Book Title: Jainagam Pathmala
Author(s): Akhileshmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ THE FREE INDOLOGICAL COLLECTION WWW.SANSKRITDOCUMENTS.ORG/TFIC FAIR USE DECLARATION This book is sourced from another online repository and provided to you at this site under the TFIC collection. It is provided under commonly held Fair Use guidelines for individual educational or research use. We believe that the book is in the public domain and public dissemination was the intent of the original repository. We applaud and support their work wholeheartedly and only provide this version of this book at this site to make it available to even more readers. We believe that cataloging plays a big part in finding valuable books and try to facilitate that, through our TFIC group efforts. In some cases, the original sources are no longer online or are very hard to access, or marked up in or provided in Indian languages, rather than the more widely used English language. 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Page #2 --------------------------------------------------------------------------  Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवान महावीर की २५वीं निर्वाण शताब्दी समारोह के उपलक्ष्य में - जैनागम पाठमाला संकलन अखिलेश मुनि प्रकाशक सन्मति ज्ञानपीठ, आगरा- २ Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनागम ग्रन्थमाला का ७वां रत्न प्रकाशक : सन्मति ज्ञानपीठ, ____लोहामण्डी, आगरा-२ संस्करण : प्रथमावृत्ति, मई १९७४ मुद्रक : राष्ट्रीय आर्ट प्रिंटर्स मोतीलाल नेहरू रोड, आगरा-३ मूल्य : सात रुपया मान Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गे पुरुष प्रकाशकीय - चीत . ... जहाँ आदित्य का प्रकाश नहीं पहुंच पाता, वहाँ भी साहित्य का आला-.. .. अपनी प्रभा फैला सकता है । इसलिए साहित्य अर्थात् ज्ञान सूर्य से भी अधिक प्रभास्वर माना गया है। . साहित्य भी वही उपयोगी है जिसमें जीवन-निर्माण की प्रेरणा हो, अन्तः.. करण को पवित्रता और प्रसन्नता प्रदान करने की क्षमता हो। ऐसा साहित्य ही वास्तव में आज के लोकजीवन का मंगल कर सकता है। जैन आगमों में जीवन निर्माण की अनन्त-अनन्त प्रेरणाएं भरी हैं, यद्यपि वह साहित्य प्राकृतभाषा में ग्रथित है, किन्तु फिर भी सतत स्वाध्याय करने वाले साधकों के लिए वह भाषा भी मातृभाषा की भाँति सुबोध और सहज आकर्षण का विषय रही है। मूल पाठों के स्वाध्याय से जो आनन्द और जो भावात्मक प्रेरणा मिलती है, वह उसके अनुवाद से कहाँ मिल पायेगी? इसीलिए जैन परम्परा में मूल आगम-साहित्य के स्वाध्याय की परिपाटी चली आ रही है। . प्रस्तुत पुस्तक में आगमों के वे पाठ संकलित किये गये हैं जिनका स्वाध्याय प्रायः श्रमण-श्रमणी तथा स्वाध्यायप्रेमी सद्गृहस्य करते रहते हैं । इसका संकलन किया है, सेवाभावी श्री अखिलेश मुनि जी ने। श्री अखिलेश मुनिजी की संकलनदक्षता 'मंगलवाणी' के रूप में सर्वोत्तम सिद्ध हो चुकी है। आज तक मंगलवाणी के जितने अधिक संस्करण निकले हैं, और वह जितनी लोकप्रिय हुई है, जैनसमाज के प्रकाशनों में शायद ही कोई दूसरी पुस्तक इतनी लोकप्रिय हुई हो। हम मुनिश्री के इस श्रम के आभारी हैं। इस पुस्तक के पाठ एवं प्रूफसंशोधन आदि कार्यों में प्रसिद्ध विद्वान मुनिश्री नेमिचन्द्रजी महाराज तथा हमारे चिर-परिचित सहयोगी श्रीचन्दजी सुरांना 'सरस' का जो सहयोग मिला उसके लिए हम उनके कृतज्ञ रहेंगे। .... आशा है, यह संकलन पाठकों के लिए अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगा। मन्त्री सन्मति ज्ञानपीठ Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भौतिक ज्ञान और आत्मज्ञान में रातदिन का यन्तर है। मोतिया भान मनुष्य को अपने और परिवार के पेट भरने, अपनी भाजीविका मामाने, अपने लिए सत्ता, महत्ता, पद-प्रतिष्ठा मीर यशकीति प्राप्त करने की कला सिखाता है, भौतिक ज्ञान मनुष्य को विविध विषयों, विज्ञान को शाखाओं का विवरण प्रस्तुत कर देता है; वह भाषाज्ञान से लेकर विविध शिल्पों, फलानों, विद्याओं तथा तकनीकियों में मनुष्य को निष्णात कर देता है; इसके विपरीत आत्मज्ञान मनुष्य को मात्मा से सम्बन्धित तमाम विषयों का अनुमवयुक्त ज्ञान करा देता है । वह विज्ञान, राजनीति आदि तमाम भौतिक ज्ञानों पर अंकुश रखने का एवं हेयोपादेय का विवेक करा देता है । सच्चा ज्ञान मनुष्य को कण्टसहिष्णु. सयमी, विश्ववत्सल, सर्वभूतात्मभूत और आलवनिरोधदक्ष बना देता है। मगर आत्मा के सम्बन्ध में विभिन्न शास्त्रों की बातें या द्रव्यगुण-पर्याय की शब्दावली का कोरा रटना आत्मज्ञान नहीं; उसे तो तोतारटन ही कहा जा सकता है । वह आत्मज्ञान तो तव कहला सकता है, जब शास्त्रज्ञान के साथ आत्मानुभूति हो, उपर्युक्त गुणों से युक्त अनुभव विनान हो, जिससे शरीर और शरीर से सम्बन्धित पदार्थों और आत्मा व आत्मा से सम्बन्धित गुणों व शक्तियों की भिन्नता प्रत्यक्ष अनुभव में आ जाय, समय आने पर म्यान से तलवार की तरह शरीर या शरीर-सम्बद्ध वस्तु को अलग करने में जरा भी झिझक न हो; महापुरुषों के बताये हुए सिद्धान्तों के प्रति पूर्णत: समर्पणवृत्ति हो, उनकी सत्यता में पूर्ण विश्वास हो, साधना से सिद्धिप्राप्त महापुरुषों के अनुभवों को आत्मसात् करने की पूरी तमन्ना हो । यही वास्तविक भेदविज्ञान है। और इसे प्राप्त करने के दो ही कारण हैं--स्वतः प्रेरणा से तथा शास्त्र-गुरु आदि निमित्तों से। आगमों के द्वारा ही महापुरुषों के अनुभव उपलब्ध होते हैं अनुभवी महापुरुष हमारे सामने नहीं हैं, ऐसी दशा में उनके अनुभवों की Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जानकारी आज हमें आगमों-धर्मशास्त्रों के द्वारा ही हो सकती है। जो पुरुष हमारे बीच आज नहीं है, उनसे हम जीवित और प्रत्यक्ष की तरह बातचीत कर सकें, इसके लिए आगम ही सर्वोत्तम माध्यम है । और जैनागमों जिनोंवीतरागपुरुषों द्वारा उपदिष्ट श्रुत, आगम ही सूक्त या शास्त्र कहलाते हैं, तथा वे अनुभवसिद्ध वचन किसी एक वर्ग या सम्प्रदायविशेष के प्रति पक्ष. पात से युक्त नहीं होते। आजकल के कई क्षुद्राशय लोग तर्कों और युक्तियों से उल्टी बातें भी साधारण लोगों के दिमाग में विठा कर गुमराह कर देते हैं। लेकिन जैन-आगम प्रज्ञा से धर्मतत्व की समीक्षा करने का स्पष्ट उद्घोष करते हैं। आगम की व्याख्या आगम का वास्तविक अर्थ ही यह है-'मा समन्तात् गम्यते ज्ञायते जीवन- . जगत् तत्त्वार्थो येनाऽसो आगमः" जिससे जीवन और जगत् के तत्त्वों के समीचीन अर्थ का ज्ञान हो, हेय-ज्ञय-उपादेय का भलीभांति बोध हो उसे आगम कहते हैं। आगमवचन प्रमाणभूत और साक्षीरूप वहुत-सी बातें हम इन्द्रियों और मन से भी जान नहीं सकते; अनुभव भी कई दफा देशकाल और परिस्थिति की छाप से प्रभावित होता है । ऐसी स्थिति . में आगम ही एकमात्र साक्षी व प्रमाणभूत होता है, जिसके जरिये व्यक्ति यथार्थ निर्णय प्राप्त कर सकता है । इसीलिए भगवद्गीता में कहा है 'तस्माच्छास्त्रं प्रमाणं ते कार्याकार्यव्यवस्थितौ' - "कार्य और अकार्य की व्यवस्था सम्यग्ज्ञान में शास्त्र ही तुम्हारे लिए प्रमाण है।" वास्तव में आगम इन्द्रियज्ञान, मनोज्ञान, परिस्थिति या किसी पक्ष आदि से प्रभावित नहीं होता; वह सर्वज्ञों द्वारा आत्मा से सीधे प्रत्यक्षीकृत ज्ञान से युक्त होता है। इसलिए आगमज्ञान ही जीवन और जगत की समस्त ग्रन्थियों को सुलझाने में सहायक होता है । Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६ ) आगम वार-बार स्वाध्याय से ही ज्ञानप्राप्ति में सहायक परन्तु आगम तभी सहायक सिद्ध होते हैं जब उन आगमों का पांचों अंगों से युक्त वार-वार स्वाध्याय किया जाय । वाचना, पृच्छना, पर्यटना, अनुप्रेक्षा और धर्मकया, ये स्वाध्याय के पाँच अंग हैं। इस विधि से जैनागम का स्वाध्याय करने पर ही अज्ञानरूप अन्धकार का भेदन और सम्यज्ञान आत्मज्ञान का प्रकाश प्राप्त होता है । उत्तराध्ययनसूत्र में गणधर श्री इन्द्रभूति गौतम के प्रश्न 'सम्झाएणं भंते जीवे कि जणयई' ? "भंते ! स्वाध्याय से जीव को क्या लाभ होता है ?" के उत्तर में वीतरागप्रभु महावीर उत्तर देते हैं-सज्झाएणं नाणा वरणिज्जं कम्मं खवेइ' स्वाध्याय से ज्ञानावरणीय कर्म का क्षय होता है । * आगमों का स्वाध्याय करने से चित्त एकाग्र होगा, ज्ञान का उत्तरोत्तर विकास होगा, बुद्धि और भावना निर्मल होगी और कर्मों की निर्जरा (आंशिक क्षय) होगी । ज्ञानावरण कर्मों का क्षय होने से सम्यग्ज्ञान प्राप्त होगा ही । 'जैनागम पाठमाला, नामकरण क्यों ? यही कारण है कि प्रस्तुत ग्रन्थ का नाम 'जैनागम पाठमाला' रखा गया है । इसमें जीवन को सर्वांगीण रूप से ज्ञान परिपूर्ण बनाने वाले दशवैकालिक, उत्तराध्ययन, नन्दीसूत्र, सुखविपाकसूत्र, दशाश्रुतस्कन्ध, चित्तसमाधि पंचम दशा, लोपपातिक सूत्र की प्रकीर्णक गाथाएँ, तत्त्वार्थसूत्र आदि आगम के सुवचन पुष्पों की सुन्दर माला गूंथी गई है । सेवाभावी श्री अखिलेशजी महाराज की प्रेरणा से पुस्तक को सर्वांगसुन्दर बनाने में सुप्रसिद्ध लेखक श्रीचन्द जी सुराणा 'सरस' ने पुरुषार्थ किया है । एतदर्थं उन्हें धन्यवाद ! आशा है, जीवन-निर्माण की दृष्टि वाले स्वाध्यायीजन इस पुस्तक का समादर करेंगे और सम्यग्ज्ञान की ज्योति जगा कर चारित्र के पथ पर बढ़ेंगे । सुज्ञे पुकिबहुना जैन भवन, लोहामण्डी, आगरा-२ दि० १-६-७४ - मुनि नेमिचन्द्र Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सज्झाएणं नाणावर णिज्जं कम्मं खवेइ | जैनागम पाठमाला Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १. दशवैकालिक - सूत्र २. उत्तराध्ययन सूत्र ३. नंदी सूत्र अनु क्रम ४. सुखविपाक सूत्र ५. उववाह सूत्र की वावीस गाथाएँ ६. दशाश्रुतस्कन्ध ( पांचवीं दशा) ७. वोरस्तुति ८. तत्त्वार्थसूत्र ६. सुनापित गाथाएँ १ ७४ २७४ ३३७ ३४६ ३४८ ३५१ ३५४ ३७१ Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . पढमं अज्झयणं दुमपुफिया धम्मो मंगलमुक्किट्ठ अहिंसा संजमो तवो। देवा वि तं नमसंति जस्स धम्मे सया मणो ।। १ ।। जहा दुमस्स पुप्फेसु भमरो आवियइ रसं । न य पुप्फ किलामेइ सो य पीणेइ अप्पयं ॥ २ ॥ एमए समणा मुत्ता, जे लोए संति साहणो। विहंगमा व पुप्फेसु दाणभत्तेसणे रया ।। ३ ।। वयं च वित्ति लब्भामो न य कोइ उवहम्मई । अहागडेसु रीयंते पुप्फेसु भमरा जहा ।। ४ ॥ महुकारसमा बुद्धा जे भवंति अणि स्सिया। नाणापिंडरया देता तेण वुच्चंति साहुणो ॥ ५ ॥ ---त्ति बेमि ।। Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसवेआलियं वीसं अज्झयणं सामण्णधुत्वयं कहं नु कुज्जा सामण्णं जो कामे न निवारए। पए पए विसीयंतो संकप्पस्स वसंगओ॥१॥ वत्थगन्धमलंकारं इत्थोओ सयणाणि य । अच्छन्दा जे न भुंजन्ति न से चाइ त्ति वुच्चइ ॥ २ ॥ जे य कन्ते पिए भोए लद्धे विपिढिकुव्वई। साहीणे चयइ भोए से हु चाइ त्ति वुच्चइ ।। ३ ।। ता समाए पेहाए परिव्वयंतो सिया मणो निस्सरई वहिद्धा। न सा महं नोवि अहं पि तीसे इच्चेव ताओ विणएज्ज रागं ।। ४ ।। आयावयाही चय सोउमल्लं ___ कामे कमाही कमियं खु दुक्खं । छिन्दाहि दोसं विणएज्ज रागं एवं सुही होहिसि संपराए ॥ ५ ॥ पक्खन्दे जलियं जोइं धूमकेउं दुरासयं । नेच्छन्ति वन्तयं भोत्तुं कुले जाया अगन्धणे ।। ६ ।। Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीअं अज्झयणं.. धिरत्थु ते जसोकामी जो तं जीवियकारणा । वन्तं इच्छसि आवेउं सेयं ते मरणं भवे ॥ ७ ॥ अहं च भोयरायस्स तं चऽसि अन्धगवण्हिणो । मा कुले गंधणा होमो संजमं निहुओ चर ॥ ८ ॥ जड़ तं काहिसि भावं जा जा दच्छसि नारिओ । वायाइद्धो व्व हड़ो अट्ठिअप्पा भविस्ससि ॥ ६ ॥ तीसे सो वयणं सोच्चा संजयाए अंकुसेण जहा नागो धम्मे एवं करेन्ति संबुद्धा पण्डिया विणियदृन्ति भोगेसु जहा से सुभासियं । संपडिवाइओ ॥ १० ॥ Ma पवियक्खणा । पुरिसोत्तमो ॥। ११ ॥ -त्ति बेमि ॥ Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४ तइयं अज्झयणं खुड्डिया यार कहा संजमे ते सिमेयमणाइण्णं सुट्टिअप्पाणं विप्पमुक्काण ताइणं । दसवेलियं निग्गंथाण महेसिणं ॥ १ ॥ उद्देसियं राइभत्ते सिणाणे य गंधमल्ले य कीयगडं नियागमभिहडाणि य । वीयणे ॥ २ ॥ किमिच्छए । सन्निही गिमित्ते य रायपिंडे संवाहणा दंतपहोयणा य संपुच्छणा देहपलोयणा य ॥ ३ ॥ अट्ठावए य नाली य छत्तस्स य धारणट्ठाए । तेगिच्छं पाणहा पाए समारंभं च जोइणो ॥ ४ ॥ 1 सेज्जायरपिंड च आसंदीपलियंकए गिहंतर निसेज्जा य गायस्सुव्वट्टणाणि य ॥ ५ ॥ गिहिणो वेयावडियं जा य आजीववित्तिया । तत्तानिव्वुडभोइत्तं आउरस्सरणाणि य ॥ ६ ॥ मूलए सिंगवेरे य उच्छुखंडे अनिव्वुडे । कंदे मूले य सच्चित्ते फले वीए य आमए ॥ ७ ॥ सोवच्चले सिंधवे लोणे रोमालोणे य आमए । सामुद्दे पंसुखारे य काला लोणे य आमए ॥ ८ ॥ धूवणेत्ति वमणे य वत्थीकम्म विरेयणे । अंजणे दंतवणे य गाया भंगविभूसणे ॥ ६ ॥ Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं अभयणं सव्वमेयमणा इण्णं निग्गंथाण महेसिणं । संजमम्मि य जुत्ताणं लहुभूयविहारिणं ।। १० ।। पंचासवपरिन्नाया तिगुत्ता छसु संजया । पंचनिग्गहणा धोरा निग्गंथा उज्जुदंसिणो ॥ ११ ॥ आयावयंति गिम्हेसु हेमंतेसु वासासु पडिसलीणा संजया परीसहरिऊदंता धुयमोहा सन्दुक्खपहीणट्टा पक्कमंति दुक्कराई • केइत्थ अवाउडा | : सुसमाहिया ।। १२ ।। खवित्ता पुव्वकम्माई संजमेण सिद्धिमग्गमणुप्पत्ता ताइणो जिइंदिया | महेसिणो ॥ १३ ॥ करेत्ताणं दुस्सहाई सहेत्तु य । देवलोएस केई सिज्झति नीरया ॥ १४ ॥ तवेण य । परिनिब्बुडा ।। १५ । -त्ति बेमि ॥ Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसवेआलियं चउत्थं अज्झयणं छज्जीवणिया सूयं मे आउसं ! तेणं भगवया एवमक्खायं-इह खलु छज्जीवणिया नामज्झयणं समजेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया सुयक्खाया सुपन्नत्ता। सेयं मे अहिज्जि अज्झयणं धम्मपन्नत्ती।। सू० १॥ कयरा खलु सा छज्जीवणिया नामज्झयणं समजेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया सुयक्खाया सुपन्नत्ता ? सेयं मे अहिज्जि अज्झयणं धम्मपन्नत्ती ।। सू० २ ।। इमा खलु सा छज्जीवणिया नामज्झयणं समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया सुयक्खाया सुपन्नत्ता। सेयं मे अहिज्जिउं अज्झयणं धम्मपन्नत्ती-तं जहा-पुढविकाइया आउकाइया तेउकाइया वाउकाइया वणस्सइकाइया तसकाइया ।। सू० ३ ॥ पुढवी चित्तमंतमक्खाया अणेगजीवा पुढोसत्ता अन्नत्थ सत्थपरिणएणं ॥ सू० ४ ॥ आऊ चित्तमंतमक्खाया अणेगजीवा पुढोसत्ता अन्नत्थ सत्थपरिणएणं ।। सू० ५ ॥ तेऊ चित्तमंतमक्खाया अणेगजीवा पुढोसत्ता अन्नत्थ सत्थपरिणएणं ।। सू०६।। वाऊ चित्तमंतमक्खाया अणेगजीवा पुढोसत्ता अन्नत्थ सत्थपरिणएणं ।। सू० ७॥ Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चित्यं अभयणं ----- वसई चित्तमंत मक्खाया अणेगजीवा पुढोसत्ता अन्नत्थ सत्यपरिणणं, तं जहा -- अग्गवीया मूलवीया पोरवीया खंधवीया वीयरुहा सम्मुच्छिंमा तणलया वणस्सइकाइया सवीया चित्तमंतमवखाया, अणेगजोवा, पुढोसत्ता अन्नत्थ सत्यपरिणएणं ॥ सू० ८ ॥ (2) से जे पुण इमे अणेगे वहवे तसा पाणा तं जहा - अंडया पोयया जराउया रसया संसेइमा सम्मुच्छिमा उभिया उववाइया । जेसि केसिंचि पाणाणं अभिक्कतं पडिक्कं तं संकुचियं पसारियं रुयं भंतं तसियं पलाइयं आगइगइविन्नायाजे य कीडपयंगा जा य कुंथुपिवीलिया सव्वे वेइंदिया सबे ते इंदिया सव्वे चउरदिया सव्वे पंचिदिया सव्वे तिरिक्खजोणिया सव्वे नेरइया सव्वे मण्या सवे देवा सव्वे पाणा, परमाहम्मिया एसो खलु छट्टो जीवनिकाओ तसकाओ त्ति पवुच्चई || सू० ६ ॥ इच्चेसि छण्हं जीवनिकायाणं नेव सयं दंड समारंभेज्जा नेवन्नेहि दंडं समारंभावेज्जा दंडं समारंभंते वि अन्ने न समणु जाणेज्जा जावज्जीवाएं तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करंतंपि अन्नं न समणुजाणामि तस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि ॥ सू० १० ॥ पढमे भंते ! महत्वए पाणाइवायाओ वेरमण सव्वं भंते ! पाणाइवायं पच्चक्खामि - से सुहुमं वा वायरं वा तसं वा थावरं वा नेव सयं पाणे अइवाएज्जा नेवन्नेहि पाणे अइवायावेज्जा पाणे अइवायंते वि अन्ने न समणुजाणेज्जा जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करंतं पि अन्नं न समणुजाणामि । तस्स भंते ! पडिक्क मामि निदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि । . पढमे भंते ! महत्वए उवट्टिओमि सव्वाओ पाणाइवायाओ वेरमणं ॥ सू० ११ ॥ Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसवेलियं अहावरे दोच्चे भंते ! महत्वए मुसावायाओ वेरमणं सव्वं भंते ! मुसावायं पच्चक्खामि - से कोहा वा लोहा वा भया वा हासा वा नेव सयं मुसं वएज्जा नेवन्नेहि मुसं वायवेज्जा मुसं वयं वि अनेन समणुजाणेज्जा जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेम करतं पि अन्नं न समणुजाणामि । तस्स भंते । पडिक्कमामि निदामि गरिहामि अप्पाणं व्रोसिरामि । 15 ८ दोच्चे भंते ! महत्वए उवट्टिओमि सव्वाओ मुसावायाओ वेरमणं || सू० १२ ।। अहावरे तच्चे भंते ! महत्वए अदिन्नादाणाओ वेरमणं सव्वं भंते ! अदिन्नादाणं पच्चक्खामि से गामे वा नगरे वा रणे वा अप्पं वा वहुं वा अणुं वा थूलं वा चित्तमंतं वा अचित्तमंतं वा, नेव सयं अदिन्नं गेण्हेज्जा नेवन्नेहिं अदिन्नं गेण्हावेज्जा अदिन्नं हंते वि अन्नेन समणुजाणेज्जा जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करतं पि अन्नं न समणुजाणामि । तस्स भंते ! पडिक्कमामि निदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि । तच्चे भंते ! महव्वए उवट्टिओमि सव्वाओ अदिन्नादाणाओ वेरमणं || सू० १३ ॥ अहावरे चउत्थे भंते ! महत्वए मेहुणाओ वेरमणं सव्वं भंते ! मेहुणं पच्चक्खामि - से दिव्वं वा माणुस वा तिरिक्खजोणियं वा, नेव सयं मेहुणं सेवेज्जा नेवन्नेहिं मेहुणं सेवावेज्जा मेहुणं सेवते विन्नेन समणुजाणेज्जा जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करेमि न कारवेम करतं Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं अजभयणं पि.अनं न समण जाणामि । तस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि । 15 चउत्थे भंते ! महव्वए उवट्टिओमि सव्वाओ मेहुणाओ वेरमणं ।। सू० १४ । अहावरे पंचमे भंते ! महत्वए परिग्गहाओ वेरमणं सव्वं भंते ! परिग्गहं पच्चक्खामि - से गामे वा नगरे वा रणे वा अप्पं वा वहुं वा अणु ं वा थूलं वा चित्तमंत वा अचित्तमंत वा, नेव संयं परिरहं परिगेहेज्जा नेवन्नेहिं परिग्गहं परिगेण्हावेज्जा परिग्गहं परिगेण्हते व अन्ने न समणजाणेज्जा जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेम करतं पि अन्नं न समणजाणामि । तस्स भंते ! पक्किमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि । पंचमे भंते ! महत्वए उवट्टिओमि सव्वाओ परिग्गहाओ वेरमणं ।। सू० १५ । अहावरे छ्ट्ट भंते! वए राईभोयणाओ वेरमणं सव्वं भंते ! राईभोयणं पच्चक्खामि -से असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा नेव सयं राई भुजेज्जा नेवन्नेहिं राई भुजावेज्जा राई भुंजते वि अन्ने न समणुजाणेज्जा जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेम करतं पि अन्नं न समणुजाणामि । तस्स भंते! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि । छ भंते ! वए उवट्टिओमि सव्वाओ राईभोयणाओ वेरमणं ।। सू० १६ ।। C इच्चेयाई पंच महव्वयाई राईभोयणवेरमणछट्ठाई अत्तं - हियट्टयाए उवसंपज्जित्ताणं विहरामि ।। सू० १७ ।। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा संजयविरयपडिहयपच्चक्खायपावकम्मे दिया वा राओ वा एगओ वा परिसागओ वा सुत्ते Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसवेआलियं १० वा जागरमाणे वा-से पुढवि वा भित्ति वा सिलं वा लेलु.. वा ससरक्खं वा कायं ससरक्खं वा वत्यं हत्येण वा पाएण वा.. कट्ठण वा किलिचेण वा अंगुलियाए वा सलागाए वा सलागाहत्थेण वा, न आलिहेज्जा न विलिहेज्जा न घट्टज्जा .. न भिदेज्जा अन्नं न आलिहावेज्जा न विलिहावेज्जा न घट्टावेज्जा न भिदावेज्जा अन्नं आलिहंतं वा विलिहंतं वा घटुंतं वा भिदंतं ... वा न समणुजाणेज्जा जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं ... वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करतं पि अन्नं नं. समणजाणामि । तस्स भंते ! पडिक्कमामि निदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि ।। सू० १८ ॥ __से भिक्खू वा भिक्खुणी वा संजयविरयपडिहयपच्चक्खायपावकम्मे दिया वा राओ वा एगओ वा परिसागओं वा सुत्त वा जागरमाणे वा–से उदगं वा ओसं वा हिमं वा महियं वा करगं वा हरतणुगं वा सुद्धोदगं वा उदओल्लं वा कायं उदओल्लं वा वत्थं ससिणिद्धं वा कायं ससिणिद्धं वा वत्थं, न आमुसेज्जा न संफुसेज्जा न आवोलेज्जा न पवीलेज्जा न अक्खोडेज्जा न पक्खोडेज्जा न आयावेज्जा न पयावेज्जा अन्नं न आमुसावेज्जा. न संफुसावेज्जा न आवोलावेज्जा न पवोलावेज्जा न अक्खोडावेज्जा न पक्खोडावेज्जा न आयावेज्जा न पयावेज्जा अन्नं आमुसंतं वा संफुसंतं वा आवीलंतं वा पवोलंतं वा अक्खोडतं. वा पक्खोडतं वा आयावंतं वा पयावंतं वा न समणुजाणेज्जा जावज्जीवाए तिविहिं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करतं पि अन्नं न समणजाणामि । तस्स भंते ! पडिक्क्रमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि । सू० १६ ।। Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .११ . चउत्थं अज्झयणं - से भिक्खू वा भिक्खुणी वा संजयविरयपडिहयपच्चक्खायपावकम्मे दिया वा राओ वा एगओ वा परिसागओ वा सुत्ते वा जागरमाणे वा-से अगणि वा इंगालं वा मुम्मुरं वा अच्चि वा जालं वा अलायं वा सुद्धागणि वा उक्कं वा, न उंजेज्जा न घट्टेज्जा न भिदेज्जा न उज्जालेज्जा न पज्जालेज्जा न निव्वावेज्जा अन्नं न उजावेज्जा न घट्टावेज्जा न भिंदावेज्जा न उज्जालावेज्जान पज्जालावेज्जा न निव्वावेज्जा अन्नं उंजंतं वा घटुंतं वा भिदंतं वा उज्जालंतं वा पज्जालंतं वा निव्वावंतं वा न समणुजाणेज्जा जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करतं पि अन्नं न समणुजाणामि । ... तस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि ॥ सू० २० । से भिक्खू वा भिक्खुणी वा संजयविरयपडिहयपच्चक्खायपावकम्मे दिया वा राओ वा एगओ वा परिसागओ वा सुत्ते वा जागरमाणे वा-से सिएण वा विहुयणेण वा तालियंटेण वा पत्तेण वा पत्तभंगेण वा साहाए वा साहाभंगेण वा पिहुणेण वा पिहुणहत्थेण वा चेलेण वा चेलकण्णेण वा हत्थेण वा मुहेण वा अप्पणो वा कायं वाहिरं वा वि पुग्गलं, न फुमेज्जा न वीएज्जा अन्नं न फुमावेज्जा न वीयावेज्जा अन्नं फुमंतं वा वीयंतं वा न समणुजाणेज्जा जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करतं पि अन्नं न समणुजाणामि । तस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि ।। सू० २१ ।। Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसवेलियं १२ से भिक्खू वा भिक्खुणी वा संजयविरयपडियपच्च क्खायपावकम्मे दिया वा राओ वा एगओ वा परिसागओ वा सुत्ते वा जागरमाणे वा - से वीएसु वा वीयपइट्ठिएसु वा रूढेसु वा रूढपइट्ठिएसु वा जाएसु वा जायपइट्ठिएसु वा हरिएसु वा हरियपइटिएस वा छिन्नेसु वा छिन्नपइट्ठिएसु वा सच्चित्तेसु वा सच्चित्तकोल पडिनिस्सिएसु वा, न गच्छेज्जा न चिट्ठेज्जा न निसीएज्जा न तुयट्टेज्जा अन्न न गच्छावेज्जा न चिट्ठावेज्जा न निसीयावेज्जा न तुयट्टावेज्जा अन्न गच्छंतं वा चिट्ठतं वा निसीयतं वा तुयट्टंतं वा न समणुजाणेज्जा जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करेमि न कारवेम करतं पि अन्नं न समणुजाणामि । तस्स भंते! पडिक्कमामि निदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि ॥ सू० २२ ॥ सेभिक्खू वा भिक्खुणी वा संजयविरयपडियपच्चक्खायपावकम्मे दिया वा राओ वा एगओ वा परिसागओ वा सुत्ते वा जागरमाणे वा-से कोडं वा पयंगं वा कुथु वा पिवीलियं वा हाथंसि वा पायंसि वा वाहुंसि वा ऊरुंसि वा उदरंसि वा सीसंसि वा वत्यंसि वा पडिग्गहंसि वा कंवलगंसि वा पायपुच्छगंसि वा रयहरणंसि वा गोच्छगंसि वा उडगंसि वा दंडगंसि वा पोढगंसि वा फलगंसि वा सेज्जंसि वा संथारगंसि वा अन्नयरंसि वा तहप्पगारे उवगरणजाए तओ संजयामेव पडिलेंहिय पडिलेहिय पमज्जिय पमज्जिय एगंतमवणेज्जा नो णं संघायमा-, वज्जेज्जा ॥ सू० २३॥ Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . चउत्थं अज्झयणं १३ अजयं चरमाणो उ पाणभूयाई हिंसई । बंधई पावयं कम्मं तं से होई कडुयं फलं ।। १ ।। . अजयं चिट्ठमाणो उ पाणभूयाइं हिंसई। बंधई पावयं कम्मं तं से होइ कडुयं फलं ।। २ ।। अजयं आसमाणो उ पाणभूयाइं . हिंसई। वंधई पावयं कम्मं तं से होइ कडुयं फलं ॥ ३ ॥ अजयं सयमाणो उ पाणभूयाइं हिंसइ । बंधई पावयं कम्मं तं से होइ कडुयं फलं ॥ ४ ॥ अजयं भुजमाणो उ पाणभूयाइं हिंसई । बंधई पावयं कम्मं तं से होइ कडुयं फलं ॥ ५ ॥ अजयं भासमाणो उ पाणभूयाई हिंसई ।। बंधई. पावयं कम्मं तं से होइ कडुयं फलं ।। ६ ।। कहं चरे ? कहं चिट्ठ ? कहमासे ? कहं सए ? .. कहं भुजन्तो भासन्तो पावं कम्मं न बंधई ? ॥ ७ ॥ .. जयं चरे जयं चि? जयमासे जयं सए । .. जयं भुजन्तो भासन्तो पावं कम्मं न बंधई ।। ८ ।। सव्वभूयप्पभूयस्स ... सम्मं भूयाइ पासओ। पिहियासवस्स दंतस्स पावं कम्म न बंधई ॥ ६ ॥ .... पढ़मं नाणं तओ दया एवं चिट्ठइ सव्वसंजए । अन्नाणो कि काही ? किं वा नाहिइ छेय पावगं? ॥१०॥ सोच्चा जाणइ कल्लाणं सोच्चा जाणइ पावगं । उभयं पि जाणइ सोच्चा जं. छेयं तं समायरें ॥ ११॥ । . . . सन Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ दसवेआलियं जो जीवे विन याणाइ अजीवे विन याणई । जीवाजीवे अयातो कहं सो नाहिइ संजम ? ।। १२ ।। जो जीवे विवियाणाइ अजीवे वि वियाणई । जीवाजीवे वियाणंतो सो हु नाहिइ संजमं ॥ १३ ॥ जया जीवे अजीवे य दो वि एए वियाणई । तया गई वहुविहं सव्वजीवाण जाणई । जया गई वहुविहं सव्वजीवाण तया पुण्णं च पावं च बंधं मोक्खं च जाणई ।। १५ ।। जया पुण्णं च पावं च बंधं मोक्खं च जाणई । तया निव्विदए भोए जे दिव्वे जे य माणुसे || १६ || जया निव्विदए भोए जे दिव्वे जे य माणुसे । तया चयइ संजोगं जया चयइ संजोगं तया मुडे भवित्ताणं पव्वइए जाणई ॥ १४ ॥ सभिंतरवाहिरं ॥ १७ ॥ सभिंतरवाहिरं । अणगारियं ॥ १८ ॥ जया सुडे भवित्ताणं पव्वइए तया संवरमुक्किट्ठ धम्मं फासे अणगारियं 1. फासे जया संवरमुक्किट्ठ धम्मं तथा धुणइ कम्मरयं अवोहिकलुसं जया धुणइ कम्मरयं अवोहिकलुसं तया सव्वत्तगं नाणं दंसणं अणुत्तरं ॥ १६ ॥ अणुत्तरं । कडं ॥ २० ॥ कडं | चाभिगच्छई ॥ २१ ॥ Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं अज्झयणं .. . १५ जया सव्वत्तगं नाणं दंसणं चाभिगच्छई । तया लोगमलोगं च जिणो जाणइ केवली ॥२२ ।। जया लोगमलोगं च जिणो जाणइ केवली। तया जोगे निरुभित्ता सेलेसिं पडिवज्जई ॥ २३ ॥ . जया जोगे निलंभित्ता सेलेसिं पडिवज्जई। ' तया कम्म खवित्ताणं सिद्धि गच्छइ नीरओ ॥ २४ ।। जया कम्म खवित्ताणं सिद्धि गच्छइ नीरओ। तया लोगमत्थयत्थो सिद्धो हवइ सासओ ।। २५ ।। सुहसायगस्स समणस्स सायाउलगस्स निगामसाइस्स । उच्छोलणापहोइस्स दुलहा सुग्गइ तारिसगस्स ॥ २६ ॥ तवोगुणपहाणस्स . उज्जुमइ खंतिसंजमरयस्स । परीसहे जिणंतस्स सुलहा सुग्गइ तारिसगस्स ॥ २७ ॥ पच्छावि ते पयाया खिप्पं गच्छन्ति अमरभवणाई। जेसि पिओ तवो संजमो य खन्ती य वम्भचेरं च ॥ २८ ॥ इच्चेयं छज्जीवणियं सम्मट्ठिी सया जए। दुलहं लभित्तु सामण्णं कम्मुणा न विराहेज्जासि ॥ २६ ।। __-त्ति बेमि ॥ Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ पंचमं अभयणं पिंडे सणा (पढमोद्द सो) संपत्ते भिक्खकालम्मि असंभंतो अमुच्छिओ । कमजोगेण भत्तपाणं इमेण से गामे वा नगरे वा गोयर गगओ चरे मंदमणुव्विग्गो अव्वक्खित्तेण ओवायं विसमं खाणु विज्जलं संकमेण न गच्छेज्जा विज्जमाणे दसवेआलियं पुरओ जुगमायाए पेहमाणो महिं चरे । वज्जतो वीयहरियाई पाणे य तम्हा तेण न गछेज्जा संजए सइ अन्त्रेण मग्गेण जयमेव पवडन्ते व से तत्थ पवखलन्ते व हिंसेज्ज पाणभूयाई तसे अदुव गवेसए ।। १ ।। मुणी । चेयसा ॥ २ ॥ दगमट्टियं ॥ ३ ॥ परिवज्जए | परवकमे ॥ ४ ॥ • इंगालं छारियं रासि तुसरासि च ससरक्खेहि पाएहिं संजओ तं न संजए | थावरे ॥ ५ ॥ सुसमाहिए । परक्कमे ॥ ६ ॥ गोमयं । अक्कमे ॥ ७ ॥ न चरेज्ज वासे वासंते महियाए व पडंतीए । महावाए व वायंते तिरिच्छसंपा इमेसु वा ॥ ८ ॥ न चरेज्ज वेससामंते वंभरवसाणुए । वंभयारिस्स दंतस्स होज्जा तत्थ विसोत्तिया ॥ ६ ॥ Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .. . १७ पंचमं अज्झयणं (पढमोद्देसो) .. अणायणे 'चरंतस्स संसग्गीए अभिवखणं । .' होज्ज. वयांणं पीला सामण्णम्मि य संसओ ।। १० ।। तम्हा एयं वियाणित्ता दोसं . दुग्गइवड्ढणं । .. वज्जए. वेससामंतं मुणी . . एगंतमस्सिए ॥ ११ ॥ साणं सूइयं गावि दित्तं गोणं हयं गयं । संडिन्भं कलहं जुद्धं दूरओ परिवज्जए ।॥ १२ ॥ अणुन्नए . नावणए अप्पहि१ . अणाउले । इंदियाणि जहाभागं दमइत्ता मुणी चरे ॥ १३ ॥ दवदवस्स न गच्छेज्जा भासमाणो य गोयरे । हसंतो नाभिगच्छेज्जा कुलं उच्चावयं संया ।। १४ ॥ आलोयं थिग्गलं दारं संधि दंगभवणाणि य । चरंतो न विणिज्झाए संकट्ठाणं विवज्जए ।। १५ ।। रन्नो गिहवईणं च रहस्सारक्खियाण य। __.. संकिलेसकरं : ठाणं दूरओ परिवज्जए ।। १६ ।। पडिकुटकुलं न पविसे मामगं परिवज्जए। अचियत्तकुलं न पविसे चियत्तं पविसे कुलं ॥ १७ ॥ साणीपावारपिहियं ... अप्पणा नावपंगुरे । कवाडं नो पणोल्लेज्जा. ओग्गहंसि अजाइया ॥ १८ ॥ . गोयरग्गपविट्ठो उ वच्चमुत्तं न धारए । ओगासं फासुयं नच्चा अणुन्नविय वोसिरे ॥ १६ ॥ नीयदुवारं . तमसं कोटगं परिवज्जए। ..... अचक्खुविसओ जत्थ पाणा. दुप्पडिलेहगा ।। २० ।। Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ दसवेआलियं जत्थ पुप्फाइ वीयाई विप्पइण्णाई कोट्ठए । अहुणोवलित्तं उल्लं दणं परिवज्जए ॥ २१ ॥ एलगं दारगं साणं वच्छगं वावि कोट्टए । उल्लंघिया न पविसे विऊहित्ताण व संजए ।। २२ ।। असंसत्तं पलोएज्जा नाइदूरावलोयए । उप्फुल्लं न विणिज्झाए नियट्टेज्ज अयंपिरो ॥ २३ ॥ अइभूमि न गच्छेज्जा गोयरग्गगओ मुणी । कुलस्स भूमि जाणित्ता मियं भूमि परक्कमे ॥ २४ ॥ पडिलेहेज्जा भूमिभागं वियक्खणो । संलोगं तत्थेव सिणाणस्स य वच्चस्स दगमट्टियआयाणं वीयाणि परिवज्जंतो चिट्ठ ेज्जा परिवज्जए ।। २५ ।। हरियाणि य । सविदियसमाहिए ॥ २६ ॥ तत्थ से चिट्ठमाणस्स आहरे पाणभोयणं । अकप्पियं न इच्छेज्जा पडिगाहेज्ज कप्पियं ॥ २७ ॥ भोयणं । आहरंती सिया तत्थ परिसाडेज्ज देंतियं पडियाइक्खे न मे कप्पड़ तारिसं ॥ २८ ॥ सम्मद्दमाणी पाणाणि वीयाणि हरियाणि य । असंजमर्कारि नच्चा तारिसं साहट्ट निविखवित्ताणं सच्चित्तं तहेव समणट्ठाए उदगं परिवज्जए ॥ २६ ॥ घट्टियाण य । संपणोल्लिया ॥ ३० ॥ ओगाहइत्ता चलइत्ता आहरे पाणभोयणं । देतियं पडियाइवख न मे कप्पइ तारिसं ॥ ३१ ॥ Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . दातय १ पंचमं अज्झयणं (पढमोद्देसो) पुरेकम्मेण हत्येण दवीए. भायणेण वा।. . देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ।। ३२ ।। . एवं उदओल्ले ससिणिद्धे ससरक्खे मट्टिया ऊसे। .. हरियाले हिंगुलए मणोसिला अंजणे लोणे ॥ ३३ ॥ . गेरुय वण्णिय सेडिय सोरट्ठियं पिट्ठ कुक्कुस कए य । . उक्कट्ठमसंस? .:. संस? चेव ... बोधव्वे ।। ३४ ।। असंसट्ठीण हत्थेण दवीए भायणेण वा। । दिज्जमाणं न इच्छेज्जा पच्छाकम्म जहिं भवे ।। ३५ ।। संस?ण हत्थेण दव्वीए भायणेण वा। दिज्जमाणं पडिच्छेज्जा जं तत्थेसणियं भवे ॥ ३६ ।। । दोण्हं तु भुजमाणाणं एगो तत्थ निमंतए। दिज्जमाणं न इच्छेज्जा छंदं से पडिलेहए ॥ ३७॥ दोण्हं तु भुजमाणाणं दोवि तत्थ. निमंतए। दिज्जमाणं पडिच्छज्जा जं तत्थेसणियं भवे ॥ ३८ ॥ गुव्विणीए उवन्नत्थं विविहं पाणभोयणं । भुज्जमाणं विवज्जेज्जा भुत्तसेसं पडिच्छए ॥ ३६॥ । सिया य समणद्वाए गुम्विणी कालमासिणी। .. उट्ठिया वा निसीएज्जा निसन्ना वा पुणुट्ठए॥ ४० ॥ तं भवे. भत्तपाणं तु. संजयाण अकप्पियं । देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥४१॥ थणगं पिज्जेमाणी दारगं वा कुमारियं । तं निक्खिवित्तु रोयंतं आहरे पाणभोयणं ।। ४२ ॥ . Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ · दसवेआलियं तं भवे भत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पियं । देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ ४३ ॥ जं भवे भत्तपाणं तु कप्पाकप्पम्मि संकियं । .. देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ।। ४४ ॥ दगवारएण पिहियं नीसाए पीढएण वा। लोढेण वा वि लेवेण सिलेसेण व केणई ।। ४५॥ . तं च उभिदिया देज्जा समणद्वाए वदावए। देंतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ।। ४६ ।। असणं पाणगं वा वि खाइमं साइमं तहा। ... जंजाणेज्ज सुणेज्जा वा दाणट्ठा पगडं इमं ।। ४७ ॥ तं भवे भत्तपाणं तु संजयाण अकप्पियं । बेतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं.।।४।। असणं पाणगं वा वि खाइमं साइमं तहा। जं जाणेज्ज सुणेज्जा वा पुण्णट्ठा पगडं इमं ।।१६।। । तं भवे भत्तपाणं तु संजयाण अकप्पियं । देतियं पडियाइवखे न मे कप्पइ तारिसं ।। ५० ।। । असणं पाणगं वा वि खाइमं साइमं तहा। जं जाणेज्ज सुणेज्जा वा वणिमट्ठा पगडं इमं ।। ५१ ॥ तं भवे भत्तपाणं तु संजयाण अकप्पियं । देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ ५२ ।। तहा। असणं पाणगं वा वि खाइमं साइमं तहा। .. जंजाणेज्ज सुणेज्जा वा समणट्ठा पगडं इमं ।। ५३ ।। Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं अभयणं ( पढमोद्देसो) तं भवे भत्तपाणं तु संजयाण अकपियं । देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पई तारिसं ॥ ५४ ॥ 1 उद्देसिय कीयगड पूईकम्मं च आहडं । अज्झोयर पामिच्चं मीसजायं च वज्जए ।। ५५ ।। उग्गमं से पुच्छेज्जा कस्सट्ठा केण वा कडं ? | सोच्चा निस्संकियं सुद्धं पडिगाहेज्ज असणं पाणगं वा वि खाइमं पुप्फेसु होज्ज उम्मीसं बीएसु असणं पाणगं वा वि खाइमं तेउम्मि होज्ज निक्खित्तं तं च २१ तं भवे भत्तपाणं तु संजयाण अकप्पियं । देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ ५८ ॥ असणं पाणगं वा वि खाइमं साइमं तहा । उदगम होज्ज निक्खित्तं उत्तिगपणगेसु वा ॥ ५६ ॥ तं भवे भत्तपाणं तु संजयाण अकप्पियं । देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ ६० ॥ एवं उस्सक्किया ओसक्किया संजए ॥ ५६ ॥ साइमं तहा । हरिएसु वा ॥। ५७ ।। उस्सि चिया अकप्पियं । तं भवे भत्तपाणं तु संजयाण देंतियं पंडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ।। ६२ ।। ओवत्तिया उज्जा लिया पज्जा लिया निव्वाविया | निस्सि चिया साइमं तहा । संघट्टिया दए ।। ६१ ॥ ओयारिया दए ।। ६३ ।। Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ दसवेआलियं तं भवे भत्तपाणं तु संजयाण अकप्पियं। ... बेतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ।। ६४ ॥ होज्ज कट्ठसिलं वा वि इट्टालं वा वि एगया। ठवियं संकमट्ठाए तं चहोज्ज चलाचलं ।। ६५ ।। न तेण भिक्खू गच्छेज्जा दिवो तत्थ असंजमो। गंभीरं झुसिरं चेव सव्विदियसमाहिए ॥६६॥ निस्सेणि फलगं पीढं उस्सवित्ताणमारहे । । मंचं कीलं च पासायं समणट्ठाए व दावए ॥ ६७ ।। दुरूहमाणी पवडेज्जा हत्थं पायं व लुसए। पुढविजीवे वि हिंसेज्जा जे य तन्निस्सिया जगा ॥ ६८ ।। एयारिसे महादोसे जाणिऊण महेसिणो। तम्हा मालोहडं भिक्खं न पडिगेण्हंति संजया ।। ६६ ।। कंदं मूलं पलंबं वा आमं छिन्नं व सन्निरं । तुवागं सिंगवेरं च आमगं परिवज्जए ।। ७० ॥ . तहेव सत्तुचुपणाई कोलचुणाई आवणे। सक्कुलिं फाणियं पूयं अन्नं वा वि तहाविहं ।। ७१ ।। विक्कायमाणं पसढं रएण परिफासियं । दंतियं पडियाइक्खे न मे कप्पई तारिसं ॥ ७२ ॥ वहु-अद्वियं पुग्गलं अणिमिसं वा वहु-कंटयं । अत्थियं तिदुयं विल्लं उच्छुखंडं व सिंवलिं ।। ७३ ।।। अप्पे सिया भोयणजाए बहु-उज्झिय-धम्मिए । दंतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ।। ७४ ॥ सिया Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं अज्झयणं (पढमोद्देसो) तहेवुच्चावयं संसेइम पाणं अदुवा वारधोयणं । चाउलोदगं अहुणाधोयं विवज्जए ।। ७५ ।। ज जाणेज्ज चिराधोयं मईए दंसणेण वा । पडिपुच्छिऊण सोच्चा वा जं च निस्संकियं भवे ॥ ७६ ॥ अजीवं परिणयं नच्चा पडिगाहेज्ज अह संकियं भवेज्जा आसाइत्ताण थोवमासायणट्ठाए मा मे अच्चविलं पूई तं च अच्चविलं पूइं देंतियं २३ हत्थगम्मि दलाहि मे । नालं तण्हं विणित्तए ॥ ७८ ॥ नालं तहं विणित्तए । पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ ७६ ॥ संजए । रोयए ॥ ७७ ॥ अचित्तं परिट्ठवेज्जा परिट्ठप्प तं च होज्ज अकामेणं विमणेण पडिच्छियं । तं अप्पणा न पिवे नो वि अन्नस्स दावए ॥ ८० ॥ एगंतवक्कमित्ता पडिलेहिया । पडिक्कमे ॥ ८१ ॥ अणुन्नवेत्तु मेहावी परिच्छन्नम्मि हत्थगं संपमज्जित्ता तत्थ भुजेज्ज जय सिया य गोयरग्गगओ इच्छेज्जा परिभोत्तुयं । कोट्ठगं भित्तिमूलं वा पडिलेहित्ताण फासूयं ॥ ८२ ॥ संवुडे | संजए ॥ ८३ ॥ तत्थ से भुजमाणस्स अट्ठियं कंटओ सिया । तण - कटु सक्करं वा वि अन्नं वा वि. तहाविहं ॥ ८४ ॥ तं उक्खवित्तु न निक्खिवे आसएण न छड्डए । हत्थेण तं गहेऊणं एगंतमवक्कमे ॥ ८५ ॥ Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसवेआलियं. २४. एगंतमवक्कमित्ता अचित्तं पडिले हिया । जयं परिढुवेज्जा परिठ्ठप्प पडिक्कमे ।। ८६ ।। सिया य भिक्खू इच्छेज्जा सेज्जमागम्म भोत्तुयं । सपिंडपायमागम्म उड्यं पडिलेहिया ।। ८७ ॥ विणएण पविसित्ता सगासे गुरुणो मुणी । इरियावहियमायाय आगओ य पडिक्कमे ।। ८८ ॥ आभोएत्ताण नीसेसं अइयारं जहक्कम । गमणागमणे चेव भत्तपाणे व संजए ॥८६॥ . उज्जुप्पन्नो अणुव्विग्गो अबक्खित्तेण चेयसा । आलोए गुरुसगासे जं जहा गहियं भवे ।।६० ॥ न सम्ममालोइयं होज्जा पुब्धि पच्छा व जं कडं। पुणो पडिक्कमे तस्स वोसट्ठो चितए इमं ।। ६१ ॥ अहो जिणेहिं असावज्जा वित्ती साहूण देसिया। मोक्खसाहणहेउस्स . साहुदेहस्स धारणा ।। ६२॥ नमोक्कारेण पारेत्ता करेत्ता जिणसंथवं । सज्झायं पट्टवेत्ताणं वीसमेज्ज खणं मुणी ॥ १३॥ वीसमंतो इमं चिते हियम लाभमट्टिओ। जइ मे अणुग्गहं कुज्जा साहू होज्जामि तारिओ ॥६४ ॥ साहवो तो चियत्तेणं निमंतेज्ज जहक्कम । जइ तत्थ केइ.इच्छेज्जा तेहिं सद्धि तु भुजए ॥ ६५॥ अह कोइ न इच्छेज्जा तओ भुजेज्ज एक्कओ। आलोए भायणे साहू जयं अपरिसाडयं ।। ६६ ।। Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . पंचमं अज्झयणं (पढमोद्देसो) .. - २५ तित्तगं व कडुयं व कसायं — अंबिलं व महुरं लवणं वा । एय लद्धमन्नटु-पउत्तं . महु-घयं व भुजेज्ज संजए ।।६७ ॥ अरसं विरसं वा वि सूइयं . वा. असूइयं । . उल्लं वा जइ वा सुक्कं मन्थु-कुम्मास-भोयणं ।।६।। उप्पण्णं नाइहीलेज्जा अप्पं पि बहु फासुयं । मुहालद्धं मुहाजीवी भुजेज्जा दोसवज्जियं ॥ ६ ॥ दुल्लहा उ मुहादाई मुहाज़ीवी वि दुल्लहा। मुहादाई मुहाजीवी दो वि गच्छंति सोग्गइं ॥१००॥ . -त्ति बेमि ।। Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसवेआलियं पंचमं अज्झयणं पिंडे सणा ( बीओ उद्दसो) पडिग्गहं संलिहित्ताणं लेव-मायाए संजए। दुगंधं वा सुगं वा सव्वं भुजे न छड्डए ॥ १ ॥ . सेज्जा निसीहियाए समावन्नो व गोयरे। अयावयट्ठा भोच्चाणं जइ तेणं न संथरे ॥ २ ॥ तओ कारणमुप्पन्ने भत्तपाणं गवेसए । विहिणा पुव्व-उत्तेण इमेणं उत्तरेण य ।। ३ ।। कालेण निक्खमे भिक्खू कालेण य पडिक्कमे। अकालं च विवज्जेत्ता काले कालं समायरे ।। ४ ।। अकाले चरसि भिक्खु कालं न पडिलेहसि । अप्पाणं च किलामेसि सन्निवेसं च गरिहसि ॥ ५ ॥ . सइ काले चरे भिक्खू कुज्जा पुरिसकारियं । अलाभोत्ति न सोएज्जा तवो त्ति अहियासए ॥ ६ ॥ तहेवुच्चावया पाणा भत्तट्ठाए समागया। तं-उज्जुयं न गच्छेज्जा जयमेव परक्कमे ॥ ७ ॥ गोयरग्ग-पविट्ठो उ न निसीएज्ज कत्थई। कहं च न पबंधेज्जा चिट्ठित्ताण व संजए ॥ ८ ॥ अग्गलं फलिहं दारं कवाडं वा वि संजए। अवलं विया न चिट्ठज्जा गोयरग्गगओ मुणी ॥ ६ ॥ Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं अज्झयणं (बीओ उद्देसो) . .. २७ समणं माहणं वा वि किविणं वा वणीमगं । उवसंकमंतं भत्तट्ठा पाणट्ठाए व संजए ॥ १० ॥ तं अइक्कमित्तु न पविसे न चिट्ठ चक्खु-गोयरे । एगंतमवक्कमित्ता तत्थ चिट्ठज्ज संजए ।। ११ ॥ वणीमगरस वा तस्स दायगस्सुभयस्स वा । अप्पत्तियं सिया होज्जा लहुत्तं पवयणस्स वा ।। १२ ।। पडिसेहिए व दिन्ने वा तओ तम्मि नियत्तिए । उवसंकमेज्ज भत्तट्ठा पाणट्ठाए व संजए॥ १३ ॥ उप्पलं पउमं वा वि कुमुयं वा मगदंतियं । - अन्नं वा पुप्फ सच्चित्तं तं च संलु चिया दए ।। १४ ॥ तं भवे भत्तपाणं तु संजयाण अंकप्पियं । देंतियं. पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ।। १५ ।। - उप्पलं पउमं वा वि कुमुयं वा मगदंतियं । ... अन्नं वा पुप्फ सच्चित्तं तं च सम्मद्दिया दए ।। १६ ॥ .. तं भवे भत्तपाणं तु संजयाण अकप्पियं । ...... देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ १७ ॥ सालुयं वा विरालियं कुमुदुप्पलनालियं । . मुणालियं सासवनालियं उच्छुखंडं अनिव्वुडं ॥ १८ ॥ तरुणगं वा पवालं रुक्खस्स तणगस्स वा। अन्नस्स वा वि हरियस्स आमगं परिवज्जए ।। १६॥ तरुणियं व छिवाडि आमियं भज्जियं सइं। देंतियं.. “पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥२०॥ Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ दसवेआलियं तहा कोलमणुस्सिन्नं वेलुयं कासवनालियं । तिलपप्पडगं नीम आमगं परिवज्जए ।॥ २१ ॥ . तहेव चाउलं पिट्ट वियर्ड वा तत्तनिव्वुडं। तिलपिट्ठ पूइ पिन्नागं आमगं परिवज्जए ।। २२॥ . कविठं माउलिंगं च मूलगं मूलगत्तियं । आमं असत्थपरिणयं मणसा वि न पत्थए ।। २३ ।। . . तहेव फलमंथूणि वीयमथूणि जाणिया । बिहेलगं पियालं च आमगं परिवज्जए ।॥ २४ ॥ समुयाणं चरे भिक्ख कुलं उच्चावयं सया। . . नीयं कुलमइक्कम्म ऊसदं नाभिधारए ।। २५ ।। नाम । अदीणो वित्तिमेसेज्जा न विसीएज्ज पंडिए। अमुच्छिओ भोयणम्मि मायने एसणारए ।। २६ ।। वहुं परघरे अस्थि विविहं खाइमसाइमं । न तत्थ पंडिओ कुप्पे इच्छा देज्ज परोन वा ।। २७ ।। सयणासण वत्थं वा भत्तपाणं व संजए। अदेंतस्स न कुप्पेज्जा पच्चक्खे वि य दीसओ ।। २८ ।। इथियं पुरिसं वा वि डहरं वा महल्लगं । वंदमाणो न जाएज्जा नो य णं फरुसं वए ।। २६ ।। जे न वंदे न से कुप्पे वंदिओ न समुक्कसे। एवमन्नेसमाणस्स सामण्णमणुचिट्ठई , ।। ३० ॥ सिया एगइओ लधु लोभेण विणिगृहई। मा मेयं दाइयं संतं दळूणं सयमायए ॥ ३१ ॥ Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचम अज्झयणं (बीओ उद्देसो) . .. २६ ' अत्तगुरुओ लुद्धो वहु पावं पकुव्वई । दुत्तोसओ य से होइ निवाणं च न गच्छई ।। ३२ ।। सिया एगइओ लदधु विविहं पाणभोयणं । . भगं भद्दगं भोच्चा विवण्णं । विरसमाहरे ।। ३३ ॥ जाणंतु ता इमे समणा आययही अयं मुणी।। संतुट्ठो सेवई पंतं लहवित्ती सुतोसओ ॥ ३४ ।। पूयणट्ठी जसोकामी माणसम्माणकामए । वहुं पसवई पावं मायासल्लं च कुव्वई ।। ३५ ।। सुरं वा मेरगं वा. वि अन्नं वा मज्जगं रसं। · ससक्खं न पिबे भिक्खू जसं सारक्खमप्पणो ।। ३६ ॥ पिया एगइओ तेणो न मे कोइ वियाणई। तस्स पस्सह दोसाई नियडिं च सुणेह मे ।। ३७ ॥ वड्ढई सोंडिया तस्स मायमोसं च भिक्खुणो। अयसो य अनिव्वाणं सययं च . असाहुया ।। ३८ ॥ निच्चुम्विग्गो जहा तेणो अत्तकम्मेहि दुम्मई। . तारिसो मरणंते वि नाराहेइ संवरं ।। ३६ ॥ आयरिए नाराहेइ समणे यावि तारिसो। गिहत्था वि णं गरहंति जेण जाणंति तारिसं ॥ ४० ।। एवं तु अगुणप्पेही गुणाणं च विवज्जओ। . तारिसो मरणते. वि नाराहेइ संवरं ॥४१॥ . • तवं कुव्व इ. मेहावी पणीयं वज्जए रसं । मज्जप्पमायविरओ तवस्सी अइउक्कसो ॥ ४२ ॥ Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसवेआलियं तस्स पस्सह कल्लाणं अणेगसाहपूइयं । विउलं अत्थसंजुत्तं कित्तइस्सं सुणेह मे ।। ४३ ।। एवं तु स गुणप्पेही अगुणाणं च विवज्जओ। तारिसो मरणंते वि आराहेइ संवरं ।। ४४ ॥ आयरिए आराहेइ समणे यावि तारिसो। गिहत्था वि णं पूयंति जेण जाणंति तारिसं ।। ४५ ।। तवतेणे वयतेणे स्वतेणे य जे नरे। आयारभावतेणे य कुव्वइ देवकिविसं ।। ४६ ।। . लद्धण वि देवत्तं उववन्नो देवकिब्बिसे । तत्था वि से न याणाइ कि मे किच्चा इमं फलं? ।। ४७ ।। तत्तो वि से चइत्ताणं लम्भिही एलमूययं । नरयं तिरिक्खजोणि वा वोही जत्थ सुदुल्लहा ।। ४८ ।। एयं च दोसं दटु णं नायपुत्तेण भासियं । अणुमायं पि मेहावी मायामोसं विवज्जए ॥ ४६॥ सिक्खिऊण भिक्खेसणसोहिं संजयाण बुद्धाण सगासे । तत्थ भिक्खू सुप्पणिहिदिए तिव्वलज्ज गुणवं विहरेज्जासि ।। ५०॥ . -त्ति बेमि ॥ Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छट्ठमण्मयणं छ?मज्झयणं महायारकहा नाणदंसणसंपन्नं संजमे य तवे रयं । . . गणिमागमसंपन्नं उज्जाणम्मि समोसढं ॥१॥ रायाणो रायमच्चा य माहणा अदुव खत्तिया। पुच्छंति निहुअप्पाणो कहं भे आयारगोयरो? ॥२॥ तेसिं सो निहुओ दंतो सबभूयसुहावहो । सिवखाए सुसमाउत्तो आइक्खइ बियक्खणो ।। ३ ।। हंदि धम्मत्थकामाणं निग्गंथाणं सुणेह मे। आयारंगोयरं भीमं सयलं दुरहिट्ठियं ।। ४ ॥ नन्नत्थ एरिसं वुत्तं जं लोए परमदुच्चरं । . विउलट्ठाणभाइस्स न भूयं न भविस्सई ॥ ५ ॥ सखड्डगवियत्ताणं वाहियाणं च जे गुणा। . अखंडफुडिया कायव्वा तं सुणेह जहा तहा ॥ ६ ॥ · दस अट्ठ य ठाणाइं जाई वालोऽवरज्झई। तत्थ अन्नयरे ठाणे निग्गंथत्ताओ भस्सई ॥ ७ ॥ वयछक्क कायछक्कं अकप्पो गिहिभायणं। पलियंक निसेज्जा य सिणाणं सोहवज्जणं ॥ ८ ॥ तस्थिमं पढमं ठाणं महावीरेण देसियं । अहिंसा निउणं दिट्ठा सव्वभूएसु संजमो ॥ ६ ॥ . Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ दसवेआलियं. जावंति लोए पाणा तसा अदुव थावरा । ते जाणमजाणं वा न हणे णोवि घायए ॥ १०॥ सव्वे जीवा वि इच्छन्ति जीविख्न मरिज्जि। तम्हा पाणवहं घोरं निग्गंथा वज्जयंति णं ।।११।। अप्पणट्ठा परट्ठा वा कोहा वा जइ वा भया। हिंसगं न मुसं वूया नो वि अन्नं क्यावए ।। १२ ।। मुसावाओ य लोगम्मि सब्बसाहूहि गरहिओ। अविस्सासो य भूयाणं तम्हा मोसं विवज्जए ।॥ १३ ॥ चित्तमंतमचित्तं वा अप्पं वा जइ वा वहुं। दंतसोहणमेत्तं पि ओग्गहंसि अजाइया ।। १४ ॥ तं अप्पणा न गेण्हंति नो वि गेण्हावए परं। ... अन्नं वा गेण्हमाणं पि नाणुजाण ति संजया ॥ १५ ॥ अबंभचरियं घोरं पमायं दुरहिट्ठियं । नायरंति मुणी लोए भेयाययणवज्जिणो ॥ १६ ॥ मूलमेयमहम्मस्स महादोससमुस्सयं । तम्हा मेहुणसंसरिंग निग्गंथा वज्जयंति. णं ।। १७ ॥ विडमुठभेइमं लोणं तेल्लं सप्पि च फाणियं । । न ते सन्निहिमिच्छन्ति नायपुत्तवओरया ।। १८ ॥ लोभस्सेसो अण फासो मन्ने अन्नयरामवि । जे सिया सन्निहीकामे गिही पव्वइए न से ।। १६ ।। जं पि वत्थं व पायं वा कंवलं पायपुच्छणं । .. तं पि संजमलज्जा धारंति परिहरंति य ।। २० ।। Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छटुमज्भयणं न सो परिग्गहो वृत्तो नायपुत्तेण ताइणा । मुच्छा परिग्गहो वृत्तो इइ वृत्तं महेसिणाः ॥ २१ ॥ सव्वत्थु वहिणा वुद्धा संरवखणपरिग्गहे । अवि अप्पणो विदेहम्मि नायरंति ममाइयं ।। २२ ।। अहो निच्चं तवोकम्मं सव्ववुद्धेहिं वणियं । जाय लज्जासमा वित्ती एगभत्तं च भोयणं ॥ २३ ॥ संति मे सुहुमा पाणा तसा अदुव थावरां । जाई राओ अपासंतो कहमेसणियं चरे ? ।। २४ ।। ३३ उदउल्लं. वीयसंत्तं पाणा निवडिया महि । दिया ताई विवज्जेज्जा राओ तत्थ कहं चरे ? ।। २५ ।। एयं च दोसं दणं नायपुत्तेण भासियं । सव्वाहारं न भुजंति निग्गंथा राइभोयणं ॥ २६ ॥ .. - ▾ पुढविकायं न हिंसंति मणसा वयसा कायसा । - तिविहेण करणजोएण संजया सुसमाहिया ॥ २७ ॥ • पुढविकायं विहिंसंतो हिंसई उ तयस्सिए । तसे य विविहे पाणे चक्खसे य अचक्खसे ॥ २८ ॥ - तम्हा एवं वियाणित्ता दोसं दुग्गइवड्ढणं । पुढविकायसमारंभं जावज्जीवांए वज्जए ॥ २६ ॥ आउकायं न हिंसंति मणसा वयसा कायसा । तिविहेण करणजोएंण संजया सुसमाहिया ॥ ३० ॥ आउकायं विहितो हिंसई उ तयस्सिए । तसे य विविहें पाणे चवखुसे य अचवखुसे ।। ३१ ।। Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ दसवेआलिय तम्हा एवं वियाणित्ता दोसं दुग्गइवड्ढणं । आउकायसमारंभं जावज्जीवाए वज्जए ॥ ३२ ॥ जायतेयं न इच्छंति पावगं जलइत्तए । तिक्खमन्नयरं सत्यं सव्वओ वि दुरासयं ॥ ३३ ॥ पाईणं पडिणं वा वि उड्ढं अणुदिसामवि । अहे दाहिणओ वा वि दहे उत्तरओ विय ॥ ३४ ॥ भूयाणमेसमाघाओ हव्ववाहो न संसओ । तं पईवपयावट्टा संजया किंचि नारभे ॥ ३५ ॥ तम्हा एयं वियाणित्ता दोसं दुग्गड़वड्ढणं । तेउकायसमारंभं जावज्जीवाए वज्जए ॥ ३६ ॥ अनिलस्स समारंभं बुद्धा मन्नंति तारिसं । सावज्जबहुलं चेय नेयं ताईहि सेवियं ॥ ३७ ॥ तालियंटेण पत्तेण साहावियणेण वा । न ते वीइउमिच्छन्ति वीयावेऊण वा परं ॥ ३८ ॥ जंपि वत्थ व पायं वा कंवलं पायपु छणं । न ते वायमुईरंति, जयंपरिहरंति य ॥ ३८ ॥ तम्हा एवं वियाणित्ता दोसं दुग्गइवड्ढणं । वारकायसमारंभ जावज्जीवाए वज्जए ॥ ४० ॥ वणस्सइं न हिंसंति मणसा वयसा कायसा । तिविहेण करणजोएण संजया सुसमाहिया ॥ ४१ ॥ वणस्स विहिंसंतो हिंसई उ तयस्सिए । तसे य विविहे पाणे चक्खुसे य अचक्खुसे ।। ४२ ।। Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छ?मज्झयणं तम्हा एयं दियाणित्ता दोसं दुग्गइवड्ढणं । . .. वणस्सइसमारंभं जावज्जीवाए वज्जए ।। ४३ ।। तसकायं न हिंसंति मणसा वयसा कायसा। तिविहेण करणजोएण सजया सुसमाहिया ॥ ४४ ।। तसकायं विहिंसंतो . हिंसई उ तयस्सिए। . तसे य विविहे पाणे चक्खुसे य अचक्खुसे ।। ४५ ॥ तम्हा एयं वियाणित्ता दोसं दुग्गइवड्ढणं । तसकायसमारंभं जावज्जीवाए वज्जए॥ ४६ ।। जाइं चत्तारिऽभोज्जाइं इसिणाहारमाईणि। . ताई तु विवज्जतो संजमं अणुपालए ।। ४७ ।। पिंडं सेज्जं च वत्थं च चउत्थं पायमेव य । अकप्पियं न इच्छेज्जा पंडिगाहेज्ज कप्पियं ।। ४८ ॥ जे नियागं । ममायंति कीयमुद्देसियाहडं। वहं ते समणुजाणंति इइ वुत्तं महेसिणा ॥ ४६।। तम्हा असणपाणाइं कोयमुद्देसियाहडं । वज्जयंति ठियप्पाणो निग्गंथा धम्मजीविणो ।। ५० ।। कंसेसु कंसपाएसु कुडमोएसु वा पुणो। .. भुजतो असणंपाणाइ आयारा परिभस्सइ ।। ५१ ।। सीओदगसमारंभे मत्तधोयणछडुणे । जाई छन्नंति भूयाई दिट्ठो तत्थ असंजमो ॥ ५२ ।। पच्छाकम्मं पुरेकम्म सिया तत्थ न कप्पई । ::: एयमट्ठ न भुजंति निग्गंथा गिहिभायणे ।। ५३ ।। . Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ आसंदीपलियं के सु अणायरियमज्जाणं नासंदीपलियं के सु निग्गंथाsपडिलेहाए दसवेआलियं मंचमासालएसु वा । आसइत्तु सइत्तु वा ॥ ५४ ॥ न निसेज्जा न पीढए । बुद्धवुत्तमहिगा ।। ५५ ।। . गंभीर विजया एए पाणा आसंदीपलियंका य एयमट्ठ दुप्पडिलेहगा । विवज्जिया || ५६ ॥ निसेज्जा जस्स कप्पई । गोयरग्गपविट्ठस्स इमेरिसमणायारं आवज्जइ अवोहियं ।। ५७ ।। विवत्ती बंभचेरस्स पाणाणं अवहे वहो । वणी मगपडिग्घाओ पडिकोहो अगारिणं ।। ५८ ।। अगुत्तो बंभचेरस्स इत्थीओ यावि संकणं । कुसीलवड्ढणं ठाणं दूरओ परिवज्जए ॥ ५६ ॥ तिण्हमन्नयरागस्स निसेज्जा जस्स कप्पई । जराए अभिभूयस्स वाहियस्स तवस्सिणो ॥ ६० ॥ वाहिओ वा अरोगी वा सिणाणं जो उ पत्थए । वोक्कंतो होइ आयारो जढो हवइ संजमो ॥ ६१ ॥ संतिमे सुहुमा पाणा घसासु भिलुगासु य । जे उ भिक्खू सिणायंतो वियडेणुप्पिलावए ॥ ६२ ॥ तम्हा ते न सिणायंति सीएण उसिणेण वा । जावज्जीवं वयं घोरं असिणाणमहिट्ठगा ॥ ६३ ॥ सिणाणं अदुवा कक्कं लोद्धं पउमगाणि य । गायस्सुव्वट्टणट्ठाए नायरंति कयाई वि ॥ ६४ ॥ Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७ . छट्ठमझयणं नगिणस्स वा वि मुडस्स दीहरोमनहसिणो। मेहुणा उवसंतस्स किं विभूसाए कारियं ? ।। ६५ ।। विभूसावत्तियं भिक्खू कम्मं बंधइ चिक्कणं । संसारसायरे घोरे जेणं पडइ दुरुत्तरे ॥ ६६ ॥ विभूसावत्तियं चेयं वुद्धा. मन्नति तारिसं। सावज्जबहुलं चेयं नेयं ताईहिं सेवियं ।। ६७ ।। . खति अप्पाणममोहदंसिणो . तवे रया संजम अज्जवे गुणे । धुणंति पावाइं पुरेकडाई · नवाइ पावाइन ते करेंति ।। ६८ ।। सओवसंता अममा अकिंचणा सविज्जविज्जाणुगया जसंसिणो। ... उउप्पसन्ने विमले व चंदिमा सिद्धि विमाणाइ उर्वति ताइणो ।। ६६ ॥ _ --त्ति बेमि ॥ Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८ सत्तमज्झयणं वक्कसुद्धि दसवेआलिय चउन्हं खलु भासाणं परिसंखाय पन्नवं । दोहं तु विणयं सिक्खे दो न भासेज्ज सव्वसो ॥ १ ॥ जा य सच्चा अवत्तव्वा सच्चामोसा य जा मुसा । जाय बुद्धेहिणाइन्ना न तं भासेज्ज पन्नवं ।। २ ।। असच्चमोसं समुप्पेहमसंदिद्ध गिरं सच्चं च अगवज्जमकक्कसं । भासेज्ज पन्नवं ॥ ३ ॥ एयं च अट्टमन्नं वा जं तु नामेइ सासयं । सभासं सच्चमो पि तं पि धीरो विवज्जए ॥ ४ ॥ वितहं पि तहामुत्ति जं गिरं भासए नरो । तम्हा सो पुट्ठो पावेगं कि पुण जो मुसं वए ? ॥ ५ ॥ तम्हा गच्छामो वक्खामो अमुगं वा णे भविस्सई । अहं वा णं करिस्सामि एसो वा णं करिस्सई ॥ ६ ॥ एवमाई उजा भासा एसकालम्मि संकिया । संपयाईयमट्ठ वा तं पि धीरो विवज्जए || ७ || अईयम्मि य कालम्मी पच्चुप्पन्नमणागए । जमट्ठ तु न जाणेज्जा एवमेयं ति नो वए ॥ ८ ॥ अईयम्मि य कालम्मी पच्चुप्पन्नमणागए । जत्थ संका भवे तं तु एवमेयं ति नो वए ॥ ६ ॥ - Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमझयणं अईयम्मि य कालम्मी . पच्चुप्पन्नमणागए। निस्संकियं भवे जं तु एवमेयं ति निदिसे ॥ १० ॥ तहेव फरसा भासा गुरुभूओवघाइणी। सच्चा वि सा न वत्तव्वा जओ पावस्स आगमो ।। ११ ॥ तहेव काणं काणे त्ति पंडगं पंडगे त्ति वा । वाहियं वा वि रोगि त्ति तेणं चोरे त्ति नो वए ॥ १२ ॥ एएणन्नेण व?ण परो जेणुवहम्मई। आयारभावदोसन्न न तं भासेज्ज पन्नवं ।। १३ ॥ तहेव होले गोले त्ति साणे वा वसुले ति य । दमए दुहए वा वि नेवं भासेज्ज पन्नवं ।। १४ ।। अज्जिए पज्जिए वावि अम्मो माउस्सिय त्ति य। पिउस्सिए भाइणेज्ज त्ति धूए नत्तुणिए त्ति य ।। १५ ॥ हले हले त्ति अन्ने त्ति भट्टे सामिणि गोमिणि । होले होले वसुले त्ति इस्थियं नेवमालवे ॥ १६ ॥ नामधिज्जेण णं बूया इत्थीगोत्तेण वा पुणो। जहारिहमभिगिज्ज्ञ आलवेज्ज लवेज्ज वा ॥ १७ ॥ अज्जए पज्जए वा वि वप्पो चुल्ल पिउ त्ति य । माउला भाइणेज्ज त्ति पुत्ते नत्तुणिय त्तिय ॥ १८ ॥ हे हो हले त्ति अन्ने ति भट्टा सामिय गोमिए ।। होल गोल वसुले त्ति पुरिसं नेवमालवे ॥ १६ ॥ नामधेज्जेण णं बूया पुरिसगोत्तेण वा पुणो । जहारिहमभिगिज्झ आलवेज्ज लवेज्ज वा ॥ २० ॥ Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४० . दसवेआलियं पंचिंदियाण पाणाणं एस. इत्थी अयं पुमं । जाव णं न विजाणेज्जा ताव जाइ त्ति आलवे ।। २१ ॥ तहेव मणुस्सं पसु पक्खि वा वि सरीसिवं। थूले पमेइले वझे पाइमे त्ति य नो वए ॥ २२ ॥ परिवुड्ढे त्ति णं बूया बूया उवचिए त्ति य। .संजाए पीणिए वा वि महाकाए त्ति आलवे ।। २३ ॥ तहेव गाओ दुज्झाओ दम्मा गोरहग त्ति य । वाहिमा रहजोग त्ति नेवं भासेज्ज पन्नवं ॥ २४ ॥ जुवं गवे त्ति णं बूया घेणु रसदय त्ति य। .. रहस्से महल्लए वा वि वए संवहणे त्ति य ।। २५ ॥ तहेव गंतुमुज्जाणं पव्वयाणि वणाणि य। रुक्खा महल्ल पेहाए नेवं भासेज्ज पन्नवं ॥ २६ ॥ अलं पासायखंभाणं तोरणाणं गिहाण य । फलिहग्गल नावाणं अलं उदगदोणिणं ।। २७ ॥ पीढए चंगबेरे य नंगले मइयं सिया। जंतलट्ठी व नाभी वा गंडिया व अलं सिया ॥ २८॥ आसणं सयणं जाणं होज्जा वा किंचुवस्सए । भूओवघाइणि भासं नेवं भासेज्ज पन्नवं ॥ २६ ॥ तहेव गंतुमुज्जाणं पव्वयाणि वणाणि य। रुवखा महल्ल पेहाए एवं भासेज्ज पन्नवं ।। ३० ।। जोइमंता इमे रुक्खा दीहवट्टा महालया। पयायसाला विडिमा वए दरिसणि त्ति य ॥ ३१॥ Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमज्भयणं तहा फलाई पक्काई पायखज्जाई नो वए । वेलोइयाई टालाई वेहिमाइ त्ति नो वए ।। ३२ ।। असंथडा इमे अंवा वहुनिवट्टिमा फला । वएज्ज बहुसंभूया भूयरूव त्तिं वा पुणो ॥ ३३ ॥ तहेवोसहीओ पक्काओ नीलियाओ छवीइयं । लाइमा भज्जिमाओ त्ति पिहुखज्ज त्ति नो वए ॥ ३४ ॥ ४१ रूठा वहुसंभूया थिरा ऊसढा वि य । गव्भियाओ पसूयाओ संसाराओ त्ति आलवे ।। ३५ ।। तहेव संखडि नच्चा किच्चं कज्जं ति नो वए । तेणगं वा वि वज्झेत्ति सुतित्थ त्ति य आवगा ।। ३६ ।। संखडि संखडि वूया पणियट्ठत्ति तेणगं । बहुसमाणि तित्थाणि आवगाणं वियागरे ।। ३७ ।। तहा नईओ पुण्णाओ कायतिज्जत्ति नो वए । नावाहिं तारिमाओ त्ति पाणिपेज्जति नो वए ॥ ३८ ॥ बहुवाहडा अगाहा वहुसलिलुप्पिलोदगा । वहुवित्थडोदगा यावि एवं भासेज्ज पन्नवं ॥ ३८ ॥ तहेव सावज्जं जोगं परस्सट्ठाए. निट्ठियं । कीरमाणं ति वा नच्चा सावज्जं न लवे मुणी ॥ ४० ॥ T सुकडे त्ति सुपक्के त्ति सुछिन्ने सुहडे मडे । सुनिट्ठिए सुलट्ठेत्ति सावज्जं वज्जए मुणी ॥ ४१ ॥ पयत्तपक्के त्ति व पक्कमालवे | पयत्तछिन्न त्ति व छिन्नमालवे । Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२ पयत्तलट्ठ त्ति व कम्महेउयं, दसवेआलियं. पहारगाढ त्ति व गांढमालवे ।। ४२ ।। सव्वुक्कसं परग्धं वा अउलं नत्थि एरिसं । अवक्कियमवत्तव्वं अवियत्तं चेव नो वए ॥ ४३ ॥ सव्वमेयं वइस्सामि सव्वमेयं त्ति नो वए । अणुवीइ सव्वं सव्वत्थ एवं भासेज्ज पन्नवं ॥ ४४ ॥ सुक्कीयं वा सुविक्कोयं अकेज्जं केज्जमेव वा । इमं गेह इमं मुच पणियं नो वियागरे ।। ४५ ।। अप्पग्घे वा महग्घे वा कए वा विक्कए वि वा । पणियट्ठे समुपन्ने अणवज्जं वियागरे ।। ४६ ।। तहेवासंजयं धोरो आस एहि करेहि वा ! सयं चिट्ठ वयाहि त्ति नेवं भासेज्ज पन्नवं ॥ ४७ ॥ बहवे इमे असाहू लोए वुच्चंति साहुणो । नलवे असाहु साहुत्ति साहु साहु त्ति आलवे ।। ४८ ।। नाणदंसण संपन्नं संजमे य तवे रयं । गुणसमाउत्तं संजयं साहुमालवे ।। ४६ । एवं देवाणं मणयाणं च तिरियाणं च वुग्गहे । अमुयाणं जओ होउ मा वा होउ त्ति नो वए ॥ ५० ॥ वाओ वुट्ठं व सीउण्हं खेमं धायं सिवं ति वा । कया णु होज्ज एयाणि मा वा होउ त्ति नो वए ।। ५१ ।। तहेव मेहं व नहं व माणव न देव देव त्ति गिरं वएज्जा । Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'सत्तमज्य समुच्छिए उन्नए वा पओए वएज्ज वा त्रुट्ठ वलाहए त्ति ।। ५२ ।। अंतलिक्खे त्तिणं वूया गुज्झाणुचरियत्ति य । रिद्धितं नरं दिस्स रिद्धिमतं ति आलवे ।। ५३ ।। तहेव सावज्जणुमोयणी गिरा. ओहारिणी जा य परोवधाइणी । से कोह लोह भयसा व माणवो न हासमाणो वि गिरं वएज्जा ॥ ५४ ॥ सवक्कसुद्धि समुपेहिया मुणी गिरं च दुट्ठं परिवज्जए सया । मियं अट्ठ अणुवीइ भासए ४३ सयाण मज्झे लहई पसंसणं ।। ५५ । भासाए दोसे य गुणे य जाणिया तीसे य दुट्ठे परिवज्जए सया । छसु संजए सामणिये सया जए वएज्ज वुद्धे हियमाणुलोमियं ॥ ५६ ॥ परिक्खभासी स निद्ध णे धुन्नमलं पूरेकडं सुसमाहिंइ दिए चउवकसायावगए अणिस्सिए । आराहए लोगमिणं तहां परं ।। ५७ ।। -fa af 11 -त्ति ॥ Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ दसवेआलियं अट्ठमज्झयणं आयारपणिही आयारप्पणिहिं लद्धु जहा कायव्व भिक्खुणा। तं भे उदाहरिस्सामि आणुपुवि सुणेह मे ॥ १ ॥ पुढवि दग अगणि मारुय तणरुख सबीयगा। तसा य पाणा जीव त्ति इइ वुत्तं महेसिणा ।। २ ।। तेसिं अच्छणजोएण निच्चं होयव्वयं सिया। मणसा कायवक्केण एवं भवइ संजए ॥ ३ ॥ पुढवि भिति सिलं लेलुनेव भिदे न संलिहे। तिविहेण करणजोएण संजए सुसमाहिए ॥ ४ ॥ . . सुद्धपुढवीए न निसिए ससरक्खम्मि य आसणे । पमज्जित्तु निसीएज्जा जाइत्ता जस्स ओग्गहं ॥ ५ ॥ सीओदगं न सेवेज्जा सिलावुटु हिमाणि य । उसिणोदगं तत्तफासुयं पडिगाहेज्ज संजए ।। ६ ॥ उदउल्लं अप्पणो कायं नेव पुछे न संलिहे । समुप्पेह तहाभूयं नो णं संघट्टए मुणी ॥ ७ ॥ इंगालं अगणि अच्चि अलायं व सजोइयं । न उंजेज्जा न घट्टेज्जा नो णं निव्वावए मुणी ॥ ८ ॥ तालियंटेण पत्तेण साहाविहुयणेण वा । न वोएज्ज अप्पणो कायं वाहिरं वा वि पोग्गलं ।। ६ ।। .. Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * अट्ठमझयणं तणरुक्खं न छिदेज्जा फलं मूलं व कस्सई। आमगं विविहं बीयं मणसा वि न पत्थए ।। १० ।। गहणेसु न चिट्ठज्जा वीएसु हरिएसु वा। .. उदगम्मि तहा निच्चं उत्तिंगपणगेसु वा ॥११ ।। तसे पाणे न हिंसेज्जा वाया अदुव कम्मुणा । उवरओं सव्वभूएसु पासेज्ज विविहं जगं ।। १२ ।। अट्ठः सुहुमाइं पेहाए जाई जाणित्तु संजए। . दयाहिगारी भूएसु आस चिट्ठ सएहि वा ॥ १३ ।। कयराइ अटु सुहमाई जाइपुच्छेज्ज संजए। इमाई ताइ मेहावी आइक्खेज्ज वियवखणो ।। १४ ।। सिणेहं पुप्फसुहुमं च पाणुत्तिगं तहेव य ! पणगं बीय हरियं च अंडसुहुमं च अट्ठमं ।। १५ ।। एवमेयाणि . जाणित्ता सव्वभावेण संजए। अप्पमत्तो. जए निच्चं सर्दिवदियसमाहिए ।। १६ ।। धुवं च पडिलेहेज्जा जोगसा पायकंबलं । सेज्जमुच्चारभूमि च संथारं अदुवासणं ।। १७ ॥ उच्चारं पासवणं खेलं सिंघाणजल्लियं । फासुयं पडिले हित्ता परिढावेज्ज संजए । १८ ।। पविसित्तु परागारं पाणट्ठा भोयणस्स वा । जयं चिट्ठ मियं भासे ण य रूवेसु मणं करे ।। १६ ॥ वहुं सुणेइ कण्णेहिं वहुं अच्छीहिं पेच्छइ । न य दिट्ट सुयं सव्वं भिक्खू अवखाउमरिहइ ॥ २० ॥ Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६ दसवेआलियं सुयं वा जड़ वा दिट्ठ न लवेज्जोवघाइयं । न य केणइ उवाएणं गिहिजोगं समायरे ।। २१ ।। निट्ठाणं रसनिज्जूढं भगं पावगं ति वा । पुट्ठो वा वि अपुट्ठो वा लाभालाभं न निद्दिसे || २२ || न य भोयणम्मि गिद्धो चरे उंछं अयंपिरो । अफासुयं न भुजेज्जा की मुद्दे सियाह ॥ २३ ॥ सन्निहि च न कुव्वेज्जा अणुमायं पि संजए । मुहाजीवी असंवद्धे हवेज्ज जग निस्सिए ॥ २४ ॥ अपिच्छे सुहरे सिया । लूवित्ती सुसंतुट्ठ आसुरतं न गच्छेज्जा सोच्चाणं जिणसासणं ॥ २५ ॥ कण्णसोक्खेहि दारुणं कवकसं फासं कारण सद्देहिं पेमं नाभिनिवेसए ! अहियासए ॥ २६ ॥ खुहं पिवासं दुस्सेज्जं सीउन्हं अहियासे अव्बहिओ देह दुक्खं अरई भयं । महाफलं ।। २७ ।। अत्यंगयम्मि आइच्चे पुरत्था य अणुग्गए ! आहारमाइयं सव्वं मणसा विन पत्थए ॥ २८ ॥ अतितिणे अचवले अप्पभासी मियासणे । हवेज्ज उयरे दंते थोवं लहूं न खिसए ॥ २६ ॥ न बाहिर परिभवे अत्ताणं न समुक्कसे । सुयलाभे न मज्जेज्जा जच्चा तवसिद्धिए ॥ ३० ॥ से जाणमजाणं वा कट्टु आहम्मियं पयं । संवते विप्पमप्पाणं वीयं तं न समायरे ॥ ३१ ॥ Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमज्झयणं. अणायारं परवकम्म नेव गूहे . न निण्हवे । सुई सया वियडभावे असंसत्ते जिदिए ।॥ ३२ ॥ . अमोहं वयणं कुज्जा आयरियस्स महप्पणो। तं परिगिज्झ वायाए कम्मुणा उववायए ॥ ३३ ।। अधुवं जीवियं नच्चा सिद्धिमग्गं वियाणिया। . विणियटेज्ज . भोगेसु आउं परिमियमप्पणो ॥ ३४ ॥ वलं थामं च पेहाए सद्धामारोगमप्पणो। खेत्तं कालं च विन्नाय तहप्पाणं निजुजए ।। ३५ ।। जरा जाव न पीलेइ वाही जाव न वडढई। जाविदिया न हायति ताव धम्म समायरे ।। ३६ ।। . कोहं माणं च मायं च लोभं च पापबढणं । वमे चत्तारि दोसे उ इच्छंतो हियमप्पणो ।। ३७ ॥ कोहो पीई पणासेइ माणो विणयनासणो। . माया मित्ताणि नासेइ लोहो सव्वविणासणो ।। ३८ ।। उवसमेण हणे कोहं माणं मद्दवया जिणे । मायं चज्जवभावेण लोभं संतोसओ जिणे ॥ ३ ॥ कोहो य माणो य अणिग्गहीया माया य लोभो य पवढ्ढमाणा। चत्तारि ए एं कसिणा कसाया सिंचंति मूलाइ पुणब्भवस्स ।। ४० ।। राइणिएसु विणयं : पजे धुवसीलयं सययं न हावएज्जा । Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ दसवेआलियं कुम्मो व्व अल्लोणपलीणगुत्तो परक्कमेज्जा तवसंजमम्मि ।। ४१ ॥ निहं च न वहमन्नेज्जा संपहासं विवज्जए। मिहोकहाहि न रमे सज्झायम्मि रओ सया ।। ४२॥ जोगं च समणधम्मम्मि जूजे अणलसो धुवं । जुत्तो य समणधम्मम्मि अट्ठ लहइ अणुत्तरं ।। ४३ ॥ इहलोगपारत्तहियं जेणं गच्छद सोग्गई। .. वहुस्सुयं पज्जुवासेज्जा पुच्छेज्जत्थ विणिच्छ्यं ।। ४४ ।।। हत्थं पायं च कायं च पणिहाय जिइंदिए। अल्लोणगुत्तो निसिए सगासे गुरुणो मुणी ।। १५ ।। न पक्खओ न पुरओ नेव किच्चाण-पिटुओ! न य ऊरु समासेज्जा चिट्ठज्जा गुरुणंतिए ।। ४६ ॥ अपुच्छिओ न भासेज्जा भासमाणस्स अंतरा। पिद्विमंसं न खाएज्जा मायामोसं विवज्जए ।। ४७ ॥ अप्पत्तियं जेण सिया आसू कूप्पेज्ज वा परो। सव्वसो तं न भासेज्जा भासं अहियगामिणि ।। ४८ ॥ दिट्ट मियं असंदिद्धं पडिपुन्नं वियंजियं । अयंपिरमणुविरगं भासं निसिर अत्तवं ॥ ४६॥ आयारपन्नत्तिधरं दिदिवायमहिज्जगं । वइविक्खलियं तच्चा न तं उवहसे मूणी ॥ ५० ॥ नक्खत्तं सुमिणं जोगं निमित्तं मत भेस। . गिहिणो तं न आइक्खे - भूयाहिगरणं पयं ।। ५१ ।। Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम अन्नट्ठ पगडं लयणं भएज्ज उच्चारभूमिसंपन्नं हत्थपायपडिच्छिन्नं अवि वाससइ नारि ४८ सयणासणं । इत्थी सुविवज्जियं । ५२ ।। विवित्ता य भवे सेज्जा नारीणं न लवे कहं । गिहिसंथवं न कुज्जा कुज्जा साहूहि संथवं ।। ५३ ।। जहा कुक्कुडपोयस्स निच्च कुललओ भयं । एवं खु वंभयारिस्स इत्थीविग्गहओ भयं ॥ ५४ ॥ चित्तभित्ति न निज्झाए नारि वा सुअलंकियं । भक्खरं पिव दट्ठणं दिट्ठि पडिसमाहरे ॥ ५५ ॥ विभूसा इत्थिसंसग्गी नरस्सत्तगवे सिस्स कण्णनासविगप्पियं । बंभयारी विवज्जए ।। ५६ ।। पणीयरसभोयणं । विसं तालउडं जहा ॥ ५७ ॥ अंगपच्चंग संठाणं चारुल्ल वियपेहियं । इत्थीणं तं न निज्झाए कामरागविवड्ढणं ।। ५८ ।। विसएसु मणुन्नेसु पेमं नाभिनिवेसए । अणिच्चं तेसि विन्नाय परिणामं पोग्गलाण उ ।। ५६ ।। पोग्गलाण परीणामं तेसि नच्चा जहा तहा । विणीयतहो विहरे सीईभूएण अप्पणा ।। ६० ।। जाए सद्धाए निक्खतो परियायट्ठाणमुत्तमं । तमेव अणुपालेज्जा गुणे आयरियसम्मए ॥ ६१ ॥ Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૫૦ तवं चिमं संजमजोगयं च सज्झायजोगं च सया अहिट्टए । सूरे व सेणाए समत्तमा उहे दसवेआलियं अलमप्पणी होइ अलं परेसि ॥ ६२ ॥ सज्झायसज्झाणरयस्स ताइणो अपावभावस्स तवे विसुज्झई जं सि मलं पुरेकडं रयस्स । समीरियं रुप्पमलं व जोइणा ॥ ६३ ॥ से तारिसे दुक्खसहे जिड़ दिए सुएण जुत्ते अममे अकिंचणे । विरायई कम्मघणम्मि अवगए कसिणभपुडावगमे व चंदिमा ॥ ६४ ॥ -त्ति बेमि ॥ + Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं अणं ( पढमो उद्देसो) नवमं अज्झयणं विजयसमाही ( पढमो उद्द सो) थंभा व कोहा व मयप्पमाया गुरुस्सगासे विणयं न सिक्खे | सो चेव उ तस्स अभूइभावो फलं व कीयस्स वहाय होइ ॥ १ ॥ जे यावि मंदि त्ति गुरुं विइत्ता डहरे इमे अप्पसुए त्ति नच्चा । हीलंति मिच्छं पडिवज्जमाणा पगईए मंदा वि भवंति एगे करेंति आसायण ते गुरूणं ।। २ ।। - डहरा विय जे सुयवुद्धोववेया । सुट्टिअप्पा आयारमंता गुण जे ही लिया सिहिरिव भास कुज्जा ॥ ३ ॥ जे यावि नागं डहरं ति नच्चा आसायए से अहियाय होइ । एवायरियं पिहु हीलयंतो ५१ आसी विसो यावि परं सुरुट्ठो नियच्छई जाइपहं खु मंदे ॥ ४ ॥ कि जीवनासाओ परं तु कुज्जा । आयरियपाया पुण अप्पसन्ना अवोहिआसायण नत्थि मोक्खो ॥ ५ ॥ Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसवेआलियं जो पावगं जलियमवक्कमेज्जा आसीविसं वा वि हु कोवएज्जा। जो वा विसं खायइ जोवियट्टी एसोवमासायणया गुरूण ॥ ६ ॥ .... सिया हु से पावय नो डहेज्जा आसीविसो वा कुविओ न भवखे । सिया विसं हालहलं न मारे न यावि मोक्खो गुरुहीलणाए । ७ ।। ... जो पव्वयं सिरसा भेत्तुमिच्छे सुत्तं व सीहं पडिवोहएज्जा । जो वा दए सत्तिअग्गे पहार एसोवमासायणया गुरूणं ।। ८ ।। . सिया हु सीसेण गिरि पि भिदे सिया ह सीहो कुविओ न भवखे । सिया न भिदेज्ज व सत्तिअग्गं न यावि मोवखो गुरुहीलणाए ।॥६॥ आयरियपाया पुण अप्पसन्ना __ अवोहिआसायण नत्थि मोक्खो। तम्हा अणावाह सुहाभिकंखी गुरुप्पसायाभिमुहो रमेज्जा ॥ १० ॥ जहाहियग्गी जलणं नमसे नाणाहुईमंतपयाभिसित्तं । एवायरियं उचिट्ठएज्जा अणंतनाणोवगओ वि संतो ॥ ११ ॥ Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . नवमं अज्झयणं (पढमो उद्देसो) - जस्संतिए धम्मपयाइ सिक्खे . .. . तस्संतिए वेणइयं पउंजे । सक्कारए सिरसा पंजलीओ ..... कायग्गिरा भो मणसा य निच्चं ॥ १२ ॥ लज्जा दया संजम बंभचेरं ____ कल्लाणभागिस्स विसोहिठाणं । जे मे गुरू सययमणुसासयंति ते हं गुरू सययं पूययामि ।। १३ ।। ... जहा निसंते तवणच्चिमाली . पभासई केवलभारहं .. तु । एवायरिओ सुयसीलबुद्धिए ... ... विरायई सुरमज्ञ व इंदो ।। १४ ।। जहा सेसी . कोमुइजोगजुत्तो - नक्खत्ततारागणपरिवुडप्पा । खे सोहई विमले अन्भमुक्के ... एवं गणी सोहइ भिक्खुमझे ।। १५ ।। महागरा . आयरिया महेंसी समाहिजोगे सुयसीलबुद्धिए। संपाविउकामे . अणुत्तराई .. आराहए तोसए धम्मकामी. ।। १६ ।। सोच्चाण मेहावी सुभासियाइ . सुस्सूसए . आयरियप्पमत्तो । आराहइत्ताण गुणे - अणेगे . . से पावई सिद्धिमणुत्तरं ।। १७ ॥ -त्ति बेमि ।। Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ नवमं अज्झयणं विषयसमाही ( बीओ उद्द सो ) मूलाओ बंधप्पभवो दुमस्स साहप्पसाहा विरुहंति पत्ता दसवेआलियं खंधाओ पच्छा समुवेंति साहा । तओ से पुप्फं च फलं रसो य ॥ १ ॥ एवं धम्मस्स विणओ मूलं परमो से मोक्खो । जेण कित्ति सुयं सिग्धं निस्सेसं चाभिगच्छई ॥ २ ॥ तहेव दीसंति जे य चंडे मिए थद्धे दुव्वाई नियडी सढे । वुज्झइ से अविणीयप्पा कटू सोयगयं जहा ॥ ३ ॥ विणयं पि जो उवाएणं चोइओ कुप्पई नरो । दिव्वं सो सिरिमेज्जंति दंडेण पडिसेहए ॥ ४ ॥ अविणीयप्पा उववज्झा हया गया । दुहमेहंता आभिओगमुवट्टिया || ५ ॥ तहेव सुविणीयप्पा उववज्झा हया गया । दीसंति सुहमेहंता इड्ढि पत्ता महायसा ।। ६ ।। तहेव अविणीयप्पा लोगंसि दीसंति दुहमेहंता छाया ते नरनारिओ । विगलिंदिया ॥ ७ ॥ दंडसत्यपरिजुण्णा असम्भ वयणेहि य । कलुणा विवन्नछंदा खुप्पिवासाए परिगया ॥ ८ ॥ Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं अभयणं (बीओ उद्देसो) ५५ लोगंसि नरनारिओ । तहेव सुविणीयप्पा दीसंति सुहमेहंता इड्ढि पत्ता महायसा ॥ ६ ॥ तहेव अविणीयप्पा देवा जक्खा य गुज्झगा । दीसंति दुहमेहंता अभिओगट्टिया ॥ १० ॥ तहेव सुविणीयप्पा देवा जक्खा य गुज्झगा । दीसंति सुहमेहता इड्ढि पत्ता S महायसा ॥ ११ ॥ जे आयरियउवज्झायाणं सूस्सूसावयणंकरा । तेसि सिक्खा पवड्ढति जलसित्ता इव पायवा ॥ १२ ॥ अप्पणट्ठा परट्ठा वा सिप्पा उणियाणि य । गिहिणो उवभोगट्ठा इहलोग्गस्स कारणा ।। १३ ।। जेण बंधं वहं घोरं परियावं च दारुणं । सिक्खमाणा नियच्छंति जुत्ता ते ललिइंदिया ॥ १४ ॥ ते वितं गुरुं पूयंति तस्स सिप्पस्स कारणा । सक्कारेंति नमसंति तुट्ठा तुट्टा निद्देसवत्तिणो ॥ १५ ॥ किं पुण जे सुयग्गाहो अनंत हिय कामए । आयरिया जं वए भिक्खू तम्हा तं नाइवत्त ॥ १६ ॥ नीयं सेज्जं गई ठाणं नीयं च आसणाणि य । नीयं च पाए वंदेज्जा नीयं कुज्जा य अंजलि ॥ १७ ॥ संघट्टइत्ता काएणं तहा उवहिणामवि । खमेह अवराहं मे वएज्ज न पुणो त्तिय ॥ १८ ॥ दुग्गओ वा पओएणं चोइओ वहई रहं । एवं दुबुद्धि किच्चाणं वुत्तो वृत्तो पकुव्वई ॥ १६ ॥ Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६ दसवेआलियं.. आलवंते लवते वा न निसेज्जाए पडिस्सुणे । मोत्तूणं आसणं धीरो सुस्सूसाए पडिस्सुणे ॥ १६ ॥ कालं छंदोवयारं च पडिले हित्ताण हेजहिं । तेण तेण उवाएण तं तं संपडिवायए ॥ २० ॥ विवत्ती अविणीयस्स संपत्ती विणियस्स य । जस्सेयं दुहओ नायं सिक्खं से अभिगच्छइ ।। २१ ॥ जे यावि चंडे मइइडिढगारवे पिसुणे नरे साहस हीणपेसणे । . अदिट्टधम्मे विणए अकोविए असंविभागी न हु तस्स मोवखो ॥ २२ ॥ निद्देसवत्ती गुण जे गुरूणं सुयत्थधम्मा विणयम्मि कोविया । तरित्त ते ओहमिणं दुरुत्तरं खवित्त कम्मं गइमुत्तमं गया ॥ २३ ॥ -त्ति वेमि ॥ Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं अज्झयणं (तइओ उद्देसो) नवमं अज्झयणं.. विणयसमाही (तइओ उद्दे सो) आयरियं . अग्गिमिवाहियग्गी . सुस्सूसमाणो पडिजागरेज्जा। . आलोइयं.. इंगियमेव नच्चा .. जो छन्दमाराहयइ स पुज्जो ॥ १ ॥ आयारमहा ... विणयं. पउंजे सुस्सूसमाणो परिगिज्झ वक्कं । जहोवइट्ठ अभिकंखमाणो गुरु तु नासाययई स पुज्जो ॥ २ ॥ राइणिएसु . विणयं . पिउंजे ___ डहरा वि यं जे परियायजेट्ठा । नियत्तणे वट्टइ सच्चवाई। ओवायवं वक्ककरे स पुज्जो ॥ ३ ॥ . अन्नायउंछं । चरई विसुद्धं जवणट्ठया समुयाणं च निच्च । अलद्धयं नो परिदेवएज्जा । ___ लद्धं न विकत्थयई स पुज्जो ॥ ४ ॥ संथारसेज्जासणभत्तपाणे अप्पिच्छ्या अइलाभे वि संते । जो एवमप्पाणभितोसएज्जा संतोसपाहन्नरए स पुज्जो ॥ ५ ॥ Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .दसवेआलियं सक्का सहे आसाए कंटया ___ अओमया उच्छहया नरेणं । अणासए जो उ सहेज्ज कंटए वईमए कण्णसरे स पुज्जो ॥ ६ ॥ मुहुत्तदुक्खा हु हवंति कंटया ___ अओमया ते वि तओ सुउद्धरा। वायादुरुत्ताणि दुरुद्धराणि वेराणुवंधोणि महत्भयाणि ॥ ७ ॥ समावयंता वयणाभिघाया कण्णंगया दुम्मणियं जणंति ।। धम्मो त्ति किच्चा परमग्गसूरे जिदिए जो सहई स पुज्जो ॥ ८ ॥ अवण्णवायं च परम्मुहस्स पच्चक्खओ पडिणीयं च भासं । ओहारिणि अप्पियकारिणि च भासं न भासेज्ज सया स पुज्जो ॥ ६ ॥ अलोलुए अक्कुहए अमाई अपिसुण यावि अदीणवित्ती। नो भावए नो वि य भावियप्पा ___ अकोउहल्ले य सया स पुज्जो।। १० ।। गुणेहि साहू अगुणे हिसाहू गिण्हाहि साहू गुणमुंचऽसाहू । वियाणिया अप्पगमप्पएणं जो रागदोसेहिं समो स पुज्जो ॥११॥ Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ... नवमं अज्झयणं (तइओ उद्देसो) ५६ . तहेव डहरं व महल्लगं वा इत्थीपुमं पव्वइयं गिहिं वा । . नो हीलए नो वि य खिसएज्जा . थंभं च कोहं च चए स पुज्जो ॥ १२ ॥ जे माणिया सययं माणयंति .जत्तेण कन्नं व निवेसयंति । ते माणए माणरिहे तवस्सी .. जिइदिए सच्चरए स पुज्जो ।। १३ ।। तेसिं गुरूणं गुणसागराणं ___ सोच्चाण मेहावि सुभासियाई । चरे मुणी पंचरए तिगुत्तो । चउक्कसायावगए स पुज्जो ॥ १४ ॥ गुरुमिह सययं पडियरिय मुणी जिणमयनिउणे अभिगमकुसले । धुणिय रयमलं पुरेकडं . भासुरमउलं गई गये ।। १५ ।। -त्ति वेमि ॥ Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसवेआलियं नवमं अज्झयणं विणयसमाही (चउत्थो उद्देसो) सुयं मे आउसं ! तेणं भगवया एवमक्खायं-इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं चत्तारि विणयसमाहिट्ठाणा पन्नत्ता ।। सू० १ ।। कयरे खलु ते थेरेहि भगवंतेहिं चत्तारि विणयसमाहिट्ठाणा पन्नत्ता ? ।। सू० २ ।। इमे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं चत्तारि विणयसमाहिढाणा पन्नत्ता, तंजहा-(१) विणयसमाही (२) सुयसमाही (३) तवसमाही (४) आयारसमाही । विणए सए अ तवे आयारे निच्चं पंडिया। अभिरामयंति अप्पाणं जे भवंति जिइंदिया ॥१॥ || सू० ३ ॥ चउविहा खलु विणयसमाही भवइ, तंजहा—(१) अणुसासिज्जतो सुस्सूसइ (२) सम्म संपडिवज्जइ (३) वेयमाराहयइ (४) न य भवइ अत्तसंपग्गहिए । चउत्थं पयं भवइ । भवइ य इत्थ सिलोगो-- पेहेइ हियाणुसासणं सुस्सूसइ तं च पुणो अहिट्ठए । न य माणमएण मज्जइ विणयसमाही आययट्ठिए ॥ २ ॥ ।। सू० ४ ॥ Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१ '' नवमं अज्झयणं (चउत्यो उद्देसो) .. . चउविवहा खलु सुयसमाही. भवइ, तंजहा-(१) सुयं मे - भविस्सइ त्ति अज्झाइयव्वं भवइ (२) एगग्गचित्तो भविस्सामि .. त्ति अज्झाइयव्वं भवइ (३) अप्पाणं ठावइस्सामि त्ति अज्झा- इयव्वं भवइ (४) ठिओ परं ठावइस्सामि त्ति अज्झाइयव्वं भवइ । चउत्थं पयं भव। . .. .. . . भवइ य इत्थं सिलोगो- .. नाणमेगग्गचित्तो य ठिओ ठावयई परं। सुयाणि य अहिज्जित्ता रओ सुयसमाहिए ।। ३ ।। ॥ सू० ५॥ चउव्विहा खलु तवसमाही भवइ, तंजहा -(१) नो इहलोगट्ठयाए तवमहिलज्जा (२) नो परलोगट्टयाए तवमहितुज्जा (३) कित्तिवण्णसद्दसिलोगट्ठयाए तवमहिज्जा (४) नन्नत्थ निज्जरट्टयाए तवमहिछेज्जा । चउत्थं पयं भवइ । भवइ य इत्थ सिलोगो - विविहगुणतवोरए य निच्चं - भवइ निरासए निज्जरट्ठिए । __ तवसा . धुणइ . पुराणपावगं — जुत्तो सया तवसमाहिए ॥ ४ ॥ ॥ सू०६॥ चउबिहा खलु आयारसमाही भवइ, तंजहा—(१) नो इहलोगट्टयाए आयारमहिछेज्जा (२) नो परलोगट्ठयाए आयारमहिछेज्जा (३) नो कित्तिवण्णससिलोगट्ठयाए आयारमहिछेज्जा (४) नन्नत्थ आरहंतेहिं हेऊहिं आयारमहिछेज्जा । चउत्थं पयं भवइ । Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसवैमालियं भवइ य इत्थ सिलोगोजिणवयणरए अतितिणे पडिपुण्णाययमाययट्ठिए । आयारसमाहिसंवुडे भवइ य दंते भावसंघए ॥५॥ ॥ सू० ७॥ अभिगम चउरो समाहिओ सुविसुद्धो सुसमाहियप्पओ। विउलहियसुहावहं पुणो । कुव्वइ सो पयखेममप्पणो ।। ६ ।। जाइमरणाओ मुच्चई इत्थंथं च चयइ सव्वसो। सिद्धे वा भवइ सासए देवे वा अप्परए महिड्ढिए ।। ७ ।। -त्ति वेमि ॥ Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमझयणं दसमज्झयणं स-भिक्खु निक्खम्ममाणाए . वुद्धवयणे __निच्चं चित्तसमाहिओ हवेज्जा। इत्थीण वसं न यावि गच्छे बंतं नो पडियायई जे स भिक्ख ॥ १ ॥ पुढवि न खणे न खणावए सीओदगं न पिए न पियावए। अगणिसत्थं जहा . सुनिसियं - तं न जले न जलावए जे स भिक्खू ।। २ ।। अनिलेण न वीए न वीयावए हरियाणि न छिदे न छिदावए। वीयाणि सया विवज्जयंतो सच्चित्तं नाहारए जे स भिक्खू ॥ ३॥ वहणं तसथावराण होइ पुढवितणकट्ठनिस्सियाणं . । तम्हा उद्देसियं न भुजे नो वि पए न पयावए जे स भिक्खू ॥ ४ ॥ रोइय नायपुत्तवयणे अत्तसमे मन्नेज्ज छप्पि काए। - पंच य फासे महव्वयाई . पंचासवसंवरे जे स भिक्खू ॥५॥ Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसवेआलियं .. ६४ चत्तारि वमे . सया कसाए । धुवजोगी य हवेज्ज बुद्धवयणे । अहणे निज्जायरूवरयए गिहिजोगं परिवज्जए जे स भिक्ख ॥६॥ सम्मद्दिट्ठी सया अमूढे अत्थि ह नाणे तवे संजमे य । तवसा धुणइ पुराणपावगं मणवयकायसुसंवुडे जे स भिक्खू ।। ७ ।। तहेव असणं पाणगं वा विविहं खाइमसाइमं लभित्ता। होही अट्ठो सुए परे वा ' तं न निहे न निहावए जे स भिक्खू ॥ ८ ॥ तहेव असणं पाणगं वा विविहं खाइमसाइमं लभित्ता। छंदिय साहम्मियाण भुजे भोच्चा सज्झायरए य जे स भिक्ख ।। ६॥ न य वुग्गहियं कहं कहेज्जा न य कुप्पे निहुइदिए पसंते । संजमधुवजोगजुत्ते. उवसंते अविहेडए जे स भिक्खू ।। १० ।। जो सहइ ह गामकंटए .:: . अक्कोसपहारतज्जणाओ य। ... भयभेरवसहसंपहासे . . समसुहदुक्ख सहे य जे स भिक्खू ॥ ११ ॥ Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . दसमझयणं ... . पडिमं . पडिवज्जिया · मसाणे 'नो भायएं भयभेरवाई दिस्स। विविहगुणतवोरए य निच्चं । न सरीरं चाभिकखई जे स भिक्खू ॥१२॥ ... वोसठ्ठचत्तदेहे.. .. अक्कुठे व हए व लूसिए वा । पुढवि समे .. मुणी हवेज्जा ...... अनियाणे अकोउहल्ले य जे स भिक्ख ॥१३॥ असई अभिभूय काएण. परीसहाई __ समुद्धरे · जाइपहाओ अप्पयं । विइत्तु जाईमरणं महन्भयं तवे रए सामणिए जे स भिक्खू ।। १४ ।। हत्थसंजए ... पायसंजए वायसंजए संजइंदिए । अज्झप्परए . ' सुसमाहियप्पा सुत्तत्थं ज वियाणंई जे स भिक्खू ।। १५ ।। उवहिम्मि समुच्छिए अगिद्धे ___ अन्नायउंछं पुल निप्पुलाए। कयविक्कयसन्निहिओ विरए' सव्वसंगावगए य जे स भिक्खू ।। १६ ॥ अलोल भिक्खू न रसेसु गिद्धे उंछं चरे जीविएनाभिकंखे । इड्ढि च सक्कारण पूयणं च चए ठियप्पा अणिहे जे स भिक्खू ॥ १७ ॥ Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसआलियं. न वएज्मानि अलीले अंगालो मुज्जन तंबएज्जा। जाणिय पत्तेयं पाय अत्ताण न नामुलकास जे स भिवन ।। १८ ॥ नामले न र नवजात न लाममने न नुएणमत्ते । मार, नव्या विवउजता मामला जेन निवना ।। १६ ॥ माय महामणी अ दिनोटाबपाई परपि । मामिलामा २० . Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ : रइवक्का (पढमा चूलिया). . ६७ रइवक्का (पढमा चूलिया) ... इह खलु भो ! पव्वइएणं, उप्पन्नदुक्खेणं, संजमे अरइ समावन्नचित्तेणं, ओहाणुप्पेहिणा अणोहाइएणं चेव, हयरस्सिगयंकुस-पोयपडागाभूयाई इमाइं अट्ठारस ठाणाई सम्म संपडिले हियव्वाइं भवंति । तंजहा. .. १-हं भो ! दुस्समाए दुप्पजीवी । . २-लहुस्सगा इत्तरिया गिहीणं कामभोगा। .. ३-भुज्जो य साइवहुला मणुस्सा । ४-इमे य मे दुक्खे न चिरकालोवट्ठाई भविस्सइ । ' ५--ओमजणपुरक्कारे । ६–वंतस्स य पडियाइयणं । ७-अहरगइवासोवसंपया। ८-दुल्लभे खलु भो ! गिहीणं धम्मे गिहिवासमझे वसंताणं। ६-आयके से वहाय होइ। • . १०-संकप्पे से वहाय होइ। ११-सोवक्केसे गिहवासे । निरुवक्केसे परियाए । १२-बंधे गिहवासे । मोक्खे परियाए । १३-सावज्जे गिहवासे । अणवज्जे परियाए । १४-बहुसाहारणा गिहीणं कामभोगा ।। १५--पत्तेयं पुण्णपावं ॥ १६-अणिच्चे खलु भो ! मणुयाण जोविए कुसग्गजल विदुचंचले । Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८ दसवेआलिय १७ – बहुं च खलु भो पावं कम्मं पगडं || १८ - पावाणं च खलु भो ! कडाणं कम्माणं पुव्वि दुच्चिण्णाणं दुप्पडिकंताणं वेयइत्ता मोवखो, नत्थि अवेयइत्ता, तवसा वा झोसत्ता अट्ठारसमं पयं भवइ ॥ सू० १ ॥ भवइ य इत्थ सिलोगो जया य चयई धम्मं अणज्जो भोगकारणा । से तत्थ मुच्छिए वाले आयई नाववुज्झइ ॥ १ ॥ जया ओहाविओ होइ इंदो वा पडिओ छमं । सव्वधम्म परिब्भट्ठो स पच्छा परितप्पइ ॥ २ ॥ जया य वंदिमो होइ पच्छा होइ अवंदिमो । देवया व चुया ठाणा स पच्छा परितप्पइ ॥ ३ ॥ जया य पूइमो होइ पच्छा होइ अपूइमो । राया व रज्जपन्भट्ठो स पच्छा परितप्पइ ॥ ४ ॥ जया य माणिमो होइ पच्छा होइ अमाणिमो । सेट्ठि व्व कव्वडे छूढो स पच्छा परितप्पइ ॥ ५ ॥ जया य थेरओ होइ समइवकंतजोव्वणो | मच्छो व्व गलं गिलित्ता स पच्छा परितप्प || ६ || जया य कुकुडंवस्स कुतत्तीहिं विहम्मइ । हत्थी व बंधणे वो स पच्छा परितप्पइ ॥ ७ ॥ पुत्तदारपरिकिण्णो मोहसंताणसंत | पंकोसन्नो जहा नागो स पच्छा परितप्पइ ॥ ८ ॥ Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रक्का ( पढमा चूलिया ) अज्ज आहंगणी हुतो भावियप्पा जई हं रमतो परियाए सामण्णे वहुस्सुओ । जिणदेसिए ॥ ६ ॥ महेसिणं । देवलोगसमाणों उ परियाओ रयाणं अरयाणं तु महानिरयसारियो ॥ १० ॥ अमरोवमं जाणिय सोक्खमुत्तमं रयाण परियाए तहारयाणं । निरओवमं जाणिय दुक्खमुत्तमं रमेज्ज तम्हा परियाय पंडिए । ११ ॥ धम्माउ भट्ठ सिरिओ ववेयं जन्नगिंग विज्झायमिव पतेयं । होलंति णं दुब्विहियं कुसीला दाढुद्धियं घोरविसं व नागं ॥ १२ ॥ इहे धम्मो अयसो अकित्ती दुन्नामधेज्जं च पिहुज्जणम्मि | चुस्स धम्माउ अहम्मसेविणो ६८ संभिन्नवित्तस्स य ट्ठओ गई ॥ १३ ॥ भुजत्तु भोगाइ पसज्झ चेयसा तहाविहं कट्टु असंजम वहुं । गई च गच्छे अणभिज्झियं दुहं वोही से नो सुलभा पुणो पुणो || १४ || इमस्स ता नेरइयस्स जंतुणो दुहोवणीयस्स किले सवत्तिणो । पलिओदमं झिज्जइ सागरीवमं . किमंग पुण मज्झ इमं मणोदुहं ? ।। १५ ।। Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७० दसवेआलियं . न मे चिरं दुवखमिणं भविस्सई असासया भोगपिवास जंतुणो। न चे सरीरेण इमेणवेस्सई अविस्सई जीवियपज्जवेण मे ॥ १६ ॥ जस्सेवमप्पा उ हवेज्ज निच्छिओ चएज्ज देहं न उ धम्मसासणं । तं तारिसं नो पयलेंति इंदिया उतवाया व सुदंसणं गिरिं ॥ १७ ॥ इच्चेव संपस्सिय वुद्धिमं नरो आयं उवायं विविहं वियाणिया। काएण वाया अदु माणसेणं तिगुत्तिगुत्तो जिणवयणमहिटिठज्जासि ॥ १८ ॥ -त्ति वेमि ।। Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विइया चूलिया विवित्तचरिया (बिइया चूलिया ) चूलियं तु पवक्खामि सुयं केवलिभासियं । जं सुणित्तु सपुन्नाणं धम्मे उप्पज्जए मई ॥ १ ॥ अणुसोयपट्ठिएव हुजणम्मि पडिसोयलद्धलक्खेणं । पडसोयमेव अप्पा दायव्वो होउकामेणं ॥ २ ॥ अणुसोयसुहोलोगो पडिसोओ आसवो सुविहियाणं । अणसोओ संसारो पडिसोओ तस्स उत्तारो ॥ ३ ॥ तम्हा आयारपरक्कमेण संवरसमा हिवहुलेणं । चरिया गुणा य नियमा य होंति साहूण दटुव्वा ॥ ४ ॥ अणिएयवासी समुयाणचरिया अन्नायउंछं परिक्कया य । अप्पोवही कलहविवज्जणा य ७१ विहारचरिया इसिणं पसत्था ॥ ५ ॥ आइण्णओमाणविवज्जणा य ओसन्नदिट्ठाह भत्तपाणे संसदृकप्पेण चरेज्ज भिक्खू तज्जायसंसठ जई जएज्जा ॥ ६ ॥ अमज्जमंसासि अमच्छरीया अभिवखणं निव्विगई गया य । Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२ अभिक्खणं काउस्सग्गकारी सज्झायजोगे पयओ हवेज्जा ॥ ७ ॥ दसवेआलियं न पडिन्नवेज्जा सयणासणाई सेज्जं निसेज्जं तह भत्तपाणं । गामे कुले वा नगरे व देसे ममत्तभावं न कहिंपि कुज्जा ॥ ८ ॥ गिहिणो वेयावडियं न कुज्जा अभिवायणं बंदण पूयणं च । असंकि लिट्ठेहि समं वसेज्जा मुणी चरित्तस्स जओ न हाणी || ६ || न या लभेज्जा निउणं सहाय गुणाहियं वा गुणओ समं वा । एक्को वि पावाई विवज्जयंतो विहरेज्ज कामेसु असज्जमाणो || १० || संवच्छरं चावि परं पमाणं वीयं च वासं न तहिं वसेज्जा । सुत्तस्स मग्गेण चरेज्ज भिवख सुत्तस्स अत्थो जह आणवेइ ॥ ११ ॥ जो पुव्वरत्तावररत्तकाले संपिक्खई कि मेकर्ड ? किं च मे किच्च सेसं ? अप्पगमप्पएणं । कि सक्कणिज्जं न समायरामि ? ॥ १२ ॥ किं मे परो पासइ ? किं च अप्पा ? कि वाहं खलियं न विवज्जयामि ? Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .. 'बिइया चूलिया इच्चेव सम्मं अणुपासमाणो · अणागयं नो पडिबंध कुज्जा ।। १३ ॥ . जत्थेव पासे कइ दुप्पउत्तं - काएण वाया अदु माणसेणं । तत्थेव धीरो पडिसाहरेज्जा . .. आइन्नओ खिप्पमिव खलीणं ।। १४ ।। जस्सेरिसा जोग जिइंदियस्स . धिइमओ सप्पुरिसस्स निच्चं। तमाहु. लोए पडिवुद्धजीवी .... सो...जीवइ संजमजीविएणं ॥ १५ ॥ अप्पा खलु सययं रखियव्वो .. सविदिएहिं सुसमाहिएहिं । अरक्खिओ जाइपहं उवेइ सुरक्खिओ सव्वदुहाण मुच्चइ ।। १६ ।। -त्ति वेमि ॥ दसवेआलियं सम्मत्त Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तर ज्झ यणं पढमं अज्झयणं विषयसुयं संजोगा विप्पमुक्कस्स अणगारस्स भिक्खुणो। विणयं पाउकरिस्सामि आणुपुद्वि सुणेह मे ।। १ ॥ आणानिसकरे गुरूणमूववायकारए । इंगियागारसंपन्ने से विणीए त्ति वुच्चई ॥ २॥ .. आणाऽनिद्देसकरे गुरूणमणुववायकारए। पडिणीए असंवुद्धे अविणीए त्ति वुच्चई ॥ ३ ॥ जहा सुणी पूइकण्णी निक्कसिज्जइ सव्वसो। .. एवं दुस्सीलपडिणीए मुहरी निक्कसिज्जई ॥ ४ ॥ कणकुण्डगं चइत्ताणं विट्ठे भुजइ सूयरे। . एवं सीलं चइत्ताणं दुस्सीले रमई मिए ॥ ५ ॥ सुणियाऽभावं साणस्स सूयरस्स नरस्स य । विणए ठवेज्ज अप्पाणं इच्छन्तो हियमप्पणो ।। ६ ।। तम्हा विणयमेसेज्जा सीलं पडिलभे जओ। वुद्धपुत्त नियागट्ठो न निक्कसिज्जइ कण्हुई ।। ७ ।। निसन्ते सियाऽमुहरी वृद्धाणं अन्तिए सया। . अट्ठजुत्ताणि सिक्खेज्जा निरट्ठाणि उ वज्जए ।। ८ ।। अणुसासिओ न कुप्पेज्जा खंति सेविज्ज पण्डिए। खुड्डहिं सह संसग्गि हासं कीडं च वज्जए ।। ६ ।। Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम अज्झयणं . . . ७५. मा य चण्डालियं कासी वयं मा य आलवे। . कालेण य अहिज्जित्ता तओ झाएज्ज एगगो।।१०।। आहच्च चण्डालियं कटु न निण्हविज्ज कयाइ वि। कडं कडे त्ति भासेज्जा अकडं नो कडे त्ति य ।। ११ ॥ मा गलियस्से व कसं वयणमिच्छे पुणो पुणो। कसं व दठ्ठमाइण्णे . पावग परिवज्जए ॥ १२ ॥.. अणासवा . थूलवया कुसीला ..... मिपि चण्डं पकरेंति सीसा। चित्ताणुया लहु दक्खोववेया .. पसायए ते हु दुरासयं पि ॥ १३ ॥ नापुट्ठो वागरे किंचि पुठो वा नालियं वए। कोहं असच्चं कव्वेज्जा धारेज्जा पियमप्पियं ॥ १४ ॥ अप्पा चेव दमेयव्वो अप्पा हु खलु दुद्दमो। अप्पा दन्तो सुही होइ अस्सि लोए परत्थ य ।। १५ ।। वरं मे अप्पादन्तो संजमेण तवेण · य। माहं परेहि दम्मन्तो वन्धणेहि वहेहि य 11.१६ ॥ पडिणीयं च वुद्धाणं वाया अदुव कम्मुणा । ... आवी वा जइ वा रहस्से नेव कुज्जा कयाइ वि ।। १७ ॥ न पक्खओ न पुरओ नेव किच्चाण पिट्ठओ। न जुजे ऊरुणा ऊरु सयणे नो पडिस्सुणे ।। १८ ।। नेव पल्हत्थियं कुज्जा पक्खपिण्डं व संजए। पाए पसारिए वावि न चिठे गुरुणन्तिए ।।१६।।. Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६ 'उत्तरज्झयणं .. आयरिएहिं वाहिन्तो तुसिणीओ न कयाइ वि। . पसायपेही नियागट्ठी उवचिठे गुरुसया ।। २० ॥ आलवन्ते लवन्ते वा न निसीएज्ज कयाइ वि। चइऊणमासणं धीरो जओ जत्तः पडिस्सुणे ।। २१ ॥ आसणगओ न पच्छेज्जा नेव सेज्जागओ कया। आगम्मुक्कडुओ सन्तो पुच्छेज्जा पंजलीउडो ॥ २२ ॥ एवं विणयजुत्तस्स सत्तं अत्थं च तदुभयं । पुच्छमाणस्स सीसस्स वागरेज्ज जहासुयं ॥ २३ ॥ मुसं परिहरे भिक्ख न य ओहारिणि वए । भासादोसं परिहरे मायं च वज्जए सया ।। २४ ॥ न लवेज्ज पुट्ठो सावज्जं न निरठं न मम्मयं । अप्पणट्ठा परट्ठा वा उभयस्सन्तरेण वा ।। २५ ॥ समरेसु अगारेसु सन्धीसु य महापहे। . एगो एगिथिए सद्धिं नेव चिठे न संलवे ।। २६ ।। जं मे वुद्धाणसासन्ति सीएण फरुसेण वा। मम लाभो त्ति पेहाए पयओ तं पडिस्सुणे ।। २७ ।। अणुसासणमोवायं दुक्कडस्स य चोयणं । हियं तं मन्नए पण्णो वेसं होइ असाहुणो ।। २८ ।। हियं विगयभया बुद्धा फरुसं पि अणुसासणं । वेसं तं होइ मूढाणं खन्तिसोहिकरं पयं ।। २६ ॥ : आसणे उचिट्ठज्जा अणुच्चे अकुए थिरे । अप्पुट्ठाई निरुलाई निसीएज्जप्पकुक्कुए ॥ ३० ॥ . Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७. ___ पढमं अज्झयणं कालेण निवखमे भिक्खू कालेण य पडिक्कमे। . अकालं ज विवज्जित्ता काले कालं समायरे ॥ ३१॥ परिवाडीए न चिठेज्जा भिक्ख दत्तेसणं चरे। पडिरूवेण एसित्ता मियं कालेणं भक्खए ॥ ३२ ॥ नाइदूरमणासन्ने नन्नेसि चक्खफासओ। एगो चिट्ठज्ज भत्तट्ठा लंघिया तं नइक्कमे ॥ ३३ ।। नाइउच्चे व नीए वा नासन्ने नाइदरओ। फासयं परकडं पिण्डं पडिगाहेज्ज संजए ॥ ३४ ॥ अप्पपाणेऽपवीयंमि पडिच्छन्नंमि संवुडे । समयं संजए भुजे जयं अपरिसाडियं ॥ ३५ ॥ सुकडे त्ति सुपक्के त्ति सुच्छिन्ने सुहडे मडे । सुणिट्ठिए सुलट्ठ त्ति सावज्जं वज्जए मुणी ॥ ३६ ।। रमए पण्डिए. सासं हयं भई व वाहए। वालं सम्मइ सासन्तो गलियस्सं व वाहए ॥ ३७ ।।. खड्डया मे चवेडा मे अक्कोसा य वहा य मे। कल्लाणमणुसासन्तो पावदिट्ठि त्ति मन्नई ॥ ३८ ॥ पुत्तो मे भाय नाइ त्ति साहू कल्लाण मन्नई। पावदिट्ठी उ अप्पाणं सासं दासं व मन्नई ।। ३६ ॥ न कोवए आयरियं अप्पाणं पिन कोवए । वुद्धोवघाई न सिया न सिया तोत्तगवेसए ॥ ४० ॥ आयरियं कुवियं नच्चा पत्तिएण पसायए। विज्झवेज्ज पंजलिउडो वएज्ज न पुणो त्ति य ॥ ४१ ।। Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मज्जियं च ववहारं वुद्धेहायरियं सया। तमायरन्तो ववहारं गरहं नाभिगच्छई ।। ४२ ।। मणोगयं वक्कगयं जाणित्तायरियस्स उ। तं परिगिज्झ वायाए कम्मुणा उववायए।। ४३ ।। वित्ते अचोइए निच्चं खिप्पं हवइ सुचोइए। जहोवइलैं सुकयं किच्चाई कुव्बई सया ।। ४४ ॥ नच्चा नमइ मेहावी लोए कित्ती से जायए। हवई किच्चाणं सरणं भूयाणं जगई जहा ।। ४५ ।। पुज्जा जस्स पसीयन्ति संवुद्धा पुव्वसंथया । पसन्ना लाभइस्सन्ति विउलं अट्ठियं सुयं ।। ४६ ।। स पुज्जसत्थे सुविणीयसंसए __मणोरुई चिट्ठइ कम्मसंपया । तवोसमायारिसमाहिसंबुडे महज्जुई पंचवयाइं पालिया ॥४७॥ स देवगन्धव्वमणुस्सपूइए चइत्तु देहं मलपंकपुव्वयं सिद्धे वा हवइ सासए देवे वा अप्परए महिड्ढिए ।। ४८ ।। -त्ति वेमि ।। Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . . “वीयं अज्झयणं परीसहपविभत्ती सू० १-सुयं मे, आउसं ! तेणं भगवया एवमक्खायं इह खलु वावीसं परीसहा समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया, जे भिक्खू सोच्चा, नच्चा, जिच्चा, अभिभूय, भिवखायरियाए परिव्वयन्तो पुट्ठो नो विहन्नेज्जा। सू० २–कयरे खलु ते वावीसं परीसहा समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया जे भिक्ख सोच्चा, नच्चा, जिच्चा, अभिभूय, भिक्खायरियाए परिव्वयन्तो पुट्ठो नो विहन्नेज्जा? सू० ३-इमे खलु ते वावीसं परीसहा समजेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया, जे भिक्खू सोच्चा, नच्चा, जिच्चा, अभिभूय, भिक्खायरियाए परिव्वयन्तो पुट्ठो नो विहन्नेज्जा, तं जहां १ दिगिछापरीसहे, २. पिवासापरीसहे, ३. सीयपरीसहे, ४.. उसिणपरीसहे, ५. दंसमसयपरीसहे, ६. अचेलपरीसहे, ७. अरइपरीसहे, ८. इत्थीपरीसहे, ६. चरियापरीसहे १०. निसीहियापरीसहे, ११. सेज्जापरीसहे, . १२. अक्कोसपरीसहे, १३. वहपरीसहे, १४. जायणापरीसहे, १५. अलाभपरीसहे, १६. रोगपरीसहे, १७ तणफासपरीसहे, १८. जल्लपरीसहे, १६. सक्कारपुरक्कारपरीसहे, २०. पन्नापरीसहे, २१. अन्नाणपरीसहे, २२. दंसणपरीसहे। . परीसहाणं पविभत्ती कासवेणं पवेइया । : तं भे उदाहरिस्सामि आणुपुवि सुणेह मे ॥ १ ॥ Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तरज्झयणं (१) दिगिछापरीसहे दिगिछापरिगए देहे तवस्सी भिक्खु थामवं । न छिन्दे न छिन्दावए न पए न पयावए ॥ २ ॥ कालीपव्वंगसंकासे किसे धमणिसंतए। मायन्ने असणपाणस्स अदीणमणसो चरे ॥ ३ ॥ (२) पिवासापरीसहे तओ पुट्ठो पिवासाए दोगुछी लज्जसंजए। सीओदगं न सेविज्जा वियडस्सेसणं चरे ॥ ४ ॥ छिन्नावाएसु पन्थेसु आउरे सुपिवासिए। परिसुक्क मुहेऽदीणे तं तितिक्खे परीसह ॥ ५ ॥ (३) सीयपरीसहे चरन्तं विरयं लूहं सीयं फुसइ एगया। नाइवेलं मुणी गच्छे सोच्चाणं जिणसासणं ॥ ६ ॥ न मे निवारणं अत्थि छवित्ताणं न विज्जई। . अहं तु अग्गि सेवामि इइ भिक्खू न चिन्तए ।। ७ ।। (४) उसिणपरीसहे उसिणपरियावेणं परिदाहेण तज्जिए।। घिसु वा परियावेणं सायं नो परिदेवए ॥ ८ ॥ उहाहितत्ते मेहावी सिणाणं नो वि पत्थए। गायं नो परिसिंचज्जा न वीएज्जा य अप्पयं ॥ ६ ॥ Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीयं अभय ८१ (५) दंसमसयपरी सहे समरेव महामुनी | पुट्ठो य दंसमस एहिं नागो संगामसीसे वा सूरो अभिहणे परं ॥ १० ॥ न संतसे न वारेज्जा मणं पि न पओसए । उवेहे न हणे पाणे भुं जन्ते मंससोणियं ॥ ११ ॥ (६) अचेल परीसहे : परिजुण्णेहि वत्थेहि होक्खामि त्ति अचेलए । अदुवा सचेलए होक्खं इइ भिक्खू न चिन्त ॥ १२ ॥ एगयाज्चेलए होइ सचेले यावि एगया । नाणी नो परिदेवए ॥ १३ ॥ एयं धम्महियं नच्चा (७) अरइपरी महे रीयन्तं अणगारं अकिंचणं । गामाणुगामं अरई अणप्पविसे तं तितिक्खे परीसहं ॥ १४ ॥ अरई पिट्ठओ किच्चा विरए आयरवििखए । धम्मारामे निरारम्भे उवसन्ते मुणी चरे ।। १५ ।। (= ) इत्थीपरीसहे संगो एस मणस्साणं जाओ लोगंमि इत्थिओ | जस्स एया परिन्नाया सुकडं तस्स सामण्णं ।। १६ ।। एवमादाय मेहावी पंकभूया उ इत्थिओ | नो ताहि विणिहन्नेज्जा चरेज्जत्तगवेसए ।। १७ ।। (e) चरियापरीस हे : एग एवं चरे लाढे अभिभूय परीसहे । गामे वा नगरे वावि निगमे वा रायहाणिएं ॥ १८ ॥ 1 Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२ उत्तरभयणं असमाणो चरे भिक्खू नेव कुज्जा परिग्गहं । असंसत्तो गिहत्थे हिं अणिएओ परिव्व ॥ १६ ॥ (१०) निसीहियापरी सहे सुसाणे सुन्नगारे वा रुक्खमूले व एगओ । अकुक्कुओ निसीएज्जा न य वित्तासए परं ॥ २० ॥ तत्थ से चिट्टमाणस्स उवसग्गाभिधारए | संकाभीओ न गच्छेज्जा उट्टित्ता अन्नमासणं ।। २१ ।। (११) सेज्जापरीसहे उच्चावयाहि सेज्जाहिं तवस्सी भिक्खु थामवं । नाइवेलं विन्नेज्जा पावदिट्टी विहन्नई ॥ २२ ॥ कल्लाणं अदु पावगं । पइरिक्कुवस्सयं लङ्कं किमेरायं करिस्सइ एवं तत्थहियासए ॥ २३ ॥ (१२) अक्कोसपरीसहे अक्कोसेज्ज परो भिक्खं न तेसि पडिसंजले । सरिसो होइ वालाणं तम्हा भिक्खू न संजले ॥ २४ ॥ सोच्चाणं फरुसा भासा दारुणा गामकण्टगा । तुसिणीओ उवेहेज्जा न ताओ मणसीकरे ॥ २५ ॥ (१३) वहपरीस हे हथो न संजले भिवख मणं पि न पओसए । तितिक्खं परमं नच्चा भिक्खुधम्मं विचितए ॥ २६ ॥ दन्तं हणेज्जा कोइ कत्थई । समणं संजयं नत्थि जीवस्स नासु त्ति एवं पेहेज्ज संजए ॥ २७ ॥ Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीयं अज्भयणं (१४) जायणापरीसहे दुक्करं खलु भो निच्चं अणगारस्स भिक्खुणो । सव्वं से जाइयं होइ नत्थि किचि अजाइयं ॥ २८ ॥ गोयरग्गपविट्ठस्स पाणी नो सुप्पसारए । सेओ अगारवासु त्ति इइ भिक्खू न चिन्त ॥ २६ ॥ (१५) अलाभपरीसहे परेसु घासमेसेज्जा भोयणे परिणिट्टिए । लद्धे पिण्डे अलद्धे वा नाणुतप्पेज्ज संजए ॥ ३० ॥ अज्जेवाहं न लव्भामि अवि लाभो सुए सिया । जो एवं पडिसंचिक्खे अलाभो तं न तज्जए ।। ३१ ।। (१६) रोगपरीस हे नच्चा उप्पइयं दुक्ख' अदीणो थावए पन्नं पुट्ठो तेगिच्छं नाभिनन्देज्जा नाभिनन्देज्जा A वेrणाए दुहट्टिए । तत्थहियासए ॥ ३२ ॥ संचिक्खत्तगवेस | एवं खु तस्स सामण्णं जं न कुज्जा न कारवे ॥ ३३ ॥ (१७) तणफासपरीस अचेलगस्स लुहस्स संजयस तवसिणो । तणेसु सयमाणस्स हुज्जा गायविराहणा ॥ ३४ ॥ आयवस्स निवाएणं अउला हवई वेयणा | एवं नच्चा न सेवन्ति तन्तुजं तणतज्जिया ।। ३५ ।। (१८) जल्लपरीसहे किलिन्नगाए मेहावी पंकेण व रएण वा । घिसु वा परितावेण सायं नो परिदेवए ॥ ३६ ॥ Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८४ उत्तरज्झयणं वेएज्ज निज्जरापेही आरियं धम्मऽणुत्तरं । जाव सरीरभेउ त्ति जल्लं कारण धारए ।। ३७ ।। (१६) सक्कारपुरक्कारपरीसहे अभिवायणमभट्टाणं सामी कुज्जा निमन्तणं । जे ताइं पडिसेवन्ति न तेसि पीहए मुणी ।। ३८ ।। अणुक्कसाई अप्पिच्छे अन्नाएसी अलोलुए। रसेसु नाणुगिज्झेज्जा नाणतप्पेज्ज पन्नवं ।। ३६ ॥ (२०) पन्नापरीसहे से नूणं मए पुत्वं कम्माणाणफला कडा । जेणाहं नाभिजाणामि पुट्ठो केणइ कण्हुई ॥ ४० ॥ अह पच्छा उइज्जन्ति कम्माणाणफला कडा । एवमस्सासि अप्पाणं नच्चा कम्मविवागयं ।। ४१ ।। (२१) अन्नाणपरीसहे निरट्ठगम्मि विरओ मेहुणाओ सुसंवुडो। जो सक्खं नाभिजाणामि धम्मं कल्लाण पावगं ।। ४२ ।। तवोवहाणमादाय पडिमं पडिवज्जओ । एवं पि विहरओ मे छउमं न नियट्टई ॥४३॥ (२२) दंसणपरीसहे नत्थि नूणं परे लोए इडढी वावि तवस्सिणो। अदुवा वंचिओ मि त्ति इइ भिक्खू न चिन्तए ॥ ४४ ।। अभू जिणा अस्थि जिणा अवावि भविस्सई। मुसं ते एवमाहंसु इइ भिक्खू न चिन्तए ।। १५ ।। एए परीसहा सव्वे कासवेण पवेइया । जे भिक्खू न विहन्नेज्जा पुट्ठो केणइ कण्हुई ।। ४६ ।। .. -त्ति वेमि ।। Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं अज्झयणं तइयं अज्झयणं चाउरंगिज्ज चत्तारि परभंगाणि दुल्लहाणीह जन्तुणो । माणुसत्तं सुई सद्धा संजमंमि य वोरियं ॥ १ ॥ समावन्नाण संसारे नाणागोत्तासु जाइसु ।। कम्मा नाणाविहा कटु पुढो विस्संभिया पया ॥ २ ॥ एगया देवलोएसु नरएसु वि एगया। एगया आसुरं कायं आहाकम्मे हि गच्छई ।। ३ ।। एगया खत्तिओ होइ तओ चण्डालवोक्कसो। तओ कीडपयंगो य तओ कुन्थुपिवीलिया ॥ ४ ॥ एवमावट्टजोणीसुपाणिणो कम्मकिव्विसा । न निविज्जन्ति संसारे सव्वट्ठसु व खत्तिया ।। ५ ।। कम्मसंगेहिं सम्मूढा दुक्खिया वहुवेयणा । अमाणुसासु जोणीसु विणिहम्मन्ति पाणिणो ॥ ६ ॥ कम्माणं तु पहाणाए आणुपुव्वी कयाइ उ । जीवा सोहिमणुप्पत्ता आययन्ति मणुस्सयं ॥ ७ ॥ माणुस्सं विग्गहं लद्धं सुई धम्मस्स दुल्लहा । जं सोच्चा पडिवज्जन्ति तवं खन्तिमहिंसयं ।। ८ ॥ आहच्च सवणं लद्धं सद्धा परमदुल्लहा । सोच्चा. नेआउयं मग्गं वहवे परिभस्सई ॥ ६ ॥ Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६ सुइं च लङ्कं सद्धं च वीरियं पुण दुल्लहं । बहवे रोयमाणा वि नो एणं ܒ माणुसत्तमि आयाओ जो धम्मं तवस्सी वीरियं लद्ध संवुडे उत्तरायणं पडिवज्जए || १० || सोच्च सहे । निगुणे रयं ।। ११ ।। सोही उज्जुयभूयस्स धम्मो सुद्धस्स चिट्ठई | निव्वाणं परमं जाइ घयसित व्व पावए ॥ १२ ॥ विगिंच कम्मुणो हे जसं संचिणु खन्तिए । पाढवं सरीरं हिच्चा उड्ढं पक्कमई दिसं ॥ १३ ॥ विसालिसेहि सीलेहिं जक्खा उत्तरउत्तरा । महासुक्का व दिप्पन्ता मन्नन्ता अपुणच्चवं ॥ १४ ॥ अप्पिया देवकामाणं कामरूवविउब्विणो । उड्ढ कप्पेसु चिट्ठन्ति पुव्वा वाससया बहू ॥ १५ ॥ तत्थ ठिच्चा जहाठाणं जवखा आउक्खए चुया । उवेन्ति माणुस जोणि से दसंगेऽभिजायई । १६ ।। खेत्तं वत्थु हिरण्णं च पसवो दासपोरुसं । चत्तारि कामखन्धाणि तत्थ से उववज्जई ॥ १७ ॥ चउरंगं दुल्लहं मत्ता संजमं तवसा घुयकम्मंसे सिद्धे मित्तवं नायवं होइ उच्चागोए य वण्णवं । अप्पायके महापन्ने अभिजाए जसोवले ॥ १८ ॥ भोच्चा माणुस्सए भोए अप्पडिरूवे अहाउयं । पुव्वं विसुद्धसद्धम्मे केवलं वोहिं वुज्झिया ॥ १६ ॥ पडिवज्जिया | हवइ सासए || २० ॥ -त्ति वेमि || Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - चउत्यं अज्झयणं . . चउत्यं अज्झयणं असंखयं असंखयं जोविय मा पमायए जरोवणीयस्स हु नत्थि ताणं । एवं वियाणाहि जणे पमत्ते - कण्णू विहिंसा अजया गहिन्ति ।। १ ।। जे पावकम्मेहि धणं मणूसा . समाययन्ती अमई गहाय । पहाय ते पास पयट्टिए नरे । वेराणुवद्धा नरयं उवेन्ति ॥ २ ॥ .. तेणे जहां सन्धिमुहे . गहीए .. . सकम्मुणा किच्चइ पावकारी।। एवं पया पेच्च इहं च लोए .. कडाण कम्माण न मोक्ख अत्थि ।। ३ ।। संसारमावन्न परस्स अट्टा साहारणं जं च करेइ कम्म । कम्मस्स ते तस्स उ वेयकाले न वन्धवा बन्धवयं उवेन्ति ।। ४ ।। वित्तेण ताणं न लभे पमत्ते . इममि लोए . अदुवा परत्था । दीवप्पण8 व अणन्तमोहे .. नेयाउयं दठ्ठमठ्ठमेव ।। ५ ।। Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८८ उत्तरज्झयणं सुत्तेसु यावी पडिबुद्धजीवी न वीससे पण्डिए आसुपन्ने । घोरा मुहत्ता अवलं सरीरं भारुण्डपक्खी व चरप्पमत्तो ।। ६ ॥ चरे पयाई परिसंकमाणो जं किचि पासं इह मण्णमाणो। लाभन्तरे जीविय वहइत्ता पच्छा परिन्नाय मलावधंसी ।। ७ ।। छन्दं निरोहेण उवेइ मोक्खं आसे जहा सिक्खियवम्मधारी। पुव्वाइं वासाइं चरप्पमत्तो __ तम्हा मुणी खिप्पमुवेइ मोक्खं ।। ८ ।। स पुवमेवं न लभेज्ज पच्छा - एसोवमा सासयवाइयाणं । विसीयई सिढिले आउयंमि कालोवणीए सरीरस्स भेए ॥ ६ ॥ खिप्पं न सक्केइ विवेगमेउं तम्हा समुट्ठाय पहाय कामे । समिच्च लोयं समया महेसी __अप्पाणरक्खी चरमप्पमत्तो ॥१०॥ मुहं मुहं मोहगुणे जयन्तं . अणेगरूवा समणं चरन्तं । फासा फुसन्ती असमंजसं च न तेसु भिक्खू मणसा पउस्से ।। ११ ॥ Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं अभयणं. मन्दा य फासा वहुलोहणिज्जा तहपगारेसु रक्खेज्ज कोहं विणएज्ज माणं मणं न कुज्जा । मायं न सेवे पयहेज्ज लोहं ॥ १२ ॥ जे संख्या तुच्छ परप्पवाई. ते पिज्जदोसाणगया परज्झा । एए अहम्मे ति दुगु छमाणो कंखे गुणे जाव दर्द सरीरभेओ ॥ १३ ॥ -त्तिं वेमि ॥ . Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तरज्झयणं पंचमं अज्झयणं अकाममरणिज्ज अण्णवंसि महोहंसि एगे तिण्णे दुरुत्तरं। . तत्थ एगे महापन्ने इमं पण्हमुदाहरे ।। १ ।। . सन्तिमे य दुवे ठाणा अक्खाया मारणन्तिया। अकाममरणं व सकाममरणं तहा ॥ २ ॥ वालाणं अकामं तु मरणं असई भवे । पण्डियाणं सकामं तु उक्कोसेण सई भवे ।। ३ ।। तत्थिमं पढमं ठाणं महावीरेण देसियं । कामगिद्धे जहा वाले भिसं कूराई कुव्वई ।। ४ ।। जे गिद्धे कामभोगेसु एगे कूडाय गच्छई। न मे दिट्ठ परे लोए चवखुदिट्ठा इमा रई ।। ५ ।। हत्थागया इमे कामा कालिया जे अणागया । को जाणइ परे लोए अत्थि वा नत्थि वा पुणो ? ।। ६ ।। जणेण सद्धि होक्खामि इइ वाले पगभई । कामभोगाणुराएणं केसं संपडिवज्जई ।। ७ ॥ . तओ से दण्डं समारभई तसेसु थावरेसु य । अट्ठाए य अणट्ठाए भूयग्गामं विहिंसई ।। ८ ।। हिंसे वाले मुसावाई माइल्ले पिसुणे सढे । भुजमाणे सुरं मंस सेयमेयं ति मन्नई ॥६॥ . Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'पंचमं अज्झयणं ६१ . - कायसा वयसा मत्ते वित्त गिद्धे य इत्थिसू ।। दुहओ मलं संचिणइ सिसुणागु व्व मट्टियं ।। १० ।। . तओ पुट्ठो आयं केणं गिलाणो परितप्पई । पभीओ परलोगस्स कम्माणुप्पेहि अप्पणो ।। ११ ।। सुया मे नरए ठाणा असीलाणं च जा गई। वालाणं कूरकम्माणं पगाढा जत्थ वेयणा ।। १२ ।। तत्थोववाइयं ठाणं जहा मेयमणुस्सुयं । आहाकम्मेहिं गच्छन्तो सो पच्छा परितप्पई ।। १३ ॥ जहा सागडिओ जाणं समं हिच्चा महापहं। विसमं मग्गमोइण्णो अक्खे भगमि सोयई ॥ १४ ॥ एवं धम्म विउक्कम्म अहम्म पडिवज्जिया। वाले मच्चुमुहं पत्ते अक्खं भग्गे व सोयई ।। १५ ।। तओ से मरणन्तंमि वाले सन्तस्सई भया। अकाममरणं मरई धुत्ते व कलिना जिए । १६ ।। एयं अकाममरणं वालाणं तु पवेइयं । । एत्तो सकाममरणं. पण्डियाणं सुणेह मे ।। १७ ।। मरणं पि सपुण्णाणं जहा मेयमणुस्सुयं । विप्पसण्णमणाघायं : संजयाण वुसीमओ ।। १८ ॥ न इमं सव्वेसु भिक्खू सु न इमं सव्वेसुऽगारिसु । नाणासीला अगारत्था विसमसीला य भिक्खुणो । १६ ।। . सन्ति एगेहिं भिक्खूहिं गारत्था संजमुत्तरा। गारत्थेहि य सव्वेहि साहवो संजमुत्तरा ।। २० ।। चीराजिणं नगिणिणं । जडीसंघाडिमुण्डिणं । एयाणि वि न तायन्ति दुस्सीलं परियागयं ॥ २१ ॥ Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तरज्झयण पिण्डोलए व दुस्सीले नरगाओ न मुच्चई। भिक्खाए वा गिहत्थे वा सुव्वए कम्मई दिवं ।। २२।। . अगारिसामाइयंगाई सड्ढी काएण फासए । पोसहं दुहओ पक्खं एगरायं न हावए ।। २३ ।। एवं सिक्खासमावन्ने गिहवासे वि सुव्वए । मुच्चई छविपव्वाओ गच्छे जक्खसलोगयं ।। २४ ।। अह जे संवुडे भिक्ख दोण्हं अन्नयरे सिया। सव्वदुक्खप्पहोणे वा देवे वावि महडिढए ।॥ २५ ॥ उत्तराई विमोहाइं जुइमन्ताणुपुव्वसो। समाइण्णाइं जखेहिं आवासाइं जसंसिणो ।। २६ ।। दीहाउया इढिमन्ता समिद्धा कामरूविणो । अहणोववन्नसंकासा भुज्जो अच्चिमालिप्पभा ।। २७ ।।। ताणि ठाणाणि गच्छन्ति सिक्खित्ता संजमं तवं । भिक्खाए वा गिहत्थे वा जे सन्ति परिनिव्वुडा ।। २८ ।। तेसिं सोच्चा सपुज्जाणं संजयाण वुसीमओ। न संतसन्ति मरणन्ते सीलवन्ता वहुस्सुया ।। २६ ॥ तुलिया विसेसमादाय दयाधम्मस्स खन्तिए । विप्पसीएज्ज मेहावी तहाभूएण अप्पणा ।। ३० ।। तओ काले अभिप्पेए सड्ढी तालिसमन्तिए। विणएज्ज लोमहरिसं भेयं देहस्स कंखए ॥ ३१ ॥ . अह कालंमि संपत्ते आघायाय समुस्सयं । सकाममरणं मरई तिहमन्नयरं मुणी ।। ३२ ।। -त्ति बेमि ।। . Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छट्ठमझयणं छटुमज्झयणं खुड्डागनियंठिज्ज जावन्तविज्जापुरिसा सवे ते दुक्खसंभवा । लुप्पन्ति वहुसो मूढा संसारंमि अणन्तए ॥ १ ॥ समिक्ख पंडिए तम्हा पासजाईपहे वहू । अप्पणा सच्चमेसेज्जा मेत्ति भूएसु कप्पए ।। २ ।। माया पिया ण्हुसा भाया भज्जा पुत्ता या ओरसा । नालं ते - मम ताणाय लुप्पन्तस्स सकम्मुणा ॥ ३ ॥ एयम? . संपेहाए पासे समियदंसणे । छिन्द गेहिं सिंणेहं च न कंखे . पुव्वसंथवं ।। ४ ।। गवासं मणिकुडलं पसवोदासपोरुसं । सव्वमेयं चइत्ताणं . कामरूवी भविस्ससि ।। ५ ।। थावरं जंगमं चेव धणं धण्णं उवक्खरं । पच्चमाणस्स कम्मेहिं नालं दुवखाउ मोयणे ॥ ६ ॥ अज्झत्थं सव्वओ सव्वं दिस्स पाणे पियायए। न हणे पाणिणो पाणे भयवेराओ उवरए ।। ७ ।। आयाणं नरयं दिस्स. नायएज्ज तणामवि । दोगुछी अप्पणो पाए दिन्नं भुजेज्ज भोयणं ॥ ८ ॥ इहमेगे उ मन्नन्ति अप्पच्चक्खाय पावगं । . आयरियं विदित्ताणं सव्वदुक्खा विमुच्चई ॥ ६ ॥ Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ · उत्तरज्झयणं भणन्ता अकरेन्ता य वन्धमोक्खपइण्णिणो । वायाविरियमेत्तेण समासासेन्ति अप्पयं ।। १०॥ न चित्ता तायए भासा कओ विज्जाणसासणं ? | विसन्ना पावकम्मेहिं वाला पंडियमाणिणो ।। ११ ।। जे केइ सरीरे सत्ता वण्णे रूवे य सव्वसो। मणसा कायवक्केणं सव्वे ते दुक्खसंभवा ।। १२ ।। आवना दीहमद्धाणं संसारंमि अणंतए । तम्हा सव्वदिसं पस्स अप्पमत्तो परिव्बए ।। १३ ॥ वहिया उड्ढमादाय नावकंखे कयाइ वि। पुव्वकम्मखयट्ठाए इमं देहं समुद्धरे ।। १४ ॥ विविच्च कम्मुणो हेउं कालकखी परिव्वए। मायं पिंडस्स पाणस्स कडं लक्ष्ण भक्खए ।। १५ ।। सन्निहिं च न कुवेज्जा लेवमायाए संजए । पक्खी पत्तं समादाय निरवेवखो . परिव्वए ।। १६ ।। एसणासमिओ लज्ज गामे अणियओ चरे । अप्पमत्तो पमत्तेहिं पिंडवायं गवेसए ।। १७ ।। एवं से उदाहु अणुत्तरनाणी . अणुत्तरदंसी अणुत्तरनाणदंसणधरे । अरहा भगवं वेसालिए वियाहिए ।। १८ ॥ -त्ति बेमि ॥ नायपुत्ते Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमज्झयणं सत्तमं अज्झयणं. उरबिभज्जं जहाएसं समुद्दिस्स कोई पोसेज्ज एलयं । ओयणं जवसं देज्जा पोसेज्जा वि सयंगणे ॥ १ ॥ तओ से पुट्ठे परिवृढे जायमेए महोदरे । पीणिए विउले देहे आएसं परिकंखए ।। २ ।। ६५ जाव न एइ आएसे ताव जीवइ से दुही | अह पत्तंमि आएसे सोसं छेत्तूण भुज्जई ॥ ३ ॥ जहा खलु से उरब्भे आएसाए एवं वाले अहम्मिट्ठे ईहई यं इत्थी विसयगिद्धे भंजमाणे सुरं मंसं विलोवए । हिंसे वाले मुसावाई अद्धाणंमि अन्नदत्तहरे तेणे माई कण्हुहरे सढे ॥ ५ ॥ समीहिए । नरयाउयं ॥ ४ ॥ महारभं - परिग्गहे । परिवृढे परंदमे ॥ ६ ॥ अयकक्कर - भोई य तु दिल्ले चियलोहिए । आउयं नरए कंखे जहाएसं व एलए ।। ७ ।। तओ कम्मगुरूजन्तु अय व्व आगया एसे मरणन्तंमि आसणं सयणं जाणं वित्तं कामे य भुंजिया | दुस्साहडं धणं हिच्चा वहुं संचिणिया रयं ॥ ८ ॥ पच्चुप्पन्नपरायणे । सोयई ॥ ८ ॥ Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तरज्झयणं तओ आउपरिक्खीणे चया देहा विहिंसगा। आसुरियं दिसं वाला गच्छन्ति अवसा तमं ।। १० ।। जहा कागिणिए हे सहस्सं हारए नरो। अपत्थं अम्वगं भोच्चा राया रज्जंतु हारए ।। ११ ।। । एवं माणुस्सगा कामा देवकामाण अन्तिए । सहस्सगुणिया भुज्जो आउं कामा य दिब्विया ।। १२ ।। अणेगवासानउया जा सा पन्नवओ ठिई। जाणि जोयन्ति दुम्मेहा ऊणे वाससयाउए । १३ ।। जहा य तिन्नि वाणिया मूलं घेत्तण निग्गया। एगोऽत्थ लहई लाह एगो मूलेण आगओ ।। १४ ॥ एगो मूलं पि हारित्ता आगओ तत्थ वाणिओ । ववहारे उवमा एसा एवं धम्मे वियाणह ।। १५ ।। माणुसत्तं भवे मूलं लाभो देवगई। भवे । मूलच्छेएण जीवाणं नरग-तिरिक्खत्तणं. धुवं ।। १६ ।। . दुहओ गई वालस्स आवई वहमूलिया। देवत्तं माणुसत्तं च जं जिए लोलयासढे ॥ १७ ॥ तओ जिए सई होइ दुविहं दोग्गइं गए। दुल्लहा तस्स उम्मज्जा अद्धाए सुचिरादवि ।। १८ ।। एवं जियं सपेहाए तुलिया वालं च पंडियं । मूलियं ते पवेसन्ति माणुसं जोणिमेन्ति जे ।।१६।। वेमायाहिं सिक्खाहिं जे नरा गिहिसुव्वया । उवेन्ति माणुसं जोणि कम्मसच्चा हु पाणिणो । २० ।। Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमं अजभयणं जेसि तु विउला सिक्खा मूलियं ते अइच्छिया । सीलवन्ता सवीसेसा अहीणा जन्ति देवयं ।। २१ ।। एवमद्दणवं भिक्खु अगारि च वियाणिया । कहण्णु जिच्च मेलिक्खं जिच्चमाणे न जहा कुसग्गे उदगं समुद्देण समं एवं माणुस्सगा कामा देवकामाण ६७ संविदे ॥ २२ ॥ मिणे । अन्तिए || २३ || इह कामणिय दृस्स पूइदेहनि रोहेणं कुसग्गमेत्ता इमे कामा सन्निरुद्धमि आउए । कस्स हेडं पुराकाउं जोगक्खेमं न संविदे ? ।। २४ ।। इह कामाणियट्टस्स अत्तट्ठे एवरज्झई | सोच्चा नेयाज्यं मग्गं जं भुज्जो परिभस्सई ॥ २५ ॥ अत्तट्ठे नावरज्झई | भवे देवे त्ति मे सुयं ॥ २६ ॥ इड्ढी जुई जसो वण्णो आउं सुहमणुत्तरं । भुज्जो जत्थ मणुस्सेसु तत्थ से उववज्जई ॥। २७ वालरस पस्स वालत्तं अहम्मं पडिवज्जिया । चिच्चा धम्मं अहमिट्ठे नरए उववज्जई ॥ २८ ॥ धीरस्स पस्स धीरत्तं सव्वधम्माणुवत्तिणो । चिच्चा अधम्मं धम्मिट्ठे देवेसु उववज्जई ॥ २६ ॥ तुलियाण वालभावं अवालं चेव पण्डिए । वालभावं अवालं सेवए मुणि ॥ ३० ॥ चइऊण -त्ति वेमि ॥ Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तरज्झयणं अट्ठमं अज्झयणं काविलीयं अधुवे असासयंमि संसारंमि दुवखपउराए। किं नाम होज्ज तं कम्मयं जेणाऽहं दोग्गइं न गच्छेज्जा ।। १ ॥ विजहित्तु पुन्वसंजोगं न सिणेहं कहिंचि कुव्वेज्जा । असिणेह सिणेहकरेहिं दोसपओसेहिं मुच्चए भिक्खू ।। २ ॥ तो नाण-दसणसमग्गो हियनिस्सेसाए सव्वजीवाणं । तेसिं विमोक्खणट्ठाए भासई मुणिवरों विगयमोहो ॥ ३॥ सव्वं गन्थं कलहं च । विप्पजहे तहाविहं भिक्खू । सव्वेसु कामजाएसु पासमाणो न लिप्पई ताई ॥ ४ ॥ भोगामिसदोसविसण्णे हियनिस्सेयसबुद्धिवोच्चत्थे । वाले य मन्दिए मूढे वज्झई मच्छिया व खेलंमि ।। ५ ।। Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमं अज्भयणं दुपरिच्चया अह सन्ति सुव्वया समणा मु मन्दा -4 न पाणे एवा रिएहि तओ इमे नो सुजहा एगे वयमाणा पाणवहं मिया अयाणन्ता । निरयं गच्छन्ति वाला हु पाणवहं य जायाए अधीरपुरिसेहिं । साहू जे तरन्ति अतरं वणिया व ॥ ६ ॥ सुद्धेसणाओ कामा से पावयं जग निस्सिएहिं नो तेसिमारभे अणुजाणे मुच्चेज्ज कयाइ सव्वदुक्खाणं । अवखायं जेहिं इमो साहुधम्मो पन्नत्तो ॥ ८ ॥ पावियाहि दिट्ठीहिं ॥ ७ ॥ नाइवा एज्जा से समिए त्ति वुच्चई ताई | कम्मं निज्जाइ उदगं वथलाओ ॥ ६ ॥ भूएहि तसनामेहिं ईर्द थावरेहिं दंडं च । मणसा वयसा कायसा चैव ॥ १० ॥ नच्चाणं तत्थ ठवेज्ज - भिक्खू अप्पाणं । घास मेसेज्जा रसगिद्धे न सिया भिक्खाए । ११ ।। Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०० उत्तरज्झयणं चव भा - पन्ताणि चेव सेवेज्जा सीयपिण्डं पुराणकुम्मासं । अदु वुक्कसं पुलागं वा जवणट्ठाए निसेवए मंथु ।। १२ ।। जे लक्खणं च सुविणं च ___ अंगविज्जं च जे पउंजन्ति । न हु ते समणा वुच्चन्ति एवं आयरिएहिं अवखायं ॥ १३ ॥ इहजीवियं अणियमेत्ता पन्भट्ठा समाहिजोएहिं। ते कामभोगरसगिद्धा उववज्जन्ति आसुरे काए ॥ १४ ॥ तत्तो वि य उवद्वित्ता संसारं वहं अणुपरियडन्ति । वहुकम्मलेवलित्ताणं ___बोही होइ सुदुल्लहा तेसि ॥ १५ ॥ कसिणं पि जो इमं लोयं पडिपुण्णं दलेज्ज इक्कस्स । तेणावि से न संतुस्से इइ दुप्पूरए . इमे आया ॥ १६ ॥ जहा लाहो तहा लोहो . . लाहा लोहो पवड्ढई । दोमास - कयं कज्जं । कोडीए वि न निट्टियं ॥ १७ ॥ Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . १०१ - अट्ठमं अन्झयणं नो. रक्खसीसु गिज्झेज्जा गंडवच्छासु . उणेगचित्तासु । जाओ पुरिसं पलोभित्ता खेल्लन्ति जहा व दासेहिं ॥ १८ ॥ नारीसु नोवगिज्झेज्जा इत्थी विप्पजहे अणगारे । धम्मं च . पेसलं नच्चा . तत्थ ठवेज्ज भिक्खू अप्पाणं ॥ १६॥ इइ एस धम्मे अक्खाए कविलेणं च विसुद्धपन्नेणं । तरिहिन्ति जे उ काहिन्ति तेहिं आराहिया दुवे लोगा ।। २० ॥ -त्ति बेमि ॥ Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२ उत्तरज्झयणं.. नवमं अज्झयणं नमिपव्वज्जा चइऊण देवलोगाओ उववन्नो माणुसंमि लोगंमि । उवसन्त — मोहणिज्जो सरई पोराणियं जाई ॥ १ ॥ - जाई सरितु भयवं सहसंबुद्धो अणुत्तरे धम्मे । पुत्तं वेत्तु रज्जे अभिणिक्खमई नमी राया ॥ २ ॥ से देवलोगसरिसे अन्तेउरवरगओ वरे भोए । भुंजित्तु नमी राया बुद्धो भोगे परिच्चयई ॥ ३ ॥ मिहिलं सपुरजणवयं बलमोरोहं च परियणं सव्वं । चिच्चा अभिनिवखन्तो एगन्तमहिट्टिओ भयवं ॥ ४ ॥ कोलाहलगभूयं आसी मिहिलाए पव्वयन्तंमि । तइया रायरिसिमि नमिमि अभिणिक्खमन्तंमि || ५ || अन्भुट्टियं रायरिसिं पव्वज्जा - ठाणमुत्तमं । सक्को माहणरूवेण इमं वयणमब्ववी ॥ ६ ॥ किण्णु भो ! अज्ज मिहिलाए कोलाहलग संकुला । सुव्वन्ति दारुणा सद्दा पासासु गिहेसु य ? ॥ ७ ॥ एयम निसामित्ता ऊकारण - चोइओ । तओ नमी रायरिसी देविन्दं इणमव्ववी - ॥ ८ ॥ मिहिलाए चेइए वच्छे सीयच्छाए मणोरमे । पत्त - पुप्फ-- फलोवेए वहूणं वहुगुणे सया ॥ ६ ॥ Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं अभयणं वाएण हीरमाणंमि चेइयंमि मणोरमे । दुहिया असरणा अत्ता एए कन्दन्ति भो ! खगा ।। १० ।। १०३ एयमट्ठ निसामित्ता हेऊकारण - चोइओ । तओ नमि रायरिसि देविन्दो इणमव्ववी - ॥ ११ ॥ एस अग्गी य वाऊ य एयं डज्झइ मन्दिरं । भयवं ! अन्तेउरं तेणं कीस णं नावपेक्खसि ? ।। १२ ।। एयमट्ठ निसामित्ता हेऊकारण - चोइओ । तओ नमी रायरिसी देविन्दं इणमव्ववी - ॥ १३ ॥ सुहं वसामो जीवामो जेसि मो नत्थि किंचण | मिहिलाए उज्झमाणीए न मे उज्झइ किंचण ॥ १४ ॥ चत्तपुत्तकलत्तस्स निव्वावारस्स भिक्खुणो । पियं नं विज्जई किंचि अप्पियं पि न विज्जए ।। १५ ।। वहुं खु मुणिणो भद्दं अणगारस्स भिक्खुणो । सव्वओ विप्पमुक्कस्स एगन्तमणुपस्सओ ॥ १६ ॥ एमट्ठ निसामित्ता तओ नमि रायरिसि पागारं कारइत्ताणं ऊकारण - चोइओ । देविन्दो इणमव्ववी ।। १७ ।। गोपुरट्टालगाणि च । उस्सूलगसयग्घीओ तओ गच्छसि खत्तिया ! ॥ १८ ॥ * एमट्ठ निसामित्ता हेऊकारण - चोइओ । तओ नमी रायरिसी देविन्दं इणमव्ववी - ॥ १६ ॥ सद्धं नगरं किच्चा तवसंवरमग्गलं । खन्ति निउणपागारं तिगुंत्तं दुप्पधंसयं ॥ २० ॥ Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ उत्तरज्झयणं धणं परक्कमं किच्चा जीवं च इरियं सया । धिरं च केयणं किच्चा सच्चेण पलिमन्थए ॥ २१ ॥ तवनारायजुत्तेण भेत्तूणं कम्मर्कचयं । मुणी विगयसंगामो भवाओ परिमुच्चए || २२ || एयमट्ठ निसामित्ता हेऊकारण - चोइओ । तओ नमि रायरिसि देविन्दो इणमब्ववी - ।। २३ ।। पासाए कारइत्ताणं वद्धमाणगिहाणि य । वालग्गपोइयाओ य तओ गच्छसि खत्तिया ! ॥ २४ ॥ एयमट्ठ निसामित्ता हेऊकारण - चोइओ । तओ नमी रायरिसी देविन्दं इणमव्ववी ।। २५ ।। संसयं खलु सो कुणई जो मग्गे कुणई घरं । जत्थेव गन्तुमिच्छेज्जा तत्थ कुब्वेज्ज सासयं ।। २६ ।। एयमट्ठ निसामित्ता हेऊकारण चोइओ । तओ नाम रायरिसि देविन्दो इणमब्ववी- ।। २७ ।। आमोसे लोमहारे य गंठिभेए य तक्करे । नगरस्स खेमं काऊणं तओ गच्छसि खत्तिया ! ॥ २८ ॥ हेऊकारण - चोइओ । एयमट्ठ निसामित्ता तओ नमी रायरिसी देविन्दं इणमव्ववी - ॥ २८ ॥ असई तु मणुस्सेहि मिच्छादण्डो पजु जई । अकारिणोऽत्य वज्झन्ति मुच्चई कारओ जणो ॥ ३० ॥ एयमट्ठ निसामित्ता हेऊकारण - चोइओ । तओ नमि रायरिसि देविन्दो इणमव्ववी- ।। ३१ ।। Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं अज्झयणं १०५ जे केइ पत्थिवा तुब्भं ना नमन्ति नराहिवा ! | वंसे ते ठावइत्ताणं तओ गच्छसि खत्तिया ! ॥ ३२ ॥ * एयमट्ठ निसामित्ता हेऊकारण - चोइओ । तओ नमी रायरिसी देविन्दं इणमब्ववी - ।। ३३ ।। जो सहस्सं सहस्साणं संगामे दुज्जए जिणे । एवं जिणेज्ज अप्पाणं एस से परमो जओ ।। ३४ ।। अप्पाणमेव जुज्झाहि किं ते जुज्झेण वज्झओ ? अप्पाणमेव अप्पाणं जइत्ता सुहमेहए ।। ३५ ।। " पंचिन्दियाणि कोहं माणं मायं तहेव लोहं च । दुज्जयं चेव अप्पाणं सव्वं अप्पे जिए जियं । ३६ ।। एयमट्ठ निसामित्ता हेऊकारण - चोइओ । तओ नमि रायरिसि देविन्दो इणमव्ववी - ।। ३७ ।। जइत्ता विउले जन्ने भोइत्ता समणमाहणे । दच्चा भोच्चा य जट्ठा य तओ गच्छसि खत्तिया ! ॥ ३८ ॥ एयम - । तओ नमी रायरिसी देविन्दं इणमव्ववी - ॥ ३८ ॥ निसामित्ता हेऊकारण चोइयो । जो सहस्सं सहस्साणं मासे मासे गवं दए । तस्सावि संजमो सेओ अदिन्तस्स वि किंचन ।। ४० ।। एयमट्ठ निसामित्ता हेऊकारण- चोइओ । तओ नाम रायरिसि देविन्दो इणमव्ववी - ॥ ४१ ॥ घोरासमं चइत्ताणं अन्नं पत्थेसि आसमं । इहेव पोसहरओ भवाहि मणुयाहिवा ! ॥ ४२ ॥ Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६ उत्तरज्झयणं एयमट्ठे निसामित्ता हेऊकारण - चोइओ । तओ नमी रायरिसी देविन्दं इणमब्ववी - ॥ ४३ ॥ मासे मासे तु जो वालो कुसग्गेणं तु भुजए । न सो सुक्खायधम्मस्स कलं अग्धइ सोलसि ॥ ४४ ॥ एयमट्ठ निसामित्ता हेऊकारण - चोइओ । तओ नमि रायरिसि देविन्दो इणभव्ववी - ॥ ४५ ॥ हिरण्णं सुवण्णं मणिमुत्तं कंसं दूसं च वाहणं । कोसं वडढावइत्ताणं तओ गच्छसि खत्तिया ! ॥ ४६ ॥ एयमट्ठ निसामित्ता हेऊकारण - चोइओ | तओ नमी रायरिसी देविन्दं इणमव्ववी - ॥ ४७ ॥ सुवण्ण रुप्पस्स उ पव्वया भवे सिया हु केलाससमा असंखया । नरस्स लुद्धस्स न तेहि किंचि इच्छा उ आगाससमा अणन्तिया ॥ ४८ ॥ पुढवी साली जवा चेव हिरण्णं पसुभिस्सह । पडिपुण्णं नालमेगस्स इइ विज्जा तवं चरे ॥ ४६ ॥ एयमट्ठ निसामित्ता हेऊकारण - चोइओ । तओ नमि रायरिसि देविन्दो इणमब्ववी - ।। ५० ।। अच्छेरगमव्भुदए भोए चयसि पत्थिवा ! असन्ते कामे पत्थेसि संकप्पेण विहन्नसि ।। ५१ ।। एयमट्ठ निसामित्ता हेऊकारण - चोइओ | तओ नमी रायरिसी देविन्दं इणमब्ववी - ॥ ५२ ॥ Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ': नवमं अज्झयणं १०७ सल्लं कामा विसं कामा कामा आसीविसोवमा । कामे पत्थेमाणा अकामा जन्ति दोग्गइं ॥ ५३ ।। अहे वयइ कोहेणं माणेणं अहमा गई। माया गईपडिग्घाओ लोभाओ दुहओ भयं ।। ५४ ।। अवउज्झिऊण माहणरूवं विउन्विऊण इन्दत्तं । वन्दइ अभित्थुणन्तो इमाहि महुराहिं वग्गूहिं ।। ५५ ।। अहो ! ते निज्जिओ कोहो ___ अहो ! ते माणो पराजिओ। अहो ! ते निरक्किया माया . अहो ! ते लोभी वसीकओ ।। ५६ ।। अहो ! ते अज्जवं साहु अहो ते साहु मद्दवं । अहो ! ते उत्तमा खन्ती अहो ! ते मुत्ति उत्तमा ।। ५७ ।। इह सि उत्तमो भन्ते ! पेच्चा होहिसि उत्तमो। लोगुत्तमुत्तमं ठाणं सिद्धिं गच्छसि नीरओ ।। ५८ ।। एवं अभित्थूणन्तो रायरिसिं उत्तमाए सद्धाए । पयाहिणं करेन्तो पुणो पुणो वन्दई सक्को ।। ५६ ।। तो वन्दिऊण पाए चक्कंकुसलक्खणे मुणिवरस्स । आगासेणुप्पइओ ललियचवलकुडलतिरीडी ।। ६० ।। नमी नमेइ अप्पाणं सक्खं सक्केण चोइओ । चइऊण गेहं वइदेही सामण्णे पज्जुवट्ठिओ॥ ६१ ।। एवं करेन्ति संबुद्धा पंडिया पवियक्खणा। विणियट्टन्ति भोगेसु जहा से नमी रायरिसि ।। ६२ ।। -त्ति बेमि । Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ __१०८ उत्तरज्झयणं दसमं अज्झयणं दुमपत्तयं दुमपत्तए पंडुयए जहा निवडइ राइगणाण अच्चए। एवं मणुयाण जीवियं समयं गोयम ! मा पमायए ॥ १ ॥ कुसग्गे जह ओसविन्दुए थोवं चिट्टइ लम्वमाणए। एवं मणुयाण जीवियं समयं गोयम ! मा पमायए ॥ २ ॥ इइ इत्तरियम्मि आउए जीवियए वहुपच्चवायए । विहुणाहि रयं पुरे कडं समयं गोयम ! मा पमायए ॥ ३ ॥ दुलहे खलु माणुसे भवे चिरकालेण वि सव्वपाणिणं । गाढा य विवाग कम्मुणो समयं गोयम ! मा पमायए ॥ ४ ॥ पूढविक्कायमइगओ उक्कोसं जीवो उ संवसे। कालं संखाईयं समयं गोयम ! मा पमायए ॥ ५ ॥ आउक्कायमइगओ उक्कोसं जीवो उ संवसे । कालं संखाईयं समयं गोयम ! मा पमायए ॥ ६ ॥ तेउक्कायमइगो उक्कोसं जीवो उ संवसे । कालं संखाईयं समयं गोयम ! मा पमायए ॥ ७ ॥ Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं अज्झयणं १०६ वाउक्कायमइगओ उक्कोसं जीवो उ संवसे । .. कालं संखाईयं समयं गोयम ! मा पमायए ॥ ८ ॥ वणस्सइकायमइगओ उक्कोसं जीवो उ संवसे । कालमणन्तदुरन्तं समयं गोयम ! मा पमायए ॥ ६ ॥ वेइन्दियकायमइगओ उक्कोसं जीवो उ संवसे । कालं संखिज्जसन्नियं समयं गोयम ! मा पमायए ।॥ १०॥ तेइन्दियकायमइगओ उक्कोसं जीवो उ संवसे । कालं संखिज्जसन्नियं समयं गोयम ! मा पमायए॥११॥ चउरिन्दियकायमइगओ उक्कोसं जीवो उ संवसे । कालं संखिज्जसन्नियं समयं गोयम ! मा पमायए ॥१२॥ पंचिन्दियकायमइगओ उक्कोसं जीवो उ संवसे । सत्तट्ट भवग्गहणे समयं गोयम ! मा पमायए ।। १३ ।। देवे नेरइए य अइगओ उक्कोसं जीवो उ संवसे । इक्किक्क-भवग्गहणे . . समयं गोयम ! मा पमायए ॥ १४ ॥ एवं भव-संसारे संसरइ सुहासुहेहि कम्मेहिं । जीवो पमाय-वहुलो समयं गोयम ! मा पमायए ।। १५ ।। लद्धण वि माणुसत्तणं आरिअत्तं पुणरावि दुल्लहं । वहवे दसुया मिलेखुया समयं गोयम ! मा पमायए ॥ १६ ॥ Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११० उत्तरज्झयणं . लद्धण वि आरियत्तणं अहीणपंचिन्दियया हु दुल्लहा। विगलिन्दियया ह दीसई समयं गोयम ! मा पमायए ।। १७ ।। अहीणपंचिन्दियत्तं पि से लहे ऊत्तमधम्मसुई हु दुल्लहा । कुतित्थिनिसेवए जणे समयं गोयम ! मा पमायए ।। १८ ॥ लद्धण वि उत्तमं सुई ___सद्दहणा पुणरावि दुल्लहा । मिच्छत्तनिसेवए जण समयं गोयम ! मा पमायए ।। १६ ॥ धम्म पि हु सद्दहन्तया दुल्लहया काएण फासया । इह कामगुणेह मुच्छ्यिा समयं गोयम ! मा पमायए ॥ २० ॥ परिजूरइ ते सरीरयं केसा पण्डरया हवन्ति ते । से सोयवले य हायई समयं गोयम ! मा पमायए ॥ २१ ॥ परिजूरइ ते सरीरयं केसा पण्डुरया हवन्ति ते। से चक्खुवले य हायई समयं गोयम ! मा पमायए ।। २२ ।। Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं अज्झयणं १११ परिजूरइ ते सरीरयं केसा पण्डुरया हवन्ति ते । से घाणवले य हायई समयं गोयम ! मा पमायए ।। २३ ।। परिजूरइ ते सरीरयं केसा पण्ड्रया हवन्ति ते । से जिभवले य हायई समयं गोयम ! मा पमायए ।। २४ ।। परिजूरइ ते सरीरयं केसा पण्डुरया हवन्ति ते । से फासवले य हायई समयं गोयम! मा पमायए ॥ २५ ।। परिजूरइ ते सरीरयं केसा पण्डुरया हवन्ति ते । से सव्ववले य हायई समयं गोयम ! मा पमायए ॥ २६ ॥ अरई · गण्डं विसूइया . आयंका विविहा फुसन्ति ते। विवडइ विद्धंसइ ते सरीरयं समयं गोयम ! मा पमायए । २७ ।। वोछिन्द सिणेहमप्पणो. कुमुयं सारइयं व पाणियं । से सव्वसिणेहवज्जिए समयं गोयम ! मा पमायए ।। २८ ।। चिच्चाण धणं च भारियं .. पव्वइओ हि सि अणगारियं । मा वन्तं पुणो वि आविए समयं गोयम! मा पमायए ।। २६ ।। ... अवउज्झिय मित्तवन्धवं विउलं चेव धणोहसंचयं । मा तं विइयं गवेसए . समयं गोयम! मा पमायए ॥ ३० ॥ Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२ उत्तरज्झयणं न ह जिणे अज्ज दिस्सई वहुमए दिस्सई मग्गदेसिए । संपइ नेयाउए पहे समयं गोयम ! मा पमायए ।॥ ३१ ॥ अवसोहिय कण्टगापहं ओइण्णो सि पहं महालयं । गच्छसि मग्गं विसोहिया समयं गोयम ! मा पमायए ।। ३२ ।। अवले जह भारवाहए मा मग्गे विसमे वगाहिया । पच्छा पच्छाणुतावए समयं गोयम ! मा पमायए ।। ३३ ।। तिण्णो हु सि अण्णवं महं कि पुण चिट्ठसि तीरमागओ। अभितुर पारं गमित्तए समयं गोयम ! मा पमायए ॥ ३४ ॥ अकलेवरसेणिमुस्सिया सिद्धि गोयम लोयं गच्छसि । खेमं च सिवं अणुत्तरं समयं गोयम ! मा पमायए ।। ३५ ।। वुद्धे परिनिव्वुडे चरे गामगए नगरे व संजए। सन्तिमगं च बूहए समयं गोयम ! मा पमायए ।। ३६ ।। वुद्धस्स निसम्म भासियं सूकहियमपवोवसोहियं । रागं दोसं च छिन्दिया सिद्धिगई गए गोयमे ।। ३७ ।। _~-त्ति वेमि। Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इक्कारसमं अज्झयणं इक्कारसमं अज्झयणं __बहुस्सुयपुज्जा संजोगा विप्पमुक्कस्स अणगारस्स भिक्खुणो। आयारं पाउकरिस्सामि आणुपुबि सुणेह मे ॥ १ ॥ जे यावि होइ निविज्जे थद्धे लुद्धे अणिग्गहे। अभिक्खणं उल्लवई अविणीए अवहुस्सुए।। २ ।। अह पंचहि ठाणेहिं जेहिं सिक्खा न लभई । थम्भा कोहा पमाएणं रोगेणाऽलस्सएण य ॥ ३ ॥ अह अट्टहिं ठाणेहि सिक्खासोले त्ति वुच्चई ।। अहस्सिरे सया दन्ते न य मम्ममुदाहरे ।। ४ ।। नासीले न विसीले न सिया अइलोलुए। अकोहणे सच्चरए सिक्खासीले त्ति वुच्चई ।। ५ ।। अह चउदसहि ठाणेहि वट्टमाणे उ संजए। अविणीए वुच्चई सो उ निव्वाणं च न गच्छइ ।। ६ ।। अभिक्खणं कोही हवइ पवन्धं च पकुव्बई । मेत्तिज्जमाणो वमइ सुयं लढू ण मज्जई ।। ७ ।। अवि पावपरिखेवी अवि मित्तेसु कुप्पई। सुप्पियस्सावि मित्तस्स रहे भासइ पावगं ।। ८ ।। पइण्णवाई दुहिले थद्ध लुद्ध अणिग्गहे । असंविभागी अवियत्ते. अविणीए त्ति वुच्चई ॥ ६ ॥ अह पन्नरसहि ठाणेहिं सुविणीए त्ति वुच्चई । .. नीयावत्ती अचवले । अमाई अकुऊहले ।। १० ।। Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११४ उत्तरज्झयणं अप्पं चाहिविखवई पवन्धं च न कुब्बई । मेत्तिज्जमाणो भयई सुयं लद्धुं न मज्जई ॥ ११ ॥ न य पावपरिवखेवी न य मित्तेसु कुप्पई । अप्पियस्सावि मित्तस्स रहे कल्लाण भासई ॥ १२ ॥ कलह-डमरवज्जए बुद्धे अभिजाइए । हिरिमं पडिलीणे सुविणीए ति वच्चई ।। १३ ।। वसे गुरुकुले निच्चं जोगवं उवहाणवं । पियंकरे वियंवाई से सिवखं लद्धमरिहई ॥ १४ ॥ जहा संखम्मि पयं निहियं दुहओ वि विराय | एवं वहुस्सुए भिक्खू धम्मो कित्ती तहा सुयं ।। १५ ।। जहा से कम्बोयाणं आइण्णे कन्थए सिया । आसे जवेण पवरे एवं हवइ बहुस्सु ॥ १६ ॥ सुरे दढ रक्कमे । जहा इण्णसमारूढे उभओ नन्दिघोसेणं एवं हवइ वहुस्सुए ।। १७ ।। जहा करेणुपरिकिण्णे कुजरे सद्विहायणे । वहुस्सु ॥ १८ ॥ विरायई । वलवन्ते अप्पsिहए एवं हवइ जहा से तिक्खसिंगे जायखन्धे वसहे जूहाहिवई एवं हवइ वहुस्सु ॥ १६ ॥ जहा से तिक्खदाढे उदग्गे दुप्पहंसए | सोहे मियाण पवरे एवं हवइ वहुस्सुए ॥ २० ॥ जहा से वासुदेवे संख-चक्क गयाधरे । अप्पsिहयवले जोहे एवं हवइ बहुस्सुए ॥ २१ ॥ जहा से चाउरन्ते चक्कवट्टी महिड्दिए । चउदसरयणाहिवई एवं हवइ बहुस्सुए ॥ २२ ॥ Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इंकारसमं अज्झयणं . ११५ जहा से सहस्सक्खे वज्जपाणी पुरन्दरे । सक्के देवाहिवई · एवं हवइ बहुस्सुए ।। २३ ।। जहा से तिमिरविद्धसे उच्चिद्वन्ते दिवायरे । जलन्ते इव तेएण एवं हवइ वहुस्सुए ॥ २४ ॥ जहा से उडुवई चन्दे नक्खत्त परिवारिए। पडिपुण्णे पुण्णमासोए एवं हवइ वहुस्सुए ।। २५ ।। • जहा से सामाइयाणं कोडागारे सुरक्खिए। नाणाधनपडिपुण्णे एवं हवइ वहुस्सुए ।। २६ ।। जंहा सा दुमाण पवरा जम्बू नाम सुदंसणा।। अणाढियस्स देवस्स एवं हवइ बहुस्सुए ।। २७ ।। जहा सा नईण पवरा सलिला सागरंगमा । सीया नीलवन्तपवहा एवं हवंइ वहुस्सुए ।। २८ ।। जहा से नगाण पवरे सुमहं मन्दरे गिरी। " नाणोसहिपज्जलिए एवं हवइ वहुस्सुएं ।। २६ ।। जहा से सयंभूरमणे उदही अक्खओदए। नाणारयणपडिपुणे एवं हवइ बहुस्सुए ॥ ३० ।। समुद्दगम्भीरसमा दुरासया अचक्किया केणइ दुप्पहंसया । सुयस्स पुण्णा विउलस्स ताइणो . खवित्त कम्मं गइमुत्तमं गया ।। ३१ ॥ • तम्हा - सुयमहिटिज्जा उत्तमट्टगवेसए। जेणऽप्पाणं परं चेव सिद्धि संपाउणेज्जासि ।। ३२॥ -त्ति बेमि ॥ Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११६ उत्तरज्झयणं . बारसमं अज्झयणं हरिएसिज्ज सोवागकुलसंभूओ गुणुत्तरधरो मुणी। हरिएसवलो नाम आसि भिक्खू जिइन्दिओ ॥ १ ॥ इरिएसण-भासाए उच्चार समिईसु य । जओ आयाणनिक्खेवे संजओ सुसमाहिओ ॥ २ ॥ मणगुत्तो वयगुत्तो कायगुत्तो जिइन्दिओ। भिक्खट्ठा वम्भइज्जम्मि जन्नवाडं उवढिओ ॥ ३ ॥ तं पासिऊणमेज्जन्तं तवेण परिसोसियं । पन्तोवहिउवगरणं उवहसन्ति अणारिया ॥ ४ ॥ जाईमयपडिथद्धा हिंसगा अजिइन्दिया । अवम्भचारिणो वाला इमं वयणमव्ववी ।। ५ ।। कयरे आगच्छइ दित्तरूवे ___काले विगराले फोक्कनासे । ओमचेलए पंसुपिसायभूए संकरसं परिहरिय कण्ठे ॥ ६ ॥ कयरे तुम इय अदंसणिज्जे काए व आसा इहमागओ सि । ओमचेलगा पंसुपिसायभूया गच्छ क्खलाहि किमिहं ठिओसि?॥ ७ ॥ जवखो तहिं तिन्यरुक्खवासी -अणुकम्पओ तस्स महामुणिस्स। Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बारसमं अज्झयणं ११७ · पच्छायइत्ता नियगं सरीरं इमाइं वयणाइमुदाहरित्था ॥ ८ ॥ समणो अहं संजओ वम्भयारी विरओ धणपयणपरिग्गहाओ। परप्पवित्तस्स उ भिक्खकाले अन्नस्स अट्ठा इहमागओ मि ॥ ६ ॥ वियरिज्जइ खज्जइ भुज्जई य . अन्नं पभूयं भवयाणमेयं । जाणाहि मे जायणजीविणु ति - सेसावसेसं लभऊ तवस्सी ।। १० ॥ उवक्खडं भोयण . माहणाणं अत्तट्टियं सिद्धमिहेगपक्खं । न ऊ वयं एरिसमन्नपाणं दाहामु तुझं किमिहं ठिओ सि ? ॥११॥ . थलेसु वोयाइ ववन्ति कासगा . : .. तहेव । निन्नेसु य आससाए। एयाए सद्धाए दलाह मज्झं आराहए पुण्णमिणं खु खेत्तं ।। १२ ।। खेत्ताणि अम्हं विइयाणि लोए .... जहि पकिण्णा विरहन्ति पुण्णा। जे माहणा जाइविज्जोववेया .. .. ताई तु खेत्ताइ सुपेसलाई ।। १३ ।। कोहो य माणो य वहो य · जेसि मोसं अदत्तं च परिग्गह च । Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८ . . . उत्तरंज्झयणं ते माहणा जाइविज्जाविहूणा... __ ताई तु खेत्ताई सुपावयाई ।। १४ ।। तुभेत्थ भो भावधरा गिराणं .... अट्ठ न जाणाह अहिज्ज वेए । उच्चावयाइं मुणिणो चरन्ति : . . ताई तु खेत्ताई सुपेसलाई ॥ १५ ॥ अज्झावयाणं पडिकूलभासी पभाससे किं तु सगासि अम्हं । अवि एवं विणस्सउ अन्नपाणं __ न य णं दहामु तुम नियण्ठा ! ।। १६ ।। समिईहि मज्झं सुसमाहियस्स ___ गुत्तीहि गुत्तस्स जिइन्दियस्स। जइ मे न दाहित्थ अहेसणिज्ज किमज्ज जन्नाण लहित्थ लाहं? || १७ ।। के एत्थ खत्ता उवजोइया वा . . . अज्झावया वा सह खण्डिएहिं । एयं दण्डेण फलेण हन्ता कण्ठम्मि घेत्तूण खलेज्ज जो णं? ॥१८॥ अज्झावयाणं वयणं सुणेत्ता ...' उद्धाइया तत्थ बहू कुमारा। दण्डेहि वित्तेहि कसेहि चेव समागया तं इसि तालयन्ति ।। १६ ॥ रन्नो तहिं कोसलियस्स धूया .. भद्दत्ति नामेण अणिन्दियंगी। Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ., . बारसमं अज्झयणं . . ११६ । तं पासिया संजय हम्ममाणं : कुद्ध कुमारे परिनिव्ववेइ ॥ २० ॥ देवाभिओगेण निओइएणं दिना मु रन्ना मणसा न झाया । नरिन्ददेविन्दऽभिवन्दिएणं ... जेणम्हि वन्ता इसिणा स एसो ।। २१ ॥ एसो हु सो उग्गतवो महप्पा । जिइन्दिओ संजओ बम्भयारी । जो मे तया नेच्छइ दिज्जमाणि ... .. पिउणा सयं कोसलिएग रन्ना ॥ २२ ॥ महाजसो एस महाणुभागो . . घोरव्वओ घोरपरक्कमो य । मा एयं हीलेह अहीलणिज्जं ... मा सव्वे तेएण भे निद्दहेज्जा ॥ २३ ॥ एयाइं तीसे वयणाइ सोच्चा पत्तीइ भद्दाइ सुहासियाइं । इसिस्स वेयावडियट्ठयाए . ....... जक्खा कुमारे विणिवाडयन्ति ।। २४ ॥ ते घोररूवा ठिय अन्तलिक्खे असुरा तहिं तं जणं तालयन्ति । ते भिन्नदेहे रुहिरं वमन्ते . ... पासित्तु भद्दा इणमाहु भुज्जो ॥ २५ ।। गिरि नहेहिं खणह . . . : ..... . . . . . अयं .. . . दन्तेहिं खायह। Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० जाततेयं पाएहि हणह जे भिक्खु आसीविसो उग्गतवो महेसी घोरव्वओ घोरपरक्कमो य । अगणिं व पक्खन्द पयंगसेणा जे भिक्खुयं भत्तकाले वहेह ॥ २७ ॥ उत्तरभयणं सीसेण एयं सरणं उवेह समागया सव्वजणेण तुब्भे । जइ इच्छह जीवियं वा धणं वा अवमन्नह || २६ ॥ लोगं पि एसो कुविओ उहेज्जा ॥ २८ ॥ अवहेडिय निव्भेरियच्छे रुहिरं वमन्ते पिट्ठि उत्तमंगे पसारियावाहु अकम्मट्ठे । ते पासिया खण्डिय कटुभए उड्ढमुहे निग्गयजीहनेत्ते ॥ २६ ॥ इसिं पसाएइ विमणो विसण्णो अह माहणो सो । सभाfरयाओ हीलं च निन्दं च खमाह भन्ते ! ॥ ३० ॥ अयाणएहिं वालेहि मूढेहि महप्पसाया इसिणो हवन्ति जं हीलिया तस्स खमाह भन्ते ! | पुव्वि च इण्हि च अणागयं च नहु मुणी कोवपरा हवन्ति ।। ३१ ।। मणप्पदोसो न मे अस्थि कोइ । Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बारसमं अज्झयणं जक्खा हु वेयावडियं करेन्ति तम्हा हु एए निहया कुमारा || ३२ || अत्थं च धम्मं च वियाणमाणा तुम्भे न वि कुप्पह भूइपन्ना तुब्भं तु पाए सरणं उवेमो समागया सव्वजणेण अम्हे ॥ ३३ ॥ १२१ अच्चे ते महाभाग ! न ते किंचि न अच्चिमो । भुजाहि सालिमं कूरं नाणावंजण संजुयं ॥ ३४ ॥ इमं च मे अस्थि पभूयमन्नं तं भुजसू अम्ह अणुग्गहट्ठा । वाढं ति पडिच्छइ भत्तपाणं मासस्स ऊ पारणए महत्पा || ३५ ॥ तहियं गन्धोदयपुष्पवासं दिव्वा तहिं वसुहारा य वुट्ठा । पहयाओ दुन्दुहीओ सुरेहिं आगासे अहो दाणं च घुटु ।। ३६ ।। सक्खं खु दीसह तवोविसेसो सोवागपुत्तं न दीसइ जाइविसेस कोई । हरिएस साहू जस्सेरिसा इड्ढि महणुभागा ।। ३७ ।। किं माहणा ! जो समारभन्ता उदएण सोहिं वहिया विमग्गहा ? | जं मग्गहा बाहिरियं विसोहिं न तं सुदिट्ठ कुसला वयन्ति ॥ ३८ ॥ Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२ . : उत्तरज्झयणं कुसं च जूवं तणकट्ठरिंग __ सायं च पायं उदगं फुसन्ता । पाणाइ भूयाइ विहेडयन्ता भुज्जो वि मन्दा! पगरेह पावं ॥ ३६॥ . कहं चरे ? भिक्खु ! वयं जयामो ? पावाइ कम्माइ पणोल्लयामो ?। अक्खाहि णे संजय ! जक्ख पुइया ! कहं सुजट्ठ कुसला वयन्ति ? ॥ ४० ॥ . छज्जीवकाए असमारभन्ता मोसं अदत्तं च असेवमाणा । परिग्गहं इथिओ माणमायं एवं परिन्नाय चरन्ति दन्ता ।। ४१ ।। सुसंवुडो पंचहिं संवरेहिं ___ इह जीवियं अणवकंखमाणो । वोसट्टकाओ सुइचत्तदेहो महाजयं जयई जन्नसिट्ट ।। ४२ ॥ के ते जोई, के व ते जोइठाणे ? का ते सुया, किं च ते कारिसंग ? | एहा य ते कयरा सन्ति भिक्खू ! ..... कयरेण होमेण हुणासि जोइं ? || ४३ ।। तवो जोई जीवो जोइठाणं जोगा सुया सरीरं कारिसंगं । कम्म एहा... संजमजोगसन्ती . मी इसिणं पसत्थं ॥ ४४ ॥ -: PTA Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बारसमं अज्झयणं १२३ के ते हरए, के य ते सन्ति तित्थे ?. कहिंसि हाओ व रयं जहासि ? । आइक्ख णे संजय ! जक्खपूइया! इच्छामो नाउं भवओ सगासे ।। ४५ ।। धम्मे हरए वम्भे सन्तितित्थे अणाविले अत्तपसनलेसे । जहिंसि हाओ विमलो विसुद्धो सुसीइओ पजहामि दोसं ।। ४६ ।। एयं सियाणं कुसलेहि दि8 __ महासिणाणं इसिणं पसत्थं । जहिंसि पहाया विमला विसुद्धा महारिसी उत्तम ठाणं पत्ता ।। ४७ ॥ --त्ति बेमि ॥ Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४ उत्तरझियण . तेरसमं अज्झयणं चित्तसम्भूइज्ज जाईपराजिओ कासि नियाणं तु हस्थिणपुरम्मि । चुलणीए वम्भदत्तो उववन्नो पउमगूम्माओ॥ १॥ . कम्पिल्ले ___ संभूओ चित्तो पुण जाओ पुरिमताल म्मि। सेटिकुलम्मि विसाले धम्म सोऊण पन्वइओ ॥ २ ॥ कम्पिल्लम्मि य नयरे समागया दो वि चित्तसम्भूया। सुहदुक्खफल विवागं ___कहेन्ति ते एक्कमेक्कस्स ।। ३ ॥ . चक्कवट्टी महीड्ढीओ वम्भदत्तो महायसो । भायरं बहुमाणेणं इमं वयणमव्ववी ।। ४ ।। .. आसिमो भायरा दो वि अन्नमन्नवसाणुगा। अन्न मन्नमणूरत्ता अन्नमन हिएसिणो ।। ५ ।। दासा दसण्णे आसी मिया कालिंजरे नगे। हंसा मयंगतीरे सोवागा कासिभूमिए ।। ६ ।। देवा य देवलोगम्मि आसि अम्हे महिड्ढिया । इमा नो छट्ठिया जाई अन्न मन्नण जा विणा ॥ ७ ॥ Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ..तेरसमं अज्झयणं । - १२५ कम्मा नियाणप्पगडा तुमे राय विचिन्तिया। .. तेसिं फल विवागेण विप्पओगमुवागया ।। ८ ।। सच्चसोयप्पगडा कम्मा ‘मए पुरा कडा। ते अज्ज परिभुजामो किं नु चित्ते वि से तहा? ॥ ६ ॥ सव्वं . सुचिण्णं सफल नराणं ___ कडाण कम्माण न मोक्ख अत्थि । · अत्थेहि कामेहि य उत्तमेहिं . आया ममं पुण्ण फलोववेए ।। १० ।। जाणासि . संभूय ! महाणुभागं महिड्ढियं पुण्णफलोववेयं ।। चित्तं पि जाणाहि तहेव रायं ! ... इड्ढी जुई तस्स वियप्पभूया ।। ११ ॥ महत्थरूवा वयणप्पभूया __गाहाणगीया . नरसंघमज्झे । जं भिवखुणो सीलगुणोववेया . . इहज्जयन्ते समणो म्हि जाओ ।। १२ ॥ - उच्चोयए मह कक्के य वम्भे . . पवेड्या आवसहा य रम्मा । . इमं गिहं चित्तधणप्पभूयं . ... . पसाहि . पचालगुणोववेयं ।। १३ ।। ... नदेहि गीएहि य वाइएहिं . नारीजणाइं . परिवारयन्तो। . . . . भुजाहि भोगाइ इमाइ भिक्खू ! . ... मम रोयई पध्वजा हु दुवखं ।। १४ ॥ Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६ उत्तरायणं तं पुवनेहेण कयाणुरागं नराहिवं कामगुणेसु गिद्धं । धम्मस्सिओ तस्स हियाणपेही चित्तो इमं वयणमुदाहरित्था ।। १५ ।। सव्वं विलवियं गीयं सव्वं नर्से विडम्बियं । सव्वे आभरणा भारा सब्वे कामा दुहावहा ।।१६।। वालाभिरामेसु दुहावहेसु न तं सुहं कामगुणेसु रायं । विरत्तकामाण तवोधणाणं जं भिक्णुणं सीलगुणे रयाणं ।। १७ ।। .. नरिंद ! जाई अहमा नराणं सोवागजाई दुहओ गयाणं । जहिं वयं सव्वजणस्स वेस्सा वसीय सोवागनिवेसणेसु ।। १८ ।। तीसे य जाईइ उ पावियाए तुच्छामु सोवागनिवेसणेसु । सव्वस्स लोगस्स दुगंछणिज्जा इहं तु कम्माइं पुरेकडाई । १६ ।। सो दाणि सिं राय ! महाणुभागो महिड्ढिओ पुण्णफलोववेओ। चइत्त भोगाइ असासयाई आयाणहेउं अभिणिवखमाहि ।। २० ॥ इह जीविए राय ! असासम्मि धणियं तु पुण्णाई अकुब्वमाणो । से सोयई मच्चुमुहोवणीए । धम्मं अकाऊण परंसि लोए ।। २१ ।। Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . तेरसमं अज्झयणं . १२७ जहेह सीहो व मियं गहाय मच्चू नरं नेइ हु अन्तकाले । न तस्स माया व पिया व भाया कालम्मि तम्मि सहरा भवंति ।। २२ ।। न तस्स दुक्खं विभयन्ति नाइओ न मित्तवग्गा न सुया न वन्धवा । एक्को सयं पच्चणुहोइ दुक्खं . . . . कत्तारमेव अणुजाइ कम्मं ।। २३ ।। चेच्चा दुपयं च चउप्पयं च : खेत्त गिहं धणधन्नं च सव्वं । सकम्मप्पवीओ अवसो पयाइ परं भवं सुन्दर पावगं वा ।। २४ ॥ तं इक्कगं. तुच्छसरीरगं से चिईगयं डहिय उ पावगेणं । भज्जा य पुत्ता वि य नायओ य . . . . . दायारमन्नं अणुसंकमन्ति ।। २५ ।। उवणिज्जई जीवियमप्पमायं वणं जरा हरइ नरस्स रायं । पंचालराया ! वयणं सुणाहि मा का सि कम्माई महालयाई ।। २६ ।। . .. अहं पि जाणामि जहेह साहू ! जं मे तुमं साहसि वक्कमेयं । भोगा इमे संगकरा हवन्ति जे दुज्जया अज्जो अम्हारिसेहिं ॥ २७ ॥ :: हत्थिणपुरम्मि चित्ता दट्टणं नरवई महिड्ढियं । :: कामभोगेसु गिद्धेणं नियाणमसुहं कडं ॥ २८ ॥ Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२८ उत्तरज्झयणं तस्स मे अपडिकन्तस्स इमं एयारिसं फलं । जाणमाणो वि जं धम्म कामभोगेसु मुच्छिओ ।। २६ ।। नागो जहा पंकजलावसन्नो दट्ठ थलं नाभिसमेइ तीरं । एवं वयं कामगुणेसु गिद्धा न भिक्खुणो मग्गमणुव्वयामो ॥ ३० ॥ अच्चेइ कालो तूरन्ति राइओ न यावि भोगा पुरिसाण निच्चा । उविच्च भोगा पूरिसं चयन्ति दुमं जहा खीणफलं व पक्खी ॥ ३१ ॥ .. जइ ता सि भोगे चइउं असत्तो अज्जाई कम्माई करेहि रायं ! । धम्मे ठिओ सव्वपयाणकुम्पी तो होहिसि देवो इओ विउव्वी ॥ ३२॥ न तुज्झ भोगे चइऊण वुद्धी गिद्धो सि आरम्भपरिग्गहेस । मोहं कओ एत्तिउ विप्पलावो ___ गच्छामि रायं ! आमन्तिओ सि ।। ३३ ।। पंचालराया वि य वम्भदत्तो साहस्स तस्स वयणं अकाउं। अणुत्तरे भुजिय कामभोगे अणुत्तरे सो नरए पविट्ठो ।। ३४ ।। चित्तो वि कामेहि विरत्तकामो उदग्गचारित्ततवो महेसी। अणुत्तरं संजम पालइत्ता अणुत्तरं सिद्धि गई गओ ।। ३५ ।। -त्ति बेमि ।। . Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउदसमं अज्झयणं १२६ . . . चउदसमं अज्झयणं उसुयारिज देवा भवित्ताण पुरे भवम्मी केई चुया एगविमाणवासी। पूरे पुराणे उसूयारनामे . . - खाए समिद्ध सुरलोगरम्मे ॥ १ ॥ सकम्मसेसेण पुराकएणं कुलेसु दग्गेसु य ते पसूया । निविण्णसंसारभया जहाय जिणिन्दमग्गं सरणं पवन्ना ।। २ ।। पुमत्तमागम्म कुमार दो वी पुरोहिओ तस्स जसा य पत्ती । विसाल कित्ती य तहोसुयारो रायस्थ देवी कमलावई य ।। ३ ।। जाईजरा मच्चुभयाभिभूया बहिविहाराभिनिविटुचित्ता । संसारचक्कस्स विमोक्खणट्ठा दळूण ते कामगुणे विरत्ता ।। ४ ।। पियपुत्तगा दोन्नि वि माहणस्स ___ सकम्मसीलस्स पुरोहियस्स । सरित्तु पोराणिय तत्थ जाई तहा सुचिण्णं तवसंजमं च ॥ ५ ॥ Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३० उत्तरज्झयणं ते कामभोगेसु असज्जमाणा ___ माणुस्सएसु जे यावि दिव्वा । मोक्खाभिकंखी अभिजायसड़ढा तायं उवागम्म इमं उदाहु ।। ६ ।। असासयं दठ्ठ इमं विहारं वहुअन्तरायं न य दीहमाउं । तम्हा गिहंसि न रइं लहामो आमन्तयामो चरिस्सामु मोणं ॥ ७ ॥ अह तायगो तत्थ मुणीण तेसिं तवस्स वाघायकरं वयासी । इमं वयं वेयविओ वयन्ति जहा न होई असुयाण लोगो ।। ८ ।। अहिज्ज वेए परिविस्स विप्पे पुत्ते पडिटुप्प गिहंसि जाया । भोच्चाण भोए सह इत्थियाहिं आरण्णगा होह मुणी पसत्था ।। ६ ।। सोयरिंगणा आयगुणिन्धणेणं __ मोहाणिला पज्जलणाहिएणं । संतत्तभावं परित्तप्पमाणं लोलुप्पमाणं बहुहा वहुं च ।। १० ।। पुरोहियं तं कमसोऽणुणन्तं निमंतयन्तं च सुए धणेणं । जहक्कम कामगुणेहि चेव कुमारगा ते पसमिक्ख वक्कं ॥ ११ ॥ Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउदसमं अज्झयणं १३१ वेया अहीया न भवन्ति ताणं भुत्ता दिया निन्ति तमं तमेणं । जाया य पुत्ता न हवन्ति ताणं __ को णाम ते अणुमन्नेज्ज एयं ।। १२ ।। खणमेत्तसोक्खा वहुकालदुक्खा ..पगामदुक्खा अणिगामसोक्खा । संसारमोक्खस्स विपक्खभूया . खाणी अणस्थाण उ कामभोगा ।। १३ ।। परिव्वयन्ते अणियत्तकामे अहो य राओ परितप्पमाणे । अन्नप्पमत्ते . धणमेसमाणे . पप्पोति मच्चु पुरिसे जरं च ॥ १४ ॥ इमं च मे अत्थि इमं च नत्थि ___ इमं च मे किच्च इमं अकिच्चं । तं एवमेवं . 'लालप्पमाणं हरा हरंति त्ति कहं पमाए ? ।। १५ ।। धणं पभूयं सह इत्थियाहिं सयणा तहा कामगुणा पगामा । । तवं कए तप्पइ जस्स लोगो तं सव्व साहोणमिहेव तुभं ।। १६ ।। धणेण किं धम्मधुराहिगारे सयणेण वा कामगुणेहि चेव । समणा भविस्सामु गुणोहधारी . वहिविहारा अभिगम्म भिक्खं ।। १७ ।। Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३२ उत्तरायणं जहा य अग्गी अरणीउऽसन्तो ___ खीरे घयं तेल्लमहा तिलेसु । एमेव जाया ! सरीरंसि · सत्ता संमुच्छई नासइ नावचिट्ठ ॥ १८ ।। नो इन्दियग्गेज्झ अमुत्तभावा अमुत्तभावा वि य होइ निच्चो। अज्झत्थहे निययऽस्स वन्धो संसारहेउं च वयन्ति वन्धं ।। १६॥ जहा वयं धम्ममजाणमाणा पावं पुरा कम्ममकासि मोहा । ओरुज्झमाणा परिरक्खियन्ता तं नेव भुज्जो वि समायरामो ।। २० ॥ अभाहयंमि लोगंमि सव्वओ परिवारिए। अमोहाहिं पडन्तीहिं गिहंसि न रइं लभे ॥ २१ ॥ केण अभाहओ लोगो ? केण वा परिवारिओ। का वा अमोहा वुत्ता? जाया ! चितावरो हुमि ।। २२ ।। मच्चुणाऽभाहओ लोगो जराए परिवारिओ। अमोहा रयणी वुत्ता एवं ताय ! वियाणह ।। २३ ।। जा जा वच्चइ रयणी न सा पडिनियत्तई । अहम्म कुणमााणस्स अफला जन्ति राइओ ॥ २४ ॥ जा जा वच्चइ रयणी न सा पडिनियत्तई। धम्मं च कुणमाणस्स सफला जन्ति राइओ।। २५ ।। Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउदसमं अज्झयणं १३३ एगओ संवसित्ताणं दुहओ सम्मत्तसंजुया । पच्छा जाया! गमिस्सामो भिक्खमाणा कुले कुले । २६ । जस्सस्थि मच्चुणा सक्खं जस्स वऽस्थि पलायणं । जो जाणे न मरिस्सामि सो हु कंखे सुए सिया ॥ २७ ॥ अज्जेव धम्म पडिवज्जयामो जहिं पवना न पुणब्भवामो । अणागयं नेव य अस्थि किंचि सद्धाखमं णे विणइत्तु रागं ॥ २८ ॥ पहीणपुत्तस्स हु नत्थि वासो वासिदि! भिक्खायरियाइ कालो। साहाहि रुक्खो लहए समाहिं ____ छिन्नाहि साहाहि तमेव खाणुं । १६ ।। पंखाविहूणो व्व जहेह पक्खी भिच्चाविहूणो व्व रणे नरिन्दो । विवन्नसारो वणिओ व्व पोए पहोणपुत्तो मि तहा अहं पि ।। ३० ॥ सुसंभिया कामगुणा इमे ते . संपिण्डिया. अग्गरसापभूया। भुंजामु ता कामगुणे पगामं पच्छा गमिस्सामु पहाणमग्गं ।। ३१ ।। भुत्ता रसा भोइ ! जहाई णे वओ न जीवियट्ठा पजहामि भोए। लाभं अलाभं च सुहं च दुक्खं संचिक्खमाणो चरिस्सामि मोणं ।। ३२ ॥ Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३४ उत्तरायणं मा हू तुमं सोयरियाण सम्भरे जण्णो व हंसो पडिसोत्तगामी । भुंजाहि भोगाइ मए समाणं दुक्खं खु भिक्खायरिया विहारो ॥ ३३ ।। जहा य भोई ! तणुयं भयंगो निम्मोयणि हिच्च पलेइ मुत्तो। एमए जाया पयहन्ति भोए ते हं कहं नाणुगमिस्समेक्को ? ।। ३४ ।। छिन्दित्तु जालं अवलं व रोहिया मच्छा जहा कामगुणे पहाय । धोरेयसीला तवसा उदारा धीरा हु भिक्खायरियं चरन्ति ।। ३५ ।। नहेव कुंचा समइक्कमन्ता तयाणि जालाणि दलित्तु हंसा। पलेन्ति पुत्ता य पई य मज्झं ते हं कहं नाणुगमिस्समेक्का? ।। ३६ ।। पुरोहियं तं ससुयं सदारं __ सोच्चाऽभिनिक्खम्म पहाय भोए। कुडुम्वसारं विउलुत्तमं तं रायं अभिक्खं समुवाय देवी ।। ३७ ।। वन्तासी पुरिसो रायं! न सो होइ पसंसिओ। माहणेण परिच्चत्तं धणं आदाउमिच्छसि ॥ ३८ ॥ सव्वं जगं जइ तुहं सव्वं वावि धणं भवे। सव्वं पि ते अपज्जत्तं नेव ताणाय तं तव ।। ३६ ॥ Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३५ ...चउदसमं अज्झयणं मरिहिसि रायं ! जया तया वा मणोरमे. कामगुणे पहाय । एक्को हु धम्मो नरदेव ! ताणं न विज्जई अन्नमिहेह किंचि ।। ४० ॥ नाहं रमे पक्खिणि पंजरे वा .. संताणछिन्ना चरिस्सामि मोणं । अकिंचणा उज्जुकडा निरामिसा परिग्गहारम्भनियत्तदोसा ॥४१॥ दवग्गिणा जहा रणे डज्झमाणेसु जन्तुसु । अन्ने सत्ता पमोयन्ति रागद्दोसवसं. गया ।। ४२ ।। एवमेव वयं मूढा कामभोगेसु मुच्छ्यिा । डज्झमाणं न बुज्झामो रागद्दोसग्गिणा जगं ।। ४३ ॥ भोगे भोच्चा वमित्ता य लहुभूयविहारिणो । आमोयमाणा गच्छन्ति दिया कामकमा इव ।। ४४ ।। इमे य वद्धा फन्दन्ति मम हत्थऽज्जमागया। वयं च सत्ता कामेसु भविस्सामो जहा इमे ॥ ४५ ।। सामिसं कुललं दिस्स वज्झमाणं निरामिसं। आमिसं सव्वमुज्झित्ता विहरिस्सामि निरामिसा। ४६ । गिद्धोवमे उ नच्चाणं कामे संसारवड्ढणे । उरगो सुवण्णपासे व संकमाणो तणुं चरे ।। ४७ ॥ नागो व्व वन्धणं छित्ता अप्पणो वसहि वए। एयं पत्थ महारायं ! उसुयारि त्तिं मे सुयं ।। ४८ ।। Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३६ उत्तरज्तयणं चइत्ता विउलं रज्जं कामभोगे य दुच्चए। निविसया निरामिसा निन्नेहा निप्परिगहा ।।४६॥ : सम्मं धम्म वियाणित्ता चेच्चा कामगुणे वरे। तवं पगिज्झन्हवखायं घोरं घोरपरक्कमा ।। ५०॥ एवं ते कमसो बुद्धा सव्वे धम्मपरायणा । जम्ममच्चुभउविबग्गा दुक्खस्सन्तगवेसिणो ॥५१॥ सासणे विगयमोहाणं पुवि भावणभाविया। अचिरेणेव कालेण दुक्खस्सन्तमुवागया ।। ५२ ।। राया सह देवीए माहणो य पुरोहिओ। माहणी दारगा चेव सव्वे ते परिनिव्वुडा ।। ५३ ।। -त्ति बेमि ॥ Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निरसमं अज्झयणं 1३७ पनरसमं अज्झयणं सभिक्खुय मोणं चरिस्सामि समिच्च धम्म सहिए उज्जुकडे नियाणछिन्ने । संथवं जहिज्ज अकामकामे . अन्नायएसी परिव्वए जे स भिक्खू ।। १ ।। राओवरयं चरेज्ज . लाढे ... विरए वेयवियाऽयरक्खिए। पन्ने अभिभूय . सव्वदंसी .. जे कम्हिचि न मुच्छिए स भिक्खू ।। २ ।। अक्कोसवहं विइत्तु धीरे मुणी चरे लाढे निच्चमायगुत्ते । अव्वग्गमणे असंपहि? __ जे कसिणं अहियासए स भिक्खू ।। ३ ।। पन्तं सयणासणं भइत्ता . __ सीउण्हं विविहं च दंसमसगं । अव्वग्गमणे असंपहि? जे कसिणं अहियासए स भिक्खू ।। ४ ।। नो सक्कियमिच्छई न पूयं नो वि य वन्दणगं कुओ पसंसं । से संजए सुव्वए तवस्सी सहिए आयगवेसए स भिक्खू ॥ ५ ॥ Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३८ जेण पुण नरनारि पजहे सया तवस्सी अंगवियारं जहाइ जीवियं मोहं वा कसिणं नियच्छई । छिन्नं सरं भोमं अन्तलिक्खं न य कोऊहलं उवेइस भिक्खू || ६ || मन्तं मूलं विविहं वेज्जचिन्तं सुमिणं लक्खणदण्डवत्थुविज्जं । विजयं जो विज्जाहिं न जीवइ स भिक्खू || ७ || सरस्स आउरे सरणं तिगिच्छ्यिं च अदए वमण विरेयणधूमणेत्तसिणाणं 1 उत्तरज्भयणं. तं परिन्नाय परिव्वएस भिक्खू || ८ || खत्तियगण उग्गरायपुत्ता माहणभोइय विविहाय सिप्पिणो । दो तेसि वयइ सिलोगपूयं गिहिणी जे पव्वइएण दिट्ठा तेसि तं परिन्नाय परिव्वए स भिक्खु ॥ ६ ॥ सयणासणपाणभोयणं अप्पव्वइएण व संथुया हविज्जा | इहलोइयफलट्टा जा संथवं न करेइ स भिक्खू || १० || विविहं खाइमसाइमं नियण्ठे पडिसेहिए परेसि | जे तत्थ न पउस्सई स भिक्खू ॥ ११ ॥ Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . - पनरसमं अज्झयणं १३६ । · जं किंचि आहारपाणं विविहं .. खाइमसाइमं परेसिं । जो तं तिविहेण नाणुकम्पे - मणवयकायसुसंवुडे स भिक्खू ।। १२ ।। आयामगं चेव जवोदणं च सीयं च सोवीरजवोदगं च । नो हीलए पिण्डं नीरसं तु पन्तकुलाइं परिव्वए स भिक्खू ।। १३ ।। सद्दा विविहा भवन्ति लोए दिव्वा माणुस्सगा तहा तिरिच्छा। भीमा भयभेरवा . उराला जो सोच्चा न वहिज्जई स भिक्खू ॥ १४ ।। वादं विविहं समिच्च लोए सहिए खेयाणुगए य कोवियप्पा । पन्ने अभिभूय सव्वदंसी. उवसन्ते अविहेडए स भिक्खू ॥ १५ ॥ असिप्पजीवो अगिहे अमित्ते जिइन्दिए सव्वओ विप्पमुक्के । अणुक्कसाई लहुअप्पभक्खी चेच्चा गिहं एगचरे स भिक्खू ।। १६ ।। –त्ति बेमि ॥ Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४० उत्तरज्झयणं सोलसमं अभयणं बम्भचेरसमाहिठाणं सू० १ - सुयं मे, आउसं ! तेणं भगवया एवमक्खायं इह खलु थेरेहिं भगवन्तेहिं दस वम्भचेरसमाहिठाणा पन्नत्ता, जे भिक्खू सोच्चा, निसम्म, संजमवहुले, संवरवहुले, समाहिवहुले गुत्ते, गुत्तिन्दिए, गुत्तवम्भयारी सया अप्पमत्ते विहरेज्जा । सू० ०२ - कयरे खलु ते थेरेहिं भगवन्तेहिं दस वम्भरसमाहिठाणा पन्नत्ता ? जे भिक्खू सोच्चा, निसम्म, संजमवहुले, संवरबहुले, समाहिवहुले, गुत्त, गुत्तिन्दिए, गुत्तवम्भयारी सया अप्पमत्ते विहरेज्जा ? सू० ३ - इमे खलु ते थेरेहिं भगवन्तेहिं दस वम्भचेरसमाहिठाणा पन्नत्ता, जे भिक्खू सोच्चा, निसम्म, संजमवहुले, संवरवहुले समाहिवहुले, गुत्ते, गुत्तिन्दिए, गुत्तवम्भयारी सया अप्पमत्ते विहरेज्जा, तं जहा - विवित्ताई सयणासणाई सेविज्जा, से निग्गन्थे । नो इत्थीपसुपण्डगसंसत्ताई सयणासाई सेवित्ता हवइ, से निग्गन्थे । तं कहमिति चे ? आयरियाह - निग्गन्थस्स खलु इत्थीपसुपण्डगसंसत्ताई सयणासणाई सेवमाणस्स वम्भयारिस्स वम्भचेरे संका वा, कंखा वा वितिगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा, भेयं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायकं हवेज्जा, केवलिपन्नत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा । तम्हा नो इत्थिपसुपण्डगसंसत्ताई सयणासणाई सेवित्ता हवइ, से निग्गन्थे । Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं अज्झयणं १४१ सू० ४-नो इत्थीणं कहं कहित्ता हवइ, से निग्गन्थे । तं कहमिति चे ? आयरियाह-निग्गन्थस्स खलु इत्थीणं कहं कहेमाणस्स, वम्भयारिस्स वम्भचेरे संका वा, कंखा वा, वितिगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा, भेयं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायंकं हवेज्जा, केवलिपन्नत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा । तम्हा नो इत्थीणं कहं कहेज्जा। सू० ५–नो इत्थीहिं सद्धि सन्निसेज्जागए विहरित्ता हवइ, से निग्गन्थे। तं कहमिति चे ? आयरियाह-निग्गन्थस्स खलु इत्थीहिं सद्धि सन्निसेज्जाग यस्स, वम्भयारिस्स वम्भचेरे संका वा, कंखा वा, वितिगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा, भेयं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायंकं हवेज्जा, केवलिपन्नत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा। तम्हा खलु नो निग्गन्थे इत्थोहिं सद्धि सन्निसेज्जागए विहरेज्जा। सू०६-नो इत्थीणं इन्दियाई . मणोहराइं. आलोइत्ता, निज्झाइत्ता हवइ, से निग्गन्थे । तं कहमिति चे ? आयरियाह-निग्गन्थस्स खलु इत्थीणं इन्दियाई मणोहराई, मणोरमाइं आलोएमाणस्स, निज्झायमाणस्स वम्भयारिस्स वम्भचेरे संका वा, कंखा वा, वितिगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा, भेयं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दोहकलियं वा रोगायकं हवेज्जा, केवलिपन्नत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा तम्हा खलु निग्गन्थे नो इत्थीणं इन्दियाइं मणोहराई, मणोरमाइं आलोएज्जा, निज्झाएज्जा। Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४२ उत्तरज्झयणं सू० ७ - नो इत्थीणं कुडुन्तरंसि वा, दूसन्तरंसि वा, भित्तन्तरंसि वा, कुइयसद्दं वा, रुइयसद्दं वा, गोयसद्द वा हसियसद्दं वा, थणियस वा कन्दियसद्दं वा, विलवियसः वा, सुणेत्ता हवइ से निम्न्थे । तं कहमिति चे ? , 1 आयरियाह — निग्गन्थस्स खलु इत्थीणं कुडुन्तरंसि वा, - दून्तरंसि वा भित्तन्तरंसि वा कुइयसद्दं वा रुइयसद्द वा गीयसद्द वा, हसियसद्दं वा, थणियसह वा, कन्दियसद्दं वा, विलवियस वा, सुणेमाणस्स वम्भयारिस्स वम्भचेरे संका वा, कंखा वा वितिगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा, भेयं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायंक हवेज्जा, केवलिपन्नत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा । तम्हा खलु निग्गन्थे नो इत्थीणं कुडुन्तरंसि वा, दूसन्तरंसि वा, भित्तन्तरंसि वा, कुइयसद्द वा, रुइयसह वा, गीयसद्दं वा, हसियसद्दं वा, थणियसद्दं वा, कन्दियसद्दं वा, विलवियसद्दं वा सुणेमाणे विहरेज्जा | सू०८ - नो निभ्गन्थे पुव्वरयं, पुव्वकीलियं अणुसरित्ता हवइ, से निग्गन्थे । तं कह मिति चे ? आयरियाह - निग्गन्थस्स खलु इत्थीणं पुव्वरयं, पुव्वकीलियं अणुसरमाणस्स वम्भयारिस्स वम्भचेरे संका वा, कंखा वा, वितिगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा, भेयं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउ णिज्जा, दीहकालियं वा रोगायक हवेज्जा, केवलिपन्नत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा । तम्हा खलु नो निग्गन्ये पुव्वरयं पुव्वकीलियं अणुसरेज्जा । Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं अज्झयणं १४३ सू० ६–नो पणीयं आहारं आहारित्ता हवइ, से निग्गन्थे। . तं कहमिति चे? आयरियाह-निग्गन्थस्स खलु पणीयं पाणभोयणं आहारेमाणस्स वम्भयारिस्स वम्भचेरे संका वा, कंखा वा, वितिगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा, भयं व लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायक हवेज्जा, केवलिपन्नत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा । तम्हा खल नो निग्गन्थे पणीयं आहारं आहारेज्जा। सू०१०-नो अइमायाए पाणभोयणं आहारेत्ता हवइ, से निग्गन्थे । तं कहमिति चे ? आयरियाह-निग्गन्थस्स खलु अइमायाए पाणभोयणं आहारेमाणस्स वम्भयारिस्स बम्भचेरे संका वा, कंखा वा, वितिगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा, भेयं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रागायंक हवेज्जा, केवलिपन्नत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा । तम्हा खलु नो निग्गन्थे अइमायाए पाणभोयणं अँजिज्जा। सू० ११–नो विभूसाणुवाई हवइ, से निग्गन्थे । तं कहमिति चे ? आयरियाह-विभूसावत्तिए, विभूसियसरीरे इत्थिजणस्स अभिलसणिज्जे हवइ । तओ णं तस्स इथिजणेणं अभिलसिज्जमाणस्स वम्भचेरे संका वा, कंखा वा, वितिगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा, भेयं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायक हवेज्जा, केवलिपन्नत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा। तम्हा खलु नो निगन्थे विभूसाणवाई हवेज्जा । Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ई ह १४४ उत्तरज्झयणं _सू० १२-~-नो सहरूबरसगन्धफासाणुवाई हवइ, से निग्गन्थे। . तं कहमिति चे? __आयरियाह-निग्गन्थस्स खलु सहरूवरसगन्धफासाणुवाइस्स वम्भयारिस्स वम्भचेरे संका वा, कंखा वा वितिगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा, भेयं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायंकं हवेज्जा, केवलिपन्नत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा । तम्हा खलु नो निग्गन्थे सद्दरूवरसगन्धफासाणुवाई हविज्जा । दसमे वम्भचेरसमाहिठाणे हवइ । भवन्ति इत्थ सिलोगा, तं जहाजं विवित्तमणाइण्णं रहियं इत्थीजणेण य । वम्भचेरस्स रवखट्ठा आलयं तु निसेवए ।। १ ॥ मणपल्हायजणणि कामरागविवड्ढणि । वम्भचेररओ भिक्ख थीकहं तु विवज्जए ॥ २ ॥ समं च संथवं थोहिं संकहं च अभिक्खणं । वम्भचेररओ भिक्खू निच्चसो परिवज्जए ।। ३ ।। अंगपच्चंगसंठाणं चारूल्लवियपेहियं । वम्भचेररओ थीणं चक्खुगिझं विवज्जए।। ४ ।। कुइयं रुइयं गीयं हसियं श्रणियकन्दियं । वम्भचेररओ थीणं सोयगिज्झं विवज्जए ।। ५ ॥ हासं किड़डं रइं दप्पं सहसाऽवत्तासियाणि य ।। वम्भचेररओ थीणं नाणुचिन्ते कयाइ वि ।। ६ ।। पणीयं भत्तपाणं तु खिप्पं मयविवड्ढणं । वम्भचेररओ भिक्ख लिच्चसो परिवज्जए ।। ७ । । Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं अज्झयणं - १४५ धम्मलद्धं मियं काले जत्तत्थं पणिहाणवं । नाइमत्तं तु भुजेज्जा वम्भचेररओ सया ॥ ८ ॥ विभूसं परिवज्जेज्जा सरीरपरिमण्डणं । वम्भचेररओ भिक्खू सिंगारत्थं न धारए ।। ६ ॥ सहे रूवे य गन्धे य रसे फासे तहेव य । पंचविहे कामगुणे निच्चसो परिवज्जए ॥ १० ॥ आलओ थीजणाइण्णो थीकहा य मणोरमा । संथवो चेव नारीणं तासिं इन्दियदरिसणं ॥ ११ ॥ कुइयं रुइयं गीयं हसियं भुत्तासियाणि य । पणीयं भत्तपाणं च अइमायं पाणभोयणं ।। १२॥ . गतभूसणमिट्ट च कामभोगा य दुज्जया। नरस्सत्तगवेसिस्स विसं . तालउड जहा ।। १३ ॥ दुज्जए कामभोगे य निच्चसो परिवज्जए। संकटाणाणि. सव्वाणि वज्जेज्जा पणिहाणवं ।। १४ ।। धम्माराम चरे भिक्खू धिइमं धम्मसारही । धम्मारामरए दन्ते बम्भचेरसमाहिए ।। १५ ।। देवदाणवगन्धव्वा जक्खरक्खसकिन्नरा। वम्भयारि नमंसन्ति दुक्करं जे करन्ति तं ।। १६ ।। एस धम्मे धुवे निअए सासए जिणदेसिए ।.. सिद्धा सिज्झन्ति चाणेण सिज्झिस्सन्ति तहापरे ।। १७ ॥ --त्ति बेमि । Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४६ उत्तरज्झयणं : - .. सतरसमं अज्झयणं पावसमणिज्ज जे के इमे पव्वइए नियण्ठे धम्म सुणित्ता विणओववन्ने । : सुदुल्लहं लहिउं वोहिलाभ विहरेज्ज पच्छा य जहासुहं तु ॥१॥ सेज्जा दढा पाउरणं मे अस्थि उप्पज्जई भोत्तु तहेव पाउं । जाणामि जं वट्टइ आउसु ! त्ति कि नाम काहामि सुएण भन्ते ! ॥ २ ॥ जे के इमे पव्वइए निबासीले पगामसो । भोच्चा पेच्चा सुहं सुवइ पावसमणि त्ति वुच्चई ॥३॥ आयरियउवज्झाएहिं सुयं विणयं च गाहिए। ते चेव खिसई वाले पावसमणि त्ति वुच्चई ॥४॥ आयरियउवज्झायाणं सम्मं नो पडितप्पइ । अप्पडिपूयए थद्धे पावसमणि त्ति वुच्चई ॥ ५ ॥ सम्ममाणे पाणाणि वीयाणि. हरियाणि य। असंजए संजयमन्त्रमाणे पावसमणि त्ति वुच्चई ।।६।। संथारं फलगं पीढं निसेज्जं पायकम्बलं । अप्पमज्जियमारुहइ पावसमणि त्ति वुच्चई ॥७॥ Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सतरसमं अज्झयणं १४७ दवदवस्स चरई पमत्ते य अभिक्खणं । .. उल्लंघणे य चण्डे य पावसमणि त्ति वुच्चई ।।८।। पडिलेहेइ पमत्ते अवउज्झइ पायकम्बलं । पडिलेहणाअणाउत्ते पावसमणि त्ति वुच्चई ।।६।। पडिलेहेइ पमत्ते से किंचि ह निसामिया। गुरुपरिभावए निच्चं पावसमणि त्ति वुच्चई ।।१०। वहुमाई पमुहरे थद्ध लुद्धे अणिग्गहे । असंविभागी अचियत्ते पावसमणि त्ति वुच्चई ॥११॥ विवादं च उदीरेइ अहम्मे अत्तपन्नहा । वुग्गहे कलहे रत्ते पावसमणि त्ति बुच्चई ।। १२ ॥ अथिरासणे कुक्कुईए जत्थ तत्थ निसीयई ।। आसणम्मि अणाउत्ते पावसमणि त्ति वुच्चई ॥ १३ ॥ ससरक्खपाए सुवई सेज्जं न पडिलेहइ ।। संथारए अणाउत्ते पावसमणि त्ति वुच्चई ॥ १४ ॥ दुद्धदहीविगईओ आहारेइ अभिक्खणं । अरए य तवोकम्मे पावसमणि त्ति वुच्चई ।। १५ ।। अत्थन्तम्मि य सूरम्मि आहारेइ अभिक्खणं । चोइओ पडचोएइ पावसमणि त्ति वुच्चई ।। १६ ।। आयरियपरिच्चाई परपासण्डसेवए । गाणंगणिए दुभूए पावसमणि त्ति वुच्चई ॥ १७ ॥ सयं गेहं परिचज्ज पगेहंसि वावडे । निमित्तण य ववहरई पावसमणि त्ति वुच्चई ।। १८ ॥ Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४८ उत्तरज्झयण सन्नाइपिण्डं जेमेइ नेच्छई सामुदाणियं । गिहिनिसेज्जं च वाहेइ पावसमणि त्ति वुच्चई ।। १६ ।। एयारिसे पंचकुसीलसंवुडे रुधरे मुणिपवराण हेट्ठिमे । अयंसि लोए विसमेव गरहिए न से इहं नेव परत्थ लोए ।। २० ॥ जे वज्जए एए सया उ दोसे से सुव्वए होइ मुणीण मज्झे। अयंसि लोए अमयं व पूइए। आराहए दुहओ लोगमिणं ।। २१ ॥ त्ति वेमि ॥ Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'अद्वारसमं अज्झयगं १४६ अट्ठारसमं अज्झयणं संजइज्जं कम्पिल्ले नयरे राया उदिण्णवलवाहणे । नामेणं संजए नाम. मिगव्वं उवणिग्गए ।। १ ।। हयाणीए गयाणीए रहाणीए तहेव य। पायत्ताणीए महया सव्वओ परिवारिए ॥ २ ॥ मिए छुभित्ता हयगओ कम्पिल्लुज्जाणकेसरे। भीए सन्ते मिए तत्थ वहेइ .. रसमुच्छिए ॥ ३ ॥ अह केसरम्मि उज्जाणे अणगारे तवोधणे । सज्झायज्झाणसंजुत्ते धम्मज्झाणं झियायई ॥ ४ ॥ अप्फोवमण्डवम्मि झायई झवियासवे । तस्सागए मिए पासं वहेई से नराहिवे ॥ ५ ॥ अह आसगओ राया खिप्पमागम्म सो तहिं । हए मिए उ पासित्ता अणगारं तत्थ पासई ॥ ६ ॥ अह राया तत्थ संभन्तो अणगारो मणाऽऽहओ। मए उ मन्दपुण्णणं रसगिद्धण · : घन्तुणा ।। ७ ।। आसं विसज्जइत्ताण अणगारस्स सो निवो। विणएण वन्दए पाए भगवं ! एत्थ मे खमे ॥ ८ ॥ अह मोणेण सो भगव अणगारे झाणमस्सिए । रायाणं न पडिमन्तेइ तओ राया भयद्दओ ।। ६॥ Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५० उत्तरायणं संजओ अहमम्मीति भगवं ! वाहराहि मे। कुद्ध तेएण अणगारे डहेज्ज नरकोडिओ ॥१०॥ अभओ पत्थिवा! तुम्भं अभयदाया भवाहि य । अणिच्चे जोवलोगम्मि कि हिंसाए पसज्जसि ? ॥ ११॥ जया सव्वं परिच्चज्ज गन्तव्वमवसस्स ते। अणिच्चे जीवलोगम्मि कि रज्जम्मि पसज्जसि ? || १२॥ जीवियं चेव रूवं च विज्जुसंपायचंचलं । जत्थ तं मुज्झसी रायं पेच्चत्थं नावबुज्झसे ।। १३ ॥ दाराणि य सुया चेव मित्ता य तह वन्धवा। जीवन्तमणुजीवन्ति मयं नाणुव्वयन्ति य ॥१४॥ नीहरन्ति मयं पुत्ता पियरं परमक्खिया । पियरो वि तहा पुत्ते वन्धू रायं ! तवं चरे।। १५.।। तओ तेणज्जिए दव्वे दारे य परिरक्खिए। कोलन्तऽन्ने नरा रायं ! हतुटुमलं किया ।। १६ ।। तेणावि जं कयं कम्मं सुहं वा जइ वा दहं । कम्मुणा तेण संजुत्तो गच्छई उ परं भवं ।। १७॥ सोऊण तस्स सो धम्म अणगारस्स अन्तिए । महया संवेगनिव्वेयं समावन्नो नराहिवो ।। १८ ।। .. संजओ चइउं रज्जं निक्खन्तो जिणसासणे । गद्दभालिस्स भगवओ अणगारस्स अन्तिए ॥१६॥ चिच्चा र पव्वइए खत्तिए परिभासइ । जहा ते दोसई रूवं पंसन्नं ते तहा मणो ॥ २० ॥ Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५१ अट्ठारसमं अज्झयणं किनामे ? किंगोत्ते ? कस्सट्टाए व माहणे?। कह पडियरसी बुद्धे ? कहंविणीए त्ति वुच्चसि ? ॥ २१ ॥ संजओ नाम नामेणं तहा गोत्तेण गोयमे । गद्दभाली ममायरिया विज्जाचरणपारगा ।। २२।। किरियं अकिरियं विणयं अन्नाणं च महामुणी! । एएहिं चउहि ठाणेहिं मेयन्ने किं पभासई ? ।। २३ ।। . इइ पाउकरे बुद्धे नायए परिनिव्वुडे । विज्जाचरणसंपन्ने सच्चे सच्चपरक्कमे ॥ २४ ।। पडन्ति नरए घोरे जे नरा पावकारिणो। दिव्वं च गई गच्छन्ति चरित्ता धम्ममारियं ।। २५ ॥ मायावुइयमेयं तु मुसाभासा निरत्थिया । संजममाणो वि अहं वसामि इरियामि य ॥ २६ ॥ सव्वे ते विइया मज्झं मिच्छादिट्टी अणारिया । विज्जमाणे परे लोए सम्म जाणामि अप्पगं ।। २७ ।। अहमासी महापाणे जुइमं वरिससओवमे । :. जा सा पालो महापाली दिव्वा वरिससओवमा ॥२८॥ से चुए वम्भलोगाओ माणुस्सं भवमागए । - अप्पणो य परेसिं च आउं जाणे जहा तहा ।। २६ ।। नाणारुइं च छन्दं च परिवज्जेज्ज संजए। . अणट्ठा जे य सव्वत्था इइ विज्जामणुसंचरे ॥ ३० ॥ पडिक्कमामि पसिणाणं परमन्तेहिं वा पुणो। : अहो उठ्ठिए अहोरायं इइ विज्जा तवं चरे ।। ३१ ॥ Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५२ ... उत्तरज्झयणं दु जं च मे पुच्छसी काले सम्म सुद्धेण चेयसा । ताई पाउकरे बुद्धे तं नाणं जिणसासणे ।। ३२ ।। किरियं च रोयए धीरे अकिरियं परिवज्जए। दिट्ठीए दिट्ठिसंपन्ने धम्म चर सुदुच्चरं ।। ३३ ।। एयं पुण्णपयं सोच्चा अत्थधम्मोवसोहियं । भरहो वि भारहं वासं चेच्चा कामाइ पव्वए ॥ ३४ ॥ सगरो वि सागरन्तं भरहवासं नराहिवो। इस्सरियं केवलं हिच्चा दयाए परिनिव्वुडे ।। ३५ ॥ चइत्ता भारहं वासं चक्कवट्टी महिड्ढिओ। पव्वज्जमभुवगओ मघवं नाम महाजसो ॥ ३६ ॥ सणंकुमारो मणुस्सिन्दो चक्कवट्टी महिड्ढिओ। पुत्तं रज्जे ठवित्ताणं सो वि राया तवं चरे ।। ३७ ॥ चइत्ता भारहं वासं चक्कवट्टी महिड्ढिओ। . सन्ती सन्तिकरे लोए पत्तो गइमणुत्तरं ॥ ३८ ॥ इक्खागरायवसभो कुन्थू नाम नराहिवो। विक्खायकित्ती धिइमं मोक्खं गओ अणुत्तरं ।। ३६ ।। सागरन्तं जहित्ताणं भरह वासं नरीसरो। अरो य अरयं पत्तो पत्तो गइमणत्तरं ॥ ४० ॥ चइत्ता भारहं वासं चक्कवट्टी नराहिओ । चइत्ता उत्तमे भोए महापउमे तवं चरे ॥ ४१ ॥ एगच्छत्तं पसाहित्ता महिं माणनिसूरणो । हरिसेणो मणुस्सिन्दो पत्तो गइमणुत्तरं ॥ ४२ ॥ Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठारसमं अज्झयणं १५३ अन्निओ रायसहस्सेहिं सुपरिच्चाई दमं चरे। जयनामो जिणक्खायं पत्तो गइमणुत्तरं ॥४३॥ दसण्णरज्जं मुइयं चइत्ताणं मुणी चरे । दसण्णभद्दो निक्खन्तो सक्खं सक्केण चोइओ ॥ ४४ ।। नमी नमेइ अप्पाणं सक्खं सक्केण चोइओ। चइऊण गेहं वइदेही सामण्णे पज्जुवंट्ठिओ ।। करकण्डू कलिंगेसु पंचालेसु य दुम्मुहो। नमी राया विदेहेसु गन्धारेसु य नग्गई ॥ ४५ ॥ एए नरिन्दवसभा निक्खन्ता जिणसासणे। पुत्ते रज्जे ठवित्ताणं सामण्णे पज्जुवट्ठिया ।। ४६ ।। सोवीररायवसभो चेच्चा रज्जं मुणी चरे। उद्दायणो पव्वइओ पत्तो गइमणुत्तरं ।। ४७ ॥ तहेव कासीराया सेओसच्चपरक्कमे । कामभोगे परिच्चज्ज पहणे कम्ममहावणं ॥४८ ।। तहेव विजओ राया अणट्ठा कित्ति पव्वए । रज्जं तु गुणसमिद्धं पयहित्तु महाजसो ॥ ४६ ।। तहेवुग्गं तवं किच्चा अव्वक्खित्तेण चेयसा । महावलो रायरिसी अदाय सिरसा सिरं ॥ ५० ॥ कहं धीरो अहेऊहिं उम्मत्तो व्व महिं चरे ?।. एए विसेसमादाय सूरा दढपरक्कमा ॥ ५१ ।। अच्चन्तनियाणखमा सच्चा मे भासिया वई । अतरिंसु तरन्तेगे तरिस्सन्ति अणागया ।। ५२ ।। कहं धीरे अहेऊहिं अत्ताणं परियावसे ?। सव्वसंगविनिम्मुक्के सिद्धे हवइ नीरए ॥ ५३ ।। ___... -त्ति वेमि ।। Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ..१५४ उत्तरज्झयणं एगूणविसइमं अज्झयणं मियापुतिज्ज सुग्गीवे नयरे रम्मे काणणुज्जाणसोहिए । राया वलभद्दो त्ति मिया तस्सग्गमाहिसी ॥१॥ तेसिं पुत्ते वलसिरी मियापुत्ते त्ति विस्सुए। अम्मापिऊण दइए जुवराया दमीसरे ॥२॥ नन्दणे सो उ पासाए कोलए सह इथिहि । देवो दोगुन्दगो चेव निच्चं मुइयमाणसो ॥ ३ ॥ मणिरयणकट्टिमतले पासायालोयणढिओ । आलोएइ नगरस्स चउक्कतियचच्चरे ॥४॥ अह तत्थ अइच्छन्तं पासई समणसंजयं । तवनियमसंजमधरं सीलड्ढं गुणआगरं ॥५॥ तं देहई मियापुत्ते दिट्ठीए अणिमिसाए उ । कहिं मन्नेरिसं रूवं दिट्ठपुव्वं मए पुरा ।। ६ ।। साहुस्स दरिसणे तस्स अज्झवसाणम्मि सोहणे। मोहंगयस्स सन्तस्स जाईसरणं समुप्पन्नं ॥७॥ देवलोग 'चुओ संतो माणुसं भवमागओ। सन्निनाणे समुप्पण्णे जाई सरइ पुराणयं ॥ ८ ॥ जाईसरणे समुप्पन्ने मियापुत्ते महिड्ढिए। सरई पोराणियं जाइं सामण्णं च पुराकयं ॥६॥ Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -... एगणविसइम अन्झयणं १५५ विसएहि अरज्जन्तो रज्जन्तो संजमम्मि य । अम्मापियरं उवागम्म इमं वयणमन्ववी ॥ १०॥ सुयाणि मे पंच महव्वयाणि नरएसु दुक्खं च तिरिक्खजोणिसु । निविण्णकामो मि महण्णवाओ अणुजाणह पव्वइस्सामि अम्मो ।। ११ ।। अम्मताय ! मए भोगा भुत्ता विसफलोवमा । पच्छा कडुयविवागा अणुवन्धदुहावहा ।। १२ ।। इमं सरीरं अणिच्चं असुई असुइसंभवं । असासयावासमिणं दुक्खकेसाण भायणं ।। १३ ।। असासए सरीरम्मि रई नोवलभामहं । पच्छा पुरा व चइयव्वे फेणबुब्वयसन्निभे ।। १४ ।। माणुसत्ते असारम्मि वाहीरोगाण आलए। जरामरणपत्थम्मि खणं पि न रमामऽहं ।। १५ ।। जम्मं दुक्खं जरा दुक्खं रोगा य मरणाणि य । अहो दुक्खो हु संसारो जत्थ कीसन्ति जन्तवो ।। १६ ।। खेत्तं वत्थं हिरण्णं च पुत्तदारं च वन्धवा । चइत्ताणं इमं देहं गन्तव्वमवसस्स मे ।। १७ ।। जहा किम्पागफलाणं परिणामो न सुन्दरो। एवं भुत्ताण भोगाणं परिणामो न सुन्दरो ॥१८॥ अद्धाणं जो महन्तं तु अपाहेओ पवज्जई। गच्छन्तो सो दुही होइ छुहातण्हाए पीडिओ ।। १६ ॥ Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५६ उत्तरज्झयणं एवं धम्म अकाऊणं जो गच्छइ परं भवं । गच्छन्तो सो दुही होइ वाहीरोगेहिं पीडिओ।। २० ।।. अद्धाणं जो महन्तं तु सपाओ पवज्जई। गच्छन्तो सो सुही होइ छुहातहाविवज्जिओ।। २१ ।। .. एवं धम्म पि काऊणं जो गच्छइ परं भवं । गच्छन्तो सो सुही होइ अप्पकम्मे अवेयणे ।। २२ ॥ . जहा गेहे पलित्तम्मि तस्स गेहस्स जो पह। सारभण्डाणि नीणेइ असारं अवउज्झइ ।। २३ ।। एवं लोए पलित्तम्मि जराए मरणेण य । अप्पाणं तारइस्सामि तुमहिं अणुमनिओ ॥ २४ ।। तं वितऽम्मापियरो सामण्णं पुत्त ! दुच्चरं । गुणाणं तु सहस्साइं धारेयव्वाइं भिक्खुणो ।। २५ ।। समया सव्वभूएसु सत्तुमित्तेसु वा जगे । पाणाइवायविरई जावज्जीवाए दुक्करा ।। २६ ।। निच्चकालऽप्पमत्तेणं मुसावायविवज्जणं । भासियव्वं हियं सच्चं निच्चाउत्तेण दुक्करं ।। २७ ।। दन्तसोहणमाइस्स अदत्तस्स विवज्जणं । अणवज्जेसणिज्जस्स गेण्हणा अवि दुक्करं ।। २८ ॥ विरई अवम्भचेरस्स कामभोगरसन्तुणा । उग्गं महत्वयं वम्भं धारेयव्वं सुदुक्करं ॥२६ ।। धणधन्नपेसवग्गेस परिगहविवज्जणं । सव्वारम्भपरिच्चाओ निम्ममत्तं सुदुक्करं ।। ३०॥ Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगणविसइमं अज्झयणं १५७ चउव्विहे वि आहारे राईभोयणवज्जणा ।। सन्निहीसंचओ चेव वज्जेयव्वो सुदुक्करो ॥ ३१ ॥ छुहा तण्हा य सीउण्हं दंसमसगवेयणा । . अक्कोसा दुवखसेज्जा या तण फासा जल्लमेव य ।।३२।। तालणा तज्जणा चेव वहवन्धपरीसहा ।। दुक्खं भिक्खायरिया जायणा य अलाभया ।। ३३ ।। कावोया जा इमा वित्ती केसलोओ य दारुणो। दुक्खं वम्भवयं घोर धारेउं अ महप्पणो ।। ३४ ।। सुहोइओ तुमं पुत्ता ! सुकुमालो सुमज्जिओ। न हु सी पभू तुमं पुत्ता! सामण्णमणुपालिउं ॥ ३५ ॥ जावज्जीवमविस्सामो गुणाणं तु महाभरों। गुरुओ लोहमारो व्व जो पुत्ता! होइ दुव्वहो ।। ३६ ।। आगासे गंगासोउ व्व पडिसोओ व्व दुत्तरो। वाहाहिं सागरो चेव तरियव्वो गुणोयही ।। ३७ ।। वालुयाकवले. चेव निरस्साए उ संजमे । असिधारागमणं चेव दुक्करं चरिउं तवो ।। ३८ ।। अहीवेगन्तदिट्ठीए चरित्ते पुत्त दुच्चरे । : जवा लोहमया चेव चावयव्वा सुदुक्करं ।। ३६ ॥ जहा अग्गिसिहा दित्ता पाउं होइ सुदुक्करं । तह दुक्करं करेउं जे तारुण्णे समणत्तणं ।। ४० ॥ जहा दुक्खं भरेउं जे होइ वायस्स कोत्थलो । तहा दुक्खं करेउं जे कीवेणं समणत्तणं ॥४१॥ Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५८ उत्तरज्झयणं. जहा तुलाए तोले दुक्करं मन्दरो गिरी। तहा निहुय नीसंकं दुक्करं समणत्तणं ॥ ४२ ।।. जहा भुयाहि तरिउं दुक्करं रयणागरो । तहा अणुवसन्तेणं दुक्करं दमसागरो ।।४३ ।। भुज माणुस्सए भोगे पंचलक्खणए तुमं । भुत्तभोगी तो जाया! पच्छा धम्म चरिस्ससि ॥४४॥ तं वित ऽम्मापियरो एवमेयं जहा फुडं। इह लोए निप्पिवासस्स नत्थि किचि वि दुक्करं।। ४५।। सारीरमाणसा चेव वेयणाओ अणन्तसो । मए सोढाओ भीमाओ असई दुक्खभयाणि य ।। ४६ ।।। जरामरणकन्तारे चाउरन्ते भयागरे । मए सोढाणि भीमाणि जम्माणि मरणाणि य ।। ४७ ॥ जहा इहं अगणी उण्हो एत्तोऽणन्तगुणे तहि।। नरएसु वेयणा उण्हा अस्साया वेइया मए ॥ ४८।। जहा इमं इहं सीयं एत्तोऽणन्तगुणं तहिं ।।। नरएस वेयणा सीया अस्साया वेइया मए । ४६ ।। . कन्दन्तो कंदुकुम्भोस उड्ढपाओ अहोसिरो। हुयासणे जलन्तम्मि पक्कपुवो अणन्तसो ।। ५० ।। महादवग्गिसंकासे मरुम्मि वइरवालुए । कलम्ववालुयाए य दड्ढपुन्चो अणन्तसो ॥ ५१ ।। रसन्तो कंदुकुम्भीसु उड्ढं वद्धो अवन्धवो। करवत्तकरकयाईहिं छिन्नपुवो अणन्तसो ।। ५२ ।। Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगूर्णावसइमं अज्झयणं १५८ अतिक्कण्टगाइणे तुंगे सिम्बलिपायवे । खेवियं पासबद्धेणं कड्ढोकड्ढाहि दुक्करं ।। ५३ ।। महाजन्तेसु उच्छू वा आरसन्तो सुभैरवं । पीलिओ मि सम्मेहि पावकम्मो अणन्तसो ॥ ५४ ॥ कूवन्तो कोलसुणएहि सामेहि सवलेहि य । पाडिओ फालिओ छिन्नो विष्फुरन्तो अणेगसो ।। ५५ ।। असीहि अयसवण्णाहि भल्लीहिं पट्टिसेहि य । छिन्नो भिन्नो विभिन्नो य ओइण्णो पावकम्मुणा ||५६ | अवसो लोहरहे जुत्तो जलन्ते समिलाजुए । चोइओ तोत्तजुत्तेहि रोज्झो वा जह पाडिओ ।। ५७ ।। हुयासणे जलन्तम्मि चियासु महिसो विव । दड्ढो पत्रको य अवसो पावकम्मेहि पाविओ ॥ ५८ ॥ वला संडासतुण्डेहिं लोहतुण्डेहि पविखहि । विलुत्तो विलवन्तो हं ढंकगिद्धेहिणन्तसो ॥ ५६ ॥ . तहाकिलन्तो धावन्तो पत्तो वेयरणि नदि । जलं पाहि ति चिन्तन्तो खुरधाराहि विवाइओ ॥ ६० ॥ उन्हा भितत्तो संपत्तो असिपत्तं महावणं । असिपत्तेहिं पडन्तेहि छिन्नपुव्वो अणेगसो ॥ ६१ ॥ मुग्गरेहि मुसंढीहि सूलेहिं मुसलेहिः य । गयासं भग्गगत्तेहि पत्तं दुक्खं अणन्तसो ॥ ६२ ॥ " खुरेहिं तिक्खधारेहिं छुरिया हि कप्पणीहि य । कप्पिओ फालिओ छिन्नो उक्कत्तोयं अणेगसो ॥ ६३ ॥ Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६० उत्तरज्झयणं पासेहिं कूडजालेहि मिओ वा अवसो अहं । वाहिओ वद्धरुद्धो अ बहुसो चेव विवाइओ ।। ६४ ।।। गले हिं मगरजालेहि मच्छो वा अवसो अहं । उल्लिओ फालिओ गहिओ __ मारिओ य अणन्तसो ।। ६५ ।। वीदंसएहि जालेहिं लेप्पाहि सउणो विव । गहिओ लग्गो वदो य मारिओ य अणन्तसो ॥ ६६ ।। कुहाडफरसुमाईहिं वडढईहिं दुमो विव । कुट्टिओ फालिओ छिन्नो तच्छिओ य अणन्तसो ॥ ६७ ॥ चवेडमुट्ठिमाईहि कुमारेहि अयं पिव । ताडिओ कुटिओ भिन्नो चुण्णिओ य अणन्तसो ॥ ६८ ॥ तत्ताई तम्वलोहाइंतउयाइं सीसयाणि य । पाइओ कलकलन्ताई आरसन्तो सुभेरवं ।। ६६ ।। तुहं पियाई मंसाइं खण्डाइं सोल्लगाणि य । खाविओ मि समंसाइं अग्गिवण्णाई णेगसो ॥ ७० ॥ . तुहं पिया सुरा साहू मेरओ य महणि य । पाइओ मि जलन्तीओ वसाओ रुहिराणि य ।। ७१ ।। Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'एगणविसइमं अज्झयणं १६१ निच्चं भीएण तत्थेण दुहिएण वहिएण य । परमा दुहसंवद्धा वेयणा वेइया मए ॥७१।। तिब्वचण्डप्पगाढाओ घोराओ अइदुस्सहा। महब्भयाओ भीमाओ नरएसु वेइया मए ।। ७२ ।। जारिसा माणसे लोए ताया!दीसन्ति वेयणा । एत्तो अणन्तगुणिया नरएसु दुवखवेयणा ।। ७३ ।। सव्वभवेसु अस्साया वेयया वेइया मए । निमेसन्त रमित्तं पि जं साया नत्थि वेयणा ।। ७४ ॥ तं वितऽम्मापियरो छन्देणं पुत्त ! पव्वया ।। नवरं पुण सामण्णे दुक्खं निप्पडिकम्मया ॥ ७५ ।। सो वितऽम्मापियरो ! एवमेयं जहाफूड । .. पडिकम्मं को कुणई अरण्णे मियपक्खिणं ?।। ७६ ।। एगभूओ अरण्णे वा जहा उ चरई मिगे। एवं धम्म चरिस्सामि संजमेण तवेण य ।। ७७ ॥ जया मिगस्स आयंको महारण्णम्मि जायई। अच्छन्तं रुक्खमूलम्मि को णं ताहे तिगिच्छई ?।। ७८ ।। को वा से ओसहं देई को वा से पुच्छई सुहं । · को से भत्तं च पाणं च आहरित्तु पणामए ?।। ७६ ।। जया य से सुही होइ तया गच्छइ गोयरं । -: भत्तपाणस्स अट्ठाए वल्ल राणि सराणि य ।। ८० ॥ ... - खाइत्ता पाणियं पाउं वल्ल रेहिं सरेहि वा। -मिगचारियं चरित्ताणं गच्छई मिगचारियं ।। ८१ ॥ Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६२ 'उत्तरज्भयणं एवं समुट्ठिओ भिक्खू एवमेव अणेगओ | मिगचारियं चरित्ताण उड्ढं पक्कमई दिसं ॥ ८२ ॥ जहा मिगे एग अणेगचारी अणगवासे धुवगोयरे य । एवं मुणी गोयरियं पविट्टे नो हीलए नो विय खिसएज्जा ॥ ८३ ॥ मिगचारियं चरिस्सामि एवं पुत्ता जहासुहं । अम्मा पिऊहिणुन्नाओ जहाइ उवहिं तओ ॥ ८४ ॥ मियचारियं चरिस्सामि सव्वदुक्ख विमोक्खाणि ! तुम्भेहि अम्म ! ऽणुन्नाओ गच्छ पुत्त ! जहासुहं ॥ ८५ ॥ एवं सो अम्मापयरो अणुमाणित्ताण वहुविहं । ममत्तं छिन्दई ताहे महानागो व्व कंचुयं ॥ ८६ ॥ इड्ढि वित्तं च मित्ते य पुत्तदारं च नायओ । रेणुयं वं पडे लग्गं निगुणित्ताण निरंगओ ॥ ८७ ॥ पंचमहव्वयजुत्तोपंचसमिओ तिगुत्तिगुत्तो य । सब्भिन्तरवाहिरओ तवोकम्मंसि उज्जुओ ॥ ८८ ॥ निम्ममो निरहंकारो निस्संगो चत्तगारवो । समो य सव्वभूएसु तसेसु थावरेसु य ॥ दर्द ॥ लाभालाभे सुहे दुबखे जीविए मरणे तहा । समो निन्दापसंसासु तहा माणावमाणओ ॥ ६० ॥ गारवेसु कसाएसु दण्डसल्लभएसु य । नियत्तो हाससोगाओ अनियाणो अवन्धणो ॥ ६१ ॥ Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगणविसइमं अज्झयणं अणिस्सिओ इह लोए परलोए अणि स्सिओ। वासीचन्दणकप्पो य असणे अणसणे तहा ।। ६२ ॥ अप्पसत्थेहिं दारेहिं सव्वओ पिहियासवे । अज्झप्पज्झाणजोगेहिं पसत्थदमसासणे ॥ ६३ ॥ एवं नाणेण चरणेण दंसणेण तवेण य । भावणाहि य सुद्धाहिं सम्म भावेत्तु अप्ययं ।। ६४ ॥ वयाणि उ वासाणि सामण्णमणपालिया। मासिएण उ भत्तेण सिद्धि पत्तो अणुत्तरं ।। ६५ ।। एवं करन्ति संबुद्धा पण्डिया पवियक्खणा । विणियट्टन्ति भोगेसु मियापुत्ते जहारिसो।। ६६ ।। महापभावस्स महाजसस्स मियाइ पुत्तस्स निसम्म भासियं । . तवप्पहाणं चरियं च उत्तम गइप्पहाणं च तिलोगविस्सुयं ॥ ६७ ॥ वियाणिया दुक्खविवद्धणं धणं ममत्तवंधं च महन्भयावहं । सुहावहं धम्मधुरं अणुत्तरं धारेह निव्वाणगुणावह महं ।। ६८ ॥ -त्ति बेमि ।। . . Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ 'उत्तरज्झर्ण हिमं अभयणं महा नियण्ठिज्जं सिद्धाणं नमो किच्चा संजयाणं च भावओ । अत्यधम्मगई तच्चं अणुर्साट्ठ सुणेह मे ॥ १ ॥ प्रभूयरयणो राया सेणिओ मगहाहियो । विहारजत्तं निज्जाओ मण्डिकुच्छिसि चेइए ॥ २ ॥ नाणादुमलयाइण्णं नागापविखनिसेवियं । नाणाकुसुमसंछन्नं उज्जाणं नन्दणोवमं ॥ ३ ॥ तत्थ सो पासई साहुं, संजयं सुसमाहियं । निसन्नं स्वखमूलम्मि सुकुमालं सुहोइयं ॥ ४ ॥ तस्स रूवं तु पासित्ता, राइणो तम्मि संजए । अच्चन्तपरमो आसी अउलो रूवविम्हओ ।। ५ ।। अहो ! वणी अहो ! रूवं अहो ! अज्जस्स सोमया । अहो ! खन्ती अहो ! मुत्ती अहो ! भोगे असंगया ॥ ६ ॥ तस्स पाए उ वन्दित्ता काऊण य पयाहिणं । नाइदूरमणासन्ने पंजली पडिपुच्छई ॥ ७ ॥ तरुणो सि अज्जो ! पव्वइओ, भोगकालम्मि संजया ! | उवट्ठिओ सि सामण्णे एयमट्ठ सुणेमि ता ॥ ८ ॥ अणाहो मि महाराय ! नाहो मज्झ न विज्जई । अणुकम्पगं सुहिं वावि, कंचि नाभिसमेमहं ॥ ६ ॥ Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विसइम अज्झयणं १६५ तओ सो पहसिओ राया सेणिओ मगहाहिवो। एवं ते इड्ढिमन्तस्स कहं नाहो न विज्जई ? ।। १० ।। होमि नाहो भयन्ताणं ! भोगे भुंजाहि संजया !। मित्तनाईपरिवुडो माणुस्सं खु सुदुल्लहं ॥ ११ ॥ अप्पणा वि अणाहो सि, सेणिया! मगहाहिवा! अप्पणा अणाहो सन्तो कहं नाहो भविस्ससि ?।। १२ ।। एवं वुत्तो नरिन्दो सो, सुसंभन्तो सुविम्हिओ। वयणं अस्सुयपुव्वं साहुणा विम्यन्निओ ।। १३ ।। अस्सा हत्थी मणुस्सा मे, पुरं अन्तेउरं च मे। भुंजामि माणुसे भोगे आणाइस्सरियं च मे ।। १४ ।। एरिसे सम्पयग्गम्मि सव्वकामसमप्पिए । कहं अणाहो भवइ? मा हु भन्ते ! मुसंवए ।। १५ ।। न तुमं जाणे अणाहस्स, अत्थं पोत्थं व पत्थिवा!! जहा अणाहो भवई, सणाहो वा नराहिवा ? ।। १६ ।। सुणेह मे महाराय ! अव्व क्खित्तेण चेयसा ।। जहा. अणाहो भवई जहा मे. य पवत्तियं ॥ १७ ॥ . कोसम्वी नाम नयरी पुराणपुरभेयणो । तत्थ आसी पिया मज्झ, पभूयधणसंचओ ।। १८ ॥ पढमे वए महाराय ! अउला मे अच्छिवेयणा । . अहोत्था विउलो दाहो, सव्वंगेसु य पत्थिवा !!१६ ॥ सत्थं जहा परमतिक्खं सरीरविवरन्तरे । पवेसेज्ज अरी कुद्धो; एवं मे अच्छिवेयणा ।। २० ।। : Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६६ उत्तरज्झयणं . तियं में अन्तरिच्छं च उत्तमंगं च पीडई। इन्दासणिसमा घोरा वेयणा परमदारुणा ।। २१ ॥ उवटिया मे आयरिया, विज्जामन्ततिगिच्छगा। अवीया सत्थकुसला मन्तमूलविसारया ॥ २२ ।। ते मे तिगिच्छं कुव्वन्ति, चाउप्पायं जहाहियं । न य दुक्खा विमोयन्ति एसा मज्झ अणाहया ।। २३ ।। पिया मे सव्वसारं पि, दिज्जाहि मम कारणा। न य दुक्खा विमोएइ, एसा मज्झ अणाहया ॥ २४ ॥ माया य मे महाराय ! पुत्तसोगदुहट्टिया । न य दुक्खा विमोएइ, एसा मज्झ अणाहया ।। २५ ।। भायरो मे महाराय ! सगा जेटुकणिदगा। न य दुक्खा विमोयन्ति, एसा मज्झ अणाहया ।। २६ ॥ भइणीओ मे महाराय ! सगा जेट्टकणिढगा। न य दुक्खा विमोयन्ति, एसा मज्झ अणाहया ।। २७ ।। . भारिया में महाराय ! अणुरत्ता अणुव्वया । अंसुपुण्णेहिं नयणेहिं उरं मे परिसिंचई ॥ २८ ॥ अन्न पाणं च पहाणं च गन्धमल्लविलेवणं । मए नायमणायं वा, सा वाला नोव जई ॥ २६ ॥ खणं पि मे महाराय ! पासाओ वि न फिट्टई। नय दुवखा विमोएइ, एसा मज्झ अणाया ।। ३० ।। तो हं एवमाहंस दुक्खमा हु पुणो पुणो। वेयणा अणुभविउं जे, संसारम्मि अणन्तए ।। ३१ ।। 1 . Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विसsi अभयणं सई च जई मुच्चेज्जा वेयणा विउला इओ । खन्तो दन्तो निरारम्भो पव्वए अणगारियं ।। ३२ ।। एवं च चिन्तइत्ताणं, पत्तो मि नराहिवा ! | परियन्ती राईए वेयणा मे खयं गया ॥ ३३ ॥ तओ कल्ले प्रभायम्मि आपुच्छित्ताण वन्धवे । खन्तो दन्तो निरारम्भो पव्वइओऽणगारियं ।। ३४ ।। ततो हं नाहो जाओ अप्पणी य परस्स य । सव्वेसि चेव भूयाणं तसाण थावराण य ।। ३५ ।। अप्पा नई वेयरणी अप्पा मे कूडसामली । अप्पा कामदुहा धेणू अप्पा मे नन्दणं वणं ॥ ३६ ॥ अप्पा कत्ता विकत्ता य, दुहाण य सुहाण य । अप्पा मित्तममित्तं च दुष्पट्ठियसुपट्टिओ ॥ ३७ ॥ इमा हु अन्नावि अणाहया निवा ! तमेगचित्तो निहुओ सुणेहि । नियण्ठधम्मं लहियाण वी जहा सीयन्ति एगे बहुकायरा नरा ।। ३८ ।। जो पव्वइत्ताण अनिग्गहप्पा य रसेसु गिद्ध े महव्वयाई सम्मं नो फासयई पमाया । न मूलओ छिन्दइ वन्धणं से ।। ३६ ।। आउत्तया जस्स न अत्थि कांइ. इरियाए भासाए तहेसणाए । आयाणनिक्खेवदुगु छणाए न वीरजायं अणुजाइ मग्गं ॥। ४० ।। १६७ Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ se - at ku anita r Plae .. 81 Pr. विनं तु पोगा Aas . evi A . जे लगनणं नविण जा निमिनमोकामगा। काहे उविज्जामवारजीवी नगम मनाना हान ४५ ॥ तमंत मेणे व ३ मे अनीले समा दुही विपरिधान मन ! संधावई नरगतिरिवाजोणि माणं विरोहत्तु असाहावे ।।४।। -4 । Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विसइमं अभयणं उद्देसियं कीयगड नियागं न मुंबई किंचि अणेस णिज्जं । अग्गी विवा सव्वभक्खी भवित्ता इओ चुओ गच्छई कट्टु पावं ॥ ४७ ॥ न तं अरी कण्ठछेत्ता करेइ जं से करे अप्पणिया दुरप्पा | से नाहिई मच्चुमुहं तु पत्ते पच्छातावेण दयाविहूणो ॥ ४८ ॥ निरट्ठिया नग्गरुई उ तस्स जे उत्तम विवज्जासमेई । इमे वि से नत्थि परे वि लोए दुहओ वि से झिज्जइ तत्थ लोए ॥ ४६ ॥ एमेवहा छन्दकुसीलरूवे मग्गं विराहेत्तु जिणुत्तमाणं । कुररं विवा भोगरसाणुगिद्धा निरट्ठसोया परियावमेइ ॥ ५० ॥ सोच्चाण मेहावि सुभासियं इमं अणुसासणं नाणगुणोववेयं । मग्गं कुसीलाण जहाय सव्वं महानियण्ठाण वए पहेणं ।। ५१ ।। चरितमायारगुणन्निए तओ अणुत्तरं संजम पालियाणं । निरासवे संखवियाण कम्मं उवेइ ठाणं विउलुत्तमं धुवं ।। ५२ ।। १६६ Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७० उत्तरज्झयणं एवरगदन्ते वि महातवोधणे __ महामुणी महापइन्ने महायसे । महानियष्ठिज्जमिणं महासुयं से काहए महया वित्थरेणं ।। ५३ ।। तुदो य सेणिओ राया इणमुदाहु कयंजली । अणाहत्तं जहाभूयं सुट्ट, मे उवदंसियं ।। ५४ ।। तुझं सुलद्धं खु मणुस्सजम्म लाभा सुलद्धा य तुमे महेसी ! । तुभे सणाहा य सवन्धवा य जं भे ठिया मग्गे जिणुत्तमाणं ॥ ५५ ॥ तं सि नाहो अणाहाणं, सव्वभूयाण संजया ! । खामेमि ते महाभाग ! इच्छामि अणुसासिउं ।। ५६ ।। पूच्छिऊण मए तुभं, झाणविग्यो उ जो कओ। निमन्तिओ य भोगेहिं, तं सव्वं मरिसेहि मे ।। ५७ ।। एवं थुणित्ताण स रायसीहो अणगारसीहं परमाइ भत्तिए । सओरांहो य सपरियणो य धम्माणुरत्तो विमलेण चेयसा ।। ५८ ।। ऊससियरोमकूवो काऊण य पयाहिणं । अभिवन्दिऊण सिरसा, अइयाओ नराहिवो ।। ५६ ।। इयरो वि गुणसमिद्धो तिगुत्तिगुत्तो तिदण्डविरओ य । विहग इव विप्पमुक्को विहरइ वसुहं विगयमोहो ।। ६० ।। -त्ति वेमि.॥ Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगविसइमं अज्झयणं १७१ . ' एगर्विसइमं अज्झयणं समुद्दपालीयं चम्पाए पालिए नाम, सावए आसि वाणिए। महावीरस्स भगवओ, सीसे सो उ महप्पणो ॥ १ ॥ निग्गन्थे पावयणे, सावए से विकोविए। . . पोएण ववहरन्ते पिहुण्ड नगरमागए ॥ २ ॥ पिहण्डे ववहरन्तस्स वाणिओ देइ धूयरं । तं ससत्तं पइगिज्झ सदेसमह पत्थिओ ।। ३ ।। अह पालियस्स धरणी ‘समुइंमि पसवई। अह दारए तहिं जाए, समुद्दपालि त्ति नामए ।। ४ ।। खेमेण आगए चम्पं, सावए वाणिए घरं । संवड्ढई घरे तस्स दारए से सुहोइए ॥ ५ ॥ वावतरि कलाओ य सिक्खए नीइकोविए। जोवणेण य संपन्ने सुरूवे पियदंसणे ॥ ६ ॥ तस्स रूववइं भज्जं पिया आणेइ रूविणि। पासाए कीलए रम्मे देवो दोगुन्दओ जहा ।। ७ ।। अह अन्नया कयाई, पासायालोयणे ठिओ। वज्झमण्डणसोभागं वज्झं पासइ वज्झगं ।। ८ ।। तं पासिऊण संविग्गो, समुद्दपालो इणमब्ववी। . . अहोऽसुभाण कम्माणं निज्जाणं पावगं इमं ॥ ६ ॥ Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७२ संबुद्धो सो तहिं भगवं परं संवेगमागओ । आपुच्छम्मापियरो पव्वए अणगारियं ॥ १० ॥ जहित्तु संगं च महाकिले सं महन्तमोहं कसिणं भयावहं । परियायधम्मं चभिरोयएज्जा अहिंस सच्चं च अतेणगं च पडिवज्जिया वयाणि सीलाणि परमहेय ॥ ११ ॥ तत्तो य वम्भं अपरिग्गहं च । पंच महव्वयाणि चरिज्ज धम्मं जिणदेसियं विऊ ॥ १२ ॥ सव्वेहि भूएहिं दयाणकम्पी सावज्जजोगं खन्तिक्खमे संजयवम्भयारी । परिवज्जयन्तो चरिज्ज भिक्खू सुसमाहिइन्दिए ॥ १३ ॥ कालेण कालं विहरेज्ज र उवेहमाणो उ वलावलं जाणिय अप्पणी य । सीहो व सद्देण न संतसेज्जा उत्तरज्झयणं वयजोग सुच्चा न असम्भमाहु || १४ || परिव्वज्जा पियमप्पियं सव्व तितिक्खएज्जा । न सव्व सव्वत्थऽभिरोयएज्जा न यावि पूयं गरहं च संजए ॥ १५ ॥ माणवेहि जे भावओ संपगरेइ भिक्खू । अगछन्दाइह भयभेरवा तत्थ उइन्ति भीमा दिव्वा मणुस्सा अदुवा तिरिच्छा ॥ १६ ॥ Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इगविसइमं अज्झयणं _ १७३ परीसहा दुन्विसहा अणेगे सीयन्ति जत्था बहुकायरा नरा। से तत्थ पत्ते न वहिज्ज भिक्खू संगामसीसे इव नागराया ॥ १७ ॥ सीओसिणा दंसमसा य फासा . आयंका. विविहा फुसन्ति । देहं। . . अकुक्कुओ तत्थऽहियासएज्जा . रयाई खेवेज्ज पुरेकडाइं ॥ १८ ॥ पहाय रागं च तहेव दोसं - मोहं च भिक्खू सययं वियक्खणो। मेरु व्व वाएण अकम्पमाणो परीसहे आयगुत्ते सहेज्जा ॥ १६ ॥ अणुन्नए नावणए महेसी. . ___ न यावि पूर्य गरहं च संजए। स उज्जुभावं पडिवज्ज. संजए । ..... . निव्वाणमग्गं विरए उवेइ ॥२०॥ अरइरइसहे पहीणसंथवे विरए आयहिए पहाणवं । परमटुपएहिं . चिट्टई छिन्नसोए अममे. अकिंचणे ॥ २१ ।। विवित्तलयणाई भएज्ज ताई निरोवलेवाइ असंथडाइं। . . इसीहि चिण्णाइ महायसेहिं । काएण फासेज्ज परीसहाई ।। २२ ।। Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७४ उत्तरज्झयणं . सन्नाणनाणोवगए महेसी अणुत्तरं चरिउं धम्मसंचयं । अणुत्तरेनाणधरे जसंसी ओभासई सूरिए वन्तलिखे ।। २३ ।। दुविहं खवेऊण य पुण्णपावं निरंगणे सव्वओ विप्पमुक्के । तरित्ता समुदं व महाभवोघं समुद्दपाले अपुणागमं गए ॥ २४ ॥ –त्ति बेमि ॥ Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . बाइसमं अज्झयणं १७५ . बाइसमं अज्झयणं रहनेमिज्ज सोरियपुरंमि नयरे, आसि राया महिडिढए। वसुदेवे त्ति नामेणं रायलक्खणसंजुए ॥ १ ॥ तस्स भज्जा दुवे आसी, रोहिणी देवई तहा। .तासि दोण्हं पि दो पुत्ता इट्ठा रामकेसवा ।। २ ।। सोरियपुरंमि नयरे, आसी राया महिड्ढिए। समुद्दविजए नामं रायलक्खणसंजुए ॥ ३ ।। तस्स भज्जा सिवा नाम, तीसे पुत्तो महायसो। भगवं अरिट्टनेमि त्ति, लोगनाहे दमीसरे ॥ ४ ॥ सोऽरिटुने मिनामो उ लक्खणस्सरसंजुओ। असहस्सलक्खणधरो गोययो कालगच्छवी ॥ ५ ॥ वज्जरिसहसंघयणो समचउरंसो झसोयरो। तस्स राईमई कन्नं भज्जं जायइ केसवो ॥ ६ ॥ अह सा रायवरकन्ना सुसीला चारुपेहिणी। सव्वलक्खणसंपुन्ना विज्जुसोयामणिप्पभा ॥ ७ ॥ अहाह जणओ तीसे वासुदेवं महिड्ढियं । इहागच्छऊ कुमारो, जा से कन्नं दलामहं ।। ८ ।। सव्वोसहीहि एहविओ कयकोउयमंगलो । दिवजुयलपरिहिओ आभरणेहिं विभूसिओ।। ६ ।। Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तरभवणं १७६ मत्तं च गन्धहत्थिं वासुदेवस्स जेदुगं । आरूढो सोहए अहियं, सिरे चूडामणी जहा ॥ १० ॥ अह ऊसिएण छत्तेण चामराहि य सोहिए । दसारचक्केण य सो, सव्वओ परिवारिओ ।। ११ ।। चउरंगिणीए सेनाए रइयाए जहक्कमं । तुरियाण सन्निनाएण दिव्वेण गगणं फुसे ॥ १२ ॥ एयारिसीए इड्ढीए जुईए उत्तिमाए य । नियगाओ भवणाओं निज्जाओ वहिपुंगवो ॥ १३ ॥ अह सो तत्थ निज्जन्तो, दिस्स पाणे भयदुए । वाडेहि पंजरेहिं च सन्निरुद्धे सुदुविखए ॥ १४ ॥ जीवियन्तं तु संपत्ते मंसट्टा भक्खियन्वए । पासेत्ता से महापन्ने सारहिं इणमब्ववी ।। १५ ।। कस्स अट्ठा इमे पाणा एए सव्वे सुहेसिणो । . वाडेहि पंजरेहिं च सन्निरुद्धा य अच्छाह ? ।। १६ ।। अह सारही तओ भणइ एए भद्दा उ पाणिणो । तुज्झं विवाहकज्जंमि भोयावेउं वहुं जणं ॥ १७ ॥ सोऊण तस्स वयणं वहुपाणिविणासणं । चिन्तेइ से महापन्ने साणुक्कोसे जिएहि उ ॥ १८ ॥ जइ मज्झ कारणा एए हम्मिहिंति वहू जिया । न मे एयं तु निस्सेसं परलोगे भविस्सई ॥ १६ ॥ सो कुण्डलाण जुयलं, सुत्तगं च महायसो । आभरणाणि य सव्वाणि सारहिस्स पणामए ।। २० ।। Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बाइसमें अज्झयणं मणपरिणामे य कए, देवा य जहोइयं समोइण्णा । सव्वड्ढीए सपरिसा, निवखमणं तस्स काउं जे ।। २१ ।। १७७ देव मणुस परिवुडो, सीयारयण तओ समारूढो । निक्खमिय वारगाओ, रेवययंमि द्विओ भगवं ॥ २२ ॥ उज्जाणं संपत्तो, ओइण्णो उत्तिमाओ सीयाओ । साहस्सीए परिवुडो, अह निक्खमई उ चित्ताहि ॥ २३ ॥ अह से सुगन्धगन्धिए तुरियं मउयकुंचिए । सयमेव लुचई केसे पंचमुट्ठीहिं समाहिओ ॥ २४ ॥ वासुदेवो य णं भणइ लुत्तकेसं जिइन्दियं । इच्छियमणोरहे तुरियं पावेसू तं दमीसरा ! ।। २५ ।। नाणेणं दंसणेणं च चरितेण तहेव य । खन्तीए मुत्तीए वड्ढमाणो भवाहि य ।। २६ ।। एवं ते रामकेसवा दसारा य वहू जणा । अरिट्टणेमि वन्दित्ता अइगया वारगापुरिं ।। २७ ।। सोऊण रायकन्ना पव्वज्जं सा जिणस्स उ । नीहासा य निराणन्दा सोगेण उ समुत्थया ॥ २८ ॥ राईमई विचिन्तेइ धिरत्थु मम जीवियं । जा हं तेण परिच्चत्ता सेयं पव्वइउं मम ॥ २६ ॥ अह सा भमरसन्निभे कुच्चफणगपसाहिए 1 सयमेव लुचई केसे धिइमन्ता ववस्सिया ॥ ३० ॥ '. 1 वासुदेवो य णं भणइ लुत्तकेस जिइन्दियं । संसारसागरं घोरं तर कन्ने ! लहुं लहुं ॥ ३१ ॥ Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७८ उत्तरज्झयणं सा पव्वइया सन्ती पवावेसी तहिं वहं । सयणं परियणं चेव सीलवन्ता वहुस्सुया ।। ३२ ।। गिरि रेवययं जन्ती वासेणुल्ला उ अन्तरा। वासन्ते अन्धयारंमि अन्तो लयणस्स सा ठिया ।। ३३ ।। चीवराइं विसारन्ती जहा जाय त्ति पासिया। रहनेमी भग्गचित्तो पच्छा दिट्ठो य तीइ वि ।। ३४ ॥ भीया य सा तहिं दट्ट एगन्ते संजयं तयं । बाहाहिं काउं संगोफ वेवमाणी निसीयई ।। ३५ ।। अह सो वि रायपुत्तो समुद्दविजयंगओ। भीयं पवेवियं द? इमं वक्कं उदाहरे ।। ३६ ।। 19 रहनेमी अहं भद्दे ! सुरूवे ! चारुभासिणि ! । ममं भयाहि सुयणू ! न ते पीला भविस्सई ।। ३७ ॥ एहि ता भुजिमो भोए माणुस्सं खु सुदुल्लहं । भुत्तभोगा तओ पच्छा जिणमग्गं चरिस्सिमो ।। ३८ ।। दळूण रहनेमि तं भरगुज्जोयपराइयं । राईमई असम्भन्ता अप्पाण संवरे तहिं ।। ३६ ।। अह सा रायवरकन्ना सुटिया नियमव्वए। जाई कुलं च सीलं च रक्खमाणी तयं वए ॥ ४० ॥ जइ सि रूवेण वेसमणो ललिएण नलकूवरो । तहा वि ते न इच्छामि जइ सि सक्खं पुरन्दरो॥४१॥ पक्खंदे जलियं जोइं धूमकेउं दुरासयं । नेच्छन्ति वंतयं भोत्तु कुले जाया अगंधणे ॥ Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बाइसमं अज्झयणं धिरत्थु ते जसोकामी ! जो तं जीवियकारणा । वन्तं इच्छसि आवेउं सेयं ते मरणं भवे ।। ४२ ।। अहं च भोयरायस्स, तं च सि अन्धगवहिणो । मा कुले गन्धणा होमो संजम निहुओ चर ॥ ४३ ॥ इतं काहिति भावं, जा जा दिच्छसि नारिओ । वायाविद्धो व्व हो अट्टिअप्पा भविस्ससि ॥ ४४ ॥ गोवालो भण्डवालो वा जहा तद्दव्वऽणिस्सरो । एवं अणिस्सरो तं पि सामण्णस्स भविस्ससि ।। ४५ ।। कोहं माणं निगिण्हत्ता, मायं लोभं च सव्वसो । इन्दियाई वसे काउं अप्पाणं उवसंहरे ॥ ४६ ॥ तीसे सो वयणं सोच्चा, संजयाए सुभासियं । अंकुसेण जहा नागो धम्मे संपडिवाइओ ॥ ४७ ॥ मणगुत्तो वयगुत्तो कायगुत्तो जिइन्दिओ । सामण्णं निच्चल फासे, जावज्जीवं दढव्वओ ॥ ४८ ॥ उग्गं तवं चरित्ताणं, जाया दोण्णि वि केवली । सव्वं कम्मं खवित्ताणं, सिद्धि पत्ता अणुत्तरं ॥ ४६ ॥ एवं करेन्ति संबुद्धा, पण्डिया पवियक्खणा । विणियदृन्ति भोगेसु, जहा सो पुरिसोत्तमो ॥ ५० ॥ --fa af 11 १७६ Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८० उत्तरज्मयणं तेविसइमं अज्झयणं के सिगोयमिज्ज जिणे पासे त्ति नामेण अरहा लोगपूइओ। संबुद्धप्पा य सव्वन्नू धम्मतित्थयरे जिणे ॥ १ ॥ . तस्स लोगपईवस्स आसि सीसे महायसे । केसीकुमारसमणे विज्जाचरणपारगे ॥ २ ॥ ओहिनाणसुए वुद्धे सीससंघसमाउले । गामाणुगामं रीयन्ते सावत्थि नगरिमागए ।। ३ ॥ तिन्दुयं नाम उज्जाणं तम्मी नगरमण्डले । फासुए सिज्जसंथारे तत्थ वासमुवागए ॥ ४ ॥ अह तेणेव कालेणं धम्मतित्थयरे जिणे । भगवं वद्धमाणो ति सव्वलोग म्मि विस्सुए ॥ ५ ॥ तस्स लोगपईवस्स आसि सीसे महायसे । भगवं गोयमे नामं विज्जाचरणपारगे ॥ ६ ॥ वारसंगविऊ बुद्धे सीससंघसमाउले ।। गामाणुगामं रीयन्ते से वि सावत्थिमागए ।। ७ ।। कोडगं नाम उज्जाणं तम्मी नयरमण्डले । फासुए सिज्जसंथारे तत्थ वासमुवागए ॥८॥ केसीकुमारसमणे गोयमे य महायसे । उभओ वि तत्थ विहरिसु, अल्लीणा सुसमाहिया ॥६॥ Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेविसइमं अज्झयणं १८१ उभओ सीससंघाणं संजयाणं तवस्सिणं । तत्थ चिन्ता समुप्पन्ना गुणवन्ताण ताइणं ॥ १० ॥ केरिसो वा इमो धम्मो ? इमो धम्मो व केरिसो?। आयार धम्मपणिही इमा वा सा व केरिसो ? || ११ ।। चाउज्जामो य जो धम्मो जो इमो पंचसिक्खिओ। . देसिओ वद्धमाणेण पासेण य महामुणी ।। १२ ।। अचेलगो य जो धम्मो जो इमो सन्तरुत्तरो। . एगकज्जपवन्नाणं विसेसे किं नु कारणं ? ॥ १३ ॥ अह ते तत्थ सीसाणं विन्नाय पवितक्कियं । समागमे कयमई उभओ के सिगोयंमा ।। १४ ।।. गोयमे पडिरूवन्नू , सीससंघसमाउले। जेट्ठ कुलमवेक्खन्तो तिन्दुयं वणमागओ ।। १५ ।। केसीकुमारसमणे गोयमं दिस्समागयं । पडिरूवं पडिवत्ति सम्म संपडिवज्जई ।। १६ ।। पलालं फासुग्रं तत्थ पंचमं कुसतणाणि य । गोयमस्स निसेज्जाए खिप्पं संपणामए ।॥ १७ ॥ केसीकुमारसमणे गोयमे य महायसे । उभओ निसण्णा सोहन्ति चन्दसूरसमप्पभा ॥ १८ ॥ समागया वह तत्थ पासण्डा कोउगा मिगा। ... गिहत्थाणं अणेगाओ साहस्सोओ समागया ।। १६ ॥ देवदाणवगन्धव्वा जक्ख रक्खसकिन्नरा । अदिस्साणं च भूयाणं आसी तत्थ समागमो ॥ २० ॥ Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८२ उत्तरायणं पुच्छामि ते महाभाग ! केसी गोयममनवी। तओ केसि बुवंतं तु गोयमो इणमव्यवी ।। २१ ।। पुच्छ भन्ते ! जहिच्छं ते, केसि गोयममव्ववी। तओ केसी अणुनाए गोयम इणमब्बवी ।। २२ ।। चाउज्जामो य जो धम्मो, जो इमो पंचसिक्खिओ। देसिओ वद्धमाणेण पासेण य महामुणी ।। २३ ।। एगकज्जपवन्नाणं विसेसे किं नु कारणं ?।। धम्मे दुविहे मेहावि ! कहं विप्पच्चओ न ते ? ।। २४ ॥ तओ केसि बुवंतं तु गोयमो इणमव्यवी। पन्ना समिक्खए धम्म तत्तं तत्तविणिच्छयं ।। २५ ॥ पुरिमा उज्जुजडा उ वंकजडा य पच्छिमा। मज्झिमा उज्जुपन्ना य, तेण धम्मे दुहा कए ॥ २६ ।। पुरिमाणं दुव्विसोझो उ, चरिमाणं दुरणुपालओ । कप्पो मज्झिमगाणं तु, ___ सुविसोज्झो सुपालओ ।। २७ ।। साहु गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो। अन्नो वि संसओ मज्झं, तं मे कहसु गोयमा ! ॥ २८ ॥ अचेलगो य जो धम्मो जो इमो सन्तरुत्तरो। देसिओ वद्धमाणेण पासेण य महाजसा ॥ २६ ॥ Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विसइमं अभयगं एगकज्जपवन्नाणं विसेसे कि तू कारणं ? | लिंगे दुवि मेहावि ! कहं विप्पच्चओ न ते ? ।। ३० ।। केसिमेवं बुवाणं तु गोयमो इणमव्ववी । केसिमेव बुवाणं तु गोयमो इणमव्ववी ॥। ३१ ।। पच्चयत्थं च लोगस्स नाणा विहविगप्पणं । जत्तत्थं गणत्थं च लोगे लिंगप्पओयणं ॥ ३२ ॥ अह भवे पइन्ना उ मोक्खसम्भूयसाहणे । नाणं च दंसण चेव चरितं चेव निच्छए ।। ३३ ।। साहु गोयम ! पन्ना ते छिन्नो मे संसओ इमो । अन्नो वि संसओ मज्झ, तं मे कहसु गोयमा ! ॥ ३४ ॥ अणेगाणं सहस्साणं मज्झे चिट्ठसि गोयमा ! । तेय ते अहिगच्छन्ति कहं ते निज्जिया तुमे ? ।। ३५ ।। एगे जिए जिया पंच पंच जिए जिया दस । दसहा उ जिणित्ताणं सव्वसत्तू जिणामहं ॥ ३६ ॥ य इइ के वत्ते ? केसी गोयममव्ववी । ओ सिवुवंतंतु, गोयमो इणमव्ववी ॥ ३७ ॥ एगप्पा अजिए सत्तू कसाया इन्दियाणि य । ते जिणित्तु जहानायं विहरामि अहं मुणी ! ॥ ३८ ॥ साहु गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो । अन्नो वि संसओ मज्झं तं मे कहसु गोयमा ! ॥ ३६ ॥ दीसन्ति वहवे लोए पासवद्धा सरीरिणो । मुक्कपासो लहुव्भूओ, कहं तं विहरसी ? मुणी ! ॥ ४० ॥ १८३ Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८४ ते पासे सव्वसो छित्ता निहन्तूण उवायओ । मुक्कपासो लहुоभूओ विहरामि अहं मुणी ! ॥। ४१ ।। उत्तरयणं पासा य इइ के बुत्ता ? केसी गोयममव्ववी । के सिमेवं बुवंतं तु गोयमो इणमव्ववी ॥ ४२ ॥ रागद्दोसादओ तिव्वा नेहपासा भयंकरा । ते छिन्दित्तु जहानायं विहरामि जहक्कमं ॥ ४३ ॥ साहु गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो । अन्नो वि संसओ मज्झं तं मे कहसु गोयमा ! ॥ ४४ ॥ अन्तोहिययसंभूया, लया चिट्ठइ गोयमा ! | फलेइ विसभक्खीणि सा उ उद्धरिया कहं ? ॥ ४५ ॥ तं लयं सव्वसो छित्ता उद्धरित्ता समूलियं । विहरामि जहानायं मुक्को मि विसभक्खणं ॥ ४६ ॥ लया य इइ का वृत्ता ? केसी के सिमेवं बुवंतं तु गोयमो गोयममव्ववी । इणसव्ववी ॥ ४७ ॥ भवतण्हा लया वृत्ता भीमा भीमफलोदया । तमुद्धरित्तु जहानायं विहरामि महामुनी ! ॥ ४८ ॥ साहु गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसओइ भो । अन्नो वि संसओ मज्झं तं मे कहसु गोयमा ! ॥ ४६ ॥ संपज्ज लिया घोरा, अग्गी चिट्ठइ गोयमा ! | जे हन्ति सरीरत्था कहं विज्झाविया तुमे ? ।। ५० ।। महामेहप्पसूयाओ गिज्झ वारि जलुत्तमं । सिचामि सययं देहं सित्ता नो व डहन्ति मे ।। ५१ ।। Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - तेविसइमं अज्झयणं १८५ अग्गी य इइ के वुत्ता केसी गोयममबवी । .. केसिमेवं । बुवंतं तु गोयमो इणमन्ववी ।। ५२ ।। कसाया अग्गिणो वुत्ता सुयसीलतवो जलं । सुयधाराभिहया सन्ता भिन्ना हुन डहन्ति मे ।। ५३ ।। साह गोयम ! पन्ना ते छिन्नो मे संसओ इमो। अन्नो वि संसओ मज्झं तं मे कहसु गोयमा ! ।। ५४ ।। अयं साहसिओ भीमो दुट्ठस्सो परिधावई । जंसि गोयम ! आरूढो, कहं तेण न हीरसि ? ।। ५५ ।। पधावन्तं निगिण्हामि सुयरस्सीसमाहियं । न मे गच्छइ उम्मग्गं मग्गं च पडिवज्जई ॥ ५६ ।। अस्से य इइ के वृत्ते ? केसी गोयममब्बवी । केसिमेवं बुवंतं तु गोयमो इणमब्बवी ॥ ५७ ।। मणो साहसिओ भीमो दुटुस्सो परिधावई । तं सम्मं निगिण्हामि धम्मसिक्खाए कन्थगं ।। ५८ ।। साहु गोयम ! पन्ना ते छिन्नो मे संसओ इमो!.। अन्नो वि संसओ मज्झं तं मे कहसु गोयमा ! ।। ५६ ।। कुप्पहा वहवो लोए जेहिं नासन्ति जंतवो। अद्धाणे कह वट्टन्ते तं न नस्ससि ? गोयमा ! ।। ६० ।। जे य मग्गेण गच्छन्ति जे य उम्मग्गपट्ठिया । ते सव्वे विइया मज्झं तो न नस्सामहं मुणी ।। ६१ ॥ मग्गे य इइ के वुत्ते ? केसी गोयममब्बवी। के सिमेवं बुवंतं तु गोयमो इणमब्बवी ।। ६२ ।। Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८६ उत्तरज्झयणं । कुप्पवयणपासण्डो सब्वे उम्मग्गपट्ठिया। सम्मग्गं तु जिणक्खायं एस मग्गे हि उत्तमे ।। ६३ ।। . साहु गोयम ! पन्ना ते छिन्नो मे संसओ इमो। अन्नो वि संसओ मज्झं तं मे कहसु गोयमा ! ॥ ६४ ॥ महाउदगवेगेणं वुज्झमाणाण पाणिणं । सरणं गई पइट्ठा य दीवं कं मन्नसी ? मुणी ! ।। ६५ ।। अत्यि एगो महादीवो वारिमज्झे महालओ।। महाउदगवेगस्स गई तत्थ न विज्जई ।। ६६ ।। दोवे य इइ के वृत्ते ? केसी गोयममव्ववी। केसिमेवं बुवंतं तु गोयमो इणमव्ववी ।। ६७ ।। जरामरणवेगेणं वुज्झमाणाण पाणिणं । धम्मो दीवो पइट्ठा य गई सरणमुत्तमं ।। ६८ ।। साहु गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो। अन्नो वि संसओ मज्झं, तं मे कहस गोयमा ! ॥६६॥ अण्णवंसि महोहंसि नावा विपरिधावई । जंसि गोयममारूढो कहं पारं गमिस्ससि ? ।। ७० ।। जा उ अस्साविणी नावा, __ न सा पारस्स गामिणी । जा निरस्साविणी नावा, सा उ पारस्स गामिणी ।। ७१ ॥ नावा य इइ का वुत्ता? केसी गोयममब्ववी। केसिमेवं बुवंतं तु गोयमो इणमन्ववी ।। ७२ ॥ Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेविसइमं अभयणं सरीरमाहु नाव त्ति जीवो वुच्चइ नाविओ । संसारो अण्णवो वत्तो जं तरन्ति महेसिणो ।। ७३ ।। साहु गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो । अन्नो वि संसओ मज्झं तं मे कहसु गोयमा ! ॥ ७४ ॥ अन्धयारे तमे घोरे चिट्ठन्ति पाणिणो वहू | को करिस्सइ उज्जोयं सव्वलोगंमि पाणिणं ? ।। ७५ ।। उग्गओ विमलो भाणू सव्वलोगप्पभंकरो । सो करिस्सर उज्जोयं सव्वलोगंमि पाणिणं ।। ७६ ।। भाणू य इइ के वुत्ते ? केसी गोयममब्बवी । के सिमेवं बुवंतं तु गोयमो इणमन्त्रवी ॥ ७७ ॥ उग्गओ खीणसंसारो सव्वन्नू जिणभक्खरो । सो करिस्सर उज्जयं सव्वलोयंमि पाणिणं ॥ ७८ ॥ साहु गोयम ! पन्ना ते छिन्नो मे संसओ इमो । अन्नो वि संसओ मज्झं तं मे कहसु गोयमा ! ॥ ७६ ॥ सारी माणसे दुक्खे वज्झमाणाण पाणिणं । खेमं सिवमणावाहं ठाणं किं मन्नसी मुणी ? ॥ ८० ॥ अस्थि एवं धुवं ठाणं लोगग्गंमि दुरारुहं | जत्थ नंत्थि जरा मच्चू वाहिणो वेयणा तहा ॥ ८१ ॥ ठाणे यइइ के वुत्ते ? केसी गोयममव्ववी । के सिमेवं बुवंतं तु गोयमो इणमव्ववी ॥ ८२ ॥ निव्वाणं ति अवाहं ति सिद्धी लोगग्गमेव य । खेवं सिवं अणावाहं जं चरन्ति महेसिणो ॥ ८३ ॥ १८७ Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८८ उत्तरायणं तं ठाणं सासयंवासं लोगग्गंमि दुरारुहं । जं संपत्ता न सोयन्ति भवोहन्तकरा मुणी ।। ८४ ॥ साह गोयम ! पन्ना ते छिन्नो मे संसओ इमो। नमो ते संसयाईय ! सबसुत्तमहोयही ! ॥ ८५ ॥ एवं तु संसए छिन्ने केसी घोरपरक्कमे । अभिवन्दित्ता सिरसा गोयमं तु महायसं ।।८६ ।। पंचमहन्वयधम्म पडिवज्जइ भावओ। पुरिमस्स पच्छिमंमी मग्गे तत्थ सुहावहे ।। ८७ ॥ केसीगोयमओ निच्चं तम्मि आसि समागमे । सुयसीलसमुक्करिसो महत्थऽत्थविणिच्छओ ।। ८८ ।। तोसिया परिसा सव्वा सम्मग्गं समुवटिया। संथुया ते पसीयन्तु भयवं केसिगोयमे ॥८६॥ -त्ति वेमि ।। Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चविसइमं अज्झयणं १८६ चउविसइमं अज्झयणं पवयण-माया अट्ठ पवयणमायाओ समिई गुत्ती तहेव य । पंचेव य समिईओ तओ गुत्तीओ आहिया ।। १ ।। इरियाभासेसणादाणे उच्चारे समिई इय। मणगुत्ती. वयगुत्ती कायगुत्ती य अट्ठमा ॥ २ ।। एयाओ अट्ट समिईओ समासेण. वियाहिया । दुवालसंगं जिणक्खायं, मायं, जत्थ उ पवयणं ।। ३ ।। आलम्वणेण कालेण मग्गेण जयणाइ य । चउकारणपरिसुद्धं संजए इरियं रिए ।। ४ ।। तत्थ आलंवणं नाणं दंसणं चरणं तहा। : ।। काले य दिवसे वुत्ते मग्गे उप्पहवज्जिए ॥ ५ ॥ दवओ खेत्तओ चेव कालओ भावओ तहा। जयणा चउविवहा वुत्ता तं मे कित्तयओ सुण ॥ ६ ॥ दव्वओ चक्खसा पेहे जुगमित्तं च खेत्तओ। कालओ जाव रीएज्जा उवउत्ते य भावओ ॥ ७ ॥ इन्दियत्थे विवज्जित्ता सज्झायं चेव पंचहा। तम्मुत्ती तप्पुरक्कारे उवउत्ते इरियं रिए ।। ८ ।। कोहे माणे य मायाए लोभे य उवउत्तया । हासे भए.. मोहरिए विगहासु तहेव च ॥६॥ Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८० उत्तरायणं एयाइं अट्ठ ठाणाई परिवज्जित्तु संजए । असावज्जं मियं काले भासं भासेज्ज पन्नवं ॥ १० ॥ गवेसणाए गहणे य परिभोगेसणा य जा । आहारो वहिसेज्जाए एए तिन्नि विसोहए ॥ ११ ॥ उग्गमुपायणं पढमे, वीए सोहेज्ज एसणं । परिभोयंमि चउक्कं विसोहेज्ज जयं जई ॥ १२ ॥ ओहोव होवग्गहियं भण्डगं दुविहं मुणी | गिरहन्तो निक्खिवन्तो य, परंजेज्ज इमं विहिं ॥ १३ ॥ चक्खुसा पडिले हित्ता पमज्जेज्ज जयं जई । आइए निक्खिवेज्जा वा दुहओ वि समिए सया । १४ ।। उच्चारं पासवणं, खेलं सिंघाणजल्लियं । आहारं उवह देहं अन्नं वावि तहाविहं ।। १५ ।। , अणावायमसंलोए अणावाए चेव होइ संलोए । आवायमसंलोए आवाए चेय संलोए ॥ १६ ॥ अणावायमसंलोए परस्सऽणुवधाइए । समे अज्झसिरे यावि अचिरकालकयंमि य ॥ १७ ॥ वित्थिष्णे दूरमोगाढे नासन्ने विलवज्जिए । तसपाणवीयरहिए उच्चाराईणि वोसिरे ॥ १८ ॥ एयाओ पंच समिईओ समासेण वियहिया । एत्तो य त गुत्तीओ वोच्छामि अणुपुव्वसो ॥ १६ ॥ सच्चा तहेव मोसा य सच्चमोसा तहेव य । चउत्थी असच्चमोसा मणगुत्ती चउव्विहा || २० || Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चविसइमं अज्झयणं १६१ संरम्भसमारम्भे आरम्भे य तहेव य । मणं पवत्तमाणं तु नियत्तेज्ज जयं जई ॥ २१ ॥ सच्चा तहेव मोसा य सच्चामोसा तहेव य । चउत्थी असच्चमोसा वइगुत्ती चउविवहा ॥ २२ ॥ संरम्भसमारम्भे आरम्भे य तहेव य । पयं पवत्तमाणं तु नियत्तेज्ज जयं जई ॥२३ ।। ठाणे निसीयणे चेव तहेव य तुयट्टणे । उल्लंघणपल्लंघणे इन्दियाण य जुजणे ॥ २४ ।। संरम्भसमारम्भे आरम्भम्मि . तहेव य । . .. कायं पवत्तमाणं तु नियत्तेज्ज जयं जई ।। २५ ॥ एयाओ पंच समिईओ चरणस्स य पवत्तणे । गुत्ती नियत्तणे वुत्ता असुभत्थेसु सव्वसो ॥ २६ ॥ एया पवयणमाया जे सम्म आयरे मुणी। से खिप्पं सव्वसंसारा विप्पमुच्चइ पण्डिए ॥ २७ ॥ --त्ति बेमि। Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ उत्तरज्झयणं पंचविसइमं अज्झयणं जन्नइज्ज माहणकुलसंभूओ आसि विप्पो महायसो। जायाई जमजन्नमि जयघोसे त्ति नामओ ॥ १ ॥ इन्दियग्गामनिग्गाही मग्गगामी महामुणी। गामाणुगामं रीयन्ते पत्ते वाणारसिं पुरि ।। २ ।। वाणारसीए वहिया उज्जाणंमि मणोरमे। फासुए सेज्जसंथारे तत्थ वासमुवागए ।। ३ ।। अह तेणेव कालेणं पूरीए तत्थ माहणे । विजयघोसे त्ति नामेण जन्नं जयइ वेयवी ।। ४ ।। अह से तत्थ अणगारे मासक्खमणपारणे। विजयघोसस्स जन्नंमि भिक्खमट्ठा उवटिए ॥ ५ ॥ समुवट्टियं तहिं सन्तं जायगो पडिसेहए। न हु दाहामि ते भिक्खं भिक्खू जायाहि अन्नओ ।। ६ । जे य वेयविऊ विप्पा, जन्नट्ठा य जे दिया। जोइसंगविऊ जे य, जे य धम्माण पारगा ।। ७ ।। जे समत्था समुद्धत्तु परं अप्पाणमेव य । तेसिं अन्नमिणं देयं भो भिक्खू सव्वकामियं ॥ ८ ॥ सो एवं तत्थ पडिसिद्धो जायगेण महामुणी। न वि रुढो न वि तुट्ठो उत्तमढगवेसओ ।। ६ ॥ Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचविसइमं अभयणं नन्नट्ठे पाणहेडं वान विं निव्वाणाय वा । तेसि विमोक्खणट्ठाए इमं १६३ नवि जाणसि वेयमुंहं नवि जन्नाण जं मुहं । नक्खत्ताण मुहं जं च जं च धम्माण वा मुहं ॥ ११ ॥ जे समत्था समुद्धत्तु परं अप्पाणमेव यं । न ते तुमं वियाणासि अह जाणासि तो भंण ।। १२ ।। वयणमव्ववी ॥ १० ॥ . तस्सऽक्खेवपमोदखं च अचयन्तो तहि दियो । सपरिसो पंजली होउं पुच्छई तं महामुणि ॥ १३ ॥ जे समत्था समुद्धत्तुं परं एयं मे संसयं सव्वं साहू वेयाणं च मुहं ब्रूहि बूहि जन्माण जं मुहं । नक्खत्ताण मुहं ब्रूहि ब्रूहि धम्माण वा मुहं ॥ १४ ॥ अग्निहोत्तमुहा वेया जन्नट्टी नक्खत्ताण मुहं चन्दो धम्माणं अप्पाणमेव य । कहय पुच्छिओ ।। १५ ।। वेयसां मुहं । कासवो मुहं ॥ १६ ॥ जहा चन्दं गहाईया चिट्ठन्ती वन्दमाणा नमसन्ता उत्तमं अजाणगा विज्जा माहणसंपया । जन्नवाई गूढां सज्झायतवसा भासच्छन्ना इवऽग्गिणो ।। १८ ।। जो लोए वम्भणो वृत्तो अग्गी का महिओ जहां । सया कुसल संदिट्ठ तं वयं वूम माहणं ॥ १६ ॥ पंजलीउडा । महारिणो || १७ || जो न सज्जइ आगन्तुं पव्वयन्तो न सोयई । • रमए अज्जवयणंमि तं वयं बूम माहणं ॥ २० ॥ Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ जायख्वं रागद्दोस भयाईयं उत्तरज्भयणं निद्धन्तमलपावगं । तं वयं बूम माहणं ॥ २१ ॥ जहा मट्ठ अवचियमंससोणियं । माहणं ।। २२ ।। तवस्सियं किसं दन्तं सुव्वयं पत्तनिव्वाणं तं वयं बूम थावरे | तसपाणे वियाणेत्ता संगहेण य जो न हिंसइ तिविहेणं तं वयं वूम माहणं ॥ २३ ॥ कोहा वा जइ वा हासा लोहा वा जइ वा भया । मुसं न वयई जो उ तं वयं वूम माहणं ॥ २४ ॥ चित्तमन्तमचित्तं वा अप्पं वा जइ न गेण्हइ अदत्तं जो तं वय बूम दिव्वमाणुसतेरिच्छं जो न सेवइ मणसा कायवक्केणं तं वयं बूम जहा पोमं जले जायं नोवलिप्पइ एवं अलित्तो कामेहिं तं वयं बूम अलोलुयं मुहाजीवी अणगारं असंसत्तं गिहत्थेसु तं वयं वूम जहित्ता पुव्वसंजोगं नाइसंगे जो न सज्जइ एएहि तं वयं वा वहुं । माहणं ॥ २५ ॥ य बूम मेहुणं । माहणं ॥ २६ ॥ वारिणा । माहणं ॥ २७ ॥ अकिंचणं । माहणं ॥ २८ ॥ बन्धवे । माहणं ॥ २६ ॥ पसुवन्धा सव्ववेया जट्टां च पावकम्मुणा । न तं तायन्ति दुस्सीलं कम्माणि वलवन्ति ह ॥ ३० ॥ न वि मुण्डिएण समणो न ओंकारेण वम्भणो । न सुणी रण्णवासेणं कुसचीरेण न तावसो ॥ ३१ ॥ Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचविसइमं अज्झयणं समयाए. . समणो होइ वम्भचेरेण वम्भणो। . नाणेण य मुणी होइ तवेणं होइ तावसो ।। ३२ ॥ कम्मुणा बम्भणो होइ कम्मुणा होइ खत्तिओ। वइस्सो कम्मुणा होइ सुद्दो हवइ कम्मुणा ॥ ३३ ॥ एए पाउकरे बुद्धे जेहिं होइ सिणायओ। सव्वकम्मविनिम्मुक्कं तं वयं बूम माहणं ॥ ३४ ॥ एवं गुणसमाउत्ता जे भवन्ति दिउत्तमा । ते समत्था उ उद्धत्तं परं अप्पाणमेव य ॥ ३५ ॥ एवं तु संसए छिन्ने विजयघोसे य माहणे । समुदाय लयं तं तु जयघोसं महामुणिं ।। ३६ ।। तुटू य विजयघोसे इणमुदाह कयंजली। . माहणत्तं जहाभूयं सुठ्ठ मे उवदंसियं ।। ३७ ।। तुम्भे जइया जनाणं तुब्भे वेयविऊ विऊ। जोइसंगविऊ तुम्भे तुन्भे धम्माण पारगा ॥ ३८ ॥ तुम्भे समत्था उद्धत्तु परं अप्पाणमेव य। तमणुग्गहं करेहाम्हं भिक्खणं भिक्खुउत्तमा ।। ३६ ॥ न कज्जं मज्झ भिक्खण, खिप्पं निक्खमसू दिया । मा भमिहिसि भयावट्टे घोरे संसारसागरे ॥ ४० ॥ उवलेवो होइ भोगेसु अभोगी नोवलिप्पई । भोगी भमइ संसारे अभोगी विप्पमुच्चई ।। ४१ ।। उल्लो सुक्को य दो छुढा गोलया मट्टियामया। दो वि आवडिया कुड्ड जो उल्लो सोतत्थ लग्गई। ४२॥ Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९६ उत्तरझयणं एवं लग्गन्ति दुम्मेहा जे नरा कामलालसा । विरत्ता उ न लग्गन्ति जहा सुक्को उ गोलओ ।। ४३ ।। एवं से विजयघोसे जयघोसस्स अन्तिए। अणगारस्स निवखन्तो धम्म सोच्चा अणुत्तरं ।। ४४ ॥ खवित्ता पुव्वकम्माइं संजमेण तवेण य। जयघोसविजयघोसा सिद्धि पत्ता अणुत्तरं ॥ ४५ ॥ -त्ति वेमि ॥ Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ adrasi अञ्झणं छवीसइमं अज्झयणं सामायारी पवनखामि पवनखामि सव्वदुक्खविमोक्खणि सामायारि जं चरित्ताण निग्गन्था तिष्णा संसारसागरं ॥ १ ॥ पढमा आवस्सिया नाम विइया य निसीहिया । आपुच्छणा य तइया चउत्थी पडिपुच्छणा ॥ २ ॥ १६७ पंचमा छन्दणा नाम इच्छाकारो य छट्टओ । सत्तमो मिच्छ्कारो य तहक्कारो य अट्टमो ॥ ३ ॥ अभुट्ठाणं नवमं दसमा एसा दसंगा साहूणं उवसंपदा | सामायारी पंवेइया ॥ ४ ॥ गमणे आवस्सियं कुज्जा ठाणे कुज्जा निसीहियं । आपुच्छणा सयंकरणे परकरणे पंडिपुच्छणा ॥ ५ ॥ अभुद्वाणं गुरुपूया दुपंच संजुत्ता भवं छन्दणा दव्वजाएणं इच्छाकारो य सारणे । मिच्छाकारो य निन्दाएं तहक्कारो य पडिस्सुए ॥ ६ ॥ अच्छणे सामायारी उवसंपदा । पवेइया ।। ७ ।। पुव्विल्लंमि चरब्भाए आइच्चमि समुट्ठिए । भण्डयं पडिले हित्ता वन्दित्ता या तओ गुरु ॥ ८ ॥ पुच्छेज्जा पंज लिउडो कि कायव्वं मए इहं ? | इच्छं निओइउं भन्ते ! वेयावच्चे व सज्झाए ।। ६ ।। Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंगुलं १९८ * उत्तरज्झयणं वेयावच्चे निउत्तेणं कायव्वं अगिलायओ। सज्झाए वा निउत्तेण सव्वदुक्खविमोवखणे ॥ १०॥ दिवसस्स चउरो भागे कुज्जा भिक्खू वियक्खणो। तओ उत्तरगुणे कुज्जा दिणभागेसु चउसु वि ॥ ११ ॥ पढमं पोरिसिं सज्झायं वीयं झाणं झियायई। तइयाए भिक्खायरियं पुणो चउत्थीए सज्झायं ।। १२॥ . आसाढे मासे दुपया पोसे मासे चउप्पया। चित्तासोएसु मासेसु तिपया हवइ पोरिसी ।। १३ ।। सत्तरत्तेणं पक्खेण य दुअंगुलं । वड्ढए हायए वावी मासेणं चउरंगुलं ।। १४ ॥ आसाढवलपक्खे भद्दवए कत्तिए य पोसे य। फग्गुणवइसाहेसु य नायव्वा अमोरत्ताओ ॥ १५ ॥ जेवामूले आसाढसावणे हिं अंगुलेहिं पडिलेहा । अर्हि वीयतियंमी तइए दस अट्टहिं चउत्थे ।। १६ ।। रत्ति पि चउरो भागे भिक्खू कुज्जा वियक्खणो। तओ उत्तरगुणे कुज्जा राइभाएसु च उसु वि ॥ १७ ।। पढम पोरिसिं सज्झायं बीयं झाणं झियायई। तइयाए निद्दमोवखं तु, चउत्थी भुज्जो वि सज्झायं ॥१८॥ जं नेइ जया रति नक्खत्तं तंमि नहचउभाए । संपत्ते विरमेज्जा सज्झायं पओसकालम्मि ॥१६॥ तम्मेव य नक्खत्ते गयणचउभागसावसेसंमि । वेरत्तियं पि कालं पडिले हित्ता मुणी कुज्जा ॥२०॥ Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छबीसइमं अज्झयमं पुबिल्लंमि चउभाए पडिले हित्ताण भण्डयं । गुरु वन्दित्तु सज्झायं कुज्जा दुक्खविमोक्खणं ।। २१ ।। पोरिसीए चउभाए वन्दित्ताण तओ गुरु । अपडिक्कमित्ता कालस्स भायणं पडिलेहए ।। २२ ।। मुहपोत्तियं पडिले हित्ता पडिलेहिज्ज गोच्छगं । गोच्छगलइयंगुलिओ वत्थाई पडिलेहए ॥ २३ ।।। उड्ढं थिरं अतुरियं पुव्वं वा वत्थमेव पडिलेहे। तो विइयं पप्फोडे तइयं च पुणो पमज्जेज्जा ॥ २४ ॥ अणच्चावियं अवलियं अणाणुवन्धि अमोसलिं चेव । छप्पुरिमा नव खोडा पाणीपाणविसोहणं ।। २५ ।। आरभडा सम्मदा वज्जेयव्वा य मोसली तइया। पप्फोडणा चउत्थी विक्खित्ता वेइया छट्ठी ॥ २६ ॥ पसिढिलपलम्बलोला एगामोसा अणेगरूवधुणा । कुणइ पमाणि पमायं संकिएगणणोवगं कुज्जा ।। २७ ।। अणूणाइरित्तपडिलेहा अविवच्चासा तहेव य । पढमं पयं पसत्थं सेसाणि उ अप्पसत्थाइं ॥ २८ ॥ पडिलेहणं कुणन्तो मिहोकहं कुणइ जणवयकहं वा।। देइ व पच्चक्खाणं वाएइ सयं पडिच्छइ वा ॥२६॥ पुढवीआउक्काए । तेऊवाऊवणस्सइतसाणं। .. पडिलेहणापमत्तो छण्हं पि विराहओ . होइ ।। ३० ।। पुढवीआउक्काए तेऊवाऊवणस्सइतसाणं । पडिलेहणआउत्तो छण्हं आराहओ होइ ॥ ३१ ।। Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०० उत्तरज्झयणं तइयाए पोरिसीए भत्तं पाणं गवेसए । छण्हं अन्नयरागम्मि कारणमि समुट्ठिए. ॥ ३२॥ वेयणवेयावच्चे इरियट्ठाए य संजमट्ठाए । तह पाणवत्तियाए छट्ठ पुण धम्मचिन्ताए ।। ३३ ।। निग्गन्थो धिइमन्तो निग्गन्थी वि न करेज्ज छहिं चेव । ठाणेहि उ इमेहि अणइक्कमणा य से होइ ॥ ३४ ॥ आयंके उवसग्गे तितिक्खया वम्भचेरगुत्तीसु । पाणिदया तवहेउं सरीरवोच्छेयणढाए ।। ३५ ।। अवसेसं भण्डगं गिज्झा चक्खुसा पडिलेहए। परमद्धजोयणाओ विहारं विहरए मुणी ॥ ३६ ।। चउत्थीए पोरिसीए निक्खिवित्ताण भायणं । सज्झायं तओ. कुज्जा, सव्वभावविभावणं ॥ ३७॥ पोरिसीए चउब्भाए वन्दित्ताण तओ गुरु। पडिक्कमित्ता कालस्स सेज्ज तु पडिलेहए ।। ३८ ।। पासवणुच्चारभूमि च पडिले हिज्ज जयं जई। काउस्सग्गं तओ कुज्जा सव्वदुक्खविमोक्खणं ।। ३६ ।। देसियं च अईयारं चिन्तिज्ज अणपुव्वसो । नाणे दंसणे चेव चरित्तम्मि तहेव य ॥ ४० ॥ पारियकाउस्सग्गो वन्दित्ताण तओ गुरु । देसियं तु अईयारं आलोएज्ज जहक्कम ॥४१॥ पडिक्कमित्तु निस्सल्लो वन्दित्ताण तो गुरु । काउस्सग्गं तओ कुज्जा सव्वदुक्खविमोक्खणं ॥ ४२ ॥ Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - छबीसइमं अज्ञयणं. . २०१ पारियकागस्सग्गो वन्दित्ताण तओ गुरु।। थुइमंगलं च काऊण कालं संपडिलेहए ।। ४३ ।। पढम पोरिसिं सज्झायं वीयं झाणं झियायई । तइयाए. निद्दमोक्खं तु सज्झायं तु चउत्थिए । ४४ ।। पोरिसीए चउत्थीए कालं तु पडिलेहिया । सज्झायं तओ कुज्जा अवोहेन्तो असंजए ॥ ४५ ।। पोरिसीए चउभाए वन्दिऊण तओ गुरु । पडिक्कमित्तु कालस्स कालं तु पडिलेहए ।। ४६ ।। आगए कायवोस्सगे सव्वदुक्खविमोक्खणे। काउस्सग्गं तओ कुज्जा सव्वदुक्ख विमोक्खणं ।। ४७ ।। राइयं च अईयारं चिन्तिज्ज . अणुपुव्वसो। नाणंमि दंसणंमी य चरित्तमि तवंमि य ।। ४८ ।। पारियकाउस्सग्गो . वन्दित्ताण तओ गुरु। राइयं तु अईयारं आलोएज्ज जहक्कम ॥ ४६॥ पडिक्कमित्तु निस्सल्लो वन्दित्ताण तओ गुरु । काउस्सग्गं तओ कुज्जा सव्वदुक्खविमोक्खणं ।। ५० ।। कि तवं पडिवज्जामि एवं तत्थ विचिन्तए। काउस्सग्गं तु पारित्ता वन्दई य तओ गुरु ॥५१॥ पारियकाउस्सग्गो वन्दित्ताण तओं गुरु। तवं संपडिवज्जेत्ता करेज्ज सिद्धाण संथवं ।। ५२ ॥ एसा सामायारी समासेण वियाहिया। जं चरित्ता वहू जीवा तिण्णा संसारसागरं ।। ५३ ।। -त्ति बेमि ।। ... Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०२ उत्तरज्झयणं सत्तावीसइमं अज्झयणं खलुंकिज्ज थेरे गणहरे गग्गे मुणी आसि विसारए । आइण्णे गणिभावम्मि समाहिं पडिसंधए ॥१॥ वहणे वहमाणस्स कन्तारं अइवत्तई। जोए वहमाणस्स संसारो अइवत्तई ।। २॥ खलुंके जो उ जोएइ विहम्माणो किलिस्सई। असमाहिं च वेएइ तोत्तओ य से भज्जई ।। ३ ।। एगं डसइ पुच्छंमि एगं विन्धइभिक्खणं । एगो भंजइ समिलं एगो उप्पहपट्ठिओ ।। ४ ।। एगो पडइ पासेणं निवेसइ निवज्जई। उक्कुद्दइ उप्फिडई सढे वालगवी वए ।। ५ ।। माई मुद्धेण पडइ कुद्धे गच्छइ पडिप्पहं। मयलक्खेण चिट्ठई वेगेण य पहावई ।। ६ ।। छिन्नाले छिन्दइ सेल्लि दुहन्तो भंजए जुगं । से वि य सुस्सुयाइत्ता उज्जाहित्ता पलायए ।।७।। खलंका जारिसा जोज्जा दुस्सीसा वि हु तारिसा। जोइया धम्मजाणम्मि भज्जन्ति धिइदुबला ॥ ८ ॥ इड्ढीगारविए एगे एगेऽत्थ रसगारवे । सायागारविए एगे एगे सुचिरकोहणे ॥६॥ Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तावीसइमं अज्झयणं २०३ भिक्खालसिए एगे एगे ओमाणभीरुए थी । एगं च अणुसासम्मी हेऊहिं कारणेहि य ॥ १० ॥ सो वि अन्तरभासिल्लो दोसमेव पकुव्वई। आयरियाणं तं वयणं पडिकूलेइ अभिक्खणं ।। ११ ।। न सा ममं वियाणाइ न वि सा मज्झ दाहिई। . निग्गया होहिई मन्ने साहू अन्नोऽत्थ वच्चउ ।। १२ ।। पेसिया पलिउंचन्ति ते परियन्ति समन्तओ। रायवेट्टि व मन्नन्ता करेन्ति भिउडि मुहे ।। १३ ।। वाइया संगहिया चेव भत्तपाणे य पोसिया। जायपक्खा जहा हंसा पक्कमन्ति दिसोदिसि ।। १४ ।। अह सारही विचिन्तेइ खलंकेहिं समागओ। कि मज्झ दुट्ठसीसेहिं अप्पा मे अवसीयई ॥ १५ ॥ जारिसा मम सीसाउ तारिसा गलिगदहा । गलिगद्दहे चइत्ताणं दढं परिगिण्हइ तवं ॥ १६ ।। मिउ मद्दवसंपन्ने गम्भीरे सुसमाहिए। विहरइ महिं महप्पा सीलभूएण अप्पणा ।। १७ ।। . . . त्ति बेमि ।। Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०४ उत्तरज्झयणं अट्ठावीसइमं अज्झयणं मोक्खमग्गगई मोक्खमग्गगई तच्चं सुणेह जिणभासियं । चउकारणसंजुत्तं नाणदंसणलक्खणं ॥१॥ नाणं च दंसणं चेव चरित्तं च तवो तहा। एस मग्गो त्ति पन्नत्तो जिणेहिं वरदंसिहिं ।। २ ॥ नाणं च दंसणं चेव चरित्तं च तवो तहा । एयंमरगमणुप्पत्ता जीवा गच्छन्ति सोग्गइं ॥३॥ तत्थ पंचविहं नाणं सुयं आभिनिवोहियं । ओहीनाणं तु तइयं मणनाणं च केवलं ॥ ४ ॥ एयं पंचविहं नाणं दवाण य गुणाण य । पज्जवाणं च सव्वेसिं नाणं नाणीहि देसियं ।। ५ ।। गुणाणमासओ दव्वं एगदव्वस्सिया गुणा । लक्खणं पज्जवाणं तु उभओ अस्सिया भवे ।। ६ ।। धम्मो अहम्मो आगासं कालो पुग्गलजन्तवो। एस लोगो त्ति पन्नत्तो जिणेहिं वरदंसिहिं ।। ७ ।। धम्मो अहम्मो आगासं दव्वं इक्किक्कमाहियं । अणन्ताणि य दव्वाणि कालो पुग्गलजन्तवो ॥ ८ ॥ गइलक्खणो उ धम्मो अहम्मो ठाणलक्खणो। भायणं सव्वदव्वाणं नहं ओगाहलक्खणं ।। ६॥ Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठावीसइमं अज्झयणं वत्तणालक्खणो कालो जीवो उवओगलक्खणो । नाणेणं दंसणेणं च सुहेण य २०५ दुहेण य ॥ १० ॥ तवो तहा । नाणं च दंसणं चेव चरितं च वीरियं उवओगो य एयं जीवस्स लक्खणं ।। ११ ।। सद्दंन्धयारउज्जोओ पहा छायातवे इ वां । वण्णरसगन्धफासा पुग्गलाणं तु लक्खणं ॥ १२ ॥ एगत्तं च पुहत्तं च संखा संठाणमेव य । संजोगा य विभागा य पज्जवाण तु लक्खणं ॥ १३ ॥ जीवाजीवाय वन्धो य, पुण्णं पावासवो तहा । संवरो निज्जरा मोक्खो सन्तेए तहिया नव ॥ १४ ॥ तहियाणं तु भावाणं सम्भावे उवएसणं । भावेणं सद्दहन्तस्स सम्मत्तं तं वियाहियं ॥ १५ ॥ निसग्गुवएसरुई आणारुई सुत्तवीयरुइमेव । अभिगमवित्थाररुई किरियासंखेव धम्म रुई ॥ १६ ॥ । भूयत्थेणाहिगया जीवाजीवा य पुण्णपावं च । संहसम्मुइयासवसंवरो य रोएइ उ निसग्गो ॥ १७ ॥ जो जिदिट्ठ भावे चउव्विहे सद्दहाइ सयमेव । एमेव नन्नत्तिय निसग्गरुइ त्ति नायव्वो ॥ १८ ॥ एए चेव उ भाव उवट्ठ े . जो परेण सद्दहई | छउमत्थेण जिणेण व उवएसरुइ त्ति नायव्वो ॥ १६ ॥ रागो दोसो मोहो अन्नाणं जस्स अवगयं होई । आणाए रीयंतो सो खलु आणारुई नाम ।। २० ।। Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०६ उत्तरज्झयणं जो सुत्तमहिज्जन्तो सुएण ओगाहई उ सम्मत्तं । अंगेण वाहिरेण व सो सुत्तरुइ त्ति नायव्वो ॥ २१ ॥ एगेण अणेगाइं पयाइं जो पसरई उ सम्मत्तं । उदए व्व तेल्लविन्दु, सो वीयरुइ त्ति नायव्वो ॥ २२॥ सो होइ अभिगमरुई सुयनाणं जेण अत्थओ दिट्ठा। एक्कारस अंगाइं पइण्णगं दिदिवाओ य ॥ २३ ॥ दव्वाण सव्वभावा सव्वपमाणेहि जस्स उवलद्धा । सव्वाहि नयविहीहि य वित्थाररुइ त्ति नायव्वो ॥ २४ ॥ दंसणनाणचरित्ते तवविणए सच्चसमिइगुत्तीस। जो किरियाभावरुई सो खलु किरियारुई नाम ।। २५ ।। अणभिग्गहियकुदिट्टी संखेवरुइ त्ति होइ नायव्वो। अविसारओ पवयणे अणभिग्गहिओ य सेसेसु ॥ २६ ॥ जो अस्थिकायधम्म सयधम्म खलु चरित्तधम्म च । सद्दहइ जिणाभिहियं सो धम्मरुइ त्ति नायव्वो ॥ २७ ॥ परमत्थसंथवो वा सुदिपरमत्थसेवणा वा वि। वावन्नकुदंसणवज्जणा य सम्मत्तसद्दहणा ॥ २८ ॥ नत्थि चरित्तं सम्मत्तविहूणं दंसणे उ भइयव्वं । सम्मत्तचरित्ताइ जुगवं पुत्वं व सम्मत्तं ।। २६ ॥ नादंसणिस्स नाणं नाणेण विणा न हुन्ति चरणगुणा । अगुणिस्स नत्थि मोक्खो नत्थि अमोक्खस्स निव्वाणं ।। ३० ।। निस्संकिय निक्कंखिय निव्वितिगिच्छा अमूढदिट्ठी य । उववूह थिरीकरणे वच्छल्ल पभावणे अट्ठ ॥३१॥ Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठावीसइमं अज्झयणं सामाइयत्य पढमं छेओवट्ठावणं भवे वीयं । परिहारविसुद्धीयं सुहुमं तह संपरायं च ॥ ३२ ॥ अकसायं अहक्खायं छउमत्थस्स जिणस्स वा । एयं चयरित्तकरं चारितं होइ तवो य दुविहो वृत्तो वाहिरव्भन्तरो वाहिरो छव्विहो वृत्तो एवमभन्तरो नाणेण जाणई भावे चरितेण निगिण्हाइ दंसणेण तवेण खवेत्ता पुव्वकम्माई संजमेण सव्वदुक्ख पहीणट्ठा पक्कमन्ति २०७ आहियं ॥ ३३ ॥ तहा । तवो ॥ ३४ ॥ य | सद्दहे । परिसुज्झई ॥ ३५ ॥ य । तवेण महेसिणो ॥ ३६ ॥ —त्ति बेमि ॥ Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०८ .. उत्तरज्झयणं एगूणतीस इमं अज्झयणं सम्मत्तपरक्कसे सू० १-सुयं मे आउसं ! तेणं भगवया एवमक्खायं-इह खलु सम्मत्तपरक्कमे 'नाम अज्झयणं समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइए जं सम्म सहहित्ता पत्तियाइत्ता रोयइत्ता फासइत्ता पाल इत्ता तीरइत्ता कि इत्ता सोहइत्ता आराहइत्ता आणाए अणुपाल इत्ता वहवे जीवा सिज्झन्ति वुज्झन्ति मुच्चन्ति परिनिव्वायन्ति सव्वदुक्खाणमन्तं करेन्ति । तस्स णं अयमट्ठ एवमाहिज्जइ तं जह-संवेगे १ निव्वेए २ धम्मसद्धा ३ गुरुसाहम्मिसुस्सूसणया ४ आलोयणया ५ निन्दणया ६ गरहणया ७ सामाइए ८ चउव्वीसत्थए ६ वन्दणए १० पडिक्कमणे ११ काउस्सग्गे १२ पच्चक्खाणे १३ थवथुइमंगले १४ कालपडिलेहणया १५ पायच्छित्तकरणे १६ खमावणया १७ सज्झाए १८ वायणया १६ पडिपुच्छणया २० परियट्टणया २१ अणुप्पेहा २२ धम्मकहा २३ सुयस्स आराहणया २४ एगग्गमणसंनिवेसणया २५ संजमे २६ तवे २७ वोदाणे २८ सुहसाए २६ अप्पडिबद्धया ३० विवित्तसयणासणसेवणया ३१ विणियट्टणया ३२ संभोगपच्चक्खाणे ३३ उवहिपच्चक्खाणे ३४ आहारपच्चक्खाणे ३५ कसायपच्चक्खाणे ३६ जोगपच्चक्खाणे ३७ सरीरपच्चक्खाणे ३८ सहायपच्चक्खाणे ३६ भत्तपच्चक्खाणे ४० सम्भावपच्चक्खाणे ४१ पडिरूवया ४२ वेयावच्चे ४३ सव्वगुणसंपण्णया ४४ वीयरागया ४५ खन्ती ४६ मुत्ती ४७ अज्जवे ४८ मद्दवे ४६ भावसच्चे ५० करणसच्चे ५१ जोगसच्चे Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगूणतीसइमं अज्झयणं २०६ ५२ मणगुत्तया ५३ वयगुत्तया ५४ कायगुत्तया ५५ मणसमाधारणया । ५६ वयसमाधारणया ५७ कायसमाधारणया ५८ नाणसंपन्नया ५६ सणसंपन्नया ६० चरित्तसंपन्नया ६१ सोइन्दियनिग्गहे ६२ चक्खिन्दियनिग्गहे ६३ घाणिन्दियनिग्गहे ६४ जिभिन्दियनिग्गहे ६५ फासिन्दियनिग्ग़हे ६६ कोहविजए ६७ माणविजए ६८ माया विजए ६६ लोहविजए ७० पेज्जदोसमिच्छादंसणविजए ७१ सेलेसी ७२ अकम्मया ७३ ।। सू० २–संवेगेणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ.? . . . . संवेगेणं अणत्तरं धम्मसद्धं जणयइ । अणत्तराए धम्मसद्धाए संवेगं हव्वमागच्छइ। अणन्ताणुवन्धिकोहमाणमायालोभे खवेइ । नवं च कम्मं न वन्धइ । तप्पच्चइयं च णं मिच्छत्तविसोहिं काऊण दंसणाराहए भवइ । दसणविसोहीए य णं विसुद्धाए अत्थेगइए तेणेव भवग्गहणणं सिज्झइ । सोहीए य णं विसुद्धाए तच्चं पुणो भवग्गहणं नाइक्कमइ ।। सू० ३-निव्वेएणं भन्ते ! जीवे कि जणयइ ? निव्वेएणं दिव्वमाणुसतेरिच्छिएसु कामभोगेसु निव्वेयं हव्वमागच्छइ । सव्वविसएसु विरज्जइ सव्वविसएसु विरज्जमाणे आरम्भपरिच्चायं करेइ। आरम्भपरिच्चायं करेमाणे संसारमग्गं वोच्छिन्दइ सिद्धिमग्गे पडिवन्ने य भवइ ।। सू० ४-धम्मसद्धाए णं भन्ते ! जीवे कि जणयइ ? धम्मसद्धाए णं सायासोक्सु रज्जमाणे विरज्जइ।। अगारधम्मं च णं चयइ अणगारेए णं जीवे सारीरमाणसाणं दुक्खाणं छेयणभेयणसंजोगाईणं वोच्छेयं करेइ अव्वाबाहं च सुहं निव्वत्तेइ ।। सू० ५–गुरुसाहम्मियसुस्सूसणयाए णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? गुरुसाहम्मियसुस्सूसणयाए णं विणयपडिवत्ति जणयइ। विणयपडिवन्ने य णं जीवे अणच्चासायणसीले नेरइयतिरिक्ख Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१० उत्तरज्झयणं जोणियमणस्सदेवदोग्गईओ निरुम्भइ। वण्णसंजलणभत्तिवहुमाणयाए मणस्सदेवसोग्गईओ निवन्धइ सिद्धि सोग्गइंच विसोहेइ। पसत्थाइंच णं विणयमूलाई सबकज्जाई सोहेइ। अन्ने य वहवे जीवे विणइत्ता भवई॥ सू०६-आलोयणाए णं भन्ते ! जीवे कि जणयइ ? आलोयणाए णं मायानियाणमिच्छादसणसल्लाणं मोवखमग्गविग्घाणं अणन्तसंसारवद्धणाणं उद्धरणं करेइ । उज्जुभावं च जणयइ । उज्जुभावपडिवन्ने य णं जीवे अमाई इत्थीवेयनपुंसगवेयं च न वन्धइ । पुव्ववद्धं च णं निज्जरेइ ॥ सू०७-निन्दणयाए णं भन्ते ! जीवे कि जणयइ ? निन्दणयाए णं पच्छाणुतावं जणयइ। पच्छाणुतावेणं विरज्जमाणे करणगुणसेटिं पडिवज्जइ । करणगुणसेटिं पडिवन्ने य णं अणगारे मोहणिज्ज कम्मं उग्धाएइ ॥ सू० ८-गरहणयाए णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? गरहणयाए णं अपुरक्कारं जणयइ । अपुरककारगए णं जीवे अप्पसत्थेहितो जोगेहितो नियत्तेइ पसत्थजोगपडिवन्ने य णं अणगारे अणन्तघाइपज्जवे खवेइ ।। सू०६-सामाइएणं भन्ते ! जीवे कि जणयइ ? सामाइएणं सावज्जजोगविरई जणयइ ।। सू० १०-चउव्वीसत्थएणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? चउव्वीसत्थएणं दंसणविसोहिं जणयइ ।। सू० ११–वन्दणएणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? वन्दणएणं नीयागोयं कम्म खवेइ। उच्चागोयं निवन्धइ। सोहग्गं च णं सप्पडिहयं आणाफलं निव्वत्तेइ दाहिणभावं च णं जणयइ ।। Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगूणतीसइमं अज्झयणं २११ सू० १२-पडिक्कमणेणं भन्ते ! जीवे कि जणयइ ? .पडिक्कमणेणं वयछिद्दाई पिहेइ । पिहियवयछिद्दे पुण जीवे निरुद्धासवे असवलचरित्ते अटुसु पवयणमायासु उवउत्ते अपुहत्ते सुप्पणिहिए विहरइ। .. सू० १३–काउस्सग्गेणं भन्ते ! जीवे कि जणयइ ? काउस्सग्गेणं तीयपडुप्पन्नं पायच्छित्तं विसोहे।। विसुद्धपायच्छित्ते य जीवे निव्वुयहियए ओहरियभारो व्व भारवहे पसत्थज्झाणोवगए सुहंसुहेणं विहरइ। सू०१४-पच्चक्खाणेणं भन्ते ! जीवे कि जणयइ ? पच्चक्खाणेणं आसवदाराई निरुम्भइ । सू० १५-थवथुइमंगलेणं भन्ते ! जीवे कि जणयइ ? थवथुइमंगलेणं नाणदंसणचरित्तवोहिलाभं जणयइ । नाणदंसणचरित्तबोहिलाभसंपन्ने य णं जीवे अन्तकिरियं कप्पविमाणोववत्तिगं आराहणं आराहेइ। सू० १६-कालपडिलेणयाए णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? कालपडिलेहणयाए णं नाणावरणिज्ज कम्म खवेइ । सू० १७–पायच्छित्तकरणेणं भन्ते ! जीवे कि जणयइ ? ... पायच्छित्तकरणेणं पावकम्मविसोहिं जणयइ निरइयारे यावि भवइ । सम्मं च णं पायच्छित्तं पडिवज्जमाणे मग्गं च मग्गफलं च विसोहेइ आयारं च आयारफलं च आराहेइ । सू० १८-खमावणयाए णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? खमावणयाए णं पल्हायणभा जणयइ । पल्हायणभावमुवगए य सव्वपाणभूयजीवसत्तेसु मित्तीभावमुप्पाएइ। मित्तीभावमुवगए यावि जीवे भावविसोहि काऊण निभए भव। Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१२ उत्तरज्झयणं सू०१६-सज्झाएण भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? सज्झाएण नाणावरणिज्ज कम्म खवेइ । सू० २०-वायणाए णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? वायणाए णं निज्जरं जणयइ। सुयस्स य अणासायणाए वट्टए । सुयस्स अणासायणाए वट्टमाणे तित्थधम्म अवलम्वइ । तित्थधम्म अवलम्वमाणे महानिज्जरे महापज्जवसाणे भवइ। सू० २१-पडिपुच्छणयाए णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? पडिपुच्छणयाए णं सुत्तत्थतंदुभयाई विसोहेइ । कंखामोहणिज्जं कम्मं वोच्छिन्दइ। सू० २२-परियट्टणाए णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? परियट्टणाए णं वंजणाई जणयइ वंजणद्धिं च उप्पाएइ । सू० २३-अणुप्पेहाए णं भन्ते ! जीवे कि जणयइ ? अणुप्पेहाए णं आउयवज्जाओ सत्तकम्मप्पगडीओ धणियवन्धणवद्धाओ सिढिलवन्धणवद्धाओ पकरेइ । दोहकालट्ठिइयाओ हस्सकालट्ठिइयाओ पकरेइ। तिव्वाणुभावाओ मन्दाणुभावाओ पकरेइ वहुपएसग्गाओ अप्पपएसग्गाओ पकरेइ । आउयं च णं कम्मं सिय वन्धइ सिय नो वन्धइ । असायावेयणिज्जं च णं कम्मं नो भुज्जो उवचिणाइ अणाइयं च णं अणवदग्गं दीहमद्ध चाउरन्तं संसारकन्तारं खिप्पामेव वीइवयइ। सू० २४–धम्मकहाए णं भन्ते ! जीवे कि जणयइ ? धम्मकहाए णं निज्जरं जणयइ । धम्मकहाए णं पवयणं पभावेइ । पवयणपभावेणं जीवे आगमिसस्स भत्ताए कम्मं निवन्धइ। Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१३ एगणतोसइमं अज्झयणं . सू० २५–सुयस्स आराहणयाए णं भन्ते ! जोवे किं जणयइ ? - सुयस्स आराहणयाए णं अन्नाणं खवेइ न य संकिलिस्सइ। सू० २६-एगग्गमणसंनिवेसणयाए णं भन्ते ! जीवे कि जणयइ ? . एगग्गमणसंनिवेसणयाए णं चित्तनिरोहं करेइ। . सू० २७--संजमेणं भन्ते ! जीवे कि जणयइ ? . संजमेणं अणण्हयत्तं जणयइ।। सू० २८-तवेणं भन्ते ! जीवे कि जणयइ ? . . तवेणं वोदाणं जणयइ। सू० २६-वोदाणेणं भन्ते ! जीवे कि जणयइ ? वोदाणेणं अकिरियं जणयइ । अकिरियाए भवित्ता तओ पच्छा सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिनिव्वाएइ सव्वदुक्खाणमन्तं करेइ। सू० ३०-सुहसाएणं भन्ते ! जीवे कि जणयइ ? _सुहसाएणं अणुस्सुयत्तं जणयइ । अणुस्सुयाए णं जीवे अणुकम्पए अणुव्भडे विगयसोगे चरित्तमोहणिज्ज कम्म खवेइ। सू० ३१-अप्पडिवद्धयाए णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? अप्पडिवद्धयाए णं निस्संगत्तं जणयइ । निस्संगत्तेणं जीवे एगे एगग्गचित्ते दिया य राओ य असज्जमाणे अप्पडिवद्ध यावि विहरइ। सू० ३२-विवित्तसयणासणयाए णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? विवित्तसयणासणयाए णं चरित्तगुत्ति जणयइ । - चरित्तगुत्ते य णं जीवे विवित्ताहारे दढचरित्ते एगन्तरए मोक्ख भावपडिवन्ने अट्ठविहकम्मगठि निज्जरेइ। . Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तरभयणं २१४ सू० ३३ - विणियट्टणयाए णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? विणियट्टणयाए ण पावकम्माणं अकरणयाए अभुट्टे इ । पुव्ववद्धाण य निज्जरणयाए तं नियत्तेइ तओ पच्छा चाउरन्तं संसारकन्तारं वीइवयइ | सू० ३४ - संभोगपच्चक्खाणं भन्ते ! जीवे कि जणयइ ? संभोगपच्चक्खाणेणं आलम्वणाई खवेइ | निरालम्वणस्स य आययट्टिया जोगा भवन्ति । सएणं लाभेणं संतुस्सइ परलाभं नो आसाएइ नो तक्केइ नो पीहेइ नो पत्थेड़ नो अभिलसइ । परलाभं अणासायमाणे अतक्के माणे अपीहेमाणे अपत्येमाणे अणभिलसमाणे दुच्चं सुहसेज्जं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ | सू० ३५ – उवहिपच्चक्खाणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? उवहिपच्चक्खाणेणं अपलिमन्थं जणयइ । निरुवहिए णं जीवे निक्कंखे उवहिमन्तरेण य न संकि लिस्साई । सू० ३६—आहारपच्चक्खाणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? आहारपच्चक्खाणेणं जीवियासंसप्पओगं वोच्छिन्दइ । जीवियासंसप्पओगं वोच्छिन्दित्ता जीवे आहारमन्तरेणं न संकि लिस्सइ | जणयइ । सू० ३७ - कसायपच्चक्खाणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? कसायपक्चक्खाणेणं वीयरागभावं वीयरागभावपडिवन्ने वि य णं जीवे समसुहदुक्खे भवइ । सू० ३८ - जोगपच्चक्खाणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? जोगपच्चक्खाणेणं अजोगत्तं जणयइ । अजोगी णं जीवे नवं कम्मं न वन्धइ पुव्ववद्धं निज्जरेइ | Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगूणतीसइमं अज्झयणं २१५ सू० ३६-सरीरपच्चक्खाणेणं भन्ते ! जीवे कि जणयइ ? - सरीरपच्चक्खाणेणं सिद्धाइसयगुणत्तणं निव्वत्तेइ । सिद्धाइसयगुणसंपन्ने य णं जीवे लोगग्गमुवगए परमसुही भंवइ । सू० ४०-सहायपच्चक्खाणेणं भन्ते ! जोवे किं जणयइ ? सहायपच्चक्खाणेणं एगीभावं जणयइ । एगोभावभूए वि य णं जीवे एगग्गं भावेमाणे अप्पसद्दे अप्पझंझे अप्पकलहे अप्पकसाए अप्पतुमंतुमे संजमबहुले संवरवहुले समाहिए यावि भव। सू० ४१ –भत्तपच्चक्खाणेणं भन्ते । जीवे कि जणयइ ? भत्तपच्चक्खाणेणं अणेगाई भवसयाई निरुम्भइ । सू० ४२-संभावपच्चक्खाणेणं भन्ते ! जोवे कि जणयइ ! सम्भावपच्चक्खाणेणं अनियदि जणयइ। अनियट्टिपडिवन्ने य अणगारे चत्तारि केवलिकम्मंसे खवेइ तं जहा वेयणिज्ज आउयं नामं गोयं । तओ पच्छा सिज्झइ, बुज्झइ, मुच्चइ, परिनिवाएइ सव्वदुक्खाणमन्तं करेइ ।। सू० ४३-पडिरूवयाए णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? पडिरूवयाए णं लाघवियं जणयइ। लहुभूए णं जोवे अप्पमत्ते पागडलिंगे पसत्थलिंगे विसुद्धसम्मत्ते सत्तसमिइसमत्ते सव्वपाणभूयजीवसत्तेसु वीससणिज्जरूवे अप्पडिलेहे जिइन्दिए विउलतवसमिइसमन्नागए यावि भवइ । सू० ४४ -वेयावच्चेणं भन्ते ! जीवे कि जणयइ ? ...... वेयावच्चेणं तित्थयरनामगोत्तं कम्मं निवन्धइ ।। सू० ४५-सव्वगुणसंपन्नयाए णं भन्ते ! जोवे कि जणयइ ? सव्वगुणसंपन्नयाए ‘णं. अपुणरावत्ति जणयइ। अपुणरावत्ति पत्तए य णं जीवे सारीरमाणसाणं दुक्खाणं नो भागी भवइ । Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१६ उत्तरायणं ? सू० ४६ - वीयरागयाए णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ वीरागयाएणं नेहाणुबन्धणाणि तण्हाणुवन्धणाणि य वोच्छिन्दइ मणुन्नेसु सद्दफरिसर सरूवगन्धेसु चेव विरज्जइ । सू० ४७ - खन्तीए णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? खन्तीए णं परीसहे जिणइ । सू० ४८ - मुत्तीए णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? मुत्तीए णं अकिंचणं जणयइ । अकिंचणे य जीवे अत्थलोलाणं अपत्थणिज्जो भवइ || सू० ४८ - अज्जवयाए णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? अज्जवयाए णं काउज्जुययं भावुज्जुययं भासुज्जुययं अविसंवायणं जणयइ | अविसंवायणसंपन्नयाए णं जीवे धम्मस्स आराहए भवइ । सू० ५०- मद्दवयाए णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? मद्द्वयाए णं अणुस्सियत्तं जणयइ । अणुस्सियत्ते णं जीवे मिउमद्दवसंपन्ने अट्ठ मयट्ठाणाई निट्टवेइ | सू० ५१–भावसच्चेणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? भावसच्चेणं भावविसोहि जणयइ । भावविसोहीए वट्टमाणे जीवे अरहन्तपन्नत्तस्स धम्मस्स आराहणयाए अभुट्टे इ । अरहन्तपन्नत्तस्स धम्मस्स आराहणयाए अब्भुट्टित्ता परलोगधम्मस्स आहए हवइ । सू० ५२ - करणसच्चेणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? करणसच्चेणं करणसत्ति जणयइ । वट्टमाणे जीवे जहावाई तहाकारी यावि भवइ । सू० ५३ – जोगसच्चेणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? जोगसच्चेणं जोगं विसोहेइ । करणसच्चे Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगूणतीसइमं अज्झणं सू० ५४ – मणगुत्तयाए णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? : मणगुत्तयाए णं जीवें एगग्गं जणयइ । एगग्गचित्ते णं जीवे मणगुत्ते संजमाराहएं भवइ । सू० ५५ – वयगुत्तयाए णं भन्ते ! जोवे किं जणयइ ? वयगुत्तयाए णं निव्वियारं जणयइ । निव्वियारेणं जीवे वइगुत्तें अज्झप्पजोग ज्झाणगुत्ते यावि भवई । सू० ५६ – कायगुत्तयाए णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? २१७ कायगुत्तयाए णं संवरं जणयइ । संवरेणं कायगुत्ते पुणो पावासवनिरोहं करेइ । सू० ५७ - मणसमाहारणयाए णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? मणसमाहारणयाए णं एगग्गं जणयइ । एगग्गं जणइत्ता नाणपज्जवें जणयइ | नाणपज्जवें जणइत्ता सम्मत्तं विसोहेइ मिच्छत्तं च निज्जरेइ । सू० ५८ - वयसमाहारणया णं भन्ते ! जीवं किं जणयइ ? वयसमाहारणयाए णं वयसाहारणदंसणपज्जवे विसोहेइ । वयसाहारणदंसणपज्जवे विसोहेत्ता सुलहवोहियत्तं निव्वत्तेइ दुल्लहवोहियत्तं निज्जरेइ । : सू० ५८ - कायासमाहारणयाएं णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? कायसमाहारणयाए णं चरित्तपज्जवे विसाहेइ । चरित्तपज्जवे विसोहेत्ता अहक्खायचरितं विसोहेइ । अहक्खायचरितं विसोहेत्ता चत्तारि केवलिकम्मंसे खवेइ । तओ पच्छा सिज्झइ बुज्झड़ मुच्चइ परिनिव्वाएइ सव्वदुक्खाणमन्तं करेइ । सू० ६० - नाणसंपन्नयाए णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? नाणसंपन्नायाएं णं जीवे सव्वभावाहिगमं जणयइ । नाणसंपन्ने णं जीवे चाउरन्ते संसारकन्तारे न विणुस्सइ । Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१८ उत्तरज्झयणं जहा सूई ससुत्ता, पडिया वि विणस्सइ । तहा जीवे ससुत्ते, संसारे न विणस्सइ ।। नाणविणयतवचरित्तजोगे संपाउणइ ससमयपरसमय संघायणिज्जे भवइ । सु० ६१-दंससंपन्नयाए णं भन्ते ! जोवे कि जणयइ ? दसणसंपन्नयाए णं भवमिच्छत्तयणं करेइ परं न विज्झायइ । अणुत्तरेणं नाणदंसणेणं अप्पाणं सजोएमाणे सम्म भावेमाणे विहरइ । सू०६२-चरित्तसंपन्नयाए णं भन्ते ! जीवे कि जणयइ ? चरित्तसंपन्नयाए णं सेलेसीभाव जणयइ। सेलेसि पडिवन्ने य अणगारे चत्तारि केवलिकम्मंसे खवेइ । तओ पच्छा सिज्झइ बुज्झइ परिनिव्वाएइ सव्वदुक्खाणमन्तं करेइ। सू० ६३-~-सोइन्दियनिग्गहेणं भन्ते ! जीवे कि जणयइ ? सोइन्दियनिग्गहेणं मणुन्नामणुन्नेसु सद्देसु रागदोसनिग्गहं जणयइ तप्पच्चइयं कम्मं न वन्धइ पुव्ववद्धं च निज्जरेइ। सू० ६४..-चक्खिन्दियनिग्गहेणं भन्ते ! जीवे कि जणयइ ? चक्खिन्दियनिग्गहेणं मणुनामणुन्नेसुरूवेसु रागदोसनिग्गहं जणयइ तप्पच्चइयं कम्मं न वन्धइ पुत्ववद्धं च निज्जरेइ । सू० ६५-घाणिन्दियनिग्गहेणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? घाणिन्दियनिग्गहेणं मणुन्नामणुन्नेसु गन्धेसु रागदोसनिग्गहं जणयइ तप्पच्चइयं कम्मं न वन्धइ पुव्ववद्ध च निज्जरेइ। सू०.६६-जिभिन्दियनिग्गहेणं भन्ते ! जीवे कि जणयइ ? जिभिन्दियनिग्गहेणं मणुन्नामणुन्नेसु रसेसु रागदोस Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . एगूणतीसइमं अज्झयणं . २१६ निग्गहं जणयइ तप्पच्चाइयं कम्मं न वन्धइ पुत्ववद्ध च निज्जरेइ। सू० ६७-फा सिन्दियनिग्गहेणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? . फासिन्दियनिग्गहेणं मणुनामणुन्नेसु फासेसु रागदोसनिग्गहं जणयइ तप्पच्चइयं कम्मं न वन्धइ पुव्ववद्ध च निज्जरेइ। सू०६८–कोहविजएणं भन्ते ! जीवे कि जणयइ ? . कोहविजएणं खन्ति जणयइ कोहवेयणिज्जं कम्मं न . वन्धइ पुव्ववद्धच निज्जरेइ । सू०६६-माणविजएणं भन्ते ! जीवे कि जणयइ ? माणविजएणं मद्दवं जणयइ माणवेयणिज्जं कम्मं न वन्धइ पुत्ववद्धं च निज्जरेइ । सू० ७०-मायाविजएणं भन्ते ! जीवे कि जणयइ ? . मायाविजएणं उज्जुभावं जणयइ मायावेयणिज्ज कम्मं न वन्धइ पुव्ववद्धं च निज्जरेइ।.. .. .. सू०७१-लोभविजएणं भन्ते ! जोवे किं जणयइ ? .. लोभविजएणं संतोसीभावं जणयइ लोभवेयणिज्जं कम्मं न वन्धइ पुत्ववद्धं च निज्जरेइ। सू०७२–पेज्जदोसमिच्छादसणविजएणं भन्ते ! जीवे कि जणयइ ? पेज्जदोसमिच्छादसणविजएणं नाणदसणचरित्ताराहणयाए अब्भुट्ठइ अट्ठविहस्स कम्मस्स कम्मगण्ठिविमोयणयाए तप्पढमयाए जहाणुपुचि अट्ठवीसइ विहं मोहणिज्जं कम्म उग्घाएइ पंचविहं नाणावरणिज्जं नवविहं दसणावरणिज्जं Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२० उत्तरज्झयणं पंचविहं अन्तरायं एए तिन्नि वि कम्मसे जुगवं खवेइ । तओ पच्छा अणुत्तरं अणंतं कसिणं पडिपुण्णं निरावरणं वितिमिरं विसुद्धं लागालोगप्पभावगं केवलवरनाणदंसणं समुप्पाडेइ । जाव सजोगी भवइ ताव य इरियावाहयं कम्मं वन्धइ सुहफरिसं दुसमयठिइयं । तं पढमसमए वद्धं विइयसमए वेइयं तइयसमए निज्जिण्णं तं वद्धं पुटु उदीरियं वेइयं निज्जिण्णं सेयाले य. अकम्मं चावि भवइ। सू०७३-~-अहाउयं पालइत्ता अन्तोमुहत्तद्धावसेसाउए जोगनिरोह करेमाणे सुहमकिरियं अप्पडिवाइ सुक्कज्झाणं झायमाणे तप्पढमयाए मणजोगं निरुम्भइ २ त्ता वइजोगं निरुम्भइ २ त्ता आणापाणुनिरोहं करेइ २ त्ता ईसि पंचरहस्सक्खरुच्चारधाए य णं अणगारे समुच्छिन्नकिरियं अनियट्टिसुक्कज्झाणं झियायमाणे वेयणिज्ज आउयं नाम गोत्तं च एए चत्तारि वि कम्मसे जुगवं खवेइ। सू० ७४-तओ ओरालियकम्माईच सव्वाहि विष्पजहणाहिं विप्पजहित्ता उज्जुसेढिपत्ते अफुसमाणगई उडढं एगसमएणं अविग्गहेणं तत्थ गन्ता सागारोव उत्ते सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिनिवाएइ सव्वदुक्खाणमन्तं करेइ ।। एस खलु सम्मत्तपरक्कमस्स · अज्झयणस्स अट्ठ समणेणं भगवया महावीरेणं आघविए पन्न विए परूविए दंसिए उवदंसिए । -त्ति बेमि ॥ Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीसइमं अज्भयणं तीसइमं अज्झयणं. तवमग्गगई जहा उ पावगं कम्मं रागदोससमज्जियं । खवेइ तवसा भिक्खू तमेगग्गमणो सुण ॥ १ ॥ पाणवहमुसावाया, अदत्तमेहुणपरिग्गहा विरओ। राईभोयणविरओ जीवो भवइ । अणासवो ।। २ ।। पंचसमिओ तिगुत्तो अकसाओ जिइन्दिओ। अगारवो य निस्सल्लो जीवो होइ अणासवो ।। ३ ।। एएसिं तु विवच्चासे रागद्दोससमज्जियं । जहा . खवयइ भिक्खू तं मे एगमणों सुण ।। ४ ।। जहा महातलायस्स सन्निरुद्ध जलागमे । उस्सिचणाए तवणाए कमेणं सोसणा भवे ॥ ५ ॥ एवं तु संजयस्सावि पावकम्मनिरासवे। । भवकोडीसंचियं कम्म तवसा निज्जरिज्जइ ।। ६ ॥ सो तवो दुविहो वुत्तो वाहिरव्भन्तरो तहा। वाहिरो छव्विहो वुत्तो एवमन्भन्तरो तवो ।। ७ ।। . अणसणमूणोयरिया, भिक्खायरिया य रसपरिच्चाओ। कायकिलेसो संलोणया य, वज्झो तवो होइ ॥ ८ ॥ : इत्तिरिया मरणकाले दुविहा अणसणा भवे। इत्तिरिया सावकंखा, निरवकंखा विइज्जिया ॥ ६ ॥ Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२२ उत्तरभयणं जो सो इत्तरियतवो, सो समासेण छव्विहो । सेदितवो पयरतवो, घणो य तह होइ वग्गो य ॥ १० ॥ तत्तो य वग्गवग्गो उ पंचमो छटुओ पइण्णतवो । मणइच्छियचित्तत्थो नायव्वो होइ इत्तरिओ ॥। ११ ॥ जा सा अणसणा मरणे, दुविहा सा वियाहिया । सवियारअवियारा कार्याच पई भवे ।। १२ ।। अहवा सपरिकम्मा अपरिकम्मा य आहिया । नीहारिमणीहारी आहारच्छेओ य दोसु वि ॥ १३ ॥ ओमोयरियं पंचहा समासेण वियाहियं । दव्वओ खेत्तकालेणं भावेणं पज्जवेहि य ॥ १४ ॥ जो जस्स उ आहारो तत्तो ओमं तु जो करे । जहन्नेणेगसित्थाई एवं दव्वेण ऊ भवे ।। १५ ।। गामे नगरे तह रायहाणि-निगमे य आगरे पल्ली । खेडे कव्वडदोणमुह- पट्टणमडम्वसंवाहे ॥ १६ ॥ आसमपए विहारे सन्निवेसे समायघोसे य । थलिसेणाखन्धारे सत्ये संवट्टकोट्टे य ॥ १७ ॥ वाडेसु व रच्छासु व, घरेसु वा एवमित्तियं खेत्तं । कप्पड़ उ एवमाई एवं खेत्तेण ऊ भवे ॥ १८ ॥ पेडा य अपेडा गोमुत्तिपयंगवी हिया चेव । सम्बुक्का वट्टाऽऽययगन्तुं पच्चागया छट्ठा ॥ १६ ॥ दिवसस्स पोरुसीणं, चरण्हं पिउजत्तिओ भवे कालो । एवं चरमाणो खलु कालोमाणं मुणेयव्वो ॥ २० ॥ Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीसइमं अज्झयणं २२३ अहवा तइयाए पोरिसीए ऊणाइ घासमेसन्तो। चउभागूणाए वा एवं कालेण ऊ भवे ।। २१ ।। इत्थी वा पुरिसो वा, अलंकिओ वाऽणलंकिओ वा वि । अन्नयरवयत्थो वा अन्नयरेणं व वत्थेणं ।। २२ ।। अन्नेण विसे सेणं वणेणं भावमणुमुयन्ते उ । एवं चरमाणो खलु भावोमाणं मुणेयव्वो ।। २३ ।। दव्वे खेत्ते काले, भावम्मि य आहिया उ जे भावा। एएहि ओमचरओ, पज्जवचरओ भवे भिक्खू ॥ २४ ॥ अविहगोयरगं तु तहा सत्तेव एसणा । - अभिग्गहा ग जे अन्ने भिक्खायरियमाहिया ।। २५ ।। खीरदहिसप्पिमाई पणीयं पाणभोयणं । . परिवज्जणं रसाणं तु भणियं रसविवज्जणं ।। २६ ।। ठाणा वीरासणाईया जीवस्स उ सुहावहा । उग्गा जहा धरिज्जन्ति कायकिलेसं तमाहियं ।। २७ ।। एगन्तमणावाए इत्थीपसुविवज्जिए । सयणासणसेवणया विवित्तसयणासणं ॥२८॥ एसो वाहिरगतवो समासेण वियाहिओ। अन्भिन्तरं तवं एत्तो वुच्छामि अणुपुव्वसो ॥ २६ ॥ पायच्छित्तं विणओ, वेयावच्चं तहेव सज्झाओ। झाणं च विउस्सग्गो एसो अन्भिन्तरो तवो ।। ३०॥ आलोयणारिहाईयं पायच्छित्तं तु दसविहं । जे भिक्खू वहई सम्मं पायच्छित्तं तमाहियं ॥ ३१ ।। Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२४ उत्तरंज्झयणं अभुवाणं . अंजलिकरणं . तहेवासणदायणं । गुरुभत्तिभावसुस्सूसा विणओ एस वियाहिओ ।। ३२ ॥ आयरियमाइयम्मि य वेयावच्चम्मि दसविहे। आसेवणं जहाथामं वेयावच्चं तमाहियं ।। ३३ ।। वायणा पुच्छणा चेव तहेव परियणा । अणुप्पेहा धम्मकहा सज्झाओ पंचहा भवे ।। ३४ ।। अट्टरुहाणि वज्जित्ता झाएज्जा. सुसमाहिए। धम्मसूक्काई झाणाइं झाणं तं तु बुहा वए ।॥ ३५॥ सयणासणठाणे वा जे उ भिक्ख न वावरे । कायस्स विउस्सग्गो छट्ठो सो परिकित्तिओ ।। ३६ ॥ एवं तवं तु दुविहं जे सम्मं आयरे मूणी । से खिप्पं सव्वसंसारा विप्पमुच्चइ पण्डिए ।। ३७ ॥ -त्ति बेमि ॥ Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगतीसइमं अभयणं एगतीसइमं अज्भयणं चरणविही चरणविहिं पवक्खामि जीवस्स उ सुहावहं । जं चरिता वहू जीवा तिण्णा एगओ विरइं कुज्जा एगओ असंजमे नियति च संज २२५ संसारसागरं ।। १ ।। य पवत्तणं । य पवत्तणं ॥ २ ॥ " पावकम्मपवत्तणे । रागद्दोसे य़ दो पावे जे भिक्खू रुम्भई निच्चं से न अच्छर मण्डले ।। ३ ।। वएसु इन्दियत्थेसु समिईसु जे भिक्खू जयई निच्चं से न दण्डाणं गारवाणं च सल्लाणं च तियं तियं । जे भिक्खु चयई निच्चं, से न अच्छइ मण्डले ।। ४ ।। ; लेसासु छसु काएसु छक्के जे भिक्खू जयई निच्चं से न दिव्वे य जे उवसग्गे तहा तेरिच्छमाणुसे जे भिक्ख सहई निच्चं से न अच्छइ मण्डले ।। ५ ।। विगहा कसायसन्नाणं झणाणं च दुयं तहा । जे भिक्खू वज्जई निच्चं से न अच्छइ मण्डले ।। ६ ।। किरियासु य ! अच्छइ मण्डले ।। ७ ।। आहारकारणे । अच्छइ मण्डले ॥ ८ ॥ पिण्डोग्गहपडिमा सु भयट्ठाणेसु सत्तसु । जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छइ मण्डले ॥ ६ ॥ मयेसु वम्भगुत्तीसु भिक्खुधम्मंमि दसविहे | जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छइ मण्डले ।। १० ।। Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२६ उत्तरज्झयणं उवासगाणं पडिमासु भिवखूणं पडिमासु य । जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छइ मण्डले ।। ११ ।। किरियासु भूयगामेसु परमाहम्मिएसु य । जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छइ मण्डले ।। १२ ।। गाहासोलसएहिं तहा अस्संजमम्मि य। जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छइ मण्डले ॥ १३ वम्भम्मि नायज्झयणेसु ठाणेसु या समाहिए। जे भिक्ख जयई निच्चं से न अच्छइ मण्डले ॥ १४ ॥ एगवीसाए सवलेसु वावीसाए परीसहे। जे भिक्खु जयई निच्चं से न अच्छइ मण्डले ॥ १५ ॥ तेवीसइ सूयगडे रूवाहिएसु सुरेसु अ। जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छइ मण्डले ।। १६ ।। पणवीसभावणाहिं उद्देसेसु दसाइणं । जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छइ मण्डले ॥ १७ ॥ अणगारगुणेहिं च पकप्पम्मि तहेव य । जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छइ मण्डले ॥ १८ ।। पावसुयपसंगेसु मोहटाणेसु चेव य । जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छइ मण्डले ॥ १६ ॥ सिद्धाइगृणजोगेस तेत्तीसासायणास य। जे भिक्ख जयई निच्चं से न अच्छइ मण्डले ।। २० ।। इइ एएस ठाणेसु जे भिक्खू जयई सया। । खिप्पं से सव्वसंसारा विप्पमुच्चइ पण्डिओ ।। २१ ॥ ---त्ति वेमि ।। . Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बत्तीसइमं अज्झयणं वत्तीसइगं अज्झयणं पमायठ्ठाणं अच्चन्तकालस्स समूलगस्स, सव्वस्स दुक्खस्स उ जो पमोक्खो ।. . तं भासओ मे पडिपुण्ण चित्ता, सुणेह एगग्गाहियं हियत्थं ॥ १ ॥ नाणस्स सव्वस्स पगासणाए, अन्नाणमोहस्स विवज्जणाए । रागस्स दोसस्स य संखएणं, एगन्तसोवख समुवेइ मोवख ।। २ ।। तस्सेस मग्गो गुरुविद्धसेवा, विवज्जणा वालजणस्स दूरा | सज्झायंएगन्तनिसेवणा य, सुत्तत्थसंचिन्तणया धिई य || ३ || आहारमिच्छे मियमेस णिज्जं सहायमिच्छे निउणत्थबुद्धि । निकेयमिच्छेज्ज विवेगजोग्गं समाहिकामे समणे तवस्सी ॥ ४ ॥ , २२७ , न वा लभेज्जा निउणं सहाय, गुणाहियं वा गुणओ समं वा । एक्को वि पावाइ विवज्जयन्तो विज्ज कामेसु असज्ज माणो ॥ ५ ॥ 3 जहा य अण्डप्पभवा वलागा, अण्डं वलागप्पभवं जहा य । एमेव मोहाययणं खु तण्हं, मोह च तण्हाययणं वयन्ति ॥ ६ ॥ रागो य दोसो वि य कम्मवीयं कम्मं च मोहप्पभदं वयन्ति । कम्मं च जाईमरणस्स मूलं दुवख च जाईमरणं वयन्ति ॥ ७ ॥ दुवख ं हयं जस्स न होइ मोहो, मोहो हओ जस्स न होइ तरहा । तण्हा या जस्स न होइ लोहो, लोहो हओ जस्स न किंचणाई || ८ || रागं च दोसं च तहेव मोहं उद्धत्तुकामेण समूलजालं । जे जे उवाया पडिवज्जियव्वा, ते कित्तइस्सामि अहाणुपुवि ॥ ई ॥ Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२८ उत्तरज्झयणं रसा पगामं न निसेवियव्वा, पायं रसा दित्तिकरा नराणं । दित्तं च कामा समभिद्दवन्ति, दुमं जहा साउफलं व पक्खी ।। १० ।। जहा दवग्गी पउरिन्धणे वणे, समारुओ नोवसमं उवेइ। . एविन्दियग्गी वि पगामभोइणो, न वम्भयारिस्स हियाय कस्सई ।।११।। विवित्तसेज्जासणजन्तियाणं, ओमसणाणं दमिइन्दियाणं । . न रागसत्तू धरिसेइ चित्तं, पराइओ वाहिरिवोसहेहिं ।। १२ ।। जहा विरालावसहस्स मूले, न मूसगाणं वसही पसत्था । .. एमेव इत्थी निलयस्स मज्झे, न वम्भयारिस्स खमो निवासी ॥ १३ ॥ न रूवलावण्णविलासहासं, न जंपियं इंगियपेहियं वा। इत्थीण चित्तंसि निवेसइत्ता, दठ्ठ ववस्से समणे तवस्सी ।। १४ ।। : अदंसणं चेव अपत्थणं च, अचिन्तणं चेव अकित्तणं च । इत्थीजणस्सारियझाणजोग्गं, हियं सया वम्भवए रयाणं ॥१५॥ कामं तु देवीहि विभूसियाहिं, न चाइया खोभइउं तिगुत्ता। तहा वि एगन्तहियं ति नच्चा, विवित्तवासो मुणिणं पसत्थो ।। १६ ॥ मोक्खाभिकंखिस्स वि माणवस्स, संसारभीरुस्स ठियस्स धम्मे। . नेयारिसं दुत्तरमत्थि लोए, जहित्थिओ वालमणोहराओ ।। १७ ॥ एए य संगे समइक्कमित्ता, सुहत्तरा चेव भवन्ति सेसा । . . जहा महासागरमुत्तरित्ता, नई भवे अवि गंगासमाणा ॥ १८ ॥ कामाणगिद्धिप्पभवं ख दुक्खं, सव्वस्स लांगस्स सदेवगस्स। जं काइयं माणसियं च किंचि, तस्सऽन्तगं गच्छद वीयरागो ॥ १६ ॥ जहा य 'किंपागफला मणोरमा, रसेण वण्णेण य भुज्जमाणा।.... ' ते खुड्डए. जीविय पच्चमाणा, एओवमा कामगुणा विवागे.॥ २० ॥ Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बत्तीसइमं अज्झयणं. २२६ - जे इन्दियाणं विसया मणन्ना, न तेसु भावं निसिरे कयाइ। ... न याऽमणुन्नेसु मणं पि.कुज्जा, समाहिकामे समण तवस्सी ।। २१ ।। चक्खुस्स रूवं गहणं वयन्ति, . तं रागहेउं तु मणुन्न माहु। तं. दोसहेउं अमणुन्नमाहु, समो य जो तेसु स वीयरागो ।। २२ ।। रूवस्स चक्खु गहणं वयन्ति, चक्खुस्स रूवं गहणं वयन्ति ।.... रागस्स हेउं समणुन्नमाहु, दोसस्स हउं अमणुन्नमाहु ।। २३ ।। रूवेसु जो गिद्धिमुवेइ तिव्वं, · अकालियं पावइ से विणासं। रागाउरे से जह वा पयंगे, आलोयलोले समुवेइ मच्चु ।। २४ ॥ जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं, तंसि वखणे से उ उइ दुक्खं । . : . दुद्दन्तदोसेण सएण जन्तू, न किंचि रूवं अवरज्झई से ॥ २५ ।। एगन्तरत्ते रुइरंसि . रूवे अतालिसे से कुणई पओसं । । दुक्खस्स संपीलमुवेइ वाले, न लिप्पई तेण मुणी विरागो !। २६ ।। रूवाणगासाणगए य जीवे चराचरे हिंसइ उणेगरूवे। .. चित्तेहि ते परितावेइ. वाले पीलेइ अत्तगुरू किलिट्ठ ॥ २७ ॥ रूवाणुवाएण परिग्गहेण उपायणे रत्रखणसन्निओगे। वंए विओगे य कहिं सुहं से ? संभोगकाले य अतित्तिलाभे ॥ २८ ॥ रूवे अतित्ते य परिग्गहे य सत्तोवसत्तो न उवेइ तुटिं। ' ... अतुट्टिदोसेण दुही परस्स लोभाविले आययई अदत्तं ।। २६ ॥ तण्हाभिभूयस्स. अदत्तंहारिणो रूवे अतित्तस्स परिग्गहे य । मायामुसं वड्ढइ लोभदोसा तत्थाऽविदुक्खा न. विमुच्चई से ॥ ३० ॥ . मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य पओगकाले य दुही दुरन्ते । एवं अदत्ताणि समाययन्तो रूवे अतित्तो दुहिमओ अणिस्सो ।। ३१ ।। Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३० उत्तरज्झयणं रूवाणुरत्तस्स नरस्स एवं कत्तो सुहं होज्ज कयाइ किंचि ? तत्थोवभोगे वि किलेसवखं निव्वत्तई जस्स कएण दुक्खं ॥ ३२॥ एमेव रूवम्मि गओ पओसं उवेइ दुक्खोहपरंपराओ। पदुद्दचित्तो य चिणाइ कम्मं जं से पुणो होइ दुहं विवागे ॥ ३३ ।। रूवे विरत्तो मणुओ विसोगो एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्पए भवमझे वि सन्तो जलेण वा पोक्खरिणोपलासं ॥ ३४ ॥ सोयस्स सइं गहणं वयन्ति तं रागहेउं तु मणुन्नमाहु । तं दोसहेउं अमणुन्नमाहु समो य जो तेसु स वीयरागो ।। ३५ ।। सहस्स सोयं गहणं वयन्ति सोयस्स सई गहणं वयन्ति । रागस्स हेउं समणुन्नमाहु दोसस्स हेउं अमणुन्नमाहु ॥ ३६ ॥ सद्देसु जो गिद्धिमुवेइ तिव्वं अकालियं पावइ से विणासं। रागाउरे हरिण मिगे व मुद्धे सद्दे अतित्ते समुवेइ मच्चु ॥ ३७॥ जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुइन्तदोसेण सएण जन्तू न किंचि सई अवरज्झई से ।। ३८ ॥ एगन्तरत्ते रुइरंसि सद्दे अतालिसे से कूणई पओसं । दुक्खस्स संपीलमुवेइ वाले न लिप्पई तेण मुणी विरागो।। ३६ ॥ सहाणगासाणगए य जीवे चराचरे हिंसइ ऽणगरूवे । चित्तेहि ते परियावेइ वालें पीलेइ अत्तगुरू किलिट्ठ ॥ ४० ॥ सहाणवाएण परिग्गहेण उप्पायणे रक्खणसन्निओगे। वए विओगे य कहिं सुहं से ? संभोगकाले य अतित्तिलाभे ।। ४१ ॥ सद्दे अतित्ते य परिग्गहे य सत्तोवसत्तो न उवेइ तुर्द्धि । अतुढिदोसेण दुही परस्स लोभाविले आययई अदत्तं ॥ ४२ ॥ Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Marathi andipanie.antaye ३॥ बत्तीसइमं अज्झयणं २३१ तण्हाभिभूयस्स अदत्तहारिणो सद्दे अतित्तस्स परिग्गहे य । .. मायामुसं वड्ढइ लोभदोसा तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से ।। ४३ ।। मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य पओगकाले य दुही दुरन्ते । एवं अदत्ताणि समाययन्तो सद्दे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो ।। ४४ ॥ सद्दाणुरत्तस्स नरस्स एवं कत्तो सुहं होज्ज कयाइ किंचि ?। तत्थोवभोगे वि किलेसदुक्खं निव्वत्तई जस्स कएण दुक्खं ।। ४५ ।। एमेव सहम्मि गओ पओसं. उवेइ दुक्खोहपरंपराओ। पदुद्दचित्तो य चिणाइ कम्मं जं से पुणो होइ दुहं विवागे ॥ ४६ ।। सद्दे विरत्तो. मणुओ विसोगो. एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्पए भवमज्झे वि सन्तो जलेण वा पोक्खरिणोपलासं ।। ४७ ।। घाणस्स गन्धं गहणं वयन्ति तं रागहेउं तु मणन्नमाह। . तं दोसहेउं अमणुन्नमाहु समो य जो तेसु स वीयरागो ।। ४८ ।। - गन्धस्स घाणं गहणं वयन्ति घाणस्स गन्धं गहणं वयन्ति । रागस्स हेउं समणुन्नमाहु दोसस्स हेउं अमणुन्नमाहु ।। ४६ ।। गन्धेसु जो गिद्धिमुवेइ तिव्वं अकालियं पावइ से विणासं। . रागाउरे ओस हिगन्धगिद्धे सप्पे विलाओ विव निवखमन्ते ।। ५० ॥ जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुद्दन्तदोसेण सएण जन्तू न किंचि गन्धं अवरज्झई से ।। ५१ ।। एगन्तरत्ते रुइरंसि गन्धे अतालिसे से कुणई पओसं। . दुक्खस्स संपीलमुवेइ वाले, न लिप्पई तेण मुणी विरागो ॥ ५२ ।। गन्धाणगासाणुगए य जीवे चराचरे हिंसइ ऽणेगरूवे . . .. चित्तेहि ते परितावेइ वाले पीलेइ अत्तगुरू किलिट्ठ ।। ५३ ।। ॥ 136|| ॥ ४० ॥ ॥ ॥४ ॥४२॥ जातप कहन क तान कारण ह-एक अल्प भो Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३२ उत्तरज्झयणं । गन्धाणुवाएण परिग्गहेण उप्पायणे रक्खणसन्निओगे। ... वए विओगे य कहिं सुहं से ? संभोगकाले य अतित्तिलाभे ।। ५४ ।। गन्धे अतित्ते य परिग्गहे य सत्तोवसत्तो न उवेइ तुर्द्धि। अतुट्टिदोसेण दुही परस्स लोभाविले आययई अदत्तं ।। ५५ ।। तण्हाभिभूयस्स अदत्तहारिणो गन्धे अतित्तस्स परिग्गहे य। .. मायामुसं वड्ढइ लोभदोसा तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से ॥ ५६ ॥ मोसस्स पच्छा य पुरत्थो य पओगकाले य दुही दुरन्ते । एवं अदत्ताणि समाययन्तो गन्धे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो ।। ५७ ।। गन्धाणुरत्तस्स नरस्त एवं कत्तो सुहं होज्ज कयाइ किंचि ? । तत्थोवभोगे वि किलेसदुक्खं निव्वत्तई जस्स कएण दुक्खं ।। ५८ ।। . एमेव गन्धम्मि गओ पओसं उवेइ दुक्खोहपरंपराओ। पदृढचित्तो य चिणाइ कम्म जं से पुणो होइ दुहं विवागे ।। ५६ ।। गन्धे विरत्तो मणओ विसोगो एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्पई भवमज्झे वि सन्तो जलेण वा पोखरिणीपलासं ॥ ६० ॥ जिहाए रसं गहणं वयन्ति तं रागहेउं तु मणन्नमाह। तं दोसहेउं अमणुन्नमाहु समो य जो तेसु स वीयरागो ।। ६१ ॥ रसस्स जिव्भं गहणं वयन्ति जिव्भाए रसं गहणं वयन्ति । रागस्स हेउं समणुन्नमाहु दोसस्स हेडं अमणुन्नमाहु ।। ६२ ।। रसेसु जो गिद्धिमुवेइ तिव्वं अकालियं पावइ से विणासं। रागाउरे वडिसविभिन्नकाए मच्छे जहा आमिसभोगगिद्धे ।। ६३ ।। जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुहन्तदोसेण सएण जन्तू रसं न किंचि अवरज्झई से ।। ६४ ।। - ति । Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बत्तीसइमं अज्झयणं .. २३३ . एंगन्तरत्ते रुइरे रसम्मि अतालिसे से कुणई पओसं। दुवखस्स संपीलमुवेइ वाले न लिप्पई तेण मुणो विरागो । ६५ ।। रसाणुगासाणुगए य जीवे चराचरे हिसइ ऽणेगरूवे । चित्तेहि ते परितावेइ वाले पीलेइ अत्तट्ठगुरू किलिट्ठ ।। ६६ ।। . रसाणुवाएण परिग्गहेण उपायणे रक्खणसन्निओगे। .. वए विओगे य कहिं सुहं से ? संभोगकाले य अतित्तिलाभे ।। ६७ ॥ रसे अतित्ते य परिग्गहे य सत्तावसत्तो न उवेइ तुष्टुिं । अतुट्टिदोसेण दुही परस्स लोभाविले आययई अदत्तं ।। ६८ ।। तहाभिभूयस्स अदत्तहारिणो रसे अतित्तस्स परिग्गहे य। मायामुसं वड्ढइ लोभदोसा तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से ॥६६॥ मोसस्स पच्छा य पुरस्थओ य पओगकाले य दुही दुरन्ते । एवं अदत्ताणि समाययन्तो रसे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो ॥ ७० ॥ रसाणुरत्तस्स नरस्स एवं कत्तो सुहं होज्ज कयाइ किंचि ?। तत्थोवभोगे वि किलेसदुक्खं निव्वत्तई जस्स कए ण दुक्खं ? ।। ७१ ॥ एमेव रसम्मि गओ पओसं उवेइ दुक्खोहपरंपराओ। पदुद्दचित्तो य चिणाइ कम्मं जं से पुणो होइ दुहं विवागे ।। ७२ ।। रसे विरत्तो मणुओ विसोगो एएण दुक्खोहपरंपरेण । .. न लिप्पई भवमझे वि सन्तो जलेण वा पोवखरिणीपलासं ।। ७३ ॥ कायस्स फासं गहणं वयन्ति तं रागहेउं तु मणुन्नमाहु । तं. दोसहेउं अमणुन्नमाहु समो य जो तेसु स वीयरागो ।। ७४ ।। फासस्स कायं गहणं वयन्ति कायस्स फासं गहणं वयन्ति । . रागस्स हेउं समणुन्नमाहु दोसस्स हेउं अमणुन्नमाहु ।। ७५ ।। Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३४ उत्तरज्झयणं. फासेसु जो गिद्धिमुवेइ तिव्वं अकालियं पावइ से विणासं। . रागाउरे सीयजलावसन्ने गाहग्गहोए महिसे व ऽरने ।। ७६ ।। जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं । . .. दुद्दन्तदोसेण सएण जन्तू न किंचि फासं अवरज्झई से ।। ७७ ।। के याचि बोस सामुळे दिव्यं संकि बचो से उरोह हुन्छ एगन्तरत्ते रुइरंसि फासे अतालिसे से कुणई पओसं । दुक्खस्स संपीलमुवेइ वाले न लिप्पई तेण मुणो विरागो ।। ७८ ।। फासाणगासाणगए य जीवे चराचरे हिंसइ उणेगरूवे । चित्तेहि ते परितावेइ वाले पीलेइ अत्तगुरू किलिट्ठ ॥७६ ।। फासाणुवाएण परिग्गहेण उपायणे . रक्खणसन्निओगे । वए विओगे य कहिं सुहं से ? संभोगकाले य अतित्तिलाभे ।। ८० ॥ फासे अतित्ते य परिग्गहे य सत्तोवसत्तो न उवेइ तुर्द्वि । अतुट्टिदोसेण दुही परस्स लोभाविले आययई अदत्तं ।। ८१ ।। । तण्हाभिभूयस्स अदत्तहारिणो फासे अतित्तस्स परिग्गहे य। मायामुसं वड्ढइ लोभदोसा तत्यावि दुक्खा न विमुच्चई से ।। ८२ ॥ मोसस्स पच्छा य पुरस्थओ य पओगकाले य दुही दुरन्ते । एवं अदत्ताणि समाययन्तो फासे अतितो दुहिओ अणिस्सो ।। ८३ ।।। फासाणुरत्तस्स नरस्स एवं कत्तो सुहं होज्ज कयाइ किंचि ? | तत्थोवभोगे वि किलेसदुक्खं निव्वत्तई जस्स कएण दुक्खं ।। ८४ ॥ एमेव फासम्मि गओ पओसं उवेइ दुक्खोहपरंपराओ। . पदुद्धचित्तो य चिणाइ कम्मं जं से पुणो होइ दुहं विवागे ।। ८५ ॥ फासे विरत्तो मणुओ विसोगो एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्पई भवमज्झे वि सन्तो जलेण वा पोक्खरिणीपलासं ॥ ८६ ॥ Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३५ वत्तीसइमं अज्झयणं मणस्स भावं गहणं वयन्ति तं रागहेउं तु मणुन्नमाहु । तं दोसहेउं अमणुन्नमाहु समो य जो तेसु. स वीयरागो ।। ८७ ।। भावस्स मणं गहणं वयन्ति मणस्स भावं गहणं वयन्ति । रागस्स हेउं समणुन्नमाहु दोसस्स हेउं अमणुन्नमाहु ।। ८८ ।। भावेसु जो गिद्धिमुवेइ तिव्वं अकालियं पावइ से विणासं । रागाउरे कामगुणेसु गिद्धे करेणुमग्गावहिए व नागे ।। ८६ ।। .. जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुद्दन्तदोसेण सएण जन्तू न किंचि भावं अवरज्झई से ।। ६० ॥ एगन्तरत्ते रुइरंसि भावे अतालिसे से कुणई पओसं । दुक्खस्स संपीलमुवेइ वाले न लिप्पई तेण मुणी विरागो ।। ६१ ॥ भावाणुगासाणुगए य जीवे चराचरे हिंसइ ऽणेगरूवे । चित्तेहि ते परितावेइ वाले पीलेइ अत्तगुरू किलिट्ठ ॥ १२ ॥ भावाणुवाएण परिग्गहेण उपायणे रक्खणसन्निओगे। वए विओगे य कहिं सुहं से ? संभोगकाले य अतित्तिलाभे ।। ६३.।। भावे अतित्ते य परिंग्गहे य सत्तोवसत्तो न उवेइ तुढेि । अतुट्टिदोसेण दुही परस्स लोभाविले आययई अदत्तं ।। ६४ ॥ तण्हाभिभूयस्स अदत्तहारिणो भावे अतित्तस्स परिग्गहे य। मायामुसं वड्ढई लोभदोसा तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से ।। ६५ ।। मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य पओगकाले य दुही दुरन्ते । एवं अदत्ताणि समाययन्तो भाव अतित्तो दुहिओ अणिस्सो ।। ६६ ।। भावाणुरत्तस्स नरस्स एवं कत्तो सुहं होज्ज कयाइ किंचि ?। तत्थोवभोगे वि किलेसदुवखं निवत्तई जस्स कएण दुवखं ।। ६७ ।। Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३६ उत्तरज्झयणं एमेव भावम्मि गओ पओसं उवेइ दुवखोहपरंपराओ। पदुट्ठचित्तो य चिणाइ कम्मं जं से पुणो होइ दुहं विवागे ।। ६८ ।। भावे विरत्तो मणुओ विसोगो एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्पई भवमज्झे वि सन्तो जलेण वा पोक्खरिणीपलासं ।। ६६ ।। एविन्दियत्था य मणस्स अत्था दुक्खस्स हेउं मण्यस्स रागिणो। . ते चेव थोवं पि कयाइ दुक्खं न वीयरागस्स करेन्ति किंचि ॥ १०० ॥ न कामभोगा समयं उवेन्ति न यावि भोगा विगई उवेन्ति । जे तप्पओसी य परिग्गही य सो तेसु मोहा विगई उवेइ ।। १०१ ।। कोहं च माणं च तहेव मायं लोहं दुगंछं अरई रइं च । .... हासं भयं सोगपुमित्थिवेयं नपुंसवेयं विविहे य भावे ।। १०२॥ आवज्जई एवमणेगरूवे एवंविहे कामगुणेसु सत्तो। अन्ने य एयप्पभवे विसेसे कारुण्णदोणे हिरिमे वइस्से ।। १०३ ।। कप्पं न इच्छिज्ज सहायलिच्छ पच्छाणुतावेय तवप्पभावं। ... एवं वियारे अमियप्पयारे आवज्जई इन्दियचोरवस्से ॥ १०४ ॥ तओ से जायन्ति पीयणाई निमज्जिउं मोहमहण्णवम्मि। .. सुहेसिणो दुक्खविणोयणट्ठा तप्पच्चयं उज्जमए य रागी ।। १०५ ।। विरज्जमाणस्स य इन्दियत्था सद्दाइया तावइयप्पगारा। . न तस्स सव्वे वि मणुन्नयं वा निव्वत्तयन्ती अमणुनयं वा ।। १०६ ।। एवं ससंकप्पविकप्पणासुं संजायई समयमुवट्ठियस्स । अत्थे य संकप्पयओ तओ से पहीयए कामगुणेसु तण्हा ॥ १०७ ॥ स वीयरागो कयसव्व किच्चो खवेइ नाणावरणं खणणं । तंहेव जं दंसणमावरेइ जं चऽन्तरायं पकरेइ कम्मं ।। १०८ ॥ Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बत्तीसइमं अभियणं सब्बं ती जागा पासए र अमोहणे होइ निरन्तराए। अगासवे साणसमाहिजुत्ते आउपखए मोक्नुमुवेइ सुद्धे ।। १०६ ॥ सो तस्स नव्वन्स दुस्स मुक्को ज बाहई सययं जन्तुमेयं । दोहामविप्पमुक्यो पत्तत्थो तो होइ अच्चन्तसुही कायस्थो ॥ ११० ।। अणाइकालप्पभवस्स एसो सबस्त दुक्खस्स पमोक्खमांगो। विवाहिओ जं समुविच्च सत्ता कामेण अचन्तनुही भवन्ति ॥ १११ ॥ त्ति बेमि ॥ Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३८ . उत्तरजक्षयणं तेतीसइमं अज्झयणं कस्सपयडी अट्ठ कम्माई बोच्छामि आणुपुब्बि जहक्कम । जेहिं वद्धो अयं जीवो संसारे परिवत्तए ।। १ ।। नाणस्सावरणिज्जं दसणावरणं तहा। वेर्याणज्जं तहा मोहं आउकम्मं तहेव य ।। २ ॥ नामकम्मं च गोयं च अन्तरावं तहेव य । एवमेयाइ कम्माइं अट्रेव उ समासओ ।। ३ ॥ नाणावरणं पंचविहं सुयं आभिणि बोयिं । ओहिनाणं तइयं मणनाणं च केवलं ।। ४ ।। निदा तहेव पयला निहानिहा य पयलपयला य । तत्तो य थीणगिद्धी उ पंचमा होइ नायव्वा ।। ५ ।। चक्ख मचक्ख ओहिस्स दंसणे केवले य आवरणे। एवं तु नवविगप्पं नायव्वं दसणावरणं ।। ६ ।। वेयणीयं पि य दुविहं सायमसायं च आहियं । सायस्स उ वहू भेया एमेव असायस्स वि ।। ७ ।। मोहणिज्ज पि दुविहं दंसणे चरणे तहा । दसणे तिविहं वुत्तं चरणे दुविहं भवे ॥ ८ ॥ सम्मत्तं चेव मिच्छत्तं सम्मामिच्छत्तमेव य । एयाओ तिन्नि पयडीओ मोहणिज्जस्स दंसणे ॥६॥ म य । Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३६ . . . तेतीसइमं अज्झयणं चरित्तमोहणं कम्मं दुविहं तु वियाहियं । .. कसायमोहणिज्जं तु -नोकसायं तहेव य ।। १० ।। सोलसविहभेएणं कम्मं तु कसायज । सत्तविहं नवविहं वा कम्मं नोकसायजं ।। ११ ।। नेरइयतिरिक्खाउ मणुस्साउ तहेव य । देवाउयं चउत्थं तु आउकम्मं चउविहं ।। १२ ।। नाम कम्मं तु दुविहं सुहमसुहं च आहियं । सुहस्स उ बहू भेया एमेव असुहस्स वि ।। १३ ॥ गोयं कम्म विहं उच्चं नोयं च आहियं । उच्चं अट्ठविहं होड एवं नीयं पि आहियं ।। १४ ।। दाणे लाभे य भोगे य उवभोगे वीरिए तहा। पंचविहमन्त रायं समासेण वियायिं ।। १५ ।। एयाओ मूलपयडीओ उत्तराओ य आहिया । पएसग्गं खत्तकाले य भावं चादुत्तरं सुण ।। १६ ।। सव्वेसिं चेव कम्माणं पएसग्गमणन्तगं । गण्ठियसत्ताईयं अन्तो सिद्धाण आहियं ।। १७ ।। सव्वजीवाण कम्मं तु संगहे छद्दिसागयं । सव्वेसु वि पएसेसु सव्वं सव्वेण वद्धगं ॥ १८ ॥ उदहीसरिनामाणं तीसई कोडिकोडिओ। उक्कोसिया ठिई होइ अन्तोमुहुत्तं जहन्निया ॥ १६ ॥ आवरणिज्जाण दुण्हं पि वेयणिज्जे तहेव य । । अन्तराए य कम्मम्मि ठिई एसा वियाहिया ।। २० ॥ Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४० उत्तरन्यर्ण उदही सरिनामाणं सतर कोडिकोडिओ | मोहणिज्जस्स उक्कोसा अन्तोमुहुत्तं जहन्निया ।। २१ ।। तेत्तीस सागरोवमा उक्कोसेण ठिई उ आउकम्मस्स अन्तोमुहृत्तं वियाहिया | जहन्निया ।। २२ ।। उदहीसरिनामां वीसई कोडिकोडियो | नामगोत्ताणं उक्कोसा अट्ठ मुहुत्ता जहन्निया ॥ २३ ॥ सिद्धान्तभागो य अणुभागा हवन्ति उ । सव्वेसु वि पएसग्गं सव्व जीवेसु इच्छियं ॥ २४ ॥ तम्हा एएसि कम्माणं अणुभागे वियाणिया । एएसि संवरे चैव खवणे य जए वुहे ॥ २५ ॥ -त्ति वैमि ॥ Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउतीसइमं अज्झयणं २४१ चउतीस इमं अज्झयणं लेसज्झयणं लेसज्झयणं पवक्खामि आणुपुवि जहक्कम। . छण्हं पि कम्मलेसाणं अणुभावे सुणेह मे ।। १ ।। नामाई वण्णरसगन्ध . फासपरिणामलक्खणं । ठाणं ठिई गई चाउं लेसाणं तु सुणेह मे ॥ २ ॥ किण्हा नीला य काऊ य तेऊ पम्हा तहेव य । सुक्कलेसा य छटा उ नामाइं तु जहक्कमं ।। ३ ॥ जीमूयनिद्धसंकासा गवलरिटुगसन्निभा। खंजणंणनयणनिभा किण्हलेसा उ वण्णओ ॥ ४ ॥ नीलाऽसोगसंकासा चासपिच्छसमप्पभा। वेरुलियनिद्धसंकासा नीललेसा उ वण्णओ ।। ५ ।। अयसीपुप्फसंकासा कोइलच्छदसन्निभा । पारेवयगीवनिभा काउलेसा उ वण्णओ ॥ ६ ॥ हिंगुलुयधाउसंकासा तरुणाइच्चसन्निभा। सुयतुण्डपईवनिभा तेउलेसा उ वण्णओ ॥ ७ ॥ हरियालभेयसंकासा हलिद्दाभेयसंनिभा । सणासणकुसुमनिभा पम्हलेसा उ वण्णओ ।। ८ ।। संखंककुन्दसंकासा खीरपूरसमप्पभा। रययहारसंकासा सुक्कलेसा उ वण्णओ ।। ६ ।। Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४२ उत्तरायणं जह कड्डयतुम्बगरसो निम्बरसो कड्यरोहिणिरसो वा । ... एत्तो वि अणन्तगुणो रसो उ किण्हाए नायब्यो ।। १० । जह तिगडुयस्स य रसो तिक्खो जह हस्थिपिप्पलीए वा। । एत्तो वि अणन्तगुणो रसो उ नीलाए नायव्बो ।। ११ ।। जह तरुणअम्वगरसो तुवरकविट्ठस्स वावि जारिसओ। एत्तो वि अणन्तगुणो रसो उ काऊए नायव्यो ।। १२ । जहपरिणयम्वगरसो पक्ककविस्स वावि जारिसओ। एत्तो वि अणन्तगुणो रसो उ तेऊए नायव्वो ॥ १३ ॥ वरवारुणीए व रसो विविहाण व आसवाण जारिसओ। . महुमेरगस्स व रसो एत्तो पम्हाए परएणं ।। १४ ।। खज्जुरमुद्दियरसो खीररसो खण्डसक्कररसो वा। एत्तो वि अणन्तगुणो रसो उ सुक्काए नायव्वो ॥ १५ ॥ जह गोमडस्स गन्धो सुणगमडगस्स व जहा अहिमडस्स । एत्तो वि अणन्तगुणो लेसाणं अप्पसत्थाणं ॥ १६ ॥ जह सुरहिकुसुमगन्धो गन्धवासाण पिस्समाणाणं । एत्तो वि अणन्तगुणो पसत्थलेसाण तिण्हं पि ।। १७ ।। जह करगयस्स फासो गोजिब्भाए व सागपत्ताणं। . एत्तो वि अणन्तगुणो लेसाणं अप्पसत्थाणं ।। १८ ॥ जह वूरस्स व फासो नवणीयस्स व सिरोसकुसमाणं । एत्तो वि .अणन्तगुणो पसत्थलेसाण तिण्हं पि ।। १६ ।। तिविहो व नवविहो वा सत्तावीसइविहेक्कसीओ वा । .. दुसओ: तेयालो वा लेसाणं होइ परिणामो ॥ २० ॥ Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउतीसइम अज्झयणं पंचासवप्पवत्तो तीहिं अगुत्तो छम् अविरओ य। तिव्वारम्भपरिणओ खद्दो साहसिओ नरो ।। २१ ।। निद्धन्धसपरिणामो. निस्संसो अजिइन्दिओ। एयजोगसमाउत्तो किण्हलेसं तु.. परिणमे ॥ २२ ॥ इस्साअमरिसअतवो अविज्जमाया अहीरिया य । गेद्धी पओसे य सढे, पमत्ते रसलोलुए साय गवेसए य ।। २३ ।। आरम्भाओ अविरओ खहो साहस्सिओ नरो। एयजोगसमाउत्तो . नीललेसं तु परिणमे ॥ २४ ॥ वंके . वंकसमायारे नियडिल्ले . अणुज्जुए। . पलिउंचग ओवहिए मिच्छदिट्ठी अणारिए ।॥ २५ ॥ उप्फालगदुवाई . य तेणे यावि य मच्छरी। एयजोगसमाउत्तो . काउलेसं तु परिणमे ॥ २६ ।। नीयावित्ती अचवले अमाई अकुऊहले। विणीयविणए दन्ते जोगवं उवहाणवं ।। २७ ।। पियधम्मे . . दधम्मे वज्जभीरू हिएसए। एयजोगसमाउत्तो तेउलेसं तु परिणमे ।। २८ ।। पयणुक्कोहमाणे . य मायालोभे य पयणुए। पसन्तचित्ते . दन्तप्पा जोगवं उवहाणवं ।। २६ ॥ तहा पयणवाई य उवसन्ते जिइन्दिए। एयजोगसमाउत्तो पम्हलेसं तु परिणमे ।। ३० ।। अट्टरुद्दाणि वज्जित्ता धम्मसुक्काणि झायए । पसन्तचित्ते दन्तप्पा समिए गुत्ते य गुत्तिहिं ।। ३१ ।। Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४४ उत्तरज्झयणं सरागे वीयरागे वा उवसन्ते जिइन्दिए । एयजोगसमाउत्तो सुक्कलेसं तु परिणमे ।। ३२ ।।। असंखिज्जाणोसप्पिणीण, उस्सप्पिणीण जे समया। संखाईया लोगा, लेसाण हुन्ति ठाणाई ।। ३३ ॥ मुहत्तद्धं तु जहन्ना, तेत्तीसं सागरा मुहुत्तऽहिया । उक्कोसा होइ ठिई, नायव्वा किण्हलेसाए ।। ३४ ॥ मुहत्तद्धं तु जहन्ना, दस उदही पलियमसंखभागमभहिया। उक्कोसा होइ ठिई, नायव्वा नीललेसाए ॥ ३५ ॥ मुहत्तद्धं तु जहन्ना, तिण्णुदही पलियमसंखभागमभहिया । उक्कोसा होइ ठिई, नायव्वा काउलेसाए ।। ३६ ।। मुहत्तद्धं तु जहन्ना, दोउदही पलियमसंखभागमभहिया। उक्कोसा होई ठिई, नायव्वा तेउलेसाए ।। ३७ ।। मुहत्तद्धं तु जहन्ना, दस होन्ति सागरा मुहत्ताहिया । उक्कोसा होइ ठिई, नायव्वा पम्हलेसाए ।॥ ३८ ॥ मुहत्तद्धं तु जहन्ना, तेत्तीसं सागरा महत्तहिया। उक्कोसा होइ ठिई नायव्वा सुक्कलेसाए ।। ३६ ।।.. एसा खलु लेसाणं, ओहेण ठिई उ वणिया होइ । चउसु वि गईसु एत्तो, लेसाण ठिइं तु वोच्छामि ।। ४० ।। . दस वाससहस्साइं, काऊए ठिई जहन्निया होइ । तिण्णुदही पलिओवम, असंखभागं च उक्कोसा ॥४१॥ तिण्णुदही पलिय, मसंखभाग जहन्नेण नीलठिई। दस उदही पलिओवंम, असंखभागं च उक्कोसा ।। ४२ ॥ . Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउतीसइमं अन्मयणं २४५ दस उदही पलिय - मसंखभागं जहन्निया होइ । . तेत्तीससागराइं उक्कोसा, होइ किण्हाए. लेसाए ।। ४३ ॥ एसा नेरइयाणं, लेसाण ठिई उ वणिया होइ। तेण परं वोच्छामि तिरियमणुस्साण देवाणं ।। ४४ ॥ · अन्तोमुहत्तमद्धं लेसाण ठिई जहिं जहिं जा उ। तिरियाण नराणं वा, वज्जित्ता केवलं लेसं ।। ४५ ॥ मुहुत्तद्धं .. तु जहन्ना, उक्कोसा होइ पुवकोडी उ । नवहि वरिसेहि. ऊणा, नायव्वा सुक्कलेसाए ।। ४६।। एसा तिरियनराणं, लेसाण ठिई उ वणिया होइ। तेण परं वोच्छामि, लेसाण ठिई उ देवाणं ॥ ४७ ।। दस वाससहस्साई, किण्हाए ठिई जहन्निया होइ । पलियमसंखिज्जइमो, उक्कोसा होइ किण्हाए ।। ४८ ।। जा किण्हाए ठिई खलु, उक्कोसा सा उ समयमभहिया। जहन्नेणं. नीलाए, पलियमसंखं तु उक्कोसा ।। ४६ ॥ जा नीलाए ठिई खलु, उक्कोसा साउ समयमभहिया । जहन्नेणं काऊए, पलियमसंखं च उक्कोसा ।। ५० ।। तेण परं वोच्छामि, तेउलेसा जहा सुरगणाणं । भवणवइवाणमन्तर, जोइसवेमाणियाणं च ।। ५१ ॥ पलिओवमं जहन्ना, उक्कोसा सागरा उ दुण्हहिया। पलियमसंखेज्जेणं, . होई भागेण तेऊए ।। ५२ ।। दस वाससहस्साइं, तेऊए ठिई जहन्निया होइ। दुण्णुदही पलिओवम, असंखभागं च उक्कोसा ॥ ५३ । Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४६ उत्तरज्मय] जा तेऊए ठिई खलु, उक्कोसा साउ समयमभहिया। जहन्नेणं पम्हाए दसउ, मुहुत्तहियाई च उक्कोसा ।। ५४ ।। जा पम्हाए ठिई खलु, उक्कोसा उ समयमभहिया । जहन्नेणं सुक्काए, तेत्तीसमुहत्तमभहिया ।। ५५ ।। किण्हा नीला काऊ, तिन्नि वि एयाओ अहम्मलेसायो। ... एयाहि तिहि वि जीवो, दुग्गई उववज्जई बहुसो ।। ५६ ॥ तेऊ पम्हा सुक्का, तिन्नि वि एयाओ धम्मलेसामो। एयाहि तिहि वि जीवो, सुग्गइं उववज्जई वहुसो ।। ५७ ।। . लेसाहिं सवाहिं पढमे समयप्रिम परिणयाहिं तु । न वि कस्सवि उववाओ, परे भवे अत्यि जीवस्स ।। ५८ 11: लेसाहिं सव्वाहिं, चरमे समयम्मि परिणयाहिं तु । न वि कस्सवि उववाओ, परे भवे अस्थि जीवस्स ।। ५६ ॥ अन्तमुत्तम्मि गए, अन्तमुत्तम्मि सेसए चेव।। लेसाहिं परिणयाहिं, जीवा गच्छन्ति परलोयं ।। ६० ॥ तम्हा एयाण लेसाणं, अणुभागे वियाणिया । अप्पसत्थाओ वज्जित्ता पसत्थाओ अहिट्ठज्जासि ॥ ६१ ॥ -त्ति वेमि। Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पणतीसइमं अज्झयणं पणतोसइमं अज्झयणं अणगारमग्गगई . ... सुणेह मे एगग्गमणा मग्गं वुद्धे हि देसियं। . जमायरन्तो भिक्खू दुक्खाणन्तकरो भवे ॥ १ ॥ गिहवासं परिच्चज्ज पवज्जंअस्सिओ मुणी। इमे संगे वियाणिज्जा जेहिं सज्जन्ति माणवा ॥ २ ॥ तहेव हिंसं अलियं चोज्जं अवम्भसेवणं । इच्छाकामं च लोभं च संजओ परिवज्जए ॥ ३ ॥ मणोहरं चित्तहरं मल्लधूवेण वासियं । सकवाडं पण्डुरुल्लोयं मणसा वि न पत्थए ॥ ४ ॥ इन्दियाणि उ भिक्खुस्स तारिसम्मि उवस्सए । दुक्कराइं . निवारेउं कामरागविवड्ढणे ॥ ५ ॥ सुसाणे सुन्नगारे वा रुक्खमूले व एक्कओ। पइरिक्क परकडे वा वासं तत्थऽभिरोयए ॥ ६ ॥ फासुयम्मि अणावाहे इत्थीहिं अणभिदुए। तत्थ संकप्पए वासं भिक्खू . परमसंजए ।। ७ ।। न सयं गिहाई कुज्जा व अन्नेहिं कारए । गिहकम्मसमारम्भे भूयाणं दीसई वहो ॥ ८ ॥ तसाणं थावराणं च सुहमाणं वायराण य । तम्हा : गिहसमारम्भं. संजओ परिवज्जए ॥ ६ ॥ तहेव भत्तपाणेसु पयण पयावणेसु य। पाणभूयदयट्टाए न पये न पयावए ॥ १०॥ Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४८ उत्तरज्झयणं जलधन्ननिस्सिया जीवा पुढवीकटुनिस्सिया । हम्मन्ति भत्तपाणेसु तम्हा भिक्खू न पायए ।। ११ ।। विसप्पे सव्वओधारे . वहपाणविणासणे । नस्थि जोइसमे सत्थे तम्हा जोई न दीवए ।। १२ ।। हिरण्णं जायरूवं च मणसा वि न पत्थए । समलेठ्ठकंचणे भिवखू विरए कयविक्कए ॥ १३ ॥ किणन्तो कइओ होइ विक्रिणन्तो य वाणियो। कयविक्कयम्मि वट्टन्तो भिक्ख न भवइ तारिसो।। १४ ।। भिक्खियव्वं न केयव्वं भिक्खुणा भिक्खवत्तिणा। कयविक्कओ महादोसो भिक्खावत्ती सुहावहा ।। १५ ।। समुयाणं उंछमेसिज्जा जहासुत्तमणिन्दियं । लाभालाभम्मि संतु? पिण्डवायं चरे मुणी ।। १६ ।। अलोले न रसे गिद्धे जिन्नादन्ते अमुच्छिए। न रसहाए भुंजिज्जा जवणट्ठाए महामुणी ।। १७ ।। अच्चणं रयणं चेव वन्दणं पूयणं तहा। इड्ढीसक्कारसम्माणं मणसा वि न पत्थए ॥ १८ ॥ सुक्कझाणं झियाएज्जा अणियाणे अकिंचणे । वोसटुकाए विहरेज्जा जाव कालस्स पज्जओ ॥ १६ ॥ निज्जूहिऊण आहारं कालधम्मे उवढिए । जहिऊण माणुसं वोन्दि पहू दुक्खे विमुच्चई ।। २० ।। निम्ममो निरहंकारो बीयरागो अणासवो। संपत्तो केवलं नाणं सासयं परिणिव्वुए ॥ २१ ॥ -त्ति बेमि ॥ Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . : २४६ छत्तीसइमं अन्झयणं छत्तीसइमं अज्झयणं जीवाजीवविभत्ती जीवाजीववित्ति सुणेह मे एगमणा इओ। जं जाणिऊण समणे. सम्म . जयइ. संजमे ॥.१ ।।. जीवा चेव अजीवा य एस लोए वियाहिए। , अजीवदेसमागासे अलोए से वियाहिए ॥ २ ॥ दव्वओ खेत्तओ चेव कालओ भावओ तहा।। परूवणा तेसि भवे जीवाणमजीवाण य ॥ ३ ॥... रूविणो. चेवऽरूवी: य अजीवा दुविहा भवे । अरूवी दसहा वुत्ता रूविणो वि चउन्विहा ।। ४ ॥ धम्मत्थिकाए तसे तप्पएसे . य आहिए। अहम्मे तस्स देसे य तप्पएसे य आहिए ॥ ५ ॥ आगासे तस्स देसे य तप्पएसे. य आहिए। अद्धासमए । चेव अरूवी दसहा भवे ॥ ६ ॥ धम्माधम्मे य दोऽवेए लोगमित्ता वियाहिया । . लोगालोगे य आगासे समए समयखेत्तिए ॥ ७ ॥ धम्माधम्मागासा तिन्नि वि एए अणाइया। . अपज्जवसिया चेव सव्वद्धं तु वियाहिया ॥.८ ॥ समए वि. सन्तइं पप्प एवमेव वियाहिए। - .. आएसं पप्प . साईए सपज्जवसिए वि: य॥ ६ ॥ Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५० खन्धा य खन्धदेसा य तप्पएसा तहेव य । परमाणुणो य वोद्धव्वा रूविणो य चउव्विहा || १० || एगत्तेण पुहत्तेण खन्धा य लोएगदेसे लोए य भइयव्वा ते उत्तरज्भवणं सुहुमा सव्वलोगंमि लोगदेसे य वायरा । इत्तो कालविभागं तु तेसि वुच्छं चउन्विहं ॥ १२ ॥ असंखकालमुक्कोसं एगं समयं अजीवाण य रूवीणं ठिई एसा परमाणुणो । उं खेत्तओ ॥ ११ ॥ संतई पप्प तेऽणाई अपज्जवसिया विय । ठि पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य ।। १३ ।। अणन्तकालमुक्कोसं एगं समयं अजीवाण य रूवीण अन्तरेयं जहन्निया । वियाहिया || १४ || जहन्नयं । वियाहियं ॥ १५ ॥ ।। ।। वण्णओ गन्धओ चेत्र रसओ फासओ तहा । संठाणओ य विन्नेओ परिणामो तेसि पंचहा ।। १६ ।। वण्णओ परिणया जे उ पंचहा ते पकित्तिया । किण्हा नीला य लोहिया हालिद्दा सुक्किला तहा ॥ १७ ॥ गन्धओ परिणया जे उदुविहा ते वियाहिया । सुठिभगन्धपरिणामा दुब्भिगन्धा तहेव य ॥ १८ ॥ रसओ परिणया जे उ पंचहा ते पकित्तिया । तित्तकडुयकसाया अम्विला महुरा तहा ॥ १९ ॥ फासओ परिणया जे उ अट्टहा ते पकित्तिया । कक्खडा मउया चेंव गरुया लहुया तहा ॥ २० ॥ Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___ छत्तीसइमं अज्झयणं .. . . २५१ २५१ .सीया उण्हा य निद्धा य तहा लुक्खा य आहिया। इइ फासपरिणया एए पुग्गला समुदाहिया ॥ २१ ॥ संठाणपरिणया जे उ पंचहा ते पकित्तिया । परिमण्डला य वट्टा तंसा चउरंसमायया ॥ २२ ।। वण्णओ जे भवे किण्हे भइए से उ गन्धओ। रसओ फासओ चेव भइए. संठाणओ वि य ॥ २३ ।। वण्णओ जे भवे नीले भइए से उ गन्धओ। रसओ फासओ चेव भइए संठाणओ वि य ॥ २४ ॥ वण्णओ लोहिए जे उ भइए से उ गन्धओ। . रसओ फासओ चेव भइए संठाणओ वि य ॥ २५ ॥ वण्णओ पीयए जे उ भइए से उ गन्धओ। रसओ फासओ चेव भइए संठाणओ वि य ॥ २६ ।। वण्णओ सुक्किले जे उ भइए से उ गन्धओ। रसओ फासओ चेव भइए संठाणओ वि य ॥ २७ ।। गन्धओ जे भवे सुभी भइए से उ वण्णओ। रसओ · फासओ चेव भइए संठाणओ वि य ।। २८ ॥ गन्धओ जे भवे दुम्भी भइए से उ वण्णओ। रसओ फासओ चेव भइए संठाणओ वि य ॥२६॥ रसओ तित्तए जे उ भइए से उ वण्णओ। .. गन्धओ फासओ चेव भइए संठाणओ वि य ।। ३०॥ रसओ कडुए जे उ भइए से उ वण्णओ। गन्धओ फासओ चेव भइए संठाणओ वि य ।। ३१ ।। Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५२ उत्तरज्झयण रसओ कसाए जे उ भइए से उ वण्णओ । गन्धओ फासओ चेव भइए संठाणओ वि य ।। ३२ ।। रसओ अम्विले जे उ भइए से उ वण्णओ। गन्धओ फासओ चेव भइए संठाणओ वि य ॥ ३३ ॥ रसओ महरए जे उ भइए से उ वण्णओ। गन्धओ फासओ चेव भइए संठाणओ वि य ॥ ३४ ॥ फासओ कक्खडे जे उ भइए से उ वण्णओ। गन्धओ रसओ चेव भइए संठाणओ वि य ।। ३५ ।। फासओ मउए जे उ भइए से उ वण्णओ। गन्धओ रसओ व भइए संठाणओ वि य ॥ ३६ ।। फासओ गुरुए जे उ भइए से उ वण्णओ। गन्धओ रसओ चेव भइए संठाणओ वि य ।। ३७ ।। फासओ लहुए जे उ भइए से उ वण्णओ। गन्धओ रसओ चेव भइए संठाणओ वि य ।। ३८ ॥ फासओ सीयए जे उ भइए से उ वण्णओ । गन्धो रसओ चेव भइए संठाणओ वि य ।। ३६ ॥ फासो उहए जे उ भइए से उ वण्णओ। गन्धओ रसओ चेव भइए संठाणओ वि य ॥ ४० ॥ फासओ निद्धए जे उ भइए से उ वण्णओ। गन्धओ रसओ चेव भइए संठाणओ वि य ।। ४१ ।। फासओ लुक्खए जे उ भइए से उ वण्णओ। गन्धओ रसओ चेव भइए संठाणओ वि य ।। ४२ ।। Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छत्तीसइमं अज्झयणं . ___२५३ परिमण्डलसंठाणे भइए से उ वण्णओ। • गन्धओ रसओ चेव भइए फासओ वि य ।। ४३ ॥ संठाणओ भवे वट्टे भइए से उ वण्णओ। गन्धओ रसओ चेव भइए फासओ वि य ॥ ४४ ॥ संठाणओ भवे तंसे भइए से उ वण्णओ। गन्धओ रसओ चेव भइए फासओ वि य ॥ ४५ ॥ संठाणओ य चउरंसे भइए से उ वण्णओ। . · गन्धओ रसओ चेव भइए फासो वि य ॥ ४६ ॥ जे . 'आययसंठाणे भइए से उ वण्णओ। गन्धओ रसओ व भइए फासओ वि य ।। ४७ ॥ एसा अजीवविभत्ती समासेण वियाहिया। .. इत्तो जीवविभत्ति वुच्छामि अणुपुव्वसो।। ४८ ।। संसारत्था य सिद्धा य दुविहा जीवा वियाहिया। सिद्धा गंगविहा वुत्ता तं मे कित्तयओ सुण ।। ४६ ।। इत्थी पुरिससिद्धा . य तहेव य नपुंसगा। सलिंगे अन्नलिंगे य गिहिलिगे तहेव य ॥ ५० ॥ उक्कोसोगाहणाए य जहन्नमज्झिमाइ य।. उडढं अहे य तिरियं च समुद्दम्मि जलम्मि य ।। ५१ ।। दस चेव नपुंसेसुं वीसं इत्थियासु य । पुरिसेसु य अट्ठसयं . समएणेगेण सिज्झई ।। ५२ ।। चत्तारि य गिहिलिंगे अन्नलिंगे दसेव य । सलिंगेण य अट्ठसयं समएणेगेण सिज्झई ।। ५३ ।। Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५४ उत्तरज्झयणं उक्कोसोगाहणाए य सिज्झन्ते जुगवं दुवे । चत्तारि जहन्नाए जवमज्झऽठ्ठत्तरं सयं ।। ५४ ॥ चउरुड्ढलोए य दुवे समुद्दे तओ जले वीसमहे तहेव । सयं च अठ्ठत्तर तिरियलोए समएणेगेण उसिज्झई उ ।। ५५ ।। कहिं पडिहया सिद्धा ? कहिं सिद्धा पइटिया ? | कहि वोन्दि चइत्ताणं ? कत्थ गन्तूण सिज्झई ? || ५६ ।। अलोए पडिहया सिद्धा लोयग्गे य पइदिया। इहं वोन्दि चइत्ताणं तत्थ गन्तूण सिज्झई ।। ५७ ।। वारसहिं जोयणेहिं सव्वस्सुवरि भवे । ईसीपभारनामा उ पुढवी छत्तसंठिया ।। ५८ ।। पणयालसयसहस्सा जोयणाणं तु आयया । तावइयं चेव विस्थिपणा तिगुणो तस्सेव परिरओ ।। ५६ ।। अदुजोयणवाहल्ला सा मज्झम्मि वियाहिया। परिहायन्ती चरिमन्ते मच्छ्यिपत्ता तणुयरी ।। ६० ।। अज्जुणसुवण्णगमई सा पुढवी निम्मला सहावेणं । उत्ताणगछत्तगसंठिया य भणिया जिणवरेहिं ।। ६१ ।। संखंक कुन्दसंकासा पण्ड्डुरा निम्मला सुहा। सीयाए जोयणे तत्तो लोयन्तो उ वियाहिओ।। ६२ ॥ जोयणस्स उ जो तस्स कोसो उवरिमो भवे। . तस्स कोसस्स छन्भाए सिद्धाणोगाहणा भवे ।। ६३ ।। तत्य सिद्धा महाभागा लोयग्गम्मि पइटिया। भवप्पवंच उम्मुक्का सिद्धि वरगइं गया ।। ६४ ॥ Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . छत्तीइसमं अज्झयणं २५५ .. .उस्सेहो जस्स जो होइ भवम्मि चरिमम्मि उ । तिभागहीणा तत्तो य सिद्धाणोगाहणा भवे ।। ६५ ।। . . एगत्तेण साईया . अपज्जवसिया वि य । पुहुत्तेण अणाईया अपज्जवसिया वि य ।। ६६ ।। अरूविणो जीवघणा . नाणदसणसन्निया।। अउलं सुहं संपत्ता उवमा जस्स नत्थि उ ॥ ६७ ।। लोएगदेसे . ते सव्वे : नाणदंसणसन्निया। . संसारपारनिच्छिन्ना सिद्धि वरगई गया ॥ ६८ ॥ संसारत्था उ जे जीवा दुविहा ते वियाहिया। तसा य थावरा चेव थावरा तिविहा तहिं ।। ६६ ।। पुढवी आउजीवा. य तहेव य वणस्सई। . इच्चेए थावरा तिविहा तेसिं भेए सुणेह मे ।। ७० ।। दुविहा पुढवीजीवा उ सुहुमा वायरा तहा। पज्जत्तमपज्जत्ता एवमेए दुहा पुणो ।। ७१ ।। बायरा जे उ पज्जत्ता दुविहा ते वियाहिया ।, सण्हा खरा य बोद्धव्वा सण्हा सत्तविहा तहिं ।। ७२ ॥ किण्हा नीला य रुहिरा य, हालिद्दा सुक्किला तहा। . पण्डुपणगमट्टिया, . खरा छत्तीसईविहा ।। ७३ ।। पुढवी य सक्करा वालुया य उवले सिला य लोणूसे । अयतम्वतउय-सीसग, रुप्पसुवण्णे य वइरे य ।। ७४ ।। हरियाले. हिंगुलुए, मणोसिला सासगंजणपवाले। अब्भपडलऽभवालुय, वायरकाए मणिविहाणा ।।.७५ ।। Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५६ उत्तरायणं गोमेज्जए य रुयगे अंके फलिहे य लोहियक्खे य। मरगयमसारगल्ले, भुयमोयगइन्दनीले य ।। ७६ ।। चन्दणगेरुयहंसगम्भ, पुलए सोगन्धिए य वोद्धव्वे । चन्दप्पहवेरुलिए, जलकन्ते सूरकन्ते य ।। ७७ ।। एए खरपूढवीए भेया छत्तीसमाहिया। एगविहमणाणत्ता सुहुमा तत्थ वियाहिया ।। ७८ ।। सहमा सव्वलोगम्मि लोगदेसे य वायरा । इत्तो कालविभागं तु तेसिं वुच्छं चउन्विहं ॥७६ ॥ संतई पप्पऽणाईया अपज्जवसिया वि य। ठिई पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य ।। ८० ॥ वावीससहस्साई वासाणुक्कोसिया भवे । आउठिई पुढवीणं अन्तोमुहत्तं जहन्निया ॥१॥ असंखकालमुक्कोसं अन्तोमुहत्तं जहन्नयं । कायठिई पुढवीणं तं कायं तु अमुचओ ।। ६२ ।। अणन्तकालमुक्कोसं अन्तोमुहत्तं जहन्नयं । विजदंमि सए काए पुढवीजीवाण अन्तरं ।। ८३ ।। एएसिं वण्णओ चेव गन्धओ रसफासओ। संठाणादेसओ वावि विहाणाई सहस्ससो।। ८४ ॥ दुविहा आउजीवा उ सुहमा वायरा तहा।। पज्जत्तमपज्जत्ता एवमेए दुहा पुणो ।। ८५॥ वायरा जे उ पज्जत्ता पंचहा ते पकित्तिया ।। सुद्धादए य उस्से हरतणू महिया हिमे ।। ८६ ॥ .. Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'छत्तीसइमं अज्झयणं. २५७ एगविहमणाणत्ता सुहमा तत्य वियाहिया। . सुहमा सव्वलोगम्मि लोगदेसे य वायरा ।। ८७ ।। सन्तई पप्पऽणाईया अपज्जवसिया वि य । ठिई पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य ।। ८८ ।। सत्तेव. सहस्साई वासाणुक्कोसिया भवे । आउट्ठिई आऊणं अन्तोमुहत्तं जहन्निया ।। ८६ ॥ असंखकालमुक्कोसं अन्तोमुहत्तं जहन्निया । कायट्टिई आऊणं तं. कायं तु अमुचओ ॥ ६० ॥ अणन्तकालमुक्कोसं अन्तोमुहत्तं जहन्नयं । विजढंमि सए काए आऊजीवाण अन्तरं ।। ६१ ।। एएसिं वण्णओ चेव गन्धओ रसफासओ। .: संठाणादेसओ वावि विहाणाइ सहस्ससो।। ६२ ।। .. दुविहा वणस्सईजीवा सुहुमा वायरा तहा। . पज्जत्तमपज्जत्ता एवमेए दुहा पुणो ।। ६३ ॥ वायरा जे उ पज्जत्ता दुविहा ते वियाहिया। . साहारणसरीरा य पत्तेगा य तहेव य ।। ६४ ॥ पत्तेगसरीरा उ. णेगहा ते : पकित्तिया । . रुक्खा गुच्छा य गुम्मा य लया बल्ली तणा तहा ।। ६५ ।। लयावलया पव्वगा कुणा जलरुहा ओसहीतिणा। . हरियकाया य बोद्धव्वा पत्तेया इति आहिया ॥६६ ।। साहारणसरीरा - उ णेगहा ते पकित्तिया। . आलुए मूलए चेव सिंगबेरे तहेव य ॥ ६७ ।। Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५८ उत्तरज्झयणं हिरिली सिरिली सिस्सिरिली जावई केदकन्दली। पलंदूलसणकन्दे य कन्दली य कुडवए ॥ ६८ ॥ लोहि णीह य थिह य कुहगा य तहेव य । कण्हे य वज्जकन्दे य कन्दे सूरणए तहा ॥६६॥ अस्सकण्णी य वोद्धव्वा सीहकण्णी तहेव य । मुसुण्डी य हलिद्दा य णेगहा एवमायओ ।। १००।। एगविहमणाणत्ता सुहमा तत्थ वियाहिया। सुहुमा सव्वलोगम्मि लोगदेसे य वायरा ।। १०१।। संतई पप्पऽणाईया अपज्जवसिया वि य। ठिइं पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य ॥१०२।। दस चेव सहस्साई वासाणक्कोसिया भवे । वणप्फईण आउं तु अन्तोमुहत्तं जहन्नगं ।।१०३।। अणन्तकालमुक्कोसं अन्तोमुहत्तं जहन्नयं । कायठिई पणगाणं तं कायं तु अमुचओ ।।१०४॥ असंखकालमुक्कोसं अन्तोमहत्तं जहन्नयं । विजढंमि सए काए पणगजीवाण अन्तरं ।।१०।। एएसि वष्णओ चेव गन्धओ रसफासओ। संठाणादेसओ वावि विहाणाइ सहस्ससो।।१०६।। इच्चेए थावरा तिविहा समासेण वियाहिया । इत्तो उ तसे तिविहे वुच्छामि अणुपुव्वसो ।।१०।। तेऊ वाऊ य वोद्धव्वा उराला य तसा तहा । इच्चेए तसा तिविहा तेसिं भेए सुणेह मे ।।१०८।। Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छत्तीसइमं अज्झयणं २५६ दुविहा तेउजीवा उ सुहुमा वायरा तहा । पज्जत्तमपज्जत्ता एवमेए दुहा पुणो ।।१०।। वायरा जे उ पज्जत्ता णेगहा ते वियाहिया। इगाले मुम्मुरे अगणी अच्चि जाला तहेव य ।।११०॥ उक्का विज्जू य वोद्धव्वा णेगहा एवमायओ। एगविहमणाणत्ता सुहमा ते वियाहिया ॥१११॥ सुहुमा .सबलोगम्मि लोगदेसे य वायरा। इत्तो कालविभागं तु तेसिं वुच्छं चउव्विहं ।।११२।। संतइ पप्पऽणाईया अपज्जवसिया वि य । ठिइ पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य ।।११३॥ तिण्णेव अहोरत्ता उक्कोसेण वियाहिया । · आउट्टिई तेऊणं अन्तोमुहुत्तं जहन्निया ।।११४|| असंखकालमुक्कोसं अन्तोमुहत्तं जहन्नयं । कायट्टिई तेऊणं तं कायं तु अमुचओ ॥११॥ अणन्तकालमुक्कोसं अन्तोमुहत्तं जहन्नयं । विजढंमि सए काए तेउजीवाण अन्तरं ।।११६।। एएसि वण्णओ चेव गन्धओ रसफासओ। संठाणादेसओ वावि विहाणाइं सहस्ससो ॥११७।। दुविहा वाउजीवा उ सुहमा वायरा तहा। पज्जत्तमपज्जत्ता एवमेए दुहा पुणो ११८॥ वायरा जे उ पज्जत्ता पंचहा ते पकित्तिया। . . उक्कलियामण्डलिया- घणगुजा सुद्धवाया य ।।११६।। Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६० उत्तरज्झयणं संवट्टगवाते य उणेगविहा एवमायो। एगविहमणाणत्ता सुहुमा ते वियाहिया ॥१२०।। सुहमा सबलोगम्मि लोगदेसे य वायरा। इत्तो कालविभागं तु तेसिं वुच्छं चउन्विहं ।।१२१।। . संतइं पप्पऽणाईया अपज्जवसिया वि य । ठिई पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य ।।१२२।। तिण्णेव सहस्साई वासाणक्कोसिया भवे। . आउट्टिई वाऊणं अन्तोमुहत्तं जहन्निया ।।१२३।। असंखकालमुक्कोसं , अन्तोमुहत्तं जहन्नयं । कायटिई वाऊणं तं कायं तु अमुचओ ।।१२४।। अणन्तकालमुक्कोसं अन्तोमुत्तं जहन्नयं । विजढं मि सए काए वाउजीवाण अन्तरं ।।१२५।। एएसि वण्णओ चेव गन्धओ रसफासओ। . संठाणादेसओ वावि विहाणाइं सहस्ससो ॥१२६।। .. ओराला तसा जे उ चउहा ते पकित्तिया। वेइन्दियते इन्दिय- चउरोपंचिन्दिया चेव ।।१२७।। वेइन्दिया उ जे जीवा दुविहा ते पकित्तिया । पज्जत्तमपज्जत्ता तेसिं भेए सुणेह मे ।।१२८।। किमिणो सोमंगला चव अलसा माइवाया। वासीमुहा य सिप्पीया संखा संखणगा तहा ॥१२६।। पल्लोयाणुल्लया चेव तहेव य वराडगा। जलूगा जालगा चेव चन्दणा य तहेव य ॥१३०।। Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'छत्तीसइमं अज्झयणं . २६१ इइ बेइन्दिया एए णेगहा एवमायओ। . लोगेगदेसे ते सव्वे न. सव्वत्थ वियाहिया ।।१३१॥ ... संतई पप्पडणाईया अपज्जवसिया वि य। ठिई पड़च्च साईया सपज्जवसिया वि य ॥१३२।। वासाई वारसे व उ उक्कोसेण वियाहिया। ..: बेइन्दियआउठिई अन्तोमुत्तं जहन्निया ।।१३३।। ..संखिज्जकालमुक्कोसं अन्तोमुहत्तं जहन्नयं ।। - बेइन्दियकायठिई तं कायं तु अमुचओ ॥१३४॥ अणन्तकालमुक्कोसं अन्तोमुहत्तं जहन्नयं । बेइन्दियजीवाणं अन्तरेयं वियाहियं ।।१३।। । एएसिं वण्णओ चेव गन्धओ रसफासओ। संठाणादेसओ वावि विहाणाई सहस्ससो।।१३६।। तेइन्दिया उजे जीवा दुविहा ते पकित्तिया। .. पज्जत्तमपज्जत्ता तेसि भेए सुणेह मे ॥१३७।। कुन्थुपिवीलिउड्डंसा उक्कलुद्देहिया तहा। तणहारकट्ठहारा मालुगा पत्तहारगा ॥१३॥ कप्पासऽद्धिमिजा य . तिदुगा तउसमिजगा। सदावरी य गुम्मी य बोद्धव्वा · इन्दकाइया ||१३६।। इन्दगोवगमाईया गहा एवमायओ।.. लोएगदेसे ते सव्वे. न सव्वत्थ . वियाहिया ॥१४०॥ संतई पप्पऽणाईया. अपज्जवसिया वि य।। ठिई पडुच्च साईया संपज्जवसिया वि य ॥१४१॥ Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६२ उत्तरजतयणं एगूणपण्णऽहोरत्ता उक्कोसेण वियाहिया । तेइन्दियआउठिई अन्तोमुहत्तं जहन्निया ।।१४२।। संखिज्जकालमुक्कोसं अन्तोमुहत्तं जहन्नयं । तेइन्दियकायठिई तं कायं तु अमुचओ ।।१४३।। अणन्तकालमुक्कोसं अन्तोमूहत्तं जहन्नयं । तेइन्दियजीवाणं अन्तरेयं वियाहियं ।।१४४।। एएसि वण्णओ चेव गन्धओ रसफासओ। संठाणादेसओ वावि विहाणाइं सहस्ससो।।१४।। चउरिन्दिया उ जे जीवा दुविहा ते पकित्तिया । पज्जत्तमपज्जत्ता तेसिं भेए सुणेह मे ॥१४६।। अन्धिया पोत्तिया चेव मच्छिया मसगा तहा। भमरे कोडपयंगे य ढिकुणे कुकुर्ण तहा ।।१४७॥ कुक्कुडे सिंगिरीडी य नन्दावत्ते य विछिए। डोले भिंगारी य विरली अच्छिवेहए ॥१४८॥ अच्छिले माहए अच्छिरोडए विचित्ते चित्तपत्तए। ओहिंजलिया जलकारी य नीया तन्तवगाविय ॥१४६।। इइ चउरिन्दिया एए ऽणेगहा एवमायओ। लोगस्स एग देसम्मि ते सव्वे परिकित्तिया ॥१५०॥ संतई पप्पडणाईया अपज्जवसिया वि य। ठिइं पड़च्च साईया सपज्जवसिया वि य ॥१५१।। छच्चेव य मासा उ उक्कोसेण वियाहिया। चउरिन्दियबाउठिई अन्तोमुहुत्तं जहन्निया ।।१५२।। Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छत्तीसइमं अज्झयणं २६३ संखिज्जकालमुक्कोसं अन्तोमहत्तं जहन्नयं । चउरिन्दियकायठिई तं कायं तु अमुचओ ॥१५३॥ अणन्तकालमुक्कोसं ' अन्तोमुहत्तं जहन्नयं । . चरिदिय जीवाणं अन्तरेयं वियाहियं ।।१५४॥ एएसिं वण्णओ चेव गन्धओ रसफासओ। संठाणादेसओ वावि विहाणाइं सहस्ससो ॥१५५।। पंचिन्दिया उ जे जीवा चउविवहा ते वियाहिया। नेरइयतिरिक्खा य मणुया देवा य आहिया ।।१५६।। नेरइया सत्तविहा पुढवीसु सत्तसू भवे । रयणाभ सक्कराभा . वालुयाभा य आहिया ॥१५७।। पंकाभा धूमाभा तमा तमतमा तहा । इइ नेरइया एए सत्तहा परिकित्तिया ॥१५८।। लोगस्स एगदेसम्मि ते. सव्वे उ वियाहिया। एत्तो काल विभागं तु वुच्छं तेसिं . चउन्विहं ।।१५।। संतई पप्पऽणाईया अपज्जवसिया वि य । ठिई पडुच्च साईया. सपज्जवसिया. वि य ।।१६।। सागरोवममेगं तु उक्कोसेण वियाहिया। .. पढमाए जहन्नेणं . दसवाससहस्सिया ॥१६॥ तिण्णेव सागरा ऊ उक्कोसेण वियाहिया । ..... दोच्चाए जहन्नेणं एगं तु. सागरोवमं ।।१६२।। सत्तेव सागरा ऊ उक्कोसेण वियाहिया। तइयाए जहन्नेणं तिण्णेव उ सागरोवमा ॥१६३॥ Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६४ उत्तरायणं दस सागरोवमा ऊ. उक्कोसेण वियाहिया। च उत्थीए जहन्नेणं सत्तेव उ सागरोवमा ।।१६४|| सत्तरस सागरा ऊ उक्कोसेण वियाहिया । . पंचमाए जहन्नेणं दस चेव उ सागरोवमा ॥१६५।। वावीस सागरा ऊ उक्कोसेण वियाहिया । . छट्ठीए जहन्नेणं सत्तरस सागरोवमा ॥१६६।। तेत्तीस सागरा ऊ उक्कोसेण वियाहिया । सत्तमाए जहन्नेणं वावीसं सागरोवमा ।।१६७।। जा चेव उ आउठिई नेरइयाणं वियाहिया। सा तेसिं कायठिई जहन्नुक्कोसिया भवे ॥१६८।। अणन्तकालमुक्कोसं अन्तोमहत्तं जहन्नयं । विजदमि सए काए नेरइयाणं तु अन्तरं ।।१६।। एएसि वण्णओ चेव गन्धओ रसफासओ। संठाणादेसओ वावि विहाणाइं सहस्ससो ॥१७०॥ पंचिन्दियतिरिक्खाओ दुविहा ते वियाहिया। सम्मुच्छिमतिरिक्खाओ गम्भवक्कन्तिया . तहा ।।१७१।। विहावि ते भवे तिविहा जलयरा थलयरा तहा। खयरा य वोद्धव्वा तेसिं भेए सुणेह मे ॥१७२।। मच्छा य कच्छभा य गाहा य मगरा तहा । सुसुमारा य वोद्धव्वा पंचहा जलयराहिया ।।१७३।। लोएगदेसे ते सव्वे न सव्वत्थ वियाहिया । एत्तो कालविभागं तु वुच्छं तेसिं चउन्विहं ।।१७४॥ Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छत्तीसइमं अज्झयणं २६५ - संतई. पप्पऽणाईया. अपज्जवसिया वि य। . ठिई पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य ॥१७५।। एगा य. पुव्वकोडीओ उक्कोसेण वियाहिया । आउट्टिई जलयराणं . अन्तोमुहत्तं जहन्निया ॥१७६।। पुवकोडीपुहत्तं तु उक्कोसेण वियाहिया । कायट्टिई जलयराणं . अन्तोमुहुत्तं जहनिया ||१७७।। अणन्तकालमुक्कोसं अन्तोमुहत्तं : जहन्नयं ।। विजढं मि सए काए जलयराणं तु अन्तरं ।।१७८|| एएसि वण्णओ चेव गन्धओ. रसफासओ। . संठाणादेसओ वावि विहाणाइं. सहस्ससो ।।१७६।। चउप्पया य परिसप्पा दुविहा थलयरा भवे ।। चउप्पया चउविहा ते मे कित्तयओ सुण ।।१०।। एगखुरा दुखुरा " चेव गण्डीपयसणप्पया । . हयमाइगोणमाइ- .. गयमाइसीहमाइणो ॥१८१।। भुओरगपरिसप्पा य परिसप्पा दुविहा भवे । गोहाई अहिमाई य एक्केक्का गहा भवे ॥१२॥ लोएगदेसे ते सव्वे न सव्वत्थ वियाहिया । एत्तो कालविभागं तु वुच्छं तेसिं चउव्विहं ।।१८३।। संतई पप्पऽणाईया अपज्जवसिया वि य । ठिइ पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य ।।१८४॥ . पलिओवमाउ तिण्णि उ उक्कोसेण वियाहिया। आउट्टिई थलयराणं अन्तोमुहुत्तं जहन्निया ॥१८॥ Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६६ उत्तरायणं पलिओ माउ तिण्णि उ उक्कोसेण तु साहिया । पुन्व कोडी पुहत्तेणं अन्तोमुहुत्तं जहन्निया ||१८६ || कार्यट्टिई थलयराणं अन्तरं तेसिमं भवे । कालमणन्तमुक्कोसं अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं ॥ १८७॥ एएस वण्णओ चैव गन्धओ रसफासओ । संठाणादेसओ वावि विहाणाई सहस्ससो ||१८८ || चम्मे उ लोमपक्खी य तझ्या समुग्गपक्खिया । विययपक्खी य वोद्धव्वा पक्खिणो य चउव्विहा ||१८६|| लोगेगदेसे ते सव्वे न सव्वत्थ वियाहिया । इत्तो कालविभागं तु वुच्छं तेसि चउव्विहं ॥ १६० ।। संतई पप्पऽणाईया अपज्जवसिया वि य । ठिई पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य ।।१६१|| पलिओवमस्स भागो असंखेज्जइमो भवे । आउट्टिई खहयराणं अन्तोमुहुत्तं जहन्निया ।।१६२ || असंखभागो पलियस्स उक्कोसेण उ साहिओ । पुव्वकोडीपुहत्तेणं अन्तोमुहुत्तं जहन्निया || १६३ || कायठिई खहयराणं अन्तरं तेसिमं भवे । कालं अणन्तमुक्कोसं अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं ॥ १६४ ॥ एएसि वण्णओ चेव गन्धओ रसफासओ । संठाणादेसओ वावि विहाणाई सहस्ससो ॥१६५॥ मणुया दुविहभेया उ ते मे कित्तयओ सुण । संमुच्छिमाय मणुया गव्भवक्कन्तिया तहा ||१९६ || Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छत्तीस अभयणं गव्भवक्कन्तिया जे उ. तिविहा ते वियाहिया । अन्तरद्दीवया तहा ॥१६७॥ अकम्मकम्मभूमा य पन्नरस तीसइ विहा भेया संखा उ कमसो तेसि इइ एसा २६७ अट्ठवीसइं । वियाहिया ||१६ 5 || आहिओ । संमुच्छिमाण एसेव भेओ होइ लोगस्स एगदेसम्म ते सव्वे वि वियाहिया ॥ १६६ ॥ पप्पऽणाईया अपज्जवसिया वि य । संतइ ठिइ पडुच्च सांईया सपज्जवसिया वि य ॥ २००॥ 'पलिओ माइ तिण्णि उ उक्कोसेण वियाहिया । आउट्टिई... मणुयाणं अन्तोमुहुत्तं जहन्निया ॥ २०१ || पलिओ माइ तिण्णि उ उक्कोसेण वियाहिया । अन्तोमुहुत्तं जहन्निया ॥ २०२ ॥ पुव्वकोडीपुहत्तेणं कार्यट्टिई मणुयाणं अन्तरं तेसिमं भवे । अणन्तकालमुक्को अन्तोमुहुत्तं एएसिं वण्णओ चेव गन्धओ संठाणादेसओ वावि विहाणाई जहन्नयं ॥२०३॥ रसफासओ । सहस्ससो || २०४ || देवा चउव्विहा वृत्ता ते मे कित्तयओ सुण । भोमिज्जवाणमन्तर- जोइसवेमाणिया तहा || २०५ ।। दसहा उ भवणवासी अट्टहा वणचारिणो । पंचविहा जोइसिया दुविहा वैमाणिया तहा ॥ २०६ ॥ असुरा नागसुवण्णा विज्जू अग्गी य आहिया । दिसा वाया यणिया भवणवासिणो ॥ २०७॥ Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६८ उत्तरजमयणं पिसायभूय जक्खाय रक्खसा किन्नरा य किंपुरिसा। महोरगा य गन्धव्वा अट्टविहा वाणमन्तरा ॥२०८।। चन्दा सूरा य नवखत्ता गहा तारागणा तहा। विसाविचारिणो चेव पंचहा जोइसालया ।।२०६।। वेमाणिया उ जे देवा दुविहा ते वियाहिया। कप्पोवगा य बोद्धव्वा कप्पाईया तहेव य ।।२१।। कप्पोवगा वारसहा सोहम्मोसाणगा तहा। सणंकुमारमाहिन्दा वम्भलोगा य लन्तगा ।।२११।। महासुक्का सहस्सारा आणया पाणया तहा। आरणा अच्चुया चेव इइ कप्पोवगा सुरा ।।२१२।। कप्पाईया उ जे देवा दुविहा ते वियाहिया। गेविज्जाऽणुत्तरा चेव गेविज्जा नवविहा तहिं ॥२१३॥ हेट्रिमाहेट्रिमा चेव हेदिमामज्झिमा तहा। हेट्ठिमा उवरिमा चेव मज्झिमाहेट्ठिमा तहा ॥२१४|| मज्झिमामज्झिमा चेव मज्झिमाउवरिमा तहा। उवरिमाहेट्ठिमा चेव उवरिमामज्झिमा तहा ।।२१।। उवरिमाउवरिमा चेव इय गेविज्जगा सुरा। विजया वेजयन्ता य जयन्ता अपराजिया ।।२१६॥ सव्वदसिद्धगा चेव पंचहाऽणुत्तरा. सुरा । इइ वेमाणिया देवा गहा एवमायओ ॥२१७।। लोगस्स एगदेसम्सि ते सव्वे परिकित्तिया । इत्तो कालविभागं तु वुच्छं तेसिं चउन्विहं ॥२१८।। Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ __ छत्तीसइमं अज्झयण - २६६ संतई पप्पाऽणाईया अपज्जवसिया वि य। ठिई पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य ॥२१६।। साहियं सागरं एक्कं उक्कोसेण ठिई भवे । भोमेज्जाणं जहन्नेणं . दसवाससहस्सिया ॥२२०॥ पलिओवममेगं तु उक्कोसेण ठिई भवे। . ' वन्तराणं " जहन्नेणं दसवाससहस्सिया ॥२.१।। पलिओवमं एगं तु वासलक्खेण साहियं । : पलिओवमऽट्ठभागो जोइसेसु जहन्निया ।।२२२।। दो चेव सागराइं उक्कोसेण वियाहिया। सोहम्ममि जहन्नेणं एगं च पलिओवमं ॥२२३।। सागरा साहिया दुन्नि उक्कोसेण वियाहिया। ईसाणम्मि . जहन्नेणं साहियं । पलिओवमं ।।२२४।। सागराणि य सत्तेव उक्कोसेण · ठिई भवे । सगंकुमारे जहन्नेणं ; दुन्नि ऊ सागरोवमा ।।२२।। साहिया सागरा सत्त उक्कोसेण ठिई भवे । । माहिन्दम्मि जहन्नेणं साहिया दुन्नि सागरा ॥२२६।। दस चेव सागराइं उक्कोसेण ठिई भवे । बम्भलोए जहन्नेणं. सत्त ऊः सागरोवमा ॥२२७।। चउद्दस सांगराई उक्कोसेण ठिई भवे । लन्तगम्मि जहन्नेणं दस ऊ सागरोवमा ।।२२८।। सत्तरस सागराइ उक्कोसेण ठिई भवे । । महासुक्के जहन्नेणं. चउद्दस सागरोवमा ।।२२६।। Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तरज्झयणं ७० अद्वारस सागराइ उक्कोसेण ठिई भवे । सहस्सारे जहन्नेणं सत्तरस सागरोवमा ।।२३०॥ सागरा अउणवीसं तु उक्कोसेण ठिई भवे । आणयम्मि जहन्नेणं अट्ठारस सागरोवमा ।।२३१।। वीसं तु सागराइ उक्कोसेण ठिई भवे । पाणयम्मि जहन्नेणं सागरा अउणवीसई ॥२३२॥ सागरा इक्कवीसं तु उक्कोसेण ठिई भवे । आरणम्मि जहन्नेणं वीसई सागरोवमा ॥२३३।। वावीसं सागराइं उक्कोसेण ठिई भवे । अच्च्यम्मि जहन्नेणं सागरा इक्कवीसई ॥२३४।। तेवीस सागराइ उक्कोसेण ठिई भवे । पढमम्मि जहन्नेणं बावीसं सागरोवमा ।।२३।। चउवीस सागराइ उक्कोसेण ठिई भवे । विइयम्मि जहन्नेणं तेवीसं सागरोवमा ।।२३६।। पणवीस सागराइ उक्कोसेण ठिई भवे । तइयम्मि जहन्नेणं चउवोसं सागरोवमा ॥२३७।। छब्बीस सागराइ उक्कोसेण ठिई भवे । चउत्थम्मि जहन्नेणं सागरा पणुवीसई ॥२३८।। सागरा सत्तवीसं तु उक्कोसेण ठिई भवे । पंचमम्मि जहन्नेणं सागरा उ छवीसई ।।२३६।। सागरा अट्ठवीसं तु उक्कोसेण ठिई भवे । छ?म्मि जहन्नेणं सागरा सत्तवीसई ॥२४०।। Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छत्तीसइमं अज्भवणं तु जहन्नेणं सागरा सागरा अउणतीसं सत्तमम्मि उक्कोसेण ठिई भवे । अट्ठवीसई || २४१|| तीसं तु सागराइ उक्कोसेण अट्ठमम्मि जहन्नेणं सागरा अउणतीसई || २४२ ॥ ठिई भवे । सागरा इक्कतीसं तु उक्कोसेण जहन्नेणं तीसई. नवमम्मि ठिई भवे । सागरोवमा ||२४३ || तेत्तीस सागराउ उक्कोसेण ठिई भवे । चउसु पि. विजयाईसु जहन्नेणेक्कतीसई ॥ २४४ ॥ तेत्तीसं अजहन्नमणुक्कोसा महाविमाण सव्वट्ट ठिई एसा २७१ जा चैव उ आउठि देवाणं तू सा तेसि कायठिई सागरोवमा । वियाहिया || २४५ || जहन्नुक्कोंसिया वियाहिया । भवे ॥ २४६ ॥ ॥ अन्तोमुत्तं जहन्नयं । अणन्तकालमुवकोसं विजढंमि सए काए देवाणं हुज्ज अन्तरं ।।२४७।। एएसि वण्णओ चैव गन्धओ संठाणादेसओ वावि विहाणाई . रसफासओ । सहस्सओ || २४८ || संसारत्या य सिद्धां य इइ जीवा वियाहिया । रूविणो चैव रुवीय अजीवा दुविहा विय ॥ २४६ ॥ इइ जीवमजीवे य सोच्चा सद्दहिऊण य । सव्वनयाण अणुमए रमेज्जा संजमे मुणी ॥ २५० ॥ तओ वहूणि वासाणि सामण्णमणुपालिया । कमजोगेण अप्पाणं संलिहे मुणी ॥ इमेण Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७२ उत्तरज्झयण वारसेव उ वासाइं संलेहक्कोसिया भवे । संवच्छरं मज्झिमिया छम्मासा य जहन्निया ।।२५२॥ पढमे वासचउक्कम्मि विगईनिज्जूहणं करे । विइए वासचउक्कम्मि विचित्तं तु तवं चरे ॥२५३।। एगन्तरमायाम कटु संवच्छरे दुवे । तओ संवच्छरद्धं तु नाइविगिट्ठ तवं चरे ॥२५४॥ . तओ संवच्छरद्धं तु विगिट्ठ तु तवं चरे। परिमियं चेव आयामं तंमि संवच्छरे करे ॥२५५।। कोडीसहियमायाम कट्ट संवच्छरे मुणी । मासद्धमासिएणं तु आहारेण तवं चरे ।।२५६।। कन्दप्पमाभिओगं किदिवसियं मोहमासुरत्तं च । एयाओ दुग्गईओ मरणम्मि विराहिया होन्ति ॥२५७।। मिच्छादसणरत्ता सनियाणा हु हिंसगा। इय जे मरन्ति जीवा तेसिं पुण दुल्लहा वोही ।।२५८।। सम्मइंसणरत्ता अनियाणा सुक्कलेसमोगाढा। इय जे मरन्ति जीवा सुलहा तेसिं भवे बोहो ॥२५६।। मिच्छादसणरत्ता सनियाणा कण्हलेसमोगाढा । इय जे मरन्ति जीवा तेसिं पुण दुल्लहा वोही ।।२६०।। जिणवयणे अणुरत्ता जिणवयणं जे करेन्ति भावेण । अमला असंकिलिट्ठा ते होन्ति परित्तसंसारी ॥२६१।। वालमरणाणि वहुसो अकाममरणाणि चेव य वहणि । मरिहिन्ति ते वराया जिणवयणं जे न जाणन्ति ॥२६२।। Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७३ छत्तीसइमं अज्झयणं वहुआगमविन्नाणा समाहिउपायगा य गुणगाही। एएण कारणेणं अरिहा आलोयणं सोउं ।।२६३।। कन्दप्पकोक्कुइयाई तह सीलसहावहासविगहाहिं । विम्हावेन्तो य परं कन्दप्पं भावणं कुणइ ।।२६४।। मन्ताजोगं काउं भूईकम्मं च जे. पउंजन्ति । सायरसइड्ढिहेउं अभिओगं भावणं कुणइ ॥२६॥ नाणस्स · केवलीणं धम्मायरियस्स संघसाहणं । माई अवण्णवाई किदिवसियं भावणं कुणइ ॥२६६।। अणुवद्धरोसपसरो तह य निमित्तंमि होई पडिसेवि । एएहि कारणेहि आसुरिय भावणं कुणइ ॥२६७।। सत्थग्रहणं विसभक्खणं च जलणं च जलप्पवेसो य । अणायारभण्डसेवा जम्मणमरणाणि वन्धन्ति ॥२६८।। इइ पाउकरे बुद्ध नायए परिनिव्वुए। छत्तीसं . उत्तरज्झाए भवसिद्धीयसंमए ॥२६६।। . -त्ति बेमि..।। -:उत्तराध्ययन संपूर्ण: Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णमोऽत्यु णं तस्स समणस्स भगवओ महावीरस्स नन्दी-तुत वीरस्तुति जयइ जग-जीव-जोणी, वियाणओ जगगुरू जगाणंदो। जगणाहो जगबंधू, जयइ जगप्पियामहो भयवं ।। १॥ .. जयइ सुआणं पभवो, तित्थयराणं अपच्छिमो जयइ।। जयइ गुरू लोगाणं, जयइ महप्पा महावीरो ।। २ ।। भई सव्वजगुज्जोयगस्स, भदं जिणस्स वीरस्स। भई सुरासुरनमंसियस्स, भह धूय रयस्स ।। ३ ।। संघस्तुति गुण-भवण-गहण, सुय-रयण-भरिय-दसण-विसुद्ध-रत्थागा। संघ-नगर ! भद्दते, अखंड-चारित्त-पागारा ॥ ४ ॥ संजम-तव तुंवारयस्स, नमो सम्मत्तपारियल्लस्स । अप्पडिचक्कस्स जओ, होउ सया संघ-चक्कस्स ॥ ५ ॥ भद्द सीलपडागूसियस्स, तव-नियम-तुरय-जुत्तस्स । संघ-रहस्स भगवओ, सज्झायसु नंदिघोसस्स ।। ६ ।। कम्मरय-जलोहविणिग्गयस्स, सुयरयण-दीहनालस्स । पंचमहव्वय-थिरकण्णियस्स, गुणकेसरालस्स ।। ७ ।। सावग-जण-महुअरिपरिवुडस्स, जिण-सूर-तेयवुद्धस्स। संघ-पउमस्स भद्द, समण-गण-सहस्सपत्तस्स ।। ८ ।। Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - नंदी-सुत्तं २७५ तव-संजम मय-लंछण! अकिरिय राहुमुह-दुद्धरिस! निच्च । जय संघचंद ! निम्मल,-सम्मत्तविसुद्ध जोण्हागा ! ॥ ६ ॥ परतित्थिय-गह-पह-नासगस्स, तवतेय दित्त लेसस्स । ना णु ज्जो य स्स ज ए, भद्द दम संघ-सू र स्स ॥१०॥ भद्द धिइवेला परिगयस्स, सज्झाय जोग मगरस्स। अक्खोहस्स भगवओ, संघसमुदस्स रुदस्स ॥ ११ ॥ • सम्मदसण-वर . . वइर,-दढरूढगाढावगाढ-पेढस्स । धम्मवर - रयण - मंडिय - चामीयर--मेहलागस्स ।। १२॥ नियमूसिय कणय, सिलायलुज्जल जलंत-चित्त-कूडस्स ! नंदणवण मणहर सुरभि, सीलगंधुद्धमायस्स ।। १३ ।। जीवदया-सुन्दर-कंदरूद्दरिय-मुणिवर मइंदइन्नस्स । हेड-सयधाउपगलंत, रयणदित्तोसहि गुहस्स ।। १४ ।। संवरवर जल पगलिय, उज्झरप्पविरायमाणहारस्स। सावग-जण पउर-रवंत, मोर नच्चंत कुहरस्स ।। १५ ॥ विणय-नय-पवर मुणिवर, फुरंत विज्जुज्जलंत सिहरस्स। विविहगुण कप्परक्खग, फलभरकुसुमाउलवणस्स ।। १६ ।। नाणवर-रयण-दिप्पंत, ... कंतवेरुलियविमलचूलस्स । वंदामि विणयपणओ, संघ-महामंदरगिरिस्स ।। १७ । गुण-रयणुज्जलकडयं, सीलसुगंधि-तवमंडिउद्दसं । सुय-वारसंग-सिहरं, संघ-महामंदरं वंदे ।। १८ ।। नगर रह चक्क पउमे, चंदे सूरे समुह मेरूमि । जो उवमिज्जइ सययं, तं संघ-गुणायरं वंदे ।। १६ ।। Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७६ स्वाध्याय-सुध तीर्थकरनामानि उसभं अजियं संभव, मभिनंदण सुमइसुप्पभसुपासं। ससि पुप्फदंत सीयल, सिज्जंसं वासुपुज्जं च ।। २० ।। विमल मणंतं य धम्म, संति कुंथं अरं च मल्लि च । मुनिसुव्वय -नमि -नेमि, पासं तह वद्धमाणं च ।। २१॥ गणधरनामानि पढमित्थ इंदभूई, वीए पुण होइ अग्गिभूइ त्ति । तइए य वाउभूई, तो वियत्ते सुहम्मे य ।। २२ ।। मंडिअ-मोरियपुत्ते, अकंपिए चेव अयलभाया य । मेयज्जे य पहासे, गणहरा हुंति वीरस्स ॥ २३ ॥ जिनशासनस्तुति-- निव्वुइ-पह-सासणयं, जयइसया सव्वभाव-देसणयं । कुसमय-मयनासणयं, जिणिदवर वीरसासणयं ।। २४ ।। स्थविरावली सुहम्मं अग्गिवेसाणं, जंबूनामं च कासवं । पभवं कच्चायणं वंदे, बच्छं सिज्जंभवं तहा ॥ २५ ॥ जसभ६५ तुगियं वंदे, संभूयं६ चेव माढरं । भद्दवाहुं च पाइन्नं, थूलभद्द च गोयमं ।। २६ ॥ एलावच्चसगोत्तं, वंदामि महागिरि सुहत्थिा ० च । तत्तो कोसियगोत्तं११ वहुलस्स सरिव्वयं वंदे ॥ २७ ॥ हारियगुत्तं साई१२ च, वंदिमो हारियं च सामज्जं१३ । वंदे कोसियगोत्तं, संडिल्लं१४ अज्जजीयधरं ॥ २८ ॥ Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नंदी-सुतं २७७ ति-समुद्द-खायकित्ति,१५ दीवसमुद्देसु गहिय-पेयालं । वंदे अज्जसमुद्द, अक्खुभिय-समुद्द-गंभीरं ।। २६ ॥ भणगं करगं झरगं, पभावगं णाण-दसणगुणाणं । वंदामि अज्जमगुं,१६ सुयसागरपारगं धीरं ।। ३०॥ वंदामि अज्जधम्म १७ तत्तो वंदे य भद्दगुत्तं च । तत्तो य अज्जवइरं१६, तव-नियम-गुणेहिं वइरसमं ।। ३१ ।। वंदामि अज्जर क्खियः " खवणे रखिय चारित्त सव्वस्से । रयणकरंडगभूओ, अणुओगो रक्खिओ जेहिं ॥ ३२ ॥ नाणंमि दंसणंमि य, तव-विणए णिच्चकालमुज्जुत्तं। अज्जं नंदिल-खवणं२१, सिरसा वंदे पसन्नमणं ॥ ३३ ॥ । वड्ढउ वायगवंशो, जसवंसो अज्जनागहत्थीण २२ । . वागरण-करण-भंगिय, कम्मपयडीपहाणाणं ॥ ३४ ॥ जच्चंजण:धाउसमप्पहाणं, मुद्दिय-कुवलयनिहाणं । वड्ढउ वायगवंसो, रेवइ-नक्खत्तनामाणं२३ ।। ३५ ।। "अयलपुरा" निक्खते, कालियसुअ-आणुओगिए धीरे । "बंभद्दीवग"-सीहे२४, वायगपयमुत्तमं पत्ते ।। ३६ ॥ जेसि इमो अणुओगो, पयरइ अज्जावि अड्ढभरहमि । वहुनयरनिंग्गयजसे, ते वंदे खंदिलायरिए २५ ॥ ३७ ।। तत्तो हिमवंत-महंत-विक्कमे, धिइपरक्कममणते । सज्झायमणंतधरे, हिमवंते२६ वंदिमो सिरसा ।। ३८ ॥ कालिय सुय-अणुओगस्स-धारए, धारए य पुन्वाणं । हिमवंतखमासमणे, वंदे णागज्जुणायरिए२७ ।। ३६ ॥ Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७८ स्वाध्याय-सुधा मिउमद्दवसंपन्ने, आणपुवि वायगत्तणं पत्ते । . ओहसुयसमायारे, नागज्जुणवायए वंदे ॥४०॥ गोविंदाणं२८ पि नमो, अणुओगे विउलधारणिंदाणं । णिच्चं खंतिदयाणं, परूवणे दुलभिदाणं ॥४१॥ तत्तो य भूयदिन्नं,२६ निच्चं तव-संजमे अनिविण्णं । पंडियजणसम्माण, वदामो संजमविहिण्णु ॥४२॥ वर-कणग-तविय-चंपग, विमउल-वर-कमलगभसरिवन्ने । भवियजणहिययदइए, दयागुणविसारए धीरे ।। ४३॥ अड्ढभरहप्पहाणे, वहविह-सज्झाय-सुमणियपहाणे। अणुओगियवरवसभे, नाइलकुलवंसनदिकरे ।। ४४ ।। भूयहियप्पगन्भे, वंदेहं भूयदिनमायरिए । भवभयवुच्छ्यकरे, सीसे नागज्जुणरिसीणं ॥ ४५ ।। सुमुणिय निच्चानिच्चं, सुमुणिय सुत्तत्थधारथं वंदे । सम्भावुव्भावणया, तत्थं लोहिच्च३० णामाणं ।। ४६ ।। अस्थमहत्थखाणि, सुसमणवक्खाणकहण निव्वाणि । पयईए महुरवाणि, पयओ पणमामि दूसगणिं ॥४७॥ तव-नियम-सच्च-संजम, विणयज्जव-खंति-मद्दवरयाणं । सीलगुणगद्दियाणं, अणुओगजुगप्पहाणाणं ।। ४८ ।। सुकुमालकोमलतले, तेसि पणमामि लक्खणपसत्थे । पाए पावयणीणं, पडिच्छ्य सयएहिं पणिवइए || ४६ ।। जे अन्ने भंगवंते, कालियसुय-आणओगिए धीरे । ते पणमिऊण सिरसा, नाणस्स परूवणं वोच्छं । ५० ।। Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . २७६ नंदी-सुत्तं . . . श्रोतुश्चतुर्दशदृष्टान्तानि सेल-घण-कुडग-चालिणि, परिपुण्णग-हंस-महिस-मेसे य । मसग-जलूग-विराली, जाहग-गो-भेरि आभीरी ।। १ ।। त्रिविधा परिपदा सा समासओ तिविहा पण्णत्ता, तं जहाजाणिया, अजाणिया, दुव्वियड्ढा । जाणिया जहाखीरमिव जहा हंसा, जे घट्टंति इह गुरुगुणसमिद्धा । दोसे अ. विवज्जती, तं जाणसु जाणियं परिसं ॥ २॥ अजाणिया जहाजा होइ पगइ-महुरा, मियछावय-सीह-कुक्कुडयभूआ। रयणमिव असंठविआ, अज़ाणिया सा भवे परिसा।।३।। दुन्वियड्ढा जहान य कत्थइ निम्माओ, न य पुच्छइ परिभवस्सदोसेणं । वस्थिव्व वायपुण्णो, फुट्टइ गामिल्लय विअड्ढो ।। ४ ।। पञ्चविधं ज्ञानम्-.. . सुत्तं १ नाणं पंचविहं पण्णत्तं, तं जहा-.. १. आभिनिवोहियनाणं, २ सुयनाणं, ३ ओहिनाणं, ४ मणपज्जवनाणं, ५ केवलनाणं। Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८० स्वाध्याय-सुधा सुत्तं २ तं समासओ दुविहं पण्णतं, तं जहा१ पच्चक्खं च, २ परोक्खं च । सुत्तं ३ से कि तं पच्चक्खं ? पच्चक्खं दुविहं पण्णत्तं, तं जहा१ इंदिय-पच्चक्खं, २ नोइंदिय-पच्चक्खं । सुत्तं ४ से किं तं इंदिय-पच्चक्खं ? इंदिय-पच्चक्खं पंचविहं पण्णत्तं, तं जहा--- १ सोइंदिय-पच्चक्खं, २ चक्खिदिय-पच्चक्खं, ३ घाणिदिय-पच्चक्खं, ४ जिभिदिय-पच्चक्खं, ५ फासिदिय-पच्चक्खं, से तं इंदिय-पच्चक्ख । सुत्तं ५ से किं तं नोइंदिय-पच्चक्खं ? नो इंदिय-पच्चक्खं तिविहं पण्णत्तं, तं जहा१ ओहिनाण-पच्चक्खं, २ मणपज्जवनाण-पच्चवखं, ३ केवलनाण-पच्चक्खं । Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नंदी-सुत्तं .. . अवधिज्ञानम्__ सुत्तं ६ से किं तं ओहिनाण-पच्चक्खं ? ओहिनाण-पच्चक्खं दुविहं पण्णत्तं, तं जहा १ भव-पच्चइयं च, २ खाओवसमियं च । सुत्तं ७ से किं तं भव-पच्चइयं ? • भव-पच्चइय दुण्हं, तं जहा- . . १ देवाण य, २ नेरइयाण य । सुत्तं ८ से किं तं खाओवसमियं ? खाओवसमियं दुण्हं, तं जहा१ मणुस्साण य, २ पंचिदियतिरिक्खजोणियाण य । को हेऊ खाओवसामियं ? खाओवसामियं-तयावरणिज्जाणं कम्माणं उदिण्णाणं खएणं, अणुदिण्णाणं उवसमेणं ओहिनाणं समुप्पज्जइ । सुत्तं ६ अहवा गुणपडिवन्नस्स अणगारस्स ओहि-नाणं समुप्पज्जइ, तं समासओ छव्विहं पण्णत्तं, तं जहा१ आणुगामियं, २ अणाणुगामियं, ३ वड्ढमाणयं, ४ हीयमाणयं, . ५ पडिवाइयं, ६ अप्पडिवाइयं । Page #292 --------------------------------------------------------------------------  Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . २८३ नंदी-सुत्त. (३) से किं तं पासओ अंतगयं? . पासओ अंतगयंसे जहानामए केइ पुरिसे, उक्कं वा, चडुलियं वा, अलायं वा, ____ मणि वा, पईवं बा, जोइं . वा, पासओ काउं परिकड्ढेमाणे परिकड्ढेमाणे गच्छिज्जा, से त्तं पासओ अंतगयं । से तं अंतगयं। . . से कि तं मज्झगयं ? मज्झगयं-से जहानामए केइ पुरिसे, उक्कं वा, चडुलियं वा, अलायं वा, मणि वा, पईवं वा, जोई वा, मत्थए काउं समुब्वहमाणे समुबहमाणे गच्छिज्जा, से त्तं मज्झगयं । अंतगयस्स य मज्झगयस्स य को पइविसेसो ? पुरओ अंतगएणं ओहिनाणेणं पुरओ चेव संखिज्जाणि वा असंखिज्जाणि वा जोयणाई जाणइ, पासइ, मग्गओ अंतगएणं ओहिनाणेणं मग्गओ चेव संखिज्जाणि वा असंखिज्जाणि वा जोयणाई जाणइ, पासइ, पासओ अंतगएणं ओहिनाणेणं पासओ चेव संखिज्जाणि वा असंखिज्जाणि-वा जोयणाई जाणइ, पासइ, मज्झगएणं ओहिनाणेणं सचओ समंता संखिज्जाणि वा असंखिज्जाणि वा जोयणाई जाणइ, पासइ, से तं आगामिणुयं ओहिनाणं ॥ १० ॥ Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८४ स्वाध्याय-सुधा सुत्तं ११ से किं तं अणाणुगामियं ओहिनाणं ? अणाणुगामियं ओहिनाणंसे जहानामए केइ पुरिसे एगं महंतं जोइटाणं काउं तस्सेव जोइट्ठाणस्स परिपेरंतेहिं, परिघोलेमाणे परिघोलेमाणे तमेव जोइट्ठाणं पासइ, अन्नत्थगए न जाणइ, न पासइ, एवामेव अणाणुगामियं ओहिनाणं जत्थेव समुप्पज्जइ तत्थेव संखेज्जाणि वा असंखेज्जाणि वा संवद्धाणि वा असंवद्धाणि वा, जोयणाई जाणइ, पासइ, अन्नत्थगए (न जाणइ) न पासइ । से त्तं अणाणुगामियं ओहिनाणं । सुत्तं १२ से किं तं वड्ढमाणयं ओहिनाणं ? वड्ढमाणयं ओहिनाणं-पसत्थेसु अज्झवसायट्ठाणेसु . वट्टमाणस्स वड्ढमाणचरित्तस्स विसुज्झमाणस्स विसुज्झमाण-चरित्तस्स सव्वओ समंता ओही वड्डइ । गाहा -जावइआ तिसमया-हारगस्स, सुहुमस्स पणगजीवस्स । ओगाहणा जहन्ना, ओहिखित्तं जहन्नं तु ।। १ ।। सव्व-वहु-अगणिजीवा, निरंतरं जत्तियं भरिज्जंसु । खित्तं सव्वदिसागं, परमोही खित्त निद्दिट्टो ॥ २ ॥ अंगुलमावलियाणं, भागमसंखिज्ज दोसु संखिज्जा। अंगुलमावलिअंतो, आवलिया अंगुलपुहुत्तं ।। ३ ।। .. Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नंदी-सुत्तं २८५ हत्थंमि. मुहत्तंतो, दिवसंतो गाउअंमि वोद्धव्वो। . जोयण . दिवसपुहत्तं, पक्खंतो . पन्नवीसाओ ।। ४ ।। भरहमि अड्ढमासो, जंबुद्दिवंमि साहिओ मासो। वासं च मणुयलोए, वासपुहुत्तं च रुयगंमि ।। ५ ।। संखिज्जमि उ काले, दीवसमुद्दा वि हूंति संखिज्जा। कालंमि असंखिज्जे, दीवसमुद्दा उ भइयव्वा ।। ६ ।। काले चउण्ह वुड्ढी, कालो भइअव्वु खित्तवुड्ढीए। वुड्ढीए दवपज्जव, भइयव्वा खित्तकाला उ ।। ७ ।। सुहमो य होइ कालो, तत्तो सहमयरं हवइ खित्तं । अंगुलसेढीमित्ते ओसप्पिणिओ असंखिज्जा ।। ८ ।। से त्तं वड्ढमाणयं ओहिनाणं ।। सुत्तं १३ से किं तं हीयमाणयं ओहिनाणं ? हीयमाणयं ओहिनाणं-- अप्पसत्थेहि अज्झवसायट्ठाणेहि वट्टमाणस्स वट्टमाण चरित्तस्स, संकिलिस्समाणस्स, संकि लिस्समाण-चरित्तस्स सव्वओ समंता ओही परिहायइ, से त्तं हीयमाणयं ओहिनाणं । . . सुत्तं १४ से किं तं पडिवाइ ओहिनाणं ? पडिवाइ-ओहिनाणं जहन्नेणं अंगुलस्स असंखिज्जइ भागं वा, संखिज्जइ भागं वा वालग्गं वा, वालग्गपुहुत्तं वा, लिवखं वा, लिक्खपुहुत्तं वा, जूयं वा, जूयपुहुत्तं वा, जवं वा, जवपुहुत्तं वा, अगुलं वा, अंगुलपुहुत्तं वा, पायं बा, पायपूहुत्तं वा, विहत्थि वा, विहत्थिपुहुत्तं वा, रयणि वा, रयणिपुहुत्तं वा, Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८६ स्वाध्याय-सुधा कुच्छि वा, कुच्छिपहुत्तं वा, धणु वा, धणुपुहत्तं वा, गाउयं वा, गाउयपुहुत्तं वा, जोयणं वा, जोयणपुहुत्तं वा, जोयणसयं वा, जोयणसयपुहुत्तं वा, जोयणसहस्सं वा, जोयणसहस्सपहत्तं वा, जोयणलक्खं वा, जोयणलक्खपुहुत्तं वा, जोयण-कोडिं वा, जोयणकोडिपुहुत्तं वा, जोयण-कोडाकोडिं वा, जोयण-कोडाकोडिपुहुत्तं वा, जोयण-संखेज्ज वा, जोयण-संखेज्जपुहत्तं वा, जोयण-असंखेज्ज वा, जोयण-असंखेज्जपुहुत्तं वा, उक्कोसेणं लोगं वा पासित्ताणं पडिवइज्जा,. से त्तं पडिवाइ ओहिनाणं । सुत्तं १५ से किं तं अपडिवाइ-ओहिनाणं ? अपडिवाइ-ओहिनाणं-जेण अलोगस्स एगमविआगास-पएसं जाणइ, पासइ, तेण परं अपडिवाइ-ओहिनाणं । से त्तं अपडिवाइ-ओहिनाणं । सुत्तं १६ तं समासओ चउन्विहं पण्णत्तं, तं जहा दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ। तत्थ दव्वओ णं ओहिनाणी जहन्नेणं अणंताई रूविदव्वाइं जाणइ, पासइ, उक्कोसेणं सव्वाइं रूविदव्वाइं जाणइ, पासइ। खित्तओ णं ओहिनाणी जहन्नेण अंगुलस्स असंखिज्जइभागं जाणइ, पासइ, उक्कोसेणं असंखिज्जाई अलोगे लोगप्पमाणमित्ताइं खंडाइं जाणइ, पासइ । कालओ णं ओहिनाणी जहन्नेणं आवलियाए असंखिज्जइभागं जाणइ, पासइ, Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नंदी: सुत्तं 'उक्को सेणं असंखिज्जाओ उस्सप्पिणीओ अवसप्पिणीओ अईयमणागयं च कालं जाणइ, पासइ । भावओ णं ओहिनाणी जहन्त्रेणं अणंते भावे जाणइ, पासइ, उक्कोसेण वि अनंते भावे जाणइ, पासइ, सव्वभावाणमणंतभागं जाणड़, पासइ । गाहा—ओही भवपच्चइओ, गुणपच्चइओ य वण्णिओ दुविहो । तस्य वहू विगप्पा, दव्वे खित्ते अ काले य ॥ ६ ॥ इय-देव- तित्थंकराय, ओहिस्स वाहिरा हंति । पासंति सव्वओ खलु, सेसा देसेण पासंति ॥ १० ॥ से त्तं ओहिनाण- पच्चक्खं । सुत्तं १७ से किं तं मणपज्जवनाणं ? मणपज्जवनाणे णं भंते ! किं मणुस्साणं उप्पज्जइ, अमणुस्साणं ? गोयमा ! मणुस्साणं, नो अमणुस्साणं । जइ मणुस्साणं, किं सम्मुच्छिम - मणुस्साणं, गव्भवक्कंतिय मणुस्साणं ? गोयमा ! नो संमुच्छिम मणुस्साणं, गन्भवक्कंतिय मणुस्साणं उप्पज्जइ । जइ गव्भवक्कंतिय मणुस्साणं, किं कम्मभूमिय गव्भवक्कंतिय मणुस्साणं, अकम्मभूमिय गव्भवक्कंतिय मणुस्साणं, अंतरदीवग गव्भवक्कंतिय मणुस्साणं ? २८७ Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८८ स्वाध्याय-सुधा गोयमा ! कम्मभूमिय गम्भववतिय मणस्साणं नो अकम्मभूमिया ॥ नो अंतरदीवग जइ कम्मभूमिय गन्भवतिय मणुस्साणं, किं संखिज्जवासाउय कम्मभूमिय गम्भवक्कंतिय मणुस्साणं, असंखिज्ज , गोयमा ! संखिज्जवासाउय , नो असंखिज्ज , , जइ संखिज्जवासाउय कम्मभूमिय गम्भवक्कंतिय मणस्साणं, कि पज्जत्तग संखेज्जवासाउय , अपज्जत्तग ,,? गोयमा ! पज्जत्तग " नो अपज्जत्तग , जइ पज्जत्तग संखेज्जवासाउय कम्मभूमिय गन्भवतिय मणुस्साणं किं सम्म दिद्विपज्जत्तग ,, मिच्छदिहि ॥ सम्मामिच्छदिट्ठि ,, गोयमा ! सम्मदिट्ठि-पज्जत्तग-संखेज्जवासाउय-कम्मभूमिय-गम्भवक्कंतिय मणुस्साणं, नो मिच्छदिट्टि , , नो सम्म मिच्छदिट्टि जइ सम्मदिट्ठिपज्जत्तग कि संजयसम्मदिट्ठिपज्जत्तग संखे० Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नंदी-सुत्तं . २८८ .. असंजय सम्मदिहि-पज्जत्तग-संखिज्जवासाउय-कम्मभूमिय-गम्भ वक्कंतियमणुस्साणं, संजयासंजय . . , . गोयमा ! संजयसम्मदिद्विपज्जत्तग । संख० . नो असंजय नो संजयासंजय जइ संजय-सम्मदिट्ठिपज्जत्तग कि पमत्तसंजय . अपमत्तसंजय गोयमा ! अपमत्तसंजय ... नो पमत्तसंजयः जइ अपमत्तसंजय किं इढिपत्त अपमत्त अणिड्ढीपत्त . " गोयमा ! इड्ढीपत्त , णो अणिड्ढीपत्त ,, मणपज्जवनाणं समुप्पज्जइ ।' सुत्तं १८ तं च दुविहं उप्पज्जइ, तं जहा१ उज्जुमई य, २ विउलमई य। तं समासओ चउन्विहं पण्णत्तं, . तं जहा-दव्वओ, खित्तओ, कालओ, भावओ। . तत्थ दव्वओ णं उज्जुमई अणंते अणंतपएसिए खंधे जाणइ, पासइ, तं चेव विउलमई अब्भहियतराए विउलतराए- . Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६० स्वाध्याय-सुधा विसुद्धतराए, वितिमिरतराए जाणइ, पासइ। . खित्तओ णं उज्जुमई य जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं उक्कोसेणं अहे जाव इमीसे रयणप्पभाए पुढवीएउवरिमहेडिल्ले खुड्डगपयरे, . उड्ढं-जाव-जोइसस्स उवरिमतले, तिरियं-जाव-अंतोमणस्सखित्ते अड्ढाइज्जेसु दीवसमुद्देसु पन्नरससु कम्मभूमिसु, तिसाए अकम्मभूमिसु छप्पन्नाए अंतरदीवगेसु सन्निपंचिदियाणं पज्जत्तयाणं मणोगए भावे जाणइ, पासइ, तं चेव विउलमई अड्ढाइज्जेहिं अंगुलेहिं अब्भहियतरं विउलतरं, विसुद्धतरं वितिमिरतरागं खेत्तं जाणइ, पासइ । कालओ णं उज्जुमई जहन्नेणं पलिओवमस्स असंखिज्जयभागं अतीयमणागयं वा कालं जाणइ, पासइ, तं चेव विउलमई अन्भहियतरागं, विउलतरागं विसुद्धतरागं वितिमिरतरागं जाणइ, पासइ.। . . भावओ णं उज्जुमई अणते भावे जाणइ, पासइ, सव्वभावाणं अणंतभागं जाणइ, पासइ, तं चेव विउलमई अब्भहियतरागं विउलतरागं विसुद्धतरागं वितिमिरतरागं जाणइ, पासइ। गाहा-मणपज्जवनाणं पुण, जणमणपरिचितिअत्थपागडणं । माणुसखित्तनिवद्धं, गुणपच्चइअं चरित्त वओ.।।१।। से तं मणपज्जवनाणं । Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६१ नंदी-सुत्तं सु. १६ से किं तं केवलनाणं ? केवलनाणं दुविहं पण्णत्तं, तं जहा(१) भवत्थकेवलनाणं च। (२) सिद्धकेवलनाणं च । . : . से किं तं भवत्थकेवलनाणं?.. भवत्थकेवलनाणं दुविहं पण्णत्तं, तं जहा(१) सजोगिभवत्थकेवल नाणं च, (२) अजोगिभवत्थकेवलनाणं च। . से किं तं सजोगिभवत्थकेवलनाणं? .. सजोगिभवत्थकेवलनाणं दुविहं पण्णत्तं, तं जहा(१) पढमसमय-सजोगि-भवत्थकेवलनाणं च (२) अपढमसमय-सजोगि-भवत्थकेवलनाणं च । अहवा-- (१) चरमसमय-सजोगी-भवत्थकेवलनाणं च (२) अचरमसमय-सजोगी-भवत्थकेवलनाणं च । से तं सजोगिभवत्थकेवलनाणं । से कि तं अजोगिभवत्थकेवलनाणं ? अजोगिभवत्थकेवलनाणं दुविहं पण्णत्तं, तं जहा--- (१) पढमसमय-अजोगि-भवत्थकेवलनाणं च (२) अपढमसमय-अजोगि:भवत्थकेवल नाणं च । Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६२ स्वाध्याय-सुधा अहवा(१) चरमसमय-अजोगि-भवत्थकेवलनाणं च (२) अचरमसमय-अजोगि-भवत्थकेवलनाणं च । से त्तं अजोगिभवत्थकेवलनाणं । से त्तं भवत्थकेवलनाणं । सुत्तं २० से किं तं सिद्धकेवलनाणं ? सिद्धकेवलनाणं दुविहं पण्णत्तं, तं जहा(१) अणंतरसिद्धकेवलनाणं च (२) परंपरसिद्धकेवलनाणं च । सुत्तं २१ से किं तं अणंतरसिद्धकेवलनाणं? अणंतरसिद्धकेवलनाणं पण्णरसविहं पण्णत्तं, तं जहा १ तित्थसिद्धा २ अतित्थसिद्धा... ३ तित्थयरसिद्धा ४ अतित्थयरसिद्धा ५ सयंवुद्धसिद्धा ६ पत्तेयबुद्धसिद्धा ७ बुद्धवोहियसिद्धा ८ इथिलिंगसिद्धा ६ पुरिसलिंगसिद्धा १० नपुंसकलिंगसिद्धा ११ सलिंगसिद्धा १२ अन्नलिंगसिद्धा ... १३ गिहिलिंगसिद्धा १४ एग सिद्धा १५ अणेगसिद्धा.. से तं अणंतरसिद्ध-केवलनाणं ? Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६३ नंदी-सुत्तं .. सुत्तं २२ से किं तं परंपरसिद्ध केवलनाणं ? परंपरसिद्ध केवलनाणं अणेगविहं पण्णत्तं, तं जहाअपढमसमयसिद्धा, दुसमयसिद्धा,. तिसमयसिद्धा, चउसमयसिद्धा जाव दससमयसिद्धा संखिज्ज समयसिद्धा, असंखिज्ज समयसिद्धा, अणंत समयसिद्धा, . . से तं परंपरसिद्ध केवलनाणं । से त्तं सिद्धकेवलनाणं । तं समासओ चउन्विहं पण्णत्तं, तं जहादव्वओ; खित्तओ, कालओ, भावओ। तत्थ दवओ णं केवलनाणी सव्वदव्वाइं जाणइ पासइ । खित्तओ णं केवलनाणी सव्वं खित्तं जाणइ पासइ । कालओ णं केवलनाणी सव्वं कालं जाणइ पासइ । भावओ णं केवलनाणी सव्वे भावे जाणइ पासइ । गाहा-अहसव्वदव्व परिणाम-भावविण्णत्ति कारणमणतं । सासयमप्पडिवाई, एगविहं केवलनाणं ॥ १ ॥ सुत्तं २३ गाहा–केवलनाणेणऽत्थे, नाउं जे तत्थ पण्णवणजोगे । ते भासइ तित्थयरो, वइजोगसुअं हवइ सेसं ।। २ ।। से तं केवलनाणं। .. से त्तं नोइंदियपच्चक्खं । से त्तं पच्चक्खनाणं । Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६४ स्वाध्याय-सुधा __ सुत्तं २४ से कि तं परुक्खनाणं ? परुक्खनाणं दुविहं पण्णत्तं, तं जहा(१) आभिणिवोहियनाणपरुक्खं च (२) सुयनाणपरुक्खं च । जत्थ आभिणिवोहियनाणं तत्थ सुयनाणं, जत्थ सुयनाणं तत्थ आभिणिवोयिनाणं । दो वि एयाई अण्णमण्णमणुगयाइं, तहवि पुण इत्थ आयरिआ नाणत्तं पण्णविति अभिणिबुज्झइ त्ति आभिणिवोहियनाणं, सुणेइ त्ति सुयं, मइपुटवं जेण सुअं, न मई सुयपुव्विया । सुत्त २५ अविसेसिया मई-मइनाणं च मइअण्णाणं च । विसेसियासम्मदिद्धिस्स मई मइनाणं, मिच्छादिट्ठिस्स मई मइ-अन्नाणं । अविसेसियं सुयं-सुयनाणं च सुयअन्नाणं च । विसेसि सुअंसम्मदिहिस्स सुअं सुयनाणं, मिच्छदिहिस्स सुअं सुय-अन्नाणं । सुत्तं २६ से कि तं आभिणिवोहियनाणं ? आभिणिवोहियनाणं दुविहं पण्णत्तं, तं जहा--- १ सुयनिस्सियं च, २ असुयनिस्सियं च । Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - नंदी-सुत्तं .. .. से किं तं असुयनिस्सियं ? असुयनिस्सियं चउव्विहं पण्णत्तं, तं जहागाहा-उप्पत्तिया वेणइआ, कम्मिया परिणामिया । बुद्धी चउबिहा वुत्ता, पंचमा नोवलब्भइ ।। १ ।। पुव्वमदिट्ठमस्सुय, मवेइयं तक्खणविसुद्धगहियत्था। अव्वाहयफलजोगा, बुद्धी उप्पत्तिया नाम ।। १ ।। भरहसिल मिंढ कुक्कुड तिल वालुय हथिअगडवणसंडे । पायस अइआ पत्ते, खाडहिला पंचपियरो य ॥ २ ॥ भरहसिल पणिय रुक्खे, खुड्डग पडसरड काय उच्चारे। गय घयण गोल खंभे, खुड्डग मन्गि स्थि पइ पुत्ते ॥ ३ ॥ महुसित्थ मुद्दि अंके, नाणए भिक्खु चेडगनिहाणे। सिक्खा य अत्थसत्थे, इच्छा य महं सयसहस्से ।। ४ ।। भरनित्थरणसमत्था, तिव्वग्ग-सुत्तत्थ-गहिय-पेयाला। उभओ लोग फलवई, विणयसमुत्था हवइ बुद्धी ॥ १ ॥ निमित्तं अत्थसत्थे अ लेहे गाणए अ कूव अस्से य । गद्दभ लक्खण गंठी अगए रहिए य गणिया य ।। २ ।। सीआ साडी दीहं च तणं, अवसव्वयं च कुचस्स। निव्वोदए य गोणे, घोडग-पडणं च रुक्खाओ ।। ३ ।। उपओ ग-दिट्ठ सारा, कम्म-पसंग-परिघोलण-विसाला। साहुक्कार फलवई कम्मसमुत्था हवइ बुद्धी ।। १ ।। हेरण्णिए करिसए, कोलिअ डोवे य मुत्ति घय पवए । तुन्नाए, वड्ढई पूयइ य घड चित्तकारे य ।। २ ।। Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६६ स्वाध्याय-सुधा अणुमाण-हेउ-दिट्ठत-साहिया वय-विवाग-परिणामा । हि य निस्से यस फलवई, बुद्धो परिणामिया नाम ।। १ ।। अभए सिटि कुमारे देवी उदिओदए हवइ राया। साहू य नंदिसेणे धणदत्ते सावग अमच्चे ॥ २ ॥ खमए अमच्चपुत्ते चाणक्के चेव थूलभद्दे य । ना सिक्क सुंदरि नंदे वइरे परिणामिआ बुद्धोए ।। ३ ।। चलणाहण आमंडे मणी य सप्पे य खग्गी यूभिदे। पारिणामिय-वुद्धीए एवमाई उदाहरणा ।। से तं अस्सुयनिस्सियं । से कि तं सुयनिस्सियं ? सुयनिस्सियं चउविहं पण्णत्तं, तं जहा उग्गहे, ईहा, अवाओ, धारणा । सुत्तं २७ से किं तं उग्गहे ? उग्गहे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा अत्थुग्गहे य वंजणुग्गहे य । सुत्तं २८ से कि तं वंजणुग्गहे ? वंजणुग्गहे चउन्विहे पण्णत्ते तं जहा(१) सोइंदिय वंजणुगहे (२) घाणिदिय वंजणुग्गहे (३) जिभिदिय वंजणुग्गहे (४) फासिदिय वंजणुग्गहे । से त्तं वंजणुग्गहे। Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६७ नंदी-सुत्तं सत्तं २६ से कि तं अत्थुग्गहे ? ... अत्युग्गहे छविहे पण्णत्ते, तं जहा१ सोइंदिय-अत्थुग्गहे २ चक्खिदिय-अत्युग्गहे . ३ धाणिदिय-अत्थुग्गहे ४ जिभिदिय-अत्थुग्गहे ५ फासिदिय-अत्युग्गहे ६ नोइंदिय अत्थुग्गहे। ३० तस्स णं इमे एगट्ठिया नाणाघोसा नाणावंजणा ... 'पंच नामधिज्जा भवंति, तं जहा१ ओगेण्हणया २ उवधारणया ३ सवणया ४ अवलंवणया ५ मेहा । से त्तं उग्गहे। ३१ से किं तं ईहा ? ईहा छव्विहा पण्णत्ता, तं जहा(१) सोइंदिय-ईहा (२) चविखदिय-ईहा (३) धाणिदिय-ईहा (४) जिभिदिय-ईहा (५) फासिदिय-ईहा (६) नो इंदिय-ईहा। Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६८ तीसेणं इमे एगट्टिया नाणाघोसा, नाणावंजणा, पंच नामधिज्जा भवंति, तं जहा १ आभोगणया २ मग्गणया ३ गवेसणया ४ चिंता ५ विमंसा । सेत्त ं ईहा । - सुत्तं ३२ से किं तं अवाए ? अवाए छव्विहे पण्णत्त े, तं जहा - (१) सोइंदिय - अवाए (३) घाणिदिय - अवाए (५) फासिंदिय - अवाए (६) नो-इंदिय - अवाए । तस्सणं इमे एगट्टिया नाणाघोसा नाणावंजणा पंचनामधिज्जा भवंति, तं जहा १ आउट्टणया २ पच्चा उट्टणया ३ अवाए ४ बुद्धी ५ विष्णाणे | से त्तं अवाए । सुत्तं ३३ से किं तं धारणा ? (२) चक्खि दिय - अवाए (४) जिभिदिय- अवाए धारणा छविवहा पण्णत्ता, तं जहा - (१) सोइंदिय - धारणा (३) घाणिदिय धारणा (५) फासिदिय - धारणा (३) चक्खि दिय-धारणा(४) जिव्भिदिय-धारणा (६) नो-इंदिय-धारणा । स्वाध्याय-सुधा Page #309 --------------------------------------------------------------------------  Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०० स्वाध्याय-सुधा नो एगसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति, नो दुसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति, जाव-नो दससमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति, नो संखिज्जसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छति असंखिज्जसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति। . से त्तपडिवोहगदिट्ठन्ते णं । से कि तं मल्लगदिट्ठन्ते णं ? मल्लगदिट्ठन्ते णं-से जहानामए केइ पुरिसे आवागसीसाओ मल्लगं गहाय तत्थेगं उदगविदुं पक्खेविज्जा से नट्टी, अण्णेवि पक्खित्त सेवि न?, एवं पक्खिप्पमाणेसु पक्खिप्पमाणेसु होही से उदगविद्, जे णं तं मल्लगं. रावेहिइ त्ति, होही से उदगविंदू, जे णं तंसि मल्लगंसि ठाहित्ति, होही से उदगविंदू, जे णं तं मल्लगं भरिहित्ति, होही से उदगविंदू, जे णं तं मल्लगं पवाहेहिति । एवामेव पक्खिप्पमाणेहिं पक्खिप्पमाणेहिं अणंतेहिं पुग्गलेहिं जाहे तं वंजणं पूरियं होइ ताहे 'हं' ति करेइ, नो चेव णं जाणइ "के एस सदाइ" ? तओ ईहं पविसइ तओ जाणइ "अमुगे एस सद्दाइ" । तओ अवायं पविसइ तओ से उवगयं हवइ । तओ धारणं पविसइ, तओ णं धारेइ संखिज्ज वा कालं असंखिज्ज वा कालं ! से जहानामए केइ पुरिसे Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . नंदी-सुत्तं .. .३०१ अव्वत्तं सह सुणिज्जा, तेणं सहो ति उग्गहिए .. नो चेव णं जाणइ, 'के वेस सद्दाइ ?' तओ ईहं पविसइ, तओ जाणइ 'अमुगे एसंसद्दे।' तओ अवायं पविसइ, तओ से उवगयं हवइ। तओ धारणं पविसइ, तंओ णं धारेइ संखिज्ज वा कालं असंखेज्ज वा कालं । से जहानामए केइ पुरिसे अव्वत्तं रूवं पासिज्जा, तेणं रूवे त्ति उग्गहिए, .नो चेव णं जाणइ के वेस रूवत्ति' ? तओ ईहं पविसइ, तओ जाणइ 'अमुगे एस रूवे' । तो अवायं पविसइ, तओ से उवगयं हवइ । तओ धारणं पविसइ, तओ णं धारेइ संखेज्ज वा कालं असंखेज्ज वा कालं । से जहानामए केइ पुरिसे अवत्तं गंधं अग्घाइज्जा, तेणं गंधं त्ति उग्गहिए नो चेव णं जाणइ 'के वेस गंधे त्ति' ? . तओ ईहं पविसइ, तओ जाणइ "अमुगे एस गंधे" । तो अवायं पविसइ, तओ से उवगयं हवइ । तओ धारणं पविसइ, तओ णं धारेइ संखेज्ज वा कालं असंखज्ज वा कालं । से जहानामए केइ पुरिसेअव्वत्तं रसं आसाइज्जा, तेणं रसो त्ति उग्गहिए, नो चेव णं जाणइ "के वेस रसो त्ति" ? . तओ ईहं पविसइ, तओ जाणइ "अमुगे एस रसे' । तओ अवायं पविसइ, तओ से उवगयं हवइ । . Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . ३०२ स्वाध्याय-सुधा तओ धारणं पविसइ, तओ णं धारेइ संखेज्जं वा कालं असंखेज्जं वा कालं । से जहानामए केइ पुरिसे - अव्वत्तं फासं पडिसंवेइज्जा, तेणं फासेत्ति उग्गहिए नो चेव णं जाणइ " के वेस फासो त्ति ?" तओ ईहं पविस, तओ जाणइ " अमुगे एस फासे ।" तओ अवायं पविसइ, तओ से उवगयं हवइ तओ धारणं पविसइ, तओ णं धारेइ संखेज्जं वा कालं असंखेज्जं वा कालं । से जहानामए केइ पुरिसे अव्वत्तं सुमिणं पासिज्जा, तेणं सुमिणो त्ति उग्गहिए, नो चेव णं जाणइ 'के वेस सुमिणो त्ति ?' ओहं पविस, तओ जाणइ 'अमुगे एस सुमिणे ।' तओ अवायं पविसइ, तओ से उवगयं हवइ । तओ धारणं पविसइ, तओ णं धारेइ संखेज्जं वा कालं, असंखेज्जं वा कालं । से त्तं मल्लगदिट्ठन्ते णं । सुत्तं ३६ तं समासओ चउव्विहं पण्णत्तं, तं जहा - १ दव्वओ, २ खित्तओ, ३ कालओ, ४ भावओ । तत्थ दव्वओ णं आभिणिवोहियनाणी आएसेणं सव्वाई दव्वाई जाणइ न पासइ । खेत्तओ णं आभिणिवोहियनाणी आएसेणं सव्वं खेत्त जाणइ, न पासइ कालओ णं आभिणिवोहियनाणी आएसेणं सव्वं Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०३ ___ नंदी सुत्तं .. कालं जाणइ, न पासइ। भावओ णं आभिणिवोहियनाणी आएसेणं सव्वे भावे जाणइ, न पासइ । गाहा–उग्गह ईहाऽवाओ य, धारणा एव हुंति चत्तारि । आभिणिवोहियनाणस्स, भेयवत्थू समासेणं ॥ १ ॥ अत्थाणं उग्गहणंमि, उग्गहो तह वियालणे ईहा । ववसायम्मि अवाओ, धरणं पुण धारणं विति ।। २ ।। उग्गह इक्कं समयं, ईहावाया मुहुत्तमद्धं तु । कालमसंखं संखं च, धारणा होइ नायव्वा ।। ३ ।। पुटु सुणेइ सइं, रूवं पुण पासइ अपुटु तु । गंधं रसं च फासं च, वद्धपृष्ठ वियागरे ।। ४ ।। भासासमसेढीओ, सह जं सुणइ मीसियं सुणइ । वीसेढी पुण सई, सुणेइ नियमा पराघाए ॥ ५ ॥ ईहा अपोह वीमंसा, मग्गणा य गवेसणा । सन्ना सई मई पन्ना, सव्वं आभिणिवोहियं ।। ६ ।। . सेत्त आभिणिवोहियनाण-परोक्खं । से त्त मइनाणं । ... श्रुतज्ञानम्सुत्तं ३७ से किं तं सुयनाणपरोक्खं ? . सुयनाणपरोक्खं चोट्सविहं पण्णत्त, तं जहा१ अक्खरसुयं २ अणक्खरसुयं, Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०४ स्वाध्याय-सुधा ३ सण्णिसुयं, ४ असण्णिसुयं, ५ सम्मसुयं, ६ मिच्छासुयं, ७ साइयं, ८ अणाइयं, ६ सपज्जवसियं, १० अपज्जवसियं, ११ गमियं, १२ अगमियं, १३ अंगपविट्ठः, १४ अणंगपविट्ठ। सुत्तं ३८ (१) से कि तं अक्खरसुयं ? अक्खरसुयं तिविहं पण्णत्त, तं जहा१ सन्नक्खरं, २ वंजणक्खरं, ३ लद्धिअक्खरं । (१) से किं तं सन्नक्खरं ? सन्नक्खरं-अक्खरस्स संठाणागिई। से त्तसन्नक्खरं। (२) से किं तं वंजणक्खरं ? वंजणक्खरं-अक्खरस्स वंजणाभिलावा । से त्त वंजणक्खरं। (३) से किं तं लद्धि-अक्खरं ? लद्धिअक्खरं-अक्खर-लद्धियस्स लद्धि-अक्खरं समुप्पज्जइ, तं जहा १ सोइंदिय-लद्धि-अक्खरं, २ चक्खिदिय-लद्धि-अक्खरं, . ३ घाणिदिय-लद्धि-अक्खरं, ४ रसणिदिय-लद्धि-अक्खरं, ५ फासिदिय-लद्धि-अक्खरं. ६ नोइंदिय-लद्धि-अक्खरं । . . Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नंदी- सुत्तं सेत्तं लद्धि - अक्खरं । सेत्त अक्खरसुयं । (२) से किं तं अणक्खरसूयं ? अणक्खरसुयं अणेगविहं पण्णत्त, तं जहा गाहा - ऊससिय नीससियं, निच्छूढं खासियं च छीयं च । अणक्खरं निस्सिधियमणुसारं, सेत्तं अणक्खरसुयं । सु३९ (३) से किं तं सण्णिसुयं ? सण्णिसुयं तिविहं पण्णत्त, तं जहा १ कालिओवएसेणं, २ हेऊवएसेणं, ३ दिट्टिवाओवएसेणं । (१) से किं तं कालिओवएसेणं ? ३०५ छेलियाईयं ॥ १ ॥ कालिओवएसेणं जस्स णं अत्थि ईहा, अवोहो, मग्गणा, गवेसणा, चिंता, वीमंसा, से णं सण्णो त्ति लब्भइ, जस्स णं नत्थि ईहा, अवोहो, मग्गणा, गवेसणा, चिंता, वीमंसा, से णं असण्णी त्ति लब्भइ । सेत कालिओवएसेणं । (२) से किं तं हेऊव एसेणं ? हे उवएसेणं - जस्सणं अस्थि अभिसंधारणपुव्विया करणसत्ती से गं सण्णी त्ति लब्भइ, जस्स णं णत्थि अभिसंधारणपुव्विया करणसत्ती, से णं असण्णी त्ति लब्भइ । सेतं हेऊवसेणं । Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०६ स्वाध्याय-सुधा (३-४) से किं तं दिदिवाओवएसेणं ? . . . . . दिद्विवाओवएसेणं-सण्णिसुयस्स खओवसमेणं-- सण्णी लव्भइ, असण्णिसुयस्स खओवसमेणं-: असण्णी लगभइ। से त्त दिद्विवाओवएसेणं ।। से त्त सण्णिसुयं; से त्त असण्णिसुयं । __ सुत्त ४० (५) से कि त सम्मसुयं ? । सम्मसुयं-जं इमं अरिहंतेहिं भगवंतेहिं उप्पण्णनाणदंसणधरेहि, तेलुक्कनिरिक्खमहियपूइएहिं तीय-पडुप्पण्ण-मणागय जाणएहिं सवण्णुहिं सव्वदरिसीहिं . .. पणीयं दुवालसंगं गणिपडिगं, तं जहा१ आयारो २ सूयगडो ३ ठाणं ४ समवाओ ५ विवाहपण्णत्ती ६ नायाधम्मकहाओ " ७ उवसगदसाओ ८ अतगडदसाओ ६ अणुत्तरोववाइयदसाओ १० पण्हावागरणं ११ विवागसुयं १२ दिद्विवाओ। इच्चेयं दुवालसंगं गणिपिडगंचोइस पुन्विस्स सम्मसुयं, अभिण्णदसपुन्विस्स सम्मसुयं, तेण परं भिण्णेसु भयणा । . से त्तं सम्मसुयं । : ... Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०७ . नंदी-सुत्तं . . · सुत्तं ४१ (६) से किं तं मिच्छासुयं? . मिच्छासुयं-जं इमं अण्णाणिएहि मिच्छादिट्ठिएहि- : . . सच्छंदबुद्धि-मइविगप्पियं, तं जहाभारहं, रामायणं, भीमासुरुक्खं, कोडिल्लयं, सगडभदियाओ, खोडमुहं कप्पासियं, नागसुहुमं, कणगसत्तरी, ...... वइसेंसियं, बुद्धवयणं, तेरासियं, काविलियं, लोगाययं, सद्वितंतं, माढरं, पुराणं, वागरणं, भागवयं, पायंजलि, पुस्सदेवयं, लेहं, गणियं, सउणल्यं, नाडयाइं, अहवा वावत्तरि कलाओ, चत्तारि य वेया संगोवंगा, एयाई मिच्छादिट्ठिस्स मिच्छत्तपरिग्गहियाई मिच्छासुयं । एयाइं चेव सम्मदिट्ठिस्स सम्मत्तपरिग्गहियाई सम्मसुयं । अहवा मिच्छदिट्ठिस्स वि एयाइं चेव सम्मसुयं । कम्हा? सम्मत्तहे उत्तणओ ... जम्हा ते मिच्छदिद्विआ तेहिं चेव समएहिं चोइया समाणा. केइ सपक्खदिट्ठीओ चयंति । ' से त्तं मिच्छासुयं । .. .. सुत्तं ४२ (७-८) से किं तं साइयं सपज्जवसियं ? . . . . (९-१०) अणाइयं अपज्जवसिंयं च ? . Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०८ स्वाध्याय-सुधा इच्चेयं दुवालसंगं गणिपिडगं वुच्छित्तिनयट्टयाए साइयं सपज्जवसियं, अव्वुच्छित्तिनयट्टयाए अणाइयं अपज्जवसियं । तं समासो चउन्विहं पण्णत्तं, तं जहादव्वओ खेत्तओ कालओ भावओ तत्थ दवओ णं सम्मसुयं एगं पुरिसं पडुच्च साइयं सपज्जवसियं, वहवे पुरिसे य पडुच्च अणाइयं अपज्जवसियं । खेत्तओ णं पंचभरहाई, पंचएरवयाइं पडुच्च साइयं सपज्जवसियं, पंचमहाविदेहाइं पडुच्च-- अणाइयं अपज्जवसियं । कालओ णं उस्सपिणि ओसप्पिणिं च पडुच्च साइयं सपज्जवसियं, नो उस्सपिणि नो ओसप्पिणि च पडुच्च अणाइयं अपज्जवसियं । .. भावओ णं जे जया जिणपष्णत्ता भावा आघविज्जति, पण्णविज्जति, परूविज्जति दंसिज्जति, निदंसिज्जंति, उवदंसिज्जति तया ते भावे पडुच्च साइयं सपज्जवसियं, खाओवसमियं पुण भावं पडुच्च अणाइयं अपज्जवसियं । अहवा भवसिद्धियस्स सुयं साइयं सपज्जवसियं च, अभवसिद्धियस्स सुयं अणाइयं अपज्जवसियं च । Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नंदी सु सव्वागासपएसग्गं सब्वागासपएसेहि अनंतगुणियं पज्जवक्खरं निप्फज्जइ, सव्वजीवाणं पि य णं - अक्खरस्स अनंतभागो निच्चुग्घाडिओ चिट्ठइ | जइ पुण सो वि आवरिज्जा तेण जीवो अजीवत्तं पाविज्जा 'सुट्ठवि मेहसमुदए, होइपभा चंदसुराणं' से त्तं साइयं सपज्जवसियं । से त्तं अणाइयं अपज्जवसियं । सुत्तं ४३ ( ११ ) से किं तं गमियं ? गमियं दिट्टिवाओ । (१२) से किं तं अगमियं ? अगमियं कालियं सुयं । से त्तं गमियं से त्तं अगमियं । अहवा तं समासओ दुविहं पण्णत्तं, तं जहा (१३-१४) १ अंगपट्ठि २ अंगवाहिरं च । से किं तं अंगवाहिरं ? अंगवाहिरं दुविहं पण्णत्तं, तं जहा - १ आवस्सयं च २ आवस्सयवद्दित्तं च । ( १ ) से किं तं आवस्सयं ? आवस्सय छव्विहं पण्णत्तं, तं जहा - ३०८ Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१० स्वाध्याय-सुधा १ सामाइयं १ चउवीसत्थओ ३ वंदणयं ४ पडिक्कमणं ५ काउस्सग्गो ६ पच्चक्खाणं । से तं आवस्सयं । (२) से किं तं आवस्सयवइरित्तं ? आवस्सयवइरित्तं दुविहं पण्णत्तं, तं जहा१ कालियं च २ उक्कालियं च से कि तं उक्कालियं ? उक्कालियं अणेगविहं पण्णत्तं, तं जहादसवेआलियं, कप्पियाकप्पियं, चुल्लकप्पसुयं, महाकप्पसुयं उववाइयं, रायपसेणियं, जीवाभिगमो, पण्णवणा, महापण्णवणा, पमायप्पमायं, नंदी, अणुओगदाराई, देविदत्थमओ, तंदुलवेयालियं, चंदाविज्जयं, सूरपण्णत्ती, पोरिसिमंडलं, मंडलपवेसो, विज्जाचरणविणिच्छओ, गणिविज्जा, झाणविभत्ती, मरणविभत्ती, आयविसोही, वीयरागसुयं, संलेहणासुयं, विहारकप्पो, चरणविही, आउरपच्चक्खाणं, महापच्चक्खाणं, एवमाइ । से त्तं उक्कालियं। से किं तं कालियं? कालियं अणेगविहं पण्णत्तं, तं जहा Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नंवी-सुत्तं ... ३११ उत्तरज्झयणाई, दसाओ, कप्पो, ववहासे, . . . निसीह, महानिसीहं, इसिभासियाई, .. जंबूदीवपन्नत्ती, दीवसागरपन्नत्ती, चंदपन्नत्ती, खुड्डियाविमाणविभत्ती, महलियाविमाणविभत्ती, अंगचूलिया वग्गचूलिया, विवाहचूलिया, अरूणोववाए, वरुणोववाए, गरुलोववाए, ' धरणोववाए, वेसमणोववाए वेलंधरोंववाए, देविदोववाए, उढाणसुयं, समुट्ठाणसुयं, नागपरियावणियाओ, निरयावलियाओ,, कप्पियाओ, कप्पवडंसियाओ, पुफियाओ, पुप्फचूलियाओ, वहीदसाओ, आसोविस-भावणाणं, दिद्विविस-भावणाणं, सुमिण-भावणाणं, महासुमिण-भावणाणं, .. तेयग्गी निसग्गाणं एवमाइयाइं चउरासीइ पइन्नगसहस्साई-.. भगवओ अरहओ उसहसाम्मिस्स आइतित्थयरस्स ! तहा संखिज्जाइं पइन्नगसहस्साई-मज्झिमगाणं जिणवराणं । चोद्दसपन्नइगसहस्साई भगवओ वद्धमाणसामिस्स, अहवा जस्स जत्तिया सीसा उप्पत्तिआए, वेणइयाइ, कम्मयाए, पारिणामियाए .. . चाउन्विहाए बुद्धीए उववेया, . तस्स तत्तियाइं पइण्णगसहस्साई । पत्तेअबुद्धा वि तत्तिया चेव । से त्तं कालियं ।। से त आवस्सयवइरित्त। ... से त्त अणंगपविट्ठ। Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१२ स्वाध्याय-सुधा सुत्त ४४ से किं तं अंगपविट्ठ ? अंगपविट्ठ दुवालसविहं पण्णत्तं तं जहा१ आयारो २ सूयगडो ३ ठाणं ४ समवाओ ५ विवाहपन्नत्ती ६ णायाधम्मकहाओ ७ उवासगदसाओ ८ अंतगडदसाओ ६ अणुत्तरोववाइयदसाओ १० पण्हावागरणाई ११ विवागसुयं १२ दिट्टिवाओ। सुत्तं ४५ से कि तं आयारे? आयारे णं समणाणं निग्गंथाणं आयार-गोयर-विणय-वेणइय-सिक्खाभासा-अभासा-चरण-करण-जाया-माया-~वित्तिओ आघविज्जति । से समासओ पंचविहे पण्णत्त, तं जहा१ नाणायारे २ सणायारे ३ चरित्तायारे ४ तवायारे ५ वीरियायारे। आयारेणं परित्ता वायणा, संखेज्जा अणुओगदारा, संखिज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखिज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखिज्जाओ पडिवत्तीओ, से अंगट्ठयाए पढमे अंगे, दो सुयक्खंधा, पणवीसं अज्झयणा, पंचासीई उद्देसणकाला, पंचासीई समुद्दे सणकाला, अट्ठारसपयसहस्साइं पयग्गेणं, Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१३ नंदी-सुत्तं : संखिज्जा अक्खरा, अणंतगमा, अणंतापज्जवा, . परित्ता तसा. अणंता थावरा, सासय-कड-निवद्ध-निकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जंति, पन्नविज्जति, परूविज्जति दंसिज्जंति, निदंसिज्जति, उवदंसिज्जति । से एवं आया, एवं नाया, एवं विण्णाया एवं चरण-करण-परूवणा आघविज्जइ। . . से तं आयारे। __ सुत्तं ४६ से किं तं सूयगडे ? .. __ सूयगडे णं लोए सूइज्जइ, अलोए सूइज्जइ, लोयालोए सूइज्जइ, जीवा सूइज्जंति, अजीवा सूइज्जति, जीवाजीवा सूइज्जति ससमए सूइज्जइ, परसमए सूइज्जइ, ससमय-परसमए सूइज्जइ सूयगडे णं असीयस्स किरियावाइसयस्स, चउरासीइए अकिरियावाईणं सत्तट्ठीए अण्णाणि-आवाईणं-- वत्तीसाए वेणइज्ज-वाइणंतिण्हं तेसट्ठाणं पासंडियसयाणं वूहं किच्चा ससमए ठाविज्जइ । सूयगडेणं परित्ता वायणा, संखिज्जा अणुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखिज्जाओ-निजुत्तीओ, (संखिज्जाओ संगहणीओ) संखिज्जाओ पडिवत्तीओ। से णं अगट्ठयाए विईए अंगे, दो सुयक्खंधा, तेवीसं अज्झयणा, Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१४ स्वाध्याय-सुधा तेत्तीसं उद्देसणकाला, तेत्तीसं समुद्देसणकाला, . . छत्तीसं पयसहस्साणि पयग्गेणं, संखिज्जा अक्खरा, अणंतागमा, अणंता पज्जवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासय-कड-निवद्ध-निकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जति, पण्णविज्जंति, परूविज्जति दंसिज्जति, निदंसिज्जति, उवदंसिज्जति । से एवं आया, एवं नाया, एवं विण्णाया, एवं चरण-करण-परूवणा आघविज्जइ । से त्तं सूयगडे । सुत्तं ४७ से किं तं ठाणे ? ठाणे णं जीवा ठाविज्जति, अजीवा ठाविज्जति, जीवाजीवा ठाविज्जंति, ससमए ठाविज्जइ, परसमए ठाविज्जइ, ससमय-परसमए ठाविज्जइ, लोए ठाविज्जइ, अलोए ठाविज्जइ, लोयालोए ठाविज्जइ। ठाणे णं टंका, कूडा, सेला, सिहरिणो, पन्भारा, कुंडाई, गुहाओ, आगरा, दहा, नईओ आघविज्जति । ठाणे णं एगाइयाए एगुत्तीरयाए वुड्ढोए . दसटाणग विवढियाणं भावाणं परूवणा आघविज्जइ । ठाणे णं परित्ता वायणा, संखेज्जा अणुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा; संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखेज्जाओ संगहणीओ, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ। Page #325 --------------------------------------------------------------------------  Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१६ स्वाध्याय-सुधी संखिज्जाओ संगहणोओ, संखिज्जाओ पडिवत्तीओ। .. से णं अंगट्ठयाए चउत्थे अंगे, एगे सुयक्खंधे, एगे अज्झयणे, एगे उद्देसणकाले, एगे समुद्देसणकाले, एगे चोयाले सयसहस्से पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा, अणंता गमा, अणंता पज्जवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा सासय-कड-निवद्ध-निकाइया जिणपण्णत्ता भावा आधविज्जति, पण्णविज्जंति, परूविज्जति दंसिज्जति, निदंसिज्जति, उवदंसिज्जति । से एवं आया, एवं नाया, एवं विण्णाया, एवं चरण-करण-परूवणा आघविज्जइ । से त्तं समवाए। सुत्तं ४६ से किं तं विवाहे ? विवाहेणं जीवा विआहिज्जति. अजीवा विआहिज्जति, जीवाजीवा विआहिज्जंति, ससमए विआहिज्जइ, परसमए विआहिज्जइ, ससमय-परसमए विआहिज्जइ, लोए विआहिज्जइ, अलोए विआहिज्जइ, लोयालोए विआहिज्जइ, विवाहस्स णं परित्ता वायणा, संखिज्जा अणुओगदारा, संखिज्जा वेढा, संखिज्जा सिलोगा, संखिज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखिज्जाओ संगहणोओ, संखिज्जाओ पडिवत्तीओ। पारा, Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नंदी-सुतं ... .. ३१७ से णं अंगठ्ठयाए पंचमे अंगे, . . . . . एगे सुयक्खंधे, एगे साइरेगे अज्झयणसए, .. दस उद्देसगसहस्साइं, दससमुद्देसगसंहस्साई, छत्तीसं वागरण-सहस्साई, . .... दो लक्खा अट्ठासीइं पयसहस्साइं पयग्गेणं, . संखिज्जा अक्खरा, अणंतागमा, अणंतापज्जवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासय-काड-निवद्ध-निकाइया जिणपण्णत्ता भावा आधविज्जति, पण्णविजंति, परूविज्जति, दंसिज्जंति, निदंसिज्जंति, उवदंसिज्जति । से एवं आया, एवं नाया, एवं विण्णाया, एवं चरण-करण-परूवणा आघविज्जइ । से तं विवाहे । । ___ सुत्तं ५० से किं तं नायाधम्मकहाओं ? . नायाधम्मकहासु णं . नायाणं नगराइं, उज्जाणाई, चेइयाई, वणसंडाई, समोसरणाई. रायाणो, अम्मापियरो, . . . धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइयपरलोइया इड्डिविसेसा, भोगपरिच्चाया, पव्वज्जाओ, परिआया, सुयपरिग्गहा, तवोवहाणाई, संलेहणाओ, भत्तपच्चक्खाणाइं, पाओवगमणाई देवलोगगमणाई, सुकुलपच्चाइयाओ, पुणवोहिलाभा, अंतकिरियाओ य आधविज्जंति । . दस धम्मकहाणं वग्गा, तत्थ णं एगमेगाए धम्मकहाए पंच पंच अक्खाइयासयाई, Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१८ स्वाध्याय-सुधा: एगमेगाए अक्खाइयाए पंच पंच उवक्खाइयासयाई, एगमेगाए उवक्खाइयाए पंच पंच अक्खाइयउवक्खाइयासयाई, एवामेव सपुव्वावरेणं अद्धट्टाओ कहाणगकोडीओहवंति त्ति समक्खायं । णायाधम्मकहाणं परित्ता वायणा, संखिज्जा अणुओगदारा, संखिज्जा वेढा, संखिज्जासिलोगा संखिज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखिज्जाओ संगहणीओ, संखिज्जाओ पडिवत्तीओ। से णं अगट्ठयाए छठे अंगे, दो सुयक्खंधा एगूणवीसं अज्झयणा, एगूणवीसं उद्देसणकाला, एगूणवीसं समुद्देसणकाला, संखेज्जाइं पयसहस्साइं पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा, अणंता गमा, अणंता पज्जवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासय-कड-निवद्ध-निकाइया जिणपण्णत्ता भावा आधविज्जति, पण्णविज्जति, परूविज्जति, दंसिज्जंति, निदंसिज्जंति, उवदंसिज्जति । दंसिज्जंति, निदंसिज्जति, उवदंसिज्जति । से एवं आया, एवं नाया, एवं विण्णाया, एवं चरण-करण-परूवणा आघविज्जइ । से तं णायाधम्मकहाओ। सुत्तं ५१ से किं तं उवासगदसाओ ? उवासगदसासु णं समणोवासयाणं नगराइं, उज्जाणाई, चेइयाइं, वणसंडाइं, समोसरणाई, .. रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नंदी-सुतं इहलोइयपरलोइया इड्ढिविसेसा, भोगपरिच्चाया, पव्वज्जाओ, परिआया, सुयपरिग्गहा, तओवहाणाई, सीलव्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववास-सपडिवज्जणया पडिमाओ, उवसग्गा, संलेहणाओ, भत्तपच्चक्खाणाइं पाओवगमणाई, देवलोगमणाई सुकुलपच्चाइआओ, पुणवोहिलाभा, अंत किरियाओ य आघविज्जंति । उवासगदसाणं परित्ता वायणा, संखेज्जा अणुओगदारा, संखिज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखिज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखिज्जाओ संगहणीओ संखिज्जाओ पडिवत्तीओ, से णं अंगट्टयाए सत्तमे अंगे, एगे सुयवखंधे, पणवीसं अज्झयणा, दस उद्देसणकाला, दस समुद्दे सणकाला, संखेज्जाई पयसहस्साइं पयग्गेणं, संखिज्जा अक्खरा, अगंतागमा, अनंतापज्जवा, परित्ता तसा, अनंता थावरा, सासय-कड- निवद्ध-निकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जंति, पन्नविज्जंति, परुविज्जंति ३१८ दंसिज्जंति, निदंसिज्जंति, उवंदंसिज्जति । से एवं आया, एवं नाया, एवं विष्णाया एवं चरण-करण-परूवणा आधविज्जइ । से त्तं उवासगदसाओ । Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२० स्वाध्याय-सुधा सुत्तं ५२ से कि तं अंतगडदसाओ ? अंतगडदसासु णं अंतगडाणंनगराई, उज्जाणाई, चेइयाई, वणसंडाई, समोसरणाई, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइयपरलोइया इढिविसेसा, भोगपरिच्चाया, पव्वज्जाओ, परिआया, सुयपरिग्गहा, तवोवहाणाई, संलेहणाओ, भत्तपच्चवखाणाई, पाओवगमणाई, अंतकिरियाओ य आघविज्जति । अंतगडदसासु णं परित्ता वायणा, संखिज्जा अणुयोगदारा, संखेक्जा, वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखिज्जाओ निजुत्तीओ, संखिज्जाओ संगहणीओ संखिज्जाओ पडिवत्तीओ। से णं अंगठ्ठयाए अट्ठमे अंगे, एगे सुयक्खंधा, अट्ठवग्गा, अट्ठ उद्देसणकाला, अटु समुद्देसणकाला, संखेज्जाइं पयसहस्साइं पयग्गेणं, संखिज्जा अक्खरा, अणंतागमा, अणता पज्जवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासय-कड-निवद्ध-निकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जंति, पण्णविज्जति, परूविज्जति दंसिज्जंति, निदंसिज्जति, उवदंसिज्जंति । से एवं आया, एवं नाया, एवं विण्णाया, . एवं चरण-करण-परूवणा आघविज्जइ । से त्तं अंतगडदसाओ। ज्जात . Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नंदी-सुत्तं ३२१ । सुत्तं ५३ से किं तं अणुत्तरोववाइयदसाओ ? अणुत्तरोववाइयदसासु णं अणुत्तरोववाइयाणंनगराई उज्जाणाइं, चेइयाई वणसंडाइं, समोसरणाई, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइय परलोइया इड्डिविसेसा, भोगपरिच्चागा, पव्वज्जाओ, परिआया, . सुयपरिग्गहा, तवोवहाणाइं, पडिमाओ, उवसग्गा; संलेहणाओ,.. . भत्तपच्चक्खाणाइं, पाओवगमणाई, अणुत्तरोववाइयत्ते उववत्ती, सुकुलपच्चायाइओ, पुणवोहिलाभा, अंतकिरियाओ य आघविज्जति । अणुत्तरोववाइयदसासु णं परित्ता वायणा, संखेज्जा अणुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा; संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ,. संखेज्जाओ संगहणीओ, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ। से णं अंगट्टयाए नवमे अंगे, एगे सुयक्खंधे, तिन्निवग्गा, तिन्नि उद्देसणकाला, तिन्नि समुद्देसणकाला, संखेज्जाइं पयसहस्साइं पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा, अणंता गमा, अणंतापज्जवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासय-कड-निवद्ध-निकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जंति, पण्णविज्जंति, परूविज्जति Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ __३२२ नंदी-सुत्तं दंसिज्जंति, निदेसिज्जति, उवदंसिज्जति । से एवं आया, एवं नाया, एवं विण्णाया एवं चरण-करण-परूवणा आविज्जइ। से तं अणुत्तरोववाइयदसाओ। सुत्तं ५४ से कि तं पण्हावागरणाई ? पण्हावागरणेसु णं अठुत्तरं पसिणसयं, अठ्ठत्तरं अपसिणसयं अठ्ठत्तरं पसिणापसिणसयं, तं जहा~अंगुट्ठपसिणाई, बाहुपसिणाई, अदागपसिणाई अन्ने वि विचित्ता विज्जाइसया, नागसुवणेहिं सद्धि दिव्वा संवाया आधविज्जति । पण्हावागरणाणं परित्ता वायणा, संखिज्जा अणुओगदारा, संखिज्जा वेढा, . संखिज्जा सिलोगा, संखिज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखिज्जाओ संगहणीओ, संखिज्जाओ पडिवत्तीओ। से णं अंगठ्ठयाए दसमे अंगे, एगे सुयक्खंधे, पणयालीसं अज्झयणा, पणयालीसं उद्देसणकाला, पणयालीसं समुद्देसणकाला, संखेज्जाइं पयसहस्साई पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा, अणंता गमा, अणंता पज्जवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा सासय-कड-निवद्ध-निकाइया जिणपण्णत्ता भावा . A Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नंदी-सुत्तं ३२३ आघविज्जति, पण्णविज्जति, परूविज्जति दंसिज्जंति, निदसिज्जति, उवदंसिज्जति । से एवं आया, एवं नाया, एवं विण्णाया, एवं चरण-करण-परूवणा आघविज्जइ । से तं पण्हावागरणाई। सुत्तं ५५ से किं तं विवागसुयं ? विवागसुए णं सुकडदुक्कडाणं कम्माणंफल विवागे आघविज्जइ। तत्थ णं दस दुह-विवागा, दस सुह-विवागा। से किं तं दुह-विवागा? दुह-विवागेसु णं दुहविवागाणंनगराई, उज्जाणाई, वणसंडाई, चेइयाइं, समोसरणाइं रायाणो अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइयपरलोइया इडिविसेसा; निरयगमणाई, संसारभव-पवंचा, दुहपरंपराओ, दुक्कुलपच्चायाइओ, दुल्लहवोहियत्तं आघविज्जइ । से त्तं दुहविवागा। से किं तं सुहविवागा? सुहविवागेसु णं सुह-विवागाणंनगराई, उज्जाणाई, वणसंडाई, चेइयाई, समोसरणाई, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइयपरलोइया इड्डिविसेसा, भोगपरिच्चाया, पव्वज्जाओ, परिआया, सुयपरिग्गहा, तवोवहाणाइ, संलेहणाओ, Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२४ नंदी-सुत्तं . भत्तपच्चवखाणाई, पाओवगमणाई, देवलोगगमणाई, सुहपरंपराओ, सुकुलपच्चायाईओ, पुणवोहिलाभा, अंतकिरियाओ य आधविज्जति । विवागसुयस्स णं परित्ता वायणा, संखिज्जा अणुओगदारा, संखिज्जा वेढा, संखिज्जा सिलोगा संखिज्जामओ निज्जुत्तीओ, संखिज्जाओ संगहणीओ, संखिज्जालो पडिवत्तीओ। से णं अंगठ्ठयाए इक्कारसमे अंगे, दो सुयवखंधा वीसं अज्झयणा, वीसं उद्देसणकाला, वीसं समुद्दे सणकाला, संखेज्जाई पयसहस्साई पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा, अणंता गमा, अणंता पज्जवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासय-कड-निवद्ध-निकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जति, पण्णविज्जति, परूविज्जति, दंसिज्जंति, निदंसिज्जंति, उवदंसिज्जंति । से एवं आया, एवं नाया, एवं विण्णाया, एवं चरण-करण-परूवणा आधविज्जइ । से त्तं विवागसुयं । सुत्तं ५६ से कि तं दिद्विवाए ? दिद्विवाए णं सवभावपरूवणा आघविज्जइ । से समासओ पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नंदी-सुत्तं ३२५ १ परिकम्मे २ सुत्ताई ३ पुवगए ४ अणुओगे५ चूलिया । से कि तं परिकम्मे ? परिकम्मे सत्तविहे पण्णत्ते, तं जहा१ सिद्धसेणिया-परिकम्मे | २ मणुस्ससेणिया-परिकम्म ३ पुटुसेणिया-परिकम्मे ४ ओगाढसेणिया-परिकम्मे ५ उवसंपज्जणसेणिया-परिकम्मे ६ विप्पजहणसेणिया-परिकम्मे ७ चुयाचुयसेणिया-परिकम्मे । से किं तं सिद्धसेणिया परिकम्मे ? सिद्धसेणियापरिकम्मे चउद्दसविहे पण्णत्ते, तं जहा -- १ माउगापयाइं २ एगट्ठियपयाइ ३ अटुपयाई ४ पाढो आगासपयाई . ५ केउभूयं ६ रासिवद्धं ७ एगगुणं ८ दुगुणं ६ तिगुणं १० केउभूयं ११ पडिग्गहो १२ संसारपडिग्गहो १३ नंदावत्तं १४ सिद्धावत्तं । से त्तं सिद्ध-सेणिया-परिकम्मे । (१) से किं तं मणुस्ससेणिया-परिकम्मे ? Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ __३२६ नंदी-सुतं. मणुस्स-सेणिया-परिकम्मे च उदयविहे पणत, तं जहा - १ माउगापयाई २ एगट्टियपयाई ३ अटुपयाई ४ पाढो आगारापयाई ५ केउभूयं ६ रासिवढे ७ एगगुणं ८ दुगुणं ६ तिगुणं १० के उभूयं ११ पडिग्गहो १२ संसारपडिग्गहों १३ नंदावत्तं १४ मणुस्सावत्तं । से त्तं मणुस्ससेणिया-परिकम्मे । (२) से किं तं पुट्ठसेणियापरिकम्मे ? पुटुसेणियापरिकम्मे इक्कारसविहे पण्णत्ते, तं जहा१ पाढो अगासपयाई २ केभूयं ३ रासिवढे ४ एगगुणं ५ दुगुणं ६ तिगुणं ७ केउभूयं ८ पडिग्गहो ६ संसारपडिग्गहो १० नंदावत्तं ११ पुढावत्तं । से त्तं पुटुसेणियापरिकम्मे । (३) से कि तं ओगाढसेणिया परिकम्मे ? ओगाढसेणिया परिकम्मे इक्कारसविहे पण्णत्ते तं जहा Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नंदी-सुत्तं ३२७ १ पाढोआगासपयाई, २ केउभूयं, . - ३ रासिवद्धं, ४ एगगुणं ५ दुगुणं . ६ तिगुणं ७ के उभूयं ८ पडिग्गहो ६ संसारपडिग्गहो १० नंदावत्तं ११ ओगाढावत्तं । से त्तं ओगाढसेणिया-परिकम्मे ? ( ४ ) से किं तं उवसंपज्जणसेणिया-परिकम्मे ? उवसंपज्जणसेणिया-परिकम्मे इक्कारसविहे पण्णत्ते, तं जहा१ पाढोआगासपयाइ२ के उभूयं ३ रासिवद्धं ४ एगगुण ५ दुगुणं ६ तिगुणं ७ के उभूयं . ८ पडिग्गहो ६ संसारपडिग्गहो १० नंदावत्तं ११ उवसंपज्जणावत्तं । से तं उवसंपज्जणसेणिया-परिकम्मे । (५) से किं तं विप्पजहणसेणिया-परिकम्मे ? विप्पजहणसेणिया-परिकम्मे इक्कारसविहे पण्णत्ते, तं जहा-- १ पाढोआगासपयाई २ केउभूयं ३ रासिवद्धं ४ एगगुणं ५ दुगुणं ६ तिगुणं -७ केउभूयं ८ पडिग्गहो Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२८ संसारपङिग्गहो १० नंदावत्तं ११ विष्पजहण्णावत्तं । से त्तं विप्पजहणसेणिया परिकम्मे । ( ६ ) से किं तं चुयाचुयसेणिया परिकम्मे ? चुयाचुयसेणिया-परिकम्मे इक्कारसविहे पण्णत्ते, तं जहा - १ पाढोआगासपयाई २ केउभूयं ३ रासिव ४ एगगुणं ६ तिगुणं 5 पडिग्गहो १० नंदावत्तं ५ दुगुणं ७ के भूयं संसारप डिग्गहो ११ चुयाचुयवत्तं । से त्तं चुयाचुयसेणिया-परिकम्मे । ( ७ ) छ- चउक्क नइयाई, सत्त तेरासियाई, से-तं परिकम्मे | से किं तं सुत्ताइ ? सुत्ताइ वावीसं पण्णत्ताई, तं जहा १ उज्जुसुयं २ परिणयापरिणयं ३ वहुभंगियं ४ विजयचरियं ५ अनंतरं ६ परंपरं ७ आसाणं संजूहं ६ संभिण्णं १० आहव्वायं ११ सोवत्थियावत्तं १२ नंदावत्तं १३ बहुलं १४ पुट्ठा पुट्ठ १५ वियावत्तं नंदी- सुत्तं Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नंदी सुत्तं १८ वत्तमाणपयं १६ एवंभूयं १७ दुयावत्तं १९ समभिरूढं २० सव्वओभद्दं २१ पस्सासं २२ दुप्प डिग्गहं । इच्चेइयाई बावीसं सुत्ताइं छिन्न- छेयनइयाणि ससमयसुत्तपरिवाडीए । इच्चेइयाइ' वावीसं सुत्ताइ अच्छिन्नच्छेयनइयाणि - आजीवियसुत्तपरिवाडिए । इच्चेइयाई वावीसं सुत्ताइ तिगणइयाणि तेरासियसुत्तपरिवाडीए । इच्चेइयाई वावीस सुत्ताइं चउक्कनइयाणि ससमयसुत्तपरिवाडीए । एवामेव सपुव्वावरेणं अट्ठासीइ सुत्ताइ भवंति त्ति मक्खायं सेत्तं सुताइ । से किं तं पुव्वगए ? पुव्वगए चउद्दसविहे पण्णत्ते, तं जहा १ उप्पायपुव्वं ३ वीरियं ५ नाण-प्पवायं ७ आय-प्पवायं ६ पच्चक्खाण - प्पवायं ११ अझं १३ किरिया विसालं. २ अग्गाणीयं ४ अस्थिनत्थि - प्पवायं ६ सच्च-प्पवायं ८ कम्म-प्पवायं १० विज्जाणु - प्पवायं १२ पाणाऊ १४ लोकविदुसारं । ३२८ Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३० नंदी-सुत्तं. १ उप्पायपुवस्स णं दसवत्थू, चत्तारि चूलियावत्यू पण्णत्ता, २ अग्गाणीयपुवस्स णं चोद्दसवत्थू दुवालसचूलियावत्थू पण्णत्ता, . ३ वीरियपुव्वस्स णं अट्ठवत्थू, अट्ठ चूलियावत्यू पण्णत्ता, ४ अत्थि-नत्थिप्पवायपुव्वस्स णं अट्ठारस वत्थू, दसवूलियावत्थू पण्णत्ता, ५ नाणप्पवाणपुव्वस्स णं वारस वत्थू पण्णत्ता, ६ सच्चप्पवायपुवस्स णं दोणि वत्थू पण्णता, ७ आयप्पवायपुवस्स णं सोलसं वत्थू पण्णत्ता, ८ कम्मप्पवायपुवस्स णं तीसं वत्थू पण्णत्ता, . ६ पच्चक्खाणपुव्वस्स णं वीसं वत्थू पण्णत्ता, १० विज्जाणुप्पवायपुवस्स णं पन्नरस वत्थू पण्णत्ता, ११ अवंझपुव्वस्स णं वारस वत्थू पण्णत्ता, १२ पाणाऊपुवस्स णं तेरस वत्यू पण्णत्ता, १३ किरियाविसालपुव्वस्स णं तीसं वत्थू पण्णत्ता, १४ लोकविंदुसारपुवस्स णं पणवीसं वत्थू पण्णत्ता, गाहादस-चोद्दस-अट्ट-अट्ठारसेव-वारस-दुवे य वत्थूणि । सोलस - तीसा - वीसा - पन्नरस अणुप्पवायंमि ।। १ ॥ वारस इक्कारसमे, बारसमे तेरसेव वत्थूणि । तीसा पुण तेरसमे, चोद्दसमे पण्णवीसाओ ॥ २ ॥ चत्तारि-दुवालस-अट्ठ चेव, दस चेव चुल्लवत्थूणि । आइल्लाण-चउण्हं, सेसाणं चूलिया नत्थि ।। ३ ।। Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नंदी-सुत्तं ३३१ से त्तं पुव्वगए। से किं तं अणुओगे ? अणुओगे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा१ मूलपढमाणुओगे, २ गंडियाणुओगे य । से किं तं मूलपढमाणुओगे ? मूलपढमाणुओगे णं अरहंताणं भगवंताणंपुव्वभवा, देवलोगगमणाई, आउं, चवणाई, जम्मणाणि, अभिसेया, रायवरसिरीओ, पव्वज्जाओ, तवा य उग्गा, केवलनाणुप्पयाओ, तित्थ पवत्तणाणि य, सीसा, गणा, गणहरा, अज्जा, पवत्तिणीओ, संघस्स चउव्विहस्स जं च परिमाणं, जिण-मणपज्जव-ओहिनाणा, सम्मत्तसुयनाणिणो य, वाई, अणुत्तरगई य, उत्तरवेउव्विणो य मुणिणो, जत्तिया सिद्धा, सिद्धिपहो जहा देसिओ, जच्चिरं च कालं, .. पाओवगया-जेहिं जत्तियाई भत्ताई अणसणाए छेइत्ता अंतगडे, मुणिवरुत्तमे तिमिरओघविप्पमुक्के, मुक्खसुहमणुत्तरं च पत्ते, एवमन्ने य एवमाइभावा मूलपढमाणुओगे कहिया । Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३२ सेत्तं मूलपढमाणुओगे । से किं तं गंडियाणुओगे ? गंडियाणुओगे कुलगरगंडियाओ, तित्थय रगंडियाओ, चक्कवट्टिगंडियाओ, वासुदेवगंडियाओ, गणधरगंडियाओ, भद्द्वाहुगंडियाओ, तवोकम्मगंडियाओ, हरिवंसगंडियाओ, उस्सप्पिणी गंडियाओ, ओसप्पिणीगंडियाओ, चित्तंतरगंडियाओ, अमर-नर- तिरिय निरय गइ-गमण- विविहपरियट्टणाणुओगेसु एवमाइयाओ गंडियाओ आघविज्जंति, पण्णविज्जंति । सेत्तं गंडियाणुओगे | से त्तं अणुओगे । से कि त चूलियाओ ? चूलियाओ - आइल्लाणं चउण्हं पुव्वाणं चूलिआ, सेसाई पुव्वाई अचूलियाई । से त्तं चूलियाओ । दिट्टिवायरस णं परित्ता वायणा, संखेज्जा अणुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखेज्जाओ संगणीओ, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ | नवो-सुत्तं से णं अंगट्टयाए वारसमे अंगे, एगे सुयक्बंधे, चोट्सपुव्वाई, संखेज्जा वत्थू, संखेज्जा चूलवत्थू, Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नंदी-सुत्तं ३३३ संखेज्जा पाहुडा, संखेज्जा पाहुडपाहुडा, संखेज्जाओ पाहुडियाओ, संखेज्जाओ पाहुडपाहुडियाओ, संखेज्जाइं पयसहस्साई पयग्गेणं, संखिज्जा अक्खरा, अणंता गमा, अणंता पज्जवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासय-कड-निवद्ध-निकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जंति, पण्णविज्जति, परूविज्जति, दंसिज्जंति, निदंसिज्जति, उवदंसिज्जति । से एवं आया, एवं नाया, एवं विण्णाया, एवं चरण-करण-परूवणा आधविज्जइ। से त्तं दिहिवाए। सुत्तं ५७ इच्चेयम्मि दुवालसंगे गणिपिडगे .. . अणंता भावा, अणंता अभावा, अणंता हेऊ, अणंता अहेउ, अणंता कारणा, अणंता अकारणा, अणंता जीवा, अणंता अजीवा, अणंता भवसिद्धिआ, अणंता अभवसिद्धिआ, अणंता सिद्धा, अणंता असिद्धा पण्णत्ता । गाहा-भावमभावा हेऊमहेऊ, कारणमकारणे चेव । जीवाजीवाभविय-मभविया सिद्धा असिद्धा य ॥ १॥ इच्चे इयं दुवालसंगं गणिपिडगं तीए काले अणंता जीवा आणाए विराहित्ता चाउरतं संसार कंतारं अणुपरियट्टिसु, Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३४ नंदी-सुत्तं इच्चइयं दुवालसंगं गणिपिडगं पडुप्पण्णकाले परित्ताजीवा आगाए विराहित्ता चाउरतं संसारकतार अणुपरियटृत्ति इच्चे इयं दुवालसंग गणिपिडर्ग अणागए काले अणंताजीवा आणाए विराहित्ता चाउरंतं संसार-कतारं अगुपरियट्टिस्संति, इच्चे इयं दुवालसंगं गणिपिडगं तीए काले अणंताजीवा आणाए आराहित्ता चाउरंतं संसार-कतारं वीईवइंसु, इच्चे इयं दुवालसंगं गणिपिडगं पडुप्पण्णकाले परित्ताजोवा आणाए आराहित्ता चाउरंतं संसारकतारं वीईवयंति, इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं अणागएकाले अणंता जोवा आणाए आराहित्ता चाउरतं संसार-कंतारं वीईवइस्संति।. इच्चे इयं दुवालसंगं गणिपिडगं न कयाइ नासी, न कयाइ न भवइ, न कयाइ न भविस्सइ, भुवि च, भवइ य, भविस्सइ य, धुवे, नियए, सासए, अक्खए, अव्वए, अवट्ठिए, निच्चे । से जहानामए पंच अस्थिकाया न कयाइ नासी, न कयाइ नत्थि, , न कयाइ न भविस्सइ, Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नंदी - सुतं 1 भुवि च भवइ य, भविस्सइ य, धुवे, नियए, सासए, अखए, अव्वए, अवट्ठिए, निच्चे, एवामेव दुवाल संगं गणिपिडगं न कयाइ नासी, न कयाइ नत्थि, न कयाइ न भविस्सइ, भुवि च, भवइ य, भविस्सइ य, धुवे, नियए, सासए, अक्खए, अव्वए. अवट्ठिए, निच्चे । से समासओ चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा -- दव्वओ, खित्तओ, कालओ, भावओ । तत्थ दव्वओ णं सुयणाणी उवउत्ते सव्वदव्वाई जाणइ पासइ, खित्तओ णं सुयणाणी उवउत्ते सव्वं खेत्तं जाणइ पासइ. कालओ णं सुयनाणी उवउत्ते सव्वं कालं जाणइ पासइ, भावओ णं सुयनाणी उवउत्ते सव्वं भावं जाणइ पासइ, ३३५ गाहा— अक्खर सन्नी सम्मं, साइयं खलु सपज्जवसियं च । गमियं अंगपविट्ठ, सत्ते वि एए सपडिवक्खा ॥ १ ॥ Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३६ नंदी-सुत्तं - आगमसत्थग्गहणं, जं बुद्धिगुणेहिं अट्ठहिं दिळें। ... विति सुयनाणलंभं, तं पुवविसारया धीरा ।। २ ।।... सुस्सुसइ पडिपुच्छइ, सुणेइ गिण्हइ य ईहए यावि । तत्तो अपोहए वा, धारेइ करेइ वा सम्म ।। ३ ।। मूअं हुंकारं वा, वाढक्कारं पडिपुच्छ वीमंसा । तत्तो पसंगपरायणं, च परिणि? सत्तमए ॥ ४ ॥ सुत्तत्थो खलु पढमो, वीओ निज्जुत्तिमीसिओ भणिओ। तइओ य निरवसेसो, एस विही होइ अणुओगे || ५ से त्तं अंगपविळं । से तं सुयनाणं । से तं परोक्खनाणं । से तं नाणं । सेत्तं नंदी। ॥ नंदी सुत्त सम्मत्तं ।। Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुहविवाग सुत्त . . (१) तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे णयरे । (रिस्थिमिय समिद्धे) गुणसिलए चेइए । सुहम्मे समोसढे । जंवू जाव पज्जुवासति एवं वयासि-'जई णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं अयम? पण्णत्ते; सुहविवागाणं भंते ! समणेणं जाव . संपत्तेणं के अट्ठ पण्णत्ते ?' तएणं से सुहम्मे अणगारे जंबू अणगारं एवं वयासि-‘एवं खलु जंवू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सुहविवागाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता; तं जहा-सुवाहू, भद्दनंदी य सुजाए सुवासवे, तहेब जिणदासे, धणवई य महब्वले भद्दनंदी, महचंदे वरदत्ते । . 'जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सुहविवागाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स सहविवागाणं समणेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठ पण्णत्ते ?' तएणं से सहम्मे जंवू अणगारं एवं वयासि-‘एवं खलु जंबू ! तेणं कालेण तेणं समएणं. हत्थिसीसे णामं णयरे होत्था । रिद्धत्थिमियसमिद्धे । तस्स णं हत्थिसीसस्स णयरस्स वहिया उत्तरपुरस्थिमे दिसोभाए एत्थणं पुप्फकरंडए, णामं उज्जाणे होत्था । सव्वोउय-पुप्फफलसमिद्धे, रम्मे, नंदण-वणप्पगासे पासाइए दरिसणिज्जे अभिरूवे, पडिरूवे । तत्थ णं कयवणमालपियस्स जक्खस्स जक्खायतणे होत्था, दिव्वे०। . - तत्थ णं हत्थिसीसे णयरे अदीणसत्तू नाम राया होत्था । महया हिमवंत रायवण्णओ । तस्स णं अदीणसत्तुस्स रण्णो धारिणी-पामोक्खं देवीसहस्सं ओरोहे यावि होत्था । तए णं सा धारिणी देवी अन्नया कयाइ तंसि तारिसगंसि वासभवणंसि सीहं सुमिणे, जहा मेहजम्मणं तहा भाणियव्वं । णवरं सुवाहुकुमारे जाव अलं भोगसमत्थे यावि जाणेति २ त्ता अम्मापियरो पंचपासाय-वडंसगसयाई करेंति अभुग्गय Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुहविवाग सुत्तं मूसियपहसियविव, भवणं० एवं जहा महव्वलस्स रण्णो, णवरं पुप्फचूलापामोक्खाणं पंचपहं रायवरकण्णगसयाणं एगदिवसेणं पाणि गेण्हावेति; तहेव पंचसइयो दाओ, जाव उप्पि पासायवरगते फुट्टमाणेहिं जाव विहरति । तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसढे। परिसा णिग्गया। अदीणसत्तू णिग्गए जहा कोणिए । सवाहू वि जहा जमाली तहा रहेणं णिग्गए; जाव धम्मो कहिओ राया परिसा गया । तए णं से सुवाहूकुमारे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए । धम्म सोच्चा निसम्म हद्वतुढे उट्ठाए उट्ठइ जाव एवं क्यासी-सहहामि णं भंते ! निगंथं पावयणं जाव जहा णं देवाणु प्पियाणं अंतिए . वहवे राईसर-तलवर-माडंविय-कोड विय-सेटि-सेणावइ-सत्थवाह- . भिईओ मुडा भवित्ता आगाराओ अणगारियं, पव्वइया; नो खलु अहं .. तहा संचाएमि मुडे भवित्ता आगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए । अहं णं . देवाणुप्पियाणं अंतिए पंचाणुव्वतियं सत्तसिक्खावतियं-दुवालसविहंगिहिधम्म पडिव्वजिस्सामि । अहासुह, देवाणुप्पिया ! मा पडिबंध करेह। तए णं से सुवाहुकुमारे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए । पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खाच्वइयं दुवालसविहं गिहिधम्म पडिवज्जइ २ त्ता, तमेव रहं दुरुहइ २ त्ता जामेव दिसं पाउभूए तामेव दिसं पडिगए। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावी रस्स जेट्ठ अंतेवासी इंदभूई णामं अणगारे जाव एवं वयासी 'अहो णं भंते ! .. सुवाहुकुमारे इ8 इट्ठरूवे १ कंते कंतरूवे २ पिये पियरूदे ३ मणुन्ने : मणुन्नरूवे ४ मणामे मणामरूवे ५ सोमे सुभगे पियदंसणे सुरूवे; वहुजणस्सवि य णं भंते ! सुवाहुकुमारे इ8 ५ सोमे ४ जाव सुरूवे । साहुजणस्स वि य णं भते ! सुवाहुकुमारे इ8 इट्ठरूवे ५ जाव सुरूवे । सूवाहणा भंते ! कुमारेणं इमे एयारूवा उराला माणस्सरिद्धी किण्णा . लद्धा, किण्णा पत्ता किण्णा अभिसमण्णागया ? को वा एस आसी पुन्वभवे ? किं नामए वा कि गोत्तए कयरंसी वा, गामंसी वा, संनीवे Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - सुहविवाग सुत्तं . ३३६ . . संसी वा ? किं वा दच्चा किं वा भोच्चा किंवा समायरित्ता ? कस्स .. वा तहारुवस्स समणस्स वा माहणस्स वा अंतिए एगमवि आयरियं . धम्मियं सुवयणं सोचा निसम्म सुवाहुकुमारेणं इमे इयारूवा माणु सरिद्धी लद्धा पत्ता अभिसमण्णागया?' . __एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंवूद्दीवे दीवे भारहे वासे हथिणाउरे णामं णयरे रिद्धस्थिमियसमिद्धे वण्णओ। . तत्थ णं हत्थिणाउरे णयरे सुमुहे णाम गाहावई परिवसइ । अड्ढे . दित्ते जाव अपरिभूए । तेणं कालेणं तेणं समएणं धम्मघोसे णाम थेरा जाइसंपण्णा जाव पंचहि समणसएहिं सद्धि संपरिवुडा पुव्वाणुपुव्वि चरमाणा गामाणुगाम दुइज्जमाणा जेणेव हत्थिणाउरे णयरे जेणेव ... सहस्संववणे उज्जाणे तेणेव उवागच्छंति २ त्ता अहापडिरूवं उग्गहं उग्गिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरति । . तेणं कालेणं तेणं समएणं धम्मघोसाणं थेराणं अंतेवासी सुदत्ते णामं अणगारे उराले जाव तेउलेसे, मासं मासेणं खममाणे विहरइ।। तए णं से सुदत्ते अणगारे मासखमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइजहा गोयमसामी तहेव धम्मघोसे थेरे आपुच्छइ जाव अडमाणे सुमुहस्स गाहावइस्स गिहं अणुपविट्ठ । तएणं से सुमुहे गाहावई सुदत्तं अणगारं एज्जमाणं पासइ २ त्ता हट्टतुट्टे आसणाओ अभइ २ त्ता पायपीढाओ पच्चोरुहइ २ त्ता पाउयाओ उमुयति . २ त्ता एगसाडियं उत्तरासंगं करेइ २ त्ता सुदत्तं अणगारं सत्तटुपयाई अणुगच्छइ २ त्ता तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ २ त्ता वंदइ णमसइ २ त्ता जेणेव भत्तघरे तेणेव उवागच्छइ २ त्ता सयहत्थेण विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं पडिलाभिस्सामित्ति कट्ट तं? पडिलाभमाणे वि तुट्ठ पडिलाभिए त्ति तुट्ठ। तए णं तस्स सुमुहस्स गाहावइस्स तेणं दव्वसुद्धणं दायगसुद्धेणं .पडिग्गाहगसुद्धेणं तिविहेणं तिकरणसुद्धेणं सुदत्ते अणगारे पडिलाभिए समाणे संसारे परित्तीकए, मणुस्साउए णिवद्धे । गिहंसि य से इमाई पंच दिव्वाइं पाउन्भूयाइं-तं जहा वसुहारा वुढा १ दसद्धवण्णे कुसुमे Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४० सुहविवाग सुत्तं निवाइए २ चेलुक्खेवे कए ३ आहयाओ देवदुदुहीओ ४, अंतरावि य णं : आगासंसि अहोदाणं २ घु? य ५। हत्यिणाउरे सिंघाडग जाव पहेसु वहुजणो अण्णमण्णस्स एवं आइक्खइ ४ धन्ने णं देवाणुप्पिया सुमुहे। गाहावई, सपुण्णेणं दे० कयत्थेणं दे० कयपुण्णे णं दे० कयलक्खणे णं० ., कयविहवे णं० सुलद्धे णं० । तस्स सुमुहस्स गाहावइस्स इमा एयारूवा : उराला माणुस्सरिद्धि लद्धा, पत्ता, अभिसमण्णागया । तए णं से सुमुहे गाहावई वहुई वासासयाई आउयं पालेइ २ त्ता. कालेमासे कालं किच्चा इहेव हत्थिसीसए णयरे अदीणसत्तुस्स रण्णो धारिणीए देवीए कुच्छिसि पुत्तत्ताए उववणे । तए णं सा धारिणी. देवी सयणिज्जंसि सुत्तजागरा ओहीरमाणी २ तहेव सीहं पासइ । सेस तं चेव जाव० उप्पि पासाए विहरइ । तं एवं खलु गोयमा सुवाहूणा इमा एयारूवा माणुस्सरिद्धी लद्धा पत्ता अभिसमण्णागया। 'पभू णं भंते ! सुवाहुकुमारे देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता : आगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए ?' हंता पभू ! तए णं से भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ २ त्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ । ___ तए णं से समणे भगवं महावीरे अण्णया कयाई हत्थिसीसाओ णयराओ पुप्फकरंडयाओ उज्जाणाओ कयवणमालप्पियस्स जक्खस्स . जक्खायतणाओ पडिनिक्खमइ २ त्ता वहिया जणवयविहारं विहरइ । तए णं से सुवाहुकुमारे समणोवासए जाए अभिगयजीवाजीवे जाव .. पडिलाभेमाणे विहरइ । तए णं से सुवाहुकुमारे अण्णया कयाई चाउद- . सट्ठमुदिट्ठ-पुण्णमासिणीसु जेणेव पोसहसाला तेणेव स्वागच्छइ २ त्ता . पोसहसालं पमज्जइ २ त्ता उच्चारपासवणभूमि पडिलेहेइ २ ता .. दम्भसंथारगं संथरेइ २ त्ता, दम्भसंथारगं दुरूहइ २ त्ता अट्ठमभत्तं . पगेण्हइ २ त्ता पोसहसालाए पोसहिए अट्ठमभत्तिए पोसहं पडिजागरमाणे २ विहरइ । तए णं तस्स सुवाहुस्स कुमारस्स पुव्वरत्तावरत्तकाले धम्मजा Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुहविवाग सुत्तं - . . . ३४१ गरियं जागरमाणस्स इमे एयारूबे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे ५ समुप्पन्ने-'धन्नाणं ते गामागरणगर जाव सन्निवेसा, जत्थ णं समणे भगवं महावीरे विहरइ । धन्नाणं ते राईसर जाव सत्थवाह-पभिइओ, जे णं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता आगारओ अणगारियं पव्वयंति । धन्नाणं ते राईसर जाव । सत्थवाह-पभिइओ जे णं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए पंचाणुव्वइयं जाव गिहिधम्म पडिवज्जंति । धन्नाणं ते राईसर० जे णं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्म पडिसुणंति । तं जइ णं समणे भगवं महावीरे पुव्वाणपुव्वं चरमाणे जाव गामाणुगामं दूइज्जमाणे इहमागच्छेज्जा.जाव विहरिज्जा; तए णं अहं समणस्स भगवओ - महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता जाव पव्वएज्जा। .. तए णं समणे भगवं महावीरे सुवाहुस्स कुमारस्स इमं एयारूवं अज्झत्थियं जाव वियाणित्ता पुव्वाणपुव्विं चरमाणे जाव गामाणुगामं दूइज्जमाणे जेणेव हत्थिसीसे णयरे जेणेव पुप्फकरंडे उज्जाणे जेणेव कयवणमालपियस्स जक्खस्स जक्खायतणे तेणेव उवागच्छइ २ त्ता अहापडिरूवं उग्गहं उगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ । परिसा, राया निग्गए । तए णं तस्स सुवाहुस्स कुमारस्स . तं महया०, जहा पढमं तहा निग्गओ। धम्मो कहिओ। परिसा पडिगया राया य पडिगओ। तए णं से सुवाहुकुमारे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा निस्सम्म हट्ट-तुट्ठ । जहा मेहो तहा अम्मापियरो आपुच्छइ। निक्खमणाभिसेओ तहेव जाव अणगारे जाए इरियासमिए जाव वं भयारी । तए णं से सुबाहू अणगारे समणस्स भगवओ महावीरस्स तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस-अंगाई अहिज्जइ २ त्ता वहूई चउत्थछट्टट्ठमतवोविहाणेहिं अप्पाणं भावित्ता वहूई वासाइं सामण्णपरियागं पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झूसित्ता सद्धि भत्ताइ अणसणाइं छेदित्ता, आलोइय-पडिक्कते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे देवताए उववण्णे । Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४२ सुहविवाग सुत्तं से गं तत्तो देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणंत्तरं चयं चइत्ता माणुस्सं विग्गहं लमिहिइ २ त्ता केवलं वोहि वुज्झिहिइ २ त्ता तहारूवाणं थेराणं अंतिए मुंडे जाव पव्वइस्सइ । से णं तत्थ वहूई वासाई सामण्णपरियागं पाउणिहिई २ त्ता आलोइय- . पडिक्कते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सणंकुमारे कप्पे देवत्ताए उववज्जिहिइ । ताओ माणुस्सं, पव्वज्जा, वंभलोए, माणुस्सं, महासुक्के, माणुस्सं, आणए, माणुस्सं, आरणे, माणुस्सं, सव्वट्ठसिद्धे। . से णं तओ अणंतरं उव्वद्वित्ता महाविदेहे जाव जाई अठाई जहा दढपइन्ने सिज्झिहिति वुज्झिहिति मुच्चिहिति परिनिव्वाहिति सव्वदुक्खाणमंतं करेहिति । तं एवं खलु जंवू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सुहविवागाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयम? पण्णत्तें । त्ति वेमि ।। इइ सुहविवागस्स पढमं अज्झयणं सम्मत्तं ।।१।। (२) वितियस्स उक्खेवओ। एवं खलु जंवू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं उसभपुरे णयरे । थूमकरंडगं उज्ज्जाणं । धण्णो जक्खो। धणावहो राया । सरस्सई देवी । सुमिणदसणं, कहणं जम्म, वालत्तणं, कलाओ य, जोव्वणं, पाणिग्गहणं, दाओ पासाय भोगा य जहा .. सुबाहुस्स णवरं भद्दनंदी कुमारे । सिरीदेवी पामोक्खाणं पंचसयाणं कन्नाणं पाणिगणं । सामिस्स समोसरणं । सावगधम्म पुव्वभवंपुच्छा । महाविदेहे वासे, पुंडरीगिणि नगरी विजए कुमारे । जुगवाहू तित्थयरे पडिलाभिए मणुस्साउए निवद्धे । इहं उप्पण्णे । सेसं जहा सुवाहुस्स जाव महाविदेहे सिज्झिहिति वुज्झिहिति मुच्चिहिति परि- . निव्वाहिति सव्वदुवखाणमंतं करेहिति । एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सुहविवागाणं वितियस्स अज्झयणस्स अयम? पण्णत्ते । त्ति वेमि । इइ सुहविवागस्स वीइयं अज्झयणं सम्मत्तं ॥२॥ Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुहविवाग सुत्तं ३४३ .. (३) तच्चस्स उक्खेवओ। वीरपुरं णयरं मणोरमं उज्जाणं । .. वीरसेणे जक्खे । वीरकण्हमित्ते राया। सिरी देवी । सुजाए कुमारे । वलसिरीपामोक्खाणं पंचसयकन्नगाणं पाणिग्गहणं । सामी समोसरिए। पुत्वभव-पुच्छा । उसुयारे णयरे० उसभदत्ते गाहावई, पुप्फदत्ते अणगारे पडिलाभिए, माणुस्साउए निवद्धे, इहं उप्पण्णे जाव महाविदेहे . - सिज्झिहिति ५। ... इइ सुहविवागस्स तइयं अज्झयणं सम्मत्तं ॥३॥ (४) चउत्थस्स उक्खेवओ। विजयपुरंणयरं । णंदणवणं उज्जाणं । असोगो जक्खो । वासवदत्ते राया । कण्हा देवी । सुवासवे कुमारे। भद्दापामोक्खाणं पंचसयकन्नगाणं जाव पुन्वभवे । कोसंवी णयरी । धणपाले राया। वेसमणभद्दे अणगारे पडिलाभिए । इहं उप्पण्णे जाव सिद्धे । इइ सुहविवागस्स चउत्थं अज्झयणं सम्मत्तं ॥४॥ (५) पंचमस्स उक्खेवओ । सोगंधिया णयरी । णीलासोगे उज्जाणे । सुकालो जक्खो । अपडिहयो राया । सुकण्हा देवी । महचंदे कुमारे । तस्स अरहदत्ता भारिया। जिणदासो पुत्तो। तित्थय रागमणं, जिणदास-पुत्वभवो। मज्झमिया नयरी । मेहरहे राया । सुधम्मे अणगारे पडिलाभिए, जाव सिद्धे। . इइ सुहविवागस्स पंचमं अज्झयणं सम्मत्तं ॥५॥ (६) छटुस्स उखेवओ । कणगपुरं णयरं । सेयासोयं उज्जाणं । वीरभद्दो जक्खो। पियचंदो राया । सुभद्दा देवी। वेसमणे कुमारे जुवराया । सिरोदेवी-पामोक्खाणं पंचसयाणं रायवरकन्नगाणं पाणिग्गहणं । तित्थयरागमणं । धणवई जुवरायपुत्ते जाव पुन्वभवे । मणि Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४४ सुहविवाग सुत्तं चइया णयरी | मित्ते राया । संभूइविजए अणगारे पडिलाभिए जाव सिद्धे । निक्खेवो । इइ सुहविवागस्स छट्ठ' अज्झयणं सम्मत्तं ॥६॥ | (७) सत्तमस्स उक्खेवओ । महापुरं णयरं । रत्तासोगे उज्जाणे । रत्तपाओ जक्खो । बले राया । सुभद्दा देवी | महावले कुमारे । रत्तवईपामोक्खाणं पंचसयरायवरकन्नगाणं पाणिग्रहणं । तित्थयरागमणं जाव पुव्वभवो | मणिपुरं णयरं । नागदत्ते गाहावई इंददत्ते - अणगारे पडिलाभिए जाव सिद्धे । इइ सुहविवागस्स सत्तमं अज्झयणं सम्मत्तं ॥७॥ (८) अट्ठमस्स उक्खेवओ | सुघोसं णयरं । देवरमणं उज्जाणं । वीरसेणो जक्खो | अज्झणो राया । रत्तवई देवी । भद्दनंदी कुमारे । सिरीदेवीपामोक्खाणं पंचसयाणं रायवरकन्नगाणं पाणिग्गहणं जाव पुव्वभवो | महाघोसे णयरे । धम्मघोसे गाहावई । धम्मसीहे अणगारे पडिला भए जाव सिद्धे । निवखेवो । इइ सुहविवागस्स अट्ठमं अज्झयणं सम्मत्तं ||८| (६) नवमस्स उक्खेवओ । चंपा णयरी | पुण्णभद्दे उज्जाणे । पुण्णभद्दे जक्खे | दत्ते राया । रत्तवई देवी । महचंदे कुमारे । जुवराया | सिरीकंतापामोक्खाणं पंचसयाणं रायवरकन्नगाणं पाणिग्गणं । जाव पुव्वभवो । तिमिच्छा णयरी | जियसत्तू राया | धम्मवीरिए अणगारे पडिला भए जाव सिद्धे । इइ सुहविवागस्स नवमं अज्झयणं सम्मत्तं ॥६॥ (१०) जइ णं भंते ! दसमस्स उक्खेवओ । एवं खलु जंबू ! तेणं कालेण तेणं समएणं साएयं णामं णयरं होत्था | उत्तरकुरू उज्जाणे । पासामिओ जक्खो । मित्तनंदी राया । सिरीकंता देवी । वरदत्ते Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुहविवाग सुत्तं ३४५, कुमारे। बोरसेणापामोक्खाणं पंचदेवीसयाणं रायवरकन्नगाणं पाणिगणं । तित्थय रागमणं । सावगंधम्मं । पुत्रभवो ( पुच्छा) । सयदुवारे पयरे । विमलवाहणे राया । धम्मरुई अणगारे पडिलाभिए मगुस्साउए निव । इहूं उप्पण्णे । सेसं जहा सुवाहुस्स कुमारस्त चिंता जाव पवज्जा । कप्पंतारे ततो जाव सव्वट्ठसिद्ध । त महाविदेहे जहा दढपणे जाव सिज्झिहिति ५ । एवं खलु जंबू ! समणं भगवया महावीरेणं जात्र संपत्तेण सुहविवागाणं दसमस्स अज्झयणस्स अयमट्ट पण्णत्ते | 'सेवं भंते २ सुहविवागा' त्ति बेमि । इइ सुहविवागस्तदसमं अज्झयणं सम्मत्तं । णमो सुदेवाए विद्यागसुयस्स दो सुयसंधा - दुहविवागे य सहविवागे य । तत्थ दुहविवागे दस अज्झयणा एवकासरगा दससु चैव दिवसेस उद्दिसिज्जति । एवं सुहविवागे वि सेसं जहा आया रस्सा |१०| || इति सुखविपाकसूत्रम् ॥ Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवदाई-सुत्तस्स बाबीलगाहाओ कहिं पडिहया सिद्धा ? कहिं सिद्धा पइट्ठिया ?। .. कहिं वोदि चइत्ताणं, कत्थ गंतूण सिज्ज्ञई ।। १॥ .. अलोगे पडिहया सिद्धा, लोयग्गे य पइट्ठिया। इह वोदि चइत्ताणं, तत्थ गंतूण सिज्झई ।। २ ॥ . जं संठाणं तु इहं भवं चयंतस्स चरिमसमयंमि । आसी य पएसघणं तं संठाणं तहिं तस्स ।। ३ ॥ दीहं वा हस्सं वा, जं चरिमभवे हवेज्ज संठाणं । . तत्तो तिभागहीणं सिद्धाणोगाहणा भणिया ॥ ४ ॥ तिण्णि सया तेत्तीसा, धणुत्तिभागो य होइ वोद्धव्वा । एसा खलु सिद्धाणं, उनकोसोगाहणा भणिया ।। ५ ॥ चत्तारि य रयणीओ, रयणितिभागूणिया य वोद्धव्वा । .. एसा खलु सिद्धाणं, मज्झिमओगाहणा भणिया ॥ ६ ॥ एक्को य होइ रयणी, साहीया अंगुलाइ अट्ठ भवे। एसा खलु सिद्धाणं, जहण्णओगाहणा भणिया ।। ७ ।। ओगाहणाए सिद्धा भवत्तिभागेण होइ परिहीणा। संठाणमणित्थंथं जरामरणविप्पमुक्काणं ।। ८ ॥ . जत्थ य एगो सिद्धो तत्थ अणंता भवक्खयविमुक्का । अण्णोण्णसमोगाढा, पुट्ठा सवे य लोगते ॥६॥ फुसइ अणंते सिद्ध-सव्वपएसेहि णियमसो सिद्धा। ते वि असंखेज्जा गुणा देसपएसेहिं जे पुट्ठा ।। १०॥ Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उववाई- सुत्तस्स बावीसगाहाओ . असरीरा जीवघणा, उवउत्ता दंसणे य णाणे य । सागारमणागारं लक्खणमेयं तु जाणंति सव्वभावगुणभावे । केवलणाणुवउत्ता पासंति सव्वओ खलु केवलदिट्ठिअणं ताहिं ॥ १२ ॥ वि अत्थि माणसाणं तं सोक्खं णविय सव्वदेवाणं । जं सिद्धाणं सोक्खं अव्वावाहं उवगयाणं ॥ १३ ॥ जं देवाणं सोक्खं सव्वद्धापिडियं ण य पावइ मुक्किसुहं णंताहिं ३४७ - सिद्धाणं ॥ ११ ॥ सिद्धस्स सुह- रासी सव्वद्धापिडिओ जइ हवेज्जा | सोणंतवग्गभइओ सव्वागासे ण माएज्जा ।। १५ ।। अनंतगुणं । वग्गग्गूहिं ॥ १४ ॥ जह णाम कोई मिच्छो, जगरगुणे बहुविहे वियाणंतो । ण चएइ परिकहेउं उवमाए तहिं असंतीए ॥ १६ ॥ अतुल सुहसागरगया सव्वमणागयमद्धं इय सिद्धाणं सोक्खं अणोवमं णत्थि तस्स ओवम्मं । किंचि विसेसेणेत्तो, ओवम्ममिणं सुणह वोच्छं ।। १७ ।। जह सव्वकामगुणियं पुरिसो भोत्तूण भोयणं कोई । तहाछुहाविवको अच्छेज्ज जहा अमियतित्तो ॥ १८ ॥ इय सव्वकालतित्ता अतुलं निव्वाणमुवगया सिद्धा । सासय मव्वावाहं चिट्ठति सुही सुहं पत्ता ॥ १६ ॥ सिद्धत्तिय वुद्धत्तिय पारगयत्ति य परंपरगयत्ति । उम्मुक्ककम्मकवया अजरा अमरा असंगा य ॥ २० ॥ णिच्छिण्णसव्वदुक्खा जाइजरामरणबंधणविमुक्का | अव्वावाहं सुबखं अणुहोंति सासयं सिद्धा ॥ २१ ॥ पत्ता । पत्ता ।। २२ ।। अव्वावाहं अणोवमं चिट्ठ ं ति सुहं Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसासुयक्खंधस्स चित्तलमाहि णाम पंचमदसा नमो सुयदेवयाए भगवतीए । सुयं मे आउसं! तेणं भगवया एवमवखायं, इह खलु थेरेहि भगवंतेहिं दस चित्त-समाहिठाणा पन्नत्ता। कयरा खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं दस चित्त-समाहिठाणा-पन्नत्ता? इमे खलु थेरेहिं भगवंतेहिं दस-चित्तसमाहिठाणा-पन्नत्ता तंजहा-तेणं कालेणं तेण समएण वाणियग्गामे नगरे होत्था, नगर-वण्णओ भाणियव्वो || १|| तस्स ण वाणियग्गामस्स नगरस्स वहिया उत्तरपुरस्थिमे दिसिभाए दूतिपलासए नामं चेइए होत्था, चेइय-वण्णओ भाणि- . यन्वो ॥ २॥ जियसत्तू राया, तस्स धारिणी नाम देवी एवं सव्वं समोसरणं भाणियव्वं जाव पुढविसिलापट्टए, सामी समोसढे, परिसा निग्गया; 'धम्मो कहिओ; परिसा पडिगया ॥ ३ ॥ अज्जो ! त्ति समणे भगवं महावीरे समणा य समणीओ य निग्गंथा य निग्गंथीओ य आमंतित्ता एवं वयासी-इह खलू अज्जो ! निग्ग-. थाणं वा, निग्गंथीण वा इरियासमियाण, भासासमियाणं, एसणा- - समियाण, आयाणभंड-मत्त-निक्खेवणा-समियाणं, उच्चारपासवणखेल-जल्लसिंघाण-पारिट्ठावणिया-समियाण, मणसमियाणं, वयसमियाणं, काय-समियाणं, मण-गुत्तियाणं, वयगुत्तियाणं, कायगुत्तियाणं, गुत्तिदियाणं गुत्तबंभयारीणं, आयट्ठीणं, आय-हियाण, . आय-जोइणं, आय-परक्कमाण पक्खिए पोसहिएस समाहि-पत्ताणं .. झियायमाणाण इमाइं दसचित्तसमाहि-ट्ठाणाइं असमुप्पण्ण-पुवाई : समुप्पज्जित्था । तंजहा १-धम्मचिता वा से असमुप्पणपुवाई ___ समुप्पज्जेज्जा सव्वं धम्म जाणित्तए। Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसासुयक्खंधस्स चित्तसमाहि णाम पंचम दसा ३४६ २ - सण्णि-जाइ - सरणेणं सण्णि णाणं वा से असमुप्पण -पुवे समुपज्जेज्जा अप्पणो पोराणियं जाई सुमरित्तए । ३ – सुमिण दंसिण वा से असमुप्पण-पुव्वे समुपज्जेज्जा, अहातच्चं सुमिणं पात्तिए । ४–देव-दंसणे वा से असमुप्पण्ण-पुव्वे समुप्पज्जेज्जा दिव्वं देवड्ढि दिव्वं देवजुइ दिव्वं देवाणुभावं पात्तिए । ५ - ओहिणाणे वा से असमुप्पण्ण-पुव्वे समुप्पज्जेज्जा, ओहिणा लोगं जाणित्तए । ६ - ओहि दंसणे वा से असमुप्पण्ण-पुव्वे समुत्पज्जेज्जा ओहिगा लोयं पात्तिए । ७—मणपज्जवनाणे वा से असमुप्पणपुव्वे समुपज्जेज्जा अंतो माणुसखित्तेसु अड्ढाइज्जेसु दीव-समुद्देसु सण्णीणं पंचिदियाणं पज्जत्तगाणं मणोगए भावे जाणित्तए । ८ 5- केवलनाणे वा से असमुप्पण्ण-पुव्वे समुप्पज्जेज्जा केवलकप्पं लोयालोयं जाणित्तए । — केवल दंसणे वा से असमुप्पण्ण-पुव्वे समुप्पज्जेज्जा केवलकप्पं लोयालोयं पासित्तए । - १० – केवल-मरणे वा से असमुप्पण्ण-पुव्वे समुप्पज्जेज्जा सव्व दुक्ख पहाणाए । ओयं चित्तं समादाय, ज्झाणं समुप्पज्जइ । घम्मे टिओ अविमणो, निव्वाणमभिगच्छइ ॥ १ ॥ ण इमं चित्तं समादाय, भुज्जो लोयंसि जायइ । अप्पणी उत्तमं ठाणं, सण्णी णाणेण जाणइ ॥ २ ॥ अहातच्चं तु सुमिणं, खिप्पं पासेति संबुडे । सव्वं वा ओहं तरति दुक्खओ य विमुच्चइ || ३ || पंताई भयमाणस्स, विवित्तं सयणासणं । अप्पाहारस्स दंतस्स, देवा दंसेंति ताइणो ॥ ४ ॥ Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५० दसासुयक्खंधल्स चित्तत्तमाहि णाम पंचम दसा सव्व-काम-विरत्तस्स, खमओ भय-भेरवं । तओ से ओही भवइ, संजयस्स तवस्सिणो ।।५।। तवसा अवहट्ट लेस्सस्स, दंसणं परिसुज्झइ । उड्ढं अहे तिरियं च, सव्वमणुपस्सति ।। ६ ।। सुसमाहियलेस्सस्स, अवितक्कस्स भिक्खुणो । सव्वओ विप्पमुक्कस्स, आया जाणइ पज्जवे ।। ७ ।। जया से नाणावरणं, सव्वं होइ खयं गयं । तओ लोगमलोगं च, जिणो जाणति केवली ।। ८ ॥ जया से दरिसणावरणं, सव्वं होइ खयं गयं । तओ लोगमलोगं च, जिणो पासति केवलो ।।६।। पडिमाए विसुद्धाए, मोहणिज्ज खयं गयं । असेसं लोगमलोगं च पासेति सुसमाहिए ।।१०।। जहा मत्थए सूइए, हंताए हम्मइ तले । एवं कम्माणि हम्मंति, मोहणिज्जे खयं गए ।।११।। सेणावइम्मि निहते, जहा सेणा पणस्सइ। एवं कम्माणि णस्संति, मोहणिज्जे खयं गए ॥१२॥ धूम-हीणो जहा अगी, खीयति से निरिधणे । एवं कम्माणि खोयंति, मोहणिज्जे खयं गए ।।१३।। सुक्क-मूले जहा रुक्खे, सिंचमाणे ण रोहति । एवं कम्मा ण रोहंति, मोहणिज्जे खयं गए ॥१४॥ जहा दड्ढाणं वीयाणं, न जायंति पुण अंकुरा । कम्म-वीएसु दड्ढेसु न जायंति भवंकुरा ॥१५।। चिच्चा ओरालियं वोदि, नाम गोयं च केवली। आउयं वेयणिज्जं च, छित्ता भवति णीरए ॥१६॥ एवं अभिसमागम्म, चित्तमादाय आउसो।। सेणिसुद्धिमुवागम्म . आयसुद्धिमुवागए॥१७॥ त्ति वेमि Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बोरत्थुई पुच्छिस्सु णं समणा माहणा य, आगारिणो या परतित्थिआ य । से केइ गंत हियधम्ममाहु, अणेलिसं साहुस मिक्खयाए ||१|| 11911 कहं च णाणं कह दंसणं से, सीलं कहं नायसुयस्स आसि ? | जाणासि णं भिक्खु जहातहेणं, अहासुयं ब्रूहि जहा णिसंतं ॥२॥ खेयन्नए से कुसले महेसी, अनंतनाणी य अनंतदसी । जसं सिणो चक्खुपहे ठियस्स, जाणाहि धम्मं च धिइ च पेहि ॥३॥ उड्ढं अहे यं तिरियं दिसासु, तसा य जे थावर जे य पाणा । 'से णिच्च णिच्चेहि समिक्ख पन्ने, दीवे व धम्मं समियं उदाहु ||४|| से सव्वदंसी अभिभूयनाणी, णिरामगंधे धिइमं ठियप्पा | अणुत्तरे सव्वजगंसि विज्जं, गंथा अईए अभए अणाऊ ||५|| से भूइपणे अणिए अचारी, ओहंतरे धीरे अनंतचवखू । अणुत्तरं तप्पइ सूरिए वा वइरोयणिदे व तमं पगासे ॥६॥ अणुत्तरं धम्ममिण जिणाण, या मुणी कासव आसुन्ने । इंदेव देवाण महाणुभावे, सहस्सणेया दिवि णं विसि ॥७॥ से पन्ना अक्खयसायरे वां महोदही वा वि अणतपारे । अणाविले वा अकसाइ मुक्के, सक्के व देवाहिवई जुईमं ॥८॥ से वीरिएणं पडिपुन्नवीरिए, सुदंसणे वा णगसव्वसे । सुरालए वा सि मुदागरे से, विरायए गगुणोववे ॥६॥ सयं सहस्साण उ जोयणाण, तिकंडगे से जोयणे णवणवइसहस्से, उड्दुस्सितो हे पंडगवेजयंते । सहस्समेगं ॥१०॥ Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५२ वीरत्युई पुट्टे णभे चिट्ठइ भूमिर्वाट्ठिए, जं सूरिया अणुपरियट्टयंति । से हेमवन्नं बहुनंदणे य, जंसि रई वेदयंति महिंदा ||११||. सहमहत्पगासे, विरायइ कंचणमवन्न । से पव्वए अणुत्तरे गिरिसु य पव्वदुग्गे, गिरीवरे से जलिए व भोमे ||१२|| सुद्धले से | अच्चिमाली ||१३|| महीए मज्झमि ठिए गिंदे, पन्नायते सूरिए एवं सिरीए उ स भूरिवन्ने, मणोरमे जोयइ सुदंसणस्सेव जसो गिरिस्स, पबुच्चई महतो पव्वयस्स । एतोव मे समणे नायपुत्त, जाइ - जसो दंसण - नाणसीले ||१४|| । गिरीवरे वा निसहाययाणं, रुपए व सेट्ठे वलयायताणं । तओवमे से जगभूइपन्ने मुणीण मज्झे तमुदाहु पन्न ||१५|| अणुत्तरं धम्ममुईरइत्ता, अणुत्तरं झाणवरं झियाइ । सुसुक्क सुक्कं अपगंडसुक्कं, संखिदुए गंतवदातसुक्कं ॥१६॥ अणुत्तरग्गं परमं महेसी, असेसकम्मं स विसोहइत्ता । सिद्धि गए साइमणंतपत्ते, नाणेण सीलेण य दंसणेण ||१७|| रुक्खेसु णाए जह सामली वा, जंसि रई वेदयंति सुवन्ना । वणेसु वा णंदणमाहु सेट्ठ, नाणेण सीलेण य भूतिपन्ते ||१८|| 119511 थणियं व सद्दाण अणुत्तरे उ, चन्दो व ताराण महाणुभावे । गंधेसु वा चन्दणमाहु सेट्ठ, एवं मुणीणं अपन्निमाहु ||१६|| 119811 जहा सयंभू उदहीण सेट्ठे, नागेसु वा धरणिदमाहु सेट्ठे । खोओदए वा रसवेजयंते, तवोवहाणे मुणीवेजयंते ॥२०॥ हत्थीसु एरावणमाहु नाए, सीहो मियाणं सलिलाण गंगा । पक्खीसु वा गरुले वेणुदेवो, निव्वाणवादीणिह नायपुत्ते ||२१|| जोहेसु नाए जह वीससेणे, पुष्फेसु वा जह अरविंदमाहु | खत्तीण सेट्ठे जह दंतवक्के, इसीण सेट्ठे तह वद्धमाणे ||२२|| Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बोरत्युई . ३५३ दाणाण सेठं अभयप्पयाणं, सच्चेसु वा अणवज्जं वयंति ।। तवेसु वा उत्तम वंभचेरं, लोगुत्तमे समणे नायपुत्ते ॥२३॥ ठिईण सेट्ठा लवसत्तमा वा, सभा सुहम्मा व सभाण सेट्ठा । निव्वाणसेट्ठा जह सबधम्मा. न नायपुत्ता परमत्थि नाणी ॥२४॥ पुढोवमे धुणइ विगयगेही, न सपिणहिं कुव्वइ. आसुपन्ने । तरि समुदं च महाभवोघं, अभयंकरे वीर अणंतचक्खू ।।२।। कोहं च माणं च तहेव मायं, लोभं चउत्थं अज्झत्थदोसा। एयाणि वंता अरहा महेसी, ण कुव्वई पाव ण कारवेइ ॥२६॥ किरियाकिरियं वेणईयाणवायं, अण्णाणियाणं पडियच्च ठाणं । से सव्ववायं । इइ वेयइत्ता, उठिए संजम दोहरायं ॥२७॥ से वारिया इत्थी सराइभत्तं, उवहाणवं दुक्खखयट्ठयाए। लोग विदित्ता आरं परं च, सव्वं पभू वारिय सव्ववारं ॥२८॥ सोच्चा य धम्म अरहंतभासियं समाहियं अट्ठपओविसुद्ध। . तं सद्दहाणा य जणा अणाऊ, इंदा व देवाहिव आगमिस्संति ॥२६॥ . त्ति बेमि ।। . ॥ वीर थुई सम्मत्ता ।। . . . . . . Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्त्वार्थ-सूत्र प्रथमोऽध्यायः सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः ॥१॥ तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम् ॥२॥ तन्निसर्गादधिगमाद्वा ॥३॥ जीवाजीवानववन्धसंवरनिर्जरामोक्षास्तत्त्वम् ॥४॥ नामस्थापनाद्रव्यभावतस्तल्यासः ॥शा प्रमाणनये रधिगमः ।।६।। निर्देशस्वामित्वसाधनाधिकरणस्थितिविधानतः ॥७॥ सत्संख्याक्षेत्रस्पर्शनकालान्तरभावाल्पवहुत्वैश्च ॥८॥ मतिश्रुतावधिमनःपर्यायकेवलानि ज्ञानम् ॥६11 तत् प्रमाणे ॥१०॥ आद्य परोक्षम् ।।११।। प्रत्यक्षमन्यत् ॥१२॥ मतिः स्मृतिः संज्ञा चिन्ताऽभिनिवोध इत्यनर्थान्तरम ॥१३॥ तदिन्द्रियानिन्द्रियनिमित्तम् ॥१४॥ अवग्रहेहावायधारणा: ॥१शा वहुवहुविधक्षिप्रानिश्रितासंदिग्धध्रुवाणांसेतराणाम् ।।१६।। अर्थस्य ॥१७॥ व्यञ्जनस्यावग्रहः ॥१८॥ न चक्षुरनिन्द्रियाभ्याम् ।।१६।। श्रुतं मतिपूर्व द्वयनेकद्वादशभेदम् ॥२०॥ द्विविधोऽवधिः ॥२१॥ Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वार्थ सूत्र तंत्र भवप्रत्ययो नारकदेवानाम् ||२२|| यथोक्तनिमित्तः षड्विकल्पः शेषाणाम् ||२३|| ऋजुविपुलमती मनः पर्यायः ||२४|| विशुद्धयप्रतिपाताभ्यां तद्विशेषः ||२५|| विशुद्धिक्षेत्रस्वामिविषयेभ्योऽवधिमनः पर्याययोः ||२६|| मतिश्रुत योनिवन्धः सर्वद्रव्येष्वसर्व पर्यायेषु ||२७|| रूपिष्ववधेः ||२८|| तदनन्तभागे मनःपर्यायस्य ||२|| सर्वद्रव्य पर्यायेषु केवलस्य ||३०|| एकादीनि भाज्यानि युगपदेकस्मिन्नाचतुर्भ्यः ||३१|| मतिश्रुतावधयो विपर्ययश्च ॥३२॥ सदसतोरविशेषाद् यदृच्छोपलब्धेरुन्मत्तवत् ||३३|| नैगमसंग्रह व्यवहारर्जु' सूत्रशब्दा नयाः ||३४|| आद्यशब्दो द्वित्रिभेदी ||३५|| द्वितीयोऽध्यायः औपशमिकक्षायिको भावी मिश्रश्च जीवस्य स्वतत्त्वमौदयिक पारिणामिको च ॥१॥ द्विनवाष्टादशैकविंशतित्रिभेदा यथाक्रमम् ||२|| सम्यक्त्वचारित्रे ||३|| ज्ञानदर्शनदानलाभभोगोपभोगवीर्याणि च ॥ ४ ॥ ज्ञानाज्ञानदर्शनदाना दिलब्ध यश्चतुस्त्रित्रिपञ्चभेदाः यथाक्रमं सम्यक्त्वचारित्रसंयमासंयमाश्च ॥ ५॥ गतिकषाय लिङ्गमिथ्यादर्शनाऽज्ञानाऽसंयताऽसिद्धत्वलेश्याश्चतुश्चतुस्त्र्ये कै कै कै कषड्भेदाः ||६|| ३५५ Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५६ तत्त्वार्थ-सूत्र .. जीवभव्याभव्यत्वादीनि च ||७|| उपयोगो लक्षणम् ॥ स द्विविधोऽष्टचतुर्भदः ॥६॥ संसारिणो मुक्ताश्च ॥१०॥ समनस्काऽमनस्काः ॥११॥ संसारिणस्त्रसस्थावराः ॥१२॥ पृथिव्यम्बुवनस्पतयः स्थावराः ।।१३।। तेजोवायू द्वीन्द्रियादयश्च वसाः ॥१४|| पञ्चेन्द्रियाणि ॥१५॥ द्विविधानि ॥१६॥ निर्वृत्युपकरणे द्रव्येन्द्रियम् ॥१७॥ लव्ध्युपयोगी भावेन्द्रियम् ||१८|| उपयोगः स्पर्शादिषु ।।१६।। स्पर्शनरसनघ्राणचक्षुःश्रोत्राणि ॥२०॥ स्पर्शरसगन्धवर्णशब्दास्तेषामर्थाः ॥२१॥ श्रुतमनिन्द्रियस्य ॥२२॥ वाय्वन्तानामेकम् ॥२३॥ कृमिपिपीलिकाभ्रमरमनुष्यादीनामेकैकवृद्धानि ।।२४|| संज्ञिनः समनस्काः ॥२॥ विग्रहगती कर्मयोगः ॥२६।। अनुश्रेणि गतिः ॥२७॥ अविग्रहा जीवस्य ॥२८॥ विग्रहवती च संसारिणः प्राक्चतुर्यः ॥२६॥ एकसमयोऽविग्रहः ॥३०॥ एकं द्वौ वाऽनाहारकः ॥३१॥ Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्त्वार्थ सूत्र सम्मूर्छनगर्भोपपाता जन्म ||३२|| सचित्तशीत संवृताः सेतरा मिश्राश्चैकशस्तद्योनयः ||३३|| जराखण्डपोतजानां गर्भः ||३४|| नारकदेवानामुपपातः ||३५|| शेषाणां सम्मूर्छनम् ||३६|| औदारिकवै क्रियाऽऽहारकतैजसकार्मणानि शरीराणि ||३७|| परं परं सूक्ष्मम् ||३८|| प्रदेशतोऽसंख्येयगुणं प्राक् तैजसात् ||३६|| अनन्तगुणे परे ||४०| अप्रतिघाते ||४| अनादिसम्बन्धे च ॥४२॥ | सर्वस्य ||४३|| तदादीनि भाज्यानि युगपदेकस्याचतुर्भ्यः || ४४ ।। निरुपभोगमन्त्यम् ।।४५ ॥ गर्भसम्मूर्छनजमाद्यम् ॥४६॥ | वैकियमोपपातिकम् ||४७|| 'लब्धिप्रत्ययं च ॥ ४८ ॥ शुभं विशुद्धमव्याघाति चाहारकं चतुर्दशपूर्वधरस्यैव ॥ ४६ ॥ नारकसम्मूछिनो नपुंसकानि ॥५०॥ न देवाः ||५१|| औपपातिकचरमदेहोत्तमपुरुषाऽसंख्येयवर्षायुषोऽनप वर्त्यायुषः ||५२|| ३५७ Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५८ तत्याचं-मूत्र तृतीयोऽध्यायः रत्नशकंरावालुकापकधूमतमोमहातम:प्रभाभूमयो धनाम्बुवाताकाशप्रतिष्ठाः सप्ताधोऽध:पृथुतराः ॥१॥ तासु नरकाः ॥२॥ नित्याशुभतरलेश्यापरिणामदेहवेदनाविक्रिया: ॥३॥ . . . परस्परोदीरितदुखाः ॥४॥ संक्लिष्टासुरोदीरितदुःखाश्च प्राक् चतुर्थ्याः ॥५॥ तेष्वेकत्रिसप्तदशसप्तदशद्वाविंशतित्रयस्त्रिशत्सागरोपमाः सत्वानां परा स्थिति: ॥६॥ जम्बूद्वीपलवणादयः शुभनामानो द्वीपसमुद्रा: 11७11 द्विििवष्कम्भाः पूर्वपूर्वपरिक्षेपिणो वलयाकृतयः ||८| तन्मध्ये मेरुनाभिर्वृ त्तो योजनशतसहस्रविष्कम्भो जम्बूद्वीपः ॥६L . तत्र भरतहैमवतहरिविदेहरम्यकहरण्यवतैरावतवर्षाः क्षेत्राणि ॥१०॥ तद्विभाजिनःपूर्वापरायता हिमवन्महाहिमवन्निपधनीलरुक्मिशिखरिणो वर्षधरपर्वताः ॥११॥ द्विर्धातकीखण्डे ॥१२॥ पुष्कराधे च ॥१३॥ प्राङमानुपोत्तरान् मनुष्याः ॥१४॥ आर्या म्लेच्छाश्च ॥१॥ भरतैरावतविदेहाः कर्मभूमयोऽन्यत्र देवकुरुत्तरकुरुभ्यः ।।१६।। नस्थिती परापरे त्रिपल्योपमान्तमुहूर्ते ॥१७॥ तिर्यग्योनीनां च ||१८|| Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्वार्थ सूत्र चतुर्थोऽध्यायः 'देवाश्चतुर्निकायाः ॥ १॥ तृतीयः पीतलेश्यः ||२| दशाष्टपञ्चद्वादश विकल्पाः कल्पोपपन्नपर्यन्ताः ||३|| इन्द्रसामानिक त्रायस्त्रिंशपारिषद्यात्मरक्षलोकपालानीक प्रकीर्णका भियोग्य किल्विषिकाश्चैकशः ||४|| त्रयस्त्रिंशलोकपालवर्ज्या व्यन्तरज्योतिष्काः ||५|| पूर्वोन्द्राः ||६|| पीतान्तलेश्याः ॥७ll कायप्रवीचारा आ ऐशानात् ||८|| शेषाः स्पर्शरूपशब्दमनःप्रवीचाराद्वयोर्द्वयोः ||६|| परेऽप्रवीचाराः ||१०|| भवनवासिनोऽसुरनागविद्य त्सुपर्णाग्निवातस्तनितोदधिद्वीप दिक्कुमाराः ||११||. व्यन्तराः किन्नर किंपुरुष महोरगगान्धर्वयक्षराक्षस ३५८ → वहिरवस्थिताः ॥१६॥ वैमानिकाः ||१७|| कल्पोपपन्नाः कल्पातीताश्च ||१८|| भूत पिशाचाः ||१२|| ज्योतिष्काः सूर्याश्चन्द्रमसो ग्रहनक्षत्रप्रकीर्णतारकाश्च ||१३|| मेरुप्रदक्षिणा नित्यगतयो नृलोके ||१४|| तत्कृतः कालविभागः ||१५|| उपर्युपरि ||१२|| सोधमै शानसानत्कुमारमाहेन्द्र ब्रह्मलोक - लान्तकमहाशुक्रसह Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६० तत्वार्य-सूत्र नारेष्वानतप्राणतयोरारणाच्युतयोर्नवसु में वेयकेषु विजयवैजयन्तजयन्ताऽपराजितेषु सर्वार्थ सिद्ध च ।।२०।। स्थितिप्रभावसुखद्य तिलेश्याविशुद्धीन्द्रियावधिविषयतोऽधिकाः ।।२१।। गतिशरीरपरिग्रहाभिमानतो हीनाः ॥२२॥ पीतपद्मशुक्ललेश्या द्वित्रिशेषेषु ॥२३।। प्राग् ग्रे वेयकेभ्य: कल्पाः ।।२४।। ब्रह्मलोकालया लोकान्तिका: ॥२५॥ सारस्वतादित्यवह्नयरुणगर्दतोयतुषिताऽव्यावाध.. .. मरुतोऽरिष्टाश्च ॥२६॥ विजयादिषु द्विचरमाः ।।२७।। औपपातिकमनुष्येभ्यः शेषास्तिर्यग्योनयः ।।२।। स्थितिः ॥२६॥ भवनेषु दक्षिणार्धाधिपतीनां पल्योपममध्यर्धम् ॥३०॥ शेषाणां पादोने ॥३१॥ असुरेन्द्रयोः सागरोपममधिकं च ॥३२।। सौधर्मादिषु यथाक्रमम् ॥३३॥ सागरोपमे ||३४|| अधिके च ॥३५॥ सप्त सानत्कुमारे ॥३६।। विशेषत्रिसप्तदशैकादशत्रयोदशपञ्चदशभिरधिकानि च ॥३७॥ आरणाच्युतादूर्वमेकैकेन नवसु वेयकेषु विजयादिषु सर्वार्थसिद्ध च ॥३८॥ अपरा पल्योपममधिकं च ॥३६। सागरोपमे ॥४०॥ Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६१ तत्त्वार्य-सूत्र अधिके च ॥४१॥ परतः परतः पूर्वापूर्वाऽनन्तरा ॥४२॥ .. नारकाणां च द्वितीयादिषु ॥४३॥ दशवर्षसहस्राणि प्रथमायाम् ॥४४॥ भवनेष च ॥४५॥ .. . . . . . व्यन्तराणां च ॥४६॥ परा पल्योपमम् ॥४७॥ ज्योतिष्काणामधिकम् ॥४८॥ ग्रहाणामेकम् ॥४॥ नक्षत्राणामर्धम् ।।५।। तारकाणां चतुर्भागः ॥५१॥ . . जघन्या त्वष्टभागः ।।५२।। चतुर्भागः शेषाणाम् ॥५३।। .. . पंचमोऽध्यायः . . . अजीवकाया धर्माधर्माकाशपुद्गलाः ॥१॥ द्रव्याणि जीवाश्च ।।२।। नित्यावस्थितान्यरूपाणि ।।३।। रूपिणः पुद्गलाः ॥४॥ आकाशादेकद्रव्याणि ॥५॥ निष्क्रियाणि च ॥६॥ असङख्येयाः प्रदेशा धर्माधर्मयोः ।।७।। जीवस्य च ॥८॥ आकाशस्यानन्ताः ॥९॥ संख्येयासंख्येयाश्च पुद्गलानाम् ॥१०॥ Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६२ तत्त्वार्थ-सूत्र नाणोः ॥११॥ लोकाकाशेऽवगाहः ॥१२॥ धर्माधर्मयोः कृत्स्ने ।।१३।। एकप्रदेशादिषु भाज्यः पुद्गलानाम् ।।१४॥ असङ्ख्ये यभागादिषु जोवानाम् ।।१५।। प्रदेशसंहारविसर्गाभ्यां प्रदीपवत् ।।१६।। गतिस्थित्युपग्रहो धर्माधर्मयोरुपकारः ।।१७।। आकाशस्यावगाहः ॥१८॥ शरीरवाङमनः प्राणापानाः पुद्गलानाम् ||१९|| सुखदुःखजीवितमरणोपग्रहाश्च ।।२०।। परस्परोपग्रहो जीवानाम् ।।२१।। वर्तना परिणामः क्रिया परत्वापरत्वे च कालस्य ।।२२।। स्पर्शरसगन्धवर्णवन्तः पुद्गला: ॥२३॥ शब्दवन्धसोक्षम्यस्थौल्यसंस्थानभेदतमश्छायाऽऽतपोद्योतवन्तश्च ॥२४॥ अणवः स्कन्धाश्च ॥२५॥ संघातभेदेभ्य उत्पद्यन्ते ।।२६।। भेदादणुः ॥२७॥ भेदसंघाताभ्यां चाक्षुषाः ॥२८॥ उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्त सत् ।।२६।। तद्भावाव्ययं नित्यम् ।।३०।। अपितानर्पितसिद्धः ॥३१॥ स्निग्धरूक्षत्वाद्वन्धः ।।३।। न जघन्य गुणानाम् ॥३३॥ गुणसाम्ये सदृशानाम् ।।३४॥ Page #373 --------------------------------------------------------------------------  Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्त्वार्थ-सूत्र तत्प्रदोषनिह्नवमात्सर्यान्तरायासादनोपघाता ज्ञानदर्शनावरणयोः ॥११॥ दुःखशोकतापाक्रन्दनवधपरिदेवनान्यात्मपरोभयस्थान्यसद्यस्य ॥१२॥ भूतव्रत्यनुकम्पा दानं सरागसंयमादियोगः शान्तिः शौचमिति । सद्यस्य ॥१३॥ केवलिश्रुतसङ्घधर्मदेवावर्णवादो दर्शनमोहस्य ॥१४॥ . कषायोदयात्तीवात्मपरिणामश्चारित्रमोहस्य ॥१५॥ वहारम्भपरिग्रहत्व च नारकस्यायुषः ॥१६॥ .. माया तैर्यग्योनस्य ।।१७।। अल्पारम्भपरिग्रहत्वं स्वभावमार्दवार्जवं च मानुषस्य ॥१८॥ निःशीलवतत्वं च सर्वेषाम् ॥१६॥ सरागसंयमसंयमासंयमाकामनिर्जरावालतपांसि देवस्य ॥२०॥ योगवक्रता विसंवादनं चाशुभस्य नाम्नः ॥२१॥ विपरीतं शुभस्य ॥२२॥ दर्शनविशुद्धिविनयसंपन्नताशीलवतेष्वनतिचारोऽभीक्ष्णं ज्ञानोपयोगसंवेगौ शक्तितस्त्यागतपसी सङ्घसाधुसमाधिवैयावृत्यकरणमहदाचार्यवहुश्रुतप्रवचनभक्तिरावश्यकापरिहाणिर्गिप्रभावना प्रवचनवत्सलत्वमिति तीर्थकृत्त्वस्य ॥२३।। परात्मनिन्दाप्रशंसे सदसद्गुणाच्छादनोद्भावने च नीचैगर्गोत्रस्य ॥२४॥ तद्विपर्ययो नीचैव त्यनुत्सेको चोत्तरस्य ॥२५॥ विघ्नकरणमन्तरायस्य ।।२६।। Page #375 --------------------------------------------------------------------------  Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्त्वार्थ-सूत्र मंत्रभेदाः ॥२१॥ स्तेनप्रयोगतदाहृतादानविरुद्धराज्यातिक्रमहीनाधिकमानोन्मानप्रतिरूपकव्यवहारा: ।।२२।। परविवाहकरणेत्वरपरिगृहीतापरिगृहीतागमनानङ्गक्रीड तीवकामाभिनिवेशा: ।।२३।। क्षेत्रवास्तुहिरण्यसुवर्णधनधान्यदासीदासकुप्यप्रमाणातिक्रमाः ॥२४॥ अधिस्तिर्यग्व्यतिक्रमक्षेत्रवृद्धिस्मृत्यन्तर्धानानि ॥२५॥ आनयनप्रेष्यप्रयोगशब्दरूपानुपातपुदगलक्षेपाः ॥२६॥ कन्दर्पकौत्कुच्यमौखर्यासमीक्ष्याधिकरणोपभोगाधिकत्वानि ।।२७।। ... योगदुष्प्रणिधानानादरस्मृत्यनुपस्थापनानि ॥२८॥ अप्रत्यवेक्षिताप्रमाजितोत्सर्गादाननिक्षेपसंस्तारोपक्रमणानादरस्मृत्यनुपस्थापनानि ॥२६॥ सचित्तसंवद्धसंमिश्राभिषवदुष्पक्वाहारा: ।।३०।। सचित्तनिक्षेपपिघानपरव्यपदेशमात्सर्यकालातिक्रमाः ॥३१॥ जीवितमरणाशंसामित्रानुरागसुखानुवन्धनिदानकरणानि ॥३२॥ अनुग्रहार्थ स्वस्यातिसर्गो दानम् ।।३३।। विधिद्रव्यदातृपात्रविशेषात् तद्विशेषः ॥३४॥ अष्टमोऽध्यायः मिथ्यादर्शनाविरतिप्रमादकषाययोगा बन्धहेतवः ॥१॥ सकषायत्वाज्जीवः कर्मणो योग्यान्पुद्गलानादत्ते ॥२॥ सवन्धः ॥३॥ प्रकृतिस्थित्यनुभावप्रदेशास्तद्विधयः ॥४॥ आद्यो ज्ञानदर्शनावरणवेदनीयमोहनीयायुष्कनामगोत्रान्तरायाः ॥५॥ Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्त्वार्थ-सूत्र पञ्चनवद्वयष्टाविंशतिचतुर्द्विचत्वारिंशद्विपञ्चभेदा यथाक्रमम् ।।६।। मत्यादीनाम् ॥७॥ चक्षुरचक्षुरवधिकेवलानां निद्रा-निद्रानिद्राप्रचला-प्रचलाप्रचला. स्त्यानगद्धिवेदनीयानि च ||८ सदसद्वेद्य ॥६ - दर्शनचारित्रमोहनीयकषायनोकषायवेदनीयाख्यास्त्रिद्विषोडशन-. वभेदाः सम्यक्त्वमिथ्यात्वतदुभयानि कषायनोकषायावनन्तानुवन्ध्यप्रत्याख्यानप्रत्याख्यानावरण संज्वलनविकल्पाश्चैकशः क्रोधमानमायालोमा हास्यरत्यरतिशोकभयजुगुप्सास्त्रीनपुंसक वेदा: ॥१०॥ नारकतैर्यग्योनमानुषदैवानि ॥११. . गतिजातिशरीराङ्गोपाङ्गनिर्माणवन्धनसङ्घात संस्थानसंहन नस्पर्शरसगन्धवर्णानुपूर्व्यगुरुलघूपघातपराघातातपोद्योतोच्छ. वासविहायोगतयः प्रत्येकशरीरत्रससुभगसुस्वरशुभसूक्ष्मपर्याप्त स्थिरादेययशांसि सेतराणितीर्थकृत्त्वं च ॥१२॥ . . . .... उच्चैर्नीचैश्च ॥१३॥ . ...... .... .... दानादीनाम् ॥१४॥ आदितस्तिसृणामन्त रायस्य च त्रिशत्सागरोपमकोटीकोटयः .. परा स्थितिः ॥१५॥ सप्ततिर्मोहनीयस्य ||१६|| नामगोत्रयोविंशतिः ॥१७॥ .. त्रयस्त्रिशत्सागरोपमाण्यायुष्कस्य ॥१८॥ अपरा द्वादशमुहूर्ता वेदनीयस्य ॥१६॥ नामगोत्रयोरष्टौ ॥२०॥ . Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६८ शेषाणामन्तर्मुहूर्तम् ||२१|| विपाकोऽनुभावः ||२२|| स यथानाम ||२३|| ततश्च निर्जरा ||२४|| तत्त्वार्य-सूत्र नामप्रत्ययाः सर्वतो योगविशेषात्सूक्ष्मैकक्षेत्रावगाढस्थिताः सर्वात्मप्रदेशेष्वनन्तानन्त प्रदेशाः ||२५|| सद्यसम्यक्त्व हास्य रति पुरुषवेदशुभायुर्नामगोत्राणि पुण्यम् ||२६|| नवमोऽध्यायः आस्रवनिरोधः संवरः ||१|| सगुप्तिसमितिधर्मानुप्रेक्षापरीषहजयचारित्रः ॥२॥ तपसा निर्जरा च ॥३॥ सम्यग्योगनिग्रहो गुप्तिः || ४ || ईर्याभाषणादाननिक्षेपोत्सर्गाः समितयः ||५|| उत्तमः क्षमामार्दवार्जव शौच सत्य संयमतपस्त्यागाकिञ्चन्यब्रह्मचर्याणि धर्मः ||६|| अनित्याशरणसंसारैकत्वान्यत्वा शुचित्वास्रवसंवरनिर्जरालोक वोधिदुर्लभधर्मस्वाख्यातत्वानुचिन्तनमनुप्रेक्षाः ॥७॥ मार्गाच्यवननिर्जराथं परिसोढव्याः परीषहाः ||८|| क्षुत्पिपासाशीतोष्णदंशमशकनाग्न्या रतिस्त्रीचर्यानिषद्याशय्या क्रोशवधयाचनाऽलाभरोगतृणस्पर्श मल सत्कारपुरस्कारप्रज्ञा ज्ञानादर्शनानि ॥ ॥ सूक्ष्मसंपरायच्छद्मस्थवीतरागयोश्चतुर्दश ||१०|| Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्त्वार्थ-सूत्र ३६६ एकादश जिने ॥११॥ वादरसंपराये सर्वे ॥१२॥ ज्ञानावरणे प्रज्ञाज्ञाने ॥१३॥ दर्शनमोहान्तराययोरदर्शनालाभौ ॥१४॥ चारित्रमोहे नाग्न्यारतिस्त्रीनिषद्याक्रोशयाचनासत्कारपुरस्काराः ॥१५॥ वेदनीये शेषाः ॥१६॥ एकादयो भाज्या युगपदैकोनविंशतेः ॥१७॥ सामायिकच्छेदोपस्थाप्यपरिहारविशुद्धिसूक्ष्मसंपराययथाख्यातानि चारित्रम् ॥१८॥ अनशनावमौदर्यवृत्तिपरिसंख्यानरसपरित्यागविविक्तशय्यासनकायक्लेशा वाह्य तपः ॥१६॥ प्रायश्चित्तविनयवैयावृत्यस्वाध्यायव्युत्सर्गध्यानान्युत्तरम् ।।२०।। नवचतुर्दशपञ्चद्विभेदं यथाक्रम प्राग ध्यानात् ॥२१॥ आलोचनप्रतिक्रमणतदुभयविवेकव्युत्सर्गतपश्छेदपरिहारो पस्थापनानि ॥२२॥ ज्ञानदर्शनचारित्रोपचारा: ॥२३॥ आचार्योपाध्यायतपस्विशैक्षकग्लानगणकुलसङ्घसाधुसमनोज्ञानाम् ॥२४॥ वाचनाप्रच्छनानुप्रेक्षाम्नायधर्मोपदेशाः ॥२५॥ वाह्याभ्यन्तरोपध्योः ॥२६॥ उत्तमसंहननस्यै काग्रचिन्तानिरोधो ध्यानम् ॥२७॥ आ मुहूर्तात् ॥२८॥ आर्तरौद्रधर्मशुक्लानि ॥२६॥ परे मोक्षहेतू ॥३०॥ Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७० तत्त्वार्थ-सूत्र आर्तममनोज्ञानां सम्प्रयोगे तद्विप्रयोगाय स्मृत्तिसमन्वाहारः ॥३१॥ वेदनायाश्च ॥३२॥ विपरीतं मनोज्ञानाम् ॥३३॥ निदानं च ॥३४॥ तदविरतदेशविरतप्रमत्तसंयतानाम् ॥३॥ हिंसानतस्तेयविषयसंरक्षणेभ्यो रौद्रमविरतदेशविरतयोः ॥३६।। आज्ञाऽपायविपाकसंस्थानविचयाय धर्ममप्रमत्तसंयतस्य ॥३७॥ .. उपशान्तक्षीणकषाययोश्च ॥३८॥ शुक्लेचाद्य पूर्व विदः ॥३६॥ परे केवलिनः ॥४०॥ पृथक्त्वैकत्ववितर्कसूक्ष्मक्रियाप्रतिपातिव्युपरतक्रियानिवृत्तीनि ॥४१॥ तत् त्र्येककाययोगायोगानाम् ॥४२॥ एकाश्रये सवितर्के पूर्वे ॥४३॥ अविचारं द्वितीयम ॥४४॥ वितर्कः श्रुतम् ॥४॥ विचारोऽर्थव्यञ्जनयोगसंक्रान्तिः ॥४६।। सम्यग्दृष्टिश्रावकविरतानन्तवियोजकदर्शनमोहक्षपकोपशमकोपशान्तमोहक्षपकक्षीणमोहजिनाः क्रमशोऽ सङ ख्येयगुणनिर्जराः ॥४७॥ पुलाकवकुशकुशीलनिन्थस्नातका निर्ग्रन्थाः ॥४८॥ संयमश्रुतप्रतिसेवनातीर्थलिङ्गलेश्योपपातस्थान विकल्पतः साध्याः ॥४६॥ Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . ३७१ तत्त्वार्थ-सूत्र दशमोऽध्यायः मोहक्षयाज्ज्ञानदर्शनावरणान्तरायक्षयाच्च केवलम ॥१॥ बन्धहेत्वभावनिर्जराभ्याम् ॥२॥ कृत्स्नकर्मक्षयो मोक्षः ॥३॥ औपशमिकादि भव्यत्वाभावाच्चान्यत्र केवलसम्यक्त्वज्ञानदर्शनसिद्धत्वेभ्यः ॥४॥ तदनन्तरमूवं गच्छत्यालोकान्तात् ॥५॥ पूर्वप्रयोगादसङ्गत्वाद् वन्धच्छेदात् तथागतिपरिणामाच्च __.. तद्गतिः ॥६॥ - क्षेत्रकालगतिलिङ्गतीर्थचारित्रप्रत्येकबुद्धबोधितज्ञानावगाहना न्तरसंख्याल्पबहुत्वतः साध्याः ॥७॥ ॥ तत्त्वार्थ सूत्र समाप्त ॥ .. Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुभासिय गाहाओ नमिऊण असुर- सुर- गरुल-भुयंग- परिवंदिए । गयकिले से अरिहे- सिद्धायरिय, उवज्झाय सव्वसाहूणं सिद्धाणं वृद्धाणं पारगयाणं परंपारगयाणं । लोअग्गमुवगयाणं, नमो सया सव्व - सिद्धाणं जो देवाणमवि देवो, जं देवा पंजली नमसंति । तं देवं देवमहियं सिरसा वन्दे महावोरं इक्को वि नमुक्कारो, जिणवरवसहस्स वद्धमाणस्स । संसार सागराओ तारेइ, नरं व नारि वा सिद्धाणं नमो किच्चा, संजयाणं च भावओ । सन्ती सन्तीकरे लोए पत्तो गइमणुत्तरं देव-दाणव- गंधव्वा जक्ख - रक्खस्स किन्नरा । वंभयारि नमसंति 'दुक्करं जे करंति तं । सारं दंसणनाणं, सारं तव नियम -संजम सीलं । सारं जिणवरधम्मं, सारं संलेहणा पंडियमरणं । कल्लाण कोडिकारिणी दुग्गइ दुह निट्टवणी | संसार जल तारिणी एगंत सो होइ जीवदया । 11911 ॥२॥ 11311 11811 11211 ||६|| 11011 11511 Page #383 -------------------------------------------------------------------------- _