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अट्ठमं अज्भयणं
दुपरिच्चया
अह सन्ति सुव्वया
समणा मु
मन्दा
-4
न
पाणे
एवा रिएहि
तओ
इमे नो सुजहा
एगे वयमाणा पाणवहं मिया अयाणन्ता । निरयं गच्छन्ति
वाला
हु पाणवहं
य
जायाए
अधीरपुरिसेहिं ।
साहू
जे तरन्ति अतरं वणिया व ॥ ६ ॥
सुद्धेसणाओ
कामा
से पावयं
जग निस्सिएहिं
नो तेसिमारभे
अणुजाणे
मुच्चेज्ज कयाइ सव्वदुक्खाणं । अवखायं
जेहिं इमो साहुधम्मो पन्नत्तो ॥ ८ ॥
पावियाहि दिट्ठीहिं ॥ ७ ॥
नाइवा एज्जा
से समिए त्ति वुच्चई ताई |
कम्मं
निज्जाइ उदगं वथलाओ ॥ ६ ॥
भूएहि
तसनामेहिं
ईर्द
थावरेहिं
दंडं
च ।
मणसा वयसा कायसा चैव ॥ १० ॥
नच्चाणं
तत्थ ठवेज्ज - भिक्खू अप्पाणं । घास मेसेज्जा
रसगिद्धे न सिया भिक्खाए । ११ ।।