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________________ ८२ उत्तरभयणं असमाणो चरे भिक्खू नेव कुज्जा परिग्गहं । असंसत्तो गिहत्थे हिं अणिएओ परिव्व ॥ १६ ॥ (१०) निसीहियापरी सहे सुसाणे सुन्नगारे वा रुक्खमूले व एगओ । अकुक्कुओ निसीएज्जा न य वित्तासए परं ॥ २० ॥ तत्थ से चिट्टमाणस्स उवसग्गाभिधारए | संकाभीओ न गच्छेज्जा उट्टित्ता अन्नमासणं ।। २१ ।। (११) सेज्जापरीसहे उच्चावयाहि सेज्जाहिं तवस्सी भिक्खु थामवं । नाइवेलं विन्नेज्जा पावदिट्टी विहन्नई ॥ २२ ॥ कल्लाणं अदु पावगं । पइरिक्कुवस्सयं लङ्कं किमेरायं करिस्सइ एवं तत्थहियासए ॥ २३ ॥ (१२) अक्कोसपरीसहे अक्कोसेज्ज परो भिक्खं न तेसि पडिसंजले । सरिसो होइ वालाणं तम्हा भिक्खू न संजले ॥ २४ ॥ सोच्चाणं फरुसा भासा दारुणा गामकण्टगा । तुसिणीओ उवेहेज्जा न ताओ मणसीकरे ॥ २५ ॥ (१३) वहपरीस हे हथो न संजले भिवख मणं पि न पओसए । तितिक्खं परमं नच्चा भिक्खुधम्मं विचितए ॥ २६ ॥ दन्तं हणेज्जा कोइ कत्थई । समणं संजयं नत्थि जीवस्स नासु त्ति एवं पेहेज्ज संजए ॥ २७ ॥
SR No.010329
Book TitleJainagam Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhileshmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages383
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
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