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विसइमं अभयणं
उद्देसियं
कीयगड
नियागं
न मुंबई किंचि अणेस णिज्जं ।
अग्गी विवा सव्वभक्खी भवित्ता
इओ चुओ गच्छई कट्टु पावं ॥ ४७ ॥
न तं अरी कण्ठछेत्ता करेइ
जं से करे अप्पणिया दुरप्पा |
से नाहिई मच्चुमुहं तु पत्ते
पच्छातावेण दयाविहूणो ॥ ४८ ॥
निरट्ठिया नग्गरुई उ तस्स
जे उत्तम विवज्जासमेई ।
इमे वि से नत्थि परे वि लोए
दुहओ वि से झिज्जइ तत्थ लोए ॥ ४६ ॥
एमेवहा छन्दकुसीलरूवे
मग्गं विराहेत्तु जिणुत्तमाणं ।
कुररं विवा भोगरसाणुगिद्धा
निरट्ठसोया परियावमेइ ॥ ५० ॥
सोच्चाण मेहावि सुभासियं इमं
अणुसासणं नाणगुणोववेयं । मग्गं कुसीलाण जहाय सव्वं
महानियण्ठाण वए पहेणं ।। ५१ ।।
चरितमायारगुणन्निए तओ
अणुत्तरं संजम पालियाणं । निरासवे संखवियाण कम्मं
उवेइ ठाणं विउलुत्तमं धुवं ।। ५२ ।।
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