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वत्तीसइमं अज्झयणं मणस्स भावं गहणं वयन्ति तं रागहेउं तु मणुन्नमाहु । तं दोसहेउं अमणुन्नमाहु समो य जो तेसु. स वीयरागो ।। ८७ ।। भावस्स मणं गहणं वयन्ति मणस्स भावं गहणं वयन्ति । रागस्स हेउं समणुन्नमाहु दोसस्स हेउं अमणुन्नमाहु ।। ८८ ।। भावेसु जो गिद्धिमुवेइ तिव्वं अकालियं पावइ से विणासं । रागाउरे कामगुणेसु गिद्धे करेणुमग्गावहिए व नागे ।। ८६ ।। .. जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुद्दन्तदोसेण सएण जन्तू न किंचि भावं अवरज्झई से ।। ६० ॥ एगन्तरत्ते रुइरंसि भावे अतालिसे से कुणई पओसं । दुक्खस्स संपीलमुवेइ वाले न लिप्पई तेण मुणी विरागो ।। ६१ ॥ भावाणुगासाणुगए य जीवे चराचरे हिंसइ ऽणेगरूवे । चित्तेहि ते परितावेइ वाले पीलेइ अत्तगुरू किलिट्ठ ॥ १२ ॥ भावाणुवाएण परिग्गहेण उपायणे रक्खणसन्निओगे। वए विओगे य कहिं सुहं से ? संभोगकाले य अतित्तिलाभे ।। ६३.।। भावे अतित्ते य परिंग्गहे य सत्तोवसत्तो न उवेइ तुढेि । अतुट्टिदोसेण दुही परस्स लोभाविले आययई अदत्तं ।। ६४ ॥ तण्हाभिभूयस्स अदत्तहारिणो भावे अतित्तस्स परिग्गहे य। मायामुसं वड्ढई लोभदोसा तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से ।। ६५ ।। मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य पओगकाले य दुही दुरन्ते । एवं अदत्ताणि समाययन्तो भाव अतित्तो दुहिओ अणिस्सो ।। ६६ ।। भावाणुरत्तस्स नरस्स एवं कत्तो सुहं होज्ज कयाइ किंचि ?। तत्थोवभोगे वि किलेसदुवखं निवत्तई जस्स कएण दुवखं ।। ६७ ।।