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________________ ११४ उत्तरज्झयणं अप्पं चाहिविखवई पवन्धं च न कुब्बई । मेत्तिज्जमाणो भयई सुयं लद्धुं न मज्जई ॥ ११ ॥ न य पावपरिवखेवी न य मित्तेसु कुप्पई । अप्पियस्सावि मित्तस्स रहे कल्लाण भासई ॥ १२ ॥ कलह-डमरवज्जए बुद्धे अभिजाइए । हिरिमं पडिलीणे सुविणीए ति वच्चई ।। १३ ।। वसे गुरुकुले निच्चं जोगवं उवहाणवं । पियंकरे वियंवाई से सिवखं लद्धमरिहई ॥ १४ ॥ जहा संखम्मि पयं निहियं दुहओ वि विराय | एवं वहुस्सुए भिक्खू धम्मो कित्ती तहा सुयं ।। १५ ।। जहा से कम्बोयाणं आइण्णे कन्थए सिया । आसे जवेण पवरे एवं हवइ बहुस्सु ॥ १६ ॥ सुरे दढ रक्कमे । जहा इण्णसमारूढे उभओ नन्दिघोसेणं एवं हवइ वहुस्सुए ।। १७ ।। जहा करेणुपरिकिण्णे कुजरे सद्विहायणे । वहुस्सु ॥ १८ ॥ विरायई । वलवन्ते अप्पsिहए एवं हवइ जहा से तिक्खसिंगे जायखन्धे वसहे जूहाहिवई एवं हवइ वहुस्सु ॥ १६ ॥ जहा से तिक्खदाढे उदग्गे दुप्पहंसए | सोहे मियाण पवरे एवं हवइ वहुस्सुए ॥ २० ॥ जहा से वासुदेवे संख-चक्क गयाधरे । अप्पsिहयवले जोहे एवं हवइ बहुस्सुए ॥ २१ ॥ जहा से चाउरन्ते चक्कवट्टी महिड्दिए । चउदसरयणाहिवई एवं हवइ बहुस्सुए ॥ २२ ॥
SR No.010329
Book TitleJainagam Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhileshmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages383
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
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