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बत्तीसइमं अज्झयणं ..
२३३ . एंगन्तरत्ते रुइरे रसम्मि अतालिसे से कुणई पओसं। दुवखस्स संपीलमुवेइ वाले न लिप्पई तेण मुणो विरागो । ६५ ।। रसाणुगासाणुगए य जीवे चराचरे हिसइ ऽणेगरूवे । चित्तेहि ते परितावेइ वाले पीलेइ अत्तट्ठगुरू किलिट्ठ ।। ६६ ।। . रसाणुवाएण परिग्गहेण उपायणे रक्खणसन्निओगे। .. वए विओगे य कहिं सुहं से ? संभोगकाले य अतित्तिलाभे ।। ६७ ॥ रसे अतित्ते य परिग्गहे य सत्तावसत्तो न उवेइ तुष्टुिं । अतुट्टिदोसेण दुही परस्स लोभाविले आययई अदत्तं ।। ६८ ।। तहाभिभूयस्स अदत्तहारिणो रसे अतित्तस्स परिग्गहे य। मायामुसं वड्ढइ लोभदोसा तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से ॥६६॥ मोसस्स पच्छा य पुरस्थओ य पओगकाले य दुही दुरन्ते । एवं अदत्ताणि समाययन्तो रसे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो ॥ ७० ॥ रसाणुरत्तस्स नरस्स एवं कत्तो सुहं होज्ज कयाइ किंचि ?। तत्थोवभोगे वि किलेसदुक्खं निव्वत्तई जस्स कए ण दुक्खं ? ।। ७१ ॥ एमेव रसम्मि गओ पओसं उवेइ दुक्खोहपरंपराओ। पदुद्दचित्तो य चिणाइ कम्मं जं से पुणो होइ दुहं विवागे ।। ७२ ।। रसे विरत्तो मणुओ विसोगो एएण दुक्खोहपरंपरेण । .. न लिप्पई भवमझे वि सन्तो जलेण वा पोवखरिणीपलासं ।। ७३ ॥
कायस्स फासं गहणं वयन्ति तं रागहेउं तु मणुन्नमाहु । तं. दोसहेउं अमणुन्नमाहु समो य जो तेसु स वीयरागो ।। ७४ ।। फासस्स कायं गहणं वयन्ति कायस्स फासं गहणं वयन्ति । . रागस्स हेउं समणुन्नमाहु दोसस्स हेउं अमणुन्नमाहु ।। ७५ ।।