________________
इगविसइमं अज्झयणं
_ १७३ परीसहा दुन्विसहा अणेगे
सीयन्ति जत्था बहुकायरा नरा। से तत्थ पत्ते न वहिज्ज भिक्खू
संगामसीसे इव नागराया ॥ १७ ॥ सीओसिणा दंसमसा य फासा .
आयंका. विविहा फुसन्ति । देहं। . . अकुक्कुओ तत्थऽहियासएज्जा
. रयाई खेवेज्ज पुरेकडाइं ॥ १८ ॥ पहाय रागं च तहेव दोसं
- मोहं च भिक्खू सययं वियक्खणो। मेरु व्व वाएण अकम्पमाणो
परीसहे आयगुत्ते सहेज्जा ॥ १६ ॥ अणुन्नए नावणए महेसी. .
___ न यावि पूर्य गरहं च संजए। स उज्जुभावं पडिवज्ज. संजए । ..... . निव्वाणमग्गं विरए उवेइ ॥२०॥ अरइरइसहे पहीणसंथवे
विरए आयहिए पहाणवं । परमटुपएहिं . चिट्टई
छिन्नसोए अममे. अकिंचणे ॥ २१ ।। विवित्तलयणाई भएज्ज ताई
निरोवलेवाइ असंथडाइं। . . इसीहि चिण्णाइ महायसेहिं ।
काएण फासेज्ज परीसहाई ।। २२ ।।