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________________ २५६ उत्तरायणं गोमेज्जए य रुयगे अंके फलिहे य लोहियक्खे य। मरगयमसारगल्ले, भुयमोयगइन्दनीले य ।। ७६ ।। चन्दणगेरुयहंसगम्भ, पुलए सोगन्धिए य वोद्धव्वे । चन्दप्पहवेरुलिए, जलकन्ते सूरकन्ते य ।। ७७ ।। एए खरपूढवीए भेया छत्तीसमाहिया। एगविहमणाणत्ता सुहुमा तत्थ वियाहिया ।। ७८ ।। सहमा सव्वलोगम्मि लोगदेसे य वायरा । इत्तो कालविभागं तु तेसिं वुच्छं चउन्विहं ॥७६ ॥ संतई पप्पऽणाईया अपज्जवसिया वि य। ठिई पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य ।। ८० ॥ वावीससहस्साई वासाणुक्कोसिया भवे । आउठिई पुढवीणं अन्तोमुहत्तं जहन्निया ॥१॥ असंखकालमुक्कोसं अन्तोमुहत्तं जहन्नयं । कायठिई पुढवीणं तं कायं तु अमुचओ ।। ६२ ।। अणन्तकालमुक्कोसं अन्तोमुहत्तं जहन्नयं । विजदंमि सए काए पुढवीजीवाण अन्तरं ।। ८३ ।। एएसिं वण्णओ चेव गन्धओ रसफासओ। संठाणादेसओ वावि विहाणाई सहस्ससो।। ८४ ॥ दुविहा आउजीवा उ सुहमा वायरा तहा।। पज्जत्तमपज्जत्ता एवमेए दुहा पुणो ।। ८५॥ वायरा जे उ पज्जत्ता पंचहा ते पकित्तिया ।। सुद्धादए य उस्से हरतणू महिया हिमे ।। ८६ ॥ ..
SR No.010329
Book TitleJainagam Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhileshmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages383
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
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