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उत्तरभयणं
असमाणो चरे भिक्खू नेव कुज्जा परिग्गहं । असंसत्तो गिहत्थे हिं अणिएओ परिव्व ॥ १६ ॥
(१०) निसीहियापरी सहे
सुसाणे सुन्नगारे वा रुक्खमूले व एगओ । अकुक्कुओ निसीएज्जा न य वित्तासए परं ॥ २० ॥ तत्थ से चिट्टमाणस्स
उवसग्गाभिधारए |
संकाभीओ न गच्छेज्जा उट्टित्ता अन्नमासणं ।। २१ ।।
(११) सेज्जापरीसहे
उच्चावयाहि सेज्जाहिं तवस्सी भिक्खु थामवं । नाइवेलं विन्नेज्जा पावदिट्टी विहन्नई ॥ २२ ॥
कल्लाणं अदु पावगं ।
पइरिक्कुवस्सयं लङ्कं किमेरायं करिस्सइ एवं तत्थहियासए ॥ २३ ॥
(१२) अक्कोसपरीसहे
अक्कोसेज्ज परो भिक्खं न तेसि पडिसंजले । सरिसो होइ वालाणं तम्हा भिक्खू न संजले ॥ २४ ॥
सोच्चाणं फरुसा भासा दारुणा गामकण्टगा । तुसिणीओ उवेहेज्जा न ताओ मणसीकरे ॥ २५ ॥
(१३) वहपरीस हे
हथो न संजले भिवख मणं पि न पओसए । तितिक्खं परमं नच्चा भिक्खुधम्मं विचितए ॥ २६ ॥
दन्तं हणेज्जा कोइ कत्थई ।
समणं संजयं नत्थि जीवस्स नासु त्ति एवं पेहेज्ज संजए ॥ २७ ॥