Book Title: Bhagavati Jod 06
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ JIOG करीनाथनामदयाकोनमिकरणमेदीजीएजावलाशनांवरफलमपाटीयानकर्यामेबाजायमामानस्थानाविमामाकारकरि३२.२०२४ बयानरम करवानी लीनदयथयान निकलकर पायपीसीसदिमीर यथादव मसावथा नामवश्याकमाणवाटा2-शिक्षिकश्यमासकीय मजासीयाजोगरमिलीमीजी नीमकारितेक मनकामनानोमीथदिवासिदएण्यागोजीमितपरिसंवा ताकदिरमामाजीसीमार बाबी या नमन मोगमापारीजीपतिसंली मनाउनरदेजगारीमीऊजाल मीनालीजासिकुसारीमालकविरायजियजशमंगसमालोनी मaिaull (ममाया करिया तासनिरोजी साबसमनवनिदायघशादिलोजीर या aaपपदाधिकारीमारानव विनयवेवानिan ससा कपालमनवमीकरशरणासापोमधाममविशिष्टयणेकरीकरिएकायसाय फममान विसरोकीयो दिagaविहान दिवस शायपियnिal थापाजी...ययायाम सदितएकताभिरालंबनटोनीनेरुपसावन करिब रथानीयणमीम इत्यादिकसव२६जावाविकोपजेकोशयलिविनय annilथदिसूशाखीयानवम्जोगनीबारुजी एशिलानतापवरहीरनगम वारजी तासमान.६५मानयना बीमारमविकिसने विनया नारयशनमजीगधनवसायबाणीजीवथाशनमीकदीरणा विधवारशामनिमयक्रमसविनयाकेलिनामिविनयनेमविनयधीन मामालेबंजाजी धाविधिएकायपणे कशएकतामयजेनादोजी कविजोग कार्यक्षमयनाबिनयलीक३५०२३ शतकायामानविनage8380 Haramपरिसंलामाबीजी-हिकायटिसलीलया किसी परिसली लहानेदोजी यी नयनादाव्यासपकार अश्खाशिममा मानविनवण[२/ जानकर समाविमलीपायशिकारिजदोजीनियमिकरीनिकीमaविसमायेरनयकबी२०ीराकरिश्मादिवाननिमयांपर्ममालावितादिन जीकरगवखामिणे विविशिकरगनाजी गुप्तईडियकारवामी जपणे ताकिमानरेटिसर्थतनावमारकरिनामरे मय २.मिनीयमस्वयसंगजीपूर्वथासोनीमखानामा पोयति सीमोरवंतानी कही सपजे विमानानसमयटिभावका करियविनयनवरेमकशि IPRAमलामता जोगतलीलिएदोजाबासीप्रतिसेलीनाएनीमविदकोदोजीम इदानamgणयामेरे अनससासरत करे/लिagoनामरे/ विनय रिमविकसियमासनोनीयसेदकीयवि.सोतलेजोवरमानोजी-BAR तिकी-टागनम यथय तेकनीयाणविनयराजेश विशयन-गामायण एवरगमनेमलीजालीमीयारामकदी जाय जेविपदिगणीजीसता पुष्प २-शुशनसेवादामोरेवरकरवासातजातीय२४३३. काम मिफलमायोजनियामकसी नायजेविनिश योनीशिमीमन बाधिनयवदारावधाविनयना कमानानेकप्रकार.कारीदनों/arjaमान रिजाकारुयारमा मालोजीरशमशाकमयागोविमरुदिवायोजीत जासे २३२ मतकालिय३३शनाम जा२३स्मरam जोam सामंधाराश्तावेगीकारकरविनतीजीजावाम पाजे/जागमिaaहिनाजी सायातकदिवाया मारा कितीकर्मकदिवायरेकरवीरनकार्यवासनाapa जानाएरेदेऊनदेशवसताविमहिननगरेवसेजनाईदसा-नीरत्यासोमाकानीरगंजलाचनलामदायविनो.30निमय पसर्पगरवनवीनीनधिकाविदो संगीत एवणी कमीजानवजानाजाजमनामनामनाय कामयासमरेन्यानबाजिरवनिमयपरे। भगवती-जोड़ (खण्ड -६) शाम पाचार्य माघ नाया निश्यानिस्मनरे करेसपासना जा३०३में जाने कीयबोलने ये एकाशिनविनय मनविनयम मानिनयमिक नगवनी नाभालान कारी दिनयासारामयमलनाकरिवारबतियार सय 27AB9BिELORSMARAकदिवायरRARABARI नयागायन. सविनय नियमान समानकरीयरजन सातनकर सुंताली कर्मयताहिर तामपायकदीजीयसपस्वमनकदिवायरे दिनविन मपकाररिलीयामायाकार-विमरुणामणीमुश्विार साmaa रिदिनवायरसयरुयकरण उपाय जनवयम्सूकदमविनय न वादनिवार नियायनी यातनंन करे मननकायकरिति कलय RAAसमयकारे सांवलजोगुणीजन सामानकरीन पापदिनमम नामरा aat 52पाधायनोविश्लीविजेर ऊलगनयनी सामनकरे पाक एनेविमासmaaanaकरिक कवियबयरहीत निकायमाaasीय ऊनभासंघनांतारिनीशियमनिमाहिर यायम गीत-लिकाध्यामिक कियाममता विलियम किरियाम कनकगणपति जीसविणकनारकगणक२ निममुकायममीम२ सघकाश लिमनीकादिक ग्रामकावी302230 रूपन्ससँगालियानादिम द लकामयानिकथावस कड़ीयमुकियानमग्रामात करण२वी शाकरिमन299ी-नियमन करीadal नक मर्मबीबीयफारिalaगिकमी नाaanana मनेरीक काविनायजेथकीजीवन संकासयमदेवमएमसंयम जाननीजाजनकेaaजानवमाकरवी समागमजाममनिएपनमा नलिम सिसकन.raatग्रामा पालमनविनयममवतीमालमत्रकार टिaasmaaकिमानसातीमान १२विनाविश्वयन.ता.यशवर्ण ममममनियमिकासुपसमविशया दाव्यासकार मायम नमानेर जातिवंतानीमरणयाmaa.RAयवसायात १३ पापकारिक मेमन नामपायकोरनेटकथन शिवको कोरिककसि गिनियामाग्रीनगनाथ.marasReaनविनय मारना मनपसाबसनामसगी-लिकाध्याटिककिरियाARawakeतिय ahnनियमानवलीमागमा सानाशिasiमानणायनली फमसकिरहिवाय.alahaकारिक यात्मक समय PRDARA221माकमजयन्यज्ञानमा नाय२afeमन्यmantगीनालाanादिक मानवकरणीसकर पंक्षमतेची नि याराधनायर 82e3ah कयाशिकार२ २३ २९मदिनकरणीaaसमनश२३कयुविकरावयकीनी aananनशिबाचारिभारिम९ि२०३२anileयपरमजयसिसकनमश्सायो यमनविनयेम नानवजीवन१२ग्राममानिम AR२२वीणविनयमनाचा माररविनयनगरबकरियमविनयविचारविनयनaai यत्रिमरित्रसुविचा२२ करवीन्युयात. य जना२धा करवाशीयप्रकाशमानविनय ४२२२पमaaaविनयीनीय थाशिनयानानादिसिंबारिशमRRधम्पकरायचरिविनयधम्मपनियरिवायत्रकार सानोरिलाय. गरपकारमा २२४ग मामायिक जावन.यथारमा सुदिनारसुगुणयपापक आवमानमान्य तालिसेकसविनयवास्तमननयम Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन आगमों के मुख्य दो विभाग हैं- अंग और अंग बाह्य। अंग बारह थे। आज केवल ग्यारह अंग ही उपलब्ध होते हैं। उनमें पांचवां अंग है- भगवती। इसका दूसरा नाम व्याख्या-प्रज्ञप्ति है। इसमें अनेक प्रश्नों के व्याकरण हैं। जीव-विज्ञान, परमाणु-विज्ञान, सृष्टि-विधान, रहस्यवाद, अध्यात्म - विद्या, वनस्पति- विज्ञान आदि विद्याओं का यह आकर-ग्रन्थ है। उपलब्ध आगमों में यह सबसे बड़ा है। इसका ग्रन्थमान १६००० अनुष्टुप् श्लोक प्रमाण माना जाता है। नवांगी टीकाकार अभयदेव सूरी ने इस पर टीका लिखी। उसका ग्रन्थमान अठारह हजार श्लोक प्रमाण है। भगवती सूत्र की सबसे बड़ी व्याख्या है- यह 'भगवती जोड़'। इस की भाषा है राजस्थानी। यह पद्यात्मक व्याख्या है, इसलिए इसे 'जोड़' की संज्ञा दी गई है। इस ग्रन्थ में सर्व प्रथम जयाचार्य द्वारा प्रस्तुत जोड़ के पद्य और ठीक उनके सामने उन पद्यों के आधारस्थल दिये गये हैं। जयाचार्य ने मूल के अनुवाद के साथ-साथ अपनी ओर से स्वतंत्र समीक्षा भी की है। आवरण पृष्ठ पर मुदित हस्तलिखित पत्र ग्रन्थ की ऐतिहासिक पाण्डुलिपि के नमूने है। इनकी लेखिका हैं-तेरापंथ धर्मसंघ की विदुषी साध्वी गुलाब, जो आशु- लेखन की कला में सिद्धहस्त थीं। जयाचार्य भगवती-जोड़ की रचना करते हुए पद्यों का सृजन कर बोलते जाते और महासती गुलाब अविकल रूप से उन्हें कलम की नोक से कागज पर उतारती जातीं। उस प्रथम ऐतिहासिक प्रति के ये पत्र प्रज्ञा, कला और ग्रहण-शीलता की समन्विति के जीवन्त साक्ष्य हैं। मुद्रण का आधार यही प्रति है। n Education International For Private & Per Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ aoানুন ; (शतक २४) श्रीमज्जयाचार्य Jain Education Intemational Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जय वाङ्मय : प्रन्थ १४ भगवती-जोड़ खण्ड ६ (शतक २४) प्रवाचक गणाधिपति तुलसी प्रधान सम्पादक आचार्य महाप्रज्ञ सम्पादन साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा प्रकाशक जैन विश्व भारती लाडनूं (राजस्थान) Jain Education Intemational Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशक: मंत्री जैन विश्व भारती लाडनूं-३४१३०६ (राज.) ISB No. 81-7195-043-4 © जैन विश्व भारती, लाडनूं प्रथम संस्करण : मूल्य : ४०० रुपये मुद्रक : मित्र परिषद् कलकत्ता के आर्थिक सौजन्य से स्थापित जैन विश्व भारती प्रेस, लाडनूं (राजस्थान) Jain Education Intemational Education International Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशकीय तेरापंथ आचार्यों के सम्यक् निर्देशन में जैन आगमों के सुव्यवस्थित वृहत् शोध कार्यों का सम्पादन जैन साहित्य के इतिहास का स्वर्णिम अध्याय है । साहित्य की बहुविध दिशाओं में आगम-ग्रन्थों पर श्रीमज्जयाचार्य ने जो कार्य किया है वह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। प्राकृत आगमों को राजस्थानी जनता के लिए सुबोध करने की दृष्टि से उन्होंने उनका राजस्थानी पद्यानुवाद किया जो सुमधुर रागनियों में गुम्फित है । प्रथम आचारांग की जोड़, ज्ञाता की जोड़, उत्तराध्ययन की जोड़, अनुयोगद्वार की जोड़, पनवणा की जोड़, संजया, नियंठा की ढालें- ये कृतियां उक्त दिशा में जयाचार्य के विस्तृत कार्य की परिचायक हैं। 'भगवई' आगम साहित्य में सबसे विशाल ग्रन्थ है । विषयों की दृष्टि से यह एक महान उदधि है । जयाचार्य ने इस अत्यन्त महत्त्वपूर्ण आगम ग्रन्थ का भी राजस्थानी भाषा में गीतिकाबद्ध पद्यानुवाद किया। यह राजस्थानी भाषा का सबसे बड़ा ग्रंथ माना गया है । इसमें मूल के साथ टीका ग्रंथों का भी अनुवाद है और वार्तिक के रूप में अपने मंतव्यों को बड़ी स्पष्टता के साथ प्रस्तुत किया गया है । भगवती जोड़ का प्रथम खण्ड जयाचार्य निर्वाण शताब्दी के अवसर पर "जैन वाङ्मय" के चतुर्दश ग्रंथ के रूप में सन् १९८१ में प्रकाशित हुआ था। इसका दूसरा खण्ड सन् १९८६ में, तीसरा खण्ड सन् १९९० में, चौथा खण्ड सन् १९९४ में तथा पांचवां खण्ड सन् १९९५ में प्रकाशित हुआ । अब उसी ग्रन्थ का यह छठा खण्ड पाठकों के हाथों में सौंपते हुए अति हर्ष का अनुभव हो रहा है। प्रथम खण्ड में उक्त ग्रंथ के चार शतक, द्वितीय खण्ड में पांचवें से आठवें शतक तक, तृतीय खण्ड में नौवें से ग्यारहवें शतक तक, चतुर्थ खण्ड में बारहवें से पन्द्रहवें शतक तक, पांचवें खण्ड में सोलहवें से तेइसवें शतक तक संग्रहीत हैं । प्रस्तुत ग्रंथ में मात्र एक चौबीसवां शतक है एवं परिशिष्ट में उसी शतक को यंत्रों के रूप में प्रस्तुति दी गयी है । प्रस्तुत खण्ड में मूल राजस्थानी कृति के सुविधा के साथ-साथ मूल कृति के इससे पाठकों को समझने की साथ संबंधित आगम पाठ और टीका गाथाओं के सामने दी गयी है। विशेष मंतव्य की जानकारी भी हो सकेगी। इस ग्रन्थ का कार्य गणाधिपति गुरुदेव श्री तुलसी के तत्वावधान में हुआ है और इससे जुड़ा महाश्रमणी साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा का अथक श्रम ग्रंथ के प्रत्येक पृष्ठ पर स्पष्ट अनुभूत होता है । जैन विश्व भारती, लाडनूं २७ फरवरी, १९९६ ताराचन्द रामपुरिया मंत्री Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्पादकीय तेरापन्थ की आचार्य परम्परा में एक नाम है-श्रीमज्जयाचार्य । उनका जीवन अनेक दृष्टियों से विलक्षण था। उनकी विलक्षणता के कुछ बिन्दु हैं आध्यात्मिक दृष्टिकोण, सृजनशीलता, गंभीर अध्यवसायशीलता, प्रयोगमिता, प्रशासन कौशल, व्यवस्था कौशल, स्वाध्याय प्रियता, दूरदर्शिता, प्रमोद भावना आदि । उनकी सृजनशीलता कई क्षेत्रों में उजागर हुई। उनमें एक व्यापक क्षेत्र है साहित्य का । उन्होंने साहित्य की स्रोतस्विनी अनेक धाराओं में प्रवाहित की। उन धाराओं में एक विशिष्ट धारा है आगम साहित्य का राजस्थानी भाषा में पद्यमय भाष्य । राजस्थानी भाषा में इस धारा के लिए जोड़ शब्द का प्रयोग होता है । जोड़ साहित्य में सर्वाधिक विशाल और महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है 'भगवती की जोड़। पांच वर्ष की छोटी सी अवधि में भगवती जैसे आकर ग्रन्थ का किसी दूसरी भाषा में अनुवाद करना भी बहुत श्रमसाध्य और निष्ठासाध्य कार्य है। जयाचार्य ने केवल भाषानुवाद ही नहीं किया, स्थान-स्थान पर समीक्षात्मक टिप्पणियां की हैं। उनकी शोधपूर्ण रचनाशैली की समीक्षा एक स्वतन्त्र ग्रन्थ का विषय है। जयनिर्वाण शताब्दी के ऐतिहासिक अवसर पर भगवती-जोड़ का प्रकाशन शुरु हुआ। अब तक उसके पांच खण्ड प्रकाशित हो चुके हैं । प्रस्तुत ग्रन्थ इस शृंखला की छठी कड़ी है। इसमें केवल एक चौबीसवां शतक है। प्रथम और द्वितीय खण्ड में चार-चार शतकों की जोड़ आई है । तीसरे खण्ड में तीन शतक हैं। चौथे खण्ड में चार शतकों की जोड़ है और पांचवें खण्ड में आठ शतकों की। प्रस्तुत खण्ड की जोड़ बहुत विस्तृत नहीं है । पर इसकी रचनाशैली और विषयवस्तु अन्य शतकों से भिन्न है । जैन सिद्धान्तों के आधार पर बनाए गए थोकड़ों में एक है 'गमा रो थोकड़ो' । गमक शब्द का अपभ्रंश या राजस्थानी रूप है गमा। इसके अनेक अर्थ हैं । सूत्रपाठ के सदृश आलापक को गमा कहा जाता है। प्रकार अर्थ में भी यह शब्द प्रयुक्त होता है। प्रस्तुत सन्दर्भ में स्थिति की अपेक्षा नौ प्रकार से बीस द्वारों की व्याख्या की गई है। यही है 'गमा रो थोकड़ो'। पुराने साधु-साध्वियों और श्रावक-श्राविकाओं में इस थोकड़े को कण्ठस्थ करने की प्रवृत्ति थी। मैंने भी कई बार यह नाम सुना, किन्तु इसके बारे में कोई अवधारणा स्पष्ट नहीं हुई। प्रस्तुत खण्ड का काम प्रारंभ करते समय पहले पन्ने में ही अवरोध उपस्थित हो गया। इसका कारण था गमकों के बारे में जानकारी का अभाव। पूरी भगवती की जोड़ में किसी भी शतक के प्रारंभ में जोड़ से पहले कोई पृष्ठभूमि नहीं है। प्रस्तुत शतक में वर्ण्य विषय का पूरा सार-संक्षेप एक वार्तिक में दिया गया है। गमकों के सम्बन्ध में थोड़ी भी जानकारी न हो तो पूरे शतक की जोड़ पढे बिना केवल वार्तिक के आधार पर कुछ भी पल्ले नहीं पड़ सकता। हमारे साथ भी ऐसा ही हुआ। हमने बार-बार वार्तिक को पढ़ा, किन्तु हमारी समस्या हल नहीं हुई। हमने एक बार वार्तिक को छोड़ जोड़ का काम प्रारम्भ कर दिया। यह काम गुरुदेव के सान्निध्य में बैठकर किया था। इसलिए इसमें कोई अवरोध नहीं आया। जोड़ का काम पूरा हो गया। उसके बाद हमने पुनः वार्तिक को देखा । हमारी समझ की खिड़कियां खुल गई। उसका प्रतिपाद्य स्पष्ट हो गया। भगवती जोड़ के सम्पादन में प्रारंभ से ही मेरे साथ संलग्न साध्वी जिनप्रभाजी ने कहा --'जयाचार्य के लिए यह वातिक बहुत सरल रहा होगा, पर आज के पाठक इसे समझने में कठिनाई का अनुभव करेंगे। इसको आधुनिक दृष्टि से सम्पादित करना आवश्यक लगता है।' यह बात मुझे भी ठीक लगी। मैंने गुरुदेव से निवेदन किया । आपकी स्वीकृति मिल गई । बार्तिक को सम्पादित करने का काम मैंने साध्वी जिनप्रभाजी को सौंप दिया। उन्होंने अपना दिमाग लगाया। वार्तिक को दो-तीन प्रकार से बदलकर देखा । आखिर उन्होंने उसको तीन यन्त्रों में रूपायित कर प्रस्तुत किया। इस प्रस्तुति के बाद उसे समझना सुगम प्रतीत हुआ। इस दृष्टि से हमने जोड़ से पहले वार्तिक के स्थान पर उन यन्त्रों को रखा है। भगवती-जोड़ के पांच खण्डों का काम हमने दो-दो आवृत्तियों में किया था। प्रथम आवृत्ति में गणाधिपति परम पूज्य गुरुदेव श्री तुलसी के सान्निध्य में गृहस्थों द्वारा लिखित प्रति का मुनि कुन्दनमलजी द्वारा लिखित 'भगवती-जोड़' की प्रति से मिलान किया जाता। दूसरी आवृत्ति में भगवती-जोड़ के आधारभूत-स्थलों-भगवती सूत्र, भगवती वृत्ति आदि का जोड़ के साथ सम्यक् समायोजन किया जाता। इस क्रम से ग्रन्थ के सम्पादन में दुगुना समय लगता। चौबीसवें शतक में सम्पादन की पद्धति बदल दी। इसमें पाठ का Jain Education Intemational Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (c) मिलान तथा पाठ एवं वृत्ति के समायोजन का काम साथ-साथ किया। इसका पूरा काम गुरुदेव की सन्निधि में हुआ। इसलिए अज्ञात विषयवस्तु वाली सामग्री को सम्पादित करने में भी सुविधा हो गई । अन्यथा एक -एक प्रसंग की सम्पन्नता पर दिए गए यन्त्रों को समझने में बहुत कठिनाई रहती । चौबीसवें शतक की जोड़ से पहले दिए गए प्रथम यन्त्र में २४ दण्डकों के ४४ घर बताए गए हैं। उन ४४ घरों में ३२१ स्थानों के जीव उत्पन्न होते हैं। प्रत्येक स्थान के नौ-नौ गमक होते हैं, जैसे १. औधिक अधिक २. औधिक - जघन्य ३. अधिक उत्कृष्ट ४. जधन्य अधिक ५. जघन्य जघन्य ६. जघन्य उत्कृष्ट ७. उत्कृष्ट औधिक ८. उत्कृष्ट जघन्य ९. उत्कृष्ट उत्कृष्ट औधिक का अर्थ है-समुच्चय । जीव की उत्पत्ति के ४४ घरों में आने वाले जीव की जघन्य और उत्कृष्ट दोनों प्रकार की स्थिति का आकलन करने वाला गमक औधिक गमक है। प्रथम गमक में जीव जहां से आया है और जहां उत्पन्न होता है इन दोनों स्थानों की औधिक स्थिति ली गई है। औधिक जघन्य- -इस द्वितीय गमक में जीव जहां से आता है, उसकी औधिक और जहां उत्पन्न होता है, उसकी जघन्य स्थिति का ग्रहण होता है । औधिक उत्कृष्ट - इस तृतीय गमक में जीव जहां से आता है उसकी औधिक और जहां उत्पन्न होता है, उसकी उत्कृष्ट स्थिति का ग्रहण होता है। इस क्रम से ही आगे के छहों गमक ज्ञातव्य हैं । ४४ घरों में ३२१ स्थानों के जीव उत्पन्न होते हैं। प्रत्येक स्थान के नौ-नौ गमक होने से ३२१४९ = २८८९ गमक हो जाते हैं । सब जीवों की सब स्थानों में जघन्य और उत्कृष्ट दानों प्रकार की स्थिति हो तो गमकों का उपर्युक्त आंकड़ा बनता है । किन्तु कुछ जीवों की जघन्य - उत्कृष्ट स्थिति एक ही होती है। वहां नौ गमक नहीं बनते। जहां पूरे गमक नहीं बन पाते, उन्हें शून्य गमक या गमकों का टूटना माना गया है। इस पूरे प्रकरण में ८४ गमक शून्य हैं। इसलिए गमकों की संख्या २८०५ होती है । २८०५ गमकों का २० द्वारों के माध्यम से वर्णन किया गया है। इस समग्र वर्णन को एक शब्द में समेटकर ऋद्धि कहा गया है। बीस द्वारों के नाम उपपात, परिमाण, संहनन, अवगाहना, संस्थान, लेश्या, दृष्टि, ज्ञान-अज्ञान, योग, उपयोग, संज्ञा, कषाय, इन्द्रिय, समुद्घात, वेदना, वेद, आयु, अध्यवसाय, अनुबन्ध और काय संवेध | बीस द्वारों में संहनन, संस्थान, संज्ञा, कषाय, इन्द्रिय, वेदना, वेद और उपयोग इन आठ द्वारों का वर्णन एक समान है। शेष बारह द्वारों में कहीं-कहीं भिन्नता रहती है । इस भिन्नता को 'नाणत्ता' के द्वारा स्पष्ट किया गया है । जयाचार्य ने जोड़ की रचना के साथ-साथ एक-एक प्रकरण के अलग-अलग यन्त्र बना दिए । यन्त्रों की संख्या १६० हैं । इनके द्वारा वर्णित विषय पूरी तरह से स्पष्ट हो जाता है। भगवती-जोड़ की हस्तलिखित प्रति में प्रत्येक प्रकरण के बाद उससे सम्बन्धित यन्त्र दिया गया है । यन्त्र की रचना कलात्मक तरीके से की गई है। जोड़ का सम्पादन करते समय प्रश्न सामने आया कि मुद्रण के समय यन्त्रों को कैसे रखा जाए? इस प्रश्न के परिप्रेक्ष्य में चिन्तन उभरा कि प्रत्येक प्रकरण के बाद सम्बन्धित यन्त्र रखने से मुद्रण में एकरूपता का अभाव रहेगा। बीच बीच में पृष्ठ खाली रहेंगे और अव्यवस्था होगी। इस चिन्तन के आधार पर गुरुदेव का निर्देश मिला कि सारे यन्त्रों को एक साथ परिशिष्ट में दे दिया जाए और जोड़ में उनका संकेत रहे ताकि पाठक को किसी प्रकार की असुविधा न हो । गुरुदेव के निर्देशानुसार काम शुरू किया। उसमें भी कठिनाई का अनुभव हुआ । मूल प्रति में सब यन्त्रों के उपपात द्वार अक्षरों में लिखे हुए हैं और शेष १८ द्वार यन्त्र के कोष्ठकों में है । उन्नीस द्वारों के बाद 'नाणत्ता' का कोष्ठक है और बीसवां द्वार Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कायसंवेध स्वतन्त्र यन्त्र के रूप में दिया गया है इस द्विरूपता को दूर करने के लिए हमने उपपात द्वार और कायसंवेध ( भवादेश और कालादेश) को भी मूल यन्त्र के साथ जोड़ दिया। इस प्रकार यन्त्रों के विन्यास में थोड़ा सा परिवर्तन हो गया । (1) यन्त्र बहुत सुन्दर और व्यवस्थित थे। फिर भी प्रतिलिपि करने वालों ने अक्षर विन्यास करते समय कहीं संक्षिप्त और कहीं पूर्ण रूप कर दिया। इससे यन्त्र रचना में एकरूपता नहीं हो पाई । सम्पादनकाल में एकरूपता के लिए प्रयत्न किया गया। यह काम कितना व्यवस्थित हो पाया है, इसकी समीक्षा पाठक करेंगे। इस काम में साध्वी जिनप्रभाजी ने जिस मनोयोग से समय और श्रम लगाया है, उसका उल्लेख कर मैं उनकी ध्येयनिष्ठा को कम नहीं करूंगी । भगवती-जोड़ के इस छठे खण्ड में २४ उद्देशक हैं। एक-एक उद्देशक में एक-एक दण्डक में जीवों की आगति के आधारगमकों का निरूपण है । एक उद्देशक को सही रूप में समझने के बाद शेष उद्देशकों का बोध सरल हो जाता है । पर इसमें एक कठिनाई और उपस्थित हो गई। आगे के अनेक स्थलों का संक्षिप्त वर्णन करके उनकी समग्र जानकारी के लिए पीछे के स्थलों का संकेत कर दिया गया । सूत्रकार ने यह प्रयोग ग्रन्थ-विस्तार के भय से किया होगा पर एक स्थल के अवबोध हेतु एक के बाद एक इस प्रकार अनेक संकेत स्थलों को देखने में पाठक उलझ जाता है। जयाचार्य ने जोड़ की रचना में भी इस संकेत प्रक्रिया का प्रयोग किया है । विस्तृत वर्णन जानने के लिए पाठक को पूरी एकाग्रता का अभ्यास करना होगा । भगवती-जोड़ के अन्य खण्डों की तरह प्रस्तुत खण्ड के सम्पादन में भी गणाधिपति गुरुदेव श्री तुलसी का अनुग्रह भरा सान्निध्य बरावर उपलब्ध हुआ । यत्र तत्र आचार्य श्री महाप्रज्ञ के मार्गदर्शन से भी कार्य सुगम होता रहा। साध्वी जिनप्रभाजी ने इस खण्ड के सम्पादन में अतिरिक्त निष्ठा से काम किया । परिशिष्ट के यन्त्रों में पूरा श्रम उन्हीं का लगा है। जोड़ की पाण्डुलिपि के समानान्तर मूलपाठ और वृत्ति की पाण्डुलिपि साध्वी स्वरेखाजी ने तैयार की हमारे सामने मूलपाठ को लेकर कोई भी कठिनाई आई, मुनि हीरालालजी का सहयोग सहज भाव से उपलब्ध होता रहा । प्रूफ निरीक्षण में साध्वी विभाश्रीजी और स्वस्तिकाश्रीजी का भी श्रम लगा । गुरुजनों की कृपा और साध्वियों के सहयोग से भगवती-जोड़ जैसे विशाल ग्रन्थ का सम्पादन हो रहा है, इसकी मुझे प्रसन्नता है । ११ जनवरी १९९६ लाडनूं, ऋषभद्वार -साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषयानुक्रम १०५ १०५ १०७ ~ ~ ~~~ m" ~ ~ ११७ १२० १२१ ४ ~ ~ ~ rrrrr .. or mr x ~ ~ ~ १२३ १२५ १२७ १२९ १३० १३४ विषय प्रथम नरक में असन्नी तिर्यंच पंचेंद्रिय की आगति प्रथम नरक में संख्याता वर्ष के सन्नी तिर्य च पंचेंद्रिय की आगति दूसरी नरक में संख्याता वर्ष के सन्नी तिर्यच पंचेंद्रिय की आगति २७ तीसरी से छट्ठी नरक में संख्याता वर्ष के सन्नी तिर्यच पंचेंद्रिय की आगति सातवीं नरक में संख्याता वर्ष के सन्नी तियंच पंचेंद्रिय की आगति प्रथम नरक में संख्याता वर्ष के सन्नी मनुष्य की आगति दूसरी नरक में संख्याता वर्ष के सन्नी मनुष्य की आगति तीसरी से छट्ठी नरक में संख्याता वर्ष के सन्नी मनुष्य की आगति सातवीं नरक में संख्याता वर्ष के सन्नी मनुष्य की आगति असुरकुमार में असन्नी तिर्यच पंचेंद्रिय की आगति असुरकुमार में तिथंच यौगलिक की आगति असुरकुमार में संख्याता वर्ष के सन्नी तिर्यंच पंचेंद्रिय की आगति असुरकुमार में मनुष्य योगलिक की आगति असुरकुमार में संख्याता वर्ष के सन्नी मनुष्य की आगति नागकुमार में असन्नी तिर्यंच पंचेंद्रिय की आगति नागकुमार में तिथंच यौगलिक की आगति नागकुमार में संख्याता वर्ष के सन्नी तिर्यंच पंचेंद्रिय की आगति नागकुमार में मनुष्य यौगलिक की आगति नागकुमार में संख्याता वर्ष के सन्नी मनुष्य की आगति सुपर्णकुमार से स्तनितकुमार में नागकुमार की तरह पृथ्वीकाय में पृथ्वीकाय की आगति पृथ्वीकाय में अपकाय की आगति पृथ्वीकाय में तेउकाय की आगति पृथ्वीकाय में वायुकाय की आगति पृथ्वीकाय में वनस्पतिकाय की आगति पृथ्वीकाय में बेइंद्रिय की आगति पृथ्वीकाय में तेइंद्रिय की आगति पृथ्वीकाय में चउरिद्रिय की आगति पृथ्वीकाय में असन्नी तिर्यंच पंचेंद्रिय की आगति पृथ्वीकाय में संख्याता वर्ष के सन्नी तिर्यंच पंचेंद्रिय की आगति १०३ पृथ्वीकाय में असन्नी मनुष्य की आगति पृथ्वीकाय में संख्याता वर्ष के सन्नी मनुष्य की आगति पृथ्वीकाय में असुरकुमार की आगति पृथ्वीकाय में नवनिकाय की आगति पृथ्वीकाय में व्यंतर की आगति पृथ्वीकाय में ज्योतिषी की आगति पृथ्वीकाय में सौधर्म देव की आगति पृथ्वीकाय में ईशान देव की आगति अपकाय में पृथ्वीकाय आदि की आगति तेउकाय में पृथ्वीकाय आदि की आगति वायुकाय में पृथ्वीकाय आदि की आगति वनस्पति में पृथ्वीकाय आदि की आगति बेइन्द्रिय में पृथ्वीकाय आदि की आगति तेइन्द्रिय में पृथ्वीकाय आदि की आगति चउरिन्द्रिय में पृथ्वीकाय आदि की आगति तियंच पंचेंद्रिय में प्रथम नरक की आगति तिथंच पंचेंद्रिय में दूसरी से छट्ठी नरक की आगति तिर्यंच पंचेंद्रिय में सातवीं नरक की आगति तियंच पंचेंद्रिय में पृथ्वीकाय की आगति तिर्यंच पंचेंद्रिय में अपकाय से चउरिद्रिय की आगति तिर्यच पंचेंद्रिय में असन्नी तिर्यंच पंचेंद्रिय की आगति तियंच पंचेंद्रिय में असन्नी मनुष्य की आगति तियंच पंचेंद्रिय में सन्नी मनुष्य की आगति तियंच पंचेंद्रिय में असुरकुमार की आगति तिर्यंच पंचेंद्रिय में नवनिकाय की आगति तिर्यंच पंचेंद्रिय में व्यंतर की आगति तिर्यंच पंचेंद्रिय में ज्योतिषी की आगति तिर्यंच पंचेंद्रिय में सौधर्म देव की आगति तिर्यंच पंचेंद्रिय में ईशान देव से सहस्रार देव तक की आगति मनुष्य में प्रथम नरक की आगति मनुष्य में दूसरी से छुट्टी नरक की आगति मनुष्य में पृथ्वीकाय की आगति मनुष्य में अपकाय आदि की आगति मनुष्य में असुरकुमार की आगति मनुष्य में नवनिकाय की आगति मनुष्य में सनत्कुमार आदि देवों की आगति १३९ १४० १४८ १४८ १५३ १५५ १५६ १५७ १५९ १६४ १६६ १६८ 5 १७३ Jain Education Intemational Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२) १९७ १७४ १७६ १९८ १९९ १७९ १८१ १८१ १८३ १८३ २०० मनुष्य में नौवें देवलोक के देवों की आगति मनुष्य में दसवें से बारहवें देवलोक के देवों की आगति मनुष्य में ग्रैवेयक देवों की आगति मनुष्य में अनुत्तर विमान के देवों की आगति व्यंतर में असन्नी तियंच पंचेंद्रिय की आगति व्यंतर में तिथंच यौगलिक की आगति व्यंतर में संख्याता वर्ष के सन्नी तियंच की आगति व्यंतर में मनुष्य यौगलिक की आगति व्यंतर में संख्याता वर्ष के सन्नी मनुष्य की आगति ज्योतिषी में तियं च यौगलिक की आगति ज्योतिषी में संख्याता वर्ष के सन्नी तिर्यंच पंचेंद्रिय की आगति ज्योतिषी में मनुष्य यौगलिक की आगति ज्योतिषी में संख्याता वर्ष के सन्नी मनुष्य की आगति पहले देवलोक में तिर्यंच यौगलिक की आगति पहले देवलोक में संख्याता वर्ष के सन्नी तिर्यच की आगति पहले देवलोक में मनुष्य यौगलिक की आगति पहले देवलोक में संख्याता वर्ष के सन्नी मनुष्य की आगति दूसरे देवलोक में ममुष्य यौगलिक की आगति तीसरे देवलोक में संख्याता वर्ष के सन्नी तिर्यच की आगति तीसरे देवलोक में संख्याता वर्ष के सन्नी मनुष्य की आगति चौथे से आठवें देवलोक में सन्नी तिर्यंच व सन्नी मनुष्य की आग ति नौवें देवलोक में सन्नी मनुष्य की आगति दसवें से बारहवें देवलोक में सन्नी मनुष्य की आगति नौ ग्रेवेयक में सन्नी मनुष्य की आगति चार अनुत्तर विमान में सन्नी मनुष्य की आगति सर्वार्थसिद्ध में सन्नी मनुष्य की आगति १८३ १८४ १८८ २०४ १९१ १९३ २०५ Jain Education Intemational Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्विंशतितम शतक Jain Education Intemational Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Education Intemational Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Education Intemational गमां नो अधिकार २४ दण्डक नां ४४ घर ७ नारकी १० भवनपति ५ स्थावर ३ विकलेंद्रिय तियंचपंचेंद्रिय मनुष्यपंचेंद्रिय | व्यंतर ज्योतिषी |१२ देवलोक | ९ ग्रेवेयक | ४ अनुत्तर | सर्वार्थसिद्ध कुल विमान ज्योतिथी १२ देवलोक ९ प्रवेयक | 'विमान सर्वार्थसिद्ध फुल १० ४४ घर For Private & Personal use only ४४ घरां में ३२१ ठिकाणां नां ऊपजै तेहनों विवरो | जिण जिण ठिकाणां ना ऊपज तेहनां नाम | सख्या घर | जिण-जिण ठिकाणां नां ऊपज तेहना नाम | संख्या प्रथम नरक । ३ ठिकाणा ना ऊपज-असन्नी तियच पचेद्रिय १ मनुष्य | ४३ ठिकाणां नां ऊपजै-छह नारकी ६ पृथ्वी ७ सन्नी तिर्यंच पंचेंटिय २ सन्नी मनूष्य कर्मभूमि ३ अप ८ वनस्पति ९ तीन विकल द्रिय १२ असन्नी २-७ | शेष छह नरक | २-२ ठिकाणां ना उपजै--सन्नी तियेच पचेद्रिय १ मनुष्य १३ असन्नी तिथंच पंचेद्रिय १४ सन्नी सन्नी मनुष्य २४६= तिर्यच १५ सन्नी मनुष्य १६ दस भवनपति २६वाण८-१७ | दश भवनपति ५-५ ठिकाणा ना ऊपजै-असन्नी तिथंच पद्रिय १ व्यंतर २७ ज्योतिषी २८ बारह देवलोक ४० तिर्यंच युगलियो २ सन्नी तिर्यंच पंचेंद्रिय ३ प्रैवेयक ४१ च्यार अनुत्तर विमान ४२ सर्वार्थमनुष्य युगलियो ४ सन्नी मनुष्य कर्मभूमि ५ सिद्ध ४३ ४३ ५४१०= । वाणव्यंतर ५ ठिकाणांना ऊपजै-असन्नी तिथंच पचेंद्रिय १ १८-२०। पृथ्वी, पानी, | २६-२६ ठिकाणां नां ऊपजै - पांच स्थावर ५ तिर्यंच युगलियो २ सन्नी तिर्यंच पंचेंद्रिय ३ वनस्पति । तीन विकलेंद्रिय असन्नी तिर्यंच पंचेंद्रिय ९ मनुष्य युगलियो ४ सन्नी मनुष्य कर्मभूमि ५ । ५ सन्नी तिथंच पंचेंद्रिय १० सन्नी मनुष्य कर्मभूमि ११| ज्योतिषी ४ ठिकाणां ना ऊपजै- तिर्यंच युगलियो १ असन्नी मनुष्य १२ दस भवनपति २२वाणव्यंतर २३ मनुष्य युगलियो २ सन्नी तिर्यंच ३ सन्नी मनुष्य ज्योतिषी २४ प्रथम दो देवलोक २६ कर्मभूमि ४ २६४३= | ७८ ३०,३१ | प्रथम दो देवलोक | ४ ठिकाणां नां ऊपजै--तिर्यंच युगलियो १ २१-२५/ तेउ, वायु, तीन । १२-१२ ठिकाणां ना ऊपजै-पांच स्थावर ५ सन्नी तिर्यच पंचेंद्रिय २ मनुष्य युगलियो ३ विकलेंद्रिय । तीन विकलेंद्रिय ८ असन्नी तिर्यंच पंचेंद्रिय ९ सन्नी मनुष्य कर्मभूमि ४ सन्नी तिर्यंच पंचेंद्रिय १० सन्नी मनुष्य ११ ३२-३७ / तीसरे से आठवें । २-२ ठिकाणां ना ऊपज-सन्नी तिथंच पंचेंद्रिय १ । असन्नी मनुष्य १२ देवलोक सन्नी मनुष्य २ १२४५= | ६० २४६ २६ । तियंच पंचेंद्रिय | ३९ ठिकाणा ना ऊपजै-सात नारकी ७ ३८-४४/ ऊपर के च्यार १-१ ठिकाणां नां ऊपजैपांच स्थावर १२ तीन विकलेंद्रिय १५ देवलोक, ग्रेवेयक, सन्नी मनुष्य कर्मभूमि १ असन्नी तिथंच पंचेंद्रिय १६ सन्नी तिर्यंच पंचेंद्रिय १७ च्यार अनुत्तरविमान असन्नी मनुष्य १८ सन्नी मनुष्य १९ सर्वार्थ सिद्ध दस भवनपति २९ वाणव्यंतर ३० ३२१ ज्योतिषी ३१ प्रथम आठ देवलोक ३९ Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Education Intemational २८०५ गमा नों विवरो ४४ घरां में ३२१ ठिकाणां ना ऊपज । १-१ ठिकाणां में ९-९ गमा हुवै १. ओधिक नै ओधिक ४. जघन्य नै ओधिक २. ओधिक नै जघन्य ५. जघन्य नै जघन्य ३. ओधिक नै उत्कृष्ट ६. जघन्य ने उत्कृष्ट ७. उत्कृष्ट नै ओधिक ८. उत्कृष्ट नै जघन्य ९. उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट ९४३२१=२८८९ गमा ८४ गमा टूट-४ २८०५ गमा ८४ गमा टूटै तेहनों विवरो |गमा टूटा पृथ्वी १ पानी २ असन्नी मनुष्य ऊपजतां ३-३ गमा हुवै . वनस्पति ३ बेइंद्रिय ४ ६४१०=६० ६० तेइंद्रिय ५ चरिद्रिय ६ असन्नी तिथंच पंचेंद्रिय ७ सन्नी तियंच पंचेंद्रिय ८ असन्नी मनुष्य ९ सन्नी मनुष्य कर्मभूमि १० ज्योतिषी १ सौधर्म २ | तिर्यंच युगलियो उपजतां ७-७ गमा हुवै, ईशान ३ २-२ गमा टूट २४३=६ ६ मनुष्य युगलियो उपजतां ७-७ गमा हुवै, २-२ गमा टूट २४३६ | ६ मनुष्य सर्वार्थ सिद्ध थकी चवी मनुष्य ऊपजतां ३ गमा हुवै शेष ६ गमा टूट सर्वार्थ सिद्ध कर्मभूमि मनुष्य ऊपजतां ३ गमा हुवै, ६ गमा टूट Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ढाल : ४१२ वहा १. आख्यो शत तेवीसमो, अथ अवसर आयात | शत चउवीसम आदि में, द्वार संग्रह गाथ ॥ उपपात आदि बीस द्वार २. नारक प्रभु ! किहां थकी, ऊपजवो ऊपजस्यै नरकादि में, तसु परिमाण चतुर्विंशतितम शतक ३. किसा संघयण तणों धणी, नारक प्रमुखे जंत । उच्चपणें अवगाहना, तेह तणीं स्यूं हुंत ॥ ५. इंद्रिय तिण में केतली, कहिवा वेद रु आउखो ६. कहियो फुन अनुबंध तर चडवीसम शत नें विषे, ७. हिव चडवीसम शतक नां, तेह जाणवा में अर्थ ४. फुन संठाण रु लेश वलि, दृष्टि रु ज्ञान अज्ञान । जोग अनें उपयोग फुन, संज्ञा कषाय जान ॥ उत्पात । कहात ।। १. परि. १ वेदन्न । प्रपन्न ।। आगल गाथा जाण ॥ 7 ८. नारक आदि देई करी, जीव पदे अवधार । जीव तणां चउवीस जे दंडक करि सुविचार || ९. एक-एक दंडक तणों, उद्देशक इक-एक । उद्देशक चउवीस इम शत चडवीसम पेख ॥ वा०- ए गाथा उक्त द्वार नीं दोय गाथा थकी किहांइक पहिलां दीसे छ । समुद्घात अध्यवसाय कायसंवेध कहाव तसु, बीस द्वार ए आय ।। उद्देशक परिमाण । " १०. नगर राजगृह में विषे जाव बर्द वच एम । गोतम भक्ता वीर नों, प्रश्न करें धर प्रेम ॥ १. व्याख्यातं त्रयोविंशं शतम्, अथावसरायातं चतुविशं तस्य चादावेवेदं सर्वोदेशकद्वारसंग्रह 1 (बु० प० ८०५) गाथाद्वयम् - २. १. उबवाय २. परीमाणं, 'उववाय' त्ति नारकादयः कुत उत्पद्यन्ते ? इत्येव - मुपपातो वाच्य: 'परीमाणं' ति ये नारका दिषूत्पत् स्यन्ते तेषां स्वकाये उत्पद्यमानानां परिमाणं वाच्यं ( वृ० प०८०८) २. ३.५. संघ तमेव 'संर्ण' ति तेषामेव नारकादित्पित्सूनां संहनन वाच्यम् 'उच्च' ति नारकादियायिनामवगाहनाप्रमाणं वाच्यम्, (१०००८) ४. ५. संठाणं । ६. लेस्सा ७. दिट्ठी ८ नाणे, अण्णाणे ९. जोग १०. उवओगे || १ || ११ सण्णा १२. कसाय ५. १३. इंदिय, १४. समुग्धाया १५. वेदणा य १६ वेदे य । १७. आउं १८. अज्झवसाणा, ६. १९. अनुबंध२०. काही ||२|| ७. अचाधिकृतास्योरुपरिमाणपरिज्ञानाचे गावामाह( वृ० प०८०९) ८९. जीवपदे जीवपदे, जीवाणं दंडगम्मि उद्देसो । चवीसतिमम्मि सए, चउव्वीसं होंति उद्देसा ॥ ३ ॥ वा० इयं च गाचा पूर्वोक्तद्वारगाथाइवात् क्वचित् पूर्वं दृश्यत इति । (पु०प०८०९) १०. रायगिहे जाव एवं वयासी ० २४, उ० १. ढा० ४१२ ५ Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नरक का अधिकार *जय जय ज्ञान जिनेंद्र नों ।। (ध्र पदं) ११. प्रभु ! नारक किहां थकी ऊपजै? स्यं नारक थी उपजत हो ? जिनेंद्र ! कै तिरि मनु सुर थी हुवै ? जिन भाखै सुण संत हो। मुणिंद्र ! १२. नारक थी नहिं ऊपज, तिथंच थी उपजंत हो । मनुष्य थकी पिण ऊपज, देव थकी नहिं हंत हो ।। १३. जो तिर्यंच थी ऊपजै, स्यूं एकेंद्री थी उपजत हो ? बे.ते. चरिंद्री थी ऊपज, तिथंच पंचेंद्री थी हंत हो? १४. जिन कहै एकेंद्री थी नहिं हुवै, बे.ते. चउरिंद्री थी नांय हो। तिर्यंच पंचेंद्री थकी, नरक विष उपजाय हो । १५. जो तिरि पंचेंद्री थकी, नरक विषे उपजत हो । तो स्यूं सन्नी पं. तिरि थकी, असन्नी पं. तिरि थी हुंत हो ? १६. जिन कहै सन्नी-पंचेंद्री तिर्यंच थी पिण हुंत हो । असन्नी पं. तिरि थी पिण वलि, नरक विषे उपजत हो। ११. नेरइया णं भंते ! कओहितो उववज्जति–कि नेरइएहितो उववज्जति ? तिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति ? मणुस्सेहितो उववज्जति ? देवेहितो उववज्जति ? १२. गोयमा ! नो नेरइएहितो उववज्जति, तिरिक्ख जोणिएहिंतो उववज्जति, मणुस्सेहितो वि उववज्जति नो देवेहिंतो उववज्जति। (श० २४११) १३. जइ तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जति-किं एगिदिय तिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति जाव पंचिदिय तिरिक्खजोणिएहितो उववज्जंति ? १४. गोयमा ! नो एगिदियतिरिक्खजोणिएहितो उव वज्जति, नो बेंदिय, नो तेइंदिय, नो चउरिदिय, पंचिदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति। (श० २४१२) १५. जइ पंचिदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति-कि सण्णिपंचिदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति ? असण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जति ? १६. गोयमा ! सण्णिपंचिदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जंति, असण्णि-पंचिदियतिरिक्खजोणिएहितो वि उववज्जति । (श० २४१३) १७. जइ असण्णिपंचिदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति-कि जलचरेहितो उववज्जति ? थल चरेहितो उववज्जति ? खहचरेहितो उववज्जति ? १८. गोयमा ! जलचरेहिंतो उववज्जति, थलचरेहितो वि उववज्जति, खहवरेहितो वि उववज्जति । (श०२४१४) १९. जइ जलचर-थलचर-खहवरेहितो उववज्जति-कि पज्जत्तएहितो उववज्जति ? अपज्जत्तएहितो उववज्जति ? २०. गोयमा ! पज्जत्तएहितो उववज्जति, नो अपज्जत्तएहितो उववज्जति। (श० २४१५) १७. जो असन्नी-पंचेंद्री-तिर्यच थी, नरक विषे उपजंत हो । तो स्यं जलचर थी ऊपजै, कै थल-खहचर थी हुंत हो ? १८. जिन कहै जलचर पिण मरी, नरक विषे ऊपजेह हो । थलचर मरि पिण ऊपजै, खहचर पिण हुवै तेह हो।। १९. जो जल-थल-खचर थकी, नरक विषे उपजंत हो । स्यूं पर्याप्ता थी ऊपजै, के अपर्याप्ता थो हुंत हो ? २०. जिन कहै पर्याप्तो मरो, ऊपजै नरक मझार हो । अपर्याप्तो नहिं ऊपजे, वलि पूछे गणधार हो । प्रथम नरक में असन्नी तिर्यच पंचेंद्रिय उपजे, तेहनों अधिकार' २१. हे प्रभुजी ! पर्याप्त जे, असन्नी पंचद्री तिरि तेह हो । ऊपजवा जोग्य नरक में, किती पृथ्वी विषे उपजेह हो? २१. पज्जताअसण्णिपंचिदियतिरिक्ख जोणिए णं भंते ! जे भविए नेरइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते ! कतिसु पुढवोसु उववज्जेज्जा? २२. गोयमा ! एगाए रयणप्पभाए पुढवीए उववज्जेज्जा। (श० २४।६) २२. जिन भाखै सुण गोयमा! एक रत्नप्रभा रै माय हो । असन्नी पंचेंद्री तिर्यंच नों पर्याप्तो मरी थाय हो । *लय : धिन-धिन जंबू स्वाम नै १. परि. २, यंत्र १ ६ भगवती जोड़ Jain Education Intemational Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वा०-इहां असन्नी-तियंच-पंचेंद्री रत्नप्रभा में ऊपज, तेहनां नव गमा-- ओधिक नै ओधिक १, ओधिक नै जघन्य २, ओधिक नै उत्कृष्ट ३, जघन्य नै बोधिक ४, जघन्य नै जघन्य ५, जघन्य नै उत्कृष्ट ६, उत्कृष्ट नै ओधिक ७, उत्कृष्ट नै जघन्य ८, उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट ९, ए नव गमक में ओधिक ने ओधिक प्रथम गमो कहै छ ओधिक नै ओधिक' [१] १. उपपात द्वार २३. असन्नी पं. तिरि पर्याप्तो, रत्नप्रभा मैं विषेह हो । नारकपणे ऊपजवा जोग्य जे, किति स्थिति विषे उपजेह हो? २३. पज्जत्ताअसपिणपंचिदियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए रयणप्पभाए पुढवीए नेरइएसु उववज्जित्तए, से ण भंते ! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा ? २४. गोयमा ! जहण्णेणं दसवाससहस्सद्वितीएसु, उक्को सेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागट्टितीएसु उववज्जेज्जा। (श० २४१७) २४. श्री जिन भाखै जघन्य थी, दश सहस्र वर्ष स्थितिकेह हो । उत्कृष्ट पल्योपम तणों, असंख्यातमा भाग विषेह हो ।। २. परिमाण द्वार २५. असन्नी पंचेंद्री तिरियोनिक प्रभ! पर्याप्ता छै जेह हो । एक समय किता ऊपज, रत्नप्रभा नै विषेह हो? २६. श्री जिन भाखै जघन्य थी, एक दोय में तीन हो । उत्कृष्ट संख्याता ऊपजै, अथवा असंख कथीन हो । २५. ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जति? २६. गोयमा! जहण्णेणं एक्को वा दो वा तिणि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेज्जा वा उत्वज्जति । (श० २४१८) २७. तेसि णं भंते ! जीवाणं सरीरगा किसंघयणी पण्णत्ता ? गोयमा ! छेवट्टसंघयणी पण्णत्ता। (श० २४१९) २८. तेसि णं भंते ! जीवाणं केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? २९. गोयमा ! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभार्ग, उक्कोसेणं जोयणसहस्सं। (श० २४.१०) ३. संघयण द्वार २७. स्यूं प्रभु ! ते जीवां तणे, तन संघयणी कहाय हो? श्री जिन भाखै छेवट्ट-संघयणी छै ताय हो ।। ४. अवगाहना द्वार २८. हे प्रभुजी! ते जीवा तणी, किती मोटी काय हो । शरीर तणीं अवगाहना, असन्नी पं. तिरि नी कहाय हो? २९. श्री जिन भाखै जघन्य थी, आंगुल नों अवधार हो । असंख्यातमो भाग छ, उत्कृष्ट योजन हजार हो । ५. संठाण द्वार ३०. हे प्रभु ! ते जीवां तणों, तन नों स्यं संठाण हो? जिन कहै हुंड संठाण छै, ए आकार पिछाण हो । ६. लेश्या द्वार ३१. हे प्रभु ! ते जीवां तणे, कितरी लेश्या होत हो ? जिन कहै त्रिण लेश्या कही, कृष्ण नील कापोत हो । ७. दृष्टि द्वार ३२. हे प्रभुजी ! ते जीवड़ा, स्यूं समदृष्टी होय हो । कै मिथ्यादृष्टी तिके, के समामिथ्यादृष्टी सोय हो ? ३०. तेसि णं भंते ! जीवाणं सरीरगा किसंठिया पण्णत्ता? गोयमा ! हुंडसंठिया पण्णत्ता। (श० २४१११) ३१. तेसि णं भंते ! जीवाणं कति लेस्साओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! तिणि लेस्साओ पण्णत्ताओ, तं जहाकण्हलेस्सा, नीललेस्सा, काउलेस्सा । (श०२४/१२) ३२. ते णं भंते ! जीवा किं सम्मदिट्ठी? मिच्छादिट्ठी सम्मामिच्छादिट्ठी? १. असन्नी तिथंच पंचेंद्रिय नी समुच्चय स्थिति अनं रत्नप्रभा नै विष पिण समुच्चय स्थिति । श० २४, उ०१, ढा०४१२ ७ Jain Education Intemational Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३. गोयमा ! नो सम्मदिट्ठी, मिच्छादिट्ठी, नो सम्मामिच्छादिट्ठी। (श० २४११३) ३३. जिन कहै ते असन्नी-तिरि., समदृष्टी नहिं ताहि हो । मिथ्यादृष्टी तेह छ, समामिथ्यादृष्टी नांहि हो । वा० - इहां पर्याप्ता असन्नी तिर्यच पंचेंद्रिय नीं पूछा छ । ते पर्याप्ता में सास्वादन समदृष्टि न पावं, ते भणी समदृष्टि वरजी दीस छ। ८. ज्ञान-अज्ञान द्वार ३४. स्यं ज्ञानी अज्ञानी तेह छै? जिन कहै ज्ञानी नांय हो । अज्ञानी निश्चै करी, मति श्रुत अनाणी कहाय हो । ९. जोग द्वार ३५. ते मन जोगी स्यूं प्रभु ! के वच काय प्रयोग हो? जिन कहै मन जोगी नहीं, होवै वचन काय जोग हो ।। १०. उपयोग द्वार ३६. ते प्रभुजी ! स्यूं जीवड़ा, सागारोवउत्ता कहाय हो । अणागारोवउत्ता तिके ? जिन कहै दोनूं थाय हो । ११. संज्ञा द्वार ३७. प्रभु ! संज्ञा कती ते जीव रै? जिन कहै संज्ञा च्यार हो। आहार संज्ञा नैं भय संज्ञा, मिथुन परिग्रह धार हो । १२. कषाय द्वार ३८. हे प्रभुजी ! ते जीव रै, केतली कही कषाय हो? जिन कहै च्यार कषाय छै, क्रोधादिक कहिवाय हो । १३. इन्द्रिय द्वार ३९. कति इंद्री प्रभु ! तेहने ? जिन कहै इंद्रिय पंच हो । दाखी धुर श्रोतेंद्रिय, जाव फासेंदिय संच हो । १४. समुद्घात द्वार ४०. प्रभु ! समुद्घात कति तेहन ? जिन भाखै त्रिण हुंत हो । समुद्धात धुर वेदना, कषाय ने मारणंत हो। १५. वेदग द्वार ४१. सातावेदगा ते प्रभु ! के असातावेदग हंत हो ? जिन कहै सातावेदगा, असाता पिण वेदंत हो । १६. वेद द्वार ४२. स्यं प्रभु ! ते स्त्रीवेदगा, के पुरुष नपुंसक सोय हो ? जिन भाखै स्त्री पुं. नहीं, वेद नपुंसक होय हो । १७. स्थिति द्वार ४३. प्रभु ! किता काल नी स्थिति तसु? भाखै जिन गुणिमोड़ हो । अंतर्महुर्त जघन्य थी, उत्कृष्ट पूर्व कोड़ हो । ३४. ते णं भंते ! जीवा किं नाणी? अण्णाणी ? गोयमा ! नो नाणी, अण्णाणी, नियमा दुअण्णाणी, तं जहा मइअण्णाणी य, सुयअण्णाणी य। (श० २४.१४) ३५. ते णं भंते ! जीवा किं मणजोगी? वइजोगी ? कायजोगी? गोयमा ! नो मणजोगी, वइजोगी वि, कायजोगी वि। (श० २४११५) ३६. ते णं भंते ! जीवा किं सागारोवउत्ता? अणा गारोव उत्ता? गोयमा ! सागारोवउत्ता वि अणागारोवउत्ता वि । (श० २४११८) ३७. तेसि णं भंते ! जीवाणं कति सण्णाओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! चत्तारि सण्णाओ पण्णत्ताओ, तं जहाआहारसण्णा, भयसण्णा, मेहुणसण्णा परिग्गहसण्णा। (श० २४।१७) ३८. तेसि णं भंते ! जीवाणं कति कसाया पण्णता? गोयमा ! चत्तारि कसाया पण्णत्ता, तं जहा--- कोहकसाए, माणकसाए, मायाकसाए, लोभकसाए । (श० २४११८) ३९. तेसि णं भंते ! जीवाणं कति इंदिया पण्णत्ता? गोयमा ! पंचेंदिया पण्णत्ता, तं जहा---सोइंदिए जाव फासिदिए। (श० २४११९) ४०. तेसि णं भंते ! जीवाणं कति समुग्घाया पण्णत्ता ? गोयमा ! तओ समुग्घाया पण्णत्ता, तं जहावेयणासमुग्घाए, कसायस मुग्धाए, मारणंतियसमुग्घाए। (श०२४।२०) ४१. ते णं भंते ! जीवा किं सायावेयगा? असाया वेयगा? गोयमा ! सायावेयगा वि, असायावेयगा वि । (श०२४१२१) ४२. ते णं भंते ! जीवा कि इत्थीवेदगा? पूरिसवेदगा? नपुंसगवेदगा? गोयमा! नो इत्थीवेदगा, नो पुरिसवेदगा, नपुंसकवेदगा। (श०२४॥२२) ४३. तेसि णं भंते ! जीवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता? गोयमा! जहष्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुन्वकोडी। (श० २४१२३) ८ भगवती जोड़ Jain Education Intemational ducation Intemational Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८. अध्यवसाय द्वार ४४. प्रभु! अध्यवसाय तसु केतला ? जिन भाखे असंख्यात हो । पसत्य अपसत्य स्यूं प्रभु ! जिन कहै बिहुं आख्यात हो || १९. अनुबंध द्वार ४५. हे प्रभु! ते पर्याप्तो असन्नी काल थकी कितरो अद्धा ? ४६. श्री जिन भाखं जयन्य थी, उत्कृष्ट पूर्व कोड़ है, आयु २०. कायसंवेध द्वार ४७. ते प्रभुजी ! पर्याप्तो असन्नी रत्नप्रभा पृथ्वी विषे ४८. पुनरपि पंचेंद्रिय तियंच हो। नरकपणे रहि संघ हो । पर्याप्तो असन्नी पंचेंद्री तिरि न्हाल हो । इमकेतलो काल सेवे तिको, करें गति आगति कितो काल हो ? ४९. जिन भावे भव आश्रयी, वे भव ग्रहण सुजोय हो । इक भवतिरि पं. असन्नियो, दूजो नारक भव होय हो । सोरठा ५०. मरी नेरइयो सोय, अंतर रहित सन्नीज द्वं । असन्नी न ह्न कोय, ते माटै भव ग्रहण बे ॥ ५१. काल आश्रयी जमन्य यो वर्ष सहस्र वश तास हो । अंतर्मुहूर्त अधिक ही, हिव तसु न्याय विमास ही ॥ सोरठा पंचेंद्री तिर्यच हो । ए अनुबंध सुसंच हो | अंतर्मुह होय हो । जितो अबलोय हो । ५२. वर्ष सहस्र दश वक्क, जघन्य स्थिति नारक तणी । अंतर्मुहुर्त अधिक असन्नी पं. तिरि आउयो । 1 ५२. उत्कृष्ट पत्योपम तणों, असंख्यातमो भाग हो । कोड़ पूर्व वले अधिक ही, हिव तसु न्याय सुमाग हो || वा० -दहा असनो भवे पूर्व को उत्कृष्ट आउदो भोगवी पहिली नरके पल्य के असंख्यातमे भाग नेरइयापण ऊपनो ए बिहुं भव उत्कृष्ट स्थिति नुं काल जाणवूं । २४. सेवे कालज एतलो करें गति आगति तो काल हो । अधिक नैं अधिक गमो दाख्यो प्रथम दयाल हो । वा० इहां ज्ञान अज्ञान द्वार एक गिणियो ते इति अधिक नैं अधिक प्रथम गमक कह्यो । असन्नी-तिर्यंच-पंचेंद्री पर्याप्तो *लय धिन धिन जंबू स्वाम ने माटं बीस द्वार जाणवा । ४४. तेसि णं भंते! जीवाणं केवतिया अज्भवसाणा पण्णत्ता ? गोयमा ! असंखेज्जा अज्भवसाणा पण्णत्ता । ( श० २४/२४) ते णं भंते! कि पसत्था ? अप्पसत्था ? गोयमा ! पसत्था वि, अप्पसत्था वि । ४५. से णं भंते ! (श० २५/२५ ) पाणिपंचिदियतिरिख जोणिति कालो के हो ? ४६. गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुण्वकोडी । ( ० २४/२६) ४७. से गं भते! पञ्चत्तावसणिपंचिदियतिरिकखोजिए रणभार पुढवीए नेरइए, ४८. पुणरवि पञ्जत्तावसपिपिदिपतिरिति केवतियं कालं सेवेज्जा ? केवतियं कालं गतिरागति करेज्जा ? ४९. गोयमा ! भवादेसेणं दो भवग्गणाई, 'दो भवग्गहणाई' ति एकत्रासञ्ज्ञी द्वितीये नारक: ( वृ० प० ८०९ ) ५०. ततो निर्गतः सन्ननन्तरतया सञ्ज्ञित्वमेव लभते न पुनरसमिति ( वृ० ८०९ ) ५१. कालादेसेणं जहणेणं दस वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तमहियाई, ५२ वर्ष नारक जयन्यस्थितिराम्यधिकानि असज्ञिभवसम्बन्धिजघन्यायुः सहितानीत्यर्थः (बु०प०८०९) ५३. उक्कोसेणं पलिओ वमस्स असंबेज्जइभागं पुव्वको डिमन्महि, वा० इह पत्योपमासंख्येयभाग : पूर्वभवासञ्ज्ञनारकोत्कृष्टायुरूपः पूर्व फोटो वायुकृष्टापुष्करूपेति ( वृ० प० ८०९ ) ५४. एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा ॥ १ ॥ ( श० २४/२७ ) श० २४, उ० १, ढा० ४१२ ९ Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समुच्चय ग्रहण कियो । अने प्रथम नरके नेरइयापणे उपजे ते नेरइयो पिण समुच्चय ग्रहण कियो । ए बिहु नी स्थिति निकेवल जघन्यईज ग्रहण न कीधी तथा निकेवल उत्कृष्टईज ग्रहण न कीधी, जघन्य-उत्कृष्ट बेहुं समुच्चय ग्रहण कीधी । तिणसं असन्नी-तियंच-पंचेंद्री अनं नारकी ए बिहं नै ओधिक कह्या । ते माट ओधिक नै ओधिक ए प्रथम गमक कह्यो॥१॥ औधिक ने जघन्य [२] वा०---असन्नी-तिर्यंच-पंचेंद्री नै तो ओधिक जघन्य स्थिति थकी उत्कृष्ट स्थिति लगै ग्रहण ए ओधिक अनै प्रथम नरके नेरइयापण ऊपज ए जघन्य । ते माट ओधिक नै जघन्य-ए द्वितीय गमक बखाणिय छ५५. असन्नी पंचेंद्री तिर्यंच पर्याप्तो-रत्नप्रभा में तेह हो । जघन्य काल स्थिति में विषे, ऊपजवा जोग्य नेरइयापणेह हो ।। ५६. ते कितै काल स्थितिक विषे ऊपजै ? जिन कहै जघन्य विमास हो । ऊपजै दश सहस्र वर्ष स्थिति विषे, उत्कृष्ट पिण दश सहस्र वास हो। ५७. ते एक समय किता ऊपजै? इम वक्तव्यता सह एह हो । __भणवी पूर्वली परै, यावत अनुबंध लेह हो । ५५. पज्जत्ताअसण्णिपंचिदियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए जहण्णकालद्वितीएसु रयणप्पभापुढविनेरइएसु उववज्जित्तए, ५६. से णं भंते ! केवइकालद्वितीएसु उववज्जेज्जा? गोयमा ! जहणेणं दसवाससहस्सद्वितीएसु, उक्कोसेण वि दसवाससहस्सद्वितीएसु उववज्जेजा। (श० २४।२८) ५७. ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? एवं सच्चेव वत्तव्वया निरवसेसा भाणियब्बा जाव अणुबंधो त्ति । (श०२४।२९) ५८. से णं भंते ! पज्जत्ताअसण्णिपंचिदियतिरिक्खजोणिए जहण्णकालद्वितीयरयणप्पभापुढविनेरइए, ५९. पुणरवि पज्जत्ताअसण्णिपंचिदियतिरिक्खजोणिएत्ति केवतियं कालं सेवेज्जा? केवतियं कालं गतिरागति करेज्जा? ६०. गोयमा ! भवादेसेणं दो भवग्गहणाई, ५८. असन्नी पंचेंद्रि तिर्यंच पर्याप्तो, रत्नप्रभा रै विषेह हो । ऊपजी ते नारकपणे, जघन्य स्थिति भोगवी जेह हो ।। ५९. वलि असन्नी तिर्यंच पंचेंद्रि हुवै, सेवै केतलो काल हो । केतला काल लगै वली, करै गति आगति ते बाल हो? ६१. कालादेसेणं जहाणेणं दसवाससहस्साई अंतोमुहत्त मब्भहियाई, ६०. जिन भाखै भव आश्रयी, बे भव ग्रहण संभाल हो । धुर भव असन्नी पं. तिरि तणों, द्वितीय नारक भव न्हाल हो। ६१. काल आश्रयी जघन्य थी, दश सहस्र वर्ष कहिवाय हो । अंतर्महुर्त अधिक ही, बिहुं भव अद्धा न्याय हो । सोरठा ६२. असन्नी पं. तिर्यंच, अंतर्महत स्थिति तस् । नारक भवेज संच, स्थिति सहस्र दश वर्ष ही। ६३. *उत्कृष्टो अद्धा इतो, पूर्व कोड़ पिछाण हो। वर्ष सहस्र दश अधिक ही, बिहु भव नां ए जाण हो। ६३. उक्कोसेणं पुवकोडी दसहिं वाससहस्सेहिं अन्भहिया, सोरठा ६४. असन्नी पं. तिथंच, उत्कृष्ट पूर्व कोड़ वर्ष । नारक भव नों संच, वर्ष सहस्र दश अधिक ही।। ६५. *सेवै कालज एतलो, करै गति आगति इतो काल हो। ओधिक नै वली जघन्य ही, द्वितीय गमक ए भाल हो । *लय : धिन-धिन जंबू स्वाम नै ६५. एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा ॥२॥ (श० २४१३०) १० भगवती जोड Jain Education Intemational Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओधिक ने उत्कृष्ट (३) वा० - असन्नी तिर्यंच पंचेंद्री नों तो जघन्य अने उत्कृष्ट ए बिहुं आउखो ग्रहण कीधो ते अधिक अने रत्नप्रभा नैं विषे उत्कृष्ट आउखे नेरइयापण ऊपनो ते उत्कृष्ट, ते मार्ट अधिक उत्कृष्ट - ए तृतीय गमक बखाणियै छे६६. असन्नी तिर्यच पंचेंद्री पर्याप्तो रत्नप्रभा में तेह हो । उत्कृष्ट काल स्थितिक विषे, ऊपजवा योग्य नेरइयापणेह हो । ६७. प्रभु ! कि काल स्थितिक ते उपजे ? जिन कहै अपन्य थी तेह हो । पत्य नों भान असंख्यातो ते स्थितिक विषे उपजेह हो । ६८. उत्कृष्ट भी पिण पल्प तणों, असंख्यातमो भाग हो । तेह स्थितिक विषे अपने ए जिन वचन सुमाग हो । ६९. हे प्रभुजी ! ते जीवड़ा, एक समय किता उपजेह हो ? अवशेष तिमज कहियो सहु यावत अनुबंध लेह हो । कावसंवेध द्वार ७०. असन्नी पंचेंद्री तिरि पर्याप्तो रत्नप्रभा में तेह हो । नेरइयापण ऊपजी करी, उत्कृष्ट स्थिति भोगवेह हो || ७१. वलि असन्नी पं. तिरि पर्याप्त हुवै, जव गति आगति कितो काल हो ? जिन भाखे भव आश्रयी, वे भव ग्रहण संभाल हो । ७२. काल आश्रयी जघन्य थी, पप न भाग असंख्यातमो ७३. नारक भवनों न्हाल, असन्नी पं. तिरि काल, सोरठा भाग असंखिज पल्य तणों । अंतर्मुहूर्त अधिक ही ॥ बिहुं भवनों कहिवाय हो । अंतर्मुहुर्त अधिकार हो । ७४. *अद्धा उत्कृष्ट पस्व तणों, असंख्यातम भाग हो । पूर्व कोज अधिक हो, बिभव अद्धा माग हो । ७५. नारक भवनों न्हाल, असन्नी पं. तिरि काल, ७६. *सेव कालज एतलो, करै ओधिक नैं उत्कृष्ट हो, सोरठा भाग असंखिज पल्य तणों । अधिक कोड़ पूर्व इहो । गति आगति इतो काल हो । तृतीय गमक एभाल हो ॥ अधिक [४] जघन्य ने वा - असन्नी-तिर्यंच-पंचेंद्रि नों तो जघन्य स्थिति काल ए जघन्य अ नरक ने विषे ते जघन्य उत्कृष्ट स्थितिक काल नै विषे ऊपजै, ए नरक नो ओधिक ए च उथो गमक बखाणिय छे -- *लय : धिन धिन जंबू स्वाम नं ६६. चिदियतिरिक्खजोपिए पंजे भनिए रणभापुढविनेरइएसु उक्साए उत्तिए ६७. से गं मते गोवमा ! द्वितीएसु, केवतिकालद्वितीएस उववज्जेज्जा ? होणं पतिबोवमस्स असंसेज्जभाग ६८. उस्को विपतिओवमरस असंज्जभाग द्विती उववज्जेज्जा | (४० २४।३१) ६९. ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति ? अवसेसं तं चेब जाव अणुबंधो । (२४३२) ७०. से णं भंते ! पज्जत्ता असण्णिपचिदियतिरिक्खजोणिए उक्कोसकाल द्वितीय रयणप्पभापुढविनेरइए, ७१. पुणरवि पज्जत्ताअस णिपंचिदियतिरिक्खजोणिएत्ति केवतियं कालं सेवेज्जा ? केवतियं कालं गतिरागति करेज्जा ? योमा] [भवादेसेणं दो भवम्हगाई, ७२. देणं जहणणं पतिजीवमस्स अवेज्जइभाग अंतोन्महि 1 ७४. उपोगं पतिमस्स को मन्महि । ७६. एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा ॥३॥ (श. २४ / २३) श० २४, उ०१, ढा० ४१२ ११ Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७. असन्नी पंचेंद्री तिर्वच पर्याप्तो जघन्य आयुक्त जेह हो । रत्नप्रभा पृथ्वी विषे उपजवा जोग्य नेरइयापणेह हो । ७८. ते किते काल स्थितिक विषे उपजे ? जिन कहै जघन्य सुइष्ट हो । वर्ष सहस्र दश स्थितिक विषे, ७९. हे प्रभुजी ! ते जीवड़ा, इत्यादिक जे सर्व ही, पल्य नें असंख भाग उत्कृष्ट हो ।। एक समय किता उपजेह हो । तिमहिज कहिवो तेह हो ॥ नाणत्ता ८०. णवरं ए त्रिण णाणत्ता, तीन द्वार में फेर हो । आयु अध्यवसाय अनुबंध ही, जूजुओ आगल हेर हो । ६१. असन्नी पंचेंद्री तिरि पर्याप्तो ते जघन्य स्थितिक कहिवाय हो । ते रत्नप्रभा में ऊपजे, त्रिण णाणत्ता तिरि भव पाय हो । नाणता (१) ८२. तुर्य गमक तिण कारणें, जघन्यायु अंतर्मुहूर्त हो, नाणत्ता (२) २. हे प्रभु! ते असन्नी तणां, केतवा अध्यवसाय हो ? श्री जिन भासे असंख ही अध्यवसाय कहाय हो । ८४. स्यूं अध्यवसाय तेनां, भला अथवा मूंडा ताय हो ? जिन भाखे नहि छै भला, अपसत्थ अध्यवसाय हो || सोरठा असन्नी पं. तिरि नुं इष्ट हो । अंतर्मुहूर्त्त उत्कृष्ट हो || ८५. अध्यवसायज स्थान, अपसत्थ तेहनां आखिया । अंतर्मुहूर्त जान, तेहनीं स्थिति तिण कारणे ।। ८६. जघन्यायु तिरि ताय, । नरक ऊपजवा जोग्य जे । अपसत्थ अध्यवसाय, पिण भला न आवे तेहनां ।। ८७. दीर्घ स्थिति जसु होय, असन्नी पं. तिरि पज्जत नीं । भला बुरा पिण जोय, काल बहु तिण कारणे ॥ तिण कारण अवलोय, अपसत्थ अध्यवसाय नों । द्वितीय णाणत्तो होय, जघन्य स्थितिक पं. तिरि विषे ।। नाणत्ता (३) ८९. अनुबंध अंतर्मुहुर्त ही आख्यो तीजो णाणत्तो, * लय : घिन घिन जंबू स्वाम नं १२ भगवती जोड़ आयु तितोइज चाय हो । शेष तिमज कहिवाय हो । ७७. जन्मकालद्वतीयपज्जता असनियंचिदियतिरिक्तजोगिए णं भते । ७८. से जे भविए रयणप्पधापुढविनेरइए उपवज्जित्तए । भंते! मेतियकालद्वितीएस उववा? गोयमा ! जहणणं दसवारासह द्वितीएसु. उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागट्टितीएसु उववज्जेज्जा । ( श० २४ | ३४ ) ७९. ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति ? सेसं तं चेव । ८०. नवरं इमाई तिण्णि अभवसाणा, अणुबंधो य । नाणत्ताई- आउं ८२. जहणेणं ठिती अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं । (१० २४।३५) ८३. तेसि णं भंते ! जीवाणं केवतिया अज्भवसाणा पण्णत्ता ? गोयमा ! असंखेज्जा अज्झवसाणा पण्णत्ता । (UTO PRIDE) ८४. ते णं भंते ! कि पसत्था ? अप्पसत्था ? गोयमा ! नो पसत्था, अप्पसत्था । ८५,८६. अध्यवसायस्थानान्य प्रशस्तान्येवान्तर्मुहूत्तंस्थितिकत्वात् । ( वृ. प. ८०९ ) ८७. दीर्घस्थितेहि तस्य द्विविधान्यपि तानि संभवन्ति कालस्य बहुत्वात् । (बु.प. ००९) ८९. अणुबंधो अंतोमुहृत्तं, सेसं तं चैव । ( श० २४/३७ ) Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९०,९१. से ण भंते ! जहण्णकालद्वितीयपज्जत्ताअसण्णि पंचिदियतिरिक्खजोणिए रयणप्पभाए जाव गतिरागति करेज्जा! गोयमा ! भवादेसेणं दो भवग्गहणाई। कायसंवेध द्वार ९०. जघन्य काल स्थितिक पर्याप्तो, __तिरि असन्नी पंचेंद्रि तेह हो । रत्नप्रभा में ऊपजी, आयु भोगवी नरकपणेह हो । ९१. वलि असन्नी पंचेंद्रि तिर्यंच ह, जाव गति आगति कितो काल हो ? जिन भाखै भव आश्रयी, बे भव ग्रहण निहाल हो ।। ९२. काल आश्रयी जघन्य थी, वर्ष सहस्र दश जन्य हो । अंतर्महर्त अधिक ही, बे भव काल जघन्य हो । सोरठा ९३. वर्ष दश सहस्र हजार, अद्धा नारक भव तणों । अंतर्मुहुर्त धार, पर्याप्त असन्नी पं. तिरि ।। ९४. *उत्कृष्ट पल्योपम तणों, असंख्यातमो भाग हो। अंतर्मुहूर्त अधिक ही, उत्कृष्ट अद्धा माग हो ।। ९५. सेवै कालज एतलो, करै गति आगति इतो काल हो। जघन्य अनें ओधिक गमक, दाख्यो तुर्य दयाल हो। ९२. कालादेसेणं जहण्णेणं दसवाससहस्साइं अंतीमुहत्त मन्भहियाई। ९४, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागं अंतोमुहत्त मन्भहियं । ९५. एवतियं काल सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा ४। (श० २४१३८) जघन्य नै जघन्य [५] वा०--असन्नी तियं च पंचेंद्री नों आउखो जघन्य अनै नरक नै विषे जघन्य आउखे ऊपज ते माट जघन्य अन जघन्य-ए पंचमो गमक बखाणिय छ९६. असन्नी पंचेंद्रिय तिर्यंच पर्याप्तो, जघन्य आयुवंत जेह हो। ऊपजवा जोग्य रत्नप्रभा विषे, जघन्यस्थितिक नेरइयापणेह हो । ९७. प्रभु ! कितै काल स्थितिक विषे ऊपज ? जिन कहै जघन्य विमास हो। ऊपजै दश सहस्र वर्ष स्थिति विषे, उत्कृष्ट पिण दश सहस्र वास हो । ९८. एक समय किता ऊपजै? शेष तिमज कहिवाय हो । त्रिण णाणत्ता पूर्वली परै, आयु अनुबंध अध्यवसाय हो।। कायसंवेध द्वार ९९. जाव ते प्रभु ! जघन्य स्थिति नों धणी, पर्याप्तो असन्नी पं. तिथंच हो । रत्नप्रभा जघन्य स्थिति नारके, आयु भोगवनै संच हो । १००. वलि असन्नी पं. तिरि पर्याप्तो, किता काल गतागति तास हो? जिन भाखै भव आश्रयी, बे भव ग्रहण विमास हो ।। वा०-एवं जघन्य स्थितिक तं जघन्य स्थितिकेषु तेषूत्पादयन्नाह (व.प. ८०९) ९६. जहण्णकालद्वितीयपज्जत्ताअसण्णिपंचिदियतिरिक्ख जोणिए णं भंते ! जे भविए जहण्णकालट्ठितीएसु रयणप्पभापुढवि नेरइएसु उववज्जित्तए। ९७. से णं भंते ! केवतियकालद्वितीएस उववज्जेज्जा ? गोयमा ! जहण्णणं दसवाससहस्सद्वितीएसु, उक्कोसेण वि दसवाससहस्सद्वितीएसु उववज्जेज्जा। (श० २४१३९) ९८. ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जति ? सेसं तं चेव, ताई चेव तिण्णि नाणत्ताई। ९९,१००. जाव (श० २४१४०) से णं भंते ! जहण्णकालट्ठितीयपज्जत्ताअसण्णिपंचिदियतिरिक्खजोणिए जहण्णकालट्ठितीयरयणप्पभापुढविनेरइए पुणरवि जाव गतिरागति करेजा ? गोयमा ! भवादेसेणं दो भवग्गहणाई। *लय : धिन-धिन जंबू स्वाम ने श० २४, उ०१, ढा०४१२ १३ Jain Education Intemational cation International Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वा०-एक पर्याप्तो असन्नी तिथंच पंचेंद्री नों भव अन दूजो नारकी नों भव-ए बे भव कह्या । पिण नरक थकी नीकल असन्नी पंचेंद्री तिथंच न हुदै, तिणसूं तीजो भव न कह्यो। १०१. काल आश्रयी जघन्य थी, वर्ष सहस्र दश जन्य हो। अंतर्मुहर्त अधिक ही, पंचम गमे काल जघन्य हो ।। १०२. काल थकी उत्कृष्ट पिण, वर्ष सहस्र दस तास हो। अंतर्मुहर्त अधिक ही, बिहं भव काल विमास हो ।। १०३. सेवै कालज एतलो, इतो काल गतागति होय हो। जघन्य अने वलि जघन्य ही, ए गमो पंचमो जोय हो ।। सोरठा १०४. जघन्य स्थिति पर्याप्त, असन्नी पं. तिथंच ए। धुर नरके पिण प्राप्त, जघन्य स्थिति नारकपणे ।। १०५. बिहुं भव स्थिति जघन्य, पंचम गमा विषे कही। ते माटै इहां जन्य, जघन्योत्कृष्टज तुल्य अद्धा ।। १०१. कालादेसेणं जहण्णेणं दसवाससहस्साई अंतोमुहुत्त मन्भहियाई। १०२. उक्कोसेण वि दसवाससहस्साई अंतोमुहुत्त मन्भहियाई। १०३. एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा ५। (श० २४०४१) - लेवव्या, याशिव का अविरमा जघन्य नै उत्कृष्ट [६] वा.--असन्नी तिर्यंच पंचेंद्री पर्याप्ता नों जघन्य आउखो अनै रत्नप्रभा नै विर्ष उत्कृष्ट आउखै ऊपजे, ते माटे जघन्य नै उत्कृष्ट-ए छठो गमक बखाणिय वा० एवं जघन्यस्थितिकं तमुत्कृष्टस्थितिषुतेषूत्पादयन्नाह (वृ.प. ८०९) १०६. *असन्नी पंचेंद्रि तिथंच पर्याप्तो, जघन्य आयवंत जेह हो । ऊपजवा जोग्य रत्नप्रभा विषे, स्थिति उत्कृष्ट नेरइयापणेह हो।। १०७. ते कितै काल स्थितिक विषे ऊपजे? जिन कहै जघन्य विमास हो। पल्य नों भाग असंख्यातमो, उत्कृष्ट पिण इतरो इज तास हो। १०६. जहण्णकालद्वितीयपज्जत्ताअसण्णिपंचिदियतिरिक्ख जोणिए णं भंते ! जे भविए उक्कोस कालद्वितीएस रयणप्पभापुढवि-नेरइएसु उववज्जित्तए। १०७. से णं भंते ! केवतियकालद्वितीएस उववज्जेज्जा ? गोयमा ! जहण्णेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागद्वितीएस, उक्कोसेण वि पलिओवमस्स असंखेज्जइ भागट्ठितीएसु उववज्जेज्जा। __ (श. २४॥४२) १०८. ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जति ? अवसेसं तं चेव, ताई चेव तिण्णि नाणत्ताई। १०८. प्रभु ! एक समय किता ऊपजै ? अवशेष तिमज कहिवाय हो। पूर्ववत त्रिण णाणत्ता, आयु अनुबंध अध्यवसाय हो ।। कायसंवेध १०९. जाव हे प्रभु ! जघन्य स्थितिक तिको, पर्याप्त असन्नी पं. तिथंच हो । रत्नप्रभा उत्कृष्ट स्थिति नारके, आयु भोगवनें संच हो ।। ११०. वलि असन्नी पं. तिरि पर्याप्तो, कितो काल गतागति तास हो ? जिन भाखै भव आश्रयी, बे भव ग्रहण विमास हो। *लय : धिन-धिन जंबू स्वाम ने १०९,११०. जाव (श० २४।४३) से णं भंते ! जहण्णकालद्वितीयपज्जत्ताअसण्णिपंचिदियतिरिक्खजोणिए उक्कोसकालद्वितीयरयणप्पभाए जाव गतिरागति करेज्जा? गोयमा ! भवादेसेणं दो भवग्गहणाई। १४ भगवती जोड़ Jain Education Intermational Jain Education Intemational Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १११. काल आश्रयी जघन्य थी, पल्य नों असंख्यातमो भाग हो । अंतर्मुहुर्त अधिक ही, उत्कृष्ट पिन इतोइज माग हो । ११२. सेवै कालज एतलो, गतागति करे इतो जघन्य अने उत्कृष्ट गमो षष्टम दाख्यो उत्कृष्ट ने अधिक [७] वा० - असन्नी पंचेद्री तियंच पर्याप्ता नों उत्कृष्ट आउखो अने पहिली नरके अधिक आउखे नेरइयापर्णं उपनों ते मार्ट उत्कृष्ट अने अधिकए सातों गमक बखाणियै छ ११३. असन्नी पंचेंद्री तियंच पर्याप्तो, उत्कृष्ट स्थितिके जेह हो । ते रत्नप्रभा पृथ्वी विषे, ऊपजवा जोग्य नेरइयापणेह हो । ११४. ते कितै काल स्थितिक विषे ऊपजै ? जिन कई जघन्य सुमाग हो। दश सहस्र वर्ष स्थितिक विधे काल हो । दयाल हो । उत्कृष्ट पल्य नों असंखिज भाग हो । ११५. तिके एक समय किता ऊपजै ? अवशेष बोल सुजोय हो । जिम अधिक गमक विषे का, तिमहिज जाणवी सोय हो । ११६. व एहिं स्थानके, नानात्व कहितां भेद हो । कहियै बे तसु णाणत्ता, स्थिति अनुबंध संवेद हो । ११७. स्थिति आउखो जघन्य थी, पूर्व कोड़ कहाय हो । पूर्व कोड़ उत्कृष्ट पिण, अनुबंध पिण इम थाय हो । ११८. आयु ने अनुबंध विना, शेष सर्व ही बोल हो। अधिक प्रथम गमक विषे तिमहिज कहिवा तोल हो ॥ कायसंवेध द्वार ११९. हे प्रभु! उत्कृष्ट स्थितिक ते, पर्याप्त असन्नी पं. तिच हो । रत्नप्रभा में नेरइयापणे, आयु भोगवनें संच हो || १२०. बलि असन्नी तियंच पंचेंद्री हुवे, जाव गति आगति कितो काल हो ? जिन भाखं भव जाश्रयी, वे भव ग्रहण संभाल हो । १२१. काल आश्रयी जपन्य थी, बिहु भवनों कहिवाय हो । पूर्व कोड़ पिछाणियै, दश सहस्र वर्ष अधिकाय हो || सोरठा १२२. पूर्व कोड़ पिछाण, असन्नी पं. तिरि आउखो । वर्ष सहस्र दश जाण, पुर नरके नारक तणें । १२३. *अद्धा उत्कृष्ट पत्थ , तणों, असंख्यातमो भाग हो । कोड़ पूर्व अधिको वली, बिहुं भव अद्धा माग हो ॥ *लय : धिन धिन जंबू स्वाम ने १११. कला जपेगं पनिञोदमस्त अससेजमा तोमुहुत्तमधहि उक्कोसेण वि पतिमोक्मस्थ असंखेज्जइभागं अंतोमुहुत्तमम्भहियं । ११२. एका सेवा, एवतियं का मतिराति करेज्जा ६ । (४० २४८४४) वा०- एवमुत्कृष्टस्थितिकं तं सामान्येषु तेषूत्पादवन्नाह (बु.प. ९०९) ११२. उक्कोसकालीयपन्नत्तासपिपिदियतिरिखजोणिए णं भंते ! जे भविए रयणप्पभापुढविनेरइएसु उत्त ११४. से णं भंते! केवतियकाल द्वितीएसु उववज्जेज्जा ? गोयमा ! जहणणं दसवाससीए. उनकोसे पलिओवमस्स असंखेज्जइभाग ट्टितीएसु उववज्जेज्जा । (श० २४/४५ ) ११५. ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति ? अवसेसं जहेव ओहियगमएणं तहेव अणुगंतव्वं, ११६. नवरं इमाई दोणि नाणत्ताई ११५. ठिती जहणेणं पुव्वकोडी, उक्कोसेण वि पुग्वकोडी एवं अणुबंधी वि 1 ११८. अवसेसं तं चेव । (४० २४९४६) ११९,१२०. से णं भंते ! उक्कोसकालद्वितीयपज्जत्ताअसण्णिपंचिदियतिरिक्खजोणिए रयणप्पभाए जाव गतिरागति करेज्जा ? गोलमा ! भनादेसेणं दो भवनगाई, १२१. कालादेसेणं जहण्णेणं पुव्वकोडी दसह वाससहस्से हि अमहिया, १२३. उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइ भागं पुव्वकोडीए अब्भहियं, श० २४, उ० १. ढा० ४१२ १५ Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४. पल्य तणों पहिछाण, असंख्पातमो भाग जे । नारक आयू जाण, असन्नी पं. तिरि कोड़ पुब्व ॥ सोरठा 3 १२५. "सेवं कालज एतलो करें गति आगति इतो काल हो । उत्कृष्ट ओघिक, सप्तम गमक निहाल हो || उत्कृष्ट ने जघन्य [ 5 ] वा०--ते असन्नी पंचेंद्री तियंच पर्याप्ता नों उत्कृष्ट आउखो ए उत्कृष्ट अने ते प्रथम नरके जघन्य आउखे नेरइयापण ऊपनों ए जघन्य ते मार्ट उत्कृष्ट भने जघन्य - ए अष्टम गमक बखाणियै छं १२६. असन्नी पंचेंद्री तिथंच पर्याप्तो, उत्कृष्ट स्थितिक जेह हो । जघन्य स्थिति रत्नप्रभा नें विषे, ऊपजवा योग्य नेरइयापणेह हो । १२७. ते कितै काल स्थितिक विषे ऊपजै ? दश सहस्र वर्ष स्थितिक विषे, जिन कहे जघन्य विमास हो । उत्कृष्ट पिण दश सहस्र वास हो ।। १२८. ते एक समय किता ऊपजे ? शेष तिमज कहिवाय हो । गमक सातमा जिम सहु, जाव कायसंवेध हिव आय हो । कायसंवेध द्वार १२९. हे प्रभु! उत्कृष्ट स्थितिक ते पर्याप्त असनी पं. तिर्यंच हो। रत्नप्रभा में नेरइयापर्णं, जघन्य आयु भोगवनें संच हो । १३०. वलि असन्नी तिथंच पंचेंद्री हुवै, जाव गति भागति कितो काल हो ? जिन भाखे भव आश्रयी, वे भव ग्रहण संभाल हो । १३१. काल आधयो जघन्य थी, पूर्व कोड़ पिछाण हो । वर्ष सहस्र दश अधिक ही, उत्कृष्ट मि इतो जाण हो । आश्रयी सोरठा १३२. पूर्व कोड़ सुपेख, असन्नी पं. तिरि आउखो। वर्ष सहस्र दश देख, रत्नप्रभा नारकपणें ॥ १३३. *सेवे कालज एतलो, जाव गति आगति इतो काल हो । उत्कृष्ट ने वलि जघन्य ही, अष्टम गमक निहाल हो ॥ *लय : धिन धिन जंबू स्वाम ने १६ भगवती जोड़ उत्कृष्ट ने उत्कृष्ट [] -- वा० - उत्कृष्ट आउखावंत असन्नी पंचेंद्री तिर्यंच पर्याप्तो ते प्रथम नरके उत्कृष्ट आउखे नेरइयापण ऊपजे, ते मार्ट उत्कृष्ट ने उत्कृष्ट - ए नवमो गमक बखाणिये छे १२५. एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा ७ । ( श० २४/४७ ) बा० एवमुत्कृष्टस्थितिक तं तेषूत्पादयन्नाह जपन्यस्थितिकेषु ( वृ० प० ८०८) १२६. उनको कालद्वतीयपञ्च सामणिचिदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! जे भविए जहणकाल - द्वितीएसु रयणप्पभापुढविनेरइएस उववज्जित्तए, १२७. से णं भंते! केवतियकाल द्वितीएस उववज्जेज्जा ? गोयमा ! जहणेणं दसवाससहस्सट्टितीएसु, उक्कोसेण वि दसवास सहस्सट्ठितीएस उववज्जेज्जा । (श० २४ | ४८ ) १२८. ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति ? सेसं तं चेव, जहा सत्तमगमए जाव( श० २४/४९ ) १२९,१३०. से णं भंते! उक्कोसकालद्वितीयपज्जत्ताअस ष्णिपंचिदियतिरिक्खजोणिए जहण्णकालद्वितीयरयणप्पभाए जाव गतिरागति करेज्जा ? गोपमा ! भवादेसेणं दो भाई १३१. कालादेसेणं जगणं पुष्पकोडी दसह वासहस्सेह अमहिया, उनको वि पुण्यकोटी स वाससहस्सेहि अमहिया, १३३. एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा ८ । (२०२४।२०) वा० एवमुत्कृष्टरितत्वादयन्नाह ( वृ० प० ८०९ ) Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३४. असन्नी पंचेंद्री तिर्यंच पर्याप्तो, उत्कृष्ट स्थितिक जेह हो। स्थिति उत्कृष्ट रत्नप्रभा विषे, ऊपजवा जोग्य नेरइयापणेह हो । १३५. ते कितै काल स्थितिक विषे ऊपजै? __ जिन कहै जघन्य पिछाण हो। पल्य नां असंख भाग स्थितिक विषे, उत्कृष्ट पिण इतोइज जाण हो ।। १३६. हे भगवंत ! ते जीवड़ा, एक समय किता उपजेह हो ? शेष सहु कहिवो इहां, गम सातमा नी पर एह हो ।। १३४. उक्कोस कालद्वितीयपज्जत्ताअसण्णिपंचिदियतिरिक्ख जोणिए णं भंते ! जे भविए उक्कोसकालद्वितीएसु रयणप्पभापुढविनेरइएसु उववज्जित्तए, . १३५. से णं भंते ! केवतियकालद्वितीएसु उववज्जेज्जा ? गोयमा ! जहाणेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागद्वितीएसु, उक्कोसेण वि पलिओवमस्स' असंखेज्जइ भागट्टितीएसु उववज्जेज्जा। (श० २४१५१) १३६. ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति ? सेसं जहा सत्तमगमए जाव (श० २४१५२) १३७,१३८. से णं भते! उक्कोस कालद्वितीयपज्जत्ता असण्णिपंचिदियतिरिक्खजोणिए उक्कोसकालद्वितीयरयणप्पभाए जाव गतिरागति करेज्जा ? गोयमा ! भवादेसेणं दो भवग्गहणाई, १३७. हे प्रभु ! उत्कृष्ट स्थितिक ते, पर्याप्त असन्नी पं. तिथंच हो। रत्नप्रभा में नेरइयापणे, उत्कृष्ट आय भोगवनै संच हो।। १३८. वलि असन्नी तिर्यंच पंचेंद्री है, जाव गति आगति कितो काल हो ? जिन भाखै भव आश्रयो, बे भव ग्रहण निहाल हो ।। कायसंवेध द्वार १३९. वलि काल आश्रयी जघन्य थी, पल्य नों असंख्यातमो भाग हो। कोड़ पूर्व अधिको वली, उत्कृष्टो पिण इतोइज माग हो ।। १३९. कालादेसेणं जहण्णेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभाग पुवकोडीए अब्भहियं, उक्कोसेण वि पलिओवमस्स असंखेज्जइभागं पुवकोडीए अब्भहियं, सोरठा १४०. नारक आयू जाण, असंख्यातमो भाग जे । पल्य तणों पहिछाण, असन्नी पं. तिरि कोड़ पुव्व ।। १४१. बिहुं भव स्थिति उत्कृष्ट, नवमा गमक विषे कही। ते माटै इहां इष्ट, तुल्य काल जघन्योत्कृष्ट ।। १४२. *सेवै कालज एतलो, करै गतागति इतो काल हो । उत्कृष्ट ने उत्कृष्ट ही, नवम गमक ए न्हाल हो । १४३. ओघिक नां धुर त्रिण गमा, जघन्य काल स्थितिक विषे तीन हो। तीन उत्कृष्ट स्थितिक विषे, ए सहु नब गमका चीन हो ।। १४२. एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा ९। १४३. एवं एते ओहिया तिण्णि गमगा, जहण्णकाल द्वितीएसु तिण्णि गमगा, उक्कोसकाल द्वितीएसु तिण्णि गमगा सव्वेते नव गमगा भवंति। (श० २४१५३) सोरठा १४४. मध्यम गमका तीन, तेह जघनिया जाणवा । तेह विषे इम लीन, तीन णाणत्ता आखिया । १४५. जघन्य अनें उत्कृष्ट, अंतर्मुहूर्त आउखो। इतोज अनुबंध इष्ट, अपसत्थ अध्यवसाय तसु ।। १४६. सप्तम अष्टम नवम, एह तीन उत्कृष्ट गम । ते विषे अवगम, दोय णाणत्ता एहनां ।। *लय : धिन-धिन जबू स्वाम ने ० २४, उ० १, ढा० ४१२ १७ Jain Education Intemational Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४७. जघन्य अ उत्कृष्ट, पूर्व कोड़ज आउखो । इतोज अनुबंध इष्ट चरम तीन गमा विषे || १४. "असन्नी पंचेंद्री तिर्यच पर्याप्तो रत्नप्रभा में जाय हो । विस्तार आयो तेहनों, हिवं सन्नो पं. तिरि कहिवाय हो । १४९. शत चउवीसम धुर देश ए, व्यारसी ने बारमीं ढाल हो । भिक्षु भारीमाल ऋषिराम थो, 'जय जय' मंगलमाल हो । ढाल : ४१३ हा १. जो सन्नी पंचेंद्रिय तिर मरि नरके जाय । स्यूं संख वर्ष आयु थकी, कै असंख वर्ष थी थाय ? उपपात ।। गोयमा ! वर्षायु संख्यात । नरक विषे सन्नी-तिरि पंचेंद्रिय ताय । नरक विषे नहि ऊअपने तेह युगल सुर ३. पिण असंख वर्षायु बाय ।। 1 नरक में ४. वर्षायू संख्यात जो, जाव स्यूं जल बल थी ऊपजे के २. जिन भाखे सुण सन्नी पं. तिर्यंच थी, लेचर थी नरक विषे ५. जिन भावे जलचर थकी जिम असन्नीनों आखियो, ६. यावत पर्याप्ता थकी नरक विधे कहिवूं तिम अपजत चकी न ऊपजे, जाय । बाय ? उपपात । अवदात || उपपात । वलि शिष्य पूछे बात । + सन्नी तिथंच नारक नव गमका ।। सन्नो पंचेंद्री तिर्यंचो । नेरइयापर्णेज संचो ।। ७. पर्याप्त संख्यात वर्ष आयुष जे, ऊपजवा जोग्य नरक विषे जे ८. प्रभु ! केतली पृथ्वी विषे ते अपने ? जिन कहै सातूं मांह्यो । रत्नप्रभा ने आदि देई में, जाव सप्तमी जायो । प्रथम नरक में संख्याता वर्ष नों सन्नी तियंच पंचेंद्रिय ऊपजं, तेहनों अधिकार' ओधिक नैं अधिक [१] ९. ते पज्जत संख्यात वर्षायुष प्रभुजी ! सन्नी पंचेंद्री तियंचो ऊपजवा जोग्य रत्नप्रभा नां, नारक नैं विषे संचो ॥ * लय : धिन धिन जम्बू स्वाम नं लय: पर नारी नो संग न कीजं १. परि० २ यंत्र २ १८ भगवती जोड़ १४० एवं तावदसञ्ज्ञिन: पञ्चेन्द्रियतिरश्चो नारकेषूत्पादो नवघोक्तः, अथ सञ्ज्ञिनस्तस्यैव तथैव तमाह( वृ० प० ८०९ ) १. जसपिचिदितिखिनोभितो उ किं संखेज्जवासाउयस ण्णिपंचिदियतिरिक्खजोणिएहितोपति ? अवेज्जवासाज्यमणिपंचिदियतिरिक्जोएहितो ति २. गोयमा ! संखेज्जवासाउयस णिपंचिदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति, ३. नोवाचिदयतिरिखजोषिएहितो उववज्जति । (श० २४०५४) ४. जइ संवेग्जवासा उवसणिचिदिवतिरिक्नोजिएहितो उपबति कि जनचरेहितो उववज्जतिपुच्छा । ५. गोयमा ! जलचरेहितो उववज्जंति, जहा असण ६. जावहितो उववज्जंति । तिनो अपतति ( ० २४।५५) ७. पत्तवासा उपसण्णपचदिवतिविखजोणिए णणं भंते जे भविए ने ए ८. से णं भंते ! कतिसु पुढवीसु उववज्जेज्जा ? गोवमा ! सत्त पुडी उबवन्तं जहा रयणप्पभाए जाव अहेसत्तमाए । ( श० २४|५६ ) ९. पत्ता उपसपिचिदिपतिरित्यजोगिए णं भंते ! जे भविए रमणपथपुरविनेरहए उववजितए, Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०. ते कितै काल स्थिति ऊपजै प्रभु ? जिन कहै जघन्य सुलेखो । वर्ष सहस्र दश स्थितिक विषे जे, उत्कृष्ट सागर एको || ११. ते एक समय प्रभु किता अपने ? जिम असन्नी आखा । जघन्य एक वे तीन ऊपजे ऊपजै, उत्कृष्ट संख असंखा || १२. ते सन्नी पं. तिरि पर्याप्त केरा, स्यूं तनु नो संघयणी ? जिन कहै षटविध संघयणी छे, जु जूअ नाम कहणी ।। द्वितीय ऋषभनाराचं । जिनवर नीं वाचं ॥ जघन्य थकी अवधारं । उत्कृष्ट योजन हजारं ।। १३. वज्रऋषभनाराच संघपणी, यावत छेवठ संघयणी ते, १४. तनु अवगाहन असन्नी जिम असंख्यातमों भाग आंगुल नों, छै, १५. तेहनां तनु प्रभु ! स्यूं संस्थानज ? समचउरंस णम्मोह इत्यादिक ! जीव ने केतली १६. ते प्रभु! जीव में केतली कृष्ण लेश जान शुक्ल लेश्या १७. तीन ज्ञान नीं भजना भणवी, ते पण भजनाई करि कहिवूं, १८. सन्नी पं. तियंच, दोय ज्ञान हुवै संच, १९. इमहिज वे अज्ञान, वर २०. नरकायु नों बंध, न ज्ञान विषे पिण संध, २१. नरकायु धुर बंध, तदा ज्ञान गुण संध, २२. * जोग त्रिविध पिण मन २३. सनी पं. तिथंच सन्नी पं. तिरि संच, लेश्या ? जिन भाखे षट लेशं । विविध दृष्टि कहे || नरकगामी तेह में तथा ज्ञान फुन तीन ॥ अथवा तीन अज्ञान ह्र । त्रिण || पड़े समदृष्टी समदृष्टी तणें । नरकायू बंधे नथी । सम्यकदृष्टि नही पर्छ । श्रेणिक कृष्ण तणी परं ।। वच तनु नां, शेष असन्नी जिम संचो । यावत अनुबंध कहिवो णवरं, समुद्घात घुर पंचो ।। २४. चरम दोय अवलोय, संवत मनु में होय, *लय पर नारी नों संग न कीज सोरठा जिन कहै षटविध जाणं । जाव हुंड संठाणं ॥ इम भजनाई जान, कह्या ज्ञान अज्ञान अथवा तीन अनाणं । हिव तसु न्याय पिछाणं ॥ सोरठा समुद्धात तिण तेह विषे । नरकगामी में पंच घुर । आहारक नैं केवली वली । तिनसूं ए वर्जी हां ॥ १०. से णं भंते ! केवतियकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा ? गोयमा ! जहणेणं दसवाससहस्सट्टितीएसु, उक्कोसेणं सागरोवमट्टितीएसु उववज्जेज्जा । ( श० २४/५७ ) ११. ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति ? जव असण्णी । (२४०५८) १२. तेसि णं भंते! जीवाणं सरीरगा किसंघयणी पण्णत्ता ? गोयमा ! छवि हसंघयणी पण्णत्ता, तं जहा १२. बहरोसमनारायणी उसनारायणी जाव देव संपवणी । 1 १४. सरीरोगाहणा जहेव असण्णीणं जहणणं अंगुलस्स असंभाग, उनकोसे जोयणसहस् ( श० २४/५९ ) १५. तेसि णं भंते! जीवाणं सरीरगा किसंठिया पण्णत्ता ? छव्विहसंठिया पण्णत्ता, तं जहा गोयमा ! समचउरंसा, निग्गोहा जाव हुंडा । (२० २४६०) १६. तेसि णं भंते ! जीवाणं कति लेस्साओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! छल्लेस्साओ पण्णत्ताओ, तं जहा कण्ड्लेस्सा जाव मुक्कलेस्सा विट्ठी तिविहावि १७. तिष्णि नाणा तिष्णि अण्णाणा भयणाए । १८,१९. तिन्नि नाणा तिन्नि अन्नाणा भयणाए' त्ति तिरश्चां सञ्ज्ञिनां नरकगामिनां ज्ञानान्यज्ञानानि च त्रीणि भजनया भवन्तीति द्वे वा त्रीणि वा स्युरित्यर्थः ( वृ० प० ८११ ) २२. जोगो तिविहो वि। सेसं जहा असण्णीणं जाव अणुबंधो, नवरं - पंच समुग्धाया आदिललगा । २३. 'नवरं पंच समुग्धाया आइल्लग' त्ति असञ्ज्ञिनः पंचेन्द्रियतिरश्चस्त्रयः समुद्घाताः सञ्ज्ञिनस्तु नरकं यियासोः पञ्चाद्या:, ( वृ०प० ८११ ) २४. अन्त्ययोर्द्वयोर्ममुष्याणामेव भावादिति । ( वृ० प० ८११) श० २४, उ०१, ढा० ४१३ १९ Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५. वेदो तिविहो वि, अवसेसं तं चेव जाव (श० २४१६१) २५. *ते सन्नी पंचेंद्री मांहे, वेद त्रिविध पिण पायो । शेष बोल जे तिमहिज यावत, हिव निसुणो तसु न्यायो। सोरठा २६. असनो विषेज पाय, वेद नसक एक ह। सन्नी पं. तिरि मांय, त्रिविध वेद पिण पामियै ॥ २७. शेष बोल सह ताय, कहिवा असन्नी नी परै । जाव प्रश्न हिव आय, द्वार कायसंवेध नों॥ २८. *हे भगवंतजी! पर्याप्तो जे, संख वर्षायूष तेहो। जाव तिर्यंच ते रत्नप्रभा में, ऊपजी नेरइयापणेहो ।। २९. सन्नी पंचेंद्री तिर्यंच हवै वलि, करै गति आगति कितो कालो ? श्री जिन भाखै भव आश्रयी ते, जघन्य दोय भव न्हालो। २८,२९. से णं भंते ! पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णिपंचदिय तिरिक्खजोणिए रयणप्पभाए जाव गतिरागति करेज्जा? गोयमा ! भवादेसेणं जहण्णणं दो भवग्गहणाई, सोरठा ३०. धुर भव सन्नी तिर्यंच, द्वितीय भवे है नारकी। इम जघन्य दोय भव संच, तृतीय भवे ते मनुष्य ह ।। ३०. 'जहन्नेणं दो भवग्गहणाई' ति सज्ञिपञ्चेन्द्रिय तिर्यङ उत्पद्य पुनर्नरकेषूत्पद्यते ततो मनुष्येषु एवमधिकृतकायसंवेधे भवद्वयं जघन्यतो भवति, (वृ०प०८११) ३१. उक्कोसेणं अट्ठ भवग्गहणाई । ३१. *उत्कृष्ट थी भव ग्रहण हुवै अठ, सन्नी पं. तिरि भव च्यारो। नारक नां पिण च्यार हुवै भव, नवमें भव मनु धारो॥ सोरठा ३२. सन्नी पं. तिरि सोय, नारक विषेज ऊपजै । वलि सन्नी तिरि होय, फून नारक में नेरइयो । ३३. वलि सन्नी तिरि थाय, फुन नारक वलि तिरि सन्नी । वलि नारक में जाय, इम अठ नवमें भव मनुष्य ।। ३२,३३. सज्ञिपञ्चेन्द्रियतिर्यक् ततो नारकः पुनः सज्ञिपञ्चेन्द्रियतिर्यङ पुनरिकः पुनः सज्ञिपञ्चेन्द्रियतिर्यङ पुनरिकस्ततः पुनः सज्ञिपञ्चेन्द्रितियंङ पुनस्तस्यामेव पृथिव्यां नारक इत्येवमष्टावेव वारानुत्पद्यते नवमे भवे तु मनुष्यः स्यादिति, (वृ० प० ८११) ३४. कालादेसेणं जहणणं दसवाससहस्साई अंतोमुहुत्त मब्भहियाई, ३४. *काल आश्रयी जघन्य थकी जे, वर्ष सहस्र दश जोयो । अंतर्मुहुर्त अधिक कहीजै, जघन्य अद्धा भव दोयो। सोरठा ३५. वर्ष सहस्र दश पेख, नारक भव अद्धा जघन्य । सन्नी पं. तिरि देख, अंतर्मुहर्त आउखो।। ३६. *अद्धा उत्कृष्ट अष्ट भवां नों, कहियै सागर च्यारो । च्यार पूर्व कोड़ अधिक भणोजै, अदल न्याय अवधारो॥ ३६. उक्कोसेणं चत्तारि सागरोवमाई चाहिं पुवकोडीहिं अब्भहियाई, सोरठा ३७. सागर च्यार सुसंच, नारक चिउं भव नों अद्धा । सन्नी पं. तिथंच, च्यार कोड़ पूरव कह्यो ।। *लय: पर नारी नों संग न कीजे २० भगवती जोड Jain Education Intemational Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८. *एतलो काल सेवै ते जंतु, करें गति आगति इतो कालो । अधिक ने अधिक गमक ए, दाख्यो प्रथम दयालो ।। अधिक नैं जघन्य [२] ३९. पर्याप्त संख वर्षायुष सन्नी पंचेंद्री तिरि जेहो । जघन्य स्थितिक विषे रत्नप्रभा में उपर्ज नेरइयापणेहो । 1 ४०. प्रभु कि काल स्थितिक विषे ते ऊपजै ? जिन कहै जघन्य विमासी । वर्ष सहस्र दश विषे ऊपजै, ४१. ते एक समय प्रभु ! उत्कृष्ट विण दश सहस्र वासो || किता ऊपजै ? इत्यादिक अवधारो | एवं तेहिज पहिलो गमको, समस्तपणें कहिवो सारो ॥ कायसंवेध द्वार ४२. जाव कालसंवेध ते काल आश्रयी, जघन्य थकी इम थायो । दश हजार वर्ष नों कहिये, अंतर्मुहूर्त अधिकायो । सोरठा अंतर्मुहूर्त ४३. नारक भवनों न्हाल, वर्ष सहस्र दश जघन्य ए । काल जघन्य काल ए तिरि भवे ।। ४४. उत्कृष्ट चि कोह पूर्व ही सभी तिर्यच भव व्यारो । वर्ष चालीस हजार अधिक ए. नारक भव चिरं धारो ॥ ४५. तलो काल सेव ते जंतु, करै गति आगति इतो कालो । अधिक ने वलि जघन्य कहीजे, द्वितीय गमक एन्हालो || ओघिक ने उत्कृष्ट [३] ४६. तेहिज पत्त संख वर्षायु प्रभुजी ! सन्नी पंचेंद्री तिरि जेहो । उत्कृष्ट स्थिति विषे रत्नप्रभा में ऊपजवा जोग नेरइयापणे हो । ४७. प्रभु ! किते काल स्थितिक विषे ते उपजे ? जिन कहै जघन्य अवेखो । एक सागर स्थितिक विषे ऊपजै, उत्कृष्ट पिण सागर एको । ४८. अवशेष परिमाण आदि देई नं, भवादेश लग भणियै । तेहिज प्रथम गमक कह्यो पूर्व, तिणहिज रीते थुणियै ॥ कायसंवेध द्वार ४९. जाव काल आश्रयी जघन्य थकी जे, एक सागर अवलोयो । अंतर्मुहूर्त अधिक कहीजे, जघन्य अद्धा भव दोयो । सोरठा ५०. अंतर्मुह एह सन्नी तिरि भव जघन्य स्थिति । सागर एक कहेह, नारक भव उत्कृष्ट स्थिति ।। *लय पर नारी नों संग न कीजे ३८. एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा १ । (१०२४१६२) ३९. पज्जत्तसंखेज्जवासाज्यसष्णिपंचिदियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए जहणकाल द्वितीएसु रयणप्पभा हरिइए उत्ति ४०. से णं भंते ! केवतिय कालद्वितीएसु उववज्जेज्जा ? गोवमा ! जहणे दसीएम उनकोसे विवाहाती (श० २४/६३) ४१. ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति ? एवं सो चेव पढमो गमओ निरवसेसो माणियव्वो ४२. जाव कालादेसेणं जहणेणं दसवाससहस्साइं अंतोमुत्तमम्भहियाई, ४४. उवकोसेणं चत्तारि पुण्वकोडीओ चत्तालीसाए वाससहहिमा, ४५. एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा २ । ( श० २४ / ६४ ) ४६.४७. सो उनकोसकाल द्वितीय उष्णो सामयमद्वितीयम् उक्कोसेण विसामवमतीए उववज्जेज्जा | ४८. अवसेसो परिमाणादीओ भवादेसपज्जवसाणो सो चेव पढमगमो नेयब्दो ४९. जाव कालादेसेणं जहणेणं सागरोवमं अंतोमुहुत्तमन्भहियं, प्रा० २४, उ० १, ढा० ४१३ २१ Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१. उक्कोसेणं चत्तारि सागरोवमाई चउहि पुवकोडीहिं अब्भहियाई, ५२. एवतियं काल सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा ३॥ (श० २४१६५) ५१. *उत्कृष्ट चिउं दधि च्यार नारक भव, अधिक पूर्व कोड़ च्यारो। ए सन्नी तिरि चिउं भव अद्धा, उभय उत्कृष्टज धारो॥ ५२. एतलो काल सेवं ते जंतु, करै गति आगति इतो कालो। ओधिक ने उत्कृष्ट गमक ए, दाख्यो तृतीय दयालो ।। __ जघन्य नै ओधिक [४] ५३. जघन्य काल स्थितिक पजत्त संख वर्षायुष सन्नी पंचेंद्री तिरि जेहो । रत्नप्रभा पृथ्वी नै विषे जे, ऊपजवा जोग नेरइयापणेहो॥ ५४. प्रभु ! किता काल स्थितिक विषे ते ऊपजै? जिन कहै जघन्य सुलेखो। ऊपज दश सहस्र वर्ष स्थितिक में, उत्कृष्ट सागर एको।। ५५. ते एक समय प्रभु ! किता ऊपजै ? इत्यादि शेष उदिष्टो। तेहिज गमक प्रथम जे कहिवं, णवरं णाणत्ता अष्टो ।। ५३. जहण्णकालद्वितीयपज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णि पंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए रयणप्पभपुढविनेरइएसु उववज्जित्तए, ५४. से णं भंते ! केवतिकालद्वितीएसु उववज्जेज्जा? गोयमा ! जहण्णणं दसवाससहस्सट्टितीएसु, उक्कोसेणं सागरोवमद्वितीएसु उववज्जेज्जा। (श० २४।६६) ५५. ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जति? अवसेसो सो चेव गमओ, नवरं-इमाइं अट्ठ नाणत्ताई-- ५६. सरीरोगाहणा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं धणुपुहत्तं ५६. ते सन्नी पं. तिरि नी जघन्य अवगाहना, __आंगुल नो जिन इष्टं । असंख्यातमों भाग कह्यो छै, पृथक धनु उत्कृष्टं । सोरठा ५७. सन्नी धुर गम पेख, जघन्य तास अवगाहना । आंगुल तणोंज लेख, असंख्यातमों भाग जे ।। ५८. उत्कृष्टी अवगाह, योजन सहस्र तणी तिहां । ____ इहां उत्कृष्टी पाह, पृथक धनुष्य अवगाहना ।। ५९. 'जघन्यायु सन्नी ते माट, प्रथम लेश त्रिण कहिये । जघन्य स्थितिक जे नरकगामी में, भली लेश्या नहिं लहियै ।। सोरठा ६०. सन्नी धुर गम मांय, षट लेश्या आखी तिहां । जघन्य गमे त्रिण पाय, लेश णाणत्तो ते भणी ।। ६१. *तृतीय णाणत्तो दृष्टि तणों जे, मिथ्यादष्टी जेहो । जघन्य स्थितिक तिरि नरकगामी में, सम-मिश्र दृष्टि न बेहो ।। ५८. तत्र शरीरावगाहनोत्कृष्टा योजनसहस्रमुक्त ह धनुः पृथक्त्वं, (व०प०८११) ५९. लेस्साओ तिण्णि आदिल्लाओ ६०. तथा तत्र लेश्याः षड् इह त्वाद्यास्तिस्रः, (वृ० प० ८११) ६१. नो सम्मदिट्ठी, मिच्छादिट्ठी, नो सम्मामिच्छदिट्ठी सोरठा ६२. सन्नी धुर गम मांय, आखा भव में दृष्टि त्रिण । __ जघन्य गमे मिच्छ पाय, दृष्टि णाणतो ते भणी ।। ६२. तथा तत्र दृष्टिस्त्रिधा इह तु मिथ्यादृष्टिरेव, (बु०प०८११) *लय : पर नारी नो संग न कीज २२ भगवती जोड़ Jain Education Intemational Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३. नो नाणी, दो अण्णाणा नियम ६३. *नाण अनाण नों तुर्य णाणत्तो, ज्ञानी ते नहिं होयो । जघन्य स्थितिक जे नरकगामी में, निश्चै अज्ञानज दोयो।। ६४,६५. तथा तत्राज्ञानानि त्रीणि भजनया इह तु द्वे एवाज्ञाने, (वृ० प० ८११) सोरठा ६४. सन्नी धुर गम मांय, तीन ज्ञान अज्ञान त्रिण । भजना ए कहिवाय, पूर्वे आख्यो छै तिहां ।। ६५. इहां जघन्य गम जान, ज्ञान तणोंज निषेध छ । निश्चै दोय अज्ञान, ते माटै ए णाणत्तो।। ६६. *पंचम णाणत्तो समुद्घात नों, जघन्य स्थितिक तिरि मांह्यो।। समुद्घात त्रिण प्रथम कहीजै, अन्य निषेध कहायो॥ ६६. समुग्धाया आदिल्ला तिण्णि सोरठा ६७. सन्नी धुर गम मांय, समुद्घात धुर पंच त्यां। जघन्य गमे त्रिण पाय, समुद्घात नों णाणत्तो।। ६८. *षष्टम णाणत्तो आयु तणों छै, जघन्य स्थितिक ए जोई। अंतर्महतं तास आउखो, अधिक आयु नहिं होई ।। ६७. तथा तत्र आद्याः पञ्च समुद्घाता इह तु त्रयः, (वृ० प० ८११) ६८-७३. आउं अज्झवसाणा अणबंधो य जहेव असण्णीणं । 'आउअज्झवसाणा अणुबंधो य जहेव असन्नीणं' ति जघन्यस्थितिकासज्ञिगम इवेत्यर्थः, ततश्चायुरिहान्तर्मुहूर्त, अध्यवसायस्थानान्यप्रशस्तान्येव, अनुबन्धोऽप्यन्तर्मुहूर्तमेवेति, (वृ० प० ८११) सोरठा ६९. सन्नी धुर गम जोड़, अंतर्मुहूर्त जघन्य स्थिति । उत्कृष्ट पूर्व कोड़, ते माटै ए णाणत्तो।। ७०. *सप्तम णाणत्तो अध्यवसाय नों, अपसत्थ अध्यवसायो। जघन्य स्थितिक तिरि नरकगामी में, भला अध्यवसाय नांह्यो । सोरठा ७१. सन्नी धुर गम जेह, प्रशस्त में अप्रशस्त फुन । इहां अपसत्थ जघन्य गमेह, ते माटै ए णाणत्तो।। ७२. *अनुबंध नों कह्यो अष्टम णाणत्तो, न्याय आयुवत जाणी। आयु जितो अनुबंध कह्यो छ, वारू जिनवर वाणी ॥ ७३. अध्यवसाय आयु में अनुबंध, ए तीनूं अवलोई । असन्नी पंचेंद्री तिर्यंच नां आख्या, तेम इहां इम होई॥ ७४. अवशेष जिम गम प्रथमज एहनों, सन्नी तिथंच नों आख्यो । तेम इहां पिण कहिवो सगलो, किहां लगै ए भाख्यो । ७५. यावत काल आश्री कहीजै, जघन्य थकी ए ताह्यो । दश हजार वर्ष नों अद्धा, अंतर्मुहूर्त अधिकायो ।। *लय : पर नारी नों संग न कीज ७४. अवसेसं जहा पढमगमए 'अवसेस' मित्यादि, अवशेषं यथा सचिन: प्रथमगमे औधिक इत्यर्थः (वृ०५०८११,८१२) ७५. जाव कालादेसेणं जहणणं दसवाससहस्साई अंतो मुहुत्तमन्भहियाई, श०२४, उ०१, ढा० ४१३ २३ Jain Education Intemational Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७. उक्कोसेणं चत्तारि सागरोवमाई चउहिं अंतोमुहत्तेहिं अब्भहियाई, ७८. एवतियं काल सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा ४॥ (श० २४१६७) वा०-'सो चेव जघनकाले' त्यादिस्तु सज्ञिविषये पञ्चमो गमः ५, (वृ०प०८१२) ७९. सो चेव जहण्णकाल द्वितीएसु उववष्णो जहण्णेणं दसवाससहस्सद्वितीएसु, उक्कोसेण वि दसवाससहस्सद्वितीएसु उववज्जेज्जा। (श ० २४।६८) सोरठा ७६. बे भव काल जघन्य, वर्ष सहस्र दश नरक स्थिति । सन्नी तिरि भव जन्य, अंतर्मुहूर्त ए अद्धा ।। ७७. “उत्कृष्ट सागर च्यार कहीजै, नारक चिउं भव कालो । अंतर्मुहूर्त च्यार अधिक फुन, तिर्यंच चिउं भव न्हालो ।। ७८. काल एतलो सेवै ते जंतु, करै गति आगति इतो कालो। जघन्य अनें ओधिक गमक ए, दाख्यो तुर्य दयालो ।। जघन्य नै जघन्य [५] वा० -जघन्य अनै जघन्य ते सन्नी तियंच नी जघन्य स्थिति अन नारकी ने विषे जघन्य स्थितिपणे ऊपनों- ए पंचम गमक कहै छ--- ७९. तेहिज जघन्य स्थितिक पजत्त संख वर्षायुष, ___ सन्नो पंचेंद्रो तिरि जेहो । ऊपजवा जोग्य रत्नप्रभा में, जघन्य स्थितिक नेरइयापणेहो।। ५०. किता काल स्थितिक विषे ते प्रभु ! ऊपजै ? जिन कहै जघन्य विमासो । ऊपजै दश सहस्र वर्ष स्थितिक में, उत्कृष्ट पिण दश सहस्र वासो।। ८१. प्रभु! एक समय ते किता ऊपजै ? इत्यादिक अवधारो। तुर्य गमक जिम एहनों आख्यो, भणवो तिमहिज सारो॥ १२. यावत अद्धा आश्रयी जघन्य थी, वर्ष सहस्र दश जेहो। अंतमहत अधिक कहीजै, वे भव अद्धा एहो ।। ५३. उत्कृष्ट चालीस वर्ष सहस्र ए, नारक चिउं भव न्हालो । अंतर्महर्त च्यार अधिक ए, तिर्यंच चिउं भव कालो। ८४. एतलो काल सेवै ते जंतु, करै गति आगति इतो कालो। जघन्य अने वलि जघन्य गमो ए, दाख्यो पंचम दयालो ।। जघन्य नै उत्कृष्ट [६] वा.हिवं जघन्य अने उत्कृष्ट ते सन्नी तिथंच नों तो जघन्य आयु अनै उत्कृष्ट आयु नेरइयापण ऊपनों--ए छठो गमक कहै छै-- ८१. ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जति? एवं सो चेव चउत्थो गमयो निरवसेसो भाणियव्वो ८२. जाव कालादेसेणं जहण्णेणं दसवासहस्साई अंतो मुहुत्तमब्भहियाई, ८३. उक्कोसेणं चत्तालीसं वाससहस्साई चउहि अंतो मुहुत्तेहिं अब्भहियाई, ५४. एवतियं काल सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा ५! (श २४।६९) वा०-इह च 'सो चेव' त्ति स एव सज्ञी जघन्यस्थितिकः, 'सो चेव उक्कोसे त्यादिस्तु षष्ठ: ६, (वृ०प०८११) ८५,८६. सो चेव उक्कोसकालद्वितीएसु उववण्णो जहण्णेणं सागरोवमट्टितीएसु, उक्कोसेण वि सागरोवमट्टितीएसु उववज्जेज्जा। (श० २४१७०) ८५. ते हिज जघन्य स्थितिक पजत्त संख वर्षायूष सन्नी पंचेंद्री तिरि जेहो । ऊपजवा जोग्य रत्नप्रभा में, __ स्थिति उत्कृष्ट नेरइयापणेहो । ८६. किता काल स्थितिक विषे ते प्रभु ! ऊपजै? जिन भाखै तसु लेखो। जघन्य सागर स्थितिक विषे ऊपजै, उत्कृष्ट पिण सागर एको । *लय: पर नारी नों संग न कीज २४ भगवती जोड़ Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८७. ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जति ? एवं सो चेव चउत्थो गमओ निरवसेसो भाणियव्वो ८८. जाव कालादेसेणं जहण्णेणं सागरोवमं अंतोमुहुत्त मन्भहियं, ८९. उक्कोसेणं चत्तारि सागरोबमाई चाहिं अंतोमुहुत्तेहि अब्भहियाई, ८७.ते एक समय प्रभु ! किता ऊपजै? इत्यादिक सहु जाणी। तुर्य गमक ए सन्नी तणों जिम, भणवो सब पिछाणी ।। ८८. जाव काल आश्रयी जघन्य थी, नारक सागर एको । अंतर्महर्त सन्नी तिर्यंच भव, जघन्य उभय भव लेखो। ८९. उत्कृष्ट अद्धा च्यार सागर फुन, नारक चिउं भव भणियै । अंतर्महुर्त च्यार अधिक ए, चिउं तिरि भव स्थिति गिणिय ।। ९०. एतलो काल सेवै ते जंतु, करै गति आगति इतो कालो । जघन्य अनें उत्कृष्ट गमक ए, दाख्यो षष्टम दयालो ।। उत्कृष्ट नै ओधिक (७) वा० -हिवै उत्कृष्ट नै ओधिक --ते सन्नी तिर्यंच नों तो उत्कृष्टो आउखो, नारकी नै विषे ओघिक-ए सप्तम गमक कहै छै ९०. एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा ६। (श० २४१७१) वा०-'उक्कोसकाले' त्यादिस्तु सप्तमः ७, तत्र च 'एएसिं चेव पढमगमों' त्ति एतेषामेव सञ्जिनां प्रथमगमो यत्रोधिक औषिकेषूत्पादितः, (बु. ५० ८१२) ९१. उक्कोसकालद्वितीयपज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णि पंचिदियरिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए रयण प्पभापुढविनेरइएसु उवज्जित्तए, ९२. से णं भंते ! केवतियकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा ? गोयमा ! जहणेणं दसवाससहस्सद्वितीएसु, उक्कोसेणं सागरोवमद्वितीएसु उववज्जेज्जा। (श० २४१७२) ९३. ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जति ? अवसेसो परिमाणादीओ भवादेसपज्जवसाणो ९४. सो चेव पढमगमओ नेयम्वो, ६१. जेष्ठ काल स्थितिक पजत संख वर्षायुष, सन्नी पंचेंद्री तिरि जेहो। रत्नप्रभा पृथ्वी नै विषे जे, ऊपजवा जोग्य नेरइयापणेहो। ९२. किता काल स्थितिक विषे ते प्रभु ! ऊपजै? जिन कहे जघन्य सुपेखो। ऊपजे दश सहस्र वर्ष स्थितिक में, उत्कृष्ट सागर एको ।। ९३. ते एक समय प्रभु ! किता ऊपजै ? शेष सर्व ही जाणी। परिमाण आदि देई भव आश्रयो, एतला लगै पिछाणी ।। ९४. एहिज सन्नी पंचेंद्री तियंच नों धुर गम, कह्यो ओधिक नैं ओघीको। तेहने विषे ऊपजाव्या तेहिज, कहिवो सर्व सधीको ।। ९५. णवरं स्थिति आउखो तेहनों, जघन्य पूर्व कोड़ जाणी। उत्कृष्टी पिण कोड़ पूर्व नों, अनुबंध पिण इम ठाणी ।। ९६. शेष तिमज धुर गमे कह्यो जिम, काल आश्रयी तासो। जघन्य पूर्व कोड़ तिरि भव आयु, नरक सहस्र दश वासो॥ ९७. उत्कृष्ट अद्धा च्यार सागर ए, नारक चिउं भव न्हालो। च्यार पूर्व कोड़ तिर्यंच भव चिउं, ए अठ भव स्थिति कालो।। ९८. एतलो काल सेव ते जंतु, करै गति आगति इतो कालो ।। उत्कृष्ट ने ओधिक गमक ए, दाख्यो सप्तम दयालो ।। उत्कृष्ट नै जघन्य [८] वा०-ते सन्नी तिर्यच नों उत्कृष्ट आउखो अनं नारक ने विषे जघन्य आउखापणों ऊरनों-ए अष्टम गमक कहै छ९९. तेहिज जेष्ठ स्थितिक पजत्त संख वर्षायुष, सन्नी पंचेंद्री तिरि जेहो। ऊपजवा जोग्य रत्नप्रभा में, जघन्य स्थितिक नेरइयापणेहो।। ९५. नवरं-ठिती जहण्णे णं पुब्वकोडी, उक्कोसेण वि पुवकोडी । एवं अणुबंधो वि, ९६. सेसं तं चेव । कालादेसेणं जहण्णेणं पुब्बकोडी दसहि वाससहस्सेहिं अन्भहिया, ९७. उक्कोसेणं चत्तारि सागरोवमाइं चउहि पुत्वकोडीहिं अब्भहियाई, ९८. एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतिय कालं गतिरागति करेज्जा ७। (श० २४१७३) वा०-'सो चेवे' त्या दिरष्टमः ८, इह च 'सो चेव' त्ति स एवोत्कृष्टस्थितिक: सज्ञी ८, __(वृ० ५० ८१२) ९९,१००. सो चेव जहण्णकालद्वितीएसु उववण्णो जहण्णेणं दसवाससहस्सद्वितीएसु, उक्कोसेणं वि दसवाससहस्सद्वितीएसु उववज्जेज्जा। (श० २४१७४) श० २४, उ०१, ढा०४१३ २५ Jain Education Intemational Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १००. किता काल स्थितिक विषे ते प्रभु का ? ! जिन कहे जघन्य विमासो । ऊपजै दश सहस्र स्थितिक विषे, उत्कृष्ट पिण दश सहस्र वासो || १०१. ते एक समय प्रभु ! किता ऊपजै ? इत्यादिक इम लहिये । तेहि सप्तम गमक सन्नी नों, आख्यो जिम सहु कहियै ॥ १०२. यावत भव आदेश लगे ए, काल आश्रयी तासो । जघन्य पूर्व कोड़ तिरि भव आयु, १०३. उत्कृष्ट पूर्व कोड प्यार जे नारक दश सहस्र वासो ॥ तियंच चि भव बढा चालीस सहस्र वर्ष नारक भव, अष्टम भवे इम लद्धा ॥ १०४. एतलो काल सेवै ते जंतु, करें गति आगति इतो कालो । उत्कृष्ट में फुन जघन्य गमक ए, दाख्यो अष्टम दयालो ।। उत्कृष्ट ने उत्कृष्ट [९] बा० ते सन्नी तिथंच नों उत्कृष्ट आउखो अने नारकी ने विषे उत्कृष्ट आउखापणे ऊपनों ए नवम गमक कहे छं१०५. जेष्ठ काल स्थितिक वजत्त संख वर्षायुष, सन्नी पंचेंद्री तिरि जेहो । रत्नप्रभा में उत्कृष्ट स्थितिके, उपजवा जोग्य नेरइयापणेहो । १०६. किता काल स्थितिक विषे ते प्रभु! आपने ? जिन कहै जघन्य सुलेखो । एक सागर स्थितिक विषे ऊपने उत्कृष्ट सागर एको । १०७. ते एक समय प्रभु ! किता ऊपने ? इत्यादिक अवधारो। ते सन्नी तिर्यंच नों गमक सप्तमों, आयो तिम सुविचारो ॥ काल आधी जोड़ो। तिरि भव पूर्व कोड़ो । एहो । १०. बावत भव आदेश लगे इम जघन्य सागर इक नारक भव में १०९. उत्कृष्ट च्यार सागर नों कहिये, नारक चिरं भव प्यार पूर्व कोड़ चिउं तिर्यच भव, अठ भव अद्धा लेहो । ११०. एतलो काल सेवे ते जंतु, करै गति आगति इतो कालो । उत्कृष्ट नैं उत्कृष्ट गमक ए, दाख्यो नवम दयालो ।। १११. इम ए नव गम आख्या तिण में, उत्क्षेप निक्षेप कहेवो । नव ही गमा ने विषे पिण भगवा, असली जिम स्वयमेवो ॥ वा० - नव ही गमका छ। ते एक-एक गमा नै विषे उत्क्षेप निक्षेप स्वयमेव कहवा । उत्क्षेप ते गमो मांडिवो ते किम पर्याप्तो संख्यात वर्ष आयु सन्नी पंचेंद्री तियंच रत्नप्रभा में नेरइयापण ऊपजवा जोग्य इम गमक मांडिवो, तेह उत्क्षेप कहिये । अने निक्षेप ते गमक पूरो करिवो ते किम-एतलो काल सेव एतलो काल गति - आगति करें। ए निक्षेप कही नैं ते एक-एक गमका विषे असन्नी नीं पर उत्क्षेप निक्षेप स्वयमेव कहिवा । २६ भगवती जोड़ १०१. ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति ? सो चेव सत्तमो गमओ निरवसेसो भाणियव्वो १०२. जाव भवादेसो त्ति । कालादेसेणं जहणणेणं पुण्वकोबी व वासहस्सेहि अमहिया 1 १०३. उनकोसे चत्तारि पुण्यकोडीओ चालीसाए बाससहस्सेहि अब्भहियाओ, १०४. एका सेवेसा एवतियं काल गतिरामति करेज्जा ८ । (१० २४००५) वा० – 'उक्कोसे' त्यादिर्नवमः ९, ( वृ० प० ८१२ ) १०५. उपोका द्वितीयपतसंयेवासा उपसि पंचिदितिविखजोगिए भते । जे भए उनकोस कालती वाढविनेर उज्जित्तए १०६. से भंते! केवतिकालद्वितीय उदयज्जे ? गोवमा जगेणं सायमद्वितीयगु उक्कोसेण वि सामरोपमद्वितीए नवज्या (म० २४,७६) १०७. ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति ? सो वेव सत्तमगमओ निरवसेसो भाणियव्वो १०८. जाव भवादेसो त्ति । कालादेसेणं जहणेणं सागरोवमं goaकोडीए अब्भहियं, १०९. उक्कोसेणं चत्तारि सागरोवमाइं चउहि पुव्वकोडीहि अमहियाई, ११०. एवति काल सेवेला एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा ९ । १११. एवं एते नव गमका । उक्खेव निक्खेवओ नवसु वि जव असण्णीणं । ( ० २४२७७) वा० - 'उक्खेवनिक्खेबओ' इत्यादि, तत्रोत्क्षेपः ( ग्रन्थाग्रम् १६००० ) प्रस्तावना स च प्रतिगममौचित्येन स्वयमेव बाच्यः, निक्षेपस्तु निगमनं सोऽप्येवमेवेति । (० ० ०१२) Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२. शतक चउबीसम प्रथम देश ए, च्यारसी तेरमी ढालो। भिक्ष भारीमाल ऋषिराय प्रसादे, 'जय-जश' हरष विशालो ।। ढाल : ४१४ १. पर्याप्तकसंख्यातवर्षायुष्कसज्ञिपञ्चेन्द्रियतियंगयोनिकमाश्रित्यरत्नप्रभावक्तव्यतोक्ता, (वृ० प० ८१२) २. अथ तमेवाश्रित्य शर्कराप्रभावक्तव्यतोच्यते, तत्रौधिक औधिकेषु तावदुच्यते (व०प० ८१२) १. संख्यायु पर्याप्तो, सन्नी पं. तिथंच । रत्नप्रभा ने आश्रयी, पूर्वे आख्यो संच ।। हिवै सक्करप्रभा नै विषे पर्याप्त संख्यात वर्षायुष सन्नी पंचेंद्री तिर्यच ऊपज, तेहनां नव गमा कहै छै२. सक्करप्रभा नै विषे, तेहिज ऊपजै ताय । ओधिक नै ओधिक हिवै, प्रथम गमो कहिवाय ।। ___ ओधिक ने ओधिक [१] वा०-ओधिक नै ओधिक ते संख्यात वर्ष आयु पर्याप्तो सन्नी पंचेंद्री तिर्यंच जघन्य-उत्कृष्ट स्थिति नों धणी सक्करप्रभा में जघन्य-उत्कृष्ट स्थितिक नारकी में विषे ऊपजे ते माटे सन्नी तिथंच पंचेंद्री नी ओधिक, समच स्थितिक नारकी ने विषे पिण ओधिक ते समचे स्थितिक नै विषे ऊपजै-ए प्रथम गमक बखाणिय छै दूजी नरक में संख्याता वर्ष नों सन्नी तियंच पंचेंद्रिय ऊपज, तेहनों अधिकार' *सन्नि तिर्यंच सक्कर प्रमुख ऊपज ।। (ध्र वदं) ३. पर्याप्तो जे संख्यात वर्षायुष प्रभु ! सन्नी पंचेंद्री तियंचो रे । ऊपजवा जोग्य सक्करप्रभा में, नारकी नै विषे संचो रे ।। ४. किता काल स्थितिक विषे ते प्रभु ! ऊपजै? जिन कहै जघन्य थी इष्टो रे। एक सागर स्थितिक विषे ऊपजै, तीन सागर उत्कृष्टो रे ।। ५. ते एक समय प्रभु ! किता ऊपजै ? जिम रत्नप्रभा रै माह्यो रे। ऊपजतां ने बोल कह्या जे, परिमाण संघयणादि ताह्यो रे ।। ६. सक्करप्रभा विषे ऊपजतां नैं, कहियै सहु निविशेखो रे। यावत भव आदेश जघन्य बे, उत्कृष्ट अठ भव लेखो रे ।। ७. काल आश्रयी जघन्य सागर इक, नारक भव स्थिति कालो रे। ___ अंतर्मुहुर्त अधिक तिरि भव, बे भव अद्धा न्हालो रे ॥ *लय : प्रभवो चोर चोरां ने समझाव १. परि. २. यंत्र ४ ३. पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिदियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए सक्करप्पभाए पुढवीए नेरइएसु उववज्जित्तए, ४. से णं भंते ! केवतिकालद्वितीएसु उववज्जेज्जा ? गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमद्वितीएसु, उक्कोसेणं तिसागरोवमट्ठितीएसु उववज्जेज्जा। (श० २४१७८) ५,६. ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जति? एवं जहेव रयणप्पभाए उववज्जंतगस्स लद्धी सच्चेव निरवसेसा भाणियव्वा जाव भवादेसो त्ति। 'पज्जत्ते' त्यादि, 'लद्धी सच्चेव निरवसेसा भाणियव्वा' परिमाणसंहननादीनां प्राप्तियैव रत्नप्रभायामुत्पित्सोरुक्ता सैव निरवशेषा शर्कराप्रभायामपि भणितव्येति, (व०प०८१३) ७. कालादेसेणं जहणणं सागरोवमं अंतोमुत्तमम्भहियं, श. २४, उ०१, ढा०४१४ २७ Jain Education Intemational Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोरठा ८. सक्करप्रभा मांय, जघन्य स्थिति सागर तणीं। जघन्यायु तिरि पाय, अंतर्मुहूर्त जाणवू ।। ९. *उत्कृष्ट द्वादश सागर कहिये, च्यार नारक भव अद्धा रे । च्यार कोड़ पूर्व अधिकेरा, तिथंच भव चिउं बद्धा रे ।। सोरठा १०. दूजी नरके देख, सागर त्रि उत्कृष्ट स्थिति । चतुर्गुणे करि लेख, द्वादश सागर चिउं भवे ।। ८. 'सागरोवमं अंतोमहत्तमभहिय' ति द्वितीयायां जघन्या स्थितिः सागरोपममन्तमहत्तं च सञ्जिभवसत्कमिति, (वृ० ५०८१३) ९. उक्कोसेणं बारस सागरोवमाई चउहि पुब्बकोडीहिं अब्भहियाई. ११. कोड़ पूर्व उत्कृष्ट, संख्यायु सन्नी तिरि । चतुर्गणे करि इष्ट, चिउं तिरि भव चिउं कोड़ पुव्व ।। १२. *काल एतलो सेवै ते इम, करै गति आगति इतो कालो रे। ओधिक ने ओघिक गमक ए, दाख्यो प्रथम दयालो रे ।। १३. इम रत्नप्रभा नां गमक सरीखा, सक्करप्रभा नै विषेहो रे। नव गमा पिण भणवा णवरं, एतलो फेर कहेहो रे ।। १३. सर्व गमक विषे पिण नारक स्थिति, वलि संवेधद्वारे लहिव रे। सागरोपम भणवा विधि सेती, ते इह रीते कहि रे ।। १०. 'उक्कोसेणं बारसे' त्यादि द्वितीयायामुत्कृष्टतः सागरोपमत्रयं स्थितिः तस्याश्चतुर्गुणत्वे द्वादश, (वृ० १० ८१२) ११. एवं पूर्वकोटयोऽपि चतुर्ष सञ्जितिर्यग्भवेषु चतस्र एवेति। (व० ५०८१३) १२. एवतियं काल सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा। १३. एवं रयणप्पभपुढविगमसरिसा नव वि गमगा भाणियव्वा, नवरं१४. सव्वगमएसु वि नेरइयद्रुिती-संवेहेसु सागरोवमा भाणियव्वा, १५. रत्नप्रभायामायुर्दारे संवेधद्वारे च दशवर्षसहस्राणि सागरोपमं चोक्तं (व०प० ८१३) १६. द्वितीयादिषु पुनर्जघन्यत उत्कर्षतश्च सागरोपमाण्येव वाच्यानि, (व०प० ८१३) सोरठा १५. रत्नप्रभा स्थिति द्वार, द्वार संवेध विषे वली। वर्ष सहस्र दश कार, इक सागर आखी तिहां ।। १६. सक्कर विषे विचार, जघन्य एक सागर स्थिति । उत्कृष्टी अवधार, सागर तीन तणीं इहां ।। १७. उत्कृष्ट संवेधेह, त्रिण सागर उत्कृष्ट स्थिति । कियां चउगुणां जेह, बारह उदधि उत्कृष्ट अद्धा ।। तोजी स्यूं छठी नरक तक संख्यात वर्ष नों सन्नी तियंच पंचेंद्रिय ऊपज, तेहनों अधिकार' १८. *एवं यावत छठी पृथ्वी लग, णवरं इतरो विशेखो रे । नारक स्थिति जाव जे पृथ्वी नैं, जघन्य उत्कृष्टी लेखो रे ।। १९. तिका स्थिति तिणहिज अनुक्रम करी, चउगुणी करवी ताह्यो रे। उत्कृष्ट कायसंवेध विषे ए, जुई-जुई कहिवायो रे ।। १८. एवं जाव छ?पुढवि त्ति, नवरं नेर इयठिई आ जत्थ पुढवीए जहण्णक्कोसिया १९. सा तेणं चेव कमेणं चउगुणा कायव्वा । 'चउगुणा कायव्व' त्ति उत्कृष्ट कायसंवेधे इति, (वृ. प. ८१३, ८१४) सोरठा २०. वालुकप्रभा मांय, जघन्य तीन सागर स्थिति । ___ सागर सप्तज पाय, उत्कृष्टी स्थिति छै तिहां ।। २१. पंक जघन्य स्थिति दधि सात, दश सागर उत्कृष्ट स्थिति। धम जघन्य दश ख्यात, सतर उदधि उत्कृष्ट ही ।। *लय : प्रभदो दोर दोरा ने समझावै १. परि० २. यंत्र ६, ८, १०, १२ २८ भगवती जोड़ Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२. तमा मही में ताम, जघन्य स्थिति सतरोदधि । उत्कृष्टी दुख धाम, उदधि बावीस तणीं कही ।। २३. *वालुक सात सागर उत्कृष्टी, चउगुणी कीधां तेहो रे। सागरोपम अठवीस हुवै इम, उत्कृष्ट कायसंवेहो रे ।। २३. वालुयप्पभाए पुढवीए अट्ठावीसं सागरोवमाइं चउ गुणिया भवंति, 'वालुयप्पभाए अट्ठावीसं' तत्र सप्त सागरोपमाण्युत्कर्षत स्थितिरुक्ता सा च चतुर्गुणा अष्टाविंशतिः स्यात्, (वृ. प. ८१४) २४. पंकप्पभाए चत्तालीसं, धूमप्पभाए अट्ठसटुिं, २४. पंक उदधि दश चउगुणी कोधां, चालीस सागर होयो रे। धम सत्तर दधि चउगुणी कीधां, अड़सठ सागर जोयो रे ।। २५. छठी नरके उत्कृष्टी स्थिति, बावीस सागर इष्टो रे। चौगुणी कीधां उदधि अठ्यासी, कायसंवेध उत्कृष्टो रे ।। २६. धुर बे नरके ऊपजै छै ते, षट संघयणी कहिये रे । आगल इक-इक नरक विषे जे, इक-इक हीणो लहिये रे ।। २५. तमाए अट्ठासीई। २६. आद्ययोरेव हि पृथिव्योः सेवात्तैनोत्पद्यन्ते, एवं चतुर्थी ४ पञ्चमी ३ षष्ठी २ सप्तमीषु १ एकैकं संहननं हीयत इति । (वृ. प. ८१४) २७. संघयणाई-वालुयप्पभाए पंचविहसंघयणी, तं जहा -वइरोसहनारायसंघयणी जाव खीलियासंघयणी, २८. पंकप्पभाए चउन्विहसंघयणी, २९. धूमप्पभाए तिविहसंघयणी, ३०. तमाए दुविहसंघयणी, तं जहा-वइरोसभनारायसंघयणी य, उसभनारायसंघयणी य, सेसं तं चेव । (श० २४१७९) २७. वालुकप्रभा विषे जे ऊपज, पंच संघयणी जाणी रे। वज्रऋषभनाराच कहीजै, जाव कीलिका ठाणी रे ।। २८. पंकप्रभा नै विषे ऊपज, च्यार संघयणी धारो रे। कीलिका संघयणी नहिं जावै, चउथी नरक मझारो रे ।। २९. धम विषे जाय तीन संघयणी, अर्द्धनाराच संघयणी रे । पंचमी नरक विषे नहिं जावै, जिन वाणी सत्य कहणी रे ।। ३०. तमा विषे जाय बे संघयणी, वज्रऋषभनाराचो रे । ऋषभनाराचवंत पिण जावै, शेष तिमज वच साचो रे ।। सातवीं नरक में संख्याता वर्ष नों सन्नी तिर्यच पंचेद्रिय ऊपज, तेहनों अधिकार' ओधिक नै ओधिक (१) ३१. पर्याप्तो संख्यात वर्षायुष, सन्नी पंचेद्री तिर्यंचो रे। ऊपजवा जोग्य अधोसप्तमी, नरक विषे जे संचो रे ॥ ३२. किता काल स्थितिक विषे ते प्रभु ! ऊपजै? जिन कहै जघन्य कहायो रे । बावीस सागर स्थिति विषे ते, उत्कृष्ट तेतीस पायो रे ।। ३३. ते एक समय प्रभु ! किता ऊपज ?, जिम रत्नप्रभा में विषेहो रे । नव गमा कह्या तिणहिज रीते, कहिवा नव गम तेहो रे ।। ३४. लद्धी प्राप्ति पिण सहु तिम कहिवी, णवरं इतरो विशेखो रे । धूर संघयणी तिहां ऊपजै, अन्य निखेध संपेखो रे ।। ३१. पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिदियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए अहे सत्तमाए पुढवीए नेरइएसु उववज्जित्तए, ३२. से णं भंते ! केवतिकालद्वितीएसु उववज्जेज्जा ? गोयमा ! जहण्णेणं बावीससागरोवमद्वितीएसु, उक्कोसेणं तेत्तीससागरोवमद्वितीएसु उववज्जेज्जा । (श० २४१८०) ३३. ते ण भंते ! जीवा एगसमएणं केवतिया उव वज्जति? एवं जहेव रयणप्पभाए नव गमका, ३४. लद्धी वि सच्चेव, नवरं-वइरोसभनारायसंघयणी । 'लय : प्रभवो चोर चोरां ने समझावै १. परि २. यंत्र १४ श. २४, उ०१, ढा०४१४ २९ Jain Education Intemational Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५. स्त्री वेदक छठी लग जावै, सप्तमीं में नहि जायो रे । शेष तिमज छठी तिम कहिवो, जाव अनुबंध ताह्यो रे ।। ३६. काय संवेधज भव आश्रयी ते, जघन्य तीन भव जाणी रे । उत्कृष्टा भव सात ग्रहण ह्व, हिव तसु न्याय पिछाणी रे ।। सोरठा नारकपणेज ३७. मच्छ सप्तमी जाय, मच्छ विष वलि आय पुनः मन्छ , ऊपजी । तीजे भवे ॥ ३८. तुर्य तमतमा जाय, पुनः मच्छ पंचम भवे । वलि सप्तमी पाय, वलि मच्छ सप्तम भव वृत्तौ ॥ ३९. *काल आथवी जघन्य थकी जे उदधि बावीस कहायो रे। अंतर्मुहुर्त दोष अधिक फुन, निसुणो एहनों न्यायो रे ।। सोरठा ४०. सागर बावीस जोय, सप्तमी नारक जघन्य स्थिति । अंतर्मुहूर्त दोय, प्रथम तृतीय भव मच्छ स्थिति || ४१. *काल आश्रयी उत्कृष्ट थी जे. उदधि छासठ ह्र ताह्यो रे । पूर्व कोज प्यार अधिक फुन, निसुणों तेनुं न्यायो रे ।। सोरठा ४२. तमतमा विषे भव तीन, बावीस बावीस उदधि नो । कोड़ पूर्व चिउं चीन, मच्छ तणां चिरं भय विषे ।। ४३. नरक सातमीं मांय, जघन्य स्थितिक नारकपणें । उत्कृष्ट त्रिण भय पाय, एकांतरिकज इह विधे || वा०-- एकांतरिक तमतमा नां तीन भव, ते किम ? तियंच १ तमतमा २, तिर्यंच ३, तमतमा ४, तियंच ५, तमतमा ६, तिर्यंच ७ - इम एकांतरिक सातमी ने विषे जघन्य स्थितिक नां तीन भव करें पिण अधिक न करें । अने तिर्यंच नां च्यार भव च्यार कोड़ पूर्व नां करें। ए सात भव उत्कृष्ट अद्धा । इहां सात भव नों काल परिमाण हुवै। जे 'कालओ' एहवूं पाठ इहां कह्यो छे ते काल उत्कृष्ट वांछ्यो, पिण नारक नां भव नी उत्कृष्टी स्थिति न बांछी । जे भणी तीन कोड़ पूर्वं सातमी नारकी नां जघन्य स्थितिक नों काल अने च्यार कोड़ पूर्व तिर्यंच भव नों काल अधिक ए लेखव्यो । ४४. *काल एतलो सेवे जंतु, करें गति आगति इतो कालो रे । अधिक नं अधिक गमो ए, दाख्यो प्रथम दयालो रे ।। *लय : प्रभवो चोर चोरों ने समझावै ३० भगवती जोड़ ३५. इत्थवेदगा न उववज्जंति, सेसं तं चैव जाव अणुबंधोति । 'इथिवेया न उववज्जंति' पृथिवीषु स्त्रीणामुत्पत्तेः ३६. सह भवाणं जहणणे उक्कोसेणं सत्त भवग्गहणाई । ति षष्ठयन्तास्व ( वृ० प० ८१४ ) तिष्णि भवन्महगाई ३७, ३८. 'उक्कोसेणं सत्त भवग्गहणाई' ति मत्स्यो मृत्वा १ सप्तम्यां गतः २ पुनर्मत्स्यो जातः ३ पुनः सप्तम्यां गतः ४ पुनरपि मत्स्य: ५ पुनरपि तथैव गतः ६ पुनर्मत्स्यः ७ इत्येवमिति । ( वृ० प० ८१४) ३९. कालादेसेणं जहणेणं बावीसं सागरोवमाई दोहि अंतमुतेहि अमहियाई, ४०. 'कालादेसेण' मित्यादि, इह द्वाविंशतिः सागरोपमाणि जघन्यस्थितिक सप्तमपृथ्वीनारकसम्बन्धीनि अन्त च प्रथमतृतीयभवसम्बन्धीत (बु०प०८१४) ४१. उनको सागरोवमाई चहि पुचकोडीह अमहियाई, ४२. 'छा सागरोपमाई' ति बारजयं सप्तम्यां द्वाविति सागरोपमायुष्कतयोत्पत्तेः चतस्रश्च पूर्वकोट श्चतुर्षु नारकभवान्तरितेषु मत्स्यभवेष्विति, ( वृ० प० ८१४ ) ४३. अतो वचनाच्च तदवसीयते - सप्तम्यां जघन्य स्थितिपूरकर्षतस्त्रीनेव वारानुत्पद्यत इति (२०१० १४ ) 1 ४४. एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा १ । ( ० २४०१ ) Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५. सो चेव जहण्णकालद्वितीएस उववण्णो, सच्चेव वत्तव्वया जाव भवादेसो त्ति । ४६. कालादेसेणं जहण्णेणं कालादेसो वि तहेव जाव चरहिं पुव्वकोडीहिं अब्भहियाई, ४७. एवतियं काल सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा २। (श० २४१८२) ४८. सो चेव उक्कोसकालट्ठितीएसु उववण्णो, सच्चेव लद्धी जाव अणुबंधो त्ति। ओधिक ने जघन्य (२) ४५. तेहिज जघन्य काल स्थितिक विषे ऊपनों, वक्तव्यता सहु जाणी रे। लब्धि प्राप्ति कहिये विध सेती, जाव भवादेश लग माणी रे॥ वा०--तेहिज सन्नी तिथंच जघन्य काल स्थितिक नै विषे ऊपनों, इह वचने करी जघन्य थकी बावीस सागर नै विषे ऊपनों अनै उत्कृष्ट थकी पिण बावीस सागर नै विषे ऊपनों, इम जाणवो। अनै लद्धी प्रमुख नी सर्व ही वक्तव्यता जाणवी। ४६. काल आश्रयी जघन्य थको जे, कालादेश पिण धारो रे । तिणहिज रीते कहिवो यावत, अधिक पूर्व कोड़ च्यारो रे ।। ४७. एतलो काल सेवै ते जंतु, करै गति आगति इतो कालो रे । ओघिक नै वलि जघन्य गमक ए, दाख्यो द्वितीय दयालो रे॥ ओघिक में उत्कृष्ट (३) ४८. तेहिज उत्कृष्ट काल स्थितिक विषे ऊपनों, लब्धि सर्व ही लहियै रे । यावत ही अनुबंध लगै ए, भवादेश हिव कहिय रे॥ वा० तेहिज सन्नी तिर्यंच उत्कृष्ट काल स्थितिक नै विषे ऊपनों, इह वचने करी जघन्य थकी पिण ३३ सागर स्थितिक विषे ऊपनों, उत्कृष्ट थकी पिण ३३ सागर स्थितिक विषे ऊपनों, इम कहिवू । अनं सगली ही लद्धी यावत अनुबंध लग जाणवू । ४९. भव आश्रयी जघन्य थकी जे, तिण भव ग्रहण करेवो रे । प्रथम तृतीय भव तिर्यंच केरो, एक नारक भव लेवो रे ।। ५०. उत्कृष्ट भव पंच ग्रहण जे, मच्छ तणां भव तीनों रे । बे भव सप्तमी उत्कृष्ट आयु, हिव तसु न्याय सुचीनो रे ।। सोरठा ५१. मच्छ मरी ने जेह, तेतीस सागर सप्तमी। ऊपजी ने वलि तेह, मच्छ हुवै तीजे भवे ।। ५२. तुर्य भवे फुन जाय, उत्कृष्टी स्थिति सप्तमी। मच्छ पुनरपि थाय, उत्कृष्टा भव पंच इम।। ५३. सप्तमी नरक मझार, उत्कृष्टी स्थिति नै विषे । इम जावै बे वार,तीजी वार न ऊपजै ॥ ५४. *काल आश्रयी जघन्य थकी जे, नारक उदधि तेतीसो रे। अंतर्महत दोय अधिक पिण, बे भव मच्छ कहीसो रे ।। ५५. उत्कृष्ट छासठ सागर नारक, बे भव स्थिति उत्कृष्टो रे । कोड़ पूर्व त्रिण अधिक कहीजै, त्रिण मच्छ भव स्थिति जिष्ठो रे ॥ *लय: प्रभवो चोर चोरां ने समझावै ४९. भवादेसेणं जहण्णेणं तिण्णि भवग्गहणाई, ५०. उक्कोसेणं पंच भवग्गहणाई। 'उक्कोसेणं पंच भवग्गहणाई" ति त्रीणि मत्स्यभवग्रहणानि द्वे च नारकभवग्रहणे (३० प.८१४) ५३. अत एव वचनादुत्कृष्टस्थितिषु सप्तम्यां वारद्वय मेवोत्पद्यत इत्यवसीयते ३ (वृ० प० ८१४) ५४. कालादेसेणं जहण्णणं तेत्तीसं सागरोवमाइं दोहि अंतोमुहुत्तेहिं अब्भहियाई, ५५. उक्कोसेणं छावढेि सागरोवमाइ तिहिं पुवकोडीहिं अब्भहियाई, श० २४, उ०१, ढा०४१४ ३१ Jain Education Intemational Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६. एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा ३ । (श० २४१८३) ५७,५८, सो चेव अप्पणा जहण्णकालद्वितीओ जाओ, सच्चेव रयणप्पभपुढविजहण्णकाल द्वितीयवत्तव्बया भाणियव्वा जाव भवादेसो त्ति, नवरं ५९,६०. पढम संघयणं, नो इथिवेदगा। तत्र रत्नप्रभायां षट् संहननानि त्रयश्च बेदा उक्ता: इह तु सप्तमपृथिवीचतुर्थगमे प्रथममेव संहननं स्त्रीवेदनिषेधश्च वाच्य इति ४, (वृ०प०८१४) ६१. भवादेसेणं जहण्णणं तिणि भवग्गहणाई, उक्कोसेणं सत्त भवग्गणाई। ५६. एतलो काल सेवै ते जंतु, करै गति आगति इतो कालो रे। ओधिक नै उत्कृष्ट गमक ए, दाख्यो तृतीय दयालो रे ।। जघन्य अने ओधिक (४) ५७. पजत्त संख्यात वर्षायुष सन्नी तिरि, जघन्य स्थितिक छै जेहो रे । अधोसप्तमी पृथ्वी विषे जे, ऊपजवा जोग्य नेरइयापणेहो रे ।। ५८. रत्नप्रभा नां चउथा गमा नीं, वक्तव्यता सहु भणवी रे । यावत भव आदेश लग इम, णवरं विशेषज थुणवी रे ।। ५९. रत्नप्रभा में षट संघयणी, जघन्य स्थितिक तिरि जायो रे । तुर्य गमे इहां सप्तम पृथ्वी, धुर संघयणी ध्यायो रे ।। ६०. रत्नप्रभा में स्त्रीवेदक पिण, तिरि स्थिति जघन्य गच्छंतो रे । तुर्य गमे इहां सप्तम पृथ्वी, स्त्री वेदक नहिं जंतो रे ।। ६१. भव आश्रयी जघन्य थकी जे, त्रिण भव ग्रहण कहीजे रे। उत्कृष्टा भव सप्त ग्रहण छ, न्याय पूर्ववत लीजै रे ।। सोरठा ६२. जघन्य तीन भव ख्यात, दोय मच्छ इक नारकी। उत्कृष्टा भव सात, त्रिण नारकी चिउं मच्छ नां ।। ६३. *काल आश्रयी जघन्य थकी जे, बावीस सागर न्हालो रे । अंतर्महतं दोय अधिक पिण, त्रिण भव - ए कालो रे ।। ६४. उत्कृष्ट छासठ सागर नारकि, ___ जघन्य स्थितिक भव तीनों रे । अंतर्मुहूर्त चार अधिक फुन, चिउं मच्छ भव अठ लीनो रे ।। ६५. एतलो काल सेवै ते जंतु, करै गति आगति इतो कालो रे । जघन्य अनें ओधिक गमक ए, दाख्यो तुर्य दयालो रे ।। __ जघन्य ने जघन्य (५) ६६. पजत्त संख्यात वर्षायुष सन्नी तिरि, जघन्य स्थितिक छै जेहो रे । जघन्य स्थितिक विषे नरक सप्तमी, ऊपजवा जोग्य नेरइयापणेहो रे ।। ६७. जघन्य स्थितिक विषे तेह ऊपनों, इम तुर्य गमो पहिछाणो रे । तेहिज समस्त प्रकारे कहिवो, जाव कालादेश लग जाणो रे ।। ६३. कालादेसेणं जहणणं बाबीसं सागरोवमाइ दोहि अंतोमुहुत्तेहि अब्भहियाई ६४. उक्कोसेणं छावट्टि सागरोवमाइ चउहि अंतोमुहुत्तेहि अब्भहियाई, ६५. एवतियं काल सेवेज्जा, एवतिय कालं गतिरागति करेज्जा ४ । (श० २४१८४) ६६,६७. सो चेव जहण्णकाल द्वितीएसु उववण्णो, एवं सो चेव चउत्थो गमओ निरवसेसो भाणियत्वो जाव कालादेसो त्ति ५। (श० २४१८५) *लय : प्रभवो चोर चोरां ने समझाव ३२ भगवती जोड़ Jain Education Intemational Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जघन्य में उत्कृष्ट (६) ६८. पजत्त संख्यात वर्षायुष सन्नी तिरि, उत्कृष्ट स्थितिक विषे नरक सप्तमी, जघन्य स्थितिक छे जेहो रे । ऊपजवा जोग्य नेरइयापणेहो रे । ६९. उत्कृष्ट स्थिति विषे तेह अपनों लब्धि सर्व ही लहिये रे । यावत ही अनुबंध लगे ए, हिव भव आश्रयी कहियै रे ।। ७०. भव आश्रयी जयन्य बकी जे त्रिण भव ग्रहण पिछाणी रे । प्रथम मच्छ भव द्वितीय सप्तमी, 1 ७१. उत्कृष्टा भव पंच कहीजै, तिर्यंच नां भव तीन करें ते, हिव तसु ७२. काल आश्रयी जघन्य थकी जे, तेतीस तृतीय मच्छ पुन जाणी रे ॥ बे भव सप्तमी लेहो रे । काल सुणेहो रे ॥ सागर तेहो रे । अंतर्मुहूर्त दोय अधिक फुन, त्रिण भव अद्धा एहो रे ।। ७३. उत्कृष्ट छासठ सागर नारक, उत्कृष्ट स्थिति के बारो रे । अंतर्मुहूर्त्त तीन अधिक पुन, त्रिण तिरि भव अद्ध धारो रे ।। ७४. एतलो काल सेवे ते जंतु, करें गति आगति इतो कालो रे ।। जघन्य अने उत्कृष्ट गमक ए, दाख्यो पष्ठम दयालो रे ।। उत्कृष्ट नें ओधिक (७) ७५. हिज उत्कृष्ट स्थिति सन्नी तिच गयो सातमी विषे जगीसो रे । जघन्य बावीस सागर ने आउख, उत्कृष्ट सागर तेतीसो रे । ७६. एक समय प्रभु ! किता ऊपजै ? शेष लब्धि सहु लहवी रे । सप्तमी पृथ्वी नां प्रथम गमक नीं, वक्तव्यता इहां कहवी रे ॥ ७७. यावत भव आश्रयी लग भगवं वरं स्थिति अनुबंधो रे । जघन्य उत्कृष्ट पिण पूर्व कोड़ी, शेष तिमज जे संधो रे ।। 1 ७८. काल आश्रयी जघन्य थकी जे, सागरोपम बावीसो रे कोट पूर्व वे अधिक कहीजे, हिव तसु न्याय जगीसो रे ।। सोरठा ७९. बावीस सागर जोय, सप्तम पृथ्वी जघन्य स्थिति । पूर्व कोड़ी दोय, उत्कृष्ट स्थिति तिरि बे भवे ॥ ८०. उत्कृष्ट छासठ सागर नारकि त्रिण भव स्थिति जघन्यो रे । प्यार पूर्व कोड़ि उत्कृष्ट स्थिति, *लय प्रभवो चोर चोरां में समझावै : तिर्यच चिडं भव जन्यो रे ।। ६८६९. सकालतीचेव लद्धी जाव अणुबंधोति । ७०. भवादेसेणं जहणेणं तिष्णि भवग्गहणाई, ७१. उक्कोसेणं पंच भवग्गहणाई. ७२. कालादेसेणं जहण्णेणं तेत्तीसं सागरोवमाइ दोहि अंतोहि अन्भहियाइ, ७३. उक्कोसेणं छाट्ठ सागरोवमाई तिहि अंतोमुहुत्ते ह अमहियाई, ७४. एवतियं काल सेवेस्मा एवतियं का गतिरानति करेज्जा ६ । (श० २४१८६) ७५. सो चेव अप्पणा उक्कोसकालट्ठितीओ जहणेणं बावीससागरोवमट्टिती एसु, उक्कोसेणं तेत्तीससागरोयमद्वितीएम उबवण्जेज्जा । (१० २४१८७) ७६. ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति ? अवसेसा सच्चेव सत्तम पुढविपढमगमवत्तव्वया भाणियव्या ७७. जाव भवादेसो त्ति, नवरं-ठिती अणुबंधो य जहणेणं पुव्वकोडी, उक्कोसेण वि पुव्वकोडी, सेसं तं चेव । ७०. कालादेमेणं होणं बावीसं सागरोवाई दोह पुव्यकोडी अहिवार, ८०. उसको दाद्रि सागरोबमाई चहि पुव्यकोडीहि अब्भहियाई, श० २४, उ० १, ढा० ४१४ ३३ Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८१. एतलो काल सेवै ते जंतु, करें गति आगति इतो कालो रे । उत्कृष्ट न अधिक गमक ए, दाख्यो सप्तम दयालो रे ॥ वा० इहां तीन भव सातमीं नां जघन्य स्थिति नां बावीस सागर नां ते मार्ट बावीस नै त्रिगुणा कियां छासठ सागर थया अन तिर्यच नां व्यार भव तिर्यंच कोड़ पूर्व उत्कृष्ट स्थिति नां ते मार्ट च्यार कोड पूर्व अधिक-ए उत्कृष्ट काल कह्यो । इहां कोई पूछँ - जे सात मैं गर्भं उत्कृष्ट नैं ओधिक छे, ते तियंच नों उत्कृष्ट आउखो अने नारकीनों अधिक मार्ट उत्कृष्ट तेतीस सागर नां दोय भव गिण्यां छासठ सागर हुवे । ते उत्कृष्ट स्थिति नां बे भव किम न गिण्या अन जघन्य स्थिति नां तीन भव किन न्याय गिण्या ? तेनो उत्तर - इहां कायसंवेध बीसमा द्वार नैं विषे एहवूं प्रश्न पूछ्यो जे सन्नी तिर्यंच मरी सातमीं जाय बलि तिहां थी नीकली सन्नी तिथंच हुवै। इम गतागति केतलो काल करें ? जद भगवंत काल नों जाब दियो- -जे भव आश्रयी जघन्य तीन भव, उत्कृष्टा सात भव । ते कोड़ पूर्व तिर्यच भव संबंधी अने बावीस सागर सातमीं नीं जघन्य स्थिति एतलं काल बे भव आश्रयी जघन्य कह्यो । अ उत्कृष्ट सात भव ते सप्तमी नां जघन्य स्थितिक नां तीन भव तेह्नां छासठ सागर गिण्या । अनैं प्यार तियंच नां भव संबंधी च्यार कोड़ पूर्व अधिक गिण्या । अने जो सातमीं नां दोय भव उत्कृष्ट आउखा नां गिण तो तिर्यंच नां उत्कृष्ट आउखा नां तीन भव नां तीन पूर्व कोड़ ईज हुवै, इम पांच भव गिण्यां छता उत्कृष्ट काल थोड़ो थावे अन सात भव नों काल गिण्यां छतां जघन्य स्थिति सातमी नां छासठ सागर हुवे अने उत्कृष्ट स्थितिक तिर्यच नां च्यार पूर्व कोड हुए एक पूर्व कोड काल वधै ते मार्ट उत्कृष्ट काल नीं वांछा लेखवी नैं सातमी ना जघन्य स्थिति नां छासठ सागर गिण्या । इम काल नो प्रश्न पूछ्ये छते उत्कृष्ट अधिक काल सात भव गिण्या इज हुवै अने पांच भव गिण्यां एक कोड पूर्व नो काल ओछो हुवै तिणसूं जघन्य स्थिति सातमी नां तीन भव नां छासठ सागर गिण्या । उत्कृष्ट ने जघन्य (८) ८२. हि पजत संपात वर्षायु सन्नी-तिरि ऊपजवा जोग्य सप्तम पृथ्वी, जघन्य स्थितिक नेरइयापणेहो रे ।। ८३. जघन्य स्थितिक विषे तेह ऊपनां, लब्धि बोल सह लहिये रे कायसंवेध पिण तिमहिज भगवू, सप्तम गम सम कहिये रे ।। उत्कृष्ट स्थितिक जेहो रे । उत्कृष्ट में उत्कृष्ट (९) ८४. तेहिज पत्त संख्यात वर्षायु सन्नी तिरि, अधो सप्तमी पृथ्वी विषे जे, ३४ भगवती जोड़ उत्कृष्ट स्थितिक जेहो रे । ५. उत्कृष्ट स्थितिक विषे ऊपनों लब्धि सर्व ही मणिवे रे। , यावत अनुबंध लग एकहि भवादेश इम युणियं रे || स्थिति उत्कृष्ट नेरइयापणेहो रे ।। ८१. एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा ७ । (श० २४००) ८२,८३. सो चेव जहणका लट्ठितीएसु उववण्णो, सच्चेव संवेो विहेब सत्तममममसरियो ८ (२० २४८९) ०४०५ सो व उक्कोसकालद्वितीएस उववरणी एस चैव लड़ी जाव अणुबंधोति । Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६. भव आश्रयी जघन्य तीन भव, मच्छ नारक तिर्यंचो रे। उत्कृष्टा भव पंच नारक बे, तिरि भव तीन विरंचो रे ॥ ८७. काल आश्रयी जघन्य थकी जे, नारक उदधि तेतीसो रे । ___कोड़ पूर्व बे अधिक जाणवा, बे तिरि भव स्थिति दीसो रे ।। ५८. उत्कृष्ट छासठ सागर नारक जेष्ठ स्थितिक भव दोयो रे । कोड़ पूर्व त्रिण तिर्यंच त्रिण भव, उत्कृष्ट आयू जोयो रे ।। ८९. एतलो काल सेवै ते जंतु, करै गति आगति इतो कालो रे । उत्कृष्ट ने उत्कृष्ट गमक ए, दाख्यो नवम दयालो रे ।। ९०. तिथंच नारकि जावे तेहनां, नव गम भव अधिकारो रे । लब्धि बोल नी प्राप्ति दाखी, णाणत्ता भेद विचारो रे ।। ८६. भवादेसेणं जहणणं तिण्णि भवग्गहणाई, उक्कोसेणं पंच भवग्गहणाई। ८७. कालादेसेणं जहण्णेणं तेत्तीसं सागरोवमाई दोहि पुव्वकोडीहिं अब्भहियाइ, ८८. उक्कोसेणं छावद्धि सागरोवमाई तिहिं पुवकोडीहि अब्भहियाई ८९. एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा ९। (श० २४।९०) सोरठा ९१. तुर्य पंचम षष्ठम, जघन्य गमा त्रिण जाणवा । सप्तम अष्टम नवम, उत्कृष्ट गमाज तीन ए ।। ९२. असन्नी धुर नरकेह, जावै तसु जघन्य गमे। तीन णाणत्ता लेह, उत्कृष्ट गमेज दोय फुन ।। ९३. आयु जघन्योत्कृष्ट, अंतर्मुहुर्त जघन्य गम। __ अनुबंध इतोज इष्ट, अपसत्थ अध्यवसाय फुन ।। ९४. उत्कृष्ट गम अवलोय, आउ पूर्व कोड़ नों। ___ अनुबंध इतोज होय, आख्या ए बे णाणत्ता ।। ९५. सन्नि तिर्यंच जाय, सातुं नारकि तेहनां । जघन्य गमे कहिवाय, आठ-आठ है णाणता ।। ९६. अवगाहना जघन्य, असंख्यातमें भाग जे। आंगुल तणे सुजन्य, उत्कृष्ट पृथक धनुष्य नी ।। ९७. धुर लेश्या त्रिण पाय, दृष्टि एक मिथ्या कही। ___ ज्ञान नहीं तिण मांय, समुद्घात त्रिण प्रथम ही ।। ९८. अंतर्मुहुर्त स्थिति संध, अपसत्थ अध्यवसाय फुन । आयु जितो अनुबंध, अष्ट-अष्ट जघन्य गमे ।। ९९. उत्कृष्ट गमेज संध, आउ पूर्व कोड़ नों। आउ जितो अनुबंध, दोय-दोय ए णाणत्ता ।। १००. असन्नी धुर नरकेह, जावै तेहनां दोय भव । नव ही गमके लेह, नारक थी असन्नी न है । १०१. सन्नी पं. तिर्यंच, धुर षट नरके जाय तसु । जघन्य दोय भव संच, उत्कृष्ट अठ नव ही गमे । १०२. सन्नी पं. तिर्यंच, नरक सातमी जाय तसु । जघन्य तीन भव संच, नव ही गमेज जाणवा ।। १०३. उत्कृष्टा भव पंच, तृतीय छठे नवमे गमे। शेष गमे षट संच, उत्कृष्टा भव सात ह।। श. २४, उ.