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दसवेआलिय
१७ – बहुं च खलु भो पावं कम्मं पगडं ||
१८ - पावाणं च खलु भो ! कडाणं कम्माणं पुव्वि दुच्चिण्णाणं दुप्पडिकंताणं वेयइत्ता मोवखो, नत्थि अवेयइत्ता, तवसा वा झोसत्ता अट्ठारसमं पयं भवइ ॥ सू० १ ॥
भवइ य इत्थ सिलोगो
जया य चयई धम्मं अणज्जो भोगकारणा । से तत्थ मुच्छिए वाले आयई नाववुज्झइ ॥ १ ॥ जया ओहाविओ होइ इंदो वा पडिओ छमं । सव्वधम्म परिब्भट्ठो स पच्छा परितप्पइ ॥ २ ॥
जया य वंदिमो होइ पच्छा होइ अवंदिमो । देवया व चुया ठाणा स पच्छा परितप्पइ ॥ ३ ॥
जया य पूइमो होइ पच्छा होइ अपूइमो । राया व रज्जपन्भट्ठो स पच्छा परितप्पइ ॥ ४ ॥
जया य माणिमो होइ पच्छा होइ अमाणिमो । सेट्ठि व्व कव्वडे छूढो स पच्छा परितप्पइ ॥ ५ ॥
जया य थेरओ होइ समइवकंतजोव्वणो | मच्छो व्व गलं गिलित्ता स पच्छा परितप्प || ६ ||
जया य कुकुडंवस्स कुतत्तीहिं विहम्मइ । हत्थी व बंधणे वो स पच्छा परितप्पइ ॥ ७ ॥
पुत्तदारपरिकिण्णो
मोहसंताणसंत | पंकोसन्नो जहा नागो स पच्छा परितप्पइ ॥ ८ ॥