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उत्तरायणं
दस सागरोवमा ऊ. उक्कोसेण वियाहिया। च उत्थीए जहन्नेणं सत्तेव उ सागरोवमा ।।१६४|| सत्तरस सागरा ऊ उक्कोसेण वियाहिया । . पंचमाए जहन्नेणं दस चेव उ सागरोवमा ॥१६५।। वावीस सागरा ऊ उक्कोसेण वियाहिया । . छट्ठीए जहन्नेणं सत्तरस सागरोवमा ॥१६६।। तेत्तीस सागरा ऊ उक्कोसेण वियाहिया । सत्तमाए जहन्नेणं वावीसं सागरोवमा ।।१६७।। जा चेव उ आउठिई नेरइयाणं वियाहिया। सा तेसिं कायठिई जहन्नुक्कोसिया भवे ॥१६८।। अणन्तकालमुक्कोसं अन्तोमहत्तं जहन्नयं । विजदमि सए काए नेरइयाणं तु अन्तरं ।।१६।। एएसि वण्णओ चेव गन्धओ रसफासओ। संठाणादेसओ वावि विहाणाइं सहस्ससो ॥१७०॥ पंचिन्दियतिरिक्खाओ दुविहा ते वियाहिया। सम्मुच्छिमतिरिक्खाओ गम्भवक्कन्तिया . तहा ।।१७१।।
विहावि ते भवे तिविहा जलयरा थलयरा तहा। खयरा य वोद्धव्वा तेसिं भेए सुणेह मे ॥१७२।।
मच्छा य कच्छभा य गाहा य मगरा तहा । सुसुमारा य वोद्धव्वा पंचहा जलयराहिया ।।१७३।। लोएगदेसे ते सव्वे न सव्वत्थ वियाहिया । एत्तो कालविभागं तु वुच्छं तेसिं चउन्विहं ।।१७४॥