१, ढा०४१४ ३५ Jain Education Intemational Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४. चवीसम शत देश प्रथम नों भिक्षु भारीमाल ऋविशय प्रसादे, चिउं सौ चवदमी ढालो रे । ऊपजै, हुवे ढाल : ४१५ 'जय जय' मंगलमालो रे । नारक में १. मनुष्य थकी जो स्युं सनी मनु थी के असन्नी ऊपजै नरक पूछे २. जिन कहै सन्नी मनुष्य मरि, पण असशी नहि ऊपजे, बलि ३. जो सनी मनु थी हुवे, तो स्यूं आउखावंत ऊपजै, कै असंख वर्ष वर्षायु दूहा ४. जिन कहै संख्यायुष मनु असंख वर्ष आयु सन्नी मनुष्य ३६ भगवती जोड़ नरक में ५. जो संख्याता वर्ष स्थिति जान स्युं पर्याप्त थी हुवै, कै अपजत्त पी भगवान ! थी जान ? *लय: प्रभवो चोर चोरां ने समझावै * लय : राजा राघव रायां रो राय कहायो तथा +लय : लाल हजारी को जामो विराज ७. पर्याप्त संख्यात वर्षायुष सन्नी मनुष्य जेह ऊपजवा जोग्य अछ जी, नारक नैं ८. ते कति पुढवी विधे ऊपजे प्रभुजी ! जिन कहै रत्नप्रभा विधे जाव सप्तमी, पृथ्वी विषे सन्नी नरके थकी नहि पर्याप्त जिके, जिके, वर्षायु अपजत्त नहि ऊपजे, गणधार ॥ संख्यात ? जात ? मभार । ६. जिन कहै सभी मनु थी *भावं स्वामी, सनी मनुष्य सभी मनुष्य नारक में ऊपजे, तसु नव गमका कहिये रे ॥ जात । थात || जाय । थाय ? | संखेह । ऊपजेह || नोट : दूसरी लय में दूसरे और चौथे पद में रे रहेगा । नारक नव गमा। ध्रुपदं ध्रुपदं भगवान ? विषे जान ।। सातूं मांय । उपजाय || १. ज मह उवज्वंति - किसमिस्सेहितो जति ? असणिमणस्तो उपवति ? २. गोयमा ! समतेहितो उपयति नो अणिमस्सेहतो उववज्जंति । (०२४०९१) ३. महतो उपवति कि वासा उपसण्णमणुस्सेहितो उववज्जंति ? असंखेज्जवासाउयसणिमगुस्सेहितो उववति ? ४. गोयमा ! संखेज्जवासा उयसण्णि मणुस्सेहितो उववज्जंति, नो असंखेज्जवासाउयसण्णिमणुस्से हितो उववज्जति । (२०२४।९२) ५. रामगुस्सेहितो उपयमंति किं पज्जत्तसंखेज्जवासा उयसण्णिमणुस्से हितो उवकति ? अपयत्तवासा उपसमिण से हितो उववज्जंति ? ६. गोयमा ! पज्जत्तसंखेज्जवासाज्यसण्णिमणुस्से हितो उववज्जंति, नो अपज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णि( श० २४1९३ ) मणुस्मेहितोति । ७. पज्जत्तसेवाउपसमिगुस्से णं भंते! जे भविए नेरइएसु उववज्जित्तए, कतिसु पुढची उबवण्या ? गोयमा सत्तम पुडी उबवण्यातं जड़ारयणप्पभाए जाव असत्तमाए । ( श० २४ । ९४ ) Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथम नरक में संख्याता वर्ष नों सन्नी मनुष्य ऊपज, तेहनों अधिकार' ओघिक ने ओधिक (१) ९. पर्याप्तो संख्यात वर्षायुष, सन्नी मनुष्य प्रभु ! जेह । ऊपजवा जोग्य रत्नप्रभा नां, नारक नै विषे सेह ।। १०. किता काल स्थितिक विषे ते प्रभ ! ऊपजै?, जिन कहै जघन्य सुलेखो। वर्ष सहस्र दश स्थितिक विषे ए, उत्कृष्ट सागर एको ।। ११. ते एक समय प्रभु ! किता ऊपजै? तब भाखै जगनाथं । जघन्य एक बे तीन ऊपज, उत्कृष्टा संख्यातं ।। सोरठा १२. गर्भज मनुष्य सुजोय, संख्याताज सदा हुवै । ते माटै अवलोय, संख्याता इज ऊपजै ॥ ९. पज्जत्तसखेज्जवासाउयसण्णिमणस्से णं भंते ! जे भविए रयणप्पभाए पुढवीए नेरइएसु उववज्जित्तए, १०. से णं भंते ! केवतिकालद्वितीएसु उववज्जेज्जा? गोयमा ! जहण्णणं दसवाससहस्सद्वितीएसु, उक्कोसेणं सागरोवमट्टितीएसु उववज्जेज्जा । _ (श० २४१९५) ११. ते णं भंते ! जीवा एगसमएण केवतिया उव वज्जति? गोयमा ! जहण्णणं एकको वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा उववज्जति। १२. उक्कोसेणं संखेज्जा उववज्जति' ति गर्भजमनुष्याणां सदैव सङ्ख्यातानामेवास्तित्वादिति, (व०प० ८१६) १३. संघयणा छ, सरीरोगाहणा जहण्णेणं अंगुलपुहत्तं, उक्कोसेणं पंचधणुसयाई। १४. एवं सेसं जहा सणिपंचिदियतिरिक्खजोणियाणं जाव भवादेसो त्ति, १५. नवरं--चत्तारि नाणा तिण्णि अण्णाणा भयणाए। १३. *षट संघयणी मनुष्य ऊपजै, तनु अवगाहन इष्ट । जघन्य थकी पृथक आंगुल नी, पांच सौ धनु उत्कृष्टं ।। १४. एवं शेष जिम सन्नी पंचेंद्री, तिथंच – आख्यातं । तेम इहां पिण कहिवं यावत, भवादेश लग बातं ।। १५. णवरं विशेषज च्यार ज्ञान नै, तीन अज्ञान सुजाणी। भजनांइं करिने ते भणवा, इहां वृत्तिकार इम आणी ।। सोरठा १६.जे अवध्यादि उचित्त, पड़िये छते केइक तणुं । नारक में उपपत्त, वृत्तिकार इम आखियो । १७. फुन कहै चूर्णिकार, अवधि अनै मनपज्जव तज बलि । छांडी तनु आहार, नरके उपजै चूणि मत ।। १५. 'इहां पाठ में ख्यात, सन्नी मन आखे भवे । भजनाइं करि थात, च्यार ज्ञान अज्ञान त्रिण ।। १९. किणहिक में बे ज्ञान, किणहिक में त्रिण ज्ञान ह। किणहिक में चिउं ज्ञान, इम भजनाइं ज्ञान चिउं ।। २०. किण में दोय अज्ञान, किण में तीन अज्ञान ह। आखै भव इम जान, भजना तीन अज्ञान इम ।। २१. इण लेखै अवलोय, अंत समय तिरि भव विषे । विभंग अवधिज होय, एहवं नियम न दीसत ।। २२. युगल विषे बे ज्ञान, अथवा दोय अज्ञान ह। अवधि विभंग न जान, पन्नवण पंचम पद विषे ।। २३. हुवै युगलिया देव, सुर धुर समये भवप्रत्यय । अवधि विभंग लहेव, एहवं जे दीसै अछै ।। १६. 'नवरं चत्तारि नाणाई' ति अवध्यादौ प्रतिपतिते सति केषाञ्चिन्नारकेषूत्पत्तेः, (वृ० प० ८१६) १७. आह च चूर्णिकारः --'ओहिनाणमणपज्जवआहारयसरीराणि लद्धणं परिसाडित्ता उववज्जंति' त्ति, (वृ०५०८१६, ८१७) २२. एवं उक्कोसट्टितीए वि, नवरं-दो णाणा, दो अण्णाणा। (षण्णवणा ५१०५) *लय : राजा राघव रायां रो राय कहायो १. परि. २. यंत्र ३ श०२४, उ० १, ढा० ४१५ ३७ Jain Education Intemational Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४. तिम तिरि नरके , जाय नारक र समया विषे। अवधि विभंगज पाय, भवप्रत्यय छै ते भणी ॥ २५. रात अष्टम द्वितीय उद्देश लढी ज्ञान अज्ञान नीं । 2 ते सांभलो । २६. नारक हे भगवंत ! कहिये छे स्यूं ज्ञानी कै अज्ञानी हुंत ? जिन भाखे २७. जे ज्ञानी छे तेह, निश्च त्रिण मति श्रुत अवधि लहे, अर्थ कियो आयो तिहां विशेष ३१. मिथ्यादृष्टी जेह. सन्नी भवप्रत्यय | बे । २८. सम्यकदृष्टि मोय, नारक नं अवधिज्ञान जे होय, जे होय, तिणसूं निश्वं ज्ञान त्रिण। २९. जे अज्ञानी अज्ञानी होय, केइक में केवक में त्रिण जोय, वृत्तिकार ३०. असन्नी छताज जेह, नारकि अपर्याप्ताविषेह, बे अज्ञान तिहां कह्यो । अपने । पिण नहीं ॥ कहिये दोनूं ज्ञानी हुवै। वृत्तिकार इम ३८. इह वचने अवलोय, ते भवप्रत्यय लेह, विभंग अनाण हुवै ३२. नरकगतियो जेह, तिच मनुष्य थकी नारक में ऊपजेह, अंतर गति जे अज्ञान ४०. उत्कृष्ट चिरं सागर नारकि नो, इम विषेज विभंग तसु ॥ जिको । वर्त्ततो ॥ २३. ते नरकगतिया मांय, निश्च करिनें ज्ञान त्रिण । भजनाई करि पाय, तीन अज्ञानज ३४. सुरगतिया आख्यात, नारकगतिया वृत्तिकार विख्यात अर्थ कियो इण ३५. सुरगतिया ने सोय, प्रथम समय भवप्रत्यय अवलोय, अवधि उपजे २६. इह वचने करि मंत नारक सुर में रिभव अंत अवधि विभंग नों नियम " ३७. * समुद्घात षट केवल वर्जी, स्थिति अनें जघन्य मास पृथक उत्कृष्टो, पूर्व कोड़ च्यार पूर्व कोड़ अधिक मनुष्य नां, सोरठा आउखो बे अंतरवर्ती होय, तरक न जावे ते *लय : राजा राघव रायां रो राय कहायो ३८ भगवती जोड़ तसु । थकीज ऊपजै । हुई ॥ । पूर्ववत ॥ नीं परं । रीत सुं । देवायु नें । नारकिवत ।। मास अपने । नहीं ।। ' ( ज० स० ) मनु ॥ ३९. *शेष तिमज कहिवो पूर्ववत काल आश्रयी जघन्य । वर्ष सहस्र दश नारक जघन्य स्थिति, मास पृथक मनु जन्य । चिरं भव में स्थिति जिष्ठ । अनुबंध । संबंध ॥ थी । चिउं भव स्थिति उत्कृष्ट ॥ २६. नेरइयाणं भंते ! कि नाणी ? अण्णाणी ? गोमा ! नाणी वि अण्णाणी वि ( भगवई ८।१०५ ) २७. जे नाणी ते नियमा तिण्णाणी, तं जहा - आभिणिबोहिय नाणो, सुपनाणी, मोहिनाणी । ( भगवई ८।१०५ ) २८. सम्बदृष्टिनारकाणां भयप्रत्ययमवधिज्ञानमस्तीति कृत्वा ते नियमात् विज्ञानिनः । (००२४५) २९. जे अण्णाणी ते अत्थेगतिया दुअण्णाणी, अत्थेगतिया तिअण्णाणी । (भगवई ०१०५) १०. असंज्ञिनः सन्तो ये नात्पद्यन्ते तेषामपर्याप् कावस्थायां विभंगाभा वादाद्यमेवाज्ञानद्वयमिति द्वज्ञानिनः । ३१. ये तु मिध्यादृष्टिभ्य उत्पद्यन्ते विभंगो भवतीति ते व्यज्ञानिनः । ३३. एवं तिष्णि अण्णाणाणि भयणाए । ३७. छ समुग्धाया केवलिवज्जा । ठिती अणुबंधो य जग्गेणं मासपुहतं, उनकोसेणं पुव्यकोडी, ३९. से ते ( वृ० प० ३४५) तेषां भयप्रत्ययो ( वृ० प० ३४५) ३८. 'जहन्नेणं मासपुहुत्तं' ति इदमुक्तं भवति - मासयातनं नरकं न याति ( ० ० ८१७) कालादेखेण जगेर्ण दबावहस्साई [ ( भगवई ८।१०५) 1 मास तमन्महिया ४०. उक्कोसेणं चत्तारि सागरोवमाई चउहि पुव्वकोडीह अमहियाई, Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोरठा ४१. मनुष्य व्यार भव इष्ट, इक नरके व अठ भव स्थिति उत्कृष्ट पर्छ ऊपजे नारकी । तिरि विषे ।। ४२. एलो कालवे ते जंतु करें गति आगति इतो कालो । अधिक ने ओधिक गमक ए, दाख्यो प्रथम दयालो । ओधिक नैं जघन्य [२] ४३. तेहिज पर्याप्त संख्यात वर्षायुष, सन्नी मनुष्य छे जेह । रत्नप्रभा में जघन्य स्थितिके, ऊपजवा जोग्य नारकपणेह || ४४. ते जघन्य काल स्थितिक विषे ऊपनों, एहिज पूठली पेखो । वक्तव्यता कहियै विध सेतो, णवरं इतरो विशेखो । ४५. काल आश्रयी जघन्य थकी जे, वर्ष सहस्र दश जन्य | मास पृथक अधिकेरी कहिये विहं भव काल उपन्य] ॥ सोरठा ४६. वर्ष सहस्र दस जाण, जघन्य स्थितिक नारक तणी । पृथक मास पिछाण, गर्भ विषे मनु आउयो । ४७. उत्कृष्ट चिरं पूर्व कोड़ी, चिरं मनु भव स्थिति जिष्टं । अधिक चालीस सहस्र वर्ष नरके, चिउं भव आयु कनिष्ठं ॥ ४८. एतलो काल सेवै ते जंतु, करै गति आगति इतो कालो । ओधिक नै वलि जघन्य गमक ए, दाख्यो द्वितीय दयालो । अधिक में उत्कृष्ट (३) ४९. तेहि पर्याप्त संख्यात वर्षायुष, सन्नी मनुष्य छै जेह । रत्नप्रभा मे उत्कृष्ट स्थितिके, ऊपजवा जोग्य नारकि विषेह । ५०. ते उत्कृष्ट काल स्थितिक विषे अपनों, एहिज पाचली जाणी । वक्तव्यता कहिये पिण णवरं इतरो विशेष पिछाणी ॥ ५१. काल आश्रयी जघन्य थकी जे, एक पृथक पुन अधिक कहीजै, बिहुं सागर अवलोई । भव अद्धा जोई ॥ सोरठा । ५२. पृथक मास मनु स्थित्त, गर्भ विषे मरि नै तिको। रत्नप्रभा उत्पत्त, इक सागर नैं आउखे || ५३. * उत्कृष्ट थी चिउं सागर नारकी, च्यार भवे स्थिति जिष्टं । पूर्व कोड चिडं मनुष्य तणी ए, चिउं भव स्थिति उत्कृष्टं ।। ५४. एतलो काल सेवे ते जंतु, करै गति आगति इतो कालो । अधिक मैं उत्कृष्ट गमक ए, दाख्यो तृतीय दयालो । *लय : राजा राघव रायां रो राय कहायो ४२. एवतियं काल सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा १ । ( श० २४ / ९६ ) ४२,४४. सोवण कालद्वितीय उबवण्णी, एस जेव वत्तब्वया, नवरं ४५. कालादेसेणं जहणेणं दसवाससहस्साइ मासपुहत्त मन्महिवाई', ४७. उक्कोसेणं चत्तारि पुव्वकोडीओ चत्तालीसाए वास सहस्सेहि अन्भहियाओ, ४८. एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं काल गतिरागति करेज्जा २ । (श. २४/९७) ४९, ५०. सो चेव उक्कोसकाल द्वितीएसु एस चैव वत्तब्वया, नवरं ५१. कालादेसेणं जणेणं सागरोवमं महियं । उष्णो मासपुहत्त ५२. उनको चार सागरोवमाई चउहि पुव्यकोशीहि अहवा ५४. एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा ३ । (म. २४९० ) श० २४, उ० १, ढा० ४१५ ३९ Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५,५६. सो चेव अप्पणा जहण्णकालट्टितीओ जाओ, एस चेव वत्तव्वया, नवरं इमाई पंच नाणत्ताई ५७. १. सरीरोगाहणा जहण्णेणं अंगुलपुहत्तं, उक्कोसेण वि अंगुलपुहत्तं । जघन्य ने ओधिक (४) ५५. पजत्त संख्यात वर्षायुष सन्नी मनु जघन्य स्थितिक छै जेह । ऊपजवा जोग्य रत्नप्रभा में, नारकी नै विषे तेह ।। ५६. एहिज वक्तव्यता कही पूर्वे, तेहिज भणवी जान । __णवरं पंच णाणत्ता कहिये, भेद अछे पंच स्थान ।। ५७. तनु अवगाहन जघन्य थकी जे, पृथक आंगुल लहिये । उत्कृष्टो पिण पृथक आंगुल, प्रथम णाणत्तो कहिये ।। सोरठा ५८. प्रथम गमे अवगाह, जघन्य पृथक आंगुल तणी । उत्कृष्टी कही ताय, धनुष्य पंच शत नी तिहां ।। ५९. इहां जघन्योत्कृष्ट पाय, पृथक आंगुल नी कही। धनुष्य पंच सय नांय, तिणसू धुर गम णाणत्तो। ६०. *तीन ज्ञान ने तीन अज्ञान नी, भजनाइं करि भणियै । जघन्य स्थितिक नां भाव थकी ए, द्वितीय णाणत्तो गिणिय।। ५८. प्रथमगमे तु सा जघन्यतोऽङ्गुलपृथक्त्वमुत्कृष्टतस्तु पञ्च धनुःशतानीति १। (वृ. प. ८१७) ६०. २. तिण्णि नाणा तिण्णि अण्णाणाई भयणाए । तथेह त्रीणि ज्ञानानि त्रीण्यज्ञानानि भजनया जघन्यस्थितिकस्यैषामेव भावात् । (वृ. प. ८१७) सोरठा ६१. प्रथम गमे चिउं नाण, जघन्य गमे मनपज्जव नहि । ते माटै इहां जाण, द्वितीय णाणत्तो ज्ञान नों ।। ६२. *समुद्धात पंच कही आदि नीं, आहारक केवल नाही। जघन्य स्थितिक नां भाव थकी ए, तृतीय णाणत्तो थाई ।। ६१. पूर्व च चत्वारि ज्ञानान्युक्तानीति २ । (बु. प. ८१७) ६२. ३. पंच समुग्घाया आदिल्ला। तथेहाद्याः पञ्च समुद्घाताः जघन्यस्थितिकस्यैषामेव सम्भवात् । (व. प. ८१७) ६३. प्राक् च षडुक्ताः अजघन्यस्थितिकस्याहारकसमुद् घातस्यापि सम्भवात् ३। (बृ. प. ८१७) मासपुहत्तं, सोरठा ६३. धुर गम षट समुद्घात, जघन्य स्थितिक मैं पंच है। आहारक नहिं आख्यात, तृतीय णाणत्तो ते भणी ।। ६४. *आउ अने अनुबंध जघन्य थी, पृथक मास कथित्तो । उत्कृष्टो पिण मास पृथक नों, तुर्य पंचम णाणत्तो।। सोरठा ६५. धुर गम स्थिति अनुबंध, जघन्य मास पृथक कह्यो । उत्कृष्ट ए बिहुं संध, कोड़ पूर्व नों छै तिहां ।। ६४. ४, ५. ठिती अणुबंधो य जहण्णेणं उक्कोसेण वि मासपुहत्तं । ६५. प्राक् च स्थित्यनुबन्धो जघन्यतो मासपृथक्त्वमुत्कृष्टतस्तु पूर्वकोट्यभिहितेति । (व. प. ८१७) ६७. सेसं तं चेव जाव भवादेसोत्ति । ६६. जघन्य गमे कनिष्ठ, स्थिति अनै अनुबंध जे। पूर्व कोड़ नहि इष्ट, तिणसू ए बिहुं णाणत्ता ।। ६७. *शेष तिमज जाव भवादेश लग, जघन्य दोय भव जाणी। उत्कृष्टा भव आठ कहीजै, हिव तसू काल पिछाणी ।। ६८. काल आश्रयी जघन्य नारकि में, वर्ष सहस्र दश जन्य । पृथक मास अधिक मनुष्य भव स्थिति, __ बिहुं भव काल जघन्य ॥ दसवाससहस्साई ६८. कालादेसेणं जहण्णेणं मासपुहत्तमभहियाई । *लय : राजा राघव रायां रो राय हायो ४. भगवती जोड़ Jain Education Intemational nal Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६९. उत्कृष्ट सागर च्यार नारकि में, चिहुं भव स्थिति उत्कृष्टं । पृथक मास चिरं मनुष्य तणे भव, चिउं भव स्थिति कनिष्ठं । ७०. एतलो काल सेवे ते जंतु करें गति आगति इतो कालो जघन्य अने अधिक गमक ए. दास्य तु दयालो ।। जघन्य नैं जघन्य ( ५ ) ७१. तेहिज पजत्त संख्यात वर्षायु सन्नी मनु, जघन्य स्थिति छै जेहो । रत्नप्रभा में जघन्य स्थितिक विधे ऊपजवा जोग्य नेरइयापणेहो || ७२. ते जघन्य काल स्थितिक विषे ऊपनों, वक्तव्यता सहु तेही । कहिवी चउथा गमक सरीखी, नवरं विशेष छे एही ॥ ७३. काल आश्रयी जघन्य थकी जे अद्धा सहस्र दश वास । पृथक मास अधिक वलि कहियै, बे भव आश्रयी तास । सोरठा ७४. वर्ष सहस्र दश जेह, जघन्य स्थितिक नारक मांहि । पृथक मास अधिकेह, मनुष्य भवे ए जघन्य स्थितिक ॥। ७५. * उत्कृष्ट चालीस सहस्र वर्ष नीं, चिउं भव नरक जघन्य । पृथक मास चिउं व्यार मनुष्य भव, अद्धा अष्ट भव जन्य ।। ७६. एतलो काल सेवे ते जंतु करें गति आगति इतो कालो । जघन्य अने वलि जघन्य गमक ए, दाख्यो पंचम दयालो || जघन्य ने उत्कृष्ट (६) ७७. ते पजत संख्यात वर्षायु सन्नी मनु, जघन्य स्थितिक छे जेहो । उत्कृष्ट स्थितिके रत्नप्रभा में ऊपजवा जोग्य नेरइयापणेहो । ७८. ते उत्कृष्ट काल स्थितिक विषे ऊपनों, पूर्व गमो को जिम एही । वरं एह विशेष कहीजे, सांभलजो चित देई || ७९. काल आश्रयी जघन्य सागर इक, नारकि भव स्थिति विष्टं । मास पृथक ए मनुष्य जघन्य स्थिति, बे भव अद्धा इष्टं ।। ८०. उत्कृष्ट अद्धा चिउं सागर नारकि चिउं भव स्थितिक उत्कृष्टं । चिरं पृथक मास चिरं मनुष्य तणी ए. चि भय स्थितिक निष्ठं ।। ८१. एतलो काल सेवै ते जंतु, करें गति आगति इतो कालो । जघन्य अने उत्कृष्ट गमक ए, दाख्यो षष्ठम दयालो रे ।। *लय : राजा राघव रायां रो राय कहायो ६९. उक्कोसेणं चत्तारि मासहतेहि अम्महिवाई ७०. एवतियं काल सेवेना एवतियं का करेज्जा ४ । सागरोवमाई ७१,७२. सणकालती चैव वत्तव्वया चउत्थगमगसरिसा, चउहि गतिरागति ( ० २४९९) ७३. कालादेसेणं जहणेणं दसवास सहस्साई मासपुहत्तमन्भहियाई । " उबवण्णो, एस नवरं ७५. उक्कोसेणं चत्तालीसं वाससहस्साइं चउहि मास - तेहि अमहियाई । ७६. एका सेवेा एवतियं काळं गतिरागति करेज्जा ५ । (४०२४।१००) ७७,७८. सो चेव उक्कोसका लट्ठितीएसु उववण्णो, एस चेव गमगो, नवरं ७९. कालादेसेणं जहणेणं सागरोवमं मासपुहत्तमन्भहियं । ८०. उनको चत्तारि सावरोवमाई चहि माहि अमहियाई । ८१. एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा ६ । ( श० २४ । १०१ ) श० २४, उ० १, ढा० ४१५ ४१ Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्कृष्ट में अधिक (७) ८२. पज्जत्त संख्यात वर्षायु सन्नी मनु, उत्कृष्ट स्थितिक जेहो । ऊपजवा जोग्य रत्नप्रभा में नारकी ने विषे तेहो || ८३. जाव तेहिज धुर गमो जाणवू, णवरं इतरो विशेखो । उत्कृष्ट गमे ए तीन णाणत्ता, जुआ-जुआ इम लेखो ।। ८४. तनु अवगाहन जपन्य थकी जे धनुष्य पंच सय जाणी । उत्कृष्टी पिन धनुष्य पंच सय, प्रथम णाणत्तो माणी ।। वा० - जघन्य उत्कृष्ट ५०० धनुष्य नीं अवगाहना अने उत्कृष्ट कोड़ पूर्व नीं स्थिति वालो बावनो हुवै तेहनों कथन न लेखव्यो । इहां बहुलपक्षे धोक-मारग' में उत्कृष्ट कोड़ पूर्व नीं ५०० धनुष्य नीं अवगाहणा कही । रत्नप्रभा में उत्कृष्ट गमे संख्याता वर्ष नों सन्नी मनुष्य ऊपजै अनैं और ठिकाणे संख्याता वर्ष नां सन्नी मनुष्य ऊपजै, उत्कृष्ट गमे एहीज न्याय जाणवो । सोरठा ८५. प्रथम गमे अवगाह, जघन्य पृथक आंगुल उत्कृष्टी कहिवाह, पूर्व कोड़ पूर्व कोड़ तभी ८६. इहां उत्कृष्ट गमेह, जघन्य अनै उत्कृष्ट धनुष्य पंच सय लेह, आखी छै ८७. पृथक आंगुल पेख, उत्कृष्ट गमा ते माटै इम देख, अवगाहना घुर ८८. *स्थिति जघन्य थी पूर्व कोड़ नीं, उत्कृष्ट पिण पुव्व कोड़ी । द्वितीय णाणत्तो स्थित तणों ए, अनुबंध पिण इम जोड़ी || सोरठा ८९. प्रथम गमा रे मांय, पृथक मास नीं जघन्य उत्कृष्ट कहिवाय, पूर्व कोड़ तणी ९०. पृथक मास पिछाण उत्कृष्ट गमा विषे स्थिति तिहां ॥ नथी । नुं ॥ तेनुं ।। ते माटै ए जाण, द्वितीय णाणत्तो स्थिति ९१. आयु जिम अनुबंध, तृतीय णाणतो उत्कृष्ट गमे सुसंध, तीन णाणत्ता इह विधे || ९२. *काल आश्रयी जघन्य थकी जे, पूर्व कोड़ पिछाणी । वर्ष सहस्र दश अधिक कहीजे, विहं भव अद्धा जाणी || तणी । तिहां ॥ फुन । अवगाहना || विषे नथी । णाणत्तो ॥ सोरठा ९३. पूर्व कोड़ पिछाण, मनुष्य भवे उत्कृष्ट स्थिति । वर्ष सहस्र दश जाण, जघन्य स्थिति नारक तणी ।। ९४. * उत्कृष्ट च्यार सागर नारकी में, चिरं भव स्थिति उत्कृष्ट पूर्व कोड़ चिरं मनुष्य विषे ए, च्यार भवे स्थिति जिष्टं ॥ * लय राजा राघव रायां रो राय कहायो १. उत्सर्ग मार्ग, सामान्य मार्ग ४२ भगवती जोड़ ८२,८३. सोवेव अपणा उनकोशकालद्वितीयो जाओ, सो चेव पढमगमओ नेयव्बो, नवरं ६४. सरीरोगाणा जम्मेणं पंचधपुयाई, उनको वि पंचवाई। पठिती जहणेणं पुव्वकोडी, उक्कोसेण वि पुव्वकोडी । एवं अणुबंधो वि। ९२. कालादेसेणं जहणेणं पुव्वकोडी दर्साह वाससहस्से हि अन्भहिया । ९४. उनको चत्तारि सावशेषमा उहि पुव्यकोडीह अम्मरयाई । Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९५. एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा ७। (श० २४११०२) ९६,९७. सो चेव जहण्णकालद्वितीएसु उववण्णो, सच्चेव सत्तमगमगवत्तन्वया, नवरं ९५. एतलो काल सेवै ते जंतु, करै गति आगति इतो कालो। उत्कृष्ट नैं ओधिक गमक ए, दाख्यो सप्तम दयालो ।। उत्कृष्ट नैं जघन्य (5) ९६. तेहिज पजत्त संख्यात वर्षापु सन्नी मनु, उत्कृष्ट स्थितिक जेहो ।। रत्नप्रभा में जघन्य स्थितिके, ऊपजवा जोग्य नारकी विषेहो ।। ९७. ते जघन्य काल स्थितिक विषे ऊपनों, वक्तव्यता सहु तेही । सातमा गमक सरीखी कहीवी, णवरं विशेष छै एही ।। ९५. काल आश्रयी जघन्य थकी जे, पूर्व कोड़ पिछाणी। वर्ष सहस्र दश अधिक कहीज, बिहुं भव अद्धा जाणी।। ९८. कालादेसेणं जहण्णेणं पुवकोडी दसहि वाससहस्सेहि अब्भहिया । १००. उक्कोसेणं चत्तारि पुवकोडीओ चत्तालीसाए वाससहस्सेहिं अब्भहियाओ। १०१. एवतियं काल सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा । (श० २४११०३) १०२,१०३. सो चेव उक्कोसकालद्वितीएसु सच्चेव सत्तमगमगवत्तव्वया, नवरं उववण्णो , सोरठा ९९. पूर्व कोड़ सुपेख, मनुष्य तणी उत्कृष्ट स्थिति । वर्ष सहस्र दश देख, जघन्यायु नारकि तणों।। १००. *उत्कृष्ट पूर्व कोड़ चिउं ए, नर भव चिउं स्थिति जिष्टं । चालीस सहस्र वर्ष नारकि नां, चिउं भव आयु कनिष्ठं ।। १०१. एतलो काल सेवे ते जंतु, करै गति आगति इतो कालो। उत्कृष्ट ने वलि जघन्य गमक ए, दाख्यो अष्टम दयालो ।। ___ उत्कृष्ट उत्कृष्ट (E) १०२. तेहिज पजत्त संख्यात वर्षायु सन्नी मनु, उत्कृष्ट स्थितिक जेहो। रत्नप्रभा मे उत्कृष्ट स्थितिके, उपजवा जोग्य नारकी विषेहो । १०३. ते उत्कृष्ट काल स्थितिक विषे, ऊपनों वक्तव्यता सहु तेही। सातमा गमक सरीखी कहिवी, णवरं विशेष छै एही ।। १०४. काल आश्रयी जघन्य थकी जे, कहिये सागर एको। पूर्व कोड़ी अधिक कहीजे, बिहुं भव अद्धा लेखो। सोरठा १०५. सागर एक सुजोड़, रत्नप्रभा नारकि स्थिति । मनु भव पूर्व कोड़, बिहुं भव अद्धा एतलो ।। १०६. *उत्कृष्ट अद्धा चार सागर नों, अधिक पूर्व कोड़ च्यारो। आठ भवां नों काल कह्यो ए, हिव तसु न्याय उदारो।। सोरठा १०७. नारकि चिउं भव जाण, च्यार सागर उत्कृष्ट स्थिति। च्यार मनुष्य भव माण, पूर्व कोड़ चिउं जेष्ठ स्थिति ।। १०४. कालादेसेणं जहणेणं सागरोवमं अब्भहियं । पुवकोडीए १०६. उक्कोसेणं चत्तारि सागरोवमाई चउहि पुत्वकोडीहि अन्भहियाई। *लय : राजा राघव रायां रो राय कहायो श० २४, उ०१, ढा०४१५ ४३ Jain Education Intemational Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८. * एतलो काल सेवै ते जंतु, करें गति आगति इतो कालो । उत्कृष्ट ने उत्कृष्ट गमक ए, दाख्यो नवम दयालो । दूजी नरक में संख्याता वर्ष नों सन्नी मनुष्य ऊपजै, तेहनों अधिकार' अधिक नैं ओधिक [१] १०९. जत्त संख्यात वर्षायु सन्नी मनु, हे भगवंतजी ! जेहो । सक्करप्रभा पृथ्वी ने विधे से, ऊपजवा जोग्य नेरइयापणेहो || ११०. किता काल स्थितिक विषे ते प्रभु! ऊपजे ? जिन कहै जघन्य लीनो । उत्कृष्ट सागर तीनो ।। एक सागर स्थितिक विधे अपने १११. इम तेहिज रत्नप्रभा पृथ्वी नां, वक्तव्यता कहिवी इहां सगली, ११२. तनु अवगाहन जघन्य थकी , जे पृथक हाथ उत्कृष्टी तेहनी अवगाहन, धनुष पंच सय सोरठा ११३. दोय हस्त परिमाण, तेह थकी जे हीण मनुष्य तणों तनु जाण, सक्कर विषे नहि ११५. पृथक वर्ष कहे, दोन मनुष्य तणी स्थिति तेह, ११४. "स्थिति जघन्य थी वर्ष पृथक नीं, उत्कृष्ट पूर्व अनुबंध पिण इमहिज जाणवो, शेष तं चैव गमा सरिखी संपेखो णवरं इतरो विशेखो || पिछाणी । माणी ॥ ११६. "यावत कहिवो भवादेश लग सोरठा वर्ष थी थी सक्कर विषे ११९. सक्करप्रभा नी स्थित्त, काल आश्रयी हेरं । व अद्धा एक सागर कहिये वर्ष पृथक अधिके ।। 1 ११७. सागर एक तास, सक्करप्रभा मनु स्थिति पृथक वास, बे भव ११८. *उत्कृष्ट अद्धा द्वादश सागर, अष्ट भवनों काल कह्यो ए, सोरठा सोरठा उत्कृष्ट ते चि भने कथित द्वादश *लय : राजा राघव रायां रो राय कहायो १. परि. २. यंत्र ५ ४४ भगवती जोड़ अति । उपजे ॥ कोड़ी। । सुजोड़ी || हीण हीण अति । नहि अपने । में जघन्य स्थिति। अद्धा जघन्य ए । पूर्व कोड़ी च्यारो । उत्कृष्टो उत्कृष्ट अवधारी ॥ सागर सागर तीन नीं । इम हुई ।। १०८. एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा ९ । ( श० २३।१०४ ) १०९. जत्तवासा उससे जे भविए सक्करयभाए पुढवीए उववज्जित्तए । णं भंते ! नेरइएस ११०. से णं भंते ! केवतिकाल द्वितीएसु उववज्जेज्जा ? गोयमा ! जहणेणं सागरोवमट्टितीएसु, उक्कोसेणं तिसावशेवमट्टितीएम उवा ( श० २४ । १०५ ) १११. सो वेव स्यष्यनिगम नेम्बो, नवरं ११२. सरीरोगाहणा जपणेणं रयणिपुहत्तं, उक्कोसेणं पंचधाई । ११३. ती मे बासपुहतं, उनको कोडी | एवं अणुबंधो वि । सेसं तं चैव । द्विहस्तप्रमाणेभ्यो हीनतरप्रमाणा द्वितीयान ( वृ० प०८१७) ११५. 'जये वासपुहतं ति अनेनापि वर्षमाकेभ्यो हीनतरामुण्डा द्वितीयायां नोपयन्त इत्यवसीयते । (बु० १० ८१७) ११६. जाव भवादेसो त्ति । कालादेसेणं जहणणं सागरोवमं वासपुत्तमम्भहियं । ११८. उक्कोसेणं बारस सागरोवमाई चउहि पुव्वकोडीहि अमहियाई । Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२०. उत्कृष्ट पूर्व कोड़, मनुष्य तणों जे आउखो। ते चिउं भवे सुजोड़, च्यार कोड़ पूर्व अद्धा ।। १२१. *एतलो काल सेवै ते जंतु, करै गति आगति इतो कालो। ओधिक नै ओधिक गमक ए, दाख्यो प्रथम दयालो ।। १२२. इम ए ओधिक धुर त्रिण गमके, पाछे कही ते भणवी। मनुष्य लद्धी परिमाण संघयणादि, तसु प्राप्ति तिम थुणवी।। १२३. नानापणुं ते भेद कह्य ए, नारकि स्थिति रै मांह्यो। वलि काल आश्रयी कायसंवेधज, फरक तास कहिवायो ।। १२१. एवतियं काल सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा। १२२. एवं एसा ओहिएसु तिसु गमएसु मणूसस्स लद्धी । १२३. नाणत्तं-नेरइयट्ठिति कालादेसेणं संवेहं च जाणेज्जा (श० २४११०६) सोरठा १२४. इहां प्रथम गमा रै मांहि, नारकि नी स्थित्यादि जे। पर्वे काज ताहि, द्वितीय तृतीय गम हिव कह्य ।। १२५. द्वितीय गमे इम जाण, ओधिक जघन्यायु विषे । इहां नारकि स्थिति माण, इक सागर जघन्योत्कृष्ट ।। १२४. तत्र प्रथमगमे स्थित्यादिकं लिखितमेव । (वृ० प० ८१७) १२५. द्वितीये त्वौधिको जघन्यस्थितिष्वित्यत्र नारकस्थितिर्जघन्येतराभ्यां सागरोपमं । (व०प० ८१७) १२६,१२७. कालतस्तु संवेधो जघन्यतो वर्षपृथक्त्वाधिक सागरोपममुत्कृष्टतस्तु सागरोपमचतुष्टयं चतु: पूर्वकोट्यधिकं । (वृ० प० ८१७) १३१,१३२. सो चेव अप्पणा जहण्णकाल द्वितीओ जाओ, तस्स वि तिसु वि गमएसु एस चेव लद्धी। १२६. काल थकी संवेध, जघन्य थकी वर्ष पृथक करि । सागर एक प्रबेध, बे भव अद्धा जघन्य ए॥ १२७. उत्कृष्ट अद्धा एह, चिउं सागर चिउं कोड़ पूव्व । अठ भव काल कहेह, तिण में नारकि जघन्य स्थिति ।। १२८. तृतीय गमे पहिछाण, ओधिक उत्कृष्ट स्थिति विषे । इहां नारक स्थिति जाण, त्रिण सागर जघन्योत्कृष्ट ।। १२९. काल थकी संवेध, जघन्य थकी वर्ष पृथक करि । सागर तीन प्रबेध, बे भव अद्धा जघन्य ए। १३०. उत्कृष्ट अद्धा जाण, बार उदधि चिउं कोड़ पूव । अठ भव काल पिछाण, इहां बिहुं भव उत्कृष्ट स्थिति ।। __जघन्य ओघिक [४] १३१. *पजत्त संख्यात वर्षायु सन्नी मनु, जघन्य स्थितिक छै जेहो। ऊपजवा जोग्य सक्करप्रभा में, नारकी ने विषे तेहो।। १३२. तेह जघनीया तीन गमा विषे, जघन्य मनुष्य स्थिति मांह्यो। एहिज लब्धि परिमाणादि प्राप्ति, धुर त्रिण गम जिम थायो।। १३३. णवरं तीन णाणत्ता कहिय, तनु अवगाहन जाणी। जघन्य अनें उत्कृष्ट थकी पिण, पृथक हाथ पिछाणी ।। सोरठा १३४. धुर गम कही ओगाण, उत्कृष्टी धनु पंच सौ। इहां पृथक कर जाण, ते माटै ए णाणत्तो।। १३५. *स्थिति जघन्य थो पृथक वर्ष नीं, उत्कृष्टी पिण संध । पृथक वर्ष तणी ए आखी, एतोइज अनुबंध ।। *लय : राजा राघव रायां रो राय कहायो १. अवगाहना रयणिपुहत्तं, १३३. नवरं–सरीरोगाहणा जहण्णेणं उक्कोसेण वि रयणिपुहत्तं । १३५. ठिती जहण्णेणं वासपुहत्तं, उक्कोसेण वि बासपुहत्तं । एवं अणुबंधो वि। श० २४, उ०१, ढा०४१५ ४५ Jain Education Intemational Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोरठा १३६. धुर गम स्थिति अनुबंध, उत्कृष्ट पूर्व कोड़ त्यां। इहां पृथक वर्ष संध, ते माटै ए णाणत्ता ।। १३७. *शेष ओधिक गमे जिम आख्यो, कहिवो सगलो तेमो। कायसंवेध विचारी भणवं, बुद्धि सं कहिये एमो।। १३७. सेसं जहा ओहियाणं । संवेहो उवजंजिऊण भाणियब्वो (श० २४११०७) १३०,१३९. जघन्यस्थितिक औधिकेम्वित्यत्र गमे संवेधः कालादेशेन जघन्यतः सागरोपमं वर्षपृथक्त्वाधिक उत्कृष्टतस्तु द्वादश सागरोपमाणि वर्षपृथक्स्वचतुष्काधिकानि । (वृ०प०८१७) १४२,१४३. सो चेव अप्पणा उक्कोसकाल द्वितीओ जाओ। तस्स वि तिसु वि गमएसु इमं नाणत्तं सोरठा १३८. तुर्य गमे संवेह, एक उदधि नै पृथक वर्ष । जघन्य काल ए लेह, बिहुं भव अद्धा जघन्य स्थिति ।। १३९. नारक सागर बार, चिहुं मनु भव चिहुं पृथक वर्ष । उत्कृष्ट अद्धा धार, तुर्य गमक न एतलु ।। १४०. इक दधि पृथक वास, जघन्य अद्धा बे भव तणों। उत्कृष्ट काल विमास, च्यार उदधि चिउं पृथक वर्ष ।। १४१. त्रिण दधि पृथक वास, षष्ठम गम अद्धा जघन्य । उत्कृष्ट काल विमास, बार उदधि चिउं पृथक वर्ष ।। उत्कृष्ट नैं ओधिक [७] १४२. *तेहिज पज्जत्त संख्यात वर्षायु सन्नी मनु, उत्कृष्ट स्थितिक जेहो। ऊपजवा जोग्य सक्करप्रभा में, नारकी नैं विषे तेहो ।। १४३. तेहनां पिण छेहला तीन गमे मनु, उत्कृष्ट आयु जासो। ते तीन गमा विषे एह णाणत्ता, कहियै तीन विमासो ।। १४४. तनु अवगाहन जघन्य थको जे, धनुष्य पंच सय होई। उत्कृष्टी पिण धनुष्य पांच सौ, प्रथम णाणत्तो जोई ।। सोरठा १४५. ओधिक गम अवगाह, जघन्य पृथक कर नीं कही। इहां धनु पंच सयाह, ते माटै ए णाणत्तो। १४६. *स्थिति जघन्य थी कोड़ पूर्व नी, उत्कृष्ट पिण पुव्व कोड़ी। द्वितीय णाणत्तो स्थिति तणों ए, इमहिज अनुबंध जोड़ी । सोरठा १४७. धुर गम स्थिति अनुबंध, जघन्य पृथक वर्ष नीं। इहां कोड पुव्व संध, ते माटै ए णाणत्ता ।। १४८. *शेष प्रथम गमा विषे कह्य छै, तिणहिज रीत कहेवू । णवरं नारकि नी स्थिति अनैं वलि, कायसंवेध जाणे ।। सोरठा १४९. सप्तम गम मनु जाय, जघन्य एक दधि स्थिति विषे। उत्कृष्ट नारकी मांय, ऊपजे त्रिण सागर विषे ।। १४४. सरीरोगाहणा जहण्णेणं पंचधणुसयाई, उक्कोसेण वि पंचधणुसयाई। १४५. शरीरावगाहना पूर्व हस्तपृथक्त्वं धनु शतपञ्चक चोक्ता इह तु धनुःशतपञ्चकमेव । (वृ०प० ८१७) १४६. ठिती जहण्णेणं पुवकोडी, उक्कोसेण वि पुवकोडी। एवं अणुबंधो वि। १४८. सेस जहा पढमगमए, नवरं-नेरइयठिई कायसंवेहं च जाणेज्जा ७-९ । *लय : राजा राघव रायां रो राय कहायो ४६ भगवती जोड़ Jain Education Intemational Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आढवेत्ता १५०. कायसंवेध जघन्य, इक सागर नारकि अद्धा । कोड़ पूर्व मनु जन्य, बिहुं भव अद्धा जघन्य ए। १५१. उत्कृष्ट अद्धा जोय, द्वादश सागर नारके। कोड़ पूर्व चिउं होय, च्यार मनुष्य भव नी स्थिति ।। १५२. अष्टम गम मनु जाय, जघन्य अने उत्कृष्ट पिण। ऊपजै नारकि मांय, इक सागर स्थिति में विषे ।। १५३. कायसंवेधे ताय, जघन्य एक सागर कह्यो। कोड़ पूर्व अधिकाय, बिहुं भव अद्धा जाणवू ।। १५४. उत्कृष्ट अद्धा जोड़, च्यार सागर नारक भव । अधिक चिउं पुव्व कोड़, चिउं मनु भव उत्कृष्ट स्थिति ।। १५५. नवम गमे मनु जाय, जघन्य अने उत्कृष्ट फुन । ऊपजै नारकि मांय, तीन सागर स्थिति में विषे ।। १५६. कायसंवेध जघन्य, त्रिण सागर ने कोड़ पुव । उत्कृष्ट अद्धा जन्य, बार सागर चिउ कोड़ पूव ।। १५७. सक्करप्रभा नां एह, नव गमके लद्धी कही। वलि णाणत्ता जेह, कह्या जघन्य उत्कृष्ट गम ।। तीजी स्यूं छठी नरक तक संख्याता वर्ष नों सन्नी मनुष्य ऊपज, तेहनों अधिकार' १५८. *एवं जाव छठी पृथ्वी लग, णवरं विशेष पिछाणो। तीजी पृथ्वी थी आरंभी मैं, इक-इक संघयण हाणी ।। १५९. जिम तिर्यंच पचेंद्री सन्नी, नारकि में ऊपजेहो। तिणमें संघयण घटाया तिम ही, कहिवा मनुष्य विषेहो ।। १६०. काल आश्रयी पिण तिम कहिवो, सन्नी तिर्यंच जेमो। णवरं मनुष्य नां गमा विषे जे, कहिवी मनुष्य स्थिति एमो॥ सोरठा १६१. तिर्यंच स्थिति जघन्य, अंतर्मुहर्त तिरि गमे । मनुष्य गमे फुन जन्य, मनुष्य तणी स्थिति जाणवी ।। १६२. पृथक वर्ष जघन्न, उत्कृष्ट पूर्व कोड़ मनु । सक्कर में उत्पन्न, इम यावत छठी विषे ।। सातवीं नरक में संख्याता वर्ष नो सन्नी मनुष्य ऊपज, तेहनों अधिकार' ओधिक न ओघिक [१] १६३. *पजत्त संख्यात वर्षायु सन्नी मन, हे भगवंतजी ! तेहो। अधोसप्तमी पृथ्वी विषे जे, ऊपजवा जोग्य नेरइयापणेहो।। १६४. किता काल स्थितिक विषे ते प्रभु ! ऊपजै ? जिन कहै जघन्य थी इष्ट । ऊपजै बावीस सागर स्थितिके, तेतीस सागर उत्कृष्ट ।। *लय : राजा राघव रायां रो राय कहायो १. परि०२. यंत्र ७, ९, ११, १३ २. परि०२. यंत्र १५ १५८. एवं जाव छट्ठपुढवी, नवरं-तच्चाए एक्केक्कं संघयणं परिहायति । १५९. जहेव तिरिक्खजोणियाणं । १६०. कालादेसो वि तहेव, नवरं-मणस्सद्विती जाणियव्वा । (श० २४।१०८) १६१. तिर्यस्थितिर्जघन्याऽन्तर्मुहूर्तमुक्ता मनुष्यगमेषु तु मनुष्यस्थितिर्जातव्या । (वृ०प०८१७) १६२. सा च जघन्या द्वितीयादिगामिनां वर्षपृथक्त्वमुत्कृष्टा तु पूर्वकोटीति । (वृ० प० ८१७) १६२. सापतितिव्या महत्तमुक्ता १६३. पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णिमणुस्से णं भंते ! जे भविए अहेसत्तमाए पुढवीए नेरइएसु उववज्जित्तए। १६४. से णं भंते ! केवतिकालद्वितीएसु उववज्जेज्जा ? गोयमा ! जहण्णेणं बावीससागरोवमद्वितीएसु, उक्कोसेणं तेत्तीससागरोवमट्टितीएसु उववज्जेज्जा। (श० २४.१०९) श०२४, उ०१, ढा० ४१५ ४७ Jain Education Intemational Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६५. ते एक समय प्रभु ! किता ऊपजै ? शेष तिमहिज भणेवो। सक्करप्रभा नों धुर गम भाख्यो, तिमहिज ए जाणेवो ।। १६५. ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जति ? अवसेसो सो चेव सक्करप्पभापुढविगमओ नेयव्वो। १६६. नवरं-पढमं संघयणं, इत्थिवेदगा न उववज्जंति, सेसं तं चेव। १६७. जाव अणुबंधो त्ति । भवादेसेणं दोभवग्गहणाई । १६८. कालादेसेणं जहण्णेणं बावीसं सागरोवमाई वासपुहत्त मन्भहियाई। १६६. णवरं सातमी पृथ्वी विषे जे, ऊपजै प्रथम संघयणी। इत्थीवेदगा ऊपजै नांही, शेष तिमज विध कहणी ।। १६७. यावत अनुबंध लग जाणवो, भव आश्रयी भव दोयो । एक मनुष्य दूजो सप्तम नरके, तेहथी तिथंच होयो ।। १६८. काल आश्रयी जघन्य संवेधज, बावीस सागर जाणी। वर्ष पृथक बलि अधिक कहीजै, जघन्य काल ए माणी ।। सोरठा १६९. ए सागर बावीस, नरक सप्तमी जघन्य स्थिति । पृथक वर्ष जगीस, जघन्यायु मनु भव विषे ।। १७०. *उत्कृष्ट अद्धा तेतीस सागर, सप्तमी थिति उत्कृष्टं । पर्व कोड़ी अधिक कहीजै, ए नर भव स्थिति जिष्टं ।। १७१. एतलो काल सेवै ते जंतु, करै गति आगति इतो कालो। ओधिक ने ओधिक गमक ए, दाख्यो प्रथम दयालो। ओधिक नैं जघन्य (२) १७२. तेहिज पजत्त संख्यात वर्षायु सन्नी मनु, जघन्य स्थितिक विषे उपन्नों। एहिज वक्तव्यता कहिवी तसु, णवरं विशेष सुजन्नों ।। १७३. नारकि स्थिति माहे फेर जाणवू, वलि कायसंवेध में फेरं। स्वयमेव उभय विचारी कहिवं, आगल ते इम हेरं ।। १७०. उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं पुव्वकोडीए अब्भहियाई, १७१. एवतियं काल सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा १। (श० २४१११०) १७२. सो चेव जहण्णकालद्वितीएसु उववण्णो, एस चेव वत्तव्वया। नवरं १७३. नेरइयट्ठिति संवेहं च जाणेज्जा २। (श० २४।१११) सोरठा १७४. नारकि स्थिति ए न्हाल, जघन्य अनै उत्कृष्ट ही। बाबीस सागर काल, तेह विषे ए ऊपनों ।। १७५. कायसंवेध जघन्य, वर्ष पृथक बावीस दधि । उत्कृष्ट अद्धा जन्य, बावीस सागर कोड़ पुव ।। ओधिक नै उत्कृष्ट [३] १७६.* तेहिज पजत्त संख वर्षायु सन्नी मनु, उत्कृष्ट स्थितिके उपनों। एहिज वक्तव्यता कहिवी तस्, णवरं विशेष सूजनों ।। १७७. नारकि स्थिति अनैं संवेधे, भेद बिहं रै मांह्यो। ते स्वयमेव जाणेवा मन स्यं, आगल ते कहिवायो।। सोरठा १७८. नारकि स्थिति ए न्हाल, जघन्य अनें उत्कृष्ट ही। तेतीस सागर काल, तेह विषे ए ऊपनों ।। १७६. सो चेव उक्कोसकालट्टितीएसु उववष्णो, एस चेव वत्तव्यया, नवरं१७७. संवेहं च जाणेज्जा ३ । (श० ४२१११२) *लय: राजा राघव रायां रो राय कहायो ४८ भगवती जोड़ Jain Education Intemational ale For Private & Personal use only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७९. कायसंवेध जघन्य, वर्ष पृथक तेतीस दधि । उत्कृष्ट अद्धा जन्य, तेतीस सागर कोड़ पुव्व ॥ हिवै जघन्य नै ओघिक, जघन्य ने जघन्य, जघन्य नै उत्कृष्ट-ए तीन जघन्य गमका कहै छै१८०. तेहिज आपणप जघन्य काल नों, स्थितिक हुओ जेही । तुर्य पंचम नैं छठा गमा विषे, वक्तव्यता छै एही ।। १८१. णवरं णाणत्ता तीन इहां छै, तनु अवगाहन मन्य। . जघन्य अनें उत्कृष्ट थकी पिण, पृथक हाथ सुजन्य ।। सोरठा १५२. प्रथम गमे अवगाह, उत्कृष्टी धनु पंच सय । इहां उत्कृष्टी आह, पृथक कर ए णाणत्तो।। १८३. स्थिति जघन्य थी वर्ष पृथक नी, उत्कृष्टी पिण संघ । पृथक वर्ष तणी कहिवी जे, इमहिज छै अनुबंध ।। १८०. सो चेव अप्पणा जहण्णकालद्वितीओ जाओ, तस्स वि तिसु वि गमएसु एस चेव वत्तध्वया । १८१. नवरं-सरीरोगाहणा जहण्णेणं रयणिपुहत्तं, उक्कोसेण वि रयणिपुहत्तं । १८३. ठिती जहण्णेणं वासपुहत्तं, उक्कोसेण वि वासपुहत्तं । एवं अणुबंधो वि। सोरठा १५४. धुर गम स्थिति उत्कृष्ट, पूर्व कोड़ तणी तिहां। इहां उत्कृष्टी इष्ट, वर्ष पृथक अनुबंध स्थिति ।। १८५. तुर्य गमे मनु जाय, नारकि स्थितिके जघन्य थी। बावीस सागर पाय, उत्कृष्ट तेतीस दधि विषे ।। १८६. *कायसंवेध जघन्य उत्कृष्टो, उपयोगे करि भणवो। तीनं गमके आगल इह विधि, प्रवर विचारी थुणवो ।। १८६. संवेहो उवजुंजिऊण भाणियब्वो ४-६ । (श० २४।११३) सोरठा १८७. कायसंवेध जघन्य, वर्ष पृथक बावीस दधि । उत्कृष्ट अद्धा जन्य, वर्ष पृथक तेतीस दधि ॥ १८८. पंचम गम मनु जाय, नरक सातमी नै विषे॥ बावीस सागर पाय, जघन्य अने उत्कृष्ट फुन । १८९. पंचम गम पहिछाण, जघन्य अने उत्कृष्ट अद्ध । कालसंवेध सुजाण, वर्ष पृथक बावीस दधि । १९०. कायसंवेध सुइष्ट, षष्टम गमे पिछाणियै । अद्धा जघन्य उत्कृष्ट, पृथक वर्ष तेतीस दधि । १९१. षष्टम गम मनु जाय, नरक सातमी नै विषे ।। तेतीस सागर पाय, जघन्य अने उत्कृष्ट पिण। १९२. सो चेव अप्पणा उक्कोसकालट्ठिती ओ जाओ, तस्स वि तिसु वि गमएस एस चेव वत्तव्वया, १९२. *तेहीज उत्कृष्टायु मनुष्य ऊपनों, नरक सातमी मांह्यो। सप्तम अष्टम नवम गमा विषे, एहिज वक्तव्यता कहिवायो । १९३. णवरं तेहनां तीन णाणत्ता, तनु अवगाहन जाणी। जघन्य अनें उत्कृष्ट थकी पिण, धनुष्य पंच सय माणो । *लय : राजा राघव रायां रो राय कहायो पंचधणुसयाई, १९३. नवरं-सरीरोगाहणा जहण्णेणं उक्कोसेण वि पंचधणसयाई । श० २४, उ०१, ढा०५४१ ४९ Jain Education Intemational Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोरठा १९४. धुर गम में अवगाह, पृथक कर नी जघन्य त्यां । इहां जघन्य पिण ताह, धनुष्य पंच सय नीं कही। १९५. *सप्तम अष्टम नवम गमा विषे, जघन्य स्थिति पूव्व कोड़ी। उत्कृष्टी पिण पूर्व कोड़ी, एवं अनुबंध जोड़ी ।। १९५. ठिती जहण्णेणं पुवकोडी, उक्कोसेण वि पुव्वकोडी। एवं अणुबंधो वि। सोरठा १९६.धुर गम स्थिति अनुबंध, जघन्य वर्ष पृथक तिहां । इहां जघन्य पिण संध, पूर्व कोड़ पिछाणजो॥ १९७. *नवही गमक विषे नारक स्थिति, वलि संवेध पिछाणी। सर्वत्र नव गम बे भव कहिये, मनुष्य सातमी माणी ।। १९७. नवसु वि एतेसु गमएसु नेरइयट्ठिति संवेहं जाणेज्जा । सम्वत्थ भवग्गहणाई दोण्णि सोरठा १०२. जघन्य अने उत्कृष्ट, बावीस सागर आउछ । १९८. षट गम पूर्वे ख्यात, स्थिति सोरठिया दुहा विषे । तमतमा स्थिति अवदात, प्रगट संवेध कह्यो वली ॥ उत्कृष्ट ने ओघिक (७) १९९. जेष्ठ स्थितिक मनु जाय, ओधिक स्थितिके सप्तमी । बावीस सागर पाय, उत्कृष्ट तेतीस दधि विषे ।। २००. अद्धा संवेध जघन्य, बावीस सागर कोड़ पुव्व । उत्कृष्ट अद्धा जन्य, कोड़ पूर्व तेतीस दधि । उत्कृष्ट नैं जघन्य () २०१. जेष्ठ स्थितिक मनु इष्ट, नरक सातमी नै विषे । जघन्य अने उत्कृष्ट, बावीस सागर आउखै ।। २०२. कायसंवेधज काल, जघन्य अने उत्कृष्ट अद्ध । बावीस सागर न्हाल, अधिक कोड़ पूर्व वली ।। २०३. *यावत नवम गमे इम कहिवो, काल आश्रयी ताह्यो । जघन्य अद्धा जे तेतीस सागर, कोड़ पूर्व अधिकायो ।। २०४. उत्कृष्टो पिण तेतीस सागर, पूर्व कोड़ी इष्टं । प्रगट पाठ मांहि प्रभु आखी, बिहुं भव स्थिति उत्कृष्टं ।। २०५. एतलो काल सेवै ते जंतु, करै गति आगति इतो कालो। उत्कृष्ट ने उत्कृष्ट नवम गम, मनुष्य सप्तमी न्हालो। वा०-प्रथम नारकी में सन्नी मनुष्य जावै, तेहनां जघन्य भव २, उत्कृष्ट भव८ । नाणत्ता जघन्य गमे ५, तेहनों विवरो-अवगाहना जघन्य उत्कृष्ट पृथक आंगुल नी १, ज्ञान तीन री भजना २, समुद्घात पांच ३, आउखो पृथक मास ४, अनुबंध आउखा जेतो ५, उत्कृष्ट गमे ३ णाणत्ता-अवगाहना ५०० धनुष्य १, आउखो कोड़ पूर्व २, अनुबंध आउखा जेतो ३।। सातमी नारकि सन्नी मनुष्य जावै, तेहना जघन्य भव २, उत्कृष्ट भव २ । जघन्य गमे ३ णाणत्ता एवं चेव । उत्कृष्ट गमे ३ णाणत्ता एवं चेव । २०३. जाव नवमगमए। कालादेसेणं जहण्णणं तेत्तीसं सागरोवमाइं पुवकोडीए अन्भहियाई। २०४. उक्कोसेण वि तेत्तीसं सागरोवमाई पुवकोडीए अब्भहियाई २०५. एवतियं कालं सेवेज्जा एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा ७-९। (श० २४।११४) *लय : राजा राघव रायां रो राय कहायो ५० भगवती जोड़ Jain Education Intemational Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोरठा २०६. प्रथम नारकि मांय, सन्नी मनु जावै तसु । जघन्य गमे कहाय, पंच णाणत्ता पाइयै ।। २०७. उत्कृष्ट गमे सुजोय, तीन णाणत्ता तेहनां । नाम जुजूआ सोय, पूर्वे आख्या ईज छै ।। २०८. सक्कर थी ले सोय, जाय तमतमा मनु सन्नी । तीन-तीन अवलोय, जघन्य गमेज णाणत्ता ।। २०९. उत्कृष्ट गमेज ताह, तीन-तीन है णाणत्ता । इम षट नरक तणांह, तीस अनै षट णाणत्ता ।। २१०. इम सातूं नरकेह, सन्नी मनु नां णाणत्ता । ___ चउमालीस कहेह, निर्णय पूर्वे आखियो । २११. *सेवं भंते ! सेवं भंते! जाव गोतम विचरंतो । अर्थ थकी शत चउवीसम नों, प्रथम उद्देशक तंतो॥ २१२. च्यारसौ पनरमी ढाल कही ए, भिक्षु भारीमाल ऋषिरायो। तास प्रसादे गण वृद्धि संपति, 'जय-जश' हरष सवायो । चतुर्विंशतितमशते प्रथमोद्देशकार्थः ।।२४।१।। २११. सेवं भंते ! भंते ! त्ति जाव विहरइ । (श० २४.११५) ढाल:४१६ १,२. व्याख्यातः प्रथमोद्देशकः अथ द्वितीयो व्याख्यायते, सम्बन्धस्तु जीवपदे इत्यादिपूर्वोक्तगाथानिदर्शित एव, (व०प० ८१८) दूहा १. प्रथम उद्देशे आखियो, द्वितीय हिवै कहिवाय । तास संबंध बलि इहां, बखाणिय वर वाय ।। २. जीव पदे इत्यादि जे, पूर्व गाथा उक्त । सर्व उद्देश विषे अपि, इमहिज आदि सुजुक्त ।। ३. अथवा हिव एहनुं सूत्र धुर, राजगृहे वर रीत । यावत गोतम इम कहै, निरमल वचन पुनीत ।। धन प्रभु वीरजी, वच गुण हीर जी । धन धुर शीस जी, प्रश्न जगीस जी ॥ [ध्र पदं] ४. असुरकुमार किहां थी ऊपजै? स्यूं नरक थकी उपजंत बे। कै तिरिक्ख मनुष्य ने देव थकी ह?तब भाखै भगवंत बे॥ (वृ०प० ८१८) ३. अस्य चेदमादिसूत्रम् रायगिहे जाव एवं वयासी ५. नारक सुर थी ऊपजै नाही, तिरि मनु थी उपजंत बे । इम जिम नारक प्रथम उद्देशे, दाख्यो तेम कहंत बे।। *लय : राजा राघव रायां रो राय कहायो लिय : धन प्रभु रामजी ४. असुरकुमारा णं भंते ! कओहितो उववज्जति–कि नेरइएहितो उववज्जति ? तिरिक्खजोणिय-मणुस्स देवेहिंतो उबवज्जति ? ५. गोयमा ! नो नेरइएहितो उववज्जंति, तिरिक्ख जोणिएहितो उववज्जंति, मणुस्सेहितो उववज्जति, नो देवेहितो उववज्जति । एवं जहेव नेरइय उद्देसए श० २४, उ० २, ढा० ४१५,४१६ ५१ Jain Education Intemational Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ असुरकुमार में असन्नी तियंच पंचेंद्रिय ऊपजं, तेहनो अधिकार' ओघिक ने ओधिक (१) ६. जाव पर्याप्त असन्नी पंचेंद्री, तिर्यंच प्रभुजी ! तेह बे । ऊपजवा ने जोग्य अछे जे, असुरकुमार विषेह बे ॥ ७. किता काल स्थितिक विषे ते प्रभु ऊपजे ? जिन कहै जघन्य सुइष्ट बे । ! अपने दश सहस्र वर्ष स्थिति के पत्य में असंख भाग उत्कृष्ट बे ॥ सोरठा ८. यहां पल्य नों पेख, असंख्यातम ग्रहिये करि सुविशेख, ग्रहियो पूर्व ९. असन्नी तिरि नों जाण, आउचो कोड़ छै पूर्व कोड़ परिमाण, आख्यो ति १०. ते असन्नी सुर आयु, बांधे तो उत्कृष्ट थी। निज स्थिति तुल्य पायु, पिण अधिक न बंधे इम वृत्तौ ॥ ११. वृत्तिविषे ए बात देखी जिम दाखी इहां पण निश्चय अवदात, व केवली तेह सत्य ॥ १२. * ते एक समय प्रभु ! किता ऊपजै ? जिम रत्नप्रभा रे मांहि वे । असन्नी ऊपजै तसु नव गमका, ते सम भणवा ताहि बे ॥ १३. नवरं तु पंचम षष्ठम गम, जघन्य स्थितिक तिरिताय । अध्यवसाय शुभ पिण नहि मुंडा, शेष तिमज कहिवाय बे ॥ सोरठा १४. असन्नी नरके जाय जघन्यायु तिरि नां हुवै । माठा अध्यवसाय, सुरगामी नां शुभ हुवै ॥ १५. *जो सन्नी पंचेंद्री तिथंच थकी जे, ऊपजे असुर मकार थे। स्यूं वर्ष संख्या सन्नी यावत ऊपजे, भाग जे । कोड़ जे । उत्कृष्ट थी। कारणे ॥ *लय धन प्रभु रामजी १. परि० २. यंत्र १६ २. इस सन्दर्भ में वृत्तिकार ने चूर्णिकार के मत को उद्धृत किया है। वह इस प्रकार है ५२ भगवती जोड़ के असंध वर्षां धी धार के ? उक्कोसेणं स तुल्लपुत्र कोडी आउयत्तं निवत्तेइ । न य संमुच्छिमो पुव्वकोडी आउयत्ताओ परो अस्थि । ( वृ० प० ८२० ) ६. जाव (०२४०११६) पज्जत्ता अस णिपंचिदियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए अमरकुमारे ए ७. से भंते! केवतिकालद्वितीएस उपवज्जेन्या ? गोयमा ! मह दसवाससीए उवकोसेणं पलिभोवमस्स असंखेज्जइभागट्ठितीएसु उववज्जेज्जा । (४० २४।११० ) ८. पदोपमा भागग्रहणेन पूर्व कोटी पाह्मा, ( वृ० प० ८२० ) ९. यतः संमूच्छिमस्योत्कर्षतः पूर्व कोटीप्रमाणमायुर्भवति, ( वृ० प० ८२० ) १०. स चोत्कर्षतः स्वायुष्यमेव देवाध्नाति नातिरिक्त, ( वृ० प० ८२० ) १२. ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति ? एवं रयणप्पभागमगसरिसा नव वि गमा भाणियव्वा, १३. नवरं - जाहे अप्पणा जहणकालट्ठितीओ भवति ताहे अज्झवसाणा सत्था, नो अप्पसत्था तिसु वि गमएसु । अवसेसं तं चैव १-९ । ( श० २४ । ११८ ) १५. वियतिरिक्जोणिहितो उयजति संवासउपसणपचिदियतिरिक्त्र - कि जोणिए हितो उववज्जंति ? असंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिदियतिरिक्जोणितति ? Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६. गोयमा! संखेज्जवासाउय जाव उववज्जति, असंखेज्जवासाउय जाव उववज्जति ।(श०२४।११९) १७. असंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिदियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए असुरकुमारेसु उववज्जित्तए, १६. जिन कहै संख वर्षायुष यावत, ऊपजै असुर मझार बे । __ असंख वर्षायुष यावत ऊपजै, वलि पूछे गणधार बे।। असुरकुमार में तिथंच युगलियो ऊपज, तेहनों अधिकार' ओधिक ने ओघिक (१) १७. हे प्रभु ! वर्ष असंख आयुष नां, सन्नी पंचेद्री तिरि जेह बे । ऊपजवा ने जोग्य अछ जे, असुरकूमार विषेह बे।। १८. किता काल स्थितिक विषे ते प्रभु ! ऊपजै? जिन कहै जघन्य सुचीन बे । ऊपज दश सहस्र वर्ष स्थितिके, उत्कृष्टो पल्य तीन बे।। सोरठा १९. युगल देवकुरु आदि, त्रिण पल्य स्थितिक असुर हूं। जो उत्कृष्ट आयु लाधि, तो निज स्थिति सम तोन पल्य ॥ १८. से णं भंते ! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा ? गोयमा ! जहणे णं दसवाससहस्सद्वितीएसु, उक्कोसेणं तिपलिओवमट्टितीएसु उववज्जेज्जा। ___ (श० २४।१२०) १९. इदं देवकुर्वादिमिथुनकतिरश्चोऽधिकृत्योक्तं, ते हि त्रिपल्योरमायुष्कत्वेनासङ्खचातवर्षायुषो भवन्ति, ते च स्वायुः सदृशं देवायुर्वघ्नन्तीति। (वृ०प० ८२०) २०. ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं-पुच्छा। गोयमा ! जहणणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं सबेज्जा उववज्जति । २०. ते एक समय प्रभु ! किता ऊपजै? तब भाखै जगनाथ बे । जघन्य एक दोय तीन ऊपज, उत्कृष्टा संख्यात बे।। सोरठा २१. युगल तिथंच सुजोय, संख्याता इज ते हुवे । पिण असंख नहिं होय, इम संख्याता इज ऊपजै ।। २२. *वजऋषभनाराच संघयणी, ते ऊपज असुर मझार बे । वर्ष असंख्याता स्थितिक जे, धूर संघयणी धार बे।। २१. 'संखेज्जा उववज्जति' त्ति असङ्ख्यातवर्षायुस्तिरश्चामसङ्खचातानां कदाचिदप्यभावात्, (वृ० ५० ८२०) २२. वइरोसभनारायसंघयणी। 'वयरोसहनारायसंघयणी' ति असङ्ख्यातवर्षायुषां यतस्तदेव भवतीति, (वृ०प०८२०) २३. ओगाहणा जहण्णेणं धणुपुहतं, उक्कोसेणं छ गाउयाई। २३. जघन्य थकी अवगाहन जेहनी, पृथक धनुष्य पिछाण बे । उत्कृष्टी तो छ गाउ नीं, उभय न्याय इम जाण बे।। सोरठा २४. जघन्य पृथक धनु थाय, ए छै पंखी आश्रयी । पंखी नीं अवगाह, धनुष्य पृथक उत्कृष्ट ह॥ २५. ते जुगल पंखी नी स्थित्त, असंख्यातमों भाग जे । __पल्य तणोंज कथित्त, वृत्ति विष इम आखियो । २६. षट गाउ उत्कृष्ट, देवकुरु प्रमुख विषे । हस्ति आदिक इष्ट, वर्ष असंख्यायु तिके ।। २७. *ते समचउरंस संठाण संठिया, ऊपजै असुर मझार बे । सर्व युगलिया धुर संठाणिक, न ह अन्य आकार बे ॥ २४. 'जहन्नेणं धणुहपुहुत्तं' ति इदं पक्षिणोऽधिकृत्योक्तं, पक्षिणामुत्कृष्टतो धनु:-पृथक्त्वप्रमाणशरीरत्वात्, आह च 'धणुयपुहत्तं पक्खिसुत्ति (वृ०प० ८२०) २५. असङ्ख्यातवोयुषोऽपि ते स्युर्यदाह-'पलिय असंखेज्जपक्खीसु'त्ति पल्योपमासङ्खयेयभागः पक्षिणामायुरिति, (वृ०प० ८२०) २६. 'उक्कोसेणं छ गाउयाई' ति, इदं च देवकुर्वादिहस्त्यादीनधिकृत्योक्तं, (वृ० ५० ८२०) २७. समचउरससंठिया पण्णत्ता। *लय : धन प्रभु रामजी १. परि० २, यंत्र १७ श० २४, उ०२, ढा० ४१६ ५३ Jain Education Intemational Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८. चत्तारि लेस्साओ आदिलाओ। नो सम्मदिट्ठी, मिच्छादिट्ठी, नो सम्मामिच्छादिट्ठी। ३०. नो नाणी, अण्णाणी, नियमं दुअण्णाणी-मति अण्णाणी सुयअण्णाणी य । ३१. जोगो तिविहो वि । उवओगो दुविहो वि । चत्तारि सण्णाओ। चत्तारि कसाया। पंच इंदिया। ३२. तिण्णि समुग्धाया आदिल्ला। समोहया वि मरंति, असमोहया वि मरंति । ३३. वेदणा दुविहा वि-सायावेदगा, असायावेदगा। ३४. वेदो दुविहो वि-इत्थिवेदगा वि पुरिसवेदगा वि, नो नपुंसगवेदगा। २८. चिउं लेश्या धुर तेह युगल में, समदृष्टि नहिं होय बे । मिथ्यादृष्टि मरी असुर ह, समामिथ्या नहिं कोय बे ।। सोरठा २९. समदष्टि नै सोय, बंध विमानिक नों हुवे । ते माटै अवलोय, मिथ्यादृष्टि ऊपजै ।। ३०. *ज्ञानी नहीं ह अज्ञानी है, नियमा बे अज्ञान बे । ___ मति अज्ञानी नैं श्रुत अज्ञानी, असुर विषे उपजान बे ।। ३१. जोग त्रिविध पिण हवै युगल में, फून उपयोगज दोय बे । च्यार संज्ञा च्यार कषायज, इंद्रिय पांचं होय बे ।। ३२. समुद्घात धुर तीन हुवै फुन, समोहया मृत्यु पाय बे । असमोहया पिण मरण मरै छ, युगल विषे कहिवाय बे ।। ३३. वेदना पिण हुवै दोय प्रकारे, सातावेदगा सोय बे । वलि असातावेदगा पिण ह, युगल विषे अवलोय बे॥ ३४. वेद बिहं विधि पिण ते ह छ, स्रीवेदगा पिण थाय बे । पुरुष वेद पिण हुवै युगलिया, बेद नपुंसक नाय बे ।। सोरठा ३५. वर्षायु असंख्यात, वेद नपुंसक नहिं हुवै । तिण कारण अवदात, दोय वेद ह युगल में ।। ३६. *स्थिति जघन्य थी पूर्व कोड़ी, कांइक जाझी जोय बे । उत्कृष्टी ह तीन पल्योपम, यूगल तणी अवलोय बे।। सोरठा ३७. साधिक पूर्व कोड़, जघन्य स्थिति तिरि युगल नी । ए संख वर्ष स्थिति जोड़, असंख्यायु स्थिति किम कही ।। ३८. युगल तणों ए नाम, वर्ष असंख्यायु स्थितिक । संज्ञावाची ताम, तिणतूं एह विरोध नहीं। ३९. *अध्यवसाय भला पिण होवै, माठा पिण तसु होय बे । __ अनुबंध स्थिति कही तिम कहिवो, द्वार उगणीसम जोय बे।। ४०. कायसंवेधज भव आश्रयी, बे भव ग्रहण कहाय बे । प्रथम युगल नों द्वितीय असुर नों, इह विधि बे भव थाय बे ।। ४१. काल आश्रयी जघन्य अद्धा ए, साधिक पूर्व कोड़ बे । वर्ष सहस्र दश अधिक कहीजै, उत्कृष्ट षट पल्य जोड़ बे॥ सोरठा ४२. साधिक पूर्व कोड़, तिरि भव युगल जघन्य स्थिति । __ वर्ष सहस्र दश जोड़, असुर भवे स्थिति जघन्य थी। ३५. 'नो नपुंसगवेयग' त्ति असङ्ख्यातवर्षायुषो हि नपुंसक वेदा न संभवन्त्येवेति, (वृ० प० ८२०) ३६. ठिती जहण्णेणं सातिरेगा पुव्वकोडी, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाई। ३९. अज्झवसाणा पसत्था वि अप्पसत्था वि। अणुबंधो जहेव ठिती। ४०. कायसंवेहो भवादेसेणं दो भवग्गहणाई, ४१. कालादेसेणं जहण्णेणं सातिरेगा पुव्वकोडी दसहिं वाससहस्से हिं अब्भहिया, उक्कोसेण छप्पलिओबमाई', *लय : धन प्रभु रामजी ५४ भगवती जोड़ Jain Education Intemational Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३. उत्कृष्ट अद्धा लेह, तीन पत्योषम तिरि युगल । असुर विषे ऊपजेह, तीन पस्योपम ४४. सुर भव थकी उद्धृत निश्चे नहीं द्वं तिणसूं एम कथित, अद्धा बे भव ४५. * एतलो काल सेवै ते जंतु, स्थितिके ॥ युगलिया । नों इहां ॥ करें गति आगति इतो काल मे । अधिक नैं अधिक गमक ए, दाख्यो प्रथम दयाल बे ॥ अधिक में जघन्य (२) ४६. तेहिज युगल तिर्यंच ऊपनों, जघन्य स्थितिक नैं विषेह बे । एहि वक्तव्यता त कहिवी, णवरं विशेष एह से || ४७. असुरकुमार नीं स्थिति विषं वलि, काय सवेध मभार ये || ए दोनू में फेर अछे ते, कहिवूं मन सूं विचार वे ।। सोरठा युगल ऊपजै असुर में । वर्ष सहस दश स्थितिके । जघन्य काल तेहनुं इतो । वर्ष सहस्र दश अधिक ए ॥ तीन पल्पोपम युगल स्थिति । असुर वर्ण भव जपन्य स्थिति ॥ अधिक ने उत्कृष्ट (३) ४८. जघन्य स्थिति के इष्ट, अन्य अने उत्कृष्ट ४९. कायसंवेध सुजोड़, साधिक पूर्व कोड़, २०. उत्कृष्ट अदा जेह, वर्ष सहस्र दश एह ५१. * तेहिज युगल तिरि जेष्ठ स्थितिक ते, अपनों उत्कृष्ट स्थितिक विषेह वे ।। जघन्य अने उत्कृष्ट थकी ते, तीन पल्य स्थिति लेह बे ॥ ५२. एहि वक्तव्यता तसु कहियी णवरं इतरो विशेख वे । स्थिति अनुवध जघन्य उत्कृष्टी तीन पल्योपम देख वे ।। , ५३. काल आश्रयी जघन्य अद्धा जे, पल्योपम षट पाय बे । उत्कृष्टो पण पट पस्योपम, बि भवनं कहिवाय वे ।। ५४. एतलो काल सेवे ते जंतु, करें गति आगति इतो काल बे । ओधिक नैं उत्कृष्ट गमक ए, दाख्यो तृतीय दयाल बे ।। जघन्य ने ओधिक (४) ५५. तेहि तिरि जघन्य काल स्थितिक हुआ, साधिक पूर्व को वे । ते असुरकुमार ने विषे ऊपजै, तुर्य गमो ए जोड़ बे ॥ ५६. अधिक स्थितिक विषे ते पर्ज जघन्य सहस्र दश वास बे । उत्कृष्ट साधिक कोड़ पूर्व नां आयु विषे सुविमास वे ॥ *लय : धन प्रभु रामजी ४३, ४४. 'उक्कोसेणं छप्पलिओवमाइ" ति त्रीण्यसङ्ख्यातवर्षायुतिर्यग्भवसम्बन्धीनि त्रीणि चासुरभवसम्बन्धीनीत्येवं षट्, न च देवभवादुद्वृत्तः पुनरप्यसङ्ख्यातवर्षायुष्केषूत्पद्यत इति (बु०प०८२०) ४५. एवतियं काल सेवेण्या एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा १ । (* ૨૪૨૨) " ४६. सो चेव जहणकालद्वितीएसु उववण्णो – एस चेव वत्तव्वया, नवरं ४७. अमरकुमार द्विति सं ( श० २४ । १२२) ५१. सो व उक्कोसकालद्वितीएम उपवण्णो जह तिपलिओमतीए, उनकोसेच वितिपलिओदमद्वितीएस उज्जे ५२. एस चैव वत्तव्वया, नवरं-ठिती से जहणणं तिण्णि पलिओमाई, उक्कोसेण वि तिष्णि पलिओवमाइ । एवं अणुबंधो वि । ५३. कालादेसेणं जहणेणं छप्पलिओवमाइ उक्कोसेण वि छप्पलओवमाई, ५४. एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा, सेसं तं चैव ३ | (श० २४। १२३) ५५,५६. सोवेव अण्णा जयकालद्वितीयो जाओ जहणेणं दसवाससहस्सट्टितीएसु, उक्कोसेणं सातिरेगपुण्व कोडी आउएसु उववज्जेज्जा । ( श० २४ । १२४ ) श० २४, उ० २, ढा० ४१६ ५५ Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४. ते एक समग प्रशु ! किता असमहिंज नेष सुजीन । सोरठा ५७. साधिक पूर्व कोड़, निज आयु तुल्य सुर स्थिति । उत्कृष्टी ए जोड़, पंखी प्रमुखज युगलिया । ५८. *ते एक समय प्रभु ! किता ऊपज, तिमहिज शेष सुचीन बे । यावत भव आदेश लगै ए, णवरं णाणत्ता तीन बे॥ ५९. तनु अवगाहन जघन्य थकी जे, पृथक धनुष्य संपेख बे । उत्कृष्टी धनु सहस्र जाझेरी, तास न्याय इम देख बे ।। सोरठा ६०. धनुष सहस्र अधिकाय, सप्तम कुलकर तेहथी। पूर्व काले पाय, भावी जे हस्त्यादि नीं। ५७. इह च जघन्यकालस्थितिक: सातिरेकपूर्वकोटघायु: स घ पक्षिप्रभृतिकः प्रक्रान्तः (वृ० प० २२०) ५८. ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवतिया उव वजंति ? अवसेसं तं चेव जाव भवादेसो त्ति, नवरं५९. ओगाहणा जहण्णेणं धणुपुहत्तं, उक्कोसेणं सातिरेगं धणुसहस्सं । ६०. 'उक्कोसेणं सातिरेगं धणुसहस्सं' ति यदुक्त तत् सप्तमकुलकरप्राक्कालभाविनो हस्त्यादीनपेक्ष्येति (वृ०प०८२०) ६१,६२. तथाहि-इहासङ्ख्यातवर्षायुर्जघन्यस्थितिकः प्रक्रान्तः स च सातिरेकपूर्वकोटयायुर्भवति तथैवागमे व्यवहृतत्वात्, (वृ०५०८२०) ६१. साधिक पूर्व कोड़, जघन्य स्थिति तिरि युगल नीं। ए संख वर्ष स्थिति जोड़, असंख वर्ष स्थिति किम कही ।। ६२. युगल तणों ए नाम, असंख्यात वर्ष स्थितिकः ।। संज्ञावाची ताम, आगम में ववहार इम ।। वा० अत्र जुगालियां हैं जघन्यायु साधिक पूर्व कोड़ हुवै, तेहन आगम वचने करी असंख्यात वर्षायुष कहिये । जे सर्व युगलिया नों असंख्यात वर्षायुष एहवी संज्ञा छ । जिम देवता मरै छै, तो पिण तेहy नाम अमर एहवू संज्ञा छ। तिम युगलिया नी पिण असंख्यात वर्षायुष एहवी संज्ञा छ । ६३. फुन एहवं हस्त्यादि, कुलकर सप्तम तेह थी । पूर्व काले लाधि, जघन्य स्थितिक अवगाहना ।। ६४. तथाज सप्तम जाण, कुलकर नीं अवगाहना । धनुष पंच सय माण, पंचवीस धनु अधिक फुन । ६५. तेह थकी सुविचार, पूर्व काल जे भावि नैं । धनुष पंच सय धार, अतिहि अधिक अवगाहना ।। ६६. ते काले हस्त्यादि, उच्चपणों द्विगुणो हुई । ___सहस्र धनुष तसु लाधि, अतिहि अधिक अवगाहना ।। ६७. धुर गम उत्कृष्ट वक्क, षट गाऊ आखी तिहां । इहां धनु सहस्र अधिक्क, ते माटै ए णाणत्तो ।। ६८. *स्थिति जघन्य उत्कृष्ट थी, तेहनों साधिक पूर्व कोड़ बे। तुर्य गमो ए छै ते माटै, एवं अनुबंध जोड़ बे॥ सोरठा ६९. धुर गम स्थिति उत्कृष्ट, तीन पल्य दाखी तिहां । इहां जेष्ठ स्थिति इष्ट, साधिक पूर्व कोड़ में ।। ७०. अनुबंध स्थिति जिम होय, तृतीय णाणत्तो तेहनें । धुर गम थी ए जोय, तुर्य गमे त्रिण णाणत्ता ।। ६३. एवंविधश्च हस्त्यादिः सप्तमकुलकरप्राक्काले लभ्यते, (ब० प० ८२०) ६४,६५. तथा सप्तमकुलकरस्य पञ्चविंशत्यधिकानि पञ्च धनुःशतानि उच्चस्त्वं तत्प्राक्कालभाविनां च तानि समधिकतराणीति (वृ०प० ८२०) ६६. तत्कालीनहस्त्यादयश्चैतद्विगुणोच्छायाः (वृ० प० ८२०) ६८. ठिती जहणेणं सातिरेगा पुत्वकोडी, उक्कोसेण वि सातिरेगा पुव्वकोडी। एवं अणुबंधो वि । *लय : धन प्रभु रामजी ५६ भगवती जोड़ Jain Education Intemational Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 ७१. *काल आश्रयो जघन्य थकी जे साधिक पूर्व कोड़ वे । वर्ष सहस्र दश अधिक कहीजं, बिहु भव अद्धा जोड़ वे ॥ सोरठा ७२. तिरि भव स्थिति संबंध, साधिक पूर्व कोड़ नीं । वर्ष सहस्र दश संध, असुर स्थिति ए धुर अद्धा || ७३. काल आश्रयी उत्कृष्ट अद्धा, साधिक वे पुष्व कोड़ बे । एक युगल तिरि भव संबंधी, द्वितीय असुर भव जोड़ बे ।। ७४. तो काल सेवं ते जंतु, करें गति आगति इतो काल बे । जघन्य अधिक गमक ए, दाख्यो तुर्य दयाल बे ॥ जघन्य अनं जघन्य (५) ७५. तेहि तिर्यंच जघन्य आयुवंत, असुर विषे अवधार बे । जघन्य काल स्थितिक विषे ऊपनों, पंचम गम सुविचार बे ॥ ७६. एहिज वक्तव्यता तसु कहिवी, णवरं इतलो फेर बे । असुरकुमार नीं स्थिति विषे छे, बलि संबंध सुहेर बे। सोरठा ७७. जघन्य अनै उत्कृष्ट, वर्ष सहस्र दश स्थितिक में । ऊपजवो इहां इष्ट, जघन्य स्थितिक तिरि युगलियो । ७८. काय संवेध सुजोड़, अद्धा जघन्य उत्कृष्ट पिण । साधिक पूर्व कोड़ वर्ष सहस्र दश अधिक फुन । । , जघन्य ने उत्कृष्ट (६) ७९. * तेहि तिर्यंच जघन्य आयुवंत, असुर विषे अवलोय बे । उत्कृष्ट काल स्थितिक विषे ऊपनों, । षष्ठम गमे सुजोय वे ।। ८०. जघन्य अने उत्कृष्ट यकी पिण, साधिक पूर्व कोड मे आउखा ने विषे ऊपजै, शेष तिमज विधि जोड़ बे । १. वरं संवेधकाल आथयो, जघन्य अने उत्कृष्ट वे साधक a goa कोड़ कहीजै, इक तिरि इक सुर इष्ट बे ॥ । ८२. एतलो काल सेवे ते जंतु, करें गति आगति इतो काल वे जघन्य अने उत्कृष्ट गमक ए, दाख्यो षष्ठम दयाल बे ॥ उत्कृष्ट में अधिक (७) ६३. तेहि तिरि उत्कृष्ट आयुवंत ऊपजे असुर मकार वे । वक्तव्यता सहु प्रथम गमा नीं, भणवी तेहिज सार बे ॥ *लय धन प्रभु रामजी ०१. कालावेसे जहोणं सातिरेगा पुष्बकोटी द वाससहस्सेहि अन्भहिया, ७३. उक्कोसेणं सातिरेगाओ दो पुव्वकोडीओ, 'सातिरेगाओ दो पुव्वकोडीओ' इति एका सातिरेका तिर्यग्भवसत्काsन्या तु सातिरेकंवा सुरभवसत्केति ४ । ( वृ० प० ८२० ) ७४. एवतियं काल सेवा एवतियं का गतिरागति करेज्जा ४ । (०२४१२४) ७५. सो चेव जहणकाद्वितीए उपयो 2 ७६. एस चैव त्वया नवरं असुरकुमार संवेहं च जाणेज्जा ५ । (२०२४१२६) , ७७७८. असुरकुमारद्विई' संदेहं च जागिन' ति त जघन्याऽमुरकुमारस्थितिदंशवर्षसहस्राणि संवेधस्तु सातिरेका पूर्व कोटी दशवर्षसहस्राणि चेति ५, ( वृ० प० ८२० ) ७९. सो चेव उक्कोसकालट्ठितीएसु उववण्णो ८०. जहणेणं सातिरेगपुल्व कोडिआउएसु, उक्कोसेण वि साति रेगपुव्व कोडी आउएसु उववज्जेज्जा, सेसं तं चेव, ८१. नवरंग जहांणं सातिरेगाओ दो पु कोडीवो, उक्कोसेण वि सातिरेगाओ दो पुष्कोडीओ, ८२. एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा ६ । ( ० २४१२७) ३. सो व अपणा उनकोसकालद्वितीओ जाओ सो देव पमगमग भाषियो श० २४, उ०२, ढा० ४१६ ७ Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८४. वरं तिरि में दोय णाणत्ता, स्थिति जघन्य उत्कृष्ट बे । तीन पल्योपम तेह युगल नीं, एवं अनुबंध इष्ट बे ।। सोरठा ५. घुर भव स्थिति जपन्य, साधिक पूर्व कोड़ नीं । इहां तीन पत्य जन्य एवं अनुबंध पिण कह्यो । ८६. *कायसंवेधज काल आश्रयी, जघन्य तीन पल्य होय बे । वर्ष सहस्र दश अधिक कहीजै, बिहुं भव अद्धा जोय बे ॥ सोरठा ८७. तीन पल्योपम तेह, युगल तिर्यंचज भव असुर भव स्थिति जेह वर्ष सहस्र दश नीं ८८. *उत्कृष्ट अद्धा षट पल्योपम, त्रिण पल्य युगल तीन पल्योपम असुर भवायु, इम षट पल्यज ८९. एतलो काल सेवै ते जंतु, करै गति आगति इतो काल बे । उत्कृष्ट नें अधिक गमक ए, दाख्यो सप्तम दयाल बे ।। उत्कृष्ट में जघन्य (८) तिर्यंच बे । संच बे ॥ ९०. ते हिज उत्कृष्ट आयुवंत तिरि, जघन्य स्थितिक विषे उत्पन्न बे । एहि वक्तव्यता तसु कहवी, सप्तम गम जिम जन्न बे ॥ ९१. वरं विशेष एतलं कहिवं, असुर स्थिति में फेर बे । कायसंवेध विषे पिण अंतर तेह जाणवू हेर बे सोरठा ९२. जघन्य अनैं उत्कृष्ट, वर्ष सहस्र दश ऊपजवो तसु इष्ट, स्थिति २३. काय संवेध पिछाण, जघन्य तीन पल्योपम जाण, वर्ष सहस्र दश स्थिति। अधिक ।। असुर अने *लय धन प्रभु रामजी ५८ भगवती जोड स्थितिक में। नीं जाणवी || उत्कृष्ट पिन । ऊत्कृष्ट ने उत्कृष्ट (६) ९४. * तेहि उत्कृष्ट आयुवंत तिरि, असुरकुमार रे मांय बे । उत्कृष्ट काल स्थितिक विषे उपनों, अधिक पुन || ॥ · नवम गमे कहिवाय बे ॥ ९५. जघन्य तीन पस्य स्थितिक विषे जे ऊपनों असुर मकार थे। उत्कृष्टो पण तीन पल्योपम स्थितिक विषे सुविचार बे ॥ ९६. एहिज वक्तम्पता पिण णवरं काल आधी देख वे । जघन्य अने उत्कृष्ट अद्धा पिण, षट पत्योपम पेख वे ॥ ९७. एतलो काल सेवै ते जंतु, करै गति आगति एतलो काल बे । उत्कृष्ट ने उत्कृष्ट गमक ए, दाख्यो दीन दयाल बे ॥ ८४. नवरं-ठिती जहण्णेणं तिष्णि पलिओवमाई, उक्कोसेण वि तिणि पलिओवमाई । एवं अणुबंधो वि । ८६. कालादेसेणं जमे तिमि पविमाई सहि बारासहस्सेहि अमहवाई ८८. उक्कोसेणं छ पलिओवमाई, ८९. एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा ७ । (०२४।१२८) ९०. सी चैव कालद्वितीएस उबवण्णो एस चैव वत्तव्वया, ९१. नवरं - असुरकुमारट्ठिति संवेहं च जाणेज्जा ९ । ( श० २४ । १२८ ) ९४. सो चेव उक्कोसकालट्ठितीएस उववण्णो ९५. जहणेणं तिपलिओवमाई, उक्कोसेण वि तिपलिओवमाई, ९६. एस चैव वत्तव्वया, नवरं कालादेसेणं जहणेणं छप्प लिओ माई, उक्कोसेण वि छप्पलिओवमाई, ९७. एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा ९ । (१० २४१३० ) Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ असुरकुमार में संख्याता वर्ष नों सन्नी तिर्यच पंचेंद्रिय ऊपज, तेहनों अधिकार' ९८. जो वर्ष संख्यायुष सन्नी पंचेंद्रिय, जाव असुर में जाय बे । स्यूं जलचर थी ऊपजै प्रभुजी ! एवं जाव कहाय बे॥ ९८. जइ संखेज्जवासाउयसण्णिपंचिदियतिरिक्खजोणिए हिंतो उववज्जंति -कि जलचरेहिंतो उववज्जति ? एवं जाव (श० २४११३१) ९९. पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिदियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए असुरकुमारेसु उववज्जित्तए, १००. से णं भंते ! केवतिकालद्वितीएसु उववज्जेज्जा ? गोयमा ! जहण्णेणं दसवाससहस्सद्वितीएसु, ९९. पजत्त संख्यात वर्षाय सन्नी पं. तिर्यंचयोनिक तेह बे। ऊपजवा ने जोग्य अछै जे, असुरकुमार विषेह बे ।। १००. किता काल स्थितिक विषे ते प्रभु! ऊपजै? जिन कहै गोयम ! तेह बे। जघन्य थकी दश सहस्र वर्ष नों, .. स्थितिक विषे उपजेह बे ।। १०१. उत्कृष्टी साधिक सागर नीं, स्थितिक विषे उपजंत बे। __ असुर उत्तर दिशि वलि निकायज, तेह आश्रयी मंत बे॥ १०१. उक्कोसेणं सातिरेगसागरोवमद्वितीएसु उववज्जेज्जा। (श० २४।१३२) 'उक्कोसेणं सातिरेगसागरोवमद्वितीएसु' त्ति यदुक्त तद्वलिनिकायमाश्रित्येति (वृ० प० ८२०) १०२. ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जति ? एवं एतेसि रयणप्पभपुढविगमगसरिसा नव गमगा नेयव्वा, १०३. नवरं जाहे अप्पणा जहण्णकालठितीओ भवइ ताहे गमएसु, इमं नाणत्तं-चत्तारि १०४. तिसु वि लेस्साओ। १०२. ते एक समय प्रभु ! किता ऊपजै? इम एहने पहिछाण बे। रत्नप्रभा नांगमा सरीखा, गमा नवं ही जाण बे।। १०३. णवरं एतलो विशेष कहीजे, जघन्य स्थितिक हुओ आप बे । तुर्य पंचम नैं षष्ठम गमके, जघन्य काल स्थिति स्थाप बे ।। १०४. ए तीनइ गमा विषे इम, कह्या णाणत्ता एह बे। लेश्या च्यार कहीजै तिणमें, तास न्याय इम लेह बे ।। सोरठा १०५. रत्नप्रभा रै मांहि, जाणहार जघन्यायु जे। सन्नी तिरि में ताहि, लेश्या तीन कही तिहां ॥ १०६. इहां लेश्या चिउं मंत, तेजु लेश्यावंत पिण। __ असुर विषे उपजंत, ते माटै ए णाणत्तो।। १०७. * अध्यवसाय पसत्थ कह्या तसु, पिण अपसत्थ नहीं आय बे। द्वितीय णाणत्तो तिर्यंच माहै, हिव कहियै तसु न्याय बे।। १०५,१०. 'चत्तारि लेसाओ' ति रत्नप्रभापृथिवीगामिना जघन्यस्थितिकानां तिस्रस्ता उक्ताः एषु पुनस्तारचतस्रः असुरेषु तेजोलेश्यावानप्युत्पद्यत इति । (वृ० प० ८२१) १०७. अज्झवसाणा पसत्था, नो अप्पसत्था। सोरठा १०८,१०९. तथा रत्नप्रभापृथिवीगामिनां जघन्यस्थिति कानामध्यवसायस्थानान्यप्रशस्तान्येवोक्तानि इह तु प्रशस्तान्येव । (वृ• प० ८२१) १०८. रत्नप्रभा रै मांय, जाणहार धुर स्थितिक नां। माठा अध्यवसाय, भला न आवै तिण भवे। १०९. इहां भलाहिज ख्यात, जघन्यायु तिरि नै विषे । अप्रशस्त नहि पात, अद्धा अल्पपणां थकी ।। ११०. दीर्घ स्थितिक तिरि जोय, जाणहार जे असुर में। प्रशस्त अप्रशस्त होय, अल्प स्थितिक नां शुभ हुवै । ११०.दीर्घस्थितिकत्वे हि द्विविधान्यपि संभवन्ति न वितरेषु कायस्याल्पत्वात् । (वृ०प० ८२१) *लय : धन प्रभु रामजी १. परि० २. यंत्र १८ श• २४, उ०२, ढा० ४१६ ५९ Jain Education Intemational Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १११. *शेष तिमज कहिवूं सगलोई, कायसंवेध साधिक सागर एक संघाते करि संबंध सोरठा कायसंवेधज ११२. प्रथम गमे पहिछाण, वर्ष सहस दश जाण, अंतर्मुहूर्त अधिक ११३. उत्कृष्ट अदा जोड़, साधिक सागर चिउं फुन चिउं पूर्व कोड़, अठ भव स्थिति ११४. द्वितीय गमे इम लेख, जघन्य थकी अद्धा वर्ष सहस्र दश देख, अंतर्मुहूर्तं अधिक ११५. उत्कृष्ट बढा जास, कोड़ पूर्व चितं तिरि चालीस सहस्र वास, असुर तणी ए जघन्य ११६. तृतीय गमे पहिछाण, अद्धा जघन्य थकी साधिक सागर जाण, अंतर्मुहूर्त्त अधिक ११७. उत्कृष्ट अद्धा काल, चि साधिक चिउं असुर । कोड़ पूर्व चिउं न्हाल तिर्यंच भव उत्कृष्ट स्थिति || ११८ तु गमे संवेह, वर्ष सहस्र दश स्थिति । असुर अंतर्महुतं एह, सन्नी तिरि भव जघन्य थी ॥ ११९ उत्कृष्ट अद्धा धार, चिरं साधिक सागर असुर । सागर अंतर्मुहूर्त च्यार, चिउं तिरि भव ए जघन्य स्थिति || १२०. पंचम गमे जघन्य, अंतर्मुहूर्त्त तिरि भवे । वर्ष सहस्र दस जन्य, बिहूं भव अद्धा जपन्य स्थिति || १२१. उत्कृष्ट अद्धा धार, अंतर्मुहूर्त प्यार वर्ष चालीस हजार, अष्ट भवे ए जघन्य गमे संवेह, १२२. षष्टम अंतर्मुहूर्त्त तिरि साधिक सागर लेह, षष्टम गम ए जघन्य १२३. उत्कृष्ट अद्धा धार, साधिक सागर चिउं अंतर्मुहूर्त प्यार, षष्टम गम उत्कृष्ट १२४. सप्तम गमे सुजोड़, जघन्य अद्धा संवेध तिरि भव पूर्व कोड़ वर्ष सहस्र दवा १२५. उकृष्ट अढा जोड़, चिडं साधिक सागर तिरि भव चिरं पुव्व कोड़, अष्ट भवां नों १२६. अष्टम गमे सुजोड़, जघन्य थकी अद्धा तिरि भव पूर्व को वर्ष सहस्र दश असुर १२७. उत्कृष्ट अद्धा संच, वर्ष सहल सहस्र चालीस चिरं पुण्व कोड़ तियंच, अष्ट भवा नों काल 1 ए । १२. नवमे गमे सुम्हाल जघन्य थकी अद्धा इतो । साधिक सागर काल, कोड़ पूर्व बलि अधिक हो || १२९. उत्कृष्ट अढा जोर, साधिक सागर चिरं असुर तिरि भव चिरं पुव्व कोड़, अठ भव उत्कृष्ट काल स्थिति ॥ * लय धन्य प्रभु रामजी ६० भगवती जोड़ विषेह बे । जेह वे ।। जघन्य अद्ध । फुन ।। असुर । असुर उत्कृष्ट ए ॥ इतो । फुन ॥ भवे। स्थिति ॥ कह्यो । फुन ।। तिरि । स्थिति ।। भवे । अद्धा || असुर । अद्धा || नों । स्थिति । असुर । काल ए । इतो। स्थिति || ही । १११. सेसं तं चैव । संवेहो साति रेगेण सागरोवमेण कायध्वो १-९ । (१०२४१२३) Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३०. ए नव गमे संवेह, संख्यायु सन्नी तिरि । असुर विषे ऊपजेह, जघन्योत्कृष्ट अद्धा कह्यो । १३१. असन्नी असुर मझार, जावै तसु जघन्य गमे । तीन णाणत्ता धार, उत्कृष्ट गम बे णाणत्ता । १३२. युगल तिर्यंच सुचीन, असुर विषे जावै तसु । जघन्य गमेज तीन, उत्कृष्ट गम बे णाणत्ता ।। १३३. संख्यायु तिर्यंच, असुर विषे जावै तसु । जघन्य गमे अठ संच, उत्कृष्ट गम बे णाणत्ता ।। १३४. इम तिथंच विचार, जावै तसु जघन्य गमे । तीस णाणत्ता धार, पूर्वे आख्या ए सहु'। १३५. *शत चउवीसम द्वितीय देश ए, च्यार सौ में सोलमी ढाल बे। भिक्षु भारीमाल ऋषिराय प्रसादे, 'जय-जश' मंगलमाल बे।। ढाल:४१७ १. मनुष्य थकी जो ऊपजै, असुरकुमार मझार । तो स्यूं सन्नी मनुष्य थकी, के असन्नी थी धार ? २. जिन कहै सन्नी मनुष्य थी, असुर विषे ऊपजेह । असन्नी मनुष्य मरी करी, असुर हुवै नहीं तेह ।। ३. जो सन्नी मनु थी हुवै, तो संख्यायु वास । तथा असंख्यायु मनुष्य ऊपजे तेह प्रकाश ? १. जब मणुस्सेहितो उववज्जंति-किं सण्णिमणुस्सेहितो उववज्जति ? असण्णिमणुस्सेहितो उववज्जति ? । २. गोयमा ! सण्णिमणुस्सेहितो उववज्जंति, नो असण्णिमणुस्सेहितो उववति । (श० २४।१३४) ३. जइ सण्णिमणुस्सेहितो उववज्जंति-कि संखेज्जवासाउयसण्णिमणस्सेहिंतो उववज्जति ? असंखेज्जवासा उयसण्णिमणुस्सेहितो उववज्जंति ? ४. गोयमा! संखेज्जवासाउयसण्णिमणुस्सेहितो उववज्जंति, असंखेज्जवासाउयसण्णिमणुस्सेहितो वि उववज्जति । (श० २४११३५) ४. जिन कहै वर्ष संख्यायुष, यावत असंख वर्ष आयुष पिण, यावत उपजे तेह । ही ऊपजेह ।। *लय : धन्य प्रभु रामजी १. प्रस्तुत गाथा में 'तीस णाणत्ता' लिखा है। किन्तु पूर्ववर्ती तीन गाथाओं, णाणत्ता के यन्त्र और गमा के थोकड़े के अनुसार 'बीस णाणत्ता' होना चाहिए । जोड़ की हस्तलिखित प्रतियों में 'तीस णाणत्ता' ही है। संभव है श्रुति या लिपि में रहे अन्तर के कारण यह पाठभेद हुआ है। श० २४, उ० २, ढा० ४१६,४१७ ६१ Jain Education Intemational Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ असुरकुमार में मनुष्य पुगलियो ऊपजे, तेहनों अधिकार' ओधिक ने ओधिक (१) *सुगुण जन सांभलो रे ।। (ध्रुपदं) ५. असंख्यात वर्ष आउखो रे, सन्नी मनुष्य छै जेह । ऊपजवा ने जोग्य छै रे, असुरकुमार विषेह ।। ६. किता काल स्थितिक विषे ऊपजे रे?, तब भाखै जिनराय । जघन्य सहस्र दश स्थितिक में रे, उत्कृष्ट त्रिण पल्य पाय ।। सोरठा ७. उत्कृष्ट स्थितिक जान, देवकुर्वादिक मनुष्य नीं। ते निज आयु समान, देवायुष नां बंधका ।। ५. असंखेज्जवासाउयसण्णिमणुस्से णं भंते ! जे भविए __ असुरकुमारेसु उववज्जित्तए । ६. से णं भंते ! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा ? गोयमा! जहण्णेणं दसवाससहस्सद्वितीएसु, उक्कोसेणं तिपलिओवमट्टितीएसु उववज्जेज्जा । ८. ते माटै इम ख्यात, त्रिण पल्य उत्कृष्ट स्थितिक थी। असुर विषे उपपात, सन्नी युगलिया मनुष्य नों।। ९. *इम असंख्यात वर्ष आउखो रे, तिर्यंच सरखा देख । भणवा प्रथम गमा त्रिहुं रे, णवरं इतलो विशेख ।। १०. शरीर तणी अवगाहना रे, प्रथम द्वितीय गम चीन । जघन्य साधिक धनु पांचसौ रे, उत्कृष्ट गाऊ तीन ।। ७. 'उक्कोसेणं तिपलिओवमट्ठि इएसु' त्ति देवकुर्वा दिनरा हि उत्कर्षतः स्वायु:-समानस्यैव देवायुषो बन्धकाः । (वृ० ५० ८२१) ८. अतः 'तिपलिओवमट्टिइएसु' इत्युक्तं । (वृ०प०८२१) ९. एवं असंखेज्जवासाउयतिरिक्खजोणियसरिसा आदिल्ला तिण्णि गमगा नेयव्वा । नवरं१०. सरीरोगाहणा पढमबितिएसु गमएसु जहण्णणं सातिरेगाइं पंचधणुसयाई, उक्कोसेणं तिण्णि गाउयाई। सोरठा ११. प्रथम द्वितीय गमकेह, असंख्यात वर्षायु नर। __ जघन्य थकी इम लेह, है साधिक धनु पांचसौ ॥ १२. सप्तम कुलकर जाण, तेहथी पूर्व काल जे। __भावी ते पहिछाण, मनुष्य युगलिया नी हुवै ॥ १३. उत्कृष्ट थीं संवादि, गाऊ तीन प्रमाण जे। यथा देवकुरु आदि, मनुष्य युगलिया नी हुवै ।। १४. ते उभय अवगाह, प्रथम अने द्वितीये गमे । पुगल विषे कहिवाह, शेष तिमज भणवो सहु ।। ११. तत्र प्रथम औधिक औधिकेषु द्वितीयस्त्वौधिको जघन्यस्थितिष्विति, तत्रोधिकोऽसंख्यातवर्षायुर्नरो जघन्यतः सातिरेकपञ्चधनुः शतप्रमाणो भवति । (वृ० १०८२१) १२. यथासप्तमकुलकरप्राक्कालभावी मिथुमकनरः । (वृ०प०८२१) १३. उत्कृष्टतस्तु त्रिगव्यूतमानो यथा देवकुर्वादिमिथुनकनरः । (वृ० १०८२१) १४. स च प्रथमगमे द्वितीये च द्विविधोऽपि संभवति । (वृ०प० ८.१) सेसं तं चेव । ___ वा०-असुरकुमार में जाणहार तिथंच युगलियो, युगलिया नी प्रथम तीन गमे अवगाहना जघन्य पृथक धनुष्य नीं, उत्कृष्टी छ गाऊ नी । अनैं इहां युगलिया मनुष्य नी पहिले, दूजे गमे जघन्य पांच सय धनुष्य जाझेरी, उत्कृष्टी तीन गाऊ नीं । शेष तिथंच युगलिया ने कह्यो तिम कह्यो। १५. *तृतीय गमे अवगाहना रे, जघन्य अने उत्कृष्ट । गाऊ तीन तणी कही रे, शेष तिरिक्ख जिम इष्ट ।। *लय : सीता सुन्दरी रे १. परि. २. यंत्र १९ १५. तइयगमे ओगाहणा जहण्णेणं तिण्णि गाउयाई, उक्कोसेण वि तिण्णि गाउयाई। सेसं जहेव तिरिक्खजोणियाणं १-३। (श० २४।१३६) ६२ भगवती जोड Jain Education Intemational Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६-१८. तृतीये तु त्रिगव्यूतावगाहन एव यस्मादसावेवो त्कृष्टस्थितिषु-पल्योपमत्रयायुष्केषूत्पद्यते उत्कर्षतः स्वायुः समानायुर्बन्धकत्वात्तस्येति । (वृ० ५० १२१) १९,२०. सो चेव अप्पणा जहण्णकालद्वितीओ जाओ, तस्स वि जहण्णकालद्वितीयतिरिक्खजोणियसरिसा तिण्णि गमगा भाणियव्वा । २१. नवरं-सरीरोगाहणा तिसु वि गमएसु जहण्णेणं सातिरेगाइं पंचधणुसयाई, उक्कोसेणं वि सातिरेगाई पंचधणुसयाई। २२. सेसं तं चेव ४-६ । (श० २४।१३७) २३,२४. सो चेव अप्पणा उक्कोसकालद्वितीओ जाओ, तस्स वि ते चेव पच्छिल्ला तिण्णि गमगा भाणियव्वा । सोरठा १६. तृतीय गमे पहिछाण, त्रिण गाऊ अवगाहना । ते अवगाहन जाण, उत्कृष्ट स्थितिक विषेज ह ।। १७. ओधिक मैं उत्कृष्ट, उत्कृष्ट स्थितिक असुर में। ऊपजवो इहां इष्ट, तेह तीन पल्य में विषे ।। १८. त्रिण पल्य स्थितिक विषेह, मनुष्य युगलियो ऊपजै । ते उत्कृष्ट सुलेह, स्वायु सम आयु बंधक ।। १९. तेहिज आपणप थयो रे, जघन्य स्थितिक जे काल । तुर्य पंचम छठे वली रे, ए त्रिहुं गमके न्हाल । २०. युगल तिर्यंच ए त्रिहुं गमे रे, ऊपजै असुर मझार । तेह सरीखा जघनिया रे, ए त्रिहुं गमे विचार ।। २१. णवरं तनु अवगाहना रे, तीन गमां विषे इष्ट । पंच सौ धनुष्य जाझी कही रे, जघन्य अने उत्कृष्ट । २२. शेष तिमज कहिवो सह रे, जिम युगल तिरि ऊपजेह । असुरकुमार विषे तिको रे, मनुष्य युगल तिम लेह ।। २३. तेहिज आपणपै हुओ रे, उत्कृष्ट स्थितिक काल । ते मनु नां पिण जाणवा रे, चरम त्रिहुं गमे न्हाल ।। २४. तेहिज तिर्यंच युगलियो रे, असुर विषे ऊपजेह । पाछिला तीन गमा तसु रे, तिमहिज मनुष्य नां लेह ।। २५. णवरं तनु अवगाहना रे, तीनई गमां विषेह । जघन्य अनें उत्कृष्ट ही रे, गाऊ तीन कहेह ।। २६. शेष तिमज कहिवो सह रे, तिर्यंच जिम अधिकार । मनुष्य युगलियो असुर में रे, आख्यो तसु विस्तार ।। हिवं युगलियो मनुष्य नव गमे असुर नी केतली स्थितिक विषे ऊपज, तेहन निर्णय कहै छ गीतक छंद २७. जे प्रथम सप्तम गम युगल मन, असुर नी स्थिति पाव ही। दश सहस्र वर्ष जघन्य, उत्कृष्ट तीन पल्य विषे सही ।। २८. फन द्वितीय पंचम अष्टमे गम, जघन्य नै उत्कृष्ट ही। दश सहस्र वर्षज असुर स्थितिके, ऊपजै नर मिथुन ही ।। २९. फुन तृतीय नै नवमे गमे जु, जघन्य ने उत्कृष्ट ही। त्रिण पल्योपम जे असुर स्थितिके, ऊपजै नर युगल ही । ३०. फन तुर्य गमके जघन्य थी, दश सहस्र वर्ष स्थितिके वही। उत्कृष्ट साधिक कोड़ पूर्व, असुर स्थितिक विषे सही ।। ३१. षष्ठम गमे फुन जघन्य नै, उत्कृष्ट थीज कहाव ही। पुत्व कोड़ साधिक असुर स्थितिके ऊपजै इम भाव ही ।। *लय : सीता सुन्दरी रे २५. नवरं-सरीरोगाहणा तिसु वि गमएसु जहणेणं तिण्णि गाउयाई, उक्कोसेण वि तिण्णि गाउयाई । २६. अवसेसं तं चेव ७-९ । (श० २४११३८) शा. २४, उ०२, ढा०४१७६३ Jain Education Intemational Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२. धुर गम संवेध जघन्य अद्धा, साधिको पुव्व कोड़ ही। दश सहस्र वर्षज अधिक ही, उत्कृष्ट षट पल्य जोड़ ही ।। ३३. गम द्वितीय साधिक कोड़ पूर्व, दश सहस्र वर्ष जघन्य ही। उत्कृष्ट अद्धा तीन पल्य, दश सहस्र वर्षज अधिक ही ।। ३४. गम तृतीय कायसंवेध अद्धा, जघन्य नै उत्कृष्ट ही । बिहुं भव संबंधी षट पल्योपम, प्रवर न्यायज इम लही ।। ३५. गम तुर्य धुर पुव्व कोड़ साधिक, दश सहस्र वर्ष अधिक ही। उत्कृष्ट बे पुव्व कोड़ साधिक, कायसंवेधे सही ।। ३६. गम पंचमे संवेध कहियै, जघन्य में उत्कृष्ट ही। पुव्व कोड़ साधिक फुन वर्ष दश सहस्र कहियै अधिक ही। ३७. षष्ठम गमे संवेध ते इम, जघन्य नैं उत्कृष्ट ही। पुव्व कोड़ बे साधिक कहीजै, प्रवर जिन वचने लही ।। ३८. गम सप्तमे अद्ध जघन्य त्रिण पल्य, दश सहस्र वर्ष अधिक ही। उत्कृष्ट अद्धा षट पल्योपम, बिहुं भवे ए स्थिति लही ।। ३९. गम अष्टमे संवेध कहिये, जघन्य नै उत्कृष्ट ही। पल्य तीन में फुन सहस्र दश ए, वर्ण कहियै अधिक ही। ४०. गम नवम फुन संवेध छै, इम जघन्य नै उत्कृष्ट ही। बिहुँ भव संबंधी षट पल्योपम, स्वाम वच अति सरस ही ।। सोरठा ४१. जघन्य गमे सुजाण, तीन णाणत्ता तेहनां । अवगाहन नों माण, आयू में अनुबन्ध नों। ४२. जघन्योकृष्ट अवगाह, तसु साधिक धन पांच सौ । स्थिति अनुबन्ध सुलाह, कोड़ पूर्व जामी कही ।। ४३. धुर गम में अवगाह, उत्कृष्ट गाऊ त्रिण तणीं। इहां धनु पंच सयाह, साधिक छै उत्कृष्ट पिण ।। ४४. धुर गम स्थिति अनुबन्ध, उत्कृष्टी त्रिण पल तणीं। इहां उत्कृष्टी संध, साधिक पूर्व कोड़ नी ।। ४५. ते माटै कहिवाय, जघन्य गमे त्रिण णाणत्ता। बिचला त्रिण गम ताय, गमा जघन्य कहीजिये ।। ४६. छेहला त्रिण गमकेह, गम उत्कृष्ट कह्या तसु । ते उत्कृष्ट गमेह, तीन णाणत्ता तेहनां ।। ४७. अवगाहन पहिछाण, जघन्योत्कृष्ट तिण गाउ नीं। आयु अनुबन्ध जाण, तीन पल्य जघन्योत्कृष्ट ।। ४८. अवगाहन पहिछाण, साधिक धन पंच सय जघन्य । इहां जघन्य पिण जाण, त्रिण गाऊ अवगाहना ।। ४९. धुर गम स्थिति अनुबन्ध, साधिक पुव्व कोड़ी जघन्य । इहां जघन्य पिण संध, तीन पल्योपम नी कही ।। ५०. ते माटै इम हेर, धुर गम थी उत्कृष्ट गमे । तीन बोल में फेर, तिणसं ए त्रिण णाणत्ता ।। ६४ भगवती जोड़ Jain Education Intemational Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ असुरकुमार में संख्याता वर्ष नों सन्नी मनुष्य ऊपज, तेहनों अधिकार' ५१. *जो संख वर्षायु सन्नी मनुष्य थी रे, ऊपजै असुर मझार । तो पर्याप्त थी ऊपजे रे, कै अपर्याप्त थी धार ? ५१. जइ संखेज्जवासाउयसण्णिमणुस्सेहितो उववज्जंति कि पज्जत्ता'सखेज्जवासाउयसण्णिमणुस्सेहितो उववज्जति ? अपज्जत्ता संखेज्जवासाउयसण्णिमणुस्से हितो उववज्जति ? ५२. गौयमा ! पज्जत्तासंखेज्जवासाउयसणिमणुस्सेहितो उववज्जति, नो अपज्जत्तासंखेज्जवासाउयसण्णिमणुस्सेहिंतो उववज्जति । (श० २४११३९) ५२. जिन कहै पर्याप्ता थकी रे, असुर विषे ऊपजेह । अपजत्त थी नहीं ऊपजै रे, वलि गोयम पूछेह ।। ओधिक ने ओधिक (१) ५३. पजत्त संख्यात वर्षायुषो रे, सन्नीम नुष्य प्रभु ! जेह । ऊपजवा ने जोग्य छ रे, असुरकुमार विषेह ।। ५४. ते किता काल स्थितिक विषे ऊपजै रे?, ___ जिन कहै जघन्य सुइष्ट । वर्ष सहस्र दश स्थितिके रे, साधिक सागर जिष्ट ।। ५५. ते एक समय किता ऊपजै रे? इम एहनां जिमहीज । धुर नरके ऊपजता थका रे, नव गम पूर्व कहीज ।। ५३. पज्जत्तासंखेज्जवासाउयसण्णिमणुस्से णं भंते ! जे भविए असुरकुमारेसु उववज्जित्तए। ५४. से णं भंते ! केवतिकालट्रितीएस् उववज्जेज्जा? गोयमा ! जहण्णेणं दसवाससहस्सद्वितीएसु, उक्कोसेणं सातिरेगसागरोवमट्टितीएसु उववज्जेज्जा। (श०२४।१४०) ५५. ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जति ? एवं जहेव एतेसि रयणप्पभाए उववज्जमाणाणं नव गमगा। ५६. तहेव इह वि नव गमगा भाणियव्वा, नवरं-संवेहो सातिरेगेण सागरोवमेण कायव्वो। ५७. सेसं तं चेव १-९ । (श० २४११४१) ५६. तिमज इहां पिण नव गमा रे, करिवा णवरं संवेध । साधिक उदधि संघात ही रे, कहिवं इतलं भेद ।। ५७. शेष परिमाणादिक सहु रे, कहिवा तिमज विचार । सन्नी मनुष्य धुर नारकी रे, ऊपजता जिम धार । वा० -हिवं एहन इज सुगम समझवा नै अर्थे जुओ-जुओ देखाई छ---- प्रथम तो सन्नी मनुष्य असुरकुमार नी केतला काल नी स्थिति नै विषे ऊपजे ते नव गमके जुओ-जुओ अर्थ देखाड़े छै ओधिक नै ओघिक प्रथम गमे जघन्य १० हजार वर्ष असुर नी स्थिति नै विषे ऊपजै, उत्कृष्ट एक सागर जाझी असुर नी स्थिति में विषे ऊपजै १। परिमाणद्वारे एक समय जघन्य एक, दोय, तीन अने उत्कृष्ट संख्याता ऊपजै २। छ संघयणी ऊपज ३। अवगाहना जघन्य पृथक आंगुल नीं, उत्कृष्ट पंच सय धनुष्य नों धणी ऊपज ४ । छ संठाण नों धणी ऊपजे ५। षट लेण्यावंत ऊपजै ६ । तीन दृष्टिवंत असुर में ऊपजै ७। ते सन्नी मनुष्य में च्यार ज्ञान, तीन अज्ञान नीं भजना हुदै ८ । जोग ३ हुवै ९ । दोय उपयोगी ऊपजै १० । च्यार संज्ञावंत ११ । च्यार कषाय नों धणी ऊपज १२। पांच इद्रिय १३॥ षट समुद्घातवंत १४ । साता-असाता बे वेदनावंत ऊपज १५ । त्रिण वेद नों धणी १६ । आउखो जघन्य पृथक मास, उत्कृष्टो कोड़ पूर्व स्थितिवंत ऊपजै १७ । अध्यवसाय भला-मुंडा बिहुँ हुवै १८ । अनुबंध आउखा जेतो १९ । एतली लब्धि नों धणी असुर में ऊपजै । हिवै कायसंवेध २० मों द्वार कहै छ-भव जघन्य २, उत्कृष्ट ८ । काल आश्रयी जघन्य पृथक मास नै १० हजार वर्ष, उत्कृष्ट ४ कोड़ पूर्व ४ साधिक सागर ॥१॥ हिवं ओधिक ने जघन्य द्वितीय गमे जघन्य उत्कृष्ट दश हजार वर्ष नीं *लय : सीता सुन्दरी रे १. परि. २. यत्र २० १,२. यहां पज्जतग सखेज्ज और अपज्जत्तग संखेज्ज पाठ है। ग् का लोप होने से पज्जता अपज्जत्ता शब्द हो गए। श० २४, उ०२, हा०४१७ ६५ Jain Education Intemational Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ असुर नी स्थिति नै विषे ऊपज । अनैं परिमाणद्वार सूं लेई अनुबंध द्वार लगे प्रथम गमे लद्धी कही, तिमज द्वितीय गमे जाणवी । भव जघन्य २, उत्कृष्ट ८ । काल आश्रयी जघन्य पृथक मास १० हजार वर्ष, उत्कृष्ट ४ कोड़ पूर्व ४० हजार वर्ष ॥२॥ हिवै ओधिक नै उत्कृष्ट तृतीय गमे जघन्य नै उत्कृष्ट सागर जाझी स्थिति नै विषे ऊपजै । अनै परिमाण द्वार सूं लेई अनुबंध द्वार लगे प्रथम गमे लद्धी कही, तिमज तृतीय गमे जाणवी। भव जघन्य २, उत्कृष्ट ८ । काल आश्रयी जघन्य पृथक मास एक साधिक सागर, उत्कृष्ट ४ कोड़ पूर्व ४ साधिक सागर।३॥ हिवं चतुर्थे गमे जघन्य नै ओघिक ए जघन्य स्थिति वालो मनुष्य असुर में विषे ऊपजे, ते जघन्य १० हजार वर्ष असुर नी स्थिति नै विषे ऊपजै, उत्कृष्ट साधिक सागर असुर नी स्थिति नै विषे ऊपज । अनै परिमाण द्वार सं लेई अनुबंध द्वार लगे लद्धी प्रथम गमा नी परै जाणवी । णवरं पांच बोलां में फेरअवगाहना जघन्य उत्कृष्ट पृथक आंगुल मी १। तीन ज्ञान, तीन अज्ञान नीं भजना २। समुद्घात पांच पहिली ३ । आऊ जघन्य-उत्कृष्ट पृथक मास ४ । अनुबंध आउखा जेतो ५-ए पांच णाणत्ता । अन कायसंवेध भव जघन्य २, उत्कृष्ट ८ । काल आश्रयी जघन्य पृथक मास अनै १० हजार वर्ष, उत्कृष्ट ४ पृथक मास अनै ४ साधिक सागर ॥४॥ ___ जघन्य नै जघन्य पंचमे गमे जघन्य-उत्कृष्ट दस हजार वर्ष असुर नी स्थिति नै विषे ऊपजै । अनै परिमाण द्वार सूं लेई अनुबंध द्वार लगे लद्धी चतुर्थ गमा नी पर जाणवी । अनै कायसंवेध भव जघन्य २, उत्कृष्ट ८ । काल आश्रयी जघन्य पृथक मास अनै १० हजार वर्ष, उत्कृष्ट ४ पृथक मास ४० हजार वर्ष ।। हिवै जघन्य नै उत्कृष्ट षष्ठम गमे जधन्य-उत्कृष्ट सागर जाझी असुर नी स्थिति नै विषे ऊपजै । अनै परिमाण द्वार सं लेई अनुबंध द्वार लगे चतुर्थ गमा नी पर जाणवी । अनै कायसंवेध भव जघन्य २, उत्कृष्ट ८ । काल आश्रयी जघन्य पृथक मास अनै साधिक सागर, उत्कृष्ट ४ प्रथक मास ४ साधिक सागर ॥६॥ हिवै सप्तमे गमे उत्कृष्ट नै ओघिक ए उत्कृष्ट स्थितिवालो सन्नी मनुष्य असुर नै विषे ऊपजे ते जघन्य १० हजार वर्ष असुर नी स्थिति नै विषे ऊपजै, उत्कृष्ट साधिक सागर असुर नी स्थिति नै विषे ऊपजै । अनै परिमाण द्वार सूं लेई अनुबंध द्वार लगे लद्धी प्रथम गमा नी परै जाणवी । णवरं तीन बोलां में फेर-अवगाहना जघन्य उत्कृष्ट ५०० धनुष्य १। स्थिति जघन्य उत्कृष्ट कोड़ पूर्व २। अनुबंध आउखा जेतो ३-ए तीन णाणत्ता । अनै कायसंवेध भव जघन्य २, उत्कृष्ट ८ । काल आश्रयी जघन्य कोड़ पूर्व १० हजार वर्ष, उत्कृष्ट ४ कोड़ पूर्व ४ साधिक सागर ॥७॥ हिवै उत्कृष्ट ने जघन्य अष्टमे गमे जघन्य-उत्कृष्ट १० हजार वर्ष असुर नी स्थिति नै विष उपज । अने परिमाण द्वार सूं लेई अनुबंध द्वार लगे लद्धी सप्तम गमा नी परै जाणवी । अनै कायसंवेध भव जघन्य २, उत्कृष्ट ८ । काल आश्रयी जघन्य कोड़ पूर्व १० हजार वर्ष, उत्कृष्ट ४ कोड़ पूर्व ४० हजार वर्ष ।।८।। हिवै उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट नवमे गमे जघन्य-उत्कृष्ट साधिक सागर असुर नीं स्थिति नै विषे ऊपजै । अने परिमाण द्वार सूं लेई अनुबंध द्वार लगै लदी सप्तम ६६ भगवती जोड़ Jain Education Intemational Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गमा नीं परं जाणवी । अनं कायसंवेध भव जघन्य २ जघन्य कोड़ पूर्व साधिक सागर, उत्कृष्ट ४ कोड़ पूर्व असुर में सन्नी मनुष्य जाय तेनां नव गमा न विस्तार कह्यो । इम अनेरे ठिकाणे पण संच, तिम विस्तार करी कहियो सोरठा णाणत्ता ॥ ५८. मिथुनक मनुष्य सुचीन, असुर असुर विषे विषे जावे तसु । जघन्य गमेज तीन, उत्कृष्ट गम त्रिण ५९. सन्नी मनुष्य सुसंच, असुर विषे जघन्य गमेज पंच, उत्कृष्ट गम ६०. मनुष्य असुर में जाय, इम तमु नाम जू-जुआ ताय, पूर्व ६१. *सेवं भंते! स्वाम जी रे, सत्य तुम चवीसम शत नुं कह्यो रे, अर्थ उत्कृष्ट ८ । काल आश्रयी ४ साधिक सागर ॥ ९ ॥ जावे तसु । त्रिण णाणत्ता || चवदे णाणत्ता । आख्याईज छे । रसाल । ६२. ढाल व्यारसी सतरमी रे, जिन वच भिक्षु भारीमाल ऋषिराय थी रे, 'जय-जश' मंगलमाल ॥ चतुर्विंशतितमशते द्वितीयो द्देशकार्यः || २४|२| वच सुविशेष थी द्वितीय उद्देस ॥ परम ढाल : ४१८ *लय : सीता सुन्दरी रे १. परि० २ यंत्र २१ वहा १. द्वितीय उद्देश कह्या असुर, तृतीये नागकुमार । राजगृह यावत वदे, इम गोयम २. नागकुमारा हे प्रभु ! किहां स्यूं नारक थी ऊपजै तिरि मनु गणधार || न त । ३. जिन भाखं नारक थकी, नागकुमार तिरि मनु थकीज ऊपजे सुर थी नहि उपजत ॥ थकी उपजंत । गुर थी हूंत ? ४. जो तियंच थकी हुवे, इम जिम असुर थकीज | वक्तव्यता दाखी तिहां, एहनी पिण तिमहीज ॥ नागकुमार में असन्नी तिथंच पंचेंद्रिय ऊपजै, तेहनों अधिकार' ५. यावत असन्नी लग सहु, असन्नी नाग विषेह । गमा, असुर तणीं उपजे तेनां नव पर एह || ६१. सेवं भंते । सेवं भंते ! त्ति । १. रायगिहे जाव एवं वयासी २. नागकुमाराणं भंते! कमोहितो उववज्जंति - कि नेरइए हितो उववज्जंति ? तिरिक्खजोणिय मणुस्सदेवहितो उबवति ? 1 २. गोमा नो मेरो यति तिरिषधजोगिए हितोति मणुस्सेहितो उपयति नो देवेहितो उववज्जंति । ( श० २४ । १४३ ) ४. वह तिरिखजोगिए हो ? एवं जहा असुरकुमाराणं वत्तब्वया तहा एतेसि पि । ५. जाव असणित्ति १-९ । (श० २४११४२) ( ० २४१४४) श० २४, उ० २,३, ढा० ४१७,४१८ ६७ Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६. जइ सण्णिपंचिदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति -कि संखेज्जवासाउय ? असंखेज्जवासाउय ? ७. गोयमा ! संखेज्जवासाउय, असंखेज्जवासाउय जाव उववज्जति । (श० २४।१४५) ६. जो सन्नी पं. तिरि थकी, ऊपजे नाग मझार । स्यूं संख्यायुष थी हुदै, के असंख्यायुष थी धार? ७. जिन कहै संख्यायु थकी, नाग विषे उपजत । वर्ष असंख्यायु थकी, जाव उपजवो हुंत ।। नागकुमार में तियंच युगलियो ऊपज, तेहनों अधिकार' ओघिक ने ओधिक [१] *वारु जय-जय ज्ञान जिनेंद्र नों, एतो जयवंता जिनराज रे। शिष्य गोयम जय जश गुणनिला, ए तो प्रत्यक्ष भव दधि पाज रे ।। (ध्र पदं) ८. असंख्यात वर्ष नों आउखो, तिरि सन्नी पंचेंद्री जेह रे। प्रभ ! ऊपजवा नै जोग्य छ, नागकुमार विषेह रे ।। ९. प्रभु ! किता काल स्थितिक विषे ऊपजे? जिन भाखै जघन्य थी जोय रे। दश सहस्र वर्ष स्थितिक विषे, उत्कृष्ट देसूण पल्य दोय रे ।। ८. असंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए नागकुमारेसु उववज्जित्तए। ९. से णं भंते ! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा ? गोयमा ! जहण्णणं दसवाससहस्सट्टितीएसु, उक्कोसेणं देसूणदुपलिओवमद्वितीएसु उववज्जेज्जा । (श० २४१४६) सोरठा १०. उत्तर दिशि नां सोय, नागकुमार निकाय नीं। देश ऊण पल्य दोय, उत्कृष्ट स्थितिक में विषे ।। १०. 'उक्कोसेणं देसूणदुपलिओवमट्ठिईएस' ति यदुक्तं तदीदीच्यनागकुमारनिकायापेक्ष या, यतस्तत्र द्वे देशोने पल्योपमे उत्कर्षत आयुः स्यात् ।। (वृ०प० ८२२) ११. ते णं भंते ! जीत्रा एगसमएणं केवतिया उववज्जति ? अवसेसो सो चेव असुरकुमारेसु उववज्जमाणस्स गमगो भाणियव्यो। १२. जाव भवादेसो ति। कालादेसेणं जहण्णेणं सातिरेगा पुवकोडी दसहिं वाससहस्सेहि अन्भहिया। १४. उक्कोसेणं देसूणाई पंच पलिओवमाई। ११. *प्रभु ! एक समय किता ऊपजै? अवशेष तिमज अवधार रे। असुर में ऊपजतां गमो आखियो, कहिवो तिमहिज विचार रे ।। १२. जाव भवादेश लग जाणवू, काल आश्रयी जघन्य कहाय रे । पूर्व कोड़ जाझेरो जाणवू, दश सहस्र वर्ष अधिकाय रे ॥ सोरठा १३. साधिक पूर्व कोड़, जघन्य भव स्थिति तिरि युगल । वर्ष सहस्र दश जोड़, नागकुमार जघन्य स्थिति ॥ १४. “उत्कृष्ट थकी देश ऊण जे, पंच पल्योपम जोय रे। तिरि युगल पल्योपम त्रिण कही, नाग देश ऊण पल्य दोय रे॥ १५. सेवै कालज एतलो, गति आगति एतलो काल रे। ओघिक नै ओधिक गमो, दाख्यो युगल नाग नों दयाल रे ।। ओधिक नै जघन्य (२) १६. तेहिज युगल जघन्य काल स्थिति विषे, ओ तो ऊपनों नाग विषेह रे। तेहनी पिण एहिज वारता, धुर गमे भाखी जेह रे ॥ *लय : मोरी तूंबी देवो नी हो सेठजी अथवा चम्पानगरी नां बाणिया १. परि० २, यंत्र २२ ६८ भगवती जोड़ १५. एवतियं काल सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा १। (श० २४११४७) १६. सो चेव जहण्णकालट्ठितीएस उववण्णो, एस चेव वत्तव्वया। Jain Education Intemational Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७. नवरं नागकुमारट्ठिति संवेहं च जाणेज्जा २ । (श० २४.१४८) १९. तत्र जघन्या नागकुमारस्थितिर्दशवर्षसहस्राणि । (वृ०प० ८२२) २०. संवेधस्तु कालतो जघन्या सातिरेकपूर्वकोटी दशवर्षसहस्राधिका। (वृ०५० ८२२) २१. उत्कृष्टः पुनः पल्योपमत्रयं तैरेवाधिकमिति । (वृ०प० ८२२) २२. सो चेव उक्कोसकालद्वितीएस उववण्णो, तस्स वि एस चेव वत्तब्वया, नवरं --ठिती। २३. जहणेणं देमूणाई दो तिण्णि पलिओवमाई। पलिओवमाइं, उक्कोसेणं १७. पिण णवरं नागकुमार नों, स्थिति में वलि कालसंवेह रे। ते बुद्धि सूं विचारी जाणवो, सूत्र ने अनुसारे जेह रे ।। सोरठा १८. प्रथम द्वार में लेह, कति स्थितिके ऊपजै । चरम द्वार संवेह, ए बिहुँ आगल आखियै ।। १९. स्थिति जघन्य उत्कृष्ट, नागकुमार तणीं कही। वर्ष सहस्र दश इष्ट, तेह विषे ए ऊपजै ।। २०. कायसंवेध सुजोड़, काल थकी जे जघन्य ए। साधिक पूर्व कोड़, वर्ष सहस्र दश अधिक फुन । २१. फुन उत्कृष्टो काल, तीन पल्योपम तिरि स्थिति । वर्ष सहस्र दश न्हाल, नाग जघन्य स्थिति जाणिय ।। ओघिक में उत्कृष्ट (३) २२. *तेहिज युगल उत्कृष्टी स्थिति विषे, नाग विषे ऊपनों संपेख रे। तेहनों पिण एहिज वारता, . - णवर स्थिति में इतरो विशेख रे ।। २३. जघन्य स्थिति ते युगल नीं, देश ऊण पल्योपम बेह रे । उत्कृष्ट तीन पल्य स्थितिक जे, युगल नाग विषे उपजेह रे ।। वा०-इहां जघन्य स्थिति देश ऊण दोय पल्योपम, एह अवसप्पिणी नां सुषमा नामे बीजा आरा नां केतला एक भाग गयां तिर्यंच नों आउखो देश ऊण दोय पल्य नों । ते मरी नागकुमार नै विषे उत्कृष्ट आउखै ऊपजे ते तिर्यच युगलिया नां देव आउ संबंधिया आउखा बरोबर देवता नों आउखो बांधे । उत्कृष्टो तीन पल्योपम-एह देवकुरु आदि देई तियंच युगलिया नां तीन पल्योपम नां आउखा नों धणी नागकुमार नै विषे देश ऊण दोय पल्योपम नै उत्कृष्ट आउखा नै विषे ऊपज । ए युगलिया ने आऊखा थकी देवता नै ओछे आऊखे ऊपने छते अत्र जघन्य देश ऊणो दोय पल्योपम युगलिया नों आउखो कह्यो ते किम ? अन कोड़ पूर्व जामो किम न कह्यो ? उत्तर-इहां ओधिक नै उत्कृष्ट तीजा गमा नों कथन छ । ते तिर्यंच युगलिया नी ओधिक स्थिति नों धणी नागकुमार नै विषे उत्कृष्ट आउखे ऊपज ते नाग कुमार नों देश ऊणों दोय पल्योपम उत्कृष्टो आउखो छ तेहनै विषे युगलियो ऊपजे, ते जघन्य देश ऊणों दोय पल्योपम आउखा वालोईज ऊपज, पिण ओछा आउखा वालो न ऊपजे, ते माट कोड़ पूर्व जामो आउखो न कह्यो । अनै जघन्य देश ऊणों दोय पल्योपम नों धणी ऊपजै एहवू कह्यो । २४. शेष परिमाणादिक जिके, पूर्व कह्यो तिमज अवलोय रे । जाव भवादेश लग जाणवो, जधन्य उत्कृष्टा भव दोय रे ।। २५. हिव काल आश्रयी जघन्य अद्धा, देश ऊण च्यार पल्य माग रे । देश ऊण दोय पल्य तिरि स्थिति, देसूण बे पल्य नाग रे ॥ *लय: चम्पा नगरी नां बाणिया वा०-तथा 'ठिई जहन्नेणं दो देसूणाइ पलिओवमाइ' ति यदुक्तं तदवसप्पिण्यां सुषमाभिधान द्वितीयारकस्य कियत्यपि भागेऽतीतेऽसंख्यातवर्षायुषस्तिरश्चोऽधिकृत्योक्तं, तेषामेवैतत्प्रमाणायुष्कत्वात् एषामेव च स्वायु:-समानदेवायुर्बन्धकत्वेनोकृष्टस्थितिषु नागकुमारेषुत्पादात् । तिन्नि पलिओवमाइ' ति, एतच्च देवकुर्वाद्यसंख्यातजीवितिरश्चोऽधिकृत्योक्तं, ते च त्रिपल्योपमायुषोऽपि देशोनद्विपल्योपममानमायुर्बध्नन्ति यतस्ते स्वायुषः समं हीनतरं वा तद्बध्नन्ति न तु महत्तरमिति । (वृ०प० ८२२, ८२३) २४. सेसं तं चेव जाव भवादेसो ति । २५. कालादेसेणं जहणेणं पलिओवमाई। देसूणाई चत्तारि श०२४, उ०३, ढा०४१८ १९ Jain Education Intemational Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६. उक्कोसेणं देसूणाई पंच पलिओवमाई। २७. एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा३। (श० २४११४९) २८. सो चेव अप्पणा जहण्णकालट्ठितीओ जाओ, तस्स वि तिसु वि गमएसु । २९. जहेव असुरकुमारेसु उववज्जमाणस्स जहण्णकाल द्वितियस्स तहेव निरवसेसं ४-६ । (श० २४११५०) २६. उत्कृष्ट अद्धा देश ऊण जे, पंच पल्योपम जोय रे। पल्य तीन युगल तिरि आउखो, नाग देश ऊणों पल्य दोय रे ।। २७. सेवै कालज एतलो, करै गति आगति इतो काल रे। ओघिक अने उत्कृष्ट गमो, दाख्यो तृतीय दयाल रे ।। बिचला तीन गमा (४-६) २८. तेहिज युगल जघन्य स्थिति नों धणी, तेहनां तीनइ गमा विषेह रे । चउथे पंचमे में छठे गमे, हिवे तेहनों लेखो सणेह रे ।। २९. जिमहिज अस्रकुमार में, ऊपजता नै पेख रे। जघन्य काल स्थितिक ने कह्य, तिमहिज सर्व अशेख रे॥ उत्कृष्ट नै ओधिक (७) सोरठा ३०. जघन्य सहस्र दश वास, उत्कृष्ट साधिक कोड़ पुव्व । नाग स्थितिके जास, ऊपजै ए चउथे गमे ।। ३१. परिमाणादिक पेख, युगल तिरि मरि ह असुर । तिमहिज ए संपेख, तीन णाणत्ता पिण तिमज ।। ३२. तनु अवगाहन जाण, जघन्य पृथक धन युगल तिरि । उत्कृष्टी पहिछाण, सहस्र धनुष्य जाझी कही ।। ३३. स्थिति जघन्य उत्कृष्ट, साधिक पूर्व कोड़ नीं। एवं अनुबंध इष्ट, ए तीन णाणत्ता असुरवत ।। ३४. कायसंवेध पिछाण, साधिक पूर्व कोड़ तिरि । वर्ष सहस्र दश माण, जघन्य थकी अद्धा इतो।। ३५. उत्कृष्ट अद्धा पेख, साधिक पूर्व कोड़ बे। तिरि युगल भव एक, द्वितीय भवे फुन नाग स्थिति ॥ उत्कृष्ट ३६. पंचम गमके हेर, तुर्य गमा जिम जाणवो। नाग स्थिति में फेर, कायसंवेध विषे वली ।। ३७. जघन्य अने उत्कृष्ट, वर्ष सहस्र दश स्थितिक में। ऊपजवो इहां इष्ट, जघन्य स्थितिक तिरि युगलियो। ३८. कायसंवेध सुजोड़, अद्धा जघन्य उत्कृष्ट पिण। साधिक पूर्व कोड़, वर्ष सहस्र दश अधिक फुन ।। छट्ठो गमो ३९. षष्ठम गमके हेर, तुर्य गमा जिम जाणवो। नाग स्थितिके फेर, कायसंवेध विषे वली ।। ४०. जघन्य अने उत्कृष्ट, साधिक पूर्व कोड़ जे । नाग स्थितिके इष्ट, तिरिख युगलियो ऊपजै ।। ७० भगवती जोड़ Jain Education Intemational Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१. काय संवेध जोड़, जघन्य अन उत्कृष्ट अद्धा । साधिक बे पुव्व कोड़, बिहुं भव नों षष्ठम गमे ॥ छेहला तीन गमा (७-९) ४२. * ते हि युगल उत्कृष्टायु थयो, तेनां पण विहंगमा विषेह रे । सप्तमे अष्टमे नवमे गमे, ए पिण तिणहिज रीत कहेह रे ।। ४३. जिम जेष्ठ स्थितिक तिरि युगलियो, असुर विषे ऊपजता ने ख्यात रे कहिवो तिहिज रीत सूं, णवरं इतरो विशेषज थात रे ।। 1 ४४. नागकुमार नीं स्थिति विषे बलि कायसंवेध में कहिवो मन सूं विचार नें रे, ते इम भणिवूं ४५. शेष परिमाणादिक सहु, जिम असुरकुमार तिरि युगल ऊपजता नें कह्या, ४६. वहां णाणता दोय, आयु ओ तो कहिवो जिमहिज एह रे ।। सोरठा तीन पल्योपम होय, उत्कृष्ट गमकपणां ४८. अद्धा जघन्य संवेह, वर्ष सहस्र उत्कृष्ट अद्धा लेह, देश ऊण फेर रे। हेर रे ॥ विषेह रे । ४७. सप्तम गमे विमास, नागकुमार नीं स्थिति जघन्य सहस्र दश वास, उत्कृष्ट देसूण पल्य ने अनुबन्ध जे। । थकी || ४९. अष्टम गमे सुइष्ट नागकुमार भी स्थिति नीं जघन्य अनें उत्कृष्ट वर्ष सहस्र दश दश पल्य पल्य पंच *लय : चम्पा नगरी नां बाणिया १. परि. २, यंत्र २३ विषे । बे ॥ ५०. अष्टम गमे संवेह, जघन्य अनं उत्कृष्ट फुन । तीन पल्योपम लेह, वर्ष सहस्र दश अधिक ही ।। त्रिण | फुन ॥ विषे । आउखे ॥ ५१. नवमे गमे सुष्ट, नागकुमार भी स्थिति विषे नीं । जघन्य अने उत्कृष्ट, देश ऊण बे पल्य जे || ५२. नवमे गमे संवेह, जघन्य अनं उत्कृष्ट ही । बेभव अद्धा लेह, देश ऊण पंच पल्य जे ॥ तिर्यंच युगलियो नागकुमार में ऊपर्ज, तेहनां नव गमा कह्या । नागकुमार में संपात वर्ष नों सभी सिर्वच अपने रोगों अधिकार ५३. * जो संखेज वर्षायु सन्नी पंचेंद्रिय यावत तेह रे । स्यूं पर्याप्तो अपर्याप्तो ऊपजे नागकुमार विषेह रे ? " ४२. सो व अपणा उनकोस कालद्वितीयो जाओ, तस्स वि तहेव तिष्णि गमगा । ४३. जहा असुरकुमारेसु उववज्ज माणस, नवरं - ४४. नागकुमार द्विति संवेहं च जाणेज्जा । ४५. सेसं तं चैव ७-९ । ( श० २४/१५१ ) ५२. जइ संजवासा उपसणिपाँचदियतिरिक्जोगिएहितो उववज्जंति - कि पज्जत्तसखेज्जवासाउय० ? अपज्जत्तसंखेज्जवासाउय० ? श० २४, उ० ३, ढा० ४१८ ७१ Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४. जिन कहै संख वर्षायु सन्नी तियंच पंचेंद्री पर्णप्त रे । ते नागकुमार में उपजे पिण नहि उपजे अपर्याप्त रे ओघिक नें ओधिक [१] ५५. पजत संख वर्षायु सन्नी प्रभु ! पंचेंद्रिय तियंच तेह रे । ऊपजवा जोग्य नागकुमार में, कितै काल स्थितिक उपजेह रे ? ५६. श्री जिन भाजयन्य पो, दश सहस्र वर्ष स्थितिकेह रे । उत्कृष्टी देश ऊण जे, दोय पत्थ विषे उपजेह रे ॥ ५७. इम जिम असुरकुमार में वर्ष संख्यायु सन्नी तिर्यंच रे । ऊपजता नीं वारता, इहां पिण तिम नव गम संच रे ॥ ५८. वरं नागकुमार नीं, स्थिति विषे जे फेर रे। , वलि काय संवेध में फेर छै, शेष तिमहिज कहिवूं हेर रे ।। हिवे नव गमे नामकुमार भी स्थिति विये अपने ते क सोरठा सहस्र ५९. प्रथम तुर्य सप्तम, जघन्य उत्कृष्ट स्थिति अवगम, देश ऊण ६०. द्वितीय पंचमे इष्ट, जघन्य अने उत्कृष्ट, वर्ष ६१. तीजे षष्ठम नवम, नाग स्थिति अवगम, ६२. प्रथम मे संदेह, वे वर्ष सहस्र दश लेह, ६३. उत्कृष्ट अद्धा काल, अठ पस्य देवूण व्हाल, ६४. दूजे गमे संवेह, जघन्य भव वर्ष सहस्र दश जेह, ६५. उत्कृष्ट अद्धा धार, थी । अंतर्मुहूर्त अधिक फुन । कहिये अष्टज तणों । कोड पूर्व चि अधिक फुन ।। बिहु भव अद्धा जघन्य थी । अंतर्मुहूर्त अधिक फुन ।। अष्ट भवे इम आखियो । सहस्र चालीस फुन ॥ भव अद्धा जघन्य थी । अंतर्मुहूर्त्त अधिक ही ॥ पूर्व कोजच्यार वर्ष ६६. तीजे गमे संदेह, बे अधिक ही ॥ देश ऊण पल्य बेह, ६७. उत्कृष्ट अद्धा जोय, अष्ट भवां नों आखियो । आठ पल्प देसूण सोय, पूर्व कोड़ चिडं ६५. तु गमे संवेह, बे भव अद्धा अंतर्मुहूर्त्त लेह, वर्ष सहस्र दश ६९. उत्कृष्ट अद्धा धार, अष्ट भवां नों अंतर्मुहूर्त प्यार अष्ट पल्य ७०. पंचम गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य अंतर्मुहूर्त लेह, वर्ष सहस्र दश नाग ७२ भगवती जोड़ दश स्थितिक में । विषे ॥ फुन ऊपजे । स्थिति में ॥ बे अष्टम सहस्र दश जघन्य अनें देश ऊण भव अद्धा गम पल्य उत्कृष्ट ही । पय विषे || जघन्य थी । नाग स्थिति ॥ इह विधे । देसूण जे ॥ थी । स्थिति ॥ ५४. गोयमा ! पज्जत्तसंखेज्जवासाउय, नो अपज्जत्तसंखेज्जवासाउय | (१० २४१५२) ५५. पज्जत्तसंखेज्जवासा उयस ष्णिपंचिदियति रिक्खजोगिए णं भंते! जे भविए नागकुमारेसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा ? ५६. गोमा ! हमे दस बाससहस्साई उनको देसूणाई' दो पाई। ५७. एवं जहेब असुरकुमारेसु उववज्जमाणस्स वत्तव्वया तहेव इह विवि गमएम, I ३८. नवरं नागकुमार द्विति संवे च जागा सेसं तं चेव १-९ । (१० २४/१५३) Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१. उत्कृष्ट अद्धा धार, अष्ट भवां नों इह विधे। अंतर्महत च्यार, वर्ष सहस्र चालीस फुन ।। ७२. छठे गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। अंतर्महत लेह, देश ऊण बे पल्य फुन । ७३. उत्कृष्ट अद्धा धार, अष्ट भवां नों आखियो। अंतर्महुर्त च्यार, देश ऊण पल्य अष्ट फुन । ७४. सप्तम गम संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। पूर्व कोड़ज लेह, वर्ष सहस्र दश नाग स्थिति ।। ७५. उत्कृष्ट अद्धा धार, अष्ट भवां नों इह विधे। पूर्व कोड़ज च्यार, देश ऊण पल्य अष्ट फुन ।। ७६. अष्टम गम संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। कोड़ पूर्व तिरि लेह, वर्ष सहस्र दश नाग स्थिति ।। ७७. उत्कृष्ट अद्धा धार, अष्ट भवां नों इह विधे। पूर्व कोड़ज च्यार, वर्ष सहस्र चालीस फुन । ७८. नवमे गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। कोड़ पूर्व तिरि लेह, देश ऊण बे पल्य जे । ७९. उत्कृष्ट अद्धा धार, अष्ट भवां नों इह विधे। पूर्व कोड़ज च्यार, देश ऊण पल्य अष्ट फुन । हिवं पर्याप्त सन्नी तिथंच नागकुमार नै विषे ऊपज, तेहना जाणत्ता कहै छै८०. असुर सन्नी तिथंच, वर्ष संख्यायु ऊपजै। जघन्य गमे सुसंच, अष्ट णाणत्ता आखिया ।। ८१. उत्कृष्ट गमे सुजोय, दोय जाणत्ता दाखिया। तिम एहनां पिण होय, अष्ट अनै बे णाणत्ता ।। ८२. *चउवीसम देश तीजा तणों जी, च्यारसौ नैं अठारमी ढाल रे। भिक्षु भारीमाल ऋषिराय थी, सुख 'जय-जश' हरष विशाल रे।। ढाल : ४१९ दूहा १. मनुष्य थकी जो ऊपज, नागकुमार मझार । __ तो स्यूं सन्नी मनुष्य थो, के असन्नी मनु थी धार ? २. जिन कहै सन्नी मनुष्य थी नाग विषे उपजंत । असन्नी मनुष्य मरी करी, नागकुमार न हुंत ।। ३. इम जिम असुरकुमार में, सन्नी मनुष्य सुजोय । ऊपजता नै आखियो, तिम कहिवो अवलोय ।। 'लय : चम्पा नगरी ना बणिया १. जइ मणुस्सेहिंतो उववज्जति-कि सण्णिमणुस्से___ हितो. ? असण्णिमणुस्सेहितो? २. गोयमा ! सण्णिमणुस्से हितो, नो असण्णिमणुस्सेहितो, ३. जहा असुरकुमारेसु उववज्जमाणस्स श० २४, उ०३, ढा० ४१८,४१९ ७३ Jain Education Intemational Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वा०-सन्नी मनुष्य नागकुमार में जावं, तेहनां नवू ही गमे जघन्य भव २, उत्कृष्ट भव ८ । चउथे पांचमे छठे-ए तीन जघन्य गमे णाणत्ता ५-अवगाहना जघन्य-उत्कृष्ट पृथक आंगुल नी १, आऊ जघन्य-उत्कृष्ट पृथक मास २, तीन ज्ञान अने तीन अज्ञान नी भजना ३, समुद्घात पांच पेहली ४, अनुबंध आऊ जेतो ५, सप्तमे अष्ठमे नवमे-ए तीन उत्कृष्ट गमे गाणत्ता ३-अगवाहना जघन्यउत्कृष्ट ५०० धनुष्य नी १, आऊ जघन्य-उत्कृष्ट कोड़ पूर्व २, अनुबंध आउखा जेतो ३ । नागकुमार में मनुष्य युगलियो ऊपज, तेहनों अधिकार' *जय-जय ज्ञान जिनेंद्र नों। (ध्रुपदं) ४. जाव असंख्याता वर्ष नों, आयुवंत मनु जेह प्रभुजी ! ऊपजवा नैं जोग्य छ, नागकुमार विषेह प्रभुजी ! ४. जाव (श० २४११५४) असंखेज्जवासाउयसण्णिमणुस्से णं भंते ! जे भविए नागकुमारेसु उववज्जित्तए, ५. से णं भंते ! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? गोयमा ! जहण्णेणं दसवाससहस्साई, उक्कोसेणं देसूणाई दो पलिओवमाई। ५. ते किते काल स्थितिक विषे ऊपजै ? जिन कहै जघन्य सुजोय गोयम जी! वर्ष सहस्र दश स्थिति विषे, जेष्ठ देसूण पल्य दोय गोयम जी ! [वीर कहै सुण गोयमा] ६. इम जिम पूर्वे आखियो, असंख वर्षायु तियंच गोयम जी। नागकमार में ऊपजै, तसु धुर गम त्रिण संच गोयम जी ।। ७. एहनां पिण तिमहीज जे, धुर त्रिण गम कहिवाय । __णवरं इतरो विशेष छै, प्रथम द्वितीय गम मांय ।। ८. तनु अवगाहन जघन्य थी, पांचसो धनु अधिकाय । उत्कृष्टी अवगाहना, तीन गाउ कहिवाय ।। ६. एवं जहेव असंखेज्जवासाउयाणं तिरिक्खजोणियाणं नागकुमारेसु आदिल्ला तिण्णि गमगा ७. तहेव इमस्स वि, नवरं-पढमबितिएसु गमएसु ८. सरीरोगाहणा जहणेणं सातिरेगाइं पंचधणुसयाई, उक्कोसेणं तिण्णि गाउयाई। सोरठा ९. पूर्व काले संच, कुलकर तणी अपेक्षया । साधिक धनु शत पंच, गाउ त्रिण सुर कुरु प्रमुख ।। १०. *तृतीये गमे अवगाहना, जघन्य देसूण गाउ दोय । उत्कृष्ट तीन गाऊ तणी, शेष तिमज अवलोय ।। १०. तइयगमे ओगाहणा जहण्णेणं देसूणाई दो गाउयाई', उक्कोसेणं तिण्णि गाउयाई । सेसं तं चेव १-३ । (श० २४११५५) सोरठा ११. देश ऊण गाउ दोय, एते अवतपिणी तणां । द्वितीय आरा नां सोय, किताक भाग गयां ह॥ १२. *तेहिज सन्नी मनु जुगलियो, पोते जघन्य स्थितिवंत । तुर्य पंचमे नैं छठे, ए त्रिहुं गमे उदंत ॥ १३. जिम तेहिज मनु युगल नों, जघन्य स्थितिक नों जेह। असुर में ऊपजतां थकां, गमे तीन कह्या तिम लेह ।। *लय : तारा हो प्रत्यक्ष मोहनी १. परि. २. यंत्र २४ १२. सो चेव अप्पणा जहण्णकालद्वितीओ जाओ, तस्स तिसु वि गमएसु १३. जहा तस्स चेव असुरकुमारेसु उववज्जमाणस्स तहेब निरवसेसं ४-६। (श० २४११५६) ७४ भगवती जोड़ Jain Education Intemational Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४. सो चेव अप्पणा उक्कोसकालट्ठितीओ जाओ, तस्स तिसु वि गमएसु १५. जहा तस्स चेव उक्कोसकालट्ठितीयस्स असुरकुमारेसु उववज्जमाणस्स, १६. नवरं-नागकुमारट्ठिति संवेहं च जाणेज्जा। सेसं तं चेव ७-९। (श० २४११५७) १४. तेहिज सन्नी मनु युगलियो, निज उत्कृष्ट स्थितिवंत । सप्तम अष्टम नवम जे, ए त्रिहं गमे उदंत ।। १५. जिम तेहिज मनु युगल नां, जेष्ठ स्थितिक नां जेह। असुर विषे ऊपजतां थकां, गमा तीन कह्या तिम लेह ।। १६. णवरं नागकुमार नीं, स्थिति अनैं संवेध । बुद्धि सूं विचारी जाणवू, शेषं तं चेव न भेद ।। ___वाल-हिवै नागकुमार नी स्थिति अनै कायसंवेध नयूँ ही गमे जूओ-जूओ कहै छै । तिण में सन्नी मनुष्य युगलियो नागकुमार नै विषे ऊपजे तिण में प्रथम ने सातमे गमे जघन्य १० हजार वर्ष नागकुमार नी स्थिति में विषे ऊपज, उत्कृष्ट देश ऊण बे पल्योपम नी स्थिति नै विषे ऊपज। अनै दूजे, पंचमे, गमे जघन्य-उत्कृष्ट १० हजार वर्ष नाग नी स्थिति नै विषे ऊपजै । अने तीजे, नवमे गमे जघन्य-उत्कृष्ट देश ऊण बे पल्योपम नाग नी स्थिति में विषे ऊपजै । चउथे गमे जघन्य दश हजार स्थिति नै विषे ऊपजै, उत्कृष्ट एक कोड़ पूर्व जामी स्थिति नै विषे ऊपजै । अनै छठे गमे जघन्य-उत्कृष्ट कोड पूर्व जाझी स्थिति नै विषे ऊपज। सोरठा १७. प्रथम गमे इम जोड़, कायसंवेध जघन्य अद्ध । साधिक पूर्व कोड़, वर्ष सहस्र दश अधिक फुन ।। १८. उत्कृष्ट अद्धा माग, देश ऊण पल्य पंच जे। देसूण बे पल्य नाग, तीन पल्य मनु युगल स्थिति ।। १९. द्वितीय गमे सुजोड़, जघन्य थकी अद्धा इतो। ___ साधिक पूर्व कोड़, वर्ष सहस्र दश अधिक फुन ।। २०. उत्कृष्ट अद्धा तास, तीन पल्य मन् युगल स्थिति । वली सहस्र दश वास, नाग तणी ए जघन्य स्थिति ॥ २१. तृतीय गमे अवधार, अद्धा जघन्य थकी इतो। देश ऊण पल्य च्यार, न्याय विचारी लीजिये ।। २२. उत्कृष्ट अद्धा चीन, देश ऊण पल्य पंच जे। मनुष्य युगल पल्य तीन, देश ऊण बे नाग स्थिति ।। २३. तुर्य गमे इम जोड़, जघन्य काल तम् एतलो। साधिक पूर्व कोड़, वर्ष सहस्र दश अधिक फुन ।। २४. उत्कृष्ट अद्धा तास, साधिक पूर्व कोड़ बे। लीजो न्याय विमास, तुर्य गमो छै ते भणी॥ २५. पंचम गम इम जोड़, जघन्य अने उत्कृष्ट अद्धा । साधिक पूर्व कोड़, वर्ष सहस्र दश अधिक फुन ।। २६. षष्ठम गमे सुइष्ट, साधिक पूर्व कोड़ बे। जघन्य अने उत्कृष्ट, कायसंवेध समान ए॥ २७. सप्तम गम अवलोय, जघन्य अद्धा ए जाणवू । तीन पल्योपम सोय, वर्ष सहस्र दश अधिक फुन ।। *लय : तारा हो प्रत्यक्ष मोहनी श. २४, २०३, ढा.४१९ ७३ Jain Education Intemational Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१. जइ संखेज्जवासाउयसण्णिमणस्से हिंतो उववज्जति कि पज्जत्तसंखेज्ज ? अपज्जत्तसंखेज्ज ? ३२. गोयमा ! पज्जत्तसंखेज्ज, नो अपज्जत्तसंखेज्ज । (श० २४११५८) २८. उत्कृष्ट अद्धा चीन, देश ऊण पल्य पंच जे । मनुष्य युगल पल्य तीन, देश ऊण बे नाग स्थिति ।। २९. अष्टम गम इम न्हाल, जघन्य अने उत्कृष्ट ही। तीन पल्योपम काल, वर्ष सहस्र दश अधिक फुन । ३०. नवम गमे इम संच, जघन्य अनें उत्कृष्ट ही। देश ऊण पल्य पंच, बिहुँ भव उत्कृष्टी स्थिति ।। नागकुमार में संख्यात वर्ष नों सन्नी मनुष्य ऊपजे, तेहनों अधिकार' ३१. *जो संख वर्षायु मनुष्य सन्नी, ऊपजै नाग विषेह । तो पर्याप्तो स्यूं ऊपजै, के अपर्याप्तो ऊपजेह ? ३२. जिन कहै पर्याप्ता थकी, असुर विषे ऊपजत गोयमजी ! अपजत थी नहीं ऊपजै, वलि गोतम पूछंत प्रभुजी ! ३३. वर्ष संख्यायु पर्याप्तो, सन्नी मनुष्य छै जेह । ऊपजवा नै जोग्य छ, नागकुमार विषेह । ३४. ते कितै काल स्थितिक विषे ऊपजै? जिन कहै जघन्य सुइष्ट । वर्ष सहस्र दश स्थितिक में, देसूण बे पल्य जिष्ट ।। ३५. इम जिम असुरकुमार में, एहिज मनु उपपात । तास लब्धि नव गम विषे, आखी ते सर्व सुजात ।। ३६. णवरं जे नागकुमार नीं, स्थिति अछै ते कहेह । वलि तसु कायसंवेध ही, बुद्धि सूं विचारी लेह । वा०-संख्यात वर्षायु सन्नी मनुष्य असुरकुमार में ऊपजता नै परिमाणादिक लद्धी कही, तिम कहिवी। तिमहिज णाणत्ता जघन्य गमे ५ --अवगाहना जघन्य-उत्कृष्ट पृथक आंगुल नी १। तीन ज्ञान नै तीन अज्ञान नी भजना २। समुद्घात पांच पहिली ३ । आउ जघन्य-उत्कृष्ट पृथक मास ४, अनुबंध आउ जेतो ५। उत्कृष्ट गमे ३-अवगाहना जघन्य-उत्कृष्ट ५०० धनुष्य नी १, आउ जघन्य-उत्कृष्ट कोड पूर्व २, अनुबंध आउखा जेतो ३। भव जघन्य २, उत्कृष्ट ८ । णवरं नागकुमार नी स्थिति अनै कायसंवेध में फेर छ, ते नवं ही गर्म कहै छ--प्रथम, चउथे ने सातमे गमे जघन्य १० हजार वर्ष नागकुमार नी स्थिति नै विषे ऊपजै, उत्कृष्ट देश ऊण बे पल्योपम नी स्थिति नै विषे ऊपजै। दूजे, पांचमे, आठमे, गमे जघन्य-उत्कृष्ट १० हजार वर्ष नाग नी स्थिति नै विषे ऊपजै । तीजे, छठे, नवमे गमे जघन्य-उत्कृष्ट देश ऊण बे पल्योपम नी नाग नीं स्थिति नै विषे ऊपज । ३३. पज्जत्तसंखेज्जवासाउ यसण्णिमणुस्से णं भंते ! जे __ भविए नागकुमारेसु उववज्जित्तए, ३४. से णं भंते ! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा ? गोयमा ! जहण्णणं दसवाससहस्सद्वितीएसु, उक्को सेणं देसूणदोपलिओवमट्टितीएसु उबवज्जेज्जा । ३५. एवं जहेव असुरकुमारेसु उववज्जमाणस्स सच्चेव लद्धी निरवसेसा नवसु गमएसु, ३६. नवरं-नागकुमारट्ठिति संवेहं च जाणेज्जा १-९ । (श० २४११५९) सोरठा ३७. प्रथम गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। वर्ष सहस्र दश लेह, पृथक मास अधिको वली। ३८. उत्कृष्ट अद्धा जोय, अष्ट भवां नों आखियो। ___कोड़ पूर्व चिउं होय, देश ऊण अष्ट पल्य फुन ।। *लय : तारा हो प्रत्यक्ष मोहनी १. परि० २, यंत्र २५ ७६ भगवती जोड़ Jain Education Intemational Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९. द्वितीय गमे दम जाण, पृथक मास पहिलाण, वर्ष ४०. उत्कृष्ट अद्धा ताय, कोड़ पूर्व चि ४१. तृतीये गमे इम ताय, मास पृथक कहिवाय पाव, वर्ष बे भव अद्धा जघन्य थी । सहस्र दश अधिक ही । अष्ट भवां नों इह विधे । वर्ष सहस्र चालीस फुन ॥ अद्धा जघन्य थी । ऊण पल्य दोय फुन । अष्ट भवां नों आखियो । देश ऊण पल्य अष्ट फुन । बे भव अद्धा वर्ष सहस्र दश जघन्य थी । नाग स्थिति ।। धार, अष्ट भवे कहियै इतो । ४४. उत्कृष्ट अद्धा पृथक मास है प्यार, ४५. पंचम गमे पिछाण, देश ऊण पल्य अष्ट फुन ॥ बे भव अद्धा जघन्य थी । वर्ष सहस्र दश नाग स्थिति ॥ अष्ट भवनों एतलो । वर्ष सहस्र चालीस फुन ।। मास पृथक मनु जाण, ४६. उत्कृष्ट अद्धा सोय, मास पृथक चिजं होय ४७. षष्ठम गमेज तास, नर भव पृथक मास, देश ४८. उत्कृष्ट अद्धा धार, बे मास पृथक है प्यार, ४९. सप्तम गमे सुजोड़, बे नर भव पूर्व कोड़, वर्ष ५०. उत्कृष्ट अद्धा लेख, भव अद्धा जघन्य थी । ऊण पल्य दोय फुन ॥ अष्ट भवां नों इह विधे । देश ऊण पल्य अष्ट फुन ॥ भव अद्धा जघन्य थी । सहस्र दश नाग स्थिति । अष्ट भवां नों आखियो । चिडं पुण्व फोड़ संपेल, ५१. अष्टम गमे कथित्त, कोड़ पूर्व नर स्थित्त ५२. अद्धा उत्कृष्ट धार, कोड़ पूर्व है व्यार, ५३. नवमे गर्म निहाल, कोड़ पूर्व मनु भा ५४. उत्कृष्ट अद्धा जेह, कोड़ पूर्व चि लेह विषे उपजेह, तसु ए कायसंवेह, बुद्धि सूं ५६. सेयं ते ५५. नाग स्वाम जी ! शत चउवीसम सोय । तृतीय उद्देशक दाखियो, अर्थ पकी अवलोय ॥ चतुशितितमशते तृतीयोद्देशकार्यः || २४|३|| ४२. उत्कृष्ट अद्धा वक्ष, चिरं पुव्व कोड़ प्रत्यक्ष, ४३. तुर्य गमे इम थाय, पृथक मास मनु मांय, *लय : तारा हो प्रत्यक्ष मोहनी बे भव देश देश ऊण पत्य अष्ट फुन ।। बे भव अद्धा जघन्य थी । वर्ष सहस्र दश नाग नीं ।। अष्ट भवां नों एतलो । वर्ष सहस्र चालीस फुन । वे भव अद्धा जघन्य थी। देश ऊण पल्य दोय फुन ।। अष्ट भवां नों इह विधे । देश कण पल्प अष्ट फुल || संख्यायु सन्नी मनुष्य । बुद्धि सूं अवलोकी को ।। ५६. सेवं भंते! सेवं भंते ! त्ति । (श० २४१६०) श० २४, उ० ३, ढा० ४१९ ७७ Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७. अवसेसा सुवण्णकुमारादी जाव थणियकुमारा एए अट्ठ वि उद्देसगा ५८. जहेव नागकुमारा तहेव निरवसेसा भाणियव्वा । (श०२४।१६१) सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति। (श० २४।१६२) सुपर्णकुमार स्यूं स्तनितकुमार तक नागकुमारवत, ५ ठिकाणां नों मधिकार' ५७. शेष जे सुवन्नकुमार नें, आदि देई सूविशेष । जाव थणित लग जाणवा, ते पिण अष्ट उद्देश ।। ५८. वक्तव्यता जिम नाग नी, तिम कहिवं निरवसेस । सेवं भंते! स्वाम जी, एकादशमों उद्देस ।। वा०--युगलियो मनुष्य असुर में जाय तो भव जघन्य-उत्कृष्ट २ । णाणत्ता जघन्य गमे ३-अवगाहना जघन्य उत्कृष्ट ५०० धनुष्य जाझी १ । आउखो पूर्व कोड जाझेरो२। अनुबंध आउ जेतो ३ । उत्कृष्ट गमे ३-अवगाहना जघन्य-उत्कृष्ट ३ गाऊ १। आउ जघन्य-उत्कृष्ट ३ पल्य २ । अनुबंध आउ जेतो ३। युगलियो तिर्यच असुर में जाय तेहनां भव जघन्य-उत्कृष्ट २। णाणत्ता ३- अवगाहना जघन्य पृथक धनुष्य, उत्कृष्ट १००० धनुष्य जाझी १, आउखो पूर्व कोड़ जाझेरो २, अनुबंध आउ जेतो ३ । उत्कृष्ट गमे २-आउखो तीन पल्य नों १ अनुबंध आउ जेतो २ । संख्यात वर्षायु सन्नी तिथंच असुर में जाय तेहना भव जघन्य २, उत्कृष्ट ८ । जघन्य गमे णाणत्ता ८ नारकीवत । पिण इहां अध्यवसाय भला कहिवा । उत्कृष्ट गमे २-आउखो कोड़ पूर्व १, अनुबंध आउ जेतो २ । कर्मभूमि नां सन्नी मनुष्य असुर में जाय तेहनां भव जघन्य २, उत्कृष्ट ८ । जघन्य गमे णाणत्ता ५-अवगाहना जघन्य-उत्कृष्ट पृथक आंगुल नी १, तीन ज्ञान अन तीन अज्ञान नी भजना २, समुदघात पांच पहली ३, जघन्य-उत्कृष्ट आउ पृथक मास ४, अनुबंध आउ जेतो ५। उत्कृष्ट गमै ३-अवगाहना जघन्य-उत्कृष्ट पांच सौ धनुष्य नी १। आउ जघन्य-उत्कृष्ट कोड़ पूर्व नों २ । अनुबंध आउ जेतो ३ । एवं नवनिकाय नां ठिकाणा १, गमा २, नाणत्ता ३–एतला बोल असुर कुमार नी पर जाणवा । ५९. च्यारसौ – उगणीसमी, आखी ढाल रसाल । भिक्षु भारीमाल ऋषिराय थी, 'जय-जश' मंगलमाल ।। चतुविशतितमशते आचतुर्थादेकादशोद्देशकार्थः ॥२४॥४-११॥ ढाल : ४२० दहा १. अथ हिव पृथ्वीकाय नों, द्वादशमों उद्देश । अर्थ थको कहियै अछ, सांभलजो सुविशेष ।। २. पृथ्वीकायिक हे प्रभु ! किहां थकी ऊपजंत ? स्यूं नारक थी ऊपजै, तिरि मनु सुर थी हुँत ? ३. जिन भाखै नारक थकी, पृथ्वी में नहिं हंत । __ तिरि मन सर थी ऊपज, वलि गोतम पूर्छत ।। १. परि० २, यंत्र २१-२५ ७८ भनवती जोड़ २. पुढविक्काइया णं भंते ! कओहिंतो उववज्जंति-- कि नेरइएहितो उववज्जति ? तिरिक्खजोणियमणुस्स-देवेहितो उववज्जति ? ३. गोयमा ! नो नेरइएहितो उववज्जति, तिरिक्खजोणिय-मणुस्स-देवेहितो उववज्जति । (श• २४११६३) Jain Education Intemational Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४. जइ तिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति-किं एगि दियतिरिक्खजोणिएहितो ५. एवं जहा वक्कंतीए उववाओ ४. जो तिथंच थकी हुवै, तो स्यूं हे भगवंत ! एकेद्रिय तिर्यंच थी, पुढवी में ऊपजंत? ५. इम जिम पन्नवण पद छठे, ऊपजवो आख्यात । तिण विधि कहि छै इहां, किहां लगै अवदात ।। ६. जावत जो बादर पृथ्वीकाय थी ऊपजत । तो स्यं पर्याप्त थकी, कै अपजत्त थी हंत ? ६. जाव (श० २४।१६४) जइ बायरपुढविक्काइयएगिदियति रिक्खजोणिएहितो उववज्जंति-कि पज्जत्ताबादर जाव उववज्जति, अपज्जत्ताबादरपुढवि? ७. गोयमा ! पज्जत्ताबादरपुढवि, अपज्जत्ताबादरपुढवि जाव उववज्जति। (श० २४११६५) ७. जिन भाखै पर्याप्त जे, बादर पृथ्वीकाय । तेह थकी उपजै अछ, अपजत्त थी पिण थाय ।। पृथ्वीकाय में पृथ्वीकाय ऊपज, तेहनों अधिकार' ओधिक नै ओघिक (१) *जिनेश्वर धन-धन आपरो ज्ञान, संशय तिमर निवारवा जी जाणक ऊगो भान ॥ (ध्र पदं) ८. पृथ्वीकायिक जीवड़ो जी, हे भगवंत जी! तेह। ऊपजवा ने जोग्य छै जी, पुढवीकाय विषेह ।। ९. ते किता काल स्थितिक विषे जी, हे प्रभुजी! ऊपजेह ? श्री जिन भाखै जघन्य थी जी, अंतर्मुहुर्त विषेह ।। १०. उत्कृष्ट वर्ष कहीजियै जी, सहस्र बावीस विख्यात । एह स्थितिक में ऊपजै जी, ए प्रथम द्वार उपपात ।। ११. ते एक समय किता ऊपजे जी? तब भाखै जगनाथ । समय-समय प्रति ऊपजै जी, विरह रहित असंख्यात ॥ १२. छेवट संघयणी ऊपजै जी, तनु अवगाहन माग । जघन्य थकी आंगुल तणों जी, असंख्यातमों भाग ।। १३. उत्कृष्ट पिण आंगुल तणों जी, असंख्यातमों भाग। मसूर चंद्र संठाण छै जी, पंचम द्वार सुमाग ।। १४. धुर लेश्या चिउ'तेह में जी, सम्यगदष्टि न होय । मिथ्यादष्टि ते हवै जी, सम्मामिथ्या नहिं कोय ।। १५. ज्ञानी तसु कहिये नहीं जी, ते अज्ञानी होय । बे अज्ञानी जाणवा जी, नियम थकी अवलोय ।। १६. मन जोगी नहि ह तिके जी, वच जोगी नहिं कोय । काय जोगी कहिये तस जी, बिहं उपयोगी जोय ।। १७. च्यारूंई संज्ञा हुवै जी, फुन च्यारूंई कषाय । एक फर्श इंद्री हुवै जी, समुद्घात त्रिण पाय ।। १८. साता असाता वेदना जी, इत्थी वेद न कोय । पुरिस वेद पिण नहिं हुवै जी, वेद नपुंसक होय ।। ८. पुढविक्काइए णं भंते ! जे भविए पुढविक्काइएसु उववज्जित्तए, ९. से णं भंते ! केवतिकालद्वितीएसु उववज्जेज्जा ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तद्वितीएसु, १०. उक्कोसेणं बावीसवाससहस्सट्ठितीएसु उववज्जेज्जा । (श० २४११६६) ११. ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं-पुच्छा। __ गोयमा ! अणुसमयं अविरहिया असंखेज्जा उव वज्जति। १२. छेवट्टसंघयणी । सरीरोगाहणा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभार्ग, १३. उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखेज्जइभागं । मसूरा चंदासंठिया । १४. चत्तारि लेस्साओ। णो सम्मदिट्ठी, मिच्छादिट्ठी, नो सम्मामिच्छादिट्ठी। १५. नो नाणी, अण्णाणी, दो अण्णाणा नियमं । १६. नो मणजोगी, नो वइजोगी, कायजोगी। उवओगो दुविहो वि। १७. चत्तारि सण्णाओ। चत्तारि कसाया। एगै फासिदिए पण्णत्ते । तिण्णि समुग्घाया। १८. वेदणा दुविहा । नो इत्थिवेदगा, नो पुरिसवेदगा; नपुंसगवेदगा। *लय : खिम्यावंत धिन भगवंत जी रो ज्ञान १. परि. २. यंत्र २६ श० २४, उ० १२, डा. ४२. ७१ Jain Education Intemational Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९. ठिती जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं बावीसं वास सहस्साई। २०. अज्झवसाणा पसत्था वि, अपसत्था वि। अणुबंधो जहा ठिती। (श० २४११६७) २१. से णं भंते ! पुढविक्काइए पुणरवि पुढविक्काइएत्ति केवतियं काल सेवेज्जा ? केवतियं कालं गतिरागति करेज्जा ? २२. गोयमा ! भवादेसेणं जहण्णेणं दो भवग्गहणाई, उक्कोसेणं असंखेज्जाई भवग्गहणाई। २३. कालादेसेणं जहणेणं दो अंतोमुहुत्ता, उक्कोसेणं असंखेज्ज कालं। २४. एवतियं काल सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा १। (श० २४११६८) २५. सो चेव जहण्णकालद्वितीएसु उववण्णो १९. स्थिति जघन्य थी तेहनी जी, अंतर्मुहुर्त जगीस । उत्कृष्टी ह एतली जी, वर्ष सहस्र बावीस ।। २०. अध्यवसायज आखिया जी, प्रशस्त पिण तसु होय । अप्रशस्त पिण ह वली जी, अनुबंध स्थिति जिम जोय ।। २१. ते प्रभु ! पृथ्वीकाइयो जी, पुनरपि पृथ्वी थाय । इम सेवै कालज केतलो जी, कितो काल गतागति पाय ? २२. जिन भाखै भव आश्रयी जी, जघन्य थकी भव दोय । उत्कृष्टा ते भव करै जी, असंख्यात अवलोय ।। २३. काल आश्रयी जघन्य थी जी, अंतर्महत दोय । उत्कृष्टो अद्धा कह्यो जी, असंखेज्ज तसु जोय ।। २४. सेवै कालज एतलो जी, करै गति आगति इतो काल । ओधिक मैं ओधिक गमो जी, दाख्यो प्रथम दयाल ।। ___ ओधिक नै जघन्य (२) २५. तेहिज पृथ्वीकाइयो जी, पृथ्वीकायपणेह । जघन्य काल स्थितिक विषे जी, उपनों तसु स्थिति एह ।। २६. जघन्य अने उत्कृष्ट ही जी, अंतर्महत कहीज । स्थितिक विषेज ऊपनां जी, सहु वक्तव्यता इमहीज । सोरठा २७. जघन्य कायसंवेह, अंतर्मुहुर्त दोय तसु । उत्कृष्टो इम लेह, काल असंख्या पूर्ववत ।। ओधिक नैं उत्कृष्ट (३) २८. *तेहिज पृथ्वीकाइयो जी, पृथ्वीकायपणेह । उत्कृष्ट काल स्थितिक विषे जी, ऊपनों कर्म वसेह ।। २९. धुर सहस्र वर्ष वावीस नी जी, स्थितिक विषे ऊपजेह । उत्कृष्टी पिण एतली जी, सहस्र बावीस वर्षेह ।। सोरठा ३०. उत्कृष्ट स्थिति विषेह, एह ऊपनों ते भणी। सहस्र बावीस वर्षेह, जघन्य अने उत्कृष्ट पिण ।। ३१. *शेष तिमज कहिवो सह जी, यावत अनुबंध लग्ग । णवरं फेर परिमाण में जी, फुन कायसंवेध समग्ग ।। ३२. परिमाण में इम आखियै जी, जघन्य एक बे तीन । उत्कृष्टा ते ऊपज जी, संख असंख्या चीन ।। *लय : खिम्यावंत धिन भगवंत जी रोज्ञान २६. जहणणं अंतोमुत्तद्वितीएसु, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तट्टितीएसु, एवं चेव वत्तव्वया निरवसेसा २ । (श० २४११६९) २८. सो चेव उक्कोसकालट्ठितीएसु उववण्णो २९. बावीसवाससहस्सद्वितीएसु, उक्कोसेण वि बाबीस वाससहस्सद्वितीएसु। ३१. सेसं तं चेव जाव अणुबंधो त्ति, नवरं ३२. जहणणं एक्को वा दो वा तिणि वा, उबकोसेणं संलेज्जा वा असंखेज्जा वा उववज्जेज्जा । ८० भगवती जोड़ Jain Education Intemational Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोरठा ३३. उत्कृष्ट स्थिति विषेह, विषेह, जाणहार तिणसूं जघन्य कहेह, इक बे त्रिण ३४. कदा बहु उपजेह, तो उत्कृष्ट संख असंख कहे, आडवो आख्यो द्वार ३५. "कायसंवेध हि कहूं जी, भव आदेश करेह जघन्य दोय भव जाणवा जी, उत्कृष्ट भव अठ लेह || वा० - भवादेशे करी जघन्य दोय भव ग्रहण करें, उत्कृष्ट थकी आठ भव ग्रहण करें । इहां इम जाणवो- जिहां कायसंवेध में बे पक्ष ने मांहि एक पिण पक्ष नैं विषे उत्कृष्ट स्थिति हुवे तिहां उत्कृष्टे अष्ट भव ग्रहण हुवे । तेह थकी अनेरा पक्ष ने विषे तो असंख्याता भव ग्रहण ते मार्ट इहां उत्पत्ति विषयभूत जीव ने विषे उत्कृष्ट थकी आठ भव ग्रहण करें। एहिज वार्त्ता विशेष करी बोलखावे छँ--प्रथम गमे कायसंवेध जघन्य दोय अंतर्मुहूर्त कह्या । इहां दोनूं भव नीं जघन्य स्थिति कही, ते माटै उत्कृष्टा असंख्याता भव कह्या १ । थोड़ा हुवै । उपजै कदा || अनैं दूर्जं गमे कायसंवेधे जघन्य दोय भव । तेह्नों जघन्य काल के अंतर्मुहूर्त कह्यो । इहां पिण दोनूं भव जघन्य स्थिति कही, ते मार्ट उत्कृष्टा असंख्याता भव कह्या २ । पदे करी । परिमाण ए ॥ अन तीजे गमे जघन्य दोय भव । तेहनों काल जघन्य थी बावीस हजार वर्ष ने अंतर्मुहूर्त । इहां एक पृथ्वी नां भव नीं जघन्य स्थिति अनैं एक भव नीं उत्कृष्ट स्थिति । ए बे पक्ष में एक पक्षे उत्कृष्ट स्थिति आई, ते मार्ट उत्कृष्टा अष्ट भव ३ । अर्ने चउथे, पांचमे गमे जघन्य दोय भव । तेहनों काल दोय अंतर्मुहूर्त्त ते मार्ट उत्कृष्टा असंख्याता भव । अनें छठे, सातमे, आठमे, नवमे गमे जघन्य बे-बे भव । तेहनों काल बावीस हजार वर्ष ने अंतर्मुहूतं । इहां पिण एक भव नीं जघन्य स्थिति एक भव नीं उत्कृष्ट स्थिति । एक भव रूप पक्ष नीं उत्कृष्ट स्थिति मार्ट आठ-आठ भव कहिस्यै । ए पुढवी नां जीव नीं जी, ३६. काल आश्रयी जघन्य थी जी वर्ष सहल बावीस | अंतर्मुहूर्त अधिक ही जी, बे भव स्थिति जगी || ३७. उत्कृष्ट अद्ध इक लक्ष वली जी, वर्ष सहस्र छीतर इष्ट । ३८. सेवं कालज एतलो जी, करें अठ भव स्थिति उत्कृष्ट ॥ गति आगति इतो काल । ओधिक ने उत्कृष्ट गमो जी दाख्यो तृतीय दयाल || 1 *लय : खिम्यावंत धिन भगवंत रो जो ज्ञान. जघन्य नें अधिक (४) ३९. तेहि आपण हुओ जी, जघन्य काल स्थितिवंत । तेहिज प्रथम गमे आखियो जी, भणवो तिमज उदंत ॥ ३५. भवादेसेणं जहणेणं दो भवग्गहणाई, उक्कोसेणं अट्ठ भवणाई | , बा० 'उनको अभवणाई ति इदमव गन्तव्यं - यत्र संवेधे पक्षद्वयस्य मध्ये एकत्रापि पक्षे उत्कृष्ट स्थितिर्भवति तत्रोकोटी भवग्रहमानि तदन्यत्र त्वसङ्खयं यानि ततश्चेहोत्पत्तिविषयभूतजीवेषूत्कृष्टा स्थितिरित्युत्कर्षतोऽष्टी भवग्रहणायुक्तानि ( वृ० प० ८२५) 1 ३६. कालादेसेणं जहणेणं बावीसं वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तमम्भहियाई, ३७. उक्कोसेणं छावत्तरं वाससयसहस्सं, ३८. एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा ३ । ( श० २४/१७० ) ३९. सो व अपना जहणकालद्वितीओ जाओ, सो चेव पढमिल्लओ गमओ भाणियव्वो प्र. २४, उ० १२, ढा०४२० ८१ Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०. नवरं लेश्या त्रिण वे जी, सुर नहि ऊपजै ते ४१. स्थिति जघन्य उत्कृष्ट अध्यवसाय हुवै बुरा जी, ४२. अनुबंध स्थिति जिम जिम शेष बोल छे जेह प्रथम गमा जिम जाणवा जी, तुर्य गमो इम लेह ॥ जघन्य नैं जघन्य (५) ४३. तेहिज जपन्य स्थिति नौ घणी जी, जघन्य स्थितिक पृथ्वी मांय । भणी जी, तेजुलेश न पाय || थी जी, अंतर्मुहुर्त होय । भला न पावै कोय ।। जाणवो जी, जघन्य स्थितिके उप्पन्न । तुर्य गमक सम वारता जी, भणवी सर्व सुजन्न ॥ जघन्य नैं उत्कृष्ट ( ६ ) ४४. तेहिज जघन्य स्थिति नों धणी जी, उत्कृष्ट स्थितिक विषेह पूर्व रीत कहेह || परिमाण कालसंवेह | आगल कहिये जेह । जघन्य एक बे तीन | जी, असंख्याता ही चीन ।। बे भव ग्रहण जघन्न । उत्कृष्ट अठ भव जाणवा जी, उत्कृष्ट संख्याता तथा ४७. यावत ते भव आश्रयी जी, ऊपनों वक्तव्यता तसु जी, ४५. वरं विशेष एतलो जी, फेर अछे ए बिहुं विषे जी, ४६. एक समय ते अपने जी, ४८. काल आश्रयी जघन्य थी जी, अंतर्मुहूर्त आखियो जी, बे ४९. उत्कृष्ट अद्धा एतसो जी अंतर्मुहूर्तचि बलि जी, हिब तसु सोरठा ५०. जघन्य स्थितिक भव च्यार, जघन्य ८२ जेष्ठ स्थितिक भव चिउं वली । वर्ष अठ्यासी हजार, अंतर्मुहूर्स चिरं अधिक ॥ ५१. से कालज एतलो जी, करै गति आगति इतो काल । बने उत्कृष्ट गमो जी, दाख्यो षष्ठम दयाल || काल कथन्न ॥ वर्ष सहस्र बावीस । भव अद्धा जगी ॥ सहस्र अठ्घासी वास । अधिका एह विमास ।। ५२. तेहिज आपण इम तीजा गम *लय : खिम्यावंत धिन भगवंत रो जी ज्ञान भगवती जोड़ उत्कृष्ट में अधिक (७) थयो जी, उत्कृष्ट आयूवंत । सारिखो जी, भणवो सर्व उदंत || ४०. नवरं - लेस्साओ तिष्णि । 'लेसाओ तिथि' ति जघन्यस्थिति केषु देवो नो इति तेजोलेश्या तेषु नास्तीति (१०१००२५) ४१. दिली उनको विअंतोमुहुतं। तो अप्पसत्था अज्भवसाणा । ४२. अणुबंधो जहा ठिती । सेसं तं चैव ४ । ४३. सो चेव जगकालद्वितीएस उववरण सच्चेव चउत्थगमगवत्तव्वया भाणियव्वा ५ । (४० २४।१०२) (०२४।१७१) ४४. सो चेव उक्कोसकालट्ठितीएसु उववण्णो, एस चेव वत्तव्वया, ४५. नवरं ४६. जगणं एक वा दो वा तिष्णि वा उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेज्जा वा ४७. जाव भवादेसेणं जहण्णेणं दो भवरगहणाई उक्कोसणं अट्ठ भवग्गहणाई । ४८. कालादेसेणं जहणणेणं बावीसं वाससहस्साइं अंतोमुत्तमम्भहियाई ४९. उक्कोसेणं अट्ठासी वाससहस्साई चउहि अंतोमुहुतेहि अब्भहियाई', ५०. तत्र जघन्यस्थितिकस्योत्कृष्टस्थितिकस्य च चतुष्कृत्व उत्पन्नत्वाद् द्वाविशतिवर्षसहस्राणि चतुर्गुणितान्यष्टाशीतिर्भवन्ति चत्वारि नीति ( वृ० प० ८२५) ५१. एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा ६ | ( श० २४ । १७३ ) ५२. सो चेव अप्पणा उक्कोसकालट्ठितीओ जाओ, एवं तइयगमगसरिसो निरवसेसो भाणियव्वो, Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३. नवरं-अप्पणा से ठिई जहण्णेणं बावीसं वाससहस्साइ', उक्कोसेण वि बावीसं वाससहस्साई ७ । (श० २४११७४) ५४. सो चेव जहण्णकालद्वितीएसु उववण्णो जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं । ५५. एवं जहा सत्तमगमगो जाव भवादेसो। ५६. कालादेसेणं जहण्णेणं बावीसं वाससहस्साइ अंतो मुहत्तमभहियाई, ५७. उक्कोसेणं अट्ठासीइ वाससहस्साइ चउहि अंतो मुहुत्तेहिं अब्भहियाई, ५८. एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा । (श० २४.१७५) ५९. सो चेव उक्कोसकालट्ठितीएसु उववण्णो जहण्णेणं बावीसवाससहस्सट्ठितीएसु, उक्कोसेण वि बावीसवाससहस्सट्टितीएसु, ५३. णवरं आपण तिको जी, जघन्य अनै अत्कृष्ट । वर्ष सहस्र बावीस नों जी, आयुवंतज इष्ट ।। उत्कृष्ट नैं जघन्य (८) ५४. तेहिज जेष्ठ स्थिति नों धणी जी, जघन्य स्थितिके उप्पन्न । जघन्य अनें उत्कृष्ट थी जी, अंतर्महत प्रपन्न ।। ५५. इम जिम सप्तम गम विषे जी, आख्यो तिम कहिवाय । यावत भव बे जघन्य थी जी, उत्कृष्टा अठ पाय ।। ५६. काल आश्रयी जघन्य थी जी, वर्ष सहस्र बावीस । अंतर्महत अधिक थी जी, बे भव काल जगीस ।। ५७. उत्कृष्ट अद्धा एतलो जी, वर्ष अठ्यासी हजार । ___ अंतर्मुहुर्त चिउं वली जी, अठ भव काल विचार ।। ५८. सेवै कालज एतलो जी, ___ करै गति-आगति इतो काल । उत्कृष्ट अर्ने जघन्य गमो जी, दाख्यो अष्टम दयाल ।। उत्कृष्ट नैं उत्कृष्ट (8) ५९. तेहिज जेष्ठ स्थिति नों धणी जी, उत्कृष्ट स्थितिके उप्पन्न । जघन्य अने उत्कृष्ट थी जी, वर्ष सहस्र बावीस कथन्न ।। ६०. एहिज सप्तम गम तणी जी, वक्तव्यता सुविशेष । आखी तिम कहिवी इहां जो, यावत भव आदेश ।। ६१. काल आश्रयी जघन्य थी जी, सहस्र चोमालीस वास ।। बे भव पृथ्वीकाय नां जी, उत्कृष्ट स्थिति नां विमास । ६२. उत्कृष्ट इक लक्ष ऊपरै जी, वर्ष छीहतर हुंत । अठ भव पृथ्वीकाय नां जी, उत्कृष्ट आपुवंत ।। ६३. सेवै कालज एतलो जी, करै गति-आगति इतो काल । उत्कृष्ट ने उत्कृष्ट गमो जी, दाख्यो नवम दयाल । पृथ्वीकाय में अपकाय ऊपज, तेहनों अधिकार' ६४. जो अपकायिक एकेंद्रियो जी, तिथंच थी ऊपजेह । स्यू सूक्ष्म अपकाय थी जी, बादर अप थी लेह ।। ६५. इम चिउं भेदे जाणवा जी, सूक्ष्म बादर तेम । पर्याप्तो अपर्याप्तो जी, पृथ्वीकायिक जेम ।। ओधिक ने ओधिक [१] ६६. हे प्रभुजी ! अपकाइयो जी, पृथ्वीकाय विषेह । ऊपजवा ने जोग्य छै जी, कितै काल स्थितिक ऊपजेह ? ६०. एस चेव सत्तमगमगवत्तव्वया जाणियव्वा जाव भवादेसो त्ति। ६१. कालादेसे गं जहण्णेणं चोयालीसं वाससहस्साई, ६२. उक्कोसेणं छाबत्तरं वाससयसहस्सं, ६३. एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा ९। (श. २४।१७६) ६४. जइ आउक्काइयएगिदियतिरिक्खजोणिएहितो उव___ वज्जंति--कि सुहुमआउ० ? बादरआउ० ? ६५. एवं चउक्कओ भेदो भाणियव्वो जहा पुढविक्काइयाणं। (श. २४।१७७) 'चउक्कओ भेदो' त्ति सूक्ष्मबादर योः पर्याप्तकापर्याप्तकभेदात् (वृ० प० ७२५) ६६. आउक्काइए णं भते ! जे भविए पुढविक्काइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते ! केवइकालट्टितीएस उववज्जेज्जा? १.परि०२, यंत्र २७ श० २४, उ० १२, ढा० ४२० ८३ Jain Education Intemational Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७. गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तद्वितीएसु उक्कोसेणं बावीसवाससहस्सद्वितीएसु उववज्जेज्जा। ६८. एवं पुढविक्काइयगमगसरिसा नव गमगा भाणियब्वा, नवरं६९. थिबुगाबिंदुसंठिए । ठिती जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सत्त वाससहस्साई । ७०. एवं अणुबंधो वि । एवं तिसु वि गमएसु । ठिती संवेहो ६७. जिन कहै गोतम ! जघन्य थी जी, अंतर्महुर्त लेह । वर्ष सहस्र बावीस नी जी, उत्कृष्ट स्थितिक विषेह । ६८. इम पृथ्वीकायिक तणां जी, गमा सरीखा जी लेख । अपकायिक नां नव गमा जी, भणवा णवरं विशेख ।। ६९. स्तिबुक बिंदु संठाण छ जी, स्थिति जघन्य थी जी इष्ट । अंतर्महत अप तणीं जी, सप्त सहस्र वर्ष जिष्ट ।। ७०. अनुबंध पिण इम जाणवू जी, त्रिहं गम एम पिछाण । जघन्य जेष्ठ स्थिति अप तणी जी, फुन संवेध सुजाण ॥ ७१. तृतीय छठे सातमे जी, अष्टम नवमे गमेह । भवादेश धुर भव बिहं जी, उत्कृष्ट अठ भव लेह ।। ७२. शेष चिउं गम नै विषे जी, जघन्य दोय भव देख । उत्कृष्टा भव तेहनां जी, असंख्यात सुविशेख ॥ हिवै तीजे, छठे सातमे, आठमे, नवमे गमे जघन्य दोय भव, उत्कृष्टा आठ भव कह्या । तेहनों कायसंवेध कहै छ७३. संवेध तीजा गम विष जी, काल आश्रयी जघन्न । वर्ष सहस्र बावीस छै जी, अंतर्महर्त कथन्न ।। ७१. तइयछट्ठसत्तमट्ठमनवमेसु गमएसु-भवादेसेणं जहण्णेणं दो भवग्गहणाई, उक्कोसेणं अट्ठ भवग्गहणाई, ७२. सेसेसु च उसु गमएसु जहण्णेणं दो भवग्गहणाई, उक्कोसेणं असंखेज्जाई भवग्गहणाई । ७३. ततियगमए कालादेसेणं जहण्णणं बाधीसं वास सहस्साई अंतोमुहुत्तमब्भहियाई ७६. उक्केसेणं सोलसुत्तरं वाससयसहस्सं, सोरठा ७४. अंतमहतं ताहि, अपकायिक स्थिति भोगवी। ऊपनो पृथ्वी मांहि, स्थिति वर्ष सहस्र बावीस तसु ।। ७५. अप ओधिक संजात, जघन्य काल नैं वांछवे । अंतर्महत ख्यात, सप्त सहस्र वर्ष नहिं कह्या ।। ७६. *उत्कृष्ट अद्धा एतलू जी, इक लक्ष वर्ष निहाल । सोल सहस्र वर्ष ऊपरे जो, ए अठ भव नूं काल । सोरठा ७७. पुढवी नां भव च्यार, सहस्र अठ्यासी वर्ष जे । अप चिउं भव अवधार, वर्ष सहस्र अठ वीस फुन ।। ७८. ए बिहुं मेली तास, बर्ष एक लक्ष ऊपरै। सोले सहस्रज वास, अष्ट भवे उत्कृष्ट स्थिति ।। ७९. सेवै कालज एतलो जी, करै गति-आगति इतो काल । जघन्य अने जघन्य गमो जी, दाख्यो दीनदयाल ।। ५०. छठा गमा नै विषे जी, जघन्य स्थितिक छै जेह । उत्कृष्ट स्थिति विषे तिको जी, उपनों तसु संवेह ।। ७९. एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा । ८०. छठे गमए 'छठे गमए' इत्यादि, षष्ठे गमे हि जघन्यस्थितिक उत्कृष्टस्थितिषूत्पद्यते (वृ० ५० ५२६) ८१. कालादेसेणं जहणेणं बावीसं वाससहस्साइं अंतो मुहुत्तमभहियाई ८१. काल आश्रयी जघन्य थी जी, वर्ष बावीस हजार । अंतर्महत अधिक छै जी, बे भव अद्धा धार ।। *लय : खिम्यावंत धिन भगवंत रो जी ज्ञान ८४ भगवती जोड़ Jain Education Intemational Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२. उक्कोसेणं अट्ठासीति वाससहस्साई चउहिं अंतो मुहुत्तेहिं अन्भहियाई, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा। ८२. अद्धा उत्कृष्टो वली जी, वर्ष अठ्यासी हजार । अंतर्महर्त चिउं बली जी, ए गति-आगति धार ।। सोरठा ५३. वर्ष बावीस हजार, चिउ भव पुढवीकाय नां । ए सहस्र अठ्यासी धार, अंतर्मुहूर्त च्यार अप ।। ८३. इत्यन्तर्मुहुर्तस्य वर्षसहस्रद्वाविंशतेश्च प्रत्येक चतुर्भव ग्रहणगुणितत्वे यथोक्तमुत्कृष्टं कालमानं स्यात् ५८००० (वृ०प० ८२६) ८४. सत्तमे गमए कालादेसेणं जहणेणं सत्त वाससहस्साई अंतोमुहुत्तमभहियाई, ८५. उक्कोसेणं सोलसुत्तरं वाससयसहस्सं, ५६. एवतियं काल सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा । ८७. अट्ठमे गमए कालादेसेणं जहण्णेणं सत्त वाससहस्साई अंतोमुत्तमन्भहियाई । ८८. उक्कोमेणं अट्ठावीसं वाससहस्साइं चउहिं अंतो मुहुत्तेहिं अब्भहियाई, ८४. *सप्तम गमा विषे वली जी, काल आश्रयी जघन्न । सप्त सहस्र वर्ष अप भवे जी, अंतर्महुर्त कथन्न ।। ८५. उत्कृष्ट इक लक्ष ऊपरे जी, सोल सहस्र फुन वास । चिउं भव पुढवी अप चिउं जी, स्थिति उत्कृष्टी तास ।। ५६. सेवै कालज एतलो जी, करै गति-आगति इतो काल । उत्कृष्ट नैं ओधिक गमो जी, एह सप्तमो न्हाल ।। ८७. अष्टम गम काल आश्रयी जी, जघन्य थकी अवितत्थ । सप्त सहस्र वर्ष अप स्थिति जी, पृथ्वी अंतर्मुहुत्त ।। ८८. उत्कृष्ट अद्धा एतलो जी, सहस्र वर्ष अठवीस । अंतर्मुहर्त चिउ वली जी, इतलो काल जगीस ।। __सोरठा ८९. वर्ष सहस्र अठवीस, उत्कृष्ट स्थिति अप चिउं भवे । मही चिउं भवे जगीस, चिउ अंतर्मुहूर्त जघन्य ।। ९०. *सेवै कालज एतलो जी, करै गति-आगति इतो काल । जघन्य अने उत्कृष्ट गमो जी, दाख्यो दीनदयाल । ९१. नवम गमे भव आश्रयी जी, जघन्य दोय भव देख । उत्कृष्टा अठ भव कह्या जी, हिव तसु काल संपेख ।। ९२. काल आश्रयी जघन्य थी जी, वर्ष सहस्र गुणतीस । सप्त सहस्र वर्ष अप स्थिति जी, पृथ्वी सहस्र बावीस ।। ९३. अद्ध उत्कृष्ट वर्ष एतला जी, इक लक्ष सोल हजार। सेवे कालज एतलो जो, ए गति-आगति धार ।। ९०. एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा। ९१. नवमे गमए भवादेसेणं जहण्णेणं दो भवग्गहणाई, उक्कोसेणं अट्ठ भवग्गहणाई, ९२. कालादेसेणं जहण्णेणं एकूणतीसं वाससहस्साई ९३. उक्कोसेणं सोलसुत्तरं वाससयसहस्सं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। (श० २४।१७८) सोरठा ९४. सहस्र अठवासी वास, पृथ्वी चित्रं भव जेष्ठ स्थिति । अप चिउ भव स्थिति तास, वर्ष सहस्र अठवीस फुन । ९५. प्रथम द्वितीय गम जोय, तुर्य गमे फुन पंचमे । जघन्य थकी भव दोय, उत्कृष्टा असंख भव हुवै ।। ९६. जघन्य अद्धा तसु जोय, अंतर्मुहूर्त दोय ह्व। उत्कृष्टो अवलोय, काल असंखिज्ज ह्वतसु ।। *लय : खिम्यावंत धिन भगवंत रो जी ज्ञान श० २४, उ०१२, ढा० ४२० ८५ Jain Education Intemational Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हिवं पृथ्वीकाय में तेऊकाय ऊपजे, तेहनों अधिकार' ९७. *जो क तेऊ नीं पिण वारता जी. ९५. वरं नव ही गमा विषे जी, देव यकी नहि ऊपजे जी, थी ऊपजै, १००. स्थिति जघन्य ९९. कायिक नों कह्यो, सूची समूह संठाण । ए आकारज जाणवो जी, स्थिति तास पहिछाण || उत्कृष्टी अवधार १०१. *तीजा गमक विषे कह्यो जी, काल आश्रयी जघन्न । वर्ष सहस्र बावीस नीं जी, अंतर्मुहूर्त्त कथन्न ॥ १०२. उत्कृष्ट अवा विषेह | कहेह ॥ पृथ्वीकाय एहिज रीत लेश्था तीनज पाय । तेकाविक मांय ॥ सोरठा सुविचार, अंतर्मुहूतं नीं अखी । तीन दिवस निया नीं तसु ॥ इतो जी, वर्ष अठ्यासी हजार । रात्रि दिवस द्वादश बली जी, एह अधिक अवधार ॥ वा० - इहां तीजे गमे अधिक तेऊकायिक छै, ते पृथ्वीकायिक उत्कृष्ट स्थितिक विषे ऊपजै । अत्र एक पक्ष ते पृथ्वीकायिक उत्कृष्ट स्थितिपणों छं, ते भणी उत्कृष्ट थकी अष्ट भव ग्रहण हुवै । ते व्यार भव पृथ्वीकायिक नां उत्कृष्ट स्थिति बावीस हजार वर्ष नां करै । ते चउगुणां कीधा अठ्यासी हजार वर्ष हुवे । अने उत्कृष्ट आउखा नां च्यार भव ते कायिक नां करें। एक-एक भव तीन-तीन दिन रात्रि नां । ते चउगुणां कीधां यारे दिन-रात्रि हुवै। १०३. गति आगति इतरो अद्धा जी मन ने उपयोगे करी जी १०६. उत्कृष्ट अद्धा धार, अंतर्मुहूर्त म्यार सोरठा गमेह, १०४. अठ भव पंचम तृतीय गमे संवेध जे । पूर्वे आख्यो जेह, हिव गम षष्ठम प्रमुख ते ।। १०५. छठे गमे संदेह, बे भव अद्धा जघन्य थी । अंतर्मुहूर्त तेह, वर्ष सहस्र बावीस फुन । दा० इहां काम न अंतर्मुनी स्थिति पृथ्वीकाय मी बावीस हजार वर्ष नीं स्थिति एक पक्ष में उत्कृष्ट स्थिति कही ते मार्ट अष्ट भव 81 कायसंवेधज एम । कहिवूं सगलो तेम ॥ १. परि० २ यंत्र २८ *लय : खिम्यावंत धिन भगवंत रो जी ज्ञान ८६ भगवती जोड़ अष्ट भवां नों इह विधे । वर्ष अठ्यासी सहस्र फुन । ९७. जइ उक्काइएहितो उववज्जंति ? तेउवकाइयाण वि एस चैव वत्तव्वया, ९८. नवरं - नवसु वि गमएसु तिण्णि लेस्साओ । 'तिथि साओ' ति कायिनेषु देवोत्पत्तेः तेजोलेण्याद्भावान्यतरता उक्ताः इह तु तदभावातिस (बु. प. ८२६) ९९. ते उक्काइया णं सूईकलावसंठिया ठिई जाणियव्वा । एवेति, १००. 'ठिई जाणियव्व' त्ति तत्र तेजसो जघन्या स्थितिरन्तर्मुहूर्तमितरा तु त्रीण्यहोरात्राणीति । ( वृ. प. ८२६ ) बावीसं वास १०१. तइयगमए कालादेसेणं जहणेणं सहस्साई अंतोमुहुत्तमब्भहियाई, १०२. उसको बट्टासीति वाससहस्साई बारसहि राईदिहि अम्महिवाई. बा० 'लइयनमे' इत्यादि तृतीयगमे अधिकस्टेजस्कायिक उत्कृष्टस्थितिषु पृथिवीकायिपद्यते इत्यकस्य पक्षस्योत्कृष्टस्थितिकत्वमोटो भव ग्रहणान्युत्कर्षतः, तत्र च चतुर्षु पृथिवीकायिकोत्कृष्टभवग्रहणेषु द्वाविश्वसहस्राणां चतुर्गुणितत्वेऽष्टाशीतिस्तानि भवन्ति तथा चतुव तेजस्कायिकत प्रत्येकमहोरात्रत्रयपरिमाणेषु द्वादशाहोरात्राणीति, ( वृ० प० ८२६) १०२. एका सेवेना, एयतियं का पतिरामति करेजा एवं संवेही उवर्जुनिऊण भाषियन्यो १-९। (श० २४ । १७९ ) Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०७. सप्तम गमे संवेह, बे भव अद्धा तीन दिवस निशि तेह, अंतर्मुहूर्त अधिक पुन । जघन्य थी । वा० - तेऊकाय नी उत्कृष्टी स्थिति अने पृथ्वीकायिक नीं जघन्य स्थिति । तिहां पिण एक पक्ष उत्कृष्टी स्थिति कही ते मार्ट अष्ट भव । वर्ष अष्ट बे भव अद्धा अंतर्मुहूर्त अयासी सहस्र जे । भवां नों आखियो । जघन्य थी । अधिक फुन । वा० - इहां पिग एक पक्ष उत्कृष्टी स्थिति, ते मार्ट अष्ट भव । नों आखियो । च्यार फुन ।। जघन्य थी । बावीस फुन । १०८. उत्कृष्ट अद्धा धार, दिवस रात्रि जे बार, १०९. अष्टम गमे संवेह, तीन दिवस निशि जेह, ११०. उत्कृष्ट अद्धा धार, अष्ट भवां दिवस-रात्र जे बार, अतर्मुहूर्त्त १११. नवमे गमे संदेह, बे भव अद्धा तीन दिवस निशि जेह, वर्ष सहस्र वा० - अत्र तेऊकाय नीं तीन दिन रात्रि नीं स्थिति अने पृथ्वीकाय नीं बावीस हजार वर्ष नीं स्थिति । इहां बिहुं पक्ष उत्कृष्टी स्थिति छं, ते मार्ट अष्ट भव ग्रहण । ११२. उत्कृष्ट अद्धा धार, दिवस-निशा बलि वर्ष अयासी सहस्र जे। बार, अष्ट भवे अद्धा इतो ।। वा०- ए पंच गमे जघन्य दोय भव, उत्कृष्टा अष्ट भवनों कायसंवेध ह्यो । अशेष १, २, ४, ५ – ए च्यार गमे कायसंवेध कहे छ ११३. शेष चिउ गमकेह, बे भव अद्धा जघन्य थी । अंतर्मुह बेह उत्कृष्ट काल असंख ही ।। बा०-- इहां जघन्य बे भव नों काल बे अंतर्मुहूत्तं । अत्र तेउकाय नीं अनं पृथ्वीकाय पण अंतर्मुहूर्त ए पि जघन्य स्थिति से मार्ट उत्कृष्ट असंख्याता भव । तेहनों असंख्यातो काल कह्यो । 1 पृथ्वीका में बाकाय अपने तेहनों अधिकार' ऊपजे पृथ्वी एवं चैव , ११४. "जो वाकायिक बकी जी, वायुनां पिण नव गमा जी ११५. जिम हिज तेउकाय नों जी, तिमहिज वाऊ महि विषे जी, ११६. नवरं बाऊ न कह्यो जी, पृथ्वी में उपपात । ऊपजतां नें थात ।। पताका नों संस्थान । सुचो कलाप जान । तेऊ नों संठाण छै जी, वा० - इहां तेऊ में समुद्घात ३ पावें । वाऊ में समुद्धात ४ पावं, ते वरं पाठ में खोली नथी । ते वाऊ ओदारिक मूल शरीर नीं अपेक्षाए संभाविये छ । वाऊ में वेक्रिय समुद्घात पावै छै, पिण ते उत्तर रूप मार्ट इहां लेखव्यो न दीसे । *लय : खिम्यावंत धिन भगवंत रो जी ज्ञान १. परि. २ यंत्र २९ रे मांय । कहाय ॥ ॥ ११४. वह वाक्काइएहितो ? aratकाइयाण वि एवं चैव नव गमगा ११५. जहेव उक्काइयाणं, ११६. नवरं - पडागासंठिया पण्णत्ता । श० २४, उ० १२, ढा० ४२० ८७ Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११७. संवेहो वाससहस्सेहिं कायम्वो। ११८,११९. 'संवेहो वाससहस्सेहिं कायम्वो' त्ति तेज स्कायिकाधिकारेऽहोरात्रः संवेधः कृतः इह तु वर्षसहस्रः स कार्यों वायूनामुत्कर्षतो वर्षसहस्रत्रयस्थितिकत्वादिति । (वृ० ५० ५२६) १२०. तइयगमए कालादेसेणं जहणेणं बावीसं वाससहस्साई अंतोमुत्तमम्भहियाई, ११७. वलि संवेधज तेहनों जी, वर्ष सहस्र संघात । करिवो वाऊकाय नों जी, तास न्याय इम ख्यात ।। सोरठा ११८. तेऊ ने अधिकार, दिन-निशि कर संवेध कृत । इहां वायु में धार, करिवू वर्ष सहस्र करी ।। ११९. तिहां दिवस-निशि तीन, स्थिति उत्कृष्ट तेऊ तणीं। इहां उत्कृष्टी चीन, वर्ष सहस्र त्रिण नी कही ।। १२०. *तीजे गमे काल आश्रयी जी, जघन्य थकी संवेह । वर्ष सहस्र बावीस नी जी, अंतर्मुहूर्त अधिकेह ।। वा० -- इहां एक पक्ष पृथ्वीकाय नी उत्कृष्ट स्थिति माट उत्कृष्ट अष्ट भव तेहनों काल कहै छै१२१. उत्कृष्ट अद्धा एतलो जी, वर्ष एक लक्ष जाण । वायु में पृथ्वी तणां जी, च्यार-च्यार भव माण ।। सोरठा १२२. पृथ्वी स्थिति उत्कृष्ट, चिउं भव अठ्यासी सहस्र । वायु नी स्थिति जिष्ट, चिउं भव द्वादश सहस्र वर्ष । १२३. ए बिहुं मेली जोय, वर्ष एक लक्ष आखियो। तृतीय गमे अवलोय, गतागति संवेध ए॥ १२१. उक्कोसेणं एग वाससयसहस्सं । १२२,१२३. 'उक्कोसेणं एग वाससयसहस्सं' ति अत्राष्टी भवग्रहणानि तेषु च चतुर्वष्टाशीतिवर्षसहस्राणि पुनरन्येषु चतुर्पु वायुसत्केषु वर्षसहस्रत्रयस्य चतुर्गुणितत्वे द्वादश उभयमीलने च वर्षलक्षमिति, (वृ० ५०८२६) १२४. एवं संवेहो उवजुंजिऊण भाणियव्वो १-९ । (श० २४।१८०) वा०-यत्रोत्कृष्ट स्थितिसम्भवस्तत्रोत्कर्षतोऽष्टौ भवग्रहणानि इतरत्र त्वसंख्येयानि, एतदनुसारेण च कालोऽपि वाच्य इति । (वृ० ५० ५२६) १२४. *एवं कायसंवेध मैं जी, गमक विषे अवधार। मन नै उपयोगे करी जी, कहि सर्व विचार ।। वा०-जे गमा नै विषे एक पक्षे अथवा बिहुं पक्षे उत्कृष्टी स्थिति हुवे, ते गमा नै विषे उत्कृष्ट थकी अष्ट भव ग्रहण हुवै । अने जे गमा नै विषे बिहुं पक्षे जघन्य स्थिति हुवे, तेहनां उत्कृष्ट असंख्याता भव हुवै। तेहनों काल पिण असंख्यातो हुवै । तिहां प्रथम, द्वितीय, चौथे, पंचमे गमे जघन्य दोय भव उत्कृष्ट असंख्याता भव हुवै । तेहनों काल पिण असंख्यातो हुवै । तिहां तृतीय छठे, सातमे, आठमे, नवमे गमे जघन्य दो भव, उत्कृष्ट आठ भव । तिहां तीजे गमे तो कायसंवेध कहो । हिवं छठे गमे कायसंवेध कहै छ सोरठा १२५. छठे गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। ___ अंतर्मुहुर्त लेह, वर्ष सहस्र बावीस ही। इहां एक पक्ष पृथ्वीकाय नी उत्कृष्ट स्थिति कही ते मार्ट उत्कृष्टा अष्ट भव१२६, उत्कृष्ट अद्धा धार, अष्ट भवां नों इह विधे। अंतर्मुहर्त च्यार, वर्ष अठ्यासी सहस्र फुन । १२७. सप्तम गम संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। वर्ष सहस्र त्रिण लेह, अंतर्मुहूत्तं अधिक फुन । इहां एक पक्ष वाउकाय नी उत्कृष्ट स्थिति मार्ट अष्ट भव---- *लय : खिम्यावंत धिन भगवंत रो जी ज्ञान ८८ भगवती जोड़ Jain Education Intemational Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२८. उत्कृष्ट अद्धा ताय, वर्ष एक लक्ष आठ भवे । बार सहस्र वर्ष वाय, वर्ष अठ्यासी सहस्र मही। १२९. अष्टम गम संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। वर्ष सहस्र त्रिण जेह, अंतर्मुहर्त अधिक फुन । इहां पिण एक पक्ष वायु नी उत्कृष्ट स्थिति माट उत्कृष्ट अष्ट भव१३०. उत्कृष्ट अद्धा तास, अष्ट भवां नों इह विधे । द्वादश सहस्रज वास, अंतर्मुहर्त च्यार फुन ।। १३१. नवम संवेध जगीस, बे भव अद्धा जघन्य थी। वर्ष सहस्र पणवीस, वाउ पृथ्वी जेष्ठ स्थिति ।। इहां वाउकाय नी अने पृथ्वीकाय नी ए बिहुँ पक्षे उत्कृष्टी स्थिति ते माट उत्कृष्ट अष्ट भव१३२. उत्कृष्ट अद्धा ताय, वर्ष एक लक्ष अठ भवे । बार सहस्र वर्ष वाय, पुढवो अठ्यासी सहस्र ।। हिवै प्रथम, बीजे चउथे पंचमे गमे जघन्य दो भव, उत्कृष्ट असंख्याता भव नों कायसवेध कहै छ सोरठा १३३. शेष चिउ गमकेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। अंतर्मुहुर्त बेह, उत्कृष्ट भव अद्धा असंख ।। वा०-इहां वायुकाय नी अनै पृथ्वीकाय नी बिहुं पक्षे जघन्य स्थिति ते माट उत्कृष्ट असंख्याता भव । ए च्यार गमे जघन्य कायसंवेध में दोय अंतर्मुहर्त कह्या । ते वाउकाय नों पिण जघन्य आउखो अनै पृथ्वीकाय नों पिण जघन्य आउखो । तेहनां पिण दोय अंतर्मुहूर्त । ए बिहुं पक्षे जघन्य स्थिति ते भणी उत्कृष्टा असंख्याता भव जाणवा । अनै तीजे, छठे, सातमे, आठमे गमे तेहनी जघन्य एक पक्षे उत्कृष्ट स्थिति, तिणसू उत्कृष्ट आठ भव । अनै नवमे गमे जघन्य थकी बे भव नी बिहुं पक्षे उत्कृष्ट स्थिति ते भणी तेहनां उत्कृष्ट आठ भव जाणवा । ए वाउकाय पृथ्वीकाय नै विषे ऊपज, तेहनों अधिकार कहो। हिवं वनस्पतिकाय पृथ्वी काय नै विषे ऊपजै, तेहनों अधिकार कहै छै-- पृथ्वीकाय में वनस्पतिकाय ऊपज, तेहनों अधिकार' १३४. *जो वनस्पति थो ऊपजै जी, पृथ्वीकाय विषेह । अप नां नव गम सारिखा जी, वनस्पति नां कहेह ।। १३४. जइ वणस्सइकाइएहितो उववज्जति ? वणस्सइ काइयाणं आउकाइयगमगसरिसा नव गमगा भाणियब्वा, १३५. नवरं-नाणासंठिया । १३५. णवर विशेष एतलो जी, वनस्पति नां संठाण । कह्या अनेक प्रकार नां जी, ए आकार पिछाण ।। सोरठा १३६. अपकाय संठाण, स्तिबुक तणे आकार जे। वनस्पति नों जाण, नाना प्रकार नों कह्यो। १३७. *शरीर तणी अवगाहना जी, धुर त्रिण गमक विषेह । अथवा त्रिण गम पाछिला जी, तेह विषे इम लेह ॥ *लय : खिम्यावंत धिन भगवंत रोजी ज्ञान १. परि. २, यंत्र ३० १३६. अप्कायिकानां स्तिबुकाकारावगाहना एषां तु __नाना संस्थिता। (वृ० ५०८२६) १३७. सरीरोगाणा पढमएसु पच्छिल्लएसु य तिसु गमएसु श० २४, उ०१२, ढा०४२० ८९ Jain Education Intemational Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३८ जघन्य यकी आंगुल तणें जी, असंख्यातमे उत्कृष्ट योजन सहस्र नीं जी, सोरठा १३९. पुर ओधिक गम तीन, उत्कृष्ट स्थिति विण गम चरम । वनस्पति नी चीन, कहिवी जघन्योत्कृष्ट अवगाहना ।। १४०. *मध्यम त्रिण गम नें विषे जी, जघन्य गमक ए जाण । तेहविषे इम आखियो जी, पृथ्वी नीं पर माण । १४१. पृथ्वी काय भाग । जारी तसु माग ॥ विषेह, पृथ्वी आख्यो तेम कहेह, असंख भाग १४४. १४२. *कायसंवेध अनें बलि जी वनस्पति तेह जाणवी बुद्धि करी जी, जिन वच सोरठा सोरठा १४३. वनस्पति स्थिति जान, उत्कृष्टी दश जघन्य प्रसिद्ध विद्याण, इण अनुसार * संवेध तीजा गम विषे जी, काल वर्ष सहस्र बावीस १५०. इतो ऊपजता आंगुल नी करी सहस्र संबंध तणें । तणों ॥। उत्कृष्ट जघन्य १४६. उत्कृष्ट अद्धा एतलो जी, अष्ट भवे वर्ष एक लक्ष आखियो जी, बलि अठवीस स्थित्त । पवित्त ॥ आश्रयी जघन्न । नीं जी, अंतर्मुहूर्त कथन्न । सोरठा १४५ वर्ष सहस्र बावीस, पृथ्वी नीं अंतर्मुहूर्त जगीस, वनस्पति नीं इहां वे भाव में जघन्य पकी काल एक पक्षे कही ते भणी उत्कृष्ट गमे आठ भव । तेहनों कायसंवेध कहै छे वर्ष । पिण ॥ स्थिति । स्थिति ॥ पृथ्वीकाय नी उत्कृष्टी स्थिति सोरठा 1 १४७. पृथ्वी नां भव च्यार, वर्ष अठ्यासी सहस्र जे फुन चालीस हजार, चिउं भव वणस्सइ जेष्ठ स्थिति || १४८ वर्ष सहल बावीस, उत्कृष्ट स्थिति पृथ्वी तणीं । वणस्सइ तणीं जगीस, उत्कृष्टी दश सहस्र नीं ॥ १४९ च्यार प्यार भव तास, तेह चउगुणां घी एक लक्ष जे वास, वर्ष सहस्र अठवीस गति आगति तीजा पिण पिण काल सेवंत, अद्धा करे जे जंत, गमा *लय : खिम्यावंत धिन भगवंत रो जी ज्ञान ९० भगवती जोड़ अवधार । अठवीस हजार ॥ हुई । । फुन ॥ एतलो । विषेज इम ।। १३८. जहणेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं सातिरेगं जोणसं, १३९. प्रथमकेष्वधिकेषु गमेषु पाश्चात्येषु चोत्कृष्टस्थितिकगमेष्ववगाहना वनस्पतिकायिकानां द्विधाऽपि (बु०प०२६) १४०. मल्लिए तमु सहेब जहा पुढविकाइयाणं । १४१. मध्यमेषु जघन्य स्थितिकगमेषु त्रिषु यथा पृथिवी - कायिकानां पृथिवीकायिकेषूत्पद्यमानानामुक्ता तथैव याच्या अंगुलासंख्यात भागमा बेत्यर्थः (बु० १० ८२६) १४२. संवेहो ठिती य जाणियम्वा । १४३. तत्र स्थितिरुत्कर्षतो दशवर्षसहस्राणि जघन्या तु प्रतीर्तन, एतदनुसारेण संबेधोऽपि ज्ञेयः ( वृ० प० ८२६) १४४. तइयगमे कालादेसेणं जहणेणं बावीसं वाससहस्साइं अंतोमुहुतमन्महियाई १४६. उस्को अट्टाचीगुत्तरं वासराय सहस् १४७-१४९. इह गमे उत्कर्षतोऽष्टो भवग्रहणानि तेषु चत्वारि पृथिव्याश्चत्वारि च वनस्पतेः तत्र चतु पृथिवीभवेषूत्कृष्टेषु वर्षसहस्राणामष्टाशीतिः तथा वनस्पतेर्दशवर्षसहस्रायुष्कत्वाच्चतुर्षु भवेषु वर्षसहस्राणां चत्वारिंशत् उभयमीलने च यथोक्त' मानमिति । (१० १० ८२६) १५०. एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा । Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५१. *मन में उपयोगे करी जी, कहिवं सूत्रे तो आख्यो इतो जी, तसु निर्णय इम इम संवेह । लेह ।। १५१. एवं संवेहो उवजंजिऊण भाणियन्वो १-१। (श. २४११८१) सोरठा १५२. छठे गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। अंतर्मुहुर्त लेह, वर्ष सहस्र बावीस फुन । इहां पृथ्वी नी एक पक्ष उत्कृष्ट स्थिति माट उत्कृष्ट ८ भव । तेहनों कायसंवेध कहै छै१५३. * उत्कृष्टो अद्धा इतो जी, वर्ष अठ्यासी हजार । चिउं अंतर्मुहुर्त वलो जी, अष्ट भवे अवधार ।। सोरठा १५४. सप्तम गम संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। वर्ष सहस्र दश लेह, पृथ्वी अंतर्मुहूर्त स्थिति ॥ इहां वनस्पति नी एक पक्ष उत्कृष्ट स्थिति, ते माट उत्कृष्ट ८ भव ।। तेहनों कायसंवेध कहै छ१५५. उत्कृष्ट अद्धा इष्ट, इक लख वर्ष अठवीस सहस्र। पृथ्वी चित्रं भव जिष्ट, जेष्ठ वणस्सइ भव चिउं ।। १५६. अष्टम भव संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। वर्ष सहस्र दश लेह, अंतर्मुहूर्त अधिक फुन ।। इहां पिण एक पक्षे वनस्पति नी उत्कृष्ट स्थिति, ते माट उत्कृष्ट अष्ट भव छ । तेहनों काल कहै छै१५७. उत्कृष्ट अद्ध विचार, अष्ट भवां नों इह विधे। वर्ष चालीस हजार, अंतर्मुहर्त च्यार फुन ।। १५८. नवमे संवेध तास, बे भव अद्धा जघन्य थी। सहस्र बतीसज वास, वण पुढवी उत्कृष्ट स्थिति ।। __इहां वनस्पति अने पृथ्वी ए बिहुं पक्षे उत्कृष्ट स्थिति माटै उत्कृष्ट आठ भवनों काल कहै छै१५९. उत्कृष्ट अद्धा सोय, अष्ट भवां नों इह विधे । इक लक्ष वर्ष सुजोय, वर्ष सहस्र अठवीस फुन । अनै पहिले, दूजे, चउथे, पंचमे गमे जघन्य दो भव, उत्कृष्ट असंख्याता भव । तेहनों कायसंवेध कहै छै१६०. चिउं भव शेष संवेह, बे भव अक्षा जघन्य थी। अंतर्मुहुर्त बेह, उत्कृष्ट भव अद्धा असंख ।। इहां बिहुं पक्षे जघन्य स्थिति माटै उत्कृष्ट असंख्याता भव नों असंख्यातो काल कायसवेध कह्यो। ए वनस्पति पृथ्वी नै विष ऊपज तेहनों अधिकार कहो। *लय : खिम्यावंत धिन भगवंत रो जी ज्ञान श० २४, उ०१२, ढा०४२० ९१ Jain Education Intemational Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाणत्ता १६१. पुढवी पृथ्वी मांय, ऊपजे तसु चिउं णाणत्ता। जघन्य गमेज पाय, प्रथम तीन लेश्या हुवै ।। १६२. आयु नै अनुबंध, अंतर्मुहुर्त नों कह्यो। __ अध्यवसायज मंद, माठा ए चिउं णाणत्ता । १६३. अप पुढवी में जाय, तसु पिण ए चिउं णाणत्ता। तेऊ नां पिण ताय, लेश विना त्रिण णाणत्ता ।। १६४. वायू पृथ्वी मांय, उपजै तसु चिउं णाणत्ता । तेऊवत त्रिहुं पाय, समुद्घात वैक्रिय वली। १६५. धुर गम वैक्रिय पाय, मध्यम त्रिण गम अपज्जते । वेक्रिय लहियै नांय, इम समुद्धात वैक्रिय नहीं ।। वा०-'इहां सूत्रे प्रथम ओधिक गमे वाउकाय नां औदारिक मूल शरीर नां कथन माट वैक्रिय समुद्घात न कही। तिणसूं इहां सूत्र जघन्य गमे वैक्रिय समुद्घात नों णाणत्तो नथी का । अर्ने पन्नवणा पद ३६ में वाउकाय में वेदनी, कषाय मारणांतिक, वैक्रिय-ए ४ समुद्घात कही । तथा जीवाभिगम पहिली पडिवत्ती में वाउकाय में एहिज ४ समुद्घात कही। तथा भगवती शतक ८ उद्देशे १ वाउकाय रा पर्याप्ता में वैक्रिय समुद्घात पावै । अनं जघन्य गमे अपर्याप्ता माट न पावै । तिणसूं समुद्धात नों नाणत्तो चउथो कहिये । जिम पृथ्वी नै विषे वाऊ ऊपजता नै वैक्रिय गमा नै विषे कह्यो, तिम अप में, तेऊ में, वाऊ में, वनस्पति में, विकलेंद्रिय में, तिथंच पंचेंद्रिय में वाऊ ऊपज तिण में वैक्रिय समुद्घात इहाँ न कही । ते औदारिक मूल शरीर माटे । पिण और सूत्रे वाउकाय में ४ शरीर, ४ समुद्घात कही । ते मार्ट जघन्य गमे समुद्घात नों चउथो णाणत्तो सर्व ठिकाणे संभव ।' (ज० स०) १६६. पुढवी विषे पिछाण, ऊपजतो जे वणस्सइ । जघन्य गमे सुजाण, पंच णाणत्ता तेहनां ।। १६७. चित्रं पुढवीवत इष्ट, अवगाहन नों पंचमो। जघन्य अनै उत्कृष्ट, असंख भाग आंगुल तणों ।। वा-पृथ्वी अप, तेज, वाऊ, वनस्पति --ए पांच स्थावर पृथ्वी में आवं १,२,४,५-ए च्यार गमा जघन्य दो भव, उत्कृष्ट असंख्याता भव । असंख्यातो काल अन समै-समै असंख्याता ऊपजै । तथा ३, ६, ७, ८, ९,-ए पांच गमा जघन्य २ भव, उत्कृष्ट ८ भव ऊपजै तो जघन्य १, २, ३ ऊपजै अनै उत्कृष्ट संख्याता-असंख्याता ऊपजै । १६८. *ए चउवीसम शत तणों जी, वर द्वादशम उद्देस । देथ अर्थ थी आखियो जी, देश रह्यो फुन शेष ।। १६९. एह च्यारसौ बीसमी जी, ढाले पृथ्वी संबंध । _ भिक्षु भारीमाल ऋषिराय थी जी, 'जय-जश' परमानंद ।। वा०-वाउक्काइयाणं चत्तारि समुग्धाया पण्णत्ता, तं जहा___ वेदणासमुग्घाए कषायसमुग्धाए मारणंतियसमुग्घाए वेउव्वियसमुग्घाए। (पण्ण० ३६५६) तेसि (वाउक्काइयाणं) णं भंते ! ........."चत्तारि समुग्घाया-वेयणासमुग्घाए, कसायसमुग्घाए, मारणंतियसमुग्घाए वे उब्वियसमुग्घाए । (जीवाजीवाभिगमे १८२) *लय : खिम्यावंत धिन भगवंत रो जी ज्ञान ९२ भगवती जोड़ Jain Education Intemational For Private & Pers Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ढाल : ४२१ १. जइ बेंदिएहितो उववज्जति–कि पज्जत्ताबेंदिएहितो उववज्जंति ? अपज्जत्ताबेंदिएहितो उववज्जति ? २. गोयमा ! पज्जत्ताबेंदिएहितो उववज्जति, अपज्जताबेंदिएहितो वि उववज्जति । (श० २४१८२) १. जो पृथ्वीकायिक विषे, बेंद्रिय थी ऊपजेह । तो स्यूं पर्याप्त थकी, के अपजत्त थी लेह ? २. जिन भाखै पर्याप्त थी, पुढवी में उपजंत। अपजत्त थी पिण ऊपज, वलि गोयम पूछंत ।। पृथ्वीकाय में बेइंद्रिय ऊपज, तेहनों अधिकार' _ *चतुर नर सुणजो पुढवी संबन्ध ।। (ध्रुपदं) ३. हे प्रभुजी ! बेइंदिया जी, पृथ्वीकाय विषेह । ऊपजवा ने जोग्य छै ते, किते काल स्थितिक उपजेह ? ४. श्री जिन भाखै जघन्य थी जी, अंतर्मुहुर्त विषेह । उत्कृष्ट बावोस सहस्र नों जी, काल स्थितिके जेह। ५. ते एक समय किता ऊपजै जी? जिन कहै जघन्य सूअंक । एक दोय त्रिण ऊपजै जी, उत्कृष्ट संख असंख ।। ३.दिए णं भंते ! जे भविए पुढविक्काइएसु उव वज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? ४. गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहत्तट्टितीएसु, उक्कोसेणं बावीसवाससहस्सद्वितीएसु । (श० २४११८३) ५. ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जति ? गोयमा ! जहण्णेणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेज्जा वा उववति । ६. छेवट्टसंघयणी! ओगाहणा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं . ७. उक्कोसेणं बारस जोयणाई। 'बारस जायणाई' ति यदुक्तं तच्छङ्खमाश्रित्य । (वृ०प० ८२८) ८. हुंडसंठिया । तिण्णि लेसाओ। ६. छेवट संघयणी हुवै जी, अवगाहन इम माग। जघन्य थकी आंगुल तणों जी, असंख्यातमों भाग ।। ७. उत्कृष्टी अवगाहना जी, कहियै जोजन बार । ___ संख बेइंद्रिय आश्रयी जी, एम कह्यो वृत्तिकार ।। ८. हुंड संठाण हुवै तसु जी, धुर त्रिहं लेशज होय । बेइंद्रिय में सुर नहीं ऊपजै, तिणस तेजू लेश न कोय । ९. समदृष्टि पिण ते हुवै जी, सास्वादन कहेह । ए ओधिक बेइंद्रिय तणों जी, ओधिक पृथ्वी विषेह ।। ९. सम्मदिट्ठी वि। _ 'सम्मदिट्ठी वि' त्ति एतच्चोच्यते सास्वादनसम्यक्त्वापेक्षयेति, इयं च वक्तव्यतोषिकद्वीन्द्रियस्यौधिकपृथिवीकायिकेषु। (वृ० प० ८२८) १०. मिच्छादिट्ठी वि, नो सम्मामिच्छादिट्ठी। ११. दो नाणा, दो अण्णाणा नियमं । १०. मिथ्यादृष्टि पिण हुवै जी, मिश्रदृष्टि नहीं थाय । द्वार कह्यो ए सातमों जी, ए बोल बेइंद्री में पाय॥ ११. सास्वादन हुवै तरै जी, निश्चै छै बे नाण। अन्यथा दो अज्ञान नी जी, नियमा निश्चै जान ।। १२. मन जोगी ते नहीं हुवै जी, वच काय जोगी होय । द्विविध उपयोगी हुवै जी, च्यार संज्ञा हुवै सोय ।। १३. च्यार कषाय ह तेह में जी, इंद्रिय पावै दोय । जिभ्या इंद्रिय नें वली जी, फासिदिय अवलोय ॥ *लय : चतुर नर समझो ज्ञान विचार १. परि. २, यंत्र ३१ १२. नो मणजोगी, वइजोगी कायजोगी वि। उवओगे दुविहो वि । चत्तारि सण्णाओ। १३. चत्तारि कसाया। दो इंदिया पण्णत्ता, तं जहा जिभिदिए य फासिदिए य । श० २४, उ० १२, ढा० ४२१ ९३ Jain Education Intemational Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४. समुद्घात त्रिण घुर कही जी, शेष वेदना आदि । जिम पृथ्वी में ऊपजे जी कहिं तिम संवादि ॥ १५. णवरं स्थिति इंद्रिय तणीं जी, जघन्य थकी सुविमास । अंतर्मुह नीं हुबे जी, उत्कृष्टा द्वादश वास ।। १६. अनुबंध पिण तसु एतलो जी, शेष तिमज कहिवाय । कालसंवेध है हि जी, चित ल्याय || १७. भव आश्रयी थी जघन्य जी, उत्कृष्टा भवतेहूनां जी, १८. काल आश्रयी जघन्य उत्कृष्ट काल संखेज छै जी, सांभलजो वे भव संख्याता करेह | | लेह ॥ थी जी, एतलो *लय : चतुर नर समझो ज्ञान विचार ९४ भगवती जोड़ ग्रहण गिण , १९. तेहिज जघन्य स्थिति नैं विषे जी, ऊपनों द्वितीय गमेह | वक्तव्यता धुर गम कही जी, तेहिज कहिवी एह || २०. तेहिज उत्कृष्ट काल नीं जी, स्थितिक विषे उपन्न । एहिज बेइंद्रिय तभी जी कहिवी लब्धि सुजन्न ॥ २१. नवरं विशेष संबंध में जी, आश्रयी जघन्य | बे भव ग्रहण करें तिको जी, उत्कृष्टा अठ जन्य || २२. काल आश्रयी जपत्य थी जी, वे भवनों कहिवाय । बावीस सहस्र वर्ष मही जी अंतर्मुहूर्त अधिकाय || भव अंतर्मुहूर्त बेह । काल सेवेह || सोरठा २३. जघन्य थकी भव दोय, घुर बीजो भव अवलोय, उत्कृष्ट २४. एक पक्ष ने पेख, उत्कृष्ट उत्कृष्ट सुविशेख, अठ भव २५. उत्कृष्ट अद्धा अठ भवे जी वर्ष अधिक अड़ताली वर्ष वली जी, सोरठा २६. इंद्रिय भव च्यार, द्वादश चतुर्गुणो बपेज एक भव । अवधार, अड़तालीस वर्ष ह ॥ a २७. तिण कर अधिका एह अन्य अयासी सहस्र वर्ष चिरं पृथ्वी भव लेह, तृतीय गमे । उत्कृष्ट अद्धा || २८. तेहिज आपण थयो जी, जघन्य काल स्थितिवंत । तेहने पण एहिज विधे जी, जी, वक्तव्यता सुबुत ॥ २९. विचला तीनूंइ गमा विषे जी, ओघिकवत अवदात । णवरं इतरो विशेष छै जी, एह् णाणत्ता सात ॥ ३०. शरीर तण अवगाहना जी कहिवी पृथ्वी जेम पुढवी पृथ्वी नें विषे जी, ऊपजता नैं तेम ॥ भव इंद्रिय तणों। स्थिति पृथ्वी विषे ॥ स्थितिकपणां थकी । ग्रहण का इहां ॥ अठघासी अठासी हजार । एतलो काल उचार ॥ १४. तमुग्धाय से जहा विक्काया। १५. नवरं हिती जण अंतीमुतं, उनकोसेणं वारस संवच्छराई । १६. एवं अणुबंधो वि । सेसं तं चैव । १७. भवादेसेणं जहणणेणं दो भवग्गहणाई, उक्कोसेणं संभवणाई १०. कालादेसेणं जयेषं दो मंतोमा उक्कोसेणं सं कालं एयतियं कार्य सेवेण्या एवतियं डाल गतिरागति करेज्जा १ । (२०२४१०४) १९. सो चेव जहणकालट्ठितीएसु उववण्णो एस चेव (१० २४१०५) २०. सो चेव उक्कोसकालट्ठितीएसु उववण्णो एस चेव बें दियस्स लद्धी । वत्तव्वया सव्वा २ । २१. नाणं जीणं दो कोसे अट्ठ भवग्गणाई । २२. कालादेसेणं जहणेणं बावीसं वाससहस्साइं अंतो मुहुत्तमन्महियाई । २०. सो 1 २४. 'अदु भवगगाई' ति एकपोष्टपतिकत्वात् ( वृ० प० ८२९ ) २५. उस्को बट्टासीति बाससहरसाई लयाजीसाए संयहि बिहिवार एवति का एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा ३ । ( श० २४|१८६ ) २६, २७. 'अडयालीसाए संवच्छ रेहि अब्भहियाई' ति चतुर्षु द्वीन्द्रियभवेषु द्वादशाब्दमानेष्वष्टचत्वारिंशत् संवत्सरा] भवन्ति तैरभ्यधिकान्यष्टाशीतिसहस्वाणी ति । ( वृ० प० ०२९) , भवरमगाई, वि एस चैव वत्तव्वया । २९. तिसु वि गमएसु, नाणत्ताई ३०. १. सरीरोगाणा जहा पुढविकाइयाणं । अध्यायकालतिओ जाओ, तस्स नवरं - इमाई सत्त Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोरठा ३१. जघन्य आउखावंत, बे इंद्रिय छै ते भणी । बिचले त्रिहुं गम इंत, पृथ्वीवत अवगाहना ॥ ३२. जिम पुढवी नी जाण, आंगुल तणोंज भाग जे । असंख्यातमों माण, जघन्य जेष्ठ अवगाहना ॥ ३३. बेन्द्रिय नीं पिण एह, जघन्य स्थितिक छैते भणी । अनें अधिक गमकेह, द्वादश योजन योजन नी कही ॥ ३४. * सम्यकदृष्टि ते नहीं जी, मिश्रदृष्टि पिण नहीं हुवे जी सोरठा होय । मिथ्यादृष्टी तास न्याय अवलोय || ३५. जघन्य आउखावंत, सास्वादन नहि हंत, ३६. पूर्व चिउं गमा मांय, मध्यम स्थिति पिण पाय, सम्यक्त वमतो बेइंद्रिय छं तेह में। सम्यक्त वमत न ऊपजै ॥ सम्यकदृष्टी पिण कह्यो । ऊपजै ॥ ३७. "निश्च ये अज्ञान छे जी पिण ज्ञानी पूर्व निगम ने विषे जो ज्ञानी पिग ३८. मन जोगी ते नहि हुवे जी, वच जोगी काय जोगी कहिये तसु जी हिये तसु सोरठा ३९. प अपर्याप्तपर्णा वचन योग नहि लेह, घुर त्रिहुं गम वच पिण ४०. स्थिति जघन्य उत्कृष्ट थी जी प्रथम त्रिहुं गम ने विषे जी, बार वर्ष नहि बात आख्यात | पिण नांय । न्याय कहाय । अंतर्मुहुर्त स्थिति बेइंद्रिय ४१. अध्यवसाय बुरा हू जी, जीव जघन्य आउखावंत छै जी, पृथ्वी विषे सोरठा ४२. पूर्वे धुर गम तीन, प्रशस्त नैं अपसत्थ उभय रूप त्यां चीन, छठो णाणत्तो जाणतो ते धकी। कह्य ं ॥ इष्ट | जिष्ट || एह । ऊपजेह || पिण । भणी ॥ ४३. अनुबन्ध स्थिति तणीं पर जी, सप्तम जाणतो तेह बिचला त्रिहुं गम ने विषे जी, सप्त णाणत्ता एह ॥ हि कायसंवेध कहै छँ । तिण में बिचला तीन गमा में आदि नां दोय गमानों संवेध प्रथम कहै छे ४४. संवेध मध्यम त्रिण गम विषे जी, आदि बे घुर गमकेह । ओधिक आदि बेगम कह्या जी, तिमहिज कहिवूं एह || *लय : चतुर नर समझो ज्ञान विचार ३२.२३. शरीरावमाना यथा पृथिवीकायिकानामंगुला - संख्येयभागमानमित्यर्थः प्राक्तनगमत्रये तु द्वादशयोजनानाम्युनति ? ( वृ० प० ७२९) ३४. २. नो सम्मदिट्ठी, मिच्छादिट्ठी, नो सम्मामिच्छादिट्ठी । ३५. 'नो सम्मदिट्ठी' जघन्यस्थितिकतया सासादनसम्यर दृष्टीनामनुत्पादात् । ( वृ० प० ६२९) ३६. प्राक्तनगमेषु तु सम्यग्दृष्टिरप्युक्तोऽजघन्यस्थितिकस्यापि तेषु भावात् २ | ( वृ० प० ८२९) ३७. ३. दो अण्णाणा नियमं । तथा द्वे अज्ञाने प्राक् च ज्ञाने अप्युक्ते ३ । ३८. ४. नो मणजोगी, नो वइजोगी, कायजोगी । (१०५०२९) ३९. तथा योगद्वारे जघन्यस्थितिकत्वेनापर्याप्तकत्वान्न वाग्योगः प्राक् चासावप्युक्तः ४ । ( वृ० प० ८२९) ४०. ५. ठिती जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उनकोसेण वि अंतोमुहुत्तं तथा स्थितिरिहान्तर्मुहुर्तमेय प्राक् संवत्सरद्वादशकमपि ५. । च ( वृ० प० २९) ४१. ६. अज्भवसाणा अपसत्था । ४२. तथाऽध्यवसानानीहारस्तान्येव प्रायोपाणि (बु०प००२९) ६। ४३. ७. अणुबंधो जहा ठिती । गमएसु, ४४-४६. संबेो तहेव आदिले दोगु आदिल्लेसु संवेधस्तु द्वितीयत्रयस्याद्ययोर्द्वयोर्गमयो रुत्कर्षतो संख्येयभवलक्षणः कालादेशेन च संख्येय काललक्षणः भवादेशेन ७ । ( वृ० प० ८२९) श० २४, उ० १२, ढा० ४२१ ९५ Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५. तुर्य अनं पंचम गमे जी, भव जघन्य थी वे भव ग्रहण छे जी, ४६. काल आश्रयी जघन्य थी उत्कृष्ट काल संसेज से जी, जी, आयपी आख्यात | उत्कृष्टा संख्यात || ॥ अंतर्मुहूर्त संख भवनों ५२. उत्कृष्ट गमेज संघ, आयुष ने अनुबन्ध, नैं to इहां जघन्य वे अंतर्मुहूर्त कह्या । बिहु उत्कृष्ट संख्याता भव कह्या हिवे बिचला तीनूं गमा भव आश्रयी तो अधिक नां तीजा गमा नों कह्यो तिमहिज उत्कृष्ट ८ भव कहिवा । ते गाथाई करी कहै छै - पक्षे में दोय । सोय || इम इष्ट | उत्कृष्ट ।। हजार । ४७. बिचला तीजा गमा म जी, तीजे गमे भव आधी तिमहीज छै जी, जघन्य वे अठ ४८. काल आश्रयी जघन्य थी जी, वर्ष बावीस अंतर्मुहुर्त अधिक ही जी, बे भव ४९. उत्कृष्ट अद्ध अठ भव तणों जी, वर्ष अठघासी हजार । अंतर्मुहूतं चि वलि जी ए षष्ठम गम अधिकार ।। हिवे सातम), आठमो, नवमो गमक कहे छं अद्धा धार ॥ *लय : चतुर नर समझो ज्ञान विचार ९६ भगगती जोड़ जघन्य स्थिति मार्ट तीजा गमा नों संवेध जघन्य २ भव, ५०. तेहिज बेइंद्रिय वो जी, जेष्ठ काल स्थितिमंत । तेहनां पण पुर त्रिणगम जिसा जी, चरम तीन गम हंत ।। ५१. वरं चरम त्रिण नम विषे जी, स्थिति जघन्य उत्कृष्ट । बार सवच्छर नीं कही जी, अनुबन्ध पिण इम इष्ट ॥ सोरठा दोष णाणत्ता ए कह्या । सात कह्या जघन्य गमे ॥ ५३. *भव आश्रयी जघन्य थी जी, बे भव ग्रहण कराय । धुर भव बेइंद्रिय तणों जी, पुढवी नों बीजो पाय || ५४. उत्कृष्टा अठ भव कह्या जी, बेइंद्रिय भव प्यार | पृथ्वी नां भव चिउं वली जी, हिव अद्धा अधिकार ॥ ५५. कहिवो कालज आश्रयी जी, उपयोगे करि एह । यावत नवमा गम विषे जी, आख्यो सूत्र विषेह || सोरठा ५६. जाव शब्द में जेह, सप्तम अष्टम गम कहियै काय संवेह, चित्त लगाई ५७. सप्तम गमे संदेह, बे द्वादश वर्षज लेह, पुढची अंतर्मुहूर्त ५८. उत्कृष्ट अद्धा तास, वर्ष अठघासी वलि अड़ताली वास, अष्ट भवा नों विषे । सांभलो ।। भव अद्धा जघन्य थी । स्थिति ॥ सहस्र जे । काल ते ।। ४७. तइयगमए भवादेसो तहेव अट्ठ भवग्गणाई । ४८. कालादेसेणं जहण्णेणं बावीसं वाससहस्साइं अंतोमुहुत्त महियाई । ४९. उक्कोसेणं अट्ठासीति वाससहस्साइं चउहि अंतोमुहुत्तेहि अमहियाई । (०२४।१०७) ५०. सो चेव अप्पणा उक्कोसकालट्ठितीओ जाओ, एमस्स वि श्रयिगममसरिसा तिष्णि गमगा भाणियव्वा । ५१. नवरं तिसु वि गमएनु डिली संच्छराई, उक्कोसेण वि बारस धोवि जहणणेणं बारस संवच्छराई । एवं ५२. भयादेसेणं जमे दो भाई ५४. उक्कोसेगं अट्ठ भवग्गणाई २५. कालादेसेणं उभाणि जाव Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५९. अष्टम गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थो। द्वादश वर्षज तेह, अंतर्महत अधिक फुन ।। ६०. उत्कृष्ट अद्धा धार, अड़तालीसज वर्ष जे। अंतर्मुहुर्त च्यार, अष्ट भवां नों आखियो। ६१. नवमा गमा विषे जघन्य थी जी, बे भवनों अवधार । वर्ष सहस्र बावीस छै जी, अधिक सवंच्छर बार ।। ___ सोरठा ६२. द्वादश वर्ष जगीस, बेइंद्रिय उत्कृष्ट स्थिति । वर्ष सहस्र बावीस, पुढवी नी पिण जेष्ठ स्थिति ।। ६३ *उत्कृष्ट अद्धा आखियो जी, वर्ष अठ्यासी हजार । वर्ष अड़ताली अधिक ही जी, एतलो काल विचार ।। ६१. नवमे गमए जहण्णेणं बावीसं वाससहस्साई बारसहिं संवच्छरेहि अन्भहियाइं । ६३. उक्कोसेणं अट्ठासीति वाससहस्साई अडयालीसाए संवच्छरेहिं अभहियाई, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा ७-९ । (श० २४।१८८) ६४. बेइंद्रिय भव च्यार, वर्ष अष्ट चालीस तसु । फुन अठयासी हजार, पुढवी चित्रं भव नी स्थिति ॥ पृथ्वीकाय में तेइंद्रिय ऊपज, तेहनों अधिकार' ६५. *जो तेइंद्रिय थी ऊपजै जी, पृथ्वीकायिक मांय । इमहिज पूर्वली परै जी, नव गमका कहिवाय ।। ६६.णवरं धुर त्रिहुं गम विषे जो, तनु अवगाहन जघन्य । असंख भाग आंगुल तणों जी, जेष्ठ गाउ त्रिण जन्य ।। ६५. जइ तेइंदिएहितो उववज्जति ? एवं चेव नव गमगा भाणियन्वा । ६६. नवरं-आदिल्लेसु तिसु वि गमएसु सरीरोगाहणा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं तिण्णि गाउयाइ। ६७. तिण्णि इंदियाइं । ठिती जण्हणणं अंतोमुहुत्तं । ६८. उक्कोसेणं एगूणपन्न राइंदियाइं । ६९. तइयगमए कालादेसेणं जहण्णेणं बावीसं वाससहस्साई अंतोमुत्तमभहियाई। ६७. इंद्रिय तीन हुवै तसु जी, फर्श रसन ने घ्राण । स्थिति जघन्य तेइंद्रिय तणीं जी, अंतर्मुहर्त जाण।। ६८. उत्कृष्टी स्थिति तेहनी जी, जे एगुणपच्चास । रात्रि अने दिन नी कही जी, वर जिन वचन विमास ।। ६९. तृतीय गमे काल आश्रयी जी, जघन्य थकी संवेह । वर्ष सहस्र बावीस नी जी, अंतर्महुर्त अधिकेह ।। सोरठा ७०. अंतर्महर्त जगीस, धुर भव तेइंद्रिय स्थिति । वर्ष सहस्र बावीस, पुढवी नी उत्कृष्ट स्थिति ।। ७१. * उत्कृष्ट अद्धा अठ भवे जी, वर्ष अठ्यासी हजार । एकसौ नै छिन्नं वलि जी, दिवस-रात्रि अवधार ।। सोरठा ७२. तेइंद्रिय नी तास, इक भव उत्कृष्टी स्थिति । दिन-निशि गुणपच्चास, इकसौ छिन्न चिउं भवे ॥ ७३. वर्ष बावीस हजार, पुढवी उत्कृष्टी स्थिति। चिउं भव करि सुविचार, वर्ष अठ्यासी सहस्र ह॥ *लय : चतुर नर समझो ज्ञान विचार १. परि. २, यंत्र ३२ ७१. उक्कोसेणं अट्ठासीति वाससहस्साई छण्णउयराइंदिय सयमन्भहियाई, श• २४, उ० १२, ढा० ४२१ ९७ Jain Education Intemational Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४. एवतियं काल सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा। ७५. मज्झिमा तिण्णि गमगा तहेव, पच्छिमा वि तिण्णि गमगा तहेव । ७६. नवरं-ठिती' जहणणं एगणपन्नं राइंदियाई, उक्कोसेण वि एगूणपन्नं राइंदियाई। ७७. संवेहो उवजुंजिऊण भाणियव्वो १-९ । (श० २४।१८९) ७४. *सेवै कालज एतलो जो, ए गति-आगति काल । ओधिक में उत्कृष्ट गमो जी, दाख्यो तृतीय दयाल ।। ७५. बिचला जे तीनं गमा जी, कहिवा तिणहिज रीत । छहला पिण तीन गमा जी, इमहिज छै सुवदीत ।। ७६. णवर इतरो विशेष छै जी, जघन्य अने उत्कृष्ट । गुणपचास दिन-रात्रि नी जी, उत्कृष्ट गम स्थिति इष्ट ।। ७७. मन सं उपयोगे करी जी, जाणवो तास संवेह । जुओ-जुओ कहियै तिको जी, सांभलजो गुणगेह ।। सोरठा ७८. तुर्य गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। अंतर्मुहर्त बेह, उत्कृष्ट भव अद्धा संख्या ।। इहां बिहुं भव नां बे अंतर्मुहूर्त जघन्य थी कह्या। ते बिहुं पक्ष जघन्य स्थिति माटै उत्कृष्ट संख्याता भव कह्या। ७९. पंचम गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। अंतर्मुहूर्त लेह, उत्कृष्ट भव अद्धा संख्या ।। इहां पिण चउथा गमा नी पर बिहुं पक्ष जघन्य स्थिति माटै उत्कृष्ट भव संख्याता कह्या। ८०. छठे गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। अंतर्महत लेह, वर्ष सहस्र बावीस फुन ।। इहां एक पक्ष उत्कृष्ट स्थिति माट ८ भवां नों काल कहै छ८१. उत्कृष्ट अद्धा धार, अष्ट भवां नों आखियो। अंतर्महर्त च्यार, वर्ष अठ्यासी सहस्र फुन । ५२. सप्तम गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। गुणपचास निशि-देह, अंतर्महुर्त अधिक फुन ।। इहां एक पक्ष उत्कृष्ट स्थिति माट उत्कृष्ट ८ भव । तेहनों काल कहै छ८३. उत्कृष्ट अद्धा धार, इक सय छिन्नूं दिवस-निशि । वर्ष अठचासी हजार, अष्ट भवां नों इह विधे ।। ८४. अष्टम गम अवदात, बे भव अद्धा जघन्य थी। गुणपचास दिन-रात, अंतर्महुर्त अधिक फुन ।। ८५. उत्कृष्ट अद्धा ख्यात, बे भव अद्धा जघन्य थी। गुणपचास दिन-रात, वर्ष सहस्र बावीस फुन ।। ५६. उत्कृष्ट अद्ध विचार, इक सय छिन्नं दिवस-निशि । वर्ष अठ्यासी हजार, अष्ट भवां नों आखियो ।। पृथ्वीकाय में चरिंद्रिय ऊपज, तेहनों अधिकार' ८७. *जो . चरिंद्रिय थी ऊपजै जी, पृथ्वीकाय विषेह । कह्या नव गम तेइंद्री तणां तिम, चउरिंद्री नां पिण लेह ।। ८७. जइ चाउरिदिएहितो उववज्जंति ? एवं चेव चउरि दियाण वि नव गमगा भाणियव्वा । *लय : चतुर नर समझो ज्ञान विचार १. परि. २, यंत्र ३३ ९८ भगवती जोड़ Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८. नवरं इता स्थानक विधे जी, नानात्व भेद भणेह । अवगाहना स्थिति इंद्रिये जी, अनुबंध मांहि कहेह || ८९. तनु अवगाहन जघन्य थी जी, आंगल नों अवधार । असंख्यातमों भाग छे जी, उत्कृष्ट गाऊ च्यार ॥ ९०. स्थिति जपन्य थी जाणवी जी अंतर्मुहुर्त जास उत्कृष्टी षट मास नीं जी, अनुबन्ध पिण इम तास । ९१. श्रोत विना चिउ इंद्रियां जी, शेष तिमज अवदात यावत नवमा गमा विषे जी, संवेध सूत्रे ख्यात ।। सोरठा ९२. जाव शब्द में जेह, अष्ट गमां नों इह विधे । कहियो जे संदेह, आबू उपयोगे करी । ९३. प्रथम गमे संदेह, बे जघन्य थी । बेह, उत्कृष्ट भव अद्धा संख्या || भव अद्धा अंतर्मुहुर्त ९४. द्वितीय गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी । अंतर्म बेह उत्कृष्ट भव अद्धा संख्या ।। इहां प्रथम, बीजे गमे चउरिद्री नीं अन पृथ्वी नीं ए बिहुं पक्षे जघन्य स्थिति मार्ट उत्कृष्ट संख्याता भव कह्या । ९५. तीजे गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी । लेह वर्ष सहस्र बावीस बावीस फुन ॥ अंतर्गत इहां एक पक्ष पृथ्वी नीं उत्कृष्ट स्थिति मार्ट उत्कृष्ट अष्ट भव । तेहनों काल कहै छै - ९६. उत्कृष्ट अद्धा तास, अष्ट भवां नों इह विधे । चउरिद्रिय बे वास, वर्ष अठपासी सहस्र फुन । ९७. तुयं गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। भव अद्धा संख्या || अंतर्मुहुर्त बेह, उत्कृष्ट ९५. पंचम गमे संदेह, बे भव अद्धा जघन्य थी । अंतर्मुहुर्त बेह उत्कृष्ट भव अद्धा संख्या || इहां पचे पंचमेन विपक्षे चरिंडी अने पृथ्वी न जन्य स्थिति मार्ट उत्कृष्ट संख्याता भव कह्या । ९९. षष्ठम गमे संदेह, बे भव अद्धा जघन्य अंतर्मुहूर्त्त तेह, वर्ष सहस्र बावीस इहां एक पक्ष पृथ्वी नीं उत्कृष्ट स्थिति मार्ट उत्कृष्ट काल कहे छ १०० उत्कृष्ट अद्धा धार, अष्ट भवां अंतर्मुहूर्त प्यार, वर्ष अठपासी १०१. सप्तम गम सुविमास, बे नों इह सहस्र भव अद्धा जघन्य चरिद्रिय षट मास, पुढवी अंतर्मुहूर्त्त फुन ॥ इहां एक पक्षे उत्कृष्ट स्थिति मार्ट उत्कृष्ट प भव । तेनों काल कहै -- थी। फुन ॥ आठ भव । तेनों विधे । फुन ॥ थी । ८. नवरं - एतेसु चेव ठाणेसु नाणत्ता जाणियव्वा । ८९. सरीरोगाणा जहणेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं चत्तारि गाउयाइ । ९०. ठिती जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं य छम्मासा । एवं अणुबधो वि । ९१. चत्तारि इंदियाई सेसं तहेव जाव नवमगमए श० २४, ३०१२, डा० ४२१ ९९ Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०५. कालादेसेणं जहणेणं बाबीसं वाससहस्साई छहिं मासेहिं अन्भहियाई। १०२. उत्कृष्ट अद्धा तास, अष्ट भवां नों इह विधे । चरिद्रिय बे वास, वर्ष अठ्यासी सहस्र महि ॥ १०३. अष्टम गमके जास, बे भव अद्धा जघन्य थी। चरिंद्रिय षट मास, पुढवी अंतर्मुहूर्त फुन । इहां एक पक्षे चउरिद्रिय नी उत्कृष्ट स्थिति माट उत्कृष्ट ८ भव । तेहनों काल कहै छै१०४. उत्कृष्ट अद्धा तास, अष्ट भवां नों इह विधे। चरिंद्रिय बे वास, अंतर्महर्त चिउं महि ।। १०५. सूत्रे नवम जगीस, काल आश्रयी जघन्य थी। वर्ष सहस्र बावीस, षट मासे करि अधिक फुन । इहां चउरिद्रिय नी अने पृथ्वी नी ए बे पक्ष उत्कृष्टी स्थिति माटै उत्कृष्ट आठ भव । तेहनों काल१०६. उत्कृष्ट अद्धा तास, वर्ष अठ्यासी सहस्र जे। फुन चउवीसज मास, अष्ट भवां नों आखियो। १०७.*सेवै कालज एतलो, करै गति-आगति इतो काल । उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट गमो जी, दाख्यो नवम दयाल । सोरठा १०८. इण ढाले इम ख्यात, जेह णाणत्ता नै विषे । पृथ्वी विषे संजात, ऊपजता विकलेंद्री नैं ।। १०९. जघन्य गमे सुजाण, सात णाणत्ता तेहनां । धुर अवगाहण माण, दृष्टि मिथ्या ने ज्ञान नहीं । ११०. काय जोग इक संध, आयु अंतमहत नों। इतरोइज अनुबंध, खोटा अध्यवसाय तसु ।। १११. उत्कृष्ट गमे प्रबन्ध, स्थिति उत्कृष्टी तेहनीं। आयु सम अनुबन्ध, आख्या ए बे णाणत्ता ।। ११२. जेह ठिकाणे जोय, ऊपजता विकलेंद्रिय नैं। एह णाणत्ता होय, जघन्य फुन उत्कृष्ट गम ।। ११३. *देश चउबीसम बारमो जी, चिउंसौ इकवीसमी ढाल । भिक्ष भारीमाल ऋषिराय थी जी, 'जय-जश' मंगलमाल ।। १०६. उक्कोसेणं अट्ठासीति वाससहस्साई चउवीसाए मासेहिं अब्भहियाई। १०७. एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा १-९। (श• २४।१९०) *लय : चतुर नर समझो ज्ञान विचार १०० भगवती जोड़ Jain Education Intemational Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ढाल:४२२ १. जो पंचेंद्रिय थकी, स्यं सन्नी पं. तिरि थकी, कै पृथ्वी असन्नी में ऊपजत । थी हंत ? २. जिन कहै सन्नी पं. तिरि, असन्नी पं. तिरि जाण । एह उभय थी ऊपजै, पृथ्वी विषे पहिछाण ।। ३. जो असन्नी पं. तिरि थकी, स्यूं जलचर थी हुँत । यावत पर्याप्त थकी, कै अपज्जत्त थी हुँत ? १. जइ पंचिंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जंति-कि सण्णिपंचिदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति ? असण्णिपंचिदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जंति ? २. गोयमा ! सण्णिपंचिदिय, असण्णिपंचिदिय । (श. २४।१९१) ३. जइ असण्णिपंचिदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जति -किं जलचरेहिंतो उववज्जंति जाव किं पज्जत्तएहितो उववज्जति ? अपज्जत्तएहितो उववज्जति ? ४. गोयमा ! पज्जत्तएहितो वि उववज्जति, अपज्जत्त एहितो वि उववज्जति । (श० २४११९२) ५. असण्णिपंचिदियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए पुढविक्काइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते ! केवतिकालद्वितीएसु उववज्जेज्जा ? ४. जिन भाखै पर्याप्त थी, पुढवी में ऊपजेह । अपज्जत्त थी पिण ऊपजै, वलि गोयम पूछेह ।। पृथ्वीकाय में असन्नी तिर्यच पंचेंद्रिय ऊपज, तेहनों अधिकार' ओधिक ने ओधिक (१) *सुणजो बारमुद्देशक मही तणों रे लाल ।। (ध्र पंद) ५. प्रभु ! असन्नी पंचेंद्रिय तिरि जिको रे, पुढवीकाय विषेह हो । जिनेंद्र देव ! जे ऊपजवा जोग्य छै रे लाल, ते कितै काल स्थितिक उपजेह हो? जिनेंद्र देव ! ६. श्री जिन भाखै जघन्य थी रे, अंतर्मुहर्त विषेह रे । गोयम गुणवंता ! जेष्ठ बावीस सहस्र वर्ष नी रे लाल, स्थितिक विषे उपजेह रे ।। गोयम गुणवंता ! ७. प्रभु ! एक समय किता ऊपजै रे?; इम जिम बेइन्द्रिय नां ताय रे। लब्धि ओधिक गमा विषेरे लाल, दाखी तिमज कहाय रे ॥ ८. णवरं तनु अवगाहना रे, जघन्य थकी अवधार रे। ___ असंख भाग आंगुल तणों रे लाल, उत्कृष्ट योजन हजार रे ।। ९. स्थिति अनुबन्ध पं. तिरि तणों रे, जघन्य अंतर्महुर्त होय रे । कोड़ पूर्व उत्कृष्ट थी रे लाल, शेष तिमज अवलोय रे ।। १०. भवादेश भव आश्रयी रे, जघन्य थकी इम व रे । बे भव ग्रहण कर तिको रे लाल, उत्कृष्टा भव अटू रे ।। ६. गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तट्ठितीएसु, उक्कोसेणं बावीसवाससहस्सद्वितीएसु। (श० २४११९३) ७. ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जति ? एवं जहेव बेइंदियस्स ओहियगमए लद्धी तहेव, ८. नवरं-सरीरोगाहणा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं जोयणसहस्सं । ९. ठिती अणुबंधो य जहण्णणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी । सेसं तं चेव । १०. भवादेसेणं जहण्णेणं दो भवग्गहणाई, उक्कोसेणं अट्ठ भवग्गहणाई। 'लय : धीज कर सीता सती रे लाल १. परि. २, यंत्र ३४ श० २, उ०१२, ढा० ४२२ १०१ Jain Education Intemational Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११,१२. 'उक्कोसेणं अट्ठ भवग्गहणाई' ति अनेनेदमव गम्यते-यथोत्कर्षतः पञ्चेन्द्रियतिरश्चो निरन्तरमष्टो भवा भवन्ति एवं समानभवान्तरिता अपि भवान्तरः सहाष्टव भवन्तीति, (वृ० प० ८२९) सोरठा ११. उत्कृष्टा भव अट्ठ, इण वचने इम जाणियै । ते पंचेंद्रिय प्रगट्ट, करै निरंतर अष्ट भव ।। १२. इमज सरीखा ख्यात, भव अंतरिता पिण जिके । भव अंतरित संघात, अष्ट इज भव इम वृत्तौ ।। वा०-जिम उत्तराध्ययन अध्ययन १० में तिर्यंच पंचेंद्रिय नां निरन्तर भव करै तो उत्कृष्टा ८ कह्या, तिम अष्ट भव-एक भव तिर्यंच पंचेंद्रिय नों, दूजो पृथ्वीकाय नों। तीजो तिर्यंच पंचेंद्रिय नों, चउथो पृथ्वीकाय नों। पांचमों तियंच पंचेद्री नों, छठो पृथ्यीकाय नों। सातमों पंचेंद्रिय नों, आठमों पृथ्वीकाय नोंइम भवांतरित पिण अष्ट भव जाणवू । इम न्याय वृत्तिकार का। इहां सूत्र में उत्कृष्ट आठ भव कह्या ते मारी। १३. *काल आश्रयी जघन्य थी रे, अंतर्महत बे धार रे। उत्कृष्ट कोड़ पूर्व चिउं रे लाल, वर्ष अठ्यासी हजार रे।। १३. कालादेसेणं जहण्णेणं दो अंतोमुहुत्ता, उक्कोसेणं चत्तारि पुवकोडीओ अट्ठासीतीए वाससहस्सेहि अब्भहियाओ, १४. एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा। १५. नवसु वि गभएसु कायसंवेहो-भवादेसेणं जहणेणं दो भवग्गहणाई, उक्कोसेणं अट्ठ भवग्गहणाई। १६. कालादेसेणं उवजुजिऊण भाणियव्वं, नवरं १७. मज्झिमएसु तिसु गमएसु जहेव बेइंदियस्स, १४. सेवै कालज एतलो रे, करै गति-आगति इतो काल रे। ओधिक नै ओधिक गमो रेलाल, दाख्यो प्रथम दयाल रे॥ १५. नव ही गमक विषे तसु रे, कायसंवेध सुघट्ट रे। जघन्य थकी भव दोय छै रे लाल, उत्कृष्टा भव अट्ठ रे ॥ १६. काल आश्रयी जेहनों रे, मन में उपयोगेह रे । । कहिवो सर्व विचार नै रे लाल, णवरं विशेष छै एह रे ।। १७. बिचला तोन गमा विषे रे, बेइंद्रिय नां जेम रे। जघन्य गम सत्त णाणत्ता रे लाल, दाख्या कहिवा तेम रे ।। १८. छहला तीन गमा विषे रे, जिम एहनांज विचार रे । । प्रथम गमा नै विषे कह्यो रे लाल, कहिव तिमज प्रकार रे।। १९. णवरं इतरा विशेष छै रे, स्थिति अनै अनुबंध रे । जघन्य अने उत्कृष्ट थी रे लाल, पूर्व कोड़ज संध रे॥ २०. शेष तिमज कहिवो सह रे, यावत नवमे गमेह रे। । काल थकी सूत्रे कह्यो रे लाल, आगल कहिस्यै जेह रे ।। इति प्रथम गमा नों कायसवेध तो सूत्रे पूर्वे कह्यज छ । अन शेष आठ गमा नै विषे कायसंवेध उपयोगे करी जओ-जओ कहिवो, ते लिखियै छै १८. पच्छिल्लएसु तिसु गमएसु जहा एतस्स चेव पढमगमएसु, १९. नवरं-ठिती अणुबंधो य जहण्णेणं पुव्वकोडी, उक्कोसेण वि पुवकोडी। २०. सेसं तं चेव जाव नवमगमएसु सोरठा २१,२२. द्वितीये तूत्कृष्टोऽसौ चतस्रः पूर्वकोटयश्चतुभिरन्तर्मुहत्तरधिकः, (व०प०८२९) २१. द्वितीय गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। अंतर्महत बेह, ए पिण बिहुं भव जघन्य स्थिति ।। २२. उत्कृष्टो अवधार, अद्धा अष्ट भवां तणों। पूर्व कोड़ज च्यार, अंतर्महत चिउ अधिक ॥ २३. तीजे गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। अंतर्महत जेह, वर्ष सहस्र बावीस फुन । २४. उत्कृष्टो अवधार, अद्धा अष्ट भवां तणों। पूर्व कोड़ज च्यार, वर्ष अठ्यासी सहस्र वली। *लय : धीज कर सीता सीत रे लाल २३,२४. तृतीये तु ता एवाष्टाशीत्या वर्षसहस्ररधिकाः, (वृ० ५० ५२९) १०२ भगवती जोड़ Jain Education Intemational Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५. चउथे गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी । २६. उत्कृष्टो सुविमास, सहंस अठपासी वास, २७. पंचम गम संवेह, अंतर्मुहूर्त बेह, इक २८. उत्कृष्टो इम वट्ट, २९. षष्ठम अंतर्मुहूर्त बेह, जघन्य स्थिति भव उभय नीं ॥ अद्धा अष्ट भवां तणों । अंतर्मुहूर्त चिदं अधिक ।। बे भव अढा बे भव अद्धा जघन्य थी । असन्नी तिरि दूजो मही ॥ अद्धा अष्ट भवां तणों। अंतर्मुहूर्त अ चित्र असन्नी तिरि चिउ मही ॥ गम संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी । अन्तर्मुहूर्त जेह वर्ष सहस्र बाबोस जे ॥ अवधार, अद्धा अष्ट भवां प्यार वर्ष अठय सी सहस्र संवेह, बे भव अद्धा जघन्य कोह, अन्तर्मुहूर्त अधिक फुन ॥ अवधार, अद्धा अष्ट भवां तणों । पूर्व कोड़ज च्यार वर्ष अठपासो सहस्र वली ॥ ३३. अष्टम गम संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी 1 पूर्व कोड़ज लेह, अंतर्मुहूर्त्त अधिक वली ॥ ३४. उत्कृष्टो अवधार, अद्धा अष्ट भवां तणों । ३०. उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त ३१. सप्तम गम तणों । पूर्व कोड़ ३२. उत्कृष्टो अंतर्मुहूर्तचि अधिक ॥। बे भव अद्धा जघन्य थी । वर्ष सहस्र बावीस जे || पूर्व कोड़ज च्यार, ३५. नवमां सूत्र विषेह, पूर्व कोड़ कह, १६. उत्कृष्ट अवधार, अद्धा अष्ट भवां तणों। पूर्व कोज प्यार वर्ष अठघासी सहस्र बली ॥ ३७. *सेवे कालज एतलो रे, करें गति आगति इतो काल रे । उत्कृष्ट ने उत्कृष्ट गमो रे लाल, दाख्यो नवम दयाल रे ।। पृथ्वीकाय में संख्याता वर्ष नां सन्नी तिच पंचेंद्रिय ऊप, तेहनों अधिकार' - ३८. जो सन्नी पंचेंद्री तिथंच थी रे, पृथ्वी विषे उपजंत रे । तो संख्यात वर्षायुष थकी रे लाल, कै असंख वर्षायु थी हुंत रे ? ३९. जिन कहै वर्ष संख्यात नां रे, स्थितिक सन्नी तिरि जोय रे । पृथ्वी विषे ते ऊपजै रे लाल, असंख वर्षायु न होय रे ॥ ४०. जो संख वर्षायु सन्नी तिरि हुवै रे, तो स्यूं जलचर थी थाय रे ? शेष जेम असन्नी भणी रे लाल, आख्यो तिम कहिवाय रे ॥ ओधिक नैं अधिक (१) रे । ४१. यावत ते प्रभु! जीवड़ा रे, एक समय रे मांय केतला आवी ऊपजे रे लाल, इत्यादि कहिवाय रे ? *लय : धीज करं सीता सती रे लाल १. देखे परि. २ यंत्र ३५ फुन ।। थी । ३५, ३६. जहणेणं पुव्वकोडी बावीसाए वाससहस्से हि अमहिया उसकोरोणं चत्तारि पुव्वकोडीओ अट्ठासीतीए वाससहस्सेहि अमहियाओ, ३७. एवतियं कालं सेवेज्जा एवतियं काळं गतिरागति करेज्जा १-९ । ( ० २४१९४) १८. जसणिपंचिदियतिरिक्खजोगिएहितो उति - कि संखेज्जवासाउय ? असंखेज्जवासाज्य ? ३९. गोयमा ! संखेज्जवासाउय, नो असंखेज्जवासाउय । (श० २४ । १९५ ) ४०. जवसाय कि जनयरहितो ? सेसं जहा असण्णीणं, ० ४१. जाव (२०२४०१९६ ) ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति ? श० २४, उ० १२, डा० ४२२ १०३ Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचेंद्री तिथंच रे । दहां पिण संच ॥ ४२. इम जिम रत्नप्रभा विषे रे, सन्नी ऊपजता ने आखियो रे लाल, तेम ४३. यात अद्धा आथवी रे, जघन्य थकी अवलोय रे । अंतर्मुहूर्त बे का रे लाल, जपन्याय भव दोय रे ।। ४४. उत्कृष्ट अद्धा अठ भवे रे, पूर्व कोड़ज च्यार रे । सहस्र अठासी वर्षं वली रे लाल, इतो काल गतागति धार रे ॥ ४५. संवेध दम नव गम विधे रे, जिम असन्नी ने सात रे । तेम इहां पिण सर्व ही रे लाल, कहिवूं जे अवदात रे ।। ४६. परिमाण संघयणादिक तणीं रे, लब्धि प्राप्ति छे तेह रे । ए प्रथम तीनू गम ने विषे रे लाल, जिम रत्नप्रभा मे ऊपजेह रे ।। ४७. पृथ्वीकाय विषेह, ऊपजता नैं लेह, ४८. रत्नप्रभा रै मांहि, सोरठा सन्नी पं. तियंच जे । पहिला तीन गमा विषे ॥ सन्नी पं. तिच जे । ऊपजता नें ताहि, लब्धि कही तेहिज इहां ॥ ४९. बिचला पिण हिंगम विधे रे, एहिज लब्धि कहाय रे । वरं इतो विशेष से रे लाल, एनव णाणत्ता पाय रे ॥ ५०. तनु अवगाहना तेहनीं रे, जघन्य अनें उत्कृष्ट रे । असंख्यातमो भाग छ रे लाल, आंगुलनों तसु इष्ट रे ।। ५१. लेश्या तीन माठी कही रे, मिथ्यादृष्टी होय रे । दोय अज्ञान हुवै तसु रे लाल, काय जोगी इक जोय रे ॥ ५२. समुदघात र त्रिण हवे रे, स्थिति जन्य उत्कृष्ट रे । अंतर्मुहूर्त जाणवी रे लाल, अपर्याप्तो ए इष्ट रे ॥ ५३. अध्यवसाय माठा हुवै रे, स्थिति जितो अनुबंध रे । शेष तिमज कहिवो सहु रे लाल, ओधिक गम जिम संघ रे ॥ ५४. छेहला तीन गमा विषे रे, प्रथम गमे जिम लेख रे । कहिवो तिहिज रीत सूं रे लाल, णवरं इतरो विशेख रे ।। ५५. स्थिति बे णाणत्ता रे, जघन्य अनें उत्कृष्ट रे । अनुबन्ध पूर्व कोड़ तणां कह्या रे लाल, शेष तिमज सहु इष्ट रे ।। पृथ्वीकाय में मनुष्य अपने ५६. मनुष्य थकी जो ऊपजै रे, पृथ्वीकाय विषेह रे । तो सन्नी मनुष्य थी उपजै रे लाल, कै असन्नी मनु थी लेह रे ? ५७. जिन भाखं सुण गोवमा ! रे, सन्नी मनुष्य की चाय रे । असन्नो मन थी पिण हुवे रे लाल, पृथ्वीकाविक मांय रे ।। *लय : धीज करं सीता सती रे लाल १०४ भगवती जोड़ ४२. एवं जहा रयणप्पभाए उववज्जमाणस्स सण्णिस्स सब इह वि ४३. जाव काला जणं दो अंतोता, ४४. उक्कोसेणं चत्तारि पुव्वकोडीओ अट्ठासीतीए वाससहस्सेहि अन्धहियाओ एवतियं काल सेवेज्जा एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा । ४५. एवं संवेहो नवसु वि गमएसु जहा असण्णीणं तहेव निरवसेसो । ४६. लद्धी से आदिल्लएसु तिसु वि गमएस एस चेव, 'सन्धि' परिमाण संहननाविप्राप्तिः, (बु०प०८२९) , ४७. 'से' तस्य पृथिवीका विकेत्पित्योः सन्जित आये गमत्रये, ( वृ० प० = २९ ) ४८. एस व ति या रत्नप्रभावामुत्पित्सोस्तस्यैव मध्यमेऽपि गमत्रये एषैव लब्धि:, ( वृ० प० ८२९) ४९. मल्लिए तिमु वि गमएम एस देव, नवरं इमाई नव नाणत्ताई ५०. ओगाणा जने अंगुलरस अससेज्जतिभागं, उनको अंगुल अतिभावं ५१. तिणि लेसाओ । मिच्छादिट्ठी । दो अण्णाणा । कायजोगी । ५२. तिणि समुग्धाया । ठिती जहणणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं । ४३. अप्पसत्था अज्भवसाणा । अणुबंधो जहा ठिती । सेसं तं चेव । ति वि गम बहेन पढमगमए, ५४ पछि नवरं - ५५. ठिली अनुबंध होणं पुव्यकोडी, उनकोसेण वि पुव्वकोडी । सेसं तं चैव १-९ । (०२४।१९७ ) - ५६. मोहितो-कसणिमगुस्सेहितो उववज्जति ? असण्णिमणुस्सेहितो उववज्जंति ? ५७. गोयमा ! सण्णिमणुस्सेहितो उववज्जं ति, असण्णिमहतो वि उज्जति । (२०२४१९८) Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीकाय में असन्नी मनुष्य ऊपज, तेहनों अधिकार'-- ५८. असन्नी मनुष्य भगवंत जी! रे, पृथ्वीकाय विषेह रे । ऊपजवा ने जोग्य छै रे लाल, कितै काल स्थितिक उपजेह रे ? ५९. इम जिम असन्नी पं. तिथंच ना रे, गम जघन्य स्थितिक नां तीन रे। तिम असन्नी मनुष्य नां ओहिया रे लाल, भणवा त्रिण गम चीन रे ॥ ६०. तिमज सर्व कहिवो इहां रे, षट गम शेष न होय रे । ते माटै इहां षट गमा रे लाल, तूटै छै अवलोय रे ।। वा०-इहां वृत्तिकार कहो-अजघन्योत्कृष्ट स्थितिकपणां संमूच्छिम मनुष्य नां शेष ६ गमा न हुदै । ५८. असण्णिमणुस्से णं भंते ! जे भविए पुढविक्काइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते ! केवतिकालट्टितीएसु उववज्जेज्जा? ५९. एवं जहा असण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणियस्स जहण्णकालट्ठितीयस्स तिण्णि गमगा तहा एयस्स वि ओहिया तिण्णि गमगा भाणियव्वा, की ६०. तहेव निरवसेसं १-३ । सेसा छ न भण्णंति । (श० २४११९९) वा० ---अजघन्योत्कृष्टस्थितिकत्वात्, संमूच्छिममनुष्याणां न शेषगमषट्कसम्भव इति । (वृ० प० ८३२) ६१. जइ सण्णिमणुस्सेहितो उववज्जंति-किं संखेज्ज वासाउय० ? असंखेज्जवासाउय? ६२. गोयमा ! संखेज्जवासाउय, नो असंखेज्जवासाउय । (श० २४।२००) ६३. जइ संखेज्जवासाउय० कि पज्जत्तासंखेज्जवासाउय०? अपज्जत्तासंखेज्जवासाउय.? पृथ्वीकाय में संख्याता वर्ष नां सन्नी मनुष्य ऊपज, तेहनों अधिकार'६१. जो सन्नी मनुष्य थी ऊपजे रे, पृथ्वोकायिक माय हो। स्यूं संख्यात वर्षायु थकी रे लाल, के असंख वर्षायु थी थाय हो ? ६२. जिन भाखै सुण गोयमा ! रे, संख्यात वर्षायु थी हंत रे । असंख्यात वर्षायु थकी रे लाल, पृथ्वी में नहि उपजत रे ॥ ६३. जो संख्यात वर्षायु सन्नी मनुष्य थी रे, पृथ्वी विषे उपजत रे। तो पर्याप्त थी स्यूं ऊपजै रे लाल, के अपजत्त थी हुँत रे ? ६४. जिन कहै पजत्त संख्यायु सन्नी रे, मनुष्य थकी उपजत रे । अपजत्त संख वर्षायु सन्नी रे लाल, मनुष्य थकी पिण हुंत रे । ओधिक नैं ओधिक (१) ६५. सन्नी मनुष्य भगवंत जी! रे, पृथ्वीकाय विषेह रे । ऊपजवा जे जोग्य छै रे लाल, ते किती स्थितिके ऊपजेह रे ? ६६. श्री जिन भाख जघन्य थी रे, अंतर्मुहूर्त विषेह रे ।। वर्ष सहस्र बावीस नी रे लाल, उत्कृष्टी स्थिति लेह रे । ६७. ते एक समय किता ऊपजै रे? इम जिम रत्नप्रभा में विषेह रे । ऊपजतां सन्नी मनुष्य ना रे लाल, तीन गमा कह्या जेह रे ।। ६८. तिमहिज तीनई गमा विषे रे, लब्धि कहतां परिमाण रे। संघयणादिक बोल नी रे लाल, प्राप्ति कहेवी जाण रे ।। ६९. णवरं इहां अवगाहणा रे, जघन्य आंगुल नों इष्ट रे। ___ असंख्यातमों भाग छै रे लाल, पांचसौ धनु उत्कृष्ट रे ।। ६४. गोयमा ! पज्जत्तासंखेज्जवासाउय, अपज्जत्तासंखेज्जवासाउय जाव उववज्जति। (श० २४१२०१) ६५. सण्णिमणुस्से णं भंते ! जे भविए पुढविकाइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते ! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जति ? ६६. गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुत्तद्वितीएसु, उक्कोसेणं बावीसवाससहस्सद्वितीएसु। (श० २४१२०२) ६७. ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जति ? एवं जहेव रयणप्पभाए उववज्जमाणस्स, ६८. तहेव तिसु वि गमएसु लद्धी, ६९. नवरं-ओगाहणा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइ भागं, उक्कोसेणं पंचधणुसयाई । १. परि०२, यंत्र ३६ २. परि० २, यंत्र ३७ शा. २४, उ० १२, ढा० ४२२ १.५ Jain Education Intemational Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०,७१. रत्नप्रभायामुत्पित्सोहि मनुष्यस्यावगाहना जघन्येनाङ गुलपृथक्त्वमुक्तमिह त्वङ गुलासङ्ख्य यभागः, (वृ० प० ८३२) ७२. ठिती जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी। एवं अणुबंधो। ७३,७४. स्थितिश्च जघन्येन मासपृथक्त्वं प्रागुक्तमिह त्वन्तर्मुहूर्तमिति, (वृ० ५० ५३२) सोरठा ७०. रत्नप्रभा रै मांह, ऊपजतो सन्नी मनुष्य । जघन्य तास अवगाह, पृथक आंगुल नी कही ।। ७१. इहां पृथ्वीकाय रे मांह, ऊपजतां सन्नी मनुष्य । जघन्य तास अवगाह, असंख भाग आंगुल तणों ।। ७२. *स्थिति जघन्य थी तेहनों रे, अंतर्महत संध रे । उत्कृष्ट पूर्व कोड़ नी रे लाल, इमहिज छै अनुबंध रे ।। सोरठा ७३. रत्नप्रभा रै मांहि, ऊपजतां सन्नी मनुष्य । जघन्य स्थिति कही ताहि, पृथक मास तणी तिहां ।। ७४. पृथ्वीकाय रै मांय, ऊपजतां सन्नी मनुष्य । जघन्य स्थिति कहिवाय, अंतर्मुहुर्त नी इहां ।। ७५. उत्कृष्टी स्थिति तास, पूर्व कोड़ तणीं कही। एवं अनुबंध जास, इतरो विशेषज आखियो ।। ७६. *संवेध न ही गमा विषे रे, जिम पृथ्वी रै मांय रे । ऊपजतां सन्नी तिरि रे लाल, आख्यो तिमज कहाय रे ।। सोरठा ७७. सन्नी मनुष्य तिर्यंच, पृथ्वीकायिक नै विषे । ऊपजतां नैं संच, ओघिक त्रिण गम ए स्थिति ।। ७८. जघन्य थकी स्थिति जाण, अंतर्मुहुर्त नीं कही। उत्कृष्टी पहिछाण, पूर्व कोड़ प्रमाण छै ।। ७९. *बिचला तीन गमा विषे रे, लब्धि परिमाणादि जेह रे । जिम सन्नी तिरि मझम त्रिहं गमे रे लाल, आखी तिका जाणेह रे ।। सोरठा ८०. सन्नी पं. तिर्यंच, जघन्य स्थितिक छै जे विषे । लब्धि पूर्व कही संच, तेहिज सूत्र करी इहां कथन ।। ७६. संवेहो नवसु गमएसु जहेब सण्णिपंचिंदियस्स । ७७,७८. सचिनो मनुष्यस्य तिरश्चश्च पृथिवीकायिकेषु समुत्पित्सोर्जघन्यायाः स्थितेरन्तमहत्तंप्रमाणस्वादुत्कृष्टायास्तु पूर्वकोटीप्रमाणत्वादिति, (वृ० प० ८३२) ७९. मज्झिल्लएसु तिसु गमएसु लद्धी जहेव सण्णि पंचिदियस्स मज्झिल्लएसु तिसु। ८०. जघन्यस्थितिकसम्बन्धिनि गमत्रये लब्धिस्तथेह वाच्या यथा तत्रैव गमत्रये सज्ञिपञ्चेन्द्रियतिरश्च उक्ता सा च तत्सूत्रादेवेहावसे या, ((वृ० प० ८३२) ८१. सेसं तं चेव निरवसेसं । ८२. पच्छिल्ला तिण्णि गमगा जहा एयस्स चेव ओहिया गमगा, ५१. *शेष तिमज कहिवो सह रे, कायसंवेध सुजोय रे । सन्नी तिथंच पृथ्वी नैं विषे रे लाल, ऊपजै तिम ए होय रे ।। ८२. छहला तीन गमा विषे रे, जिम एहनांज विचार रे । ओधिक त्रिण गमका कह्या रे लाल, कहिवू तिमज प्रकार रे ।। सोरठा ५३. ओधिक गमा विषेह, असंख भाग आंगुल तणों। ____ अवगाहन जघन्येह, अंतर्मुहूर्त जघन्य स्थिति ।। ८३.८४. औधिकगमेषु हि अंगुलासंख्येयभागरूपाऽप्य वगाहनाऽन्तर्मुहूर्तरूपाऽपि स्थितिरुक्ता सा चेह न वाच्या अत एवाह (वृ. ५० ८३२) *लय:धीज कर सीता सती रे लाल १०६ भगवती जोड़ Jain Education Intemational Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८४. ते इहां कहिवी नांव, तिण कारण आगल हिवे । णवरं पाठ कहाय, चित्त लगाई सांभलो || ॥ ८५. *णवरं इतरो विशेष छै रे, तनु अवगाहन जाण रे । जघन्य अनैं उत्कृष्ट थी रे लाल, पांचसौ धनुष्य प्रमाण रे ॥ ८६. स्थिति तथा अनुबन्ध वली रे, जघन्य अनें उत्कृष्ट रे । कहियो पूर्व कोड़ नौ रे लाल, शेष तिमज महू इष्ट रे ।। पृथ्वीकाय में देव ऊपजै - ८७. देव थकी जो ऊपजै रे, स्यूं भवणवासी थी उपजंत हो । व्यंतर ने ज्योतिषी को रेलाल, वैमानिक थी हूंत हो ? ८. जिन भाखे सुन गोवमा रे, भवणवासी सुरताहि रे जाव विमानिक सुर थकी रे लाल, ऊपजै पुढवी मांहि रे ।। ६९. जो भवणवासी सुर थी हुवे रे तो स्यूं असुर श्री हूंत रे । यावत थणियकुमार थी रे लाल, पृथ्वी विषे उपजत रे ? , विषेह रे । ९०. जिन भाखे सुण गोयमा ! रे, असुरकुमार यावत थणियकुमार थी रे लाल, पुढवी में पृथ्वीकाय में असुरकुमार अपने तेहन अधिकारअधिक में अधिक (१) ९१. असुरकुमार भगवंत जी ! रे, पृथ्वीकाय जे ऊपजवा जोग्य छैरे लाल, ते कि काल स्थितिके उपजेह रे ? ९२. श्री जिन भावं जपत्य यो रे, अंतर्मुहूर्त विषेह रे । वर्ष सहस्र बावीस नीं रे लाल, उत्कृष्टी स्थिति लेह रे ।। ९३. ते एक समय किता ऊपजै ? जिन कहै जघन्य सुइष्ट रे । एक दोष त्रिण ऊपजै रे लाल, संख असंख उत्कृष्ट रे ॥ थी हुंत रे । ऊपजंत रे ।। ९४. हे प्रभुजी ! ते जीव नें रे, शरीर तणों सुविचार रे । स्यूं संघयण परूपियो रे लाल, तब भावे जगतार रे ॥ ९५. छ संघयगज मांहिलो रे, इक हो नहि संघयण रे जाव परिणमं तेहने रे लाल, वारू ए जिन वयण रे ।। ९६. हे प्रभु ते जीवां तणें रे, कितली मोटी माण रे। शरीर तणी अवगाहना रे लाल, वारू प्रश्न विनाण रे ।। ९७. जिन कहै तनु अवगाहना रे, दाखी दोय प्रकार रे । मूलगी ते भवधारणी रे लाल, उत्तरवैक्रिय सार रे ॥ ९८. तिहां जिका भवधारणी रे, जघन्य थकी आख्यात रे । असंख भाग आंगुल तणों रे लाल, उत्कृष्टी कर सात रे ।। *लय : धीज करें सीता सती रे लाल १. परि. २, यन्त्र ३८ ८५. नवरं - ओगाहणा जहणेणं पंच धणुसवाई, उस्को व पंच धणुसवाई ८६. ठिती अणुबंधो य जहणेणं पुव्वकोडी, उक्कोसेण वि पुबकोडी | सेसं तहेव १ ९ । (श० २४।२०३ ) ८७. जइ देवहितो उववज्जंति - किं भवणवासिदेवेहिनो उववज्जति ? वाणमंत रदेवे हितो, जोइसियदेवे हितो, वेमाणियदेवहितो उववज्जंति ? ८८. गोयमा ! भवणवासिदेवहितो वि उववज्जंति जाव वेमाणियदेवहितो वि उववज्जंति । ( श० २४/२०४ ) ८९. जइ भवणवासिदेवेहितो उववज्जंति – कि असुरकुमारभवणवासिदेवहितो उपवयति जाब चणियकुमारभवण वासदेवेति उति ? ९०. गोपमा ! असुरकुमारभवणवासिदेवेहितो उनवति जाव यजिवकुमारभवगवासिदेवेति उति । (१० २४ २०५ ) ९१. असुरकुमारेण भंते! जे भविए पुढविक्काइएस् उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकाल द्वितीएसु उववज्जेज्जा ? ९२. गोममा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तट्ठितीएसु, उक्कोसेणं बावीसीए ( ० २४/२०६) ९३. ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति ? गोयमा ! जहणेणं एक्को वा दो वा तिणि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेज्जा वा उववज्जंति । (०२४२०७) ९४. तेसि णं भंते! जीवाणं सरीरगा किसंघयणी पण्णत्ता ? ९५. गोयमा ! संघयगाणं असंपवणी जाव परिणमति । (१० २४२०८) ९६. देखि ते जीवाणं महालिया सरीरोगाणा ? ९७. गोयमा ! दुविहा सरीरोगाहणा पण्णत्ता, तं जहाभवधारणिज्जा य उत्तरवेउब्विया य । ९८. तत्थ णं जा सा भवधारणिज्जा सा जहणेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं सत्त रयणीओ । श० २४, उ० १२, ढा० ४२२ १०७ Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९९. तिहां उत्तरवेक्रिय तिका रे, जघन्य थकी इम इष्ट रे । संख्यातम भाग आंगुल तणों रे लाल, लक्ष योजन उत्कृष्ट रे ॥ १००. हे प्रभु ! ते जीवां तणां रे, तनु नों स्यूं संठाण रे ? संठाण ते आकार नों रे लाल, पूछयो प्रश्न सुजाण रे ।। १०१. श्री जिन भावं द्विविधा रे, तनु नौ से संठाण रे । भवधारणी तनु मूलगो रे लाल, उत्तर वैक्रिय जाण रे ।। १०२. तत्र जिहां भवधारणी रे, समचउरंस संठाण रे । उत्तरवेक्रिय जे तिहां रे लाल, अनेक संठाणे जाण रे ॥ १०३. प्रथम चि लेश्या हुई रे दृष्टि विविध पिण होय रे । ज्ञानी में निश्वे करी रेलाल, तीन ज्ञान अवलोय रे || १०४. भजना तीन अज्ञान नी रे, असन्नी असुर में आय रे । अपजत्त अंतर्मुहूर्त लगे रे लाल, दोय अज्ञानज पाय रे ॥ १०५. त्रिविध जोग पिण असुर में रे, द्विविध पिण उपयोग रे । च्यार संज्ञा हुवै तेहमें रे लाल, च्यार कषाय संयोग रे ।। १०६. इंद्रिय पंच हुवै वली रे, समुद्घात घुर पंच रे । द्विविध पिण हुवे वेदना रे लाल, सात असातज संच रे ।। १०७. इत्वि पुरिस वेद वे हुवे रे, वेद नपुंसक न होय रे । इण न्याय अनुरकुमार में रे लाल, वेद सन्नी रा दोय रे । १०. स्थिति जघन्य थी असुर नीं रे, वर्ष सहस्र दश होय रे । उत्कृष्टी छे एतली रे लाल, साधिक सागर सोय रे । १०९. अध्यवसायज जेहनां रे, असंख्यात संजात रे । रे लाल, भला ने मूंडा पिण हुवै अनुबंध जिम स्थिति ख्यात रे ।। ११०. भव आश्रयी मे भव कहा। रे, इक भव असुरकुमार रे । बीजो भव पृथ्वी तणों रे लाल, हिव तसु काल विचार रे ।। १११. काल आश्रयी जघन्य थी रे, वर्ष सहस्र दश देव रे । अंतर्मुहुर्त अधिक ही रे लाल, पुढवी भव स्थिति भेव रे ।। ११२. उत्कृष्ट साधिक उदधि नीं रे, वलि सामानिक आदि रे । वर्ष बावीस सहस्र अधिक ही रे लाल, पुढवी स्थिति संवादि रे । ११३. सेवे कालज एतलो रे, ए धुर गम नों लेख रे । इम नव पिण गम जाणवा रे लाल, णवरं इतरो विशेख रे ॥ ११४. बिचला तीन गमा विषे रे, बलि छेहले गम तीन रे । जागवू असुरकुमार नी रे लाल, स्थिति विशेष सुचीन रे ।। १. भगवती जोड़ ९९. तत्थ णं जा सा उत्तरवेउच्विया सा जहणेणं अंगुलस्स संखेज्जइभागं उक्कोसेणं जोयणसहस्सं । ( श० २४।२०९ ) जीवाणं सरीरगा किसंठिया १०० तेसि णं भंते ! पण्णत्ता ? १०१. गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा भवधारणिज्जा य उत्तरवेउब्विया य । १०२. तत्थ णं जे ते भवधारणिज्जा ते समचउरंससंठिया पण्णत्ता । तत्थ णं जे ते उत्तरवेउब्विया ते नाणासंठिया पण्णत्ता । १०३. लेस्साओ चत्तारि । दिट्ठी तिविहा वि । तिष्णि नाणा नियम, १०४. तिणि अण्णाणा भयणाए । 'तिन्नि अन्नाणा भयणाए' त्ति येऽसुरकुमारा असभ्य आगत्योत्पद्यन्ते तेषामपर्याप्तकावस्थायां विभंगस्याभावात् शेषाणां तु तद्भावादज्ञानेषु भजनोखा, (१० १० ८३२) १०५. जोगो तिवि वि उनओगो दुविहो वि पत्तारि सण्णाओ । चत्तारि कसाया । 1 १०६. पंच इंदिया। पंच समुग्धाया । वेयणा दुविहा वि । १०० इत्यवेदगा वि पुरिसवेदगा वि, नो नपुंगवेदना । , १०८. डिती हमे दसवाससहस्साई उनको सातिरेग सागरोवमं । 1 १०९. अज्झवसाणा असंखेज्जा पसत्था वि अप्पसत्था वि । अणुबंध जहा ठिठी। ११०. भवादे दो भवमहणाई १११. कालादेसेणं जहणणेणं दसवाससहस्साइं अंतोमुहुत्तमन्महियाई, तत्र दशवर्षसहस्राम्यसुरेषु अन्तर्मुहतं पृथिवीकायिकेति (२०१०८३२) ११२. उनको सातिरेगं सागरोवमं बावीसाए वास सहस्ते हि अमहियं, ११३. एका सेवा, एवतियं का गतिराति करेज्जा । एवं नव वि गमा नेयव्वा, नवरं ११४. मल्लिए पछिल्ला तिसु गमगु असुरकुमाराणं ठिइविसेसो जाणियम्वो, Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोरठा ११५. मज्झम गमे सुइष्ट, सुइष्ट, असुरकुमार तभी कही। स्थिति जघन्य उत्कृष्ट वर्ष सहस जे दश तणों ॥। ११६. चरम गमे कुन तीन, असुर स्थिति जघन्योत्कृष्ट । साधिक सागर चीन, इतरो विशेष जाणवो || ११७. *शेष अधिक गमा नीं पर रे, परिमाण संघयणादि जेह रे । कहिवी छे तेहनीं लद्धी रे लाल, बलि जाणवू कायसंवेह रे ।। बा० - 'लेशद्वारे - भवणपति पृथ्वीकाय में ऊपजे, तिणरा अधिक गमा में तो लेश्या ४ कही । अनं तिणरो जघन्य गमो ठिति, अनुबंध बिना ओधिक नैं भलायो । तिण भलावण मे तो लेश्या ४ हुवे । उत्तराध्येन अध्येन ३४ । ४८-५१ मे भवणपति में लेश्या री स्थिति कही ते कहै - कृष्ण लेश्या री स्थिति जघन्य दश हजार वर्ष, उत्कृष्ट पल्य नों असंख्यातमो भाग । अनं जेतली कृष्ण लेश्या री उत्कृष्ट स्थिति, ते ऊपर एक समय अधिक नील लेश्या री जघन्य स्थिति अने उत्कृष्ट पल्य रो असंख्यातमों भाग अधिक । ओधिक अनें उत्कृष्ट नील लेश्या री स्थिति सूं एक समय अधिक कापोत री जघन्य स्थिति अने उत्कृष्ट पल्य रो असंख्यातमों भाग अधिक । तिण उपरंत आउखावाला में एक तेजु पावै । तेजु री स्थिति भवणपति में जघन्य १० हजार वर्ष, उत्कृष्ट एक सागर जाझी कही। इण वचने जघन्य १० हजार वर्ष आयु में लेश्या दो — कृष्ण अनं तेजु संभवे । उत्कृष्ट आयुवाला में एक तेजु संभवे । इहां असुरकुमार पृथ्वी में प्रथम गमे ४ लेश्या कही । जघन्य उत्कृष्ट गमे ठिति, अनुबंध विना अधिक नैं भलाया । तिण लेखे ४ लेश्या हुवै । पिण नवरं कही जघन्य गमे १० हजार वर्ष आउखा वाला में लेश्या २, उत्कृष्ट आयु वाला मे लेश्या १ – इम न कह्यो । लेश्या से णाणत्तो नथी । तेह्नों न्याय - एक-एक देव में लेश्या एक-एक हीज पावे । तिण कारण लेश्या रो नाणत्तो नयी कह्यो दी । पण उत्तराध्येन [ ३४ ४८, ५३ ] मे कृष्ण अनं तेजु नीं जघन्य १० हजार वर्ष नीं स्थिति कही। किणहिक में कृष्ण, किणहिक में तेजु, अनं उत्कृष्ट आखा बाल में १ तेजु कही। इण वचन सूं जघन्य गमे २ लेश्या, उत्कृष्ट गमे लेश्या १ ईज संभवे । वलि बहुश्रुत कहे ते सत्य व्यंतर पृथ्वी में ऊपजे, १०. भवनपति अने व्यंतर अप में, वनस्पति में, तियंच पंचेंद्रिय में, मनुष्य मे ऊपजतां लेश्याद्वार में एहिज न्याय जाणवो । ज्ञानद्वारे असुरकुमार पृथ्वीकार्य में ऊपने तिनमें प्रथम हमे तीन ज्ञान नीं नियमा अने ३ अज्ञान नीं भजना कही । तिणमें असन्नी मरि ने जाय तिवारे अंतर्मुहूर्त विभंग अज्ञान न हुवै, ते मार्ट तीन अज्ञान नीं भजना कही । अनें उत्कृष्ट गमे लब्धि ओधिक नैं भलाई । पिण उत्कृष्ट गमे तो आयु सागर जाको । अ असन्नी असुरकुमार में जघन्य १० हजार वर्ष आऊखे ऊपजे । पल्य असंख्यात भाग आयु पावे तिण में तो ३ अज्ञान नीं भजना पिण साधिक १ सागर उत्कृष्ट आयु विषे तो असन्नी न ऊपजै, ते मार्ट उत्कृष्ट गमे ३ अज्ञान *लय : धोज करें सीता सती रे लाल ११५, ११६. मल्लिएसु पछिल्लएसु' इत्यादि, वयं नेह स्थितिविशेषो मध्यमगमेषु जघन्यासुरकुमाराणां दशवर्षसहस्राणि स्थितिः अन्त्यगमेषु च साधि सागरोपममिति । (० ० ८३२) ११०. सेसा ओड़िया चैव लद्धी कायसंदेह च जायेगा। श० २४, उ० १२, डा० ४२२ १०९ Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ न नियमा संभवे । ते भणी भलावण में लाभे ते लेणा । किंचित फर्क जाणी सूत्रे न कह्यो एहवो जणाय छे। तथा असन्नी भवणपति में जाय, तेहनों आउखो उत्कृष्ट पल्य नैं असंख्यातमे भाग कह्यो । सन्नी मरिमं जाय, तेहनों आउखो उत्कृष्ट १ सागर जाभो कह्यो । तिहां असन्नी मरि ने जाय, ते असन्नी नीं अपेक्षया उत्कृष्ट आयु, सन्नी मरि नैं जाय ते सन्नी नीं अपेक्षया उत्कृष्ट आयु । ए बेहूं उत्कृष्ट गमां में लेखण्या ' तो ते पण ज्ञानी जाणं । वलि बहुश्रुत कहे ते सत्य । नव निकाय अने व्यंतर पृथ्वी में ऊपजे । १० भवनपति अने व्यंतर अप में वनस्पति में, तिथंच पंचेंद्री में, मनुष्य में ऊपजतां ज्ञानद्वार में एहिज न्याय जाणवो । वेद द्वारे - असुरकुमार पृथ्वी में ऊपजै तिणमें प्रथम ओधिक गमे वेद २ कह्या - स्त्री, पुरुष । अनं उत्कृष्ट गमे अधिक नैं भलायो । ते भलावण में तो २ वेद आया । अनैं देवी नों आउखो उत्कृष्ट ४ ।। पल्य नों हुवै । अनैं उत्कृष्ट गमे तो आयु जघन्य उत्कृष्ट सागर जाझो कह्यो। इण वचन सूं तो उत्कृष्ट गमे एक वेद संभव तो अधिक नैं भलायो ते किम ? इति प्रश्न द्वार में उत्कृष्ट आयु स्त्री वेद में तो देवी नों उत्कृष्ट आयु में उत्कृष्ट वेद नों आयु लियो हुवे, इण न्याय तो उत्कृष्ट गमे २ वेद हुवे अने उत्कृष्ट सागर जाभो ईज लेवं तो १ पुरुष वेद ईज हुवै। नवनिकाय, व्यंतर, ज्योतिषी भने पहिला दूजा देवलोक रां देवता पृथ्वी में उपजे १० भवनपति अनं व्यंतर अप में, वनस्पति में, तियंच पंचेंद्रिय में अने मनुष्य में ऊपजतां वेद द्वार में एहिज न्याय जाननो' (ज० स०) 1 उत्तर - इहां वेद लियो हुवै, पुरुष वेद ११८. बजे सगलाइ गमा ने विधे रे, वे भव ग्रहण करेह रे । जाव नवमा गमा नें विषे रे लाल, साख्यात सूत्रे लेह रे ॥ असुरकुमार पृथ्वी नैं विषे ऊपजै, तेहनां ९ गमा जुदा-जुदा कहै - सोरठा ११९. घुर गम काय संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी । वर्ष सहस्र दश जेह, अंतर्मुहूर्त्त अधिक फुन । १२०. उत्कृष्ट काल जगीस, साधिक सागर असुर स्थिति । वर्ष सहस्र बाबोस, पुढवी पिण उत्कृष्ट स्थिति ॥ १२१. द्वितीय गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी । वर्ष सहस दश तेह, अंतर्मुहूर्त अधिक फुन ॥ १२२. उत्कृष्ट अद्धा जाण, ए पिण दोय भवां तणों । साधिक सागर माण, अंतर्मुहूर्त अधिक मही ॥ १२३. तीन गमे जगीस, बे भव अद्धा जपन्य थी । वर्ष सहस्र बत्तीस जघन्य असुर महि जेष्ठ स्थिति ॥ १२४. उत्कृष्ट मद्ध जगीस, साधिक सागर असुर में । वर्ष सहस्र बावीस, बिहुं भव नीं उत्कृष्ट स्थिति ॥ १२५. चउये गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य बी । वर्ष सहल दश लेह, अंत अधिक फुन ।। १२६. उत्कृष्ट अद्धा तास, वर्ष सहस्र बत्तीस नीं । बावीस महि || असुर सहस्र दश वास, वर्ष सहस्र ११० भगवती जोड़ ११८. सम्वत्थ दो भवग्गहणाई जाव नवमगमए, Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२७. पंचम गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्योत्कृष्ट । वर्ष सहस्र दश लेह, अंतर्मुहर्त अधिक फुन । १२८. षष्ठम गमे संवेह, बे भव अद्ध जघन्योत्कृष्ट । वर्ष सहस्र बत्तीस, जघन्य असुर उत्कृष्ट महि । १२९. सप्तम गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। साधिक सागर लेह, अंतमहत अधिक फुन । १३०. उत्कृष्ट अद्धा जोय, ए पिण दोय भवां तणों । साधिक सागर होय, वर्ष सहस्र बावीस फुन । १३१. अष्टम गमे संवेह, बे भव अद्ध जघन्योत्कृष्ट । साधिक सागर तेह, अंतमहत अधिक फुन । १३२. नवम गमक स्त्रेह, बे भव अद्ध जघन्योत्कृष्ट । साधिक सागर लेह, वर्ष सहस्र बावीस फुन । १३२. कालादेसेणं जहण्णेणं सातिरेगं साग रोव मं बावीसाए वाससहस्सेहिं अन्भहियं, उक्कोसेण वि सातिरेगं सागरोवमं बावीसाए वाससहस्सेहिं अब्भहियं, १३३. एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा १-९। (श० २४१२१०) १३३. *सेवै कालज एतलो रे, करै गति-आगति इतो काल रे । असुर पृथ्वी में ऊपजे रे लाल, तसु नव गम ए न्हाल रे ॥ १३४. देश चउवीसम बारम तणों रे, चिउं सौ बावीसमी ढाल रे । सुगुणनर ! भिक्षु भारीमाल ऋषिराय थी रे लाल, 'जय-जश' हरष विशाल रे ।। सुगुणनर ! ढाल : ४२३ २. णागकुमारेणं मंते ! जे भविए पुढविक्काइएसु ? पृथ्वीकाय में नवनिकाय अपज, तेहनों अधिकार' १. नागकुमारादिक हिवै, पुढवी में उपजंत । नवे गमे अधिकार तसु, सांभलजो धर खंत ।। अर्थ द्वादशम उद्देश नों।। (ध्र पदं) २. नागकुमारा हे प्रभु ! पृथ्वीकाय विषेहो जी। जे ऊपजवा जोग्य छै, इत्यादिक इम लेहो जी। ३. एहिज वक्तव्यता तसु, असुर ऊपजतां नैं लहिय जी। परिमाणादिक बोल जे, नाग विषे तिम कहिये जी। ४. यावत भव आश्रयी लगे, णवरं इतरो विशेखो जी। स्थिति अने अनुबन्ध में, कहिवो इम संपेखो जी। *लय :धीज कर सीता सती रे लाल लिय : कर जोड़ी आगल रही १. देखें परि. २, यंत्र ३९ ३. एस चेव वत्तव्वया ४,५. जाव भवादेसो ति, नवरं-ठिती जहण्णणं दसवाससहस्साइं, उक्कोसेणं देसूणाई दो पलिओवमाइं । एवं अणुबंधो वि। श० २४, उ० १२, ढा० ४२२,४२३ १११ Jain Education Intemational Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५. स्थिति अनें अनुबन्ध जे, जघन्य सहस्र दश वासो जी। उत्कृष्टी देसूण जे, दोय पल्योपम तासो जी॥ ६. काल आश्रयी जघन्य था, प्रथम गमे संवेहो जी। जघन्य सहस्र दश वर्ष नी, अंतर्महुर्त अधिकेहो जी ।। ७. उत्कृष्ट अद्धा एतलो, देश ऊण पल्य दोयो जी। ___ वर्ष सहस्र बावोस ही, अधिकेरी अवलोयो जी ।। ८. एवं एहनां नव गमा, असुर गमक सम भणवा जी। णवरं स्थिति काल आश्रयी, उपयोगे करि थुणवा जी।। ६. कालादेसेणं जहण्णेणं दसवाससहस्साई अंतोमुहुत्त मन्भहियाई, ७. उक्कोसेणं देसूणाई दो पलिमोवमाइं बावीसाए वाससहस्सेहिं अब्भहियाई । ८. एवं नव वि गमगा असुरकुमारगमगसरिसा, नवरंठिति कालादेसं च जाणेज्जा १-९ । दूहा ९. धुर त्रिहुं गम स्थिति नाग नीं, जघन्य सहस्र दश वास । उत्कृष्टी देसूण जे, बे पल्योपम तास ॥ १०. मझम तीन गमे स्थिति, जघन्य उत्कृष्ट कहाय । वर्ष सहस्र दश स्थितिक सुर, ऊपजै पृथ्वी माय ।। ११. छहले तीन गमे स्थिति, जघन्य अनै उत्कृष्ट । देसूण बे पल्य स्थितिक, ऊपजवो तसु इष्ट । सोरठा १२. कायसंवेध विख्यात, काल आश्रयी हिव तसु । कहियै छै अवदात, प्रथम गमो पूर्वे का। १३. द्वितीय गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। वर्ष सहस्र दश जेह, अंतर्मुहूर्त अधिक फुन । १४. उत्कृष्टो अवलोय, अद्धा उभय भवा तणों। देश ऊण पल्य दोय, अंतर्महत अधिक ही ।। १५. तृतोय गमे संवेह, जघन्य सहस्र बत्तीस वर्ष । नाग सहस्र दश लेह, वर्ष सहस्र बावीस महि ।। १६. उत्कृष्ट अद्धा जोय, ए पिण दोय भवां तणों । देश ऊण पल्य दोय, वर्ष सहस्र बावीस फुन ।। १७. चउथे गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। वर्ष सहस्र दश जेह, अंतर्महत अधिक फुन ।। १८. उत्कृष्ट अद्धा तास, वर्ष सहस्र बत्तीस जे। नाग सहस्र दश वास, वर्ष सहस्र बावीस महि ।। १९. पंचम गम संवेह, बे भव अद्धा जघन्योत्कृष्ट । वर्ष सहस्र दश लेह, अन्तर्मुहुर्त अधिक फुन । २०. षष्ठम जघन्योत्कृष्ट, वर्ष सहस्र बत्तीस जे। नाग सहस्र दश इष्ट, वर्ष सहस्र बावीस महि ।। २१. सप्तम गमे सुजोय, बे भव अद्धा जघन्य थी। देश ऊण पल्य दोय, अंतर्मुहूर्त अधिक फुन । २२. उत्कृष्ट अद्धा सोय, ए पिण दोय भवां तणों। देश ऊण पल्य दोय, वर्ष सहस्र बावीस फुन । २३. अष्टम गम संवेह, बे भव अद्ध जघन्योत्कृष्ट । देश ऊण पल्य बेह, अंतर्मुहूर्त अधिक ही । ११२ भगवती जोड़ Jain Education Intemational Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४. नवम गमे संवेह, देश ऊण पत्व बे २५. *एवं यावत जाणवो, पणियकुमार लगेहो जी । प्रश्न हिवं व्यंतर तणों, सांभलजो चित देहो जी ॥ २६. व्यंतर थी जो ऊपजै, पृथ्वीकाय विषेहो जी । स्यूं पिशाच व्यंतर चकी, जाव गंधर्व थी हो जो ॥ २७. श्रीजिन भावे पिशाच जे व्यंतर भी उपजेहो जी। जाव गंधर्व व्यंतर थकी, ऊपजै पृथ्वी विषेहो जी ।। ओघिक ने ओधिक (१) ४०. बेह २८. हे प्रभु! व्यंतर देवता पृथ्वीकाय विषेहो जी। जे ऊपजवा जोग्य छं, इत्यादिक पूछेहो जी ? २९. एह तणां पिण नव गमा, असुरकुमार ना हो जी नव गम आख्या ते सारिखा, बारु रीत जाणेहो जो ॥ ३०. नवरं इतरो विशेष है स्थिति अरु कालादेशो जी । तेहविषे जे फेर छे, जाणेवो सुविशेषो जी ॥ ३१. स्थिति जघन्य थी तेहनी वर्ष सहस्र दस जाणी जी। उत्कृष्टी इक पल्य नीं, शेष तिमज पहिछाणी जी ॥ पृथ्वीका में व्ययंतर अपने तेहनों अधिकार सोरठा *लय : कर जोड़ी आगल रहे १. देखें परि. २, यंत्र ४० भव अद्धा जघन्योत्कृष्ट । वर्ष सहस्र बावीस फुन । ३२. घुर गम कायसंवेह, बे वर्ष सहस्र दश जेह, ३३. उत्कृष्ट अद्धा ताय, ते एक पल्य कहिवाय, वर्ष ३४. बीजे भव अद्धा जघन्य थी । अंतर्मुहूर्त्त अधिक फुन ॥ पिण दोय भवां तणों । सहस्र बावीस फुन ॥ गम संवेह, वे भव अद्धा जघन्य थी । वर्ष सहस्र दश जेह, अंतर्मुहूर्त्त अधिक फुन ।। ३५. उत्कृष्ट अद्धा तास, ते पिण दोय भवां तणों ॥। एक पल्पोपम जास, अंतर्मुहूर्त अधिक फुन ॥ बत्तीस जे । ३६. तृतीय गमे संवेह, जघन्य सहस्र महि || विधे । वर्ष सहस्र यश लेह, वर्ष सहस्र बावीस ३७. उत्कृष्ट अद्धा होय, दोय भवां नों इह एक पत्थोपम जोय, वर्ष सहस्र बावीस फुन ॥ ३८. चउथे गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी । वर्ष सहस दश लेह, अंतर्मुहूर्त अधिक फुन ॥ ३९. उत्कृष्ट अद्धा जेह, वर्ष सहस्र बत्तीस जे । व्यंतर सहस्र दरोह वर्ष सहस्र बावीस महि || पंचम गम संदेह, वे भव अद्धा जघन्योत्कृष्ट । वर्ष सहस्र दश लेह, अंतर्मुहूर्त लेह. अंतर्मुहूर्त अधिक फुन ॥ २५. एवं जान पणियकुमाराणं । २६. वह वाणमंत हितो किस मंतरदेवहितो नाव गंधण्याणमंतरदेवेहितो ? २७. गोयमा ! पिसायवाणमंतर देवेहितो जाव गंधव्ववाणमंतरदेवेति । ( ० २४।२१२) (४० २४।२११) २८. वाणमंतर देवे णं भंते जे भनिए पुढविक्काइएगु उपजिए ? २९. एतेसि पि असुरकुमारगमगसरिसा भाणियव्वा ३०. नवरं - ठिति कालादेसं च जाणेज्जा । ३१. ठित ओवमं । सेसं तहेव १-९ । नव गमगा दसवाससहस्साई उम्कोसेणं पनि (१० २४२१३) श० २४, उ० १२, ढा० ४२३ ११३ Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१. षष्ठम गमे जगीस, बे भव अद्धा जघन्योत्कृष्ट । वर्ष सहस्र बत्तीस, व्यंतर पुढवी भव स्थिति ।। ४२. सप्तम गम संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। एक पल्योपम लेह, अंतर्महत अधिक ही ।। ४३. उत्कृष्ट अद्धा जाण, ए पिण दोय भवां तणों। एक पल्योपम माण, वर्ष सहस्र बावीस फुन ।। ४४. अष्टम गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्योत्कृष्ट । एक पल्योपम लेह, अंतर्मुहर्त अधिक फुन ।। ४५. नवम गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्योत्कृष्ट । एक पल्योपम लेह, वर्ष सहस्र बावीस फुन ।। पृथ्वीकाय में ज्योतिषी ऊपज, तेहनों अधिकार' ४६. *जो जोतिषो सुर थकी, ऊपजै पुढवी मांह्यो जी। ___तो स्यूं चंद्र विमाण थी, जाव तारा थी आयो जी ? ४७. जिन कहै चंद्र विमाण थी, यावत तार विमाणो जी । जोतिषी सुर थो ऊपजै, पूढवी में पहिछाणो जी ।। ४८. जोतिषी देवा हे प्रभु ! पुढवीकाय विषेहो जी। जे ऊपजवा जोग्य छै, ते कितै काल स्थितिके ऊपजेहो जी ? ४९. परिमाणादिक जे लद्धी, जिम कही असुर ने लेखो जी। कहिवी तिणहिज रीत सं, णवरं इतरो विशेखो जो ।। ५०. लेश्या एक तेज हुवै, तीन ज्ञान नी ज्यांही जी। नियमा तास कहीजिय, समदृष्टी रै मांही जी ।। ५१. नियमा तीन अज्ञान नी, सुर मिथ्याती मांही जी। असन्नी मर नहिं ऊपजे, ते माटै कहिवाई जी ।। ४६. जइ जोइसियदेवेहितो उववज्जति-कि चंदविमाण जोइसियदेवेहितो उववज्जति जाव ताराविमाण जोइसियदेवेहिंतो? ४७. गोयमा ! चंदविमाण जाव ताराविमाण । (श० २४।२१४) ४८. जोइसियदेवे णं भंते ! जे भविए पुढविक्काइएसु उववज्जित्तए? ४९. लद्धी जहा असुरकुमाराणं, नवरं ५०. एगा तेउलेस्सा पण्णत्ता । तिण्णि नाणा, ५१. तिणि अण्णाणा नियमं । ५२,५३. 'तिन्नि नाणा तिन्नि अन्नाणा नियम' ति इहा सञी नोत्पद्यते सज्ञिनस्तूत्पत्तिसमय एव सम्यग्दृष्टेस्त्रीणि ज्ञानानि मत्यादीनि इतरस्य त्वज्ञानानि मत्यज्ञानादीनि भवन्तीति, (व०प० ८३२) सोरठा ५२. सन्नी मनु तियंच, उत्पत्ति-समय ईज ते। समदृष्टि रै संच, नियमा तसु छ अवधि नी ।। ५३. सन्नी मनु तिर्यंच, उत्पत्ति-समय ईज ते । मिथ्याती रै संच, नियमा तसू छै विभंग नी ।। ५४. *स्थिति जघन्य पल्योपम तणों, भाग अष्टमो संधो जी। उत्कृष्ट पल्य लक्ष वर्ष नों, इतरोइज अनुबंधो जी।। सोरठा ५५. भाग अष्टमो ईज, समुदायज उपचार थी। अवयव विषे कहीज, तारक सुर सुरी आश्रयी। ५४. ठिती जहणणं अट्ठभागपलिओवमं, उक्कोसेणं पलिओवमं वाससयसहस्समब्भहियं । एवं अणुबंधो वि। ५५. 'अट्ठभागपलिओवम' ति अष्टमो भागोऽष्टभागः स एवावयवे समुदायोपचारादष्टभागपल्योपमं, इदं च तारकदेवदेवीराश्रित्योक्तम्, 'उक्कोसेणं पलिओवमं वाससयसहस्समभहियं' ति इदं च चन्द्रविमानदेवानाश्रित्योक्तमिति,। (०५०८३२) * लय: कर जोड़ी आगल रहे १. देखें परि. २, यंत्र ४१ ११४ भगवती जोड़ Jain Education Intemational Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कायसंवेध विषे ओधिक में ओधिक ५६. *काल आश्रयी जघन्य थी, पल्य नों अष्टम भागो जी। अंतर्महत अधिक ही, बे भव अद्धा मागो जी ।। ५७. उत्कृष्ट पल्य लक्ष वर्ष ही, चंद्र विमाण नां देवो जी । सहस्र वर्ष वावीस महि, इतरो काल सेवेवो जी ।। ५६. कालादेसेणं जहण्णेणं अट्ठभागपलिओवमं अंतोमुहुत्त मन्भहियं. ५८. इमहिज शेष पिण अठ गमा, भणवा वरं विशेखो जी। सुर स्थिति नै काल आश्रयी, ते कहिवं करि लेखो जी ।। ५७. उक्कोसेणं पलिओवमं वाससयसहस्सेणं बावीसाए वाससहस्सेहिं अभहियं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। ५८. एवं सेसा वि अट्ठ गमगा भाणियव्वा, नवरं-ठिति कालादेसं च जाणेज्जा १-९ । (श० २४१२१५) सोरठा ५९. द्वितीय तृतीय गमकेह, जघन्य पल्योपम भाग अठ। उत्कृष्टो इम लेह, पल्य लक्ष वर्षाधिक ।। आठ गमा रो कायसंवेध ६०. द्वितोये गमे जघन्य, भाग अष्टमो पल्य तणों । अंतर्महत जन्य, बिहुं भव अद्धा जघन्य स्थिति ।। ६१. उत्कृष्ट अद्धा ताय, पल्योपम लक्ख वर्ष जे। चंद्र तणी अपेक्षाय, अंतर्महत अधिक महि । ६२. तृतोय गमे संवेह, जघन्य अद्धा जे पल्य नों। भाग अष्टमो लेह, वर्ष सहस्र बावीस फुन ।। ६३. उत्कृष्ट अद्ध जगीस, पल्योपम लक्ख वर्ष जे। वर्ष सहस्र बावीस, बिहुँ भव नी उत्कृष्ट स्थिति ।। ६४. चउथे गमे संवेह, जघन्य अद्धा जे पल्य नों। भाग अष्टमो लेह, अंतर्महत अधिक ही ।। ६५. उत्कृष्ट काल जगीस, भाग अष्टमो पल्य नों। ____ वर्ष सहस्र बावीस, ए पुढवी उत्कृष्ट स्थिति ॥ ६६. पंचम गमे संवेह, जघन्योत्कृष्टज पल्य नों। भाग अष्टमो लेह, अंतर्महुर्त अधिक फुन ।। ६७. षष्ठम गम इम माग, जघन्य अने उत्कृष्ट अद्ध । पल्य नों अष्टम भाग, वर्ष सहस्र बाबीस फुन ।। ६८. सप्तम गमे विमास, जघन्य थकी अद्धा इतो। एक पल्य लक्ष वास, अंतर्मुहूर्त अधिक फुन । ६९. उत्कृष्ट अद्ध जगीस, एक पल्य ने वर्ष लक्ख । वर्ष सहस्र बावीस, अद्धा ए बिहुं भव तणुं ।। ७०. अष्टम गमेज तास, जघन्य अने उत्कृष्ट अद्ध । पल्योपम लख वास, अंतर्मुहूर्त अधिक फुन ।। ७१. नवमे गमे प्रकाश, जघन्य अने उत्कृष्ट अद्ध । एक पल्य लक्ष वास, वर्ष सहस्र बावीस महि ।। पृथ्वीकाय में वैमानिक ऊपजे ७२. 'जो वैमानिक देव थी, पुढवी में उपजतो जी। तो स्यूं कल्पवासी थकी, के कल्पातीत थी हुतो जी ? *लय : कर जोड़ी आगल रहे ६८. सप्तम - वास, अतर वर्ष लक्ख । ७२. जइ वेमाणियदेवेहितो उववज्जति–कि कप्पोवा वेमाणियदेवेहितो? कप्पातीतावमाणियदेवेहितो। श. २४, उ.१२, ढा० ४२३ ११५ Jain Education Intemational Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३. जिन कहै कल्पवासी सुरा वैमानिक उपजतो जी । कल्पातीत विमाणिया, यावत ते नहि हुंतो जी ॥ ७४. जो कल्पवासी सुर ऊपजे, तो स्यूं सौधर्म नां वासी जी। वैमानिक जाव ऊपजै, के अच्युत नां विमासी जी ? ७५. जिन कहै वासी सौधर्म नां, वलि ईशाण न तो जी । पिण नहि सनतकुमार नां, जाव अच्युत नां न उपजंतो जी । पृथ्वीका में सौधर्मवासी देव ऊपजं, तेहनों अधिकार' ओघिक नैं अधिक (१) ७६. सुर सौधर्मक हे प्रभुजी ! पृथ्वीकाय विषेहो जी । जवा जोग्य छै, ते कितै काल स्थितिक ऊपजेहो जी ? ७७. इम जिम जोतिषी नों गमो, दाख्यो तिम कहिवायो जी। वरं सुर स्थिति में वली, अनुबन्ध इह विधि बायो जी।। ७८. सुर स्थिति ने अनुबंध जे, जयन्य थकी अवलोयो जी । सोहम्म सुर इक पल्य स्थिति, उत्कृष्ट सागर दोयो जी ॥ ७९. काल आश्रयी जघन्य थी, इक पल्य सुर स्थिति माणी जी । । अंत अधिक ही ए पुढयो स्थिति जाणी जी || ८०. उत्कुष्टो बढा वसु, सोहम्म सागर दोयो जी अद्धा वर्ष सहस्र बावीस ही, पुढवी स्थिति अवलोयो जी ॥ ८१. सेवै कालज एतलो, करै गति आगति इतो अधिक न अधिक गमो दाख्यो प्रथम ८२. इमज शेष पिण अठ गमा, भणवा णवरं विशेखो जी । स्थिति अनें कालादेश छै, ते कहिवूं करि लेखो जी ॥ वा०-- इहां स्थिति ते सौधर्म देव नीं जाणवी ते प्रथम तीन गमे जघन्य कालो जी । दयालो जी ।। एक पल्य उत्कृष्टो वे सागर । अनं विचलं तीन गमे जघन्य उत्कृष्ट १ पल्य । अनैं छेहले तीन गमे जघन्य उत्कृष्ट २ सागर । हिवे काल आश्रयी प्रथम गभो तो पूर्वे कह्योहीज छे, शेष आठ गमा कहे छे सोरठा ३. द्वितीय गमे संवेह, काल आश्रयी जघन्य थी । एक पत्योपम लेह, अंतर्मुहूर्त्त अधिक फुन ॥ ८४. उत्कृष्ट अद्धा जोय, ते पिण बे भव नों तसु । सोहम सागर दोय, अंतर्मुहूर्त अधिक महि ॥ ८५. तृतीय गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य एक पल्योपम लेह वर्ष सहस्र बावीस *लय : कर जोड़ी आगल रहे देखे परि २, यंत्र ४२ ११६ भगवती जोड़ थी । फुन । ७२. गोमा पोयमाणदेहितो, तो कप्पातीतामणिदेवेति । ( ० २४।२१६) ७४. जइ कप्पोवावेमा णियदेवे हितो उववज्जंति - कि सोहम्मरुप्पोबावेमा जियदेवेद्दितो वा अन्यको बामणियदेवेहितो? ७५. गोयमा सोम्मकोवावेमा गियदेवेहितो ईसा कप्पोनमानियदेवेहितो, नो सणकुमार जब नो अच्चुयकप्पवावेमागियो । (१० २४२१७) ७६. सोहम्मदेवे णं भंते ! जे भविए पुढविक्काइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते ! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा ? ७७. एवं जहा जोइसियस्स गमगो, नवरं ७८. ठिली अनुबंधों व जहणं पलियोवमं, उनकोसे दो सागरोवमाई | ७९. कालादेसेणं जहणेणं पलिओवमं अंतोमुहुत्तमन्भहियं, ८०. उनको दो सामरोवमाई बाबीसाए बाससहि अब्भहियाई, ८१. एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्ज्जा । ८२. एवं सेसा वि अट्ठ गमगा भाणियव्वा, नवरं - ठिति कालादेसं च जाणेज्जा । ( श० २४।२१८ ) Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९५. ईसाणदेवे णं भंते ! जे भविए? ५६. उत्कृष्ट अद्धा सोय, ते पिण दोय भवां तणों। सोहम्म सागर दोय, वर्ष सहस्र बावीस महि । ८७. चउथे गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। एक पल्योपम लेह, अन्तर्मुहुर्त अधिक ही। ८८. उत्कृष्ट अद्धा लेख, ए पिण दोय भवां तणों। एक पल्योपम पेख, वर्ष सहस्र बावीस फुन ।। ८९. पंचम गमे संवेह, बे भव अद्ध जघन्योत्कृष्ट । एक पल्योपम लेह, अन्तर्महुर्त अधिक फुन ।। ९०. षष्ठम गम संवेह, बे भव अद्ध जघन्योत्कृष्ट । एक पल्योपम लेह, वर्ष सहस्र बावीस फुन ।। ९१. सप्तम गम संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। कहियै सागर बेह, अन्तर्महतं अधिक फुन । ९२. उत्कृष्ट अद्धा सोय, ए पिण बे भव नों तसु । सोहम्म सागर दोय, वर्ष सहस्र बावीस महि ।। ९३. अष्टम गम संवेह, बे भव अद्धा जघन्योत्कृष्ट । बे सागर तसु लेह, अन्तर्महुर्त अधिक महि ।। ९४. नवम गमे संवेह, बे भव अद्ध जघन्योत्कृष्ट । सोहम्म सागर बेह, वर्ष सहस्र बावीस महि । पृथ्वीकाय में ईशानवासी देव ऊपज, तेहनों अधिकार'९५. हे प्रभु! देव ईशाण जे, पुढवीकाय विषेहो जी। जे ऊपजवा जोग्य छै, इत्यादिक इम लेहो जी ।। ९६. सुर ईशाण नां पिण वली, इमहिज नव गम भणवा जी। णवरं सुर स्थिति में वली, अनुबन्ध इम थुणवा जी ।। ९७. जघन्य पल्य जाझी कही, उत्कृष्ट स्थिति अनुबन्धो जी। साधिक बे सागर तणी, शेष तिमज सह संधो जी ।। पृथ्वीकाय में पांच स्थावर ऊपज, तेह में नाणत्ता सोरठा ९८. पृथ्वी पृथ्वी मांय, जावे तसु जघन्य गमे । च्यार णाणत्ता पाय, प्रथम तीन लेश्या हुई। ९९. जघन्य स्थिति अनुबन्ध, माठा अध्यवसाय तसु । उत्कृष्ट गमेज संध, स्थिति अनुबन्ध बे णाणत्ता ॥ १०.. अप पुढवी में आय, तेहनां पिण जघन्ये गमे। च्यार णाणत्ता पाय, उत्कृष्ट गम बे णाणत्ता । १०१. तेऊ पृथ्वी मांय, आवै तसु जघन्ये गमे । तीन णाणत्ता पाय, लेश्या नों कहिये नथी॥ १०२. वायु पृथ्वी मांय, आवै तसु जघन्ये गमे । ___ च्यार णाणता पाय, समुद्घात वैक्रिय बध्यो। १. देखें परि. २, यंत्र ४३ *लय : कर जोड़ी आगल रही ९६. एवं ईसाणदेवेण वि नव गमगा भाणियव्वा, नवर ९७. ठिती अणुबंधो जहण्णेणं सातिरेगं पलिओवमं, उक्कोसेणं सातिरेगाई दो सागरोवमाई। सेसं तं चेव १-९॥ (श० २४१२१९) श० २४, उ० १२. दा० ४२३ ११७. Jain Education Intemational Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०३. वलि पृथ्वी रै मांय, वनस्पति आवै तसं । ___ पंच णाणत्ता पाय, अवगाहन नों पंचमो॥ पृथ्वीकाय में विकलेंद्रिय ऊपजे, तेहमें नाणत्ता १०४. वलि पृथ्वी रै मांय, विकलेन्द्रिय आवै तसू । जघन्य गमे कहाय, सात णाणत्ता तेहनां ।। १०५. जघन्योत्कृष्ट अवगाह, असंख भाग आंगुल तणों। मिथ्यादृष्टिज पाय, ज्ञान नथी ए तीसरो।। १०६. जोग काया नों एक, आयु नै अनुबन्ध फुन । अन्तर्मुहुर्तज पेख, माठा अध्यवसाय हूं। पृथ्वीकाय में तियंच पंचेंद्रिय ऊपज, तेहमें नाणत्ता १०७. वलि पृथ्वी में आय, असन्नी पंचेंद्रिय तिरि । सात णाणत्ता पाय, जघन्य गम विकलेंद्रीवत ।। १०८. पृथ्वी माहै पेख, सन्नी तिरि आवै तसु । जघन्य गमे विशेख, कहियै छै नव णाणत्ता ।। १०९. अवगाहना जघन्य, लेश तीन पहलीज है। मिथ्यादृष्टिज जन्य, ज्ञान तास पावै नहीं ।। ११०. समुद्घात त्रिण संध, योग एक काया तणों। जघन्याय अनुबन्ध, माठा अध्यवसाय ह्र । १११. सहु पृथ्वी रै मांय, आवै तसु उत्कृष्ट गम । दोय णाणत्ता पाय, आयु में अनुबन्ध नां ॥ पृथ्वीकाय में मनुष्य ऊपज, तेहमें नाणत्ता ११२. वलि पृथ्वी में जात, असन्नी मनु षट भंगा नथी । ओघिक त्रिण गम ख्यात, नत्थि णाणत्ता तेहनां ।। ११३. वलि पृथ्वी रै मांय, सन्नी मनु जावै तसु । जघन्य गमे कहाय, कहियै छै नव णाणत्ता ॥ ११४. जघन्योत्कृष्ट अवगाह, असंख भाग आंगुल तणों। प्रथम लेश त्रिहुं पाह, दृष्टि मिथ्या त्रिहुं ज्ञान नहीं। ११५. काय योग इक संध, समुद्घात धुर त्रिहुं हुवै। जघन्य स्थिति अनुबन्ध, माठा अध्यवसाय तसु ।। ११६. उत्कृष्ट गमे कहाय, तीन णाणत्ता तेहनां । अवगाहन नों पाय, जेष्ठ स्थिति अनुबन्ध फुन ।। पृथ्वीकाय में देव ऊपज, तेहमें नाणता ११७. भवनपति दश देख, सोल जाति नां व्यंतरा। पंच जोतिषी पेख, सुर सोहम्म ईशाण नां॥ ११८. ए पुढवी में आय, जघन्य गमे बे णाणत्ता। स्थिति अनुबन्ध कहाय, उत्कृष्ट गम तेहीज बे।। पृथ्वीकाय में पांच स्थावर ऊपज, तेहनां भव ११९. पृथ्वी पृथ्वी मांहि, अप तेऊ वाऊ वली। वनस्पति वली ताहि, एह ठिकाणा पंच नों।। ११८ भगवती जोड़ Jain Education Intemational Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२०. आवै पृथ्वी मांय, प्रथम द्वितीय तूर्य पंचमे । जघन्य दोय भव थाय, उत्कृष्ट भव अद्धा असंख ।। १२१. ए चिउ गमे विचार, समय-समय जे ऊपजै । असंख्यात अवधार, शेष गमा हिव पंच कहूं। १२२. तीजे छठे जोय, सप्तम अष्टम नवम गम। जघन्य थकी भव दोय, उत्कृष्ट भव अष्ट तसु॥ १२३. ए गम पंच कथीन, ऊपजतो पृथ्वी विषे । जघन्य एक बे तीन, उत्कृष्ट असंख्याता ह ।। पृथ्वीकाय में तीन विकलेंद्रिय ऊपज, तेहनां भव १२४. त्रिण विकलेंद्रिय ताहि, एह ठिकाणा तीन रो। ऊपजै पृथ्वी मांहि, तसू भव लेखो सांभलो। १२५. प्रथम द्वितीय गम जोय, फुन गम चउथे पंचमे । जघन्य थकी भव दोय, उत्कृष्ट भव अद्धा संख्या ।। १२६. तीजे षष्ठम तेह, सप्तम अष्टम नवम गम । भव गम पंच विषेह, जघन्य दोय उत्कृष्ट अठ ।। पृथ्वीकाय में तियंच पंचेंद्रिय अने मनुष्य ऊपज, तेहनां भव १२७. फून असन्नी तिर्यंच, सन्नी तिरि सन्नी मनष्य । तीन स्थान नों संच, उपजै पृथ्वी ने विर्षे ।। १२८. गमे न ही इष्ट, जघन्य थकी भव दोय तसु । हुवै अष्ट उत्कृष्ट, किणही गम नहिं ह अधिक ।। १२९. पुढवी में उपजंत, असन्नी मनु षट गम नथी । ओधिक त्रिण गम हुँत, जघन्य दोय भव जेष्ठ अठ ।। पृथ्वीकाय में देव ऊपज, तेहनां भव १३०. भवणपति दश जाण, व्यंतर नै वलि जोतिषी । सोहम्म नैं ईशाण, ए सुर चवद ठिकाण रा॥ १३१. पृथ्वी में उपजेह, तेह न ही गम विषे । जघन्य थकी भव बेह, उत्कृष्ट पिण भव दोय है। १३२. स्थावर पंच सुपेख, विकलेंद्रिय असन्नी तिरि । सन्नी तिर्यंच देख, असन्नी मनु सन्नी मनुष्य ।। १३३. भवनपति दश जाण, वाणव्यंतर नै जोतिषी । सोहम्म मैं ईशाण, ए षटवीस ठिकाण रा॥ १३४. पृथ्वी में उपजेह, कह्या णाणत्ता भव तसु । नव गम कायसंवेह, ते पूर्वे आख्याज छै॥ १३५. *सेवं भंते ! इम कही, जाव गोयम विचरंता जी । संजम तप करि स्वाम जी, आतम प्रति भावंता जी ।। १३६. चउवीसम नों बारमों, ढाल च्यार सय तेवीसो जी । भिक्षु भारीमाल ऋषिराय थी जी, 'जय-जश' हरष जगीसो जी ।। चतुविशतितमशते द्वादशोदेशकार्थः ॥२४॥१२॥ *लय : कर जोडी आगल रही १३५. सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति जाव विहरइ । (श० २४१२२०) श० २४, ३.१२, ढा० ४२३ ११९ Jain Education Intemational Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ढाल : ४२४ दूहा १. नमस्कार श्रुत देव ने, श्रुतकर्ता सुखदाय । गणधर धुर चारित्र गुणी, नमण तास सिर नाय ।। अपकाय में पृथ्वीकाय ऊपज, तेहनों अधिकार' २. अपकायिक भगवंत जी! किहां थकी ऊपजेह । इम जिम पृथ्वीकाय नों, कह्यो उद्देशक तेह ।। ३. तिण विधि कहिवो छै इहां, यावत पृथ्वीकाय । ते ऊपजवा जोग्य प्रभु ! अपकायिक रै मांय ।। २. आउक्काइया णं भंते! कओहिंतो उववज्जति ? एवं जहेव पुढविक्काइयउद्देसए ३. जाव (श० २४१२२१) पुढविक्काइए णं भंते! जे भविए आउक्काइएसु उववज्जित्तए, ४. से णं भंते ! केवतिकालट्टितीएसु उववज्जेज्जा ? ४. ते प्रभु! कितरा काल नों, स्थितिक विषे ऊपजेह ? प्रश्न एम पूछे थके, जिन उत्तर इम देह ।। ५. अंतर्महुर्त जघन्य थी, फुन उत्कृष्टी लेह । सप्त सहस्त्र जे वर्ष नीं, स्थितिक विषे उपजेह ।। ६. इम महि उद्देशक सदृश, भणवो णवरं स्थित्त । फून संवेधज जाणवो, शेष तिमज कथित्त ।। ५. गोयमा ! जहणणं अंतोमुहुत्तद्वितीएसु, उक्कोसेणं सत्तवाससहस्सद्वितीएसु उववज्जेज्जा। ६. एवं पुढविक्काइयउद्देसगसरिसो भाणियन्वो, नवरंठिति संवेहं च जाणे ज्जा । सेसं तहेव । (श० २४।२२२) ७. स्थिति अनैं संवेध फुन, नव ही गमा विषेह । यथायोग्य ते जाणवू, उपयोगे करि लेह ।। नवू ही गमे पृथ्वी अप में ऊपज, तेहनों कायसंवेध ८. प्रथम द्वितीय तुर्य पंचमे, ए चिउं गम भव दोय । अद्धा अंतर्मुहुर्त बे, जघन्य थकी अवलोय ।। ९. ए चिउं गम उत्कृष्ट थो, असंख्यात भव ख्यात । अद्धा काल असंख ही, गति-आगति सजात ।। सोरठा १०. तृतीय गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। ___अंतर्महत लेह, सप्त सहस्त्र वर्ष अप स्थिति ।। ११. उत्कृष्ट अद्धा तास, अष्ट भवां नों इह विधे । सहस्त्र अध्यासी वास, वर्ष सहस्त्र अठवीस अप ।। १२. षष्ठम गम संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। अंतर्मुहर्त्त लेह, सप्त सहस्त्र वर्ष अप स्थिति ।। १३. उत्कृष्ट अद्धा धार, अष्ट भवां नों आखियो । अंतर्मुहर्त च्यार, वर्ष सहस्त्र अठवीस अप ।। १४. सप्तम गमे जगीस, बे भव अद्धा जघन्य थी । वर्ष सहस्त्र बावीस, अंतर्महत अप स्थिति ।। १५. उत्कृष्ट अद्ध विमास, अष्ट भवां नों आखियो। सहस्त्र अठ्यासी वास, वर्ष सहस्र अठवीस अप ।। १. देखें परि. २, यंत्र ४४-६१ १२० भगवती जोड़ . Jain Education Intemational Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६. अष्टम गमे जगीस, बे भव अद्धा जघन्य थी । अप स्थिति ।। अंतर्मुहूर्त अष्ट भवां अंतर्मुहूर्श वर्ष सहस्र बावीस १७. उत्कृष्ट अद्धा तास, सहस्र अठवासी वास, १८. नवमे गमे जगीस, बे भव अद्धा वर्ष सहस्त्र बाबीस, सप्त सहस्र अप १९. उत्कृष्ट अद्ध विमास ए पिण अष्ट भवां सहस्र अठपासी वास, वर्ष सहस्त्र अठवीस वा० - शेष विस्तार जिम पृथ्वी नैं विषे २६ ठिकानां नां ऊपजे तेहनां जाणता लधि प्रमुखा कह्या, तिमहिज अप नैं विषे २६ ठिकाणां नां ऊपर्ज, तेह में परिमाणादिक लद्धी णाणत्ता कहिवा । अनं कायसंवेध सर्व नों विचारी कहियो । नों इह विधे । प्यार अप ।। जघन्य थी । हा २०. सेवं भवे! हे प्रभु! इम कही गोतम स्वाम शत चउवीसम नों अर्थ, त्रयोदशम अभिराम ॥ चतुर्विंशतितमशते त्रयोदशो देशकार्यः || २४|२३|| ते उकाय में १२ ठिकाणां नां ऊपर्ज, तेहनों अधिकार' भव स्थिति ।। तणों । अप ॥ * जय जय ज्ञान जिनेंद्र नों ॥ ( ध्रुपदं ) २१. तेऊकाइया हे प्रभु! किहां थकी ऊपजंतो जी ? प्रश्न इत्यादिक पूछिया, भाख्या श्री भगवंतो जी ॥ २२. इम जे पृथ्वीकाय नों, दाख्यो प्रवर उद्देशो जी । तेह सरिखो उद्देशको भणवो ए सुविशेषो जी ॥ २३. नवरं स्थिति तथा वली, संवेध प्रति जाणेहो जी । देव तेऊ में न ऊपजै, तिमहिज शेष कहेहो जी ॥ तीन अहोरात्र । २, ५, ८ गमे उत्कृष्ट ३ अहोरात्रि । भव कहियो । वा० - इहां स्थिति तेऊकाय नीं १,४,७ गमे जघन्य अंतर्मुहूर्त, उत्कृष्टा जघन्य - उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त । ३,६,९ गमे जघन्यस्थिति अनें कायसंवेध उपयोगे करी विचारी *लय : धर्म दलाली चित्त करं १. देखे परि, यंत्र ४४- ५५ सोरठा २४. ते मांहे ताहि, आवे बार ठिकाण नां । सुरवर आवै नांहि, तेह तणां चवदे टल्या ॥ २५. आवे स्थावर पंच, फुन विकलेंद्रिय तीन जे असन्नी सन्नी तिच असन्नी मनु सन्नी मनुष्य ॥ २६. तेऊ मांहै ताम, पृथ्वी आवे तेहनां । च्यार णाणत्ता पाम, मध्यम जघन्य त्रिहुं गमे ।। २७. अप वेळ में आय, तेहनां पिण चि । तेक तेऊ मांव, जाये तमु त्रिण णाणता । णाणत्ता ॥ २०. सेवं भंते ! सेवं भंते ! सि । (१० २४/२२३) २१. काइया भते । कमोहित उववज्वंति ? २२. एवं विक्काइसगसरिसो उसो भाणियो २३. नवरं - ठिति संवेहं च जाणेज्जा । देवेहितो न उववज्जंति । सेसं तं चेव । ( श० | २२४ ) २४. वेत्तास्तेजस्कायिकेषु नोत्पद्यन्ते (बु० १० ८३३) श० २४, उ० १२, ढा० ४२४ १२१ Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८. वलि तेऊ रे मांय, वायू आवै तेहनां । च्यार णाणत्ता पाय, वनस्पति नां पंच फुन ।। २९. फुन तेऊ रै मांय, विकलेंद्रिय आवै तसु । सात-सात कहिवाय, पूर्ववत ते णाणत्ता ।। ३०. वलि तेऊ रै मांय, असन्नी तिरि आवै तसु । सात णाणत्ता पाय, ते पिण पूर्वली परै ।। ३१. फुन तेऊ में ताम, सन्नी तिरि सन्नी मनुष्य । आवै तेहनां पाम, पूर्ववत नव णाणत्ता ।। ३२. उत्कृष्ट गम अवलोय, सप्तम अष्टम नवम गम । ___ पृथ्वी नी पर जोय, कहियै एहनां णाणत्ता ।। ३३. वलि तेऊ रै मांहि, आवै छै असन्नी मनुष्य । तास णाणत्ता नांहि, जघन्य गमेज ते भणी ।। ३४. तेऊ माहै ताम, पंच स्थावर आवै तसु । प्रथम द्वितीय गम आम, फन चउथे ने पांचमे ।। ३५. जघन्य थकी भव दोय, असंख्यात उत्कृष्ट भव । समय-समय अवलोय, असंख्यात ते ऊपजै ।। ३६. शेष पंच गम पेख, जघन्य थकी भव दोय है। उत्कृष्टा अठ लेख, पंच स्थावर उपजे तसु । ३७. जघन्य एक बे तीन, उत्कृष्ट असंख्या ऊपजै । एक समय में चीन, शेष पंच गम नै विषे । ३८. वलि तेऊ रै ताम, त्रिण विकलेंद्रिय जावै तसु । प्रथम द्वितीय गम आम, वलि चउथै – पंचमे ।। ३९. जघन्य थकी भव दोय, उत्कष्टा संख्यात भव । शेष पंच गम जोय, जघन्य दोय उत्कृष्ट अठ ।। ४०. वलि तेऊ रे मांहि, असन्नी पं. तिरि ऊपजै । सन्नी पं. तिरि ताहि, उपजै तेऊ नै विषे ।। ४१. नव ही गमे निहाल, जघन्य थकी भव दोय ह्र । उत्कृष्टा अठ भाल, अधिक नहीं किणही गमे ।। ४२. जुओ-जुओ संवेह, कहिवो तेह विचार नै । संघयणादिक जेह, लाभै तेहिज लीजियै ।। ४३. वलि तेऊ रै मांहि, असन्नी मनूष्यज ऊपजै । ओधिक त्रिण गम ताहि, भव बे पिण अधिका नथी। ४४. असन्नी मनु नी जाण, ओधिक त्रिण गम में स्थिति । ___ अंतर्मुहूर्त माण, कायसंवेध हिवै कहूं ।। ४५. प्रथम गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य स्थिति । __ अंतर्मुहूर्त बेह, तेऊ मरि न हुवै मनुष्य ।। ४६. उत्कृष्ट अद्धा ख्यात, दोय भवां नों इह विधे । तीन दिवस नैं रात, अंतर्मुहर्त अधिक ही। ४७. द्वितीय गमे संवेह, जघन्य अनें उत्कृष्ट अद्ध । अंतर्महर्त बेह, दोय भवां नों जाणवो।। १२२ भगवती जोड Jain Education Intemational Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८. तीजे गमे संवेह, तीन दिवस नै रात्रि फन । ____ अंतर्महरी जेह, जघन्योत्कृष्ट बे भव अद्धा ।। ४९. वलि तेऊ में इष्ट, सन्नी मनुष्यज ऊपजै । जघन्य अनै उत्कृष्ट, बे भव पिण अधिका नथी ।। ५०. स्थिति मनुष्य नी जाण, धुर त्रिण गमके जघन्य थी । __अंतर्मुहूर्त माण, उत्कृष्ट पूर्व कोड़ नीं॥ ५१. मझम त्रिण गम मांय, अंतर्मुहूर्त जघन्य जिट्ठ । अंतिम त्रिण गम पाय, पूर्व कोड़ जघन्योत्कृष्ट । ५२. नव ही गम उपजेह, संख्याता उत्कृष्ट थी। पिण तसु कायसंवेह, कहिवो सर्व विचार – ।। ५३. सूत्र तेऊ हेर, पृथ्वी नी पर आखियो। स्थिति सवेधे फेर, फुन सुर नहिं उपजै कह्यो । ५४. पिण पृथ्वी में जोय, मनुष्य ऊपजै तेहनां । जघन्य थकी भव दोय, उत्कृष्टा भव अठ कह्या ।। ५५. इहां तेऊ रै माय, मनुष्य ऊपजै तेहनां । बे भव ईज कहाय, पिण अधिका हवै नथी ।। ५६. तेउ वाउ में ताम, मनुष्य विषे ऊपजै नथी । सूत्र विषे बहु ठाम, तिणसू तेहनां दोय भव ।। ५७. मनु तेऊ में आय, मनु पुढवी जिम आख्यिो । लद्धी आश्री ताय, पिण भव आश्री न संभवै ।। ५८. *सेवं भंते ! स्वामजी, जाव गोयम विचरतो जी। चउवोसम नों चवदमो, अर्थ थकी ए तंतो जी ।। चतुर्विंशतितमशते चतुर्दशोद्देशकार्थः ।।२४।१४।। वायुकाय में १२ ठिकाणां ना ऊपज, तेहनों अधिकार' ५९. *वाउकाइया हे प्रभु ! किहां थकी ऊपजेहो जी ? इम जिम तेऊ नों कह्यो, प्रवर उद्देशो तेहो जी ॥ ६०. तिमहिज कहिवो वायु तणों, णवर स्थिति संवेहो जी। उपयोगे करि जाणवो, सेवं भंते ! सत्य एहो जी॥ ५८. सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति जाव विहरइ । (श० २४१२२५) ५९. वाउक्काइया णं भंते ! कओहिंतो उववज्जति ? एवं जहेव तेउक्काइयउद्देसओ, ६०. तहेव, नवरं-ठिति संवेहं च जाणेज्जा । (श० २३।२२६) सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति। (श० २४१२२७) सोरठा ६१. आवे तेऊ मांय, तेहिज वायु नै विषे । फुन भव णाणत्ता पाय, तेऊ नों पर जाणवा ॥ __चतुर्विंशतितमशते पंचदशोद्देशकार्थः ॥२४॥१५॥ वनस्पतिकाय में २६ ठिकाणां नां ऊपज, तेहनों अधिकार' ६२. *प्रभु! वनस्पतिकाइया, किहां थकी ऊपजेहो जी? एवं पृथ्वी सारिखो, उद्देशक पभणेहो जी ।। *लय : धर्म दलाली चित्त कर १. देखें परि. २, यंत्र ४४-५५ २. देखें परि. २, यंत्र ४४-६१ ६२. वणस्सइकाइया णं भंते ! कओहिंतो उववज्जति ? एवं पुढविक्काइयसरिसो उद्देसो, श० २४, उ० १५,१६, ढा० ४२४ १२३ Jain Education Intemational Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३. नवरं इतरो विशेष छे, वनस्पतिकायिक विषे, ६४. प्रथम द्वितीय तुर्य पंचमे एक समय मांहि उपजे ६५. समय-समय प्रति चिउं गमे, विरह-रहित विसरालो जी । जीव अनंता ऊपजै, ए स्वकाय थी न्हालो जी ॥ वणस्सइ जीव जिवारे जी । उपजै तेह तिवार जी ॥ ए चिरं गमक विषेो जी । तसु परिमाण कहेहो जी ।। सोरठा ६६. वनस्पति थी जोय, नीकलवो अनंत नों । नहि नीकले || तेऊ पवन । असंख्याताज || छै । छै अनंत नों। अनंत न ऊपजै ॥ त्रस विषे । न ऊपजै ।। अन्य काय थी सोय, अनंत जीव पृथ्वी अप ६७. शेष काय जे पंच, वलि यस विषेज संच सर्व त्रस ६८. वनस्पति रौ मांहि, ऊपजवो अन्य काय में ताहि, जीव ६९. पृथ्वी अपरं मांय, तेक वाऊ जीव अनंत न पाय, तिणसूं अनंत ७०. प्रथम द्वितीय गम मांय, तुर्य पंचमा उत्कृष्ट स्थिति न पाय एवं आय ७१. तिण कारण उत्कृष्ट, भवादेश करि जी ॥ भव काल आश्रयी इष्ट, काल उत्कृष्ट अनंत थी । ७२. * भवादेश करि जघन्य थी, बे भव ग्रहण करेहो जी । उत्कृष्टा भव अनंत ही, च्यारूं गमक विषेहो ७३. काल आश्रयी जघन्य थी, अंतर्मुहूर्त्त दोयो उत्कृष्ट काल अनंत ही, एह गतागति ७४. शेष तीजो छठो सातमो, अष्टम नवम गमेहो जी । तिमहिज अठ भव ग्रहण छै, उत्कृष्ट स्थितिकपणेहो जो ॥ ७५. नवरं इतरो विशेष स्थिति अने अनें उपयोगे करि जाणवो, तास न्याय इम होयो संवेहो जी । लेहो जी ।। गम विषे । वृत्ति में ॥ अनंत भव । जी । जी ॥ सोरठा ७६. स्थिति जघन्य उत्कृष्ट, सहु गम विषे फुन संवेधज इष्ट ते इम पंच ७७. तीजे गमे संदेह, बे भव अद्धा प्रसिद्ध छे । गमा विषे || जघन्य थी । स्थिति बली ॥ इह विधे । सहस्र वर्ष ।। अंतर्मुहुर्त जेह, वर्ष सहस्र दश ७८. उत्कृष्ट अद्धा तास, अष्ट भवां नों सहस्र असी जे वास, इक इक भव दश ७९. छठे गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी । अंतर्मुहूर्त जेह, वर्ष सहस्र दश जाणवू ।। ८०. उत्कृष्ट अद्ध प्रकार, अष्ट भवां नों इह विधे । अंतर्मुहूर्त च्यार वर्ष सहस चालीस फुल || ॥ *लय : धर्म दलाली चित्त कर १२४ भगवती जोड़ ६२. नवरं आहे नवजति ताहे ६४. पढम- बितिय चउत्थ- पंचमेसु गमएसु परिमाणं ६५. अणुसमयं अविरहियं अणंता उववज्जंति वणस्स इकाइम वणस्सइकाइएस ६६. अनेन वनस्पतेरेवानन्तानामुद्वृत्तिरस्ति इत्यावेदितं, ६७. शेषाणां हि समस्तानामप्यसङ्ख्यातत्वात्, नान्यत ( वृ० प० ८३३) (१० १० ०३३) ६८,६९. तथाऽनन्तानामुत्पादो वनस्पतिष्वेव कायान्तरस्यानन्तानामभाजनत्वादित्यप्यावेदितं ( वृ० प० ८३३) ७०, ७१. इह च प्रथम द्वितीयचतुर्थपञ्चमग मेष्वनुत्कृष्टस्थितिभावादनन्ता उत्पद्यन्त इत्यभिधीयते, (बु० १० ८३३) ७२. भवादेसेणं जमे दो भवग्गहगाई, उक्कोसेणं अताई भवरगहणाई | ७३. कालादेसेणं जहणेणं दो अंतोमुहुत्ता, उक्कोसेणं अनंतं कालं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा । ७४. सेसा पंचगमा भगिया तब ७५. नवरंडिति संदेह जाने (०२४।