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स्वाध्याय-सुधा: एगमेगाए अक्खाइयाए पंच पंच उवक्खाइयासयाई, एगमेगाए उवक्खाइयाए पंच पंच अक्खाइयउवक्खाइयासयाई, एवामेव सपुव्वावरेणं अद्धट्टाओ कहाणगकोडीओहवंति त्ति समक्खायं । णायाधम्मकहाणं परित्ता वायणा, संखिज्जा अणुओगदारा, संखिज्जा वेढा, संखिज्जासिलोगा संखिज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखिज्जाओ संगहणीओ, संखिज्जाओ पडिवत्तीओ। से णं अगट्ठयाए छठे अंगे, दो सुयक्खंधा एगूणवीसं अज्झयणा, एगूणवीसं उद्देसणकाला, एगूणवीसं समुद्देसणकाला, संखेज्जाइं पयसहस्साइं पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा, अणंता गमा, अणंता पज्जवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासय-कड-निवद्ध-निकाइया जिणपण्णत्ता भावा आधविज्जति, पण्णविज्जति, परूविज्जति, दंसिज्जंति, निदंसिज्जंति, उवदंसिज्जति । दंसिज्जंति, निदंसिज्जति, उवदंसिज्जति । से एवं आया, एवं नाया, एवं विण्णाया, एवं चरण-करण-परूवणा आघविज्जइ ।
से तं णायाधम्मकहाओ। सुत्तं ५१ से किं तं उवासगदसाओ ?
उवासगदसासु णं समणोवासयाणं
नगराइं, उज्जाणाई, चेइयाइं, वणसंडाइं, समोसरणाई, .. रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ,