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उत्तरभयणं
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सू० ३३ - विणियट्टणयाए णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? विणियट्टणयाए ण
पावकम्माणं अकरणयाए अभुट्टे इ । पुव्ववद्धाण य निज्जरणयाए तं नियत्तेइ तओ पच्छा चाउरन्तं संसारकन्तारं वीइवयइ |
सू० ३४ - संभोगपच्चक्खाणं भन्ते ! जीवे कि जणयइ ? संभोगपच्चक्खाणेणं आलम्वणाई खवेइ | निरालम्वणस्स य आययट्टिया जोगा भवन्ति । सएणं लाभेणं संतुस्सइ परलाभं नो आसाएइ नो तक्केइ नो पीहेइ नो पत्थेड़ नो अभिलसइ । परलाभं अणासायमाणे अतक्के माणे अपीहेमाणे अपत्येमाणे अणभिलसमाणे दुच्चं सुहसेज्जं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ |
सू० ३५ – उवहिपच्चक्खाणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? उवहिपच्चक्खाणेणं अपलिमन्थं जणयइ । निरुवहिए णं जीवे निक्कंखे उवहिमन्तरेण य न संकि लिस्साई । सू० ३६—आहारपच्चक्खाणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? आहारपच्चक्खाणेणं जीवियासंसप्पओगं वोच्छिन्दइ । जीवियासंसप्पओगं वोच्छिन्दित्ता जीवे आहारमन्तरेणं न संकि लिस्सइ |
जणयइ ।
सू० ३७ - कसायपच्चक्खाणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? कसायपक्चक्खाणेणं वीयरागभावं वीयरागभावपडिवन्ने वि य णं जीवे समसुहदुक्खे भवइ । सू० ३८ - जोगपच्चक्खाणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? जोगपच्चक्खाणेणं अजोगत्तं जणयइ । अजोगी णं जीवे नवं कम्मं न वन्धइ पुव्ववद्धं निज्जरेइ |