________________
२४४
उत्तरज्झयणं सरागे वीयरागे वा उवसन्ते जिइन्दिए । एयजोगसमाउत्तो सुक्कलेसं तु परिणमे ।। ३२ ।।। असंखिज्जाणोसप्पिणीण, उस्सप्पिणीण जे समया। संखाईया लोगा, लेसाण हुन्ति ठाणाई ।। ३३ ॥ मुहत्तद्धं तु जहन्ना, तेत्तीसं सागरा मुहुत्तऽहिया । उक्कोसा होइ ठिई, नायव्वा किण्हलेसाए ।। ३४ ॥ मुहत्तद्धं तु जहन्ना, दस उदही पलियमसंखभागमभहिया। उक्कोसा होइ ठिई, नायव्वा नीललेसाए ॥ ३५ ॥ मुहत्तद्धं तु जहन्ना, तिण्णुदही पलियमसंखभागमभहिया । उक्कोसा होइ ठिई, नायव्वा काउलेसाए ।। ३६ ।। मुहत्तद्धं तु जहन्ना, दोउदही पलियमसंखभागमभहिया। उक्कोसा होई ठिई, नायव्वा तेउलेसाए ।। ३७ ।।
मुहत्तद्धं तु जहन्ना, दस होन्ति सागरा मुहत्ताहिया । उक्कोसा होइ ठिई, नायव्वा पम्हलेसाए ।॥ ३८ ॥ मुहत्तद्धं तु जहन्ना, तेत्तीसं सागरा महत्तहिया। उक्कोसा होइ ठिई नायव्वा सुक्कलेसाए ।। ३६ ।।.. एसा खलु लेसाणं, ओहेण ठिई उ वणिया होइ । चउसु वि गईसु एत्तो, लेसाण ठिइं तु वोच्छामि ।। ४० ।। . दस वाससहस्साइं, काऊए ठिई जहन्निया होइ । तिण्णुदही पलिओवम, असंखभागं च उक्कोसा ॥४१॥ तिण्णुदही पलिय, मसंखभाग जहन्नेण नीलठिई। दस उदही पलिओवंम, असंखभागं च उक्कोसा ।। ४२ ॥ .