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उत्तरझयणं
एवं लग्गन्ति दुम्मेहा जे नरा कामलालसा । विरत्ता उ न लग्गन्ति जहा सुक्को उ गोलओ ।। ४३ ।। एवं से विजयघोसे जयघोसस्स अन्तिए। अणगारस्स निवखन्तो धम्म सोच्चा अणुत्तरं ।। ४४ ॥ खवित्ता पुव्वकम्माइं संजमेण तवेण य। जयघोसविजयघोसा सिद्धि पत्ता अणुत्तरं ॥ ४५ ॥
-त्ति वेमि ॥