२२० ) ७६. तत्र स्थितिर्जघन्योत्कृष्टा च सर्वेष्वपि गमेषु प्रतीतैव, (०१०८३३) ७०. संवेधस्तु तृतीयसप्तमवोर्जघन्येन दशवर्षसहस्राम्यन्तहर्त्ताधिका (बु० १० ८२३) ७८. उत्तस्त्वष्टा भवग्रहणेषु दशसाहस्त्या प्रत्येक भावादशीतिर्वर्षसहस्राणि, ( वृ० प० ८३३) ७९. पाष्टमी जयन्येन दशवर्षसहखायन्तकानि ८०. उत्कृष्टतस्तु चत्वारि भ्यधिकानि (२० १० ८३३) सहस्राभ्यन्तर्मुहुर्तचतुष्टया ( वृ० प० ८३३) Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८१. सप्तम गम संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। वर्ष सहस्र दश जेह, अंतमहत अधिक फून । ८२. उत्कृष्ट अद्धा तास, अष्ट भवां नों इह विधे । __ असी हजारज वास, ए तृतीय गमा तुल्य सप्तमो ।। ८३, अष्टम गम संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। वर्ष सहस्र दश जेह, अंतर्मुहुर्त अधिक फुन । ८४. उत्कृष्ट अठ भव धार, वर्ष सहस्र चालीस जे । अंतर्मुहर्त च्यार, षष्ठम तुल्य सम अष्टमो।। ८५. नवम गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। वोस सहस्र बरसेह, बिहुं भव नी उत्कृष्ट स्थिति ।। ५६. उत्कृष्ट अद्धा तास, अष्ट भवे उत्कृष्ट स्थिति । असी सहस्र जे वास, इक-इक भव दश सहस्र वर्ष ।। ८७. जे षटवीस ठिकाण, तेहथी वनस्पति विषे । ऊपजता ने जाण, पुढवी नीं पर णाणत्ता ।। ५८. *सेवं भंते ! स्वाम जी, शत चउवीसम जाणी जी। सोलम उद्देशक तणों, वारु रीत बखाणी जी ।। चतुविशतितमशते षोडशोद्देशकार्थः ॥२४॥१६॥ ८५,८६. नवमे तु जघन्यतो विंशतिवर्षसहस्राणि उत्कर्षतस्त्वशीतिरिति । (वृ०५०८३३) ८८. सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति। (श० २४।२२९) ___सोरठा ८९. अप्प वणस्सइ मझार, उपजै स्थान छवीस नों। तास णाणत्ता धार, पृथ्वी नीं पर जाणजो॥ ९०. तेक वाऊ माय, उपजै द्वादश स्थान नों। तास णाणत्ता पाय, पुढवी नी पर जाणवा ।। बेइन्द्रिय में १२ ठिकाणां ना ऊपज, तेहनों अधिकार' ११. 'बेइन्दिया भगवंत जी! किहां थकी ऊपजतो जी? इत्यादिक यावत वलि, पूछ गोयम संतो जी॥ ९२. पुढवीकायिक हे प्रभु! बेइन्द्रिय नै विषेहो जी। जे ऊपजवा जोग्य छै, ते कितै काल स्थितिक ऊपजेहो जी? वा०-'बेइंदिया णं भंते ! कओहितो उववज्जंति ? जाव पुढवीकाइए णं भंते ! जे भविए बेइंदिएसु उववज्जित्तए इत्यादिक इहां पूछयो-बेइन्द्रिय भगवान ! किहां थकी ऊपज ? पछै जाव पुढवीकाइए णं भंते ! जे भविए इति । इहां जाव शब्द में किसा पाठ आया ? उत्तर-जे पृथ्वीकाय नै विषे ऊपज तेहनी पूछा । उत्तर नां पाठ कहिवा। जब कोई पूछ पृथ्वी नै विषे देवता पिण ऊपज छ अनं बेइन्द्रिय नै विषे देवता ऊपजता नथी तो ए पृथ्वी में ऊपज जे पाठ जाव शब्द में इहां किम आव ? तेहनों उत्तर-पृथ्वीकाय नां प्रश्नोत्तर में इम कह्यो-पृथ्वीकाय भगवान किहां थकी ऊपज ? स्यूं नारकी थकी ऊपज, के तियंच, मनुष्य, देव थकी ऊपजै? गोतम ! नारक थकी न ऊपजै । तियंच, मनुष्य, देव थकी ऊपजै, ९१. बेंदिया णं भंते ! कओहितो उववज्जति ? जाव (श० २४१२३०) ९२. पुढविक्काइए णं भंते ! जे भविए बेंदिएसु उव वज्जित्तए, से णं भंते ! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? राणा *लय : धर्म दलाली चित करें १. देखें परि. २, यन्त्र ६२-७३ श० २४, उ० १७, ढा० ४२४ १२५ Jain Education Intemational Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जो तिथंच थकी ऊपजे तो स्यूं एकेंद्रिय तिर्यंच थकी ऊपजै ? 'एवं जहा वक्कंतीए' इम जिम पन्नवणा नां व्युतक्रांत छठा पद (सू० ८२-८५) नै विषे उपपात का तिम कहिवू । पृथ्वीकाय नै विषे उपपात पन्नवणा नां छठा पद नै विषे कह्यो ते भलायो। तिम इहां पिण बेइन्द्रिय विषे उपपात छठा पद (सू० ८६) नै विषे कह्यो ते जाणवो। छठा पद नै विषे पृथ्वी में देवता ऊपज इम कह्य। अन बेइन्द्रिय नै विषे देव न ऊपज इम छठ पद कह्य । ते मार्ट इहां जाव शब्द में विरोध नथी।' (ज०स०) ९३. पृथ्वीकायिक जीव ने, पृथ्वीकाय विषेहो जी। -- ऊपजता ने लब्धि जे, पूर्वे भाखी जेहो जी॥ ९४. बेइन्द्रिय नै विषे जिका, पृथ्वीकायिक ताह्यो जी। ऊपजता में बोल नीं, लब्धि सर्व ही पायो जी ।। ९५. यावत धुर गम काल थी, जघन्य अंतर्महर्त दोयो जी। उत्कृष्ट अद्धा भव संख्या, इतो काल गतागति होयो जी ।। ९३. सच्चेव पुढविकाइयस्स लद्धी ९५. जाव कालादेसेणं जहण्णणं दो अंतोमुहुत्ता, उक्कोसेणं संखेज्जाई भवग्गहणाई-एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा। ९६. एवं तेसु चेव चउसु गमएसु संवेहो, ९७. सेसेसु, पंचसु तहेव अट्ठ भवा। ९६. इम धुर द्वितीय गमा विषे, तुर्य पंचमे संवेहो जी। जघन्य बे अंतर्मुहुर्त ही, उत्कृष्ट काल संखेहो जी ।। ९७. शेष तीजो छठो सातमो, अष्टम नवम संवेहो जी। _ तिमज जघन्य भव दोय छै, उत्कृष्ट भव अठ लेहो जी ।। सोरठा ९८. तोजे गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। अंतर्मुहर्त जेह, बार वर्ष बेइंद्रिय ।। ९९. उत्कृष्ट काल विमास, आठ भवां नों इह विधे। सहस्र अठ्यासी वास, वर्ष अष्ट चालीस फुन ।। १००. षष्ठम गम संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। अंतर्मुहुर्त जेह, द्वादश वर्षज द्वीन्द्रिये ॥ १०१. उत्कृष्टो अवधार, अद्धा अष्ट भवां तणों। अंतर्महत च्यार, वर्ष अष्टचालीस फुन ।। १०२. सप्तम गमे जगीस, बे भव अद्धा जघन्य थी। वर्ष सहस्र बावीस, अंतर्मुहूर्त अधिक फुन । १०३. उत्कृष्ट अद्धा तास, अष्ट भवां नों इह विधे। सहस्र अठ्यासी वास, वर्ष अष्ट चालीस फुन ।। १०४. अष्टम गमे जगीस, बे भव अद्धा जघन्य थी। वर्ष सहस्र बावीस, अंतर्मुहुर्त अधिक ही। १०५. उत्कृष्ट अद्धा तास, अष्ट भवां नों इह विधे। सहस्र अठ्यासी वास, अंतर्महत अधिक चिहं ।। १०६. नवमे गमे जगीस, बे भव अद्धा जघन्य थी। वर्ष सहस्र बावीस, वर्ष बारै अधिक वली ।। *लय : धर्म दलाली चित्त कर १२६ भगवती जोड़ Jain Education Intemational Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०७. उत्कृष्ट अद्धा तास, अष्ट भवां नों इह विधे । सहस्र अठचासी वास, वर्ष अष्ट चालीस फुन ।। १०८. *इम जाव चरिद्री संघात ही, चिउंगम भव संखेहो जी। __ शेष पांचूंइ गमा विषे, उत्कृष्ट अठ भव लेहो जी॥ १०८. एवं जाव चउरिदिएणं समं चउसु संखेज्जा भवा, पंचसु अट्ठ भवा। ११३. पंचिंदियतिरिक्खजोणियमणस्सेसु समं तहेव अट्ठ भवा। सोरठा १०९. पृथ्वी सात संवेह, आख्यो बेइन्द्रिय तणों। __ इम अप साथ कहेह, तेज संघाते पिण इमज ।। ११०. वायु वणस्सइ साथ, बे ते चरिद्री तणें । कहिवो एह संघात, संवेध बेइन्द्रिय तणों ।। १११. चिउं गम विषेज लेह, उत्कृष्टा संख्यात भव । फुन गम पंच विषेह, भव उत्कृष्ट थकीज अठ॥ ११२. काल आश्रयी जेह, जिका स्थिति छै जेहनी । संयोजवै करि तेह, कायसंवेधज जाणवो ।। ११३. *पंचेंद्रिय तिरियोनिका, फुन मनु योनि संघातो जी। बेइन्द्रिय में जातो थको, तिमज अष्ट भव ख्यातो जी॥ सोरठा ११४. तिरि पं. मनु कहेह, जातो बेइंद्रिय विषे । नवू ही गमा विषेह, उत्कृष्टा भव अष्ट ह ॥ ११५. *स्थिति अनैं संवेध जे, न ही गमक विषहो जी। उपयोगे करि जाणवो, वारु विधि करि जेहो जी। ११६. सेवं भंते ! स्वाम जी, शत चउवीसम केरो जी। सतरम उद्देशक तणों, आख्यो अर्थ सुमेरो जी। चतुविशतितमशते सप्तदशोद्देशकार्थः ॥२४॥१७॥ तेइन्द्रिय में १२ ठिकाणां ना ऊपज, तेहनों अधिकार' ११७. प्रभु ! तेइन्द्रिया किहां थी उपजै, ? __ इम तेइन्द्रिय ने जेहो जो। जिमज उद्देशो बेंद्री नों, तिम तेइन्द्रिय नों लेहो जी॥ ११८. णवरं इतरो विशेष छ, स्थिति अने संवेहो जी। उपयोगे करि जाणवू, इहां वृत्तिकार कहेहो जी। सोरठा ११९. तेइन्द्रिय रै मांहि, ऊपजवा वाला जिके । पुढवी प्रमुख ताहि, तसु आयु में स्थिति कही। १२०. पृथिव्यादिक नी स्थित्त, स्थिति फुन तेइन्द्रिय तणीं। तास संयोग कथित्त, संवेध कहियै इम वृत्तौ ॥ ११५. ठिति संवेहं च जाणेज्जा। (श० २४१२३१) ११६. सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति। (श० २४१२३२) .. ११७. तेइंदिया णं भंते ! कओहितो उववज्जंति ? एवं तेइंदियाणं जहेव बेइंदियाणं उद्देसो, ११८. नवरं-ठिति संवेहं च जाणेज्जा। ११९. 'स्थिति' त्रीन्द्रियेषुत्पित्सूनां पृथिव्यादीनामायुः (वृ०प० ८३४) १२०. 'संवेधं च' श्रीन्द्रियोत्पित्सुपृथिव्यादीनां श्रीन्द्रियाणां च स्थिते: संयोगं जानीयात् (वृ०प०८३४) *लय : धर्म दलाली चित्त कर १. देखें परि. २, यंत्र ६२-७३ श० २४, उ०१८, दा• ४२४ १२७ Jain Education Intemational Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२१. तदेव क्वचिद्दर्शयति- (व०प०८३४) १२१. तेहिज कायसंवेह, किहांइक देखाई अछ। आख्यो सूत्र विषेह, तृतीय गमो इण रीत सूं ॥ १२२. 'तेऊ स्थिति संग मेलवै, तेंद्रिय नी स्थिति सोई जी। तेह संवेध तीजे गमे, कहियै छै अवलोई जी। १२३. तृतीय गमे संवेध जे, उत्कृष्टो इम जाणी जी। दोय सौ अष्ट दिवस निशा, तास न्याय पहिछाणी जी ।। १२२,१२३. ते उक्काइएसु समं ततियगमे उक्कोसेणं अठ्ठत्तराई बेराइंदियसयाई, सोरठा १२४. ओधिक तेजसकाय, उत्कृष्ट स्थिति त्रिण दिन-निशा। ते चिउं भव जे आय, अहो-रात्रि द्वादश थया । १२५. जेष्ठ तेइन्द्रिय स्थित, गुणपचास दिन नै निशा। चिउं भव करी कथित, हुवै एक सय नै छिर्ने । १२४. औधिकस्य तेजस्कायिकस्य चतुर्ष भवेषत्कर्षण व्यहोरात्रमानत्वाद् भवस्य द्वादशाहोरात्राणि उत्कृष्टस्थितेश्च (वृ० १०८३४) १२५. श्रीन्द्रियस्योत्कर्षतश्चतुर्ष भवेष्वेकोनपञ्चाशन्मानत्वेन भवस्य शतं षण्णवत्यधिकं भवति (व०प०८३४) १२६. राशिद्वयमीलने चाष्टोत्तरे द्वे रात्रिन्दिवशते स्यातामिति । (वृ०प० ८३४) १२७,१२८. बेइदिएहि समं ततियगमे उक्कोसेणं अडयालीसं संवच्छराई छन्नउयराइंदियसतमन्भहियाई, १२६. बिहं मेलावियां एह, दोय सी ने अठ रात्रि-दिन । तेऊ साथ संवेह, तृतीय गमे तेइंद्रिय । १२७. *वलि बेइंद्रिय ऊपज, तेइंद्रिय मैं मांह्यो जी। तीजा गमा नै विष हिवै, कायसंवेध कहायो जी ।। १२८. तृतीय गमे उत्कृष्ट थी; अष्टचालीस वासो जी। एक सौ छिर्ने दिवस-निशा, एह अधिक सुविमासो जी॥ सोरठा १२९. वर्ष अड़ताली धार, बेइन्द्रिय चिहं भव स्थिति । तेइन्द्रिय भव च्यार, इक सय छिन्न दिवस-निशि ॥ १२९. द्वीन्द्रियस्योत्कर्षतो द्वादशवर्षप्रमाणेषु चतुर्षु भवेष्व ष्टचत्वारिंशत्संवत्सराश्चतुर्वेव त्रीन्द्रियभवग्रहणेष स्कर्षणकोनपञ्चाशदहोरात्रमानेषु षण्णवत्यधिक दिनशत भवतीति । (व०प० ८३४) १३०. तेइदिएहिं समं ततियगमे उक्कोसेणं बाण उयाई तिण्णि राईदियसयाई। १३०. तेइन्द्रिय तेइन्द्री में ऊपज, तृतीय गमे संवेहो जी। तीन सौ बाणू दिवस-निशा, उत्कृष्ट अद्धा एहो जी। सोरठा १३१. तेइन्द्रिय भव एक, गुणपचास दिन-रात्रि नों। अष्ट भवे इम लेख, त्रिण सय बाणूं दिवस-निशि ।। १३२. *एवं सर्वत्र जाणवा, चरिंद्रियादिक जेहो जी। जाव सन्नी मनु साथ ही, कहिवो तास संवेहो जी।। सोरठा १३३. चउरिद्रिय सुविचार, असन्नी सन्नी तिरि मनु । तसु स्थिति सह अवधार, तेइंद्रिय नी जे स्थिति ।। १३४. तृतीय गमे संवेह, देखाड़वै करिनै वली। षष्ठम आदि गमेह, ते संवेध पिण जाणवा ।। *लय : धर्म दलाली चित कर १३१. 'बाणउयाई तिन्नि राइंदियसयाई' ति अष्टासु त्रीन्द्रियभवैषत्कर्षणकोनपञ्चाशदहोरात्रमानेषु त्रीणि शतानि द्विनवत्यधिकानि भवन्तीति, (व०प० ८३४) १३२. एवं सब्वत्थ जाणेज्जा जाव सण्णिमणुस्स त्ति । (श० २४१२३३) १३३-१३५. चतुरिन्द्रियसंश्यसज्ञितिर्यग्मनुष्यैः सह श्रीन्द्रियाणां तृतीयगमसंवेधः कार्य इति सूचितं, अनेन च तृतीयगमसवेधदर्शनेन षष्ठादिगमसंवेधा अपि सूचिता द्रष्टव्याः, तेषामप्यष्टभविकत्वात्, (वृ. ५० ८३४) १२८ भगवती जोड़ Jain Education Intemational Jain Education Interational For Private 8 p Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३७. सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति जाव विहरइ । (श० २४१२३४) १३५. ए गम पंच विषेह, अठ भव आख्या ते भणो । वर उपयोग करेह, तसु संवेध विचारिवो।। १३६. शेष गमक त्रिहुं ख्यात, गमन पंचेंद्रिय अष्ट भव । विकलेंद्रिय संख्यात, स्थावर साथे संख भव ।। १३७. सेवं भंते ! स्वामजी, शत चउवीसम सारो जी। अष्टदशम उद्देश नों, आख्यो अर्थ उदारो जी। चतुर्विशतितमशते अष्टादशोद्देशकार्थः ॥२४॥१८॥ चरिद्रिय में १२ ठिकाणां मां ऊपज, तेहनों अधिकार' १३८. चउरिद्रिया भगवंतजी! किहां थकी उपजेहो जी ? जिम तेइंद्री उद्देश छ, तिम चउरिद्रिया लेहो जी॥ १३९. णवरं स्थिति तथा वली, संवेध प्रति जाणेहो जी। सेवं भंते ! स्वाम जी, एगुणवीसमो लेहो जी। १३८. चउरिदिया णं भंते ! कोहितो उववज्जति ? जहा तेइंदियाणं उद्देसओ तहेव चरिदियाणं वि, १३९. नवरं-ठिति संवेहं च जाणेज्जा । (श० २४१२३५) सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति । (० २४१२३६) सारा सोरठा १४०. पंच स्थावर पहिछाण. बे. ते. चउरिद्रिय वली। असन्नी तिरि मनु जाण, फन सन्नी तिर्यंच मनु । १४१. विकलेंद्रिय रे मांय, आवै बार ठिकाण नों। जघन्य गमेज पाय, गमा णाणत्ता पृथ्वीवत ।। १४२. उत्कृष्ट गमेज पाय, ते पिण पृथ्वी नी परै । असन्नी मनु जे आय, तेह विषे नहिं णाणत्तो ।। १४३. विकलेंद्रिय में आय, पंच स्थावर विकलेंद्रिय । चिहुं गम उत्कृष्ट पाय, संख्याता भव नै अद्धा ।। १४४. तीजे छठे जाण, सप्तम अष्टम नवम गम । जघन्य दोय भव आण, उत्कृष्टा भव अष्ट फन ।। १४५. विकलेंद्रिय में आय, असन्नी तिरि पंचेंद्रिय । सन्नी तिरि मनु ताय, नव गम उत्कृष्ट अठ भव ।। १४६. विकलेंद्रिय रे मांय, असन्नी मनु आवै तसु । मध्यम त्रिण गम पाय, उत्कृष्टा भव अष्ट जे।। १४७. *च्यारसी ने चउवीसमी, आखी ढाल अमंदो जी। भिक्षु भारीमाल ऋषिराय थी, 'जय-जश' हरष आणंदो जी' ।। चतुविशतितमशते एकोनविशोदेशकार्थः ॥२४॥१६॥ *लय : धर्म दलालो चित कर १. देखें परि. २, यंत्र ६२-७३ २. भगवती जोड़ की मूल प्रति में ४२४वीं ढाल की सम्पूर्ति के बाद निम्नलिखित नोंध और एक सोरठा उपलब्ध है। पांच स्थावर ५ तीन विकलेन्द्रिय ८ असन्नी तिर्यंच पंचेंद्रिय ९ सम्नी तिर्यच पचंद्रिय १. असन्नी मनुष्य ११ और सन्नी मनुष्य १२-एव १२ ठिकाणांना विकलेंद्रिय में ऊपज । त्रिण विकलेंद्रिय माय, उपज द्वादश स्थान नों। तास णाणत्ता पाय. ते पिण पृथ्वी नी पर। ढाल पूरी होने के बाद यह क्यों दिया गया ? इस सम्बन्ध में रचनाकर द्वारा कोई सकेत न देने के कारण इसे पाद टिप्पण में दिया गया है। श० २४, उ० १९, डा. ४२४ १२९ Jain Education Intemational Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ढाल : ४२५ दूहा तियंच पंचेंद्रिय में प्रथम नरक नां नेरइयां ऊपज, तेहनों अधिकार' १.पंचेंद्रिय तिरिक्खयोनिका, प्रभु ! किहां थकी ऊपजत । स्यूं नारकि थी ऊपजै, के तिरि मनु सुर थी हुँत ? २. जिन भाखं सुण गोयमा! नारकि थी पिण जेह । __ तिरि मनु सुर थी पिण तिके, ऊपजै कर्म वसेह ।। १. पंचिदियतिरिक्खजोणिया णं भंते ! कओहिता उववज्जति–कि नेरइएहितो उववज्जंति ? तिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति ? मणुस्सेहितो. देवेहितो उववज्जति ? २. गोयमा ! नेरइएहितो उववज्जंति, तिरिक्खजोणिएहितो, मणुस्सेहितो वि, देवे हितो वि उववज्जति । (श० २४१२३७) ३. जइ नेरइएहितो उववज्जति-किं रयणप्पभपुढवि नेरइएहितो उववज्जति, ४. जाव अहेसत्तमपुढविनेरइएहितो उववज्जंति ? गोयमा ! रयणप्पभपुढविनेरइएहितो उववज्जति जाव अहेसत्तमपुढविनेरइएहितो उववज्जति । (श० २४१२३८) ५. रयणप्पभपुढविनेरइए णं भंते ! जे भविए पंचिदियतिरिक्खजोणिएसु उववज्जित्तए, से णं भंते ! केवतिकालद्वितीएसु उववज्जेज्जा? ६. गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तट्ठितीएसु, उक्कोसेणं पुवकोडिआउएसु उववज्जेज्जा । (श० २४१२३९) ३. जो नारकि थी ऊपज, तो स्यं रत्नप्रभाह । पृथ्वी धुर नारकि थकी, ऊपजै स्वामीनाह ! ४. जाव अधोसप्तम मही, नारकि थी ऊपजेह ? जिन कहै साई थकी, ऊपज तिरिक्खपणेह ।। ओधिक नै ओधिक (१) *जय-जय ज्ञान जिनेंद्र नों।। (ध्रुपदं) ५. प्रभु ! रत्नप्रभा मही नारकी, पंचेंद्रिय तिर्यंच विषेह लाल रे । जे उपजवा योग्य छ, ते कितै काल स्थितिक ऊपजेह लाल रे ? ६. श्री जिन भाख जघन्य थी, अंतर्महर्त स्थितिकेह लाल रे । उत्कृष्ट पूर्व कोड़ जे, वर्षायुवंत विषेह लाल रे । सोरठा ७. नारकि मरि नैं सोय, नहिं हं तिथंच युगलियो । ते माट ए जोय, पूर्व कोड़ विषे कह्यो। ८. *प्रभु ! एक समय किता ऊपजै? इम जिम पृथ्वी मांहि लाल रे । असुरकुमारज ऊपजै, वक्तव्यता कहि ताहि लाल रे ।। ९. इमज पंचेंद्रि तिर्यच में, रत्नप्रभा नां जाण लाल रे । नारकि ऊपजता तणों, परिमाणादि पिछाण लाल रे ।। १०. णवरं विशेषज एतलो, नारकि संघयण विषेह लाल रे । पुद्गल अनिष्ट अकांत ही, जाव तिके परिणमेह लाल रे ।। ११. अवगाहना नारकि तणी, दाखी दोय प्रकार लाल रे । प्रथम अछै भवधारणी, उत्तर वैक्रिय धार लाल रे ।। ८. ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवइया उववज्जति ? एवं जहा असुरकुमाराणं वत्तव्वया, १०. नवरं-संघयणे पोग्गला अणिट्टा अर्कता जाव परिणमंति। ११. ओगाहणा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-भवधारणिज्जा उत्तरवेउव्विया य । * लय : मूंडी रे भूख अभावणी १. देखें परि० २, यंत्र ७४ १३० भगवती जोड़, Jain Education Intemational Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२. तिहां तिका भवधारणा, जघन्य आंगुल नों ताय लाल रे । असंख्यातमे भाग छ, उत्पत्ति समये पाय लाल रे ।। १३. उत्कृष्टी धनु सप्त नों, तीन हस्त नों वलि ताय लाल रे । षट आंगुल अधिकी कही, तेरम प्रतर पेक्षाय लाल रे ।। १२. तत्थ णं जा सा भवधारणिज्जा सा जहणेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, १३. उक्कोसेणं सत्त धणूई तिण्णि रयणीओ छच्चंगुलाई। इदं च त्रयोदशप्रस्तटापेक्षं । (३०५०८३९) सोरठा १४. वृत्ति विषे इम ख्यात, रत्नप्रभाई धुर प्रतर । ऊंचपणे त्रिण हाथ, पभणी देह नारकि तणीं ।। १५. साढा छप्पन्न सोय, आंगुल नी करवीज वृद्धि । प्रतर-प्रतर अवलोय, तेरम प्रतर यथोक्त है ।। १६. *उत्तर वैक्रिय छै तिहां, जघन्य थकी ते जाण लाल रे । आंगुल नौंज कहीजिय, भाग संख्यात, माण लाल रे ।। १७. उत्कृष्ट धनुष्य पनर तणी, अधिक अढाई हाथ लाल रे । भवधारणी काया थकी, ए दुगुणीज आख्यात लाल रे ।। १८. हे भगवंत ! ते जीव ने, शरीर तणों सुविचार लाल रे । स्यं संठाण परूपियो ? कहियै स्यूं आकार लाल रे ।। १९. श्री जिन भाखै गोयमा ! दाख्या दोय प्रकार लाल रे । प्रथम कही भवधारणी, उत्तरवैक्रिय धार लाल रे ।। २०.जेह तिहां भवधारणी, हंड संठाणे जाण लाल रे । उत्तरवैक्रिय जे तिहां, ते पिण हुंड संठाण लाल रे ।। १४,१५. प्रथम प्रस्तटादिषु पुनरेवम् रयणाइ पढमपयरे हत्थतियं देह उस्सयं भणियं । छप्पन्नंगुलसड्ढा पयरे पयरे य वुड्ढीओ ॥१॥ (वृ०प० ८३९) १६. तत्थ णं जा सा उतरवे उब्विया सा जहण्णेणं अगुलस्स संखेज्जइभाग, १७. उक्कोसेण पण्णरस धणूइ अड्ढाइज्जाओ रयणीओ। (श० २४१२४०) इय च भवधारणीयाऽवगाहनाया द्विगुणे ति। (वृ०५० ८४०) १८. तेसि णं भंते ! जीवाणं सरीरंगा किसंठिया पण्णता? १९. गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - भवधारणिज्जा य, उत्तरवेउब्विया य । २०. तत्थ णं जे ते भवधारणिज्जा ते हंडसंटिया पण्णत्ता। तत्थ णं जे ते उत्तरवेउव्विया ते वि हुडसठिया पण्णत्ता । २१. एगा का उलेस्सा पण्णत्ता। समग्घाया चत्तार । नो इस्थिवेदगा, नो पुरिसवेदगा, नपुसंगवेदगा। २२. ठिती जहणणं दसवाससहस्साई, उक्कोसेणं सागरो वमं । एवं अणुबंधो वि । सेसं तहेव । 'सेसं तहेव' त्ति शेष-दृष्ट्यादिक तथैव यथाऽसुरकुमाराणां। (वृ० १०८४०) २३. भवादेसेणं जहण्णणं दो भवग्गहणाई, उक्कोसेणं अट्ठ भवग्गहणाई। २४. कालादेसेण जहण्णेणं दसवाससहस्साई अंतोमुहुत्त मन्भहियाई, २५. उक्कोसेणं चत्तारि सागरोवमाई चउहि पुन्चकोडीहि अब्भहियाई, २१. एक कापोत लेश्या कही, समुद्घात धुर च्यार लाल रे । स्त्री पुं. वेद म नारकी, वेद नपुंसक धार लाल रे ।। २२. स्थिति जघन्य दश सहस्र नीं, उत्कृष्ट सागर एक लाल रे। अनुबंध पिण इम जाणवो, शेष असुरवत पेख लाल रे ।। २३. भवादेश करि जघन्य थो, बे भव ग्रहण करेह लाल रे। उत्कृष्टा अठ भव करे, हिवै तसु काल कहेह लाल रे ।। २४. काल आश्रयी जघन्य थी, वर्ष सहस्र दश जन्य लाल रे । अंतर्महतं अधिक ही, बे भव स्थिति जघन्य लाल रे ।। २५. उत्कृष्ट अद्धा अठ भवे, नारक सागर च्यार लाल रे । पूर्व कोड़ चिउं अधिक ही, उत्कृष्ट तिरि स्थिति धार लाल रे ।। २६. सेवै कालज एतलो, करै गतागति इतो काल लाल रे । ओधिक ने ओधिक गमो, दाख्यो प्रथम दयाल लाल रे ॥ २६. एवतियं काल सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा । (श० २४१२४१) *लय : मंडी रे भूख अभावणी श० २४, उ० २०, ढा० ४२५ १३१ Jain Education Intemational Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७. सो चेव जहण्णकालट्ठितीएसु उववण्णो, जघन्य नै ओधिक [२] २७. तेहिज धुर मही नारकी, द्वितीय गमे कहिवाय लाल रे । जघन्य काल स्थितिक विषे, ऊपनों पं० तिरि माय लाल रे ।। २८. जघन्य अने उत्कृष्ट थी, अंतर्महत जाण लाल रे । आयुवंत विषे ऊपज, इम भाखै जगभाण लाल रे ।। २९. शेष तिमज कहिबो सहु, ओघिक धुर गम जेम लाल रे । णवर इतरो विशेष छै, सांभलजो धर प्रेम लाल रे ।। २८. जहण्णणं अंतोमुत्तद्वितीएसु, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तट्टितीएसु। २९. अवसेसं तहेव, नवरं'अवसेसं तहेव' त्ति यथोधिकगमे प्रथमे । (वृ० प० ८४०) ३०. कालादेसेणं जहण्णेणं तहेव, ३०. काल आश्रयो जघन्य थी, तिमहिज धुर गम जेम लाल रे। वर्ष सहस्र दश नारकी, अंतर्मुहुर्त तेम लाल रे ।। ३१. द्वितीय गमे उत्कृष्ट अद्धा, नारकि सागर च्यार लाल रे । अंतर्मुहुर्त चिहुं वलि, इतो काल गतागति धार लाल रे ।। ३२. धुर बेगम ए दाखिया, अनुक्रमे करि जाण लाल रे । इम शेष गमा पिण सप्त हि, भणवा न्याय पिछाण लाल रे ।। ३१. उक्कोसेणं चत्तारि सागरोवमाइं चउहिं अंतोमुहुत्तेहि अब्भहियाई, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा। ३२. एवं सेसा वि सत्त गमगा भाणियब्वा एवं-इत्यनन्तरोक्तगमद्वयक्रमेण शेषा अपि सप्त गमा भणितव्याः, (व प० ८४०) ३३,३४. नन्ववकरणाद् यादृशी स्थितिर्जघन्योत्कृष्ट भेदादाद्ययोर्गमयो रकाणामुक्ता तादृश्येव मध्यमेsन्तिमे च गमत्रये प्राप्नोति ? इति, (वृ० ५० ८४०) ३५,३६. जहेव नेरइयउद्देसए सण्णिपंचिदिएहि समं । नेरइयाणं मज्झिमएसु तिसु गमएसु पच्छिमएसु य तिसु गमएसु ठितिनाणत्तं भवति । वा०-तथैवेहापीतिवाक्यशेषः। (वृ०प० ८४०) सोरठा ३३. जेहवी स्थितिज जाण, जघन्योत्कृष्टज भेद थी। बिहं धर गमे पिछाण, आखी जे नारकी तणीं ।। ३४. स्थिति तेहवीज सुजोय, मध्यम अंतिम त्रिहं गमे । ते लाभै नहिं कोय, तसु उत्तर कहिये हिवै ॥ ३५. "जिमहिज नारको उद्देसके, एहिज शतक नां जाण लाल रे । प्रथम उद्देशक ने विषे, आसपो ते पहिछाण लाल रे ॥ ३६. तिरि सन्नी पंचेंद्रि संघात ही, नारकी ने जे चीन लाल रे। मध्यम तीन गमा विषे रे, अंतिम गमके तीन लाल रे ।। वा० -तिम इहां पिण कहिवो, एहवू पाठ में नथी कह्यो । ते इति वाक्य शेष ए वचन शेष रह्यो जे। सोरठा ३७. त्रिण गम मध्यभकेह, रत्नप्रभा नारकि तणीं । वर्ष सहस्र दश जेह, स्थिति कही ते जाणवी ।। ३८. अंतिम तीन गमेह, जघन्य अनें उत्कृष्ट थी। . स्थिति इक सागर जेह, ए स्थिति नों नानापणों ।। ३९. *शेष तिमज कहिवो सहु, सर्वत्र सगले स्थान लाल रे। स्थिति अनै संवेध जे, उपयोगे करि जान लाल रे॥ वा० -प्रथम नरक सूं नीसरी बीसमा दंडक में ऊपज, तिणरा ओधिक गमे अवगाहणा जघन्य आंगुल रो असंख्यातमे भाग, उत्कृष्ट ७ धनुष्य ३ हाथ ६ आंगुल कही। जघन्य ३ गमे अवगाहणा द्वारे ओधिक नै भलायो। इम भलावण के लेखे जघन्य १० हजार वर्ष नां नेरइया नी अवगाहणा जघन्य आंगुल ३९. सेसं तं चेव । सव्वत्थ ठिति संवेहं च जाणेज्जा २-९। (श० २४:२४२) *लय : मूंडी रे भूख अभावणी १३२ भगवती जोड़ Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रै असंख्यातमे भाग, उत्कृष्ट ७ धनुष्य ३ हाथ ६ आंगुल ह्र । अन संघयणी तथा अन्य ग्रन्थे पहिलं पाथरै उत्कृष्ट ३ हाथ नी कही । ते सूत्र नों वचन तो निसंदेह अन प्रकीर्ण की बात सूत्र सूं मिल ते प्रमाणे । अन पाथरै पायरै स्थिति परमाण अवगाहणा हुवै तो पन्नवणा पद (२१ सूत्र ७०) में पहिले, दूजे देवलोके ७ हाथ नीं अवगाहणा कही । तीजे, चोथे देवलोके ६ हाथ नी कही। पांचमे छठे ५ हाथ नीं कही । ७ में, ८ में देवलोके ४ हाथ नीं कही। ९ में, १० में, ११ में, १२ में देवलोके ३ हाथ नी कही । नव ग्रीवेयक में २ हाथ नीं कही । पांच अन्तर विमान में १ हाथ नी । पांचमा, छठा देवलोक रे बीच में असंख्याता जोजन नों आंतरो अनै अवगाहणा में फरक न कह्यो । अन स्थिति पांचमे जघन्य ७ सागर, उत्कृष्ट १० सागर । छठे जघन्य १० सागर, उत्कृष्ट १४ सागर । स्थिति में एतलो फरक । अनें अवगाहणा पंचम कल्प नां देव नी ५ हाथ नी षष्टम कल्प ना देव नी ५ हाथ नी । अनै सघयणी में प्रतर-प्रतर दीठ अवगाहणा में अंतर का, ते माट प्रकीर्ण की बात बहुश्रुत विचारी लीजो। इहां स्थिति ते नारकीनी प्रथम ३ गमे जघन्य १० सहस्र वर्ष, उत्कृष्टी १ सागर । मध्यम तीन गमे जघन्य अनै उत्कृष्ट थी १० सहस्र वर्ष । छहले तीन गमे जघन्य अनै उत्कृष्ट थी १ सागर स्थिति नों घणी नेरइयो पंचेंद्रिय तिर्यच में ऊपजै । हिवै कायसवेध जूओ-जूओ कहै छ । तिण में दोय गमे कायसवेध पूर्वे कह्योज छ। सोरठा ४०. तीजे गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थो। वर्ष सहस्र दश जेह, कोड़ पूर्व तिरि पं. स्थिति ।। ४१. उत्कृष्टो अवधार, अद्धा अष्ट भवां तणों। नारकि सागर च्यार, कोड़ पूर्व चिऊं अधिक तिरि ।। ४२. चउथे गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। वर्ष सहस्र दश जेह, अंतमहत अधिक फुन ।। ४३. उत्कृष्टो अवधार, अद्धा अष्ट भवां तणों। ___ वर्ष चालीस हजार, तिरि भव पूर्व कोड़ चिउं ।। ४४. पंचम गम संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। वर्ष सहस्र दश जेह, अंतमुंहूत्तं अधिक फुन ।। ४५. उत्कृष्टो अवधार, अद्धा अष्ट भवां तणों । __ वर्ष चालीस हजार, अंतर्मुहूर्त च्यार फुन ।। । ४६. छठे गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। वर्ष सहस्र दश जेह, कोड़ पूर्व तिरि भव स्थिति ।। ४७. उत्कृष्टो अवधार, अद्धा अष्ट भवां तणों। ___वर्ष चालीस हजार, पूर्व कोड़ चिउं तिरि भवे ।। ४८. सप्तम गम संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। सागर एक कहेह, अंतमहत्तं अधिक फुन ।। ४९. उत्कृष्टो अवधार, अद्धा अष्ट भवां तणों। नारकि सागर च्यार, कोड़ पूर्व चिउं तिरि भवे ।। ५०. अष्टम गम संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। सागर एक कहेह, अंतमहत तिरि भवे ।। श. २४, उ० २०, ढा. ४२५ १३३ Jain Education Intemational Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१. उत्कृष्ट अवधार, कहि सागर प्यार ५२. नवम गमे संवेह, बे सागर एकज तेह, ५३. उत्कृष्टो अवधार, कहिये सागर या पूर्व पूर्व ५८. भवधारणी तियंच पंचेंद्रिय में दूसरी स्यूं खट्टी नरक नां नेरइया ऊपजे, तेहनों अधिकार' ५४. * प्रभु ! सक्करप्रभा नां नारका, तिर्यंच पंचेंद्री विषेह लाल रे । ऊपजवा ने योग्य छै, इत्यादिक पूछेह लाल रे ।। ५५. इम जिम रत्नप्रभा तणां, नव गम भाख्या ताय लाल रे । सक्करप्रभा विषे अपि, तिमहिज नव गम पाय लाल रे ॥ ५६. नवरं तनु अवगाहना, जिम ओगाहण संठान लाल रे । पनवण पद इकवीसमे, ते सामान्य थी इम जाण लाल रे ॥ अदा अष्ट अंतर्महुतं चि भवां तणों। अधिक || थी । कोज अधिक फुन ॥ अष्ट भवां तणों । कोडज चिउं तिरि ॥ ५७. सप्त धनुष्य त्रिण हाथ, षट शेष नरक षट ख्यात, ६०. द्वितीयादि नरकेह ते मार्ट इम लेह, भव अद्धा जघन्य अद्धा चकीज, सानूं मही कहीज, सहस्र *लय : मूंडी रे भूख अभावणी १. देखें परि. २, यंत्र ७५ ७९ १२४ भगवती जोड़ सोरठा आंगुल उत्कृष्ट धुर । दुगुन- दुगुण भवधारणी ॥ ५९. * नियमा तीनज ज्ञान नीं, समदृष्टि में होय लाल रे । नियमा तीन अज्ञान नी मिध्याती में जोव लाल रे || दुगुणी धनुष्य उत्तरक्रिय है तमतमा ॥ ६१ *स्थिति तथा अनुबंध जे पूर्वे भाख्यो चीन लाल रे जघन्य एक सागर तणों, उत्कृष्ट सागर तीन लाल रे ।। ६२. एवं जे नव ही गमा, कहिया उपयोगे लाल रे इम यावत छठी मही, णवरं विशेष एह लाल रे ॥ ६३. अवगाहना लेश्या स्थिति, अनुबंध में संदेह लाल रे । द्वितीयादिक छठी विषे, जे छै ते जाणेह लाल रे ।। सोरठा सन्नी थकीज ऊपजे । नियमा तीन अज्ञान नीं ॥ तिच पंचेंद्रिय में सातवीं नरक न रहा ऊनं तेनों अधिकार ६४. तल सप्तम पृथ्वी तणां, नारक प्रभुजी ! जेह लाल रे । ऊपजवा ने जोग्य जे, इत्यादिक पूछेह लाल रे ।। ६५. इमहिज निश्चै नव गमा, कहिवा णवरं एह लाल रे । अवगाहना लेश्या स्थिति, अनुबंध प्रति जाणेह साल रे ।। ५४. सक्करप्पभापुढविनेरइए णं भंते ! पंचिदियतिरिक्खजोगिए उति ? वे भरिए ५५. एवं जहा रयणप्पभाए नव गमगा तहेव सक्कर पभाए fa, ५६. नवरे सरीरोगाणा जहा ओवाहमसंठाणे ५७. सत्त धणु तिन्निरयणी छच्चेव य अंगुलाई उच्चत्तं । पढमाए पुढवीए विउणा विठणं प सेसासु । ( वृ० प० ८४० ) ५९. तिष्णि नाणा तिष्णि अण्णाणा नियमं । ६०. ' तिन्नि णाणा तिन्नि अन्नाणा नियमं ति द्वितीयादि सभ्य एवोत्पद्यन्ते ते च विज्ञानात्यज्ञाना वा नियमाद् भवन्ति, (बु०प०८४०) ६१. विभणिया । ६२. एवं नव विगमगा उवजुंजिऊण भाणियव्वा १-९ । एवं मानवी ६३. नवरं - ओगाहणा-लेस्सा-ठिति अणुबंधा संवेहो य जाणियव्वा । ( ० २४२४३) ६४. महेत्तमवीरइए गं भंते! जे भनिए पनिदियतिखियो उत्ति ? ६५. एवं चैव नर गमना नंबर - ओबामा-लेस्साठिति प्रधानापियवा Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीन कथीन ६६. कायसंवेध भव आश्रयो जघन्य थकी भव दोष लाल रे । प्रथम भव नारक तणों, बीजो तिरि पं. होय लाल रे ।। ६७. उत्कृष्टा षट भव हुवै, नारक नां भव पंचेंद्रिय तियंच नां, ए पिण तीन ६८. काल आश्रयो जघन्य थी, बावीस सागर अंतर्मुहूर्त्त अधिक ही, जघन्यायू भव दोय ६९. उत्कृष्ट षट भव आश्रयी, छासठ सागर जोय पूर्व कोड़ज त्रिण वली, अधिक हुवै अवलोय सोरठा होय लाल रे । साल रे । लाल रे । लाल रे ॥ लाल रे । लाल रे ॥ छे भव नां काल वांछघो छै उत्कृष्टी वांछी स्थिति करिकै स्थिति प्रति पूर्व कोड़ में सागर नरक कोडज तीन ई ॥ स्थिति | सागर भोगवी । कोड़ि ने आउ || नों । ७०. छासठ सागर ख्यात, इहां त्रिण बहुलपणों आख्यात, तेहिज ७१. पिण भव नीं जे स्थित, बहु भव काल कथित, जघन्य ७२. नरक सप्तमी मांय, जघन्य मरि तियंचज थाय ७३. इम त्रिण वार करेह, छासठ फुन तिर्यंच भवेह, पूर्व ७४. जो उत्कृष्ट स्थिति ताय, तेतीस तिरि पंचेंद्रिय पंचेंद्रिय थाय, ७५. तो उपदे वार, पूर्व इम छासठ सागर हुवे । पूर्व पूर्व कोड़ि के धार तृतीय कोडी न ७६. उत्कृष्ट स्थिति करि एम, काल अनें भव अल्प तिणसूं आख्यो तेम, घुर स्थिति करि बहु भव अद्धा ॥ ह्व' । इहां ॥ नथी । इहां ॥ भोगवी । आउ 112 , ७७. *सेवे कालज एतलो करें गति आगति इतो काल लाल रे । ओषिक ने ओधिक गमो दाखयो प्रथम दयाल लाल रे || ७८. पहिला घट गम में विषे जघन्य थकी भव दोय लाल है। उत्कृष्ट षट भव हुवे, न्याय 1 विचारी जोय लाल रे ।। लाल रे । दोय ७९. छेहला तीन गमा विषे, जघन्य करं भव उत्कृष्टा चिउं भव करें, उत्कृष्ट गमके सोय लाल रे ।। ८०. लब्धि नवूं ही गमा विषे, प्रथम गमे जिम पेख लाल रे । आख्यो जिम कहिवो इहां, णवरं स्थिति नो विशेख लाल रे ।। सोरठा ८१. त्रिण अधिक गम इष्ट, फुन मध्यम त्रिण गम स्थिति । जघन्य अने उत्कृष्ट, बावीस सागर न कही ॥ ८२. अंतिम त्रिणगम दीस, जघन्य अने उत्कृष्ट फुन । स्थिति सागर तेतीस, ते पं. तिरि में ऊपजं ॥ *लय : मूंडी रे भूख अभावणी ६६. संवेहो भवादेसेणं जहण्णेणं दो भवग्गहणाई, ६७. उक्कोसेणं छम्भवग्गहणाई । ६८. कालादेसेणं जहणणं अंतमुत्तमम्भहियाइ, ६९. उक्कोसेणं छावट्ठि सागरोवमाई तिहि पुव्वकोडीह अम्महिवा बावीसं सागरोपमा ७०.७१ को पा सागरोपमाई' इत्यादि ह भवानां कालस्य च बहुत्वं विवक्षितं तच्च जघन्यस्थितिकत्वे नारकस्य लभ्यत इति, ( वृ० प० ८४० ) ७२.७२ द्वावितिसागरोपमायुर्नारको भूत्वा पञ्चेन्द्रिय तिर्यक्षु पूर्व कोट्यायुर्जातः एवं वारत्रये षट्षष्टिः सागरोपमाणि पूर्व कोटीत्रयं च स्यात् । ( वृ० प० ८४० ) ७४-७६. यदि चोत्कृष्ट स्थितिस्त्रयस्त्रि गत्सागरोपमायुनरको भूत्वा पूर्वकोटघायुः पञ्चेन्द्रियतिर्यभूत्पद्यते सदा वारइयमेवमुत्पत्तिः स्यात् ततश्च षट्षष्टिः सागरोपमाथि पूर्वस्यात् तृतीया तिर्यग्भवतम्बधपूर्वकोटीन इति नोकृष्टता (go to exo) भवानां कालस्य च स्यादिति । ७७. एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा । ७८. आदिलए मु वि गमएसु जहणेणं दो भवन्यहणाई, उनकोसेणं छ भवग्गणाई | ७९. पच्छिल्लएसु तिसु गमएसु जहणेणं दो भवग्गहणाई, उक्कोसेणं चत्तारि भवग्गहणाई । ८०. लद्धी नवसु वि गमएसु जहा पढमगमए, नवरं ठितीविसेसो । श० २४, उ० २०, डा० ४२५ १३५ Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२. द्वितीय गये काल आथवी, जघन्य धकी कहिवाय लाल रे । बावीस सागर नारकी अंतर्मुहूर्त्त अधिकाय लाल रे । ८४. उत्कृष्ट छासठ उदधि ही, नारक नां भव तीन लाल रे । त्रिण अंतर्मुहुर्त तिरि इतो काल गतागति चीन लाल रे ।। ८५. तृतीय गमा विषे जघन्य थी, बावीस सागर जोय लाल रे । पूर्व कोड़ज अधिक हो, बे भव अद्धा होय लाल रे । ८६. उत्कृष्ट छास उदधि ही, पूर्व कोड़ज तीन लाल रे । त्रिण भव नारक भव स्थिति, ८७. तिरि भव तीन कथीन लाल रे ।। तुर्य गमा विषे जघन्य थी, वे भव अद्धा ताय लाल रे । बावीस सागर जाणवो अंतर्मुहुर्त अधिकाय लाल रे ।। ८८. उत्कृष्ट षट भव आश्रयी, छासठ सागर ताय लाल रे । पूर्व कोडज त्रिण बली, काल वांदो अधिकाय लाल रे ।। ८९. पंचम गमा विषे जघन्य थी, बावीस सागर जन्य लाल रे । अंतर्मुहतं अधिक ही, वे भव स्थिति जघन्य लाल रे ।। ९०. उत्कृष्ट अद्धा एतलो. षट भव नों इम चीन लाल रे । छासठ सागर जाणवो अंतर्मुहूर्त तीन लाल रे ।। ९१. छठा गमा विषे जघन्य थी, नारक उदधि बावीस लाल रे । पूर्व कोडज तिरि भवे, वे भव अद्धा जगीस लाज रे ॥ ९२. उत्कृष्ट छासठ उदधि हो, पूर्व कोड त्रिण इष्ट लाल रे । त्रिण भव नारक जघन्य स्थिति, तिरि भव त्रिण उत्कृष्ट लाल रे ।। ९३. सप्तम गमके जघन्य थी, नारक उदधि तेतीस लाल रे । अंतर्मुहूर्त तिरि भवे बे भव काल जगीस लाल रे ॥ ९४. उत्कृष्ट उदधि ही फोड़ पूर्व वे होय लाल रे नारक नो भव से करें तिर्यच भव पिग दो लाल रे ।। ९५. अष्टम गमके जघन्य थी, नारक उदधि तेतीस लाल रे । अंतर्मुहुर्त तिरि भवे बे भव काल जगीस लाल रे ।। ९६. उत्कृष्ट खास उदधि ही अंतर्मुहूर्त वे जन्य लाल रे । जेष्ठायु बे भव नारकि तिरि भव दोय जघन्य लाल रे ॥ ९७. नवमे गमे जघन्य थी, तेतीस सागर इष्ट लाल रे । पूर्व कोज अधिक ही, बे भव स्थिति उत्कृष्ट लाल रे ॥ ९. उत्कृष्ट छासठ उदधि ही, कोड़ पूर्व वे इष्ट लाल रे । ९८. उत्कृष्ट बे भव नारकी, तिरि बे भव उत्कृष्ट लाल रे ।। १९. सेवं कालज एतलो करें गति आगति इतो काल लाल रे । उत्कृष्ट ने उत्कृष्ट गमो दाख्यो नवम दयाल लाल रे ।। १००. पडवीसम देश बीसमो, चिडं सौ पचीसमी ढाल लाल रे । भिक्षु भारीमात ऋषिराव थी, , 'जय - जश' मंगलमाल लाल रे ॥ *लय : मूंडी रे भूख अभावणी १३६ भगवती जोड़ 1 ८३. कालादेशी व वितियगमएस जो बावीस सागरोपमाई अंतीमुत्तमम्भहियाई ८४. उक्को छाट्ठ सागरोवमाई तिहि अंतोमुहुतेहि अमहिया एवं काल सेवा एवतियं काल गतिरागति करेज्जा । ५. बावीस सागरोपमाई पुचकोडीए अन्भहियाई, ८६. उक्कोसेणं छाट्ठ सागरोवमाई तिहि पुण्वकोडीहि हवाई " ८७. चउत्थगमए जहणेणं बावीसं सागरोवमाई अंतोमुत्तमनहिवाई ८८. उक्कोसेणं छाव सागरोवमाई तिहि पुञ्चकोडी हिं अम्महिवाई ८९. पंचमगमए जहणेणं बावीसं सागरोवमाई अंतोमुहुत्तमन्महिवाई ९०. सागरोनाई तिहि अंतोहि अम्भहियाई । ९१. गमजणं बावीस सागरीबमाई पुज्नकोडीह अमहियाई । ९२. उस्को सागरोपमा तिहि पुनको अमहियाई । ९३. सत्तमगमए जहणेणं तेत्तीस सागरोवमाई अंतोमुहुत्तमम्भहियाइ, ९४. उक्कोसेणं छा सागरोवमाइं दोहि पुव्वकोडीहि अब्भहिवाई | ९५. अद्रुमगमए जहणेणं तेत्तीसं सागरोवमाई अंतोमुहुत्तमन्महिपाई ९६. उसामा दोहि तोह अमहियाई । ९७. नवमगमए जहण्णेणं तेत्तीसं सागरोवमाई पुग्वकोडीह माहिवाई, ९८. उक्कोमेणं छावट्ठि सागरोवमाई दोहि पुण्वकोडीह अन्भहियाई, ९९. एवतियं काल सेवेण्या एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा १।९ । (१०२४।२४४) Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ढाल : ४२६ १. जइ तिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति-कि एगिदियतिरिक्खजोणिएहितो? . २. एवं उववाओ जहा पुढविकाइयउद्देसए दूहा १. जदि तिरिक्खयोनिक थकी, ऊपजै तिरि-पं. मांय । तो स्यं एकेंद्रिय तिरि-योनिक थी उपजाय? २. कहिवो इम उपपात जे, जिम पृथ्वी उद्देस । तेह विषे आख्यो तिमज, वारू विधि सुविशेष ॥ तियंच पंचेंद्रिय में पृथ्वीकाय ऊपज, तेहनों अधिकार' _ *गोयम नां प्रश्न भला ।। (ध्र पदं) ३. जाव पृथ्वीकायिक प्रभु ! हो, तिरि पंचेंद्री विषेह । जे ऊपजवा जोग्य छै हो, ते कितै काल स्थितिके उपजेह ? ४. श्री जिन भाखै जघन्य थी हो, अंतर्मुहर्त स्थितिकेह । उत्कृष्ट पूर्व कोड़ में हो, आयु विषे उपजेह ।। ३. जाव (श. २४।२४५) पुढविकाइए णं भंते ! जे भविए पंचिदियतिरिक्खजोणिएसु उववज्जित्तए, से णं भंते ! केवतिकालद्वितीएसु उववज्जेज्जा ? ४. गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तद्वितीएसु, उक्कोसेणं पुवकोडी-आउएसु उववज्जेज्जा। (श० २४१२४६) ५. ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवतिया उव वज्जति ? एवं परिमाणादीए अणुबंधपज्जवसाणा ६. जच्चेव अप्पणो सट्टाणे वत्तव्वया ७. सच्चेव पंचिदियतिरिक्खजोणिएसु वि उववचन माणस्स भाणियव्वा, नवरं८. नवसु वि गमएसु परिमाणे जहण्णेणं एकको वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेज्जा वा उववज्जति । ५. हे प्रभुजी ! ते जोव रा हो, इत्यादिक इम जाण । परिमाण आदि देई करी हो, अनुबंध पर्यवसाण ।। ६. पृथ्वीकायिक पोता तणां हो, स्व स्थाने उपपात । पृथ्वी विषे उपजता तणे हो, वक्तव्यता आख्यात ।। ७. तेहिज पंचेंद्री तिर्यंच में हो, पृथ्वीकाय संपेख। ऊपजता में आखिय हो, णवरं इतरो विशेख ।। ८. ए नव ही गमा नै विषे हो, परिमाण जघन्य सुइष्ट । एक दोय त्रिण ऊपज हो, संख असंख उत्कृष्ट ।। सोरठा ९. पृथ्वी पृथ्वो मांहि, परिमाण द्वारे तिहां। समय-समय प्रति ताहि, असंख ऊपज इम कह्यो ।। १०. इहां जे पृथ्वीकाय, ऊपजे पं. तिरि नै विषे । जघन्य थकी कहिवाय, एक दोय त्रिण ऊपजै ।। ११. *वलि न ही गमा नै विषे हो, कायसंवेध द्वारेह । जघन्य थकी भव बे करै हो, उत्कृष्टा अठ लेह ।। सोरठा १२. पृथ्वी पृथ्वी मांय, ऊपजतो संवेध जे। प्रथम द्वितीय गम पाय, फून गम चउथे पंचमे ॥ १३. ए चिउं गमेज संच, उत्कृष्टा असंख्यात भव । शेष गमे जे पंच, उत्कृष्टा अठ भव कह्या ॥ ९,१०. केवलं तत्र परिमाणद्वारे प्रतिसमयमसंख्येया उत्पद्यन्त इत्युक्तं इह त्वेकादिरिति, (वृ० प० ८४०) ११. भवादेसेण वि नवसु वि गमएसु जहणेणं दो भवग्गहणाई, उक्कोसेणं अट्ठ भवग्गहणाई। १२-१४. तथा पृथिवीकायिकेभ्यः पृथिवीकायिकस्योत्पद्य मानस्य संवेधद्वारे प्रथमद्वितीयचतुर्थपञ्चमगमेषस्कर्षतोऽसंख्यातानि भवग्रहणान्युक्तानि शेषेषु त्वष्टी भवग्रहणानि इह पुनरष्टावेव नवस्वपीति । (वृ०प० ८४०) 'लय : राम को सुजश घणो १. देखें परि. २, यंत्र ८१ श० २४, उ० २०, डा० ४२६ १३७ Jain Education Interational Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ताय, संवेध उत्कृष्टा कहिवाय, अठ भव १४. इहां नवं गम १५. शेष संघयण संठाण, प्रमुख पृथ्वी पृथ्वी में जाण, ऊपजता द्वार विषे बली। ग्रहणज आखिये || बोल अनुबंध नँ तिम लग । वहां ॥ । १६. * संवेधे काल आधवी हो, पृथ्वीकायिक जेह आश्रयी वलि सन्नी पंचेंद्रिय तिर्यंच नैं हो, कहिवूं स्व स्थिति करेह ॥ सोरठा १७. प्रथम गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी । अंतर्मुहूर्त्त बेह, इक महि बीजो पं. तिरि ॥ अद्धा अष्ट १८. उत्कृष्ट अवधार, भवां वर्ष अठासी हजार पूर्व कोज व्यार १९. बीजे गमे संदेह, वे भव अद्धा जघन्य अंतर्मुहूर्त बेह, पृथ्वी पं. तिरि जघन्य २०. उत्कृष्ट अवधार, अद्धा अष्ट भवां वर्ष अठपासी हजार, अंतर्मुहूर्त प्यार फुन । २१. तीजे गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी । अंतर्मुहूर्त जेह, कोड़ पूर्व तिरि जेष्ठ स्थिति ॥ २२. उत्कृष्टो अवधार, अद्धा अष्ट भवां तणों । वर्ष अठघासी हजार पूर्व कोड़ज प्यार फुन । २३. उये गमे संदेह मे भव अद्धा जघन्य थी । अंतर्मुहूर्त बेह, पृथ्वी पं. तिरि जयन्य स्थिति ॥ २४. उत्कृष्टो अवधार, अद्धा अष्ट भवां तणों । अंतर्मुहूर्त च्यार, प्यार पूर्व कोड़ज चिउं तिरि ।। २५. पंचम गमे संवेह, वे भव अद्धा जघन्य थी । अंतर्मुहूर्त बेह जघन्य स्थिति बिहं भव २६. उत्कृष्ट काल प्रगट, अष्ट भवां नों इह अंतर्मुहूर्त अठ, चिउं भव पृथ्वी चिउं २७. षष्ठम गम संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी । अंतर्मुहूर्त जेह, कोड़ पूर्व तिरि जेष्ठ स्थिति ॥ २८. उत्कृष्ट अवधार, अद्धा अष्ट भवां तणों । अंतर्मुहूर्त प्यार पूर्व कोहज प्यार तिरि ॥ तथीं । विधे । तिरि ॥ * लय : राम को सुजश घणो १३८ भगवती जोड तणों । फुन ॥ थी। स्थिति ॥ तणों । २९. सप्तम गम संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी सहस्र बावीस वर्षे, अंतर्मुहूर्त अधिक फुन ।। ३०. उत्कृष्टो अवधार, अद्धा अष्ट भवां तणों । वर्ष अठचासी हजार, पूर्व कोज प्यार फुन । ३१. अष्टम गमे जगीस, बे भव अद्धा जघन्य थी । वर्ष सहस्र बावीस, बावीस अंतर्मुहूर्त अधिक फुन ।। ।। १५. सेसं तं चैव । १६. कालादेसेणं उभओ ठितीए करेज्जा १-९ । ( ० २४०२४७) १७. प्रथमे गये 'कानादेसेणं जहने दो संतोत्ताई' ति पृथिवीत्पन्द्रियक बेति (१० १० ८४०) १८. उत्कर्षतोऽष्टाशीतिर्वर्षसहस्राणि पृथिवी सत्का नि तश्व पूर्वकोदयः द्रका, (बु०प०८४.) Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५. जइ आउक्काइएहितो उवबज्जति ? ३६. एवं आउक्काइयाण वि। एवं जाव चउरिदिया उववाएयव्वा, वा०-यथा पृथिवीकायिकेभ्यः पंचेन्द्रियतियाक्षत्पद्यमानानां जीवानां लब्धिरुक्ता तथैवाप्कायादिभ्यश्चतुरिन्द्रियान्तेभ्य उत्पद्यमानानां सा वाच्येति । ३७. नवरं-सव्वत्थ अप्पणो लद्धी भाणियव्वा । ३२. उत्कृष्टो अवधार, अद्धा अष्ट भवां तणों । वर्ष अठ्यासी हजार, अंतर्मुहर्त च्यार तिरि ।। ३३. नवमे गमे विचार, बे भव अद्धा जघन्य थी। वर्ष बावीस हजार, कोड़ पूर्व तिरि जेष्ठ स्थिति ।। ३४. उत्कृष्टो सुविमास, अद्धा अष्ट भवां तणों । सहस्र अठचासी वास, पूर्व कोड़ज च्यार तिरि ।। तिर्यंच पंचेंद्रिय में अपकाय स्यूं च उरिद्रिय तक ऊपजे, तेहनों अधिकार' ३५. *जो कर अपकायिक थकी हो, पंचेंद्री तिर्यंच विषेह । इत्यादिक प्रश्नोत्तर तणी हो, आगल बात कहेह ।। ३६. इम अपकाइया पिण जाणवा हो, इम जाव चरिद्रिया जाण । ऊपजे पं. तिरि नै विषे हो, ते कहिवा सर्व पिछाण ।। वा०-जिम पृथ्वीकाय ना जीव मरी पंचेंद्रिय तियंच नै विषे ऊपज ते कह्या, तिम अपकायिक थकी जाव चउरिद्रिय थकी पंचेंद्रिय नै विष ऊपज ते कहिवा। ३७. गवरं इतरो विशेष छ हो, सर्वत्र सगलै स्थान । भणवी लब्धिज आपणी हो, पूर्वली पर जान ।। सोरठा ३८. सर्वत्र कहितां जेह, अप जावत चरिद्री थी। पं. तिथंच विषेह, तिण में ऊपजतां तणे ।। ३९. अपणो कहितां एह, अपकायादिक नी लद्धी । परिमाणादिक जेह, भणवी जेहनी छै तिका ।। ४०. तिका लब्धि सुविचार, पूर्व सूत्र समूह थी। दिल माहै अवधार, वारू विधि करि जाणवी ।। ४१. *नव ही पिण गमा नै विषे हो, जे भव आश्रयी जाण । जघन्य थकी भव दोय छै हो, उत्कृष्ट अष्ट पिछाण ।। ४२. काल आश्रयी इह विधे हो, अप प्रमुख नैं माण । वलि पंचेंद्री तिर्यंच में हो, बिहं नी स्थिति करि जाण ।। सोरठा ४३. अथ हिव आगल जेह, वाक्य उक्त तेहिज अर्थ । अतिही प्रगटपणेह, कहिये छै ते सांभलो। ४४. *जिम पृथ्वीकायिक थकी हो, तिरि पंचेंद्री विषेह । ऊपजता ने कही लद्धी हो, सगलै गमा विषे जेह ।। ४५. तिमहिज अपकायिक थकी हो, जाव चरिद्री थी ताय । तिरि पंचेंद्रिय – विषे हो, लब्धि ऊपजतां – पाय ।। ३८. सर्वत्राकायिकादिभ्यश्चतुरिन्द्रियान्तेभ्य उद्वृत्तानां पंचेंदियतिर्यसूत्पादे (वृ०प०८४०) ३९. 'अप्पणो' ति अप्कायादेः सत्का लन्धिः परिमाणादिका भणितव्या, (व०प० ८४०) ४०. सा च प्राक्तनसूत्रेभ्योऽवगन्तव्या, (वृ०. प. ८४०) ४१. नवसु वि गमएसु भवादेसेणं जहणेणं दो भवग्गह णाई. उक्कोसेणं अट्ठ भवग्गहणाई। ४२. कालादेसेणं उभओ ठिति करेज्जा सम्वेसि सव्व गमएसु । ४३. अथानन्तरोक्तमेवार्थ स्फुटतरमाह (व०प०८४०) ४४. जहेब पुढविक्काइएसु उववज्जमाणाणं लद्धी ४५. तहेव सब्वत्थ १. देखें परि. २, यंत्र ८२-८८ *लय : राम को सुजश घणो श० २", उ०२०, ढा०४२६ १३९ Jain Education Intemational Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६. ठिति संवेहं च जाणेज्जा १-९। .. ४७. जइ पंचिदिचतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति कि सणिपंचिदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति ? असण्णिपंचिदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति ? ४८. गोयमा ! सण्णिपंचिंदिय, असणिपंचिदिय, भेओ ४६. स्थिति अनै संवेध नै हो, नई गमा विषेह । उपयोगे करि जाणवू हो, वारू जिन वचनेह ।। ४७. जो तिरि पंचेंद्रिय थी ऊपजै हो, तिरि पंचेंद्री विषेह । स्यूं सन्नी पंचेंद्री तिर्यंच थी हो, के असन्नी पं. तिरि थी जेह ।। ४८. जिन कहै सन्नी पं. तिरि थकी हो, असन्नी पं. तिरि थी सोय । तिरि पंचेंद्री में ऊपजै हो, तास भेद इम जोय ॥ ४९. जिम पृथ्वीकायिक विषे हो, तिरि पंचेंद्री संवेद । भेद कह्या ऊपजतां थकां हो, तिमहिज कहिवा भेद ।। तियंच पंचेंद्रिय में असन्नी तिर्यंच पंचेंद्रिय ऊपजे, तेहनों अधिकार' ५०. जाव असन्नी पंचेंद्री तिरि हो, हे भगवंत जी! तेह । जे ऊपजवा योग्य छै हो, तिरि पंचेंद्री विषेह ।। ४९. जहे व पुढविक्काइएसु उववज्जमाणस्स ५१. ते प्रभु ! केतला काल नी हो, स्थितिक विषे उपजेह ? श्री जिन भाखै जघन्य थी हो, अंतर्मुहर्त लेह ।। ५२. उत्कृष्ट पल्योपम तणे हो, असंख्यातमे भाग । आयुवंत विषे ऊपजै हो, एह युगलिया माग ।। ५०. जाव (श० २४१२४९) असण्णिपंचिदियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए पंचिदियतिरिक्खजोणिसु उववज्जित्तए, ५१. से णं भंते ! केवतिकालट्रितीएस उववज्जेज्जा ? ___ गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तट्टितीएसु, ५२. उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्ज इभागट्ठितीएसु उववज्जेज्जा। (श. २४।२५०) सोरठा ५३. इह वचने करि जोय, असन्नी पं. तिथंच जे । __काल करीने सोय, युगल तिर्यच हुवै जिके ।। ५४. *ते प्रभु ! असन्नी पं. तिरि हो, इत्यादि अवशेख । परिमाणादिक द्वार नी हो, वक्तव्यता इम लेख ।। ५५. जिमहिज पृथ्वी नै विषे हो, असन्नी पंचेंद्री ताहि । ऊपजता नैं जे कह्यो हो, पृथ्वी उद्देसक मांहि ।। ५३. अनेनासंज्ञिपंचेन्द्रियाणामसंख्यातवर्षायुष्केषु पंचेन्द्रिय तिर्यक्षुत्पत्तिरुक्ता (व० प०८४०) ५४,५५. ते णं भते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जति ? अवसेसं जहेव पुढविक्काइएसु उववज्जमाणस्स असण्णिस्स 'अवसेसं जहेवे' त्यादि, अवशेष-परिमाणादिद्वारजातं यथा पृथिवीकायिकेषत्पद्यमानस्यासञ्जिन: पृथिवीकायिकोद्देश केऽभिहितं तथैवासजिनः पंचेन्द्रियतिर्यस्त्पद्यमानस्य वाच्यामिति । (व०प०८४० ८४१) ५६. तहेव निरवसेसं १६. तिमहिज असन्नी पं. तिरि हो, पं. तिथंच रै मांहि । ऊपजता ने आखियै हो, निरविशेष सहु ताहि ।। ५७. यावत भव आश्रयी लगै हो, काल आश्रयी जघन्य । अंतर्मुहुर्त दोय छै हो, जघन्यायु बिहुं भव जन्य ।। ५८. उत्कृष्ट पल्योपम तणों हो, असंख्यातमों भाग । पृथक पूर्व कोड़ अधिक हो हो, धुर गम अद्धा माग ।। ५७. जाव भवादेमो त्ति। कालादेसेणं जहण्णणं दो अंतोमुहुत्ता, ५८. उक्कोसेण पलिओवमस्स असंखेज्ज इभागं पुब्बकोडि पुहत्तमन्भहियं, सोरठा ५९. उत्कृष्ट पल्य नों पेख, असंख्यातमो भाग जे । अधिक वलि सुविशेख, पृथक पूर्व कोड़ किम ।। देखें परि. २. यत्र ८९ *लय : राम को सुजश घणो ५९. 'उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागं पुवकोडि पुहुत्तमभहियं' ति, कथम् ? (वृ० ५० ८४१) १४० भगगती जोड़ Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०. पूर्व कोड़ स्थितिवंत, असन्नी पंचेंद्री मरी । पंचेंद्री तिरि हुत, कोड़ पूर्व आयू विषे । ६१. इम भव ग्रहणज सात, अष्टम भव तिरि युगल ह। पल्य तणों विख्यात, असंख्यातमें भाग स्थिति ।। ६०. असंशो-पूर्वकोट्यायुष्कः पूर्वकोटयायुष्केष्वेव पञ्चेन्द्रियतिर्यक्त्पन्नः (व०प० ८४१) ६१. इत्येवं सप्तसु भवग्रहणेषु सप्त पूर्वकोटयः अष्टम भवग्रहणे तु मिथुनकतिर्यक्ष पल्योपमासंख्येयभाग प्रमाणायुष्केषूत्पन्न इति, (वृ०प०८४१) ६२. एवतियं काल सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा। ६३. बितियगमए एस चेव लदी, नवरं ६२. *सेवै कालज एतलो हो, करै गति-आगति इतो काल । ओघिक ओधिक गमो हो, दाख्यो प्रथम दयाल ।। ६३. द्वितीय गमानं विषे लद्धी हो, परिमाणादिक नी एहीज । णवरं इतरो विशेष छै हो, आगल तेह कहीज ॥ ६४. काल आश्रयी जघन्य थी हो, अंतर्महत दोय । बिहं भव पं. तिथंच नां हो, जघन्य आउखो होय ।। ६५. उत्कृष्ट कोड़ पूर्व चिउं हो, अंतर्मुहूर्त च्यार । अठ भव आश्रयी आखियो हो, ए गति-आगति धार ।। ६४. कालादेसेणं जहण्णेणं दो अंतोमुहुत्ता, ६५. उक्कोसेणं चत्तारि पुव्वकोडीओ चउहिं अंतोमुहु तेहिं अब्भहियाओ, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा १,२। (श०२४।२५१) ६६. सो चेव उक्कोसकालद्वितीएसु उववण्णो ६६. तेहिज असन्नी पंचेंद्री तिरि हो, उत्कृष्ट काल नी जेह । स्थितिक नै विषे ऊपनो हों, ते केतलो आयू पावेह ? ६७. जघन्य अनें उत्कृष्ट थी हो, पल्योपम नों तेह । असंख्यातमा भाग नै हो, स्थितिक में ऊपजेह ।। ६८. हे प्रभु ! ते असन्नी तिरि हो, जिम रत्नप्रभा रै मांहि । ऊपजतां असन्नी तणे हो, दाख्यो तिम सहु ताहि ।। ६९. जाव काल आश्रयी लगै हो, णवर इतरो विशेख । परिमाण द्वार विषे तसु हो, कहिवू इण विधि पेख ॥ ७०. जघन्य एक बे त्रिण हुवै हो, उत्कृष्टा अवलोय । संख्याता हिज ऊपजै हो, शेष तिमज सह जोय ।। ६७. जहण्णेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागट्टितीएस, उक्कोसेण वि पलिओवमस्स असंखेज्ज इभागट्टितीएसु उववज्जेज्जा। (श० २४४२५२) ६८. ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवतिया उबवज्जंति ? एवं जहा रयणप्पभाए उववज्जमाणस्स असण्णिस्स तहेव निरवसेसं ६९. जाव कालादेसो त्ति, नवरं-परिमाणे ७०. जहण्णण एक्को बा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा उववज्जति । सेसं तं चेव ३। (श० २४१२५३) सोरठा ७१. असंख वर्षायू जोय, पंचेंद्रिय तिर्यंच जे । असंख्याता नहिं होय, तिणसू संख्याता ऊपजै ।। ७१. 'उक्कोसेणं संखेज्जा उववज्जति' ति असंख्यात वषायुषां पञ्चेन्द्रियतिरपचामसंख्यातामामभावादिति, (व०प०८४१) ७२. सो चेव अप्पणा जहण्णकालट्ठितीओ जाओ ७२. *तेहिज असन्नी पंचेंद्रो तिरि हो, आपण इज तेह । जघन्य काल स्थितिक थयो हो, कितै काल स्थितिके ऊपजेह ? ७३. जघन्य थकी अंतर्महतं नी हो, स्थितिक विषे ऊपजेह । उत्कृष्ट कोड़ पूर्व तणां हो, आजै आयु विषेह ॥ सोरठा ७४. असन्नी पं. तिथंच, जघन्यायु मरि युगलियो। हुवै नहीं इम संच, साधिक पूर्व कोड़ नहीं॥ ७३. जहण्णेणं अंतोमुत्तट्ठितीएसु, उक्कोसेणं पुन्व कोडिआउएसु उववज्जेज्जा। (श० २४१२५४) ७४. जघन्यायुरसज्ञी सङ्खचातायुष्केस्वेव पञ्चेन्द्रियतिर्यक्षत्पद्यत इति कृत्वा पूर्वकोटघायुष्केष्वित्युक्तम् , (वृ० ५० ५४१) ७५. ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवतिया उव वज्जति? ७५. 'ते प्रभु ! असन्नी पं. तिरि हो, इत्यादिक अवधार । परिमाणादिक पूछियो हो, भाखै जिन जगतार ॥ *लय : राम को सुजश घगों श० २४, उ०२०, ढा० ४२६ १४१ Jain Education Intemational Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .७६. अवसेसं जहा एयस्स पुढविक्काइएसु उववज्जमाणस्स ७७. मज्झिमेसु तिसु गमएसु तहा इह वि मज्झिमेसु तिसु गमएसु जाव अणुबंधो त्ति। ७८. भवादेसेणं जहण्णेणं दो भवग्गहणाई, उक्कोसेणं अट्ठ भवग्गहणाई। ७९. कालादेसेणं जहणेणं दो अंतोमुहुत्ता, उक्कोसेणं चत्तारि पुवकोडीओ चउहिं अंतोमुहुत्तेहिं अब्भहियाओ४। (श० २४१२५५) ८०. सो चेव जहण्णकालट्ठितीएसु उववण्णो ८१. एस चेव वत्तव्वया, नवरं-कालादेसेणं ५२. जहणणं दो अंतोमुहुत्ता, उक्कोसेणं अट्ठ अंतोमुहुत्ता, ८३. एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतिय कालं गतिरागति करेज्जा ५। (श० २४।२५६) ५४. सो चेव उक्कोसकालद्वितीएसु उववण्णो ७६. शेष परिमाणादिक जिके हो, जिम एहिज कह्य ताहि । असन्नी पंचेंद्री तिरि हो, ऊपजतो पृथ्वी मांहि ।। ७७. मध्यम तीन गमा विषे हो, जाव अनुबंध लगेह । जिम तिहां आख्यो तिम इहां हो, मध्यम तीन गमेह ।। ७८. भव आदेश करी इहां हो, जघन्य थकी इम जोय । बे भव ग्रहण कर तिको हो, उत्कृष्टा अठ होय ।। ७९. काल आश्रयी जघन्य थी हो, अंतर्महत दोय । उत्कृष्ट कोड़ पूर्व चिउं हो, अंतर्मुहुर्त चिउं होय ।। ८०. तेहिज जघन्य काल स्थिति नों धणी हो, असन्नी पं. तिर्यच । जघन्य स्थितिक पं. तिरि विषे हो, ऊपनों कर्म विरंच ।। ८१. एहिज वक्तव्यता तसु हो, णवरं इतरो विशेख । काल आश्रयी फेर छै हो, सांभलजो तस् लेख ।। ५२. जघन्य अद्धा बे भव तणों हो, अंतर्मुहर्त दोय । उत्कृष्ट अद्ध अठ भव तणों हो, अंतमहत अठ होय ।। ८३. सेवै कालज एतलो हो, ए गति-आगति काल । जघन्य अने जघन्य गमो हो, दाख्यो पंचम दयाल ।। ५४. तेहिज असन्नी पं. तिरि हो, जघन्य आयूवंत जेह । उत्कृष्ट काल स्थितिक विषे हो, ऊपनों कर्म वसेह ।। ५५. जघन्य कोड़ पूर्व विषे हो, उत्कृष्ट थी पिण जेह । कोड़ पूर्व विषे ऊपनों हो, षष्ठम गमक विषेह ।। ८६. एहिज वक्तव्यता तसुं हो, णवर इतरो विशेख । काल आश्रयी जाणवो हो, ते कहि करि लेख ।। सोरठा ८७. षष्ठम गम संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। ___अंतर्मुहूर्त जेह, कोड़ पूर्व तिर्यंच-पं. ।। ८८. उत्कृष्टो अवधार, अद्धा अष्ट भवां तणों । ____ अंतर्महत च्यार, कोड़ पूर्व चिउं पं. तिरि । ८९. *तेहिज असन्नी पं. तिरि हो, आपण अवलोय । उत्कृष्ट काल स्थितिक थयो हो, सप्तम गमके सोय ।। ९०. तेहिज असन्नी पं. तिरि तणां हो, प्रथम गमक नी पेख । वक्तव्यता कहिवी इहां हो, णवरं इतरो विशेख ।। ९१. स्थिति जघन्य पुव्व कोड़ नी हो, उत्कृष्ट पिण पुव्व कोड़। असन्नी पं. तिथंच नी हो, शेष तिमज सहु जोड़ ।। ९२. काल आश्रयी जघन्य थी हो, पूर्व कोड़ कहेह । अंतर्महुर्त अधिक ही हो, बे भव अद्धा एह ।। ९३. उत्कृष्ट पल्योपम तणों हो, असंख्यातमों भाग । पूर्व कोड़ पृथक वली हो, इतो काल गतागति माग ।। ८५. जहण्णेणं पुव्व कोडिआउएसु, उक्कोसेण वि पुब्व कोडिआउएसु उववज्जेज्जा, ८६. एस चेव वत्तव्वया, नवरं-कालादेसेणं जाणेज्जा ६ । (श० २४१२५७) ८९. सो चेव अप्पणा उक्कोसकालद्वितीओ जाओ ९०. सच्चेव पढमगमगवत्तब्वया, नवरं - ९१. ठिनी जहण्णेणं पुवकोडी, उक्कोसेण वि पुवकोडी। सेसं तं चेव । ९२. कालादेसेणं जहण्णेणं पुश्वकोडी अंतोमुहुत्तमभहिया, ९३. उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागं पुवकोडि पुहत्तमब्भहियं, एवतियं काल सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा ७। (श० २४१२५८) *लय : राम को सुजश घणो १४२ भगवती जोड़ Jain Education Intemational Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९४. सो चेव जहण्णकालद्वितीएसु उववण्णो; ९५. एस चेव वत्तव्वया जहा सत्तमगमे, नवरं ९४. तेहिज असन्नी पं. तिरि हो, उत्कृष्ट आयुवंत । जघन्य काल स्थितिक विषे हो, ऊपनों तास उदंत ।। ९५. एहिज वक्तव्यता तसु हो, जिम सप्तम गम माय । दाखी तिम कहिवी इहां हो, णवरं विशेष कहाय ।। ९६. काल आश्रयी जघन्य थी हो, धुर भव पूर्व कोड़ । अंतर्महत दूजे भवे हो, बे भव अद्धा जोड़ ।। ९७. उत्कृष्ट अद्धा अठ भवे हो, पूर्व कोड़ज च्यार । अंतर्महर्त चिउं वली हो, इतो काल गतागतिकार ।। ९६. कालादेसेणं जहण्णेणं पुवकोडी अंतोमुहुत्तमन्भहिया, ९७. उक्कोसेणं चत्तारि पुम्वकोडीओ चउहिं अंतोमुहत्तेहिं अमहियाओ, एवतियं काल सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा । (श० २४१२५९) ९८. सो चेव उक्कोसकालट्ठितीएसु उववण्णो ९९. जहणणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभाग उक्कोसेण वि पलिओवमस्स असंखेज्जइभागं । १००. एवं जहा रयणप्पभाए उववज्जमाणस्स असण्णिस्स नवमगमए तहेव निरवसेसं १०२. जाव कालादेसो त्तिः ९८. तेहिज असन्नी पं. तिरि हो, उत्कृष्ट आयुवंत । उत्कृष्ट काल स्थितिक विषे हो, ऊपनों तास वृतंत ।। ९९. जघन्य अने उत्कृष्ट थी हो, पल्योपम नों पेख । असंख्यातमे भाग में हो, ऊपजवो तसु देख ।। १००. इम जिम रत्नप्रभा विषे हो, असन्नी पं. तिर्यच । ऊपजता नैं नवम गमे हो, तिमहिज सर्व विरंच ।। - सोरठा १०१. रत्नप्रभा रै मांहि, असन्नी पंचेंद्रिय तिरि । ऊपजता ने ताहि, नवम गमा विषे कह्यो।। १०२. संघयण अवगाहनादि, कायसंवेध लग इहां । तिमहिज सर्व संवादि, यावत कालादेश इम ।। १०३. *णवरं परिमाणे करी हो, जिम एहनां इज ताय । तीजा गमक विषे कह्य हो, तिम इहां पिण कहिवाय ।। ___ सोरठा १०४. जघन्य एक बे तीन, उत्कृष्टा संख्यात जे । ऊपजवूज कथीन, इम तीजा गम सम कह्य ।। १०५. *शेष संघयणादिक सहु हो, रत्नप्रभा में ताम । ___ असन्नी ऊपजता ने कह्यो हो, तिमहिज कहिवू आम ।। १०६. शत चउवीसम देश बीसम तणों हो, चिउं सौ छवीसमी ढाल । भिक्ष भारीमाल ऋषिराय थी हो, 'जय-जश' हरष विशाल ।। १०३. नवरं-परिमाणं जहा एयस्सेव ततियगमे । १०५. सेसं तं चेव ९। (श० २४१२६०) *लय : राम को सुजश घणों श० २४, उ०२०, ढा०४२६ १४३ Jain Education Intemational Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ढाल : ४२७ तियंच पंचेंद्रिय में सन्नी पंचेंद्रिय तियंच ऊपज, तेहनों अधिकार' उब १. जइ सण्णिपंचिदियतिरिक्खजोणिएहितो वज्जति२. कि संखेज्जवासाउय? असंखेज्जवासाउय? ३. गोयमा! संखेज्जवासाउय, नो असंखेज्जवासाउय । (श० २४।२६१) १.जो सन्नी पंचेंद्रिय, तिरियोनिक थी जेह । ऊपजै कर्म प्रभाव थी, तिरि पंचेंद्री विषेह ।। २. तो स्यूं संख्याता वर्ष, आयुष थी उपजेह । के असंख्यात वर्षायु थी ऊपजै? इम पूछेह ।। ३. जिन भाख संख्यात वर्ष, आयुष थी उपजंत । असंख्यात वर्षायु थी, ऊपजवो नहिं हुंत ।। वा०-इहां असंख्यात वर्ष आयुषवंत ते युगलिया मरि देवता हुवै ते मार्ट तिर्यच पंचेंद्री नै विषे न ऊपजै। ४. जो संख्यात वर्षायु थी, यावत ते उपजंत । तो स्यूं पर्याप्त थकी, के अपज्जत्त थी हुँत ? ५. जिन भाख दोन थकी, तिरि पंचेंद्री विषेह । कपजे छ सन्नी तिरि, वलि गोयम पूछेह ।। _ जय-जय ज्ञान जिनेंद्र नों ।। [ध्र पदं] ६. संख्यात वर्षायु सन्नी तिरि, ऊपजवा योग्य एह । तिरि पंचेंद्रिय नै विषे, ते कितै काल स्थितिक उपजेह ? ४. जइ संखेज्जवासाउय जाव कि पज्जत्तसंखेज्जवासा उय? अपज्जत्तसंखेज्जवासाउय ? ५. दोसु वि। (श० २४१२६२ ७. श्री जिन भाखै जघन्य थी, अंतमहत विषेह । उत्कृष्ट त्रिण पल्योपम, स्थितिक विषे ऊपजेह ।। ६. संखेज्जवासाउयसणिपंचिदियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए पंचिदियतिरिक्खजोणि एसु उदवज्जित्तए, से णं भते ! केवतिकाल द्वितीएस उववज्जेज्जा? ७. गोयमा ! जहण्णेण अंतोमुत्तद्वितीएसु, उक्कोसेण तिपलिओवमट्टितीएस उववज्जेज्जा। (श०२४१२६३) ८. ते ण मंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उव वज्जति ? अवसेसं ९,१०. जहा एयस्स चेव सण्णिस्स रयणपभाए उववज्ज माणस्स पढमगमए, नवरं-ओगाहणा ८.हे प्रभु ! ते सन्नी तिरि, इत्यादिक प्रछेह । परिमाणादिक शेष जे, तेह उत्तर एह ।। ९. जिम एहिज सन्नी तिर्यंच में, रत्नप्रभा नै विषेह । ऊपजता ने आखियो, प्रथम गमक विषे जेह ।। १०. तिमज इहां पिण जाणवो, णवरं इतरो विशेख । अवगाहणा में फेर छ, ते कहिवं इम लेख ।। ११. जघन्य थको अवगाहना, आंगुल नों अवधार। भसंख्यातमों भाग छ, उत्कृष्ट योजन हजार ।। वा०-'सन्नी तिथंच तिर्यंच-पंचेंद्रिय में ऊपज, तेहनै प्रथम गमे सन्नी तिथंच रत्नप्रभा में ऊपजे तेहनां प्रथम गमा नी पर कह्य । णवरं अवगाहणा जघन्य आगुल नो असंख्यातमों भाग, उत्कृष्ट सहस्र योजन। शेष तिमहिज ११. जहणणं अंगुलस्स असंखेज्ज इभागं, उक्कोसेणं जोयणसहरसं। *लय : वेग पधारो महल १. देखें परि. २, यंत्र ९० १४४ भगवती मोड़ - Jain Education Intemational For Private & Personal use only Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वा०-इह तूत्कर्षतो योजनसहस्रमाना, सा च मत्स्यादीनाश्रित्यावसे येति, (व०प०८४१) १२. सेसं तं चेव जाव भवादेसो ति। कह्यो भवादेश लगे। तिहां सन्नी तिथंच रत्नप्रभा में जाय तेहनी अवगाहना असन्नी तिर्यंच रत्नप्रभा में जावै तेहनी परै भलावण में आई । तिण ठामें पिण जघन्य आंगुल रो असंख्यातमो भाग, उत्कृष्ट हजार योजन कही । अन इहां पिण सन्नी तिर्यंच तियंच-पंचेंद्रिय नै विषे ऊपज, तेहनी अवगाहना नवरं कही ने एतलीज कही। तो णवरं कहिवा रो कारण स्यं ? उत्तर- असन्नी पंचेंद्रिय तथा सन्नी पंचेंद्रिय रत्नप्रभा में ऊपज ते तो पर्याप्तो इज ऊपजै पिण अपर्याप्तो ऊपजे नथी । ते रत्नप्रभा में जाय ते पर्याप्ता री बवगाहना जघन्य आंगुल नों असंख्यातमों भाग बड़ो छ पर्याप्ता माटे । अनै इहां सन्नी तियंच तियंच-पंचेंद्रिय में ऊपजे ते अपर्याप्तो पिण ऊपजै छ। ते अपर्याप्ता नी अवगाहना जघन्य आंगुल रा असंख्यातमा भाग नी छ, पिण ए असंख्यातमों भाग छोटो छ अपर्याप्ता माट। णवरं कहिण में एहवू न्याय जणाय छ । वलि बहुश्रुत न्याय कहै ते सत्य । (ज. स.) इहां हजार योजन री अवगाहनां कही ते मत्स्यादिक नी जाणवी। १२. शेष संघयणादिक तिके, तिमहिज कहिवं ताय । यावत भव आश्रयी लगै, हिव तसु अद्धा आय ।। १३. काल आश्रयी जघन्य थी, अंतर्महुर्त बे जोड़ । उत्कृष्ट त्रिण पल्य नैं वली पृथक पूर्व कोड़ ।। १४. सेवै कालज एतलो, ए गति-आगति काल । ओधिक मैं ओधिक गमो, दाख्यो प्रथम दयाल ।। १५. ते संख वर्षायु सन्नी तिरि, जघन्य काल स्थितिकेह । उपनों वक्तव्यता तसु, एहिज रीत कहेह ।। १६. णवरं इतरो विशेष छै, काल आश्रयी जोय । जघन्य अद्धा बे भव तणों, अंतर्महत दोय ।। १७. उत्कृष्ट कोड़ पूर्व चिउं, ए सन्नी तिरि संच। अंतर्मुहर्त चिउं वली, ए पंचेंद्री तिर्यंच ।। १८. तेहिज संख वर्षायु सन्नी तिरि, उत्कृष्ट काल नी जेह । स्थितिक नै विषे ऊपनों, तिरि पंचेंद्री विषेह ।। १९. जघन्य अने उत्कृष्ट थी, तीन पल्य नी जाण । स्थितिक नै विषे ऊपनों, तीजे गमे पिछाण । २०. एहिज वक्तव्यता तसु, णवरं परिमाण जाण । जघन्य एक बे त्रिण तथा, ऊपजवं पहिछाण ।। २१. उत्कृष्टा ते ऊपजै, संख्याता थी जोय । मिथुनक असंख हुवै नहीं, अदल न्याय अवलोय ।। २२. अवगाहना सन्नी तिरि तणी, जघन्य आंगुल नों धार । असंख्यातमों भाग छ, उत्कृष्ट योजन हजार ॥ वा०-इहां हजार योजन रो मत्स्यादिक मरी उत्कृष्ट आउखै युगलियापणे ऊपजै। १३. कालादेसेणं जहणे णं दो अंतोमुत्ता उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाई पुवकोडी पुहनमभहियाई, १४. एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा १। (श० २४।२६४) १५. सो चेव जहण्णकालट्ठितीएस उववण्णो, एस चेव वत्तब्वया. १६. नवरं-कालादेसेणं जहण्ण ण दो अतोमुहुत्ता, १७. उक्कोसेणं चत्तारि पुवकोडीओ चउहि अंतोमुहुत्तेहि अब्भहियाओ २। (श० २४१२६५) १८. सो चेव उक्कोसकालट्ठितीएस उववण्णो १९. जहण्णण तिपलिओवमद्वितीएसु, उक्कोसेण वि तिपलिओवमद्वितीएसु उबवज्जेज्जा, २०. एस चेव वत्तवया, नवरं-परिमाणं जहणणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, २१. उक्कोसेणं सखेज्जा उववज्जति । २२. ओगाहणा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्ज इभाग, उक्कोसेण जोयणसहस्सं । २३. शेष संघयणादिक सह, तिमहिज कहिवा ताय । यावत अनुबंध लग जिके, हिव संवेधज आय ।। २३. सेसं तं चेव जाव-अणुबंधो त्ति । श०२४, उ.२०, दा०४२७१४५ Jain Education Intemational Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४. भवादेसेणं दो भवग्गहणाई। २५. कालादेसेणं जहणणं तिणि पलिओवमाई अंतो मुहुत्तमब्भहियाई, २६. उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं पुश्वकोडीए अन्भहियाई ३। (श० २४१२६६) २७. सो चेव अप्पणा जहण्णकालद्वितीओ जातो २४. भवादेश भव आश्रयी, तस भव दोय विरंच । एक भव सन्नी तिर्यंच नों, बीजो युगल तिर्यच ।। २५. काल आश्रयी जघन्य थी, पल्योपम त्रिण जोय । अंतर्महत अधिक ही, जघन्य स्थितिक भव दोय ।। २६. उत्कृष्टो अद्धा तसु, पल्य तीन संवेह । पूर्व कोड़ज अधिक ही, जेष्ठ स्थितिक भव बेह ।। २७. तेहिज संख वर्षाय सन्नी-तिरि आपणपै जेह । जघन्य काल स्थितिक थई, उपनों तिरि पं. विषेह ।। २८. जघन्य अंतर्मुहर्त आउखै, उत्कृष्ट पूर्व कोड़। आयवंत विषे ऊपनों, चउथे गमके जोड़ ।। २९. लब्धि परिमाणादिक तणी, जिम एहनेज कहाय । सन्नी पंचेंद्री तिथंच नें, ऊपजतां पृथ्वी माय ।। ३०. मध्यम तोन गमा विषे, सर्वहीज लद्धी तेह । इहां पिण बिचले त्रिण गमे, कहिवो लेखो करेह ।। ३१. संवेध जिमहिज जाणवो, एहिज निश्चै सुजोय । पंचेंद्रिय तिर्यंच नां, उद्देशक विषे सोय ।। २८. जहण्णेणं अंतोमुहुत्तद्वितीएसु, उक्कोसेणं पुब्वकोडी आउएसु उववज्जेज्जा। २९. लद्धी से जहा एयस्स चेव सण्णिपंचिदियस्स पुढवि क्काइएसु उववज्जमाणस्स ३०. मज्झिल्लएसु तिसु गमएसु सच्चेव इह वि मज्झिमेसु तिसु गमएसु कायव्वा । ३१. संवेहो जहेव एत्थ चेव "एत्थ चेव' त्ति अत्रैव पञ्चेन्द्रियतिर्यगुद्देशके, (वृ० प०८४१) ३२, ३३. असण्णिस्स मज्झिमेसु तिसु गमएसु ४-६ । (श० २४१२६७) ३४. स चैवं-भवादेशेन जघन्यतो द्वौ भवी उत्कृष्टतस्त्वष्ट भवाः , (वृ०प०८४१) ३५. कालादेशेन जघन्येन द्वे अन्तर्मुहुर्ते (व०प० ८४१) ३२. असन्नी पं. तिथंच ते, तिरि पंचेंद्री विषेह । ऊपजतां नैं लद्धी कही, बिचले तीन गमेह ।। ३३. तिमज संख वर्षायु सन्नी-पंचेद्रिय तियंच। ऊपजतां पं. तिरि विषे, मध्यम त्रिण गम संच ।। सोरठा ३४. चउथा गमा विषेह, भवादेश करि जघन्य थी। बे भव ग्रहण करेह, उत्कृष्ट भव ग्रहण अठ ।। ३५. काल आथयी सोय, जघन्य थकी अद्धा तसु । __अंतर्मुहुर्त दोय, बिहुँ भव नी ए जघन्य स्थिति ।। ३६. उत्कृष्टो अवधार, अद्धा अष्ट भवां तणों। अंतर्मुहुर्त च्यार, पूर्व कोडज च्यार फुन । ३७. पंचम गमे सुजोय, भवादेश करि जघन्य थी। बे भव ग्रहणज होय, उत्कृष्टा भव ग्रहण अठ।। ३८. काल आश्रयी सोय, जघन्य अद्धा बे भव तसु । अंतमहत दोय, उत्कृष्ट अंतर्महुर्त अठ ।। ३९. षष्ठम गम संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। पूर्व कोडज लेह, अंतर्मुहर्त अधिक तिरि ।। ४०. उत्कृष्टो अवधार, अद्धा अष्ट भवां तणों। अंतर्मुहर्त च्यार, पूर्व कोड़ज च्यार वलि । ४१. 'तेहिज संख वर्षाय सन्नी-तिरि पं. आपणपेह । उत्कृष्ट काल स्थितिक थई, उपनों तिरि पं. विषेह ॥ ३६. उत्कर्षतश्चतस्रः पूर्वकोटयोऽन्तर्मुहूर्तचतुष्काधिकाः, (वृ० प० ८४१) ४१. सो चेव अप्पणा उक्कोसकालद्वितीओ जाओ *लय : वेग पधारो महल १४६ भगवती जोड़ Jain Education Intemational Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२. जहा पढमगमओ नवरं ४३. ठिती अणुबंधो जहण्णेणं पुवकोडी, उक्कोसेण वि पुवकोडी। ४४. कालादेसेणं जहण्णेणं पुवकोडी अंतोमुत्तमम्भहिया, ४५. उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाई पुज्वकोडीपुहत्तमन्भहियाई । (श० २४१२६८) ४६. सो चेव जहण्ण कालट्ठितीएस उववण्णो, ४७. एस चेव वत्तव्वया नवरं ४८. कालादेसेणं जहण्णण पुवकोडी अंतोमुत्तममहिया, ४९ उक्कोसेणं चत्तारि पुनकोडीओ चउहि अंतोमुहुत्तेहिं अन्भहियाओ। (श० २४१२६९) ५०. सो चेव उक्कोसकालद्वितीएस उववण्णो ४२. जिम प्रथम गमक कह्य एहनों, कहिवं तिमहिज हेर । णवरं इतरो विशेष छै, स्थिति अनुबन्ध में फेर ।। ४३. स्थिति अनैं अनुबन्ध जे, जघन्य अने उत्कृष्ट । पूर्व कोड़ज जाणवो, हिव संवेधज इष्ट ।। ४४. काल आश्रयी जघन्य थी, धुर भव पूर्व कोड़। अंतर्महत दूजे भवे, बिहुं भव अद्धा जोड़। उत्कृष्ट अद्धा अष्ट भवे, पृथक पूर्व कोड़ । तीन पल्य भव आठमे, वारू न्याय सुजोड़ ।। वा०-इहा पृथक पूर्व कोड़ कह्या, ते सात पूर्व कोड़ जाणवा । ते उत्कृष्टा आउखा ना ७ भव संख्यात वर्षायु सन्नी तिथंच ना करी आठमें भव तीन पल्योपम आउखे युगलियो तिथंच थयो। ४६. तेहिज पंचेंद्री सन्नी तिरि, उत्कृष्ट आयवंत । जघन्य काल स्थितिक पं.-तिरि, तेह विषे उपजत ।। ४७. एहिज वक्तव्यता तसु, पूर्वली पर पेख । णवरं इतरो विशेष छ, सांभलजो तसु लेख ।। ४८. काल आश्रयी जघन्य थी, धुर भव पूर्व कोड़। अंतर्मुहर्त दूजे भवे, बे भव अद्धा जोड़ ।। ४९. उत्कृष्ट कोड़ पूर्व चित्रं, तिरि सन्नी भव च्यार । अंतर्मुहर्त चिउं वली, तिरि पंचेंद्रिय धार ।। ५०. तेहिज पचेंद्री सन्नी तिरि, उत्कृष्ट आयुवंत । जिष्ठ काल स्थितिक पं.-तिरि, तेह विषे उपजत ।। ५१. जघन्य अनें उत्कृष्ट थी, तीन पल्योपम देख । स्थितिक ने विषे ऊपजै, शेष तिमज संपेख ।। ५२. णवरं परिमाण अवगाहना, जिम एहनांज आख्यात । तीजा गमक विषे जिके, कहिवू तिम अवदात ।। सोरठा ५३. तसु परिमाण जघन्य, एक दोय त्रिण ऊपजै । एक समय में जन्य, उत्कृष्ट संख्याता हुवै ।। ५४. अवगाहना उत्कृष्ट, योजन सहस्र तणीं हुवे । ए तीजे गम इष्ट, तेम इहां पिण जाणवू ।। ५५. *भवादेश करि तेहनों, बे भव ग्रहण करेह । धुर भव सन्नी तिर्यच नों, द्वितीय युगल तिरि लेह ।। ५६. काल आश्रयी बिहुं भवे, जघन्य अने उत्कृष्ट । पूर्व कोड़ सन्नी तिरि, युगल पल्य त्रिण इष्ट ।। ५७. सेवै कालज एतलो, ए गति-आगति काल । उत्कृष्ट में उत्कृष्ट गमो, दाख्यो नवम दयाल ।। इति तिर्यच पंचेंद्रिय नै विषे संख्यात वर्षायु सन्नी तिथंच ऊपज तेहना नव गमा कह्या । हिवं मनुष्य थकी तिर्यच पंचेंद्रिय नै विषे ऊपज, तेहनों अधिकार कहै छ*लय : वेग पधारो महल ५१. जहणेण तिपलिओवमद्वितीएसु, उक्कोसेणं वि तिपलिओवमट्टितीएस । अवसेसं त चेब, ५२. नवरं–परिमाणं ओगाहणा य जहा एयस्सेव तइयगमए। ५३. 'नवर परिमाण' मित्यादि, तत्र परिमाणमुत्कर्षतः सङ्खचाता उत्पद्यन्ते, (वृ० ह० ८४१) ५४. अवगाहना चोत्कर्षतो योजनसहस्रमिति । (वृ० ५.८४१) ५५. भवादेसेणं दो भवग्गहणाई, ५६. कालादेसेणं जहणणं तिण्णि पलिओवमाइं पूव्व कोडीए अमहियाई, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाई पुवकोडीए अब्भहियाई, ५७. एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा ९। (श० २४।२७०) श• २४, उ• २०, ढा. ४२७ १४७ Jain Education Intemational Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८. मनुष्य थको जो ऊपज, तिरि पंचेंद्री विषेह । ____ तो स्यूं सन्नी मनुष्य थी, कै असन्नी मनु थी लेह ? ५९. जिन कहै सन्नी मनुष्य थकी, तिरि पंचेंद्री विषेह । असन्नी मनुष्य थकी अपि, ऊपज कर्म वसेह ।। तिर्यच पंचेंद्रिय में असन्नी मनुष्य ऊपज, तेहनों अधिकार' ६०. असन्नी मनुष्य भदंतजी! तिरि पंचेंद्री विषेह । जे ऊपजवा योग्य ते, कितै काल स्थितिक उपजेह ? ५८. जइ मणुस्सेहिंतो उववज्जंति-किं सण्णिमणुस्से हितो? असण्णिमणुस्सेहितो? ५९. गोयमा ! सण्णिमणुस्सेहितो वि, असण्णिमणुस्सेहितो वि उववज्जंति । (श० २४१२७१) ६०. असण्णिमणुस्से णं भंते ! जे भविए पंचिदिय तिरिक्खजोणिएसु उववज्जित्तए, से णं भंते ! केवतिकालद्वितीएसु उववज्जेज्जा ? ६१. गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तट्टितीएसु, उक्कोसेणं पुवकोडिआउएसु उववज्जेज्जा। ६२. लद्धी से तिस वि गमएस लब्धिः-परिमाणादिका (वृ०प० ८४१) ६१. श्री जिन भाखै जघन्य थी, अंतर्महत लेह । उत्कृष्ट कोड़ पूर्व तणां, आयु विषे ऊपजेह ।। ६२. परिमाणादिक नी जिका, लब्धि प्राप्ति तेह । असन्नी मनुष्य ने धुर त्रिहुं गमक विषेज कहेह ।। सोरठा ६३. नवं गमा रै मांहि, आदि ईज त्रिण गम इहां । एह संभवै ताहि, वृत्तिकार इम आखियो ।। ६३. 'से' तस्यासज्ञिमनुष्यस्य त्रिष्वपि गमेष्वाद्येषु यतो नवानां गमानां मध्ये आद्या एवेह त्रयो गमाः संभवन्ति, (व०प०८४१) ६४. जघन्यतोऽप्युत्कर्षतोऽपि चान्तर्मुहूर्त्तस्थितिकत्वेनकस्थितिकस्वात्तस्येति, (ब० प०८४१) ६५. जहेव पुढविक्काइएसु उववज्जमाणस्स । ६६-६८. संवेहो जहा एत्थ चेव असण्णिपंचिदियस्स मज्झिमेसु तिसु गमएसु तहेव निरवसेसो भाणियव्वो (श० २४१२७२) 'एत्थ चेव' त्ति अत्रैव पञ्चेन्द्रियतिर्यगुद्देशकेऽसज्ञिपञ्चेन्द्रियतिर्यग्भ्यः पञ्चेन्द्रियतिर्यगुत्पादाधिकारे, (वृ० प० ८४१) ६४. जघन्य थकी पहिछाण, उत्कृष्टी पिण वलि तसु । अंतर्महतं जाण, एक स्थितिक थी आदि गम ।। ६५. जिमहिज पृथ्वीकाय में, असन्नी मनुष्य सुजोय । ऊपजता ने लद्धी कही, तिमहिज कहिवी सोय ।। ६६. कायसंवेधज इह विधे, जिम एहिज कहेह । पंचेंद्रिय तिर्यंच नां, उद्देशक ने विषेह ।। ६७. असन्नी पंचद्री तिथंच थी, तिरि पंचेंद्रिय मांहि । उत्पत्ति नां अधिकार थी, मध्यम त्रिण गम ताहि ।। ६८. तेह तीनई गमा विषे, आख्यो छै तिमहीज । समस्त कायसंवेध ते, असन्नी मनु नों कहीज ।। तिथंच पंचेंद्रिय में सन्नी मनुष्य ऊपज, तेहनों अधिकार ६९. जो सन्नी मनुष्य थी ऊपजै, तिरि चेंद्री विषेह। तो स्यूं संख वर्षायु थी, के असंख वर्षायु थी जेह ? ७०. जिन कहै संख वर्षायु थी, ऊपजै तिरि-पं. विषेह । असंख्यात वर्षायु थी, ऊपजवू न कहेह ।। ७१. जो संख वर्षायु थी ऊपज, तो स्यूं पजत्त संखेह । वर्षायु थकी ऊपजै, कै अपजत्त थी कहेह ? ७२. जिन कहे पज्जत्त संख्यात जे, वर्षायुष थी हुंत । अपजत्त संख वर्ष तणां, आयुष थी उपजत ।। ७३. सन्नी मनुष्य भगवंत जी!, तिरि पंचेंद्री विषेह । ऊपजवा ने योग्य ते, कितै काल स्थितिक उपजेह ? *लय : वेग पधारो महल १. देखें परि. २, यंत्र ९१ २. देखें परि. २, यंत्र ९२ ६९. जइ सण्णिमणुस्सेहिंतो उववज्जति-किं संखेज्ज वासाउयसण्णिमणुस्सेहितो? असंखेज्जवासाउयसण्णि मणस्सेहितो? ७०. गोयमा ! संखेज्जवासा उय, नो असंखेज्जवासाउय । (श० २४१२७३) ७१. जइ संखेज्जवासाउय किं पज्जत्त? अपज्जत्त ? ७२. गोयमा ! पज्जत्तसंखेज्जवासाउय, अपज्जत्तसंखेज्जवासाउय । (श० २४१२७४) ७३. सण्णिमणुस्से णं भंते ! जे भविए पंचिदियतिरिक्ख जोणिएस उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालद्वितीएस उववज्जेज्जा? १४८ भगवती जोड़ Jain Education Intemational Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४. श्री जिन भाख जघन्य थी, अंतर्महूर्त विषेह । उत्कृष्ट तीन पल्योपम, स्थितिक में उपजेह ।। ७४. गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तट्ठितीएसु, उक्कोसेणं तिपलिओवमट्टितीएस उववज्जेज्जा। (श० २४।२७५) ७५,७६. ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवतिया उव. वज्जति ? लद्धी से जहा एयस्सेव सण्णिमणुस्सस्स पुढविक्काइएस उववज्जमाणस्स पढमगमए 'लद्धी से' इत्यादि, लब्धिः परिमाणादिप्राप्तिः (वृ० ५०८४१) ७७. सा चैवं-परिमाणतो जघन्येनैको हो वा उत्कर्षण तु सङ्ख्याता एवोत्पद्यन्ते (वृ०प०८४१) ७८. स्वभावतोऽपि सङ्ख्यातत्वात् सज्ञिमनुष्याणा, (०प०८४१) ७९-८१. तथा षड्विधसहननिन उत्कर्षतः पञ्चधनुः शतावगाहना: षड्विधसंस्थानिनः षड्लेश्यास्रिविधदृष्टयो भजनया चतुर्मानास्त्यज्ञानाश्च त्रियोगा द्विविधोपयोगा: (वृ०५०८४१) ७५. हे प्रभु! ते सन्नी मनुष्य नैं, लब्धि प्राप्ति कहिवाय । परिमाणादिक नी जिका, इह विधि कहिये ताय ।। ७६. जिम एहिज सन्नी मनुष्य नै, पृथ्वीकायिक माय । ऊपजता ने प्रथम गमे, दाखी तिम कहिवाय ॥ सोरठा ७७. तिका लब्धि इम चीन, जे परिमाण थकीज का । . जघन्य एक बे तीन, उत्कृष्ट संखेज्ज ऊपजै ।। ७८. स्वभाव थी पिण जेह, सन्नी मनुष्य संख्यात छ । तिणसूं इक समयेह, संख्याता इज ऊपजै ।। ७९. षट संघयणज जाण, जघन्य थकी अवगाहना। आंगुल तणों पिछाण, असंख्यातमा भाग नीं।। ८०. उत्कृष्टी पहिछाण, धनुष्य पंच सय नी हुवै । वलि षटविध संठाण, षट लेश्या ने दृष्टि त्रिण ।। ८१. ज्ञान च्यार अवलोय, फून अज्ञानज तीन जे। भजनाई करि जोय, जोग तीन उपयोग बे ।। ५२. संज्ञा च्यारज होय, कषाय च्यार कहीजिये। इंद्रिय पंच सुजोय, समुद्घात षट ह वली ॥ ५३. वेदन सात असात, त्रिविध वेद स्थिति जघन्य थी। अंतर्मुहर्त ख्यात, उत्कृष्ट पूर्व कोड़ नीं। ८४. पसत्थ अपसत्थ संध, अध्यवसायज उभय है। आयु सम अनुबंध, कह्य कायसंवेध फुन । ८५. भवादेश करि इष्ट, बे भव ग्रहणज जघन्य थी। ह अठ भव उत्कृष्ट, सूत्रे काल लिख्योज छै ।। ५६. *काल आश्रयी जघन्य थी, अंतर्महत बे जोड़ । उत्कृष्ट तीन पल्योपमे, पृथक पूर्व कोड़ । सोरठा ५७. पूर्व कोड़ज सात, एकांतर भव मनु तिरिक्ख । अष्टम भव आख्यात, युगल हुवै पल्य तीन स्थिति ।। ८८. *तेहिज सन्नी मनुष्य ही, जघन्य काल नी लेह । स्थितिक नै विषे ऊपनों, तिरि पंचेंद्री विषेह ।। ८९. वक्तव्यता तसु सर्व ही, प्रथम गमक जिम ख्यात । णवरं कायसंवेध नों, अद्धा इहविध आत ।। ९०. काल आश्रयी जघन्य थी, अंतर्महर्त्त बे धार । उत्कृष्ट कोड़ पूर्व चिउं, अंतर्महुर्त च्यार ।। ८२. चतुः सज्ञाश्चतुष्कषायाः पञ्चेन्द्रियाः पटसमुद्घाता: (व० ५० ८४१) ८३. सातासातवेदनानिविधवेदा जघन्येनान्त महूर्तस्थितय उत्कर्षेण तु पूर्वकोटघायुषः (वृ० ५० ८४१) ८४,८५. जाव-भवादेसो त्ति । प्रशस्तेतराध्यवसानाः स्थितिसमानानुबन्धाः कायसंवेधस्तु भवादेशेन जघन्यतो द्वौ भवो उत्कर्षतोऽष्टी भवा: कालादेशेन तु लिखित एवास्ते १। (वृ० ५० ८४१) ८६. कालादेसेणं जहण्णेणं दो अंतोमुहृत्ता, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं पुवकोडिपृहत्तमन्भहियाई । (श० २४१२७६) ८८. सो चेव जहण्णकालट्ठितिएसु उववण्णो, ८९. एस चेव वत्तव्वया, नवरं ण ९०. कालादेसेणं जहण्णेणं दो अंतोमुहुत्ता, उक्कोसेणं चत्तारि पुवकोडीओ चउहि अंतोमुहुत्तेहिं अब्भहियाओ २। (श० २४१२७०) *लय : वेग पधारो महल श० २४. उ० २०, ढा० ४२७ १४९ Jain Education Intemational Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९१. सो चेव उक्कोसकालट्ठितिएसु उववण्णो ९१. तेहिज सन्नी मनुष्य ही, उत्कृष्ट काल नी तेह । स्थितिक नै विषे ऊपनों, तिरि पंचेंद्री विषेह ।। ९२. जघन्य अने उत्कृष्ट थी, तीन पल्योपम ताय । आयुवंत विषे ऊपजै, तृतीये गमक कहाय ॥ ९३. वक्तव्यता तसु सर्व ही, पूर्ववत कहिवाय । ___णवरं इतरो विशेष छ, सांभलजो चित ल्याय ।। ९४. जघन्य थकी अवगाहना, पृथक आंगुल पेख । उत्कृष्टी धनु पांचसौ, वारू न्याय अवेख ॥ ९२. जहण्णेणं तिपलिओवमट्टितीएसु, उक्कोसेण वि तिपलिओवमट्टितीएसु, ९३. सच्चेव वत्तव्बया, नवरं ९४. ओगाहणा जहणेणं अंगुलपुहत्तं, उक्कोसेणं पंच धणुसयाई। सोरठा ९५. इह वचनेज कहेह, आंगुल पृथक आदि मनु । काल करी उपजेह, उत्कृष्ट स्थितिक मैं विषे॥ ९५. अनेनेदमवसितम् - अंगुलपृथक्त्वाद्धीनतरशरीरो मनुष्यो नोत्कृष्टायुष्केषु तिर्यसूत्पद्यते, (वृ० प०८४१, ८४२) ९६. ठिती जहणणेणं मासपुहत्तं, उक्कोसेणं पुवकोडी। एवं अणुबंधो वि। ९६. *स्थिति जघन्य जे मनुष्य नीं, पृथक मासज पेख । उत्कृष्ट पूर्व कोड़ नी, अनुबंध पिण इम लेख । सोरठा ९७. इह वचनेज कहेह, पृथक मासज आदि मन् । काल करी उपजेह, उत्कृष्ट स्थितिक तिरि विषे॥ ९७. अनेनापि मासपृथक्त्वाद्धीनतरायुष्को मनुष्यो नोत्कृष्टस्थितिषु तिर्यसूत्पद्यत इत्युक्त, (वृ० प० ८४२) ९८. भवादेसेणं दो भवग्गहणाई, ९८. 'भवादेश करि ने तिको, बे भव ग्रहण करेह । धुर भव सन्नी मनुष्य नों, द्वितीय युगल तिरि लेह ॥ ९९. काल आश्रयी जघन्य थी, मनु स्थिति पृथक मास । तीन पल्योपम नी वली. युगल तिरि भव तास ।। १००. उत्कृष्ट अद्धा बिहुं भवे, मनु भव पूर्व कोड़। तीन पल्योपम तिरि भवे, युगल तणी स्थिति जोड़। १०१. सेवै कालज एतलो, ए गति-आगति काल । ओघिक ने उत्कृष्ट गमो, दाख्यो तृतीय दयाल ।। १०२. तेहिज सन्नी मनुष्य हो, आपणपैज कहेह । जघन्य काल स्थितिक थई, ऊपनों तिरि-पं. विषेह ।। १०३. जिमज सन्नी पं.-तिरि तणां, तिरि प'चेंद्री विषेह । ऊपजता ने लद्धी कही, मध्यम त्रिण गमकेह ।। ९९. कालासेणं जहण्णेणं तिण्णि पलिओवमाई मास पुहत्तमभहियाई, १००. उक्कोसेणं तिणि पलिओवमाइं पुष्वकोडीए अन्भ हियाई, १०१. एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा ३। (श० २४१२७८) १०२. सो चेव अप्पणा कालट्ठितीओ जाओ, १०३. जहा सण्णिपंचिदियतिरिक्खजोणियस्स पंचिदिय तिरिक्खजोणिएसु उववज्जमाणस्स मज्झिमेसु तिसु गमएसु १०४. वत्तव्वया भणिया एस चेव एयस्स वि मज्झिमेसु तिसु गमएसु निरवसेसा भाणियब्वा, १०५. नवरं-परिमाणं उक्कोसेणं संखेज्जा उववति । सेसं तं चेव ४-६ । (श० २४।२७९) १०४. वक्तव्यता सह जे कही, तेह सर्व ही जोय । एहने पिण मध्यम त्रिण गमे, सगली भणवी सोय ।। १०५. णवरं इतरो विशेष छै, जे परिमाणज ताय । उत्कृष्ट संखेज ऊपजे, शेष तिमज कहिवाय ।। सोरठा १०६. तिरि पचेंद्री मांय, ऊपजतां सन्नी तिरि ।। तिहां परिमाण कहाय, उत्कृष्ट असंख ऊपजै ।। १०६. तत्र परिमाणद्वारे उत्कर्षतोऽसङ्ख्य यास्ते उत्पद्यन्ते इत्युक्त (वृ० १० ८४२) *लय : वेग पधारो महल १५० भगवती जोड़ Jain Education Intemational Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०७. इहां वलि इम वाय, संख्याता सन्नी मनुष्य । तिणसू तिरि-पं. मांय, संख्याता हिज आजै ।। १०८. संघयणादिक द्वार, फुन जिम आख्या छै तिहां । तिमज इहां अधिकार, कहिवं ते कहियै अछै ।। १०९. षट संघयणज तास, जघन्य अनें उत्कृष्ट फुन । अवगाहना विमास, असंख भाग आंगुल तणों ।। ११०. फुन ह षट संठाण, लेश तीन दृष्टि मिथ्या' । बे अज्ञान' पिछाण, जोग एक उपयोग बे।। १११. संज्ञा हुवैज च्यार, कषाय च्यार हुवै वलि । इंद्रिय पंचज धार, समुद्घात हुवै आदि त्रिण ।। ११२. वेदन सात असात, वेद तीन नैं आउखो। अंतर्महत थात, जघन्य अने उत्कृष्ट करि ।। ११३. अपसत्थ अध्यवसाय, आयु सम अनुबन्ध फुन । कायसंवेध कहाय, जघन्य थकी भव ग्रहण बे ।। १११. संज्ञा अज्ञान' पठाण, लेश भाग आंगुल १०७. इह तु सज्ञिमनुष्याणां सङ्ख्य यत्वेन सङ्खय या उत्पद्यन्त इति वाच्यं, (वृ० प० ८४२) १०८ संहननादिद्वाराणि तु यथा तत्रोक्तानि तथेहावगन्तव्यानि, (वृ० ५० ५४२) १०१. तेषां षट् संहननानि जघन्योत्कर्षाभ्यामङ गुला सङ्खये यभागमात्राऽवगाहना (वृ० प० ८४२) ११०. षट् संस्थानानि तिस्रो लेश्या मिथ्या दृष्टि: द्वे अज्ञाने कायरूपो योगो द्वौ उपयोगी (व०प०८४२) १११. चतस्रः सज्ञाश्चत्वारः कषायाः पञ्चेन्द्रियाणि त्रयः समुद्घाता: (वृ०प०८४२) ११२. द्वे वेदने त्रयो वेदा जघन्योत्कर्षाभ्यामन्तर्मुहूर्तप्रमाणमायुः (वृ० प. ८४२) ११३. अप्रशस्तान्यध्यवसायस्थानानि आयुः समानोऽनुबन्धः कायसंवेधस्तु भवादेशेन जघन्येन द्वे भवग्रहणे (वृ०प०८४२) ११४. उत्कर्षतस्त्वष्टौ भवग्रहणानि कालादेशेन तु सजिमनुष्यपञ्चेन्द्रियतिर्यस्थित्यनुसारतोऽवसेय इति । (वृ० ५०८४२) ११५. सो चेव अप्पणा उक्कोसकालद्वितीओ जातो, ११४. ह अठ भव उत्कृष्ट, काल आश्रयी मनु सन्नी। तिरि पंचेंद्रिय इष्ट, बिहुं नी स्थिति करि जाणवू ।। ११५. *तेहिज सन्नी मनुष्य जिको, आपणज कहेह । उत्कृष्ट काल स्थितिक हुओ, पं.-तिरि में उपजेह ।। ११६. तेहिज प्रथम गमे करी, वक्तव्यता इहां जाण । णवरं पांचसौ धनुष्य नीं, जघन्योत्कृष्ट अवगाण ।। ११७. स्थिति अनै अनुबंध वलि, जघन्य अने उत्कृष्ट । पूर्व कोड़ पिछाणियै, शेष तिमज सहु इष्ट ।। ११८. यावत भव आश्रयी लगै, काल आश्रयी कहाय । जघन्य कोड़ पूर्व कह्यो, अंतर्मुहुर्त अधिकाय ।। ११९. उत्कृष्ट तीन पल्योपमे, पृथक पूर्व कोड़। एतलो काल सेवै तिको, ए गम सप्तम जोड़ ।। ११६. सच्चेव पढमगमगवत्तव्यया, नवरं --ओगाहणा जहण्णेणं पंच धणुसयाई, उक्कोसेण वि पंच धणसयाई। ११७. ठिती अणुबंधो जहण्णेणं पुवकोडी, उक्कोसेण वि पुवकोडी। सेसं तहेव ११८. जाव भवादेसो त्ति कालादेसेणं जहणेण पुवकोडी अंतोमुहुत्तमब्भहिया, ११९. उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं पुव्वकोडिपुहत्तमब्भ हियाइ, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा ७ । (श० २४।२८०) १२०. सो चेव जहण्णकाल द्वितिएसु उववण्णो, १२०. तेहिज सन्नी मनुष्य तिको, उत्कृष्टज स्थितिवंत । जघन्य काल स्थितिक पं.-तिरि, तेह विष उपजत ।। १,२. पन्नवणा पद ५ में जघन्य स्थितिक मनुष्य, तियंच में बे अज्ञान हीज कहा। ते माटै सास्वादन नों धणी जे मनुष्य, तिर्यच नी जघन्य स्थिति छ, तेहनै विषे न ऊपजे, ते मार्ट इहां मिथ्या दृष्टि अनै बे अज्ञान हीज कह्या। ए जघन्य स्थितिक ते २५६ आवलिका नों एक भव अपर्याप्त अवस्था में मरै तेहनै विषे सास्वादन न पावै । बीजु सौधर्म देवलोके सन्नी तिथंच जघन्य गमा वालो ऊपज, तेहनै विषे बे ज्ञान कह्या छ । ए पर्याप्त अवस्था छ तेहनी जघन्य स्थिति मोटो अंतर्मुहूर्त छै. पिण २५६ आवलिका नुं ए भव नथी ते मार्ट । वलि सौधर्मे सन्नी मनुष्य जघन्य गमे ऊपज, तेहनी स्थिति जघन्य पृथक मास नीं कही छ, तिण में ज्ञान पावै छ। तिम सौधर्मे सन्नी तिर्यच ऊपज, तेहनै जघन्य गमे मोटा अंतर्मुहत्तं नी स्थिति जाणवी। *लय : वेग पधारो महल श०२४, उ०२०, ढा०४२७ १५१ Jain Education Intemational Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२१. एहि वक्तव्यता तसु, णवरं काल जघन्य थी कोड़ पूर्व वली, अंतर्मुहूर्त्त १२२. उत्कृष्ट कोड़ पूर्व चिउं, अंतर्मुहूर्त च्यार । सेवै कालज एतलो, ए गम अष्टम धार ॥ १२३ तेहिज सम्मी मनुष्य जिको उत्कृष्टज स्थितिवंत । उत्कृष्ट काल स्थितिक तिरि, पंचेंद्री में उपजंत | १२४. जयम्य जने उत्कृष्ट थी, तीन पत्योपम ताय । आउवंत विषे ऊपनों, लब्धि हिवै कहिवाय ॥ १२५. एहिज लब्धि कहीजिये, जिम सप्तम गम मांव। दाख्यो तिणहिज रीत सूं, हिव संवेधज आय ॥ १२६. भवादेश करि तेहनां, बे भव ग्रहण घुर भव सन्नी मनुष्य तणों, द्वितीय युगल तिरि करेह | तेह | ॥ उत्कृष्ट । इष्ट || १२७. काल आश्रयी तसु अद्धा, जघन्य अनें तीन पल्योपम जाणवूं, पूर्व कोड़ज १२. से कालज एतलो, ए गति आगति उत्कृष्ट नैं उत्कृष्ट गमो दाख्यो नवम 1 १२९. संख वर्षायु सन्नी मनु, तिरि-पं उपजेह | चउवीसम शत ने विषे, बीसम देश कहे ॥ में १३०. ढाल व्यारसी ऊपरे ऊपरे सतावीसमीं न्हाल | भिक्षु भारीमाल ऋषिराय थी, 'जय जश' मंगलमाल || तिथंच पंचेंद्रिय में देव ऊपजे ढाल : ४२८ २. के अमर ज्योतिषी भी हुवे के तेह देव चव ऊपजै, तिरि पंचेंद्री आदेश । विशेष ॥ दूहा १. देव थकी जो ऊपजे, ऊपजै, तिरि पंचेंद्री विषेह | तो स्यूं भवनपति थकी, कै व्यंतर थी जेह ? ३. जिन भाव गुण गोयमा ! भवनपति यावत वैमानिक थकी ऊपजयूं , काल । दयाल || १५२ भगवती जोड़ वैमानिक जेह विषेह ? ५. जिन भाखे पं. तिरि असुर थकी , विषे यावत वणियकुमार थी, ऊपजे कर्म ४. जो सुर भवनपति थकी, ऊपजै तिरि-पं. मांय | तो स्यूं अमरकुमार थी, जाव यणित थी चाय ॥ । थी होय । अवलोय || उपजेह बसेह || १२१. एस चैव वत्तव्वया, नवरं - कालादेसेणं जहणेणं पुव्वकोडी अंतोमुहुत्तमब्भहिया, १२२. उक्कोसेणं चत्तारि पुण्वकोडीओ चउहि अंतोमुहुत्तेहि महियाओ ( ० २४/२८१) १२३. सो उनकोसकालद्वितीए बमो १२४. जपे तिमि पलिममा उस्कोरोग वि तिमि पलिओदमाई, १२५. एस चेव लद्धी जहेव सत्तमगमे । १२६. भवादेसेणं दो भवग्गहणाई । १२७. कालादेणं जो तिषिय पलियोमाई पुग्य कोडीए अब्भहियाई, उक्कोसेण वि तिणि पलिओवमाई पुष्कोडीए अन्महिवाई, १२८. एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा ९ । (०२४१२५२) १. देवेति उपयंतिक भवनवासदेहित उववज्जंति ? वाणमंतर २. जो मायदेवेति ? ३. गोमा भवणवासिदेत जाव वेमापियदेवेति वि । (१०२४।२-३ ) ४. ज भवभवासिदेवहितो कि असुरकुमारभवण वासिदेवहितो जाव थणिय कुमारभवणवासि देवेहितो ? ५. गोयमा ! असुरकुमार जाव थणियकुमारभवणवासिदेवहितो | ( श० २४ २८४ ) Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तियंच पंचेंद्रिय में असुरकुमार ऊपजे, तेहनों अधिकार *प्रवर ज्ञान प्रभुजी तणों। (ध्र पदं) ६. हे प्रभु ! असुरकुमार ते, तिरि पंचेंद्री विषेहो जी कांइ। जे ऊपजवा जोग्य ते, कितै काल स्थितिक उपजेहो जी काइ? ६. असुरकुमारे णं भंते ! जे भविए पंचिंदियतिरिक्ख जोणिएसु उववज्जित्तए, से णं भंते ! केवतिकालद्वितीएसु उववज्जेज्जा ? ७. गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तट्ठितीएसु, उक्कोसेणं पुवकोडिआउएसु उववज्जेज्जा । ८. असुरकुमाराणं लद्धी नवसु वि गमएसु ९. जहा पुढविक्काइएसु उववज्जमाणस्स । एवं जाव ईसाणदेवस्स तहेव लद्धी। १०, ११. यथा पृथिवीकायिकेषु देवस्योत्पत्तिरुक्ता असुर कुमारमादावीशानकदेवं चान्ते कृत्वा एवं तस्य पञ्चेन्द्रियतिर्यक्ष सा वाच्या, (वृ. ५०८४२) १२. असुरकुमाराणां चैवं लब्धिः - (वृ०५०८४२) १३. एकाद्यसङ्खघ यान्तानां समयेनोत्पादः, १४. तथा संहननाभावः तेषां पञ्चेन्द्रियतियंक्षु (व० ५०८४२) (व०प०८४२) ७. श्री जिन भाखै जघन्य थी, अंतर्महत विषेहो जी काइ। उत्कृष्ट पूर्व कोड़ जे, स्थितिक में उपजेहो जी कांइ ।। ८. परिमाणादिक नी जिका, लब्धि प्राप्ति जे पायो जी कांइ। असुरकुमार विषे हुवै, ते इह विध कहिवायो जी कांइ ।। ९. जिम पृथ्वीकायिक विषे, असुर उपजता नैं आखीजी कांइ। एवं जाव ईशाण नैं, तिमहिज लद्धी दाखी जी कांइ ॥ सोरठा १०. जिम जे पुथ्वी मांहि, अमर ऊपजे तसु लद्धी। असुर थकी ले ताहि, ईशाण पर्यंत इम करी ।। ११. पंचेद्री तिरि मांहि, असुरादिक ईशाण लग। ऊपजतां नैं ताहि, लब्धि प्राप्ति कहिवी तिमज ।। १२. पंचद्रिय तिरि मांय, असुरकुमारज सुर तणें । ऊपजता ने पाय, लब्धि प्राप्ति कहियै तिका । १३. जघन्य एक बे तीन, उत्कृष्ट संख असंख नों। समये ऊपजवो चीन, तिरि पंचेंद्रिय नै विषे ।। १४. तथा संघयण न होय, षट संघयणज मांहिलो। असंघयणी सोय, हिव कहिये अवगाहना ॥ १५. भवधारणी जघन्य, असंख भाग आंगुल तणों। फुन उत्कृष्टी जन्य, सप्त हस्त देह असुर नीं। १६. जघन्य आंगुल नों इष्ट, कह्य भाग संख्यात नों। लक्ष योजन उत्कृष्ट, उत्तर वैक्रिय तनु तणी ।। १७. समच उरंस पिछाण, भवधारणी तणुं कह्य। नानाविध संठाण, उत्तर वैक्रिय नों वली ।। १८. चिउं लेश्या त्रिण दृष्ट, नियमा तीनज ज्ञान नीं। तीन अज्ञानज इष्ट, भजनाइं करि असुर में ।। १९. जोग त्रिविध पिण होय, हुवै द्विविध उपयोग पिण । संज्ञा च्यारज जोय, फून चिउं कषाय असुर में ।। २०. इन्द्रिय पंच पिछाण, समुद्घात धुर पंच फुन । द्विविध वेदना जाण, वेद नपुंसक रहित बे॥ २१. स्थिति जघन्य थी तास, वर्ष सहस्र दश असुर नीं। वलि उत्कृष्ट विमास, साधिक सागर नी कही ।। २२. अध्यवसाय असंख, प्रशस्त में अपसत्थ पिण। अनुबंध स्थिति सम अंक, कायसंवेध का हिवै ।। १५. जघन्यतोऽङ गुलासङ्खये यभागमाना उत्कर्षतः सप्त हस्तमाना भवधारणीयावगाहना (वृ. प० ८४२) १६. इतरा तु जघन्यतोऽ गुलसङ्खये यभागमाना उत्कर्ष तस्तु योजनलक्षमाना (वृ० ५.८४२) १७. संस्थानं समचतुरस्रं उत्तरक्रियापेक्षया तु नानाविधं (वृ० प.८४२) १८. चतस्रो लेश्यास्त्रिविधा दृष्टि: त्रीणि ज्ञानान्यवश्यं अज्ञानानि च भजनया (वृ०प०८४२) १९, २०. योगादीनि पञ्च पदानि प्रतीतानि समुद्घाता आद्याः पञ्च वेदना द्विविधा वेदो नपुंसकवर्ज: (वृ० ५०८४२) २१. स्थितिर्दश वर्षसहस्राणि जघन्या इतरा तु सातिरेक सागरोपमं (वृ० प०८४२) २२. शेषद्वारद्वयं तु प्रतीतं संवेधं तु सामान्यत माह (व०प०८४२) *लय : कुशल देश सुहामणों १. देखें परि. २, यंत्र ९३ श० २४, उ०२०, ढा० ४२८ १५३ Jain Education Intemational Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३. भवादेसेण सम्वत्थ अट्ठ भवग्गहणाई, उक्कोसेणं जहण्णेणं दोण्णि भवग्गहणाई। २४. ठिति संवेहं च सम्वत्थ जाणेज्जा १-९ । (श० २४१२८५) २३. *भवादेश करि सहु गमे, ह अठ भव उत्कृष्टो जी कांइ। जघन्य थकी भव बे करै, श्री जिन वचन विशिष्टो जी कांइ ।। २४. स्थिति अनैं संवेध नैं, गमा-गमा विषे जाणी जी काइ। कहि सर्व विचार नै, वर उपयोगज आणी जी कांइ ।। सोरठा २५. स्थिति असुर नी जास, ओधिक धुर त्रिण गम विषे । जघन्य सहस्र दश वास, उत्कृष्ट साधिक उदधि नीं। २६. तेहिज असुरकुमार, जघन्य काल स्थितिक थयो। वर्ष सहस्र दश सार, मध्यम त्रिण गम में विषे ।। २७. तेहिज असुरकुमार, जेष्ठ काल स्थितिक थयो। साधिक सागर सार, अंतिम त्रिण गम नै विषे ।। २८. प्रथम गमक संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। वर्ष सहस्र दश जेह, अंतर्महत अधिक ही ।। २९. उत्कृष्टो अवधार, अद्धा अष्ट भवां तणों। साधिक सागर च्यार, कोड़ पूर्व चिउं अधिक फुन ।। ३०. दूजे गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। वर्ष सहस्र दश जेह, अंतर्मुहूत्तं अधिक ही ।। ३१. उत्कृष्टो अवधार, अद्धा अष्ट भवां तणों। साधिक सागर च्यार, अंतर्महर्त चिउं वली ।। ३२. तीजे गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। वर्ष सहस्र दश जेह, कोड़ पूर्व तिरि-पं. भवे ।। ३३. उत्कृष्टो अवधार, अद्धा अष्ट भवां तणों। साधिक सागर च्यार, कोड़ पूर्व चिउं पं.-तिरि ।। ३४. चउथे गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। वर्ष सहस्र दश जेह, अंतर्महत अधिक ही ।। ३५. उत्कृष्टो सुजगीस, अद्धा अष्ट भवां तणों। वर्ष सहस्र चालीस, कोड़ पूर्व चिउं पं.-तिरि ।। ३६. पंचम गम संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। वर्ष सहस्र दश जेह, अंतर्मुहर्त अधिक ही ।। ३७. उत्कृष्ट काल जगीस, अष्ट भवां नों जाणवो। वर्ष सहस्र चालीस, अंतर्महर्त च्यार तिरि । ३८. षष्ठम गम संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। वर्ष सहस्र दश जेह, कोड़ पूर्व तिरि-पं. भवे ।। ३९. उत्कृष्टो सुजगीस, अद्धा अष्ट भवां तणों। वर्ष सहस्र चालीस, कोड़ पूर्व चिउं पं.-तिरि ।। ४०. सप्तम गम संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। साधिक सागर जेह, अंतर्मुहर्त पं.-तिरि॥ *लय : कुशल देश सुहामणों १५४ भगवती जोड़ Jain Education Intenational Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अद्धा अष्ट ४१. उत्कृष्ट अवधार, अढा अद्धा अष्ट भवां तणों । साधिक सागर च्यार, कोड़ पूर्व चिउं अधिक ही ॥ ४२. अष्टम गम संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी । साधिक सागर जेह, अंतर्मुहूर्त्त पं.- तिरि ॥ ४३. उत्कृष्ट अवधार, भवां तणों । साधिक सागर च्यार, अंतर्मुहूर्त्त चिउं तिरि ॥ भव अद्धा जघन्य थी । कोड़ पूर्व पं. तिरि भवे ।। अद्धा अष्ट भवां तणों। कोढ़ पूर्व पिठं पं. तिरि ॥ ऊपजे तेहनों अधिकार ४४. नवमे गमे संवेह, बे साधिक सागर जेह, ४५. उत्कृष्टो अवधार, साधिक सागर प्यार तिर्वच पंचेंद्रिय में नवनिका ४६. नागकुमारन हे प्रभु! तिरि पंचेंद्री विषेो जी कांद जे ऊपजवा योग्य छै, तास प्रश्न पूछेहो जी कांइ ॥ ४७. एहिज वक्तव्यता तसु, स्व बुद्धि करिनें भणिये जी कांइ । वरं इतरो विशेष छे, तेहिज आगल पुणिये जी कांइ ॥ ४८. स्थिति तथा संवेध नं उपयोगे करि जाणेवो जी कांइ । एवं यावत थणित नैं, न्याय विचारी लेवो जी कांइ ॥ 1 वा० - प्रथम त्रिण अधिक गमे नागकुमार नीं स्थिति जघन्य १० हजार वर्ष, उत्कृष्ट देसूण २ पल्योपम । मध्यम त्रिण गमे नाग नीं स्थिति जघन्यउत्कृष्ट १० हजार वर्षं । छेहले तीन गमे नाग नीं स्थिति जघन्य उत्कृष्ट देसूण २ पल्योपम । 3 ४९. पहिले गमे संवेह, वर्ष सहस्र दश जेह, ५०. उत्कृष्टो सुप्रगट, देश ऊण पल्प अठ ५१. दूजे गमे संवेह, अद्धा अष्ट को पूर्व पिढं बे भव अद्धा वर्ष सहस्र दश जेह, अंतर्मुहूर्त ५२. उत्कृष्टो सुप्रगट, अद्धा अष्ट देश ऊण पल्य अठ अंतर्मुहूर्तं ५३. तीजे गमे संवेह, बे भव अद्धा १. देखें परि. २, यंत्र ९४ *लय : कुशल देश सुहामणों सोरठा बे भव अद्धा अंतर्मुहूर्त जघन्य थी । अधिक ही ॥ भवां तणों । पं-तिरि ॥ जघन्य थी । जघन्य थी । वर्ष सहस्र दश जेह को पूर्व पं. तिरि भवे ।। देश ऊण पल्य अठ, ५४. उत्कृष्टो सुप्रगट, अद्धा अष्ट भवां तणों। कोड़ पूर्व चिउं पं.- तिरि ॥ ५५. चउथे गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। वर्ष सहस्र दश जेह, अंतर्मुहूर्त पं. तिरि ॥ ५६. उत्कृष्ट सुजगीस, भवां तणों । वर्ष सहस्र चालीस, कोड़ पूर्व चिउं पं. तिरि ।। अद्धा अष्ट अधिक ही ॥ भवां तणों । चिरं तिरि ॥ ४६. नागकुमारे णं भंते ! जे भविए ? ४७. एस चैव वत्तव्वया, नवरं ४८. ठिति संवेहं च जाणेज्जा १ ९ । एवं जाव थणियकुमारे । (४० २४०२०६) श० २४, उ० २०, ढा० ४२८ १५५ Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अष्ट भव अद्धा ५७. पंचम गमे संवेह वे भय वर्ष सहस्र दश जेह, अंतर्मुहूर्त ५८. उत्कृष्टो सुजगीस, अद्धा वर्ष सहस्र चालीस अंतर्मुहूर्त ५९. षष्ठम गमे संवेह, बे वर्ष सहस्र दश जेह, कोड़ पूर्व पं. तिरि भवे ।। ६०. उत्कृष्टो सुजगीस, अद्धा अष्ट भवां तणों । वर्ष सहस्र चालीस कोड़ पूर्व चितं पं तिरि ॥ ६१. सप्तम गम संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी । देश ऊण पल्य बेह, पं. तिरि ॥ ६२. उत्कृष्टो सुप्रगट, अद्धा भवां तणों । अंतर्मुहूर्त्त अष्ट पं.- तिरि ॥ देश ऊण पत्य अठ, कोड़ पूर्व चितं ६३. अष्टम गम संवेह वे भय अदा देश ऊण पल्प बेह जघन्य थी । अंतर्मुहुर्त पं. तिरि ॥ ६४. उत्कृष्टो सुप्रगट, अद्धा अष्ट भवां तणों । देश ऊण पल्य अठ, अंतर्मुहूतं चि तिरि ॥ ६५. नवमे गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी । देश ऊण पल्य बेह, कोड़ पूर्व पं. तिरि भवे ।। ६६. उत्कृष्टो सुप्रगट, अद्धा अष्ट भवां तणों । देश ऊण पल्य अठ, कोड़ पूर्व चिउं पं. तिरि ॥ वा० - इम यावत भणित नै स्थिति अने कायसंवेध कहिवो । तिच पंचेंद्रिय में स्वंतर ऊपजे तेहनों अधिकार' 2 । ६७. जो व्यंतर पी कर्ज, तिरि पंचेंद्रिय मांह्यो जी कांई । तो स्यूं पिशाच थी हुवै, तिमहिज कहिवूं ताह्यो जी कांइ ॥ ६८. जाव व्यंतर भगवंत जी ! तिरि पंचद्री विषेो जी कांइ । जे ऊपजवा योग्य ते एवं चैव कहेही जी कांद ६९. णवरं इतरो विशेष छे, स्थिति अनें संवेहो जी कांइ । उपयोगे करि जाणवू, नव ही गमक विषेहो जी कांइ ॥ सोरठा वर्ष सहस्र दश जेह, १. देखें परि. २, यंत्र ९५ * लय : कुशल देश सुहामणों १५६ भगवती जोड़ अद्धा जघन्य अधिक भवां थी । ७०. प्रथम तीन गमकेह, जघन्य स्थिति व्यंतर वर्ष सहस्र दश जेह, उत्कृष्टी एक पल्य ७१. तेहिज व्यंतर देव, जघन्य काल स्थितिक वर्ष सहस्र दश हेव, मध्यम त्रिण गम नैं ७२. तेहिज व्यंतर देव, जेष्ठ काल स्थितिक थयो । एक पस्योपम हेव, अन्तिम विण विषे ॥ ७३. पहिले गमे संदेह मे भव अद्धा अंतर्मुहूर्त जेह, अंतर्मुहूर्त ही ॥ तणों । चितं तिरि ।। जघन्य थी । तणीं । तणीं ॥ थयो । गम नं विषे ॥ थी । अधिक ही । जघन्य ॥ ६७. ज वाणमंतरहितो कि पिसाब तब ६८. जाव (४० २४।२८७) वाणमंतरे णं भंते! जे भविए पंचिदियतिरिक्खजोगिए उबवत्तिए ? एवं चैव ६९. नवरं - ठिति संवेहं च जाणेज्जा १-९ । ( श० २४/२८८ ) Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४. उत्कृष्टो अवधार, अद्धा अष्ट कोड पूर्व बे भव प्यार पस्योपम सार ७५. जे गमे संदेह, वर्ष सहस्र दश जेह अंतर्मुहुर्त ७६. उत्कृष्टो अवधार, अद्धा अष्ट भवां च्यार पल्योपम सार, अंतर्मुहूर्त्त चिउं ७७. तीजे गमे संदेह, बे ७८. उत्कृष्टो अवधार, प्यार पत्योपम सार ७९. च गमे संदेह, बे सहस्र दश ८०. उत्कृष्टो मुजगीस, अढा वर्ष 1 भव अद्धा जघन्य थी । वर्ष सहस्र दश जेह, कोड़ पूर्व पं. तिरि भवे ।। भवां तणों । पं.- तिरि ॥ जघन्य थी । पं. - तिरि ॥ भवां तणों। पं. तिरि ॥ वर्ष सहस्र चालीस कोड़ पूर्व चितं ही ॥ ८१. पंचम गम संदेह, वे भव अद्धा जघन्य थी । वर्ष सहस्र दश जेह, अंतर्मुहूर्त अधिक ८२. उत्कृष्टो सुजगीस, अढा अष्ट भवां तणों। वर्ष सहस्र चालीस अंतर्मुहुर्त चिदं तिरि ॥ ८३. षष्ठम गम संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी । पं. तिरि भवे ॥ भवा तणों। चिउं पं. - तिरि ॥ जघन्य थी । अंतर्मुहुर्त पं. तिरि ॥ अष्ट अद्धा अष्ट भवां तणों । को पूर्व चि पं.- तिरि ॥ भव अद्धा जघन्य थी । लेह, अतर्मुहूर्त्त पं. - तिरि ॥ ८८. उत्कृष्टो अवधार, अद्धा अष्ट भवां तणों । इक पल्य व्यंतर व्यंतर लेह, च्यार पल्योपम सार, ८९. नवम गमे संवेह, बे अंतर्मुहूर्त्त चिउं तिरि ॥ भव अद्धा जघन्य थी । इक पत् व्यंतर लेह ९०. उत्कृष्टो अवधार को पूर्व पं. तिरि भवे ॥ अद्धा अष्ट भव तणों । प्यार पत्योपम सार को पूर्व चिरं पं. तिरि ॥ ९१. * जो देव जोतिषी थी वली, कहियै ते उपपातो जी कांइ । तिमहिज पूर्व शेत स्यूं भेद करी आख्यातो जी हांई ॥ तिच पंचेंद्रिय में ज्योतिषी ऊप तेन अधिकार' ९२. जाव जोतिषी हे प्रभु तिरि पंचंद्री विषेो जी कांई। इत्यादिक पूछेहो जी कांइ ॥ जे ऊपजवा योग्य ते १. देखें परि. २, यंत्र ९६ *लय : कुशल देश सुहामणों भवां वर्ष सहस्र दश जेह, कोड़ पूर्व ८४. उत्कृष्टो सुजगीस, अद्धा वर्ष सहस्र चालीस, कोड़ पूर्व ८५. सप्तम गम संवेह, बे भव चितं अद्धा अष्ट कोड़ पूर्व चि कोड़ पूर्व चिउं इक पल्य व्यंतर लेह, ६. उत्कृष्टो अवधार, अद्धा प्यार पल्वोपम सार ८७. अष्टम गम संवेह, बे अद्धा भव अद्धा जेह, अंतर्मुहूर्त्त अद्धा अष्ट तणों। पं. तिरि ॥ जघन्य थी । अधिक ही ॥ तणों। तिरि ॥ ९१. जइ जोतिसिय ? उववाओ तहेव ९२. जाव (१० २४२०९) जोतिरिए भी जे भविए पंचिदिवतिरिक्यजोगिए उयवित्तए ? श० २४, उ० २०, डा० ४२८ १५७ Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९३. एस चेव वत्तब्वया जहा पुढविक्काइयउद्देसए ९४. भवग्गहणाई नवसु वि गमएसु अट्ठ जाव ९५. कालादेसेणं जहण्णेणं अट्ठभागपलिओवमं अंतोमुहत्त मम्भहियं, ९३. एहिज वक्तव्यता तसु, जिम पृथ्वी में उद्देसो जी काइ। पृथ्वी विषे जे ज्योतिषी, ऊपजता ने कहेसो जी काइ।। ९४. तिमहिज कहि छै इहां, नव ही गमा विषेहो जी कांइ। उत्कृष्टा अठ भव करै, यावत काल कहेहो जी कांइ ।। ९५. काल आश्रयी जघन्य थी, बे भव आश्रयी ताह्यो जी काइ। भाग अष्टमो पल्य तणों, अन्तर्महत अधिकायो जी कांइ ।। सोरठा ९६. पल्य नों अष्टम भाग, तेह जोतिषी आश्रयी। अंतर्मुहुर्त माग, तिरि पंचेंद्रिय आश्रयी ।। ९७. *उत्कृष्ट अद्धा पल्य चिउ, पूर्व कोड़ज च्यारो जी कांइ । वर्ष लक्ष चिउं अधिक ही, ए गति-आगतिकारो जी कांइ ।। ९७. उक्कोसेणं चत्तारि पलिओवमाई चउहि पुन्वकोडीहिं चउहि य वाससयसहस्सेहिं अब्भहियाई, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा । १९. एवं नवसु वि गमएसु, नवरं-ठिति संवेहं च जाणेज्जा १-९ । (श० २४१२९०) सोरठा ९८. चिउंपल्य चिउं लक्ष वास, शशी चिउं भव में जेष्ठ स्थिति ।। कोड़ पूर्व चिउं जास, तिरि पंचेंद्रिय चिउं भवे ।। ९९. *इम नव ही गमका विषे,णवरं स्थिति में फेरो जी काइ। फेर संवेध विषे वली, उपयोगे करि हेरो जी काइ। वा०–प्रथम तीन गमे जोतिषी नी स्थिति जघन्य पल्य नों आठमों भाग, उत्कृष्ट १ पल्योपम लक्ष वर्ष अधिक । ए ओधिक मध्यम तीन गमे जोतिषी नीं स्थिति जघन्यईज कहिवी । ते पल्य नों आठमों भाग छहले तीन गमे जोतिषी नी स्थिति उत्कृष्टहीज कहिवी--ते एक पल्य नै लक्ष वर्ष । सोरठा १००. दूजे गमे संवेह, भाग अष्टमों पल्य तणों। अंतर्मुहर्त लेह, जघन्य अद्धा बे भव तणों ।। १०१. उत्कृष्ट अद्धा तास, अष्ट भवां नों इह विधे। चिउं पल्य चिउं लक्ष वास, अंतर्मुहर्त चिउ वली ।। १०२. तीजे गमे संवेह, भाग अष्टमों पल्य तणों। पूर्व कोड़ स्थिति लेह, जघन्य अद्धा बे भव तणों। १०३. उत्कृष्ट अद्धा तास, अष्ट भवे उत्कृष्ट अद्ध । चिउं पल्य चिउं लक्ष वास, च्यार कोड़ पूर्व वली ।। १०४. तुर्य गमे संवेह, भाग अष्टमों पल्य तणों। अंतर्महत लेह, बे भव आश्रयी जघन्य अद्ध ।। १०५. उत्कृष्ट अद्धा धार, अर्द्ध पल्य चिउं भव जोतिषी। पूर्व कोडज च्यार, उत्कृष्ट अद्धा अठ भवे ।। १०६. पंचम गम संवेह, भाग अष्टमों पल्य तणों। अंतर्मुहुर्त लेह, जघन्य अद्धा बे भव तणों ।। *लय : कुशल देश देश सुहामणों १५८ भगवती जोड़ Jain Education Intemational Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०७. उत्कृष्ट अद्धा धार, अर्द्ध पल्य चिउं भव जोतिषी। अंतर्मुहर्त च्यार, अष्ट भवां नों काल ए॥ १०८. षष्ठम गम संवेह, भाग अष्टमों पल्य तणों। कोड़ पूर्व स्थिति लेह, जघन्य अद्धा बे भव तणों । १०९. उत्कृष्ट अद्धा धार, अर्द्ध पल्य चिउं भव जोतिषी। कोड़ पूर्व फुन च्यार, अद्धा अष्ट भवां तणों। ११०. सप्तम गम संवेह, एक पल्य में वर्ष लक्ष । अंतर्मुहर्त लेह, बे भव आश्रयी जघन्य अद्ध ।। १११. उत्कृष्टो अवधार, चिउं पल्य वर्षज लक्ष चिउं । पूर्व कोड़ज च्यार, उत्कृष्ट अद्धा अठ भवे ॥ ११२. अष्टम गम संवेह, एक पल्य ने वर्ष लक्ष । __ अंतर्मुहर्त लेह, बे भव आश्रयी जघन्य अद्ध । ११३. उत्कृष्ट अद्धा तास, आख्यो अष्ट भवां तणों। चिउं पल्य चिउं लक्ष वास, अंतर्मुहुर्त च्यार फुन । ११४. नवम गमे संवेह, एक पल्य में वर्ष लक्ष । कोड़ पूर्व फुन लेह, बे भव आश्रयी जघन्य अद्धा ।। ११५. उत्कृष्ट अद्धा तास, अष्ट भवां नों इह विधे । चिउं पल्य चिउं लक्ष वास, पूर्व कोड़ज च्यार फुन । ए जोतिषी थकी पंचेंद्रिय तिर्यंच नै विषे ऊपज, तेहनां ९ गमा कहा। पंचेंद्रिय तियंच में वैमानिक ऊपज - ११६. *जो वैमानिक थी ऊपजै, तिरि पंचेंद्री विषेहो जी कांइ । तो स्यं बारै कल्प थी, के कल्पातीत थी लेहो जी कांइ? ११७. श्री जिन भाखै कल्प थी, तिरि पंचेंद्रिय माही जी कांइ। ऊपजै वैमानिक सुरा, कल्पातीत थी नांही जी काइ। ११८. कल्प थकी जो ऊपज, जाव कल्प सहसारो जी काइ। तसु वासी सुर ऊपज, तिरि पंचेंद्री मझारो जी काइ। ११९. आणत जाव अच्युत नां कल्प-वासी ते देवा जी काइ। तिरि पंचेंद्री नैं विषे, ऊपज नहीं स्वयमेवा जी कांइ।। तिर्यच पंचेंद्रिय में सौधर्मवासी देव ऊपज, तेहनों अधिकार' १२०. सोहम्म सुर भगवंत जी! तिरि पंचेंद्री विषेहो जी कांइ । जे ऊपजवा योग्य ते, कितै काल स्थितिक उपजेहो जी कांइ ? १२१. श्री जिन भाखै जघन्य थी, अंतर्महुर्त स्थितिके हो जी काइ। उत्कृष्ट पूर्व कोड़ नां, आयु विष उपजेहो जी कांइ ।। १२२. शेष सर्व जिमहोज जे, पृथ्वीकाय उद्देसे जी काइ। नव ही गमक विषे कह्य, तिम कहिवू सुविशेषे जी कांइ । ११६. जइ वेमाणियदेवेहितो कि कप्पोषावेमाणिय ? कप्पातीतावेमाणिय ? ११७. गोयमा ! कप्पोवावेमाणिय, नो कप्पातीतावेमाणिय । (श० २४१२९१) ११८. जइ कप्पोवा जाव सहस्सारकप्पोवगवेमाणिय देवेहितो वि उववज्जंति, ११९. नो आणय जाव नो अच्चुयकप्पोवावेमाणिय । (श० २४।२९२) १२०. सोहम्मदेवे णं भंते ! जे भविए पंचिदियतिरिक्ख जोणिएसु उववज्जित्तए, से णं भंते ! केवतिकाल द्वितीएसु उववज्जेज्जा? १२१. गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तद्वितीएसु, उक्कोसेणं पुव्वकोडीआउएसु। १२२. सेसं जहेव पुढविक्काइयउद्देसए नवसु वि गमएसु, १. देखें परि. २, यत्र ९७ *लय: कुशल देश सुहामणों श० २४, उ० २०, ढा०४२८ १५९ Jain Education Intemational Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोरठा मांय, सोहम नां सुर ऊपजै । लबी तिहां कहाय तिमहिज कहियूँ छे दहां ॥ १२३. पृथ्वी कायिक १२४. *जघन्य थकी भव मे करें, उत्कृष्टा अठ लेहो जी कांइ । स्थिति फन कालादेश में उपयोगे जाणेहो जी कांइ ॥ वा०-स्थिति ते प्रथम तीन गमे सौधर्म देव जघन्य एक पल्य, उत्कृष्ट २ सागर स्थिति अधिक कहिये । मध्यम तीन गमे सौधर्म सुर जघन्य काल स्थितिक थयो ते १ पल्योपम स्थितिवंत कहिये । छेहले तीन गमे सौधर्म सुर उत्कृष्ट काल स्थितिक थयो ते २ सागर स्थितिवंत कहिये । सोरठा १२५. पहिले गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य एक पल्योपम जेह, अंतर्मुहुर्त अधिक १२६. उत्कृष्ट अवधार, अद्धा अष्ट सागर अष्ट उदार, पूर्व कोड़ चिउं १२७. द्वितीय गमे संदेह, बे अद्धा भव एक पल्योपम जेह, अंतर्मुहूर्त १२८. उत्कृष्टो अवधार, अद्धा अष्ट थी । फुन ॥ भवां तणों । तिरि भवे ॥ जघन्य थी । अधिक हो । तणों । भवां सागर अष्ट उदार, अंतर्मुहूर्त चितं बली । १२९. तृतीय गमे संवेह, बे भव अद्धा एक पल्योपम जेह, पूर्व कोड़ १३०. उत्कृष्टो अवधार, अद्धा अष्ट पूर्व कोडज चिठं सागर अष्ट उदार, भव अदा जघन्य १३१. चये गमे संवेह, बे एक पत्योपम जे अंतर्मुहूर्त अधिक १३२. उत्कृष्ट अवधार प्रवर पत्योपम प्यार को १३३. पंचम गम संवेह, बे थी । अधिक फुन ।। अद्धा अष्ट भवां तणों । पूर्व चि अधिक ही ।। भव अद्धा जघन्य थी । एक पल्योपम जेह, अंतर्मुहूर्त अधिक ही ॥ १३४. उत्कृष्टो अवधार, अद्धा अष्ट भव तणों। चिउं पल्य सुर भव च्यार, चिडं अंतर्महुतं तिरि ॥ १३५. षष्ठम गम संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी । जघन्य थी । कह्य ु वली ।। भवां तणों । तिरि ॥ एक पल्योपम जेह, कोड़ पूर्व फुन अधिक ही ॥ १३६. उत्कृष्टो अवधार, अद्धा अष्ट भवां तणों । प्रवर पत्योपम प्यार को पूर्व चि अधिक फुन ॥ १३७. सप्तम गम संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी । सुर भव सागर बेह, अंतर्महुतं पं. तिरि ॥ १३८. उत्कृष्टो अवधार, अद्धा अष्ट भवां तणों । सागर अष्ट उदार, च्यार कोड़ पूर्व वली । १३९. अष्टम गम संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी । सुर भव सागर बेह, अंतर्मुहूर्त पं. - तिरि ॥ १६० भगवती जोड़ १२४ नववि गमएस जहणेवं दो भवगणाई उक्कोसेणं अट्ठ भवग्गणाई । ठिति कालादेसं च जाणेज्जा १-९ । Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४३. एवं ईसाणदेवे वि। एवं एएणं कमेणं भवसेसा वि जाव सहस्सारदेवेसु उववाएयव्वा, १४४. नवरं–ओगाहणा जहा ओगाहणसंठाणे (सू०७०) अवगाहना यथाऽवगाहनासंस्थाने प्रज्ञापनाया एकविंशतितमे पदे ((वृ०प०८४२) १४५-१४७. भवणवणजोईसोहम्मीसाणे सत्त हुंति रयणीओ। एक्केक्कहाणि सेसे दुदुगे य दुगे चउक्के य ।। (वृ० प० ८४२) १४०. उत्कृष्टो अवधार, अद्धा अष्ट भवां तणों। __सागर अष्ट उदार, अंतर्मुहूर्त चिउं वली। १४१. नवमे गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। सुर भव सागर बेह, कोड़ पूर्व पं.-तिरि भवे। १४२. उत्कृष्टो अवधार, अद्धा अष्ट भवां तणों । सागर अष्ट उदार, कोड़ पूर्व चिउं पं.-तिरि ।। सौधर्म कल्प नां सुर पंचेंद्रिय तियंच नै विषे ऊपज, तेहनां ९ गमा कहा। तियंच पंचेंद्रिय में दूसरे देवलोक स्यूं आठवें देवलोक तक नां देव ऊपज, तेहनों अधिकार' १४३. *इम ईशाण सुर ने विषे, इम इण अनुक्रमेहो जी काइ। शेष जाव अष्टम सुरे, उपजाविवो कहेहो जी कांइ ।। १४४. णवरं जे अवगाहना, इकवीसम पद मांह्यो जी काइ। नाम ओगाहण संठाण में,आख्यो तिम कहिवायो जी कांइ ।। सोरठा १४५. भवण व्यंतरा जेह, फुन सोहम्म ईशाण सुर। सप्त हस्त नी देह, उत्कृष्टी अवगाहना ।। १४६. तृतीय तुर्य षट हाथ, ब्रह्म लंतके पंच कर। सप्तम अष्टम ख्यात, चिउं कर नी अवगाहना ।। १४७. चिउं कल्पे कर तीन, वेयक कर दोय फुन । पंच अणुत्तर चीन, एक हस्त अवगाहना ।। १४८. लेश्या कहियै छै हिवै, सनतकुमार मांहिंदो जी काइ । ब्रह्म विषे इक पद्म छ, ऊपर शुक्ल कर्थिदो जी कांइ ।। १४९. वेद हिवै कहिये अछ, तृतीय कल्प थी ताह्यो जी काइ। पुरिस वेद एकज हुवै, इत्थि नपुंस न थायो जी कांइ ।। १५०. आयु में अनुबंध ही, जिम पन्नवणा मांह्यो जी कांइ । स्थिति पद चउथा नैं विषे, आख्यो तिम कहिवायो जी कांइ ।। १५१. शेष ईशाणक देव ने, जिमहिज ए अधिकारी जी काइ । कायसंवेध फुन जाणवो, सेवं भंते ! सारी जी कांइ ।। सोरठा १५२. तिरि पंचेंद्रिय माय, गुणचालीसज स्थान नों। आवै ते कहिवाय, पृथ्वीवत षटवीस जे ।। १५३. सात नारकी सोय, तीजा सू अष्टम लगे। एह कल्प षट होय, एगुणचाली इम हुई ।। १. देखें परि. २, यंत्र ९८-१०४ *लय : कुशल देश सुहामणों १४८. लेस्सा सणंकुमार-माहिंद-बंभलोएसु एगा पम्हलेस्सा, सेसाणं एगा सुक्कलेस्सा। १४९. वेदे नो इत्थिवेदगा, पुरिसवेदगा, नो नपुंसकवेदगा। १५.. आउ-अणुबंधा जहा ठितिपदे । 'जहा ठितिपए' त्ति प्रज्ञापनायाश्चतुर्थपदे स्थितिश्च प्रतीतैवेति । (वृ० ५० ८४२) १५१. सेसं जहेव ईसाणगाणं कायसंवेहं च जाणेज्जा । (. २४१२९३) सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति। (श० २४१२९४) श० २४, उ० २०, ढा० ४२८ १६१ Jain Education Intemational ducation Intemational Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाणत्ता सोरठा ताय, १५४. षट नारकि नां उपजतां पं. तिरि विषे जघन्य दोय भव थाय, उत्कृष्टा भव अष्ट फुन । १५५. तिरि पंचेंद्रिय मांय, उपजै सप्तम नरक नों। नव ही गमे कहाय, जघन्य थकी भव दोय तसु || १५६. घुर षट् गमे पिछाण, उत्कृष्टा छेले विण गम आण, उत्कृष्टा भव १५७. इम आगल उत्कृष्ट, सर्व विषे जमु ओछा भव इष्ट ते कहिसे नामे १५८. तिरि पंचेंद्रिय मांय, उपजे सातुं नरक जघन्य गमे कहाय, दोय णाणत्ता १५९. उत्कृष्ट गम पिण जोय, सप्तम दोष णाणत्ता होय, १६३. जघन्य गमे तेऊ नां फुन १६४. वनस्पति नां भव षट करें । च्यार ह्वै ॥ भव अष्ट ह्र । करी । नां । नें आयु १६०. भवनपती थी लेह, अष्टम तिरि पचेंद्री विषेह, उपजे १६१. जघन्य गमे सुजोय, आयू वारता ॥ नें अनुबंध नां । स्थावर विकेंद्रिय । दोय णाणत्ता होय, एहिज बे उत्कृष्ट गम ॥ १६२. तिरि पंचेंद्रिय मांय, पांच ऊपजता नें पाय, पूर्व उक्त जे कथीन, पृथ्वी अपनां तेनां ॥ अष्टम नवम गम । अनुबंध नों ॥ तणां सुरा । कल्प तेहनीं णाणत्ता || चिरं चिरं । वायु नां ॥ सप्त वलि । च्यार णाणत्ता तीन, पंच, विकलेंद्रिय नां ए सनोज विरंच इकतालीस है १६५. असन्नी पं. तिर्यंच, जाय पंचेंद्रिय जघन्य गमे विरंच, सात णाणत्ता १६६. उत्कृष्ट गमे कहाय, आयू नैं दोय णाणत्ता पाय, पिण तीजे नवमे १६७. तृतीय ग कहेह, पांच बोल नों मिथ्या ।। अर्ज | ॥ संख्याता उपजेह, ज्ञान नहीं दृष्टि १६८. भव ते दोय करेह, पर्याप्ताज एतीजा गमक विषेह, पंच बोलनों फेर १६९. फुन नवमे गमकेह, तीन बोल न फेर छे । संख्याता उपजेह, पर्याप्ता उपजै वली ॥ १७०. भव फुन दोय करेह, फेर बोल ए त्रिहुं तणो । १७१. फुन पं. तिरि विषे । । नव णाणत्ता ॥ युगल विषे विधे उपजेह उपजेह, उत्कृष्ट आयू नों धणी ।। सन्नी तिथंच ऊपजतां जघन्ये गभेज संच, पूर्व उक्त १७२. उत्कृष्ट गमेज संध, दोय आयु में अनुबंध न्याय विचारी १७३. तृतीय नवम गमकेह, संख्याता पर्याप्ता उपजेह, जघन्योत्कृष्टज दोय गाणता तेहनां । लीजिये ॥ ऊपजे | हिज भव || १६२ भगवती जोड़ नाणत्ता ॥ तिरि विषे । । तेनां || अनुबंध नों। गमे ॥ फेर छ । Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७४. बाकी सात गमेह, जघन्य थकी भव बे करै । उत्कृष्ट अठ भव लेह, कायसंवेधज जू-जुओ ॥ १७५. तिरि पंचेंद्रिय मांही, ऊपजतां असन्नी मनुष्य । नथी णाणत्ता ताहि, तीन गमा छै ते भणी ।। १७६. पंचेंद्रिय तिरि मांय, ऊपजतां सन्नी मनुष्य । जघन्य गम नव पाय, उत्कृष्ट गम त्रिण णाणत्ता ।। १७७. तीजे गमे कहाय, अवगाहना तसु जघन्य थी। पृथक आंगुल पाय, उत्कृष्टी धनु पंच सय । १७८. जघन्य थकी स्थिति जोड़, आयू पृथक मास नों। उत्कृष्ट पूर्व कोड़, संख्याता हिज ऊपजै ।। १७९. पर्याप्ता उपजंत, जघन्योत्कृष्टज दोय भव । तीजे गमके हुँत, एह बोल नों फेर छै । १८०. नवम गमे अवदात, संख्याता हिज ऊपजै । पर्याप्त उपपात, जघन्योत्कृष्टज दोय भव ॥ वा-७ नारकी ७, १० भवनपति १७, पंच स्थावर २२, ३ विकलेंद्रिय २५, असन्नी तिर्यंच पंचेंद्रिय २६, संख्यात वर्ष नां सन्नी तियंच पंचेन्द्रिय २७, संख्यात वर्षायु सन्नी मनुष्य २८, असन्नी मनुष्य २९, व्यंतर ३०, जोतिषी ३१, आठ पहिला देवलोक ३९-एवं ३९ ठिकाणा नों तियंच पंचेंद्रिय में ऊपज । १८१. तिरि पंचेंद्रिय मांय, गुणचाली स्थानक तणों। तास णाणत्ता पाय, कहियै छै ते सांभलो ।। १८२. तिरि पंचद्रिय मांय, उपजै सातुं नरक नों। जघन्य गमे बे पाय, आयू नैं अनुबन्ध नों।। १८३. उत्कृष्ट गमके जोय, कहियै बे-बे णाणत्ता। आयू तणोंज होय, फुन अनुबन्ध तणों कह्यो।। १८४. भवनपती दश भेव, व्यंतर थी सहस्सार लग । ए बीस स्थानक नां देव, ऊपजै पं.-तिर्यंच में । १८५. जघन्य गमे बे जोय, उत्कृष्ट गमके पिण बिहं । ___आयू तणोंज होय, फुन अनबन्ध नों णाणत्तं ।। १८६. पृथव्यादि चरिद, तिरि मनु असन्नी में सन्नी। ए बार स्थान नों संध, ऊपजतां पं.-तिरि विषे ।। १८७. ए बार ही स्थान, ऊपजतां पृथ्वी विषे । कह्या णाणत्ता जान, तिमज इहां जघन्योत्कृष्ट । १८८. *शत चउवीसम नों बीसमो, च्यारसी अठवीसमों ढालो जी कांइ। भिक्षु भारीमाल ऋषिराय थी, 'जय-जश' हरष विशालो जी कांइ ।। चतुविशतितमशते विशोद्देशकार्थः ॥२४॥२०॥ *लय : कुशल देश सुहामणों श० २४,८०२०, ढा०४२८ १६३ Jain Education Intemational Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ढाल : ४२९ दूहा १. मनुष्य अहो भगवंतजी! किहां थकी उपजत । स्यूं नारक थी ऊपजे, तिरि मनु सुर थी हुँत ! २. इम ऊपजवो जिम कह्यो, तिरि पंचेंद्री विषेह । तिमहिज कहिवो जाव ते, तमा थकी उपजेह ।। १. मणुस्सा णं भंते! कमोहितो उववज्जति-कि नेरइएहितो उववज्जति जाव देवेहितो उववज्जति ? २. गोयमा ! णेरइएहितो वि उववज्जति जाव देवेहितो वि उववज्जति । एवं उववाओ जहा पंचिदिय तिरिक्खजोणिउद्देसए जाव तमापुढविनेरइएहिंतो वि उववज्जति, ३. नो अहेसत्तमपुढविनेरइएहितो उववज्जति । (श० २४१२९५) ३. अधो सप्तमी महि तणां, नारक थकी निहाल । मनुष्य विषे नहिं ऊपजै, वलि पूछे गुणमाल । मनुष्य में प्रथम नरक नां नेरइया ऊपज, तेहनों अधिकार' * मनुष्य विषे जे ऊपज जी कांइ, तसु प्रश्नोत्तर जाण ।।(ध्र पदं) ४. रत्नप्रभा नां नारका जी प्रभु ! मनुष्य विषे आख्यात । जे ऊपजवा योग्य छै जी कितै काल स्थितिके उपपात जी कांइ ? ५. श्री जिन भाखै जघन्य थी जी कांइ, मास पृथक स्थितिकेह । उत्कृष्ट पूर्व कोड़ नां जी कांइ, आयु विष उपजेह जी कांइ ।। ४. रयणप्पभपुढविनेरइए णं भंते ! से भविए मणुस्सेसु उववज्जित्तए, से णं भंते ! केवतिकालद्वितीएसु उववज्जेज्जा? ५. गोयमा ! जहण्णेणं मासपुहुत्तद्वितीएसु, उक्कोसेणं पुवकोडिआउएसु। ६,७. रत्नप्रभानारका जघन्यं मनुष्यायुर्बध्नन्तो मासपृथक्त्वाद्धीनतरं न बघ्नति तथाविधपरिणामाभावादिति, (वृ० ५०८४५) ८. एवमन्यत्रापि कारणं वाच्यं, (व०५०८४५) सोरठा ६. रत्नप्रभा नां जाण, नारक बांधै जघन्य थी। मनुष्य आयु पहिछाण, पृथक मास तणोंज ते ।। ७. पृथक मास थी पेख, अतिहि हीन बंधै नथी। तथाविधि सुविशेख, जीव परिणाम अभाव थी। ८. एम अन्य पिण स्थान, कारण कहि निपुण जन । जिन प्रणीत पहिछाण, वचन तणांज प्रमाण थी। ९. *अवशेष वक्तव्यता तसू जी काइ, जिम पंचेंद्रिय तिर्यंच । तेह विषे जे ऊपजै जो कांइ, तिमहिज एह विरंच जी कांइ ।। १०. णवरं द्वार परिमाण में जी कांइ, जघन्य एक बे तीन । उत्कृष्टा फुन ऊपजै जो कांइ, संख्याताज कथीन जी काइ। सोरठा ११. नारक नों उपपात, संमूच्छिम मन में नथी। गर्भज विषेज थात, ते तो संख्याताज छै॥ ९. अवसेसा वत्तव्वया जहा पंचिदियतिरिक्खजोणिएस उववज्जंतस्स तहेव, १०. नवरं-परिमाणे जहण्णेणं एकको वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा उववज्जति । ११. नारकाणां संमूच्छिमेषु मनुष्येषत्पादाभावाद् गर्भजानां च सङ्ख्यातत्वात्सङ्ख्याता एव ते उत्पद्यन्त (वृ० प०८४५) इति, *लय : म्हारी सासूजी रे पांच पुत्र का अथवा वीरमती तर अंब नै जी कांड १. देखें परि. २, यंत्र १०५ ११४ भगवती जोड़ Jain Education Intemational For Private & Personal use only Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२. जहा तहिं अंतोमुहुत्तेहिं तहा इहं मासपुहुत्तेहिं संवेहं करेज्जा। १२. *जिम तिहां अंतर्मुहर्त करी जी कांइ, तेम इहां कहिवेह । मास पृथक करिने वली जी काइ, करिवू कायसंवेह जी कांइ ।। सोरठा १३. रत्नप्रभा थी जेह, ऊपजता पं.-तिरि विषे । __ अंतर्मुहूर्त करेह, जिम कीधो संवेध त्यां ।। १३. यथा तत्र पञ्चेन्द्रियतिर्यगुद्देशके रत्नप्रभानारकेभ्य उत्पद्यमानानां पञ्चेन्द्रियतिरश्चां जघन्यतोऽन्तर्मुहूर्त स्थितिकत्वादन्तर्मुहतः संवेधः कृतः (व० प० ८४५) १४. तथेह मनुष्योद्देशक मनुष्याणां जघन्यस्थितिमाश्रित्य मासपृथक्त्वैः संवेधः कार्य इति भाव (वृ०प० ८४५) १५. 'कालादेसेणं जहन्नेणं दस वाससहस्साई मासपुहुत्त मन्भहियाई' इत्यादि । (व०प० ८४५) १४. तिम इहां मनुष्य विषेह, ऊपजता धुर नारकी। पृथक मास करेह, करिवो कायसंवेध प्रति ॥ वा०-जिम निहां पंचेंद्रिय तिथंच उद्देशक नै विषे रत्नप्रभा नारकी ऊपजतां पचेंद्रिय तिर्यंच ने जघन्य अंतर्मुहूर्त स्थितिकपणां थकी अंतर्मुहूर्त करिकै संवेध कीधो। तिम इहां मनुष्य उद्देशक नै विषे मनुष्य नै जघन्य स्थिति प्रत आश्रयी पृथक मास करिकै संवेध करिवो इसो भाव ।' १५. फुन कालादेशेन, धुर गम अद्धा जघन्य थी। वर्ष सहस्र दश येन, मास पृथक फून अधिक ही। १६. उत्कृष्टो अवधार, अद्धा अष्ट भवां तणों। कहियै सागर च्यार, कोड़ पूर्व चिउं अधिक ही ।। १७. बीजे गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। ___ वर्ष सहस्र दश जेह, मास पृथक फुन अधिक ही। १८. उत्कृष्टो अवधार, अद्धा अष्ट भवां तणों। कहिये सागर च्यार, पथक मास चिउं अधिक फुन ।। १९. तीजे गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। वर्ष सहस्र दश जेह, कोड़ पूर्व फुन अधिक ही ।। २०. उत्कृष्टो अवधार, अद्धा अष्ट भवां तणों। कहिये सागर च्यार, कोड़ पूर्व चिउं अधिक ही। २१. चउथे गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। वर्ष सहस्र दश जेह, पृथक मास फुन अधिक ही। २२. उत्कृष्टो अवधार, अद्धा अष्ट भवां तणों। ____ वर्ष चालीस हजार, कोड़ पूर्व चिउं अधिक ही। २३. पंचम गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। वर्ष सहस्र दश जेह, पृथक मास फुन अधिक ही। २४. उत्कृष्टो अवधार, अद्धा अष्ट भवां तणों। वर्ष चालीस हजार, पृथक मास चिउं अधिक ही ।। २५. षष्ठम गम संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। वर्ष सहस्र दश जेह, कोड़ पूर्व फुन अधिक ही ।। २६. उत्कृष्टो अवधार, अद्धा अष्ट भवां तणों । __वर्ष चालीस हजार, कोड़ पूर्व चिउं अधिक ही ।। *लय : म्हारी सासूजी रे पांच पुत्र काइ १. वृत्ति के जिस अंश के आधार पर वातिका लिखी गई है, वह सोरठों के सामने आ गई। श० २४, उ• २१, ढा. ४२९ १६५ Jain Education Intemational Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३. सेसं तं चेव १-९। ३४. जहा रयणप्पभाए तहा सक्करप्पभाए वि वत्तव्वया, २७. सप्तम गम संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थो। सागर एक कहेह, पृथक मास फुन अधिक ही। २८. उत्कृष्टो अवधार, अद्धा अष्ट भवां तणों। कहिये सागर च्यार, कोड़ पूर्व चिउं अधिक ही। २९. अष्टम गम संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। सागर एक कहेह, मास पृथक फुन अधिक ही ।। ३०. उत्कृष्टो अवधार, अद्धा अष्ट भवां तणों। कहिये सागर च्यार, मास पृथक चिउं अधिक ही ।। ३१. नवम गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थो । सागर एक कहेह, कोड़ पूर्व फुन अधिक ही ।। ३२. उत्कृष्टो अवधार, अद्धा अष्ट भवां तणों। कहियै सागर च्यार, कोड़ पूर्व चिउं अधिक हो ।। ३३. *शेष संघयणादिक सहु जी कांइ, तिरि पंचेंद्री विषेह । रत्नप्रभा नां नारका जी कांइ, ऊपजता तिम एह जी कांइ ।। मनुष्य में दूसरी स्यू छट्ठी नरक नां नेरइयां ऊपज, तेहनों अधिकार' ३४. जिम रत्नप्रभा नै विषे कही जी कांइ, वक्तव्यता अवलोय । तिमहिज कहिवी वारता जो कांइ, सक्करप्रभा में सोय जी कांइ।। ३५. णवरं जघन्य थी जाणवो जी कांइ, पृथक वर्ष स्थिति केह। उत्कृष्ट पूर्व कोड़ में जी कांइ, आयु विषे उपजेह जी कांइ।। ३६. अवगाहना लेश्या वली जी कांइ, ज्ञान स्थिति पहिछाण । अनुबंध फुन संवेध – जी काइ, भेद नानापणं जाण जी कांइ ।। ३७. जिमहिज तिरि उद्देशके जी कांइ, आख्यो तिम कहिवाय । एवं जाव तमा मही जी काइ, नारक लग वर न्याय जी कांइ ।। वा--जो रत्नप्रभा थकी मनुष्य में ऊपज तो कितै काल स्थितिक मैं विषे ऊपजै ? हे गातम ! जघन्य पृथक मास उत्कृष्ट कोड पूर्व आयु विषे ऊपजै । शेष वक्तव्यता जिम तियंच पंचेंद्रिय में ऊपजतां ने कही तिमज। पिण एतलो विशेष जाणवो-परिमाण जघन्य १, २, ३, उत्कृष्ट संख्याता ऊपज । जिम तिहां अंतर्मुहुर्त कह्यो, तिम इहां पृथक मास सं संवेध करिवो। हिवै सक्करप्रभादिक जाव छठी तांइ रो विस्तार कहै छ इहां पाठ में इम कह्यो-जिम रत्नप्रभा नी वक्तव्यता तिम सक्करप्रभा नी, पिण एतलो विशेष-जघन्य पृथक वर्ष नी स्थितिक नै विषे उत्कृष्ट पूर्व कोड़ आयु नै विषे ऊपजे । अवगाहणा १, लेश्या २, ज्ञान ३, ठिति ४, अनुबंध ५, संवेध ६- ए छह बोल नै विषे नानापणं वलि जाणवू । जिम तियंच पंचेंद्रिय नै उद्देशे कह्यो इम यावत तमा पृथ्वी नां नारका इति शब्दार्थः । हिवं भावार्थ कहै छ-जिम रत्नप्रभा नी वक्तव्यता कही तिम सक्करप्रभा आदि नै विष पिण, णवरं एतलो विशेष-रत्नप्रभा थकी नीकली जघन्य पृथक मास स्थितिक ने विषे ऊपजै । अनै सक्करप्रभादिक जाव छठी थी नीकली ३५. नवरं-जहण्णेणं वासपुहुत्तट्टितीएसु, उक्कोसेणं पुवकोडीआउएसु। ३६. योगाहणा-लेस्सा-नाण-द्विती-अणुबंध - संवेह-नाणत्तं च जाणेज्जा ३७. जहेव तिरिक्खजोणियउद्देसए । एवं जाव तमापुढविनेरइए। (श० २४१२९६) १. देखें परि. २, यंत्र १०६-११. *लय : म्हारी सासूजी रे पांच पुत्र काइ १६६ भगगती जोड़ Jain Education Intemational Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जघन्य पृथक वर्ष स्थितिक नै विषे ऊपज, उत्कृष्ट कोड़ पूर्व आयु नै विष उपज । भने भवगाहणा, लेश्या, ज्ञान, ठिति, अनुबंध अनै संवेध-एहने विषे नानापर्यु जाणवू । जिम तिथंच उद्देशे कह्य, तिम कहिवू । इम जाव छठी लग जाणवू । सक्करप्रभा थी लेई छठी नां नेरइया तिथंच पंचेंद्री में ऊपजता ने अवगाहणा, लेण्या, ज्ञानद्वार में अज्ञान पिण ग्रहिवा । स्थिति, अनुबंध, संवेधे एहनुं नानापर्यु तियंच पंचेंद्रिय उद्देशे कह्य, तिम इहां सक्करप्रभादिक छठी थी निकली मनुष्य ने विषे ऊपजता ने अवगाहणा, लेश्या, ज्ञान, ठिति, अनुबंध अनै संवेध-एहन विषे नानापणु जाणवू । इहां लेश्या नों नानापणुं कह्य, ते पहिली में कापोत लेश्या, दूजी में ही कापोत लेश्या । एहन नानापणुं न हुवे ते भणी निकेवल दूजी नरक रा नेरइया आश्री न जणाय । दूजी प्रमुख जाव छठी तांइ रा नेरइया संभवै तथा तिथंच उद्देशे पाठ कह्यते कहै छै इहां कह्यो-रत्नप्रभा विषे ९ गमा कह्या, तिम सक्करप्रभा नै विषे पिण कहिवा । एतलो विशेष--- शरीर, अवगाहणा इकवीसमा पद में कह्य तिम । ३ ज्ञान, ३ अज्ञान की नियमा। स्थिति, अनुबंध पूर्वे का तिम । इहां निकेवल सक्करप्रभा आधी वारता कही ते रत्नप्रभा नै भलाई, पिण णवरं पाठ में लेश्या नथी कही ते किम ? रत्नप्रभा में लेश्या छ तिकाईज सक्करप्रभा में छै ते मार्ट णवरं पाठ कही लेश्या मों फरक नथी पाइयो। इम नव गमा उपयोगे करि कहिवा। ___ इम यावत छठी पृथ्वी ताइ । एतलो विशेष-अवगाहणा, लेश्या, स्थिति, अनुबंध, संवेध जाणवा । इहां दूजी सूं लेई छठी मिलायां णवरं पाठ में लेश्या नों फरक पाइयो, लेश्या जुदी-जुदी ते मार्ट । अने ज्ञान नों फरक नथी पाड्यो । सक्करप्रभा कही नै जाव छठी पुढवी कहिवी, इम कही णवरं पाठ कह्यो जिण में ज्ञान नों फरक नथी पाइयो । तिहां दूजी सूं छठी - विषे ३ ज्ञान, ३ अज्ञान नीं नियमा छ ते मारी ज्ञानद्वार में फरक नथी पाइयो । ए तिथंच उद्देशा नी वारता कही ते मार्ट इण मनुष्य उद्देशा नै विषे रत्नप्रभा नी वक्तव्यता कही तिम सक्करप्रभा नी पिण कहिवी । णवरं जघन्य पृथक वर्ष अनं उत्कृष्ट कोड़ पूर्व आयु नै विषे ऊपजै । णवरं में सक्करप्रभा में विशेष जाणवू । अनै अवगाहणा, लेश्या, ज्ञान, ठिति, अनुबंध अनै संवेध---एहन विषे नानापणुं जाणवू । जिम तिथंच उद्देशे कह्य, तिम कहिवू । एतले अवगाहणा, लेश्यादिक संवेध नै विषे नानापणुं जाणवू । जिम तिथंच उद्देशे कह्य, तिम कहियो । इम जाव छठी तांइ एहवू कह्य । इण वचने करी रत्नप्रभा सूं लेइ छठी ताइ तिथंच उद्देशा नै विषे ए छ बोल कह्या तिम कहिवा। __ तिहां तिथंच उद्देशे कह्य-रत्नप्रभा नै विषे कह्य तिम सक्करप्रभा नं विषे कहिवू । णवरं पाठ में लेश्या नों फरक नथी पाइयो तिम मनुष्य उद्देशा मैं विष पिण रत्नप्रभा में कह्यो तिम सक्करप्रभा में कहि, पिण तिण में लेश्या नों फरक न करिवो । अने तिर्यच उद्देशा नै विषे सक्करप्रभा नै विषे वारता कही-एवं जाव छठी इम कही। णवरं शब्द में ज्ञान नों फरक नथी पाड्यो, तिम मनुष्य उद्देशा नै विषे पिण सक्करप्रभा नै विषे कह्य । इम जाव छठी लगे कहिवू । णवरं शब्द में ज्ञान नों फरक नथी कहिवो ते मारी पहिली सूं जाव छठी रा नेरइया में अवगाहणा, लेश्या, ज्ञानादिक रो फरक पड़े ते बोल एवं जाव तमा पुढवीए इण पाठ पहिलां कह्या छ । तियंच उद्देशे तो रत्नप्रभा कही तिम सक्कर । पर्छ णवरं में लेश्या नों फरक नथी पाइयो अनै ज्ञानद्वारे फरक श० २४, उ० २१, ढा० ४२९ १६७ Jain Education Intemational Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कह्यो अनै सक्कर तिम जाव छठी कही। णवरं पाठ में लेश्या नों फरक पाड्यो, ज्ञान नों फरक नथी पाड्यो । इम दोय ठिकाणे णवरं पाठ कही जूओ-जूओ फरक कह्यो । अन इहां मनुष्य उद्देशे पहिली सूं एवं जाव तमापुढवीनेरइयाए पाठ थी पहिला अवगाहणा, लेश्या, ज्ञानादिक नों नानापणुं जिम तिथंच उद्देशे कह्यो तिम कहिवो, इम कह्यो ते भणी रत्नप्रभा थी जाव तमा नै विषे ए अवगाहणादिक नै विषे नानापणुं विचारी कहि । मनुष्य में तियंच ऊपजे३८. *जो तिर्यंचयोनिक थकी जी काइ, मनुष्य विषे उपजेह । तो स्यूं एकेंद्रिय तिरि थकी जी काइ, जाव पं.-तिथंच थी लेह जी कांइ? ३९. जिन कहै एकेंद्रिय थकी जी काइ, इत्यादिक जे भेद । जिम पं.-तिरि उद्देश में जी कांइ, दाख्यो तिम संवेद जी कांइ । ४०. णवरं तेउ वाउ थकी जी काइ, नीकल मनुष्य न थाय । शेष तिमज कहिवो सहु जी कांइ, भेद पूर्ववत ताय जी कांइ ।। मनुष्य में पृथ्वीकाय ऊपज, तेहनों अधिकार' ४१. जाव पृथ्वोकायिक प्रभुजी ! कांइ, मनुष्य विषेज कहेह । ए ऊपजवा योग्य छै जी कांइ, कितै काल स्थिति के उपजेह जी कांइ ? ३८. जइ तिरिक्खजोणिएहितो उववज्जंति-कि एगिदिय तिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति जाव पंचिदिय तिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति ? ३९. गोयमा ! एगिदियतिरिक्खजोणिएहितो भेदो जहा पंचिदियतिरिक्खजोणियउद्देसए, ४०. नवरं-तेउ-वाऊ पडिसेहेयव्वा । सेसं तं चेव । ४२. जिन भाख जघन्य थी जी कांइ, अंतर्महत स्थितिकेह । उत्कृष्ट पर्व कोड़ नै जी कांइ, आयुष्के उपजेह जी काइ।। ४३. हे प्रभुजी ! ते जोवड़ो जी कांइ, इम जिम पृथ्वीकाय । ऊपजता पं. तिरि विषे जी कांइ, वक्तव्यता कहिवाय जी कांइ ।। ४१. जाव (श० २४१२९७) पुढविक्काइए णं भंते ! जे भविए मणुस्सेस उववज्जित्तए, से णं भते ! केवतिकालद्वितीएसु उव वज्जेज्जा? ४२. गोपमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तद्वितीएसु उक्कोसेणं पुवकोडीआउएसु उववज्जेज्जा। (श० २४१२९८) ४३. ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उव वज्जति ? एवं जहेव पंचिदियतिरिक्खजोणिएसु उववज्जमाणस्स पुढविक्काइयस्स वत्तव्वया ४४. सा चेव इह वि उववज्जमाणस्स भाणियव्वा नवस वि गमएसु, ४५. नवरं–ततिय-छट्ठ-नवमेसु गमएसु ४६. परिमाणं जहण्णेणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा उववज्जति । ४४. वक्तव्यता ते सहु इहां जी कांइ, पृथ्वीकायिक जेह । ऊपजतो जे मनुष्य में जी कांइ, कहिवू नव ही गमेह जी कांइ ।। ४५. णवरं इतरो विशेष छै जी कांइ, तृतीय छठे नवमेह । ए तीनई गम विषे जी कांइ, इम परिमाण कहेह जी कांइ ।। ४६. परिमाण जघन्य थकी कह्य जी काइ, इक बे अथवा तीन । संख्याता उत्कृष्ट थी जी कांइ, उपजै एम कथीन जी कांइ ।। वा०-तीजे गमे ओधिक पृथ्वीकायिक थकी उत्कृष्ट स्थिति वाला मनुष्य नै विषे जे ऊपजे, ते उत्कृष्ट थकी संख्याताइज हुवै। जदपि मनुष्य संमूच्छिम सग्रह थकी असंख्याता हुवै तो पिण उत्कृष्ट स्थिति ना धणी पूर्व कोड़ आउखा वाला संख्याताइज जाणवा । अनै तीजे गमे ओधिक पृथ्वीकायिक थकी पंचेंद्रिय तियच नै विषे जे ऊपजे, ते असंख्याता पिण हुवै । इम छठे अनै नवमे गमे पिण संख्याता ऊपज, इति । *लय : म्हारी सासूजी रे पांच पुत्र काइ १. देखें परि. २, यंत्र १११ वा०-तत्र तृतीये ओधिकेभ्यः पृथिवीकायिकेभ्य उत्कृष्टस्थितिषु मनुष्येषु ये उत्पद्यन्ते ते उत्कृष्टत: सङ्खचाता एव भवन्ति, यद्यपि मनुष्या: संमूच्छिमसंग्रहादसङ्खचाता भवन्ति तथाऽप्युत्कृष्ट स्थितयः पूर्वकोटयायुषः सङ्खचाता एव पञ्चेन्द्रियतियंञ्चस्त्वसङ्खचाता अपि भवन्तीति, एवं षष्ठे नवमे चेति । (वृ०प० ८४५) १६८ भगवती जोड़ Jain Education Intemational Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७. आपणपैज पृथ्वी जदा जो कांइ, जघन्य स्थितिक जो होय । मध्यम हिंगम जपनिया जी कांड, तमु लेखो ए जोय जी कांइ ॥ ४८. प्रथम जघन्य गमे जदा जी कांइ, पुढवी नां अवलोय । अध्यवसाय हुवै भला जी कांइ, मूंडा पिण तसु होय जो कांइ । सोरठा जपन्यायु मनु मनु नें ने विषे । अपसत्थ अध्यवसाय जे || उत्कृष्टायू मनु विषे । तसु ॥ ५०. महि जघन्यायुवंत, ऊपजतांज कहत अध्यवसाय भलाज ५१. तुर्य गमो एह जयन्य अनं छै ॥ अधिक तणों। जघन्य स्थितिक महि जेह, ओषिक मनु में उपजे ॥ ५२. * द्वितीय जघनिया गमा विषे जी कांइ, पृथ्वी न पहिछाण । अध्यवसाय हुवै बुरा जी कांइ, वर जिनवर नीं वाण जी कांइ ।। ४९. महि जपन्यावंत, ऊपजतां तसु त सोरठा ५३. पंचम गम ए हुंत, जघन्य अने वलि जघन्य ए । जघन्वायु महि जेत, जघन्य स्थितिक मनु ने विधे । ५४. प्रशस्त अध्यवसाय, तेहची जघन्य स्थितिक विषे। ऊपजवूं नहिं थाप, वृत्ति विषे पिण इम का ॥ ५५. माठा अध्यवसाय, तिण करि बांध्यो आउयो । जघन्य स्थितिक मनु वाय ए आयु प्रकृति पाप नीं ॥ बंध नहीं। 3 ५६. असुभ अध्यवसाय, तिणसू पुन्य पाप कर्म बंधाय प्रवर न्याय ए पाध || ५७. प्रकीर्ण मांहि पिछाण, तिर्यंच मनु नो आउखो । एकंत पुन्य नीं जाण, प्रकृति स्थाप विरुद्ध ते ॥' [ज०स०] स्थितिक मनुष्य नैं करि जे जघन्य वा० - इहां जघन्य स्थिति वालो पृथ्वीकाइयो जघन्य विषे जे ऊपजं, तेहनां अध्यवसाय माठा कह्या । इण वचने स्थितिक सन्नी मनुष्य नैं विषे तथा असन्नी मनुष्य नैं विषे पृथ्वीकाइयो माठा अध्यवसाय सूं ए आउखो बांधे, ते भणी सन्नी मनुष्य नों आउखो तथा असन्नी मनुष्य नों आउखो पाप री प्रकृति संभवे । जघन्य स्थितिक जघन्य स्थितिक ५८. * तीजा जघनिया गमा विषे जी कांइ, पृथ्वीकाय नां पेख । अध्यवसाय हुवै भला जी कांइ, जिन वच विमल विशेख जो कांइ ॥ *लय : म्हारी सासूजी ₹ पांच पुत्र कांद ४७. जाहे अपणा जहणकाल द्वितीओ भवति ताहे ४८. पढमगमए अज्झवसाणा पसत्था वि अप्पसत्था वि ४९, ५०. मध्यमगमानां प्रथमगमे औधिकेषूत्पद्यमानतायामित्यर्थः अध्यवसानानि प्रशस्तानि उत्कृष्ट स्थितिकत्वेनोत्पत्तौ अप्रशस्तानि च जघन्यस्थितिकत्वेनोत्पत्तौ ( वृ० प० ८४५) ५२. बितियगमए अप्पसत्या, ५३, ५४. 'बीयगमए' त्ति जघन्यस्थितिकस्य जघन्यस्थितित्यतावशस्तानि प्रस्ताध्यवसानेभ्यो जघन्यस्थितिकत्वेनानुत्पत्तेरिति, ( वृ० प० ८४५) ५८. ततियगमए पसत्था भवंति । श० २४, उ० २१. डा० ४२९ १६९ Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३. सेसं तं चेव निरवसेसं १-९। (श० २४।२९९) सोरठा ५९. 'षष्ठम गमके ताहि, जघन्य स्थितिक महि ऊपजे । ___ जेष्ठ स्थितिक मनु मांहि, अध्यवसाय भलाज तसुं॥ ६०. प्रशस्त अध्यवसाय, तिण करि बांध्यो आउखो। जेष्ठ स्थितिक मनु थाय, ए आयू पुन्य प्रकृति छै ।। ६१. पंचम षष्ठम पेख, ए बिहुं गम में न्याय करि । मनुष्यायु सुविशेख, प्रकृति पाप फुन पुन्य री।। ६२. जेह मनुष्य नों जोय, जघन्य आउखो पाप छै । उत्कृष्ट आयू होय, तेह पुन्य नी प्रकृति छै ।' [ज०स०] ६३. शेष संघयणादिक सहु जी कांइ, महि पं. तिरि ने मांय । ऊपजतां नै आखिया जी कांइ. तिमज इहां कहिवाय जी काइ। वा०-'पृथ्वी, पाणी, वनस्पति, तीन विकलेंद्रिय, असन्नी तियंच पंचेंद्रिय, संख्यात वर्षायु सन्नी तिथंच पंचेंद्रिय, संख्यात वर्षायु सन्नी मनुष्य--- ए ९ मनुष्य में ऊपजता नै छठे गमे प्रथम ३ लेश्या अन अध्यवसाय भला कह्या । ते भला अध्यवसाय में माठी लेश्या किम संभवै ? तेहर्नु उत्तर-ए ३ माठी लेण्या द्रव्य लेश्या संभवै, पिण अध्यवसाय रूप भाव लेश्या न संभव । अन उत्तराध्येन अध्येन ३४१३३ में लेश्या नां अध्यवसाय असंख कहा। तिहां अध्यवसाय रूप लेश्या कही, ए भाव लेण्या छ । तथा पन्नवणा पद १७ उद्देशे ३ सू. ११२ कृष्ण लेश्या में ४ ज्ञान कह्या । तिहां टीका में इम कह्यो-कृष्ण लेश्या नां अध्यवसाय नां स्थानक असंख्याता लोकाकाश प्रदेश प्रमाण छ। तिण माहिलो कोई मंद अध्यवसाय में मनपर्यव पाय जावै। इहा पिण अध्यवसाय रूप लेश्या कही, ते भाव लेण्या छ। ते मार्ट पृथव्यादि ९ मनुष्य में ऊपजतां ने छठे गमे अध्यवसाय भला कह्या, तिण में कृष्णादि ३ लेश्या अध्यवसाय रूप भाव लेश्या न संभव, द्रव्य लेश्या संभवै ।' (ज० स०) मनुष्य में अपकाय आदि ९ ठिकाणां ना ऊपजे, तेहनों अधिकार' ६४. इम अप मन में ऊपजे जी काइ, इमज वणस्सइकाय । एवं जाव चउरिद्रिया जी कांइ, ऊपजतां मनु मांय जी काइ।। ६५. असन्नी पंचेंद्रिय तिरि जी काइ, फुन सन्नी तिर्यंच । असन्नी मनुष्य सन्नी मनु जी काइ, ए सगलाई संच जी कांइ ।। वा०-इह लेश्यानां प्रत्येकासंख्येयलोकाकाशप्रदेशप्रमाणान्यध्यवसायस्थानानि, तत्र कानिचित् मन्दानुभावान्यध्यवसायस्थानानि प्रमत्तसंयतस्यापि लभ्यन्ते, अत एव कृष्णनीलकापोतलेश्या अन्यत्र प्रमत्तसंयतान्ता गीयन्ते. मन:-पर्यवज्ञानं च प्रथमतोऽप्रमत्तसंयतस्योत्पद्यते ततः प्रमत्तसंयतस्यापि लभ्यते इति सम्भवति कृष्णलेश्याकस्यापि मनःपर्यवज्ञानम् । (प्रज्ञा० वृ• ५० ३५७) ६४. जइ आउक्काइए? एवं आउक्काइयाण वि। एवं वणस्सइकाइयाण वि । एवं जाव चारिदियाण वि। ६५. असण्णिपंचिदियतिरिक्खजोणिय-सण्णिपंचिदियतिरि जोणिय-असण्णिमणुस्स-सण्णिमणुस्सा य एते सव्वे वि ६६. जहा पंचिदियतिरिक्ख जोणियउद्देसए (२४१२४८ २८२) तहेव भाणियब्वा, ६६. जिम पं.-तिरि उद्देशके जी काइ, तिमहिज भणवो एह । ऊपजतां पं.-तिरि विषे जी कांइ, तिमहिज मनुष्य विषेह जी कांइ॥ ६७. णवरं एहिज निश्चै करी जी कांइ, एह तणों परिमाण । अध्यवसाय तणों वलि जी काइ, भेद नानापणुं जाण जी काइ। ६८. पृथ्वीकायिक नों कह्यो जी काइ, मनुष्य विषे उपपात । उद्देशक एहिज विषे जी काइ, ___तिम इहां पिण अवदात जी काइ । १. देखें परि. २, यंत्र ११२-१२० ६७. नवरं-एयाणि चेव परिमाण-अज्झवसाणनाणत्ताणि जाणिज्जा ६८. पुढविकाइयस्स एत्थ चेव उद्देसए भणियाणि। १७० भगवती जोड़ Jain Education Intemational Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६९. सेसं तहेव निरवसेसं १-९। (श० २४१३००) ७०. जइ देवेहितो उववज्जंति-किं भवणवासिदेवेहितो उववज्जति? वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणियदेवेहितो उववज्जति ? ७१. गोयमा ! भवणवासिदेवेहितो वि जाव वेमाणिय देवेहितो वि उववज्जति । (श० २४॥३०१) वा.-असन्नी तियंच पंचेंद्रिय, सन्नी तियंच पंचेंद्रिय, असनी मनुष्य, सन्नी मनुष्य-ए च्यार ठिकाणां रो सन्नी मनुष्य में विषे ऊपज, तेहना भव अनै नाणत्ता री विधि उद्देशक वीसमा नी पर जाणवी। जिम वीसमें उद्देसे कह्य तिर्यंच पंचे द्रिय नै विषे असन्नी-सन्नी तियंच पंचेंद्रिय, असन्नी-सन्नी मनुष्य ऊपजता नै भव अने नाणत्ता कह्या, तिम असन्नी-सन्नी तिर्यच पंचेंद्रिय, असन्नीसन्नी मनुष्य मनुष्य में ऊपजता नै भव अन नाणत्ता। पिण णवरं एतलो विशेष -ए च्यारूं मनुष्य नै विषे ऊपजतां नै परिमाण, अध्यवसाय नों नानापणुं जे पृथ्वीकाय मनुष्य विषे ऊपजता नै परिमाण अध्यवसाय का, तिम कहिवा। ६९. शेष संघयणादिक सह जी कांइ, जिम पं.-तियंच मांय । ए चिउं ऊपजतां कह्या जी कांइ, तिमज इहां कहिवाय जी कांइ॥ हिवं देव थकी मनुष्य नै विषे ऊपजै७०. देव थकी जो ऊपजै जी कांइ, तो स्यू भवनपति थी होय? व्यंतर नैं जोतिषी थकी जो कांइ, वैमानिक थी जोय जी कांइ? ७१. जिन कहै भवनपति थकी पिण, मनुष्य विष उपजेह । जाव वैमानिक सुर चवी जी काइ, मनुष्य तणों भव लेह जी कांइ ।। मनुष्य में असुरकुमार ऊपज, तेहनों अधिकार' ७२. जो भवनपति सुरवर थकी जी कांइ, मनुष्य विषे उपजेह । तो स्यूं असुरकुमार थी जी कांइ, जाव थणित थी लेह जी कांइ ? ७३. जिन कहै असुरकुमार थी जी कांइ, यावत थणियकुमार । ते पिण सुरवर नीकली जी काइ, उपजै मनुष्य मझार जी कांइ ।। ७४. असुरकुमारज हे प्रभुजी ! कांइ, मनुष्य विषेज कहेह । जे ऊपजवा जोग्य छै जो कितै काल स्थितिके उपजेह जी कांइ? ७५. श्री जिन भाखै जघन्य थी जी कांइ, मास पृथक स्थितिकेह। उत्कृष्ट कोड़ पूर्व तण जी कांइ, आयु विष उपजेह जी कांइ॥ ७६. एवं जिकाहिज वारता जी काइ, तिरि पंचेंद्री उद्देश । तिरि पंचेंद्रिय नै विषे जी काइ, असुर ऊपजे शेष जी कांइ ॥ ७७. तेहिज वक्तव्यता इहां जी कांइ, भणवी ए अवधार । मनुष्य विषे जे ऊपजै जी काइ, सुरवर असुरकुमार जी कांइ ॥ ७८. णवरं इतरो विशेष छै जी कांइ, जिम तिहां जघन्य आख्यात । अंतर्महर्त तिरि स्थितिक में जी काइ, असुर तणों उपपात जी कांइ ।। १. देखें परि. २, यंत्र १२१ ७२. जइ भवणवासिदेवेहितो-किं थणियकुमार ? असुरकुमार जाव ७३. गोयमा ! असुरकुमार जाव थणियकुमार । (श० २४१३०२) ७४. असुरकुमारे णं भंते ! जे भविए मणुस्सेसु उव वज्जित्तए, से णं भंते ! केवतिकालद्वितीएसु उव वज्जेज्जा? ७५. गोयमा ! जहण्णेणं मासपुहत्तद्वितीएसु, उक्कोसेणं पुवकोडिआउएसु उववज्जेज्जा। ७६. एवं जच्चेव पंचिदियतिरिक्खजोणियउद्देसए ७७. वत्तब्वया सच्चेव एत्थ वि भाणियब्वा, ७८. नवरं-जहा तहिं जहण्णगं अंतोमुत्तट्टितीएसु श० २४, उ० २१, ढा. ४२९ १०१ Jain Education Intemational Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७९. तहा इहं मासपुहत्तट्टितीएसु । ५०. परिमाणं जहणणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा उववज्जति । ८१. सेसं तं चेव १-९ । ८२. एवं जाव ईसाणदेवो त्ति । ८३. एयाणि चेव नाणत्ताणि । ७९. तेम इहां पिण जाणवो जी कांइ, जघन्य थकी कहिवाय । मास पृथक मनु स्थितिक में जी काइ, असुर ऊपज आय जी कांइ ।। ५०. द्वार परिमाण विषे वलि जी कांइ, जघन्य एक बे तीन । उपजै फुन उत्कृष्ट थी जी कांइ, संख्याताज सुचीन जी कांइ ।। ८१. शेष तिमज कहिवो सह जी कांइ, जाव तिरि-पं. माय । ऊपजतांतिम मनु विषे जी कांइ, असुर उपजता पाय जी कांइ ।। मनुष्य में नवनिकाय यावत दूसरे देवलोक तक नां देव ऊपज, तेहनों अधिकार' ५२. एवं यावत जाणवो जी कांइ, नागकुमार थी लेह । देव ईशान थकी चवी जी कांइ, ऊपजवूज कहेह जी कांइ ।। ५३. जिम तिहां जघन्य स्थितिक तणों जी कांइ, अथवा वलि परिमाण । भेद नानापणुं भाखियो जी कांइ, तेम इहां पिण जाण जी कांइ ।। ८४. सनतकुमार थी आदि दे जी कांइ, यावत सुर सहसार । तिरि पंचेंद्री उद्देशके जो कांइ, जिम भाख्यो तिम धार जी कांइ ।। ८५. णवरं इतरो विशेष छै जी कांइ, इम परिमाण जघन्य । एक दोय त्रिण ऊपजै जी कांइ, उत्कृष्ट संख्या जन्य जी कांइ।। ८६. फुन उपपातज जघन्य थी जी कांइ, पृथक वास स्थितिकेह। उत्कृष्ट कोड़ पूर्व तणे जी कांइ, __ आयु विषे उपजेह जी कांइ ।। ८७. शेष संघयणादिक सहु जी काइ, तिरि पंचेंद्री उद्देस । उपजै पं.-तिरि नै विषे जी कांइ, ___इमज मनु में कहेस जी कांइ । ८८. संवेध मास पृथक नों जी कांइ, पूर्व कोड़ विषेह । ___ करिवो असुरादिक विषे जी कांइ, देव ईशाण लगेह जो कांइ। ८९. संवेध वर्ष पृथक नै जी काइ, पूर्व कोड़ विषेह । सनतकुमारादिक विषे जी कांइ, उपजै ते मन लेह जी काइ॥ ९०. सनतकुमार नी स्थिति वली जी कांइ, उत्कृष्ट सागर सात । चतुर्गुणी कोधां तसु जी काइ, अठवीस सागर आत जी कांइ।। सोरठा ९१. जदा ओघिक थी जेह, फुन उत्कृष्टज स्थितिक थी। जे सुरवर उपजेह, ओधिक आदिज मनु विषे ।। ९२. उत्कृष्टी स्थिति इष्ट, तिण काले ह सूर तणीं। तिका स्थिती उत्कृष्ट, संवेध वांछा नै विषे ।। ९३. मनु भव च्यार करेह, . अनुक्रम अंतरिता करी। तेह थकी इम लेह, सनतकुमारादिक तणीं ।। ८४. सणंकुमारादीया जाव सहस्सारो त्ति जहेव पंचिदिय तिरिक्खजोणिउद्देसए, ८५. नवरं-परिमाणं जहणेणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा उववज्जति । ८६. उववाओ जहण्णेणं वासपुहत्तद्वितीएसु, उक्कोसेणं पुवकोडीआउएसु उववज्जेज्जा। ८७. सेसं तं चेव। ८९. संवेहं वासपुहत्तं पुवकोडीसु करेज्जा । ९०. सणंकुमारे ठिती चउगुणिया अट्ठावीससागरोवमा भवति ९१. यदा औधिकेभ्य उत्कृष्टस्थितिकेभ्यश्च देवेभ्य औधिकादिमनुष्येषूत्पद्यते (व० ५०८४५) ९२. तदोत्कष्टा स्थितिर्भवति सा चोत्कृष्टसंवेधविवक्षायां (वृ० प०८४५) ९३. चतुभिर्मनुष्यभवः क्रमेणान्तरिता क्रियते, (वृ० ५०८४५) १. देखें परि. २, यत्र १२२-१२६ १७२ भगवती जोड़ Jain Education Intemational Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मनुष्य में तीसरे स्यूं आठवें देवलोक तक नां देव अपने तेनों अधिकार' ९४. सनतकुमार विषेह, सात कियां चगुणी लेह, अष्टवीस सागर उत्कृष्ट स्थिति । सागर हुवै ॥ ९५. *महेंद्र सात जाभी कही जी कांड, चतुर्गुणी किंवा ताय । अष्टवीस सागर तिका जी कांड, जारी कहिवाय जी कांइ । ९६. ब्रह्म जेष्ठ दश उदधि नीं जी कांइ, चतुर्गुणी कियां ताय । चालीस सागर नीं हुवै जी कांइ, स्थिति उत्कृष्ट कहाय जी कांइ ॥ ९७. लंतक चवद उदधि तणीं जी कांइ, उत्कृष्टी स्थिति एह । चतुर्गुणी कीधा हुवे जी कांद, सागर छप्पन जेह जी कांइ ॥ ९८. महाशुक सतरोदधि जी कांइ, उत्कृष्ट भव स्थिति थाय । चतुर्गुणी कीधांतिका जी कोइ अड़सठ सागर आय जी कांइ ॥ ९९. अष्टम कल्प अठार नीं जी कांइ, उत्कृष्टी स्थिति होय । चतुर्गुणी कीधांतिका जी कांइ, उदधि महोत्तर जोव जी कांइ ॥ १००. ए उत्कृष्टी स्थिति कही जी कांइ, जघन्य स्थिति पिण तास । चतुर्गुणी करवी बली जी कांइ, वर जिन वचन विमास जी कांइ । सोरठा १०१. जदा जघन्य स्थिति जाण, चवी तृतीय कल्पादि थी । उपजे तेह पिछाण ओषिक आदिक मनु विषे ॥ १०२. जघन्य स्थिति अवलोय हुवे तदा ते सुर वणीं । तिका स्थित फुन जोय, तिमहिज करवी चउगुणी ॥ १०३ सतनकुमार आदि, जघन्य दोय सागर प्रमुख । कियां चउगुणी लाधि, अष्ट आदि सागर हुवै || वा० - जघन्य नैं अधिक, जघन्य नैं जघन्य, जघन्य ने उत्कृष्ट-- ए बिचले तीन गमे जघन्य स्थिति वाला सनतकुभारादिक अधिकादिक मनुष्य में ऊपजै । तेहनां जघन्य बे भव, उत्कृष्ट ८ भव करें तिहां सनतकुमारादिक जघन्य स्थिति नां ४ भव । तिहां जघन्य स्थिति नैं चउगुणी करणी प्रथम तीन गमे अने छेने तीन मे भव में सनत्कुमारादिक तुरनी उत्कृष्ट स्थिति में उगुणी करवी । मनुष्य में नौवें देवलोक नां देव ऊपर्ज, तेहनों अधिकार १०४. आणत सुरवर हे प्रभु! कांइ, मनुष्य विषेज कहेह । सुर ऊपजवा जोग्य छे जी कांइ, कितै काल स्थितिक उपजेह जी कांइ ? * लय : म्हारी सासूजी रे पांच पुत्र कांइ १. देखें परि. २ यंत्र १२७- १३२ २. देखें परि. २, यंत्र १३३ ९४. सनत्कुमारदेवानामष्टाविंशत्यादिसागरोपममाना भवति सप्तादिसागरोपमप्रमा णत्वात्तस्य इति; ( वृ० प० ८४५) ९५. माहिदे ताणि चैव सा तिरेगाणि, ९६. बीए पालीसं ९७. लंत छप्पन्नं, ९. महान अस ९९. सहस्सा रे बावर्त्तार सागरोत्रमाई । १००. एसा उक्कोसा ठिती भणिया । जहण्णट्ठिति पि गुणेा । (८० २४११०३) १०२. यदा अधिकादिमनुब्येषूत्पद्यते ( वृ० प० ८४५) १०२. तदा जन्यस्थितिर्भवति सा च तथैव चतुर्मुतिा (५० प० ८४५) १०३. कुमारादिसाररोपममाना भवति पादसागरो पममानत्वात्तस्या इति । ( वृ० प० ८४५) पुनर्जन्यस्थितिकदेवेभ्य १०४. आणदेवे भंते! जे भनिए मोनु उत्तिए से णं भंते! केवतिकालद्वितीएसु उववज्जेजा ? श० २४, उ० २१, ढा० ४२९ १७३ Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०५. गोयमा ! जहणेणं वासपृहत्तद्वितीएस, उक्कोसेणं पुवकोडीठितीएसु उववज्जेज्जा । (श ० २४।३०४) १०६. ते णं भते ! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जति ? १०५. श्रीजिन भाखै जघन्य थी जी काइ, वर्ष पृथक स्थितिकेह । उत्कृष्ट कोड़ पूर्व तण जी काइ, आयु विषे उपजेह जी कांइ ।। १०६. हे भगवंतजी! ते सूरा जी काइ, आणत थीज चवेह । एक समय किता ऊपजै जी कांइ! इत्यादिक पूछेह जी कांइ ।। १०७. इम जिम आखी वारता जी काइ, सुर सहसार तणेह । तिम कहिवी णवरं इतो जी काइ, . विशेष भणवो एह जी कांइ॥ १०८. अवगाहन स्थिति देव नी जी काइ, फुन अनुबंध में फेर । उपयोगे करि जाणवू जी कांइ, शेष अष्टम जिम हेर जी कांइ॥ १०७. एवं जहेव सहस्सारदेवाणं वत्तव्वया, नवरं १०८. ओगाहणा-ठिति-अणुबंधे य जाणेज्जा । सेसं तं चेव । सोरठा १०९. आणत आदिक च्यार, देव तणीं अवगाहना । उत्कृष्टी अवधार, तीन हस्त भवधारणी॥ ११०. आणत स्थिती जघन्य, अष्टादश सागर तणीं। उत्कृष्टी तसु जन्य, सागर एगुणवीस नी ।। १११. पाणत कल्पे जोय, जघन्य एगुणवीस दधि । उत्कृष्टी स्थिति होय, सागर वीस तणी तिहां ।। मनुष्य में दसवें स्यूं बारहवें देवलोक मां देव ऊपज, तेहनों अधिकार' ११२. आरण जघन्य जेह, स्थिती वीस सागर तणीं। उत्कृष्टी इम लेह, एक वीस जे उदधि नीं। ११३. अच्युत सुर स्थिति जाण, एकवीस सागर जघन्य । उत्कृष्टी पहिछाण, सागर जे बावीस नी ।। ११४. आऊ जितो अनुबंध, शेष संघयणादिक जिके । सहसार जिम संध, कायसंवेध हिवै कहूं ।। ११५. *भवादेश करि जघन्य थी जी काइ, बे भव ग्रहण करेह । उत्कृष्ट ज षट भव करी जी कांइ, त्रिण सुर त्रिण मनु लेह जी कांइ ।। ११६. कालादेश करि जघन्य थी जी काइ, कहियै उदधि अठार । वर्ष पृथक अधिका वली जी कांइ, बे भव अद्धाधार जी काइ।। ११७. उत्कृष्टो अद्धा तसु जी काइ, षट भव नं इम जोड़ । उदधि सतावन आखिया जी कांइ, फुन त्रिण पूर्व कोड़ जी काइ।। ११५. भवादेसेणं जहण्णणं दो भवग्गहणाई, उक्कोसेणं छ भवग्गहणाई। 'उक्कोसेणं छब्भवग्गहणाई' ति त्रीणि दैविकानि श्रीण्येव क्रमेण मनुष्यसत्कानीत्येवं षट्, (वृ०प०८४५) ११६. कालादेसेणं जहणेणं अट्ठारस सागरोवमाई बास पुहत्तमन्महियाई, ११७. उक्कोसेणं सत्तावन्न सागरोवमाई तिहिं पुव्वकोडीहिं अन्भयिाई, १. देखे परि. २, यंत्र १३४-१३६ *लय : म्हारी सासूजी रै पांच पुत्र कांड १७४ भगवती जोड़ Jain Education Intemational Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोरठा ११८. उत्कृष्ट एगुणवीस, सागर तीन गुणां किया। सप्त पचास जगीस, उदधि हुवै आणत विषे ।। ११८. आनते उत्कृष्टस्थितेरेकोनविंशतिसागरोपमप्रमा णाया भवत्रयगुणनेन सप्तपञ्चाशत्सागरोपमाणि भवन्तीति । (व०प०८४५) ११९. एवतियं काल सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा । १२०. एवं नव वि गमा, नवरं-ठिति अणुबंध संवेहं च जाणेज्जा। १२१. एवं जाव अच्चुयदेवो, नवरं-ठिति अणुबंध संवेहं च जाणेज्जा। १२२. पाणयदेवस्स ठिती तिगुणिया सटुिं सागरोवमाई, १२३. आरणगस्स तेवढेि सागरोवमाई, १२४. अच्चुयदेवस्स छावर्द्धि सागरोवमाई। (श० २४१३०५) ११९. *सेवै कालज एतलो जी कांइ, ए गति-आगति काल । ओधिक नै ओधिक गमो जी कांइ, दाख्यो प्रथम दयाल जी कांइ ।। १२०. एम नवू ही गमा प्रतै जी कांइ, कहिवा विचारी जेह । णवरं स्थिति अनुबंध नै जी कांइ, फुन संवेध जाणेह जी कांइ ।। १२१. इम यावत अच्युत लग जी कांइ, णवरं स्थिति अनुबंध । संवेध प्रति फुन जाणवू जी कांइ, उपयोगे करि संध जी कांइ ॥ १२२. पाणत सुर स्थिति जेष्ठ थी जी काइ, आखी सागर बीस। ते त्रिगुणी कीधां हुवै जी काइ, सागर साठ जगीस जी कांइ ।। १२३. आरण स्थिति उत्कृष्ट थी जी काइ, एक बीस दधि सोय । ते त्रिगुणां कीधां थकां जी कांइ, सागर तेसठ होय जी काइ।। १२४. अच्यूत स्थिति उत्कृष्ट थी जी कांइ, उदधि बावीस उदार । ते त्रिगुणां कीधां हुवै जी कांइ, सागर छासठ सार जी काइ। वा०-आणत सुर नी स्थिति अनै अनुबंध जघन्य दूजे, तीजे गमे १८ सागर, उत्कृष्ट १९ सागर । चउथे, पांचमे, षष्ठम गमे जघन्य-उत्कृष्ट १८ सागर । सातमे, आठमे, नवमे गमे जघन्य-उत्कृष्ट १९ सागर । पाणत सुर नीं स्थिति अनै अनुबंध प्रथम ३ गमे जघन्य १९ सागर, उत्कृष्ट २० सागर । बिचले तीन गमे जघन्य-उत्कृष्ट १९ सागर । छहले तीन गमे जघन्य-उत्कृष्ट २० सागर । आरण सुर नी स्थिति प्रथम ३ गमे जघन्य २० सागर, उत्कृष्ट २१ सागर । बिचले तीन गमे जघन्य-उत्कृष्ट २० सागर । छहले तीन गमे जघन्य-उत्कृष्ट २१ सागर । अच्युत सुर नी स्थिति प्रथम तीन गमे जघन्य २१ सागर, उत्कृष्ट २२ सागर । बिचले ३ गमे जघन्य-उत्कृष्ट २१ सागर । छहले तीन गमे जघन्यउत्कृष्ट २२ सागर । भव सर्वत्र जघन्य २, उत्कृष्ट ६ । कायसंवेध सर्व न विचारी कहिवो। मनुष्य में कल्पातीत देव ऊपज - १२५. कल्पातीतज सुर थकी जी कांइ, मनुष्य विषे उपजेह । तो स्यूं ग्रेवेयक थकी जी कांइ, अनुत्तर विमान थी लेह जी कांइ? १२६. जिन कहै |वेयक थकी जी काइ, अनुत्तर विमान थी जेह । ए बिहुं कल्पातीत तूं जी काइ, मनुष्य विषे उपजेह जी कांइ॥ १२५. जइ कप्पातीतावेमाणियदेवेहितो उववज्जंति-कि गेवेज्जाकप्पातीता ? अणुत्तरोववातियकप्पातीता? १२६. गोयमा ! गेवेज्जाकप्पातीता, अणुत्तरोववातियकप्पातीता । (श० २४१३०६) *लय : म्हारी सासूजी रे पाच पुत्र काइ श.२४, उ० २१, ढा०४२९ १७५ Jain Education Intemational dein Education Interational Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२७. जइ गवेज्जा-कि हेट्ठिम-हेट्ठिम-गेवेज्जगकप्पातीता जाव उवरिम-उबरिम गेवेज्जा ? १२८. गोयमा ! हेडिम-हेट्ठिम-गेवेज्जा जाव उवरिम-उवरिम गेवेज्जा। (श० २४।३०७) १२७. ग्रैवेयक थी जो ऊपजै जी कांइ, तो स्यूं हेठिम-हेठिम । प्रैवेयक कल्पातीत थी जी काइ, जाव उवरिम-उवरिम जी कांइ ? १२८. जिन कहै हेठिम-हेठिम थकी जी कांड, जाव उवरिम-उवरिम । ए नवमा ग्रैवेयक थी जी काइ, मनुष्य विषे अवगम जी काइ। मनुष्य में प्रवेयक देव ऊपज, तेहनों अधिकार' १२९. सुर ग्रैवेयक थी प्रभुजी ! कांइ, मनुष्य विषेज कहेह । जे ऊपजवा योग्य छै जी काइ, कित काल स्थितिक उपजेह जी कांइ ? १३०. श्री जिन भाखै जघन्य थी जी काइ, वर्ष पृथक स्थितिकेह । उत्कृष्ट कोड़ पूर्व तणे जी कांड, आयु विषे उपजेह जी काइ।। १३१. शेष संघयणादिक सहू जी काइ, वक्तव्यता संपेख । दाखी आणत देव नी जी कांइ, कहिवो तिमज अशेख जी कांइ ।। १३२. णवरं तसु अवगाहना जी कांइ, इक भवधारणी माग। जघन्य थकी आंगुल तणों जी काइ, असंख्यातमो भाग जी कांइ ।। १३३. उत्कृष्टी बे कर तणों जी कांइ, फून तेहनोंज संठाण । समचउरंस आकार छै जी कांइ, तिण करि संस्थित जाण जी कांइ । १३४. समुद्घात पंच वलि कह्या जी कांइ, प्रथम वेदना जोय । यावत तेजस पंचमी जी काइ, फुन जिन भाखै सोय जी कांइ ।। १३५. पिण निश्चै करिने तिके जी काइ, वैक्रिय तेजस ताहि । समुद्घात कीधा नथी जी कांइ, न करै करस्यै नांहि जी कांइ ।। १२९. गेवेज्जगदेवे णं भंते ! जे भविए मणुस्सेसु उव वज्जित्तए, से णं भंते ! केवतिकाल द्वितीएसु उव वज्जेज्जा? १३०. गोयमा ! जहण्णेणं वासपुहत्तद्वितीएसु, उक्कोसेणं पुचकोडीट्टितीएसु । १३१. अवसेसं जहा आणयदेवस्स वत्तब्वया, १३२. नवरं-ओगाहणा-एगे भवधारणिज्जे सरीरए । से जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, १३३. उक्कोसेणं दो रयणीओ। संठाणं-एगे भवधार णिज्जे सरीरे । से समचउरंससंठिए पण्णत्ते । १३४. पच समुग्धाया पण्णत्ता, तं जहा-वेदणासमुग्घाए जाव तेयगसमुग्घाए, १३५. नो चेव णं वेउव्वियतेयगसमुग्धाएहिं समोहणिसु वा, समोहणंति वा, समोहणिस्संति वा । सोरठा १३६. वैक्रिय तेजस दोय, प्रयोजन तणां अभाव थी। न किया न करै कोय, आगामिक करिस्यै नथी ।। वा०- 'इहां नव ग्रैवेयक में समुद्घात ५ कही। तिण माहिली वैक्रिय, तेजस-ए २ समुद्घात कीधी नहीं, करै नहीं, करिस्यै नहीं। अनै जीवाभिगम' में नव ग्रैवेयक अनुत्तर विमान में प्रथम ३ समुद्घात कही। इहां भगवती में ५ कही । ते वैक्रिय, तेजस शत्ति रूप जाणवी। अनै जीवाभिगम में ३ कही ते करिवा रूप । जिम नंदी सूत्रे (सू० २२) कहो-अवधिज्ञान थी उत्कृष्ट देख तो लोक में सर्व रूपी द्रव्य जाण-देखें अनै लोक जेता असंख खंडवा अलोक में वा०–'नो चेव णं वेउविए' त्यादि, अवेयकदेवानामाद्याः पञ्च समुद्घाता: लब्ध्यपेक्षया संभवन्ति, केवलं वैक्रियतै जसाभ्यां न ते समुद्घातं कृतवन्त: कुर्वन्ति करिष्यन्ति वा, प्रयोजनाभावादित्यर्थः, (वृ० प० ८४५, ८४६) १. देखें परि. २, यंत्र १३७ २. जैन विश्वभारती द्वारा प्रकाशित 'उवंगसुत्ताणि' भाग १ के अन्तर्गत जीवा जीवाभिगा प. ३११११३ में नवग्रैवयेक देवों में समुद्घात का पाठ भगवती सूत्र की तरह ही है । संभव है, जयाचार्य को प्राप्त आदर्श में समुद्घात तीन हों। १७६ भगवती जोड़ Jain Education Intemational Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देखें, इम कह्यो ते देखवा री शक्ति छँ । तिम नव ग्रैवेयक अनुत्तर विमान में कही ते तो शक्ति रूप अन जीवाभिगम में ३ कही, ते करिया रूप ।' (स० स० ) १३७. स्थिति अनुबंध जघन्य थी जी कांइ, बावीस दधि धुर पाय । उत्कृष्ट इकतीस उदधि नीं जी कांद नवम चैवेयक मांय जी कांड || १३८. शेष संघवणादिक सह जी कांड, देव तणों अवदात । जिम आणत सुर नीं वारता जी कांइ, तिमज एह विख्यात जी कांइ ॥ वा० - 'नव ग्रैवेयक नां देव मनुष्य में ऊपजतां लद्धि आणत देव नैं भलाई । सो आणत देव में दृष्टि ३ कही । इण भलावण लेखें तो नव प्रवेयक में ३ दृष्टि हु भने जीवाभिन' नवेयक में २ दृष्टि कही ते किम ? इति I बहुलपण २ दृष्टिईज हुवै । तिहां अल्प काल मार्ट मिश्र नव ग्रैवेयक में मिश्रदृष्टि भलायो ते बहुल पक्षपणे भलावण प्रश्न । उत्तर - जीवाभिगम में २ दृष्टि कही । बने किंगही बेला किहि देव में मिश्र दृष्टि हुवे दृष्टि न लेखवी हुवै ते पिण केवली जाणें । अनैं जो नहीं तो इहां ओधिक गमे आणत ने हुवे । पिण जे दृष्टि लाभं ते लीजै ।' (ज०स० ) १३९. काल आश्रयी जघन्य थी जी कांइ, बे भव अद्धा ताय । बावीस सागर नीं कही जी कांड, पृथक वर्ष अधिकाय जी कांइ ॥ सोरठा १४०. पुर वैवेयक मांय, जघन्य बावीस उदधि स्थिति । ते चव नर भव पाय, पृथक वर्ष मनु जघन्य स्थिति ॥ १४१. * उत्कृष्ट अद्धा षट भवे जी कांड, त्र्यांणु सागर ताम । कोड़ पूर्व त्रिण अधिक ही जी कांइ, त्रिण 'सुर त्रिण नर पाम || सोरठा १४२. नवम ग्रैवेयक तीन, उत्कृष्ट स्थिति इकतीस दधि । त्राणू सुर भव तीन, त्रिण भव पूर्व कोड़ त्रिण ।। १४३ *से कालज एतलो जी कांइ, ए गति आगति काल । ओधिक नैं अधिक गमो जी कांइ, दाख्यो प्रथम दयाल जी कांइ ॥ १४४. शेष गमा अठ ने विषे जी कांइ, इमहिज कहियो तेह गवरं स्थिति तथा वली जी कांइ, संवेध प्रति जाणेह जी कांइ ॥ *लय म्हारी सासूजी पांच पुत्र कांद १. जैन विश्वभारती द्वारा प्रकाशित 'उवंगसुत्ताणि' भाग १ के अन्तर्गत जीवाजीवाभीगम पं. ३।११०५ में नव ग्रैवेयक देवों में दृष्टि तीन कही है । प्रस्तुत प्रकरण में दृष्टि दो बताई है। संभव है, जयाचार्य को प्राप्त आदर्श में दो दृष्टि हो । १३७. ठिती अणुबंधो जहणणेणं बावीसं सागरोवमाई, उनकोसेणं एक्कली सागरोवमाई १३८. सेसं तं चैव । १३९. कालादेसेणं जहणेणं बावीसं सागरोवमाई वासपुत्तमधहिवाई " १४०. प्रथमग्रैवेयके जघन्येन द्वाविंशतिस्तेषां भवति (२०१०८४६) १४१, १४२. उक्कोसेणं तेणउति सागरोवमाई तिहिं पुव्वकोडीहि अमहियाई इहोत्कर्षतः परभवप्रणानि ततश्च त्रिषु देवभवग्रहणेत्कृष्ट स्थितिषु तिसृभिः सागरोपमाणामेकविशवितस्तेषां स्यात् विभिश्चोत्कृष्टमनुष्यजन्ममितिः पूर्वकोयो भवतीति (बु०प०४९) १४३. एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा । १४४. एवं सेसेसु वि अट्ठगमएसु, नवरं ठिति संवेहं च जाणेज्जा १-९ : ( श० २४ । ३०८ ) श० २४, उ० २१, ४० ४२९ १७७ Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वा० – प्रवेशक सुर नीं स्थिति दूजे, तीजे गमे जघन्य २२ सागर, उत्कृष्ट ३१ सागर । बिचले तीन गमे जघन्य उत्कृष्ट २२ सागर । छेहले तीन गमे जघन्यउत्कृष्ट ३१ सागर । भव सर्वत्र जघन्य २, उत्कृष्ट ६ । कायसंवेध सर्व नुं विचारी कहियो । । हिव अनुत्तर विमान थकी मनुष्य नैं विषे ऊपजै, तेहनों विस्तार कहै छे१४५. अनुत्तरोपपातिक सुरा जी कांइ, चवी मनुष्य में आय तो स्यूं विजय वैजयंत थी जी कांइ, । जाव सव्वसिद्ध थी थाय जी कांइ ? १४६. जिन कहै विजय तां सुरा जी कांद, चवी मनुष्य में आय जाव सर्वार्थसिद्ध तणां जो कांइ, अमर मनुज भव पाय जी कांइ ॥ १४७. हे प्रभु ! विजय अने वली जो कांइ, वैजयंत सुविचार | जयंत तणां सुर शोभता जी कोइ अपराजित थी सार जी कांइ ॥ १४८. ए च्या नां देवता जी कांइ, मनुष्य विषेज कहेह । जे ऊपजवा योग्य छै जी कांइ, कि काल स्थिति उपजेह जी कांइ ? १४९. जिम मैवेयकसुर तण जी कांइ वक्तव्यता संपेक्ष आखी तिम कहिवी इहां जी कांइ, वरं इतरो विशेख जी कांइ ॥ १५०. जघन्य थकी अवगाहना जो कांइ, आंगुल नों सुविशेख । असंख्यातमो भाग छे जी कांइ, उत्कृष्टी कर एक जी कांइ ।। १५१. सम्यकदृष्टी ते हुवे जी कांद, मिध्यादृष्टी मिथ्यादृष्टी नांहि | समा मिथ्यादृष्टी नहिं जी कांइ, प्यार अन्तर मांहि जो कोइ ॥ १५२. ज्ञानी ते सुरवर हुवै जी कांइ, अज्ञानी नहि होय । नियमा तीनज ज्ञान नी जी कांड, मति चुन अवधि सुजोय जी कांइ ॥ श्रुत १५३. स्थिति जघन्य थी जेहनी जो कांइ, सागर ने इकतीस फुन सागर तेतीस नी जी कांद उत्कृष्टी सुजगीस जी कांई ॥ १५४. शेष परिमाणादिक सहू जी कोई वैवेयक जिम सार भवादेश धुर बे भवे जी कांइ, उत्कृष्टा भव च्यार जी कांइ । १५५. कालादेश करि जघन्य थी जी कांद, अमर उदधि इकतीस । वर्ष पृथक अधिका बली जा कोइ कांइ, नर भव स्थिती जगीस जी कांइ ॥ १५६. उत्कृष्ट छासठ दधि कह्या जी कांइ, पूर्व कोड़ज दोय । जेष्ठ स्थितिक सुर बे भवे जी कांइ, फुन बे नर भव होय जा कांइ ॥ १५७. से कालज एतलो जी कांइ, ए गति - आगति काल । अधिक ने ओधिक गमो जी कांड, दाख्यो प्रथम दयाल जी कांइ ॥ १७८ भगवती जोड़ १४५. जइ अणुत्तरोववाइयकप्पातीतावेमाणियदेवे हितो उववज्जंति - कि विजयअणुत्तरोववाइय ? वैजयंतअणुतरोववाइय जाव सव्वदुसिद्ध ? १४६. गोयमा ! विजयअणुत्तरोववाइय जाव सव्वट्टसिद्धअणुत्तरोववाद | ( श० २४/३०९ ) १४७. विजय-जयंत जयंत अपराजयदेवे णं भंते ! १४८. जे भवि मस्से उबलिए से भंते! केतिकालद्वितीय उपमेया? १४९. एवं जगदेवा, नवर १५०. ओगाहणा जहणेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं एगा रयणी । १५१. सम्मदी तो मिीि नो सम्मामिच्छवि। १५२. नाणी, नो अण्णाणी, नियमं तिष्णाणी, तं जहाअभिविहिनी नाणी बहिनी १५३. ठिती जहणेणं एक्कतीसं सागरोवमाई, उक्कोसेणं तेत्तीस सागरोवमाई । १५४. सेसं तं चैव । भवादेसेणं जहणणेणं दो भवग्गणाई, उक्कोसेणं चत्तारि भवग्गहणाई । १५५. कालादेसेणं जपणं एकतीसं सामरोवमाई वासपुत्तमम्भहिवाई १५६. उनकोसे छाट्ठ सागरोवमाई दोहिं पुव्वकोडीह अमहियाई, १५७. एवतियं कालं सेबेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा | Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५८. एम शेष पिण अठ गमा जी कांड, गवरं विशेष एह स्थिति अने अनुबंध ने जी कांइ, संवेध प्रति जाणेह जी कांइ ॥ वा० च्यार अनुत्तर विमान नां देवता नीं स्थिति अनं अनुबंध दूजे, तीजे गमे जघन्य ३१ सागर, उत्कृष्ट ३२ सागर । बिचले तीन गमे जघन्य - उत्कृष्ट ३१ सागर। छेहले तीन गमे जघन्य उत्कृष्ट ३३ सागर । भव सर्वत्र जघन्य २, उत्कृष्ट ४ । तेनुं कायसंवेध विचारी ने कहिवो । मनुष्य में अनुतर विमानवासी देव अपने सेहन अधिकार १५९. शेष परिमाणाविक सहू जी कांड, जिम ग्रैवेयक ख्यात । च्यार अनुत्तर सुर तणों जी कांइ, कहि तिम अवदास जी कांइ ॥ १६०. सर्वार्थसिद्धिक देवता जी प्रभु ! मनुष्य विषेज कहेह । जे ऊपजवा योग्य छे जी फांद कितं काल स्थिति उपजेह जी कोइ ? ही जी कांद, वक्तव्यता संपेख | जी कांद १६१. विजयादिक नीं सर्व आखी तिम कहिवी णवरं इतरो विशेख जी कांइ ॥ १६२. स्थिति अजघन्य अनें वली जी कांइ, अनुत्कृष्ट तसु संध । तेतीस सागर नीं कही जी कांड, इतरोजि अनुबंध जी कांइ ॥ १६३. शेष तिमज कहियो सहू जी कांइ, भवादेश करि सोय । बे भव ग्रहण कर तिके जी कांइ, इक सुर इक नर होय जो कांई ॥ १६४. कालादेश करि जपन्य थी जी कांइ, सुर सागर तेतीस || वर्ष पृथक अधिका वली जी कांड, मनु घुर स्थिती जगीस जी कांड || १६५. उत्कृष्ट अदा आखियो जो कांई, सुर सागर तेतीस कोड़ पूर्व अधिका वली जी कांइ, मनु स्थिति जेष्ठ जगीस जी कांई ॥ जी कांइ, ए गति - आगति काल । र त्रिणगम माहे गमो जी कांद्र, दाख्यो प्रथम दयाल जी कांइ ॥ १६७. तेहिज जघन्य काल नीं जी कांई, स्थितिक विषे उत्पन्न । एहिज वक्तव्यता तसुं जी कांइ, नवरं विशेष जन जी कांइ ॥ १६८. कालादेश करि आखियो जी कांइ, जघन्य अनें उत्कृष्ट । तेतीस सागर सुर भवे जी कांइ, पृथक वर्ष नर इष्ट जी कांइ ॥ १६९. तेहिज उत्कृष्ट काल नीं जी कांइ, स्थितिक विषे उत्पन्न । एहि वक्तव्यता तसं जी कांड, वरं विशेष जन्न जो कोइ || १७०. कालादेश करि आखियो जी कांड जघन्य अने उत्कृष्ट । पूर्व नर इष्ट जी कांई ।। , तेतीस सागर सुरवरू जी कांड को १६६. सेवै कालज एतलो 2 १. देखें परि. २ यंत्र १३८, १३९ १५८. एवं सेसा वि अट्ठ गमगा भाणियव्वा, नवरं - ठिति अणुबंध संवेधं च जाणेज्जा । १५९. सेस एवं चेव १-९ । ( श० २४।३१० ) १६०. सव्वट्टसिद्धगदेवे णं भंते ! जे भविए मणुस्सेसु उजिर ? १६१. सा चैव विजयादिदेववत्तव्वया भाणियव्वा, नवरं १६२. ती मक्कोले तेतीस सागरोपमाई एवं अणुबंधी वि १६३. सेसं तं चेव । भवादेसेणं दो भवग्गणाई, १६४. कालादेसेणं जहणेणं तेत्तीसं सागरोवमाई वासपुतमन्महियाई १६५. उक्कोसेणं तेतीसं सागरोवमाई पुव्वकोडीए अब्भहिमाई, १६६. एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा १ । (०२४।२११) १६७. सो चेव जहणकालद्वितीएम उववण्णो एस चैव वत्तव्वया, नवरं १६८. कालादेसेणं जहणेणं तेत्तीसं सागरोवमाई वासबृहत्तमम्बहियाई उसकोमेण वि तेतीस सागरोपमा बासपुतममहिवाई (श० २४।३१२ ) १९९. सो उक्कोसकाली उग्गो एस देव वत्तव्वया, नवरं १७०. कालादेसेणं जहणणं तेत्तीस सागरोवमाई पुव्वकोडीए अब्भहियाई, उक्कोसेण वि तेत्तीसं सागरोवमाई पुष्वकोडीए अन्भहियाई श० २४, उ० २१, ढा० ४२९ १७९ Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७१. एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा ३। १७२. एते चेव तिण्णि गमगा, सेसा न भण्णंति । सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति। (श० २४१३१४) १७३. सर्वार्थसिद्धिकदेवाधिकारे आद्या एव त्रयो गमा भवन्ति सर्वार्थसिद्धिकदेवानां (वृ०प० ८४६) १७४. जघन्यस्थितेरभावान्मध्यमं गमत्रयं न भवति उत्कृष्ट__ स्थितेरभावाच्चान्तिममिति। (वृ०५०८४६) १७१. सेवै कालज एतलो जी कांइ, ए गति-आगति काल । त्रिण गमा मांहे गमो जी कांइ, दाख्यो तृतीय दयाल जी काइ । १७२. एहिज तीन गमा हुवै जी काइ, शेष गमा न कहाय । सेवं भंते ! स्वाम जी ! कांइ, सत्य तुम्हारी वाय जी कांइ।। सोरठा १७३. वृत्ति विषे इम वाय, सवार्थसिद्ध नै विषे । आदि तीन गम पाय, षट गम शेष नहीं तिहां ।। १७४. जघन्य स्थिति नहिं थाय, इम मध्यम त्रिण गम नहीं । उत्कृष्ट स्थिती पिण नांय, इम त्रिण गम अंतिम नथी । वा०-इहां मनुष्य नै विषे ४३ ठिकाणां नों उपजे ते कहै छै–६ नारकी ३ स्थावर ते पृथ्वी, पाणी, वनस्पति, तीन विकलेंद्रिय, संख्याता वर्षायु सन्नी तिर्यच पंचेन्द्रिय, असन्नी तिर्यंच पंचेंद्रिय, संख्यात वर्षायु सन्नी मनुष्य, असन्नी मनुष्य, दश भवनपति, व्यंतर, जोतिषी, बार देवलोक, नव अवेयक, च्यार अनुत्तर विमान रो एक, सर्वार्थ सिद्ध रो एक-एवं ४३ । १७५. षट नारकि फुन देव, सव्वसिद्ध विण बीस षट । ए बत्तीसज हेव, ऊपजतां मनु दंडके ॥ १७६. जघन्य अने उत्कृष्ट, गमके बे-बे णाणत्ता। आयु तणोंज इष्ट, फुन अनुबन्ध तणों कह्यो । १७७. मही जल वनस्पतीह, विकलद्रिय तिरि-पं. मनु । सन्नी असन्नी ईह, ए दश मनु में ऊपजै ।। १७८. जघन्य गमे कहाय, पृथ्वी में चिहु णाणत्ता । अप में पिण चिहं पाय, वनस्पती में पंच फुन ।। १७९. त्रिण विकलेंद्रिय तेह, असन्नी तिरि ए स्थान चिहुं । मनुष्य विषे उपजेह, सात-सात तसु णाणता ।। १८०. सन्नी मनु तिरि तेह, ऊपजतां बे मनु विषे । णाणत्त नव-नव लेह, ए सहु आख्या जघन्य गम ।। १८१. पृथ्व्यादिक दश जाण, ऊपजतां मन में विषे । तुर्य गमे पहिछाण, अध्यवसाय बिहुँ कह्या ।। १८२. पंचम गम अपसत्थ, पसत्थ छठा गम विषे । श्री जिन वच अवितत्थ, मनुष्यायु पुन्य पाप है। १८३. उत्कृष्ट गमे कहाय, पृथ्व्यादिक सन्नी तिरि । ए नव मनु में आय, तेहनां बे-बे नाणत्ता ।। १८४. सन्नी मनुष्य छै जेह, ऊपजतां मनु ने विषे । उत्कृष्ट गमे कहेह, तीन णाणत्ता तेहनां ।। १८५. *चउवीसम इकवीसमों जी काइ, . च्यार सौ गुणतीसमी ढाल । भिक्षु भारीमाल ऋषिराय थी जी काइ, _ 'जय-जश' हरष विशाल जी कांइ।। चतुविशतितमशते एकविंशोहेशकार्थः ॥२४॥२१॥ *लय : म्हारी सासूजी रे पांच पुत्र काइ १८० भगवती जोड़ Jain Education Intemational Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दूहा १. वाणमंतरा हे प्रभु !, किहां थकी उपजंत ? थी त ? स्यूं नारकि थी उपजै तिरि मनु सुर व्यंतर में असन्नी तिथंच पंचेंद्रिय ऊपजं, तेहनों अधिकार' २. इम जिम नागकुमार नां, उद्देशक १ ऊपजवो असन्नी तणों, तणों, पूर्व भाषपो ३. सिमज इहां कहियो सहु वाणव्यंतरा मांय । ऊपजवो असन्नी तणों, नाग जेम कहिवाय ॥ ताहि ॥ , ४. जो सन्नी पंचेंद्रिय, इत्यादिक पूछेह | कहेह || जाव असंख वर्षायु जे, सन्नी तिरी व्यंतर में तिथंच युगलियों ऊपजं, तेहनों अधिकार" ओधिक ने ओधिक (१) * सुगुण जन ! सुणजो व्यंतर व्यंतर विचार | (ध्रुपदं) ५. असं वर्षा सन्नी तिरी रे, वाणव्यंतर में विषेह जे ऊपजवा योग्य छे रे, कितं काल स्थितिके उपजेह ? ढाल : ४३० ९. युगल तिच भवेह व्यंतर भवे कह ६. श्री जिन भाखं जघन्य धो रे, वर्ष सहस्र दशकेह | उत्कृष्ट पल्योपम तणीं रे, स्थितिक में उपजेह ॥ ७. शेष तिमज कहियो सहू रे, नागकुमार उद्देश । जिह विधि आख्यो छे तिहां रे, तिमहिज कहिवो एस ॥ ८. यावत अद्धा आश्रयी रे, जघन्य थकी छ तास । साधक को पूर्व कह्यो रे, अधिक सहस्र दश वास ॥ सोरठा साधिक पूर्व कोड़ स्थिति स्थिति स्थिति सहस्र दश वर्ष नीं ॥ १०. उत्कृष्ट चिपस्य जाणवी रे, युगल तिरी पल्य तीन इक पल्य व्यंतर नैं विषे रे, च्यार सोरठा पल्य इम चीन ॥ ११. त्रिपल्य स्थितिक तिर्यंच, युगल व्यंतर में ऊपनों । इक पल्य स्थिति संच, उत्कृष्ट चिउं पल्य इह विधे || १२. *सेवं कालज एतलो रे, ओघिक ने ओधिक गमो १. देखें परि. २, यंत्र १४० २. देखें परि. २, यंत्र १४१ *लय : कपूर हवं अति ऊजलो रे महि । ए रे, गति - आगति काल । दाख्यो प्रथम दयाल ॥ १. वाणमंतराणं भंते! कओहितो उववज्जंति - कि रति उति ? तिरिख० ? २. एवं जहेव नागकुमारउद्देसर असण्णी ३. तहेव निरवसेसं । ( श० २४ । ३१५ ) ४. जइ सणिपंचिदियतिरिक्ख जोणिएहितो उववज्जंति -- किं संखेज्जवासाज्य ? असंखेज्जवासाउय ? गोपमा ! जवासाउय असंसेन्जवासाय जाय उववज्जति । (श० २४/३१६) ४. सचिदियतिरिए याणमंतरे उति से द्वितीएसु उववज्जेज्जा ? ६. गोमा ! जो बस सहीए उनकोसेणं पतिमद्वितीएसु । ७. सेसं तं चैव जहा नागकुमारउद्देसए जावकाला दहि वाससहस्सेहि अमहिया, जम्मेण सातिरेगा वोडी १०. उक्कोसेणं चत्तारि पलिओदमाई, भवि वतिकाल ११. त्रयस्योपमायुः सन्जिपचेन्द्रियति युव्यंन्तरो जात इत्येवं चत्वारि पत्योपमा नि, पस्योपमा ( वृ० प० ८४६ ) १२. एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा १ । ( श० २४/३१७ ) ST० २४, उ० २२, डा० ४३० १८१ Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३. सो चेव जहण्णकालट्ठितीएसु उववण्णो, १४. जहेव नागकुमाराणां बितियगमे वत्तव्वया २। (श० २४.३१८) वा०-द्वितीयगमे 'जहेव नागकुमाराणं बीयगमे वत्तव्वय' त्ति सा च प्रथमगमसमानैव नवरं जघन्यत उत्कर्षतश्च स्थितिर्दशवर्षसहस्राणि, (वृ० ५० ८४६) १५. सो चेव उक्कोसकालट्ठितीएसु उववण्णो १६. जहण्णेणं पलिओवमट्टितीएसु, उक्कोसेण वि पलि ओवमट्टितीएसु । १७. एस चेव वत्तव्वया, नवरं १८. ठिती से जहणणं पलिओवमं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाई। ओधिक ने जघन्य (२) १३. तेहिज तिर्यंच युगलियो रे, ओधिक आयवंत । जघन्य स्थितिक व्यंतर विषे रे, ऊपनों तास वतंत । १४. जिम नागकुमार नी वार्ता रे, द्वितीय गमक विषेह ।। आखी तिम कहिवी इहां रे, निपुण विचारी लेह ।। वा०-इहां वृत्तिकार कह्य-द्वितीय गमा नै विषे जिम नागकुमार नीं वक्तव्यता बीजा गमा नै विषे कही, तिम कहवी । तिका प्रथम गमा समानइज जाणवी । णवरं जघन्य थकी साधिक पूर्व कोड़ दश हजार वर्ष अधिक अनै उत्कृष्ट थी तीन पल्योपम दश हजार वर्ष अधिक। ओधिक नैं उत्कृष्ट (३) १५. तेहिज तिर्यंच युगलियो रे, ओधिक आयूवंत । उत्कृष्ट स्थितिक व्यंतर विषे रे, ऊपनों तास उदंत ।। १६. जघन्य अनैं उत्कृष्ट थी रे, पल्योपम नों जेह । व्यंतर नों छै आउखो रे, ऊपनों तास विषेह ।। १७. एहिज वक्तव्यता कही रे, पूर्वे भाखी जेह । वरं इतरो विशेष छै रे, सांभलजो चित देह ।। १८. स्थिति युगलिया तिरि तणीं रे, जघन्य पल्योपम एक। उत्कृष्टी स्थिति तेहनी रे, त्रिण पल्योपम पेख ।। सोरठा १९. यद्यपि जाझी जाण, पूर्व कोड़ज जघन्य थी। युगल तिरि नी माण, स्थिती कही छै एतली ।। २०. तथापि इहां विख्यात, पल्योपम तिरि युगल नीं। जघन्य स्थिति आख्यात, तास न्याय कहिये अछै ।। २१. पल्योपम नों पेख, जे व्यंतर नों आउखो। तेह विषे सुविशेख, उपजै ए तीजे गमे ।। २२. असंख वर्षायू जंत, निज आयू थी सुर तणों। अधिक आउखावंत, तेह विषे नहिं ऊपजे ॥ २३. *कायसंवेधज जघन्य थी रे, दोय पल्योपम देख । एक पल्योपम तिरि भवे रे, इक पल्य व्यंतर पेख ।। २४. उत्कृष्टो पल्य च्यार नों रे, युगल तिरि पल्य तीन । पल्योपम व्यंतर विष रे, एम चिउं पल्य चीन ।। २५. सेवै कालज एतलो रे, ए गति-आगति काल । ओधिक में उत्कृष्ट गमो रे, दाख्यो तृतीय दयाल ।। २६. बिचला तीन ही गमा विषे रे, जिम पूर्वे अधिकार । नागकुमार विषे कह्य रे, कहिवू तेम उदार ।। २७. छहला तीन गमा विषे रे, तिमहिज निश्चै माण। नागकुमार उद्देशके रे, जिम भाख्यो तिम जाण ।। २८. णवरं स्थिति में फेर छै रे, तथा संवेध में फेर। उपयोगे करि जाणवा रे, जुआ-जूआ गम हेर ।। *लय : कपूर हुवै अति ऊजलो रे १९. यद्यपि सातिरेका पूर्वकोटी जघन्यतोऽसङ्खचातवर्षा युषां तिरश्चामायुरस्ति (वृ० ५० ८४६) २०. तथापीह पल्योपममुक्त (वृ० प० ८४६) २१. पल्योपमायुष्कव्यन्तरेषूत्पादयिष्यमाणत्वाद् (वृ० प० ८४६) २२. यतोऽसङ्ख्यातवर्षायुः स्वायुषो बृहत्तरायुष्केषु देवेषु नोत्पद्यते एतच्च प्रागुक्तमेवेति । (वृ०प०८४७) २३. संवेहो जहण्णेणं दो पलिओवमाई, २४. उक्कोसेणं चत्तारि पलिओवमाई, २५. एवतियं काल सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा। २६. मज्झिमगमगा तिण्णि वि जहेव नागकुमारेसु नागना २७. पच्छिमेसु ति सु गमएसु तं चेव जहा नागकुमारुद्देसए, २८. नवरं-ठिति संवेहं च जाणेज्जा। १८२ भगवती जोड़ Jain Education Intemational Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९. संखेज्जवासाउय तहेव, नवरं-- ३०,३१. ठिती अणुबंधो संवेहं च उभओ ठितीए जाणेज्जा ३-९। (श० २४१३१९) वा०-व्यंतर में विषे युगलियो तिथंच ऊपज तेहनी सातमे, आठमे, नवमे गमे जघन्य उत्कुष्टी स्थिति ३ पल्य नी अनें कायसंवेध विचारी कहिवो। व्यंतर में संख्याता वर्ष सन्नी तिथंच ऊपज, तेहनों अधिकार' २९. संख वर्षायु सन्नी तिरी रे, तिमहिज कहि तेह । णवरं इतरो विशेष छै रे, आगल जेह कहेह ।। वा०-संख्यात वर्षायुष सन्नी तिर्यच व्यंतर नै विषे ऊपजै, ते संख्यात वर्षांयुष सन्नी तिर्यच नागकुमार ने विषे ऊपजै तिमज कहिवो। णवरं एतलो विशेष कहै छै---- ३०. स्थिति अनुबन्ध जघन्य थी रे, वर्ष सहस्र दश लेख । एक पल्योपम जाणवो रे, उत्कृष्टो सुविशेख ।। ३१. संवेध फुन बिहं भव तणों रे, स्थिती गिणी जाणेह । संख वर्षायु सन्नी तिरि तणी रे, वलि व्यंतर स्थिति लेह ।। ३२. मनुष्य थकी जो ऊपजै रे, तो स्यूं वर्षायू संखेज। के असंख वर्षायू ऊपजै रे ? इत्यादिक सुकहेज ।। व्यंतर में मनुष्य युगलियो ऊपज, तेहनों अधिकार' ३३. असंख वर्षायू मनु थकी रे, व्यंतर में उपपात । जिमहिज नागकुमार ने रे, उद्देशे आख्यात ।। ३४. तिमहिज वक्तव्यता इहां रे, कहिवी सर्व विचार । णवरं इतरो विशेष छै रे, तीजा गमक मझार ।। ३५. स्थिति जघन्य मनु युगल नी रे, एक पल्योपम ताय । उत्कृष्टी त्रिण पल्य नी रे, ते व्यंतर में जाय ।। ३६. अवगाहना तसु जघन्य थी रे, एक गाऊ नी थाय। त्रिण गाऊ उत्कृष्ट थी रे, शेष तिमज कहिवाय ।। ३२. जइ मणुस्सेहितो उववज्जति ? ३३. असंखेज्जवासाउयाणं जहेव नागकुमाराणं उद्देसे ३४. तहेव वत्तव्वया, नवरं-तइयगमए ३५. ठिती जहण्णणं पलिओवम, उक्कोसणं तिणि पलि ओवमाइं। ३६. ओगाहणा जहण्णेणं गाउयं उक्कोसेणं तिण्णि गाउ याई । सेसं तहेव । सोरठा ३७. इक पल्य आयू जास, तेह तणी अवगाहना । ___गाऊ एक विमास, सुषमदुषमादी युगल ।। ३८. *कायसंवेध कहीजिये रे, ते जिम एहिज उद्देश। असंख वर्षायू तिर्यंच ने रे, आख्यो तिमज कहेस ।। व्यंतर में संख्याता वर्ष नों सन्नी मनुष्य ऊपज, तेहनों अधिकार ३९. संख वर्षायु सन्नी मनुष्य नों रे, हिव कहियै अधिकार । नागकुमार उद्देशके रे, जिम आख्यो तिम धार ।। ४०. णवरं वाणव्यंतर तणीं रे, स्थिती विषे जे फेर । फुन संवेध में फेर छ रे, उपयोगे करि हेर । ३७. 'ओगाहणा जहन्नेणं गाउयं' ति येषां पल्योपममानायुस्तेषामवगाहना गव्यूतं ते च सुषमदुष्षमायामिति । (वृ० प० ८४७) ३८. संवेहो से जहा एत्थ चेव उद्देसए असंखेज्जवासाउय सपिणपंचिदियाणं । ३९. संखेज्जवासाउथसण्णिमणुस्से जहेव नागकुमारुद्देसए, ४०. नवरं-वाणमंतरे ठिति संवेहं च जाणेज्जा १-९ । (श० २४१३२०) सेवं भंते ! सेवं भते ! त्ति। (श० २४।३२१) *लय : कपूर हुवै अति ऊजलो रे १. देखें परि. २, यंत्र १४२ २. देखें परि. २, यत्र १४३ ३. देखे परि. २, यंत्र १४४ श. २४, उ०२२, ढा० ४३० १५३ Jain Education Intemational Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वा.-वाणव्यंतर नै विषे पांच ठिकाणां रो आवै-असन्नी तिर्यंच पंचेंद्री, असंख्यात वर्षायुष सन्नी तियंच पंचेंद्री, संख्यात वर्षायुष सन्नी तिथंच पंचेंद्री, असंख्यात वर्षायु सन्नी मनुष्य, संख्यात वर्षायुष सन्नी मनुष्य-ए पांच ठिकाणां रो जीव वाणव्यंतर में आवै तेहनों अधिकार-जिम ए ५ ठिकाणां रो नागकुमार में आवै तेहनों अधिकार पूर्व कप छ तिमज जाणवू । णवरं व्यंतर नी स्थिति में अनं कायसंवेध में उपयोगे करि कहिवू । सोरठा ४१. पंच स्थान नां पेख, उपजै व्यंतर नैं विषे । तास णाणत्ता लेख, असुर विषे उपजे तिमज ।। ४२. *एह च्यारसौ तीसमी रे, आखी ढाल उदार । भिक्षु भारीमाल ऋषिराय थी रे, 'जय-जश' संपति सार ।। चतुर्विशतितमशते द्वाविंशोद्देशकार्थः ॥२४॥२२॥ ढाल : ४३१ १. जोइसिया णं भंते! कओहिंतो उववज्जति-कि नेरइएहितो? भेदो २. जाव सण्णिपंचिदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जति, नो असण्णिपंचिंदियतिरिक्ख । (श० २४।३२२) ३. जइ सण्णि कि संखेज्ज? असंखेज्ज ? दूहा १. किहां थकी प्रभु! ऊपजै, देव जोतिषी वेद । स्यूं नारक थी प्रमुख जे? कहिवा जेहनां भेद ।। २. जाव सन्नी पंचेंद्रिय, तिरिक्ख थकी उपजंत । असन्नो पं.-तिर्यंच थी, सुर जोतिषी न हुंत ।। ३. जो सन्नी पं.-तिरि थकी, अमर जोतिषी होय । तो स्यूं वर्ष संख्यायु थी, के असंख्यायु थी जोय ? ४. जिन भाखै संख्यात जे, वर्षायुष थी होय । असंख्यात जे वर्ष नां, आयुष थी पिण जोय? ज्योतिषी में तिर्यंच युगलियो ऊपज, तेहनों अधिकार' चतुर नर ! अमर ज्योतिषी भेव ।। (ध्रुपदं) ५. असंख वर्षायू सन्नी तिरी रे, जोतिषी देव विषेह । जे ऊपजवा योग्य छ रे, कितै काल स्थितिके ऊपजेह ? ४. गोयमा ! संखेज्जवासाउय, असंखेज्ज वासाउय । (श० २४।३२३) ५. असंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिदियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए जोतिसिएसु उववज्जित्तए, से गं भंते ! केवतिकालद्वितीएसु उववज्जेज्जा? ६. गोयमा ! जहण्णेणं अट्ठभागपलिओवमट्टितीएसु, ६. श्री जिन भाखै जघन्य थी रे, पल्य तणों पहिछाण । अष्टम भाग स्थितिक विषे रे, युगल ऊपजै आण ।। सोरठा ७. तारक विमाण जाण, देव अनै देवी तणीं। जघन्य स्थिति पहिछाण, पल्य नां अष्टम भाग नी ।। *लय : कपूर हुवै अति ऊजलो रे लिय : राम पूछ सुग्रीव ने रे १. देखें परि. २, यंत्र १४५ १८४ भगवती जोड़ Jain Education Intemational Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८. उक्कोसेणं पलिओवमवाससयसहस्सद्वितीएसु उव वज्जेज्जा, ९. अवसेसं जहा असुरकुमारुद्देसए, नवरं for ८. उत्कृष्ट पल्योपम वली रे, लक्ष वर्ष अधिकेह । ए चंद्र विमान नां देव ने रे, आयुष भाख्यो एह ।। ९. शेष असुर उद्देशके रे, भाख्यो छै जिम लेख । तिमहिज कहिवू छै इहां रे, णवरं इतरो विशेख ।। १०. स्थिति जघन्य तिरि युगल नी रे, पल्य नों अष्टम भाग। उत्कृष्टी पल्य तीन नी रे, अनुबन्ध पिण इम माग । वा० --स्थिति जघन्य पल्योपम नों आठमों भाग ते विमलवाहन कुलगर थी पूर्व काल युगलिया तिरंच इत्यादि लेवा । उत्कृष्ट तीन पल्योपम स्थिति ते देवकुरु आदि युगल अपेक्षाये लेवा।। ११. शेष तिमज कहि सह रे, णवरं कालादेश । जघन्य थकी इक पल्य नां रे, भाग अष्टम बे एस ।। १०. ठिती जहण्णेणं अट्ठभागपलिओवम, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं । एव अणुबंधो वि। ११. सेसं तहेव, नवरं--कालादेसेणं जहण्णेणं दो अट्ठभाग पलिओवमाई, सोरठा १२. अष्टम भागज एक, तियंच युगल संबंधियो । द्वितीय भाग संपेख, तेह जोतिषी भव स्थिति ।। १३. *उत्कृष्ट पल्योपम चिउं रे, लक्ष वर्ष फुन तास । तिरि युगल पल्य त्रिण वली रे, चंद पल्य लक्ष वास ।। १२. द्वौ पल्योपमाष्टभागावित्यर्थः तत्रकोऽसङ्ख्यातायुष्कसम्बन्धी द्वितीयस्तु तारकज्योतिष्कसम्बन्धीति, (वृ०प०८४८) १३. उक्कोसेणं चत्तारि पलिओवमाइं वाससयसहस्स मब्भहियाई, त्रीण्यसङ्ख्यातायुःसत्कानि एकं च सातिरेक चन्द्र विमानज्योतिष्कसत्कमिति, । (वृ०प०८४८) १४. एवतियं काल सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा १। (श०२४।३२४) १५. सो चेव जहण्णकालद्वितीएसु उववण्णो १६. जहण्णेणं अट्ठभागपलिओवमद्वितीएसु, उक्कोसेणं वि अट्ठभागपलिओवमट्टितीएसु । १७. एस चेव वत्तव्वया, नवरं-कालादेसेणं जाणेज्जा (श० २४१३२५) १४. सेव कालज एतलो रे, ए गति-आगति काल । ओधिक ने ओधिक गमो रे, दाख्यो प्रथम दयाल ।। १५. तेहिज तिर्यंच युगलियो रे, ओघिक आयूवंत । जघन्य स्थितिक जोतिषी विषे रे, उपनों तास वृतंत । १६. जघन्य अने उत्कृष्ट थी रे, पल्योपम नों पेख । अष्टम भाग स्थितिक विषे रे, उपनों ते सुविशेख । १७. एहिज वक्तव्यता तसुं रे, पूर्वली परमाण। णवरं कालादेश नैं रे, उपयोगे करि जाण ॥ सोरठा १८. द्वितीय गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। एक पल्य नां जेह, दोय आठमा भाग है। १९. उत्कृष्टा पल्य तीन, भाग अष्टमों पल तणों। त्रिण पल युगल सुचीन, भाग अष्टमों जोतिषी। २०. *तेहिज तिर्यंच युगलियो रे, ओधिक आयूवंत । उत्कृष्ट स्थितिक में विषे रे, उपनों तास वृतंत ॥ २१. एहिज वक्तव्यता तसू रे, णवरं विशेष तास । स्थिति जघन्य थी युगल नी रे, पल्योपम लख वास ।। २०. सो चेव उक्कोसकालद्वितीएसु उववण्णो, २१. एस चेव वत्तव्वया, नवरं-ठिती जहण्णेणं पलि ओवमं वाससयसहस्समन्भहियं, 'लय : राम पूछ सुग्रीव ने रे १० २४, उ० २३, डा० ४३१ १८५ Jain Education Intemational Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोरठा २२. यद्यपि युगल तियंच, साधिक पुब्व कोड़ी जघन्य । तथापि इहां विरंच, इक पल्योपम लक्ष वर्ष ।। २२. यद्यप्यसङ्ख्यातवर्षायुषां सातिरेका पूर्वकोटी जघन्यतः स्थितिर्भवति तथाऽपीह पल्योपमं वर्षलक्षाभ्यधिकमुक्त, (वृ० प०८४८) २३. एतत्प्रमाणायुष्केषु ज्योतिष्यत्पत्स्यमानत्वाद्, (वृ० प० ८४८) २४. यतोऽसङ्खचातवर्षायुः स्वायुषो बृहत्तरायुष्केषु देवेषु नोत्पद्यते, (वृ० प• ८४८) २५. एतच्च प्रागुपदशितमेव, (वृ० ५० ८४८) २६. उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं। एवं अणुबंधो वि। २७. कालादेसेणं जहण्णेणं दो पलिओवमाई दोहिं वास- सयसहस्सेहिं अब्भहियाई, २३. तृतीय गमे कहेह, ए प्रमाण आयू विषे ।। जोतिषी में उपजेह, स्थिति समानपणां थकी ।। २४. वर्षायु असंख्यात, निज आयू थी अधिकतर । सुर नों आयु ख्यात, तेह विषे नहिं ऊपजै ।। २५. पूर्वे पिण ए ख्यात, सुखे समझवा वलि कह्य। युगल असुर में जात, सम हीनायुष ने विषे ।। २६. *उत्कृष्टो त्रिण पल्य तणों रे, आयवंत तिरि जेह । उपजै जोतिषी ने विषे रे, एवं अनुबंध लेह ।। २७. काल आश्रयी जघन्य थी रे, पल्योपम जे दोय । बे लक्ष वर्षज अधिक ही रे, बे भव अद्धा जोय ।। सोरठा २८. पल्योपम लख वास, युगल तिथंच तणीं कही। अमर जोतिषी तास, पल्योपम लक्ष वर्ष फुन । २९. *उत्कृष्ट पल्योपम चिउं रे, लक्ष वर्ष वलि तास । युगल तिरिक्ख पल्य त्रिण स्थिती रे, चंद्र पल्य लक्ष वास ।। ३०. तेहिज तिर्यंच युगलियो रे, आपणपै अवधार। जघन्य काल स्थितिक थयो रे, उपनों ओधिक मझार ।। ३१. श्री जिन भाखै जघन्य थी रे, पल्योपम नों जाण । अष्टम भाग स्थितिक विषे रे, ऊपजवो पहिछाण ।। सोरठा ३२. चउथे गमे उदंत, जघन्य काल स्थितिक युगल । ओधिक जोतिषि मंत, तेह विषे ए ऊपनों ।। ३३. युगल तिरिक्ख नीं चीन, यद्यपि पल्योपम तणां। भाग अष्टम थी हीन, आयु जघन्य थकी हुवै ।। ३४. तथापि जोतिषि मांहि, तेह युगल तिथंच थी। स्थिती हीनतर नांहि, पल्य नां अष्टम भाग थी। ३५. जेह युगल तिर्यंच, स्वायू तुल्यायु बंधक । जघन्य स्थितिका संच, पल्य ५ अष्टम भाग ह ।। २९. उक्कोसेणं चत्तारि पलिओवमाई वाससयसहस्स__ मन्भहियाई ३ । (श०२४ ३२६) ३०. सो चेव अप्पणा जहण्णकालट्ठितीओ जाओ ३१. जहण्णेणं अट्ठभागपलिओवमट्टितीएसु, गस्त, ३२. चतुर्थे गमे जघन्यकालस्थितिकोऽसङ्खचातवर्षायु रोषिकेषु ज्योतित्केषूत्पन्नः, (व० ५० ८४८) ३३. तत्र चासङ्घयातायुषो यद्यपि पल्योपमाष्टभागाद्धीन तरमपि जघन्यत आयुष्कं भवति (वृ०प० ८५८) ३४. तथाऽपि ज्योतिषां ततो हीनतरं नास्ति, (बृ. प. ८४८) ३५. स्वायुस्तुल्यायुर्वन्धकाश्चोत्कर्षतोऽसलचातवर्षायुष इतीह जघन्यस्थितिकास्ते पल्योपमाष्टभागायुषो भवन्ति, (वृ० प० ८४८) ३६. ते च विमलवाहनादिकुलकरकालात्पूर्वतरकालभुवो हस्त्यादयः (वृ० प० ८४८) ३७. औधिकज्योतिष्का अप्येवंविधा एव तदुत्पत्तिस्थानं भवन्तीति 'जहन्नेणं अट्ठभागपलिओवमट्टिईएसु' इत्याद्युक्तम्, (वृ० ५०८४८) ३६. विमलवाहनादेह, कुलकर काल थकी तिके । अतिपूर्व कालेह, हस्ती प्रमुख जे हुआ। ३७. ओधिक जोतिषि मांय, तसु उत्पत्ति नों स्थान ह। जघन्य थकी इम पाय, पल्य नों अष्टम भाग जे ॥ *लय । राम पूछ सुग्रीव ने रे १८६ भगवती जोड़ .. . Jain Education Intemational Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८. उक्कोसेण वि अट्ठभागपलिओक्मट्टितीएसु उव- वज्जेज्जा। (श० २४१३२७) ४०. ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवतिया उबवज्जति ? ४१. एस चेव वत्तम्बया, नवरं ४२. ओगाहणा जहण्णेणं धणुपुहत्तं, वा.-'ओगाहणा जहन्नेणं धणुहपुहुत्तं' ति यदुक्त तत्पल्योपमाष्टभागमानानुषो विमलवाहनादिकुलकरकालात्पूर्वतरकालभाविनो हस्त्यादिव्यतिरिक्तक्षुद्रकाय चतुष्पदानपेक्ष्यावगन्तव्यं, (वृ०प० ८४८) ४३. उक्कोसेणं सातिरेगाइं अट्ठारसधणुसयाई । ३८. *उत्कृष्टो पिण आखियो रे, पल्योपम नों जाण । ___अष्टम भाग स्थितिक विषे रे, तेह ऊपज आण ।। सोरठा ३९. जेह युगल तिर्यंच, जघन्य स्थितिक छै ते भणी। जोतिषि में उपजंच, अष्टम भाग विषेज ते॥ ४०. *हे प्रभु जी ! ते जीवड़ा रे, एक समय रै माय । किता ऊपजै छै तिके रे? इत्यादिक पूछाय ।। ४१. एहिज वक्तव्यता तसू रे, कहिवी पूर्व जेम। णवरं इतरो विशेष छ रे, सांभलजो धर प्रेम ।। ४२. अवगाहना तसु जघन्य थी रे, पृथक धनुष्य संपेख । न्याय कहूं छू तेहनों रे, सांभलजो सुविशेख ।। वा. -जघन्य पृथक धनुष्य नी जे कही ते पल्योपम नों अष्टम भाग मान आउखो ते विमलवाहनादि कुलकर थकी अतिही पूर्व काल भावी हस्त्यादिक टाली अनेरा लघुकाय नां चतुष्पद नी अपेक्षाये जाणवो। तेहनी स्थिति पिण पल्य नों अष्टम भाग हुदै । ४३. उत्कृष्टो अवगाहना रे, जाझेरी इम संध। ___ अष्टादश सौ धनुष्य नी रे, युगल गजादि प्रबंध ।। वा०-- उत्कृष्ट अठारै सौ धनुष्य जाझी ते किम ? ए वलि विमलवाहन कुलकर थी अति ही पूर्वकाल भावी हस्त्यादिक नी अपेक्षाये कह्यो। जे भणी विमलवाहन नी नवसो धनुष्य मान अवगाहना, ते काले हस्त्यादिक नी ते विमलवाहन थकी दुगुणी अठार सौ धनुष्य नी । ते माट ते विमलवाहन थकी अतिही पूर्व काल थया ते हस्त्यादिक नी अवगाहना अठारै सौ धनुष्य जाझेरी प्रमाण हुदै, ए वत्ति थी कह्य। ४४. स्थिति ते तिर्यंच युगल नी रे, जघन्य अने उत्कृष्ट । पल्य नां अष्टम भाग नी रे, अनुबंध इतोज इष्ट ।। ४५. शेष तिमज कहिवं सहू रे, पूर्व आख्यो जेम। काल थकी कहिये हिवै रे, सांभलजो धर प्रेम ।। ४६. काल आश्रयी जघन्य थो रे, उत्कृष्टो पिण जोय । एक पल्योपम नां कह्या रे, भाग आठमा दोय ।। ४७. जघन्य काल स्थितिक तणों रे, एहिज गमो एक । सूत्र विषे इम आखियो रे, वृत्ति विषे हिव लेख । वा०-पंचम अने षष्टम ए-बेगमा नों इहां चउथा गमा नै विषेईज अतर्भाव थकी एतले पंचमो, छठो --ए बे गमा चउथा गमा नै विषे आव्या जे भणी पंचमा गमा नै विष पिण तियं च युगलिया पल्य ना आठमा भाग मान आउखावंत हवै । वलि छठा गमा नै विषे पिण तिथंच युगलिया नों आऊखो पल्य नों आठमो भाग मान हीज आयु हुवे, पूर्वे इम कह्योज छ। ४८. तेहिज तिरिक्ख युगल थयो रे, जेष्ठ काल स्थितिवंत । ज्योतिषी ओधिक स्थितिक रे, उपनों तास उदंत ।। *लय : राम पूछ सुग्रीव ने रे वा०-'उक्कोसेणं सातिरेगाइं अट्ठारसधणसयाई' ति एतच्च विमलवाहनकुलकरपूर्वतरकालभाविहस्त्या दीनपेक्ष्योक्त', यतो विमलवाहनो नवधनुःशतमानावगाहनः तत्कालहस्त्यादयश्च तद्विगुणाः तत्पूर्वतरकालभाविनश्च ते सातिरेकतत्प्रमाणा भवन्तीति, (वृ०प०८४८) ४४. ठिती जहण्णेणं अदुभागपलिओवम, उक्कोसेणं वि अट्ठभागपलिओवमं । एवं अणुबंधोवि । ४५. सेसं तहेव । ४६. कालादेसेणं जहण्णणं दो अदभागपलिओवमाई, उक्कोसेण वि दो अट्ठभागपलिओवमाइं, ४७. जहण्णकालट्ठितियस्स एस चेव एक्को गमो ४।। (श० २४॥३२८) वा०-'जहन्नकालट्ठिइयस्स एस चेव एक्को गमो' त्ति पञ्चमषष्ठगमयोरत्रवान्तर्भावाद्, यत: पल्योपमाष्टभागमानायुषो मिथुनकतिरश्च: पञ्चमगमे षष्ठगमे च पल्योपमाष्टभागमानमेवायुर्भवतीति, प्राग भावितं चैतदिति, (वृ० प० ८४८) ४८. सो चेव अप्पणा उक्कोसकालट्ठितीओ जाओ, श• २४, उ. २३, दा. ४३१ १७ Jain Education Intemational Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४९. सा चेव ओहिया वत्तब्वया, नवरं-- ५०. ठिती जहणेणं तिण्णि पलिओवमाई, उक्कोसेण वि तिण्णि पलिओवमाइं । एवं अणुबंधो वि। ५१. सेसं तं चेव । एवं पच्छिमा तिण्णि गमगा नेयन्वा, नवरं-ठिति संवेहं च जाणेज्जा ७-९ । वा०- सप्तमादिगमेषत्कृष्टव त्रिपल्योपमलक्षणा तिरश्च: स्थितिः, ज्योतिष्कस्य तु सप्तमे द्विविधा प्रतीतव, अष्टमे पल्योपमाष्टभागरूपा, नवमे सातिरेकपल्योपमरूपा, संवेधश्चैतदनुसारेण कार्यः (वृ०प०६४८) ४९. सर्व ही वक्तव्यता तसू रे, ओधिक गम जिम लेख। कहिवो तिपहिज रीत संरे, णवरं इतरो विशेख ।। ५०. स्थिती युगल तिर्यंच नी रे, जघन्य अनै उत्कृष्ट । __तीन पल्योपम जाणवी रे, अनुबन्ध पिण इम इष्ट ।। ५१. शेष तिमज कहिवो सहू रे एम चरम गम तीन । णवरं संवेध जाणवू रे, उपयोगे करि चीन ॥ वा०-सातमा, आठमा, नवमा गमा नै विषे उत्कृष्ट ईज तीन पल्योपम युगलिया तिर्यच नी स्थिति । अनै जोतिषी नै विषे ऊपजै, तिहां जोतिषी नीं स्थिति उत्कृष्ट-ओधिक ए सातमा गमा नै विषे दोय प्रकार नी प्रसिद्ध ईज । ते जघन्य तो पल्य ना आठमा भाग नी, उत्कृष्टी एक पल्योपम नै लक्ष वर्ष नीज हुवै । अन आठमा गमा नै विषे जघन्य-उत्कृष्ट पल्योपम ना अष्टमा भाग ने विषे ऊपज । अन नवमा गमा नै विषे जघन्य-उत्कृष्ट पल्योपम लक्ष वर्ष अधिक स्थिति नै विषे ऊपजै । अनै कायसंवेध विचारी करिवू । सातमे गमे संवेध जघन्य थी ३ पल्प नै पल्य नों आठमों भाग, उत्कृष्ट अद्धा ४ पल्य नै लक्ष वर्ष । तीन पल्य तो युगलिया तियंच रो, एक पल्य नै लक्ष वर्ष जोतिषी नों। अष्टमे गमे संवेध जघन्य अनै उत्कृष्ट अढा तीन पल्य अन पल्योपम नों आठमों भाग अने नवमे गमे संवेध जघन्य-उत्कृष्ट अद्धा ४ पल्य नै लक्ष वर्ष । न्याय पूर्ववत । ५२. एवं सप्त गमा कह्या रे, पहिला तीन पिछान । छेहला तीन गमा कह्या रे, मध्यम इक त्रिण स्थान । -प्रथम तीन गमा अनै बिचला तीन गमा रै स्थानके एक गमो छहला तीन गमा ए जोतिषी नै विषे तिथंच युगलियो ऊपज तेहना ६ गमा नों अधिकार कह्यो। ___ज्योतिषी में संख्याता वर्ष नों सन्नी तियंच पंचेंद्रिय ऊपज, तेहनों मधिकार' ५३. जो संख्यात वर्षायु सन्नी रे, पंचद्री तिरि ताहि । तेह थको जे ऊपजै रे, देव जोतिषि मांहि ।। ५४. संख्यात वर्षायू तिरो रे, जिमहिज असुर विषेह । ऊपजता नां आखिया रे, तिमज गमा नव एह ।। ५५. णवरं स्थिति जोतिषि तणी रे, तथा संवेध पिछाण। . उपयोगे करि जाणवू रे, शेष तिमज सहु आण ।। वा०-संख्याता वर्षायु सन्नी पंचेंद्रिय तिर्यंच जोतिषी नै विषे ऊपजता प्रथमे, चउथे, सातमे गमे जघन्य पल्योपम नां आठमा भाग स्थितिक ने विषे ऊपज, उत्कृष्ट पल्योपम लक्ष वर्ष अधिक स्थितिक नै विषे ऊपज । अनै दूजे, पांचमे, आठमे गमे जघन्य-उत्कृष्ट पल्योपम ना आठमा भाग स्थितिक नै विषे ऊपज । अन तीजे, छठे नवमे गमे जघन्य-उत्कृष्ट पल्योपम लक्ष वर्ष अधिक स्थितिक नै विषे ऊपज । ५२. एते सत्त गमगा। (श० २४१३२९) वा०-'एते सत्त गम' त्ति प्रथमास्त्रयः मध्यमत्रयस्थाने एकः पश्चिमास्तू त्रय एवेत्येवं सप्त । (वृ०५०८४८) ५३. जइ संखेज्जवासाउयसण्णिपंचिदिय ? ५४. संखेज्जवासाउयाणं जहेव असुरकुमारेसु उववज्ज माणाणं तहेव नव वि गमा भाणियव्वा, ५५. नवरं-- जोतिसिय-ठिति संवेहं च जाणेज्जा । सेसं तहेव निरवसेसं १-९। (श० २४१३३०) *लय : राम पूछ सुग्रीव नै रे १. देखें परि. २, यंत्र १४७ १८८ भगवती जोड़ Jain Education Intemational Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोरठा ५६. पहिले गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। ___अंतर्मुहर्त जेह, भाग आठमों पल्य नों। ५७. उत्कृष्टो अवधार, अद्धा अष्ट भवां तणों। पूर्व कोड़ज च्यार, चिउं पल्य चिउं लक्ष वर्ष फुन ।। ५८. दूजे गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। अंतर्मुहर्त जेह, भाग आठमों पल्य नों। ५९. उत्कृष्टो अवधार, अद्धा अष्ट भवां तणों। पूर्व कोड़ज च्यार, पल्य नां अष्टम भाग चिउं ।। वा०-इहां एक पल्योपम ना आठवां भाग नां ज्योतिषी नै विषे च्यार भव करे, ते च्यारूं भवे अर्द्ध पल्योपम हुवं । ६०. तीजे गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। अंतर्महुर्त जेह, एक पल्योपम वर्ष लक्ष ।। ६१. उत्कृष्टो अवधार, अद्धा अष्ट भवां तणों। पूर्व कोड़ज च्यार, चिउं पल्य चिउं लक्ष वर्ष फुन ।। ६२. तुर्य गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। अंतर्मुहर्त जेह, भाग आठमों पल्य नों। ६३. उत्कृष्टो अवधार, अद्धा अष्ट भवां तणों । ___अंतर्महर्त च्यार, चिउं पल्य चिउं लक्ष वर्ष वलि ।। ६४. पंचम गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। __अंतर्महर्त जेह, भाग आठमों पल्य नों। ६५. उत्कृष्टो अवधार, अद्ध अष्टा भवां तणों। ___अंतर्मुहुर्त च्यार, पल्य नां अष्टम भाग चिउं ।। ६६. षष्टम गम संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। अंतर्महर्त जेह, एक पल्योपम वर्ष लक्ष ।। ६७. उत्कृष्टो अवधार, अद्धा अष्ट भवां तणों। ____अंतर्महत्तं च्यार, चिउं पल्य चिउं लक्ष वर्ष फुन । ६५. सप्तम गम संबेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। कोड़ पूर्व तिरि जेह, भाग आठमों पल्य नों। ६९. उत्कृष्टो अवधार, अद्धा अष्ट भवां तणों। कोड़ पूर्व जे च्यार, चिहुं पल्य चिहुं लक्ष वर्ष वलि । ७०. अष्टम गम संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। कोड़ पूर्व तिरि जेह, भाग आठमों पल्य नों। ७१. उत्कृष्टो अवधार, अद्धा अष्ट भवां तणों । कोड़ पूर्व जे च्यार, पल्य नां अष्टम भाग चिउं ।। ७२. नवम गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। कोड़ पूर्व तिरि जेह, एक पल्योपम वर्ष लक्ष । ७३. उत्कृष्टो अवधार, अद्धा अष्ट भवां तणों। कोड़ पूर्व जे च्यार, चिहुं पल्य चिहुं लख वर्ष फुन ।। ए सन्नी पंचेंद्रिय तिर्यच जोतिषी नै विषे ऊपज, तेहना नव गमा कह्या । श० २४, उ०२३, ढा०४३१ १८९ Jain Education Intemational Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२. सेसं तहेव निरवसेसं जाव संवेहो त्ति । (श० २४१३३२) ८३. जइ संखेज्जवासाउयसण्णिमणुस्सेहितो ? ८४. संखेज्जवासाउयाणं जहेव असुरकुमारेसु उववज्ज माणाणं तहेव नव गमगा भाणियव्वा, ८५. नवरं-जोतिसियठिति संवेहं च जाणेज्जा। सेसं तं चेव निरवसेसं १-९। (श० २४।३३३) ८२. शेष तिमज कहिवो सहू रे, जाव संवेध लगेह । युगल तिरी जोतिषि विषे रे, उपजे तेम कहेह ।। ए मनुष्य युगलियो जोतिषी ने विषे ऊपज, तेहनां सात गमा कह्या । ज्योतिषी में संख्याता वर्ष नों सन्नी मनुष्य ऊपज, तेहनों अधिकार' ८३. संख वर्षायुषवंत जदि रे, सन्नी मनुष्य छै जेह । जोतिषि ने विषे ऊपजै रे, इत्यादिक पूछेह ।। ८४. संख वर्षायू सन्नो मनु रे, जिमहिज असुर विषेह । ऊपजतां ने आखिया रे, तिम नव गमा कहेह ।। ५५. णवरं स्थिति जोतिषि तणी रे, अथवा कायसंवेह । उपयोगे करि जाणवू रे, शेष तिमज सहु जेह ।। वा० . संख्यात वर्षायु सन्नी मनुष्य असुर में ऊपज, तिहां असुर नी स्थिति प्रथम, चतुर्थ, सप्तम गमके जघन्य १० सहस्र वर्ष, उत्कृष्ट १ सागर जाझी। द्वितीय, पंचम, अष्टम गमके जघन्योत्कृष्ट १० सहस्र वर्ष । तृतीय, षष्ठम, नवम गमके जघन्योत्कृष्ट १ सागर जाझी । तिहां ए असुर नी स्थिति कही अनैं इहां संख्यात वर्षायुष सन्नी मनुष्य जोतिषी नै विषे ऊपज, तिहां जोतिषी नी स्थिति इम कहिवी प्रथम, चतुर्थ, सप्तम गमके जघन्य पल्य नों आठमों भाग, उत्कृष्ट १ पल्योपम लक्ष वयं । अनै द्वितीय, पंचम, अष्टम गमके जघन्योत्कृष्ट पल्य नों आठमों भाग । अन तृतीय, पष्ठम, नवम गमके जघन्योत्कृष्ट १ पल्योपम लक्ष वर्ष स्थिति में ए विशेष जाणवो। अन कायसंवेध भव आश्रयी नवही गम के जघन्य बे, उत्कृष्ट अठ। अनै काल आश्रयी प्रथम गम के जघन्य प्रधक मास पल्य नों आठमों भाग, उत्कृष्ट ४ कोड़ पूर्व ४ पल्पोपम ४ लक्ष वर्ष १। द्वितीय गमके जघन्य पृथक मास पल्य नों थाठमों भाग, उत्कृष्ट ४ कोड पूर्व पल्य नां आठमा ४ भाग २ । तृतीय गमके जघन्य पृथक मास १ पल्योपम लक्ष वर्ष, उत्कृष्ट ४ कोड़ पूर्व ४ पल्योपम ४ लक्ष वर्ष ३ । चतुर्थ गमके जघन्य पृथक मास पल्य नों आठमों भाग, उत्कृष्ट ४ पृथक मास ४ पल्योपम ४ लक्ष वर्ष ४ । पंचम गमके जघन्य पृथक मास पल्य नों आठमों भाग, उत्कृष्ट ४ पृथक मास पल्य नां आठमा ४ भाग ५ । षष्ठम गमके जघन्य पृथक मास १ पल्योपम १ लक्ष वर्ष, उत्कृष्ट ४ पल्योपम ४ लक्ष वर्ष ६ । सप्तम गमके जघन्य कोड़ पूर्व पल्य नों आठमों भाग, उत्कृष्ट ४ कोड़ पूर्व ४ पल्योगम ४ लक्ष वर्ष ७, अष्टम गमके जघन्य कोड़ पूर्व पल्य नों आठमों भाग, उत्कृष्ट ४ कोड पूर्व पल्य नां आठमा ४ भाग ८ । नवम गमके जवन्य १ कोड़ पूर्व १ पल्योपम १ लक्ष वर्ष, उत्कृष्ट ४ कोड़ पूर्व ४ पल्योपम ४ लक्ष वर्ष ९ए कायसवेध जाणवू । जोतिपी में च्यार ठिकाणां रो ऊपज-युगलियो तिथंच १. संख्यात वर्षायुष सन्नी तिथंच २, युगलियो मनुष्य ३, संख्यात वर्षायुष सन्नी मनुष्य ४ । असन्नी तिर्यंच न जावै। सोरठा ५६. देव जोतिषी मांय, युगल तिरिक्ख उपजै तस् । सातूं गमे कहाय, जघन्योत्कृष्टज दोय भव ।। १. देखें परि० २, यंत्र १४७ श० २४, उ० २३, ढा० ४३१ १९१ Jain Education Intemational Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२. सेसं तहेव निरवसेसं जाव संवेहो त्ति । (श० २४१३३२) ८३. जइ संखेज्जवासाउयसण्णिमणुस्सेहितो ? ८४. संखेज्जवासाउयाणं जहेव असुरकुमारेसु उववज्ज माणाणं तहेव नव गमगा भाणियव्वा, ८५. नवरं-जोतिसियठिति संवेहं च जाणेज्जा। सेसं तं चेव निरवसेसं १-९। (श० २४।३३३) ८२. शेष तिमज कहिवो सहू रे, जाव संवेध लगेह । युगल तिरी जोतिषि विषे रे, उपजे तेम कहेह ।। ए मनुष्य युगलियो जोतिषी ने विषे ऊपज, तेहनां सात गमा कह्या । ज्योतिषी में संख्याता वर्ष नों सन्नी मनुष्य ऊपज, तेहनों अधिकार' ८३. संख वर्षायुषवंत जदि रे, सन्नी मनुष्य छै जेह । जोतिषि ने विषे ऊपजै रे, इत्यादिक पूछेह ।। ८४. संख वर्षायू सन्नो मनु रे, जिमहिज असुर विषेह । ऊपजतां ने आखिया रे, तिम नव गमा कहेह ।। ५५. णवरं स्थिति जोतिषि तणी रे, अथवा कायसंवेह । उपयोगे करि जाणवू रे, शेष तिमज सहु जेह ।। वा० . संख्यात वर्षायु सन्नी मनुष्य असुर में ऊपज, तिहां असुर नी स्थिति प्रथम, चतुर्थ, सप्तम गमके जघन्य १० सहस्र वर्ष, उत्कृष्ट १ सागर जाझी। द्वितीय, पंचम, अष्टम गमके जघन्योत्कृष्ट १० सहस्र वर्ष । तृतीय, षष्ठम, नवम गमके जघन्योत्कृष्ट १ सागर जाझी । तिहां ए असुर नी स्थिति कही अनैं इहां संख्यात वर्षायुष सन्नी मनुष्य जोतिषी नै विषे ऊपज, तिहां जोतिषी नी स्थिति इम कहिवी प्रथम, चतुर्थ, सप्तम गमके जघन्य पल्य नों आठमों भाग, उत्कृष्ट १ पल्योपम लक्ष वयं । अनै द्वितीय, पंचम, अष्टम गमके जघन्योत्कृष्ट पल्य नों आठमों भाग । अन तृतीय, पष्ठम, नवम गमके जघन्योत्कृष्ट १ पल्योपम लक्ष वर्ष स्थिति में ए विशेष जाणवो। अन कायसंवेध भव आश्रयी नवही गम के जघन्य बे, उत्कृष्ट अठ। अनै काल आश्रयी प्रथम गम के जघन्य प्रधक मास पल्य नों आठमों भाग, उत्कृष्ट ४ कोड़ पूर्व ४ पल्पोपम ४ लक्ष वर्ष १। द्वितीय गमके जघन्य पृथक मास पल्य नों थाठमों भाग, उत्कृष्ट ४ कोड पूर्व पल्य नां आठमा ४ भाग २ । तृतीय गमके जघन्य पृथक मास १ पल्योपम लक्ष वर्ष, उत्कृष्ट ४ कोड़ पूर्व ४ पल्योपम ४ लक्ष वर्ष ३ । चतुर्थ गमके जघन्य पृथक मास पल्य नों आठमों भाग, उत्कृष्ट ४ पृथक मास ४ पल्योपम ४ लक्ष वर्ष ४ । पंचम गमके जघन्य पृथक मास पल्य नों आठमों भाग, उत्कृष्ट ४ पृथक मास पल्य नां आठमा ४ भाग ५ । षष्ठम गमके जघन्य पृथक मास १ पल्योपम १ लक्ष वर्ष, उत्कृष्ट ४ पल्योपम ४ लक्ष वर्ष ६ । सप्तम गमके जघन्य कोड़ पूर्व पल्य नों आठमों भाग, उत्कृष्ट ४ कोड़ पूर्व ४ पल्योगम ४ लक्ष वर्ष ७, अष्टम गमके जघन्य कोड़ पूर्व पल्य नों आठमों भाग, उत्कृष्ट ४ कोड पूर्व पल्य नां आठमा ४ भाग ८ । नवम गमके जवन्य १ कोड़ पूर्व १ पल्योपम १ लक्ष वर्ष, उत्कृष्ट ४ कोड़ पूर्व ४ पल्योपम ४ लक्ष वर्ष ९ए कायसवेध जाणवू । जोतिपी में च्यार ठिकाणां रो ऊपज-युगलियो तिथंच १. संख्यात वर्षायुष सन्नी तिथंच २, युगलियो मनुष्य ३, संख्यात वर्षायुष सन्नी मनुष्य ४ । असन्नी तिर्यंच न जावै। सोरठा ५६. देव जोतिषी मांय, युगल तिरिक्ख उपजै तस् । सातूं गमे कहाय, जघन्योत्कृष्टज दोय भव ।। १. देखें परि० २, यंत्र १४७ श० २४, उ० २३, ढा० ४३१ १९१ Jain Education Intemational Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८७. जघन्य गमे सुजोय, तीन णाणत्ता तेहनां। अवगाहन नों होय, आयू नैं अनुबंध नों। ५८. अवगाहना जघन्य, पृथक धनुष्य नी पेखियै । उत्कृष्टी तसु जन्य, साधिके धनुष्य अठार सय ।। ८९. आयु जघन्योत्कृष्ट, भाग आठमों पल्य नों। आयू जितोज इष्ट, अनुबन्ध कहियै तेहनों ।। ९०. उत्कृष्ट गमे विचार, दोय नाणत्ता दाखिया। आय अनबंध सार, तीन पल्योपम जाणवं ।। ९१. उपजै जोतिषि माय, संख्यायू सन्नी तिरि । भव नव गमे कहाय, जघन्य दोय उत्कृष्ट अठ।। ९२. जघन्ये गमे कहाय, नारकवत अठ णाणत्ता । पिण सुभ अध्यवसाय, उत्कृष्ट गम बे णाणत्ता ।। ९३. युगल मनुष्य उपजेह, अमर जोतिषी ने विषे । भव सातूं गमकेह, जघन्य अनें उत्कृष्ट बे।। ९४. जघन्य गमे त्रिण इष्ट, धुर अवगाहन नाणत्तो। जघन्य अनें उत्कृष्ट, साधिक नवसौ धनुष्य नी ।। ९५. आयू नै अनुबंध, भाग आठमों पल्य नों। तीन गमा नों संध, एक गमो जघन्यो कह्यो ।। ९६. उत्कृष्ट गम पिण तीन, त्रिण गाऊ अवगाहना । आयु अनुबंध चीन, तीन पल्योपम जाणवू ।। ९७. जोतिषि में उपजेह, संख्यायू सन्नी मनु । भव नव गमे कहेह, जघन्य दोय उत्कृष्ट अठ। ९८. पंच णाणत्ता पेख, जघन्ये गमे सुजाणजो। तसु अवगाहन देख, जघन्योत्कृष्ट अंगुल पृथक । ९९. भजनाइं त्रिण ज्ञान, समुद्घात धुर पंच फुन । आयु अनुबंध मान, मास पृथक नों प्रभु का ।। १००. उत्कृष्ट गमेज तीन, अवगाहन धन पांचसौ। आयु अनुबंध चीन, कोड़ पूर्व नों आखियो । १०१. असन्नी विण चिहुं स्थान, अमर जोतिषी उत्पत्ति । तास नाणत्ता जान, असुर विषे उपजै तिमज ।। १०२. *सेवं भंते ! स्वामजी रे, चउवीसम शतकेह। उद्देशक तेवीसमो रे, अर्थ थकी कह्यो एह ।। १०३. च्यारसी इकतीसमी रे, जोतिषी नीं ए ढाल । भिक्षु भारीमाल ऋषिराय थी रे, 'जय-जश' हरष विशाल ।। चतुविशतितमशते त्रयोविंशोद्देशकार्थ : ॥२४॥२३॥ १०२. सेवं भते ! सेवं भंते ! त्ति। (श०२४१३३४) *लय : राम पूछ सुग्रीव ने रे १९२ भगवती जोड़ Jain Education Intemational Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दूहा १. सौधर्म देवा हे प्रभु! किहो थकी उपजंत ? स्यूं नारक थी ऊपजे ? इत्यादिक पूछत ॥ २. भेद जूजुआ एहनां जिम जोतिषि उद्देश | आतम कहिवो इहां, हिव धुर तिरि मिथुनेस || पहले देवलोक में तिथंच युगलियो ऊपजं, तेहनों अधिकार' *भाव वैमाणिक नां सुणो ॥ (ध्रुपदं ) ३. प्रभु ! असंख वर्षायु सन्नी तिरि, सोहम्म कल्प विषेह जी । जे पवा योग्य ते प्रभु ! किते काल स्थितिके उपजेह जी ? ढाल : ४३२ ४. जिन कहै गोयम जपन्य थी, इक पत्य स्थितिक विषेह जी। उत्कृष्ट तीन पत्योपम स्थितिक विषे उपजेह जी ॥ सोरठा ५. जघन्य पल्य आख्यात, सौधर्मे स्थिति जघन्य थी । पल्प थी हीण न यात तिण सूं पल्पोपम कही || ६. तीन पल्य उत्कृष्ट, तेह विषे उपजै को। यद्यपि इहां गरिष्ठ, बहुतर छेथे उदधि लग || ७. तो पिण युगल तिर्यच, त्रिण पल्य आयुवंत जे । निज आयू बी रंच अधिक न बांधे सुर स्थिति ॥ ८. * प्रभु ! इक समय ते किता ऊपजै ? शेष परिमाणादि सोय जी । जिम जोतिषि में तिरि युगलियो, ऊपजता में अवलोव जी ॥ ९. तिहां का तिम कहि इहां, नवरं विशेष सम्यकदृष्टि पण पर्ज, मिच्छदिट्ठी पिण १०. मिश्र दृष्टि तिरि युगलियो, तेह वैमानिक एह जी । उपजेह जी ॥ मांहि जी । ऊपजवूं नहीं तेहनों, मिश्रदृष्टि युगल में नांहि जी ॥ *लय : मम करो काया माया १. देखें परि० २ यंत्र १४९ ११. तिहाँ जोतिषी मांय, सम्यगदृष्टि न पाय, १२. समदृष्टी तिर्यंच, आयू-बंध विरंच, १२. हां युगल तियंच, वैमानिक में संच, एह सोरठा ऊपजता तिण सूं ए इक वैमानिक तिरि-युगल में । नहि ऊपजै ॥ अपर आयु समदृष्टी विशेषज देव नुं । बांधे नयी || पिण ऊपजै । जाणवूं || १. सोहम्मदेवा णं ते मोहित उवति कि एहिती वजति ? २. भेदो जहाजोय उद्देसए ( ० २४०३३५) णं ३. असंखेज्जवासा उयसष्णिपंचिदियति रिक्खजोणिए भंते! जे भविए सोहम्मगदेयेसु उपस्थितए से पं भंते! केवतिकाद्विती? ४. गोमा ! जग पलिओचमसीएस उनको तिपलिभोवमद्वितीए उपवण्या ( ० २४१३२६) ५. 'जहनेणं पलिओ मट्ठिइएस' त्ति सौधर्मे जघन्येनायाप (बृ० प० ८५२) ६७. उनको पिलिजमा विद्यपि सौधर्मे बहुतरमायुष्यमस्ति तचायुत्कर्षस्त्रिपत्यपमायुष एवं तिर्यञ्चो भवन्ति तदनतिरिक्त च देवानन्तीति, ( वृ० प० ८५१) ८. ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति ? अवसेसं जहा जोइसिएसु उववज्ज माणस्स, ९. नवसम्मदी विमिच्छादिट्ठी ि १०. नो सम्मामिट्ठी । श० २४, उ० २४, ढा० ४३२ १९३ Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४. * ज्ञानी पिण हुवै तिरि युगलियो, अज्ञानी पिण तिके वाय जी । ज्ञान बे दोय अज्ञान ते, नियमा निश्च करि पाय जी ॥ 1 वा०- - तिहां जोतिषी नैं विषे तियंच युग लियो ऊपजै, तिण में ज्ञान न पावे । अने इहां वैमानिक में ऊपर्ज, तेहने ज्ञानी पिण कहिये। ए विशेष अन अज्ञानी पिण ऊपजै, एहवूं कह्य ं । ते अज्ञानी तो जोतिषी ने विषे पिण ऊपजै छे, ते नवरं पाठ में किम का ? उत्तर - ज्ञानद्वारे संलग्न पाठ मार्ट अज्ञानी पिण ऊपजै, इम का ं पिण ए विशेष नथी । १५. स्थिति जघन्य इक पल्य नीं, उत्कृष्ट त्रिण पल्य ताय जी । अनुबंध पिण कहिये इतो, शेष तिमहिज कहिवाय जी ॥ १६. काल आदेश करि जघन्य थी, दोय पल्योपम देख जी । एक पत्थोपम तिरि भवे सुर भवे इक पल्य शेख जी ॥ J १७. उत्कृष्ट षट पल्य नीं कही, त्रिण पल्य तिरि भव न्हाल जी । त्रिण पल्य सोहम्म सुर भवे, ए गति आगति काल जी ॥ । १८. तेहिज तिच युगलियो, अधिक आयुषवंत जी जघन्य जे काल स्थितिक विषे ऊपनों तास वृतंत जी ॥ विशेष छे एह जी । १९. एहिज वक्तव्यता तसु णवरं कालसंवेध विषे अछे, आगल तेह कहेह जी ॥ २०. काल आदेश करि जघन्य थी, दोय पल्योपम जोय जी । इक पल्य युगल तिरि भव विषे, इक पल्य सुर भव होय जी । २१. उत्कृष्ट पियनों कह्यो, त्रिण पल्य युगल तिथंच जी। इक पर सोहम्म सुर भवे ए गति आगति संच जो ॥ २२. ते हिज तिर्यंच युगलियो, ओधिक स्थितिक कहिवाय जी । उत्कृष्ट काल स्थितिक विषे, ऊपनों सौधर्म मांय जी ॥ २३. जघन्य त्रिण पल्य स्थितिक विषे, उत्कृष्ट पिण पल्य तीन जो स्थितिक विषेतिको ऊपजे, सोहम्म सुर स्थिति सीन जो ॥ २४. एहि वक्ता ससु णवरं युगल स्थिति जोय जी जघन्य उत्कृष्ट त्रिण पल्य तणीं, शेष तिमहिज अवलोय जी ।। २५. काल आदेश करिने तसु षट पल्य जघन्य उत्कृष्ट जी । त्रिण पत्व युगल तिथंच नी त्रिण पल्प सोहम्म इष्ट जी ॥ २६. हि तिथेच युगलियो, आपण कहियाय जी । तेहिज जन्य से काल स्थितिक थयो, उपनों वैमानिक माय जी ।। २७. ऊपनों जघन्य उत्कृष्ट थी, इक पल्य स्थितिक विषेह जी । एहि वक्तव्यता तमु णवरं विशेष छे एह जी ॥ , *लय मम करो काया माया १९४ भगवती जोड़ १४. नाणी वि, अण्णाणी वि, दो नाणा दो अण्णाणा नियमं । १५. ठिती जहणेणं पलिओवमं, उक्कोसेणं तिष्णि पलिओवमाई | एवं अणुबंधो वि। सेसं तहेव । १६. काला जोगं दो पतिओमाई, 'दो पनिओनमाई' ति एकं तिर्यग्भवत्कमपरं च देवभव सत्कं (२०००५१) १७. उक्कोसेणं छप्पलिओमाई, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा १ । (१० २४३३७) 'छ पलिओमाई' ति त्रीणि पल्योपमानि तिर्यग्भवसरकानि षीदेव देववसरकानीति ( वृ० प० ८५१) १८. सोपे जातीए उपवण्णो १९. एस चेव वत्तव्वया, नवरं- २०. कालादेसेणं जहणेणं दो पलिओवमाई, २१. उक्कोसेणं चत्तारि पलिओवमाई, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा २ । ( श० २४ | ३३८ ) २२. सो उकालतीएम बो २३. तपोवमद्वितीए, उनको वि पिलोमसीए. २४. एस चैव वत्तग्वया, नवरंठिती जहणेणं तिष्णि पलिओ माई । उक्कोसेणं वि तिष्णि पलिओ माई सेसं तहेव 11 २५. कालादेसेणं जहण्णेणं छप्पलिओदमाई, उक्कोसेण वि (२० २४,३३९) २६. सो व अप्पा जहन्यकामद्वितीओ जाओ प्पा २७. जहणेणं पलिओवमट्टितीएसु, उक्कोसेण वि पलिओवमट्टितीएस, एस चेव वत्तब्वया, नवरं Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८. ओगाहणा जहण्णेणं धणपहत्तं, उक्कोसेणं दो गाउयाई। वा०-'जहन्नेणं धणहपुहुत्तं' ति क्षुद्रकायचतुष्पदापेक्षं 'उक्कोसेणं दो गाउयाई' ति यत्र क्षेत्रे काले वा गव्यूतमाना मनुष्या भवन्ति तत्सम्बन्धिनो हस्त्यादीनपेक्ष्योक्तमिति । (वृ०प० ८५१) २९. ठिती जहण्णेणं पलिओवम, उक्कोसेण वि पलि ओवमं । ३०. कालादेसेणं जहण्णेणं दो पलिओवमाई, उक्कोसेण वि दो पलिओवमाई, एवनियं काल सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा ४-६ । (श० २४१३४०) २८. अवगाहना तसु जघन्य थी, पृथक धनुष्य नी पेख जो । उत्कृष्ट दोय गाऊ तणी, युगल गज आदि सुविशेख जी। वा०–ए जघन्य पृथक धनुष्य ते लघु काया नों धणी चतुष्पद युगलिया नीं अपेक्षाए । अनै उत्कृष्ट बे गाऊ नी ते जे क्षेत्र नै विष तथा जे काल नै विषे मुगलिया मनुष्य नी एक गाऊ नी अवगाहना हुवै ते संबंधी हस्त्यादिक प्रत आश्रयी उत्कृष्ट बे गाऊ नी कहिवी । एतले जे क्षेत्र तथा ते काले मनुष्य तिर्यच नों एक पल्य नों आउखो हुदै, तिवारै मनुष्य नी तो एक गाऊ नी अवगाहना, गज प्रमुख युगलिया नी बे गाऊ नीं अवगाहना हुवं, ते तिर्यंच एक पल्य स्थितिक बे गाऊवंत इहां ग्रहण कियो। २९. स्थिति जघन्य उत्कृष्ट थी, एक पल्योपम होय जी। ए जघन्य गमो धुर कल्प में ऊपजवा योग्य जोय जी। ३०. काल आदेश करिने तिको, जघन्य अनै उत्कृष्ट जी। दोय पल्योपम जाणवो, ए गति-आगति इष्ट जी।। सोरठा ३१. इक पल्य तिरि भव इष्ट, इक पल्य सोहम्म सुर स्थिति । जघन्य अनै उत्कृष्ट, दोय पल्य इम जाणवू ।। ३२. जघन्य त्रिण गम जोय, तेह विषे ए इक गमो। जुगल जोतिषी होय, तेह तणीं पर जाणवू ।। ३३. *तेहिज आपण थयो, उत्कृष्ट आउखावंत जी। प्रथम गमक सरीखा तिहां, चरम गमा त्रिहुं हुंत जी ।। ३४. णवरं स्थिति अथवा वली, काल आदेश पहिछाण जी। उपयोगे करि जाणवो, वारू है जिनवर वाण जी । सोरठा ३५. युगल तिरिक्ख नी जाण, जघन्य अनैं उत्कृष्ट थी। स्थिति तीन पल्य माण, देव तणी स्थिति हिव कहूं ।। ३६. सप्तम गमे उप्पन्न, ओधिक स्थितिक नै विषे । अष्टम गमे सजन्न, जघन्य स्थितिक सुर में विषे ।। ३७. नवम गमे पहिछाण, उत्कृष्ट स्थितिक ने विषे । काल आश्रयी जाण, कहिये हिव संवेध प्रति । ३८. सप्तम गम संवेह, जघन्य थकी पल्य च्यार नों। त्रिण पल्य युगल भवेह, इक पल्य सोहम्म सुर स्थिति ।। ३९. उत्कृष्ट अद्धा संच, षट पल्योपम बिहुं भवे । त्रिण पल्य युगल तिर्यंच, त्रिण पल्य सोहम्म सुर स्थिति ।। ४०. अष्टम गम संवेह, जघन्य नै उत्कृष्ट थी। च्यार पल्योपम जेह, त्रिण पल्य तिरि इक पल्य सुरे ।। ४१. नवम गमे संवेह, जघन्य अनै उत्कृष्ट थी। षट पल्योपम जेह, त्रिण पल्य तिरि त्रिण पल्य सुरे ।। ए असंख्यात वर्षायु सन्नी तिर्यच सौधर्म ऊपज, तेहना ७ गमा कह्या । ३३. सो चेव अप्पणा उक्कोसकाल द्वितीओ जाओ, आदिल्लगमगसरिसा तिण्णि गमगा नेयव्वा, ३४. नवरं-ठिति कालादेसं च जाणेज्जा ७-९ । (श० २४१३४१) *लय : मम करो काया माया __ श० २४, उ० २४, ढा० ४३२ १९५ Jain Education Intemational Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पहिले देवलोक में संख्याता वर्ष नों सनी तिच उपजे तेहनों अधिकार': ४२. जो वर्षां सभी तिरि इत्यादिक पूछेह जी । जिम संख वर्षायु तिरि असुर में, ऊपजता ने कहेह जी ॥ ४३. तिमहिन नव गम पिण इहां णवरं विशेष छे एह जी ।। स्थिति कुन काय संवेध नें उपयोग करीनें जाणेह जी ॥ वा०-- इहां का वरं ठिति संवहं च जाणेज्जा-ते स्थिति सौधर्म विषे ऊपजै, ते देव नीं जाणवी । इहा सौधर्म नों नाम तो नथी बा, पिण समचं स्थिति कही । ए तिथंच नां भव नीं स्थिति न सभव, ते असुरकुमार ने विषे संख्यात वर्षायु सन्नी तियंच ऊपजे, ते सन्नी तिर्यंच नीं स्थिति प्रथम तीन गमे जधन्य अंतर्मुहूर्त्त उत्कृष्ट कोड़ पूर्व । मझम तीन गमे जघन्य उत्कृष्ट अंतर्मुहूत्तं । उत्कृष्ट तीन गमे जघन्योत्कृष्ट कोड़ पूर्व । असंख्यात वर्षायुष सन्नी नियंच सौधर्मे ऊपजै, तेहनीं पिण नव गमे एतलीज स्थिति हुवै, ते मार्ट ए तिर्यच नीं स्थिति न संभवं । सौधर्म देवपण ऊपजै, ते देव नीं स्थिति संभवे । जे पूर्व कहा - संख्यात वर्षायु सन्नी मनुष्य जोतिषी में ऊपजे. तेनां प्रश्नोत्तर में जिम असुरकुमार ने विषे सख्यात वर्षायु सन्नी मनुष्य ऊपजता नैं ९ गमा कह्या तिम कहिवा णवरं जोतिसियठिति सवेह च जाणेज्जा । इहां जोतिषी नों नाम लेई नैं का तिम इहां सौधर्म नों नाम नथी लीधूं । पिण स्थिति सौधर्म नीं संभवे । बलि ख्याता वर्षायु सन्नी तिथंच जोतिषी में ऊपजै तिक पिण जिम असुरकुमार नेवि संख्यात वर्षायु सन्नी तियंच ऊपजता ने कहा, तिमज नवही गमा कहिबा । णवरं जोतिसियठितिसंवेह च जाणेज्जा । इहां पिण जोतिषी रो नाम लेई देव नीं स्थिति कही, निम इहा गोधर्म देव नीं स्थिति जाणवी । तथा आगल एहवूं कहिसे सख्याता वर्षायुष सन्नी मनुष्य सौधर्म में ऊपजै, ते जिम असुरकुमार नै विषे संख्याता वर्षायुष सन्नी मनुष्य उपजतां नैं कह्या, तिमहिज नव गमा कहिवा णवरं सोहम्मग देव ठिति संवेह च जाणेज्जा । इहां पिण देव नी स्थिति कही, इम आगल पिण सनतकुमार महेंद्रादिक नाम लेई देव नीं स्थिति कही। तिम इहां सौधर्म नो नाम तो नथी लियो समर्च स्थिति कही, पिण देव नीं स्थिति जाणवी । नागकुमार में तो तथा असंख्याता वर्षायु सन्नी तिर्यंच व्यंतर में ऊपजता नै बिचला तीन गमा अने छेहला तीन गमा जिम नागकुमार नां उद्देशा में कह्या, तिम कहिवा । नवरं ठितिसवेह च जाणेज्जा । इहां विण समर्च स्थिति कही, वाणव्यंतर नों नाम नथी का । पिण ए वाणव्यंतरां नीं स्थिति संभव । जे उत्कृष्ट देश ऊग दोय पल्य नी स्थिति, इहां व्यंतर में एक पल्य नीं स्थिति | तिम संख्यात वर्षायु सन्नी तिथंच सौधर्म में ऊपजै, तिहां पिण देव नीं स्थिति जाणवी ए स्थिति कही ते प्रथम उपपात द्वारे एतली स्थिति में ऊपजं । प्रथम द्वार में फेर जन संवेध ते छेहला वीसमा द्वार में फेर जाणवूं । ४४. आपण सन्नी तिरि हुवै, जघन्य काल स्थितिक जिह वार जी ।। सोनूई गमा विषे तदा एह लढी सुविचार जी ।। लद्धी *लय : मम करो काया माया १. देखें परि. २, यंत्र १५२ १९६ भगवती जोड़ ४२. जइ संखेज्जवासाउयसणिपंचिदिय ? संखेज्जवासाउयस्स जहेव असुरकुमारेसु उववज्जमाणस्स ४३. तहेव नव वि गमा, नवर ठिति संवेहं च जाणेज्जा । ४४. जाहे अपना बहुमणकालदुतियो भवति ताहे विगमए Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५. सम्मदिट्ठी वि, मिच्छादिट्ठी वि, नो सम्मामिच्छा दिट्ठी। ४६. 'नो सम्मामिच्छादिट्ठी' त्ति मिश्रदृष्टिनिषेध्यो जघन्यस्थितिकस्य तदसम्भवादजघन्य स्थितिकेषु दृष्टित्रयस्यापि भावादिति, (वृ० प० ८५१) ४७. दो नाणा दो अण्णाणा नियमं । 'सेसं तं चेव' १-९। (श० २४।३४२) समस्या ४५. सम्यकदृष्टि हुवै तिको, मिथ्यादष्टि पिण होय जी। मिश्रदृष्टि नहिं हजिको, जघन्य स्थितिक थकी जोय जी। ___ सोरठा ४६. जघन्य स्थितिक तिरि मांय, मिश्रदष्टि पावै नथी। दृष्टि त्रिहुं पिण थाय, अजघन्य आयुवंत में।। ४७. *सम्यकदृष्टि रै नियमा बे ज्ञान नी, मिथ्यादष्टि तणे जोय जी। नियमा है दोय अज्ञान नीं, शेष तिमहीज अवलोय जी ।। सोरठा ४८. जघन्य स्थितिक तिरि मांय, ज्ञान तथा अज्ञान बे । अवधि विभंग न पाय, तिण सू नियमा बे तणीं ।। ४९. *मनुष्य थकी जो ऊपजै, भेद जिम जोतिषी मांय जी । ऊपजता थकां मैं कह्यो, तिम इहां पिण कहिवाय जी। ५०. जाव असंख वर्षायुष, सन्नी मनुष्य छै जेह जी। ऊपजवा नै योग्य छै, सौधर्म देवपणेह जी? पहल देवलोक में मनुष्य युगलियो ऊपज, तेहनों अधिकार' ५१. इम हिज असंख वर्षायुष, सन्नी पंचेंद्रिय तिर्यंच जी। सोहम्मे ऊपजता तणां, सप्त गमा कह्या संच जी ।। ५२. तिमहिज सप्त गमा इहां, णवरं बे धुर गम मांय जी। ओगाहण जघन्य गाऊ तणों, उत्कृष्ट गाऊ त्रिण पाय जी ।। सोरठा ५३. तिहां युगल तिरि इष्ट, जघन्य पृथक धनु नीं कही। षट गाऊ उत्कृष्ट, इहां गाऊ इक तीन नी ।। ४८. तथा ज्ञानादिद्वारेऽपि द्वे ज्ञाने वा अज्ञाने वा स्यातां, जधन्यस्थितेरन्ययोरभावादिति। (वृ० प० ८५१) ४९. जइ मणुस्सेहितो उववज्जति ? भेदो जहेव जोति सिएसु उववज्जमाणस्स, ५०. जाव (श० २४॥३४३) असंखेज्जवासाउयसण्णिमणस्से णं भंते ! जे भविए सोहम्मे कप्पे देवत्ताए उववज्जित्तए ? ५१. एवं जहेव असंखेज्जवासाउयस्स सण्णिपंचिदिय तिरिक्ख जोणियस्स सोहम्मे कप्पे उववज्जमाणस्स ५२. तहेव सत्त गमगा, नवरं-आदिल्लएस दोसु गमएसु ओगाहणा जहण्णेणं गाउयं, उक्कोसेणं तिष्णि गाउयाई। ५३. आधगमयोहि सर्वत्र धनु पृथक्त्वं जघन्यावगाहना उत्कृष्टा तु गव्यूतषट्कमुक्ता इह तु 'जहन्नेणं गाय' मित्यादि, (वृ० प०८५१) ५४. ततियगमे जहण्णेणं तिण्णि गाउयाई. उक्कोसेण वि तिण्णि गाउयाइं। ५५. तृतीयगमे तु जघन्यत उत्कर्षतश्च षट् गव्यतान्युक्तानि इह तु त्रीणि, (वृ० प० ८५१) ५६ चउत्थगमए जहणणं गाउयं, उक्कोसेण वि गाउयं । ५४. *तृतीय गमा नै विषे वलि, जघन्य अने उत्कृष्ट जी। तीन गाऊ नीं अवगाहना, श्री जिन वचन ए श्रेष्ठ जी। सोरठा ५५. तिहां जघन्य उत्कृष्ट, आखी षट गाऊ तणीं। इहां गाऊ त्रिण इष्ट, जघन्य अनै उत्कृष्ट थी ।। ५६. *तुर्य गमा ने विषे वली, जघन्य अने उत्कृष्ट जी। एक गाऊ नी अवगाहना, अंतर बे गम इष्ट जी ।। वा०-इहां पांचमों, छठो गमो, चउथा गमा नै अंतरगत जाणवो । सोरठा ५७. तिहां धनु पृथक जघन्य, उत्कृष्ट बे गाऊ तणीं । इहां इक गाऊ जन्य, जघन्य अनें उत्कृष्ट थी। *लय : मम करो काया माया १. देखें परि. २, यंत्र १५४ ५७. चतुर्थे गमे तु प्राग् जघन्यतो धनुष्पृथक्त्वमुत्कर्षतस्तु द्वे गव्यूते उक्ते इह तु जघन्यत उत्कर्षतश्च गव्यूतम, (वृ० ५.८५१) श० २४, उ. २४, ढा. ४३२ १९७ Jain Education Intemational Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८. *पाछला तीन गमा विषे, जघन्य अ तीन गाऊ नीं अवगाहना, शेष तिमज वा० - ए असंख वर्षायु सन्नी मनुष्य सौधर्मे ऊपजें, तेहनां ७ गमा कह्या । सम्म मनुष्य अपने तेहनों अधिकार' इम संख वर्षायुष जाण जी । सन्नी मनुष्य जिम असुर में, ऊपजता में पिछाण जी ।। पहले देवलोक में संख्याता वर्ष ५९. जो वर्षा सन्नो मनुष्य ६०. तिमज इहां पिण नव गमा, नवरं सौधर्म सुर स्थित जी। कायसंवेध वलि जाणवूं, शेष तिमहिज कथित जी ।। उत्कृष्ट जी । राहू इष्ट जी ॥ वा० - प्रथम, चतुर्थ, सप्तम गमे जघन्य १ पल्य, उत्कृष्ट २ सागर । द्वितीय, पंचम, अष्टम गमके जघन्य उत्कृष्ट १ पल्य नी स्थिति । तृतीय, षष्टम, नवम गमके जघन्य - उत्कृष्ट २ सागर नीं थिति । हि कायसंवेधे भव जघन्य गमे २, उत्कृष्ट गमे ८ । तेह्नों नव ही गमे काल कहै छै - प्रथम गमे जघन्य पृथक मास १ पल्य, उत्कृष्ट ४ कोड़ पूर्व ८ सागर | द्वितीय गमे जघन्य पृथक मास १ पल्य, उत्कृष्ट ४ कोड़ पूर्व ४ पल्य । तृतीय गमे जघन्य पृथक मास २ सागर, उत्कृष्ट ४ कोड़ पूर्व ८ सागर । चतुर्थं गमे जघन्य पृथक मास १ पल्य, उत्कृष्ट ४ पृथक मास ८ सागर पंचम गमे जघन्य पृथक मास १ पल्य, उत्कृष्ट ४ पृथक मास ४ पल्य । षष्ठम पृथक मास २ सागर, उत्कृष्ट ४ पृथक मास ८ सागर । सप्तम गमे जघन्य कोड़ पूर्व १ पल्य, उत्कृष्ट ४ कोड़ पूर्व ८ सागर । अष्टम गमे जघन्य कोड़ पूर्व १ पल्य, उत्कृष्ट ४ कोड पूर्व ४ पल्य । नवम गमे जघन्य कोड़ पूर्व २ सागर, गमे जघन्य उत्कृष्ट ४ कोड़ पूर्व ८ सागर । ६१. ईशाण सुर प्रभु ! किहां थकी ऊपजै ते सलहीज जी ? सौधर्म सुर सम वारता, ईशाण सुर नीं एहीज जी ।। पूर्व देवलोक में लिर्वच पुगलियो अपने तेहनों अधिकार' ६२. नवरं जे युगल तिर्यंच नीं, जेह स्थानक विषे जात ऊपजता ने सौधर्म में स्थिति पस्योपम ख्यात ६३. तिम इह युगल तिच नं, स्थानक ते विषेह जी । ऊपजता ने ईशाण में, साधिक पल्य करेह जी ॥ *लय: मम करो काया माया १. देखें परि० २ यंत्र १५० १९६ भगवती जोड़ जी । जी ।। सोरठा ६४. ईशाणे अवलोय, साधिक पस्योपम तणीं । स्थिति जघन्य छै सोय, तिणसूं साधिक पल्य कही ॥ ६५. "तु गमे अवगाहना, जपन्य पृथक धनु जाण उत्कृष्ट साधिक गाउ बे, शेष तिमहिज पहिछाण जी ।। जी । ५०. पमिति गमएम जहणं तिपि गाउपा उनकोमे विनिति निर सेसं । ( श० २४ । ३४४ ) ५९. जइ संखेज्जवासा उयसणि मणुस्सेहितो ? एवं संखेज्जवासा उयस णिमणुस्साणं जहेव असुरकुमारेसु उववज्जमाणाणं ६०. सहेब नव मानव सोहम्मदेव द्विति संवेहं च जाणेज्जा सेसं तं चैव १९ । (२०२४।२४५) ६१. ईसाणदेवा णं भते ! कोहित उवति ? ईसादेवा एस पेय सोहम्मदेवसरिया वत्तव्य ६२. नवरं - असंखेज्जवासा उयसष्णिपंचिदियतिरिक्खजोणियस्स जेसु ठाणेसु सोहम्मे उववज्जमाणस्स पलिओवमठिती ६३. तेसु ठाणेसु इह सातिरेगं पलिओवमं कायव्वं । ६४. 'सातिरेगं पलिओवमं कायव्वं' ति ईशाने सातिरेकपत्योपमस्य जयन्यस्थितिका (२०१००५१) ६५. चउत्थगमे ओगाहणा जहण्णेणं धणुपुहत्तं, उक्कोसेणं सातिरेगा दो गाउयाई । सेसं तहेव । ( ० २४३४६) Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वा० – अवगाहना जघन्य पृथक धनुष्य नीं कही, तेहनुं न्याय - जे सुषम अरा ने विषे साधिक पत्योपम आउखावंत तिर्यंच ऊपनां, ते तिर्यंच में जेहनीं लघु काय छ, तेहनीं अपेक्षाए कह्य ं । उत्कृष्ट साधिक बे गाऊ नीं कहीं, तेह्नों न्याय-जे काल नैं विषे जे मनुष्य नीं अवगाहना साधिक गाऊ नीं हुवै। ते काल नैं विषे ऊपना जे हस्ती प्रमुख तेहनीं अपेक्षाए साधिक बे गाऊ नीं कही । दूज देवलोक में मनुष्य युगलियो ऊपजं, तेहनों अधिकार' ६६. असंख व सन्नी मनुष्य में पिण तिमहीज जी नां स्थिति जिम युगल तिर्यंच नें, आखी छे तिम सलहीज जी ॥ । वाo । · असंख्यात वर्षायुष सन्नी मनुष्य ईशान कल्पे ऊपजै, तेहनीं पिण जिम सोध लियो मनुष्य अपने ही पता नहीं तिमहीज कहिवी अनं स्थिति निति लियो ईशाने उपजे तेहनी कहीं तिम कहिवी एतले तियंच युगलिया मैं जे स्थानक नै विषे सौधर्मे ऊपजता थका नै पत्यापम स्थिति कही, तिम तिर्यंच युगलिया ने ते स्थानक नैं विषे ईशाने ऊपजता नैं स्थिति साधिक पत् नी कहिवी एहवं तिथंच नै अधिकारे का छे, तिमहिज युगलिया मनुष्य नै अधिकारे कहिवूं । तेहनीं विधि कहै छे - जे असंख्यात वर्षायुष सन्नी मनुष्य मैं जे स्थानक नैं विषे सौधर्मे ऊपजता थका नैं पल्योपम नीं स्थिति कही, तिम युगलिया मनुष्य नैं ते स्थानक नैं विषे ईशान कल्पे ऊपजतां थकां नैं स्थिति साधिक पत्योपम नीं कहिवी । ६७. अवगाहना पिण इह विधे, जे स्थानके गाऊ नीं ख्यात जी । तेह स्थानक नैं विषे इहां, साधिक गाऊ नीं थात जी ॥ - - अवगाहना पिण सौधर्म कल्प में युगलियो मनुष्य ऊपजं, ते अधिकारे जे स्थानक नै विषे असंख्यात वर्षायुष सन्नी मनुष्य नीं एक गाऊ नीं अवगाहना कही, ते स्थानक नै विषे ईशान कल्पे युगलियो मनुष्य ऊपजता थकानीं साधिक गाऊ नीं कहिवी । वाo ६८. शेष परिमाणादि जे लद्धी, तिणहीज रीत सोहम्मे युगल मनु ऊपजै, तिमज ईशान ६९. संख वर्षायु सन्नो तिरि, अथवा सन्नी मनु' जाण जी । जिम हिज सौधर्म कल्प में, ऊपजतां ने पिछाण जी ॥ ७०. तिमहिज नव गमका सहु णवरं ईशान विषेह जी । देव तणीं स्थिति जाणवी, वलि जाणवू कायसंवेह जी ॥ वा०-स्थिति जे प्रथम, चोथे, सातमे गमे संख्यात वर्षायु सन्नी तियंच पर्याप्तो सन्नी मनुष्य ईशान कल्पे जघन्य साधिक पत्योपम काल स्थितिक ने विषे ऊपजै, उत्कृष्ट साधिक दोय सागर काल स्थितिक नैं विषे ऊपजे । अने १. देखें परि २, यत्र १५३ २. देखें परि २, यंत्र १५१ ३ देखें परि २, यंत्र १५४ कहेह जी । विषेह जी ॥ उगए ओमाहा जहन्नेषं धणुपुहुत्ते" सातिरेकपल्योपमायुषस्तिर्यञ्चः सुषमा वा० ति ये रोद्भवाः क्षुद्रतरकायास्तानपेक्ष्योक्तम्, 'उक्को सेणं साइरेगाई दो गाउयाई' ति एतच्च यत्र काले सातिरेकगव्यूहमाना मनुष्या भवन्ति तत्कालभवान् हस्त्यादीनपेक्ष्योक्त', (बु० ० ८५१) ६६. उपसणमणस्सस्स वि तहेब ठिली जहा पचिदियतिरिक्खजोणियस्स असंखेवासा उयस्स । ६७. ओगाहमा वि जेठा मा तेसु ठा सातिरेग गाउयं । बास गाउयं ति सोधम्मं देवाधिकारे येषु स्थानेध्यसातवर्षायुर्मनुष्याणां मन्यूतमुक्त 'तेसु ठाणेसु इहूं साइरेगं गाउयं' ति जघन्यतः सातिरेकपल्योपमस्वितिकत्वादवदेवस्य प्राप्तव्य देवत्यनुसारेण चासघातवर्षायुर्मनुष्याणां स्थितिसद्भावात् तदनुसारेय च तेषामवगाहनाभावादिति । ( वृ० प० ८५१) ६८. सेसं तहेव । (१० २४,३४७) ६९. संखेज्जवासाउयाणं तिरिक्ख जोणियाणं मणुस्साण य जब सोहम्मेसु उववज्जमाणाणं ७०. तहेव निरवसेसं नव वि गमगा, नवरं ईसाणठिति संवेहं च जाणेज्जा । ( श० २४।३४८ ) श० २४, उ० २४, ढा० ४३२ १९९ Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दूजे, पांच में, आठमे गमे जघन्य उत्कृष्ट साधिक पल्योपम काल स्थितिक ने विषे ऊपजे । अने तीजे, षष्ठम, नवम गमे जघन्य उत्कृष्ट साधिक बे सागर काल स्थितिक नैं विषे ऊपजे । अनैं कायसंवेध गमे गमे प्रति बिहुं भव नीं स्थिति विचारी कहिं । ७१. सनतकुमार सुर हे प्रभु! कहां थकी अपजेह जी ? इह विधि प्रश्न पूछ छते, श्री जिन उत्तर देह जी ।। ७२. जिम सक्करप्रभा पृथ्वी तणां नेरइया नुं उपपात जी । आथियो तिणहिज रीत सूं इहां कहिवूं अवदात जी ॥ तीजे देवलोक में संख्याता वर्ष नों सन्नी तिथंच ऊपजे, तेह्नों अधिकार' ७३. यावत जे पर्याप्त संख वर्षायु सन्नी तिथंच जी जेह ऊपजवा नैं योग्य प्रभु ! सुर सनतकुमार में संच जी ।। । ७४. शेष परिमाण में आदि दे, कुन भवादेश पर्यंत जी जिम उपजता ने सौधर्म मे तिम सह वार्ता हंत जी ।। ७५. नवरं जे सनतकुमार नीं, स्थिति फुन कायसंवेह जी । उपयोगे करी जाणं, गमे गये प्रति जेह जी ॥ वा० - प्रथम, चतुर्थ, सप्तम गमके संख्यात वर्षायु सन्नी तियंच पर्याप्तो सनतकुमार कल्पे जघन्य २ सागर, उत्कृष्ट ७ सागर काल स्थितिक नैं विषे ऊपजै । अनं द्वितीय, पंचम, अष्टम गमके जघम्योत्कृष्ट २ सागर काल स्थितिक मैं विषे ऊपजे । अने तृतीय, षष्टम नवम गमके जघन्य उत्कृष्ट ७ सागर काल स्थितिक नैं विषे ऊपजै । अन काय संवेधं संख्यात वर्षायु सन्नी तिर्यंच अन सनतकुमार देव एहिं अब नी स्थिति विचारी कहियूँ ७६. आपण सन्नी तिरि हुवै, जघन्य काल स्थितिक जिवार जी । तीनूई गमक विषे तदा, कहिवी घुर लेश पंच धार जी ।। वा० जघन्य स्थितिक तिर्यंच सनतकुमार ने विषे ऊपजे तो जघन्य स्थिति सामथ्यं थकी कृष्णादि च्यार लेश्या मांहै अनेरी एक लेश्या नैं विषे परिणत थई मरण समये पद्मलेश्या प्रतं आसादी ने मरे, तिवारे आंगला भव नीं लेश्या परिणाम थयां जीव परभव प्रत जावे । इसो आगम मांहै का छे । तिवारी एहन पंच लेश्या हुवै । ७७. शेष तिमज कहियो सह ए को सन्नी सन्नी मनुष्य की ऊपजे कहिये ते तिर्यच जी। सुसंच जी ॥ तीजे देवलोक में संख्याता वर्ष नों सभी मनुष्य अपने तेहनों अधिकार ७८. जो सन्नी मनुष्य थकी ऊपजै, मनुष्य नैं जिमहिज जाण जी । सक्करप्रभा नारक विषे ऊपजता नै पहिछाण जी ॥ १. देखें परि २, यंत्र १५५ २. देखें परि २, यंत्र १५७ भगवती जोड़ २०० ७१. कुमारदेवा भंते कमोहितो उबवति ? ७२. उववाओ जहा सक्करप्पभापुढविनेरइयाणं, (२०२४०३४९) पज्जतवासा उपसपिचिदियतिरिक्जोगिए गंमते जे भविए सणकुमारदेव उववजिताए ? ७४. अवसेसा परिमाणादीया भवादेसपज्जवसाणा सच्चेव वत्तब्वया भाणियव्वा जहा सोहम्मे उववज्जमाणस्स, ७५. नवरं सणकुमारट्टिति संवेहूं च जाणेज्जा । ७३. जाव ७६. जाय अप्पा जयकालद्वितीयो भवति ताहे तिसु वि गमएसु पंच लेस्साओ आदिल्लाओ कायव्वाओ । वा० 'पंच लेस्साओ आदिल्लाओ कायव्वाओ' त्ति जयस्थितिस्तिक सनस्कुमारे समुत्पत्यस्थितियामकृष्णादीनां चतसृणां श्यानामन्यतरस्यां परिणतो भूत्वा मरणकाले पद्मलेश्यामासाद्य म्रियते ततस्तत्रोत्पद्यते यतोऽग्रेतनभवलेश्यापरिणामे सति जीवः परभवं गच्छतीत्यागमः, तदेवमस्य पञ्च लेश्या भवन्ति । ( वृ० प० ८५१) ७७. सेसं तं चेव । (१० २४०३५० ) ७८. ज मह उवयकति ? मनुस्सा सक्करप्पभाए उववज्जमाणाणं Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७९. तहेव नव वि गमा भाणियब्वा, नवरं-सणंकुमार दिति संवेहं च जाणेज्जा। (श० २४१३५१) ७९. तिमज इहां पिण नव गमा, णवरं विशेष छै एह जी ।। सनतकुमार नी स्थिति वलो, कायसंवेध जाणेह जी ।। वा०-सन्नी तिथंच सनतकुमार में ऊपजे तिहां नव गमे सनतकुमार देव नी स्थिति कही, तिका इहां पिण जाणवी। अनै कायसंवेध नवं गमे यंत्र थकी जाणवो। ___चोय स्यूं आठवें देवलोक तक सन्नी तियंच अनै सन्नी मनुष्य ऊपज, तेहनों अधिकार' ८०. माहेंद्र देव ! भगवंत जी! किहां थकी उपजत जी? जिम का सनतकुमार नों, तिम माहेंद्र सुर पिण हुंत जी ।। ८०. माहिंदगदेवा णं भंते ! कओहितो उववज्जति ? जहा सणंकुमारदेवाणं वत्तव्वया तहा माहिंदगदेवाण वि भाणियव्वा, ८१. नवरं-माहिंदगदेवाणं ठिती सातिरेगा भाणियव्वा सच्चेव । एवं बभलोगदेवाण वि वत्तव्वया, ८२. नवरं-बंभलोगट्ठिति संवेहं च जाणेज्जा । एवं जाव सहस्सारो, नवरं-ठिति संवेहं च जाणेज्जा । ८१. णवरं माहिंदग सुर स्थिति, साधिक भणवी है सोय जी। सर्व ही इम ब्रह्मलोक नां, सुर नी पिण वारता जोय जी ।। ५२. णवरं ब्रह्मलोक सुरनों स्थिति, अथवा संवेध पहिछाण जी।। एम यावत ही सहस्सार लग, णवरं स्थिति संवेध जाण जी ।। वा० -- ब्रह्मलोक सुर नी स्थिति पहिले, चौथे, सातमे गमे जघन्य ७ सागर, उत्कृष्ट १० सागर । द्वितीय, पंचम, अष्टम ग मे जघन्य-उत्कृष्ट ७ सागर। तीजे, छठे, नवमे गमे जघन्य उत्कृष्ट १० सागर । अनं कायसंवेध सन्नी मनुष्य अने ब्रह्मलोके सुर-ए बिहुं नां भव नी स्थिति नों काल जघन्योत्कृष्ट विचारी कहिवू । लंतक सुर नी स्थिति १, ४, ७ गमे जघन्य १० सागर, उत्कृष्ट १४ सागर । २, ५, ८, गमे जघन्य-उत्कृष्ट १० सागर । ३, ६, ९ गमे जघन्य-उत्कृष्ट १४ सागर । महाशुक्र देव नी स्थिति १,४,७ गमे जघन्य १४ सागर, उत्कृष्ट १७ सागर । २, ५, ८, गमे जघन्य-उत्कृष्ट १४ सागर । ३, ६, ९ गमे जघन्यउत्कृष्ट १७ सागर । सहस्सार देव नी स्थिति १,४,७ गमे जघन्य १७ सागर, उत्कृष्ट १८ सागर । २, ५, ८ गमे जघन्य-उत्कृष्ट १७ सागर । ३, ६,९ गमे जघन्य-उत्कृष्ट १८ सागर । अन कायसंवेध बिह भवनों विचारी सर्व ठिकाणे कहिवो। ५३. लंतकादिक विषे ऊपजै, जघन्य काल स्थितिक तिर्यंच जी। त्रिण मध्य गमक तेहनै विषे, कहिवी लेश्या छहं संच जी।। वा० सनतकुमार नै विषे जघन्य काल स्थितिक तिरि ऊपजता ने पंच लेण्या पूर्वे जिणे न्याय करिके कही, तिण न्याय करे लंतकादिक नै विषे ऊपजतां ने इहां षट लेश्या कहिवी। ८४. ऊपजतो ब्रह्म लंतके, पंच संघयण धुर पेख जी। महाशुक्र सहस्सार फुन, च्यार संघयण धुर देख जी ।। वा०-- छवटा संघयण नां धणी प्रथम च्यारईज देवलोक नां गमन निबंधपणां थकी अनै पांचमां, छठा कल्प नै विषे ऊपजता थका नै छेवटा बिना पंच संघयण पावै । अनै सातमा, आठमां कल्प में ऊपज, तिण में कीलिका, छेवटा बिना च्यार संघयण पावै । ८३. लंतगादीणं जहण्णकालद्वितियस्स तिरिक्ख जोणियस्स तिसु वि गमएसु छप्पि लेस्साओ कायव्वाओ। वा०-'लंतगाईणं जहणे' त्यादि, एतद्भावना चानन्तरोक्तन्यायेन कार्या, (वृ० ५० ८५१) ८४. संघयणाई बंभलोग-लंतएसु पंच आदिल्लगाणि, महासुक्क-सहस्सारेसु चत्तारि । वा० --सेवार्तसंहननस्य चतुर्णामेव देवलोकानां गमने निबन्धनत्वात्, यदाह"छेवलैंण उ गम्मइ चत्तारि उ जाव आइमा कप्पा । वढेज कप्पजुयलं संघयणे कीलियाईए ॥१॥" (व० ५० ८५१) ८५. तिरिक्खजोणियाण वि मणुस्साण वि । सेसं तं चेव । (श० २४१३५२) ८५. चिहुं संघयण तिर्यंच में पिण अछ, मनुष्य में पिण चिहं जाण जी। शेष तिमहिज कहिवो सह, श्री जिन आण प्रमाण जी ।। १ देखें परि. २, यंत्र १५५-१५७ ०२४. २४. ह.० ४३२, २०१ Jain Education Intemational Education International For Private & Personal use only For Private & P Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नोवै देवलोक में सन्नी मनुष्य ऊपज, तेहनों अधिकार' ८६. आणत देवता हे प्रभु! किहां थकी उपजेह जी ? उपपात जिम सहस्सार देव नों, आख्यो तेम कहेह जी ।। ८७. णवरं विशेष छै एतलो, आणत कल्प विषेह जी। तिरिक्खयोनिक नहि ऊपजै, मनुष्य थकी उपजेह जी ।। ५८. जाव पर्याप्त संख्यात जे, वर्षायु सन्नी मनु जेह जो। जेह ऊपजवा ने योग्य छै, आणत कल्प विषेह जी ।। ८६. आणयदेवा णं भते ! कओहिंतो उववज्जति ? उववाओ जहा सहस्सारदेवाणं, ८७. नवरं तिरिक्ख जोणिया खोडे यव्वा, ८९. इत्यादि मनुष्य नी वारता, जिम सहस्सार विषेह जी। ऊपजता ने आखी तिका, वक्तव्यता इहां लेह जी ।। ९०. णवरं धुर तीन संघयण ह, शेष परिमाणादि जाण जी। कहिवो है कल्प सहस्सार ज्यं, अनबंध लग पहिछाण जी ।। ९१. भवादेश करि जघन्य थी, तीन भव ग्रहण करेह जी। उत्कृष्ट सप्त भव ग्रहण छै, हिव तसु न्याय वरेह जी ।। सोरठा ९२. आणत प्रमुख मांय, उपजै मनष्य थकोज ते। चवी मनुष्य में आय, जघन्य थको भव तीन इम ।। ८८.जाव--- (श० २४१३५३) पज्जत्तासंखेज्जवासाउयसण्णिमणुस्से णं भंते ! जे भविए आणयदेवेसु उववज्जित्तए ? ८९. मणुस्साण य वत्तव्वया जहेव सहस्सारेसु उववज्ज माणाणं, ९०. नवरं-तिणि संघयणाणि, सेसं तहेव जाव अणु बंधो। ९१. भवादेसेणं जहणेणं ति पिण भवग्गहणाई, उक्कोसेणं सत्त भवग्गहणाइं। ९२. 'जहन्नेणं तिन्नि भवग्गहणाई' ति आनतादिदेवो मनुष्येभ्य एवोत्पद्यते तेष्वेव च प्रत्यागच्छतीति जघन्यतो भवत्रयं भवतीति, (वृ० ५० ५५१,८५२) ९४. एवं भवसप्तकमप्युत्कर्षतो भावनीयमिति, (व०प० ८५२) ९५. कालादेसेणं जहणणं अट्ठारस सागरोयमाई दोहि वासपुहत्तेहिं अब्भहियाई, ९३. प्रथम मनुष्य भव पेख, आणत सुर दूजे भवे । तीजे भव मनु लेख, जघन्य थकी भव तीन इम ।। ९४. भव उत्कृष्टज सात, मनुष्य देव मनु सुर वलि। मनुष्य देव मनु ख्यात, इम उत्कृष्टज सप्त भव ।। ९५. *काल आदेश करि जघन्य थी, सागर कहिय अठार जी। दोय पृथक वर्ष अधिक ही, हिव तसु न्याय अवधार जी ।। सोरठा ९६. प्रथम मनुष्य भव मांय, वर्ष पृथक नों आउखो। भोगव आनत जाय, उदधि अठार जघन्य स्थिति ।। ९७. तीजै भव अवधार, वर्ष पृथक स्थितिक ह्व। एवं उदधि अठार, वर्ष पृथक बे अधिक फुन ।। ९८. *उत्कृष्ट काल भव सप्त नों, उदधि सत्तावन न्हाल जी। कोड़ पूर्व चिहुं अधिक ही, ए गति-आगति काल जी। ९८. उक्कोसेणं सत्तावन्न सागरोवमाई चउहिं पूव कोडीहि अब्भहियाई, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं काल गतिरागति करेज्जा। सोरठा ९९. आनत कल्पे सोय, उत्कृष्ट स्थिति ते त्रिण सुर भव होय, उदधि सतावन उगणीस दधि । इम हुवै ।। ९९. 'उक्कोसेणं सत्तावन्न' मित्यादि, आनतदेवाना मुत्कर्षत एकोनविंशतिसागरोपमाण्यायः, तस्य च भवत्रयभावेन सप्तपञ्चाशत्सागरोपमाणि। (वृ०प० ८५२) १००. मनुष्यभवचतुष्टयसम्बन्धिपूर्वकोटिचतुष्काभ्यधिकानि भवन्तीति । (वृ० प. ८५२) नां। ही ।। १००. कोड़ पूर्व नां पेख, करै च्यार भव मनुष्य इण न्याये करि लेख, कोड़ पूर्व चिहुं अधिक *लय : मम करो काया माया १. देखे परि. २, यंत्र १५६ २०२ भगवती जोड़ Jain Education Intemational Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०१. एवं सेसा वि अट्ठ गमगा भाणियव्वा, नवरं ठिति संवेहं च जाणेज्जा । सेसं तं चेव । १०१. *शेष पिण अठ गमा इह विधे, भणवा पिण णवरं विशेख जी। स्थिति संवेध प्रति जाणवू, शेष तिमहिज संपेख जी॥ वा० --इहां आणत सुर नै विषे मनुष्य ऊपजै, तेहनै सहस्सार नै विषे मनुष्य ऊपज तेहनै भलायो । जिवारै कोई पूछ-मनुष्य सहस्सार देव नै विषे ऊपज तेहनी स्थिति जघन्य १७ सागर, उत्कृष्ट १८ सागर हुवं । अनैं आणत देव नीं जघन्य १८ सागर, उत्कृष्ट १९ सागर हुवै । ते इहां सहस्सार सुर थकी आणत देव नी स्थिति में फेर नथी पाइयो ते किम ? इति प्रश्न । तेहनों उत्तर-जे पूर्वे ब्रह्मलोक में ऊपज, ते माहेंद्र में ऊपजै तिण नै भलायो। णवरं ठितिसंवेहं च जाणेज्जा । ए ब्रह्मलोक ना देव नी स्थिति अनै संवेध में फेर जाणवो एवं जाव सहस्सारो वरं -ठितिसंवेहं च जाणेज्जा----इम यावत सहस्सार सुर नी स्थिति संवेध में फेर जाणवो । अन आणत सुर किहां थकी ऊपज ? तेहनों उपपात सहस्सार नी पर कहिवो। णवरं तिर्यच न ऊपजै । जाव पर्याप्त संख्यात वर्षायु सन्नी मनुष्य भगवान ! आणत देव नै विषे ऊपजवा योग्य तेहनीं पूछा-मनुष्य नीं वक्तव्यता जिमहिज सहस्सार नै विषे ऊपजता थका नै तिम कहिवी । णवरं तीन संघयण । शेष तिमज अनबंध लगे। इहां आणत नै सहस्सार भलायो, ते सहस्सार नै विषे ठितिसंवेहं च जाणेज्जा कह्यो। ते आणत सुर नी स्थिति में अनै संवेध में फेर इहां पिण कहिवो । तिहां स्थिति प्रथम, चतुर्थ, सप्तम गमके जघन्य १८ सागर, उत्कृष्ट १९ सागर । अने द्वितीय, पंचम, अष्टम गमके जघन्योत्कृष्ट १८ सागर । अन तृतीय, षष्ठम, नवम गमके जघन्योत्कृष्ट १९ सागर । अनं कायसवेध मनुष्य, आणत सुर ए बिहु नां जघन्योत्कृष्ट भव नु काल विचारी कहिवू । दसवै स्यूं बारहवें देवलोक तक सन्नी मनुष्य ऊपज, तेहनों अधिकार' १०२. एवं यावत ही अच्युत सुरा, णवरं विशेष छै एह जी। द्वितीय तथा कायसंवेध प्रति, उपयोग करीने जाणेह जी ।। वा०-पाणत, आरण, अच्चु सुर नै विषे ऊपजवा योग्य मनुष्य ऊपज, ते केतला काल नी स्थितिक नै विषे ऊपजै ? इहां पाणत सुर नी स्थिति १,४,७ गमे जघन्य १९ सागर, उत्कृष्ट २० सागर । २,५,८ गमे जघन्योत्कृष्ट १९ सागर । ३,६,९ गमे जघन्योत्कृष्ट २० सागर काल स्थितिक नै विषे ऊपजै । अनै आरण सुर नी स्थिति १, ४, ७ गमे जघन्य २० सागर, उत्कृष्ट २१ सागर । २, ५, ८ गमे जघन्योत्कृष्ट २० सागर । ३, ६,९ गमे जघन्योत्कृष्ट २१ सागर काल स्थितिक नै विषे ऊपजै । अनै अच्चु सुर नी स्थिति १,४,७ गमे जघन्य २१ सागर, उत्कृष्ट २२ सागर। २,५,८ गमे जघन्योत्कृष्ट २१ सागर । ३, ६, ९ गमे जघन्योत्कृष्ट २२ सागर । अनै कायसंवेध सर्व नुं विचारी कहिवू । १०३. आनतादिक चिहुं कल्प में, ऊपजता ने कहाय जी। तीन संघयण जे आदि नां, आखिया श्री जिनराय जी। १०२. एवं जाव अच्चुयदेवा, नवरं-ठिति संवेहं च जाणेज्जा। १०३. चउसु वि संघयणा तिण्णि आणयादीसु। (श० २४१३५४) तानस *लय : मम करो काया माया १. देखें परि. २ यत्र १५७ श० २४, उ० २४, ढा० ४३२ २०३ Jain Education Intemational Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नव ग्रेवेयक में सन्नी मनुष्य ऊपजै, तेहनों अधिकार १०४. सुर ग्रैवेयक भगवंत जी ! किहां थकी उपजंत एहि वक्तव्यता तसु णवरं विशेष ए हुंत १०५. दोय संघयण ते मनुष्य में देव नीं स्थिति उदार जी । कायसंवेध बिहु भव तणों, जाणवो मन सूं विचार जी ॥ जी । जी ॥ वा० इहां ग्रेवेयक देव नीं स्थिति १, ४, ७ गमे जधन्य २२ सागर, उत्कृष्ट ३१ सागर । २, ५, ८, गमे जघन्योत्कृष्ट २२ सागर । ३, ६, ९ गमे जघन्योत्कृष्ट ३१ सागर काल स्थितिक नै विषे ऊपजे । कायसंवेध विचारी कहि चार अनुत्तर विमान में सन्नी मनुष्य ऊपजं, तेहनों अधिकार १०६. हे भगवंत जी ! विजय सूर, फुन वैजयंत जयंत अपराजित देव से कहां थकी , १०७. एहिज वक्तव्यता सहु, जाव अनुबंध णवरं विशेष संघयण धुर, शेष तिमहिज कहेह जी । जी ? जी। जी || ए वा० -वहां विजयादिक नीं स्थिति जघन्य ३१ सागर, उत्कृष्ट ३३ सागर । ग्रैवेयक थकी अधिक छं, ते किम नथी कह्यो ? एहनों उत्तर - इहां विजयादिक नों प्रश्न करी ग्रैवेयक नीं वक्तव्यता ते सहु भलाई तिण ग्रैवेयक री वक्तव्या में एह पाठ का छे - 'ठितिसंवेहूं च जाणेज्जा-ए पाठ इहां पिण कहिवो । ते मार्ट स्थिति रो जुदो विशेष नथी करघो अनं मनुष्य नां संघयण नों जुदो विशेषण करघो । उपजेह लगेह कहेह १०८. भवादेश करि जघन्य थी, तीन भव ग्रहण करेह जी । प्रथम मनुष्य भव जाणवूं, द्वितीय सुर तृतीय नर लेह जी ॥ १०९. उत्कृष्ट पंच भव ग्रहण ह्न, धुर मनु द्वितीय भव देव जी । तृतीय मनु तु भव सुर तणों नर भव पंचमो हेव जी ।। ११०. काल आदेश करि जघन्य थी, सागर सुर इकतीस जी । पृथक वर्ष से अधिक हो मनु भव एह जगीस की । १११. उत्कृष्ट दधि छासठ वलि, कोड़ पूर्व वलि तीन जी । उत्कृष्ट सुर स्थिति भवे, त्रिण भव मनुष्य नां चीन जी ॥ ११२. करे काल गति आगति एतलं, शेष पिण अठ गम एम जी । नवरं स्थिति कायसंवेध प्रति जाणवू ते घर प्रेम जी ॥ J १. देखें परि. २, यंत्र १५८ २. देखें परि. २, यंत्र १५९ २०४ भगवती जोड़ वा० - इहां च्यार अनुत्तर विमान देव नीं स्थिति १, ४, ७ गमे जघन्य ३१ सागर, उत्कृष्ट ३३ सागर । २, ५, ८ गमे जघन्योत्कृष्ट ३१ सागर । ३, ६, ९ गमे जघन्योत्कृष्ट ३३ सागर काल स्थितिक नैं विषे ऊपजे । अनें कायसंवेध विचारी कहिं । ११३. मनुष्य विषेज लद्धी जिका, परिमाणादिक नीं पहिचाण जी । गमक नय ही में विषे जिका, आगल कहिये सुजाण जी ॥ ११४. जिम वेयक ने विषे ऊपजता ने आख्यात जी । कहिवो है तिणहीज रीत सं, नवरं संघयण धुर थात जी ॥ १०४. गेवेज्जगदेवा णं भंते! कओहितो उववज्जंति ? एस चैव वत्तव्वया, नवरं १०५. दो संघयणा । ठिति संवेहं च जाणेज्जा । (०२४१३५५) १०६. विजय- वेजयंत जयंत अपराजित देवा णं भंते कमोहितो उति ? १०७. एस चैव वत्तव्वया निरवसेसा जाव अणुबंधोत्ति, नवरं --- पढमं संघयणं । सेसं तहेव । १०८. भवादेसेणं जहण्णेणं तिष्णि भवग्गहणाई, १०९. उक्कोसेणं पंच भवग्गहणाई । ११०. कालादेसेणं जमेन एक्कतीस सागरोदमाई दोहि वासपुहतेहि अन्भहियाई, १११. उक्कोसेणं छावट्ठि सागरोवमाई तिहि पुव्वकोडीह महिपाई ११२. एका वेडा एवतियं कालं गतिरागति करेजा । एवं सेसा वि अट्ठ गमगा भाणियव्वा, नवरं -- ठिति संवेहं च जाणेज्जा । ११३. मणूसलद्धी नवसु वि गमएसु ११४. जहा गेवेज्जेसु उववज्जमाणस्स, संघयणं नवरं -- पढम ( श० २४ । ३५६ ) V Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सर्वार्थसिद्ध में सन्नी मनुष्य ऊपज, तेहनों अधिकार' ११५. सव्वदसिद्धग सूरा हे प्रभु ! किहां थकी उपजत जी? ऊपजवोज विजयादि नों, जिम कह्यो तिमज ए हुंत जी ।। ११६. यावत ते भगवंतजी! केतला काल नी ताय जी। स्थितिक विषे तिको ऊपजै? ताम कहै जिनराय जी ।। ११७. स्थिति जघन्य उत्कृष्ट थी, तेतीस सागर तेह जी। काल स्थितिक विषे ऊपजै, मनु ऊपजवा योग्य जेह जी ।। ११५. सव्वट्ठगसिद्धगदेवा णं भंते ! कओहिंतो उववज्जति ? उववाओ जहेव विजयादीणं, ११६. जाव --- (श० २४.३५७) से णं भंते ! केवतिकाल द्वितीएसु उववज्जेज्जा? ११७. गोयमा ! जहण्णण तेत्तीससागरोवमट्टितीएसु, उक्कोसेण वि तेत्तीससागरोवमट्टितीएसु उववज्जेज्जा। ११८. अवसेसा जहा विजयाइसु उववज्जंताणं, ११९. नवरं-भवादेसेणं तिण्णि भवग्गहणाई, ११८. शेष परिमाण नैं आदि दे, विजयादिक विषे विख्यात जी। ऊपजता नैं जिम आखियो, तिमज कहि अवदात जी ।। ११९. भवादेशे करि तीन भव, प्रथम मनुष्य नुं पेख जी। द्वितीय सर्वार्थसिद्ध सुरा, तृतीय फुन मनु भव लेख जी ।। १२०. काल आदेश करि जघन्य थी, सुर स्थिति उदधि तेतीस जी। पृथक जे वर्ष बे अधिक फुन, मनुष्य भव स्थिति जगीस जी। १२१. उत्कृष्ट उदधि तेतीस सुर, पूर्व कोड़ बे न्हाल जी। एतलो काल सेवै तिको, ए गति-आगति काल जी ।। १२०. कालादेसेणं जहण्णणं तेत्तीसं सागरोवमाइं दोहिं वासपुहत्तेहिं अभहियाई, १२१. उक्कोसेण वि तेत्तीसं सागरोषमाइं दोहिं पुव कोडीहिं अब्भहियाई, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा १ (श० २४१३५८) १२२. सो चेव अप्पणा जहण्णकालद्वितीओ जाओ, एस चेव वत्तव्वया, नवरं१२३. ओगाहणा-ठितीओ रयणिपुहत्त-वासपुहत्ताणि । सेसं तहेव । संवेहं च जाणेज्जा २। (श० २४१३५९) १२२. तेहिज आपणपै थयो, जघन्य काल स्थितिकवंत जी। एहिज वक्तव्यता तस्, णवरं विशेष कहंत जी । १२३. पथक कर नी अवगाहना, पथक वर्ष स्थिति तास जी। शेष तिमहीज कहिवो सहु, संवेध जाणवू जास जी ।। सोरठा १२४. कालादेश संवेह, जघन्य अनै उत्कृष्ट थी। दधि तेतीस सुरेह, वर्ष पृथक बे अधिक ही ।। १२५. *ते हिज आपण थयं, जिष्ठ काल स्थितिकमंत जी । एहिज वक्तव्यता तनु, णवरं विशेष ए हंत जी ।। १२६. मनु भव में अवगाहना, जघन्य अने उत्कृष्ट जी। पांचसौ धनुष्य नी जाणवी, आउखो हिव तसु इष्ट जी ॥ १२७. स्थिति तसु जघन्य थी कोड़ पुव्व, उत्कृष्ट पिण पूर्व कोड़ जी। शेष तिमहिज कहिवो सहु, लद्धी परिमाणादि जोड़ जी ।। १२८. यावत भव आत्रयी लगै, काल तसु जघन्य उत्कृष्ट जी। तेतीस सागर सुर भवे, बे पुत्व कोड़ मनु इष्ट जी ।। १२५. सो चेव अप्पणा उक्कोसकालद्वितीओ जाओ, एस चेव वत्तवया, नवरं१२६. ओगाहणा जहणेणं पंच धणुसयाई, उक्कोसेण वि पच धणुसयाई। १२७. ठिती जहणणं पुवकोडो, उक्कोसेण वि पुटवकोडी। सेसं तहेव १२८. जाव भवादेसो त्ति । कालादेसेणं जहण्णेणं तेत्तीस सागरोवमाइं दोहि पुवकोडीहिं अब्भहियाई, उक्कोसेण वि तेत्तीसं सागरोवमाई दोहिं पुवकोडीहिं अब्भहियाई, *लय : मम करो काया माया १. देखें परि. २, यंत्र १६० श० २४, उ० २४, ढा० ४३२ २०५ Jain Education Intemational Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२९. एतलो काल सेवै तिको, ए गति-आगति काल जी। सव्वदसिद्ध सुर नां ए त्रिण गमा, सेवं भंते ! गुणमाल जी ।। १२९. एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा ३ । एते तिण्णि गमगा सम्वदसिद्धगदेवाणं । (श० २४१३६०) सेवं भंते ! सेवं भंते ! १३०. त्ति भगवं गोयमे जाव विहरइ। (श० २४१३६१) १३०. इम कही गोतम गुणनिला, भगवंत ते ज्ञानवंत जी। यावत विचरै संजम करी, तप करि आतम भावंत जी ।। सोरठा १३१. सर्वार्थ सिद्ध मांय, जावै इक मनु स्थान नों । गमका तीनज थाय, तूटा शेषज षट गमा ।। वा०-पहिला दूजा देवलोक में च्यार ठिकाणां रो आव - असंख्यात वर्षायु सन्नी तियंच १, संख्याता वर्षाय सन्नी तिथंच २, असंख्यात वर्षायु सन्नी मनुष्य ३, अनै संख्याता वर्षाय सन्नी मनुष्य ४ । १३२. सौधर्म कल्पे सोय, तिरिक्ख यूगलियो ऊपजै । जघन्य गमे सुजोय, तीन णाणत्ता तेहनां ।। १३३. अवगाहन अवलोय, जघन्य पृथक धनु नी कही। उत्कृष्ट गाऊ दोय, मध्यम त्रिण गम नै विषे ।। १३४. आयू जघन्योत्कृष्ट, एक पल्य नों आखियो। अनुबंध इतोज इष्ट, ए तीनई णाणत्ता ।। १३५. उत्कृष्ट गमे पिण तीन, अवगाहण षट कोस नीं। आयू अनुबंध चीन, तीन पल्योपम जाणवं ।। १३६. सौधर्म कल्पे सोय, मनुष्य युगलियो ऊपजै । जघन्य गमे सुजोय, तीन णाणत्ता तेहनां ।। १३७. अवगाहन अवलोय, इक गाऊ जघन्योत्कृष्ट । ____ आयू अनुबंध जोय, जघन्योत्कृष्टज एक पल्य ।। १३८. उत्कृष्ट गमके तीन, अवगाहन जघन्योत्कृष्ट । गाऊ तीन सुचीन, आयु अनुबंध तीन पल्य । १३९. कल्प ईशान मझार, तिरिक्ख-युगलियो ऊपजै । __ जघन्य गमे विचार, तीन णाणत्ता तेहनां ।। १४०. अवगाहन अवलोय, जघन्य पृथक धनुष्य नीं। उत्कृष्ट गाऊ दोय, जाझेरी तिरि युगल नी ।। १४१. आयु जघन्योत्कृष्ट, साधिक पल्योपम तणों। अनुबंध इतोज इष्ट, तुर्य गमे त्रिण णाणत्ता ।। १४२. उत्कृष्ट गमे पिण तीन, अवगाहण षट कोस नीं। आयु अनुबंध चीन, तीन पल्योपम जाणवू ।। १४३. कल्प ईशान मझार, मनुष्य युगलियो ऊपजै । जघन्य गमे विचार, तीन णाणत्ता तेहनां । १४४. अवगाहन अवलोय, साधिक गाऊ जघन्य जिठ ।। आयु अनुबंध सोय, साधिक पल्य जघन्योत्कृष्ट । १४५. उत्कृष्ट गमके तीन, अवगाहन जघन्योत्कृष्ट । गाऊ तीन सुचीन, आयु अनुबंध तीन पल्प ।। २०६ भगवती जोड़ Jain Education Intemational Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिरि । कल्प लग ऊपजै ॥ अवगाहन आंगुल तणों। उत्कृष्ट पृथक धनुष्य नीं ॥ ऊपजता धुर कल्प बे । ऊपजता नें लेश पंच ॥ अज्ञान थे। कह्या भला ॥ उत्कृष्ट ही। १४६. संख जेह, वर्षायु सौधर्मादि विषेह, ब्रह्म १४७. जघन्य गमेज आठ, असं भाग र बाट १४८. लेश्या च्यारज पाय, सनत आदि त्रिण मांय, १४९ दृष्टि तिरिक्ख में दोय, दोय ज्ञान समुद्घात त्रिण होय, अध्यवसाय १९५०. आयु ने अनुबंध जपन्य अने अंतर्मुहूर्त्त संध, जघन्य गमे अठ १५१. उत्कृष्ट गमके दोय, जघन्योत्कृष्ट सुजोय, १५२. कादि आयू फुन कोड़ पूर्व तिरि-पं. पंचेंद्रिय पंचेंद्रिय मन्त्री णाणत्ता ॥ अनुबंध हो । नों जिन का ॥ सन्नी नहि जाणतो ॥ ऊपजै । सहस्सार, लेश्या नों सात जाणत्ता धार १५३. उत्कृष्ट गमके दोय, आयू नें अनुबंध फुन । जघन्योत्कृष्ट सुहोय, कोड़ पूर्व नौ आखियो || नों १५४. सम्मी मनु संख्याय, सौधर्म नं ईशाण में । ऊपजतां नें पाय, जघन्य गमे पंच णाणत्ता || १५५. पूर्वक अंगुल अवगाह, भजना ज्ञान अज्ञान त्रिण। समुद्घात पंच ता पृथक मास अनुबंध स्थिति ॥ १५६. उत्कृष्ट गमके तीन, अवगाहन जघन्योत्कृष्ट । धनुष्य पंच सय चीन, आयु अनुबंध कोड़ पुब्व ॥ १५७ सनतकुमारज आदि, विमान प्यार अनुत्तरे । मनू ऊपजतां लाधि, जपन्य गमे त्रिण णाणता ॥ १५८. जघन्योत्कृष्ट अवगाह, पृथक हस्त तणीं कही । आयु अनुबंध ताह, पृथक वर्ष जघन्योत्कृष्ट ।। १५९. उत्कृष्ट गमके तीन, अवगाहन जघन्योत्कृष्ट । धनुष्य पंच सय चीन, आयु अनुबंध कोड़ पुव्व ॥ १६० सम्बद्धसिद्ध रे मांहि, जपन्य स्थितिक मनु ऊर्ज । तीन णाणत्ता ताहि, धुर गम तणी अपेक्षया ॥ वा०- मनुष्य मरी नैं सर्वार्थसिद्ध में ऊपजं, तेहने विषे पहिला तीन गमा हिज हुवे । इहां जघन्य स्थिति नां अभाव थी मध्यम तीन गमा न हुवै। अन उत्कृष्ट स्थिति नां अभाव थी छेहला तीन गमा पिण न हुवे । तिहां अजघग्योत्कृष्ट तेतीस सागर नीं स्थिति मार्ट तेहने अधिक कहिये ते मार्ट प्रथम तीन गमा हुने दम पूर्वे वृत्तिकार कहा तिज से मनुष्य गरी सर्वार्थसिद्ध विषे ऊपजै, तेहनां तीन गमा ए हुवै ओधिक नैं अधिक, जघन्य ने ओधिक, उत्कृष्ट नैं अधिक ए लौकिक केहण मार्ट पहिलो, चोथो अर्ने सातमो गमक हुवै इहां जघन्य गमे णाणत्ता ३, उत्कृष्ट गमे णाणत्ता ३ हुवै । अनं कोटा वाला यंत्र नै विषेक मनुष्य सर्वार्थसिद्ध नै विषे ऊपजै, तेहनां ३ गमातीजो, छठो, नवमो गमो हुवै । १६१. जपन्योत्कृष्ट अवगाह, पृथक हस्त तणीं हस्त तणीं आयु अनुबंध ताह, पृथक वर्ष जपन्योत्कृष्ट || कही । श० २४, उ० २४, ढा० ४३२ २०७ Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६२. जेष्ठ स्थितिक मनु जंत, अवगाहन जघन्योत्कृष्ट । धनुष पंच सय हुंत, आयु अनुबंध कोड़ पुव ।। १६३. सव्वदसिद्ध रै मांय, ऊपजतां सन्नी मनुष्य । गमा तीनज पाय, टूटै शेषज षट गमा ।। १६४. वैमानिक रै मांय, ऊपजतां ने णाणत्ता। इक सय त्राणं पाय, बे सय गुणती गमक सहु ।। १६५. सत्तवीस छै स्थान, इक-इक स्थानक नां वलि । नव-नव गमका जान, बे सय तयांलीस इम ।। १६६. सौधर्म नैं ईशाण, ऊपजतां तिरि मनु युगल । सात-सात गम जाण, बे-बे तूटा अष्ट इम ।। १६७. सव्वट्ठसिद्ध रै मांहि, मनु ऊपजतां त्रिण गमा। तूटा षट गम ताहि, इम तूटा चवदै गमा ।। १६८. शेष रह्या ए सोय, बे सय गुणती गमक जे। न्याय विचारी जोय, निपुण बुद्धि करि एहनों ।। १६९. *ए चउवीसम शतक नां, त्रिण सय इकवीस स्थान जी । अष्टवीस सय ऊपरै, गमा निव्यासी जान जी । १७०. संमच्छिम मनु साठ गम, युगल तिरिय मन बार जी। षट-षट गति आगति सव्वट्ठ, ए तूटा असी च्यार जी ॥ १७१. पृथ्वी प्रमुख मनुष्य में, संमच्छिम मन जंत जी। तूट तसु षट-षट गमा, साठ गमा इम हुंत जी ।। १७२. धुर बे कल्प रु जोतिषी, युगल तिरिय मनु जंत जी। तूट तसु चिहुं-चिहुं गमा, द्वादश गम इम हुंत जी ।। १७३. गमनागमने सव्वट्ठसिद्ध, षट-षट गम तूटंत जी। एवं चउरासी गमा, तूट तसु विरतंत जी ।। १७४. शतक चउवीसम अर्थ थी, आख्यो चउवीसमुद्देश जी । उगणीसै तेवीस आसाढ़ विद, तीज भृगुवार विशेष जी।। १७५. ढाल ए च्यार सय ऊपरै, प्रवर बतीसमी पेख जी। भिक्षु भारीमाल ऋषिराय थी, 'जय-जश' हरष विशेख जी ।। चतुर्विशतितमशते चतुविशोद्देशकार्थः ॥२४॥२४॥ गीतक छंद १. चउवीसमें शत चरम जिनवर, अर्थ आख्या गुण निला। पर अर्थ निपुणज गणधरे, जे स्थापिया सूत्रे भला ।। २. तसु बुद्धि पिण बहु गमक करि, विस्तारवा वांछै नहीं। फुन अम्ह जिसा किम कही सके, गंभीर अर्थ जिके सही ।। १७४. चतुर्विशतितमशते चविंशतितमः ॥२४॥ समाप्तं च विवरणतश्चतुर्विशतितमं शतम् ॥२४॥ (वृ०प० ८५२) १,२. चरमजि नवरेन्द्रप्रोदितार्थे परार्थ, निपुणगणधरेण स्थापितानिन्द्यसूत्रे । विवृतिमिह शते नो कर्तुमिष्टे बुधोऽपि, प्रचुरगमगभीरे किं पुनर्मादृशोऽज्ञः ?॥१॥ *लय: मम करो काया माया २०८ भगवती जोड़ Jain Education Intemational Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गमा रा यंत्र Jain Education Intemational Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ दंडका में जे जे ठिकाणां नां ऊपजै तेहनों यंत्र १० | ११ १२ १३ २४ दंडक के नाम सात नारकी। असुर कुमार नाग कुमार | सुपर्ण कुमार | विद्युत कुमार | अग्नि कुमार | द्वीप कुमार | उदधि कुमार | दिग कुमार वायु कुमार स्तनित कुमार | पृथ्वी काय उपक जेतला ठिकाणां ना ऊपज 대 जेजे ठिकाणांना प्रथम नारकी में ३ ठिकाणां नां ऊपजै-असन्नी तियेच पंचेंद्री १ सन्नी तियेच पंचेंद्री २ सन्त्री मनुष्य ३ असन्नी तिर्यच पंचेंद्री सन्नी तिर्यच पंचेद्री२ 45 ऊपजे. तेहनां न्यारा न्यारा भवनपति १० पांच स्थावर १५ तीन विकलेंद्री१८ असन्त्री तिर्यच पचेद्री१६ सन्नी तिर्यच पर्चेद्री २० संख्याता वर्ष ना सन्नी मनुष्य २१ असत्री मनुष्य २२ व्यंतर २३ सन्नी मनुष्य ३ नाम कहै दूनी नारकी में शठिकाणा नां ऊपजै-सन्नी तिर्यच पंचेंद्री१ सत्री मनुष्य २ शेष पांच नारकी में पिण दो-दो ठिकाणांना ऊपजै- सनी तिथंच पंचेंद्री सन्नी मनुष्य एवं सात नारकी में सर्व १५ ठिकाणां ना ऊपजै। तिर्यंच युगलियो ४ मनुष्य युगलियो५ ज्योतिषी २४ प्रथम दो देवलोकश प्रथम नरक रतनप्रभा में ३ ठिकाना नां ऊपजै-असन्नी तिर्यच पंचेंद्रिय १, संख्याता वर्षनां सन्नी तियध पंचेंद्विय २, संख्याता वर्ष नां सन्नी मनुष्य ३' १प्रथम नरक में असन्नी तिर्यंच पंचेंद्रिय ऊपजै तेहनों यंत्र (१) गमा २० द्वार नी संख्या उपपात द्वार संघयण द्वार अवगाहना द्वार संठाण द्वार | लेश्या द्वार | दृष्टिद्वार | ज्ञान-अज्ञानद्वार योग द्वार | चपन परिमाण द्वार एक समय में केता ऊपजे जघन्य | उत्कृष्ट अनैं तेहनां नाम | जघन्य उत्कृष्ट जघन्य ओधिक नै ओधिक १० हजार वर्ष | पल्य नै अंसखभाग १ १.२.३ उपजे | संख्याता या १ असंख्याता| शेवटो ऊपजै आंगुल नों | हजार जोजन | असंख्यातमो जलचरादि । भाग । नी अपेक्षा असत्री - २ कृष्ण नील मिथ्या दृष्टि | पर्याप्ता में | मति श्रुत कापोत । पर्याप्ता माटै नहुदै वचन, काया साप अपर | ओधिक जघन्य १० हजार वर्ष | १० हजार वर्ष ओधिक नै उत्कृष्ट पल्यनैअसंखपल्यनं असंख |भाग भाग T जघन्य नै ओधिक १० हजार वर्ष पल्य नैं अंसख्य भाग १.२.३ उपजै संख्याताया असंख्याता| छेवटो ऊपजै आंगुल नौ हजार जोजन असंख्यातमो जलचरादि । हुडक नी अपेक्षा असत्री | २ | कृष्ण, नील | मिथ्या दृष्टि | पर्याप्ता में | मति श्रुत । वयन, काया | सर, कापोत पर्याप्ता माटै नहुदै ५. जघन्य जघन्य १० हजार वर्ष | १० हजार वर्ष जघन्य नै उत्कृष्ट | पल्यनअसंख पल्य नै असख भाग भागे | उत्कृष्ट नै ओधिक १० हजार वर्ष | पल्य नै अंसख भाग १.२.३ उपजै संख्याता या १ आगुल नो | हजार जोजन असंख्याता | छेवटो । असंख्यातनो जलपरादि ऊपजै भाग नी अपेक्षा असन्त्री कृष्ण नील | मिथ्या दृष्टि । पर्याप्ता में | मति श्रुत | वचन: काया कापोत । पर्याप्तामाटै | उत्कृष्ट ने जघन्य १० हजार वर्ष | १० हजार वर्ष ६ | उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट | पल्यनअसंखपल्यनै असंख भाग भाग वार्तिका - 'असन्नी तियर पंकद्री प्रथम नरक में ऊपजै लिप मै समदृष्टि तथा ज्ञान न कगा। अनै असन्नी लियंच में और सूवे समदृष्टि त्या बै ज्ञान का। इहा समदृष्टि अने ज्ञान न कह्या ते कारण कां ? इति प्रश्न उत्तर - इहां धुर सूत्रे इम पूश्यो-जो असन्नी तिथंच पयेंद्री थकी ऊपजै तो हे भगवंता! सू जलधर थकी, के थलचर थकी, के खेवर थकी ऊपजै? जिन कहै - हे गोतम त्रिहुं थकी ऊपज । जो त्रिहुं थकी ऊपजै तो सूंपर्याप्तो के अपर्याप्तो मरी ऊपजै? जिन कहै - हे गोतम पर्याप्ता थकी ऊपजै, पिण अपर्याप्ता थकी न ऊपजै । पर्याप्तो असन्नी तिर्यय पंचेंद्री ऊपजवा जोग्य ते रत्नप्रभा नै विषे ऊपजै. शेष ६ नारक न ऊपजै । पर्याप्तो असन्नी तिर्यच रत्नप्रभा में ऊपजदा जोग्य ते किति स्थिति नैं विष ऊपजै? इत्यादिद्वार । सातमा द्वार में १ मिथ्यादृष्टि कही। आठमा द्वार में २ अज्ञान कहा । ते इहा पर्याप्तोज नरक मे ऊपजे. ते ऊपजवा जोग्य पर्याप्तो तिण में समदृष्टि तथा ज्ञान नहुवै एह जणाय । अथवा सास्वादन सम्यक्त्ववत असत्री तिर्यंच पचेद्री नरक में न ऊपजतो हुवै तो पिण ज्ञानीजाण । १० भवणपति तथा व्यंतर में असन्नी तिर्यय पयेंद्री ऊपजे तिहां पिण समदृष्टि तथा ज्ञान न कह्या । ते पिण असन्त्री तियेच पंचेंद्री ऊपजवा जोग्य ते पर्याप्ता माटै समदृष्टि तथा ज्ञान न कह्या इति भाव जगाय छ। (ज.स.) २१० भगवती-जोड (खण्ड-६) Jain Education Intemational Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० २१ २२ २३ वेतकाय | वायुकाय बनस्पतिकाय चउरिद्रिय तिथंच पंचेंद्री मनुष्य | व्यंतर ज्योतिषी वैमानिक हथकर | | छह नारकी दस भवनपति १६ पृथ्वी १७ अप वनस्पति १६ तीन संख्यात वर्ष नां पहिला दूजा देव लोक में चार-चार ठिकाणां ते में विकलेंद्री ८ बसन्नी वियव । नवंद्री सत्री तिर्यच पंचेंद्री संख्यात वर्व नां सन्नी सात नारकी दस भवनपति १० पांच थावर २२ तीन विकलेंद्री २५ असन्नी तिथंच पंद्री २६ संख्यात वर्ष नां सन्नी तिथंच पंवेदी २७ संख्यात वर्ष नां सन्नी मनुष्य २८ असन्नी मनुष्य र व्यंतर ३० ज्योतिषी ३१ आउ पहिला देव लोक ३६ विकलेंट्री असन्नी तिर्यच पंचेंद्री २३ संख्याता वर्ष नां सम्री तिर्यच पं.दी४ असन्मी मनुष्य २५ संख्यात वर्ष नां सत्री मनुष्य २६ नां ऊपजे-संख्याता वर्ष नौ सन्नी तियध पंचेंद्री संख्याता वर्ष नों सन्नी मनुष्य तिर्यच युगलियो ३ मनुष्य युगलियो ४ एवं - तीजा देव लोक स्यूं आठवां देवलोक लाई दो-दो ठिकाणांनां ऊपजे-संख्याता वर्ष नो सन्नी श्री निर्यच तिथंच युगलियो ३ मनुष्य युगलियो । अत्री मनुध 44 ध्यंतर २७ ज्योतिषी २८ बारह देवलोक ४० नन वेयक ४१ चार अनुत्तर विमान ४२ सर्वार्थ सिद्ध ५३ तिर्यंच संख्याता वर्ष नो मन्त्री मनुष्य एवं १२ नवमां देवलोक सूं बारमा देवलोक ताई. नौ नैवेयक, चार अनुत्तर विमान अनैं सर्वार्थसिद्ध-ए सात ठिकाणां में एक-एक ठिकाणा नां ऊपजे-संख्यात वर्ष नां सन्नी मनुष्य १एवं+१३+७ सर्व २७ ठिकाणां नां वैमानिक में ऊपजे। १७ १२ कषाय द्वार इन्द्रिय द्वार | समुद्घात द्वार वेदनाद्वार १६ वेद द्वार आयुद्वार अनुबंध द्वार नाणत्ता कायसंकेद्वार अध्यवसाय द्वार असंख्याता जघन्य | उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट जधन्य उत्कृष्ट भव जघन्य काल उत्कृष्ट काल १अंतर्मुहूर्त १० हजार वर्ष नपुंसग | अंत- | कोड भला. ० । २ हार भव, क्रोध, मान, | श्रोत. बक्ष, वेदना, कषाय | साता, कुन परिग्रह माया, लोभ. घाण, रस, स्पर्श | | मारणांतिक असाता अंत- | मुहूर्त | कोड | पूर्व | १अंतर्मुहूर्त १० हजार वर्ष १अतर्मु.पल्य नो असंख्यातमो भाग १कोड पूर्व पल्य रो असंख्यातमो भाग १कोड पूर्व १० हजार वर्ष १कोड पूर्व पल्यरो असंरण्यातमो भाग १अंतर्मुहूर्त १० हजार वर्ष १अंतर्म.पल्य से असंख्यातमो भाग १अंतर्मु. १० हजार वर्ष 1 नपुंसग | अंत चन परिग्रह क्रोध, मान, श्रोत, चक्षु, वेदना, कषाय, साता. माया. लोभ, प्राण, रस. स्पर्श | मारणांतिक | असाता |र्नुहूर्त | भंडा. नरक | अंत- | अंतमें जावै ते माटै| मुहूर्त | मुहूर्त १अंतर्मुहूर्त १० हजार वर्ष १ अंतर्मु पल्य रो असंख्य आयु. अध्य -वसाय. अनुबंध १अंतर्मु०पल्य रोअसंख्यतमो तमो भाग भाग १कोड पूर्व १० हजार वर्ष | नपुंसग क्रोध, मान, श्रोत, चक्षु, वेदना, कषाय, माया. लोभ. घाण, रस, स्पर्श | मारणांतिक साता, असाता कोड | कोड | __ भला. भंडा, पूर्व । कोड | कोड | आयु पूर्व । पूर्व १कोड पूर्व पल्य रो असंख्या-तमो भाग १कोड पूर्व १० हजार वर्ष १कोड पूर्व पल्य रो असंख्या-तमो भाग १कोड पूर्व १० हजार वर्ष १कोड पूर्व पल्य रो असख्या। तमो भाग अनु० गमा २११ Jain Education Intemational Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २ प्रथम नरक में संख्याता वर्ष नों सन्नी तिर्यंच पंचेंद्रिय ऊपजै तेहनो यंत्र (२) गमा २०द्वार नी संख्या संठाण द्वार | लेश्या द्वार दृष्टिद्वार जान-अशानदार योगद्वार | उपयोग उपपातद्वार जघन्य उत्कृष्ट परिमाण दार [संघयण द्वार जघन्य उत्कृष्ट | ६ अवगाहना द्वार | जघन्य | उत्कृष्ट ओधिक नै ओधिक १० हजार वन १सागर १२.३ संख्याता अंगुल ६ ३भजना ३मजना| ३मन, वचन. हजार योजन साकार अनाकार १० हजार वर्ग असंख्याता असंख ओधिक जघन्य ओधिक नै उत्कृष्ट १० हजार वर्ष १सागर १सागर जधान ओधिक १० हजार वर्ष १सागर अंगुल ३ पहिली - १मिया २नियमा| मन, वचन, सागर १.२.३ ऊपजे [जघन्य नै जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट १० हजार वर्ष १सागर १० हजार वर्ष १सागर अराख्याता ऊपजे असंख भाग उत्कृष्ट नै ओधिक हजार वर्ष १२.३ संख्याता अगुल ३भजना | भजना| ३ मन, वचन् | साकार अनकार ० हजार वर्ष ऊपज उत्कृष्ट नै जघन्य | उत्कृष्ट उत्कृष्ट | ० हजार वर्ष सागर असंख्याता ऊपजे असख भाग हजार जोजन ३ प्रथम नरक में संख्याता वर्ष नों सन्नी मनुष्य ऊपजै तेहनो यंत्र (३) गमा २० द्वार नी संरख्या उपपातद्वार लेश्या द्वार | दृष्टि द्वार शान-अज्ञानद्वार योग द्वार | उपयोग द्वार परिमाण द्वार जघन्य उत्कृष्ट संघयण द्वार ६ अवगाहना द्वार | संठाण द्वार जघन्य । | उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट १२.३ संख्याता ओधिक नै ओधिक १० हजार वर्ष ओधिक नै जघन्य हजार वर्ष ओधिक नै उत्कृष्ट १सागर १सागर १० हजार १सागर प्रवक अंगुल vजना ३भजना १,२.३ संख्याता भजना भजना३ । जघन्य नै औधिक जघन्य नै जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट १० हजार वर्ष १० हजार वर्ग १सागर १सागर १० हजार वर्ष १सागर पृथक अंगुल पृथक अंगुल १२.३ सरण्याला | ३ | ४भजना भजना ३ उत्कृष्ट नैं ओघिक हजार वर्ष उत्कृष्ट नै जघन्य १० हजार वर्ष उत्कृष्ट नैं उत्कृष्ट १सागर १सागर १० हजार वर्ष १सागर ऊपजे ५सी धनुष्य सौ धनुष्य दूजी नरक शक्करप्रभा में २ ठिकानां ना ऊपजे-संख्याता वर्ष नां सन्नी लियंच पदिय १, संख्याता वर्ष नां सन्नी मनुष्य। ४ दूजी नरक में संख्याता वर्ष नों सन्नी तिर्यंच पंचेंद्रिय उपजै तेहनों यंत्र (9) गमा २०द्वार नी संख्या उपपात द्वार | संठाण द्वार लेश्या द्वार दृष्टिद्वार ज्ञान-अज्ञान द्वार योगदार परिमाण द्वार उत्कृष्ट अवगाहना द्वार | ತಜ್ಞ १ संख्याताया ओधिक ओधिक १सागर |ओधिक जघन्य १सागर औधिक नै उत्कृष्ट ३सागर ३सागर १सागर अंगुल नों असंख १हजार योजन १२३ ऊपरी ३सागर ऊपजे १२.३ ऊपजे पृथक जघन्य नै औधिक जघन्य नै जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट १सागर १सागर ३सागर ३सागर १सागर ३सागर संख्याता या असंख्याता उपजै अंगुल नों असंख भाग पहली नियमा १२.३ ऊपजे | उत्कृष्ट नै ओधिक उत्कृष्ट नै जघन्य | उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट सागर सागर ३सागर १सागर ३सागर संख्याताया असंख्याता उपजै अंगुल नों असंख भाग हजार योजन भजना भजना २१२ भगवती-जोड़ (खण्ड-६) Jain Education Intemational Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३ १६ २० का द्वार १२ कवाय द्वार इन्द्रिय द्वार समुदधातद्वार वेदनाद्वार | वेदद्वार आयुद्वार अनुबंध द्वार नाणत्ता काय-संवेध द्वार अध्यवसाय द्वार असंख्याता ____३ | जघन्य | उत्कृष्ट जपन्य | उत्कृष्ट जघन्य उत्कष्ट जघन्यकाल उत्कष्टकाल १अंतर्मु०१० हजार वर्ग ४कोड पूर्व ४ सागर ४ | ५ २ ३ | अंतर्मु० | वेदना, कवाय, मारणा० वेक्रिय, तेजस कोड | भला मूंडा अंतर्मु० कोड पूर्व | २ १अंतर्गु०१० हजार वर्ष ४ कोड पूर्व ४० हजार वर्ष १अंतर्मु०१ सागर 1४ कोड पूर्व४ सागर ८अवगाहना. लेश्या, १अंतर्मुः १० हजार वर्ष | ४ अंतर्मु०४ सागर | ३ | अंतर्मु० - अंतर्मु० भूडा वेदना, कषाय, मारणांतिक अंतर्मुः | अंतर्मु० दृष्टि, अज्ञान, रामुदधात. | | आयु. अध्यवसाय अनुबंध १अत: १० हजार वर्ष | ४ अंतर्मु०४० हजार वर्ष १अंतर्मु०१ सागर ४ अंतर्मु०४ सागर १ कोड पूर्व १० हजार वर्ष ४ कोड पूर्व ४ सागर पहिली भला. मुंडा कोड | कोड | पूर्व । पूर्व कोड पूर्व कोड पूर्व आयु, अनुबंध कोड पूर्व १० हजार वर्ष ४ कोड पूर्व ४० हजार वर्ष कोड पूर्व सागर ४ कोड पूर्व४ सागर ६ १४ T | | २० १८ | अध्यवसाय द्वार १९ अनुबंधद्वार वेदद्वार | आयुद्वार লাল काय-संवेध द्वार जपन्य उत्कृष्ट असंख्याता | जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट जघन्य काल | उत्कृष्ट काल ६ पहली | कोड भला मूंडा पृथक् मास| कोड पृथक मास १पृथक मास हजार वर्ष ४ कोड पूर्व४ सागर १पृथक मास हजार वर्ष| कोड पूर्व ४० हजार वर्ष १पृथक मास १सागर ४ कोड पूर्व ४ सागर ३ पृधक मास पृथक मास मला मुंडा ५पहिली पृथक मास | पृथक मास ५अवगाहना, ज्ञान.] समुदघात.आयु । अनुबन्ध १पृथक मास हजार वर्षा ४ पृथक मास ४सागर १पृथक मासक हजार वर्ष [४ पृथक मास ४० हजार वर्ष १पृथक मास १ सागर ४ पृथक मास ४ सागर कोड पूर्व कोड कोड पूर्व कोड पूर्व ६पहिली अवगाहना. आयु अनुबंध १कोड़पूर्व १० हजार दर्द १कोडपूर्व १० हजार वर्ष १कोड़पूर्व१सागर |४कोड पूर्व ४ सागर ४ कोड पूर्व ४० हजार वर्ष ४कोड पूर्व ४ सागर १२ कवाय द्वार इन्द्रिय द्वार समुपात द्वार| वेदना द्वार वेदद्वार नाणत्ता कायसवेध द्वार आयुद्वार जघन्य | उत्कृष्ट अध्यवसाय द्वार अनुबधद्वार असंख्याता | जघन्य उत्कृष्ट जघन्य | उत्कृष्ट जघन्य काल उत्कृष्ट काल ५ पहिली | अंतर्मुहूर्त | कोड पूर्व भला, मूंडा | अंतर्मुहूर्त | कोड पूर्व १अंतर्मुहूर्त १ सागर | १अंतर्मुहूर्त सागर १अंतर्मुहूर्त ३ सागर ४ कोड पूर्व १२ सागर ४ कोड पूर्व ४ सागर ४ कोड पूर्व १२ सागर ३पहिली अंतर्मुहूत अंतर्मुहूर्त | मुंडा अंतर्मुहत | अंतर्मुहून अव. लेण्या दृष्टि, अज्ञान, समु. आयु, अध्य. अनुबंध १अंतर्मुहूर्त १सागर १अंतर्मुहूर्त सागर अंतर्मुहूर्त ३सागर ४ अंतमुहूर्त १२ सागर ४ अंतर्मुहूर्त ४ सागर ४ अंतर्मुहूर्त १२ सागर कोड पूर्व | कोड पूर्व | भला. मुंडा | कोड पूर्व | कोड पूर्व आयु कोड पूर्व १सागर १कोड पूर्व सागर पकोड पूर्व सागर ४ कोड पूर्व १२ सागर ४ कोड पूर्व ४ सागर ४ कोड पूर्व १२ सागर अनुबंध गमा २१३ Jain Education Intemational Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५ दूजी नरक में संख्याता वर्ष नों सन्नी मनुष्य ऊपजै तेहनों यंत्र (२) गमा २०द्वार नी संख्या उपपात द्वार परिमाण द्वार संघयण द्वार अवगाहना द्वार |सठाणद्वार लेण्याद्वार । ज्ञान-अज्ञान द्वार योग द्वार उपयोग जघन्य जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट सागर ३सागर पृथक ओधिकन ओधिक | ओधिक जघन्य ओधिक नै उत्कृष्ट १२३ ऊप ४ भजना ३भजना संख्याता उपजे सागर १२.३ ऊपजै ४भजना | भजना | जघन्य नै ओधिक | अधन्य नै जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट १सागर १सागर ३सागर सागर १सागर सागर संख्याता ऊपजै पृथक हाथ पृथक हाथ १२३ऊपजै उत्कृष्ट नैं ओधिक उत्कृष्ट नै जघन्य | उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट सागर १सागर ३सागर ३सागर १सागर ३सागर संख्याता ऊपजे ५० अनुष्य ४भजना ३भजना तीजी नरक वालुकाप्रभा में रठिकाणां ना ऊपजे-संख्याता वर्ष नां सन्नी तिथंच पंचेदिय १, संख्याता वर्ष नां सन्नी मनुष्य। ६तीजी नरक में संख्याता वर्ष नां सन्नी तिर्यंच पंचेंद्रिय ऊपजै तेहनों यंत्र (१) गमा २०द्वार नी संख्या उपपात द्वार परिमाण द्वार संघयण द्वार अवगाहना द्वार संताण द्वार लेश्या द्वार ज्ञान-अज्ञान द्वार योगद्वार जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट ओधिक ओधिका ३सागर ओधिक जघन्य सागर ओधिक नै उत्कृष्ट ७सागर सागर सागर ५ पहिला संख्याता या असंख्याता ऊपजै अंगुल नो असंख्यातमो १२३ ऊपजे भजना हजार योजन सागर माग पृथक २नियमा |जघन्य नै ओधिक |जघन्य नै जघन्य । जघन्य नै उत्कृष्ट ३सागर ३सागर सागर सागर सागर १.२.३ रूप संख्याता या । | ५ पहिला असंख्याता उपजै अंगुल नो असंख्यातमो भाग ३ पहिली १मिथ्या उत्कृष्ट ओधिक उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट ३सागर ३सागर सागर संख्याता या असंख्याता सागर सागर १२.३ ऊपजे ५ पहिला अंगुतनो असंख्यातमो भाग हजार योजन ३मजना | भजना । ३ । ७ तीजी नरक में संख्याता वर्ष नां सन्नी मनुष्य ऊपजै तेहनों यंत्र (२) गमा २० द्वार नी संख्या उपपात द्वार परिमाण द्वार संघयण द्वार अवगाहना द्वार | संठाण द्वार लेश्या द्वार दृष्टिद्वार ज्ञान-अज्ञानदार योग द्वार जघन्य जघन्य उत्कृष्ट जपन्य उत्कृष्ट | संख्याता ५ पहली पृथक ४भजना ३भजना | ओधिक नै ओधिक ३सागर ओधिक जघन्य ३सागर ओधिक नै उत्कृष्ट सागर. ७सागर सागर ससागर १.२.३. ऊपजे ५सी धनुष्य মি | ४ सख्याता पृथक १२.३. ऊपरी ४भजना | भजना। ३ जघन्य नै ओधिक सागर |जघन्य नै जघन्य ।३सागर जघन्य नै उत्कृष्ट!७सागर । सागर ३सागर सागर | ५पहली ३भजना | उत्कृष्ट नै ओधिक ३सागर | उत्कृष्ट नै जघन्य ३सागर उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट सागर ७सागर ३सागर ७सागर १२.३. ऊपजे सख्याता ऊपजे घनुष्य | २१४ भगवती-जोड़ (खण्ड-६) Jain Education Intemational Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११ संज्ञाद्वार Y ४ » |-}· संझा द्वार ४ V 辨 संज्ञा द्वार ४ १२ कषाय द्वार ४ ४ ܡ ✰ कषाय द्वार ४ ४ « ४ १२ कषाय द्वार ४ ४ x α १३ इन्द्रिय द्वार ५ ५ १३ इन्द्रिय द्वार ५ ५ ५ ५ १३ इन्द्रिय द्वार ५ ५ کو ई १४ समुद्धात द्वार 19 ६ पहिली ६. पहिली ६] पहिली १४ समुद्धात द्वार 19 ५. पहिली ३ पाहिली ५. पहिली 98 समुद्धात द्वार 19 ६ पहिली ६ पहिली ६] पहिली १५ वेदना द्वार २ २ २ २ १५ वेदना द्वार २ २. 3 २ १५ वेदना द्वार २ २ २ २ १६ वेदद्वार ३ 3 d १६ वेद द्वार ३ 3 ३ १६ वेद द्वार ३ 3 ३. आयु द्वार 2 जघन्य उत्कृष्ट पृथक कोड वर्ष पूर्व पृथक वर्ष कोड पूर्व जघन्य अंतर्मुहूर्त आयु द्वार उत्कृष्ट कोड पूर्व जघन्य पृथक वर्ष अंतर्मुहूर्त अंतर्मु पृथक वर्ष कोड पूर्व १७ पृथक वर्ष कोड पूर्व ११७ आयु द्वार कोड पूर्व कोड पूर्व उत्कृष्ट कोड पूर्व पृथक वर्ष कोड पूर्व १८ अध्यवसाय द्वार असंख्याता भला भूंडा भला 喝 भला डा १८ अध्यवसाय द्वार असंख्याता मूंडा भला मूंडा १८ अध्यवसाय द्वार असंख्याता मला डा मला भूडा १६ अनुबंध द्वार जघन्य भला मूंडा अंतर्मुहूर्त भलाभूंडा पृथक् वर्ष पृथक् वर्ष कोड पूर्व कोड पूर्व १६ अनुबंध द्वार जघन्य उत्कृष्ट उत्कृष्ट जघन्य कोड कोड पूर्व पृथक वर्ष पृथक् वर्ष अंतर्मुहूर्त अंतर्मु पृथक वर्ष कोड पूर्व कोड पूर्व १६. अनुबंध द्वार कोडपूर्व उत्कृष्ट कोड पूर्व पृथक वर्ष कोड पूर्व कोड पूर्व नाणता ० ३] अवगाहना, आयु. अनु. ३ अवगाहना, आयु अनुबंध नाणता 。 ८ अव लेश्या, दृष्टि, अज्ञान, सगु आयु अध्य० अनुबंध २ आयु अनु. नाणत्ता ३ अवगाहना, आयु अनुबंध ३ अवगाहना, आयु अनुबंध जघन्य उत्कृष्ट २ २ ૨ २ ~~~ ~~~ २ २ २ भव जघन्य TV tv n २ २ २ २ २ २ २ २ २ २ २ २ २ २ হ ........... भव २ २ ६ भव ८ ~~~ 200 ८६ उत्कृष्ट ६ ८ जघन्य उत्कृष्ट www ८ ८ 4. ५ www ww ८ C जघन्य काल २० कायसंवेध द्वार [१] पृथक् वर्ष १ सागर १ पृथक वर्ष १ सागर [१] पृथक् वर्ष ३ सागर [१] पृथक वर्ष १ सागर १] पृथक वर्ष १ सागर १] पृथक् वर्ष ३ सागर १ कोड पूर्व १ सागर [१] कोड पूर्व १ सागर १ कोड पूर्व ३ सागर जघन्य काल १ अंतर्मु० ३ सागर १ अंतर्मु० ३ सागर १ अंतर्मु० ७ सागर १ अंतर्मु० ३ सागर १ अंतर्मु० ३ सागर १ अंतर्मु० ७ सागर १ कोड पूर्व ३ सागर १] कोड पूर्व ३ सागर १] कोडपूर्व ७ सागर २० कायसंवेध द्वार जघन्य काल १ पृथक वर्ष ३ सागर १] पृथक वर्ष ३ सागर १ पृथक वर्ष ७ सागर उत्कृष्ट काल १] पृथक वर्ष ३ सागर १] पृथक वर्ष ३ सागर १ पृथक वर्ष ७ सागर ४] कोड पूर्व ४] कोड पूर्व ४ कोड पूर्व १ कोड पूर्व ३ सागर १] कोडपूर्व ३ सागर १] कोडपूर्व ७ सागर ४] पृथक वर्ष ४] पृथक् वर्ष ४] पृथक वर्ष ४ कोड पूर्व हे कोड पूर्व ४ कोड पूर्व कायसंवेध द्वार १२ सागर ४ सागर १२ सागर १२ सागर ४ सागर १२ सागर १२ सागर ४ सागर १२ सागर उत्कृष्ट काल ४] कोड पूर्व ४ कोड पूर्व ४ कोड पूर्व ४ अंतर्मु० ४ अंतर्मु० ४ अंतर्मु० २६ सागर १२ सागर २८ सागर ४] कोड पूर्व २८. सागर ४] कोडपूर्व १२ सागर ४] कोडपूर्व २८ सागर २०. सागर १२ सागर २८. सागर उत्कृष्ट काल ४] कोड पूर्व २६ सागर ४] कोड पूर्व १२ सागर ४] कोड पूर्व २८ सागर ४] पृथक वर्ष २६ सागर ४] पृथक वर्ष १२ सागर ४ पृथक् वर्ष २८ सागर गमा ४] कोड पूर्व २६] सागर ४. कोड पूर्व १२ सागर ४ कोड पूर्व २८ सागर २१५ Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१६ चौथी नरक पंकप्रभा में २ ठिकाणां नां ऊपजै-संख्याता वर्ष नां सन्नी तियंच पंचेंदी १, संख्याता वर्ष नां सन्नी मनुष्य २ । चौथी नरक में संख्याता वर्ष नां सन्नी तिर्यंच पंचेन्द्रिय ऊपजै तेहनों यंत्र (१) ८ गमा २० द्वार नौ संख्या و २ ३ ४ ५ ६ 19 ८ $ 4 २ 3 ५ ६ 19 ६ ओधिक नै ओधिक गमा २० द्वार नौ संख्या ओधिक नै जघन्य ओधिक नै उत्कृष्ट जघन्य में ओधिक जघन्य नै जघन्य २ 3 ६ 19 सागर ७ सागर उत्कृष्ट ने उत्कृष्ट १० सागर उत्कृष्ट नै ओधिक ७ सागर उत्कृष्ट नै जधन्य ७ सागर उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट १० सागर जघन्य १७ सागर जघन्य नैं ओधिक जघन्य नै जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट ७] सागर १० सागर गमा २० द्वार भी संख्या ओधिक नै ओधिक ७ सागर ओधिक मैं जघन्य ७ सागर ओधिक मैं उत्कृष्ट १० सागर जघन्य नै ओधिक जघन्य नै जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट नै ओधिक ७ सागर उत्कृष्ट नै जघन्य ७ सागर उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट १० सागर ७ सागर ७ सागर १०- सागर ६ चौथी नरक में संख्याता वर्ष नां सन्नी मनुष्य ऊपजै तेहनों यंत्र (२) १ उपपात द्वार उत्कृष्ट ओधिक नै ओधिक १० सागर १० सागर ओधिक नै उत्कृष्ट १० सागर अधिक मैं जघन्य जघन्य १० सागर १० सागर १७ सागर १ उपपात द्वार 19 उत्कृष्ट नै ओधिक १० सागर ६ उत्कृष्ट नै जघन्य १० सागर ६ उत्कृष्ट में उत्कृष्ट १७ सागर उत्कृष्ट भगवती-जोड़ (खण्ड-६). १० सागर ७ सागर १० सामर १० सागर ७] सागर १० सागर १० सागर ७ सागर १० सागर उपपात द्वार १० सागर 1७ सागर १० सागर १० सागर ७ सागर १० सागर १० सागर ७ सागर १० सागर उत्कृष्ट १७ सागर १० सागर ५७ सागर २ परिमाण द्वार जघन्य 949 सागर १० सागर 1949 सागर १२.३. ऊपजै १७ सागर १० सागर १७ सागर १.२.३. ऊपजै १२.३. ऊपजै परिमाण द्वार जघन्य १२.३ ऊपजै १२.३ ऊपजै १२.३ ऊपजै जघन्य उत्कृष्ट संख्याता था असंख्याता ऊपजै १.२.३ ऊपजै संख्याता या असंख्याता ऊपजै १२. ३ ऊपजै संख्याता या असंख्याता ऊपजै १२.३ ऊपजै उत्कृष्ट संख्याता ऊपजै परिमाण द्वार संख्याता ऊपजै संख्याता ऊपजै पांचमी नरक धूमप्रभा में २ ठिकाणां नां ऊपजै-संख्याता वर्ष नां सन्नी तियंच पंचेंदी १, संख्याता वर्ष नां सन्नी मनुष्य २ । १० पाचर्मी नरक में संख्याता वर्ष नां सन्नी तिर्यंच पंचेन्द्रिय ऊपजै तेहनों यंत्र (१) उत्कृष्ट संख्याता या असंख्याता ऊपजै ३ संघयण द्वार ६ संख्याता या असंख्याता ऊपजै ४ पहला संख्याता या असंख्याता ऊपजै ४ पहला ४] पहला संघयण द्वार ཀ पहला ४ पहला ४ पहला संघयण द्वार ६ ३] पहला 3 ३ अवगाहना द्वार उत्कृष्ट जघन्य अंगुल न असख्य भाग अंगुल न असंख्य भाग अंगुल न असंख्य भाग जघन्य पृथक् हाथ पृथक् हाथ ५. सी धनुष्य अवगाहना द्वार उत्कृष्ट जघन्य अंगुल न असंख्य भाग १ हजार योजन अंगुल न असंख्य भाग पृथक धनुष्य १. हज़ार योजन अंगुल न असंख्य भाग ५.सी धनुष्य ४ अवगाहना द्वार उत्कृष्ट पृथक् हाथ ५. सौ धनुष्य हजार योजन पृथक् धनुष्य हजार योजन ५. संठाण द्वार ६ ५. संठाण द्वार ६ ६ ܩ ६ ५ सठाण द्वार ६ ६ ६. ६ लेश्या द्वार ६. ६ ३. पहली लेश्या द्वार ६ लेश्या द्वार ६ ६ पहली in ७ दृष्टिद्वार ३ मिथ्या ३ ७ दृष्टि द्वार ३ 3 19 दृष्टि द्वार ३ 3 १. मिथ्या 3 ज्ञान-अज्ञान द्वार ५ ३ भजना ३ भजना ५. - * ज्ञान-अज्ञान द्वार ३ भजना ४ भजना ४ भजना ५ भजना ३ 드 भजना ३ भजना २ नियमा ३ भजना भजना ज्ञान-अज्ञान द्वार ३ भजना ३ भजना ३ ३ भजना २ नियमा भजना योग द्वार ३ ३ ३ ३ योग द्वार 3 ३ An योग द्वार 3 ३ ३ ३. उपयोग द्वा २ २ २ उपयोग द्व २ उपयोग द्वार २ २ Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ..१२ सरकवाय द्वार इन्द्रिय द्वार समुदयात द्वार १५ वेदनाद्वार | वेद द्वार | ३ नाणत्ता आयु द्वार अध्यवसाय द्वार अनुबधद्वार जघन्य | उत्कृष्ट | असंख्याता | जघन्य | उत्कृष्ट काय-संवेध द्वार जघन्यकाल उत्कृष्ट काल जघन्य | उत्कृष्ट ५पहली अंतर्मुहूर्त | कोड पूर्व भला बुंडा | अंतर्मुहूर्त | कोड पूर्व १अंतर्मुहूर्त सागर १अंतर्मुहूर्त ७ सागर १अंतर्मुहूर्त १० सागर ४ कोड पूर्व ४० सागर ४ कोड पूर्व २८ सागर ४ कोड पूर्व ४० सागर ३ पहली अंतर्मुहूर्त | अंतर्मुहूर्त | भूडा | अंतर्मुहूर्त | अंतर्मुहूर्त | ८अव० लेश्या, दृष्टिा ज्ञान अज्ञान. समु० । आयु, अध्य० अनु० १अंतर्मुहूर्त सागर १अंतर्मुहूर्त सागर १अंतर्मुहूर्त १० सागर ४ अंतर्मुहूर्त ४० सागर ४ अंतर्मुहूर्त २८ सागर ४ अंतर्मुहूर्त सागर ५पहली ३ | कोड पूर्व | कोड पूर्व | भला भूडा | कोड पूर्व | कोड पूर्व | आयु, अनुबंध १कोड पूर्व ७ सागर १कोड पूर्व सागर १कोड पूर्व १० सागर ४कोड पूर्व ४० सागर ४कोड पूर्व २८सागर ४कोड पूर्व ४० सागर १६ १२ १३ कषाय द्वार | इन्द्रिय द्वार १५ समुदघात द्वार वेदना द्वार १८ अध्यवसाय द्वार १६ अनुबंधद्वार। वेद द्वार नाणत्ता काय-सवेध द्वार आयु द्वार जघन्य | उत्कृष्ट असंख्याता | जपन्य उत्कृष्ट उत्कृष्ट जघन्य काल - उत्कृष्ट काल पहली पृथक वर्ष कोड पूर्व भला भंड | पृथक वर्ष | कोड पूर्व १पृथक वर्ष सागर पपृथक वर्ष ७ सागर १पृथक वर्ष ० सागर ४ कोड पूर्व ४० सागर ४ कोड पूर्व २८ सागर ४ कोड पूर्व ४० सागर ६ पहली | २ | ३ | पृथक वर्ष पृथक वर्ष | भला भुंडा | पृथक वर्ष | पृथक वर्ष | अवगाहना. आयु. अनुबंध १पृथक वर्ष सागर १पृथक वर्ष सागर १पृथक वर्ष ० सागर ४ पृथक वर्ष ४० सागर ४ पृथक वर्ष २८ सागर ४ पृथक वर्ष १० सागर اليه पहली २ - ३ | कोड पूर्व | कोड पूर्व भला मूंडा | कोड पूर्व | कोड पूर्व अवगाहना, आयु. له له १कोड पूर्व सागर १कोड पूर्व ७ सागर १कोड पूर्व १० सागर ४ कोड पूर्व ४० सागर ४ कोड पूर्व २८सागर ४ कोड पूर्व ४० सागर अनुबंध । २० १२ कवाय द्वार १५ वेदनाद्वार संज्ञा द्वार इन्द्रिय द्वार समुदपात द्वार १६ वेद द्वार ३ १८ अध्यवसाय द्वार असंख्याता आयु द्वार जघन्य उत्कृष्ट नाणता अनुबंध द्वार जघन्य | उत्कृष्ट काय-सवेध द्वार जघन्य काल उत्कृष्ट काल जघन्य उत्कृष्ट ५ पहली | अंतर्मुहूर्त | कोड पूर्व | भला मुंडा | अंतर्मुहूर्त | कोड पूर्व १अंतर्मुहूर्त १० सागर १अंतर्मुहूर्त १० सागर १अंतर्मुहूर्त सागर ४ कोड पूर्व ६८ सागर ४ कोड पूर्व ४० सागर ४ कोड यूर्व ६८ सागर ३ पहली २ | अंतर्मुहूर्त | अंतर्मुहूर्त ___डा अंतर्मुहूर्त | अंतर्मुहूर्त ८ अव० लेश्या दृष्टि. अज्ञान, राम, आयु अध्य० अनुबंध MM १अंतर्मुहूर्त १० सागर १अतर्मुहूर्त १० सागर १अंतर्मुहूर्त सागर | ४ अंतर्मुहूर्त ६६ सागर ४ अंतर्मुहूर्त ४० सागर ४अंतर्मुहूर्त सागर ५ पहली | कोड पूर्व | कोड पूर्व | भला मूंडा | कोड पूर्व | कोड पूर्व आयु, अनुबंध WW १कोड पूर्व १० सागर १ कोड पूर्व १० सागर १कोड़पूर्व १७ सागर ४ कोड पूर्व ६८ सागर ४ कोड पूर्व ४० सागर ४ कोड पूर्व ६८ सागर गमा २१७ Jain Education Intemational Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११ पांचम नरक में संख्याता वर्ष नां सन्नी मनुष्य ऊपजै तेहनों यंत्र (२) गमा २० द्वार नी संख्या 01 1 १ २ 3 ४ ५. ६ | ६. २१८ 9 o two suw गमा २० द्वार नी संख्या ओधिक नै अधिक २ ओधिक नैं जघन्य ३ ओधिक नै उत्कृष्ट २ lo mmm1 30 or us love ओधिक नै ओधिक ओधिक नै जघन्य | ओधिक नै उत्कृष्ट जघन्य नैं ओधिक जघन्य नै जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट उत्कृष्ट नै ओधिक उत्कृष्ट नै जघन्य उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट ५. ६ गमा २० द्वार नी संख्या ५ जघन्य में ओधिक जघन्य नै जघन्य उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट उत्कृष्ट नै ओधिक उत्कृष्ट नै जघन्य उत्कृष्ट नैं उत्कृष्ट 3 ओधिक नै उत्कृष्ट ओधिक नै ओधिक ओधिक नै जघन्य जघन्य नै ओधिक जघन्य नै जघन्य उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट उत्कृष्ट नै ओधिक उत्कृष्ट नै जघन्य ६ उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट जघन्य १० सागर १० सागर १७ सागर १० सागर १० सागर १७ सागर छडी नरक तमप्रभा में २ ठिकाणां नां ऊपजै संख्याता वर्ष नां सन्नी तिर्यच १ संख्याता वर्ष नां सन्नी मनुष्य २ । १२ छट्टी नरक में संख्याता वर्ष नां सन्नी तिर्यंच ऊपजै तेहनों यंत्र (१) १० सागर १० सागर १० सागर जघन्य १७ सागर ५७ सागर २२ सागर ५ सागर १७ सागर २२ सागर १ उपपात द्वार १७ सागर १७ सागर २२ सागर जघन्य १७ सागर १७ सागर २२ सागर १७ सागर १७ सागर २२ सागर उत्कृष्ट १७ सागर १७ सागर २२ सागर १७ सागर १० सागर १७ सागर भगवती-जोड़ (खण्ड-६) १७ सागर १० सागर १७ सागर १७ सागर १० सागर १७ सागर उपपात द्वार उत्कृष्ट उपपात द्वार २२ सागर १७ सागर २२ सागर २२ सागर १७ सागर २२ सागर २२ सागर १५० सागर २२ सागर उत्कृष्ट २२ सागर १७ सागर २२ सागर २२ सागर १७ सागर २२ सागर जघन्य २२ सागर १७ सागर २२ सागर १२.३ ऊपजै १२.३ ऊपजै १२.३ ऊपजै १३ छट्ठी नरक में संख्याता वर्ष नां सन्नी मनुष्य ऊपजै तेहनों यंत्र (२) २ परिमाण द्वार ३ संघयण द्वार ६ २ पहिला २ परिमाण द्वार २ परिमाण द्वार जघन्य १.२.३. ऊपजै १.२.३. ऊपजै १२.३. ऊपजै जघन्य ૧૨.૩ ऊपजै १२.३ ऊपजै उत्कृष्ट १२.३ ऊपजै संख्याता ऊपजै संख्याता ऊपजै संख्याता ऊपजै उत्कृष्ट संख्याता या असंख्याता ऊपजै संख्याता या असंख्याता ऊपजै संख्याता या असंख्याता ऊपजै उत्कृष्ट संख्याता ऊपजै 3 संघयण द्वार ६ संख्याता ऊपजै ३ पहला संख्याता ऊपजै ३] पहला ३ पहला ३ संघयण द्वार ६ २] पहला २] पहला २] पहला २] पहिला २ पहिला जघन्य पृथक हाथ ४ अवगाहना द्वार उत्कृष्ट पृथक् हाथ ५. सौ धनुष्य जघन्य अंगुल न असंख भाग अंगुल नौ असंख भाग अवगाहना द्वार ਦ अंगुल नी असंख भाग जघन्य पृथक् हाथ ५. सौ धनुष्य पृथक हाथ ५. सौ धनुष्व ४ पृथक हाथ ५. सौ धनुष्य अवगाहना द्वार उत्कृष्ट १ हजार योजन पृथक् धनुष्य हजार योजन ५.सी धनुष्य पृथक हाथ ५. सौ धनुष्य ५. संठाण द्वार ६ ६ ६ ६ ५. संठाण द्वार ६ ६ ག संठाण द्वार ६ लेश्या द्वार ६ ६ ६ लेश्या द्वार ६ ३] पहली ६ लेश्या द्वार ६ दृष्टि द्वार 3 ३ 3 19 दृष्टि द्वार ३ 3 मिथ्या ७ दृष्टि द्वार ३ 1 ज्ञान-अज्ञान द्वार ५. ४ भजना ४ भजना ४ ५ 3 भजना 。 भजना ज्ञान-अज्ञान द्वार ५. ४ भजना ३ ४ भजना 3 भजना भजना 3 भजना ३ भजना E-E ज्ञान-अज्ञान द्वार भजना २ नियमा 3 भजना ३ ३ भजना भजना भजना ६ योग द्वार ३ ३ ३. m ६ योग द्वार ३ ३ ३ ६ योग द्वार ३ ३ १० उपयोग द्वार २ २ च उपयोग २ २. २ उपयोग इ २ ~ Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संज्ञा द्वार ४ - 門 +-- १२ कषाय द्वार * ४ १२ कषाय द्वार ४ ར ४ १२ कषाय द्वार ४ १३ इन्द्रिय द्वार ५. १३ इन्द्रिय द्वार ५ ५ क 4 ५ १३ इन्द्रिय द्वार ५ ५ १४ समुद्धात द्वार ७ ६] केवलवज ६ केवलवर्जी ६] केवलवर्जी १४ समुद्धात द्वार ७ ५. पहली ३ पहली ५. पहली समुद्धात द्वार 19 ६ पहली ६ पहली ६ पहली १५ वेदना द्वार २ २ २. २ २ १५ वेदना द्वार २ 8 94 वेदना द्वार २ २ २ १६ वेद द्वार ३ ३ ३ १६ वेद द्वार ३ 3 ३ वेद द्वार ३ 99 आयु द्वार उत्कृष्ट जघन्य पृथक् वर्ष पृथक् वर्ष कोड पूर्व १७ आयु द्वार जघन्य उत्कृष्ट कोड पूर्व अंतर्मुहूर्त कोड पूर्व पृथक् वर्ष अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त जघन्य कोड पूर्व कोड पूर्व कोड पूर्व पृथक वर्ष १७ आयु द्वार पृथक् वर्ष कोड पूर्व उत्कृष्ट फोड पूर्व पृथक् वर्ष कोड पूर्व अध्यवसाय द्वार असंख्याता भला भूख भला भूंडा भला मूंडा मूंडा भला भूडा १६ अनुबंध द्वार १८. अध्यवसाय द्वार असंख्याता मला मूंडा जघन्य भला मूंडा पृथक वर्ष १६ १६ अध्यवसाय द्वारा अनुबंध द्वार असंख्याता जघन्य उत्कृष्ट कोड पूर्व भला मूंडा अंतर्मुहूर्त कोड पूर्व पृथक् पृथक् वर्ष वर्ष उत्कृष्ट कोड पूर्व कोड पूर्व अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त कोड पूर्व कोड पूर्व पृथक वर्ष १६ अनुबंध द्वार जघन्य उत्कृष्ट कोड पूर्व पृथक् फोड पूर्व वर्ष पृथक वर्ष कोड पूर्व भाणत्ता ० 3 अवगाहना आयु अनुबंध अवगाहना आयु अनुबंध नाणता ८ अव० लेश्या दृष्टि, ज्ञान-अज्ञान, समु०, आयु अध्य, अनु० २ आयु अनुबंध नाणता अवगाहना, आपु अनु. 3 अवगाहना, आयु, अनु जघन्य उत्कृष्ट ~~~ २ २ ~~~~~~ जघन्य २ २ २ २ २ २ ૨ २ २ २ २ २ २ २ २ भव २ २ www भव C 5 उत्कृष्ट ८ JUU MUJ २ ८ ६ ८ भव 5 L ८ जघन्य उत्कृष्ट प ८ ८ ...... ८ ८ ८ ८ २० काय संवेध द्वार जघन्य काल १] पृथक् वर्ष १० सागर १ पृथक वर्ष १० सागर १] पृथक् वर्ष १७ सागर १ पृथक् वर्ष १० सागर १ पृथक वर्ष १० सागर [१] पृथक वर्ष १७ सागर १ कोड पूर्व १० सागर १ कोड पूर्व १० सागर १७ सागर १ कोड पूर्व २० काय सवेध द्वार जघन्य काल १ अंतर्मुहूर्त १७ सागर १] अंतर्मुहूर्त १७ सागर १ अंतर्मुहूर्त २२ सागर १ अंतर्मुहूर्त १७ सागर १ अंतर्मुहूर्त १७ सागर १] अंतर्मुहूर्त २२ सागर १] कोड पूर्व १७ सागर [१] कोड पूर्व १७ सागर १] कोड पूर्व २२ सागर १] पृथ वर्ष १४ सागर [१] पृथक वर्ष १० सागर १ पृथक वर्ष २२ सागर [१] पृथक वर्ष १० सागर १] पृथक् वर्ष १७ सागर १] पृथक वर्ष २२ सागर १ कोड पूर्व १७ सागर १ कोड पूर्व १७ सागर १ कोड पूर्व २२ सागर उत्कृष्ट काल ४ कोड पूर्व ६८ सागर ४ कोड पूर्व ४० सागर ४ कोड पूर्व ६८ सागर ४ पृथक वर्ष ६८ सागर ४ पृथक वर्ष ४० सागर ४ पृथक वर्ष ६८ सागर ४ कोड पूर्व ६८ सागर ४] कोड पूर्व ४० सागर ४ कोड पूर्व ६६ सागर २० काय संवेध द्वार जघन्य काल उत्कृष्ट काल ४] कोड पूर्व ८८ सागर ४ कोड पूर्व ६८ सागर ४] कोड पूर्व ६ सागर ४] अंतर्मुहूर्त सागर ४ अंतर्मुहूर्त ६६ सागर ४ अंतर्मुहूर्त सागर ४] कोड पूर्व ६ सागर ४ कोड पूर्व ६६ सागर ४ कोड पूर्व ८८ सागर उत्कृष्ट काल ४ को पूर्व ८६ सागर ४ कोड पूर्व ६८ सागर ४ कोड पूर्व ६० सागर ६८ सागर ४ पृथक वर्ष ४] पृथक् वर्ष ६८ सागर ४] पृथक् वर्ष ५८ सागर ४] कोड पूर्व ६८ सागर ४ कोड पूर्व ६६ सागर ४ कोड पूर्व ६८ सागर गगा २१६ Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साती नरक तमतमा में २ ठिकाणां ना ऊपजे-संख्याता वर्ष नां सन्नी तिर्यच १, संख्याता वर्ष ना सन्नी मनुष्य । १४ सातमी नरक में संख्याता वर्ष नां सन्नी तिर्यंच ऊपजै तेहनों यंत्र (१) गमा २० द्वार नी संख्या उपपात द्वार परिमाण द्वार | संघयण द्वार अवगाहना द्वार | संठाण द्वार | लेश्या द्वार | दृष्टिद्वार ज्ञान-अज्ञान द्वार योग द्वार उपयोगटार जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट जपन्य उत्कृष्ट १ १बज ओधिक नै ओधिक | २२ सागर ओधिकन जघन्य २२सागर | ओधिक नै उत्कृष्ट ३सागर ३३ सागर २२ सागर ३३ सागर १२.३ ऊपजै संख्याता या असंख्याता ऊपजे अंगुलनों असंख भाग हजार योजन भजना শনা नाराय xx | जघन्य में ओधिक जघन्य नै जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट २२ खगर २२सागर ३३ सागर ३३ सागर २२ सागर ३३ सागर १२.३ ऊपजे संख्याताया असख्याता अंगुलनों असंख भाग पहली क्र. भ नाराच मिथ्या नियमा उपज १२.३ उत्कृष्ट नै ओधिक | २२ सागर | उत्कृष्ट नै जघन्य | २२ सागर उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट ३३ सागर ३३सागर २२सागर ३३ सागर संख्याताया असंख्याता ऊपजै ऊपजे हजार योजन अंगुलनों असंख भाग भजना ३ भजना ऋषम नाराच १५ सातमी नरक में संख्याता वर्ष नां सन्नी मनुष्य ऊपजै तेहनों यंत्र (२) गमा २० द्वार नी संख्या संघयण द्वार संठाण द्वार | लेश्या द्वार दृष्टि द्वार ज्ञान-अज्ञान द्वार योग द्वार उपयोगगर उपपात द्वार जघन्य उत्कृष्ट परिमाण द्वार जधन्य उत्कृष्ट अवगाहनाद्वार जघन्य उत्कृष्ट १.२.३ संख्याता पृथक १ २ ३ ओधिक नै ओधिक ओधिक नैं जघन्य ओधिक नै उत्कृष्ट २२ सागर २२ सागर ३३ सागर ३३ सागर २२ सागर ३३ सागर वज वम नाराय। ५सी धनुष्य हाथ भजना ३ ४ जघन्य नै ओधिक जघन्य नै जघन्य ६ जघन्य नै उत्कृष्ट | २२सागर २२ सागर ३३ सागर २२ सागर ३३ सागर १२.३ ऊपजे संख्याता ऊपजे वज ऋषभनाराय पृथक हाथ हाथ भजना संख्याता उत्कृष्ट नै ओधिक | २२सागर ८ उत्कृष्ट नै जघन्य | २२ सागर ६ उत्कृष्ट नैं उत्कृष्ट ३३ सागर ३३सागर २२ सागर ३३सागर १२.३ ऊप वज | ५सौ अपम नाराथ | धनुष्य धनुष्य भजना असुरकुमार में ५ ठिकाणां नां ऊपजै- असन्नी तियच पंचेंद्री १, तिर्यच युगलियो २. संख्याता वर्ष ना सन्नी तिर्यंच पं.द्री ३. मनुष्य युगलियो ४, संख्याता वर्ष नां सत्री मनुष्य ५। १६ असुरकुमार में असन्नी तिर्यंच पंचेन्द्रिय ऊपजै तेहनों यंत्र (१) गमा २० द्वार नी संख्या अवगाहना द्वार संठाण द्वार लेश्या द्वार दृष्टिद्वार ज्ञान-अज्ञान द्वार योग द्वार उपपात द्वार उत्कृष्ट परिमाण द्वारसघयणद्वार जघन्य उत्कृष्ट ६ जपन्य जघन्य उत्कृष्ट १ १२३ १ २वध ओधिक नै ओधिक ओधिक नैं जघन्य ओधिक नै उत्कृष्ट हजार वर्ष | पल्यनै असंख्य भाग |% हजार वर्ष १० हजार वर्ष | पल्य नै असंख भाग पत्य नै अंसख भाग संख्याता या असंख्याता अंगुलनों अंसख भाग १हजार योजन वटो पहली मिथ्या जधन्ध नै ओधिक जघन्य नै जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट 1% हजार वर्ष पत्य नै असंख्य भाग हजार वर्ष १० हजार वर्ष पल्यनै असंख भाग | पत्य नै अंसख भाग ૧૨૩ ऊपजै संख्याता या असंख्याता रूप छेवटी अंगुलनों अंसख १हजार योजन गिथ्या २ नियमा २वद काय ७ उत्कृष्ट नै ओधिक उत्कृष्ट नै जघन्य १ उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट हजार वर्ष पल्य नै असंख भाग हजार वर्ष १० हजार वर्ष पल्य नै असंखभाग | पल्य नै असंख भाग १२.३ ऊपजै संख्याता १ या असंख्याता| ऐबटो अंगुलनों अंसख १हजार योजन पहली २वब काय गिध्या निधमा ऊपजै २२० भगवती-जोड (खण्ड-६) Jain Education Intemational Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११ शद्वार ११ संडा द्वार Y > १२ कषाय द्वार ४ ११. संज्ञा द्वार ४ -- ४ x ४ › १२ १३ कषाय द्वार इन्द्रिय द्वार ५ K x १३ इन्द्रिय द्वार ५. १२ कषाय द्वार ४ ཚ་ ॐ अं ५ ގ މ १३ इन्द्रिय द्वार ५ ५ ५ 임 समुद्धात द्वार ७ ५. पहली ३] पहली ५ पहली १४ समुद्घात द्वार 19 पहली m पहली पहली समुद्धात द्वार ཡ पहली १५ वेदना द्वार २ 3 पहली ३ पहली २ २ २ १५ वेदना द्वार २ २ ~ 94 वेदना द्वार २ २ २ २ १६ वेद द्वार ३ २ पुरुष नपुंसक २ अंत पुरुष. मुहूर्त नपुंसक २ पुरुष नपुंसक जघन्य १६ वेदद्वार ३ २ पुरुष नपुंसक १७ आयु द्वार उत्कृष्ट २ पुरुष नपुंसक अंतर्मु १६ वेद द्वार 3 कोड पूर्व २ पुरुष पृथक् नपुंसक वर्ष पृथक् वर्ष कोड पूर्व कोड पूर्व अंतर्मु १७ आयु द्वार जघन्य उत्कृष्ट कोड पूर्व कोड पूर्व १८. अध्यवसाय द्वार असंख्याता पृथक् वर्ष कोड पूर्व १७ आयु द्वार जघन्य उत्कृष्ट १ नपुंसक अंतर्मुहूर्त कोडपूर्व नपुंसक अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त १ नपुंसक कोड पूर्व कोड पूर्व मला मूंडा अंतर्मुहूर्त कोड पूर्व भूंडा भला डा मला भूंडा भला भूडा वह अनुबंध द्वार जघन्य उत्कृष्ट १८ अध्यवसाय द्वार असंख्याता भला मूंडा अंतर्मु० अंतर्मुहूर्त भाडा मला कोड पूर्व कोड पूर्व १६ अनुबंध द्वार उत्कृष्ट जघन्य पृथ्थक वर्ष पृथक् वर्ष कोड पूर्व कोड पूर्व पृथक् वर्ष कोड पूर्व १८ १६. अध्यवसाय द्वार अनुबंध द्वार असंख्याता जघन्य उत्कृष्ट 3 ८ अद० लेश्या दृष्टि ज्ञान-अज्ञान, समु० ३. आयु य० अनु० ३ अंतर्मुहूर्त क्रोड पूर्व नाणता अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त भला भूडा कोड पूर्व कोड पूर्व o २ आयु अनुबंध २ कोड पूर्व २२ सागर ६६ सागर २ कोड पूर्व २२ सागर ४ कोड पूर्व ६६ सागर ३ कोड पूर्व ६६ सागर २] कोड पूर्व ३३ सागर नोट- ३३ सागर की स्थिति के उत्कृष्ट भव दो ही हो सकते है यदि तीन भव होते है तो जघन्य स्थिति २२ सागर ही होते है। नाणता जघन्य ३ अवगाहना, आयु अनुबंध 3 अवगाहना, आयु अनुबंध नाणता ३ आयु अध्यवसाय, अनुबंध ३ ३ आयु अनुबंध mmm ३ भव ३ २ जघन्य २ २ २ UNA २ www २ जघन्य २ २ २ उत्कृष्ट २ www २ DDY 19 19 DD भव ५. भव २ २ २ उत्कृष्ट २ २ २ २ २ २ उत्कृष्ट २ २ अंतर्मुहूर्त २२ सागर २ अंतर्मुहूर्त २२ सागर २ अंतर्मुहूर्त ३३ सागर २ २ २ २० काय संवेध द्वार जघन्य काल २ अंतर्मुहूर्त २२ सागर २ अंतर्मुहूर्त २२ सागर २ अंतर्मुहूर्त ३३ सागर www. १] पृथक वर्ष २२ सागर १ पृष्थक वर्ष २२ सागर १ पृथक वर्ष ३३ सागर १ पृथक वर्ष २२ सागर [१] पृथक वर्ष २२ सागर १] पृथक वर्ष ३३ सागर ४ कोड पूर्व ६६ सागर ४ कोड पूर्व ६६ सागर ३ कोड पूर्व ६६ सागर १ कोड पूर्व २२ सागर १ कोड पूर्व २२ सागर १ कोड पूर्व ३३] सागर उत्कृष्ट काल ४ अंतर्मुहूर्त ६६ सागर ४ अंतर्मुहूर्त ६६ सागर ३] अंतर्मुहूर्स ६६ सागर ४] काय संवेध द्वार जघन्य काल कोड पूर्व १ अंतर्मुहूर्त १० हजार वर्ग १ अंतर्मुहूर्त १० हजार वर्ष १ अंतर्मुहूर्त पल्य नो अंसख भाग उत्कृष्ट काल १ कोड पूर्व ३३ सागर १] कोड पूर्व २२ सागर १ कोड पूर्व ३३ सागर १ कोड पूर्व १० हजार वर्ष १ कोड पूर्व १० हजार वर्ष १ कोड पूर्व पल्य नों असंख भाग १] पृथक वर्ष ३३ सागर १ पृथक वर्ष २२ सागर १ पृथक वर्ष ३३ सागर २० काय संवेध द्वार जघन्य काल १ अंतर्मुहूर्त १० हजार वर्ष १ अंतर्मुहूर्त १० हजार वर्ष १ अंतर्मुहूर्त पल्य नौ असंख भाग १] कोड पूर्व ३३ सागर १ कोड पूर्व २२ सागर १ कोड पूर्व ३३ सागर उत्कृष्ट काल १ कोड पूर्व पल्य न असंख भाग १ कोड पूर्व १० हजार वर्ष १ कोड पूर्व पल्य नो असंख भाग १ अंतर्मुहूर्त पल्य नों अरांख भाग १ अंतर्मुहूर्त १० हजार वर्ष १ अंतर्मुहूर्त पल्य नौ अरांख मार्ग १ कोड पूर्व पल्य नों असंख भाग १ कोड पूर्व १० हजार वर्ष पकोड पूर्व पल्य नों असं भाग गमा २२१ Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७ असुर कुमार में तिर्यंच युगलियो ऊपजै तेहनों यंत्र (२) गमा २० द्वार नी संख्या संघयण द्वार संठाण द्वार | लेश्या द्वार | दृष्टि द्वार ज्ञान-अज्ञान द्वार परिमाण द्वार उत्कृष्ट उपपात द्वार जघन्य उत्कृष्ट अवगाहना द्वार जघन्य १२.३ समधोरंस १ २ ओधिक नै ओधिक ओधिक नै जघन्य १० हजार वर्ष १० हजार वर्ष ३पल्य % हजार वर्ष संख्याता ऊपज ऊपजै १वज ऋषभ नाराच पृथक धनुष्य ६ गाउ ४ पहली १मिथ्या २नियमा ३ ओधिक नै उत्कृष्ट ३ पल्य ३पल्य ६ गाउ सभोरंस ४पहली रनियगा । १२.३ ऊपजै संख्याता ऊपजै पृथक घनुष्य ऋषम नाराथ। ४ १२.३ १वज पृथक समघोरस ५मिथ्या जघन्य नै ओधिक जघन्य जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट १० हजार वर्ष १० हजार वर्ष कोड पूर्व जाझो कोड पूर्व जाझौ हजार वर्ष कोड पूर्व जामो संख्याता ऊपजै हजार योजन ऋषभ नाराय ४ पहली र नियमा | ३ र समचोरंस उत्कृष्ट नै ओधिक १० हजार वर्ष उत्कृष्ट नै जघन्य |१० हजार वर्ष उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट ३ पल्य ३पल्य १० हजार वर्ष ३पल्य १२.३ ऊपजे संख्याता ऊपजे १वज ऋषभ नाराब पृथक घनुष्य गार ४पहली १गिथ्या २नियमा ६ १८ असुरकुमार में संख्याता वर्ष नां सन्नी तिर्यंच ऊपजै तेहनो यंत्र (३) गमा २०द्वार नी संख्या उपपात द्वार संघयण द्वार | संताप द्वार | लाया द्वार । दृष्टिद्वार। ज्ञात-अज्ञान द्वार संठाण द्वार लेश्या द्वार दृष्टिद्वार ज्ञान-अज्ञान द्वार योगद्वार परिमाण द्वार जघन्य उत्कृष्ट उपयोगा अवगाहनाद्वार जधन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट १ ओधिक ने ओधिक १० हजार वर्ष सागर जाडो ओधिक नै जघन्य १० हजार वर्ष १० हजार वर्ष ओधिक नै उत्कृष्ट १सागर जाझो|१सागर जाझो १२.३ ऊपजै संख या असंख ऊपजे अंगुलनों असंख हजार योजन ३ भजना भजना ३ भाग ४ जघन्य नै ओधिक १० हजार वर्ष | १सागर जाझो जघन्य नै जघन्य १० हजार वर्ष | १० हजार वर्ष जघन्य नै उत्कृष्ट १सागरजाझो १सागर जाझो १२.३ ऊपजे पृथक संखया असंख ऊपजै अंगुलनों असंख धनुष्य पहली मिथ्या नियमा ६ भाग हजार | उत्कृष्ट नै औधिक १० हजार वर्ष १सागर जाझो उत्कृष्ट नै जघन्य 1१० हजार वर्ष हजार वर्ष | उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट | १सागर जामो |१सागर जाझो १२३ ऊपजै सखया असंख ऊपजै अंगुलनों अगस भाग भजना १६ असुरकुमार में मनुष्य युगलियो ऊपजै तेहनो यंत्र (४) गमा ०द्वारनी संख्या उपपातद्वार सघयण द्वार संठाण द्वार | लेश्या द्वार दृष्टि द्वार योग द्वार | उपयोग परिमाण द्वार जघन्य उत्कृष्ट अवगाहना द्वार जघन्य उत्कृष्ट जघन्य ३गाउ १ २ ओधिक ओपिक ओधिक नैं जघन्य हजार वर्ष १० हजार वर्ष संख्याता ऊपजै + हजार वर्ष ऊपज सपनुष्य जाझी समचौरस पहली ऋषभ नाराथ मिथ्या नियमा ३ ओधिक नै उत्कृष्ट | पल्य "३पल्य |संख्याता ३ गाउ ३गाउ १ ऊपज १वज ऋषभ नाराब समचौरंस पहली ॐ |जघन्य नै ओधिक | जघन्य नै जघन्य | जघन्य नै उत्कृष्ट | १० हजार वर्ष १० हजार वर्ष १कोडपूर्व जाझो १कोडपूर्व जामो १० हजार वर्ष १कोडपूर्व जाझो १२.३ ऊपजै संख्याता ऊपजै ५ सौ धनुष्य जाझी ५मो धनुष्य जाझी २ नियमा समयौरस पहली गिथ्या नाराय | ३ गाउ ३गार उत्कृष्ट नै ओधिक | उत्कृष्ट जघन्य | ਦ ਜੈ ਹੋ हजार वर्ष १० हजार वर्ष ३पल्य ३पल्य हजार वर्ष ३पल्य १.२.३ रूपजै संख्याता ऊपजै अपम समचौरंस पहली मिथ्या नियमा नाराय २२२ भगवती-जोड़ (खण्ड-६) Jain Education Intemational Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ आयुद्वार নাজান कायसवेश द्वार अध्यवसाय द्वार अनुबंध द्वार असंख्याता | जपन्य जघन्य | उत्कृष्ट जघन्य | उत्कृष्ट जघन्य काल उत्कृष्ट काल कोड पूर्व | ३पल्य २स्त्री, पुरुष कोड पूर्व | ३ पल्य जाझो |१कोल पूर्व जा. १० हजार वर्ष ३पल्य ३पल्य । १ कोड पूर्व जा. १० हजार वर्ष ३पल्य १० हजार वर्ष पहली भला डा ३ पहली २त्री. ३पल्य | ३पल्य भला भंडा 3पल्य | ३ पल्य आधु, अनुबंध ३पल्य ३पल्य मला मूडा ३पहली २स्त्री. पुरुष कोड पूर्व कोड पूर्व जाझो कोड पूर्व | कोड पूर्व जाओ | जानो अवगाहना. आयु |१कोड पूर्व जा. १० हजार वर्ष १ कोड पूर्व जा०१कोड पूर्व जा, |१कोड पूर्व जा. १० हजार वर्ष १ कोड पूर्व जा० १० हजार वर्ष |१कोड पूर्व जा. १कोड पूर्व जाकोट पूर्व जा. १ कोडपूर्व जाझो २ स्त्री. |३पल्य| ३पल्य मला मुंडा |३पल्य ३पल्य २ ३ पहली पुरुष आयु अनुबंध ३पल्य १० हजार वर्ष ३ पल्य १० हजार वर्ष |पल्यपल्य ३पल्य ३पल्य ३ पल्य ०हजार वर्ष ३पल्य ३पल्य कषाय द्वार इन्द्रिय द्वार समुद्घातद्वार वेदनाद्वार नाणत्ता कायसवेधद्वार वेदद्वार ३ आयुद्वार जपन्य | उत्कृष्ट अध्यवसाय द्वार अनुबंध द्वार असंख्याता | जघन्य | उत्कृष्ट २ | जघन्य | उत्कृष्ट जघन्य काल उत्कृष्ट काल २ । ३ अंतर्मुहूर्त | कोहपूर्व मला मुंडा अंतर्मुहूर्त | कौडपूर्व १अंतर्मुहूर्त ० हजार वर्षकोडपूर्व ४ सागर जाझो १अंतर्मुहूर्त १० हजार वर्ष | ४ कोडपूर्व ४० हजार वर्ष १अंतर्मुहूर्त १ सागर जाझो ४ कोडपूर्व ४ सागर जाझो पहली | अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त | मला अंतर्मुहूर्त | अंतर्मुहूर्त | २ अब लेश्या, दृष्टि ज्ञान-अज्ञान, समु आयु. अध्य, अनु १अंतर्मुहूर्त १० हजार वर्ष ४ अंतर्मुहूर्त ४ सागर जामो अंतर्मुहूर्त १० हजार वर्ष ४ अंतर्मुहूर्त ४० हजार वर्ष १अंतर्मुहूर्त १ सागर जाझो ४ अंतर्मुहूर्त ४ सागर जामो पहली | २ ३ कोडपूर्व कोडपूर्व कोडपूर्व | कोडपूर्व मला मूंडा आय १कोडपूर्व १० हजार वर्ष ४कोडपूर्व ४ सागर जाझो १कोटपूर्व १० हजार वर्ष ४ कोडपूर्व ४० हजार वर्ष १कोडपूर्व १ सागर जाझोपकोडपूर्व ४ सागर जाझो अनुबंध १८ १२ काषाय द्वार इन्द्रिय द्वार सभुदरात द्वार | वेदना द्वार | वेदद्वार आयु द्वार १६ अनुबध द्वार जघन्य उत्कृष्ट अध्यवसाय द्वार असंख्याता नाणत्ता कायसवेध द्वार जघन्य काल उत्कृष्ट काल | जपन्या उत्कृष्ट उत्कृष्ट ३पहली | कोडपूर्व ३ भलाभूडा ३ २ २ स्त्री पुरुष कोडपूर्व जानो कोळपूर्व जा. १० हजारवर्ष १कोजपूर्व जा. १० हजारवर्ष ३पल्य ३ पल्य ३पल्य १० हजार वर्ष - ५ । ३ पहली । २ ३पल्य भलाभूडा | ३पल्य ३पल्य २ २ ३पल्य३पल्य २ स्त्री पुरुष पल्य३पल्य ३अवगाहना, आयु, अनुबंध ३पहली २ स्त्री - कोडपूर्व | कोडपूर्व | जाडो भला_डा | कोडपूर्व | कोडपूर्व जाझो ३अवगाहना. आयु, अनुबंध कोडपूर्व जा. १० हजारवर्ष | १ कोडपूर्व जा. १ कोडपूर्व जा. |१कोडपूर्व जा. १० हजारवर्ष १कोडपूर्व जा. १० हजार वर्ष १कोडपूर्व जा. १ कोडपूर्व जा. १ कोळपूर्व जा. १ कोडपूर्व जा. ५ ३पहली २ स्त्री ३पल्य |३पल्य भलाभूडा |३पल्य |३पल्य ३अवगाहना, आयु, अनुबंध ३ पल्य १० हजार वर्ष ३ पल्य% हजार वर्ष २ | पल्य ३ पल्य ३पल्यपल्य ३पल्य १० हजार वर्ष ३पल्य३पल्य गमा २२३ Jain Education Intemational Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० असुरकुमार में संख्याता वर्ष नां सन्नी मनुष्य ऊपजै तेहनो यंत्र (५) गमा २०द्वार नी संख्या उपपातद्वार संघयण द्वार अवगाहनाद्वार सठाणद्वार लेश्या द्वार ज्ञान-अज्ञान द्वार योग द्वार उपयोग द्वारा परिमाण द्वार उत्कृष्ट जघन्य जघन्य जघन्य उत्कृष्ट ५सी ओघिक नै ओधिक ओधिक जघन्य ओधिक नै उत्कृष्ट १० हजार वर्ष १० हजार वर्ष १सागर जाझो सागरजाझो १० हजार वर्ष सागर जाझो १२.३ ऊपज संख्याता ऊपज पृथक आंगुल भजना | भजना संख्याता जघन्य नै ओधिक जघन्य नै जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट १० हजार वर्ष | १सागर जाझो १० हजार वर्ष 1०हजार वर्ष १सागर जाझो १सागरजाझो १२.३ उपजै पृथक आंगुल पृथक आंगुल भजना भजना उत्कृष्ट नै ओधिक १० हजार वर्ष |सागर जाझो उत्कृष्ट नै जघन्य १० हजार वर्ष १० हजार वर्ष उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट | १सागर जाझो | १सागर जाझो १२.३ ऊपजे संख्याता ऊपजै ५सौ ५ सौ धनुष्य ४ भजना भजना नवनिकाय में ५ ठिकाना नां ऊपजै असुरवत् । २१ नव निकाय में असन्नी तिर्यंच पंचेंद्री ऊपजै तेहनों यंत्र (१) गमा २०द्वार नी संख्या संघयण द्वार अवगाहनाद्वार संठाणद्वार - लेश्या द्वार दृष्टि द्वार झान-अज्ञान द्वार | योग द्वार उपपात द्वार जघन्य | उत्कृष्ट परिमाण द्वार जघन्य | उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट । १२३ २वच | १हजार योजन छवटो । आंगुलनों असंख भाग हंडक पहली मिथ्या ओधिक नै ओधिक 10 हजार वर्व पत्य नों असंखभाग ओधिकर्न जपन्य १० हजार वर्ष १० हजार वर्ष ओधिक नै उत्कृष्ट पत्य नै | पल्यन असंख भाग असंख भाग नियमा या असंख ऊपने ૧૨૩. . संख ऊपजै | या असंख २क्य १हजार योजन ऐबटो । आंगुलनों असंख भाग हुंडक पहली मिथ्या जघन्य नै ओधिक 10 हजार वर्व | पल्य नौ असंख भाग जघन्य नै जघन्य 1% हजार वर्व | १० हजार वर्ष जघन्य नै उत्कृष्ट पन्य असंख माग असंख भाग नियमा ७ | उत्कृष्ट नै ओधिक उत्कृष्ट नै ओधिक उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट पल्य नों असंख भाग १० हजार वर्ष पल्यन असंख भाग | १२.३ ऊपज । संख | या असंस आंगुलनों असंख १हजार योजन २ नियमा २वब काय छेबटो हुंडक | पहली गिथ्या हजार वर्ष हजार वर्ष पल्यन असंख भाग भाग २२ नव निकाय में तिर्यंच युगलियो ऊपजै तेहनों यंत्र (२) गमा | २० द्वार नी संख्या उपपात द्वार परिमाण द्वार संघयण द्वार अवगाहना द्वार संठाण द्वार | लेश्या द्वार दृष्टि द्वार ज्ञान-अज्ञान द्वार योगद्वार जघन्य उत्कृष्ट | जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट | | ओधिक नै ओधिक | हजार वर्ष | देशोन २पल्य ओधिक जघन्य | हजार वर्ष % हजार वर्ष १२.३ सख्याता १वज अवम नाराय ऊपजै पृथक घनुष्य | गाऊ समचौरस २ नियमा पहली मिथ्या ओधिक नै उत्कृष्ट | देशोन २ पल्य | देशोन २ पल्य १२.३ संख्याता १वज ऊपजै पृथक घनुष्य ऋषभनाराच गाऊ समचौरस पहली मिथ्या नियमा १.२.३ संख्याता २ जघन्य नै ओधिक १० हजार वर्ष | कोडपूर्व जामो जघन्य नै जघन्य 10 हजार वर्ष | १० हजार वर्ष जघन्य नै उत्कृष्ट कोडपूर्व जाझो | कोडपूर्व जामो पृथक धनुष्य अषभ नाराब हजार धनुष्य जाझो समचौरंस पहली मिथ्या नियमा १२३ उत्कृष्ट नै ओधिक १० हजार वर्ष उत्कृष्ट नै जघन्य 1% हजार वर्ष उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट | देशोन २ पल्य देशोन २पल्य १० हजार वर्ष देशोनरपल्य सख्याता ऊप १वज श्रावन नाराच । पृथक धनुष्य गाऊ समचौरस पहली मिथ्या नियमा २२४ भगवती-जोड़ (खण्ड-६) Jain Education Intemational Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११ द्वार Y ४ संज्ञा द्वार - १२ 日 कषाय द्वार इन्द्रिय द्वार 4 ४ ४ १२ १३ काषाय द्वार इन्द्रिय द्वार ४ ५ * ار ४ ४ كم ہو ज ५ ५ ५. १४ 94 समुद्घात द्वार वंदनाद्वार २ ६ केवल वर्जी ५ १४ १५ समुद्धात द्वार वेदना द्वार 19 ३] पहली १३ १५ कषाय द्वार इन्द्रिय द्वार समुद्घात द्वार वेदना द्वार ५. २ ३] पहली ३] पहली ७ ३ पहली ३] पहली ३] पहली ३] पहली २ २ २ २ Mod १६ दर 3 १६ वेद द्वार ३ नपुराक १] नपुंसक १. नपुसक १६ वेद द्वार 3 २ स्त्री. पुरुष २ स्त्री पुरुष २ स्त्री पुरुष ३ स्त्री. पुरुष आयु द्वार उत्कृष्ट जघन्य पृथक कोडपूर्ण मास पृथक मास कोडपूर्व कोडपूर्व पृथक मास आयु द्वार जघन्य उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त कोडपूर्व अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त कोडपूर्व कोडपूर्व १७ आयु द्वार उत्कृष्ट कोडपूर्व ३ पल्य जानो जघन्य २ पल्य देसू ३ पल्य कोडपूर्व कोडपूर्व जाझी जाझो ३ एल्य ३ पल्य १८ अध्यवसाय द्वारा! असंख्याता भलाभूहा भलाभूङ भलाडा अध्यवसाय द्वार असंख्याता भला मूंडा भला १८ अध्यवसाय द्वार असंख्याता मला मूंढा मला भूडा भला मूंडा डा भला भूडा 蟹 अनुबंध द्वार जघन्य उत्कृष्ट कोडपूर्व पृथ्थक मास पृथक् पृथक मास मास कोडपूर्व कोडपूर्व १६ अनुबंध द्वार जघन्य उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त फोडपूर्व अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त कोडपूर्व कोहपूर्व 我 अनुबंध द्वार उत्कृष्ट जघन्य कोडपूर्व ३ पल्य जाझो २ पल्य देण कोतपूर्व जाझो ३ पल्य ३ पल्य कोडपूर्व जाझो ३ पल्य ५ अव०, ज्ञान, समु० आयु अनुबंध 3 अव आयु अनुबंध नाणत्ता 2 आयु अध्य० अनुबंध ३ आयु अध्य अनुबंध नाणता o २ आयु. अनु. 3 अवगाहना आयु अनु , आयु अनुबंध जघन्य २ 7 २ ३ 2 www. ~~~ ~~~ २ भव २ २ २ २ २ उत्कृष्ट भव जघन्य उत्कृष्ट २ २ २ C भव ८ ८ C 5 ८ ~~~ ~~~ २ २ www जघन्य उत्कृष्ट २ २ २ २ 227 र २ काय द्वार जघन्य काल १] पृथकमास १० हजार वर्ष १ पृथकमास १० हजार वर्ष १ पृथकमास १ सागर जाझो e १] पृथकमास १० हजार वर्ष १] पृथकमास १० हजार वर्ष १ पृथकमास १ सागर जाझो १] कोडपूर्व १० हजार वर्ष १] कोडपूर्व १० हजार वर्ष १ कोडपूर्व १ सागर जानो जघन्य काल १ अंतर्मुहूर्त १० हजार वर्ष १] अंतर्मुहूर्त १० हजार वर्ष १ अंत पय न असख भाग १ अंतर्मुहूर्त १० हजार वर्ष १] अंतर्मुहूर्त १० हजार वर्ष १ अंतर्ग पल्य नो अरखि भाग जघन्य काल २० कायसंवेध द्वार उत्कृष्ट काल ४ कोडपूर्व ४ सागर जाझो ४ कोडपूर्व ४० हजार वर्ष ४ कोडपूर्व ४ सागर जाझो १ कोडपूर्व १० हजार वर्ष १ कोडपूर्व १० हजार वर्ष १ को पूर्व पल्य नो असंख भाग १ कोडपूर्व जा. १० हजार वर्ष १ कोडपूर्व जा. १० हजार वर्ष ४ पृथक्मास ४ सागर जाझो ४ पृथक्मारा ४० हजार वर्ष ४ पृथकुमास ४ सागर जाझो ३] पल्य १० हजार वर्ष ३ पल्य १० हजार वर्ष ३ पल्य २ पल्य देण ४] फोडपूर्व ४ सागर जाझो ४ कोडपूर्व ४० हजार वर्ष ४] कोडपूर्व ४ सागर जाझो १] कोडपूर्व जा. १० हजार वर्ष १ कोडपूर्व जा. १० हजार वर्ष १ कोडपूर्व जा. १ कोडपूर्व जा. उत्कृष्ट काल १ कोडपूर्व पल्य नौ असंख भाग १ कोडपूर्व १० हजार वर्ष १ कोडपूर्व पल्य न अख भाग २० कायसंवेध द्वार उत्कृष्ट काल १ अंतर्मु पल्य न असंख भाग १ अंतर्मुहूर्त १० हजार वर्ष १ अंतर्मु पल्य असंख भाग १ कोडपूर्व पल्य नों असंख भाग १] कोडपूर्व १० हजार वर्ष १ कोडपूर्व पल्य नों अरांख भाग २ पल्य देसूण २ पल्य देसूण ३ पल्य २ पल्ध देसूण ३ पल्य २ पल्य देसूण ३ पल्य १० हजार वर्ष १ कोडपूर्व जा. १ कोडपूर्व जा. १ कोडपूर्व जा. १० हजार वर्ष १ कोटपूर्व जा. १ कोडपूर्व जा. ३ पल्य २ पल्य देसून ३. पल्य १० हजार वर्ष ३ पल्य २ पला देसूण קי २२५ Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३ नव निकाय में संख्याता वर्ष नों सन्नी तिर्यंच ऊपजै तेहनों यंत्र (३) गना २०द्वार नी संख्या उपपात द्वार संघयण द्वार संठाण द्वार लेश्या द्वार दष्टिदार ज्ञान-अज्ञान द्वार योगद्वार | परिमाण द्वार जधन्य उत्कृष्ट अवगाहना द्वार जघन्य जघन्य | उत्कृष्ट | ओधिक नै औधिक | १० हजार वर्ष देसूण २पल्य ओधिक नैं जघन्य |10 हजार वर्ष | १० हजार वर्ष ओधिक नै उत्कृष्ट | देसूण २ पल्य | देसूण २ पल्य १२.३ ऊपजे संख्याता या असंख्याता ऊपजे आंगुलनों असंख हजार योजन भजना भजना भाग २ जघन्य अधिक १० हजार वर्ष | देसूण २पल्य जधन्य नै जघन्य १० हजार वर्ष १० हजार वर्ष जघन्य नै उत्कृष्ट देसूण २पल्य देशूण २पल्य १२.३ ऊपजै संख्याता या असंख्याता आंगुलनों असंख पृथक धनुष्य निश्या नियमा उपजे उत्कृष्ट नै ओधिक १० हजार वर्षदेसूण२पल्य उत्कृष्ट नै जघन्य १० हजार वर्ष १० हजार वर्ष उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट | देसूण २ पत्य | देसूण २ पल्य १२.३ ऊपजै संख्याता या असंख्याता ऊपजे आंगुलनों असंख भाग हजार योजन भजना भजना २४ नव निकाय में मनुष्य युगलियो ऊपजै तेहनों यंत्र (४) गमा २० द्वार नी संख्या उपपातधार परिमाणद्वार संघयण द्वार अनगाहनाद्वार संठाणहार लेण्याद्वार । दृष्टिद्वार ज्ञान अज्ञान द्वार योग द्वार | उपयोग द्वारा जघन्य उत्कृष्ट जघन्य १ १.२.३ गाउ ओधिक नै ओधिक ओधिक जघन्य १० हजार वर्ष १० हजार वर्ष देसूण २ पल्य १० हजार वर्ष | संख्याता | १वज जपम नाराय ५सौधनुष्य जाझी समचउरंस महली निगा ओधिक नै उत्कृष्ट | देसूण २ पल्प | देसूण २पल्य देगूण २ गाउ ३गाउ सध्याता । १वज ऋषभ नाराय रागयरस गिध्या नियमा १२.३ संख्याता जघन्य नै ओधिक जघन्य नै जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट १० हजार वर्ष १० हजार वर्ष कोड पूर्व जामो कोड पूर्व जामो १० हजार वर्ष कोड पूर्व जाझो १वज । | ५ सी धनुष्य । घम नाराच जाझी सो धनुष्य जाझी १ समवतरस पहली गिल्या उत्कृष्ट नैं ओधिक संख्याता का ३गाउ ३माउ १० हजार वर्ष १० हजार वर्ष देसूण २पल्य देसूण २पल्या 10 हजार वर्ग देसूण २पल्य १२.३ ऊपजे ऋाण नाराय समचरम पहली मिथ्या नियमा ६ उत्कृष्ट नैं उत्कृष्ट २५ नव निकाय में संख्याता वर्ष नां सन्नी मनुष्य ऊपजै तेहनों यंत्र (५) गमा २०द्वार नी संख्या उपपात द्वार परिमाण द्वार संश्यण द्वार अवगाहना पार संठाणद्वार दृष्टिहार ज्ञान-अज्ञान द्वार योगद्वार जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट जघन्य । १ २ ३ ओधिकनै ओधिक ओधिक नै जघन्य ओधिक नै उत्कृष्ट १० हजार वर्ष देसूण २ पल्य 110 हजार वर्ष १० हजार वर्ष देसूण २ पल्या देसूण २पल्य १२.३ ऊपजै संख्याता ऊपजै पृथक आगुल धनुष्य भजना भजना संख्याता जघन्य नै ओधिक जघन्य नै जघन्य ६ जघन्य नै उत्कृष्ट १० हजार वर्ष १० हजार वर्ष देसूण २पल्य देसूण २ पल्य १० हजार वर्ग देसूग २ पल्य १२३ ऊपजै पृथक आंगुल थक आंगुल भजना १२.३ ७ उत्कृष्ट नै ओधिक उत्कृष्ट नै जघन्य ६ उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट १० हजार वर्ष १० हजार वर्ष | देसूण २ पल्य देसूण २पल्य ५० हजार दर्द देसूण २पल्य संख्याता ऊपजे ५सौ धनुष्य ऊपरी धनुष्य भजना २२६ भगवती-जोड (खण्ड-६) Jain Education Intemational Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ १८ १६ अनुबधद्वार संज्ञाहर कषायद्वार | इन्द्रिय द्वार समुदघात द्वार| वेदना द्वार देवदार आयुद्वार आध्यवसाय द्वार नाणत्ता कायसंवैध द्वार जघन्य काल जघन्य उत्कृष्ट असंख्याता जघन्य । उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट उत्कृष्ट काल ५ पहली | २ - ३ अंतर्मुहूर्त | कोडपूर्व भला अंतर्मुहूर्त | कोडपूर्व १अंतहत १० हजार वर्ष | ४ कोडपूर्वपल्य देशण १अंतर्मुहूर्त १० हजार वर्ष | ४ कोडपूर्व ४० हजार वर्ष १अंतर्मुहुर्तरपल्य देसूण ४ कोडपूर्वपल्य देसूण ३पहली ३ अंतर्मुहूत | अंतर्मुहूर्त भला अंतर्मुहूर्त | अंतर्मुहूर्त | भव. लेश्या, दृष्टि झान-अज्ञान समु. आयु. अध्य. अनु. १अंतर्मुहूर्त १० हजार वर्ष | १अंतर्मुहूर्त १० हजार वर्ग अंतर्मुहूर्त र पल्य देसूण अंतर्ग,पल्य देशण ४ अंतर्मु. ४० हजार वर्ष ४ अंतर्मु. ८ पल्य देशण ५पहली | | ३ कोठपूर्व | कोडपूर्व भला भूटा कोडपूर्व | कोडपूर्व आयु अनुबंध १ कोडपूर्व १० हजार वर्ष ५कोडपूर्व ५० हजार वर्ष १ कोडपूर्व २ पल्प देराण ४ कोडपूर्व र पल्य देसूण ४ कोडपूर्व ४० हजार वर्ष | ४ कोडपूर्व ८ पल्य देसूण ४ | १५ १६ समुदघात द्वार | वेदना द्वार | वेद द्वार | कद्वार कषाय द्वार | इन्द्रिय द्वार अनुध द्वार नाणता आयुद्वार अध्यवसाय द्वार जघन्य | उत्कृष्ट असंख्याता कायरावेध द्वार जघन्य काल उत्कृष्ट काल जधन्य । उत्कृष्ट जघन्य उकृष्ट ३पहली २स्त्री ३ पल्प ३पल्य कोहपूर्व जानी भला भंडा कोडपूर्व जाझी २ २ कोडपूर्व जा. १० हजार वर्ष कोडपूर्व जा० १० हजार वर्ग ३पल्यपल्य देसूण ३पल्य २० हजार वर्ष | पहली २ माल भल्य देगणपत्य देगण २ स्त्री पुरुष उपयरपला देसूण देसूण २पत्ता ३पला देसूण उपत्य | ३अवगाहना आयु.अनुबंध रस्सी भला कोडपूर्व जाझी कोडपूर्व जाझी कोडपूर्व | कोडपूर्व जाझौ | जाझी ३अवगाहना, आयु, अनुबंध पुरुष |१कोडपूर्व वा १० हजार वर्ष १ कोडपूर्व जा०१ कोडपूर्व गाव १कोडपूर्व जा० १० हजार वर्ष कोडपूर्व जा० १० हजार वर्ष १ कोडपूर्व जा० १ कोडपूर्व जा० | १ कोळपूर्व जा० १ कोडपूर्व जा० ५ । ३पहली २स्त्री | ३पल्यपल्य उपल्य ३अवगाहना. आयु, अनुबधा ३पल्य १० हजारवर्ग ३पल्याहार वर्ग ३पल्य र पत्य देराण ३पल्यपल्य देसूण ३ पल्य १० हजार वर्ष |३पल्य२पल्य देगूण १५ वेदनाद्वार १७ आयु द्वार कवाय द्वार इन्द्रिय दार समुद्घात द्वार १८ अध्यवसाय द्वार वेदद्वार अनुबंधद्वार नाणत्ता कायसव द्वार जघन्य उत्कृष्ट असंख्याता जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट जघन्य काल उत्कृष्ट काल ६पहली कोड पूर्व | कोड पूर्व पृथक मास अलावा पृथक गास १गृथक मास हजार वर्ष ४ कोड पूर्वपल्य देसूण १पृथक मास हजार वर्ष ४ कोड पूर्व ४० हजार वर्ष १पृथक मास२पल्य देसूण ४ कोड पूर्वपल्या देसूण पृथक ५ पहली पृथक मास पृथक । मास पृथक मास अव., ज्ञान, समुन आयु० अनु १पृथक मास १० हजार वर्ग १पृथक पस हजार वर्ष पृथक मास२पन्य देसूण ४ पथक मास ..पल्या देशुण पृथक नास ४० हजार वर्ष v पृथक मास पल्प देशप ३ कोड पूर्व | कोड पूर्व मला भूदा कोड पूर्व | कोड पूर्व अव० आयुग १कौद्ध पूर्व फ० हजार वर्ष १कोड पूर्व १० हजार वर्ष १कोड पूर्व र पल्य देसूण ४कोड पूर्वपल्य देसूण ४ कोड पूर्व ४० हजार वर्ष ४ कोड पूर्व : पल्य देश गमा २२७ Jain Education Intemational Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वी में २६ ठिकाणा नां ऊपजे पांच स्थावर ५, तीन विकलेंदिय ८. असन्नी तिर्यच पदिय ६, सन्नी तिथंच पदिय १०, सन्नी मनुष्य ११, असन्नी मनुष्य १२, दश भवनपति २२, व्यंतर २३. ज्योतिषी २४. गुधर्म २५. ईशान २६ । २६ पृथ्वीकाय में पृथ्वीकाय ऊपजै तेहनों यंत्र (१) गमा २० द्वार नी संख्या परिमाण द्वार संघयण द्वार अवगाहना द्वार संठाणद्वार | लेश्या द्वार दृष्टिद्वार जान-अज्ञानद्वार योग द्वार उपयोग द्वार उपपातद्वार जघन्य । उत्कृष्ट | जघन्य रत्कृष्ट जघन्य १ वटो मसूर चंद्र ओधिक नै ओधिक ओधिक नै जघन्य ओधिक नै उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त | २२ हजार वर्ष | समय समय असंख्य ऊपजे 14आर्मुहूर्त | अंतर्मुहूर्त समय समय असंख्य ऊपजे | २२ हजार वर्ष २२ हजार वर्ष १२.३ ऊपजै सय या अराख ऊपज आंगुल नों असंख्य पहरी या नियमा ३ १छेवटो आंगुल नों असंख्य मसूर चंद्र २ जघन्य नै ओधिक जधन्यनजधन्य जघन्य नै उत्कृष्ट १अंतमुहूर्त | २२ हजार वर्ष समय समय असंख्य ऊपज १अंतर्मुहूर्त |अंतर्मुहूर्त | समय समय असंख्य ऊपज २२ हजार वर्ष २२ हजार वर्ष | १२.३ ऊपजै संख या असंख ऊपज पहली मिथ्या नियमा ६ १ वटो | १२.३ ऊपजै उत्कृष्ट नै ओधिक अंतर्मुहूर्त | २२ हजार वर्ष उत्कृष्ट नै जघन्य |अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट |२हजार वर्ष २२ हजार वर्ष मसूर चंद्र सखया असंख ऊपजे आगुल नो असख्य भाग पहली गिथ्या नियमा २७ पृथ्वीकाय में अपकाय ऊपजै तेहनों यंत्र (२) गमा २० द्वार नी सख्या उपपात द्वार परिमाण द्वार सघयणद्वार अवगाहना द्वार संठाण द्वार लेश्या द्वार दृष्टिद्वार झान-अज्ञान द्वार योगद्वार उपयोतर उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट जघन्य अंगुल नी असख १ २ ३ ओधिक नै ओधिक ओधिक नै जघन्य ओधिकनै उनष्ट अंतर्मुहूर्त | २हजार वर्ष समय समय अरांख ऊपजे अंतर्गत | ५अंगाल समय समय जसख ऊपने हजार वर्ष | २ हजार वर्ष | १२.३ऊपजै रांख या अरांख उपजे छेदटो विबुक पानी ना परोटा भाग पहली २ नियमा मिया ४ जपन्य नै ओधिक अंगुल नीरांख अंतर्गहरा | असमुहत | २२ हजार वर्ग । २२हजार वर्ष समय समय अराठा ऊपणे अंतर्मुहूर्त । रागय रामय असंख्य रुपारी २२ हजार वर्ग | १२.३ ऊपजे रांस या असंख ऊपने चिबुक-पानी नां परमोटा पहली निया ६ जघन्य नै उत्कृष्ट सखा बटो उत्कृष्ट नै ओधिक अंतर्गहत उत्कृष्ट नै जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट उत्कृष्ट | २२ हजार वर्ग २हजार वर्ग अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्म १२.३ रुप अगुल नौ असंख भाग थिबुक-पानी नां परपोटा पहली नियमा असरा रुपये २८ पृथ्वीकाय में तेउकाय ऊपजै तेहनों यंत्र (३) गमा २०द्वार नी संख्या उपपात द्वार संघयण द्वार अवगाहना द्वार संठाण द्वार लेण्या द्वार | दृष्टि द्वार ज्ञान-अज्ञान द्वार योग द्वार | उपयोग द्वारा परिमाण द्वार जघन्य उत्कृष्ट जघन्य । उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट ओधिक ने ओधिक अंतर्मुहूर्त | २२ हजार वर्ष समय समय असंख ऊपजे ओधिक नै जमन्य | अंतर्मुहूर्त १अंतर्मुहूर्त समय समय असंख ऊपजै ओधिक नै उत्कृष्ट | २२ हजार वर्ष । २२ हजार वर्ष | १.२.३ ऊपजै संख या असंख ऊपजे आंगुलनों असंख भाग १छेवटो सूचीकलाप पहली नियमा काया 3 आंगुलनों अराख ४ ५ ६ जघन्य नै ओधिक, जघन्य नै जघन्य जप-य- उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त | १अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष | २२हजार वर्ग रामय समय असख्य रूपजे | अंतर्मुहूर्त समय रागय पसरण्य ऊपजे २२ हजार वर्ष १.२.३ऊपजै संख या असंखऊपजे दटो सूचीकलाप । पहली निथ्या निथगा काया १२.३ आंगुलना असंख उत्कृष्ट नै ओपिक उत्कृष्ट नै जघन्य उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट तमुहर्त अपमंडूर्त सहजार वर्ष २२ हजार वर्ष अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष संखया असंख ऊपजे १छेन्टो राशीकलाप । पहजी नियमा ६ २२८ भगवती-जोड (बण्ड-६) Jain Education Intemational Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 99 संज्ञा द्वार 99 हा द्वार T रंगद्वार Y १२ कषाय द्वार ४. ॐ ॐ १२ कषाय द्वार ४ * कषाय द्वार ४ 6 x 43 इन्द्रिय द्वार ५. फर्श 9 फर्श - फर्श १३ इन्द्रिय द्वार ५ फर्श १ फर्श फर्श १३ इन्द्रिय द्वार ५ " फर्श 1 फर्श 3 फर्श 상 समुद्घात द्वार ७ ३ पहली पहली ३ पहली समुद्धात द्वार 3 पहली पहली पहली १४ समुद्धात द्वार 3 पहली पहली 3 पहली १५ वेदना द्वार २ २ 94 वेदना द्वार २ 생 वेदनाद्वार १६ वेद द्वार ३ जघन्य उत्कृष्ट १ नपुंसक अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष १. नपुंसक अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त १ नपुंसक २२ हजार २२ हजार वर्ष वर्ष १६ वेद द्वार ३ 99 आयु द्वार 9 नपुंसक नपुंसक १ नपुंसक अंतर्मुहूर्त हजार वर्ष 95 वेद द्वार 3 99 आयु द्वार उत्कृष्ट जघन्य आहूर्त हजार वर्ष जघन्य 949 आयु द्वार 9 नपुंसक अंतर्मुहूर्त 7 नपुंसक अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहुर्त 9 ३दिन नापुराक रात 5 हजार वर्ष उत्कृष्ट ३ दिन तत कार्मुहूर्त ३ दिन 371 अध्यवसाय द्वार असंख्याता मूंडा भला मूंडा अंतर्मुहूर्त मला भुंडा भूटा मला मूंडा १८ अध्यवसाय द्वार असंख्याता st अनुबंध द्वार १६. १८ अध्यवसाय द्वार अनुबंध द्वार असख्याता जघन्य उत्कृष्ट भरला जा जघन्य 19 भला मूंडा अंतर्मुहूर्त हजार वर्ष भूला भला भूंढा अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त २२ हजार २२ हजार वर्ष वर्ष उत्कृष्ट २२ हजार वर्ष हजार वर्ष जघन्य अंतर्मुहूर्त H अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त लेश्या आयु आय अनु १६ अनुबंध द्वार उत्कृष्ट उदिन 109 ३ दिन रात हजार वर्ष जाणता लेश्या आयु अध्य० अनु २ आयु० अनुबंध नाणता २ आयु० अनु० नाणता अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त आयु अध्य अनुर ३ दिन २ राव आगुण अनु० जघन्य उत्कृष्ट ~~ ~~~ २ २ 2 २ २ २ www ~~~ २ ~~~ जघन्य उत्कृष्ट असंख असंख 2 २ www 2 ਮਨ भव भय असंख असंख असंख असंख जघन्य उत्कृष्ट 3.3 २ अराख L असंख अशंख ६ 3 असंख L ५ L L अराख अख २० कायसंध द्वार जघन्य काल १ अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मुहूर्त 9 अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त १] अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष १ अंतर्मुहूर्त १ अंतर्ग० १ अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मु १] अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष २२ हजार वर्ष १ अंतर्मु २२ हजार वर्ष १ अंतर्मु २२ हजार वर्ष २२ हजारवर्ष जघन्य काल १ अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मु १ अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मु १ अंगुहूर्त २२ हजार वर्ष २० कामसंवेध द्वार १ अंतर्मुहूर्त अंतर्ग १ अंतर्मुहूर्त १ अंतर्ग अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष ७ हजार वर्ष १ अंतर्भु ७ हजार वर्ष १ अंतर्ग ७ हजार वर्ष २२ हजार वर्ष अंतर्मुहूर्त अंतर्मु १] अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मु अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष उत्कृष्ट काल अरांख काल असखंकाल अरांख का अरखकाल ८८ हजार वर्ष ६८ हजार वर्ष ३ दिन १ अंतर्मु ३ दिन रात ३ दिन रात २२ हजार वर्ष अखकाल असंखकाल असंखकल अराखकाल ४ अंतर्मुहूर्त ८८ हजार वर्ष कायसवेध द्वार जघन्य काल १ अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मु 4. अंतर्मुहूर्त 9 अंतर्मु [4] अंगुहूर्त २२ हजार वर्ष ८८ हजार वर्ष ८८ हजार वर्ष ८८ हजार वर्ष ४ अंतर्मु ८८ हजार वर्ष ६६ हजार वर्ष उत्कृष्ट काल असंख काल असंख काल अख काल अरांख काल २८ हजार वर्ष ८८ हजार वर्ष असंखकाल असंख काल असंखकाल असंख काल ४ अंतर्मुहूर्त ८८ हजार वर्ष २८ हजार वर्ष ८८ हजार वर्ष २८ हजार वर्ष ४ अंतर्ग २८ हजार वर्ष ८ हजार वर्ष उत्कृष्ट काल असंख काल अरांख काल असंख काल असंख काल १२ दिन रात ८ हजार वर्ष असंखकाल अराख काल अकाल अकाल अंतर्मुहूर्त ८८ हजार वर्ष १२ दिन रात ८ हजार वर्ष १२ दिन रात ४ अंतर्ग १२ दिन रात ८ हजार वर्ष गमा २२६ Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३० २६ पृथ्वीकाय में वाउकाय ऊपजै तेहनों यंत्र (४) गमा २० द्वार नी संख्या १ २ ३ ५ ६ १ 2 3 गमा २० द्वार भी संख्या ४ ५ ६ ओधिक नै अधिक ओधिक नै जघन्य ओधिक नै उत्कृष्ट Suw जघन्य नै अधिक जघन्य में जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट ६ उत्कृष्ट नै ओधिक उत्कृष्ट नै जघन्य उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट अधिक नै ओचिक ओधिक मैं जघन्य ओधिक नै उत्कृष्ट जघन्य नै ओधिक जघन्य नै जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट उत्कृष्ट नै ओधिक उत्कृष्ट में जघन्य उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट १ र ३० पृथ्वीकाय में वनस्पतिकाय ऊपजै तेहनों यंत्र (५) ४ ५ जघन्य १] अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष ६ 19 १ अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष १ अंतर्मुहूर्त ५] अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष गमः २० द्वार नी संख्या उपपात द्वार जघन्य १ अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष १ अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष १ अंतर्मुहूर्त 9 अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष उत्कृष्ट नै ओटिक 7% उत्कृष्ट नै जपन्य ६ उत्कृष्ट में उत्कृष्ट उत्कृष्ट २२ हजार वर्ष "अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष उपपात द्वार २२ हजार वर्ष अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष जघन्य २२ हजार वर्ष 9 अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष भगवतो जोड (खण्ड-६) ओधिक नै ओधिक १ अंतर्मुहूर्त ओधिक नै जधन्य १ अंतर्मुहूर्त अधिक नै उत्कृष्ट २२ हजार वर्ष जघन्य नै आधिक १] अंतर्मुहूर्त जघन्य जघन्य १] अंतर्मुहूर्त जय ने उत्कृष्ट २२ हजार वर्ष उत्कृष्ट १ अंतर्मुहूर्त अतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष २२ हजार वर्ष १ अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष २२ हजार वर्ष १ अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष ३१ पृथ्वीका में बेइंद्री ऊपजै तेहनों यंत्र (६) उपपात द्वार २२ हजार वर्ष अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष जघन्य समय समय असख ऊपजै समय समय अरांख ऊपजै १२.३ ऊपजे संख यासख ऊपजै १२.३ ऊपजे परिमाण द्वार समय समय असंख ऊपजै समय समय अख ऊपजै १२.३ ऊपजै संख या असंख ऊपजै उत्कृष्ट २२ हजार वर्ष १] अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष समय समय समय समय १२.३ ऊपजे २२ हजार वर्ष १ अंतर्मुहूर्त २२ हजार २२ हजार वर्ष १ अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष जघन्य २ परिमाण द्वार उत्कृष्ट समय समय अरांख ऊपजे समय समय अपने १२३ ऊपजे या अपने ૧૨૩ ऊपजे उत्कृष्ट राख या असंख उपजे असख ऊपजे असंख ऊपजे जघन्य १२.३. ऊपजै १२.३. ऊपजी २ परिमाण द्वार १.२३. ऊपजै या अरांस ऊपजे संखया असंय ऊपजी उत्कृष्ट सख या असंख ऊपजै या जसल ऊपजै सधयण द्वार ६ राख असंख रूपजे छवटो 9 छेवटी छेवटो संघयण द्वार ६ १ छेवटो १ छेटो 4 छेक्टो १ छेवटी १ छेटो 9 घेतले ४ अवगाहना द्वार उत्कृष्ट जघन्य 3 संघयण द्वार ६ अंगुल न असंख भाग अंगुल नों असंस भाग अंगुल न असंख भाग जपन्य अगुलनों अराख अगुलनों अख भाग भाग ४ अवगाहना द्वार उत्कृष्ट अंगुल अस हजार योजन नाना ठाण जाओ भाग अवगाहना द्वार उत्कृष्ट १२ योजन जघन्य संठाण द्वार ६ अंगुल न असंख भाग अगल जख नाग अगुल अगर भाग अंगुलनों अराख हजार योजन नाना संठाण जानी मागा पताका पताका १२ योगान पताका अंगुली भाग ५ सठाण द्वार नाना संजाण ६ ५ संठाण द्वार १ हुंडक ६ लेश्या द्वार ६ 3 डुडक 3 पहली ३ पहली 3 पहली ६ लेश्या द्वार ६ ४ पहली 3 पहली ४ पहली लेश्या द्वार ६ पहली 3 ३९ पहली 19 दृष्टि द्वार 9 मिध्या मिथ्या मिथ्या दृष्टि द्वार ३ 9 मिथ्या 4 मिथ्या मिथ्या 19 दृष्टि द्वार 3 २ सम्यक Fran १ २ सभ्यत निष्या ज्ञान-अज्ञान द्वार ३ ५ ५. २ नियमा ज्ञान-अज्ञान द्वार ३ निगा २ नियमा नियमा २ नियमा २ नियमा ज्ञान-अज्ञान द्वार ३ 2 नियमा २ नियमा マ नियमा निगमा 2 नियमा योग द्वार 3 9 काया 3 काथ १ काया योग द्वार ३ १ कार्य काय ३ ६ योग द्वार वाय काय 90 उपयोग द्वार २ व काय उपयोग १ उपयोग Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११ संज्ञाद्वार 49 संज्ञा द्वार * १२ कषाय द्वार ४ ४ 30 ४ * * ४ कषाय द्वार ४ १२ १३ कषाय द्वार इन्द्रिय द्वार x १३ इन्द्रिय द्वार ५ 9 फर्श - फर्श फर्श ५ - फर्म फर्श १ फर्श २ फर्श रस १३ इन्द्रिय द्वार ५ ལྦསྨཱ༦།ལླŠ༨ T 94 समुद्घात द्वारा वेदना द्वार ४ पहली 9 ३] पहली ४. पहली समुदधात द्वार ७ पहली 8 3 पहली 3 पहली 3 पहली 3 पहली 3 पहली १४ १५. समुद्धात द्वार वेदना द्वार 2 ર २ qu वेदना द्वार २ २ २ २ ૨ २ वेद द्वार ३ नपुंसक १ नपुंसक 9 नपुंसक 95 वेद द्वार 3 9 नपुंसक 9 नपुराक १६ वेद द्वार 3 नपुंसक १ अंतर्मुहूर्त नपुंसक 99 आयु द्वार जघन्य उत्कृष्ट १ नपुराक अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त ३ हजार वर्ष अंतर्मुहूर्त qly आयु द्वार जपन्य १० हजार वर्ष ३ हजार वर्ष जघन्य अंतर्मुहूर्त ३ हजार वर्ष १ नपुंसक १२ वर्ष उत्कृष्ट १० हजार वर्ष अंतर्मुहूर्त 919 आयु द्वार उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त १२ वर्ष अंतर्मुहुर्त अंतर्मुहूर्त १२ १० हजार वर्ष दर्श E अध्यवसाय द्वार असंख्याता भला भूंडा ड मला डा अध्यवसाय द्वार असख्याता भूटा मला मूंडा १८. अध्यवसाय द्वार असंख्याता मला मूड जघन्य भला मूंडा १६ अनुबंध द्वार अंतर्मुहूर्त नलग भूडा १ अंतर्मुहूर्त ३ हजार वर्ग जधन्य अंतर्मुहूर्त १० हजार वर्ष जघन्य उत्कृष्ट १६ अनुबंध द्वार उत्कृष्ट ३ हजार वर्ष अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त समु० आयु २ १२ वर्ष ३ हजार वर्ष १० हजार वर्ष १६ अनुबंध द्वार उत्कृष्ट १० हजार वर्ष १२ अंतर्मुहूर्त वर्ष भूटा अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त नाणता ५० अंतर्मुहूर्त लेश्या आयु आप अनु वर्ष • अध्य, अनु २ आयु० अनु० a 2 आयु अनुवध नाणता २ आयु० अनु० जघन्य उत्कृष्ट अव दृष्टि ज्ञान लोग आयु अग अनु २ असंख 2 असंख ~~~~~~ २ २ २ २ भव र ₹ २ २ २ भव जघन्य उत्कृष्ट ~~~ २ २ ind जघन्य ? २ असंख असंख २ २ www ५ असंख अराख द अराख असंख ५ ८ ६ भव उत्कृष्ट राख संख राख संख C २० कायसंवेध द्वार जघन्य काल १ अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मु १ अंतर्मुहूर्त १ अंतर्ग अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष १ अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मु १] अंतर्मुहूर्त १ अंतर्ग १ अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष ३ हजार वर्ष १ अंतर्मु ३ हजार वर्ष १ अंतर्मु ३ हजार वर्ष २२ हजार वर्ष जपन्य काल 7. अंतर्मुहूर्त अंतर्ग अंतर्मुहूर्त अंतर्मु मुहूर्त २२ हजार वर्ष २० कायवेध द्वार १० हजार वर्षअंतर्ग ५० हजार वर्ष १ अंतर्गु १० हजार वर्ष २२ हजार वर्ष उत्कृष्ट काल असंखकाल असंख काल असंखकाल असंख काल १२ हजार वर्ष ८८ हजार वर्ष असंखकाल असंख काल असंखकाल असंख काल ४ अंतर्मुहूर्त ८६ हजार वर्ष 7 अंतर्मुहूर्त अंतर्ग अख काल अराख काल अकाल अकाल 9 अंतर्मुहूर्त अंतर्मु 9 • अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष ४ हजार वर्ग 16 १] अंतर्मुहूर्त १ अंतर्ग १ अंतगुहूर्त 9 अंतर्मु १] अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष १२ हजार वर्ष ८ हजार वर्ष १२ हजार वर्ष ४ अंतर्मु १२ हजार वर्ष ८८ हजार वर्ष जघन्य काल अंतर्मुहूर्त अंतर्मु १. अंतर्मुहूर्त १ अंतर्ग [१] अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष १२ वर्ष १ अंतर्ग १२ वर्ष १ अंतर्ग १२ वर्ष २२ हजार वर्ष उत्कृष्ट काल अराख काल अस काल असंख काल अकाल ४० हजार वर्ष ८ हजार वर्ष कायस द्वार हजार वर्ष हजार वर्ष ४ हजार वर्ष ४० हजार वर्ष हजार वर्ष उत्कृष्ट काल संख काल राख काल संख काल संख काल ४८ वर्ष हजार वर्ष राख काल राख काल राख काल संख काल ४ अंतर्ग ८८ हजार वर्ष ४० वर्ष ८८ हजार वर्ग ४५ वर्ष ४ अंतर्ग ४८ वर्ष ६८ हजार वर्ष गमा २३१ Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ पृथ्वीकार्य में तेइंद्रिय ऊपजै तेहनों यंत्र (७) २३२ गमा २० द्वार नी संख्या १ २ ३ ५ 10 १ [गमा २० द्वार नौ सख्या 2 3 0 এwo I ww Lore ३ ओधिक नै ओधिक अधिक नै जघन्य ओधिक नै उत्कृष्ट ४ जघन्य नै औधिक जघन्य नै जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट ५. ६ उत्कृष्ट नैं अधिक उत्कृष्ट नै जघन्य उत्कृष्ट में उत्कृष्ट 19 गमा २० द्वार नी संख्या ८ ६ ओधिक ने ओधिक अधिक नैं जघन्य ओधिक नै उत्कृष्ट जघन्य नै ओधिक जघन्य नै जधन्य जघन्य नै उत्कृष्ट ३३ पृथ्वीकाय में चाउरिंद्रिय ऊपजे तेहनों यंत्र (८) उत्कृष्ट नै अधिक उत्कृष्ट नै जघन्य उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट ओधिक नै ओधिक ओधिक मैं जघन्य ओधिक नै उत्कृष्ट जघन्य जघन्य नै ओधिक जघन्य नै जधन्य जघन्य नै उत्कृष्ट 9 अंतर्मुहूर्त १] अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष १ उपपात द्वार १ अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष 9 अंतर्मुहूर्त १] अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष जघन्य १ अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष " अंतर्मुहूर्त 4 अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष उपपात द्वार भगवती जोड (खण्ड-६) उत्कृष्ट २२ हजार वर्ष १] अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष जघन्य १ अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष २२ हजार वर्ष 9 अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष १] अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष उत्कृष्ट में ओधिक १ अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट नै जघन्य १] अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट २२ हजार वर्ष २२ हजार वर्ष १ १ अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष उत्कृष्ट २२ हजार वर्ष १ अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष २२ हजार वर्ष अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष उपपात द्वार २२ हजार वर्ष १] अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष उत्कृष्ट २२ हजार वर्ष १ अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष परिमाण द्वार २२ हजार वर्ष १ अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष जघन्य २२ हजार वर्ष १ अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष १.२.३. ऊपजै १.२.३. ऊपजै १.२.३. ऊपजै जघन्य १.२.३ ऊपजे १२.३ ऊपजे परिमाण द्वार १२.३ ऊपजै ३४ पृथ्वीकाय में असनी तिच पंचेंद्रिय उपजे तेहनों यंत्र (५) 3 संघयण द्वार ६ १ छेवटो जधन्य उत्कृष्ट १२.३ ऊपजै सख या असंख उपजे १.२.३ ऊपजै राख दा असंख ऊपजे १.२.३ ऊपजै संख या असंख ऊपजै उत्कृष्ट संखया असंख कंप परिमाण द्वार सखया असंख ऊपजै राख या असंख ऊपजे उत्कृष्ट संखया असंख ऊपजै संख या असंख ऊपजै स्ववण द्वार संख या असंख ऊपजै ६ छवटो छेवटो १ छवटो सायण द्वार ६ १ छेवट जेवले १ छेवटो छेवटी छेक्टो ४ अवगाहना द्वार उत्कृष्ट जघन्य अंपुल नॉ असंख भाग अगुल नौ असंख भाग अंगुल न असंख भाग जघन्य अंगुल न असंख भाग अवगाहना द्वार अंगुल न असंख भाग अंगुल न असंख जघन्य अंगुलनों असंख भाग ३ गाउ अंगुलनों असंख भाग अंगुल न असंख भाग अंगुलनों असंल भाग ३ गाउ उत्कृष्ट ४ अवगाहना द्वार उत्कृष्ट ४ गाउ अंगुल न असंख भाग हजार जोजन अंगुलन असंख भाग हजार जोजन ५ सठाण द्वार ६ हुड़क १ हुहक १ हुडक ५ सठाण द्वार ६ १ हुड़क १ हुडक हुंडक ५ संडाण द्वार ६ हुंडक हुंडक पहुंडक ६ लेश्या द्वार 3 पहली 3 पहली 3 पहली ६ लेश्या द्वार ६ 3 पहली 3 पहली 3 पहली ६ लेश्या द्वार ६ ३. पहली ३] पहली ३] पहली दृष्टि द्वार सम या २ सत्यक मिथ्या ly दृष्टि द्वार ३ २ सग्धक मिथ्या १ मिथ्या २ सम्यक मिथ्या ७ दृष्टि द्वार 3 २ सम् fem १ मिध्या २ सम्यक मिथ्या ज्ञान-अज्ञान द्वार 4 नियन नियम ५. 1. नियमा ज्ञान-अज्ञान द्वार 3 ३ नियमा ५. २ नियमा 3 २ नियमा २ नियमा रनियमा २ नियमा २ नियमा नियमा ५ ज्ञान-अज्ञान द्वार २ नियमा ३ २ नियमा २ नियमा २ नियमा योग द्वार के ३ख Vis का २दत्त योग द्वार 3 २ वध काय काय दच काय योग द्वार ३ २ न काय काय २ घन काया उपयोग २ 1 |~ उपयोग २ २ उपयोगद्वा २ | - Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समदघातटार वेदनादार वेददार आयुद्वार अध्यवसाय द्वार अनुबंध द्वार नाणत्ता जघन्य उत्कृष्ट असंख्याता | जघन्य उत्कृष्ट जधन्य | उत्कृष्ट ४६ दिन संख | ४९.दिन रात कायसवेध द्वार जपन्य काल | उत्कृष्ट काल अंतर्मुहूर्त १ अतर्गु संखकाल संखकाल अंतर्मुहूर्त १अंतर्गु० संखकाल संखकाल १ अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष १६६ दिन रात एक हजार वर्ष भला मुंडा | अंतर्मुहूर्त रासत संख २ पहली नपुराक | अतर्मुहूर्त | अतर्मुहूर्त | मुंडा अंतर्मुहूर्त | अंतर्मुहूर्त | ७अव० दृष्टि,शान. जोग आयु, अध्य० अनु० संख १अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मु० १अंतर्मुहूर्त अंतर्मु० १अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ग सखकाल सेखकाल संखकाल संखकाल ४ अंतर्मुहूर्त ८८ हजार वर्ष ४६ दिन | ४६ दिन रात - रात पहली आयु० अनुबंध ४६दिनरात अंतर्मुः | ४९ दिन रात अंतर्मु० ४६दिनरात २२ हजार वर्ष १६६ दिन रात ८८ हजार वर्ष १६.६ दिन रात ४ अंतर्मु १६६ दिन रातमा हजार वर्ष कवाय द्वार इन्द्रिय कार | इन्द्रिय द्वार | समुद्रात द्वार | वेदना द्वार | वेद द्वार १७ आयुद्वार अध्यवसाय द्वार अनुबंधद्वार कायसवेधद्वार | जघन्य उत्कृष्ट असख्याता | जघन्य उत्कृष्ट जघन्य भला भंडा संख संख पहली २ १नपुंसक | अंतर्मुहूर्त | ६ मास अंतर्मुहूर्त | गारा १अतर्मुहूर्त १ अंतर्मु० अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मु० १.अंतगुंटूर्त २२ हजार वर्ग सखकालसख काल संखकाल संखकाल २४ मास हजार वर्ष संख पहली | २ | ५ नपुंसक | अंतर्मुहूर्त | अंतर्मुहूत | yा अंतर्मुडून अंतर्मुहूर्त | ७ अब, दृष्टि ज्ञान जोग आयु. अध्यन अनु अंतर्मुहल अतः अंतर्मुहूर्त 1 अंतर्ग १अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष संखकाल संखकाल संख काल संख काल ४अंतर्मुहूर्त ८८ हजार वर्ष पहली १नपुंसक | ६ मास मास | भला मुंडा | ६ मास | ६ मास | आयु, अनुबंध ६मास १अंतर्मः ६माराअंतर्म ६मास २२ हजार वर्ष २४ मास ८८ हजार वर्ष २४ मास ४ असमु० २४ मास ८८ हजार वर्ष १२ १६ कवाय द्वार इन्द्रिय द्वार | समुद्घात द्वार | वेदना द्वार | वेद द्वार | आयुद्वार १६ अध्यवसाय द्वार| अनुबंध द्वार असंख्याता | जघन्य | उत्कृष्ट नाणता कायसवेधद्वार जघन्य | उत्कृष्ट जधन्य काल । उत्कृष्ट काल ४ ५ । ३पहली २ नपुंसक | अंतर्मुहूर्त | कोडपूर्व भला भंज अंतर्मुहूर्त | कोडपूर्व | १.अंतर्मुहूर्त १ अतर्गु० १अंतर्मुहूर्त १ अंतर्ग १.अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष कोडपूर्व ८८ हजार वर्ष ४ कोडपूर्व ४ अंतर्मुः ४ कोडपूर्व ८८ हजार वर्ष ४ 3 पहनी नपुरक आहूत अंतर्मुहूर्त | भंडा अंतर्मुहत अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त १ अर्गु०४ अनगुंटूर्त ५ अंत ० ४ १ अंतर्मुहुर्त २२ हजार वर्ष अंतर्मुहूर्त ८ हजार वर्ष असमुहूर्त : अंतमु अंतर्मुहूर्त ८ हजार वर्ष जोग, आयु, अध्य., अनुबंध ३पहली १नपुंसक | कोडपूर्व कोडपूर्व | भलामुंडा | कोडपूर्व कोडपूर्व | आयु, अनुबंध १ कोडपूर्व १ अंतर्मु. १कोडपूर्व १अंत: १कोडपूर्व २२ हजार वर्ष ४ कोडपूर्व ८० हजार वर्ष ४ कोडपूर्व ४ अंतर्मु ४कोडपूर्व ५५ हजार वर्ष गगा २३३ Jain Education Intemational Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५ पृथ्वीकाय में संख्याता वर्ष नां सन्नी तिर्यञ्च ऊपजै तेहनों यंत्र (१०) गमा २०द्वार नौ संख्या उपपात द्वार संघयण द्वार अवगाहना द्वार संठाण द्वार | लेश्या द्वार ज्ञान-अज्ञान द्वार | योग द्वार | उपयोगवा परिमाण द्वार जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट संख या असंख | भजना १ २ ३ ओधिक नै ओधिक अंतर्मुहूर्त | २२ हजार वर्ष ओधिक नै जघन्य अंतर्मुहूर्त १अंतर्मुहूर्त ओधिक नै उत्कृष्ट | २२ हजार वर्ष | २२ हजार वर्ष १२.३ ऊपजै ऊपजे अंगुलनों असंख भाग १हजार योजन संख या असंख | जघन्य नै ओधिक जघन्य नै जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट अंतर्मुहर्त अंतर्मुहूर्त |२२ हजार वर्ष २ नियमा | १काय | २२हजार वर्ष १अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष अंगुलनों असंख माग - अंगुलनों असंख भाग ऊपजै पहली १२.३ संख या असंख ३भजना ३भजना उत्कृष्ट नै ओधिक १अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष उत्कृष्ट नै जघन्य अंतर्मुहर्त | १अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट २२ हजार वर्ष | | २२हजार वर्ष अंगुलनों असंख भाग १हजार योजन ऊपजे ३६ पृथ्वीकाय में संख्याता वर्ष नां सन्नी मनुष्य ऊपजै तेहनों यंत्र (११) गमा २०द्वार नी संध्या उपपात द्वार परिमाण द्वार संघयण द्वार | अगहना द्वार अवगाहना द्वार सठाण द्वार लश्या द्वार दृष्टि द्वार ज्ञान-अज्ञान द्वार | योग द्वार उपयोग जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट संख ४ भजना ३भजना ओधिक नै ओधिक अंतर्मुहर्त |२२हजार वर्ष ओधिक नै जघन्य | अंतर्मुहूर्त | अंतर्मुहूर्त ओधिक नै उत्कृष्ट २हजार वर्ष | २२हजार वर्ष ૧૨૩. ऊपजै अंगुलनों असंख भाग संख ३पहली २नियमा १काय जघन्य न ओधिक जघन्य नै जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट १२.३ ऊपजे | मिथ्या |अंतर्मुहूर्त | २२ हजार वर्ष १अंतर्मुहूर्त |१अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष | २२ हजार वर्ष अंगुलनों असंख भाग अंगुलनों | असंख भाग १,२,३ ४भजना ३भजना उत्कृष्ट नै ओधिक | अंतर्मुहूर्त | २२ हजार वर्ष उत्कृष्ट नै जघन्य अंतर्मुहूर्त |१अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट | २२ हजार वर्ष | २२हजार वर्ष सख ऊपजे ५सी धनुष्य ऊपज धनुष्य ३७ पृथ्वीकाय में असन्नी मनुष्य ऊपजै तेहनों यंत्र (१२) गमा २० द्वार नी संख्या परिमाण द्वार संघयण द्वार संठाण द्वार लेश्या द्वार दृष्टि द्वार ज्ञान-अज्ञान द्वार योग द्वार उपयोगा उपपात द्वार जघन्य उत्कृष्ट अवगाहना द्वार जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट १ऐवटो ३पहली मिष्या १हुडक २नियमा १काय १ २ ३ १२.३ ऊपजै ओधिक नै ओधिक | अंतर्मुहूर्त | २२ हजार वर्ष ओधिक नैं जघन्य |१अंतर्मुहूर्त | अंतर्मुहूर्त ओधिक मैं उत्कृष्ट | २२ हजार वर्ष | २२ हजार वर्ष सख या असंख ऊपजै अंगुलनों असंख भाग २३४ भगवती-जोड़ (खण्ड-६) Jain Education Intemational Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३ संज्ञाहार | कवाय द्वार इन्द्रिय द्वार समुदघात द्वार | वेदना द्वार | वेद द्वार १६ अनुबंध द्वार जघन्य | उत्कृष्ट नाणता आयु द्वार | अध्यवसाय द्वार जघन्य | उत्कृष्ट असंख्याता कायसंवैध द्वार जघन्य | उत्कृष्ट जघन्य काल उत्कृष्ट काल ५पहली - २ । ३ अंतर्मुहूत | कोडपूर्व | भला मुंडा अंतर्मुहूर्त | कोडपूर्व १अंतर्मुहूर्त १अंतर्मु० ४कोडपूर्व ६८ हजार वर्ष १अंतर्मुहूर्त १अंतर्मु० ४कोडपूर्व ४ अंतर्मु १अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष -४ कोडपूर्व ८८ हजार वर्ष | ५ | पहली | २ । ३ अंतर्मुहर्त | अंतर्मुहूर्त | मुंडा अंतर्मुहूर्त | अंतर्मुहूर्त | ६ अव., लेश्या दृष्टि । ज्ञान-अज्ञान, जोग, समु आयु, अध्य, अनुबंध १अंतर्मुहूर्त अंतर्मु० अंतर्मुहूर्त १अंतर्मु० १अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष ४ अंतर्मुहूर्त ८८ हजार वर्ष ४ अंतर्मुहूर्त ४ अंतर्मु. ४ अंतर्मुहूर्त ८० हजार वर्ष الي ५पहली | ३ | कोडपूर्व | कोडपूर्व | भलामुंडा | कोडपूर्व | कोडपूर्व आयु, अनुबंध اليه १कोडपूर्व १अंतर्मु. १कोडपूर्व १ अंतर्मु १कोडपूर्व २२ हजार वर्ष ४ कोडपूर्व १६ हजार वर्ष ४ कोडपूर्व ४ अंतर्मु, ४ कोडपूर्व ५८ हजार वर्ष २० कायसंवेध द्वार कायतराइन्द्रियद्वार १६ वेदद्वार ३ समुदघात द्वारा वेदना द्वार | २ नाणत्ता आयु द्वार अध्यवसाय द्वार अनुबंध द्वार जघन्य उत्कृष्ट | असंख्याता जघन्य | उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त | कोडपूर्व । भला भूडा | अंतर्मुहूत | कोडपूर्व जघन्य | उत्कृष्ट जपन्य काल उत्कृष्ट काल ६ पहली ३ १अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मुः ४ कोडपूर्व ८८ हजार वर्ग १अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मुः | ४ कोडपूर्व ४ अंतर्मु १अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष | ४ कोडपूर्व ६८ हजार वर्ष २ ३पहली | २ | ३ अंतर्मुहूर्त | अंतर्मुहूत | भूडा अंतर्नुहूर्त | अंतर्मुहूर्त अब, लेश्या दृष्टि शान,अज्ञान,जोग समु आयु, अध्य, अनुबंध به نه به १अंतर्मुहूर्त अंतर्मु १अंतर्मुहूर्त अतर्नु १अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष ४अंतर्महर्ता हजार वर्ष ४अंतर्मुहूर्त ४ अंतर्मु. ४ अंतर्मुहूर्त ८८ हजार वर्ष ६ पहली | २ | ३ | कोडपूर्व | कोडपूर्व | मला_डा | कोडपूर्व | कोडपूर्व अब, आयु, अनुबंध । २ १कोडपूर्व १अंतर्मु, १कोडपूर्व अंतर्मु | १कोडपूर्व २२ हजार वर्ष ४ कोडपूर्व ६८ हजार वर्ष ४ कोडपूर्व ४ अंतर्मु. कोडपूर्व ५६ हजार वर्ष ताद्वार कवाय द्वार इन्द्रिय द्वार समुदघात द्वार| वेदना द्वार वेद द्वार नाणत्ता कायसवेध द्वार आयुद्वार जघन्य उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त | अंतर्मुहूर्त | अध्यवसाय द्वार अनुबंध द्वार असख्याता जघन्य असंख्याता | जघन्य | उत्कृष्ट Jहा अंतर्मुहूर्त | अंतर्मुहूर्त जधन्य| उत्कृष्ट पहली नपुंशक जघन्य काल उत्कृष्ट काल १अंतर्मुहूर्त १अंतर्मु ४अंतर्मुहूर्त ६८ हजार वर्ष १अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मु. | ४ अंतर्मुहूर्त ४ अंतर्मु १अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष ४अंतर्मुहूर्त ८८ हजार वर्ग गमा २३५ Jain Education Intemational Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८ पृथ्वीकार्य में असुरकुमार ऊपजै तेहनों यंत्र (१३) गमा २० द्वार नौ संख्या 1 e or m | 30 gt w.sun १ २ W ६ ७ ६ २३६ 4 ३ ४ ५. ६ गमा २० द्वार नीं संख्या 19 ओधिक नै ओधिक ओधिक मैं जघन्य ओधिक नै उत्कृष्ट जघन्य नै ओधिक जघन्य नै जघन्य ६ ६ जघन्य नै उत्कृष्ट Trm ww उत्कृष्ट नै ओधिक १ अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट मैं जघन्य १ अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट २२ हजार वर्ष जघन्य नै ओधिक जघन्य नै जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट उत्कृष्ट नै अधिक उत्कृष्ट नै जघन्य उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट गमा २० द्वार नी संख्या जघन्य जघन्य ओधिक नै ओधिक १ अंतर्मुहूर्त ओधिक नै जघन्य १ अंतर्मुहूर्त ओधिक नै उत्कृष्ट २२ हजार वर्ष ओधिक नै ओधिक ओधिक नैं जघन्य ओधिक नै उत्कृष्ट उपपात द्वार १ अंतर्मुहूर्त १] अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष जघन्य नै ओधिक जघन्य नै जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट १ अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष ३६ पृथ्वीकाय में नवनिकाय ऊपजै तेहनों यंत्र (१४-२२) उत्कृष्ट नै ओधिक उत्कृष्ट नै जधन्य उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट १ अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष १] अंतर्मुहूर्त 9 अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष उपपाल द्वार जघन्य १] अंतर्मुहूर्त १] अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष उत्कृष्ट २२ हजार वर्ष १ अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष १ अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष २२ हजार वर्ष १ अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष १ अंतमुहूर्त १ अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष भगवती-जोड़ (खण्ड-६) २२ हजार वर्ष १ अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष उत्कृष्ट २२ हजार वर्ष १] अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष २२ हजार वर्ष १ अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष उपपात द्वार २२ हजार वर्ष १ अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष ४० पृथ्वीकाय में व्यंतर ऊपजे तेहनों यंत्र (२३) उत्कृष्ट २२ हजार वर्ष अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष २ परिमाण द्वार २२ हजार वर्ष १] अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष जघन्य २२ हजार वर्ष १ अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष १.२.३ ऊपजी १२.३ ऊपजै १.२.३ ऊपजै जघन्य १२.३ ऊपजै २ परिमाण द्वार १.२.३ ऊपजै १२.३ ऊपजै जघन्य उत्कृष्ट संखया असंख ऊप १.२.३ ऊपजे १२.३ ऊपजे संख या असंख ऊपजै १२.३ ऊपजै संख या असंख असंघयणी ऊपजै २ परिमाण द्वार उत्कृष्ट संखया असंख ऊपजै संख या असंख ऊपजी संख या असंख ऊपजे उत्कृष्ट संख या असंख ऊपजै सख या असंख ऊपजै 3 संघयण द्वार ६. संख या असंख ऊपजै असंघयणी असंघयणी ३ संघयण द्वार ६ असंघवणी असंघयणी असंघयणी ३ संघयण द्वार ६ असंघयणी असंघयणी असंघयणी ४ अवगाहना द्वार जघन्य अंगुलनों असंख भाग अंगुलनों असंख भाग अंगुलनों असंख भाग जघन्य अंगुल असंख भाग अवगाहना द्वार अंगुल न असंख भाग अंगुल न असंख भाग जघन्य अंगुल न भाग उत्कृष्ट अंगुल न असंख भाग ७ हाथ अंगुल न असंख भाग ७ हाथ अवगाहना द्वार उत्कृष्ट उत्कृष्ट ७ हाथ ७ हाथ ७ हाथ 1७ हाथ ७ हाथ ५ संठाण द्वार ६ १ समचौरंस १ समचौरंस १ समचौरंस ५. सठाण द्वार ६ १ समचौरंस १] समचौरस १ समचौरंस ५. संठाण द्वार ६ १ समचौरंस 9 समचौरंस समचौरंस ६ लेश्या द्वार ६ पहली पहली ४ पहली ६ लेश्या द्वार ६ पहली ४ पहली ४ पहली ६ लेश्या द्वार ६ ४ पहली पहली ४ पहली 19 दृष्टि द्वार ३ 3 3 3 ७ दृष्टि द्वार 3 ३ ज 3 दृष्टि द्वार 3 3 3 ज्ञान-अज्ञान द्वार ३ ५ ३ नियमा 3 नियमा 3 नियमा ५ 3 नियमा ज्ञान-अज्ञान द्वार ३ 3 नियमा 3 नियमा 보 3 नियमा नियमा 3 c नियमा ३ भजना ३ नियमा ज्ञान-अज्ञान द्वार भजना 3 भजना 3 नियमा 3 ३ भजना ३ भजना ३ भजना योग द्वार ३ ३ ३ 3 ६ योग द्वार ३ 3 1 योग द्वार ३. ३ dy ३ 90 उपयोग द्वार २ २ ལ उपयोगद्वार २ 1. १० उपयोग द्वा २ २ | ~ u Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११ Y ४ > 8 Y पंडाद्वार १२ १३ कषाय द्वार इन्द्रिय द्वार ५ ४ ४ a ४ १२ १३ कषाय द्वार इन्द्रिय द्वार ४ ५. क ५ x अं 7 ५ ५ ہر ५ ५. १४ समुद्धात द्वार पहली ५. पहली पहली १४ समुद्धात द्वार 8 ५ पहली 4 पहली ५. पहली یا ५ पहली ५ पहली 44 वेदना द्वार १२ १३ 부 १५ कषाय द्वार इन्द्रिय द्वार समुद्धात द्वार वेदना द्वार ४ ५. ५ पहली २ २ 1 m १५ वेदना द्वार २ २ २ २ २ २ २ २ १६ वेद द्वार ३ २. स्त्री. पुरुष २ स्त्री. पुरुष २ स्त्री. पुरुष १६ वेद द्वार ३ २ स्त्री. पुरुष २] स्त्री. पुरुष २] [स्त्री पुरुष १६ वेद द्वार ३ २ स्त्री. पुरुष २ स्त्री. पुरुष २ स्त्री. पुरुष आयु द्वार जघन्य १० हजार वर्ष १ सागर जाझो १० हजार १० हजार वर्ष वर्ष जघन्य 90 हजार वर्ष आयु द्वार 90 हजार वर्ष २ पल्य देसूण उत्कृष्ट १० हजार वर्ष १. सागर जाझो हजार वर्ष १पल्य १ सागर जाझो उत्कृष्ट २ पल्य देसून 909 आयु द्वार जघन्य उत्कृष्ट १० हजार वर्ष २ पल्य देसू १ पल्य वर्ष १ पल्य १८ अध्यवसाय द्वार असंख्याता भूडा भला नूडा भला ཝཱ अध्यवसाय द्वार असंख्याता मलाडा भलाभूडा भलाडा १८ अध्यवसाय द्वार असंख्याता भलामूंडा भलाभूडा भलामूंडा १९ अनुबंध द्वार जघन्य १० हजार वर्ष १० हजार वर्ष १ सागर जानो जघन्य १० हजार वर्ष 90 हजार वर्ष १६ अनुबंध द्वार उत्कृष्ट २ पल्य देसूण १० हजार वर्ष उत्कृष्ट १० हजार वर्ष १ सागर जानो १ पल्य १० हजार वर्ष १] सागर जाझी देसूण १६ अनुबंध द्वार जघन्य उत्कृष्ट १० हजार वर्ष २ पल्य देसूण १ पत्य १० हजार वर्ष १ पल्य नाणता o २ आयु अनुबंध २ आयु अनुबंध नाणत्ता २ आयु अनुबंध २ आयु अनुबंध नाणता 。 आयु अनुबंध आयु अनुबंध जघन्य उत्कृष्ट २ भव २ www www WWW २ २ २ २ ४ २ २ २ २ २ २ २ 22. भव २ जघन्य उत्कृष्ट २ २ २ ૨ २ भव जघन्य उत्कृष्ट w w w w w w www x २ २ २ 330 २ २ AAJAJ २० कायसंवेध द्वार जघन्य काल १० हजार वर्ष १ अंतर्ग १० हजार वर्ष १ अंतर्मु १० हजार वर्ष २२ हजार वर्ष १० हजार वर्ष १ अंतर्मु १० हजार वर्ष १ अंतर्मु १० हजार वर्ष २२ हजार वर्ष १ सागर जाझो १ अंतर्मु १ सागर जाझो १ अंतर्मु १ सागर जाझो २२ हजार वर्ष जघन्य काल १० हजार वर्ष १ अंतर्ग १० हजार वर्ष १ अंतर्मु १० हजार वर्ष २२ हजार वर्ष १० हजार वर्ष १ अंतर्मु १० हजार वर्ष १ अंतर्मु १० हजार वर्ष २२ हजार वर्ष २ पल्य देसून १ अंतर्मु २ पल्य देसून १ अंतर्ग २ पल्य देसूण २२ हजार वर्ष जघन्य काल २० कायसंवेध द्वार १० हजार वर्ष १ अंतर्मु १० हजार वर्ष १ अंतर्मु १० हजार वर्ष २२ हजार वर्ष १ पल्य १ अंतर्मुहूर्त १ पल्य १ अंतर्मुहूर्त १ पल्य २२ हजार वर्ष उत्कृष्ट काल १ सागर जानो २२ हजार वर्ष १] सागर जाझो १ अंतर्मु १ सागर जाझो २२ हजार वर्ष १० हजार वर्ष १ अंतर्मुहूर्त १० हजार वर्ष १ अंतर्मुहूर्त १० हजार वर्ष २२ हजार वर्ष १० हजार वर्ष २२ हजार वर्ष १० हजार वर्ष १ अंतर्मु १० हजार वर्ष २२ हजार वर्ष १ सागर जानो २२ हजार वर्ष १ सागर जाझो १ अंतर्ग १ सागर जाझो २२ हजार वर्ष उत्कृष्ट काल २ पल्य देसूण २२ हजार वर्ष २ पल्य देसून १ अंतर्ग २ पल्य देसूण २२ हजार वर्ष १० हजार वर्ष २२ हजार वर्ष १० हजार वर्ष १ अंतर्मु १० हजार वर्ष २२ हजार वर्ष २० कायसवेध द्वार २ पल्य देसूण २२ हजार वर्ष २ पल्य देसून १ अंतर्मु २ पल्य देसूण २२ हजार वर्ष उत्कृष्ट काल १ पल्य २२ हजार वर्ष १ पल्य १ अंतर्मु १ पल्य २२ हजार वर्ष १० हजार वर्ष २२ हजार वर्ष १० हजार वर्ष १ अंतर्मुहूर्त १० हजार वर्ष २२ हजार वर्ष १ पल्य २२ हजार वर्ष १ पल्य १ अंतर्मुहूर्त १ पल्य २२ हजार वर्ष गंगा २३७ Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१ पृथ्वीकाय में ज्योतिषी ऊपजै तेहनों यंत्र (२४) गमा २० द्वारनी सख्या उपपातदार संघयण द्वार अवगाहना द्वार सठाण द्वार जेश्या द्वार दृष्टि द्वार ज्ञान-अज्ञान द्वार योग द्वार उपयोग द्वार परिमाण द्वार जघन्य । उत्कृष्ट जघन्य । उत्कृष्ट । जघन्य उत्कृष्ट E | ओधिक ओधिक अंतर्मुहूर्त ओधिक जघन्य |अंतहत ओधिक नै उत्कृष्ट | २२ हजार वर्ष २हजार वर्ष अंतर्मुहूर्त |२हजार वर्ष १२.३ ऊपजे संखया असंख असंधयणी अंगुलनों । असंख भाग समचौरस नियमा नियमा जघन्य नै ओधिक अंतर्मुहूर्त | २२ हजार वर्ष १.२.३ अंगुल नों जघन्य नैं जघन्य | अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त ऊपरी असंघयणी असंख समचौरंस नियमा निषमा जघन्य नै उत्कृष्ट | २२ हजार वर्ष २२ हजार वर्ष भाग हाथ | उत्कृष्ट नै ओधिक | अंतर्मुहूर्त |२हजार वर्ष | उत्कृष्ट नै जघन्य अंतर्मुहूर्त १अंतर्मुहूर्त | उत्कृष्ट ने उत्कृष्ट २२ हजार वर्ष । | २२ हजार वर्ष ૧૨૩ ऊपजे सखया असंख ऊपजै अंगुल नों असंख असंघयणी समचौरंस । नियमा नियमा भाग ४२ पृथ्वीकाय में सौधर्मवासी देव ऊपजै तेहनों यंत्र (२५) गमा २० द्वार नी संख्या उपपात द्वार संघयण द्वार अवगाहना द्वार संठाण द्वार लेश्या द्वार | दृष्टि द्वार ज्ञान-अज्ञानद्वार योग द्वार उपयोगदान परिमाण द्वार जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट १ १२.३ ७हाथ ओधिक नै ओधिक ओधिक जघन्य ओधिक नै उत्कृष्ट १अंतर्मुहूर्त । २२ हजार वर्ष १अंतर्मुहूर्त १अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष । २२ हजार वर्ष संखया असंख ऊपजे असंधवणी अंगुल नों असंख भाग समचौरंस नियमा नियमा हाथ जघन्य नै ओधिक जघन्य नै जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट | १अंतर्मुहूर्त | २२ हजार वर्ष | १ अंतर्मुहूर्त | अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष | २२ हजार वर्ष ૧૨.રે. ऊपज संखया असंख ऊपजे असंघयणी अंगुल नो असंख भाग समचौरंस ३ नियमा नियमा ७हाथ उत्कृष्ट नै औधिक १अंतमुहूर्त | २२ हजार वर्ष उत्कृष्ट जघन्य १ अंतमुहूर्त | अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट | २२ हजार वर्ष | २२ हजार वर्ष ૧૨૩ उपज संखया असंख ऊपजै असंघयणी अंगुल नो असंख समचौरंस नियमा निषमा ४३ पृथ्वीकाय में ईशानवासी देव ऊपजै तेहनों यंत्र (२६) गमा २० द्वार नी संख्या उपपातदार संघयण द्वार अवगाहना द्वार संठाण द्वार लेश्या द्वार | दृष्टि द्वार _ परिमाण द्वार जघन्य उत्कृष्ट ज्ञान-अज्ञान द्वार ज्ञान-अज्ञान द्वार | योग द्वार | उपयोग द्वार उत्कृष्ट ३ हाथ ओधिक नैं ओधिक | ओधिक जघन्य | ओधिकनै उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष | २२ हजार वर्ष | अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष १२.३ ऊपजे संख या असंख अंगुल नों असंख असंधयणी समचौरंस नियमा नियमा भाग असधयणी | हाथ १समचौरंस तेज ३नियमा जघन्य नै ओधिक अंतर्मुहूर्त जघन्य नै जघन्य १अंतमुहर्त जघन्य नै उत्कृष्ट । २२हजार वर्ष अंगुल नों असंख २हजार वर्ग १अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष १२.३ ऊपजे संखया असंख ऊपजै ३ ३२ नियमा ६ १२.३ असंधयणी १सगचीरंस १ तेज 3 ३नियमा उत्कृष्ट नै ओधिक | १अंतमुहूर्त उत्कृष्ट नै जघन्य १अतर्मुहूर्त उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट | २२ हजार वर्ष २हजार वर्ष १अंतर्मुहूर्त | २हजार वर्ष संख या असंख ऊपजे अंगुलना असख नियमा २३८ भगवती-जोड़ (खण्ड-६) Jain Education Intemational Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समुदधात द्वार वेदनादार वेद द्वार आयुद्वार अध्यवसाय द्वार अनुबंध द्वार नाणता भव कायसवेध द्वार जघन्य उत्कृष्ट असंख्याता जघन्य उत्कृष्ट जघन्या उत्कृष्ट जघन्यकाल उत्कृष्ट काल २स्त्री, | अप पाय | ५पल्य पल्य १ लाख वर्ग | अध पाव | पल्य १पल्य १लाख वर्ष पहली भलाभूका १पल्य का आठवा भाग अंतर्ग१पल्य १लाख वर्ष २२ हजार वर्ष १पल्य का आठवां भाग १ . १पल्य १ लाख १ अंतर्मुहूर्त १पल्य का आखा भाग १ पत्य १ लाख वर्ष २२ हजार वर्ष २२हजार वर्ष २त्री, अपाय | अप पाव | भला हा अप पावापाव पाय | पल्य । पहली आयु अनुबंध १पल्य का आठवां भाग १ अंतर्मुह १पला का आठवां भाग १ अंतर्मुहत १पला का आठवां भाग २२हजार वर्ष १पल्य का आठवां भाग २२ हजार वर्ष १पल्य का आठवा भाग अंतर्मुहूर्त १पल्य का आठवां भाग २२ हजार वर्ष पहली रसी १पत्य | १पल्य पुरुष लाख वर्ष लाख वर्ष लाव वर्ष १लाख वर्ष आयु अनु० - १पल्य १ लाख वर्ष १ अंतर्मुहूर्त १पत्य १ लाज वर्ष २२ हजार या १पल्य १ लाख वर्ष १ अंतगुरूत | १पल्य १ लाख वर्ष १ अंतर्मुहूर्त १पल्य १ लाख वर्ग १पल्य१लाख वर्ष २२ हजार वर्ष २२हजार वर्ग १२ शाद्वार | कषाय द्वार | इन्द्रिय द्वार १५ १६ | समुदघात द्वार वेदना द्वार | नेद द्वार नाणत्ता आयु द्वार जपन्या उत्कृष्ट अध्यवसाय द्वार अनुबंध द्वार असख्याता जघन्य उत्कृष्ट कायसंवेध द्वार जघन्य काल उत्कृष्ट काल जघन्य उत्कृष्ट | १पल्य २सागर १पल्य २सागर २ स्त्री. पुरूष पहली १ पल्प अंतर्मुहूर्त १ पत्य असमुहूर्त १पल्य २२ हजार वर्ष २सागर २२ हजार वर्ष २ सागर अंतर्मुहूर्त २सागर २२ हजार वर्ष | - २स्त्री, भाना डा |१पल्य | १पल्य आयु १ पन्य अंतर्मुहूर्त १पल्यअंतर्मुहूर्त १पल्य २२ हजार वर्व १पल्य २२ हजार वर्ष १ पत्य अंतहत १ पल्य २२ हजार वर्ष २स्त्री. |- | पहली | सागर | सागर । मला भूडा सागर सागर आयु अनुबंध २ सागर अंतर्मुहूर्त २ सागर अंतर्मुहूर्त २ सागर २२ हजार वर्ष २सागर २२ हजार वर्ष २ सागर अंतर्मुहूर्ता २सागर २२हजार वर्ष कवाय द्वार समुदपात द्वार वेदनाद्वार नाणता आयु द्वार जघन्य | उत्कृष्ट अध्यवसाय द्वार अनुबंध द्वार असंख्याता | जघन्य उत्कृष्ट कायसवेध द्वार उत्कृष्ट काल जघन्य | उत्कृष्ट जघन्य काल २स्त्री . १पल्य | २ १पल्य जाझो २सागर जाझो ।२सादर जाझो मला डा १पल्य जाझो अंतर्मुहूर्त सागर जाझो २२ हजार वर्ष १पल्य जाझो १ अंतर्मुहूर्त सागर जाझो अंतर्मुहत १पल्य जाझो २२हजार वर्ष २सागर जाझो २२ हजार वर्ष २स्त्री १पत्य | १पल्य भला डा १पल्य जाझो १पल्य जाझो आयु १पल्य जाझो १अंतर्मुहूर्त १पत्य जाझो २ हजार वर्ष १पल्य जाझो १अंतर्मुहत १पत्य जानो १अंतर्मुहूर्त १पल्य जानो २२ हजार वर्ष १ पत्य जाझो २२ हजार वर्ष अनुबंध २स्त्री. भला डा २सागर २सागर | जानी जाझो २सागर जाझो २सागर जाझो आयु २ सागर जाझो १ अंतर्मु, सागर जाझो २२ हजार वर्ग २सागर जामो १ अंतर्मुर सागर जाझो १ अंतर्मुहूर्त सागर जाझो २२ हजार वर्ष २ सागर जानो २२ हजार वर्ष अनबंध Jain Education Intemational Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अप तथा वनस्पति में २६-२६ ठिकाणांना ऊपजे-दस भवनपति १०, व्यंतर ११, ज्योतिषी १२, प्रथम दो देवलोक १४, पांच स्थावर १९, तीन विकलेन्द्रिय २२, असन्नी तिथंच पंचेंदिय २३. सन्नी तिर्यच पंचेंदिय २४, अरान्नी मनुष्य २५, सन्नी मनुष्य कर्मभूमि २६ तेउ, वायु में १२-१२ ठिकाणां ना ऊपज । १४ देवता रा टल्या। ४४ च्यार थावर में पृथ्वीकाय ऊपजै तेहनों यंत्र (१) गमा २०द्वारनी संख्या उपपातद्वार परिमाण द्वार राघयण द्वार अवगाहना द्वार | सेठाण द्वार श्या द्वार | दृष्टि द्वार ज्ञान-अज्ञानद्वार योग द्वार | उपयोगह जघन्य उत्कृष्ट जधन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट ५छेदटो मसूर चंड | ४ पहली मिथ्या १ २ २नियमा | ओधिक नै औधिक । १४७ गमै जिण जिण काय ओधिक नै जघन्य में ऊपजै तिण रै जघन्य ओधिक नै उत्कृष्ट उत्कृष्ट आयु में कपजे जघन्य उत्कृष्ट आंगुलनों अराखभाग काया १२गरी समय-समय असंख्याता कपज ३ गजान्य १२. उत्कृष्ट संखया अराव पजे १शेवटो पहली २नियमा ४ जपन्य नै ओधिक ५ जघन्य नै जघन्य ६ जयन्द नै उत्कृष्ट २५. गर्म जिन जिण काय में ऊपजै जिनरे जन्य आयु में ऊपो उपन्य उत्कृष्ट आगुल । गगूर चंद्र नौअसंख भाग शेवटी मसूर चंद्र पहरी निक्षमा काया उत्कृष्ट अधिक उत्कृष्ट नै जघन्य उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट ३.६.५ गर्ने जिन जिन काय मैं ऊपरे तिण | उत्कृष्ट आयु में ऊपरी जघन्य उत्पाट आगुलनों असंख माग संखया असंखऊपर २० कायसंवेध द्वार अप में पृथ्वी तेक में पृथ्वी उत्कृष्ट काल उत्कृष्ट काल असंख असंख अंत, १अंत १अंत अंत अंत हजार वर्ग असखकाल असंखकाल असतकाल असारखकाल ५८ हजार वर्ष २८ हजार वर्ग | अंत अंतk अं अंत अंतर्मदिन रात अरुखकाल असंखकर अराख कालअसखका | हजार दिन |NNN असंख १अंत, १ अंतर्मु.१अंतर्मु, १अत हजार वर्ष असंखकालजसस काल असयकाल अराख काल ४ अंतर्नु २८ हजारमा | आर्य | अंलएं. १ १अंतर्मु.३दिनरात अशंख काल असंवा असव काल अखबर अंतगु.१२ दिन तर २२हजार व ८८ हजार वर्ष २८ हजार वर्ष २२ हजार वर्ष १ अंत 1 हजार वर्ष ४ अंत २२ हजार वर्ष हजार वनं ८८ हजार वर्ष २८ हजार वर्ष २२ हजार वर्षा २२हजार वर्ष १ अंत २२ हजार वर्ष दिन रात हजार वर्ग १२ दिला हतार वर्ष ४ अंतर हजार वर्ष दिनका २४० भगवती-जोड़ (खण्ड-६) Jain Education Intemational Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 99 संज्ञा द्वार ४ ४ « जघन्य काल अंतर्ग १ अंतर्ग अंतर्ग १ अंतर्ग अंत ३ हजार वर्ष अंत १२ कषाय द्वार ४ वायु में पृथ्वी १३ हजार वर्ष १२ हजार वर्ष १ अंतर्ग हर वर्ष हजार वर्ष ३ हजार वर्ष १३ इन्द्रिय द्वार ५ फर्श १ फ १ फर्श उत्कृष्ट असंख काल असंख काल असंख काल असंख काल ६८ हजार वर्ष १२ हजार वर्ष असंख काल असंख काल असंख काल असंख काल ४] अंतर्मुहूर्त १२ हजार वर्ष ८ हजार वर्ष १२ हजार वर्ष ८८ हजार वर्ष ४ अंतर्मु पहजार वर्ष १२ हजार वर्ष समुद्धात द्वार ७ ३ पहली ३. पहली ३. पहली जघन्य काल १ अंतर्ग. १ अंतर्ग १ अंतर्मु, १ अंतर्मु १ अंतर्ग १० हजार वर्ष १ अंतर्ग १ अंतर्मु १ अंतर्मु, १ अंतर्मु १ अंतर्मु १० हजार वर्ष १५ वेदना द्वार २ वनस्पति में पृथ्वी २२ हजार वर्ष १ अंतर्मु २२ हजार वर्ष १ अंतर्मु २२ हजार वर्ष १० हजार वर्ष २ २ १६ वेद द्वार ३ १ नपुंसक १ नपुंसक १ नपुंसक उत्कृष्ट फाल असंख काल अरांख काल असंख काल असंख काल ६६ हजार वर्ष ४० हजार वर्ष असंख काल असंख काल असंख काल असंख काल [४] अंतर्मु] ४० हजार वर्ष हजार वर्ष ४० हजार वर्ष हजार वर्ष ४ अंतर्ग ८८ हजार वर्ष ४० हजार वर्ष जघन्य अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष १७ आयु द्वार उत्कृष्ट २२ हजार वर्ष अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष १८. अध्यवसाय द्वार असंख्याता भलाभूंडा मूंडा मलाडा १६ अनुबंध द्वार जघन्य अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष उत्कृष्ट २२ हजार वर्ष अंतर्मुहूर्त हजार वर्ष नाणत्ता ४ लेश्या आयु अध्य० अनु० आयु. अनुबंध गमा २४१ Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५ च्यार थावर में अपकाय ऊपजै तेहनों यंत्र (२) गना २०द्वार नी संख्या परिमाण द्वार | संधयण द्वार अवगाहना द्वार संठाणद्वारलेश्या द्वार दृष्टिद्वार ज्ञान-अज्ञान द्वार योगद्वार उपयोग उपपात द्वार जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट | १शेवटो १मिथ्या २नियमा । १काया | २ ओधिक नै ओधिक १४७ गमै जिण जिण काय ओधिक नै जघन्य में ऊपजै तिण जघन्य ओधिक नै उत्कृष्ट | उत्कृष्ट आयु में ऊपजै १२ गमै समय समय असंख्याता ऊपजै.३गमै जघन्य १२.३ उत्कृष्ट संख या असंख लफ्जै जघन्य उत्कृष्ट आंगुल | थिबुक पाणी ना | पहली नों असंख माग परपोटा ऊपरवन १छेवटो । १मिथ्या २नियम | १वाया जघन्य नै ओधिक २.५ गर्म जिण जिण जघन्य नै जघन्य | काय में ऊपजे तिणरै जघन्य नै उत्कृष्ट | जघन्य आयु में ऊपजै जघन्य उत्कृष्ट आंगुल नों असंख भाग चिबुक पाणी नां| ३ पहली परपोटा पहली | এশিয়া २नियमा पकाया उत्कृष्ट नै ओधिक ३.६.६गमें जिप जिण उत्कृष्ट नै जघन्य | काय में ऊपले तिण रे | उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट उत्कृष्ट आयु में ऊपज जघन्य १२.३ उत्कृष्ट संख या असलञ्च जघन्य उत्कृष्ट आंगुल | चिबुक पाणी नां नों असंख भाग परपोटा २० कायसवेध द्वार अप में अप तेक में अप जघन्य काल उत्कृष्ट काल | जघन्य काल उत्कृष्ट काल असंख असंख अंतर्मु अंतर्मु. १अंतर्नु अंतर्मु १अंतमु.७ हजार वर्ष असंख कालअसंख काल | असंखकाल असंख काल | २८ हजार वर्ष २८ हजार वर्ग | अंतर्मु. १अंतर्मु. अंतर्मु, १अंतर्मु. अंतर्मु. ३ दिन रात असंख काल असंखशात असंख काल असंया अब २८ हजार वर्ष १२ दिनमा अशंख असंख १अंतमु. १अंतर्मु. १अंतर्मु.१अंत . १अतर्मु.७ हजार व असंख काल असंख काल | १अंतर्मु, १अंतर्मु. असंख काल असंख काल | अंतर्मु. १अंतर्मु. ४ अंतर्मु २८ हजार वर्ष १अतर्मु.३ दिन रात असंख काल असंतान असंख काल असंतशत ४ अंत १२ दिन रात ७हजार वर्षअंतर्म. |२८ हजार वर्ष २८ हजार वर्ष ७ हजार वर्ष १ अंतर्नु २८ हजार वर्ष ४ अंतर्मु ७ हजार वर्ष ७ हजार वर्ष | २८ हजार वर्ष २८ हजार वर्ष | हजार वर्ष १अतk हजार वषअत हजार वर्ष १ अंतर्मु हजार वर्ष ३दिन रात २८हजार वर्ष दिसा २८हजार अंत २८ हजार वर्ष १२ दिनस २४२ भगवती-जोड़ (खण्ड-६) Jain Education Intemational Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माद्वार कषाय द्वार इन्द्रिय द्वार समुदधात द्वार वेदना द्वार नाणता आयु द्वार | उत्कृष्ट आध्यवसाय द्वार असंख्याता अनुबंध द्वार जघन्य उत्कृष्ट - पहली नपुंसक अंतर्मुहूर्त हजार वर्ष भलाभुंडा अंतर्मुहूर्त हजार वर्ष १फई - पहली १नपुंसक अंतर्मुहूर्त अंतमुहूर्त अंतर्मुहूर्त ४ लेश्या. आयु अध्य० अनु १फर्श ३पहली नपुंसक हजार हजार वर्ष हजार वर्ष अनुबंध काय मैं अप दनरपारीअप जवन्दकाल उत्कृष्ट काल जघन्य काल अंतम १अंतर्मु अंत, अंतर्नु अंतर्मु.३हजार वर्ष असंख काल असंखकाल असख काल असंखकाल २८ हजार वर्ष १२ हजार वर्ष अंतर्मु. १अंतर्मु. १अंतर्मु.१अंतमु १ अंत हजार वर्ष असंखकाल असंखकाल असंख काल असंख काल २८ हजार वर्ष ४० हजार वर्ष अंतर्मु अंतर्मुः अंत अंतर्मु. अंतर्मु ३ हजार वर्ष असंख काल असंख काल असंख काल असंख काल ४ अंतर्मुहूर्त १२ हजार वर्ष ५अंतर्मु.१अंत १अंतर्मु. १अंतर्मु १अंत १० हजार वर्ष अराखकालअसंखकाल असा काल असंख काल ४ अंतमहत ४० हजार वर्ष हजार वर्ष अंतर्नु हजार वर्ष १ अतः पहजार वर्ष ३ हजार वर्ष २८ हजार वर्ष १२ हजार वर्ष २८ हजार वर्ग ४ अंत. २८ हजार वर्ष १२ हजार वर्ष १७ हजार वर्ष १ अंतर्मु, ७ हजार वर्ष १ अंतर्मु, हजार वर्ष हमार वर्ष २८ हजार वर्ष ४० हजार वर्ष २८ हजार वर्ष ४ अंतर्मु. २. हजार वर्ष ४० हजार वर्ष गमा २४३ Jain Education Intemational Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४४ ४६ च्यार थावर में तेऊकाय ऊपजै तेहनों यंत्र (३) गमा २० द्वार नौ संख्या १ २ 3 ६ ६ ओधिक नै ओधिक | ओधिक नैं जघन्य ओधिक नैं उत्कृष्ट जघन्य नै ओधिक जघन्य ने जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट उत्कृष्ट नै ओधिक उत्कृष्ट में जघन्य उत्कृष्ट मैं उत्कृष्ट 9 उपपात द्वार जघन्य उत्कृष्ट १४,७ गर्म जिन जिन काय मैं ऊपजै तिण है जघन्य उत्कृष्ट आयु में ऊपजै भगवती जोड़ (खण्ड-६) २.५८ गर्म जिण जिण काय में ऊपजे तिणरै जघन्य आयु में ऊपजे ३.६.१ गर्मे जिन जिन काय में ऊपजे तिण रे उत्कृष्ट आयु में ऊपजै २ परिमाण द्वार जघन्य उत्कृष्ट १२ गर्ने समय समय असंख्याता ऊपजै ३ गर्ने जघन्य १२.