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________________ नंदी-सुत्तं ३२१ । सुत्तं ५३ से किं तं अणुत्तरोववाइयदसाओ ? अणुत्तरोववाइयदसासु णं अणुत्तरोववाइयाणंनगराई उज्जाणाइं, चेइयाई वणसंडाइं, समोसरणाई, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइय परलोइया इड्डिविसेसा, भोगपरिच्चागा, पव्वज्जाओ, परिआया, . सुयपरिग्गहा, तवोवहाणाइं, पडिमाओ, उवसग्गा; संलेहणाओ,.. . भत्तपच्चक्खाणाइं, पाओवगमणाई, अणुत्तरोववाइयत्ते उववत्ती, सुकुलपच्चायाइओ, पुणवोहिलाभा, अंतकिरियाओ य आघविज्जति । अणुत्तरोववाइयदसासु णं परित्ता वायणा, संखेज्जा अणुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा; संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ,. संखेज्जाओ संगहणीओ, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ। से णं अंगट्टयाए नवमे अंगे, एगे सुयक्खंधे, तिन्निवग्गा, तिन्नि उद्देसणकाला, तिन्नि समुद्देसणकाला, संखेज्जाइं पयसहस्साइं पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा, अणंता गमा, अणंतापज्जवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासय-कड-निवद्ध-निकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जंति, पण्णविज्जंति, परूविज्जति
SR No.010329
Book TitleJainagam Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhileshmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages383
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
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