध की दृष्टि उसे सुरा-सुंदरी का शौकीन बनाती है।
गुरु की दृष्टि का फल शुभ होता है। जातक अत्यधिक प्रसिद्ध और सत्तासीन लोगों का विश्वासपात्र होता है।
ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार । 125
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