३ उत्कृष्ट संखया असंख ऊपजै ऊपरवत् जघन्य १२,३ उत्कृष्ट संखया असंख ऊपजे 3 संघयण द्वार ६ १ छेवटो १ छेवटो १ छेक्टो जघन्य जघन्य उत्कृष्ट अंगुल नो असंख भाग गमा अवगाहना द्वार जघन्य उत्कृष्ट आंगुल नो असख भाग ५. ६ 15 ८ १ जघन्य उत्कृष्ट आंगुल नौ अरांख भाग ज. उत्कृष्ट २ २ ~~~ उ असंख असंख अरांख असंख ६ C ५ संठाण द्वार ६ सूचीकलाप सूची कलाप सूचीकाप लेश्या द्वार ३ पहली ३] पहली 3 पहली जघन्य काल १] अंतर्मु, १ अंतर्मु १ अंतर्मु, १ अंतर्मु १ अंतर्ग ७ हजार वर्ष १ अंत १ अंतर्ग १ अंतर्गः १ अंतर्ग १] अंतर्मु] ७ हजार वर्ष अप में लेऊ ३ दिन रात १ अंतर्मु ३ दिन रात १ अंतर्ग ३ दिन रात ७ हजार वर्ष ७ दृष्टिद्वार ३ १ मिथ्या १ मिध्या १ मिथ्या २० कायसंवेध द्वार उत्कृष्ट काल असं काल असंख काल असंख काल असंख काल १२ दिन रात २८ हजार वर्ष राख काल असंख काल अराख काल अराख फाल ४] अंतर्ग २८ हजार वर्ष १२ दिन रात २८ हजार वर्ष १२ दिन ४ अंतर्ग १२ दिन रात २ वर्ष ज्ञान- अज्ञान द्वार ५. नियमा २ नियमा २ नियमा जघन्य काल १ अंतर्मु, १ अंतर्ग १ अंतर्मु १ अंतर्ग १ अंतर्ग ३ दिन रात १] अंतर्मु] १ अंतर्ग अंतर्ग १ अंतर्ग अंत ३ दिन रात ३ दिन राज १ अं ३दिन रात दिन रात ३ दिन योग द्वार ३ १ काया १ कार्या तेज में तेऊ १काया 90 उपयोग द्वार २ उत्कृष्ट काल असंख काल असं का अकाल अका १२ दिन रात १२ दिनर असंख काल असंच का असंख काल अका ४] अंत १२ दिन १२ दिन रात १२ दिन १२ दिन राज १२ दिन रात १२ दिन Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ वेद द्वार संज्ञा द्वार कषाय द्वार इन्द्रिय द्वार - समुद्धात द्वार वेदनाद्वार अध्यवरायद्वार नाणता आयुद्वार उत्कृष्ट जघन्य असंख्याला जघन्य । उत्कृष्ट भला डा पहली नपुंसक अंगुहा दिन रात अंतर्मुहूर्त १फर्श पहली १नपुंसक अंतर्मुहूर्त | मुंडा अंत हो अंतर्मुहर्त आयु. अध्य० अनु० पहली नपुंसक दिन रात दिन रात दिन रात दिन रात आयु अनुबंध वनस्पतिरोऊ जान काल उत्कृष्ट काल जघन्य काल उत्कृष्ट काल अंगई अंत अंतर्मु १ पता ३ हजार वर्ष असंख काल असंखकाल | असंखकाल असंख काल १२ दिन रात १२ हजार वर्ष अंत अंत १अंतर्मु १अंतर्ग १अंतर्मु १० हजार वर्ष असंखकाल असंयकाल असंखकाल असंखकाल १२ दिन रात ४० हजार वर्ष पा, १अंतर्मु. अंतण १ अंतर्नु अंतम् ३ हजार वर्ष असंख काल असंखकाल असंख काल असंख काल ४ अंतर्मु १२ हजार वर्ष अंत अंत अंतर्मु, १ अंत अंत हजार वर्ष अरांस काल असंख काल अरांस काल असंख काल ४ अंत ४० हजार वन ३लि रात अंतर्मु. १२ दिन रात १२ हजार वर्ष । दिन रात १अंतर्मु १२ दिन रात ४ अंत. दिन रात ३हजार वर्ष । १२ दिन रात १२ हजार वर्ष दिन रात अंत दिन रात अंत ३दिन रात १० हजार वर्ष १२ दिन रात ४० हजार वर्ष १२ दिन रात अंत १२ दिन रात ४० हजार वर्ष गमा २४५ Jain Education Intemational Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७ च्यार थावर में वायुकाय ऊपजै तेहनों यंत्र (४) गमा २०द्वार नी संख्या उपपात द्वार संघयण द्वार अवगाहना द्वार | संताण द्वार लेश्या द्वार दृष्टि द्वार ज्ञान-अज्ञानद्वार योग द्वार उपयोग परिमाण द्वार उत्कृष्ट | उत्कृष्ट १वटो १ २ १मिध्या निषमा ओधिक नै ओधिक १४७गमै जिण जिण काय ओपिक में जपा | मैं ऊपजै तिण र जघन्य औधिक न उत्कृष्ट | उत्कृष्ट आयु में कपणे १.२ गमै समय समय असंख्याता ऊपज ३ गमैं जघन्य १२.३ उत्कृष्ट संख या असंख ऊपजै जघन्य उत्कृष्ट आंगुल । नों असंख भाग १वटो पहली पमिथ्या नियमा। १काया जघन्य नै ओधिक जघन्य नै जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट २.५८ गर्ने जिण जिण काय में ऊपजै तिणरै जघन्य आयु में ऊपजे जधन्य उत्कृष्ट आंगुल नौ असंख भाग ऊपरबत् | १छेवटो नियगा काया। उत्कृष्ट नै औधिक | ३.६.१ गमे जिण जिण |काय में ऊपरी तिणरे उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट | उत्कृष्ट आयु में ऊपजे जघन्य १.२३ उत्कृष्ट संखया असंख ऊप जघन्य उत्कृष्ट आगुल नौ अराय भाग ६ कायसंवेध द्वार जन्यकाल उत्कृष्ट काल जधन्यकाल उत्कृष्ट काल असंख असंख १अंआ अंत १अंतर्मु अंतर्ग १अंग ७ हजार वर्ष असंखकाल अरांवकाल असंखकाल अरावकाल १२ हजार वर्ष २८ हजार वर्ष १अंतर्ग, १d, असंबकाल असंखकान १अंतगु १अंतमु असंखकाल असंखकल १अत ३दिनरात । | १२ हजार वर्ष २२ दिनस असंख असंख १ .१अंत. अंत अंत अंत ७ हजार वर्ष असंखकाल असंवकाल असंखकालरांवकाल ४ अंग २८ हजार वर्ष १अंतर्मु अंत १अंत. १अंतर्नु, १अलमुदिन रात | असंखकाल असंखकल असंखकाल असंखकान ४ अंतर्मुदिन रात हजार वर्ष १ अत ३ हजार वर्ष अंतर्ग ३ हजार वर्ष ७ हजार वर्ग १२ हजार वर्ष २० हजार वर्ष १२ हजार वर्ष ४ अंत | १२ हजार वर्ष २८ हजार वर्ष ३ हजार वर्ष १rd | १२ हजार वर्ष १२ दिनस हजार वर्ग अंत १२ हजार वर्ष ४ अंतम. ३हजार वर्ष दिन रात | १२ हजार वर्ष १२ दिनमा २४६ भगवती-जोड़ (खण्ड-६) Jain Education Intemational Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वार ४ W -- जघन्य काल कषाय द्वार १दा अंतर्ग अंत अंतर्ग ११ अंतर्ग आर्ग ३ हजार वर्ष वायु में वायु अंत ३ हजार वर्ष ४ 3 हजार वर्ष अंतर्ग हर वर्ष अंतर्मु हजार वर्ष ३ हजार वर्ष १३ इन्द्रिय द्वार 4 उत्कृष्ट १ फर्श १ फर्श १ फर्श असंखा असंखकाल असंखकाल असंखकाल १२ हजार वर्ष १२ हजार वर्ष असंखकाल असंखकाल असंखकाल अकाल ४] अंत १२ हजार वर्ष १२ हजार वर्ष १२ हजार वर्ष १२ हजार वर्ष अंत १२ हजार वर्ष १२ हजार वर्ष १४ समुद्धात द्वार ७ ४ पहली ३ पहली ४ पहली जघन्य काल १. अंतर्मु १ अवर्ग १. अंतर्ग १ अंतर्ग १] १० हजार वर्ग वनस्पति में वायु १ अंतर्ग १ अंतर्ग अंतर्मु " अंतर्ग १ अंतर्ग १० हजार वर्ष १५ वेदना द्वार २ ३ हजार वर्ष १ अंतर्ग ३ हजार वर्ष १ अंतर्ग ३ हजार वर्ष १० हजार वर्ष २ वेद द्वार ३ नपुंसक १ नपुंसक १. नपुंसक उत्कृष्ट काल असंखकाल अकाल असंखकाल असंखकाल १२ हजार वर्ष ४० हजार वर्ष असंखकाल असंखकाल अरखकाल असंखकाल अंतर्ग ४० हजार वर्ष १२ हजार वर्ष ४० हजार वर्ष १२ हजार वर्ष ४ अं १२ हजार वर्ष ४० हजार वर्ष जपन्य अंतर्मुहूर्त अंतर्मु हजार वर्ष आयु द्वार उत्कृष्ट 3 हजार वर्ष अंतर्मुहूर्त ३ हजार वर्ष १८ अध्यवसाय द्वार असंख्याता भलाभूना मूंडा भलाभूंडा १६. अनुबंध द्वार जघन्य अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त हजार वर्ष उत्कृष्ट 3 हजार वर्ष अंतर्मुहूर्त 3 हजार वर्ष नाणता ४] रागु० आयु अध्यअनु आयु अनुबंध गमा २४७ Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ च्यार थावर में वनस्पति ऊपजै तेहनों यंत्र (५) गमा २० द्वार नी संख्या उपपात द्वार | सघयण द्वार अवगाहना द्वार संठाण द्वार तेश्या द्वार दृष्टि द्वार ज्ञान-अज्ञानद्वार योग द्वार उपयोग परिमाण द्वार जघन्य उत्कृष्ट । जघन्य उत्कृष्ट | जघन्य उत्कृष्ट १छेवटो १हजार | नाना प्रकार ना। ४ पहली १निध्या | रनियमा १काया ओधिक नै औधिक |१४ गगै जिण जिण काय ओधिक नै जघन्य |में ऊपजे विण र जघन्य | ओधिक नै उत्कृष्ट | उत्कृष्ट आयु में ऊपरी | आंगुल नों असंख भाग १२ गर्ने समय रामय असंख ऊपजे, बनस्पति में बनापति रागय रामय अनंत ऊपजैगमै जघन्य १२.३ उत्कृष्ट रांख या अरांख काज जानी १छेवटो नाना प्रकार ना | ३पहली मिथ्या . नियमा जघन्य नै ओधिक जघन्य नै जघन्य जधन्य नै उत्कृष्ट २५.गर्ने जिण जिण | काय मैं ऊपजे निणरै जघन्य आयु मैं ऊपजे आगुल नों असंखभाग ऊपरवत पहजार योजन जाझी जघन्य १२,३ उत्कृष्ट १छेवटो पहली २नियमा काया उत्कृष्ट न ओधिक ३६.गर्गे विण जिण उत्कृष्ट नै जघन्य काय मे ऊपज तिण रे उत्कृष्ट ने उत्कृष्ट | उत्कृष्टआयु में रुपले आमुलनों असंवभाग पहजार | नाना प्रकार ना योजन । अशंख ऊपजे २० कायसंवेध द्वार अप में वनस्पति उत्कृष्ट काल तेक में वनस्पति जघन्य काल उत्कृष्ट काल ज . जघन्यकाल असंस असंख १अंतर्ग. १अंतर्म १अंतर्ग. १अंत. १अंतर्मु७हजार वर्ष असंखकाल असंखकाल | अंतर्मु १अंतर्ग: असंखकाल असंयकाल १अंतर्मु, १अंतर्मु ४० हजार वर्ष २० हजार वर्ग | १अंतमु ३ दिन रात | असंखकाल असंवकास असंखकाल असंखकल ४० हजार वर्ष दिना असंख असंख अंतर्ग अंतमु १अंतर्मु. अंत. अंतस हजार वर्ष असंखकाल अराखकाल | असंखकाल असंखकाल |४अंत २८ हजार वर्ग |१अंतमु, १अंत १अंतर्मु.१अंतर्मु. १अंतर्मु ३ दिन रात असंयकाल असंखका असंखकात असंघका | ४ अंतर्मु, १२ दिन रात १० हजार वर्ष अंत ४० हजार वसं २० हजार वर्ग १० हजार वर्ष अंत ४० हजार वर्ष ४ अंतर्मु १० हजार वर्ष हजार वर्ष ४० हजार वर्ष २८ हजार दर्व | १० हजार वर्ष अंतर्मु ४० हजार वर्ष दिना | १० हजार वर्ष १ अंतर्मु, |४० हजार वर्ष ४ अंतर्ग १० हजार वर्ष ३ दिन रात ४० हजार वर्ष दिनस २४८ भगवती-जोड़ (खण्ड-६) Jain Education Intemational Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५ कवाय द्वार इन्द्रिय द्वार समुदपात द्वार वेदनाद्वार वेद द्वार नाणत्ता आयुद्वार उत्कृष्ट अध्यवसाय द्वार असंख्याता अनुका द्वार जघन्य जघन्य १० हजार फर्श पहली नपुंसक अंतर्मुहूर्त हजार वर्ष भला भंडा अंतर्मुहूर्त १पर्स पहली १नपसक अंतर्मुहूर्त अंआर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त अक्० लेश्या, आयु अध्य० अनुबंध १नपुंसक हजार वर्ष हजार वर्ष मालाभूडा हर हजार वर्ग आयु.अनुबंध कायु में वनस्पति उत्कृष्ट काल बनस्पति में बनस्थी जघन्यकाल उत्कृष्ट काल अंत अंतर्मु अंतर्मु अंतर्मु अंतर्मु हजार वर्ष असंखकालअसंखकाल असंखकाल असंखकाल ४० हजार वर्ष १२ हजार वर्ष १ अंतर्मु गर्नु १अंतन १ अंत. १अंतर्मु अत" अनंतकाल अनंतकात अनंतकाल अनंतकात ४० हजार वर्ष ४० हजार वर्व अंतर्मु, १७त अंतर्मु. १ अंतर्ग, अंत ३हजार वर्ष असंखकाल असंखकाल असंखकाल असंखकाल ४ अंत १२ हजार वर्ष १ अंतर्ग, अंतर्ग १ अंतर्मु, अतर्नु, १अंत १० हजार वर्ष अनंतकाल अनंतकाल अनंतकाल अनंशकात ४ अतर्मु ४० हजार वर्ष हजार वर्ष अंत | ४० हजार वा १२ हजार वर्ष ४० हजार वर्ष ४ अंतर्ग । जार वर्ष ३ हजार वर्ग ४० हजार वर्ष १२ हजार वर्ष १० हजार वर्ष १ अंत १० हजार वर्मा १० हजार न १० हजार वर्ष ४० हजार त ४० हजार वर्ष ४० हजार ४ अंतर्मु ४० हजार वर्ष ४० हजार वर्ष २ गमा २४६ Jain Education Intemational Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५० ४६ चार थावर में बेइंद्रिय ऊपजै तेहनों यंत्र (६) गमा २० द्वार नी संख्या १ २ 3 ४ ५ ६ ७ G १ ओधिक नै अधिक औधिक मैं जघन्य ओधिक नै उत्कृष्ट जघन्य नै ओधिक जघन्य नै जधन्य जघन्य नै उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट १४.७ गर्ने जिन जिण काय में ऊपजे तिण है जघन्य उत्कृष्ट आयु में ऊपजै । उपपात द्वार २.५० गर्ने जिन जिण काय में ऊपजे तिण रे जघन्य आयु मैं ऊपजै उत्कृष्ट नै औधिक उत्कृष्ट नै जघन्य उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट आयु में ऊपजे ३.६.९ गर्ने जिन जिन काय में ऊपजी तिरै उत्कृष्ट भगवती जोड़ (खण्ड-६) जघन्य २ परिमाण द्वार १२.३ ऊपजै १२.३ ૧૨૩ ऊपज उत्कृष्ट संखया असंख ऊपजै संखया असंख ऊपजै संख या असंख ऊपजै संघयण द्वार ६ १ छेवटो १ छेवटो १ छेवटो आंगुल भ असंख भाग ४ अवगाहना द्वार उत्कृष्ट १२ योजन Ear me o ज ૬ जघन्य आंगुल न असंख भाग गमा आंगुल न असंख भाग २ २ २ २ भव आंगुल न असंख भाग १२ योजन संख्यात संख्यात संख्यात संख्यात ८ ८ ८ ५ संठाण द्वार ६ १. हुंडक १हुंडक १हुंडक जघन्य काल ६ लेश्या द्वार { ३. पहली ३] पहली ३ पहली १ अंतर्मु १ अंतर्मु १ अंतर्मु १ अंतर्ग १ अंतर्मु, ७ हजार वर्ष १ अंतर्मु, १ अंतर्मु १ अंतर्मु, १ अंतर्मु १ अंतर्मु ७ हजार वर्ष ७ दृष्टि द्वार ३ १२ वर्ष १ अंतर्मु १२ वर्ष १ अंतर्मु १२ वर्ष ७ हजार वर्ष २ सम्यक मिथ्या २० कायसंवेध द्वार अप में बेइंद्रिय १ मिध्या २ सम्यक् मिथ्या उत्कृष्ट काल संखकाल संखकाल संखकाल संखकाल ४८ वर्ष २८ हजार वर्ष संखकाल संखकाल संखकाल संखकाल ४ अंतर्ग २८ हजार वर्ष ४८ वर्ष २८ हजार वर्ष ४८ वर्ष ४ अंतर्ग ४८ वर्ष २८ हजार वर्ष ज्ञान-अज्ञान द्वार ५ २ नियमा 1. २ नियमा 3 २ नियमा २ नियमा २ नियमा जघन्य काल १ अंतर्मु, १ अंतर्मु १ अंतर्मु, १ अंतर्मु १ अंत ३ दिन रात १ अंतर्मु, १ अंतर्ग १ अंतर्मु, १ अंतर्मु १ अंतर्ग ३ दिन रात योग द्वार १२ वर्ष १ अंतर्मु १२ वर्ष १ अंतर्मु १२ वर्ष ३ दिन रात 3 २ बच काय तेज में बेइंद्रिय - काय २ वच काय उपयोगा २ | २. उत्कृष्ट काल संखकाल संखकाल संखकाल संखकाल ४८ वर्ष १२ दिन रात ४८ वर्ष १२ दिन रात ४८ वर्ष ४ अंतर्ग ४८ वर्ष १२ दिन रा संखकाल संखका संखकाल संखकाल ४] अंत १२ दिन Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इन्द्रिय द्वार समुदघात द्वार वेदना द्वार वेद द्वार आयुद्वार अध्यवसाय द्वार अनुबंध द्वार नाणता उत्कृष्ट असंख्याता उत्कृष्ट पहली नपुंसक अंतर्मुहूर्त मलापूंना अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त | अब दृष्टि, ज्ञान. योग, आयु, आध्य, अनु० १नपुंसक २फर्स रस FE भलामुंडा वर्ग आयु. अनुबंध बायु में बेइंद्रिय वनस्पतीबेइंद्रिय उत्कृष्ट जघन्यकाल उत्कृष्ट काल अंतर्मु १अंतर्मु संखकाल संखकाल संखकाल संखकाल ४६ वर्ग १२हजार वर्ष १अंत १अंतर्नु १अंतर्मु अंतर्मु, १अंतर्मु १० हजार वर्ष संखकाल संखकाल संखकाल संखकाल ४. वर्ष ४० हजार वर्ष अंतर्म ३हजार वर्ष अंतर्मु अंतर्मु. आम अंत अंत हजार वर्ष संखकाल संखकाल संखकाल संखकाल ४ अंतर्मु १२ हजार वर्ष १.अंतर्मु. १ अंतर्ग १ अंतर्मु, अंतर्ग १अंतर्मु, हजार वा संखकाल संखकाल संयकाल संखकाल ४ अंतर्मु, ४० हजार वर्ष अंतर्मु. अवयं आ प३हजार वर्ष ४८ वर्ष १२ हजार वर्ष ४८ वर्ष ४ अंत ४८ वर्ष १२ हजार वर्ष १२ वर्ष १अंतर्मु, १२ वर्ष १अंतर्मु १२ वर्ष १० हजार वर्ष ४. वर्ष ४० हजार वर्ष ४. वर्ष ४ अंतर्मु, ४० वर्ष ४० हजार वर्ष गमा २५१ Jain Education Intemational Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५२ ५० च्यार थावर में तेइंद्रिय ऊपजै तेहनों यंत्र (७) २ परिमाण द्वार गमा २० द्वार नी संख्या ETV २ ओधिक नैं ओधिक ओधिक में जघन्य ओधिक नै उत्कृष्ट जघन्य नै ओधिक जघन्य नै जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट उत्कृष्ट नै ओधिक उत्कृष्ट नै जघन्य ६ उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट जघन्य उपपात द्वार उत्कृष्ट १४.७ गर्मी जिन जिन काय में ऊपजै ति जघन्य उत्कृष्ट आयु में ऊपजै। भगवती-जोड़ (खण्ड-६) | २५० गर्ग जिन जिन काय में उपजे तिन जघन्य आयु मैं ऊपजे ३.६.६ गर्म जिन जिन काय मैं ऊपजै तिन रै उत्कृष्ट आयु में ऊपजै। जघन्य ૧૨.૩ ऊपजै १२.३ ऊपजै "૨૩ ऊपजै उत्कृष्ट संखया असंख ऊपजै संखया असंख ऊपजै संखया असंख ऊपजै 3 संघयण द्वार ६ १ छेक्टो १ छेवटो १ छेक्टो 3 ६ गमा अवगाहना द्वार C जघन्य आंगुल न असंख भाग गुल न असंख भाग आंगुल न असंख भाग ~~ उत्कृष्ट ३ गाउ आंगुल न असंख भाग ३ गाऊ उ. संख्यात संख्यात संख्यात संख्यात ८ ५. संठाण द्वार ६ १ हुंडक १ हुंडक हुंडक लेश्या द्वार ६ ३ पहली ३ पहली ३] पहली जघन्य काल १ अंत अंतर्मु १ अंतर्मु १ अंतर्ग अंतर्मु] ७ हजार वर्ष १ अंतर्मु १ अंतर्मु १ अंतर्मु, १ अंतर्ग १ अंतर्मु ७ हजार वर्ष दृष्टि द्वार ३ ४६ दिन रास १ अंतर्मु ४९ दिन रात १ अंतर्ग ४६ दिन रात ७ हजार वर्ष २. सम्यक मिथ्या २० कायसंवेध द्वार अप में इंद्रिय १ मिथ्या २ सम्यक मिया संखकाल संखकाल सखकाल संखकाल ४ अंतर्ग] २० हजार वर्ष उत्कृष्ट काल संखकाल संखकाल संखकाल संखाल १६६ दिन रात २८ हजार वर्ष ज्ञान-अज्ञान द्वार २ नियमा ५ १९६ दिन रात २८ हजार वर्ष १९६ दिन रात ४ अंतर्मु १६६ दिन रात २५ हजार वर्ष २ नियमा • 3 २ नियमा २ नियमा २ नियमा जघन्य काल [१] अंतर्ग १ अंतर्मु १ अंतर्गः १ अंतर्मु १ अंतर्ग ३ दिन रात १ अंतर्मु, १ अंतर्मु १] अंतर्ग १ अंतर्ग [4] अंतर्मु] ३ दिन रात योग द्वार ४६ दिन रात १ अंतर्मु ४६ दिन रात अंतर्मु ४६ दिन रात ३ दिन रात 3 तेऊ में इंद्रिय २ वच काय काय २ वष काय उपयोगद्वा २ २ उत्कृष्ट काल संखकाल संखकाल संखकाल संखकाल १६६ दिन रात १२ दिन संखकाल संखकाल संखकाल संखकाल ४ अंतर्ग १२ दिन रात १६६ दिन रात १२ दिनस १६६ दिन रात अंत १६६ दिन रात १२ दिन Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३ १६ संझा द्वार इन्द्रिय द्वार समुदधात द्वार वेदना द्वार वेद द्वार आयद्वार अध्यवसाय द्वार अनुबंध द्वार नाणत्ता जघन्य असंख्याता जघन्य उत्कृष्ट ४६ दिन रात ४ दिन रात ऊपरली पहली नपुंसक अंतर्मुहूर्त भला डा अंतर्मुहत ऊपरली पहली नपुंसक अंतर्मुहूर्त अनर्गुहूर्त अंतर्मुहूर्त अ० दृष्टि,ज्ञान योग, आयु.अध्यअनु० ४९ | दिन रात पहली दिन रात दिनरात भला हा दिन रात आयु. अनुबंध वायु में तेइंदिय वनस्पति मै तेइंदिय जपन्य काल उत्कृष्ट जघन्य काल उत्कृष्ट काल अंतम् १ अंत अंतर्मु अंतर्मु अंतई हजार वर्ष संखकाल संखकाल संखकाल संखकाल १६६ दिन रात १२ हजार वर्ष १अंतर्मु १अंत. १अंत १अंतमु अामु १० हजार वर्ग संखकाल संखकाल संखकाल संखकाल १६६ दिन रात ४० हजार वर्ष अंदर्द अंतमु अंत अंत अंतर्मु ३ हजार वर्ग संखकाल रासकाल संखकाल संखकाल ४ अंतर्मु. १२ हजार वर्ग १७त अंतर्मु १रा अंत १अंत हजार वर्ष सखकालसंखकाल संखकाल संखकाल ४ अंतर्ग, ४० हजार वर्ष दिनरात अंत दिन रात अंतर्मु दिन रात ३ हजार वर्व १६६ दिन रात १२ हजार वर्ग १६६दिन रात ४ अंत १६६ दिन रात १२ हजार वर्ष ४ दिन रात अंत ४ दिन रात अंतk ४,दिन रात १० हजार वर्ष १६६ दिन रात ४० हजार वर्ग १६.६ दिन रात ४ अंतर्मु १६६ दिन रात ४० हजार वर्ष गमा २५३ Jain Education Intemational Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१च्यार थावर में चउरिंद्रिय ऊपजै तेहनों यंत्र (6) गमा २० द्वार नी संख्या परिमाण द्वार संघयण द्वार अवगाहना द्वार संठाण द्वार लेश्या द्वार | दृष्टि द्वार शान-अज्ञान द्वार योग द्वार उपयोग द्वार उपपात द्वार जघन्य | उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट १छेवटो ४गाउ पहली १हुंडक शनिवमा १२.३ ऊप | औधिक नै ओधिक | १४.७ गम जिण जिण काय में | ओधिक जघन्य ऊपजै तिण जघन्य उत्कृष्ट | ओधिक नै उत्कृष्ट आयु में ऊपजे। आंगुल नों असंख माग २नियमा संय या असंख ऊपजे २ सम्यक मिथ्या २वच -nmlxl. । १छेदटो पहुंडक नियमा जघन्य नै ओधिक २.५८ गगै जिण जिण काय जघन्य नै जघन्य मैं ऊपजे तिण रै जघन्य आयु जघन्य नै उत्कृष्ट | मैं ऊपजै। आंगुल नों असंख भाग ३ पहनी संखया असंख ऊप आंगुल नों असंख भाग मिथ्या काया १वटो ४ गाउ | १९डक | पहली नियमा । उत्कृष्ट नै ओधिक | ३.६.६ गर्म जिण जिण काय उत्कृष्ट नै जघन्य मैं ऊपजे तिण र उत्कृष्ट उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट | आयु में ऊपजै। आंगुल नों असंखभाग समयमा २ सम्यक मिथ्या सव ऊपजे असंख २० कायसंवेध द्वार अप में परिदिय जघन्यकाल उत्कृष्ट काज तेक मैं चउरिटिय गमा जपनाकाल उत्कृष्ट काल संख्यात संख्यात १अंतर्मु. १अंतर्मु. १अंतर्मु, १अंतर्मु १अंतर्मु ७ हजार वर्ष संखकाल सखकाल संखकाल संखकाल समास २८ हजार वर्ग १अंतर्मु, १अंतर्मु, १आत, १अंतर्मु. १अंतर्मु.३दिन रात संखकाल संखकाल संखकाल संखकाल २४मास १२ दिन रात संख्यात संख्यात १अंतर्म, अंतर्मु १अंतर्मु. १अंतर्मु १अंतर्मु, ७ हजार वर्ष संखकाल संखकाल संखकाल संखकाल ४ अंत २८ हजार वर्ष १अंत[.१अंत. १अंतर्मु.१अंतर्मु. १अंतर्मु.३ दिन रात संखकाल संखकाल संखकालसंखकाल ४ अंतनु. १२ दिन रात WANA ६मास१अंतर्मु. ६ मास १अंतर्मु. मास७ हजार वर्ष २४ गास २६ हजार वर्ग २४ मास ४ अंत २४ मास २८ हजार वर्ष ६मास अंतर्मु, ६मास अंतर्मु, ६मास ३ दिन रात समास १२ दिन रात २४ मास ४ अंतर्मु समास १२ दिन रात २५४ भगवती-जोड़ (खण्ड-६) Jain Education Intemational Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । इन्द्रिय द्वार । समाचार कषाय द्वार इन्द्रिय द्वार सनुपात द्वार वेदना द्वार अध्यवसाय द्वार आयुद्वार | उत्कृष्ट अनुबंध द्वार जघन्य | उत्कृष्ट जपन्य असंख्याता पहली अंतर्मुहूर्त मास भलामुंडा अंतर्मुहूर्त मास अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त पहली अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त अव० दृष्टि ज्ञान, योग आयु,अध्या. अनु० पहली मास । भला डा - मास | मारा | आयु. अनुबंध वायु में घरिदिय बनस्पति में वरिदिय मान्य काल उत्कृष्ट जघन्यकाल उत्कृष्ट काल अंतk अंतर्नु अंतर्मु, १अंतर्मु अंतई हजार वर्ष संखकाल संखकाल संखकाल संखकाल २४ मास १२ हजार वर्ग अंतर्मु, १अंतर्मु. १अंतर्मु. १अंतर्ग १अंतर्मुहजार वर्ष संखकाल संखकाल संखकाल संखकाल २४ मास ४० हजार वर्ष पार्नु अंतर्ग अंतई १अंतर्मु अंतर्मु ३ हजार वर्ष संखपाल संखकाल संखकाल संखकाल ४ अंतर्मु १२ हजार वर्ष १अंतर्नु १अंतर्मु १अंतर्मु. १अंत १अतर्म. १० हजार वर्ष संखकाल संखकाल सबकाल सखकाल ४ अंतर्मु ४० हजार वर्ष इमाम . मातहजार वर्ष २४ गास १२ हजार वर्ष २४ मास ४अंतर्म २४ मास १२ हजार वर्ष ६मास१अंतगु, ६ मासअंतर्मु ६नास १० हजार वर्ष २४ गास ४० हजार वर्ष २४ मास ४ अंतर्मु. २४ मास ४० हजार वर्ष गमा २५५ Jain Education Intemational Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ च्यार थावर में असन्नी तिर्यंच पंचेंद्रिय ऊपजै तेहनों यंत्र (6) गमा २० द्वारनी सख्या उपपात द्वार संघयण द्वार लेश्या द्वार दृष्टि द्वार ज्ञान-अज्ञान द्वार योग द्वार उपयोग द्वार परिमाण द्वार जघन्य उत्कृष्ट अवगाहना द्वार जघन्य | उत्कृष्ट संठाग द्वार ६ जघन्य । उत्कृष्ट । १ वटो पहली २सम्यक २नियमा निगमा २वय १ २ ३ ओधिक नै ओधिक ओधिक मैं जघन्य ओषिक नै उत्कृष्ट १४.७ गमे जिण जिण काय में ऊपजे तिण रैजघन्य उत्कृष्ट आयु में ऊपज। -१.२.३ ऊपजे संखया असंखऊपजै आंगुल नों असंख भाग १हजार गोजन मिथ्या १२.३ बटो १हुंडक ३पहली मिध्या २नियमा | १वाय जधन्यन ओधिक जघन्य नै जघन्य ६ जघन्य नै उत्कृष्ट २५.८ गर्ने जिजिण काय में ऊपजै तिण रे जघन्य आयु में ऊपाते। आगुल नों | असंख भाग संखया | असंख ऊपज असंख भाग १.२३ संखदा | बटो १९डक | ३पहली | नियना | नियमा उत्कृष्ट नै ओधिक 38 जियकार उत्कृष्टजन्य में ऊपजे तिण र उत्कृष्ट उत्कृष्ट ने उत्कृष्ट आयु में उपजे आंगुलनों अराख भाग ५ हजार योजन २ सम्यक मिथ्या २वन काय कायसवेध द्वार अप में असन्नी तिथंच पंचेदिय तेऊ में असन्नी लियच पंचेंद्रिय उत्कृष्ट काल जघन्य काल । उत्कष्ट काल अंतर्म० १अत १अंतर्नु० अंतर्मु. १अंतमु०७ हजार वर्व कोडपूर्व २८ हजार वर्ष ४ कोडपूर्व ४ अंतर्मु, ४ कोडपूर्व २८ हजार वर्ष १अंतर्मु.अंतर्म १अंत.१अंतर्मु. १अतर्मु.३दिन रात ४ बोडपूर्व १२ दिनस ४ कोडपूर्व ४ अंतम. ४ कोडपूर्व १२ दिनस . ४WALAUN १अंतर्मु.१अंतर्म १अंतर्मु अं १अंतर्मु७हजार वर्ष ४ अंतर्मुहूर्त २८ हजार वर्ष ४ आर्मुहूर्त ४ अंग ४ अंतर्गुइत २०. हजार वर्ग १अंतर्मु.अंतर्मु १अंतर्मु, अंतर्नु १अंतर्मु ३ दिन रात | ४ अंत २ दिनस्ट ४ अंतर्मु.४ अंतर्मु. ४ अंतमु दिन व १कोडपूर्व १ मा +कोडपूर्व १ अंतर्नु अतर्नु हजारवर्ष कोडपूर्व २८ हजार वर्ष ४ कोटपूर्व ४ अंतk ४ कोडपूर्व २८ हळार दल १कोडपूर्व १ अंत[. १कोउपूर्व १अंतमु १अत ३ दिन रात । ४ कोडपूर्व १२ दिन ४ कोडयूर्व ४ अंतर्मु ४ कोडपूर्व १२ दिनका २५६ भगवती-जोड (खण्ड-६) Jain Education Intemational Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वार १२ कषाय द्वार जघन्य काल वायु में असन्नी तिच पंचेंद्रिय १. अंतर्मु, १ अंतर्ग १ अंतर्मु, १ अंतर्मु १ अंत ३ हजार वर्ष १ अंतर्ग १ अंतर्मु १ अंत १ अंतर्मु १ अंतर्ग ३ हजार वर्ष ४ १ पूर्व १ अंतर्मु [१] कोडपूर्व १ अंतर्मु ४ १] शेडपूर्व ३ हजार वर्ष 93 इन्द्रिय द्वार ५. ५ ५ उत्कृष्ट काल ४] कोडपूर्व १२ हजार वर्ष ४] कोडपूर्व ४ अंतर्मु ४] कोडपूर्व १२ हजार वर्ष ४ अंतर्मु १२ हजार वर्ष ४ अंतर्ग. ४ अंतर्मु ४ अंतर्ग १२ हजार वर्ष ४] कोडपूर्व १२ हजार वर्ष ४] कोडपूर्व ४ अंतर्ग ४ को पूर्व १२ हजार वर्ष १४ समुद्धात द्वार 19 ३] पहली ३ पहली ३] पहली जघन्य काल १ अंत १ अंतर्मु १ अंतर्मु, १ अंतर्ग १ अंतर्मु, १० हजार वर्ष वनस्पति में सन्नी तिर्वच पंचेंद्रिय १ अंतर्मु १ अंतर्ग १ अंतर्ग. १ अंतर्मु १ अंतर्ग १० हजार वर्ष १५ वेदनाद्वार २ १ कोडपूर्व १ अंतर्मु १ कोडपूर्व १ अंतर्मु १ कोडपूर्व १० हजार वर्ष २ २ उत्कृष्ट काल ४] कोडपूर्व ४० हजार वर्ष ४] कोडपूर्व ४ अंतर्ग [४] कोडपूर्व ४० हजार वर्ष ४] अंतर्मु ४० हजार वर्ष ४ अंतर्मु ४ अंतर्मु ४ अंतर्मु ४० हजार वर्ष ४] कोडपूर्व ४० हजार वर्ष ४ को पूर्व ४ अंतर्मु ४] कोडपूर्व ४० हजार वर्ष १६ वेद द्वार ३ १ नपुंसक १ नपुंसक १ नपुराक जघन्य अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त १. कोडपूर्व आयु द्वार उत्कृष्ट १ कोडपूर्व अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व १८ अध्यवसाय द्वार असंख्याता भलाभूंडा मूंडा भलाभूटा जघन्य १६ अनुबंध द्वार अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व उत्कृष्ट १ कोडपूर्व अंतर्मुहूर्त १] कोडपूर्व नाणता ७ अब, दृष्टि, ज्ञान, योग, आयु, अध्य, अनु २ आयु. अनु गमा २५७ Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३ च्यार थावर में संख्याता वर्ष नों सन्नी तिर्यंच ऊपजै यंत्र (१०) गमा २०द्वार नी संख्या संघयण द्वार संठाणद्वार लेश्या द्वार दृष्टिदार शान-अज्ञान द्वार योग द्वार उपयोग कर उपपात द्वार जघन्य । उत्कृष्ट परिमाण द्वार जघन्य उत्कृष्ट अवगाहना द्वार उत्कृष्ट आंगुल नों ३ ३भजना । भजना ३ १ २ ३ ओधिक नै ओधिक ओधिक न जघन्य ओधिक उत्कृष्ट १४.७ गर्ने जिण जिण काय में ऊपज तिण रैजधन्य उत्कृष्ट आयु में ऊपजै। १२.३ ऊप संखया असंख ऊपजे | १हजार योजन असंखभाग १२.३ ३पहली | मिथ्या २नियमा १काया ४ जघन्य नै ओधिक |२.५८ गर्म जिण जिन काय में । ५ जघन्य नै जघन्य ऊपजै तिण रैजघन्य ६ जघन्य नै उत्कृष्ट | आयु में रूपजै। संखया असंखऊपजे आंगुल नों असंख भाग आगुल नों | असंख भाग १२.३ ३भजना ३भजना उत्कृष्ट नै ओधिक उत्कृष्ट नै जयन्य ६ उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट ३.६.६. गर्म जिण जिण काय में ऊपजे तिण र उत्कृष्ट आयु में ऊपजै। संखया | असंख ऊपजै आंगुल नों असंख भाग | १हजार योजन ऊपने २० कायसंवेध द्वार अप में संख्याता वर्ष नो सन्नी तिबंध तेज में संख्याता वर्ष नों सम्नी तिबंध ज र जघन्य काल । उत्कृष्ट काल जघन्य काल - उत्कृष्ट काल १ अंतर्मु०१अंतर्मु १अंतर्मु०१ अंतर्मु. १अंतर्मु०७ हजार वर्ष ४ कोडपूर्व २८ हजार वर्ष ४ कोडपूर्व ४ अंतर्मुः ४ कोडपूर्व २८ हजार वर्ष १अंतर्मु.अंतर्म १अंतर्मु.१अंतर्मु १अंतर्मु.३दिन रात ४ कोडपूर्व १२ दिनमा ४ कोडपूर्व अंत ४ कोडपूर्व १२ दिनका fuwa|uuu १ अंतर्मु.१अंतर्मु. १ अंतर्मु १अंतर्मु १अंतर्मु७हजार वर्ष ४अंतर्मुहुर्त २८ हजार वर्ष ४ अंतर्मुहूर्त ४ अंतर्मु. ४अंतर्मुहूर्त २८ हजार वर्ष १अंतर्मु.१ अंतर्मु १ अंतर्मु.१अंतर्मु. अंतर्मु ३दिन रात । ४अंतम दिन सा ४ अंतk.४ अंतर्मु. ४ अंतर्मु, १२ दिनका । १ कोडपूर्व १ अंतर्म १कोडपूर्व १अंतर्मु. १ कोडपूर्व ७ हजार वर्ष ४कोडपूर्व २८ हजार वर्ष [४ कोडपूर्व ४ अंतर्मुक ४ कोडपूर्व २८ हजार वर्ष १कोडपूर्व १ अंतर्म १कोडपूर्व १अंतर्मु. १ कोटपूर्व ३ दिन रात । ४ कोडपूर्व दिन ४ कोडपूर्व ४ अंतन ४ कोडपूर्व २ दिनक २५. भगवती-जोड़ (खण्ड-६) Jain Education Intemational Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संज्ञा द्वार, कवाय द्वार इन्द्रिय द्वार समुदधात द्वार वेदना द्वार वेद द्वार आयद्वार अनुबंध द्वार नाणत्ता आध्यवसाय द्वार असंख्याता अंतर्मुहूर्त कोहपूर्व भला डा अंत ३पहली अंतर्मुहूर्त | आह । डा आM | अंतर्मुस अब लेश्या दृष्टि ज्ञान-अक्षान, योग, राग आयु, अध्य. अनु | १कोठपूर्व । मलानूडा कोडगूर्व जोडपूर्व वनस्पति में संख्याता व नो सन्नी तिर्यय वायु में संख्याता वर्ष नों सनी तिर्वच उत्कृष्ट काल जधन्यकाल उत्कृष्ट काल १अंतर्मु अंतर्ग, अंतर्मु अंतर्ग अंर हजार वर्ष ४ कोडपूर्व १२ हजार वर्ग ४ कोडपूर्व ४ अंतर्ग ४ कोडपूर्व २हजार वर्ष १जत अंत १अंतर्मु.अंतर्मु. १अंतर्मु कहजार वर्ग ४ कोडपूर्य ४० हजार वर्ग ४कोहपूर्व अंत ४ फोडपूर्व ४० हजार वर्ग १अंतर्नु अंतर्मु १अंतर्मु.१अंतर्ग अंतर्मु,३हजार वर्ष ४ अंतर्मु १२ हजार वर्ग ४ आर्मु ४ अंतर्मु, ४ अंतर्मु १२ हजार वर्ग आर्मु.१जत १अंतर्मु.१ अरा १अंतर्मु १० हजार वर्ष ४ अंत ४० हजार वर्ग ४ अंतर्मु अंत ४ अंआ४० हजार वर्ष कोडपूर्व १अंतर्मु कोळपूर्व १ अंतर्मु पोचपूर्व ३ हजार दर्श ४ कोडपूर्व १२ हजार वर्ष ४ कोडपूर्व४ अंतर्मु. ४ कोडपूर्व १२ हजार वर्ष १ कोडपूर्व १ अत १कोडपूर्व , पकोडपूर्व १० हजार वर्ग ४कोडपूर्व ४० हजार वा ४ कोडपूर्व ४ अंत ४ कोडपूर्व ४० हजार वन गमा २५६ Jain Education Intemational Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ च्यार थावर में संख्याता वर्ष नां सन्नी मनुष्य ऊपजै तेहनों यंत्र (११) ५ गमा २० द्वारनी संख्या २ परिमाण द्वार उत्कृष्ट | संघयण द्वार अवगाहना द्वार संठाण द्वार | | लेश्या द्वार दृष्टिद्वार ज्ञान-अज्ञान द्वार । योग द्वार उपपात द्वार उत्कृष्ट उपयोग द्वार जघन्य १२.३ संख्याता ४भजना आधिकनै औधिक ओधिक जघन्य ओधिक नै उत्कृष्ट १४ गर्म जिन जिन काय में ऊपरी तिणजधन्य उत्कृष्ट आयु में ऊपजे। आंगुल नों असंखभाग २ ३ धनुष्य ३पहली । . सनियगा | ४ जघन्य नै औधिक जघन्य नै जघन्य ६ जघन्य नै उत्कृष्ट संख्याता ऊपजे काय | २.५८ गर्ने जिण जिण काय में ऊपजे शिण र जयन्य आयु में ऊपरी। आंगुलनों | आंगुल नौ। असंखभाग |असंख भाग ऊपने १२.३ ४ भजना | भजना उत्कृष्ट नै ओधिक ३.६.६ गगै जिप जिण काय ८. उत्कृष्ट नै जघन्य | में उपजे तिण र उत्कृष्ट उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट आयु में ऊपर्छ। राख्याता ऊपजे ५सौ मनुष्य २० कायसंवेध द्वार अप में संख्याता दई ना सन्नी मनुष्य वनस्पति में सरदाता वर्ष नां सन्नी मनुष्य जपन्यकाल उत्कृष्ट काल जघन्यकाल १अंत०१अंतम १० १अतर्नु १अंन मुं०७ हजार दर्व J४ कोहपूर्व २८ हजार का |४कोउपूर्व अंतर्गु कोडपूर्व २८ हजार वर्ष १अंतर्मु १ अंतk १अंतर्मु० १अंतर्नु अंतर्मु २० हजार वर्ष Jvोडपूर्व ४० हजार | ४ कोटपूर्व ४ अंग ४कोडपूर्व ४० हजार १अंत १आ. अंतर्मु अंत अंतर्मु०४ हजार वर्ष अंतर्मुहले २० हजार वर्ष | अत अंत ४ अंतर्मुह २० हजार वर्ग | गर्नु १ आर्ग १अंतर्मु०१.अंत १अंतर्मु० हजार वर्ष अंतर्मु ४० हजार | ४ ऑry अंग ४ अंतर्मु ४० हजार वर्ष १कोडपूर्व अंगन १कोडपूर्व १ अंतर्मु. १कोडपूर्व ७ हजार वर्ष कोडपूर्व २० हजार वर्ष | ४ कोडपूर्व अंत | ४ को पूर्व २८ हजार वर्ग १कोडपूर्व आM ४ कोडपूर्व ४० हजार वर्ष १कोडपूर्व १ अंतर्नु | ४ कोडपूर्व ४ अंत; १कोडपूर्व १० हजार वर्ष ४ कोहपूर्व ४० हजार वर्ष २६० भगवती-जोड़ (खण्ड-६) Jain Education Intemational Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कवाय द्वार इन्द्रिय द्वार समुपात द्वार वेदनाद्वार देदवार आयवसाय द्वार आयुद्वार जघन्य १६ अनुबंध द्वार . जघन्य उत्कृष्ट नाणत्ता उत्कृष्ट असंख्याता ६पहली अंतर्मुहूर्त | कोडपूर्व भलामुंडा अंग । १कोडपूर्व ___ अंतर्नु | अंतर्मुहूर्त - अंतर्मुहूर्वा । अंतर्मुहूर्त अब.लेश्या. दृष्टि ज्ञान-अज्ञान, योग, समु. आय. अध्य,अनु. ६पहली १कोडपूर्व कोडपूर्व मला डा १कोडपूर्व । १ कोडपूर्व अब आयु, अनु तेऊ में संख्याता वर्ष नां सन्नी मनुष्य जघन्यकाल उत्सृष्ट काल वायु में संख्याता वर्ष ना सन्नी मनुष्य - | उत्कृष्ट काल आर्मु० १अंतर्म १अंतर्मु०१अंतर्ग १अंतर्मु०३ दिन रात १ कोटपूर्व ३ दिन रात १कोडपूर्व १० १कोडपूर्व दिन रात १अंतर्ग १अंत. १अंत १ अंत १अंत हजार वर्ष १कोडपूर्व ३ हजार वर्ष १कोडपूर्व १ अंत १कोडपूर्व ३ हजार वर्ग १अंतर्म.१ अधर्म १अंतर्मु.१अंतर्मु. ५अंतर्ग.दिन रात अंतर्मुहर्त दिन रात १ अलर्ग,१अंत अंतदिन रात १अंत अंत १ अंत, अत १अतम ३ हजार वर्ष १अंतर्ग.हजार वर्ष १अंतर्मु.अंत १अतर्मु.३हजार वर्ष १कोडपूर्व १ अंतर्नु १कोडपूर्व १ अंग १कोडपूर्व३दिन रात १कोडपूर्व ३ दिन रात १कोडपूर्व अंतर्मु, | १कोडपूर्व दिन रात १कोजपूर्व १ अंल. पकोडपूर्व १अंतर्मु १कोडपूर्व ३ हजार वर्ष १कोडपूर्व ३ हजार वर्ष १कोडपूर्व १अंत. १कोडपूर्व ३हजार वर्ष गमा २६१ Jain Education Intemational Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५ च्यार थावर में असन्नी मनुष्य ऊपजै तेहनों यंत्र (१२) गमा २० द्वार नी संख्या | संघयण द्वार सठाण द्वार तेश्या द्वार दृष्टि द्वार ज्ञान-अज्ञान द्वार योग द्वार उपयोग उपपात द्वार जघन्य उत्कृष्ट परिमाण द्वार जघन्य अवगाहना द्वार जघन्य उत्कृष्ट १ वटो आंगुलनों आंगुलनों पहुंडक १मिथ्या २नियमा १काया ओधिक ओपिक | गर्म जघन्य उत्कृष्ट आयु में ओधिक जघन्य गजघन्य आयु में ओधिक नै उत्कृष्ट | ३ गमै उत्कृष्ट आयु में कपजै। १२३ ऊपते संख या असंख ऊपजे भाग कायसंवेध द्वार अप में असन्नी मनुष्य बनस्पति में असन्नी मनुष्य उपन्य काल उत्कृष्ट काल उत्कृष्ट काल اله به له १अंतर्मु०१अंत १अंगगुं० १अंतर्ग: १ अंतर्मु. ७ हजार वर्ष ४अंत २८ हजार वर्ष ४ अंतर्मु.४अत ४ अंतर्मु.२.हजार वर्ग आM.१अंत १अंतर्मु अंत ५अंतमु राजार वर्ष ४तजार ४ अंतk viry ४ अत, ४० हजार ५६ अप तथा वनरपति में असुरकुमार ऊपजै तेहनों यंत्र (१३) गमा २० द्वारगी सख्या सधयणद्वार संठाण द्वार | लेश्या द्वार| दृष्टि द्वार ज्ञान-अज्ञान द्वार योग द्वार उपर उपपात द्वार जघन्य परिमाण द्वार उत्कृष्ट अवगाहना द्वार जघन्य उत्कृष्ट १२.३ संखया असंधवणी ४ पहली ३ नियमा | ओपिक ने ओधिका १४.७ गगै जिण जिण ओधिक नैं जघन्य काय में उप तिगरे ओधिक नै उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट आयु में ऊपजे। आंगुल नौ असंखभाग सगधीरंस संखया ४ पहली निग्रमा आगुल नों असंख भाग भजना जघन्य नै ओधिक जघन्य ने जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट | २.५.८ गर्गे जिण जिण काय में ऊपजे शिप जघन्य आयु में ऊपजे। जराषवणी ४पहली नियमा भजना उत्कृष्ट न ओधिक जयष्ट नै जपन्या उत्कृष्ट उत्कृष्ट ३.६६गर्म जिन जिण काय में ऊपजे शिण र उत्कृष्ट आयु में ऊपजे। संखया अरांस आगुल नौ अराखभाग समारंस 360 भगतनी-जोर साल) Jain Education Intemational Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कषाय द्वार इन्द्रिय द्वार समुदघात द्वार वेदनाद्वार आयु द्वार आध्यवसाय द्वार अनुबंध द्वार नाणता उत्कृष्ट असंख्याता उत्कृष्ट नपुंसक अंतर्मुरी । अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त तेज में असन्नी मनुष्य बायु में असन्नी मनुष्य जघन्य काल । उत्कृष्ट काल । जघन्य काल - उत्कृष्ट काल अंतर्मु अंत अंतर्मु.१अंत १अंतर्नु दिन मात १अंतर्मु३दिन रात अंतर्मु १अंतर्मु १अंतदिन रात १अंतर्मु अंगमु. अंतर्मु अंतर्मु १अंतर्नु हजारदा १अंतर्मु ३ हजार वर्ष १अत अवर्नु अंतर्मु ३ हजार वर्ष | १७ संज्ञा द्वार कषाय द्वार इन्द्रिय द्वार समुद्घात द्वार वेदना द्वार वेद द्वार आयु द्वार अध्यवसाय द्वार नाणत्ता अनुबंध द्वार । उत्कृष्ट जघन्य असंख्याता जपन्य सी हजार वर्ष सागर जाझो हजार वर्ष | सागर जाझो ५ पहली १० हजार वर्ष हजार वर्ष हजार वर्ष हजार वर्ष आयु.अनुबंध ५पहली रसी सागर जाझो सागर जामो सागर जाओ सागर जाझो आयु, अनुबंध कायसवेध द्वार अप में असुरकुमार वनस्पति में असुरकुमार जघन्य कात उत्कृष्ट काल गमा १० हजार वर्ष १अंतर्मु. सागर जामो० हजार वर्ष १० हजार वर्ष १अमु. १० हजार वर्ष अंतर्मु. |सागर जाझी आतमु १० हजार वर्ष १अंत हजार हजार वर्ष |सागर जानो हजार वर्ष १० हजार वर्ष १० हजार वर्ष सागर जाझो हजार वर्ष सागर जामो१अंत सागर जाझो० हजार वर्ग १० हजारवर्ष अंतर्मु. 10 हजार वर्ष ७ हजार वर्ष |% हजार वर्ष आर्म १० हजार वर्ग % हजार वर्ष १० हजार वर्ष १ अंतर्मु. 40 हजार वर्ष १ अंतर्मु. १० हजार वर्ष अंतर्मु. १० हजार वर्ष १ अंत १० हजार वर्ष हजार वर्ष १० हजार वर्ष हजार वर्ष १० हजार वर्ग १० हजार वर्ष |१० हजारवर्ग १० हजार वर्ग १सागर जाझो १अंतर्मु. १सागर जाझो ४ हजार वर्ष सागर जामोअंतर्मु सागर जाझो ५० हजार वर्ष १ सागर जाझो१अंतर्मु, १सागर जामोआ १सागर जाझोआर्म १सागर जाझीअंतर्ग १ सागर जानो हजार वर्ष १सागरजाझो ७ हजार वर्ष १ सागर जामो० हजार वर्ष १गर जामो० हजार दर्ड गमा २६३ Jain Education Intemational Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७ अप तथा वनस्पति में नवनिकाय ऊपजे तेहनों यंत्र (१४) गमा २० द्वार नी संख्या परिमाण द्वार संघयण द्वार अवगाहना द्वार संठाण द्वार लेश्या द्वार | दृष्टिद्वार ज्ञान-अज्ञान द्वार योग द्वार उपयोग उपपात द्वार जघन्य । उत्कृष्ट उत्कृष्ट असंघयणी हाथ ४पहली नियमा भजना | ओधिक नै औधिक | १४.७ गमैं जिण जिण जोधिकन जपन्य | काय मैं ऊपजै तिणरे ओधिक नै उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट आयु में ऊपजै। संखया असंख आंगुल नों असंख माग समचौरंस असंघयणी ७हाथ ४पहली | ३ ३नियमा भजना जान्य नै औधिक २५८ गर्ने जिण जिण काय | जापन्य नै जघन्य |मैं ऊपजे तिन जघन्य जपन्य नै उत्कृष्ट आयु में उपजे। संखया असंख ऊप आंगजनों असंखभाग समचौरंस १२.३ असंधयणी ४ पहली नियमा | भजना | जाकृष्ट नै औधिक ३६.६ गर्म जिण जिण काय उत्कृष्ट ने जप-य में ऊपजै तिण रै उत्कृष्ट | उत्कृष्ट ने उत्कृष्ट | आयु मै उपजे। संखया असंस |आंगुलना असंख भाग समाधीश ५८ अप तथा वनस्पति में व्यंतर ऊपजे तेहनों यंत्र (२३) गमा २० द्वार नी संख्या संघयण द्वार अवगाहना द्वार सठाण द्वार लेश्या द्वार दृष्टिद्वार ज्ञान-अज्ञानदार योग द्वार उपयोगा उपपात द्वार जघन्य । उत्कृष्ट परिमाण द्वार उत्कृष्ट जघन्य | ओधिक नै ओधिक १४.७ गर्ने जिम जिण काय ओधिक जघन्य | मैं रुप तिगरैजघन्य ओधिक नै उत्कृष्ट उत्कृष्ट आयु में ऊपरी उपजे संखया असंख ऊपज आंगुलनों असंख असंघवणी समीरस पहली नियमा हाथ जवन्द नै औधिक | २५८ गर्ने जिन जिण काय जघन्य न जब मैं ऊपजे तिणजपन्य जघन्य उत्कृष्ट | आयु में ऊपजै। १२.३ ऊपजे असंघयणी अंगुलनों। असंख समाचौरस असंख भाग पहली नियमा भाग | उत्कृष्ट नै ओधिक ३.६.१ गर्न जिण जिण काय सत्पष्ट नै जघन्य | मैं ऊपजै तिज रै उत्कृष्ट | मष्ट में राष्ट| आयु में ऊपज १२.३ ऊप संखया असंख भाग असंघयापी आंगुलना असंख भाग समचौरस पहली निकमा Jain Education Intemational Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 99 संज्ञा द्वार * ४ 8 * 99 Y - कषाय द्वार ४ ४ x x १२ कषाय द्वार ४ ∞ 30 93 इन्द्रिय द्वार ५ ५ ५ १३ इन्द्रिय द्वार ५. ५ ५ ५ समुद्घातद्वार ५] पहली ५] पहली ७ ५ पहली १४ समुद्घात द्वार ५ पहली ५ पहली ५ पहली फ्यू वेदनाद्वार २ A له १५ वेदना द्वार २ गगा १ ३ ५ ૬ 19 C १६ वेद द्वार ३ २] [स्त्री पुरुष २ स्त्री पुरुष २ स्त्री. पुरुष गमा १ २ ४ ५ & ७ १६ वेदद्वार ३ २ स्त्री पुरुष २ स्त्री पुरुष २ स्त्री पुरुष Л २ 0 1 2 ~~~~~~~~~ २ २ २ २ २ २ २ २ भव ज० २ २ जघन्य त २ १ पन्य ૨ २ २ २ २ २ २ १० हजार वर्ष 3 १० हजार वर्ष उ० www. जघन्य २ २ हजार वर्ष आयु द्वार 90 हजार वर्ष देण २ पल्य १७ आयु द्वार उत्कृष्ट देसूण २ पल्य 90 हजार वर्ष उत्कृष्ट देसू २ पल्य जघन्य काल १० हजार वर्ष १० हजार वर्ष १ अंतर्ग १० हजार वर्ष १ अंतर्मु १० हजार वर्ष ७ हजार वर्ष १० हजार वर्ष १ अंतर्मु १० हजार वर्ष १ अंतर्मु १० हजार वर्ष ७ हजार वर्ष देसूण २ पल्य १ अंतर्मु देण २ पल्य १ अंतर्मु देसूण २ पल्य ७ हजार वर्ष अप में नव निकाय भला [१] पल्य १ अंतर्मु १ पल्य १ अंतर्मु १ पल्य ७ हजार वर्ष डा भला मूंडा १८ अध्यवसाय द्वार असंख्याता भला भूंडा १० हजार वर्ष १ अंतर्मु १० हजार वर्ष १ अंतर्मु० १० हजार वर्ष ७ हजार वर्ष अध्यवसाय द्वार असंख्याता भला मूंडा भला भूंडा २० कायसंवेध द्वार भला भूंडा अप में व्यंतर ऊपजै जघन्य काल १० हजार वर्ष १ अंतर्ग १० हजार वर्ष १ अंतर्मु १० हजार वर्ष ७ हजार वर्ष उत्कृष्ट काल देसूण २ पल्य ७ हजार वर्ष देसून २ पल्य १ अंतर्मु देसून २ पल्य ७ हजार वर्ष १० हजार वर्ष ७ हजार वर्ष १० हजार वर्ष १ अंतर्ग १० हजार वर्ष ७ हजार वर्ष देसूण २ पल्य ७ हजार वर्ष देसूण २१ अंतर्ग देसूण २ गल्य ७ हजार वर्ष उत्कृष्ट काल [१] पल्य ७ हजार वर्ष १ पल्य १ अंतर्मु० १ पल्य ७ हजार वर्ष जघन्य २० कायसंवेध द्वार १ पल्य ७ हजार वर्ष १ पल्य १ अंतर्ग० [१] पल्य ७ हजार वर्ष १० हजार वर्ष १० हजार वर्ष १. पल्य १० हजार वर्ष ७ हजार वर्ष १० हजार वर्ष १ अंतर्गु० १० हजार वर्ष ७ हजार वर्ष जघन्य 90 हजार वर्ष १० हजार वर्ष देसूण २ पल्प अनुबंध द्वार १६ अनुबंध द्वार जघन्य काल उत्कृष्ट १० हजार वर्ष १ अंतर्मु १० हजार वर्ष १ अंतर्मु १० हजार वर्ष १० हजार वर्ष १ पल्य उत्कृष्ट १० हजार वर्ष १ अंतर्मु १० हजार वर्ष १ अंतर्ग १० हजार वर्ष १० हजार वर्ष १० हजार वर्ष देसून २ पल्य १ अंतर्मु देसूण २ पल्य १ अंतर्ग देसूण २ पल्य १० हजार वर्ष पत्य देसू २ पल्य हजार वर्ष देसू २पल्य जघन्य काल वनस्पति में नव निकाय १ पल्य १ अंतर्मु० १ पल्य १ अंतर्मु १ पल्य १० हजार वर्ष १० हजार वर्ष १ अंतर्ग १० हजार वर्ष १ अंतर्मु० १० हजार वर्ष १० हजार वर्ष १० हजार वर्ष १ अंतर्ग १० हजार वर्ष १ अंतर्मु १० हजार वर्ष १० हजार वर्ष नाणत्ता आयु अनुबंध वनस्पति में व्यंतर ऊपजै २ आयु अनुबंध • उत्कृष्ट काल देसूण २ पल्ट १० हजार वर्ष देसूण २ पल्य १ अंतर्मु देसूण २ पल्य १० हजार वर्ष १० हजार वर्ष १० हजार वर्ष १० हजार वर्ष १ अंतर्मु १० हजार वर्ष १० हजार वर्ष देसूण २ पल्य १० हजार वर्ष देसून २ पल्य १ अंतर्मु देसूण २ पल्य १० हजार वर्ष नाणत्ता • आयु अनुबंध २ आयु अनुबंध उत्कृष्ट काल १ पल्य १० हजार वर्ष १ पल्य १ अंतर्मु १ पल्य १० हजार वर्ष १० हजार वर्ष १० हजार वर्ष १० हजार वर्ष १ अंतर्मु १० हजार वर्ष १० हजार वर्ष १ पल्य १० हजार वर्ष १ पल्य १ अंतर्ग० १ पल्य १० हजार वर्ष गमा २६५ Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६६ ५६ अप तथा वनस्पति में ज्योतिषी ऊपजै तेहनों यन्त्र (२४) गमा २० द्वार नी संख्या १ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ६ २ ४ गमा २० द्वार नी संख्या ५ ६ ओधिक नैं ओधिक अधिक ने जघन्य ओधिक नै उत्कृष्ट ८ जधन्य नै ओधिक जघन्य नै जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट ६ उत्कृष्ट नै ओधिक उत्कृष्ट नै जघन्य उत्कृष्ट में उत्कृष्ट ओधिक नै ओधिक ओधिक नै जघन्य ओधिक मैं उत्कृष्ट जघन्य नै ओधिक जघन्य नै जघन्य जघन्य मैं उत्कृष्ट उत्कृष्ट मैं ओधिक उत्कृष्ट नै जघन्य उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट उपपात द्वार जघन्य १४. ७ गर्मी जिन जिण काय मैं ऊपजै तिन रै जघन्य उत्कृष्ट आयु में ऊपजै । उत्कृष्ट २.५० गर्ने जिन जिण काय में ऊपजे तिण रै जघन्य आयु में ऊपजै ३.६६ गर्ने जिन जिन काय में ऊपजे तिण र उत्कृष्ट आयु में ऊपजै । भगवती जोड (खण्ड-६) उपपात द्वार जघन्य उत्कृष्ट १४.७ गर्म जिन जिन काय मैं ऊपजे तिण रे जघन्य उत्कृष्ट आयु में ऊपजै । २.५८ गमै जिन जिन काय मैं ऊपजे तिण रे जघन्य आयु में ऊपजै । ३.६.६ गमे जिन जिन काय में ऊपजे तिण रै उत्कृष्ट आयु में ऊपजै । परिमाण द्वार जघन्य १,२,३ ऊपजै ૧૨૩ ऊपजै ६० अप तथा वनस्पति में प्रथम देवलोक सौधर्म नां देव ऊपजै तेहनों यंत्र (२५) १२.३ ऊपजै जघन्य १२.३ ऊपजै उत्कृष्ट १.२.३ रूपजे संख या असंख ऊपजै २ परिमाण द्वार १२.३ ऊपजै संख या असंख ऊपजै संखया असंख ऊपजै उत्कृष्ट संखया असंख ऊपजै संखया असंख ऊपजै ३ संघयण द्वार ६ संख या असंख ऊपजै असंघयणी असंपवणी असंघयणी संघयण द्वार ६ असंघयणी असंघवणी ४ अवगाहना द्वार असंघयणी जघन्य आंगुल न असंख भाग आंगुल न असंख आंगुल न असंख भाग आंगुलनों असंख भाग आंगुलनों असंख भाग उत्कृष्ट ७ हाथ अवगाहना द्वार आंगुलन असंख भाग ७ हाथ ७ हाथ ਜ਼ਦ ७ हाथ ७ हाथ ५ संठाण द्वार ६ 9 समचौरंस समचौरंस समचौरंस ५. संठान द्वार ६ 9 समचौरंग समचौरंस समधीरंस ६ लेश्या द्वार ६ १ तेजु १ तेजु १. तेजु लेश्या द्वार ६ १ तेजु १ तेजु १ तेजु दृष्टि द्वार ३ ३ ७ दृष्टि द्वार ३ ३ मिथ्या ३ मिथ्या मिथ्या ज्ञान-अज्ञान द्वार ५ नियमा ३ नियमा नियमा ५ ३ नियमा ३ नियमा 3 ज्ञान-अज्ञान द्वार ३ नियमा ३ नियमा 3 नियमा 3 नियमा ३ ३ नियमा ३ नियमा ३ नियमा योग द्वार 3 3 3 3 ६ योग द्वार ३ ३ 3 ३ उपयोग ~~ २ उपयो २ २ Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इन्द्रिय द्वार | समुद्घात द्वार वेदनाद्वार वैददार आयुद्वार अध्यवसाय द्वार अनुबंध द्वार नाणता जघन्य उत्कृष्ट असंख्याता उत्कृष्ट ५ पहली अपपाव अपपाव १पल्य १लाख वर्ष पुरुष १लाख वर्ष भलामुंडा ५पहली अघपाव अधपाव मला अषपाव अघपाव २स्त्री. पुरुष आयु अनुबंध २स्त्री. मलानूस १पल्य १लाख वर्ष १लाख वर्ष १लाख वर्ष लाख वर्ष अनुबंध कायसंवेध द्वार ___ अप में ज्योतिषी ऊपजै जघन्य काल उत्कृष्ट काल वनस्पति में ज्योतिषी ऊपजे ज. उ० जघन्यकाल उत्कृष्ट काल २ अपपावपल्यअंतर्ग० अयपाव पल्प १अंतर्मु अघपावपल्य७ हजार वर्ष १पल्य १ लाख ७ हजार वर्ष | अपपाय पल्यअंतर्गु० १पल्य१लाख वर्ष अंतर्गु० अपपाव पल्य१अंतर्मु० १पल्य१लाख वर्ष ७ हजार वर्ष | अपपाव पल्य० हजार वर्ष १पल्य१लाख वर्ष हजार वर्ष १पल्य १ लाख वर्ष १अंतर्मु० १पल्य १ लाख वर्ष हजार वर्ष २ अपपाद पन्य अंतर्मुः अपपाव पल्य १अंतर्मुस अघपाव पल्य७ हजार वर्ष | अघपाव पल्य७ हजार वर्ष अपपाव पल्य १० अघाव पल्य ७ हजार वर्ष अपपाव पल्यअंतर्मु अपघाव पल्यअंतर्मु अपपाव पल्या हजार वर्ष अपपाय पत्य हजार वर्ष अधपाव पल्य १अंतर्मु० अघपाव पल्य १० हजार वर्ष २ १पल्य १ लाख वर्ष १अंतर्मु० १पल्य१लाख ७ हजार वर्ष १पल्य१लाख वर्षअंतर्मु० १पल्य १ लाख वर्ष १ अंतर्मु |१पल्य १ लाख वर्ष १ अंत | पल्य१लाख वर्ष अंतर्मु० १पल्य १ लाख वर्ष 8 हजार वर्ष १पल्य १ लाख वर्ष७ हजार वर्ष १पल्य १ लाख वर्ष हजार वर्ष १पल्य१लाख वर्ष% हजार वर्ष १पल्य१लाख वर्ष अंतर्मु० १पल्य १लाख वर्ष हजार वर्ष २ १५ 40 १६ वेद द्वार दयाहार কবর समुदपात द्वार वेदना द्वार आयुद्वार अध्यवसाय द्वार अनुबंध द्वार नाणता जघन्य. | उत्कृष्ट असंख्याता जघन्य उत्कृष्ट ५ पहली १पल्य २सागर भला मुंडा १पल्या २सागर २वी पुरुष ५ पहली मला मुंडा ५ पहली २स्त्री २सागर २सागर भला भंडा २सागर रसागर आयु अनुबंध कायसंवेध द्वार अप में सौधर्म देव वनस्पति में सौधर्म देव ज० । उ० जघन्य काल उत्कृष्ट काल जघन्यकाल उत्कृष्ट काल १पल्या अंतर्मुहूर्त १पल्य १ अंतर्मुहूल १पल्य७हजार वर्ष सागर हजार वर्ष २सागर अंत २सागर७ हजार वर्ष १पल्यअंत १पल्या अंत १पल्य १० हजार वर्ष सागर १० हजार वर्ष २सागर १ अंतर्भु. २सागर १० हजार वर्ष १पल्य १ अंतर्मुहूर्त १पल्या आत १पल्यवहजार वर्ष १पल्य ७ हजार वर्ष १गत्य अंत १पल्य ७ हजार वर्ग १पल्य १ गर्नु १पल्यअंत १पल्य १० हजार वर्ष १पल्य १० हजार वर्ष १पल्या १पल्य १० हजार वर्ष २ सागर अंतर्नु २सागर अंत २सागर हजार वर्ष सागर ७ हजार वर्ष २ खगर १ २सागर७ हजार वर्ष सागर अंत सागर अंत २सागर हजार वर्ष रसागर १० हजार वर्ष २सागर १k २सागर १० हजार वर्ष गगा २६७ Jain Education Intemational Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१ अप तथा वनस्पति में दूसरा देवलोक ईशान ना देव ऊपजै तेहनों यंत्र (२६) गमा २० द्वार नी संख्या उपपात द्वार संघयण द्वार अवगाहना द्वार संठाण द्वार लेश्या द्वार | दृष्टिद्वार ज्ञान-अज्ञान द्वार योग द्वार | उपयोगमा परिमाण द्वार जपन्य उत्कृष्ट जघन्य । उत्कृष्ट उत्कृष्ट १ १.२३ असंघयणी ७ हाथ ३नियमा ।।३नियमा ओधिक न ओधिक| १४७ गमै जिण जिण काय ओधिक जघन्य मैं ऊपजै तिण जघन्य ओधिक नै उत्कृष्ट उत्कृष्ट आयु में ऊपजै। संखया असंख ऊपजी १ तेज आंगुलनों असंख भाग समचौरंस १२३ असंघयणी ७हाथ १ तेजु नियमा नियना। जघन्य + ओधिक २.५८ गमै जिण जिण काय जघन्य जपन्चमैपजे तिण रैजघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट आयु में ऊपजे। संखया असंखऊप आंगुलनों असंख भाग उपत समचौरंस असंधवणी ३नियमा । ३ नियमा | उत्कृष्ट न ओधिक ३.६६ गमै जिन जिण उत्कृष्ट नै जघन्य | काय में अपने तिणरै उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट उत्कृष्ट आयु में ऊपजै। आंगुलनों असंख माग ३ १२.३ ऊप असंख ऊप समचौरंस ३ विकलेंदी में १२ ठिकाणां ना ऊपजै - पांच स्थावर ५. तीन विकलेंद्रिय, अरान्नी तिथंच पदिय ६, संख्याता वर्ष ना सन्नी तिर्यच १०, संख्याता वर्ष नां सन्नी मनुष्य ११, असन्नी मनुष्य १२ । ६२ तीन विकलेंद्रिय में पृथ्वीकाय ऊपजै तेहनों यंत्र (). गमा २० द्वार नी संख्या उपपातद्वार परिमाण द्वार संघयणद्वार अवगाहना द्वार संठाण द्वार | लेश्या द्वार दृष्टिद्वार দ্বান—সান ব্রা योगद्वार जघन्य जघन्य जघन्य उत्कृष्ट १२३ संखया असंख १छेवटो मसूर चंद्र ४पहली आंगुल नों असंख भाग | ओधिक न ओधिक १४.७ गर्भ जिण जिण ठिकाणे ओधिक जपच ऊपरी तिन रै जघन्य उत्कृष्ट ओधिक उत्कृष्ट आयु में ऊपजै। २ निषमा | काया १ठेवटो ___ मसूर चंद्र ३पहली मिथ्या २नियगा १काया जघन्यन ओधिक २५ गगै जिण जिन ठिकाणे जघन्य नै जघन्य रुप तिण रै जघन्य आयु जघन्य नै उत्कृष्ट में ऊपजै। संखया असंख ऊपने आंगुल नों असंख भाग गखया १वटो मसूर चंद्र ४पहली १मिथ्या उत्कृष्ट नै ओधिक | ३.६.६गमै जिण जिण उत्कृष्ट नै जान्य | विकाण ऊपजै तिण रै उत्कृष्ट उत्कृष्ट उत्कृष्ट आयु में ऊपजै। आमुल नों असंख भाग २नियमा | १काया १२.३ ऊपजे २६८. भगवती-जोड (खण्ड-६) Jain Education Intemational Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संज्ञा द्वार कायदार इन्द्रिय द्वार समुद्घातद्वार वेदना द्वार वेद द्वार आयुद्वार अध्यवसायादार अनुबंध द्वार नाणता जघन्य उत्कृष्ट असंख्याता जघन्य उत्कृष्ट ५पहली मला भूडा २सागर जाझो १पल्य जाझो २सागर जाझो पुरुष जाझो ५पहली १पल्य भलाभूडा २स्त्री. पुरुष १पल्य जाझो १पल्य जामो १पल्य जाझो आयु अनुग्ध भलामुंडा २स्त्री. पुरुष २सागर जाझो २सागर जाझो २सागर जाझो २सागर जाझो आयु, अनुबंध कायसंवेध द्वार अप में ईशान देव वनस्पति में ईशान देव जघन्यकाल उत्कृष्ट काल जघन्यकाल उत्कृष्ट काल १पत्य जाझो १अंतर्मुहर्ता १पत्य जानो अंतर्मुहूर्त १पल्य जाझो ७ हजार वर्ष २सागर जाझो हजार वर्ष | १पल्य जानो अंतर्मु, २सागर जाझोअंतर्म १पत्य जाझो अंतर्मु, २सागर जाझो ७ हजार वर्ष १पत्य जाझो १० हजार वर्ष २सागर जाझो १० हजार वर्ष २सागर जाझो ५ अंतर्मु. रसागर जाझो १० हजार वर्ष १पत्य जाझो अंतम १पत्य जाझो १अंतर्मु. १पल्य जानो हजार वर्ष १पल्य जाझो ७ हजार वर्ष १पल्य जाझोअंतर्मु ५पत्य जाओ७ हजार वर्ष १पल्य जाझो अंतर्मु. १पल्य जाझो अंतर्मु. | १पल्य जाझो हजार वर्ष १पत्य जाझो १० हजार वर्ष १पल्या जाझो १ अंत १पल्य जाझो हजार वर्ष २सागर जामोअंतर्म २सागर जाझो १अंतर्मु. २सागर जाझो हजार वर्ष २सागर जाझो ७ हजार वर्ष | २सागर जाझो १ अत रसागर जाझो १अंतर्मु. । | २सागर जाझो १ अंत सागर जाझो७ हजार वर्ष २सागर जाझ १० हजार वर्ष | २सागर जानो % हजार वर्ष २सागर जाझो १अंतर्मु. सागर जाओ० हजार वर्ग १२ १ का द्वार कवायदार इन्द्रिय द्वार समुदघातद्वार वेदना द्वार वेद द्वार आयुद्वार अध्यवसाय द्वार अनुबंधद्वार नाणता जपन्य उत्कृष्ट असंख्याता उत्कृष्ट ३पहली १नपुंसक अंतर्मुहूर्त भला भंडा अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष हजार वर्ष १फर्श नपुंसक अंतर्मुहूर्त | आ इल भूडा अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त लेश्या, आयु अध्य० ३पहली १ नपुंसक २२ भलामुंडा २२ हजार वर्व हजार वर्ग हजार वर्ष हजार वर्ग आयुअनुक्य कायसंवेध द्वार भव बेइंदिय में पृथ्वीकाय बारिदिय में पृथ्वीकाय - तेइंद्रिय में पृथ्वीकाय जपन्य काल उत्कृष्ट काल जघन्य काल उत्कृष्ट काल जघन्य काल उकृष्ट काल un. पअंतर्मु.अंतर्मु. १अंतमु.१अंत अंतर्मु.१२ वर्ष संखकाल संखकाल । १अंतर्मु.१अंतर्मु. संखकाल संखकाल । १अंत १अंतर्मु. पहजारवर्ष ४८ वर्ष १अंतर्मु.४६ दिन रात संखकाल संखकाल अंतर्मु.१अंतर्ग संसकाल संखकाल | १अंतर्मु.अंतर्मु. ८८ हजार वर्ष १६६ दिन रात । १अंतर्मु. मास संखकाल संखकाल संखकालसखकाल ८८हजार वर्ष २४ मास १ अतर्मु अंतर्मु. १अंतर्मु.१ अंतर्मु. १अतर्मु.१२ वर्ष संखकाल संखकाल । १अंतर्ग अंतर्मु संखकाल संखकाल | १अंतर्मु.१अंत. ४ अंतर्मु, ४८ वर्ष १अंगमु.४६ दिन रात संखकाल सखकाल संखकाल संखकाल ४ अंतर्मु. १६६ दिन रात । १अंतर्मु.अंतर्मु. १अंतर्मु.१अंतमु १अंतर्मु.६ मास संखकाल संखकाल संखकाल संखकाल ४ अंतर्नु.२४मास m . २२हजार वर्ष १ अंत २२हजार वर्ष १ अंत २२ हजार वर्ष १२ वर्ष ८८ हजार वर्ष ४० वर्ष २२हजार वर्ष १अंतर्मु, ५५ हजार वर्ष ४ अंतमु० २२हजार वर्ष १अंत , ८८ हजार वर्ष ४८ वर्ष | २२ हजार वर्ष ४६ दिन रात ८८हजार वर्ष १६६ दिन रात ८८ हजार वर्ष ४ अंत ८६ हजार वर्ष १९६ दिन रात २२ हजार वर्ष ५ अंतर्मु. २२ हजार वर्ष ५ अंतर्मु. २२ हजार वर्ष ६ मास ८८ हजार दर्ष २४ भात ८८ हजार वर्ष ४ अतः ५८ हजार वर्ष२४ मास गमा २६६ Jain Education Intemational Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३ तीन विकलेंद्रिय में अपकाय ऊपजै तेहनों यंत्र (२) गमा २० द्वार नी संख्या उपपात द्वार संघयण द्वार अवगाहना द्वार सठाण द्वार लेश्या द्वार | दृष्टि द्वार ज्ञान-अज्ञान द्वार योग द्वार | उपयोग परिमाण द्वार जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट जघन्य | उत्कृष्ट संखया १ वटो ४पहली थियुक मिथ्या २नियगा १काय औधिकनै औधिक १४.७ गर्न जिण जिण ठिकाणे औधिक जपन्य ऊपजै तिणजघन्य उत्कृष्ट ओधिक नै उत्कृष्ट| आयु में ऊपजै। १२३ ऊपई आंगुल नों असंख भाग उपते बटो शिबुक पहली १मिथ्या निवना जघन्य नै ओधिक जघन्य जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट १काय २५-गमै जिण जिण ठिकाणे ऊपले तिण रै जघन्य आयु मैं ऊपजे। आंगुल नों असंख भाग संखया असंख ऊपजे संखया १छेदटो ४पहली थिबुक मिथ्या नियमा १काय | उत्कृष्ट नै ओधिक ३.६.६ गमै जिण जिण उत्कृष्ट+जधन्य ठिकाने ऊपजे तिण रै उत्कृष्ट उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट | आयु में ऊपज। ૧૨૩ ऊपजे आगुलमों असख भाग ६४ तीन विकलेंद्रिय में तेऊकाय ऊपजै तेहनों यंत्र (३) गमा २०द्वार नी संख्या उपपात द्वार परिमाण द्वार संघयण द्वार अवगाहना द्वार संठाण द्वार लेश्या द्वार दृष्टि द्वार ज्ञान-अज्ञान द्वार योगद्वार| उपयोग जघन्य । उत्कृष्ट जघन्य जधन्य । उत्कृष्ट १शेवटो अंगुल नो सुधीकलाप ३पहली | मिथ्या. . २नियमा संखया असंख १काया ओधिकनै औधिक १४७गमै जिण जिण ओधिक जयन्य ठिकाऊपजै तिन ओधिक उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्टआयु में ऊपजे १शेवटो |सुचीकलाप पनिध्या पहली २नियमा | जघन्य नै ओधिक | २५८ गमै जिण जिन जधन्य नै जघन्य ठिकाने ऊपजै तिपरै जयन्यन उत्कृष्ट | जघन्य आयुमै ऊपजै। शंख या असंख आंगुल नो असंख भाग उपज १२.३ संखया १ऐवटो सुधीकलाप | | १मिध्या २नियमा | उत्कृष्टओधिक ३.६६ गमै जिण जिण | उत्कृष्ट जघन्य | ठिकापै ऊपजे तिण रे उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट | उत्कृष्ट आयु में ऊपजे। आंगुल नो असंख भाग ऊपर्व असंख कप २७० भगवती-जोड (खण्ड-६) Jain Education Intemational Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इन्द्रिय द्वार समुदधातदार वेदना द्वार वेद द्वार आयुद्वार अध्यवसाय द्वार अनुबंधद्वार नाणता जघन्य | उत्कृष्ट असंख्याता जघन्य उत्कृष्ट १फई ३पहली १ नपुंसक अंतर्मुहूर्त भला मुंडा अंतर्मुहूर्त हजार वर्ष हजार वर्ष १फर्श । ३पहली नपुंसक अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त लेश्या, आतु अध्य० अनु १फर्श ३ पहली १नपुंसक भला डा हजार वर्ष हजार वर्ष हजार वर्ष हजार वर्ष आयु, अनुबंध २० कायसवेध द्वार तेइंद्रिय में अपकाय गना बेइंद्रिय में अपकाय बउरिदिय में अपकाय S जघन्य काल उत्कृष्ट काल जघन्य काल उत्कृष्ट काल जघन्य काल उत्कृष्ट काल r . | १अंतर्मु.अंग १अंतर्मु, १अंतर्मु १अंत. १२ वर्ष संखकाल संखकाल संखकाल संखकाल २६ हजार वर्ष ४८ वर्ष १अंतर्मु.१अंत १अंतर्मु.१अंतर्मु. १अंतर्मु. ४६ दिन रात संखकाल संखकाल संखकाल संखकाल २८ हजार वर्ष १६६ दिन रात १अंतर्मु.१अंतर्मु. १अंतर्मु.१अंतर्मु. १अंतर्मु.६मास संखकाल संखकाल संखकाल संखकाल २८ हजार वर्ष २४ मास अंतर्नु ५ अंतर्मु १अंतर्मु अंतर्मु. १अंतर्मु, १२ वर्ष संखकाल संखकाल संखकाल संखकाल ४ अंतर्मु.४८ वर्ष १अंतर्मु.१अंतर्मु १अंतर्मु.१अंतर्मु १अंतर्मु ४६ दिन रात संखकाल संखकाल संखकाल संखकाल ४ अंतर्मु. १६६ दिन रात अंतर्मु.१अंतर्म १अंतर्मु.१अंतर्मु. १अंतर्मु.६मास संखकाल संखकाल संखकाल संखकाल ४ अंतर्मु.२४ मास | ७ हजार वर्ष १ अंतर्नु ७ हजार वर्ष १अंतर्मु. ७ हजार वर्ष १२ वर्ष २८ हजार वर्ष ४८ वर्ष २८हजार वर्ष ४ अंतर्मु. २८ हजार वर्ष ४८ वर्ष ७ हजार वर्ष १ अंतर्मु. ७ हजार वर्ष अंतम ७ हजार वर्ष ४६दिन रात । २८ हजार वर्ष १६६ दिन रात २६ हजार वर्ष ४ अंतर्मु. २८ हजार वर्ष १९६ दिन रात ७हजार वर्ष अंतर्मु. ७हजार वर्ष १ अंतमु. ७हजार वर्ष ६ मास २८ हजार वर्ष २४ नास २८ हजार वर्ष ४ अंत २८ हजार वर्ष २४ मास १२ १३ इन्द्रिय द्वार १५ वेदनाद्वार कवाय द्वार समुदधातद्वार वेदद्वार आयुद्वार आध्यवसाय द्वार अनुबधद्वार नाणत्ता जघन्य | उत्कृष्ट असंख्याता जघन्य उत्कृष्ट ३पहली पनपुंसक अंतर्मुहूर्त । ३दिन रात मला डा अंतर्मुहूर्त ३दिन रात ३ पहली १नपुंसक अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त आयु, अध्य, अनुबंध १फर्श ३पहली १नपुंसक ३दिन रात ३दिन रात भलामुंडा ३ दिन रात ३दिन रात आयु अनुबंध २० कायसंवेध द्वार तेइंद्रिय में तेऊकाय गमा बेइंदिय में तेककाय चारिदिय में तेककाय ज. उ. जघन्य काल उत्कृष्ट काल जान्य काल उत्कृष्ट काल जघन्य काल उत्कृष्ट काल संख संख १अंतर्मु०१अंतर्मुस १अंतर्मु०१अंतर्मु १अंतर्मु० १२ वर्ष संखकाल संखकाल संखकाल सखकाल १२ दिन रात ४८ वर्ष १अंतर्मु०१आर्ग १अंतर्मु०१अंतर्मु. १अंतर्मु०४६ दिन रात संखकाल, संखकाल संखकाल संखकाल १२ दिन रात १६६ दिन रात १अंतर्ग:१अंतर्मु. १अंत:१ अंतर्मु १अंतर्मु०६ गारा संखकाल.सखकाल संखकाल, सखकाल १२ दिनरात४मास संख संख १अंतम्-१अंत. १अंतर्मु.१अंतर्मु. १अंतर्मु. १२ वर्ष संखकाल, संखकाल सयकाल.सखकाल ४ अंतर्मु, ४. वर्ष १अंतर्मु १अंतर्मु १अंतर्नु, अंतमु १अतम ४६ दिन रात संखकाल. संखकाल संखकाल, संखफाल ४ अंतर्मु. १६६ दिन रात १अंतर्मु.१अंत. १अंतर्मु.१अंतर्मु. १अंतर्मु.६ मार संखकाल संखकाल संखकाल. संखकाल ४ अंतर्मु.२४ मास الله له ३दिन रात १ अंतर्मु ३दिन रात अंतर्मु ३दिन रात १२ वर्ष १२ दिन रात ४८ वर्ष १२ दिन रात ४ अंतर्मु. १२ दिन रात ४८ वर्ष ३ दिन रात १अंतर्ग, ३ दिन रात अार्ग, ३दिनरात ४६ वर्ष १२ दिन रात १६६ दिन रात | ३दिन राल १अंतर्मु १२ दिन रात ४ अंतर्ग दिन रात अंत १२दिन रात १६६ दिन रात ३दिन रातमारस १२दिनरात २४ मास २ दिन रात अंतर्नु १२ दिन रात २४ गास له गमा २७१ Jain Education Intemational Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५ तीन विकलेंद्रिय में वाउकाय ऊपजै तेहनों यंत्र (४) गमा २० द्वार नी संख्या संघयण द्वार अवगाहना द्वार संठाण द्वार लेश्या द्वार | दृष्टि द्वार ज्ञान-अज्ञान द्वार योग द्वार उपपात द्वार जपन्य | उत्कृष्ट परिमाण द्वार जपन्य उत्कृष्ट उत्कृष्ट ३ बटो पताका ३पहली २नियमा | ओधिक नै ओधिक | १४.७ गरी जिण जिण औधिक नै जघन्य ठिकाणे ऊपजे तिण र ओधिक नै उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट आयु में ऊपजै। १काया १.२.३ ऊपजे आंगुल नो असंख भाग संखया असंख रूप शेवटी पताका पहली रनियमा जघन्य नै ओधिक २५० गमै जिन जिण जघन्य नै जघन्य |ठिकाणे ऊपजे तिणरे जघन्य नै उत्कृष्ट | जघन्य आयु में ऊपजे। संखया असंख ऊपज आंगुल नो असंख भाग विटो | मिथ्या उत्कृष्ट नै औधिक | ३.६.९ गमै जिण जिण उत्कृष्ट नै जघन्य | ठिकाणे ऊपजे तिणरै उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट उत्कृष्ट आयु में ऊपज । २नियमा | १काया संख या असंख ऊपजे आंगुल नो असंय भाग ६६ तीन विकलेंद्रिय में वनस्पतिकाय ऊपजै तेहनों यंत्र (५) उपपात द्वार परिमाण द्वार संघयण द्वार अवगाहना द्वार संठाण द्वार लेश्या द्वार दृष्टिद्वार ज्ञान-अज्ञान द्वार योग द्वार गमा २०द्वार नी संख्या अन तेहनां नाम जघन्य उत्कृष्ट उत्कृष्ट उत्कृष्ट १ऐवटो आंगुल नो ४ पहली १मिथ्या नियम १काया ओधिक ओधिक ओधिक नै जघना ओधिक नै उत्कृष्ट १४.७ गमै जिण जिण ठिकाणे ऊपजै तिष जघन्य उत्कृष्ट आयु में ऊपजै संख या असंख ऊप ऊपजे नाना प्रकार १हजार योजन जाझो असंखभाग १ऐवटो | नाना १मिथ्या जघन्य नै ओधिक जघन्य नै जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट २नियमा । १काया २५८ गर्म जिप जिण ठिकाणे ऊपजै तिन जघन्य आयु में ऊप। संखया असंख ऊपजे आंगुल नो असंखभाग आंगुल नों असंखभाग १२.३ १वटो नाना ४ पहली | १निध्या रनियमा १काया उत्कृष्ट नै ओधिक ३.६.६ गम जिण जिण उत्कृष्ट नै जघन्य | ठिकाणे ऊपजे तिपरे | उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट उत्कृष्ट आयु में ऊपजे। आगुल नो असंखभाग ऊपजै असंख १हजार योजन जाडो प्रकार ऊपजे २७२ भगवती-जोड़ (खण्ड-६) Jain Education Intemational Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 孵 संज्ञा द्वार संज्ञा द्वार -- १२ कषाय द्वार ४ ४ * > १२ कषाय द्वार ४ १३ इन्द्रिय द्वार ५ १ फर्स १ फर्श १ फर्स १३ इन्द्रिय द्वार ५ १ फ १ फर्श १ फ गमा 9 3 W त ६ یا १४ समुद्घात द्वार ६ गमा १ २ ३ ४ 첫 ६ ७ ८ ६ ४ पहली ३. पहली ४ पहली 25 V CV 2 ज. २ १४ समुद्घात द्वार ૨ ७ २ wwwww w २ ३ पहली ३ पहली ३ पहली २ २ २ २ २ उ. संख संख संख संख ८ उ. संख संख संख संख ८ ८ ५ १५ वेदना द्वार २ २ २ २ २ १५ वेदना द्वार २ १६ वेद द्वार १ नपुसक १ नपुंसक १] नपुंसक जघन्य काल १ अंतर्मु० १ अंतर्मु १ अंतर्मु० १ अंतर्मु १] अंतर्मु० १२ वर्ष 3 बेदिय में वाचकाय १ अंतर्मु, १ अंतर्मु १ अंतर्मु, १ अंतर्मु १ अंतर्गु० १२ वर्ष ३ हजार वर्ष १ अंतर्मु ३ हजार वर्ष १ अंतर्मु ३ हजार वर्ष १२ वर्ष १६ वेद द्वार १ नपुंसक 3 १ नपुंसक १ नपुंसक जघन्य काल १ अंतर्मु, १ अंतर्मु १ अंतर्ग १ अंतर्मु १ अंतर्मु १२ वर्ष १ अंतर्मु० १ अंतर्मु १ अंतर्मु० १ अंतर्मु १ अंतर्ग० १२ वर्ष जघन्य अंतर्मुहूर्त १० हजार वर्ष १ अंतर्मु १० हजार वर्ष १ अंतर्मु १० हजार वर्ष १२ वर्ष अंतर्मुहूर्त ३ हजार वर्ष उत्कृष्ट काल संखकाल संखकाल संखकाल संखकाल १२ हजार वर्ष ४८ वर्ष संखकाल, संखकाल संखकाल, संखकाल ४ अंतर्मु, ४८ वर्ष १७ आयु द्वार १२ हजार वर्ष ४८ वर्ष १२ हजार वर्ष ४ अंतर्मु १२ हजार वर्ष ४८ वर्ष जघन्य अंतर्मुहूर्त बेइंद्रिय में वनस्पतिकाय अंतर्मुहूर्त १० हजार वर्ष उत्कृष्ट काल संखकाल संखकाल संखकाल संखकाल ४० हजार वर्ष ४८ वर्ष आयु द्वार संखकाल संखकाल संखकाल संखकाल ४ अंतर्मु, ४८ वर्ष उत्कृष्ट ३ हजार वर्ष ४० हजार वर्ष ४८ वर्ष ४० हजार वर्ष ४ अंतर्मु ४० हजार वर्ष ४८ वर्ष अंतर्मुहूर्त ३ हजार वर्ष २० कायसंवेध द्वार १८ अध्यवसाय द्वार असंख्याता भलाभूंडा उत्कृष्ट १० हजार वर्ष जघन्य काले १ अंतर्ग० १ अंतर्मु १ अंतर्मु० १ अंतर्मु १ अंतर्ग० ४९ दिन रात १ अंतर्ग. १ अंतर्मु १ अंतर्मु. १ अंतर्ग.. १ अंतर्मु, ४९ दिन रात अंतर्मुहूर्त भलाभूंडा १० हजार वर्ष तेइंद्रिय में वाकाय ३ हजार वर्ष १ अंतर्मु ३ हजार वर्ष १ अंतर्मु ३ हजार वर्ष ४६ दिन रात मूंडा अध्यवसाय द्वार असंख्याता मलाडा भलाभूंखा मूंडा २० कायसंवेध द्वार जघन्य काल १] अंतर्मु० १ अंतर्गο १ अंतर्मु० १ अंतर्ग० १ अंत ४५ दिन रात १] अंतर्मु० १ अंतर्मु 9 अंतर्मु० १ अंतर्मु १ अंत ४९ दिन रात तेइंद्रिय में वनस्पतिकाय १० हजार वर्ष १ अंतर्मु १० हजार वर्ष १ अंतर्मु १० हजार वर्ग ४१ दिन रात १९ अनुबंध द्वार जघन्य अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट काल संखकाल, संखकाल संखकाल, संखकाल १२ हजार वर्ष १६६ दिन रात ३ हजार वर्ष संखकाल, संखकाल संखकाल, संखकाल ४ अंतर्मु, १६६ दिन रात १२ हजार वर्ष १६६ दिन रात १२ हजार वर्ष ४ अंतर्मु १२ हजार वर्ष १६६ दिन रात जघन्य अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त १० हजार वर्ष उत्कृष्ट काल संखकाल संखकाल संखकाल संखकाल ४० हजार वर्ष १६६ दिन रात १६ अनुबंध द्वार संखकाल संखकाल संखकाल संखकाल ४ अंतर्ग. १६६ दिन रात उत्कृष्ट ३ हजार वर्ष ४० हजार वर्ष १६६ दिन रात ४० हजार वर्ष ४ अंतर्ग० ४० हजार वर्ष १६६ दिन रात अंतर्मुहूर्त ३ हजार वर्ष जघन्य काल १ अंतर्मु १ अंतर्मु १ अंतर्मु, १ अंतर्मु १ अंतर्मु० ६ मास १ अंतर्मु, १ अंतर्मु १ अंतर्मु, १ अंतर्मु १ अंत. ६ ३ हजार वर्ष १ अंतर्मु ३ हजार वर्ष १ अंतर्मु ३ हजार वर्ष ६ मास उत्कृष्ट १० हजार वर्ष अंतर्मुहूर्त १० हजार वर्ष चरिदिय में वाउकाय जघन्य काल १ अंतर्मु, १ अंतर्मु १ अंतर्मु, १ अंतर्मु १ अंतर्मु० ६ मास 9 १ अंतर्ग. १ अंतर्मु० नाणत्ता १ अंतर्मु, १ अंतर्मु० १ अंतर्गु०६ मास समु०, आयु, अध्य अनु १० हजार वर्ष १ अंतर्मु १० हजार वर्ष १ अंतर्मु १० हजार वर्ष ६ मास २ आयु अनुबंध उत्कृष्ट काल संखकाल संखकाल संखकाल, संखकाल १२ हजार वर्ष २४ मास संखकाल, संखकाल संखकाल, संखकाल ४ अंतर्मु २४ मास १२ हजार वर्ष २४ मारा १२ हजार वर्ष ४ अंतर्मु १२ हजार वर्ष २४ मास चउरिंद्रिय में वनस्पतिकाय नाणता ५ अव० लेश्या, आयु, अध्य, अनुबंध २ आयु अनुबंध उत्कृष्ट काल संखकाल संखकाल संखकाल संखकाल ४० हजार वर्ष २४ मास संखकाल संखकाल संखकाल संखकाल ४ अंतर्मु० २४ मा ४० हजार वर्ष २४ गास ४० हजार वर्ष ४ अंतर्मु० ४० हजार वर्ष २४ मास गमा २७३ Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७ तीन विकलेंद्रिय में बेइंद्रिय ऊपजै तेहनों यंत्र (६) संघयण द्वार अवगाहना द्वार संठाण द्वार लेश्या द्वार | दृष्टि द्वार ज्ञान-अज्ञानद्वार योगद्वार उपयोग द्वा परिमाण द्वार जघन्य उत्कृष्ट जघन्य | उत्कृष्ट गमा २० द्वार नी संख्या उपपात द्वार अन तेहनां नाम | जघन्य । उत्कृष्ट ओधिक नै ओधिक १४.७ गनै जिण जिण ठिकाणे ओधिक जघन्य | ऊपजे तिण जघन्य उत्कृष्ट ओधिक नै उत्कृष्ट आयु में ऊप . १छेवटो पहली । नियमा । नियमा १२.३ ऊपज संखया असंख आंगुल नो असंख भाग २सम्यक मिथ्या २वच काया . योजन . | ૧૨૩ १छेवटो पहली १मिथ्या २नियमा १काया जघन्य नै ओधिक जघन्य नै जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट २.५.८ गमै जिण जिण ठिकाणे ऊपजै तिण रै जघन्य आयु में ऊपजै। संत या असंख आंगुल नो असंख भाग आंगुल नों असंख शग ऊपजै हुंडक ऊपजे | १ऐवटो पहली २नियमा उत्कृष्ट ओधिक ३.६.९ गमै जिण जिण | उत्कृष्ट नै जघन्य | ठिकाणे ऊपजै तिण रै उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट उत्कृष्ट आयु में ऊपजै । १२.३ ऊपजे संखया असंख आंगुल नो असख भाग १२ योजन २सम्यक - २नियमा । मिथ्या | २वच काया ६८ तीन विकलेंद्रिय में तेइंद्रिय ऊपजै तेहनों यंत्र (७) गमा २० द्वार नी संख्या उपपातद्वार संघयण द्वार संठाण द्वार | लेश्या द्वार | दृष्टि द्वार ज्ञान-अज्ञान द्वार योग द्वार उपयोपहर परिमाण द्वार जघन्य उत्कृष्ट अदगाहना द्वार जघन्य उत्कृष्ट जघन्य | उत्कृष्ट १ ३ पहली २नियमा । २नियमा ओधिक नै ओधिक | १४.७ गमै जिण जिण ठिकाण ओधिक नैं जघन्य | ऊपजै तिण रै जघन्य उत्कृष्ट आयु | ओधिक नै उत्कृष्ट में ऊपजै। १.२.३ ऊपजे संख या असंख ऊपजै आंगुल नों असंख भाग २सग्यक मिथ्या २वच काय छवटो १मिथ्या १हुंडक ३पहली २नियमा । १.२.३ ऊपज १काया जघन्य नै ओधिक २५.८ गमे जिण जिण ठिकाणे जघन्य नै जपन्य | ऊपजे तिण रैजघन्य आयु जघन्य नै उत्कृष्ट मैं ऊपजै। संखया | असंख ऊपज आंगुल नों | आंगुलनों | असंख भाग | असंख भाग छेवटो ३गाऊ १हुंडक ३पहली २सम्यक नियमा २नियमा २वध उत्कृष्ट नै ओधिक उत्कृष्ट नै जघन्य उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट ३.६.६गमै जिण जिण ठिकाणे ऊपजै तिण उत्कृष्ट आयु में ऊपजै। संख या | असंख ऊपजै आंगुल नों असंख भाग ऊपज काय २७४ भगवती-जोड (खण्ड-६) Jain Education Intemational Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कवाय द्वार समुदघात द्वार वेदनाद्वार वेद द्वार आयुद्वार अध्यवसाय द्वार अनुबंध द्वार नाणत्ता जघन्य उत्कृष्ट असंख्याता जघन्य उत्कृष्ट ३ पहली अंतर्मुहूर्त | १२ वर्ष भलाभून अंतर्मुहूर्त १२ वर्ष २फर्स ३ पहली १ नपुंसक अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त अव०. दृष्टि ज्ञान योग, आयु अध्य, अनुबंध २फर्श १ नपुंसक १२ वर्ष १२ वर्ष भला डा १२ वर्ष १२ वर्ग आयु अनुबा कायसंवेध द्वार तेइदिय में बेदिय बेइंदिय में बेइंदिय चाउरिदिय में बेदिय ।। जघन्कार उत्कृष्ट काल जधन्यकाल उत्कृष्ट काल जान्य काल उत्कृष्ट काल १अंतर्मु, १अंतर्मु. १अंतर्मु, अंतर्मु १अंतर्मु. १२ वर्ष संखकाल संखकाल संखकाल संखकाल ४ वर्ष ४८ वर्ष १अंत ०१अंतर्मुः अंतर्मु०१अंतर्मु० १अंतर्नु, ४१, दिन रात संखकाल संखकाल संखकाल संखकाल ४८ व १६६ दिन रात १अंतर्मु.१आर्म १अंतर्मु १अंत. १अंत.६मारा संखकाल संखकाल संखकाल संखवाल ४८ वर्ष २४ मास १अंतर्मु०१अंतर्नु १अंतर्मु०१अंतर्नु १अंतर्मु०१२वर्य संखकाल संखकाल संखकाल संखकाल ४ अंतर्मु४० वर्ष १अंतर्मु०१ अंतर्मु० १ अंतर्मु०१ अंतर्मुः अंतर्नु, ४६ दिन रात संखकाल संखकाल संखकात संखकाल ४ अंतर्मु १६६ दिन रात १अंतर्मु१अंतर्मु० १अंतम अंतर्ग १अंत०६ मास संखकाल संखकाल संखकाल राखकाल ४अंतर्मु०४ मास १२ वर्ष १ अंतर्मु १२वर्ष १ अंतर्नु १२वर्ष १२ वर्ष ४ वर्ष ४८ वर्ष ४८ वर्ष ४ अंतर्मुस Ye वर्ष ४६ वर्ष १२ वर्ष १ अंतर्नु १२वर्ष १ अंतर्मु० १२वर्ष ४१ दिन रात ४८ व १९६ दिन रात ४५ वर्ष ४ अंत ४८ वर्ष १६६ दिन रात १२ वर्ष अंतर्ण १२ वर्ष १अंतर्मु० १२ वर्षमास ४वर्न २४ मास ४८ वर्ष ४ अंतर्मु० ४८ वर्ष ४मास सशाद्वार कषाय द्वार इन्द्रिय द्वार समुदघात द्वार वेदनाद्वार वेद द्वार आयुद्वार अनुबंध द्वार नाणत्ता अध्यवसाय द्वार असंख्याता जघन्य । उत्कृष्ट जपन्य उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त ४ दिन रात भला भंडा अंतर्मुहूर्त ४१. दिन रात पहली १नपुंसक | अंतर्मुहूर्त | अंतर्मुहूर्त । मुं अंतर्मुहूर्त | अंतर्मुहूर्त अव० दृष्टि, शान, योग, आयु. अध्य०, अनु० पहली १नपुंसक ४ दिन रात ४ दिन रात भला हा ४६ दिन रात दिन रात आयु, अनुबंध २० कायसंवेध द्वार तेइंदिय में तेंइदिय चरिदिय में तेइंद्विय जघन्य काल उत्कृष्ट काल जघन्यकाल उत्कृष्ट काल जघन्य काल उत्कृष्ट काल JAMA १अंतर्मु.अंतर्मु. १अंतर्मु.१अंत. १अंतम् १२ वर्ष संखकाल संखकाल सखकाल संखकाल १८६ दिन रात ४८ वर्ष १अंतर्मु अंत १अंतर्मु अंतर्मु. १अंतर्मु.४१ दिन रात संखकाल संखकाल संखकाल संखकाल १६६ दिन रात १६६ दिन रात १अंतर्मु.१अंतमु १अंगणु.१अंतर्मु अंतर्गमास संखकाल शंखकाल संखकालसंखकाल दिनरात मास १अंतर्मु अंतर्मु १ अंतर्मु.१अंगु १अंतर्मु १२ वर्व संखकाल संखकाल | संखकाल संखकाल । ४ अंतर्मु.४८ वर्ष अंतर्मु.१अंतर्मु १ अंतर्मु१अंतर्मु अंतर्मु ४९ दिन रात संखकाल संखकाल संखकाल संखकाल ४ अंतर्मु. १६६ दिन रात | १k १अंतर्मु १ अंतर्मु. १अंतर्मु. १अंतर्मु.६ मास संखकाल संखकात सखकाल संखकाल ४ अंतर्मु.४ मास ४६ दिन रात १अंतर्मु, ४६ दिन रात अंत ४६ दिन रात १२ वर्ष १९६ दिन रात ४८ वर्ष ४६ दिन रात आM. १६६ दिनरात १६६ दिन रात १९६ दिन रात ४ अंतर्मु ४ दिन रात अंतर्मु. १६६ दिन रात ४ अंत १६६ दिन रात४. वर्ष | ४ दिन रात ४१ दिन रात । १६६ दिन रात १६६ दिन रात ४६ दिन रात अंतर्म. ४ दिन रात अंतर्मु ४ दिन रातमास १६६ दिन रात २४ मास १६६ दिन रात४ अंतर्मु, १९६ दिन रात २४ मारा गमा २७५ Jain Education Intemational Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६ तीन विकलेंद्रिय में चउरिंद्रिय ऊपजै तेहनों यंत्र (८) अवगाहना द्वार संठाण द्वार लेश्या द्वार - दृष्टिद्वार ज्ञान-अज्ञान द्वार योग द्वार गमा २०द्वार नी संख्या उपपात द्वार । जघन्य | उत्कृष्ट परिमाण द्वार | जघन्य । उत्कृष्ट संघयण द्वार ६ जयन्द . उत्कृष्ट १ऐक्टो ४ गाऊ ३ पहली २सम्यक १हुंडक ૨ उपजे २ नियमा २वच ओधिक ओधिक १४.७ गमै जिण जिण ओधिक नै जघन्य ठिकाणे ऊपज तिण रे ओधिक उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट आयु मैं ऊपजै। संखया |असंखऊपजे आंगुल नों असंख भाग २नियमा १२.३ १शेवटो पहुंडक ३पहली १मिथ्या २नियमा १काया जघन्य नै ओधिक २,५.८ गमै जिण जिण जघन्य नै जघन्य ठिकाणे ऊपजे तिण रे जघन्य नै उत्कृष्ट जघन्य आयु में ऊपजे। संख या असंख ऊपजे आंगुलनों । आंगुलनों असंख भाग | असंख भाग संखया | १हुंडक | पहली २सम्यक | रनियगा । २नियमा। २वच उत्कृष्ट नै ओधिक ३.६.६ गमै जिण जिण उत्कृष्ट नै जघन्य | ठिकाणे ऊपजे तिणरे उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट उत्कृष्ट आयु में ऊपजै। ૧૨૩ ऊपज १शेवटो | आंगुलनों । ४गाऊ । असंख माग असंखऊपजे ७० तीन विकलेंद्रिय में असन्नी तिर्यंच पंचेंद्रिय ऊपजै तेहनों यंत्र (६) गमा २० द्वार नी संख्या संघयण द्वार अवगाहना द्वार लेश्या द्वार लेण्या द्वार | दृष्टिद्वार । ज्ञान-अज्ञान द्वार दृष्टिद्वार उपपात द्वार जधन्य । उत्कृष्ट ज्ञान-अज्ञान द्वार परिमाण द्वार जघन्य उत्कृष्ट जघन्य ਕਰਨ १खटो २नियमा २नियमा ओधिक नै ओधिक १४. गर्म जिण जिण ओधिक नै जघन्य ठिकाणे ऊपजै तिणरै अधिकनै उत्कृष्ट | जघन्य उत्कृष्ट आयु में ऊपजै। ૧૨૩ ऊपजे संखया असंख ऊपज ३पहली आंगुल नो असंख भाग पहजार योजन २सम्यक मिथ्या १वटो ३पहली नियमा जघन्य नै औधिक जघन्य नै जपन्य जघन्य नै उत्कृष्ट २.५.८ गमै जिण जिण ठिकाणे ऊपरी तिणरै जघन्य आयु में ऊपरी ५२.३ ऊपजे संखया असंख ऊपजे आंगुल नों असंख भाग आंगुलनों असंख भाग १२३ १वटो २सम्बक रनियमा उत्कृष्ट ओधिक ३.६( गर्ने जिण जिण उत्कृष्ट जघन्य ठिकाणे ऊपरी तिण रे उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट उत्कृष्ट आयु में ऊपजै। आंगुल नों असंखभाग २नियना ऊपज संखया असंखऊपजै हजार योजन २७६ भगवती-जोड़ (खण्ड-६) Jain Education Intemational Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संज्ञा द्वार ४ -- ११ ४ - १२ कषाय द्वार ४ x αc १२ कषाय द्वार Y ४ ४ १३ इन्द्रिय द्वार ५. 3 30 93 इन्द्रिय द्वार ५. ५ ५ ५ गमा or m 30 gr wo १ २ ३ ४ 이름 समुद्घात द्वार ७ ५ ६ 09 ८ र ४ तो 20 पूर्व 3 ४ E ७ ३ पहली ८ 1 ३. पहली ३] पहली ज. ~~~~~~~~~ २ २ समुद्धात द्वार २ २ २ १४. ७ ३] पहली ३ पहली ३ पहली wwwwww भव २ २ २ २ गगा संख संख संख संख www G ६ १५. वेदना द्वार २ २ २ ~ २ २ जघन्य काल १५ वेदना द्वार १६ वेद द्वार १ नपुंसक १ नपुंसक बेइंद्रिय में चउरिंद्रिय १ अंतर्मु, १ अंतर्मु १ अंतर्ग. १ अंतर्ग १ अंतर्ग १२ वर्ष 3 १ नपुंसक १ अंतर्मु, १ अंतर्मु १ अंतर्मु, १ अंतर्मु, १] अंतर्मु, १२ वर्ष जघन्य काल ६ मास १ अंतर्मु ६ मास १ अंतर्मु ६ मास १२ वर्ष १६ वेद द्वार ३ १ नपुंसक १ नपुंसक १ नपुंसक १ अंतर्मु, १ अंतर्मु १ अंतर्मु, १ अंतर्मु १] अंतर्ग १२ वर्ष १ अंतर्मु १ अंतर्ग १ अंतर्मु १ अंतर्मु १ अंतर्मु, १२ वर्ष जघन्य १ कोडपूर्व १ अंतर्मु १ कोडपूर्व १ अंतर्मु १ कोडपूर्व १२ वर्ष अंतर्मुहूर्त आयु द्वार अंतर्मुहूर्त ६ मास उत्कृष्ट काल संखकाल संखकाल संखकाल संखकाल २४ मास ४८ वर्ष संखकाल संखकाल संखकाल संखकाल ४ अंतर्मु] ४८ वर्ष २४ मास ४८ वर्ष २४ मास ४ अंतर्मु २४ मास ४८ वर्ष इंद्रिय में असी ति० पंचे० जघन्य अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व १७ आयु द्वार उत्कृष्ट काल ४] कोडपूर्व ४८ वर्ष ४] कोडपूर्व ४ अंतर्मु ४] कोडपूर्व ४८ वर्ष ४ अंतर्मु ४८ वर्ष ४ अंतर्ग. ४ अंतर्ग ४ अंतर्मु ४८ वर्ष ४] कोडपूर्व ४८ वर्ष ४] कोडपूर्व ४ अंतर्मु ४] कोडपूर्व ४८ वर्ष उत्कृष्ट ६ मास अंतर्मुहूर्त ६ मास १८ अध्यवसाय द्वार असंख्याता जघन्य काल २० कायसंवेध द्वार उत्कृष्ट १ कोडपूर्व भला मूंडा १ अंतर्मु १ अंतर्ग १ अंतर्मु १ अंतर्मु १ अंत ४८ दिन रात अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मु, १ अंतर्ग १ अंतर्मु १ अंतर्मु १ अंतर्ग ४८ दिन रात १] कोडपूर्व भलामूंडा इंद्रिय में चउरिदिय ६ मास १ अंतर्मु ६ मास १ अंतर्मु ६ मास ४६ दिन रात मूंडा २० कायसंवेध द्वार १८ अध्यवसाय द्वार असंख्याता भला मूंडा मलानूंडा जघन्य काल १ अंतर्मु १ अंतर्मु १ अंतर्मु १ अंतर्मु १ अंतर्मु ४९ दिन रात मूंडा १ अंतर्मु, १ अंतर्मु १ अंतर्मु, १ अंतर्मु १ अंत ४९ दिन रात तेइंद्रिय में असनी ति० पंचे० १ कोडपूर्व १ अंतर्मु १ कोडपूर्व १ अंतर्मु १ को पूर्व ४९ दिन रात १६ अनुबंध द्वार जघन्य अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट काल संखकाल संखकाल संखकाल संखकाल २४ मास १६६ दिन रात ६ मास संखकाल संखकाल संखकोल संखकाल ४ अंतर्ग. १६६ दिन रात २४ मास १६६ दिन रात २४ मास ४ अंतर्ग २४ गास १९६ दिन रात जघन्य अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व १६ अनुबंध द्वार उत्कृष्ट काल ४] कोडपूर्व १६६ दिन रात ४] कोडपूर्व ४ अंतर्मु ४] कोडपूर्व १६६ दिन रात ४ अंतर्ग १९६ दिन रात ४ अंतर्मु, ४ अंतर्मु ४ अंतर्मु १६६ दिन रात ४ कोडपूर्व १६६ दिन रात ४ कोडपूर्व ४ अंतर्मु ४ कोडपूर्व १६६ दिन रात उत्कृष्ट ६ मास अंतर्मुहूर्त ६ गास जघन्य काल १ अंतर्मु, १ अंतर्मु, १ अंतर्मु, १ अंतर्मु, १ अंतर्मु ६ मास १ अंतर्ग. १ अंतर्मु १ अंतर्मु, १ अंतर्मु १] अंतर्मु] ६ मास चरिंद्रिय में घउरिंद्रिय ६ मास १ अंतर्मु ६ मास १ अंतर्मु ६ मास ६ मास उत्कृष्ट १] कोडपूर्व अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व जघन्य काल १ अंतर्मु, १ अंतर्मु १ अंतर्मु १ अंतर्मु १ अंतर्मु. ६ मारा नाणत्ता १ अंतर्मु १ अंतर्मु १ अंतर्मु, १ अंतर्मु १ अंतर्ग. ६ मास अव० दृष्टि ज्ञान योग, आयु, अध्य०, अनु० १ कोडपूर्व १ अंतर्मु १ कोडपूर्व १ अंतर्मु १ कोडपूर्व ६ मास २ आयु अनुबंध उत्कृष्ट काल संखकाल संखकाल संखकाल संखकाल २४ मास २४ मास संखकाल संखकाल संखकाल संखकाल ४ अंतर्मु, २४ मास २४ मास २४ मास २४ मास ४ अंतर्मु २४ मास २४ मास चउरिंद्रिय में असत्री ति० पंचे० नाणता अव०, दृष्टि, ज्ञान, योग आयु अध्य०, अनु० २ आयु अनुबंध उत्कृष्ट काल ४ कोडपूर्व २४ मास ४ कोडपूर्व ४ अंतर्मु ४] कोडपूर्व २४ मास ४ अंतर्मु. २४ मास ४ अंतर्मु, ४ अंतर्मु ४ अंतर्ग २४ मा ४ कोडपूर्व २४ मास ४] कोडपूर्व ४ अंतर्मु ४] कोडपूर्व २४ मास गमा २७७ Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७८ ७१ तीन विकलेंद्रिय में संख्याता वर्ष नां सन्नी तिर्यंच ऊपजै तेहनों यंत्र (१०) १ उपपात द्वार गमा २० द्वार नी संख्या २ 3 ४ ૧ ६ 19 ८. ६ ~~*~ ५ गमा २० द्वार नौ संख्या ६ ओधिक नै ओधिक अधिक नैं जघन्य ओधिक नै उत्कृष्ट ७ जघन्य नै ओधिक जघन्य नै जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट ६ ६ उत्कृष्ट नै ओधिक उत्कृष्ट नै जघन्य उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट अधिक नै ओधिक अधिक नै जघन्य ओधिक नै उत्कृष्ट जघन्य नै ओधिक जघन्य नै जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट उत्कृष्ट नै ओधिक उत्कृष्ट नै जघन्य उत्कृष्ट में उत्कृष्ट जघन्य १४.७ गमै जिन जिन ठिकाण ऊपजे तिन रै जघन्य उत्कृष्ट आयु में ऊपजै उत्कृष्ट २५० गर्म जिन जिन ठिकाण ऊपजे तिण रे जघन्य आयु में ऊपजै ३.६.६ गने जिन जिन ठिकाण ऊपजे तिज रे उत्कृष्ट आयु में ऊपजै । जघन्य उपपात द्वार उत्कृष्ट १४.७ गमै जिण जिन ठिकाण ऊपजे तिन रे जघन्य उत्कृष्ट आयु में ऊपजै । भगवती-जोड़ (खण्ड-६) २.५८ गमे जिन जिण ठिकाण ऊपजे तिण रे जघन्य आयु में ऊपजै ३.६.९ गर्म जिन जिन ठिकाण ऊपजै तिज रे उत्कृष्ट आयु में ऊपजै । परिमाण द्वार ७२ तीन विकलेंद्री में संख्याता वर्ष नां सन्नी मनुष्य ऊपजै तेहनों यंत्र (११) जघन्य १२.३ ऊपजै १२.३ ऊपजै १२.३ ऊपजै जघन्य १२.३ ऊपजै उत्कृष्ट १२.३ ऊपजै संख या असंख ऊपजै परिमाण द्वार १.२.३ ऊपजै संखया अरांख ऊपजै संखया असंख ऊपजै उत्कृष्ट संख्याता ऊपजै संख्याता ऊपजै संघयण द्वार ६ संख्याता ऊपजै ६ 3 संघयण द्वार ६ ४ अवगाहना द्वार उत्कृष्ट ६ जघन्य आंगुल न असंख भाग आंगुल न असख भाग आंगुल न असख भाग जघन्य आंगुल न असंख भाग ४ अवगाहना द्वार उत्कृष्ट ५. सी मनुष्य आंगुल न असंख भाग १ हजार योजन ५. सी धनुष्य आंगुलन असंख भाग १ हजार योजन आंगुलनी असंख भाग ५. सौ धनुष्य ५ सठाण द्वार ६ ६ ६ ६ ५ संठाण द्वार ६ ६ ६ ६ ६ लेश्या द्वार ६ ३ पहली लेश्या द्वार ६ ३] पहली ७ दृष्टि द्वार ३ ३ १ मिथ्या ७ दृष्टि द्वार ३ ३. १ मिध्या ज्ञान-अज्ञान द्वार 3 ५ ३ भजना ३ भजना ५ ४ भजना उभजना ज्ञान-अज्ञान द्वार 3 0 २ नियमा ३ भजना भजना २ नियमा ३ भजना योग द्वार ३ 3 १ काय 3 ६ योग द्वार 3 ३ उपयोग द्वा २ उपयोग २ ~ Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११ संज्ञा द्वार | > 99 ४ १२ कषाय द्वार 30 ४ १२ कषाय द्वार ४ × ५ १३ इन्द्रिय द्वार ५. ५ ५ १३ इन्द्रिय द्वार ५ ५ ५ गंगा समुद्घात द्वार ७ १ २ 3 ४ ५ 19 3 गमा ४ ५ 0 ५. पहली ८ ३] पहली ५. पहली ज. 상 समुद्धात द्वार ७ २ २ २ २ २ २ ६] केवल वर्जी ३] पहली ६ केवल बजी २ २ २ भव २ २ २ 7 २ २ भव उ. ६ ८ ८ उ. ८ 94 वेदना द्वार २ २ २ २ १५ वेदनाद्वार २ १६ वेद द्वार 3 जघन्य काल १ अंतर्ग १ अंतर्ग १ अंतर्मु, १ अंतर्ग १ अंतर्मु] १२ वर्ष १ अंतर्ग 9 अंतर्ग १ अंत ५ अंतर्ग १ अंत १२ १ कोहपूर्व १ अंतर्मु १] कोडपूर्व अंतर्मु १] कोडपूर्व १२ वर्ष जघन्य काल 3 बेइंद्रिय में संख वर्ष नो सन्त्री तिव १६ वेद द्वार ३ १ अंतर्मु, १ अंतर्मु 9 अंतर्मु, १ अंतर्मु १ अंज, १२ वर्ष १] अंतर्ग १ अंतर्ग १ अंतर्मु, १ अंतर्मु १ अंश १२ वर्ष ३ जघन्य अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व १ अंतर्मु [१] कोडपूर्व १ अंतर्मु १ कोपूर्व १२ वर्ष अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व उत्कृष्ट काल ४] कोडपूर्व ४८ वर्ष ४] कोडपूर्व ४ अंतर्मु ४] कोडपूर्व ४८ वर्ष ४ अंतर्मु] ४८ वर्ष ४] अंतर्मु, ४ अंतर्मु ४ अंतर्मु] ४८ वर्ष ४] कोडपूर्व ४८ वर्ष ४] कोडपूर्व ४ अंतर्ग ४] कोडपूर्व ४८ वर्ष जघन्य बेइंद्रिय में संख वर्ष नौ रात्री मनु० अंतर्मुहूर्त आयु द्वार अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व 99 आयु द्वार उत्कृष्ट काल [४] कोडपूर्व ४८ वर्ष ४] कोडपूर्व ४ अंतर्मु ४] कोडपूर्व ४८ वर्ष ४ अंतर्ग ४८ वर्ष ४ अंतर्मु ४ अंतर्मु ४ अंतर्ग ४८ वर्ष ४] कोडपूर्व ४८ वर्ष ४] कोडपूर्व ४ अंतर्मु ४] कोडपूर्व ४ वर्ष उत्कृष्ट १] कोडपूर्व अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व २० कायसंवेध द्वार जघन्य काल १८ अध्यवसाय द्वार असंख्याता भला मूंडा १] अंतर्मु १ अंतर्ग १ अंतर्मु १ अंतर्मु १] अंतर्ग ४९ दिन रात उत्कृष्ट • कोटपूर्व अंतर्मुहूर्त भलामूंडा १ अंतर्मु, १ अंतर्मु अंतर्मु, १ अंतर्मु १ अंतर्ग ४६ दिन रात 1 कोडपूर्व १ कोडपूर्व १ अंतर्ग १ कोडपूर्व १ अंतर्मु १] को पूर्व ४६ दिन रात 噬 इंद्रिय में संख वर्ष नौ सन्नी विध १८ अध्यवसाय द्वार असंख्याता भला मूंडा भलामूंडा २० कायसंवेध द्वार जघन्य काल १ अंतर्ग १ अंतर्ग 9 अंतर्मु १ अंतर्ग १] अंतर्गु ४५ दिन रात १ अंतर्मु, १ अंतर्ग 9 अंत अंतर्मु १ ४६ दिन रात १ कोडपूर्व १ अंतर्ग १ [ोडपूर्व अंतर्ग १] कोडपूर्व ४९ दिन रात जघन्य अंतर्मुहूर्त १६ अनुबंध द्वार अंतर्मुहूर्त १ ढोडपूर्व उत्कृष्ट काल ४] कोडपूर्व १६६ दिन रात ४] कोडपूर्व ४ अंतर्ग ४] कोडपूर्व १६६ दिन रात ४] अंत १६६ दिन रात ४ अंतर्मु, ४ अंतर्मु ४ अंतर्ग १६६ दिन रात इंद्रिय में संख] वर्ष नौ रात्री मनु० [४] कोडपूर्व १६६ दिन रात ४ कोडपूर्व ४ अंतर्मु ४] कोडपूर्व १९६ दिन रात जघन्य अंतर्मुहूर्त १६ अनुबंध द्वार अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व उत्कृष्ट काल ४] कोडपूर्व १६६ दिन राज ४] कोडपूर्व ४ अंतर्ग ४] कोडपूर्व १६.६ दिन रात ४ अंश १६.६ दिन रात ४] अंतर्ग ४ अंतर्मु ४] १६६ दिन रात ४] कोडपूर्व १६६ दिन रात ४] कोडपूर्व ४ अंतर्ग ४] कोडपूर्व १६६ दिन रात उत्कृष्ट १] कोडपूर्व अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व जघन्य काल १ अंतर्ग १ अंतर्मु १ अंतर्ग १ अंतर्ग १ अंतर्मु, ६ मास १ अंतर्ग. १ अंतर्ग १ अंतर्ग. १ अंतर्ग अंत ६ मास चरिंद्रिय में संख वर्ष नों सत्री तिच उत्कृष्ट काल ४] कोडपूर्व २४ गास ४] कोडपूर्व ४ अंतर्ग ४] कोडपूर्व २४ मास १ कोडपूर्व १ अंतर्ग १ कोडपूर्व १ अंतर्मु १] कोडपूर्व ६ मास उत्कृष्ट १] कोडपूर्व अंतर्मुहूर्त १] कोडपूर्व ६ अव०, लेश्या दृष्टि, ज्ञान-अज्ञान, योग समु आयु, आध्य० अनुबंध जघन्य काल १ अंतर्ग १ अंतर्ग [१] अंतर्ग १ अंतर्ग १ अंतर्ग] [६] मारा नाणत्ता १ अंतर्ग १ अंतर्ग १ अंत अंतर्मु १६ मारा २ आयु अनुबंध १ कोडपूर्व १ अंतर्ग १ कोडपूर्व १ अंतर्ग १ कोपूर्व ६ मास ४ अंतर्ग २४ मास ४ अंतर्ग ४ अंतर्मु ४ अंतर्ग २४ मास ४] कोडपूर्व २४ मास ४] कोडपूर्व ४ अंतर्मु ४] कोडपूर्व २४ गारा नाणत्ता ६ अव०, लेश्या दृष्टि, ज्ञान-अज्ञान, योग, रामु आयु अध्य० अनु० चरिधि में संख वर्ष नो रात्री मनु 3 अव० आयु अनु उत्कृष्ट काल [४] कोडपूर्व २४ मारा ४] कोडपूर्व ४ अंतर्ग [४] पूर्व [२४] गारा ४ अंतर्ग २४ गारा ४ अंतर्ग ४ अंतर्ग ४ अंतर्ग २४ गारा ४] कोडपूर्व २४ गास ४] कोडपूर्व ४ [४] कोडापूर्व २४ मास गमा २७६ Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३ तीन विकलेंद्री में असन्नी मनुष्य ऊपजे तेहनों यंत्र (१२) गमा २०द्वार नी संख्या सघयणद्वार संठाण द्वार लेश्या द्वार दृष्टि द्वार ज्ञान-अज्ञानद्वार योग द्वार उपयोगला उपपात द्वार उत्कृष्ट परिमाण द्वार जघन्य अवगाहना द्वार जघन्य उत्कृष्ट जघन्य १२.३ १छेवटो | पहुंडक ३पहली | १निध्या २नियमा ओधिक नै ओधिक १गमै जघन्य उत्कृष्ट आयु ओधिक जघन्य | २गरी जयन्य आयु. ओधिक उत्कृष्ट | ३ गमै उत्कृष्ट आयु में ऊपजै । संख या अरांख ऊपजै आंगुल नों । असंख भाग आंगुल नों| असंख भाग तिबंधपदिय में ३६ ठिकाणां ना ऊपजे-सात नरक, दस भवनपति १७, पांचरथावर २२. तीन विकलेंदिय २५, असन्नी तियेच पंचेदिय २६. सन्नी तिथंच पंचेंदिय २७, असन्नी मनुष्य २६. सन्नी मनुष्य २६. व्यंतर ३०, ज्योतिषी ३१. प्रथम आठ देवलोक ३६ । ७४ तिर्यंच पंचेंद्रिय में प्रथम नरक नां नेरइया ऊपजै तेहनों यंत्र (१) गमा २०द्वार नी संख्या सघयण द्वार संढाणद्वार लेश्या द्वार दृष्टिद्वार ज्ञान-अज्ञानद्वार योग द्वार उपपात द्वार जघन्य उत्कृष्ट परिमाण द्वार उत्कृष्ट अवगाहना द्वार जघन्य उत्कृष्ट ५ असंधयणी १कापोत ३नियगा ३भजना | ओभिक नै ओधिक | ओधिक नैं जघन्य ओधिक नै उत्कृष्ट १अंतर्मुहूर्त १अंतर्मुहूर्त १योडपूर्व ३ १कोशपूर्व १ अंतर्मुहूर्त १ बोडपूर्व १२.३ ऊपजै सखया अरांस ऊपजै आंगुल नों असंख भाग ७धनुष्य उहाथ ६ आंगुल ३ असंघयणी पहुंडक १कापोत जघन्य नै ओधिक जघन्य नै जघन्य | जघन्य नै उत्कृष्ट ३निया अंतर्मुहूर्त १अंतर्गत १कोहपूर्व आंगुल नों असंख भाग १ कोडपूर्व १ अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व संखया असंखऊपजे ऊपजे ६आगुल असंघयणी पहुंडक १कापोत ३नियमा | ३नियमा | ३ | | उत्कृष्ट नै औचिक अंतर्गत | उत्कृष्ट नै जघन्य | १अंतर्महर्त | उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट कोडपूर्व १ कोडपूर्व १अंतर्भूत १ कोडपूर्व संखया | असंख ऊपजै आंगुल नों असंख भाग ऊपजे ३हाथ ६आपुल ७५ तिर्यंच पंचेंद्रिय में दूसरी नरक नां नेरइया ऊपजै तेहनों यंत्र (२) गमा २० द्वार नी संख्या संघयम द्वार ज्ञान-अज्ञानद्वार योग द्वार उपयोग कर उपपात द्वार | उत्कृष्ट परिमाण द्वार जघन्य उत्कृष्ट ___अवगाहना द्वार | संठाण द्वार | लेश्या द्वार | जपन्य । उत्कृष्ट दृष्टि द्वार ३ १ | असंधयणी पहुंडक | १कापोत ३नियमा ३नियमा ओधिक ने ओधिक | अंतर्मुहूर्त ओधिक नैं जधन्य | अंतर्मुहूर्त ओधिक नै उत्कृष्ट | १ कोडपूर्व | १कोडपूर्व अंतर्मुहूर्त १कोडपूर्व १२.३ कपजै संखया | असंख ऊपरी आंगुल नों | १५॥धनुष्य असंख भाग १२ आंगुल असंघयणी पहुंडक | कापोत ३नियमा | ३नियगा | ३ । जघन्य नै ओधिक | जघन्य नै जघन्य | जघन्य नै उत्कृष्ट १अंतर्मुहूर्त १अंतर्मुहूर्त १कोडपूर्व १कोडपूर्व १अंतर्मुहूर्त १कोडपूर्व १,२.३ ऊपजै संखया असंख ऊपजे | आंगुल नों | १५ || धनुष्य | असंस भाग १२ आंगुल | असंघयणी हुंडक कापोत ३नियमा ३नियमा । ७ | उत्कृष्ट न ओधिक | उत्कृष्ट नै जघन्य ६ उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त पकोडपूर्व १कोडपूर्व | अंतर्मुहूर्त | कोडपूर्व १२.३ ऊपज संखया | असंखतपजे आंगुल नों असंख भाग ५। धनुष्य १२ आगुल २८० भगवती-जोड़ (खण्ड-६) Jain Education Intemational Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११ संज्ञा द्वार ४ ४ 19 द्वार द्वार . 1. १२ कषाय द्वार ४ ५ ४ १२ कषाय द्वार १२ कषाय द्वार ४ ४ ४ 93 इन्द्रिय द्वार ५ ५ 4 १३ इन्द्रिय द्वार ५ ५ १३ इन्द्रिय द्वार धू مد [४] पहली ४] पहली ४] पहली ४] पहली समुद्धात द्वार ४] पहली पहली गमा १ 94 समुदयात द्वार वेदना द्वार 3 ७ ३. पहली ज. १४ समुद्घात द्वार वेदना द्वार २ २ २ २ २ २ सब उ. १५ वेदना द्वार - वेद द्वार नराक १] नपुंसक २ १६ वेद द्वार १ पुराक २ १] नपुंसक १० हजार वर्ष जघन्य काल १ अंतर्मु, १ अंतर्मु १ अंतर्मु, १ अंतर्मु १ अंतर्मु, १२ वर्ष १० हजार धर्म १६ वेद द्वार 3 १ नपुंसक พ आयु द्वार जघन्य उत्कृष्ट सागर इंद्रिय में असनी मनु १] नपुंसक शहर १ सागर 30 हजार वर्ष [१] सागर 919 आयु द्वार जघन्य उत्कृष्ट १. सागर ३ सागर सागर १] नपुंसक ३ सागर ३ सागर उत्कृष्ट काल ४ अंतर्मुहूर्त ४८ वर्ष ४ अंतर्मुहूर्त ४ अंतर्मु ४] अंतर्मुहूर्त ४८ वर्ष अध्यवसाय द्वार असख्याता भला मूंजा जघन्य अंतर्मुहूर्त भूटा भता अध्यवसाय द्वार असंख्याता भूंडा भूल आयु द्वार जघन्य १० हजार चर्च वर्ष अनुबंध द्वार उत्कृष्ट जघन्य "सागर उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त १ सागर ३ सागर जघन्य काल १६ अनुबंध द्वार उत्कृष्ट २० कायसंवेध द्वार १ अंतर्ग १ अंतर्मु, १ अंतर्मु, १ अंतर्मु १ अंतर्मु. ४८ दिन रात १ सागर १० हजार वर्ष १ सागर १८ अध्यवसाय द्वार असंख्याता मूंडा ३ सागर 3 सागर तेइंद्रिय में असत्री मनु० नाणता २ आयु अनुबंध र आयु अनुबंध नाणत्ता २ आयु अनुबंध 2 आयु अनु उत्कृष्ट काल जघन्य २ ४ अंतर्मुहूर्त १६६ दिन रात ४ अंतर्मुहूर्त ४ अंतर्मु ४ अंतर्मुहूर्त १९६ दिन रात २ 7 २ जघन्य २ 2 २ भव २ जघन्य अंतर्मुहूर्त भव उत्कृष्ट ८ C at it ६ उत्कृष्ट ६ १६ अनुबंध द्वार L उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त १. सागर [१] सागर १ सागर चरिंद्रिय में असत्री मनु० जघन्य काल जघन्य काल १० हजार वर्ष १ अंतर्ग १० हजार वर्ष १ अंतर्मु १० हजार वर्ष १ कोडपूर्व १] सागर १] सागर १ सागर १ अंतर्मु, १ अंतर्ग १ अंतर्ग. १ अंतर्मु १] अंतर्मु] ६ मास १० हजार वर्ष १ अंतर्ग १० हजार वर्ष १ अंतर्ग १० हजार वर्ष १ कोडपूर्व १] सागर १ अंतर्ग १] सागर १ अंतर्मु १ सागर १ कोडपूर्व ३] सागर ३ सागर ३ सागर जघन्य काल २० कायसंवेध द्वार अंतर्ग अंतर्मु 4. कोडपूर्व १ अं १ अंतर्मु १] फोडपूर्व नाणत्ता २० कायसंवेध द्वार १] अंतर्ग १ अंतर्ग १ कोपूर्व उत्कृष्ट काल ४ अंतर्मुहूर्त २४ मास ४ अंतर्मुहूर्त ४ अंतर्मु ४ अंतर्मुहूर्त २४ मास उत्कृष्ट काल ४ सागर ४ को पूर्व ४ सागर ४ अंतर्ग ४ सागर ४ कोडपूर्व ४० हजार वर्ष ४ कोहपूर्व ४० हजार वर्ष ४ अंतर्मु 60 हजार वर्ष ४ कोडपूर्व ४ सागर ४ को डपूर्व ४ सागर ४ अंतर्मु ४ सागर ४ कोडपूर्व उत्कृष्ट काल १२ सागर ४ कोडपूर्व १२ सागर ४ अंतर्ग १२ सागर ४ को पूर्व [४] सागर ४ कोडपूर्व ४ सागर ४ अंतर्मु ४ सागर ४ कोडपूर्व १२ सागर ४ पूर्व १२ सागर ४ १२ सागर पूर्व गुमा २८१ Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६ तिर्यंच पंचेंद्रिय में तीसरी नरक वालुका-प्रभा नां जीव ऊपजै तेहनों यंत्र (३) गमा २०द्वार नी संख्या संघयण द्वार अवगाहना द्वार संठाणद्वार लेश्या द्वार | दृष्टिद्वार ज्ञान-अज्ञान द्वार योगद्वार उपयोग द्वार उपपात द्वार जघन्य उत्कृष्ट परिभाणद्वार जघन्य १२३ अपना नियमा | ओधिकनै ओधिक ओधिक नै जघन्य ओधिकनै उत्कृष्ट नियमा १अंतर्मुहूर्त १अंतर्मुहू १कोजपूर्व १कोडपूर्व अंतर्मुहूर्त १कोडपूर्व रापोत नील आगुतनों असंखभाग असंखऊपर ३ १२.३ असंभवी आंगुल नौ । २१॥धनुष्य कापोत ३नियमा जघन्य नै औधिक | जघन्य नै जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट | ३निषगा अंतर्मुहूर्त १अंतर्मुहूर्त १कोडपूर्व १कोडपूर्व १आर्मुहूर्त १कोहपूर्व संखया असंयसपने ६ १नील नियमा नियमा । ३ उत्कृष्ट नै ओधिक उत्कृष्ट नै जघन्य उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट । १अंतर्मुहूर्त १अंतर्मुहूर्त १कोटपूर्व असंधयनी | आंगुल नों-मनुष्ण असंख भाग १कोडपूर्व १अंतर्मुही कोटपूर्व १२.३ ऊपजै सखया | असंख रूप ७७ तिर्यंच पंचेंद्रिय में चौथी नरक पंकप्रभा नां जीव ऊपजै तेहनों यंत्र (४) गमा २०द्वार नी संख्या संघयण द्वार अवगाहना द्वार संठाण द्वार लेश्या द्वार | दृष्टिद्वार शान-अज्ञान द्वार योग द्वार उपयोग उपपात द्वार जघन्य उत्कृष्ट परिमाण द्वार जघन्य जघन्य उत्कृष्ट ૧૨૩ असंघयणी ६२॥धनुष्य नील १हुंडक ३नियमा ओधिकनै ओधिक ओधिक जघन्य ओधिक नै उत्कृष्ट संखया असंख ऊपजे ३नियमा १अंतर्मुहूर्त १अंतर्मुहूर्त १कोडपूर्व आंगुल नों असंखभाग १कोडपूर्व १अंतर्मुहूर्त १कोडपूर्व | असंघवणी | नील ३नियमा जघन्य नै ओधिक जघन्य नै जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट १अंतर्मुहूर्त १अंतर्मुहूर्त १कोडपूर्व | ३नियमा |१कोडपूर्व १अंतर्मुहूर्त १कोडपूर्व संख या असंख ऊपज | आंगुल नो । २।।धनुष्य | १हुंडक असंखभाग ऊपजे १९डक नील ३ ३नियगा । ३नियमा । ३ उत्कृष्ट नै ओधिक उत्कृष्ट नै जान्य | उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट | १अंतर्मुहूर्त १अंतर्मुहूर्त कोडपूर्व । १कोडपूर्व १अंतर्मुहूर्त १कोडपूर्व १२.३ ऊपजे संख या असंख ऊपने असंघयणी | आगुलनों । साधनुष्य असंख माग ७८ तिर्यंच पंचेंद्रिय में पांचवीं नरक धूमप्रभा नां जीव ऊपजै तेहनों यंत्र (५) गमा २० द्वार नी संख्या परिमाण द्वार सिंघयन द्वार संठाण द्वार लेश्या द्वार | दृष्टि द्वार ज्ञान-अज्ञान द्वार योगदार उपपात द्वार जघन्य | उत्कृष्ट अवगाहना द्वार जघन्य असंघयणी १हुडक २ कृष्ण नियमा नियमा ३ ओधिक नै औधिक ओधिक जघन्य ओधिक उत्कृष्ट १अंतर्मुहूर्त १अंतर्मुहूर्त १कोउपूर्व १कोडपूर्व १अंतर्मुहूर्त १कोडपूर्व १२३ ऊप २ संखया असंख ऊप आंगुल नों| १२५ धनुष्य असंवभाग जीत १२.३ | असंघयणी नील पहुंडक नियमा | नियमा । ३ । | जघन्य नै ओधिक | जघन्य नै जघन्य जपन्य नै उत्कृष्ट १अंतर्मुहूर्त | १अंतर्मुहूर्त १कोडपूर्व १कोडपूर्व १अंतर्मुहूर्त १कोडपूर्व संखया असंख ऊपजे | आंगुल नों | १२५ पनुष्य असंख भाग . In | असंघयणी १हुंडक नियमा ३नियमा उत्कृष्ट ओधिका १अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट नै जघन्य | अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट | १कोडपूर्व १कोडपूर्व १अंतर्मुहूर्त १कोडपूर्व ૧૨૩ ऊपजे आंगुलनों । १५ धनुषा असंखभाग | असंख रुपजे २८२ भगवती-जोड़ (खण्ड-६) Jain Education Intemational Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संज्ञा द्वार ४ | ४ ११ ४ V 門 द्वार ४ ४ १२ कषाय द्वार 30 १२ कषाय द्वार ४ x १२ कषाय द्वार ४ ४ 93 इन्द्रिय द्वार ५. ५. ५ 4 93 इन्द्रिय द्वार ५. ५ ५ १३ इन्द्रिय द्वार ५ ५ 94 समुद्धात द्वार वेदना द्वार 8 ४] पहली ४] पहली x पहली ४] पहली ४] पहली १४ १५ समुद्धात द्वार वेदना द्वार २ ४] पहली ४] पहली २ ४ पहली २ ४] पहली २ १४ १५ समुद्धात द्वार वेदना द्वार ७ २ २ २ २ 3 १ रा नपुंसक ३ सागर क १६ वेद द्वार 3 आयु द्वार जघन्य ३ सागर १६ वेद द्वार ३ सागर जघन्य १ नपुंसक ७ सागर १ नपुंसक ७ सागर आयु द्वार १ नपुंसक १० सागर जघन्य उत्कृष्ट १ नपुंसक १० मागर ३ सागर १ नपुंसक १३ सागर 13 सागर उत्कृष्ट १० सागर आयु द्वार उत्कृष्ट १ नपुंसक १० सागर १७ सागर ७ सागर १० सागर १० सागर अध्यवसाय द्वार असख्याता भला भूंडा भला भूड़ा भला भूड़ा मला मूंडा भला मूंडा १८. अध्यवसाय द्वार असंख्याता मला भूहा १६. अध्यवसाय द्वार असंख्याता भला भूडा भला भूंडा भला भूडा १६ अनुबंध द्वार उत्कृष्ट जघन्य ३ सगार ३. रागार ३ सागर FREE जघन्य १६ अनुबंध द्वार ७ सागर ७ सागर १० सागर 19 सागर जघन्य ७ सागर १० सागर १० सागर उत्कृष्ट १० सागर १६ अनुबंध द्वार उत्कृष्ट ७ सागर १० सागर १७ सागर १० सागर १७ सागर १७ सागर नाणता आयु अनुषध 2 आयु अनु नाणता २ आयु अनुबंध २ आयु अनु नाणता 0 आयु अनुबंध २ आयु अनु० जघन्य उत्कृष्ट २ ~~~ ~~~ ~~~ २ २ २ भव २ जघन्य उत्कृष्ट 2 २ २ ~~~ जघन्य २ २ ~~~ २ २ ਮਨ ८ ६ 1. भव C ६ 20 C 222 ८ उत्कृष्ट प C S C ३ सागर ३. सागर जघन्य काल ३ सागर ३. सागर 3 सागर सागर सागर अंतर्ग १ कोपूर्व सागर २० कायसंवेध द्वार १ अंतर्ग १ अंतर्ग " कोडपूर्व १ अंतर्ग १ अंतर्ग १] कोडपूर्व जघन्य काल ७ सागर अंतर्मु 19 सागर १ अंतर्ग ७ सागर १ कोडपूर्व ७ सागर १. अंतर्मु ७ सागर १ अंतर्मु 1७ सागर १ को डपूर्व १० सागर १ अंतर्मु १० सागर १ अंतर्ग १० साग १ को पूर्व जघन्य काल १० सागर १० रागर १० सागर ५७. सागर १७ सागर सागर १० सागर १. अंतर्मु, १० सागर १ अंतर्ग १] कोडपूर्व १० खागर १ अंतर्मु १ अंतर्मु [१] कोडपूर्व उत्कृष्ट काल १. अंतर्मु १ अंतर्ग १] कोडपूर्व २८. सागर ४ कोडपूर्व २८६ सागर ४ अंतर्मु [२८] सागर ४ को डपूर्व १२ सागर ४ कोडपूर्व १२. रहगर ४] अंतर्ग १२] खागर ४ कोडपूर्व २८. सागर ४ कोडपूर्व २८. सागर ४ अं २० सागर ४ कोहपूर्व कायसंवेध द्वार उत्कृष्ट काल ४० सागर ४ कोडपूर्व ४० सागर ४ अंतर्मु ४० सागर ४ कोडपूर्व कायसंवेध द्वार २८. सागर ४ कोडपूर्व २८. सागर ४ अंतर्ग २० सागर ४ कोडपूर्व ४० सागर ४ फोडपूर्व ४० सागर ४ अंतर्मु ४० सागर ४ को डपूर्व उत्कृष्ट काल ६. सागर ४ को पूर्व ६८ सागर ४ अंतर्मु ६८ सागर ४ कोडपूर्व ४० सागर ४ कोडपूर्व ४० सागर ४ अंतर्ग ४०] सागर ४] कोडपूर्व ६८ सागर ६८ सागर ६. सागर ४] कोडपूर्व ४ अंतर्मु कोटपूर्व गमा २८३ Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६ तिर्यंच पंचेंद्रिय में छट्ठी नरक तमप्रभा नां जीव ऊपजै तेहनों यंत्र (६) गमा २० द्वार नी संख्या संघयण द्वार ना संठाण द्वार । लेश्या द्वार दृष्टि द्वार ज्ञान-अज्ञानद्वार योग द्वार | उपपात द्वार जधन्य उत्कृष्ट उपयोग द्वार परिमाण द्वार उत्कृष्ट अवगाहना द्वार जघन्य जघन्य असंघयणी | २५० धनुष्य नियमा पहुडक नियमा ओधिक औधिक | ओधिक जघन्य ओधिकनै उत्कृष्ट १अंतर्मुहूर्त १अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व संख या असंख ऊपजे १कोडपूर्व १अंतर्मुहूर्त १कोडपूर्व आंगुलनों असंख भाग ऊपज | असंघयणी हुंडक ३नियमा | २१० धनुष्य | नियमा mc । जघन्य नै ओधिक जघन्य जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट १अंतर्मुहूर्त १अंतर्मुहूर्त १कोडपूर्व १कोडपूर्व १अंतर्मुहूर्त १कोडपूर्व १२.३ ऊपजै संखया असंख ऊपजे आंगुल नों असख भाग १० धनुष्य १९डक | १कृष्ण ३नियगा | ३नियमा | उत्कृष्ट नै ओधिक उत्कृष्ट नै जघन्य | उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट | १अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त कोडपूर्व १कोडपूर्व १ अंतर्मुहूर्त कोडपूर्व १२.३ ऊपजै संखया | असमरणी असंखऊपजे आंगुल नों असंखभाग ८० तिर्यंच पंचेंद्रिय में सातवीं नरक तमतमा नां जीव ऊपजै तेहनों यंत्र (७) गमा २०द्वार नी संख्या संघयण द्वार । सठाण द्वार लेश्या द्वार | दृष्टि द्वार ज्ञान-अज्ञान द्वार योग द्वार | उपयोग उपपात द्वार जघन्य उत्कृष्ट परिमाण द्वार जघन्य उत्कृष्ट अवगाहना द्वार जधन्य उत्कृष्ट १ | असंघयणी १हुंडक । १महा कृष्ण । ३ । ३नियमा ३नियमा ओधिक नै ओधिक औधिक जघन्य ओधिक उत्कृष्ट १अंतर्मुहूर्त १अंतर्मुहूर्त १कोडपूर्व १कोठपूर्व १अंतर्महर्व १कोडपूर्व संख या असंख ऊपजे | आंगुल नों | ५०० धनुष्य असख भाग ऊपजै । १२३ १९डक | १महा कृष्ण ३ ३नियमा | नियमा जघन्य नोधिक | जघन्य नै जघन्य । जघन्य नै उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त १अंतर्मुहूर्त १कोडपूर्व १ कोडपूर्व - १अंतर्मुहूर्त १कोडपूर्व संखया | असंख ऊपजे | असंघयणी | आंगुल नों | ५०० धनुष्य असंख भाग असंभयणी १९डक १महा कृष्ण ३ आंगुल नों |५०० धनुष्य असंखभाग | नियमा | नियमा उत्कृष्ट नै औधिक उत्कृष्ट जपन्य उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट १अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त १कोडपूर्व १कोडपूर्व १ अंतर्मुहूर्त १कोडपूर्व १२.३ ऊपजै संखया असंखऊपजे | ५१ तिर्यंच पंचेंद्रिय में पृथ्वीकाय ऊपजै तेहनों यंत्र (८) गमा २०द्वार नी संख्या संधयण द्वार अवगाहनाद्वार संठाणद्वार | लेश्या द्वार | दृष्टि द्वार ज्ञान-अज्ञानद्वार योगद्वार उपयोग द्वा उपपात द्वार जघन्य उत्कृष्ट परिमाण द्वार जघन्य उत्कृष्ट जघन्य १छेदटो चंद्र मसूर ४पहली ० २नियमा | १काया ओधिक नै ओधिक | १अंतर्मुहूर्त ओधिक नै जघन्य १अंतर्मुहूर्त ओधिक नै उत्कृष्ट १कोडपूर्व १कोडपूर्व १अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व १२.३ ऊपजै संखया असंख ऊपजै आगुल नों असख भाग १छेदटो | चंद्र मसूर | ३पहली | मिथ्या . रनियमा । काया जघन्य नै ओधिक जघन्य नै जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट १अंतर्मुहूर्त १अंतर्मुहूर्त १कोडपूर्व १कोडपूर्व १अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व १२.३ ऊपज संखया असंखऊपज आंगुल नों असं भाग | छेवटो | चंद मसूर | पहली मिश्या उत्कृष्ट नै ओधिक उत्कृष्ट नै जान्य जत्कृष्ट नै उत्कृष्ट २नियमा | काया | १अंतर्नुहूर्त अंतर्मुहूर्त कोडपूर्व १२.३ ऊपरी १कोडपूर्व १अंतर्मुहूर्त १कोडपूर्व सख या अरांख ऊपज आंगुल नों असंख भाग २८४ भगवती-जोड़ (खण्ड-६) Jain Education Intemational Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 轉 99 हद्वार १२ कषाय द्वार ४ ४ ན १२ कषाय द्वार ४ V 啊 १२ काद्वार कषाय द्वार ४ x १३ इन्द्रिय द्वार ५ ५ ५. १३ इन्द्रिय द्वार ५ ५ ५ ५ 13 इन्द्रिय द्वार ५ १ फर्श १ फ १ फर्श १५ समुद्घात द्वार वेदना द्वार २ یا ४ पहली ४ पहली ४] पहली ४ पहली १४ १५ समुद्धात द्वार वेदना द्वार ७ २ ४] पहली ४ पहली ३] पहली २ ३] पहली २ पेस समुद्घात द्वार वेदना द्वार 19 २ ३. पहली २ २ २ २ १६ वेद द्वार 3 १ नपुंसक 9 सागर २२ सागर १ नपुंसक 98 सागर १६ वेद द्वार 3 १ नपुंसक २२ सागर आयु द्वार उत्कृष्ट जघन्य १७ आयु द्वार उत्कृष्ट १ नपुंसक २२ सागर ३३ सागर १६ वेद द्वार ३ १ नपुंसक १ नपुंसक नपुंसक २२ सागर २२ सागर १ नपुंसक जघन्य १ नपुंसक ३३ सागर ३३ सादर १७ सागर २२ सागर जघन्य 915 आयु द्वार उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त २२ हजार वर्ष अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त २२ २२ हजार वर्ष हजार वर्ष १८. अध्यवसाय द्वार असंख्याता भला ब मूंडा मला मूंडा भला भूंडा अध्यवसाय द्वार असंख्याता मला भूंडा मला भूंडा भता भूंडा भला भूडा খুঁজা १९ अनुबंध द्वार उत्कृष्ट भला भूडा जघन्य १७ सागर २२ सागर १७ सागर १७ सागर २२ सागर २२ सागर अनुबंध द्वार जघन्य उत्कृष्ट २२ सागर ३३ सागर १८ १९ अध्यवसाय द्वार अनुबंध द्वार असंख्याता जघन्य उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त २२ सागर २२ सागर ३३ सागर 33 सागर २२ हजार वर्ष अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त २२ २२ हजार वर्ष हजार वर्ष नाणता ° २ आयु अनुबंध २ आयु अनु नाणता आयु अनुबंध आयु अनु० नाणत्ता लेश्या, आयु अध्य० अनु० आयु अनुबंध जघन्य 3 २ www २ २ २ २ जघन्य ~~~ ર ~~~ www भद २ www. उत्कृष्ट भव www ८ www भव www ८ उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट ६ ६ ६ ६ ६ JUU ८ ८ ६ 333 ६ ८ जघन्य काल www १७ सागर १ अंतर्मु १७ सागर १ अंतर्मु १ कोडपूर्व १७ सागर १७ सागर १७ सागर 99 सागर २२ सागर २२ नगर २२ सागर १ अंतर्ग १ अंतर्मु १ कोडपूर्व जघन्य काल २२ सागर २२ सागर २२ सागर २० कायसंवेध द्वार २२ सागर २२ सागर २२ सागर १ अंतर्मु १ अंतर्ग १ कोडपूर्व ३३ सागर ३३ सागर ३३ सागर १ अंतर्मु १ अंतर्मु १] कोडपूर्व ६६ सागर ६६ सागर ६६ सागर २ कोडपूर्व अंतर्मु २] कोडपूर्व नोट: ३३ सागर की स्थिति के उत्कृष्ट २ भव ही हो सकते है ३ भद २२ सागर से होते हैं। १ अंतर्ग १ अंतर्मु १ अंतर्मु, १ अंतर्मु १ अंतर्मु १ कोडपूर्व १ अंतर्ग १ अंतर्मु १] कोहपूर्व जघन्य काल २० कायसंध द्वार उत्कृष्ट काल १ अंतर्मु १ अंतर्मु, १ कोडपूर्व ८६. सागर ४ कोडपूर्व ८८. सागर ४ अंतर्मु ८८ सागर ४ कोडपूर्व १ अंतर्मु १ अंतर्ग १ अंतर्मु १ अंतर्मु १. अंतर्मु १. कोडपूर्व ६८ सागर ४ को पूर्व ६८. सागर ४ अंतर्मु ६८ सागर ४ कोडपूर्व २२ हजार वर्ष १ अंतर्मु २२ हजार वर्ष १ अंतर्मु २२ हजार वर्ष १ को पूर्व ६८. सागर ६६ सागर ६८६ रागर उत्कृष्ट काल ६६ सागर ६६ सागर ६६ सागर २० कायसवेध द्वार ६६ सागर ६६ सागर ६६ सागर ४] कोडपूर्व ४ अंतर्मु ४] कोडपूर्व ३ कोहपूर्व ३. अंतर्मु ३ कोडपूर्व ३. को डपूर्व ३. अंतर्मु ३ कोडपूर्व ४] अंतर्मु ४ अंतर्ग ४ अंतर्मु उत्कृष्ट काल ८८ हजार वर्ष ४ कोडपूर्व ८८ हजार वर्ष ४ अंतर्मु ८८ हजार वर्ष ४ कोडपूर्व ४] कोडपूर्व ४ अंतर्मु ४] कोहपूर्व ८८ हजार वर्ष ४ कोडपूर्व ८८ हजार वर्ष ४ अंतर्मु ८ हजार वर्ष ४ कोडपूर्व गमा २८५ Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८६ ८२ तिर्यंच पंचेंद्रिय में अपकाय ऊपजै तेहनों यंत्र (६) २ परिमाण द्वार गमा २० द्वार नी संख्या ....│ अधिक नै ओधिक ओधिक नै जघन्य अधिक नै उत्कृष्ट |-~--~~ love. जघन्य में अधिक जघन्य नै जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट उत्कृष्ट नै ओधिक उत्कृष्ट नै जघन्य उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट गमा २० द्वार नौ संख्या louw ओधिक नै ओधिक ओधिक नै जघन्य ओधिक नै उत्कृष्ट जघन्य नै ओधिक जघन्य नै जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट उत्कृष्ट नै ओधिक उत्कृष्ट नै जघन्य उत्कृष्ट मैं उत्कृष्ट गमा २० द्वार नौ संख्या ओधिक नै ओधिक ओधिक मैं जघन्य ओधिक नै उत्कृष्ट जघन्य नै ओधिक जघन्य नै जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट उत्कृष्ट नै ओधिक उत्कृष्ट नै जघन्य उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट उपपात द्वार जघन्य १ अंतर्मुहूर्त • अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व १] अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मुहूर्त १] कोडपूर्व १] अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व ८३ तिर्यंच पंचेंद्रिय में तेउकाय ऊपजै तेहनों यंत्र (१०) जघन्य १ अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व १ अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मुहूर्त १] कोडपूर्व १] अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मुहूर्त १] कोडपूर्व भगवती-जोड़ (खण्ड-६) उपपात द्वार उत्कृष्ट जघन्य १] अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व १ कोडपूर्व ● अंतर्मुहूर्त १] कोडपूर्व १ अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मुहूर्त १] फोडपूर्व १ कोडपूर्व १ अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व १ अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व १] कोडपूर्व १ अंतर्मुहूर्त १] कोडपूर्व उत्कृष्ट १ कोडपूर्व १ अंतर्मुहूर्त १] कोडपूर्व उपपात द्वार १] कोडपूर्व १ अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व १ कोडपूर्व १] अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व उत्कृष्ट १ कोडपूर्व १ अंतर्मुहूर्त कोडपूर्व जघन्य १ कोडपूर्व अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व ૧૨૩ ऊपजी १ कोडपूर्व अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व ૧૨.૩ ऊपजे ८४ तिर्यंच पंचेंद्रिय में वायुकाय ऊपजै तेहनों यंत्र (११) १२.३ ऊपजै जघन्य १२.३ ऊपजै १२.३ ऊपजै १२.३ ऊपजै उत्कृष्ट जघन्य १२.३ ऊपजै १२.३ ऊपजै संख या असंख ऊपजै परिमाण द्वार संख या असंख ऊपजै संखया असंख ऊपजै १२.३ ऊपजी उत्कृष्ट संखया असंख ऊपजै संखया असंख ऊपजै २ परिमाण द्वार उत्कृष्ट संख या असंख ऊपजै संखया असंख ऊपजै संखया असंख ऊपजै संखया असंख ऊपजे 3 संघयण द्वार ६ १ छेवटों १ छेवटो १ छेवटो ३ संघयण द्वार ६ १ छेक्टो १ छेवटो १ छेवटो संघयण द्वार ६ १ छेवटो १ छेक्टो १ छेवटो ४ अवगाहना द्वार जघन्य आंगुल न असंख भाग आंगुल न असंख भाग उत्कृष्ट आंगुल न असंख भाग ४ अवगाहना द्वार उत्कृष्ट आंगुल न असंख भाग जघन्य आंगुल न अरांख भाग आंगुल न असंख भाग ४ जघन्य अवगाहना द्वार उत्कृष्ट आंगुल न असंख भाग आंगुल न असंख भाग आंगुल न असंख भाग ५. संठाण द्वार ६ विबुक विबुक विदुक संठाण द्वार ६ सूचीकलाप सूचीकलाप सूचीकलाप ५ संठाण द्वार ६ पताका पताका पताका लेश्या द्वार ६ ४ पहली ३] पहली ४] पहली ६ लेश्या द्वार ६ ३ पहली ३] पहली ३ पहली लेश्या द्वार ६ ३ पहली ३] पहली ३ पहली 19 दृष्टि द्वार 3 १. मिथ्या १ मिथ्या १ मिथ्या 19 दृष्टि द्वार 3 १ मिध्या १ मिथ्या दृष्टि द्वार ३ १ मिथ्या १ मिध्या १ मिध्या ज्ञान-अज्ञान द्वार ३ ૧ ० ० ५ 0 4 ज्ञान-अज्ञान द्वार ३ २ नियमा ५ २ नियमा ० २ नियमा २ नियमा २ नियमा ८ ज्ञान-अज्ञान द्वार ३ २ नियमा २ नियमा २ नियमा २ नियमा ९ योग द्वार 3 १ काया १काया १काया १ योग द्वार 3 १ काया १ काया १ काया ६ योग द्वार ३ १ काया १ काया १ काया उपयोग द्वार २ २ उपयोगद्वार २ | उपयोगद्वार २ २ Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० कायद्वार इन्द्रिय द्वार समुद्घात द्वार वेदनाद्वार वेद द्वार आयु द्वार १५ - १६ अध्यवसाय द्वार अनुबंध द्वार असंख्याता | जधन्य | उत्कृष्ट नाणत्ता कायसवेध द्वार जघन्य काल - उत्कृष्ट काल जघन्य उत्कृष्ट । ३पहती | २ नपुंसक अंतर्मुहूर्त । । हजार वर्ष मला अंतर्मुहूर्त हजार वर्ष १अंतर्मु. १अंतर्ग १अंतर्मु, १अंत १अंतर्मु. १ कोडपूर्व २८ हजार वर्ष ४ कोङपूर्व २८ हजार वर्ष ४ अंतर्मु २हजार वर्ग कोडपूर्व । ३पहली | २ नपुंसक | अंतर्मुहूर्त | अंतर्मुहूर्त | भूहा अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त MY NY तेश्या,आयु अध्य०,अनु० |१अंतर्मु अंतर्नु १ अंतर्मु अंतर्मु १अंतर्मु. १ कोडपूर्व ४अंतर्मु ४ोडपूर्व ४ अंतर्मु.४ अंतर्मु ४ अंतर्मु, ४ कोडपूर्व पहली १नपुंसक मला हजार वर्ग हजार वर्ष | मूंडा हजार वर्ष हजार वर्ष | आयु अनुबंध ७ हजार वर्ष १अंतमु ७ हजार वर्ष १अंतर्मु ७हजार वर्ष १ कोडपूर्व २८ हजार वर्ष ४ कोडपूर्व | २८ हजार वर्ष ४ अंतर्मु २८ हजार वर्ष ४ कोडपूर्व कवायनार वेदना द्वार वेद द्वार आयुद्वार नाणत्ता कायसवेधद्वार अध्यवसाय द्वार अनुबंध द्वार असख्याता जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट जपन्यकाल उत्कृष्ट काल १फई २ नपुंसक | अंतर्मुहूर्त ३ भला भंडा अंतर्मुहूर्त | |दिन रात له وه १अंतर्म अंतर्म १अंतर्मु १अंतर्मु १TH १ कोडपूर्व २दिन रात ४ कोडपूर्व १२ दिन रात ४अंतर्मु १२ दिन रात ४ कोडपूर्व يه १ फर्श | २ नपुंसक अंतर्मुहूर्त | अंतर्मुहूर्त | मुंडा अंतर्मुहूर्त | अंतर्मुहूर्त आयु, अध्य० अनुबंध له به له १ अंतर्मु १अंतर्मु. १ अंतर्मु अंतर्मु, १अंतर्मु कोडपूर्व ४ अंतर्मु. ४ कोडपूर्व ४ अंतर्मु.४ अंतर्मु ४ अंतर्मु, ४ कोडपूर्व १फर्श दिन रात दिन रात | डा दिन रात दिन सात आयु,अनु० ३दिन रात अंतर्मु ३दिन रात अंतर्मु दिन रात कोहपूर्व १२ दिन रात ४ कोठपूर्व १२ दिन रात ४ अंतर्मु २दिन रात ४ कोडपूर्व १५ १८ साधार करायद्वार रन्द्रिय दार समुद्घात द्वार वेदनाद्वार नाणता कायसवेधद्वार अध्यवसाय द्वार अनुबंध द्वार असंख्याता | जघन्य उत्कृष्ट जघन्य | उत्कृष्ट जघन्य | उत्कृष्ट | जघन्य काल उत्कृष्ट काल १फर्श ३ पहली २ नपुंसक अंतर्मुहूर्त | हजार वर्ष अंतर्मुहूर्त | ३ हजार वर्ष मुंडा १अंतर्मु १अंतर्मु. १अंतगु. १अंतर्मु. १अंत १कोडपूर्व | १२ हजार वर्ष ४ कोडपूर्व १२ हजा' वर्ष ४ अंतर्मु. १२ हजार वर्ष ४ कोडपूर्व १फर्श ३पहली | २ नपुंसक | अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त बूंडा अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त आयु अध्य०, अनु० समु लेवेतो४ १ अंतर्मु, १अंतर्मु. |१अंतर्मु अंतर्मु १अंतर्मु १ कोडपूर्व ४ अंतर्मु ४ कोडपूर्व ४ अंतर्मु. ४ अंतर्मु अंतर्मु. ४कोडपूर्व ३पहली हजार वर्ष हजार वर्ष आयु अनु० ३हजार वर्ष १अंतर्नु ३हजार वर्ष १अंतर्नु ।३हजार वर्ष १ कोडपूर्द | २हजार वर्ष ४ कोडपूर्व १२ हजार वर्ष ४ अंतर्मु । १२हजार वर्ष ४ कोडपूर्व गमा २८७ Jain Education Intemational Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८५ तिर्यंच पंचेंद्रिय में वनस्पतिकाय ऊपजै तेहनों यंत्र (१२) गमा २० द्वार नी संख्या उपपातद्वार संघयण द्वार अदगाहना द्वार संठाण द्वार | लेश्या द्वार सरया द्वार | दृष्टि द्वार दृष्टिद्वार ज्ञान-अज्ञान द्वार परिमाण द्वार उत्कृष्ट योगद्वार | उपयोग द्वार जघन्य उत्कृष्ट जघन्य जघन्य उत्कृष्ट १वटो ४पहली २ निवमा १काया ओधिक नै ओधिक ओधिक नै जघन्य ओधिक उत्कृष्ट १गिच्या १अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त १कोठपूर्व १ कोडपूर्व १अंतर्मुहूर्त १कोडपूर्व संखया असंखऊपने आंगुल नों असंखभाग १हजार योजन जामी नाना प्रकार १.२.३ १वटो पहली १मिध्या २नियमा जघन्य न ओधिक जघन्य जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट १काया । १अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मुहूर्त १कोडपूर्व १कोडपूर्व १अंतर्मुहूर्त १कोउपूर्व आंगुलनों । आंगुलनी असंख माग | असंख भाग असंख ऊपजे नाना प्रकार १२.३ | १वटो पहजार | ४पहली गिध्या उत्कृष्ट अधिक उत्कृष्ट नै जघन्य उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट आमुहूर्त १अंतर्मुहूर्त कोडपूर्व १कोडपूर्व १अंतर्मुहूर्त १कोडपूर्व आनुलनों असखभाग अरांव ऊपड़ प्रकार जाशी ८६ तिर्यच पंचेंद्रिय में बेइंद्रिय ऊपजै तेहनों यंत्र (१३) गमा २० द्वार नी संख्या संघयण द्वार संताण द्वार | लेश्या द्वार | दृष्टि द्वार ज्ञान-अज्ञानदार योग द्वार | उपयोग उपपात द्वार जघन्य परिमाण द्वार जघन्य अवगाहना द्वार जघन्य । उत्कृष्ट उत्कृष्ट १२३ १शेवटो १२ ३पहली १९डक सम्यक नियमा २नियमा २दच ओधिक ओधिक ओधिक जघन्य ओधिकनै उत्कृष्ट १अंतर्मुहूर्त १अंतर्मुहूर्त १कोडपूर्व १कोडपूर्व अंतर्मुहूर्त १कोडपूर्व संखया असंख ऊपजे आंगुलनी असंखभाग | जटो | पहली । १मिया २नियना । पकाया | जघन्य + ओधिक | १अंतर्मुहूर्त |जघन्य नै जघन्य अंतर्मुहूर्त |जयन्य नै उत्कृष्ट | कोडपूर्व १कोडपूर्व अंतर्मुहूर्त १कोडपूर्व १२.३ | ऊपजे असंख रुपजे आंगुल नों आगुल नों असंख भाग | असंखभाग । १छेवटो | आंगुलनों १हुंडक २नियमा । २नियमा | उत्कृष्ट नै ओधिक १अंतर्मुहूर्त | उत्कृष्ट नै जघन्य | १अंतर्मुहूर्त | उत्कृष्ट नैं उत्कृष्ट १कोडपूर्व १कोडपूर्व १अंतर्मुहूर्त १कोडपूर्व ऊप असंखऊपन विभाग योजन मिथ्या काय ८७ तिर्यंच पंचेंद्रिय में तेइंद्रिय ऊपजै तेहनों यंत्र (१४) 10 गमा २०द्वार नी संख्या उपपात द्वार संघयण द्वार अवगाहना द्वार सठाण द्वार लेश्या द्वार | दृष्टि द्वार ज्ञान--अज्ञान द्वार योग द्वार | उपयोगदान परिमाणद्वार उत्कृष्ट उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट १२.३ १शेवटी गाऊ | १९डक । सम्यक ।२नियमा नियमा ओधिक ओधिक अंतर्मुहर्त ओधिक नै जघन्य | १अंतर्मुहूर्त ओधिक नै उत्कृष्ट | १कोडपूर्व | कोडपूर्व १अंतर्मुहूर्त १कोडपूर्व आंगुलनी असख भाग २वत्र काय ऊपजे असंख ऊपजै | पहुंढक २नियमा ३पहली काय | जपन्य नै ओधिक जघन्य नै जघन्य जघन्य उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहर्त १कोडपूर्व १कोडपूर्व १अंतर्मुहूर्त १कोडपूर्व १२.३ ऊपजे आंगुल नों असंख भाग सखया असंख रूपजे आंगुल नों असखभाग । १ वटो । गाऊ ३पहली । २नियना । नियमा | उत्कृष्ट नै ओधिक | उत्कृष्ट नै जघन्य | | उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट १अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त १कोडपूर्व |१कोडपूर्व अंतर्मुहूर्त १कोडपूर्व १२.३ ऊपजै संखया असंख ऊपजै आंगुल नों असंख भाग २सम्यक मिथ्या २वष काय ८८ भगवती-जोड (खण्ड-६) Jain Education Intemational Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० संज्ञा द्वार कवायदार इन्द्रिय द्वार समुदघात द्वार| वेदनाद्वार | वेद द्वार आयद्वार आध्यवसायवार अनुबधद्वार नाणता कायसवेध द्वार जघन्य काल उत्कृष्ट काल जघन्य उत्कृष्ट असंख्याता जघन्य उत्कृष्ट जघन्य | उत्कृष्ट | १फर्श ३पहली । २ नपुंसक अंतर्मुहूर्त | १० अंतर्मुहूर्त भला भूडा १० | हजार वर्ष हजार वर्ग अंतर्मु १अंतर्मु १अंग अंतर्मु १अंत १ कोडपूर्व ४० हजार वर्ष ४ कोडपूर्व ४० हजार वर्ष ४ अंतर्मु. ४० हजार वर्ष ४ कोडपूर्व १ फर्श ३पहली २ नपुंराक अंतर्मुहूत | अंतर्मुहूर्त मूंडा अंतर्मुहूर्त | अंतर्मुहूर्त अव० लेश्या आयु आय०अनु० १अंतर्मु. १अंआM. १अंतर्ग. अंत. १ अंतर्गु १ कोडपूर्व ४ अंतर्मु ४ कोडपूर्व ४ अंतर्मु ४ अंतर्मु ४ अंतर्मु. ४ कोडपूर्व १फर्श ३पहली | १नपुसक भला भंडा हजार वर्ष हजार वर्ष हजार वर्ष हजार वर्ष आयु, अनु० १० हजार वर्ष १अंतर्मु. ५० हजार वर्ष अंतर्मु. १० हजार वर्षकोडपर्व । ४० हजार वर्ष ४ कोडपूर्व ४० हजार वर्ष ५ अंतर्मु ४० हजार दर्ष ४ कोडपूर्व २० ११ संज्ञा द्वार १२ कवाय द्वार १५ | १६ समुदधात द्वार | वेदना द्वार | वेद द्वार इन्द्रिय द्वार १८ १६ अध्यवसाय द्वार अनुबंध द्वार असख्याता | जघन्य | उत्कृष्ट नाणता भव आयुद्वार |जघन्य उत्कृष्ट कायसंवेधार जघन्य उत्कृष्ट जधन्यकाल उत्कृष्ट काल ३पहली | २ २फर्श रस नपुंसक | अंतर्मुहूर्त १२ अंतर्मुहूर्त | १२ मला मुंडा १अंतर्मु १अंतर्मु. १अंतर्मु अंतर्नु १ अंत १ कोडपूर्व ४८ वर्ष ४ कोडपूर्व ४६ वर्ष ४ अंतर्नु ४. वर्ष ४ कोडपूर्व به به بهانه به ३ पहली । २ नपुंसक अंतर्मुहूर्त | अंतर्मुहूर्त डा. अंतर्मुहूर्ता अंतर्मुहूर्त | अद०, दृष्टि, ज्ञान, | योग आयु, अध्य०. अनु० | १ अंत अंतर्मु १अंतर्मु १अंतर्मु. १ अंत १ कोडपूर्व ४ अंतर्मु, ४ कोडपूर्व ४ अंतर्मु. ४अंतर्नु ४ अंतर्मु.४ कोडपूर्व ३पहली २ नपुंसक | २ फर्श रस आयु,अनु. १२ वर्ष १अंतमु १२ वर्ष अंतर्ग १२ वर्ष १कोडपूर्व ४८ वर्ष ४८ वर्ष ४. वर्ष ४ कोडपूर्व ४ अंतर्नु ४ कोडपूर्व ११ ७ १२ | कवाय द्वार १३ इन्द्रिय द्वार नाणता समुदपात द्वार | वेदना द्वार | वेद द्वार | २ । ३ आयुद्वार जघन्य | उत्कृष्ट अध्यवसाय द्वार अनुबधद्वार असंख्याता | जघन्य | उत्कृष्ट कायसवेध द्वार जघन्य काल उत्कृष्ट काल जघन्य| उत्कृष्ट । ३पहली २ नपुंसक | अंगहूर्त | दिन रात भला अंतर्मुहूर्त | ४६ | दिनरात भंडा अंतर्मु, १८ १अंत अंत १अंत १ कोड़पूर्व १९.६ दिन रात ४ कोडपूर्व १६ दिन रात ४ अंतर्मु. १६६ दिन रात ४ कोङपूर्व ३पहली नपुंसक | अंतर्मुहूर्त | अंतर्मुहूर्त __डा अंतर्मुहूर्त | अंतर्मुहूर्त अव०, दृष्टिज्ञान योग, आयु, अध्य., अनु। १अतर्मु. १अंत. १.अंतर्गु. १अत १अंतर्मु कोडपूर्व ४ अंतर्मु. ४ कोडपूर्व ४ अंतर्नुअल ४ अंतर्मु. ४कोडपूर्व २ ४ | ३ ३पहली | १नपुंसक | | ४६ दिन रात | दिन रात भाता मुंडा ४६ | ४ | दिन रात दिन रात आयु अनु० ४१ दिन रात पार्नु ४.दिन रात ४६ दिन रातकोजपूर्व | १६६दिन रात ४ कोडपूर्व १६६ दिन रात अंत १६६ दिन रात ४ कोहपूर्व गमा २८६ Jain Education Intemational Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८८ तिर्यंच पंचेंद्रिय में चउरिद्रिय ऊपजै तेहनों यंत्र (१५) गमा २०द्वार नी संख्या १० उपयोग द्वार । संघयण द्वार अवगाहनादार संठाण द्वार लेश्या द्वार दृष्टि द्वार ज्ञान-अज्ञानद्वार योग द्वार उपपात द्वार जघन्य उत्कृष्ट परिमाण द्वार जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट १ वटो १हुंडक २नियमा २नियमा ओधिकन ओधिक १अंतर्मुहूर्त | ओधिक नैजधन्य | १अंतर्मुहूर्त ओधिक नै उत्कृष्ट | १कोडपूर्व १कोडपूर्व १अंतर्मुहूर्त १कोडपूर्व १.२.३ ऊपजै संख या [ असंख ऊपजै आंगुल नों असंख भाग २सम्यक मिथ्या २वध काय | १२.३ 1 १शेवटो पहुंडक १मिथ्या २निषमा १काय जधन्य नै ओधिक जघन्य नै जघन्य जघन्य उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त १अंतर्मुहूर्त १कोडपूर्व १कोडपूर्व १अंतर्मुहूर्त १कोडपूर्व संखया | असंख ऊपजे आंगुल नों | आंगुलनों | असंख भाग असंख भाग १वटो पहुंडक २नियमा २नियमा उत्कृष्ट नै ओधिक उत्कृष्ट नै जघन्य उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट १अंतर्मुहूर्त १अंतर्मुहूर्त १कोडपूर्व १कोडपूर्व १अंतर्मुहूर्त १कोडपूर्व १.२.३ ऊपजै संख या असंख ऊपजै आंगुल नो । ४गाऊ | असंखभाग २सम्यक मिथ्या २वच काय १६ तिर्यंच पंचेंद्रिय में असन्नी तिर्यंच पंचेंद्रिय ऊपजै तेहनों यंत्र (१६) गमा २० द्वार नी संख्या परिमाण द्वार संघयण द्वार संठाण द्वार लेश्या द्वार दृष्टि द्वार ज्ञान-अज्ञानद्वार योग द्वार | उपयोग उपपात द्वार जघन्य उत्कृष्ट अवगाहना द्वार जघन्य | उत्कृष्ट १२.३ १छेवदो ३पहली पहुंडक २नियमा २नियमा ओधिक नै ओधिक | १अंतहत पल्य नों असंख भाग ओधिक जधन्य १अंतर्मुहूर्त | अंतर्मुहूर्त रांख या | असंखऊपजे आंगुल नों। पहजार असंख भाग योजन २सम्यक गिथ्या २वच काय ओधिक नै उत्कृष्ट १२.३ संख्याताही १वटो आगुल नों १हजार पहुंडक ३पहली १मिथ्या २नियमा २बर पल्यनों अरांय भाग पत्य नों असंखभाग ऊपजै असंख भाग योजन काय ४ १वटो १मिथ्या २नियमा १काय जघन्य ने ओधिक | १अतर्मुहूर्त |१कोडपूर्व | ५ अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त जघन्य नै उत्कृष्ट | कोडपूर्व १कोडपूर्व १२.३ ऊपजे संखया असंखऊपजै आंगुल नों असंख भाग | आंगुलना असंखभाग १२.३ छेवटो ३पहली हुडक २सम्यक निषमा । २नियमा । २ वच उत्कृष्ट नै ओधिक उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट | आंगुल नो । असंखभाग संखया असंख। ऊपजे नवगै गरी पर्याप्त संख्याता १हजार । योजन अंतर्मुहूर्त | पल्प नों असंखभाग ५अंतर्मुहूर्त गर्मुहूर्त पल्य नौ पल्यनी असंख भाग असंखभाग ६० तिर्यंच पंचेंद्रिय में संख्याता वर्ष नां सन्नी तिर्यंच ऊपजै तेहनों यंत्र (१७) गमा २० द्वार नी संख्या परिमाणद्वार संघयण द्वार अवगाहनाद्वार संठाण द्वार | लेश्या द्वार दृष्टि द्वार ज्ञान-अज्ञान द्वार योग द्वार उपयोग पर उपपात द्वार जघन्य । उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट जघन्य । उत्कृष्ट १२.३ ३भजना ३भजना १ | ओधिक नै ओधिक १अंतर्मुहूर्त ओधिक नै जघन्य | १अंतर्मुहूर्त ३पल्य १अंतर्मुहूर्त सखया असंख ऊपजै आंगुलनों असंख भाग पहजार योजन ऊपजे ओधिक नै उत्कृष्ट ३पल्य १२.३ संख्याता ही ३भजना ३भजना आंगुहनों असंखभाग योजन | पहली २नियमा | १काय जघन्य नै ओधिक जघन्य नै जधन्यू जघन्य नै उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त १अंतर्मुहूर्त १कोडपूर्व १कोडपूर्व १अंतर्मुहूर्त १कोडपूर्व ५२.३ ऊपजै संखया असंख ऊपजै आगुलनों । आंगुल नों असंख भाग असंख भाग ३भजना ३भजना उत्कृष्ट नै ओधिक उत्कृष्ट नै जघन्य | उत्कृष्ट ने उत्कृष्ट १अंतर्मुहूर्त ३पल्य १.२.३ १अंतर्मुहूर्त | १अंतर्मुहूर्त | उपज ३पल्य ३पल्य संख या असंख ऊपजै नवर्म गर्म पर्याप्ता संख्याता ऊपजे आंगुलनों | १हजार असंख भाग योजन २६० भगवती-जोड (खण्ड-६) Jain Education Intemational Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ समुदपात द्वार| वेदनाद्वार वेद द्वार नाणता आयुद्वार | उत्कृष्ट अध्यवसाय द्वार अनुबंध द्वार असंख्याता | जघन्य | उत्कृष्ट कायसवेधद्वार उत्कृष्ट काल ३पहली | २ |नपुंसक | अंतर्मुहूर्त मास मला भुंडा | अंतर्मुहूर्त | ६ मास १अंतर्मु.१अंतर्ग १अंतर्मु.१अंतर्मु. १अंतर्मु १कोडपूर्व समास ४ कोडपूर्व समास ४ अंतर्ग समास कोडपूर्व ३ पडली २ नपुंसक अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त | मुंडा अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त अन० दृष्टि शान. योग, आयु, आय० अनु० १अंत.१अंतर्ग १अंतर्मु.१अंगर्नु १अंतर्मु.१कोडपूर्व ४ अंतर्गु.४ कोडपूर्व ४ आ. ४ अंतर्भू ४ अंतर्मु ४ कोडपूर्व | पहली । २ नपुंसक मास - मास | भताभुंडा । मास मास आयु०, अनुबंध हमास अंतर्मु ६ मास अंतर्ग ६मासकोडपूर्व समास४ कोडपूर्व ४मास ४ अंतर्मु २४ मास ४ कोडपूर्व २० कवायदार इन्द्रिय द्वार समुद्घात द्वार वेदना द्वार नाणत्ता १६ वेद द्वार आयूद्वार | उत्कृष्ट १नपुंसक | अंतर्मुहूर्त | कोडपूर्व | १९ आयवसाय द्वार अनुबंध द्वार असख्याता | जघन्य उत्कृष्ट भला मुंडा | अंतर्मुहूर्त | कोतपूर्व उत्कृष्ट जघन्य काल ३पहली २ १अंतर्मु १अंतर्नु कायसंवेध द्वार ऊकृष्टकाल ४ कोडपूर्व, ३ कोडपूर्व पल्यनो असंखभाग ४ कोडपूर्व अंतk १कोडपूर्व पल्य नों असंख भाग ३ पहली । २ । नपुंसक | अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व | भला मुंडा | अंतर्मुहूर्त | १ कोडपूर्व अंतर्मु.