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________________ ३३४ नंदी-सुत्तं इच्चइयं दुवालसंगं गणिपिडगं पडुप्पण्णकाले परित्ताजीवा आगाए विराहित्ता चाउरतं संसारकतार अणुपरियटृत्ति इच्चे इयं दुवालसंग गणिपिडर्ग अणागए काले अणंताजीवा आणाए विराहित्ता चाउरंतं संसार-कतारं अगुपरियट्टिस्संति, इच्चे इयं दुवालसंगं गणिपिडगं तीए काले अणंताजीवा आणाए आराहित्ता चाउरंतं संसार-कतारं वीईवइंसु, इच्चे इयं दुवालसंगं गणिपिडगं पडुप्पण्णकाले परित्ताजोवा आणाए आराहित्ता चाउरंतं संसारकतारं वीईवयंति, इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं अणागएकाले अणंता जोवा आणाए आराहित्ता चाउरतं संसार-कंतारं वीईवइस्संति।. इच्चे इयं दुवालसंगं गणिपिडगं न कयाइ नासी, न कयाइ न भवइ, न कयाइ न भविस्सइ, भुवि च, भवइ य, भविस्सइ य, धुवे, नियए, सासए, अक्खए, अव्वए, अवट्ठिए, निच्चे । से जहानामए पंच अस्थिकाया न कयाइ नासी, न कयाइ नत्थि, , न कयाइ न भविस्सइ,
SR No.010329
Book TitleJainagam Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhileshmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages383
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
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