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________________ पणतीसइमं अज्झयणं पणतोसइमं अज्झयणं अणगारमग्गगई . ... सुणेह मे एगग्गमणा मग्गं वुद्धे हि देसियं। . जमायरन्तो भिक्खू दुक्खाणन्तकरो भवे ॥ १ ॥ गिहवासं परिच्चज्ज पवज्जंअस्सिओ मुणी। इमे संगे वियाणिज्जा जेहिं सज्जन्ति माणवा ॥ २ ॥ तहेव हिंसं अलियं चोज्जं अवम्भसेवणं । इच्छाकामं च लोभं च संजओ परिवज्जए ॥ ३ ॥ मणोहरं चित्तहरं मल्लधूवेण वासियं । सकवाडं पण्डुरुल्लोयं मणसा वि न पत्थए ॥ ४ ॥ इन्दियाणि उ भिक्खुस्स तारिसम्मि उवस्सए । दुक्कराइं . निवारेउं कामरागविवड्ढणे ॥ ५ ॥ सुसाणे सुन्नगारे वा रुक्खमूले व एक्कओ। पइरिक्क परकडे वा वासं तत्थऽभिरोयए ॥ ६ ॥ फासुयम्मि अणावाहे इत्थीहिं अणभिदुए। तत्थ संकप्पए वासं भिक्खू . परमसंजए ।। ७ ।। न सयं गिहाई कुज्जा व अन्नेहिं कारए । गिहकम्मसमारम्भे भूयाणं दीसई वहो ॥ ८ ॥ तसाणं थावराणं च सुहमाणं वायराण य । तम्हा : गिहसमारम्भं. संजओ परिवज्जए ॥ ६ ॥ तहेव भत्तपाणेसु पयण पयावणेसु य। पाणभूयदयट्टाए न पये न पयावए ॥ १०॥
SR No.010329
Book TitleJainagam Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhileshmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages383
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
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