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उत्तरज्झयण
सन्नाइपिण्डं जेमेइ नेच्छई सामुदाणियं । गिहिनिसेज्जं च वाहेइ पावसमणि त्ति वुच्चई ।। १६ ।। एयारिसे पंचकुसीलसंवुडे
रुधरे मुणिपवराण हेट्ठिमे । अयंसि लोए विसमेव गरहिए
न से इहं नेव परत्थ लोए ।। २० ॥ जे वज्जए एए सया उ दोसे
से सुव्वए होइ मुणीण मज्झे। अयंसि लोए अमयं व पूइए। आराहए दुहओ लोगमिणं ।। २१ ॥
त्ति वेमि ॥