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उत्तरभवणं
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मत्तं च गन्धहत्थिं वासुदेवस्स जेदुगं । आरूढो सोहए अहियं, सिरे चूडामणी जहा ॥ १० ॥
अह ऊसिएण छत्तेण चामराहि य सोहिए । दसारचक्केण य सो, सव्वओ परिवारिओ ।। ११ ।।
चउरंगिणीए सेनाए रइयाए जहक्कमं । तुरियाण सन्निनाएण दिव्वेण गगणं फुसे ॥ १२ ॥
एयारिसीए इड्ढीए जुईए उत्तिमाए य । नियगाओ भवणाओं निज्जाओ वहिपुंगवो ॥ १३ ॥
अह सो तत्थ निज्जन्तो, दिस्स पाणे भयदुए । वाडेहि पंजरेहिं च सन्निरुद्धे सुदुविखए ॥ १४ ॥
जीवियन्तं तु संपत्ते मंसट्टा भक्खियन्वए । पासेत्ता से महापन्ने सारहिं इणमब्ववी ।। १५ ।।
कस्स अट्ठा इमे पाणा एए सव्वे सुहेसिणो । . वाडेहि पंजरेहिं च सन्निरुद्धा य अच्छाह ? ।। १६ ।।
अह सारही तओ भणइ एए भद्दा उ पाणिणो । तुज्झं विवाहकज्जंमि भोयावेउं वहुं जणं ॥ १७ ॥ सोऊण तस्स वयणं वहुपाणिविणासणं । चिन्तेइ से महापन्ने साणुक्कोसे जिएहि उ ॥ १८ ॥
जइ मज्झ कारणा एए हम्मिहिंति वहू जिया । न मे एयं तु निस्सेसं परलोगे भविस्सई ॥ १६ ॥
सो कुण्डलाण जुयलं, सुत्तगं च महायसो । आभरणाणि य सव्वाणि सारहिस्स पणामए ।। २० ।।