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- पनरसमं अज्झयणं
१३६ । · जं किंचि आहारपाणं विविहं ..
खाइमसाइमं परेसिं । जो तं तिविहेण नाणुकम्पे
- मणवयकायसुसंवुडे स भिक्खू ।। १२ ।। आयामगं चेव जवोदणं च
सीयं च सोवीरजवोदगं च । नो हीलए पिण्डं नीरसं तु
पन्तकुलाइं परिव्वए स भिक्खू ।। १३ ।। सद्दा विविहा भवन्ति लोए
दिव्वा माणुस्सगा तहा तिरिच्छा। भीमा भयभेरवा . उराला
जो सोच्चा न वहिज्जई स भिक्खू ॥ १४ ।। वादं विविहं समिच्च लोए
सहिए खेयाणुगए य कोवियप्पा । पन्ने अभिभूय सव्वदंसी.
उवसन्ते अविहेडए स भिक्खू ॥ १५ ॥ असिप्पजीवो अगिहे अमित्ते
जिइन्दिए सव्वओ विप्पमुक्के । अणुक्कसाई लहुअप्पभक्खी चेच्चा गिहं एगचरे स भिक्खू ।। १६ ।।
–त्ति बेमि ॥