१अंतर्मु १अंतर्मु.पल्य नों असंख भाग पर्याप्त संख्याता. दृष्टि, ज्ञान ३पहली | २ | १नपुसक अंतर्मुहूर्त | अंतर्गुहा | मुंडा | अंतर्मुहूर्त | अंतर्मुहूर्त अव० दृष्टि ज्ञान । योग, आयु. अध्य, अनु| १अंतर्मु०१ अंत १अंतर्मु०१अंतागुं० १अंतर्मु १ कोडपूर्व अंतर्मुहूर्त ४ कोडपूर्व ४अंतर्मुहूर्त ४ अंतर्मु. ४अंतर्मुहूर्त ४ कोडपूर्व ४ कोडपूर्व ३ कोडपूर्व पल्य नौ असंख भाग ४ कोटपूर्व ४ अंतर्मु. १कोडपूर्व पल्य नों असंखभाग १कोडपूर्व अतमु १कोडपूर्व १ अतर्मु १कोडपूर्वपल्य नों असंखभाग आयु,अनुबा २० कषाय द्वार इन्द्रिय द्वार | समुद्घात द्वार| वेदनाद्वार वेद द्वार नाणता कायसवेधद्वार आयुद्वार जघन्य | उत्कृष्ट अध्यवरायद्वारा अनुबंधद्वार असख्याता जघन्य | उत्कृष्ट जघन्या उत्कृष्ट । जघन्य काल ५पहली भलाभूडा | अंतर्मुहूर्त | १ कोडपूर्व १अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मु. १अंतर्मुहूर्त १ आर्मू | अंतर्मु३पल्य ४कोडपूर्व ३ कोडपूर्व ३ पल्य ४ कोडपूर्व ४ अंत. | अंगमुहूर्त | १ कोडपूर्व भलाभूडा अंतर्मुहूर्त कोडपूर्व | १कोडपूर्व पल्य पर्याप्ता, संख्याता ३पहली अंतमुहूर्त अनुहूत डा अंतर्मुह आहत अव..लेश्या , दृष्टि ज्ञान-अज्ञान, योग. सम, आयु.आय.अनु. १अंतगु.१अंत १अंतर्मु.१अंत १अंतर्मु.१कोडपूर्व ४अंत ४ कोडपूर्व ४ अराणु ४ अंग ४ अंग, ४ कोटपूर्व कोडपूर्व | कोडपूर्व | मलाडा | कोडपूर्व | कोड पूर्व आयु, अनुबंध १कोडपूर्व १ अंतर्म, १कोडपूर्व १ अंधार्नु १कोडपूर्वपल्य ४ कोडपूर्व ३ कोडपूर्व ३ पल्य ४कोडपूर्व ४ अंतर्ग १ कोडपूर्वपल्य गमा २६१ Jain Education Intemational Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१ तिर्यंच पंचेंद्रिय में असन्नी मनुष्य ऊपजै तेहनों यंत्र (१८) २ परिमाण द्वार गमा २० द्वार नी संख्या २ 3 गमा २० द्वार नौ संख्या 3 ४ ५ ६ ७ ५ E ओधिक नै ओधिक | ओधिक नै जघन्य ओधिक नै उत्कृष्ट ....... ७ ओधिक नै ओधिक ओधिक नै जघन्य अधिक नै उत्कृष्ट २६२ जघन्य नै ओधिक जघन्य नै जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट गमा २० द्वार नौ संख्या ६२ तियंच पंचेंद्रिय में संख्याता वर्धनां सन्नी मनुष्य ऊपजे तेहनों यंत्र (१६) ३ संघयण द्वार ६ उत्कृष्ट नै ओधिक उत्कृष्ट नै जघन्य उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट ओधिक नैं ओधिक ओधिक नै जघन्य ओधिक नै उत्कृष्ट जघन्य नै ओधिक जघन्य नै जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट उत्कृष्ट नै ओधिक उत्कृष्ट नै जघन्य ਦਰਦ १ उपपात द्वार जघन्य १ अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त १ फोजपूर्व ३] पत्य जपन्य अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त उपपात द्वार अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त १. कोडपूर्व 9 अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त ३ पल्य जघन्य उत्कृष्ट १ अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व १ कोडपूर्व १ अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व १ अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मुहूर्त कोडपूर्व 9 भगवती जोड़ (खण्ड-६) १ अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व उत्कृष्ट ३ पल्य अंतर्मुहूर्त ३ पल्य १ फोडपूर्व अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व उपपात द्वार ३ पल्य अंतर्मुहूर्त ३ पल्य ६३ तिर्यंच पंचेंद्रिय में असुरकुमार ऊपजै तेहनों यंत्र (२०) परिमाण द्वार उत्कृष्ट उत्कृष्ट १ कोडपूर्व १ अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व जघन्य १ कोडपूर्व १ अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व १.२.३ ऊपजै १ कोडपूर्व १] अंतर्मुहूर्त १] कोडपूर्व जघन्य परिमाण द्वार १२.३ ऊपजै १२.३ ऊपजे १२.३ ऊपजै १२.३ ऊपजे जघन्य उत्कृष्ट १२.३ ऊपजै संख या असंख ऊपजै १२.३ ऊपजे १२.३ ऊपजै उत्कृष्ट संख्यात ऊपजे संख्याता ऊपजै संख्याता ऊपजै संख्याता ऊपरी संख या असंख ऊपजै संखया असंख ऊपजै संघयण द्वार ६ १ छेवटो संख या असंख ऊपजै ६ ६ संघयण द्वार असंघयणी असघयणी असंचयणी अवगाहना द्वार जघन्य गुल नो असंख भाग अवगाहना द्वार जघन्य आंगुल न असंख भाग पृथक् आंगुल आंगुल न असंख भाग ५. सौ धनुष्य जघन्य उत्कृष्ट आंगुल न असंख माग आंगुल न असंख भाग आंगुल न असख भाग उत्कृष्ट ५. सौ धनुष्य अवगाहना द्वार ५. सौ धनुष्य आंगुल न जसंख भाग ५. सौ धनुष्य उत्कृष्ट ७ हाथ हाथ ७ हाथ संठाण द्वार ६ पहुंडक ५ संठाण द्वार ६ E ६ ५. संठाण द्वार ६ समचतरंस समचउरंस समचतरंस ६ लेश्या द्वार ६. 3 पहली ६ लेश्या द्वार ६ ३] पहली ६ लेश्या द्वार ६ ४ पहली ४ पहली ४ पहली ७ दृष्टि द्वार 3 १ मिथ्या 원 दृष्टि द्वार 3 3 १ मिथ्या दृष्टि द्वार ३ 3 ३ ३ ज्ञान-अज्ञान द्वार ३ ५ ५ ज्ञान-अज्ञान द्वार ३ ४ भजना ४ भजना ४ भजना 날 ३ नियमा ८ ३ नियमा २ नियमा ३ नियमा ३ भजना ज्ञान-अज्ञान द्वार 3 ३ भजना २ नियमा ३ भजना ३ भजना ३ भजना ३ नियमा योग द्वार ३ १. काय १ योग द्वार ३ ३ Ad १ काय 3 योग द्वार 3 ३ उपयोग द्वार २ २ 50 उपयोगद्वार २ २ ३ उपयोग द्व 3 Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कषाय इन्द्रिय द्वार समुदधात द्वार देदना द्वार | वेद द्वार | २ ३ १६ आयुद्वार अध्यवसाय द्वार| अनुबंध द्वार जघन्य उत्कृष्ट । असंख्याता जघन्य | उत्कृष्ट नाणत्ता कायसंवेध द्वार जघन्य काल उत्कृष्ट काल जघन्य उत्कृष्ट | ३ पहली २ नपुंसक अंतर्मुहूर्त | अंतर्मुहूर्त | मुंडा अंतर्मुहूर्त | अंतर्मुहूर्त १अंतर्मु १अंतर्मु. १अंतर्मु अंतर्मु. १.अंतर्मु १ कोठपूर्व ४ अंतर्मु ४ कोडपूर्व ४ अंतर्मु ४ अंतर्मु ४ अंतर्मु ४ कोडपूर्व कवाय द्वार समुदपात द्वार| वेदनाद्वार नाणता वेदनार आयुद्वार अध्यवसाय द्वार अनुबंध द्वार | जघन्य | उत्कृष्ट | असंख्याता | जघन्य | उत्कृष्ट कायसवेध द्वार जघन्य काल उत्कृष्ट काल उत्कृष्ट ३ अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व | भला मुंडा | अंतर्मुहूर्त १कोड पूर्व | १अंतर्मु अंत १अंतर्मु, अंत ४कोडपूर्व ३ कोडपूर्व ३ पल्य ४ अंतर्मु.४ अंतर्मु. पृथक गारा १ कोडपूर्व | मला मुंडा | पृथक मास १ कोड पूर्व १पृथक मास३पल्य १कोडपूर्व ३ पल्य केवल बर्जी अव, आयु, अनु पहली अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त | मुंडा | अंतर्मुहूर्त | अंतर्मुहूर्त अब, लेश्या दृष्टि, शान-अज्ञान योग समु./ आयु.आय, अनु १अंतर्मु १अंतर्ग, १अंत अंतर्मु.. १अंतर्मु.१कोडपूर्व ४ अंतर्मुहूर्त ४ कोडपूर्व ४ अंतर्मुहूर्व ४ अंतर्मु, ४ अंतर्मुहूर्त ४ कोडपूर्व ४ ३ | कोडपूर्व १ कोडपूर्व भला चूंडा कोडपूर्व | १ कोडपूर्व केबलबजी अ० आयु. अनुबंध १कोडपूर्व १आM १कोडपूर्व १ अंग १कोडपूर्व ३ पल्य ४कोडपूर्वकोडपूर्व ३ पल्य ४ कोडपूर्व ४ अंतर्नु १कोडपूर्द ३पल्य १६ १२ कवाय द्वार इन्द्रिय द्वार | समुद्घात द्वार| वेदनाद्वार| वेद द्वार | आयुद्वार १६ अध्यवसाय द्वार अनुबधद्वार असंख्याता जघन्य उत्कृष्ट नाणत्ता २० कायसवेध द्वार जघन्य काल उत्कृष्ट काल जघन्य । उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट ५पहली २स्त्री | १० हजार १सागर पुरुष मला मुंडा |हजार १सागर वर्व | जामो १० हजार वर्ष अंतर्मु १० हजार वर्ष १अंतर्मु. १० हजार वर्ष १कोडपूर्व ४सागर जाझो ४ कोडपूर्व ४ सागर जाझो ४ अंतर्मु. ४ सागर जाझी४ कोडपूर्व ५पहली । २ मला भुंडा २स्त्री पुरुष १० हजार | १० हजार | वर्ग १० हजार १० हजार | वर्ग वर्ष आय १० हजार वर्ष १अंतर्मु १० हजार वर्ष १अंतर्मु. १० हजार वर्ष १ कोडपूर्व । ४० हजार वर्ष ४ कोडपूर्व ४० हजार वर्ष ४ अंतर्म ४० हजार वर्ष४ कोडपूर्व अनुबंध ५पहली २ सागर- सागर १सागर २ स्वी पुरुष १सागर जाझो به يه १सागर जानो अंतर्मु १सागर जाझो अंतर्मु १सागर जाझोपकोडपूर्व ४सागर जाझो ४ कोडपूर्व ४सागरजाशो४ अंतर्मु. ४सागर जाझो ४ कोडपूर्व अनुबंध له गमा २६३ Jain Education Intemational Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४ तिर्यंच पंचेंद्रिय में नवनिकाय ऊपजै तेहनों यंत्र (२१-२६) Ember....... गमा २० द्वार नौ संख्या www.sun गमा २० द्वार नीं संख्या २ ३ ४ ५ ६ 19 5 ६ ओधिक नै ओधिक ओधिक नै जघन्य ओधिक नै उत्कृष्ट २ ३ जघन्य नै ओधिक जघन्य नै जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट उत्कृष्ट नै ओधिक उत्कृष्ट नै जघन्य उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट ४ ५ ६ ६ २६४ ओधिक नै ओधिक ओधिक नैं जघन्य ओधिक नै उत्कृष्ट ६५ तियंच पंचेंद्रिय में व्यंतर ऊपजै तेहनों यंत्र (३०) २ परिमाण द्वार उत्कृष्ट जघन्य नै ओधिक जघन्य नै जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट उत्कृष्ट नै ओधिक गमा २० द्वार नी संख्या उत्कृष्ट नै जघन्य उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट अधिक नै अधिक ओधिक मैं जघन्य ओधिक नै उत्कृष्ट जघन्य नै ओधिक जघन्य नै जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट १ उपपात द्वार उत्कृष्ट नै ओधिक उत्कृष्ट नै जघन्य उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट जपन्य १ अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व १ अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व १] अंतर्मुहूर्त " अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व जघन्य १ अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व १ अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मुहूर्त १ कोड पूर्व उपपात द्वार १ अंतर्मुहूर्त १] अंतर्मुहूर्त १ कोड पूर्व जघन्य उत्कृष्ट १. अंतर्मुहूर्त १] अंतर्मुहूर्त १ को पूर्व १ कोडपूर्व १ अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व १ अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मुहूर्तं १ कोड पूर्व १ कोडपूर्व १ अंतर्मुहूर्त १] कोडपूर्व 9 १] अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मुहूर्त १ कोड पूर्व भगवती-जोड़ (खण्ड-६) १ कोडपूर्व १ अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व उत्कृष्ट उपपात द्वार १] कोडपूर्व १ अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व १ कोडपूर्व १ अंतर्मुहूर्त १ कोड पूर्व १ कोडपूर्व १ अंतर्मुहूर्त १ कोड पूर्व उत्कृष्ट ६६ तियंच पंचेंद्रिय में ज्योतिषी ऊपजे तेहनों यंत्र (३१) परिमाण द्वार उत्कृष्ट १ कोडपूर्व १ अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व १ कोडपूर्व १ अंतर्मुहूर्त १ कोड पूर्व जघन्य १ कोडपूर्व १ अंतर्मुहूर्त १] कोड पूर्व १२.३ ऊपजै ૧૨.૩ ऊपजै २ परिमाण द्वार ૧૨.૩ ऊपजै जघन्य 118 १.२.३ ऊपजै ૧૨.૩ ऊपजै ૧૨૩ ऊपजे जघन्य १२.३ ऊपजै उत्कृष्ट १२.३ ऊपजै संखया असंख ऊपजै १२.३ ऊपजै संख या असंख ऊपजै संख या असंख ऊपजै संखया असंख ऊपजै संख या असंख ऊपजै संखया असंख ऊपजै संख या असंख ऊपजै संख या असंख ऊपजै सखया असंख ऊपजै ३ संघयण द्वार ६. असंघयणी असंघयणी असंघयणी ३ संघयण द्वार ६ असंघयणी असंघयणी असंघपणी संघयण द्वार असंघवणी असंघयणी असंघयणी अवगाहना द्वार जघन्य आंगुल न असंख भाग गुल नों असंख भाग आंगुल न असंख भाग जघन्य आंगुल न असंख भाग आंगुल न असंख भाग अवगाहना द्वार उत्कृष्ट आंगुल न असंख भाग जघन्य आंगुल न असंख भाग उत्कृष्ट आंगुल न असंख भाग ७ हाथ आंगुल न असंख भाग ७ हाथ ७ हाथ ४ अवगाहना द्वार उत्कृष्ट ७ हाथ ७ हाथ છ દ્વા हाथ ७ हाथ ७ हाथ ५. संठाण द्वार ६ १ समचौरंस १ समचौरंस १ समचौरंस ५ संठाण द्वार ६ १ समचौरंस १ समचौरंस १ समधीरंस संठाण द्वार ६ १ समचौरंग १ समचौरं १ समचौरंस ६ लेश्या द्वार ६ ४ पहली ४] पहली ४] पहली ६ लेश्या द्वार ६ ४ पहली ४ पहली ४ पहली ६ लेश्या दार ६ १ तेजु तेजु १ तेजु दृष्टि द्वार 3 ७ दृष्टि द्वार ३ 3 3 दृष्टि द्वार 3 ३ ht ज्ञान-अज्ञान द्वार ३ ५ ३ नियमा ३ नियमा ३ नियमा ५ ३ नियमा ज्ञान-अज्ञान द्वार ३ ३ नियमा ३ नियमा ५. ३ नियमा ३ भजना ३ नियमा ३ भजना ३ नियमा ३ नियमा ज्ञान-अज्ञान द्वार 3 ३ भजना ३ भजना ३ नियमा ३ नियमा ३ नियमा ३ नियमा योग द्वार ३ 3 योग द्वार ३ 3 3 3 योग द्वार 3 3 ३ उपयोग द्वा २ २ १० उपयोग हर २ १० उपयोग द्वार २ २ Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११ १२ शाद्वार | कवाय द्वार | इन्द्रिय द्वार २० कायसवेधद्वार समुदधात द्वार वेदना द्वार| वेद द्वार आयुद्वार नाणत्ता अध्यवसाय द्वार असंख्याता अनुबंध द्वार जघन्य उत्कृष्ट उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट जघन्य काल उत्कृष्ट काल ५पहली १० हजार २स्त्रीहजार देसूण पुरुष | वर्ष २पल्य २ पल्प १० हजारवर्ष १अंतर्मु. १० हजार वर्ष १अंतर्मुः | १० हजार वर्ष १ कोडपूर्व | पल्य देसूण ४ कोडपूर्व पल्य देसूण ४ अंतर्मु. पल्य देसूण ४ कोडपूर्व हजार १० हजार १० हजार १० हजार २खी पुरुष १० हजार वर्ष १ अंतर्मु १० हजार वर्ष १अंतर्नु ० हजार वर्ष १ कोडपूर्व ४० हजार वर्ष ४ कोडपूर्व ४० हजार वर्ष ४ अंतर्मु. ४० हजार वर्ष ४ कोडपूर्व देसूण २स्त्री पुरुष देसू २ पल्य देसूण रंपल्य २पल्य भूजा २पल्प २ पल्य देसूण १ अंतर्मु पल्य देसूण ४ कोड पूर्व २पत्य देसूण १अंत | पल्य देसूण ४ अंतर्मु. २पल्य देसूण १कोडपूर्वपल्य देसूण ४ कोडपूर्व शाद्वार कवायदार समुदधात द्वार वेदना द्वार वेटद्वारा नाणत्ता आयुद्वार अध्यवसाय द्वार जघन्य। उत्कृष्ट । असंख्याता अनुध द्वार उत्कृष्ट कायसवेधद्वार उत्कृष्ट काल जघन्य उत्कृष्ट ५पहली २ हजार १पल्य १० हजार कहजार वर्ष १ अंत | १० हजार वर्ष १ अतर्मु. १० हजार वर्ष १ कोडपूर्व । पल्य४ कोडपूर्व ४ पल्य४ अंत ४पत्य ४ कोडपूर्व ५पहली | २ | १० हजार न १० हजार दर्व ० हजार | १० हजार १० हजार वर्ष १अंतर्मु १० हजार वर्ष १अंतर्मु | हजार वर्ष १कोडपूर्व । ४० हजार वर्ष४ कोडपूर्व ४० हजार वर्ष ४ अंतर्मु. ४० हजार वर्ष ४ कोडपूर्व ५पहती २ १पल्य स्त्री पुरुष १पल्या अंतर्मु, १ पल्यअंतर्मु १पल्य १ कोडपूर्व ४पल्य४ कोड पूर्व ४पल्य ४ अंत ४पल्य ४ कोजपूर्व १२ कवाय द्वार इन्द्रिय द्वार समुदपात द्वार वेदनाद्वार नाणत्ता वेद द्वार आयुद्वार ३ | जघन्य | उत्कृष्ट । अध्यवसाय द्वार अनुबंध द्वार असंख्याता | जघन्य | उत्कृष्ट भव जघन्य | उत्कृष्ट कायसवेध द्वार जघन्य काल उत्कृष्ट काल ५पहली २स्त्री । अप पाव| १पल्य पत्य १लाख वर्ष अध पाव । १पल्य पल्य' लाख वर्ष मुंडा अप पाव पल्य १अंतर्मु. अघ पाय पल्य १अंतर्मु अध पाय पल्यकोडपूर्व ४ पल्य ४ लाख वर्ष कोडपूर्व ४पल्य ४ लाख वर्ष४ अंतर्मु ४पल्य ४ लाख वर्ष ४ कोडपूर्व ५पहली स्त्री आप पाव अब पाव भला भूदा अघ पाद | अघपाय पल्य अघ पाव पल्य १अंतर्मु अप पाव पल्य १ अंतर्मु, अघ पाव पल्यकोडपूर्व अर्घ पल्य ४ कोडपूर्व अर्थ पल्प ४ अंतर्मु अर्घ पल्य ४ कोडपूर्व अनुबंध ५पहली १पल्य१पल्य पुरुष १लाख वर्ष १ लाख वर्ष १पल्य१पल्य १लाख दर्व १ लाख वर्ग १पल्य १ लाख वर्ष १ अंतर्मु४पल्य ४ लास वर्ष४ कोड पूर्व १पल्य १ लाख वर्ष १ अंतर्मु.४पल्य ४ लाख वर्ष ४ अंतर्मु १पल्य १ लाख वर्ष १ कोडपूर्व ४पल्य ४ लाख वर्ग कोडपूर्व गमा २६५ Jain Education Intemational Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७ तिर्यंच पंचेंद्रिय में पहला सौधर्म देवलोक नां ऊपजै तेहनों यंत्र (३२) गमा २० द्वार नी संख्या १ २ 3 ४ ५. ६ 19 ८ ६ [orm ww.sun गमा २० द्वार नौ संख्या १ २ 3 ४ ५ ओधिक नै अधिक ओधिक नैं जघन्य ओधिक नै उत्कृष्ट जघन्य नै ओधिक जघन्य नै जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट ६ 19 उत्कृष्ट नै ओधिक उत्कृष्ट नै जघन्य उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट गमा २० द्वार नी संख्या ५ ६ २६६ ओधिक नै ओधिक ओधिक नैं जघन्य | ओधिक मैं उत्कृष्ट जघन्य नै ओधिक जघन्य नै जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट उत्कृष्ट नै ओधिक उत्कृष्ट नै जघन्य उत्कृष्ट में उत्कृष्ट ओधिक नै ओधिक ओधिक नैं जघन्य | ओधिक मैं उत्कृष्ट जघन्य नै ओधिक जघन्य नै जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट उपपात द्वार | उत्कृष्ट मैं ओधिक उत्कृष्ट नै जघन्य उत्कृष्ट ने उत्कृष्ट जघन्य १ अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व १] अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मुहूर्त १ कोड पूर्व १ अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त १ १] कोड पूर्व जघन्य १ अंतर्मुहूर्त १] अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व १ अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मुहूर्त १ कोड पूर्व ६८ तिर्यंच पंचेंद्रिय में दूसरे ईशान देवलोक नां ऊपजै तेहनों यंत्र (३३) १ अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मुहूर्त १ कोड पूर्व जघन्य १] अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व उत्कृष्ट भगवती-जोड़ (खण्ड-६) १] कोडपूर्व १] अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व १ उपपात द्वार १] अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मुहूर्त १ कोड पूर्व १ अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मुहूर्त १ कोड पूर्व १ कोडपूर्व १ अंतर्मुहूर्त १ कोड पूर्व कोडपूर्व १ अंतर्मुहूर्त १ कोड पूर्व उत्कृष्ट १ कोडपूर्व १ अंतर्मुहूर्त १] कोडपूर्व १ कोडपूर्व १ अंतर्मुहूर्त १ कोड पूर्व १ कोड पूर्व १ अंतर्मुहूर्त १ कोड पूर्व १ उपपात द्वार उत्कृष्ट 1 कोडपूर्व १] अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व १ कोडपूर्व १ अंतर्मुहूर्त १ कोड पूर्व जघन्य १.२.३ ऊपजै १ कोडपूर्व १ अंतर्मुहूर्त १ कोड पूर्व ૧૨.૩ ऊपजै २ परिमाण द्वार ૧૨.૩ ऊपजै जघन्य ૧૨.૩ ऊपजै १२.३ ऊपजे २ परिमाण द्वार उत्कृष्ट १२.३ ऊपजै उत्कृष्ट ६६ तिर्यंच पंचेंद्रिय में तीसरे सनतकुमार देवलोक नां ऊपजै तेहनों यंत्र (३४) 3 संघयण द्वार ६ असंघयणी जघन्य संख या असंख ऊपजै ૧૨.૩ ऊपजे संख या असंख ऊपजै १२.३ ऊपजै संखया असंख ऊपजै १२.३ कपी संख या असंख ऊपजै परिमाण द्वार उत्कृष्ट संख. या असंख ऊपजै संखया असंख ऊपजे संखया अरांख ऊपजै ३ संघयण द्वार ६ सख या असंख उप असंघयणी सख या अतंख ऊप असंघयणी असंघयणी 3 संघयण द्वार ६ असंघयणी असंघयणी असंघयणी अराघयणी अवगाहना द्वार जघन्य असंपवणी आंगुल न असंख भाग आंगुल न असंख भाग आंगुल नॉ असंख भाग जघन्य आंगुल न असंख भाग आंगुल न असंख भाग ४ अवगाहना द्वार उत्कृष्ट आंगुल न असंख भाग जघन्य आंगुल न अराख भाग उत्कृष्ट आंगुल न असंख भाग ७ हाथ आंगुल न असंख भाग हाथ हाथ ४ अवगाहना द्वार उत्कृष्ट ६ हाथ 19 हाथ ७ हाथ ७ हाथ ६ हाथ ६ हाथ ५. संठाण द्वार ६ १ समचौरस १ समचौरंस १ समचौरंस ५. संठाण द्वार ६ १ समचौरंस १ समचौरंस १ समचौरंस ५. संठाण द्वार ६ [१] समचौरस १ समचौरंस १ समचौरंग लेश्या द्वार ६ १ तेजु १ तेजु १ तेजु ६ लेश्या द्वार ६ १ तेजु तेजु १ तेजु ६ लेश्या द्वार ६ १ पद्म १ पद्म १ पद्म दृष्टि द्वार 3 3 1 दृष्टि द्वार ३ 3 ३ दृष्टि द्वार ३ ३ 3 ३ ज्ञान-अज्ञान द्वार ३ ५ ३ नियमा ३ नियमा ३ नियमा ५ ३ नियमा ३ नियमा ज्ञान-अज्ञान द्वार ३ नियमा ५ ३ नियमा ३ नियमा ३ नियमा ३ नियमा ३ नियमा ३ नियम्य 3 ज्ञान-अज्ञान द्वार ३ नियमा ३ नियमा ३ नियमा ३ ३ नियमा ३ नियमा ३ नियमा ६ योग द्वार ३ ३ 3 3 योग द्वार ३ 3 ३ 3 ६ योग द्वार ३ 3 A 3 १० उपयोग २ उपयोग उपयोग | " Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५ २० १६ समुद्रात द्वार वेदना द्वार| वेद द्वार कवाय द्वार इन्द्रिय द्वार आयुद्वार जघन्य | उत्कृष्ट १६ अध्यवसाय द्वार| अनुबंध द्वार असंख्याता | जघन्य | उत्कृष्ट লা कायसंवेध द्वार जघन्य काल उत्कृष्ट काल ३ जन्य उत्कृष्ट ५ पहली २स्त्री १पल्य | सागर भला १पल्या २सागर मुंडा به به به १पल्य १अंतर्मु. १पल्य १अतk. १पल्य १ कोडपूर्व सागर ४ कोडपूर्व सागर ४ अंतर्मु. ८ सागर ४ कोडपूर्व ५पहली | १पल्य | १पल्य मला १पल्य | १पल्य به आयु به १पल्य १ अंतर्मुहर्त १पल्य १ अंतर्मुहूर्त १पल्य १ कोडपूर्व ४पल्य४ कोडपूर्व ४पल्य ४ अंतर्मु. ४पत्य कोडपूर्व अनुबंध به ५पहली २स्त्री | सागर | २सागर |सागर २सागर पुरुष आयु, अनु. به له به २सागर १अंतर्मु. २सागर १अंतर्मु. २सागर १कोडपूर्व ८सागर ४ कोडपूर्व सागर ४ अंतर्म सागर ४ कोडपूर्व १५ समुद्घात कार | वेदना द्वार | वेद द्वार न्द्रय द्वार आयुद्वार १८ अध्यवसाय द्वार अनुबंध द्वार असंख्याता जघन्य उत्कृष्ट লালা कायसंवेध द्वार २ | जघन्य । उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट जपन्य काल उत्कृष्ट काल ५पहली । २ मला २स्त्री पुरुष १पल्य जाम्रो २सागर जाम्रो १पल्य जामो २सागर जाझो १पल्य जाझो १अंतर्मु, १पल्य जाझो अंतर्मु. १पल्य जाझो १कोडपूर्व ८ सागर जानो ४ कोटपूर्व ८ सागर जाझो ४ अंतर्मु. सागर जाझो४ कोडपूर्व जाझो ५पहली २स्त्री पुरुष १पल्य जाझो १पल्य जाझो १पल्य जाझो १पल्य जाझो आइ WANINN! Aau १पल्य जाझो १अंतर्मुहूर्त | ४ पल्य जाझो ४ कोडपूर्व १पल्य जाझो १अंतर्मुहूर्त | ४पल्य जाझो ४ अंतर्मु. १पल्य जाझो १ कोडपूर्व- ४पल्य जाझो ४ कोडपूर्व अनुबंध ५पहली २स्त्री |सागर जाझो सागर जाझो मला मुंडा २सागर | रसागर जाझो | जाओ २सागर जाझो १ अंतर्मु. ८सागर जाझो ४ कोडपूर्व २सागर जाझोअंतर्मु. ८ सागर जाझो ४ अंतर्मु. २ सागर जाझो १ कोडपूर्व | ८ सागर जाझो ४ कोडपूर्व अनुबंध १५ 40 १८ अध्यवसाय द्वार २० कायसंवेध द्वार इन्द्रिय द्वार | समुद्घात द्वार | वेदना द्वार | वेद द्वार आयुद्वार अनुबंध द्वार নাগরা ३ जघन्य उत्कृष्ट असंख्याता जघन्य | उत्कृष्ट जघन्य उत्कष्ट। जघन्य काल उत्कृष्ट काल १पुरुष २सागर सागर भला ।२सागर |७सागर भंडा २सागर अंतर्मु. २सागर अंतर्मु. २सागर १कोडपूर्व २८ सागर ४ कोडपूर्व २८सागर ४ अंतर्मु. २८सागर ४ कोडपूर्व ५पहली | २ | पुरुष |२सागर |२सागर भला सागर | २सागर आप wwwwwwwww २सागर १अंतर्म, २सागर १अंतर्म २ सागर १ कोडपूर्व ८ सागर ४ कोडपूर्व सागर ४ अंतर्मु. ८ सागर ४ कोडपूर्व अनुबंध ५ पहली १पुरुष ७सागर ७सागर भला सागर |७ सागर आयु सागर अंतर्मु. ७ सागर १अंतर्मु. ७ सागर १ कोडपूर्व २८ सागर ४ कोडपूर्व २८सागर ४ अंतर्मु. २८ सागर ४ कोडपूर्व अनुबंध गमा २६७ Jain Education Intemational Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०० तिर्यंच पंचेंद्रिय में चौथे माहेन्द्र देवलोक नां ऊपजै तेहनों यंत्र (३५) गमा २० द्वार नी संख्या १ २ ३ ४ ५ ६ DUN! ७ ६ -२६८ १ २ mar ओधिक नै ओधिक ओधिक नैं जघन्य अधिक नै उत्कृष्ट गमा २० द्वार नी संख्या जघन्य नै ओधिक जघन्य नै जघन्य जघन्य मैं उत्कृष्ट उत्कृष्ट नै ओधिक उत्कृष्ट मैं जघन्य उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट १ २ Y ५ ६ ओधिक नै ओधिक ओधिक मैं जघन्य | ओधिक मैं उत्कृष्ट जघन्य नै ओधिक जघन्य नै जघन्य जघन्य मैं उत्कृष्ट उत्कृष्ट नै ओधिक उत्कृष्ट नैं जघन्य उत्कृष्ट नैं उत्कृष्ट गमा २० द्वार भी संख्या ओधिक नै ओधिक ओधिक मैं जघन्य ओधिक मैं उत्कृष्ट जघन्य जघन्य नैं ओधिक जघन्य नै जधन्य जघन्य नै उत्कृष्ट १] अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व १] अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मुहूर्त १] कोड पूर्व १ अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मुहूर्त १ कोड पूर्व उपपात द्वार जघन्य १ अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व १ अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मुहूर्त १ कोड पूर्व १ अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मुहूर्त १ कोड पूर्व जघन्य १ अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व उत्कृष्ट नै ओधिक उत्कृष्ट मैं जधन्य उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट भगवती जोड़ (खण्ड-६) उत्कृष्ट १ अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मुहूर्त १ कोड पूर्व १ कोडपूर्व १ अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व १०१ तिर्यंच पंचेंद्रिय में पांचवें ब्रह्म देवलोक नां ऊपजै तेहनों यंत्र (३६) 3 संघयण द्वार ६ असंघवणी १ अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मुहूर्त १ कोड पूर्व १] कोडपूर्व १ अंतर्मुहूर्त १] कोड पूर्व १ कोडपूर्व अंतर्मुहूर्त १ कोड पूर्व १ उपपात द्वार उपपात द्वार उत्कृष्ट १ कोडपूर्व १ अंतर्मुहूर्त १. कोडपूर्व १ कोडपूर्व १ अंतर्मुहूर्त १ कोड पूर्व १ कोड पूर्व १ अंतर्मुहूर्त १ कोड पूर्व उत्कृष्ट १ कोडपूर्व १ अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व १ कोडपूर्व १ अंतर्मुहूर्त १. कोड पूर्व जघन्य १.२.३ ऊपजै १ कोडपूर्व १ अंतर्मुहूर्त १] कोड पूर्व परिमाण द्वार १.२.३ ऊपजै १२.३ ऊपजै जघन्य १२.३ ऊपजै १२.३ ऊपजै १२.३ ऊपजै १.२.३ ऊपजै जघन्य उत्कृष्ट संखया असंख ऊपजै १२.३ ऊपजै संखया असंख ऊपजै १०२ तिर्यच पंचेंद्रिय में छट्टे लंतक देवलोक नां ऊपजै तेहनों यंत्र (३७) १२.३ ऊपजै असंख ऊपजै २ परिमाण द्वार उत्कृष्ट संखया असंख ऊपजे संखया असंख ऊपजै २ परिमाण द्वार उत्कृष्ट संखया असंख ऊपजै संख या असंख ऊपजै 3 संघयण द्वार ६ संख या असंख ऊपजै असंघयणी संख या असंख ऊपजै असंघयणी असंघयणी असंघयणी असंघयणी 3 संघयण द्वार ६. असंघयणी असंघयणी जघन्य असंघयणी ४ अवगाहना द्वार उत्कृष्ट ६ हाथ आंगुल न असंख भाग आंगुल न असंख भाग आंगुल न असंख भाग जघन्य आंगुल न असंख भाग अवगाहना द्वार उत्कृष्ट ५ हाथ आंगुल न असंख भाग आंगुल न असंख भाग जघन्य आंगुल न असंख भाग ६ हाथ आंगुल न असंख भाग ६ हाथ अवगाहना द्वार उत्कृष्ट ५] हाथ आंगुल न असंख भाग ५. हाथ हाथ ५] हाथ ५ हाथ ५. संठाण द्वार ६ १ समधीरंस [१] समचौरंस १ समचौरंस ५ संठाण द्वार ६ १ समचौरंस १ समधीरंस १ समचौरंस संठाण द्वार ६ १ समचौरस १ समचौरंस १ समचौरंस ६ लेश्या द्वार ६ १ पद्म १ पदम १ पद्म ૬ लेश्या द्वार ६ १ पद्म १ पद्म १ पद्म लेश्या द्वार १ शुक्ल १ शुक्ल १ शुक्ल ७ दृष्टि द्वार ३ ३ Al ३ 19 दृष्टि द्वार 3 ३ 3 19 दृष्टि द्वार 3 ३ 3 ज्ञान-अज्ञान द्वार ५ ३ नियमा ३ नियमा ३ नियमा ५ ३ नियमा ३ नियमा ज्ञान-अज्ञान द्वार ३ नियमा ५ ३ नियमा ३ नियमा ३ द ३ नियमा ३ नियमा ३ नियमा ३. नियमा 3 ३ नियमा ज्ञान-अज्ञान द्वार ३ नियमा ३ नियमा 3 ३ नियमा ३ नियमा ३ नियमा १ योग द्वार ३ ३ ३ 3 ' योग द्वार ३ 3 ३ 3 ६ योग द्वार ३. ३. 3 १० उपयोग द्वा २ २ उपयोग २ उपयोग द्वार २ २ Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११ ४ ४ » ११ संज्ञा द्वार ११ ४ १२ कषाय द्वार ४ ४ ४ ४ १२ कषाय द्वार ४ ४ १२ कषाय द्वार ४ V १३ इन्द्रिय द्वार ५ ५ ५ عر १३ इन्द्रिय द्वार ५ ५ عمر ५ इन्द्रिय द्वार ५ ५ १४ १५ समुद्धात द्वार वेदना द्वार 19 ५] पहली ५] पहली ५] पहली ५. पहली ५ पहली १४ १५ समुद्धात द्वार वेदना द्वार ५. पहली ७ ५. पहली २. ५. पहली ~ ५. पहली २ १४ १५ समुद्धात द्वार वेदना द्वार २ २ २ २ ~. १६ वेद द्वार 3 १ पुरुष १ पुरुष १ पुरुष १६ वेद द्वार ३ १ पुरुष १ पुरुष १ पुरुष १६ वेद द्वार ३ १. पुरुष १ पुरुष १ पुरुष 989 आयु द्वार उत्कृष्ट जघन्य २ सागर जानो २ सागर जानो ७] सागर जाझो ७] सागर ७ सागर 913 आयु द्वार जघन्य उत्कृष्ट १० सागर ७ सागर जानो जघन्य २ सागर 'जाझो ७ सागर जानो १४ सागर १० सागर ७ सागर 49 आयु द्वार १० सागर उत्कृष्ट १० सागर १४ सागर १० सागर १० सागर १४ सागर १८ अध्यवसाय द्वार असंख्याता भला भूंडा भरला भूंखा भला भूंडा १८ अध्यवसाय द्वार असंख्याता भला मूंडा भला भूडा भला भूंडा १८ अध्यवसाय द्वार असंख्याता भला भूडा मला भूडा भला भूडा १६ अनुबंध द्वार उत्कृष्ट जघन्य २ सागर जाओगे २ सागर जानो ७ सागर जानो ७ सागर १० सागर १६ अनुबंध द्वार जघन्य उत्कृष्ट ७ सागर १० सागर ७ सागर जाझो १० सागर २ सागर जानो १४ सागर ७] सागर जाझो १० सागर पह अनुबंध द्वार जघन्य ७ सागर १० सागर उत्कृष्ट १४ सागर १० सागर १४ सागर नाणता 0 आयु अनुबंध २ आयुअनुबंध नाणत्ता . २ आयु अनुबंध २ आयु. अनुबंध नाणत्ता २ आयु अनुबंध आयु. अनुबंध जघन्य wwwwww २ ~ ~ ~ २ २ 2 2 2 २ २ २ २ जघन्य उत्कृष्ट २ भव 2 ~~~ उत्कृष्ट २ भव ....... भव ८ ५ ८ ६ ८ जघन्य उत्कृष्ट ८. ६ ८ ६ ५ ८ ८ ५८ ८ JJJ जघन्य काल २ सागर जाझो १ अंतर्ग २ सागर जाझो १ अंतर्ग २ सागर जाझो १ कोडपूर्व २ सागर जाझ १ अंतर्ग २ सागर जाओ १ अंतर्ग २ सागर जाझो १ कोडपूर्व ७ सागर जाझो १ अंतर्मु ७] सागर जाझो १ अंतर्ग ७] सागर जाझो १ कोडपूर्व कायसंवेध द्वार ७ सागर १ अंतर्मुहूर्त ७ सागर १ अंतर्मुहूर्त ७ सागर १ को पूर्व जघन्य काल ७ सागर १ अंतर्मु ७ सागर १ अंतर्ग 1७ सागर १ को पूर्व १० सागर १ अंतर्मु १०. सागर १ अंतर्मु १० सागर १ को पूर्व . जघन्य काल २० कायसंवेध द्वार १० सागर १ अंतर्ग १० सागर १ अंतर्मु १० सागर १ कोडपूर्व १० सागर १ अंतर्मु १० सागर अं १० सागर १ को पूर्व उत्कृष्ट काल २८. सागर जाझ ४ कोडपूर्व २८. सागर जाओ ४ ४ अंतर्मु २८. सागर जाझो ४ कोडपूर्व १४] सागर १ अंतर्मु १४ सागर अंतर्मु १४ सागर १ को पूर्व सागर जाझो ४ कोडपूर्व ८ सागर जाझो ४ अंतर्ग ८ सागर जाझो ४ कोडपूर्व २८. सागर जाझो ४ कोडपूर्व २८. सागर जाझो ४ अंतर्मु, २८. सागर जाझो ४ कोडपूर्व उत्कृष्ट काल ४० सागर ४ को पूर्व ४० सागर ४ अंतर्मु ४० सागर४ फोडपूर्व २८. सागर ४ कोडपूर्व २८. सागर ४ अंतर्मु २८. सागर ४ कोडपूर्व ४० सागर ४ को पूर्व ४० सागर ४ अंतर्मु ४० सागर ४ कोडपूर्व २० कायसंवेध द्वार उत्कृष्ट काल ५६ सागर ४ कोडपूर्व ५६ सागर ४ अंतर्ग ५६ सागर ४ को डपूर्व ४० सागर ४ कोडपूर्व ४० सागर ४ अंतर्मु ४० सागर ४ को पूर्व ५६ सागर ४ को पूर्व ५६ सागर अंतर्मु ५६ सागर ४ फोडपूर्व गंगा २६६ Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०३ तिर्यंच पंचेंद्रिय में सातवें महाशुक्र देवलोक नां ऊपजै तेहनों यंत्र (३८) ३ संघयण द्वार ६ असंघयणी Former lovel ३०० गमा २० द्वार नी संख्या २ ३ गमा २० द्वार भी संख्या ५ ६ وا ८ ६ 10mm | ओधिक नै ओधिक ओधिक नैं जघन्य ओधिक नै उत्कृष्ट १ जघन्य नै ओधिक जघन्य नै जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट उत्कृष्ट नै ओधिक उत्कृष्ट नै जघन्य उत्कृष्ट नैं उत्कृष्ट २ 3 गमा २० द्वार नी संख्या 30 31 31 w ओधिक नै ओधिक ओधिक नैं जघन्य ओधिक में उत्कृष्ट जघन्य नै ओधिक जघन्य नै जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट उत्कृष्ट नै ओधिक उत्कृष्ट नै जघन्य उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट उपपात द्वार जघन्य १ अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मुहूर्त १ को पूर्व १ अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मुहूर्त १ कोड पूर्व १ अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मुहूर्त १ कोड पूर्व जघन्य १ अंतर्मुहूर्त १ अंतुर्मुहूर्त १] कोडपूर्व १०४ तिर्यंच पंचेंद्रिय में आठवें सहस्रार देवलोक नां ऊपजै तेहनों यंत्र (३६) १ अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मुहूर्त १] कोड पूर्व १ अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मुहूर्त १ कोड पूर्व जघन्य ओधिक नै ओधिक १ पृथक मास ओधिक नै जघन्य १ पृथक मास ओधिक मैं उत्कृष्ट १ कोडपूर्व जघन्य नै ओधिक १ पृथक मास जघन्य नै जघन्य १ पृथक मास जघन्य नै उत्कृष्ट १ कोडपूर्व उत्कृष्ट उत्कृष्ट नै ओधिक १ पृथक मास उत्कृष्ट नै जघन्य १ पृथक गास उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट १ को पूर्व १ कोडपूर्व १ अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व उपफत द्वार भगवती जोड (खण्ड-६) १ कोडपूर्व १ अंतर्मुहूर्त १ कोड पूर्व १ कोडपूर्व १ अंतर्मुहूर्त १ कोड पूर्व उत्कृष्ट १ कोडपूर्व १ अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व १] कोडपूर्व १ अंतर्मुहूर्त १] कोड पूर्व १ कोडपूर्व १ अंतर्मुहूर्त १ कोड पूर्व १ कोडपूर्व १ पृथक मास १ कोडपूर्व २ परिमाण द्वार १.२.३ ऊपजै १ कोडपूर्व ૧૨.૩ १ पृथक मास ऊपजै १ कोडपूर्व १ फोडपूर्व १ पृथक मास १ योडपूर्व जघन्य १.२.३ ऊपजै २ उपपात द्वार परिमाण द्वार उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट १.२.३ ऊपजै १२.३ ऊपजै १२.३ ऊपजै जघन्य १२.३ ऊपजै १२.३ ऊपजै १२.३ ऊपजै ર परिमाण द्वार उत्कृष्ट संख या असंख ऊपजै संख्याता ऊपजै संख या असंख ऊपजै संख्याता ऊपजै संख या असंख ऊपजै संख्याता ऊपजै उत्कृष्ट संखया असंख ऊपजे संखया अख ऊपजै संख या असंखा ऊपजै मनुष्य में ४३ ठिकाणां ना ऊपजै-छह नारकी ६ दस भवनपति १६, पृथ्वीकाय १७ अपकाय २५ संख्याता वर्ष नां सन्नी मनुष्य २६, व्यंतर २७, ज्योतिषी २८. बारह देवलोक ४०, नौ ग्रैवेयक ४१ चार अनुत्तर विमान ४२, सर्वार्थसिद्ध ४३ । १०५ मनुष्य में प्रथम नरक नां नेरइया ऊपजै तेहनों यंत्र (१) 3 संघयण द्वार ६ असंघयणी असंघयणी असंघयणी असंघयणी असंघयणी 3 संघयण द्वार ६ असंघयणी असंघवणी असंघवणी ४ अवगाहना द्वार जघन्य आंगुल न असंख भाग आंगुल न असंख भाग आंगुल न असंख भाग आंगुल न असंख भाग आंगुल न असंख भाग आंगुल न असंख भाग जघन्य आंगुल न असंख भाग अव० भवधारणी जघन्य आंगुल न असंख भाग आंगुल न असंख भाग अवगाहना द्वार उत्कृष्ट उत्कृष्ट ७ ।। धनुष्य ६ आंगुल ४] हाथ २७ ।। धनुष्य ६] आंगुल ४ हाथ ७ ।। धनुष्य ६ आंगुल ४ हाथ उत्कृष्ट ४] हाथ ४ हाथ आंगुल न संख्याता भाग ५ संठाण द्वार ६ १ समधीरस आंगुल न संख्याता भाग १ समचौरस आंगुल न संख्याता भाग १ समचौरस ५ संठाण द्वार ६ १ समधीरंस १ समचौरंस अव० उत्तर वै० जघन्य उत्कृष्ट १ समचौरस १५ ।। धनु १२ आंगुल १५।। चनु १२ आंगुल १५।। धनु १२ आंगुल ६ लेश्या द्वार ६ १ शुक्ल १ शुक्ल १ शुक्ल लेश्या द्वार ६ १ शुक्ल १ शुक्ल १ शुक्ल ५ संठाण द्वार ६ १ हुंडक १ क 19 दृष्टि द्वार ३ १ हुंडक ३ वनस्पतिकाय १५ तीन विकलेंद्रिय २२ असन्नी तिर्यचपंचेंद्रिय २३ संख्याता वर्ष नां सन्नी तिर्यंच पंचेंद्रिय २४, असन्नी मनुष्य ३ ७ दृष्टि द्वार ३ 3 १ कापोत १ कापोत 3 ३. ५ ३ नियमा -- 3 ३ नियमा ६ 19 लेश्या द्वार दृष्टि द्वार ६ १ कापोत ३ ज्ञान-अज्ञान द्वार 3 ३ नियमा ५ ३ नियमा ३ नियमा E ३ नियमा ज्ञान-अज्ञान द्वार ३ ३ नियमा ५ ३ नियमा ३ नियमा ३ नियमा ३ नियमा ३ नियमा ३ नियमा ३ नियमा ज्ञान-अज्ञान द्वार 3 ३ नियमा ३ भजना ३ भजना ३ नियमा ६ योग द्वार 3 3 ३ ३ योग द्वार ३ ३ 4 3 ३ 3 ६ योग द्वार उपयोग २ ३ उपयोग द्वार २. ३ 06 उपयोग २ २ Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वेदनाद्वार समुदपात द्वार पदार वेटदार आयुद्वार जघन्य उत्कृष्ट १८ अध्यवसाय द्वार अनुबंध द्वार असंख्याता जघन्य | उत्कृष्ट नाणत्ता कायसंवेध द्वार उत्कृष्ट काल जघन्य उत्कृष्ट जघन्यकाल जपत ५पहली १पुरुष १४ सागर | सागर | मला मुंडा | सागर | सागर .NP सागर अंतर्मु १४ सागर अंत सागरकोळपूर्व ६८ सागर ४ कोडपूर्व सागर अंत ६८ सागर४ कोडपूर्व | ५पहली १पुरुष ४ सागर सागर | भला मुंडा | सागर | सागर सागर १अंतर्मु. सागर १अंतर्मु. सागर१ कोडपूर्व ५६ सागर कोडपूर्व ५६ सागर ४ अंतर्मु ५६ सागर ४ कोडपूर्व ५पहली १पुरुष सागर|सागर | मला भुंगा सागर | सागर - सागर अंतर्मु, सागर १अंतर्मु सागर १ कोळपूर्व ६८ सागर ४ कोडपूर्व ६८ सागर ४ अंतर्मु ६८ सागर ४ कोटपूर्व शाद्वार कवायदार इन्द्रिय द्वार समुदघात द्वार वेदना द्वार | वेद द्वार आयुद्वार नाणत्ता अध्यवसाय द्वार असंख्याता अनुबंध द्वार जघन्य उत्कृष्ट कायसंवैध द्वार उत्कृष्ट काल जघन्य उत्कष्ट जघन्यकाल ५पहली १पुरुष | सागर सागर मला मुंडा १७ सागर| सागर १७ सागर अंत १७ सागर १अंतर्मु, ७ सागर १कोजपूर्व |७२ सागरकोजपूर्व २सागर ४अंतर्म १२सागर कोडपूर्व ५पहली | २ | पुरुष | सागर | सागर मला भुंडा |सागर |१७ सागर आयु अनुबंध सागर अंतर्मु. ७ सागर अंतर्मु, १७ सागर १ कोडपूर्व ६८ सागर ४ कोडपूर्व ६८ सागर अंत ६८ सागर ४ कोडपूर्व ५पहली । २ । पुरुष सागर | सागर | बला मुंडा सागर | सागर १ सागर अंतर्मु सागर १अंतर्मु सागर १कोरपूर्व ७२ सागर ४ कोठपूर्व १२ सागर ४ अंतर्म रसागर ४कोडपूर्व इन्द्रियादार समुदधात द्वार वेदनाद्वार लेट टार आयतार नाणत्ता अध्यवसाय द्वार अनुध द्वार असंख्याता जघन्य उत्कृष्ट कायसंवेध द्वार जघन्य काल उत्कृष्ट काल जघन्य | उत्कृष्ट उत्कृष्ट | ४पहली २ नपुंसक १० हजार १सागर भला हजार १सागर जा NNN १० हजार वर्ष १पृथक मास ४ सागर४ कोडपूर्व १० हजार वर्ष पृथक मास ४ सागर४ पृथक मास १० हजार वर्ष १ कोडपूर्व | ४सागर४ कोडपूर्व ४पहली । २ नपुंसक १० हजार | १० हजार भला १० हजार १० हजार १० हजार वर्ष १पृथक मास ४० हजार वर्ष४ कोडपूर्व १० हजार वर्ष १पृथक मास ४० हजार वर्ष ४ पृथक मास हजार वर्ष १ कोडपूर्व | ४० हजार वर्ष ४ कोडपूर्व अनुबंध ४पहली २ नपुंसक | सागर सागर १सागर १सागर १सागर १पृथक मास १सागर१पृथक मास १सागर१कोडपूर्व ४ सागर ४ कोडपूर्व ४ सागर४ पृथक मास ४ सागर४ कोहपूर्व गमा ३०१ Jain Education Intemational Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६ मनुष्य में दूजी नरक नां नेरइया ऊपजै तेहनों यंत्र (२) गमा २०द्वार नी संख्या संघयण द्वार | अव० अवधारणी | अव० उत्तर संठाण द्वार | लेश्या द्वार दृष्टि द्वार ज्ञान-अज्ञान द्वार उपपात द्वार परिमाण द्वार उत्कृष्ट जघन्य | उत्कृष्ट उत्कृष्ट जघन्य | उत्कृष्ट | असंघषणी संख्याता ऊपजै | आंगुल नों असंख भाग १हुंडक | १कापोत ३ ओधिक नै ओधिक पृथक वर्ष ओधिक नै जघन्य पृथक वर्ष ओधिक नै उत्कृष्ट १कोडपूर्व ३नियमा । ३नियमा कोडपूर्व । १.२.३ १पृथक वर्ष | ऊपजै १ कोहपूर्व २ ३ | १५॥धनु. १२ आंगुल आंगुल नों। संख्याता भाग ३१॥ पनुष्य संख्याता | असंघयणी ४ जघन्य नै ओधिक पृथक वर्ष ५ जघन्य नै जघन्य १पृथक वर्ष ६ जघन्य नै उत्कृष्ट कोडपूर्व १.२.३ ऊपजै १हुंडक | १कापोत ३ नियमा 1ोडपूर्व १पृथक वर्ष १कोडपूर्व | आंगुल नों असंख भाग | १२ आंगुल आंगुल नौ संख्याता भाग धनुष्य असधयणी १हुंडक | १कापोत ३नियमा ७ उत्कृष्ट नै ओधिक पृथक वर्ष उत्कृष्ट नै जघन्य पृथक वर्ष ६ उत्यूष्ट उत्कृष्ट कोडपूर्व ३नियमा कोडपूर्व पृथक वर्ष १कोडपूर्व ૧૨૩ ऊपजे संख्याता ऊपज आंगुलनों असंखभाग | २ आंगुल | आंगुल नों संख्याता धनुष्य १०७ मनुष्य में तीसरी नरक नां नेरइया ऊपजै तेहनों यंत्र (३) गमा २० द्वार नी संख्या उपपात द्वार संघयण द्वार | अव० भवधारणी । अव उत्तर के संठाणद्वार | लेश्या द्वार| दृष्टिद्वार ज्ञान-अज्ञान द्वार योग द्वार उ परिमाण द्वार जघन्य । उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट जघन्य । उत्कृष्ट जघन्य संख्याता असंघयणी ३ नियमा । ३नियमा १ २ ३ ओधिक नै ओधिक पृथक् वर्ष | ओधिक नै जघन्य | पृथक् वर्ष ओधिक नै उत्कृष्ट १कोडपूर्व १कोडपूर्व १पृथक वर्ष १कोङपूर्व | १२.३ ऊपजे आंगुल नो | ३१॥ धनुष्य असंख भाग आंगुल नों संख्याता ६२।। धनुष्य नील कापोत ऊपजै ४ १२.३ संख्याता | असंघयणी ॥धनुष्य आंगुल नों १हुंडक | कापोत | ३ ३नियगा आंगुल नौ | असंख भाग ३नियमा जघन्य नै ओधिक १ पृथक वर्ष | १कोडपूर्व जधन्यनैजपथ पृथक वर्ष पृथक वर्ष जघन्य नै उत्कृष्ट १कोडपूर्व | कोडपूर्व संख्याता अनुष्य ६ भाग संख्याता असंघयणी नील नियमा १हुंडक ३नियमा उत्कृष्ट ओधिक पृथक वर्ष उत्कृष्ट जघन्य |१पृथक वर्ष उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट १ कोडपूर्व । १कोडपूर्व १पृथक वर्ष १कोडपूर्व ૧૩. ऊप आंगुल नो | ३१ धनुष्य असंखभाग आंगुल नों संख्याता १०८ मनुष्य में चौथी नरक नां नेरइया ऊपजै तेहनों यंत्र (४) गमा २०द्वार नी संख्या संघयण द्वार अव० भवधारणी संठाण द्वार लेश्या द्वार दृष्टिद्वार ज्ञान-अज्ञान द्वार योगद्वार उपयोग उपपात द्वार | परिमाण द्वार जघन्य | उत्कृष्ट जघन्य | उत्कृष्ट अव० उत्तर ० उत्कृष्ट उत्कृष्ट १२३ । असंघयणी संख्याता ऊपजै आंगुल नो] असख भाग ६२।। पनुष्य | १२५ धनुष्य आंगुल नो संख्याता १हुंडक नील ३ नियमा | ओधिकनै ओधिक १ पृथक वर्ष ओधिक जघन्य | १पृथक वर्ष ओधिक नै उत्कृष्ट १ कोडपूर्व नियमा | १कोडपूर्व १पृथक वर्ष १कोडपूर्व ३ ३. २ ३ ऊपजे भाग संख्याता असंघयणी १नील | १२५ धनुष्य ४ ५ ६ ३नियमा । जघन्य नै ओधिक पृथक वर्ष | १कोडपूर्व जघन्य नै जघन्य | पृथक वर्ष १पृथक वर्ष जघन्य नै उत्कृष्ट कोडपूर्व। १कोडपूर्व १२.३ । रुपमै आंगुल नो। असंख माग आंगुल नों संख्याता भाग असंघयणी | ६२॥ | १२५ धनुष्य १नील ३नियमा | नियमा ३ उत्कृष्ट नै ओधिक पृथक वर्ष उत्कृष्ट जपन्य पृथक वर्ष उत्कृष्ट नै उत्कृष्चकोडपूर्द १कोटपूर्व १पृचर्य रूप कोडपूर्व संख्याता ऊपजे आंगुल नो असंख भाग | आंगुल नों संख्याता ३०२ भगवती-जगेड (खण्ड-६) Jain Education Intemational Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सायद्वार |समुदधात द्वार वेदना द्वार वेद द्वार आयुतार नाणता कायसवेध द्वार अध्यवसाय द्वार अनुबंध द्वार असंख्याता | जघन्य | उत्कृष्ट २ जघन्य | उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट जघन्य काल उत्कृष्ट काल ४पहली २ नपुंसक १सागर |३सागर सागर |३सागर भला मुंडा १सागर पृथक वर्ष १सागर १पृथक वर्ग १सागरकोडपूर्व १२ सागर ४ कोडपूर्व १२ सागर ४ पृथक वर्ष १२ सागर ४ कोडपूर्व vपहली । २ नपुंसक | सागर पसागर मला १सागर |सागर १सागर १पृथक वर्ष १सागर १पृथक वर्ष १सागर१कोडपूर्व ४ सागर ४ कोडपूर्व ४ सागर ४ पृथक वर्ष ४सागर४ कोडपूर्व अनुबंध २ नपुंसक ३ सागर ३सागर ३सागर ३सागर 000 ३सागर१पृथक वर्ष ३सागर १ पृथक वर्ष ३सागरकोडपूर्व १२ सागर ४ कोडपूर्व १२ सागर ४ पृथक वर्ष १२ सागर ४ कोडपूर्व कवायदार ७ आयु द्वार इन्द्रिय द्वार | समुदयात द्वार वेदना द्वार | वेद द्वार | अनुबंध द्वार नाणत्ता अध्यवसाय द्वार असंख्याता कायसंवैध द्वार जघन्य | उत्कृष्ट | जघन्य काल उत्कृष्ट काल | जयन्द्र । उत्कृष्ट जघन्य | उत्कृष्ट ४पहली १नपुंसक | ३ सागर | ७ सागर मला ३सागर | सागर ३ सागर १पृथक वर्ष | २८ सागर ४ कोडपूर्व ३सागर पृथक वर्ष २८सागर ४ पृथकवर्ष ३ सागर १कोडपूर्व | २८ सागर ४ कोडपूर्व |202 200 ४पहली | २ । नपुंसक | सागर | ३ सागर मला |३सागर | ३सागर मुंडा आयु. अनुबंध ३सागर १पृथक वर्ष १२ सागर ४ कोडपूर्व ३सागर १पृथक वर्ष | १२ सागर ४ पृथवर्ष ३सागर १कोडपूर्व | १२ सागर ४ कोडपूर्व ४पहली १नपुंसक ७सागर | सागर ७सागर सागर ७ सागर पृथक वर्ष ७ सागर पृथक वर्ष सागर १कोडपूर्व २८ सागर ४ कोडपूर्व २८ सागर ४ पृथक वर्ष २८ सागर ४ कोडपूर्व अनुबंध १६ इन्द्रिय द्वार | समुद्घात द्वार समुदधात द्वार | वेदना द्वार | | वेद द्वार आयुद्वार पिटार अध्यवसाय द्वार नाणत्ता अनुबंध द्वार भव कायसवेध द्वार जपन्य उत्कृष्ट असंख्याता उत्कृष्ट जघन्य | उत्कृष्ट | जघन्य काल उत्कृष्ट काल ४पहली - २ नपुंसक सागर सागर मला सागर | सागर सागर१पृथक वर्ष सागर १ पृथक वर्ष सागरकोडपूर्व ४० सागर ४ कोडपूर्व ४० सागर ४ पृथकवर्ष ४० सागर ४ कोडपूर्व ४पहली १नपुंसक सागर ७सागर मला ७सागर | सागर VU आयु. अनुबंध ७ सागर१पृथक वर्ष ७ सागर पृथक वर्ष ७ सागर १ कोडपूर्व २८ सागर ४ कोङपूर्व २८. सागर ४ पृथकवर्ष २८ सागर कोडपूर्व ४पहली । २. नपुंसक १० सागर | सागर १० सागर| १० सागर आयु १० सागर १ पृथक वर्ष | | ४० सागर ४ कोडपूर्व १० सागर१पृथक् वर्ग ४० सागर ४ पृथक् वर्ग १० सागर १कोडपूर्व ४० सागर ४ कोडपूर्व गमा ३०३ Jain Education Intemational Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६ मनुष्य में पांचवीं नरक नां नेरइया ऊपजै तेहनों यंत्र (५) ३०४ गमा २० द्वार नौ संख्या |- ~~ ~~~ │ouml गमा २० द्वार नी संख्या जघन्य ओधिक मैं ओधिक १ पृथक वर्ष अधिक नै जघन्य १ पृथक वर्ष अधिक नै उत्कृष्ट १ को पूर्व जघन्य नै ओधिक जघन्य ने जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट ५ ६ जघन्य नै उत्कृष्ट [caml १ ओधिक नै ओधिक १ पृथक् वर्ष २ ओधिक नै जघन्य १ पृथक वर्ष ३ ओधिक नै उत्कृष्ट | १ कोडपूर्व १ उत्कृष्ट नै ओधिक १ पृथक वर्ष उत्कृष्ट नैं जघन्य १ पृथक् वर्ष उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट १ कोडपूर्व ४ जघन्य नै ओधिक १ पृथक् वर्ष जघन्य मैं जघन्य १ पृथक वर्ष १ कोडपूर्व गमा २० द्वार नी संख्या अन तेहनां नाम २ ७ उत्कृष्ट मैं ओधिक १ पृथक् वर्ष ८ उत्कृष्ट नै जघन्य १ पृथक वर्ष १. उत्कृष्ट मैं उत्कृष्ट १ कोडपूर्व ३ 8 ६ १ पृथक् वर्ष १ पृथक् वर्ष १ कोडपूर्व उपपात द्वार जघन्य ओधिक नै ओधिक जघन्य नै ओधिक जघन्य नै जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट ११० मनुष्य में छट्ठी नरक नां नेरइया ऊपजै तैहनों यंत्र (६) . १ अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मुहूर्त ओधिक मैं उत्कृष्ट १ कोडपूर्व ओधिक नैं जघन्य उपपात द्वार जघन्य २ परिमाण द्वार उत्कृष्ट जघन्य १ अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मुहूर्त १] कोडपूर्व ७ उत्कृष्ट नै ओधिक १ अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट नै जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट १ कोडपूर्व १ कोडपूर्व १ पृथक् वर्ष १ को पूर्व भगवती जोड (खण्ड-६) १ कोडपूर्व १ पृथक् वर्ष १ कोडपूर्व १ कोडपूर्व १ पृथक् वर्ष १ कोडपूर्व १ कोडपूर्व १ पृथक् वर्ष १ कोडपूर्व १११ मनुष्य में पृथ्वीकाय ऊपजै तेहनों यंत्र (७) १ कोडपूर्व १ पृथक वर्ष १ कोडपूर्व १] कोडपूर्व १ पृथक वर्ष १ कोडपूर्व १ उपपात द्वार उत्कृष्ट १२.३ ऊपजै १ कोडपूर्व १ अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व १.२.३ ऊपजै १ कोडपूर्व १ अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व १.२.३ ऊपजै १ कोडपूर्व अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व २ परिमाण द्वार उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट संख्याता असंघयणी ऊपजै ૧૨.૩ ऊपजै ૧૨૩ ऊपजै संख्याता ऊपजै १२.३ ऊपजै संख्याता ऊपजै उत्कृष्ट संख्याता ऊपजै संख्याता ऊपजै संख्याता ऊपजै १२.३ ऊपजै जघन्य ૧૨.૩ ऊपजै संघयण द्वार ६ असंघयणी १.२.३ ऊपजै असंघयणी असंघवणी 3 संघयण द्वार ६ असंघयणी असंघयणी २ परिमाण द्वार उत्कृष्ट असंख्याता ऊपजै असंख्याता ऊपजै संख्याता ऊपजै असंख्याता ऊपजै असंख्याता ऊपजे संख्याता ऊपजै असंख्याता ऊपजे असंख्याता ऊपजै संख्याता ऊपजै अव० भवधारणी जघन्य आंगल नो असंख भाग आंगुल न असंख भाग आंगुल नो असंख भाग जघन्य आंगल नो असंख भाग आंगुल न असंख भाग अव० भवधारणी आंगल नो असंख भाग ३ संघयण द्वार ६ १ छेक्टो १ छेवटी उत्कृष्ट १ छेवटो १२५ धनुष्य १२५ धनुष्य १२५ धनुष्य उत्कृष्ट २५० धनुष्य २५० धनुष्य २५० धनुष्य अव० उत्तर दे० जघन्य जधन्य आंगुल न संख्याता भाग आंगुल न संख्याता भाग आंगुल न संख्याता माग आंगुल न संख्याता भाग आंगुल न संख्याता भाग अव० उत्तर वै० जघन्य उत्कृष्ट आंगुल न संख्याता भाग अवगाहना द्वार उत्कृष्ट आंगुल न असंख भाग आंगुल न असंख भाग उत्कृष्ट २५० धनुष्य आंगुल न असंख भाग २५० धनुष्य २५० धनुष्य ५०० धनुष्य ५०० धनुष्य ५०० धनुष्य ५ संठाण द्वार ६ मसूर चंद मसूर चंद्र मसूर चंद्र ५. संठाण द्वार ६ १ हुंडक " हुंडक १ हुंडक ५. संठाण द्वार ६ " हुंडक १ हुंडक हुंडक ६ लेश्या द्वार ६ ४ पहली ३ पहली ४ पहली ६ लेश्या द्वार दृष्टि द्वार 3 २ कृष्ण नील १ नील १ कृष्ण १ कृष्ण १ कृष्ण लेश्या द्वार दृष्टि द्वार ६ 3 १ कृष्ण ७ दृष्टि द्वार ३ १ मिथ्या १. मिथ्या ३ १ मिध्या ३ 3 ३ 3 ५. ज्ञान-अज्ञान द्वार 3 ३ नियमा o ५. ३ नियमा ३ नियमा ३ नियमा ५ ३. नियमा ज्ञान-अज्ञान द्वार 3 ३ नियमा ३ नियमा ३ नियमा ३ नियमा ३ नियमा ३ नियमा 5 ज्ञान-अज्ञान द्वार ३ ३ नियमा २ नियमा २ नियमा २ नियमा ६ योग द्वार 3 3 ३ 3 ६. योग द्वार उपयोग १ काया १ काया 3 ३ याग द्वार 3 ३ उपयोग २ २ १० उपयोग ~ 1 Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५ । १६ जायद्वार समुदघातदार वेदनादार वेदवार आयतार अध्यवसाय द्वार अनुबंध द्वार नाण कायसवेश द्वार जघन्य उत्कृष्ट असंख्याता जधन्य उत्कृष्ट जधन्य उकृष्ट । जपन्य काल । उत्कृष्ट काल ' ' ४पहली | मर २ पडती । । पुंसक दुलाल सगर लागर - सागर | सागर सागर पृथकक्षा ६८सारकोडपूर्व १० सागर१पृथक वर्ष ६८ सागर ४ पृथकवर्ष ' गर १कोडपूर्व । ६.सागर ४ कोडपूर्व ४पहली | १नधुराक सागर सागर सागर।१०सागर १० सागर पृथक वर्ग सार१पृथक वर्ष ५० सागर १ कोहपूर्व सागर ४ कोडपूर्व ५० सागर ४ पृथकवर्ष ४० सागर ४ कोदाई अनुसार ४चाली १नपुंसक समरर "सागर "गागर आयु १७ सागर १पृथक वर्ष १० सागर१पृथक दर्व "सागर १ कोडपूर्व ६८ सागर ४ कोडपूर्व ६८ सागर ४थक वर्ष ।६८ सागर ४ कोडपूर्व अनुब्ध १२ कवाय द्वार दार इन्द्रिय द्वार सनुदायत द्वार वेदनाद्वार वेद द्वारा आयुद्वार नाणता कायसव द्वार जयदसाय द्वारी अनुबंध द्वार उसस्क्राशा जघन्य जघन्य जधन्दकाल उत्कृष्ट काल ४पहली २ । नपुंसक सागर | समर । नासागर सागर १७ सागर१धक वर्ष सागर ४ कोडपूर्व सापर १ पृथक वर्ष ६८ सागर ४ पृथवर्ष सागर १ कोडपर्व | ८८ सागर ४ कोडपूर्व ४ पहली नपुंसक सगर सागर सागर | सागर आय "सागर१पृथक वर्ष सगर१पृथक वर्ष " सागर १ कोडपूर्व सागर ४कोजपूर्व ६८ सागर ४ पृथक वर्ष सागर ४ कोतपूर्व अनुबंध ४पहली नपुंसक सागर २२ सागर सागर | सागर आयु २१ सागर१पृथक वर्ष ससागर १ पृथर न २२मगर १ कोडपूर्व ८ नागर ४कोडपूर्व गर ४ पृथक वर्ष सागर ४ कोडपूर्व १२ समुदधातद्वार वेदनाद्वार आयु द्वार नाणत्ता कादसा द्वार अध्याय द्वार असंख्याता अनुभव द्वार जघन्य | उत्कृष्ट जयन्दकृष्ट उपन्या उत्कृष्ट जघन्य बाल १y नपुंसक अंतर्मुल हजार अंतर्मुहूर्त २२ हजार उत्कृष्ट काल ८८ हजार कोठपूर्व हजार वर्ष ४ अंतर्ग ८८ हजार वर्ष ४ कोडपूर्व १आहत १ अंत १अंतर्मुहूर्त :अंतर्मु १अंतर्गुहूतं १ को उपूर्व मुंब पहली २ नपुंसक अंतर्मुहूर्त | अंतहत । भारताला अंतर्मुहूर्त अंतर्भूत भूख लेण्या, आयु अध्य०, अनु ५ अंok. १अंत तk १७.१ कोटपूर्द अंतर्मु ४ कोडपूर्व |४अंतर्मु, ४ अंतर्मु अंतर्मु कोडापूर्व पहली नपुंसक २२ हजार २ हजार मला सहबार २२४जार . ANALI २२ हजार अंतk |८ हजार वर्ष ४ कोडपूर्व सहजार वर्ग ८८ हजार पर्व ४ अंदमुं २२मा ३१ कोशपूर्व ८ हजार वर्ष ४ कोडपर्व गमा ३०५ Jain Education Intemational Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२ मनुष्य में अपकाय ऊपजै तेहनों यंत्र (८) गमा २० द्वार नी संख्या अनै तेहनां नाम ~ xx ww. ३. DUN! गमा २० द्वार भी संख्या १ SONI two love जघन्य नै ओधिक जघन्य नै जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट 3 ५ ओधिक नै ओधिक १ अंतर्मुहूर्त ओधिक नैं जघन्य १ अंतर्मुहूर्त ओधिक नै उत्कृष्ट १ कोडपूर्व गमा २० द्वार भी संख्या 19 ६ उत्कृष्ट नै ओधिक उत्कृष्ट मैं जघन्य १ अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट मैं उत्कृष्ट १ कोडपूर्व ओधिक नै ओधिक ओधिक मैं जघन्य ओधिक नै उत्कृष्ट जघन्य नै ओधिक जघन्य नै जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट उत्कृष्ट नै ओधिक उत्कृष्ट नै जघन्य उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट ११३ मनुष्य में वनस्पतिकाय ऊपजै तेहनों यंत्र (६) ओधिक नै अधिक ओधिक नैं जघन्य ओधिक मैं उत्कृष्ट ६ जघन्य नै उत्कृष्ट उपपात द्वार जघन्य जघन्य नै ओधिक जघन्य नै जघन्य १ अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व उत्कृष्ट नै ओधिक। उत्कृष्ट नै जघन्य उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट जघन्य १ अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व १ अंतर्मुहूर्त १] अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व १ अंतर्मुहूर्त १] अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व जघन्य १ अंतर्मुहूर्त १] अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व उत्कृष्ट १ कोडपूर्व १ अंतर्मुहूर्त १ कोहपूर्व उपपात द्वार १ अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व १ कोडपूर्व १ अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व १] अंतर्मुहूर्त १] अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व ३०६ भगवती जोड़ (खण्ड-६) १ कोहपूर्व १ अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व ११४ मनुष्य में बेइंद्रिय ऊपजै तेहनों यंत्र (१०) उत्कृष्ट १ कोडपूर्व १ अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व उपपात द्वार १ कोडपूर्व १ अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व १ कोडपूर्व १ अंतर्मुहूर्त १ कोटपूर्व उत्कृष्ट १ कोडपूर्व १ अंतर्मुहूर्त १] फोडपूर्व २ परिमाण द्वार १ कोडपूर्व १ अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व जघन्य १ कोडपूर्व १] अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व १२.३ ऊपजै १२.३ ऊपजै १२.३ ऊपजै जघन्य १.२.३ ऊपजै १.२.३ ऊपज १.२.३ ऊपज २ परिमाण द्वार जघन्य १.२.३ ऊपजै १२.३ ऊपजै उत्कृष्ट असंख्याता ऊपजे असंख्याता ऊपजै संख्याता ऊपजे १.२.३ ऊपजै असंख्याता ऊपजै असंख्याता ऊपजै संख्याता ऊपजै असंख्याता ऊपजै असंख्याता ऊपजै संख्याता ऊपजै उत्कृष्ट असंख्याता ऊपजै असंख्याता ऊपजे संख्याता ऊपजे असंख्याता ऊपपी असंख्याता ऊपजै संख्याता ऊपजै २ परिमाण द्वार असंख्याता ऊपजै असंख्याता ऊपजै संख्याता ऊपजै उत्कृष्ट असंख्याता ऊपजै असंख्याता ऊपजै संख्याता ऊपजै असंख्याता ऊपजै असंख्याता ऊपजै संख्याता ऊपजे ३ संघयण द्वार असंख्याता ऊपजे असंख्याता ऊपजै संख्याता ऊपजै १ छेवटो १ छेक्टो १ छेवटो ३ संघयण द्वार ६ १ छेवटो १ छेक्टो १ छेवटो ३ संघयण द्वार ६ १ छेदटो १ छेवटो १ छेवटो अवगाहना द्वार जघन्य आंगुल न असंख भाग आंगल नो असंख भाग जघन्य आंगल नो असंख भाग अवगाहना द्वार उत्कृष्ट आंगुल न असंख भाग आंगल नो असंख भाग उत्कृष्ट आंगुल नो असंख भाग जघन्य आंगुल न असंख भाग आंगुल न असंख भाग आंगुल ने असंख भाग १ हजार योजन जाझी अवगाहना द्वार उत्कृष्ट १२ योजन आंगुल न असंख भाग १ हजार योजन जानी आंगुल न असख भाग १२ योजन ५ संठाण द्वार ६ चिबुक चिबुक चिबुक ५. संठाण द्वार ६ प्रकार नाना प्रकार नाना प्रकार ५ सठाण द्वार ६ १हुंडक हुंडक हुंडक ६ लेश्या द्वार ६ ४ पहली ३] पहली ४ पहली लेश्या द्वार ४] पहली ३] पहली ४] पहली लेश्या द्वार ६ ३] पहली ३ पहली ३] पहली दृष्टि द्वार ३ १ मिथ्या १ मिथ्या १ मिथ्या ७ दृष्टि द्वार ३ १ मिथ्या १ मिथ्या १ मिथ्या وا दृष्टि द्वार 3 २ सम्यक् मिथ्या १ मिध्या २ सम्यक् गिध्या ज्ञान-अज्ञान द्वार ५ ० 。 ० ५. ० ज्ञान-अज्ञान द्वार 0 ५ २ नियमा 0 २ नियमा で २ नियमा २ नियमा २ नियमा 3 २ नियमा ज्ञान-अज्ञान द्वार २ नियमा २ नियमा ३ २ नियमा २ नियमा २ नियमा ६ योग द्वार ३ १ काय १ काय १ काय ६ योग द्वार 3 १ काय १ काय १ काय ६ योग द्वार ३ २वच काय २ वच १० उपयोग द्व २ २ उपयोग २ * उपयो Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ M १६ कवाय द्वार इन्द्रिय द्वार | समुदपात द्वार वेदनादार नाणत्ता भव वेद द्वार ३ आयुद्वार अध्यवसाय द्वार अनुबंध द्वार जघन्य उत्कृष्ट । असंख्याता | जघन्य उत्कृष्ट । २० कायसंवेध द्वार जपन्य काल उत्कृष्ट काल जघन्य उत्कृष्ट फर्स | २ १नपुंसक | अंतर्मुहूर्त | ७ हजार , अंतर्मुहूर्त | ७ हजार १अंतर्मुहूर्त अंतर्मु १अंतर्मुहूर्त अंतर्नु अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व २८ हजार वर्ष ४ कोडपूर्व २८ हजार दर्ष ४ अंतर्मु २८ हजार वर्ष ४ कोडपूर्व ३ पहली २ १नपुंसक | अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त मला डा मूडा | अनर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त लेश्या. आयु अध्य०,अनु० १अंतर्मु. अंत १अंतर्मु, १अंतर्मु १अंतर्मु. १कोडपूर्व ४ अंतर्मु ४अंतर्मु, |४अंतर्मु. ४कोडपूर्व ४ अंतर्मु ४कोडपूर्व फर्ड १नपुंसक हजार भला हजार हजार हजार वर्ष १अंतर्मु हजार वर्ष १अंतर्मु हजार वर्ष १ कोडपूर्व २० हजार वर्ष४ कोडपूर्व २८ हजार वर्ष ४ अंतर्मु २८ हजार वर्ष ४ कोडपूर्व अनुबंध १५ संज्ञा द्वार कवाय द्वार इन्द्रिय द्वार | समुदघात द्वार | वेदना द्वार वेद द्वारा आयुद्वार नाणत्ता भव कायसंवैधद्वार | अध्यवसाय द्वार अनुबंध द्वार असंख्याता जघन्य उकृष्ट ३ | जघन्य | उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट जघन्य काल उत्कृष्ट काल ३पहली १ नपुंसक | अंतर्मुहूर्त | १० हजार भला अंतर्मुहूर्त १ हजार वर्ष भंडा १अंतर्मुहूर्त १ अंत १अंतर्मुहूर्त १ अंतर्मु १अंतहत १ कोडपूर्व ४० हजार वर्ष ५ कोडपूर्व ४० हजार वर्ष अंतर्म ४० हजार वर्ष ४ कोडपूर्ण १फर्श पहली | २ | पनपुंसक | अंतर्मुहूर्त | अंतर्मुहूर्त | भलामुंडा अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त | अव० लेश्या . आयु, अध्य०, अनु० १ . १अंतर्ग १अंतर्मु, १अंतर्नु १अंतर्मु. १ कोजपूर्व ४अंतर्मु, ४ अंतर्मु. ४ अंतर्मु, ४ कोडपूर्व ४ अंतर्मु. ४कोडपूर्व भला २ ३पहली भला १० हजार १० हजार १नपुंसक १० हजार १० हजार वर्ष आयु १० हजार वर्ष अंतर्मु १० हजार वर्ष १अंतर्मु. १० हजार वर्ष १ कोडपूर्व | ४० हजार वर्ष ४ कोडपूर्व ४० हजार वर्ष ४ अंतर्मु ४० हजार वर्ष ४ कोडपूर्व अनुबंध २० कटार इन्द्रिय द्वार समुदधात द्वार | वेदना | वेद द्वार नाणत्ता भव कायसवेध द्वार | आयुद्वार | जघन्य | उत्कृष्ट जपन्या अध्यवसाय द्वार अनुबंध द्वार असंख्याता | जघन्य | उत्कृष्ट मला आर्मुहूर्त | १२ वर्ष जघन्य उत्कृष्ट जघन्यकाल उत्कृष्ट काल - पहली । २ नपुंसक | अंतर्मुहूर्त | १२वर्ष १अंतर्मुहुर्त अंतर्ग १अंतर्मुहूर्त १ अंतर्ग १अंतर्मुह १ कोउपूर्व ४८ वर्ष४ कोडपूर्व ४ वर्ष ४ अंतर्मु ४८ वर्ष४ कोडपूर्व पहली १नपुंसक | अंतर्मुहूर्त | अंतर्मुहूर्त भलामुंडा | अंतर्मुहूर्त | अंतर्मुहूर्त | अब०, दृष्टि, शान, | योग, आयु, अध्य..अनु| २ - । १अर्मु. १अंतर्नु १अंतर्ग, अंतर्मु, १अंतर्मु. १ कोडपूर्व ४ अंतर्मु ४ कोडपूर्व ४ अंतर्मु, ४ अंतर्मु. ४ अंतर्मु, ४ कोडपूर्व भला पहली | १ नपुसक | १२ वर्ष | २ वर्ष भला १२ वर्ष | १२वर्ष | १२व अंतणु १२ वर्ष १अंतर्नु १२ वर्ष १कोजपूर्व वर्ष ४ कोडपूर्व ४ वर्ष ४ अंतर्ग ४ वर्ष ४ कोडपूर्व अनुबंध | । गमा ३०७ Jain Education Intemational Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११५ मनुष्य में तेइंद्रिय ऊपजै तेहनों यंत्र (११) गमा २० कार की संख्या संपराग द्वार सठाण द्वार लेश्या द्वार दृष्टि द्वार ज्ञान-अज्ञानद्वार योग द्वार उपपात द्वार जघन्य उत्कृष्ट । परिमाण द्वार जघन्य उत्कृष्ट जघन्य । उकृष्ट १२.३ गाऊ १हुंजक ३पहली २सम्यक २नियमा नियमा २वध ओधिक नै ओधिक ओधिक जघन्य | ओधिक चरकृष्ट २ ३ अंतर्भुत अंतर्मुहूर्त १कोठपूर्व आगुल नों। असंखभाग। कोलगर्व अंतर्गत बोजपूर्व असंख्याता ऊग असंख्याता ऊपरी सख्याता ऊपरी पहेक्टो ३पहली ४ जघन्य नै अधिक जघन्य नै जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट २निया अंतर्मुहूर्त अंतर्मुल कोडपून १२.३ ऊगले १काय | कोलपूर्व १अंतर्मुहूर्त १कोडपूर्व आगुल | आंगुल नों अपांग्रभाग असंख भाग असंखाता ऊपजे असण्यात आले संरख्याता उपद १२.३ | टो १९डय ३पहली २सम्यक । नियना उत्कृष्ट अधिक उत्कृष्ट जपना उत्कृष्ट उत्दष्ट असंख्या कप जसंख्याताजन २८ अंतर्नुहल अंतर्मुटून १कामपूर्व कोडपूर्व तमुन १कोपूर्व आगुमन! ३मार असंखभान। ११६ मनुष्य में चउरिद्रिय ऊपजै तेहनों यंत्र (१२) गमा २० द्वार नी संध्या पारमाण द्वार संघाम द्वार | अवगाहना द्वार सठाण द्वार लेश्या द्वार | दृष्टि द्वार ज्ञान-अहान द्वार योग द्वार पापातार जघन्य उत्कृष्ट । ३ १ऐव गाड २सम्बक | नियमा । २नियमा। थ १ २ ३ ओधिक नै ओधिक अंतसूत । कोहणून ओधिक जघन्य | अंगत नमुंडूर्त ओपिक नै उत्कृष्ट १कोजपूरे होशपूर्व १२.३ रूपजे सालारुपारी अनध्याताया गुल न असंखभाग काय १९इल | पहली १मिध्या नियमान काय ४ जपान ओपिक ५जधन्य न जाक जघन्य नै उत्कृष्ट १अंगुहा अंत १कोडपूर्व बटोआंगुल नीला अनव मास भाग कोअपूर्व १३ मुहूर्त कोतपूर्व अगस्ता रूप असंख्याता 0 एखाता की यह हडक २ सभ्यर विथमा | नियमान वध उत्कृष्ट नै रोधिक अंतर्मुहूर्त पूर्व अट जघन्य | अंत हो ! जहां उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट १कोडपूर्व कोर्ट असखारटो अगस्ता सपना ऊपज ११७ मनुष्य में असन्नी तिर्यंच पंचेंद्रिय ऊपजै तेहनों यंत्र (५३) गमा २० द्वार नी नव्या ७ दृष्टि द्वार उभयतद्वार परिमाण अयाजना MONTSTE लेश्या द्वार शा-अज्ञानद्वार योगद्वार जघन्य । उनष्ट वटी | अगुवर्षे मुडव २सम्यक २नियमा । २निया श्वच अधिक ओरिक अधिकन बन्य आहत बस्य नौ अाख काम of अंतनुः २ योजन ३ ओधिक नै उत्कृष्ट डक पहली नियन २वथ काय असं पाग | असंखभाभ अरांच भाग योजन असंख जक पहली १मिथ्या १काय अंत ५. पूर्व कोहपूर्व अंतरले को १चटोअगुलन अशंस भाग गुलना अगंवभाग जघन्य ना स वय असंनभाग अनारस कापी विटो | २सन्थक नियमः । नियमा, उत्कृष्टhter उत्कृष्ट नै जमाय जनों असंख मान । र भर असंखभाग जयराम ३०८ भगवती जोड (खण्ड-६) Jain Education Intemational Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११ संज्ञा द्वार ४ ११ संज्ञा द्वार ४ ४ १२ कषाय द्वार ४ ४ ४ १२ कषाय द्वार ४ ४. १३ इन्द्रिय द्वार ५ ५ ३ 3 १३ इन्द्रिय द्वार ५ ३] पहली १५ समुद्धात द्वार वेदना द्वार २ ३ पहली ३] पहली ३ पहली ३ पहली ३] पहली ३ पहली ११. 43 १४ १५ १६ द्वारका द्वार कषाय द्वार इन्द्रिय द्वार समुदयात द्वार वेदना द्वार वेद द्वार 3 ३] पहली १४ १५ समुद्घात द्वार वेदना द्वार ३. पहली ३] पहली २ २ २ २ २ २ २ र १ नपुंसक नपुंसक १६ वेद द्वार नपुंसक १७ आयु द्वार जघन्य 3 उत्कृष्ट १ नपुंसक अंतर्मुहूर्त ४६ दिन रात १ नपुंसक अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त १ नपुंसक १६ वेद द्वार 919 आयु द्वार जघन्य उत्कृष्ट • नपुंसक अंतर्मुहूर्त ६ गारा 쿠 १] नपुंसक १. नपुंसक ४१ दिन रात 99 अयु द्वार जघन्य उत्कृष्ट [१] [सक अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त ६ भास फोड पूर्व अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त ४१ दिन रात कोड पूर्व ६ मास भला मूंडा १८ अध्यवसाय द्वार असंख्याता मला मूंडा भलाभूंडा मूंडा भला अध्यवसाय द्वारा असंख्याता भला भूंडा मला मूंडा मलाडा अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त मूंडा भला मला भूंडा १६. अध्यवसाय द्वारा असंख्याता मला मूंडा १६ अनुबंध द्वार उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त ४६ दिन जघन्य रात भला मूंडा ४९ दिन रात भलामूंडा अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त मूंडा मला 啊 अनुबंध द्वार जघन्य उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त ६ माम ६ मास १६ अनुबंध द्वार जघन्य उत्कृष्ट कोड पूर्व अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व अंतर्मुहूर्त १ कोडपूर्व अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त ४६ दिन रात कोल पूर्व ६ मास अव० दृष्टि ज्ञान, योग, आयु, अध्य, अनु नाणता पर्याप्त संख्याता दृष्टि ज्ञान नाणत्ता 19 अ०० दृष्टि ज्ञान, योग आयु २ आयु अनुबंध २ आयु, अनुबंध नागतः अ० दृष्टि ज्ञान योग आयु अन्य अनु २ आयु अनुबंध TV मद 2 जघन्य उत्कृष्ट ८ २ २ २ २ जघन्य उत्कृष्ट 120 ~~~~~~ २ भव जघन्य उत्कृष्ट २ २ ~~~~ भय ६ wwwww. ६ ८ ८ www जघन्य काल १ अंतर्मु, १ अंतर्मु १ अंतर्मु, १ अंतर्मु १ अंतर्मु, १ को डपूर्व १ अंतर्ग. १ अंतर्मु " अंतर्मु १ अंतर्मु १ अंतर्मु. १ कोडपूर्व ४६ दिन रात १ अंतर्मु ४५ दिन रात १ अंतर्ग ४६ दिन रात १ कोडपूर्व १ अंत १ अ अंत २० कायसंवेध द्वार जघन्य काल १ अंतर्भु १ अंतर्ग १ कोडपूर्व १ अंतर्मु, १ अंतर्ग ११ " अंतर्भु. १ कोहपूर्व ६१ अंतर्ग ६ मत ६ मास कोहपूर्व जघन्य काल २० कायसंवेध द्वार १ अंत, १ अंत १ अंतर्ग १ अंतर्मु १ अंत भी अख माग १. अंतर्मु] १. अंतर्मु १ अंतर्मु, १ अंतर्ग. १ अंत १ को उपूर्व २० कायसंवेध द्वार 1 | कोडपूर्व १ अंतर्मु, कोडपूर्व अन्तर्मु १ कोडपूर्व पल्य नों असं नाग उत्कृष्ट काल १६६ दिन रात ४ को पूर्व १६६ दिन रात ४ अंतर्मु १६६ दिन रात ४ कोडपूर्व ४ अंतर्मु ४ अंतर्मु ४ अंतर्मु १६६ दिन रात ४ को पूर्व १६६ दिन रात ४ अं १६६ दिन रात ४ कोडपूर्ण ४] कोडपूर्व ४ अंतर्मु ४ को पूर्व उत्कृष्ट काल २४ मास ४ कोडपूर्व ४ अंतर्मु २४ मास ४ कोडपूर्व ४ अतर्ग. ४ कोडपूर्व ४ अंतर्मु. ४ अंतर्मु ४ अंतर्मु ४ कोडपूर्व २४ पास २४ मास २४ मा ४ अंतर्मुहूर्त ४ कोडपूर्व ४ अंतर्मुहूर्त ४ अंतर्ग ४ अंतर्मुहूर्त ४ कोडपूर्व ४ कोडपूर्व ४ अंतर्ग कोडपूर्व उत्कृष्ट काल ४ को पूर्व ३ कोटपूर्व पल्ला नौ असंख भाग ४ कोडपूर्व ४ अं १ कोडपूर्व पल्य न अंसख भाग ४ को उपूर्व ३ कोडपूर्व गल्य न असंख भाग ४ को डपूर्व ४ अंतर्मु कोडपूर्व पत्नी असंख भाग गमा ३०६ Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८ मनुष्य में संख्याता वर्ष नां सन्नी तिर्यंच पंचेंद्रिय ऊपजै तेहनों यंत्र (१४) गमा २० द्वार नी संख्या उपपात द्वार परिमाण द्वार संघयण द्वार| अदगाहना द्वार | संठाण द्वार | लेश्या द्वार दृष्टिद्वार ज्ञान-अज्ञान द्वार योगद्वार उपयोग द्वार जघन्य | जघन्य जघन्य उत्कृष्ट १ २ ओधिक नै ओधिक ओधिक नै जघन्य असंख भजना १अंतर्मुहूर्त १अंतर्मुहूर्त | आंगुल नों असंखभाग भजना १.२.३ ऊपणे १हजार योजन अंतर्मुहूर्त | ओधिक नै उत्कृष्ट ३पल्य संख ३ ३अजना ३भजना १,२.३ ऊपजे आंगुल नों असख भाग १हजार योजन असंख ३पहली |जधन्यन ओधिक |जघन्य नै जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट १मिथ्या १काय अंतर्मुहूर्त | १अंतर्मुहूर्त | १ कोडपूर्व १२.३ ऊपजे २नियमा कोडपूर्व अंतर्मुहूत १ कोडपूर्व आंगुल नों असंख भाग आंगुल नों असंख भाग १हजार ३भजना ३भजना उत्कृष्ट नै ओघिक १अंतर्मुहूर्त | ३पल्य | उत्कृष्ट नै जघन्य । १अंतर्मुहूर्त १अंतर्मुहूर्त | उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट ३ पल्य ३पल्य १२.३ ऊपजे असंख ऊपजे असंख ऊपजे पर्याप्त संखऊपजै आंगुल नों असंख भाग ११६ मनुष्य में असन्नी मनुष्य ऊपजै तेहनों यंत्र (१५) गमा २०द्वार नी संख्या परिमाण द्वार संघयण द्वार | संठाण द्वार लेश्या द्वार | दृष्टि द्वार ज्ञान-अज्ञान द्वार योग द्वार | उपयोग कर उपपात द्वार जघन्य उत्कृष्ट अवगाहना द्वार उत्कृष्ट उत्कृष्ट १ छेवटी पहली १मिथ्या नियमा | १काय ओधिक नै ओधिक | १अंतर्मुहूर्त | १कोडपूर्व ओपिक नै जघन्य १अंतर्मुहूर्त | १अंतर्मुहूर्त ओधिक नै उत्कृष्ट | कोडपूर्व १कोडपूर्व | १२३ ऊपजै असंख्याता ऊपजै । असंख्याता ऊपज संख्याता ऊपरी आंगुल नों असंख माग १२० मनुष्य में संख्याता वर्ष नां सन्नी मनुष्य ऊपजै तेहनों यंत्र (१६) गमा २०द्वार नी संख्या उपपात द्वार परिमाण द्वार संघयण द्वार संठाणद्वार लेश्या द्वार दृष्टि द्वार ज्ञान-अज्ञानद्वार योग द्वार उपयोग अवगाहना द्वार जघन्य | उत्कृष्ट अन तेहना नान उत्कृष्ट १ ४जना ३भजना ओधिकनै ओधिक । औधिक जमन्छ । अंतर्मुहूर्त १अंतर्मुहूर्त ३पल्य १अंतर्मुहूर्त १.२.३ ऊपर सख्याता ऊपजे आंगुल नों असख भाग ओधिकनै उत्कृष्ट पल्य संख्याता ४ भजना १,२,३ ऊपजै पृथक आगुल ५ सौ धनुष्य संख्याता १मिध्या २नियमा । १काया जघन्य नै ओधिक जघन्य नैजधन्य जान्य में उत्कृष्ट १अंतर्मुहूर्त | कोडपूर्व १अंतर्मुहूर्त १अंतर्मुहूर्त १कोडपूर्व १कोडपूर्व १२.३ ऊपजे आंगुल नों असंखभाग आंगुल नों असंख भाग ४भजना भजना उत्कृष्ट नै ओधिक उत्कृष्ट नै जघन्य । उत्कृष्ट नै उत्पष्ट अंतर्मुहूर्त । ३पत्न्य १अतर्मुहूर्त | गर्मुहूर्त १२.० ऊपरी संख्याता ऊपजे धनुष्य धनुष्य ३१० भगवती-जोड़ (खण्ड-६) Jain Education Intemational Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४ | १२ | १३ | १६ संज्ञा द्वार कषाय द्वार इन्द्रिय द्वार समुद्घात द्वार वेदना द्वार वेद द्वार आयु द्वार अध्यवसाय द्वारा नाणत्ता कायसंवेध द्वार जघन्य उत्कृष्ट | असंख्याता | जघन्य | उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट जघन्य काल उत्कृष्ट काल पहली अंतर्मुहूर्त कोडपूर्व | अंतर्मुहर्त | कोहपूर्व १अंतर्मु १अंतर्मु १अंतर्मु १अंतर्मु, | ४ कोडपूर्व ३ कोडपूर्व ३पल्य | ४ कोडपूर्व ४ अंतर्मुहूर्त मुंडा ५पहली ३ अंतर्मुहूर्त कोडपूर्व भला अंतर्मुहूर्त | कोडपूर्व १अंतर्मु.३ पल्य | कोडपूर्व ३ पल्य पर्याप्ता, संख्याता ३पहली अंतर्मुहूर्त | अंतर्मुहूर्त | भलाभूडा | अंतर्मुहूर्त | अंतर्मुहां ६अव० दृष्टि ज्ञान-अज्ञान, योग लेश्या, सगु.आयु अध्य. अनु १अंत १अंतर्मु ४ अंतर्मुहूर्त ४ कोडपूर्व १अंत अंतर्भू अंतर्मुहूर्त ४ अंतर्मु, १अंतर्नु १कोडपूर्व ४ अंतर्मुहूर्त ४ कोडपूर्व भला ४५ २ कोड कोट मूला आयु अनुबंध १कोडपूर्व १अंतर्ग ४कोडपूर्व.३कोडपूर्व ३ पत्य १कोडपूर्द अंत |४कोडपूर्व ४ अंतर्मु १ कोडपूर्व ३पल्य |१कोहपूर्व.३पल्य ७ २० कवाददार समुद्रात द्वार बेदना द्वार वेदद्वार १८ अध्यवसाय द्वार असंख्याता अनुब्ध द्वार आयु द्वार जघन्य उत्कृष्ट नाणत्ता कायसंधद्वार जयन्तकात उत्कृष्ट काल जघन्य उत्कृष्ट जघन्य | उत्कृष्ट पहली | २ । नपुंसक | अंतर्मुह | अंतर्मुहूर्त भला भुंडा | अंतर्मुहूर्त | अंतर्मुहूर्त भंडा १अंतर्मु १अंतर्मु. १अंतर्मु, १अंतर्मु. १अंतर्मु १कोडपूर्व ४ अंतर्मु ४ कोडपूर्व ४ अंतर्मु ४ अंतर्मु, ४ अंतर्मु ४ कोडपूर्व १७ का द्वार कषाय द्वार इन्द्रिय द्वार समुदघात द्वार वेदनाद्वार वेद द्वार k आयुद्वार | अध्यवसाय द्वार अनुबंध द्वार जघन्य | उत्कृष्ट | असंख्याता | जघन्य उत्कृष्ट नाणता कायसंवेध द्वार जपन्य उत्कृष्ट उत्कृष्ट काल केवल २ अंतर्मुहत कोडपूर्व मला अंतर्मुहूर्त कोडपूर्व १अंतर्मु १अंत. अंतर्मु अंतर्मु ४ कोडपूर्व ३ कोडपूर्व ३ पल्य ४ कोडपूर्व ४ अंतर्मुहूर्त ६ केवल वर्जी पृथक मास कोडपूर्व भला भंडा पृथक मास कोतपूर्व १पृथक गास ३ पल्य | १ कोडपूर्व ३ पल्य अव०. आयु, अनु पहली २ ३ । अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त २ मला डा | अंतर्मुहूर्त | अंतर्मुर्त । अव० तेश्या दृष्टि झान-अज्ञान, योग २ । समु, आयु, आय, अनु. २ आर्नु १अंतर्मु ४तर्मुहूर्त ४ कोहपूर्व १ अंतर्मु १अंत ४ अंतर्मुहूर्त ४ अंत १अतर्मु. १कोडपूर्व | ४ आर्मुहू कोडपूर्व भला ६ केवल कोड अब, आयु १कोडपूर्व १अत | कोडपूर्व ३ कोडपूर्व ३ पल्य १ कोडपूर्व १अंत कोडपूर्व ४ अंआ १कोडपूर्व ३पल्य १कोडपूर्व ३ पल्य गमा ३११ Jain Education Intemational Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२१ मनुष्य में असुरकुमार ऊपजै तेहनों यंत्र (१७) गमा २० द्वार नी संख्या संघयण द्वार अव० भवधारणी अव० उत्तर वै० संडाण लेश्या द्वार दृष्टि द्वार झान-अज्ञान द्वार | योग द्वार जपयोग द्वार । उपपात द्वार परिमाण द्वार जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट मूल दैकिय ३ असंघवणी ४ पहली | ३ ३नियमा। भजना ३ २ १ २ ३ ओधिक नै ओधिक पृषक मास | कोडपूर्व । १२.३ । संख्याता ओधिक नै जघन्य | पृथक मास | १पृथक मास ऊपज ओधिक उत्कृष्ट १कोडपूर्व १कोड़पूर्व आंगुल नो সময় মাস आंगुल नों संख्याता १लास योजन | समचौरंस नाना प्रकार भाग असंघयणी हाथ ३ ३नियमा ३भजना। ३ ४ जघन्य नै ओधिक पृथक मास ५ जघन्य नै जघन्य पृथक् मास जमय उत्कृष्ट | कोडपूर्व कोडपूर्व । १२.३ । संख्याता | पृमक मास ऊपजै । ऊपजै पकोडपूर्व आंगुल नो असंख माग आंगुल नों संख्याता भाग १लाख योजन नाना प्रकार |समचौरंस ७ १लाख उत्कृष्ट न ओधिक|पृथक मास | १कोडपूर्व । १२.३ [संख्याता | असंघयणी | भांगुल नो उत्कृष्ट नै जघन्य | पृथक् भास | पृथक मास ऊपजै । असंख भाग उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट १ कोडपूर्व | कोहपूर्व आंगुल नों संख्याता भाग योजन समचौरंस प्रकार १२२ मनुष्य में नवनिकाय ऊपजै तेहनों यंत्र (१८.२६) ६ गमा २० द्वार नी संख्या उपपातद्वार संघयणद्वार अव० भक्धारणी अव० उत्तर ३० संताण लेश्या द्वार | दृष्टि द्वार ज्ञान-अज्ञान द्वार योग द्वार | उपयोग कर परिमाण द्वार जधन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट जपच । उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट मूल ३ १ संख्याता | असंधपणी हाथ आंगुल नों जाना ४ पहली ३ नियमा ३भजना। ३ । ओधिक + ओधिक पथक मास कोडपुट ओधिक जघन्य | पृषक मास | पृथक मास आधिकनै उत्कृष्ट पकोडपूर्व १को डपूर्व आगुल में अशंख भाग १लाख योजन । समदौरस । ३ असंघवणी | हाथ ४पहली ३ नियमा। ३ भजना । ३ ४ ५ जघन्य अधिक पृथक मास | वोडपूर्व | १२३ राण्याता व जघन्य |१पृथक् मास पृथक मास ऊपजे । जघन्य उत्कृष्ट १योडपूर्व । | १कोडपूर्व आंगुल नों असंखभाग अंगुलना सध्याता भाग नाना प्रकार योजन 1 समचौरस हा नियमा नियमा३ । उत्कृष्ट ३ ओधिक पृथक् मासकोअपूर्व | १२ | सख्याता । असंघधणी ८. उत्कृष्ट जघन्यवृषक मास पृथकुमास ऊपजे ऊपजे सकृष्ट नै उत्कृष्ट योडपूर्त । कोहपूर्व आंगुल नौ । असंखभाग आगुलनों सख्याता १लाख योजन नाना ! ४ पहली प्रकार समचौरस १२३ मनुष्य में व्यंतर ऊपजै तेहनों यंत्र (२७) गमा २० द्वार नौ संख्या रूपयन हार | अव० भदधारणी अव० उतर. संठाण लेश्याद्वारदाटदार शान-अज्ञान द्वार योग द्वार उपयोग उपपात द्वार । परिमाण द्वार उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट जन्य क्रिय हाथ ४हलो ३ ३नियमा ३मजना २ १ ओधिक नै ओधिक पृथक मास | १कोजपूर्व १२.३ २ ओधिक नै जघन्य | पृथक मास | १पृथक मास उपजे ३ ओधिक नै लत्कृष्ट १कोडपूर्व । १कोडपूर्व संख्या | असंध्यणी | आंगुलों ऊपजे। असंख भाग आंगुल नौ सख्याता लाख योजन | समचौरस प्रकार भाग संख्याता | असंघाणी हाथ जाना ४ पहली निवगा भजना। ३ । जधन्य नै ओधिक पृथक् मासा कोडपूर्व । १२.३ जघन्य जघन्य पथक रास | पृथक मास उपजै जघन्य नै उत्कृष्ट १कोडपूर्व | कोडपूर्व अंगुल नों असंखभाग आं गुलनों संरख्याता नाव योजन ५ ६ समचौरस | भाग ७ उत्कृष्ट ओधिक पथक मास कोडपूर्व | १२.३ संख्या असणी उत्कृष्ट नै जघन्यपृथक मास | १पृथक मास उपजे । अपने उत्कृष्ट ने उत्कृष्ट १ कोडपूर्व झोडपूर्व अंगुल नोंहाथ असं भाग आगुल नो सत्याता भाग लास योजन । समदौरस | प्रकार ३१२ भगवती-जोड़ (खण्ड-६) Jain Education Intemational Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११ संज्ञा द्वार ४ ४ * 99 संज्ञा द्वार ४ * « * 99 संज्ञा द्वार ४ १२ कषाय द्वार ४ ४ ཚ १२ कषाय द्वार ४ ܡ ४ 93 इन्द्रिय द्वार ५ α ५ क 93 इन्द्रिय द्वार ५ ५ १२. १३ कषाय द्वार इन्द्रिय द्वार ४ ५. र्भ ५ पूर्व १४ १५ समुद्घात द्वार वेदना द्वार ५. पहली ५. पहली ५. पहली ५] पहली ५. पहली ५ पहली 맘 १५ समुद्घात द्वार वेदना द्वार 8 ५] पहली २ ५] पहली २ ५] पहली २ २ २ ¥ १५ समुद्धात द्वार वेदना द्वार २ २ २ २ २ २ २ १६ वेद द्वार ३ २ स्त्री पुरुष २ स्त्री पुरुष २ स्त्री पुरुष १६ वेदं द्वार ३ २ स्त्री पुरुष २ स्त्री पुरुष २ स्त्री पुरुष १६ वेद द्वार 3 २ स्त्री पुरुष २ स्त्री पुरुष २ स्त्री पुरुष आयु द्वार जघन्य उत्कृष्ट १० हजार वर्ष १० हजार वर्ष १] सागर जाझो जघन्य १० हजार वर्ष १७ आयु द्वार १० हजार वर्ष २ पल्य देसूण जघन्य १ सागर जाझो १० हजार वर्ष १० हजार वर्ष १ सागर जाझो १ पल्य उत्कृष्ट २ पल्य देसूण I १० हजार 43 आयु द्वार वर्ष २ पल्य देसूण उत्कृष्ट १ पल्य १८ अध्यवसाय द्वार असंख्याता १० हजार १० हजार वर्ष वर्ष भला भूंडा भला मूंडा भला मूंडा अध्यवसाय द्वार असंख्याता मला भूंडा भला मूंडा भला मूंडा भूडा भला मुंडा १६ अनुबंध द्वार जघन्य भूंडा १० हजार वर्ष १० हजार वर्ष १ सागर जाझो १८. अध्यवसाय द्वार असंख्याता १० हजार वर्ष १६ अनुबंध द्वार जघन्य उत्कृष्ट २पल्य देसू उत्कृष्ट जघन्य १ सागर जानो १० हजार वर्ष १० हजार १० हजार वर्ष १० हजार वर्ष १पल्य १ सागर जानो १० हजार वर्ष अनुबंध द्वार २ पल्य सूण २ पल्य देसू उत्कृष्ट १पल्य १० हजार वर्ष १ पल्य नाणता 。 २ आयु. अनुबंध २ आयु अनुबंध नाणता 0 २. आयु, अनुबंध २ आयु अनुबंध नाणता 0 २ आयु अनुबंध २ आयु अनुबंध जघन्य २ www २ 222 २ २ २ ~~~ २ RAJA २ २ २. २ जघन्य उत्कृष्ट २ भव ૩ २ ~~~~~~ ...... २ २ उत्कृष्ट २ भव ~~ ८ ८ ~~. www 5 ५ ८ ८ ८ ६ ६ जघन्य उत्कृष्ट ८ ८ भव ८ ८ # ६ C २० कायसंवेध द्वार जघन्य काल १० हजार वर्ष १ पृथक् गास १० हजार वर्ष १ पृथक मास १० हजार वर्ष १ कोडपूर्व १० हजार वर्ष १ पृथक मास १० हजार वर्ष १ पृथक् मास १० हजार वर्ष १ कोडपूर्व १] सागर जाझो १ पृथक् मास १ सागर जाझो १ पृथक् मास १ सागर जानो १ कोडपूर्व जघन्य काल १० हजार वर्ष १ पृथक् मास १० हजार वर्ष १ पृथक् मास १० हजार वर्ष १ कोडपूर्व १० हजार वर्ष १ पृथक मास १० हजार वर्ष १ पृथक् मास १० हजार वर्ष १ कोडपूर्व २० कायसंवेध द्वार २ पल्य देसूण १ पृथक्मास २ पल्य देसूण १ पृथक्मास २ पल्य देसूण १ को पूर्व जघन्य काल उत्कृष्ट काल ४ सागर जाझो ४ कोडपूर्व ४] सागर जाझो ४ पृथक् मास ४ सागर जाझो ४ कोडपूर्व [१] [१] पृथमास [१]पा १ पृथ १ पल्य १ कोडपूर्व ४० हजार वर्ष ४ कोडपूर्व ४० हजार वर्ष ४ पृथक मास ४० हजार वर्ष ४ कोडपूर्व ४ सागर जाझो ४ कोडपूर्व ४ सागर जाझ ४ पृथक् मास ४ सागर जाझो ४ कोडपूर्व उत्कृष्ट काल ८ पल्य देसूण ४ कोडपूर्व ८ पल्य देसूण ४ पृथक्मास ८ पल्य देसूण ४ कोडपूर्व १० हजार वर्ष १ पृथक मास १० हजार वर्ष १ पृथक् मास १० हजार वर्ष पूर्व ४० हजार वर्ष ४ कोडपूर्व ४० हजार वर्ष ४ पृथक् मास ४० हजार वर्ष ४ कोडपूर्व १० हजार वर्ष १ पृथक मास १० हजार वर्ष १ पृथक् नास १० हजार वर्ष १ कोडपूर्व ८ पल्य देसूण ४ कोडपूर्व ८] पल्य देसूण ४ पृथक् मास ८ पल्य देसूण ४ कोटपूर्व २० कायसंध द्वार उत्कृष्ट काल ४ मल्य ४ को पूर्व ४ पल्य ४ पृथक्रमास ४ पल्य ४ को डपूर्व ४० हजार वर्ष ४ कोडपूर्व ४० हजार वर्ष ४ पृथक मास ४० हजार वर्ष ४ कोडपूर्व ४] पल्य ४ कोडपूर्व ४ पल्य ४ पृथक् मारा ४ पस्य ४ कोडपूर्व गमा ३१३ Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४ मनुष्य में ज्योतिषी ऊपजै तेहनों यंत्र (२८) गमा २० द्वार नी संख्या I am m | 0 এt www 9 २ 3 ४ ५ ६ |-~|-|DOW २ ३ ४ ५ ६ गमा २० द्वार नीं संख्या 19 ५ ६ २ ३ ओधिक नै ओधिक १ पृथक् मास V ५ ६ ओधिक मैं जघन्य १ पृथक मास ओधिक नै उत्कृष्ट १ कोडपूर्व जघन्य नै ओधिक जघन्य नै जघन्य ३१४ जघन्य नै उत्कृष्ट उत्कृष्ट नै ओधिक उत्कृष्ट मैं जघन्य उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट १ कोडपूर्व जघन्य जघन्य नै ओधिक जघन्य नै जघन्य १ पृथक मारा १ पृथक मास १ कोडपूर्व जघन्य नै उत्कृष्ट १ पृथक् मास १ पृथक् मास १२५ मनुष्य में प्रथम सौधर्म देवलोक नां ऊपजै तेहनों यंत्र (२६) ओधिक नै ओधिक १ पृथक मास ओधिक नै उत्कृष्ट १ कोडपूर्व ओधिक नै जघन्य १ पृथक् मास गमा २० द्वार नौ संख्या जघन्य उपपात द्वार जघन्य नै ओधिक जघन्य नै जघन्य उत्कृष्ट नै ओधिक १ पृथक् मास उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट १ कोडपूर्व १ पृथक् मास १ पृथक् मास १ कोडपूर्व उत्कृष्ट नै जघन्य १ पृथक् मास जघन्य ओधिक नै ओधिक १ पृथक् मास १ पृथक मास १ कोडपूर्व ओधिक नै जघन्य ओधिक मैं उत्कृष्ट २ परिमाण द्वार उत्कृष्ट जघन्य १ १ कोडपूर्व १२.३ पृथक मास ऊपजै १ कोडपूर्व २ उपपात द्वार परिमाण द्वार उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट संख्याता ऊपजै १.२.३ १ कोडपूर्व १ पृथक् मास ऊपजै १ कोडपूर्व १] पृथक् मास १ पृथक मास जघन्य नै उत्कृष्ट १ कोडपूर्व उत्कृष्ट नै ओधिक १ पृथक् मास ६ उत्कृष्ट नै जघन्य १ पृथक मास ६ उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट १ कोडपूर्व १२.३ १ कोडपूर्व १ पृथक मास ऊपजै १ कोडपूर्व १ कोडपूर्व १२.३ १ पृथक् मास ऊपजै १ कोडपूर्व १ कोडपूर्व १ पृथक मास १ कोडपूर्व १] कोडपूर्व १२.३ १ पृथक मास ऊपजै १ कोडपूर्व १२.३ ऊपजै १२.३ १] कोडपूर्व १ पृथक् मास ऊपजै १] कोडपूर्व भगवती जोड़ (खण्ड-६) उत्कृष्ट १२.३ १] कोडपूर्व १ पृथक मास ऊपजै १ कोडपूर्व १ कोडपूर्व १ पृथक मास १] कोडपूर्व संख्याता ऊपजै २ उपपात द्वार परिमाण द्वार उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट संख्याता ऊपजै संख्याता ऊपजै संख्याता ऊपजै १२.३ ऊपजै संख्याता ऊपजै संख्याता ऊपजै ३. संघयण द्वार { असंघयणी १२६ मनुष्य में दूसरे ईशान देवलोक नां ऊपजै तेहनों यंत्र (३०) असंघयणी संख्याता ऊपजै असंघयणी ३ संघयण द्वार ६ असंघयणी असंघवणी असंघयणी अव० भवधारणी जघन्य असंघयणी आंगुल न असंख भाग संख्याता असंघयणी ऊएजैं आंगुल न असंख भाग आंगुल न असंख भाग जघन्य आंगुल न असंख भाग आंगुल न अराख भाग अव० भवधारणी आंगुल न असंख भाग आंगुल न असंख भाग उत्कृष्ट आंगुल न असंख भाग ७] हाथ आंगुल न असंख भाग ७ हाथ ३ संघयण द्वार अव भवधारणी जपन्य ६ असंघयणी ७ हाथ उत्कृष्ट हाथ ७ हाथ उत्कृष्ट ७ हाथ ७] हाथ ४ ४ ४ अव० उत्तर वै० जघन्य आंगुल न संख्याता भाग आंगुल भ संख्याता भाग आंगुल न संख्याता भाग जघन्य आंगुल न संख्याता भाग अव उत्तर पै० उत्कृष्ट १ लाख योजन आंगुल न संख्याता भाग आंगुल न संख्याता भाग आंगुल न संख्याता भाग उत्कृष्ट १ लाख योजन आंगुल न संख्याता भाग १ लाख योजन आंगुल न संख्याता भाग अव० उत्तर वै जपन्य १ लाख योजन १ लाख योजन १ लाख १ योजन समचौरंस उत्कृष्ट १ लाख योजन १ लाख योजन १ लाख योजन मूल ५ संठाण ६ वैक्रिय समचौरंस १ समचौरंस मूल १ समचौरस मूल ५ संठाण ६ प्रकार नाना प्रकार १ समचौरंस नाना प्रकार १ नाना समचौरंस प्रकार १ समचौरस १ नाना समचौरंस प्रकार १ समचौरस वैक्रिय नाना प्रकार ५ संठाण ६ वैक्रिय नाना प्रकार नाना प्रकार नाना ६ लेश्या द्वार ६ तेजु १ तेजु १ तेजु ६ लेश्या द्वार ६ १ तेजु १ तेजु १ तेजु तेजु یا १ तेजु दृष्टि द्वार 3 ३ ३ 19 दृष्टि द्वार ३ ३ ३ ६ लेश्या द्वार दृष्टि द्वार ६ ३ १ तेजु 3 3 ३. 3 ८ ज्ञान-अज्ञान द्वार ५ ३ नियमा ३ नियमा ३ नियमा ५ ३ नियमा ३ नियमा ३ नियमा ३ ज्ञान-अज्ञान द्वार ३ नियमा ३ निवगा ३ नियमा ३ नियमा ३ ३. नियमा ३ नियमा ३ नियमा ज्ञान-अज्ञान द्वार ५ ३ नियमा ३ नियमा ३ ३ नियमा ३. नियमा ३ नियमा १० योग द्वार उपयोग २ 3 3 3 ३ योग द्वार ३ ३ 3 ३ २ 3 २ 90 उपयोग २ २ योग द्वार उपयोग २ 1. २ | ~ Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११ संज्ञा द्वार ४ 3 K ४ संज्ञा द्वार ४ Y 99 द्वार ४ १२ कषाय द्वार ४ K 30 १२ कषाय द्वार * 36 १२ कषाय द्वार ४ ར * १३ इन्द्रिय द्वार ५ ५ ५ १३ इंन्द्रिय द्वार ५ ५ १३ इन्द्रिय द्वार ५ ५ कई ५ १४ समुद्घात द्वार ७ ५. पहली ५] पहली ५ पहली ५ पहली ५] पहली ५. पहली ५. पहली १५ वेदना द्वार ५. पहली २ ५. पहली २ २ १४ १५ समुद्घात द्वार वेदना द्वार वेद द्वार 19 २ २ २ १४ १५ समुद्धात द्वार वेदना द्वार २ २ २ १६ वेद द्वार 3 रे २ स्त्री. पुरुष २ स्त्री. पुरुष २ स्त्री. पुरुष 3 २. स्त्री, पुरुष २ स्त्री. पुरुष २ स्त्री पुरुष १६ वेद द्वार ३ २ स्त्री. पुरुष २ स्त्री. पुरुष २ स्त्री. पुरुष 919 आयु द्वार जघन्य अपपाव पल्य अथपाव १ लाख वर्ष १ पल्य १ लाख वर्ष १ पल्य १पल्य आयु द्वार जघन्य २ सागर उत्कृष्ट जानो अघपाव पल्य १पल्य १ लाख वर्ष २ सागर जानी उत्कृष्ट २ सागर १ पल्य आयु द्वार जघन्य उत्कृष्ट २ सागर जानो २ सागर १पल्य १पल्य जानों जाझी २ सागर जाझो १८. अध्यवसाय द्वार असंख्याता भला मूंडा भला मूंडा भला मूंडा मला मूंडा मला मूंडा भला मूंडा 92 अध्यवसाय द्वार असंख्याता असंख्याता भला मूंडा अध्यवसाय द्वार भला मूंडा भला भूंडा 1 जघन्य अघपाव पल्य अनुबंध द्वार अघपाव १६ १ पल्य १ लाख वर्ष जघन्य १ पल्य १ पल्य अनुबंध द्वार उत्कृष्ट २ सागर १पल्य १ लाख वर्ष जघन्य १ पल्य जाझो उत्कृष्ट १ पल्य जाझो जानो अघपाय पल्य १ लाख वर्ष अनुबंध द्वार उत्कृष्ट २ सागर १ पल्य २ सागर २ सागर जाझो १ पल्य जाझो २ सागर जानो नाणत्ता ० २ आयु, अनुबंध २ आयु अनुबंध नाणत्ता . आयु अनुबंध २ आयु अनुबंध नाणता २ आयु. अनुबंध २ आयु अनुबंध जघन्य उत्कृष्ट २ २ २ २ ~~~ ~~ २ २ २ २ भव २ N N N २ २ जघन्य उत्कृष्ट र ww. २ ८ L २ भव भव ८ C जघन्य उत्कृष्ट ཐ་ཐ་ཐ ५ 5 ८ ...... L 5 L जघन्य काल ८ ८ २० कावसंवेध द्वार अधपाव पल्य १ पृथक मास अपाव पल्य १ पृथक मास पादप १ को पूर्व पाप अधपाप अथपाव पल्य १ कोडपूर्व १ पल्य १ लाख वर्ष १ पृथक्मारा [१] पल्य १ लाख वर्ष १ पृथक्रमास १ पल्य १ लाख वर्ष १ कोडपूर्व पृथक मास १ पृथक मास २ जघन्य काल १ पल्य १ पृथक मारा १ पल्य १ पृथक मास १ पल्य १ कोडपूर्व ११ पृथक मारा [१]पल्य १ पृथक मास १ पल्य १ कोडपूर्व [२] सागर १ पृथक्मास २ सागर १ पृथक्मास सागर १ को पूर्व २० कायसंवेध द्वार जघन्य काल १ पल्स जाओ १ पृथक मास १ पल्य जाझ १ पृथक मास १ पल्य जाझ १ कोडपूर्व उत्कृष्ट काल १ पल्य जानो १ पृथक मास १पत्य जाझो १ पृथक मास १ पल्य जाझी १ कोडपूर्व ४ पल्य ४ लाख वर्ष ४ कोडपूर्व ४ पल्य ४ लाख वर्ष ४ पृथक्मास ४ पल्य ४ लाख वर्ष ४ कोडपूर्व २ सागर जाझो १ पृथक्मास २ सागर जाझो १ पृथक्मास २ सागर जाझो १ को पूर्व अर्थ पल्य अर्ध पल्य अर्थ पत्य ४ पल्य ४ लाख वर्ष ४ कोडपूर्व ४ पल्य ४ लाख वर्ष ४ पृथक मास ४ पल्य ४ लाख वर्ष ४ को पूर्व ४] कोडपूर्व ४ पृथक् मास ४ कोडपूर्व उत्कृष्ट काल ८ सागर ४ कोडपूर्व ८ सागर ४ पृथक्मास ८. सागर ४ कोडपूर्व ४ पल्य ४ पल्य २० कायसंवेध द्वार ४] कोडपूर्व ४ पृथक मास ४] कोडपूर्व सागर ४ कोडपूर्व सागर ४ पृथक् मास ८ सागर ४ कोडपूर्व उत्कृष्ट काल ८] सागर जाझो ४ कोडपूर्व ८ सागर जाझो ४ पृथकमास ८] सागर जाझो ४ कोडपूर्व ४ पल्य जाझो ४ कोडपूर्व ४ पल्य जानो ४ पृथक मास ४ पल्य जाझो ४ कोडपूर्व ८ सागर जाझो ४ कोडपूर्व ८] सागर जाझो ४ पृथक मास ८. सागर जानो ४ कोडपूर्व गमा ३१५ Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२७ मनुष्य में तीसरे सनतकुमार देवलोक नां ऊपजै तेहनों यंत्र (३१) गमा २०द्वार नी संख्या संघयण द्वार अव० भवधारणी अव० उत्तर वै० संठाण ६ लेश्या द्वार | दृष्टि द्वार ज्ञान-अज्ञान द्वार योग द्वार उपयोग द्वार उपपात द्वार | परिमाण द्वार उत्कृष्ट | जघन्य उत्कृष्ट जघन्य जघन्य | उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट । मूल ६हाथ १पदम आंगुल नों असंख भाग आंगुल नों संख्याता ओधिक ओधिक/१पृथक वर्ष १कोळपूर्व । १.२.३ | १२.३ | संख्याता | असंघयणी ओधिक नै जघन्य | पृथक वर्ष । | १पृथक वर्ष | ऊपजै ऊपजै ओधिक नै उत्कृष्ट १कोडपूर्व। | १कोडपूर्व | १लास योजन | समचौरंस नाना प्रकार | ३ ३निषमा | ३ नियमा भाग ६हाथ १पदम । ३ ४ जघन्य नै ओधिक | चकवई जघन्य नै जघन्य |१पृथक वर्ष ६ जघन्य नै उत्कृष्ट | कोडपूर्व १कोड़पूर्व । १२.३ | १पृथक वर्ष | ऊपजै १कोडपूर्व संख्याता | असंघयणी ऊपजे आंगुल नों। असंखभाग ३नियमा। ३नियमा आंगुल नों संख्याता भाग १लाख १ योजन | समधौरस नाना । प्रकार ३ ३नियमा नियमा ३ उत्कृष्ट नै ओधिक पृथक वर्ष १कोडपूर्व । १२.३ उत्कृष्ट नै जघन्य १पृथक वर्ष १पृथक वर्ष| ऊपजै उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट १ कोडपूर्व | कोडपूर्व संख्याता | असंधयणी ऊपज आंगुल नों असंख भाग आंगुल नों संख्याता भाग १लाख योजन | समारंस नाना । प्रकार १ १२८ मनुष्य में चौथे माहेन्द्र देवलोक नां ऊपजै तेहनों यंत्र (३२) गमा २० द्वार नी संख्या | संघयण द्वार | अव० भवधारणी अव० उत्तर वै० संठाण लेश्या द्वार दृष्टि द्वार ज्ञान-अज्ञान द्वार योग द्वार उपयोग पर उपपात द्वार परिमाण द्वार जघन्य । उत्कृष्ट | जघन्य । | उत्कृष्ट जघन्य । उत्कृष्ट । जघन्य उत्कृष्ट | मूल | वैक्रिय १ | हाथ नाना | संख्याता | असंघयणी ऊपजे आंगुल नों असंख भाग आंगुल नों संख्याता । १लाख योजन ओधिक नै ओधिक धक वर्ष १कोडपूर्व । १२.३ ओधिक जघन्य|पृथक् वर्ष | पृथक वर्ष ऊपजे ओधिक नै उत्कृष्ट कोडपूर्व । |१कोड़पूर्व १ समचौरंस १पदम । ३ नियमा | ३ नियमा ३ | भाग | असंघयणी हाथ आंगुल नों असंख भाग जघन्यन ओधिक पृथक वर्ष । १कोम्पूर्व 1 १२३ | संख्याता जघन्य नै जघन्य |१पृथक वर्ष | पृथक वर्व ऊपजे । जघन्य नै उत्कृष्ट | कोडपूर्व १कोडपूर्व १लाख योजन | समचौरस | नाना प्रकार १पदम । ३ ३ निथमा | ३ निथमा आंगुल नों संख्याता भाग f | १२३ संख्याता | असंधयणी हाथ १पदम । ३ नियमा | ३नियमा उत्कृष्ट नै ओधिक पृथक वर्ष उत्कृष्ट नै जघन्य | १पृथक वर्ष उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट १ कोडपूर्व १कोडपूर्व १पृथक वर्ष | ऊपज १कोडपूर्व आंगुलनों असंख भाग आंगुलन संख्याता भाग १लाख योजन | समचौरस नाना प्रकार ऊपजै १२६ मनुष्य में पांचवें ब्रह्म देवलोक नां ऊपजै तेहनों यंत्र (३३) गमा २० द्वार नी संख्या उपपात द्वार परिमाण द्वार संघयण द्वार अव० भवधारणी अव० उत्तर वै० संठाण लेश्या द्वार दृष्टि द्वार | ज्ञान-अज्ञान द्वार योग द्वार उपयोग उत्कृष्ट | जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट जघन्य । उत्कृष्ट मूल । किय असंघयणी १ १पदन | ३ ३नियमा ३नियमा | | ओधिक नै ओधिक पृथक वर्ष | कोडपूर्व | १२.३ ओधिक जघन्य | पृथक वर्ष | पृथक वर्ष ऊपज ओधिक नै उत्कृष्ट १ कोळपूर्व १कोडपूर्व संख्याता ऊप नाना प्रकार आंगुल नों असंख भाग आंगुल नौ । १लाख संमाता । योजन भाग समचौरंस ४ असंघयणी ५हाथ १पद्म ३ ३नियमा | ३नियमा | ३ ३ जघन्य नै ओधिक १पृथक वर्ष | कोडपूर्व । जघन्य नै जघन्य १पृथक वर्ष | पृथक वर्ष जघन्य नै उत्कृष्ट १कोडपूर्व |१कोडपूर्व १२.३ ऊप संख्याता ऊपजै आंगुल नों असंखभाग आंगुल नों संख्याता १लाख योजन नाना प्रकार ६ भाग | असंघयणी ५हाथ १पदम आंगुल नों असंख भाग | १लाख योजन | समचौरस ३ उत्कृष्ट नै ओधिक १पृथक वर्ष | १कोडपूर्व । १२.३ उत्कृष्ट नै जघन्य |पृथक वर्ष | १पृथक वर्ष ऊपजे सत्कृष्ट नै उत्कृष्ट १ कोडपूर्व | १कोडपूर्व नाना प्रकार ३ नियमा | ३ नियमा संख्याता ऊपजे ३ ।। आंगुल नों संख्याता भाग ३१६ भगवती-जोड़ (खण्ड-६) Jain Education Intemational Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कवाय द्वार इन्द्रिय द्वार समुदधात द्वार| वेदना द्वारवेद द्वार अध्यवसाय द्वार अनुबंध द्वार नाणत्ता कायसंवैध द्वार आयुद्वार जघन्य | उत्कृष्ट असंख्याता जघन्य उत्कृष्ट जघन्य जघन्य काल उत्कृष्ट काल ५पहली । २ पुरुष २सागर | सागर मला रसागर|सागर २सागर पृथक वर्ष २सागर १पृथक वर्ष २सागर १कोडपूर्व २८ सागर ४ कोडपूर्व २८ सागर ४ पृथकवी २८ सागर ४ कोडपूर्व ५पहली | २ | पुरुष | सागर | सागर बला रसागर २सागर २सागर १पृथक वर्ष सागर १पृथक वर्ष २सागर १कोडपूर्व ८ सागर ४ कोडपूर्व ८ सागर ४ पृथक वर्ष ८ सागर ४ कोडपूर्व अनुबंध ५पहली । २ पुरुष | सागर | सागर भला सागर सागर आयु ७ सागर १पृथकदर्य ७ सागर १ पृथकवर्व ७ सागर १कोडपूर्व २८ सागर ४ कोडपूर्व २८ सागर ४ पृथक वर्ष २८ सागर ४ कोडपूर्व अनुबंध संज्ञा द्वार कवाय द्वार | इन्द्रिय द्वार | समुद्घात द्वार वेदना द्वार | वेद द्वार आयु द्वार अध्यवसाय द्वारा अनुबंध द्वार नाणत्ता कायसंवेध द्वार जघन्य उत्कष्ट असंख्याता जघन्य उत्कष्ट जघन्य | उत्कृष्ट जघन्यकाल उत्कृष्ट काल २ पुरुष मला २सागर | सागर जाझी जाझो |२सागरासागर जाझी जाझो सागर जाझोपृथक वर्ष २सागर जाझो१पृथक वर्ष २सागर जाझो१कोडपूर्व २८सागर जाझो ४ कोडपूर्व २८सागर जाओ४ पृथकवर्ष २८सागर जाझे ४ कोडपूर्व ५पहली २सागर २सागर जामो | जानो २सागर जामो २सागर जाझो २सागर जाझो १पृथक वर्ष २सागर जाझो १ पृथक वर्ष २सागर जाझो १कोडपूर्व सागर जाझो ४ कोडपूर्व सागर जाझो ४ पृथक वर्ग सागर जाझो ४ कोडपूर्व अनुबंध ५पहली मला |७ सागर | सागर ७सागर जाझो ७सागर जाझो ७ सागर जाझो १पृथकवर्ष ७ सागर जाझो १पृथकवर्ष ७ सागर जाझोपकोडपूर्द | २८ सागर जानो ४ कोडपूर्व २८ सागर जाझो ४ पृथक वर्ष २८ सागर जाओ४ कोडपूर्व अनुबंध २० कायसंवेधद्वार कवायद्वारा इन्द्रिय द्वार समुदधात द्वार वैद द्वार | १९ अध्यवसाय द्वार अनुबंध द्वार असंख्याता | जघन्य | उत्कृष्ट आयु द्वार नाणत्ता जधन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट जपन्यकाल उत्कृष्ट काल १पुरुष सागर | सागर भला |सागर | सागर चूंडा "सागर १पृथक वर्ग ७ सागर पृथक वर्ष ७ सागर १ कोडपूर्व ४० सागर ४ कोडपूर्व ४० सागर ४ पृथकवर्ष ४० सागर ४ कोडपूर्व पहली पुरुष ७सागर साग सागर ७सागर ७सागर ७सागर पृथक वर्ष "सागर पृथक वर्ष ७सागर १कोडपूर्व २८ सागर ४ कोडपूर्व २० सागर ४ पृथकवर्ष २८ सागर ४ कोडपूर्व १पुरुष |सागरासागर १० सागर। सागर * सागर पृथपर्व सागर १पृथकवई सागर १कोडपूर्व ४० सागर ४ कोडपूर्व ४० सागर ४पृथदर्य ४० सागर ४ कोडपूर्व गमा ३१७ Jain Education Intemational Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३० मनुष्य में छठे लान्तक देवलोक नां ऊपजै तेहनों यंत्र (३४) गमा २० द्वार नीं संख्या |~~~ | DUN 3 ४ ५ ६ ७ ६ २ ३ ४ ५ ६ ७ १ t उत्कृष्ट में उत्कृष्ट १ कोडपूर्व गमा २० द्वार नी संख्या जघन्य ओधिक मैं ओधिक १ पृष्थक वर्ष ओधिक नै जघन्य १ पृष्थक वर्ष १ कोडपूर्व ओधिक मैं उत्कृष्ट 4 जघन्य नै ओधिक जघन्य नै जघन्य २ ४. ५ ६ १ पृथक् वर्ष १ पृथ्थक वर्ष जघन्य में उत्कृष्ट १ कोडपूर्व उत्कृष्ट नै ओधिक १ पृथक् वर्ष 19 उपपात द्वार उत्कृष्ट नै जघन्य १ पृथक् वर्ष गमा २० द्वार नौ संख्या ओधिक में ओधिक १ पृथक् वर्ष ओधिक नैं जघन्य १ पृथक् वर्ष ओधिक मैं उत्कृष्ट १ कोडपूर्व जघन्य जघन्य नै ओधिक १ पृथक वर्ष जघन्य नै जघन्य १ पृथक वर्ष जघन्य नै उत्कृष्ट १ कोडपूर्व उत्कृष्ट नै ओधिक १ पृथक् वर्ष उत्कृष्ट नै जधन्य १ पृथक वर्ष उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट १ कोडपूर्व १३१ मनुष्य में सातवें शुक्र देवलोक नां ऊपजै तेहनों यंत्र (३५) १ उपपात द्वार ३१८ २ परिमाण द्वार उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट १ कोडपूर्व संख्याता ૧૨.૩ ऊपजै १ पृथक वर्ष ऊपजै १ कोडपूर्व जघन्य ओधिक नै ओधिक १ पृथकवर्ष ओधिक ने जघन्य १ पृथकवर्ष ओधिक नै उत्कृष्ट १ कोडपूर्व जघन्य नै जघन्य जघन्य नै ओधिक १ पृथक् वर्ष १ पृथकवर्ष जघन्य नै उत्कृष्ट १ कोडपूर्व उत्कृष्ट में ओधिक १ पृथक वर्ष ५ उत्कृष्ट नै जघन्य १ पृथक्वर्ष ६ उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट १ कोडपूर्व १ कोडपूर्व १ पृथक् वर्ष १ कोडपूर्व १ कोडपूर्व १ पृथक वर्ष १ कोडपूर्व उत्कृष्ट १ कोडपूर्व १ पृथक् वर्ष १ कोडपूर्व उपपात द्वार उत्कृष्ट १ कोडपूर्व १ पृथक वर्ष १ फोडपूर्व १ कोडपूर्व १ पृथक् वर्ष १ कोडपूर्व १ कोडपूर्व १ पृथक वर्ष १ कोडपूर्व १. कोडपूर्व १] पृथक वर्ष १] कोडपूर्व १.२.३ ऊपजै १ कोडपूर्व पृथक वर्ष १ कोडपूर्व भगवती जोड (खण्ड-६) १२.३ ऊपजै जघन्य १२.३ ऊपजै १२.३ ऊपजै १.२.३ ऊपजै परिमाण द्वार संघयण द्वार ६ उत्कृष्ट संख्याता असंघयणी ऊपजै संख्याता ऊपजे संख्याता ऊपजै १३२ मनुष्य में आठवें सहस्रार देवलोक नां ऊपजै तेहनों यंत्र (३६) जघन्य १.२.३ ऊपजै १.२.३ ऊपजै ३ संघयण द्वार ६ असंघयणी असंघयणी असंघयणी संख्याता असंघयणी ऊपजै २ परिमाण द्वार उत्कृष्ट संख्याता ૧૨.૩ ऊपजै ऊपजै संख्याता असंघयणी ऊपजै संख्याता ऊपजै संख्याता ऊपजै 3 संघयण द्वार ६ असंघवणी अव० भवधारणी असंघयणी जघन्य असंघयणी आंगुल नौ असंख भाग आंगुल न असंख भाग आंगुल न असंख भाग जघन्य आंगुल न असंख भाग अव० भवधारणी आंगुल न अराख भाग आंगुल न असंख भाग जघन्य आंगुल न असंख भाग उत्कृष्ट ५ हाथ आंगुल नॉ असंख भाग ५ हाथ आंगुल न असंख भाग ५] हाथ उत्कृष्ट अव० भवधारणी ४ हाथ ४] हाथ ४] हाथ उत्कृष्ट ४ हाथ ४ हाथ अव उत्तर दे० ४ जघन्य आंगुल न ਚ आंगुल न संख भाग आंगुल न संख भाग आंगुल न संख्याता भाग आंगुल न संख्याता भाग आंगुल न संख्याता भाग अव० उत्तर ० जघन्य उत्कृष्ट आंगुल न संख भाग de आंगुल न संख भाग १ लाख योजन आंगुल न संख भाग १ लाख योजन १ लाख योजन १ लाख योजन अव० उत्तर वै० उत्कृष्ट जघन्य १ लाख योजन १ लाख -योजन १ लाख योजन ५ संठाण ६ वैक्रिय मूल १ समचौरंस १ समचौरस १ समचौरस मूल १ समचौरंस १ समचौरंस १ समचौरंस मूल ५ संठाण ६ वैक्रिय नाना प्रकार १ लाख योजन समधीरंस नाना प्रकार १ लाख योजन समचौरंस नाना प्रकार नाना प्रकार नाना प्रकार ५ संठाण ६ वैक्रिय नाना प्रकार १ नाना समधीरंस प्रकार नाना प्रकार प्रकार ६ ७ लेश्या द्वार दृष्टि द्वार ६ ३ १ शुक्ल १ शुक्ल १ शुक्ल लेश्या द्वार ६ १ शुक्ल १ शुक्ल १] शुक्ल १ शुक्ल १ शुक्ल 3 १ शुक्ल 3 ३ 19 दृष्टि द्वार ३ लेश्या द्वार दृष्टि द्वार ६ 3 3 3 3 3 ज्ञान-अज्ञान द्वार ५ ३ नियमा ३ नियमा ३ ३ नियमा ३ नियमा ३ नियमा ३ नियमा ज्ञान-अज्ञान द्वार ५. 3 ३ नियमा ३ नियन्त ३ नियमा ३ नियमा ३ नियमा ३ नियमा ज्ञान-अज्ञान द्वार ५ ३ ३ नियमा ३ नियमा ३ नियमा ३ नियमा ३ नियमा ३ नियमा ६ 40 योग द्वार उपयोग द्वार 3 ३ ३ ३ 3 ૬ १० योग द्वार उपयोग द्वा ३ २ M 3 ३ ३ २ योग द्वार उपयोग द्वार २ 3 २ 3 २ २ २ Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५ १६ समुद्घात द्वार वेदना द्वार वेद द्वार संज्ञा द्वार कवाय द्वार इन्द्रिय द्वार आयु द्वार अध्यवसाय द्वार| अनुबंध द्वार कायसंवेधद्वार जघन्य उत्कृष्ट असंख्याता जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट | जघन्य काल उत्कृष्ट काल ५पहली | २ पुरुष सागर | सागर सागर | सागर १० सागर १पृथक वर्ष १० सागर पृथक वर्ष १० सागर १कोडपूर्व ५६ सागर ४ कोडपूर्व ५६ सागर ४ पृथकवा ५६ सागर ४ कोडपूर्व ५ पहली । २ । १पुरुष सागर | सागर मला १० सागर सागर भंडा आयु. अनुबंध १० सागर १पृथक वर्ष १० सागर १पृथक वर्ष १० सागर १कोडपूर्व ४० सागर ४ कोङपूर्व ४० सागर । पृथक वर्ष ४० सागर ४ कोडपूर्व ५पहली १पुरुष | सागर | १४ सागर १४सागर | सागर भला भंडा आय. अनुबंध १४ सागर १पृथकवर्ष १४ सागर १पृथक्वं १४ सागर १ कोडपूर्व ५६ सागर ४ कोडपूर्व ५६ सागर ४ पृथक वर्ष ५६ सागर ४ कोडपूर्व १६ कवाय द्वार | इन्द्रिय द्वार | समुदधात द्वार | वेदना द्वार | वेद द्वार नाणत्ता कायसंवेध द्वार आयुद्वार अध्यवसाय द्वार अनुबंध द्वार जघन्य | उत्कृष्ट | असंख्याता | जघन्य | उत्कृष्ट | उत्कृष्ट | जघन्य काल उत्कृष्ट काल ५पहली १४ सागर सागर मला १४ सागर सागर १४ सागर १पृथक वर्व १४ सागर १पृथक वर्ष १४ सागर १ कोडपूर्व ६८ सागर ४ कोडपूर्व ६८ सागर ४ पृथक्वर्ष ६८ सागर ४ कोडपूर्व ५पहली - २ | १पुरुष । १४ सागर | १४ सागर | ४ सागर १४ सागर मला भंडा आयु, अनुबंध 1444 १४ सागर पृथक वर्ष १४ सागर १पृथक वर्ष १४ सागर १कोडपूर्व ५६ सागर ४ कोजपूर्व ५६ सागर । पृथक वर्ष ५६ सागर ४ कोजपूर्व ५पहली | २ | पुरुष सागर | सागर 1१७ सागर| १७ सागर मला मुंडा १७ सागर १पृथकवर्ष १७ सागर पृथकवर्ष सागर १कोडपूर्व सागर ४ कोडपूर्व ६६ सागर पृथक वर्ग ६८ सागर ४ कोडपूर्व अनुबंध " १६ १२ कवाय द्वार संज्ञा द्वार इन्द्रिय द्वार १७ आयुद्वार समुद्घात द्वार | वेदना द्वार | वेद द्वार १६ अनुबंध द्वार जघन्य उत्कृष्ट লাল भव अध्यवसाय द्वार असंख्याता कायसंवैध द्वार जघन्य उत्कृष्ट जघन्य | उत्कृष्ट । जघन्य काल उत्कृष्ट काल १पुरुष १४ सागर | सागर मला १० सागर| सागर १७ सागर १पृथक वर्ग सागर १पृथक वर्ष १७ सागर १ कोडपूर्व ४२ सागर ४ कोळपूर्व ७२ सागर ४ पृथकवा ७२ सागर ४ कोहपूर्व ५पहली | २ | पुरुष सागर| सागर १० सागर | सागर १७ सागर १पृथक वर्ष १७ सागर १पृथक वर्ष १७ सागर १कोडपूर्व ६ सागर ४ कोडपूर्व ६८ सागर ४ पृथक वर्ष सागर ४ कोडपूर्व १पुरुष | सागर| सागर स्वगर सागर *सागर पृथकवा * सागर १पृथकवर्व सागर १कोडपूर्व ४२ सागर ४ कोडपूर्व १२ सागर ४ पृथक वर्ष १२ सागर ४ कोडपूर्व अनुबंध गमा ३१६ Jain Education Intemational Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३३ मनुष्य में नवमें आणत देवलोक नां ऊपजै तेहनों यंत्र (३७) गमा २० द्वार नी संख्या अव० उत्तर ० सठाण लेश्या द्वार | दृष्टिद्वार ज्ञान-अज्ञान द्वार योग द्वार उपयोग उपपात द्वार परिमाण द्वार | संघयण द्वार जघन्य उत्कृष्ट| जघन्य उत्कृष्ट अव० भवधारणी जघन्य | उत्कृष्ट उत्कृष्ट । मूल क्रिय संख्याता अगंधयणी | आगुल नों असंखभाग ३ हाथ ओधिक नै ओधिक|१पृथक्वर्व ओधिक नै जघन्य | पृथकवर्ष ओधिक उत्कृष्ट १कोडपूर्व १शुक्ल | ३ | १ कोडपूर्व १पृथक वर्ष १कोडपूर्व ३नियमा | ३ नियमा १लाख नाना योजन | समचौरसा प्रकार आंगुल नों संख भाग ऊपजे | १२.३ । आंगुल नों हाथ १शुक्ल | ३ नियमा नियमा ३ ४ जघन्य नै ओधिक पृथक वर्ष ५ जघन्य नै जघन्य | पृथकवर्ष ६ जघन्य नै उत्कृष्ट १कोडपूर्व १कोडपूर्व १पृथक वर्ष १ कोडपूर्व संख्याता | असंघयणी ऊपजे आंगुल नौ । असंखभाग | १लाख योजन ऊपजै संख । समचौरस प्रकार भाग संख्याता असंधयणी आंगुल आंगुल नौ । ३हाथ असंखभाग उत्कृष्ट नै ओधिक पृथक वर्ष उत्कृष्ट जघन्य१पृथकवर्ष उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट ५ कोडपूर्व | १लाख योजन । १शुक्ल | १कोडपूर्व । १.२.३ १पृथक वर्ष | ऊपजै १कोडपूर्व ३ नाना प्रकार ३ नियमा ३नियमा सख समचौरंस भाग १३४ मनुष्य में दशवें प्राणत देवलोक नां ऊपजै तेहनों यंत्र (३८) गमा २०द्वार नी संख्या अव० उत्तर ० सठाण६ लेश्या द्वार | दृष्टिद्वार झान-अज्ञान द्वार योग द्वार उपयो उपपात द्वार । परिमाण द्वार | संघयण द्वार | उत्कृष्ट | जयन्य । उत्कृष्ट अब भवधारणी जघन्य । उत्कृष्ट । जघन्य उत्कृष्ट | मूल असंघयणी | हाथ आंगुल नों नाना १शुक्ल | ३ ओधिक नै ओधिक|१पृथकवर्ष ओधिक नै जघन्य (१पृथकवर्ष ओधिक नै उत्कृष्ट पकोडपूर्व आंगुल नों असंख भाग नियमा | ३ नियमा १कोडपूर्व । १२.३ १पृथक वर्ष ऊपजे | १कोडपूर्व | संख्याता रूप योजन । समचौरस प्रकार ३ भाग ४ | असंधयणी ३हाथ आंगुल नों नाना शुक्ल | ३ |३नियमा३नियगा | ३ | २ जघन्य नै ओधिक पृथक वर्ग जधन्य नै जघन्य पृथकवर्ष जघन्य नैं उत्कृष्ट | कोडपूर्व १कोडपूर्व । १२३ | संख्याता पृथक वर्ष | ऊपजे ऊपज १कोडपूर्व आंगुल नों असंख भाग ५ | १लाख दोजन संख समीरंस प्रकार ६ भाग सख्याता असायणी ३हाथ आंगुल नों असंखभाग ३ १शुक्ल ३नियमा | ३नियमा | ३ | उत्कृष्ट नै ओधिक पृथक वर्ष | १कोडपूर्व । १२३ उत्कृष्ट नै जघन्य | पृथकवर्ष | धक्व ऊपजे ६ उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट १ कोडपूर्व कोडपूर्व २ आगुलनों । सख १लाख योजन | समचौरस प्रकार भाग १३५ मनुष्य में ग्यारहवें आरण देवलोक नां ऊपजै तेहनों यंत्र (३६) गमा २०द्वार नी संख्या उपपात द्वार परिमाण द्वार संघयण द्वार अव भवधारणी अव० उत्तर वै० संठाण लेश्या द्वार दृष्टि द्वार ज्ञान-अज्ञान द्वार योग द्वार| उपय जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट जघन्य । उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट मूल असंघयणी ३ हाथ नाना | ओधिक नै ओधिक पृथकवर्ष ओधिक * जयन्य १पृथकवर्ष अधिक नै उत्कृष्ट १ कोम्पूर्व आंगुल नॉ] असंख माग | शुक्ल नियमा | ३ नियमा |१कोहपूर्व | 'पृथकवर्ष १कोडपूर्व । १२.३ | ऊपरी आंगुल नौ संख्याता । संख्याता ऊप लाख योजन २ ३ समचौरंस प्रकार भाग ४ असंधयणी हाथ शुक्ल । ३ जघन्य नै ओधिक पृथकवर्ष जघन्य नै जघन्य | पृथकवर्ष जघन्य नै उत्कृष्ट | १ कोडपूर्व ३नियमा | ३नियमा |१कोडपूर्व १पृथकवर्ष १कोडपूर्व १.२३ ऊपजे संख्याता ऊपजै नाना | प्रकार आंगुल नों। असंख भाग आंगुलनों । १लाख संख्याता योजन भाग समीरंस संख्याता असंघयणी हाथ नाना - शुक्ल ३ ३नियमा नियमा । ३ । । उत्कृष्ट नै ओधिक पृथक वर्ष उत्कृष्ट नै जघन्य १पृथकवर्ष ६ उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट १ कोटपूर्व १कोडपूर्व १पृचवर्ष १कोळपूर्व आंगुलनों असख भाग आंगुलनों संख्याता १लाख योजन ऊपजै समचौरस ३२० भगवती-जोड़ (खण्ड-६) Jain Education Intemational Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संज्ञा द्वार कषाय द्वार | इन्द्रिय द्वार १४ | समुदघात द्वार| वेदना द्वार| वेद द्वार २ आय द्वार अध्यवसाय द्वार | अनुबंध द्वार नाणत्ता कायसवेधद्वार जघन्य काल उत्कृष्ट काल जघन्य उत्कृष्ट असंख्याता जघन्य उत्कृष्ट जघन्य | उत्कृष्ट ५ पहली | २ | पुरुष १८ सागर | सागर भला |१८ सागर | सागर १८ सागर १ पृथक वर्ष सागर पृथक वर्ष १८ सागर १ कोडपूर्व ७ सागर ३ कोडपूर्व ५७ सागर ३१धकवर्ष '५७ सागर ३ कोडपूर्व ५पहली | २ पुरुष |१८ सागर | १८ सागर मला सागर सागर नूडा १ सागर पृथक वर्ष १८ सागर १पृथक वर्ष १. सागर १ कोडपूर्व ५४ सागर ३ कोडपूर्व ५४ सागर ३ पृथक् वर्ष ५४ सागर ३ कोडपूर्व अनुबंध ५ पहली । २ । पुरुष | १६ सागर | १९ सागर १६.सागर १६ सागर भंडा आयु अनुबंध १६सागर १पृथकर्ष १.सागर पृथकवर्ष १९ सागर १ कोडपूर्व ५७ सागर ३ कोडपूर्व ५७ सागर ३ पृथक वर्ष ५७ सागर ३कोडपूर्व १५ १६ १२ । १३ १४ संज्ञा द्वार | कवाय द्वार | इन्द्रिय द्वार | समुदधात द्वार | वेदना द्वार | वेद द्वार नाणत्ता आयु द्वार अध्यवसाय द्वार जघन्य उत्कृष्ट | असंख्याता अनुबंध द्वार जघन्य | उत्कृष्ट कायसंवेध द्वार जघन्य काल उत्कृष्ट काल जघन्य उत्कृष्ट ५पहली २ | पुरुष १९ सागर | २० सागर १६ सागर २० सागर भला मुंडा १६ सागर १पृथक वर्ष १६ सागर १पृथक वर्ष १६ सागर १ कोडपूर्व ६० सागर काडपूर्व ६० सागर ३ पृथकवन ६० सागर ३ कोडपूर्व ५पहली । २ पुरुष | १६ सागर | सागर १६ सागर | १६ सागर बला मुंडा आयु, अनुबंध १६ सागर १पृथक वर्ष १६ सागर पृथक वर्ष १९ सागर १कोडपूर्व ५७ सागर ३ कोडपूर्व ५७ सागर ३ पृथक वर्ष ५७ सागर ३कोडपूर्व ५पहली | २ | १पुरुष २७ सागर | २० सागर । २०सागर | २० सागर भला मुंडा आयु अनुबंध २० सागर १पृथकवर्ष २० सागर पृथळवर्ष २० सागर १ कोडपूर्व ६० सागर ३कोडपूर्व ६० सागर पृथक वर्ष ६० सागर ३कोडपूर्व १३ इन्द्रिय द्वार संज्ञा द्वार | कवाय द्वार १४ १५ । समुदवात द्वार वेदनाद्वारवेद द्वार नाणता १६ अनुबंध द्वार जघन्य | उत्कृष्ट आयु द्वार जघन्य | उत्कृष्ट कायसंवैध द्वार आध्यवसाय द्वार| असंख्याता । २ जघन्य | उत्कृष्ट जघन्यकाल उत्कृष्ट काल ५पहली २ | पुरुष २० सागर सागर २०सागर | ससागर मुंडा २० सागर १ पृथक वर्ष २० सागर १पृथक वर्ष २० सागर कोडपूर्व ६३ सागर ३ कोडपूर्व ६३ सागर ३ पृथकवर्ष ६३ सागर ३ कोडपूर्व ५पहली | २ | १पुरुष | २० सागर २० सागर | भला २० सागर २० सागर २ मुंडा आधु, अनुबंध MN INNNNNN २० सागर १पृथक वर्ष २० सागर पृथक सागर कोजपूर्व ६० सागर ३ कोडपूर्व ६० सागर ३ पृथक वर्ष ६० सागर ३ कोडपूर्व ५पहली २ १पुरुष १सागर सागर | भला २१सागर २१सागर आयु २१गर पृथकदर्ष १सागर ५ पृथक ससागर पकोडपूर्व ६३ सागर ३कोडपूर्व ६३ सागर ३ पृथक वर्ष ६३ सागर ३ कोअपूर्व अनुबंध गमा ३२१ Jain Education Intemational Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३६ मनुष्य में बारहवें अच्युत देवलोक ना ऊपजै तेहनों यंत्र (४०) गमा २० द्वार नी संख्या 2 परिमाण द्वार | संघयण द्वार अव० भवधारणी जघन्य । उत्कृष्ट ६ | जघन्य | उत्कृष्ट । अव० उत्तर वै० संठाण लेश्या द्वार दृष्टिद्वार ज्ञान-अज्ञान द्वार उपपात द्वार जघन्य | उत्कृष्ट योग द्वार | उपयोग। जघन्य | उत्कृष्ट मूल वैक्रिय | १२३ | आंगुलनों संख्याता | असंघयणी ऊपजै ३हाथ आंगुल नों । असंखभाग ओधिक नै औधिक पृथकवर्ष | १कोडपूर्व ओधिक नै जघन्य अपृचवर्ष पृथकदर्य ओधिक उत्कृय कोळपूर्व १कोडपूर्व १लाख योजन नाना प्रकार १शुक्ल । ३ ३नियगा | | ३नियमा । समचौरस हाथ आगुलना संख्याता । असंधयणी ऊपज जघन्य नै ओधिक |१पृथकवर्ष जघन्य नै जघन्य १पृथक्वर्य जान्य नै उत्कृष्ट कोडपूर्व आंगुलनों । असंखभाग काळपूर्व । १२.३ १पृथवर्ष १कोडपूर्व १लाख योजन १ शुक्ल । ३ नाना प्रकार नियमा | ३ नियमा संख मगचौरस भाग १२.३ । संख्याता । असंघयणी हाथ आंगुल नों १शुक्ल ३ नियमा ३ नियमा ३ । उत्कृष्ट नै ओधिक पृथक वर्ष | १कोडपूर्व उत्कृष्टन जघन्च | पृथकवर्ष पृथकवर्व उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट १ कोडपूर्व कोडपूर्व आंगुलनों असखभाग संख योजन समचौरंस प्रकार १३७ मनुष्य में नौ ग्रैवेयक नां ऊपजै तेहनों यंत्र (४१) परिमाण द्वार संघषण द्वार अवगाहना द्वार सठाण द्वार लेश्या द्वार दृष्टि द्वार झान-अज्ञानद्वार योग द्वार उपयोगा गमा २० द्वार नी संख्या अन तेहनां नाम उपपात द्वार जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट ૧૨૩ असंघवनी २हाथ १शुक्ल ३नियमा अधिक ओधिक ओधिक न जयन्य ओधिक नै उत्कृष्ट | ३नियमा १पृथकवर्ष १पृथकवर्ष १कोहपूर्व १कोडपूर्व १पृथकवर्ष १कोडपूर्व आंगुलनो असंखभाग संख्याता ऊपजै सगचौरंग बहुलपर्व३ जीवाभिगम के अनुसार२ | असंघयणी २हाथ १२.३ ऊप जघन्य नै ओधिक जघन्य नै जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट संख्याता ऊप नियमा । १पृथकदर्य | १कोहपूर्व १पृथक्व १पृथक्वर्ण १कोडपूर्व १कोडपूर्व | आंगुल नो असंख भाग नियमा । रामचौरंस बहुलपणे३ | जीवाभिगम के अनुसार २ संख्याता | असंधवणी । र हाथ १शुक्ल नियमा ૧૨૩ ऊपज उत्कृष्ट नै ओधिक | १पृथक वर्ष १कोडपूर्व उत्कृष्ट नै जघन्य | पृथकवर्ष | १पृथकवर्ष उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट | १कोडपूर्व | १कोडपूर्व आंगुलनो असंख भाग नियमा समचौरंग बटुलपणे जीवाभिगम के अनुसार२ १३८ मनुष्य में चार अनुत्तर विमान नां ऊपजै तेहनों यंत्र (४२) राधयण द्वार - अवगाहना द्वार सघयण द्वार संठाण द्वार लेश्या द्वार | दृष्टिद्वार ज्ञान-अडान दार गमा २० द्वार नी संख्या अन तेहना नाम | सठाणार | लेश्या द्वार | दृष्टिद्वार | ज्ञान-अज्ञान द्वार योग द्वार | उपयोग उपपात द्वार जयन्य परिमाण द्वार जघन्य उत्कृष्ट अवगाहना द्वार जघन्य १ १२.३ संख्याता असंघयणी १शुक्ल । १ समदृष्टि नियमा ओधिक नै ओधिक ओधिक नै जघन्य ओधिक नै उत्कृष्ट १पृथकवर्ष १कोडपूर्व | १पृथकवर्ष | १पृथकवन १कोडपूर्व १कोहपूर्व आगुल नो असंख माग ऊपजै समचौरंस संख्याता | असंघवणी १शुक्ल । १समदृष्टि नियमा जघन्य नै ओधिक जपन्य जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट १पृथकवर्ष १पृथवर्ष १कोडपूर्व कोटपूर्व | पृथकूद १कोडपूर्व आंगुल नों असंखभाग समचौरस संख्याता | असंघयणी हाथ १शुक्ल समदृष्टि । ३ नियमा उत्कृष्ट ओधिक उत्कृष्ट नै जघन्य | उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट १पृथक् वर्ष | १कोजपूर्व १पृथकवर्ष पृथक्वर्ग १कोडपूर्द कोडपूर्व ૧૨૩ ऊपजै | आंगुल नों असंखभाग समधीरंस ३२२ भगवती-जोड़ (खण्ड-६) Jain Education Intemational Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कषाय द्वार | इन्द्रिय द्वार | समुदघात द्वार| वेदनाद्वार १६ वेद द्वार आयु द्वार | जघन्य | उत्कृष्ट १८ अध्यवसाय द्वार| अनुबंध द्वार असंख्याता | जघन्य ख्याता । जघन्य उत्कृष्ट नाणता कायसवेध द्वार जघन्य काल उत्कृष्ट काल जघन्य उत्कृष्ट १ पुरुष |ससागर | २२ सागर |ससागर २२सागर २१ सागर १ पृथक वर्ष २१सागर १पृथक वर्ष ससागर १ कोडपूर्व ६६ सागर ३ कोडपूर्व ६६ सागर ३ पृथकपर्व ६६ सागर ३ कोडपूर्व ५पहली | २ | पुरुष | २१सागर ससागर मला |१सागर | २१ सागर मुंडा आयु. अनुबंध ससागर १पृथक वर्ष ससागर १पृथक वर्ष ससागर १ कोडपूर्व ६३ सागर ३ कोडपूर्व ६३ सागर ३ पृथक् दर्व ६३ सागर ३ कोडपूर्व २ पुरुष | सागर | सागर मला सागर | २२सागर २२ सागर १पृथकून २२ सागर १पृथकवर्ष २२ सागर १कोतपूर्व ६६ सागर ३कोडपूर्व ६६ सागर पृथक वर्ष ६६ सागर कोडपूर्व अनुबंध आयुद्वार अध्यवसाय द्वार अनुबंध द्वार नाणत्ता कायसवेध द्वार संज्ञा द्वार कषाय द्वार इन्द्रिय द्वार | समुद्घात द्वार| वेदना द्वार | वेद द्वार ? 3 जघन्य उत्कृष्ट असंख्याता | जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट जपन्यकाल उत्कृष्ट काल २ पुरुष २२ सागर ३१ सागर २२ सागर | ३१ सागर करण रूप३ मुंडा २२ सागर १पृथक वर्ष २२ सागर १पृथक वर्ष । २२ सागर १ कोडपूर्व ६३ सागर ३ कोडपूर्व ६३ सागर ३ पृथकवर्ष ६७ सागर ३कोसपूर्व | २ | पुरुष | २२सागर| २२ सागर भला २२ सागर | २२ सागर सता रूप५ करण रूप३ २२ सागर १ पृषक वर्ग २२ सागर १ पृथक वर्ष २२ सागर १ कोडपूर्व ६६ सागर कोडपूर्व सागर ३ पृथक वर्ष ६६ सागर ३कोडपूर्व अनुबंध | २ पुरुष | ३१ सागर | ३१ सागर भला ३१ सागर ३१ सागर सत्ता रूप करण रूप भूडा आयु सागर १ पृषकवर्ष ३१ सागर पक्षकवर्ष ३१ रागर १ कोजपूर्व १३ सागर ३कोडपूर्व ३सागर पृथक वर्ष १७ सागर कोडपूर्व अनुबंध कवाय द्वार इन्द्रिय द्वार समुदघात द्वार| वेदना द्वार वेद द्वार आयुद्वार नाणत्ता कायसवेध द्वार अध्यवसाय द्वारा असंख्याता अनुबंध द्वार जघन्य उत्कृष्ट । जघन्य । उत्कृष्ट जवन्या उत्कृष्ट जघन्यकाल उत्कृष्ट काल । २ पुरुष ३१ सागर | ३३ सागर ३१ सागर | सागर सत्ता रूप५ करण रूप३ मुंडा ३१ सागर १पृथक वर्ष ३१ सागर १पृथक वर्ष ३१ सागर १ कोडपूर्व ६६ सागर २ कोडपूर्व ६६ सागर पृथकवर्ष ६६ सागर २ कोडपूर्व २ पुरुष ३१ सागर | ३१ सागर |३१ सागर असागर सता रूप५ करण रूप आयु. अनुबंध ३१ सागर १ पृचक वर्ष ३१ सागर १पृषक वर्ष ५१ सागर १ कोडपूर्व ६२ सागर २ कोजपूर्व ६२ सागर २ पृथक वर्ष ६२ सागर २ कोडपूर्व २ पुरुष ३७ सागर |३७ सागर मला |३३ सागर | ३३ सागर सत्ता रूप५ करण रूप ३३ सागर पृथक्वर्ग ३३ सागर १ पृथकवर्ष ३३ सागर १ कोडपूर्व ६६ सागर २ कोहपूर्व ६६ सागर २पृथक वर्ष ६६ सागर २ कोडपून गमा ३२३ Jain Education Intemational Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३६ मनुष्य में सर्वार्थ-सिद्ध ना ऊपजै तेहनों यंत्र (४३) गमा २०द्वार नी संख्या उपपात द्वार परिमाण द्वार संघयण द्वार सठाण द्वार लेश्या द्वार दृष्टिद्वार ज्ञान-अज्ञान द्वार योगद्वार उपयोग अवगाहना द्वार जपन्य उत्कृष्ट । उत्कृष्ट उत्कृष्ट संध्याता | असंघयणी हाथ १शुक्ल ३नियमा ओधिक न ओधिक ओधिक जघन्य ओधिक नै उत्कृष्ट | १पृथकवा | कोडपूर्व १पृथक् पृथक्वई १कोडपूर्व | कोडपूर्व | अंगुल नों असंख भाग २ ३ सगीरंत याणव्यंतर में ५ ठिकाणा ना ऊपजै-असन्नी तिर्यंच पंचेंद्रिय १, तिथंच युगलियो २. संख्याता वर्ष ना सन्नी तिर्यच ३. मनुष्य युगलियो ४. संख्याता वर्ष ना सन्नी मनुष्य ५। १४० वाणव्यंतर में असन्नी तिर्यंच पंचेंद्रिय ऊपजै तेहनों यंत्र (9) गमा २०द्वार नी संख्या उपपात द्वार परिमाण द्वार संघयण द्वार अवगाहना द्वार संठाण द्वार लेश्या द्वार दृष्टि द्वार ज्ञान-अज्ञान द्वार योगद्वार जघन्य उत्कृष्ट जपन्य १मिथ्या २वय ओधिक नै ओधिक १० हजार वर्ष |पल्यनों असंखभाग ओधिक न जघन्य १० हजार वर्ष हजार वर्ष |ओधिकनै उत्कृष्ट पल्प नों असंखभाग पल्यनों असंख भाग १२० ऊप असंख ऊपरी २ आंगुलनी असंखभाग उमेटी १हजार योजन हुंडक पहली नियमा २वच जघन्य नै ओधिक १० हजार वर्ग पल्य नो असंखभाग जघन्य न जघन्य १० हजार वर्ग १० हजार वर्ष जघन्य नै उत्कृष्ट पल्यनों असंख भाग पाल्य नों असंय भाग १२३ ऊपजै असंख ऊपजे आंगुल असंख भाग प्रवेटो योजन पहली नियमा १हजार मिथ्या २वच उत्कृष्ट नै ओधिक १० हजार वर्ष पत्य नों असंख भाग उत्कृष्ट नै जघन्य १० हजार वर्ष १० हजार वर्ष उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट पल्य नौ असंख भाग पल्य नों असंख भाग १.२.३ ऊपजे असंख ऊपजे आंगुलनों असंख भाग वेटो नियमा काय १४१ वाणव्यंतर में तिर्यंच युगलियो ऊपजै तेहनों यंत्र (२) संघयण द्वार अवगाहनाद्वार संठाण द्वार लेश्या द्वार | दृष्टि द्वार ज्ञान-अज्ञान द्वार योग द्वार गमा २० द्वार नी संख्या अन तेइनां नाम उपयोग उपपात द्वार जघन्य उत्कृष्ट परिमाण द्वार उत्कृष्ट ओधिकनै ओधिक ओधिक जघन्य ० हजार दर्व हजार वर्ष १२.३ पृथकधनुष्य संख्याता ऊपना १० हजार वर्ष ऋतमनाराष समचौरंस पहली नियमा ओधिक नै उत्कृष्ट १पल्य १पल्य संख्याता पृथक धनुष्य ऋभनाराच १मिथ्या पहली समचौरस नियमा - १मिथ्या जघन्य नै ओधिक जघन्य नै जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट - १० हजार वर्ष हजार वर्ष संख्याता उपजे ० हजार वर्ष | पृथक घनुष्य नाम नाराच १हजार धनुष्य जाझी समधीरंस नियमा 23 राख्याता पृथकघनुष्य | उत्कृष्ट नै औधिक १० हजार वर्ष उत्कृष्ट जयन्य | १० हजार वर्ष | उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट | १पल्य १बज झगम नाराच गाऊ समचौरस पहली नियमा १० हजार वर्ष १पल्य ३२४ भगवती-जोड (खण्ड-६) Jain Education Intemational Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - १६ सज्ञादार कषाय द्वार इन्द्रिय द्वार | समुदधात द्वार| वेदना द्वार| वेद द्वार आयुद्वार अध्यवसायादार अनुबाद्वार नाणत्ता कायसंवैध द्वार जघन्यकाल उत्कृष्ट काल | जघन्य उत्कृष्ट । असंख्याता जघन्य उत्कृष्ट जधन्य उत्कृष्ट २ पुरुष ३३ सागर ३३ सागर मला |३३ सागर | ३३ सागर सता रूप४ करण रूप३ भंड ३३ सागर १पृथक वर्ष ३३ सागर पृथक वर्ष ३३ सागर १ कोडपूर्व ___३३ सागर १ कोडपूर्व ३३ सागर १पृथकवर्ष __३३ सागर १ कोहपूर्व २० ११ । १२ १५ । १६ संज्ञा द्वार | कषाय द्वार इन्द्रिय द्वार | समुदधातद्वार| वेदनाद्वार वेद द्वार १८ आयुद्वार | अध्यवसाय द्वार जघन्य उत्कृष्ट | असंख्याता नाणत्ता भव कायसंवेध द्वार अनुबंध द्वार जघन्य | उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट | जघन्य काल उत्कृष्ट काल अंतर्मुहूर्त | अंतर्मुहूर्त भला अंतर्मुहूर्त | अंतर्मुहूर्त पहली २ १अंतर्ग:१० हजार वर्ष १कोडपूर्व पल्य नौ असंख माग १अंतर्मु १० हजार वर्ष १कोडपूर्व हजार वर्ष १ अंतर्मु.पल्य नो असंख भाग 1१कोडपूर्व पल्य नों असंख भाग २ | अंतर्मुहूर्त | अंतरार्मुहूर्त भला अंतर्मुहूर्त आर्मुहूर्त पहली नपुंसक आयु. आध्य अनुबंध २ १अंतर्मु ग० हजार वर्ष | १अंतर्मु, पल्य नों असंख भाग १अंतर्मु १० हजार वर्ग १अंतर्मु. १० हजार वर्ष १अंतर्मु.पल्य नों असंख भाग | अंतर्मु, पल्य नों असंख भाग कोडपूर्व कोडपूर्व भला मुंडा | कोडपूर्व | कोडपूर्व पहली | नपुंसक आयु अनुबंध १कोडपूर्व १० हजार वर्ष |१कोडपूर्व पल्यनों असंख भाग १कोडपूर्व १० हजार वर्ष १योडपूर्व १० हजार वर्ष १कोडपूर्व पल्य नों असंख भाग १कोडपूर्व पल्य नौ असंख भाग M ३ खा द्वार| कषाय द्वार | इन्द्रिय द्वार समुदधात द्वार| वेदना द्वार | वेद द्वार नाणत्ता भव कायसंवेध द्वार आयुद्वार जघन्य । उत्कृष्ट आयवसाय द्वार असंख्याता अनुबधद्वार उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट जपन्य काल उत्कृष्ट काल | रस्सी मला कोडपूर्व कोडपूर्व जाझो । १कोडपूर्व जाझो १० हजारवर्व | ५ थोडपूर्व जाझो १० हजार वर्ष 3पल्य १पल्य ३ पल्य १० हजार वर्ष पहली भंडा २ मला १पल्य २आयु, अनुबंध २ १पल्य १पल्य स्त्री पुरुष ३ पल्य १पल्य पहली पल्य पल्य भला २ कोडपूर्व | कोडपूर्व जाझो जाझो कोडपूर्व | कोटपूर्व जाझो पहली पुरुष अब, आयु अनुबंध १कोडपूर्व जाझो १० हजार वर्ष कोडपूर्व जाझौ १ कोडपूर्वजाझो १कोडपूर्व जामो १० हजार वर्ष | कोडपूर्व जाझो १० हजार वर्ष |१कोडपूर्व जाझोपकोडपूर्व जाझो कोडपूर्व जाझो १कोडपूर्व जाझो ५ २ रत्री भला ३पल्य ३पल्य ३ पहली आयु पल्य १० हजार वर्ग ३पल्य १० हजार वर्ष ३पल्य १पल्य ३मल्य १पल्य | ३ पत्य १० हजार वर्ष 1३पल्य १पल्य अनुबंध गमा ३२५ Jain Education Intemational Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४२ वाणव्यंतर में संख्याता वर्ष नां सन्नी तिर्यंच ऊपजै तेहनों यंत्र (३) गमा २० द्वार नी संख्या उपपात द्वार संघयण द्वार अवगाहना द्वार संठाण द्वारा लेश्या द्वार | दृष्टिद्वार ज्ञान-अज्ञान द्वार योग द्वार उपयोगा परिमाण द्वार उत्कृष्ट उत्कृष्ट जघन्य भजना भजना ओधिक ओधिक ओधिक नै जघन्या ओधिक नै उत्कृष्ट हजार वर्ष १० हजार वर्ष १पल्य १पल्य १० हजार वर्ष १पल्य असंख रुपले आंगुलनों असंख भाग १हजार योजन ऊपजै १हजार ४ पहली - मिथ्या २नियमा जघन्य नै औधिक जचन्द नै जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट | १० हजार वर्ष | १० हजार वर्ष १२.३ ऊपजे । १० हजार वर्ष आंगुलनों असंख भाग भजना उत्कृष्ट ओपिक हजार वर्ष उत्कृष्ट नै जयन्य हजार वर्ष उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट | १पल्य भजना १पल्य हजार वर्ग आगुतनों असख १हजार बोजन १४३ वाणव्यंतर में मनुष्य युगलियो ऊपजै तेहनों यंत्र (४) गमा २०द्वार नी संख्या उपपात द्वार परिमाण द्वार संघयणद्वारा अवगाहना द्वार सठाण द्वार| लेश्या द्वार दृष्टि द्वार ज्ञान-अज्ञानद्वार योगद्वार जघन्य उत्कृष्ट जघन्य १ १वज ३गाऊ ० ओधिक नै ओधिक ओधिक जघन्य १पल्य हजार वर्ष १२.३ ऊपजै संख्याता ऊाजे हजार वर्ष जाझी समचौरंस पहली ओधिक नै उत्कृष्ट १पल्य १.२.३ १वज १कोस ३कोस ० संख्याता उपज पहली १ मिथ्या नियमा संख्याता ५सौधनुष्य | ५सौवनुष्य ० ४ जघन्य नै ओधिक जधन्य नै जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट १० हजार वर्ष १पल्य १० हजार वर्ष | १० हजार वर्ष १पल्य १२.३ कप समचौरस पहली मिथ्या नियमा १२.२ उत्कृष्ट नै आधिक ऊकृष्ट नजधन्य । उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट हजार वर्ष हजार वर्ग १पल्य १पल्य १० हजार संख्याता कापजे नाऊ गाऊ समचौरंत नियमा ६ १४४ वाणव्यंतर में संख्याता वर्ष नां सन्नी मनुष्य ऊपजै तेहनों यंत्र (५) गमा २० द्वार नी संख्या उपपात द्वार परिमाण द्वार संघवण द्वार अवगाहना द्वार सठाण द्वार लेश्या द्वार | दृष्टिद्वार ज्ञान-अज्ञान द्वार योग द्वार उपयोग | जघन्य जघन्य जघन्य उत्कृष्ट १२.३ संख्याता १ २ ओधिक नै ओधिक ओधिक नै जघन्य ओधिक नै उत्कृष्ट सौधनुष्य हजार दर्ष • हजार वर्ष १पल्य पृथक आंगुल हजार १पल्य संख्याता जघन्य नै औधिक जघन्य नै-जयन्य जघन्य नै उत्कृष्ट १० हजार वर्ष १० हजार वर्ष १पल्य १२.३ ऊपजे पृथक आंगुल १० हजार वर्ष १पल्य पृथक आंगुल भजना संख्याता सा ५सी उत्कृष्ट ओधिक उत्कृष्ट नै जपन्य उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट १० हजार वर्ष १० हजार वर्ष १पल्य १पल्य १० हजार वर्ष १पल्य १२३ ऊपज धनुष्य भजना भजना ३२६ भगवती-जोड (खण्ड-६) Jain Education Intemational Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११ १२ - । संज्ञा द्वार कषाय द्वार १३ । १५ । १६ इन्द्रिय द्वार समुदधात द्वार| वेदना द्वार| वेद द्वार १७ आयुद्वार १८ अध्यवसाय द्वार नाणत्ता कायसवेशद्वार अनुबंध द्वार जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट असंख्याता जघन्य उत्कृष्ट जघन्य काल उत्कृष्ट काल | २ | अंतर्मुहूर्व कोळपूर्व मला मुंडा | अंतर्मुहूर्त | कोडपूर्व पहली १अंत १० हजार वर्ष १अंग, १० हजार वर्ष १अंत १ पत्य ४ कोडपूर्व ४पल्य ४ कोडपूर्व ४० हजार वर्ग ४ कोडपूर्व ४पल्य २ - ३ | अंतर्मुहूर्त, अंतर्मुहूर्त ___ मला | अंतर्मुहूर्त | अंतर्मुहूर्त | पहली अव, लेश्या, दृष्टि, ज्ञान-अज्ञान. | १अंतर्मु, १० हजार वर्ष १अंत १० हजार वर्ष १अंतर्मु१पल्य ४ अंतर्मु ४ अल ४ अंतर्मु ४पल्य ४० हजार वर्ष ४पल्य | २ | | कोडपूर्व | कोडपूर्व | भलाभूडा | कोडपूर्व | कोडणूर्व कोडपूर्व १० हजार वर्ष १कोठपूर्व १० हजार वर्ग १कोडपूर्व १ पल्य ४कोडपूर्वपल्य ४ कोडपूर्व ४० हजार वर्ष कोडपूर्व ४ पल्य अनुबंध 3 १२ ॥ द्वार कषाय द्वार इन्द्रिय द्वार समुदास द्वार वेदना द्वार | वेद द्वार नाणता आयु द्वार जघन्य | उत्कृष्ट कोडपूर्व ३ अध्यवसाय द्वार असंख्याता अनुबंध द्वार जघन्य | उत्कृष्ट कायसवेधद्वार जधन्य काल उत्कृष्ट काल जघन्य उत्कृष्ट २ स्त्री पुरुष मला भंडा कोडपूर्व जाझो । १कोउपूर्व जाझो १० हजार वर्ग १कोडपूर्व जाडो १० हजार वर्ष | ३ पल्य १पल्य पल्य १० हजार वर्ष पहली ३ ३अव०, आयु, अनु ३ पल्प १पल्य २ स्त्री भला कोडपूर्व जाझो कोडपूर्व | कोडपूर्व जाझो जाझो पहली मुंडा अब, आयु. अनुबंध |१कोड़पूर्व जाझो १० हजार वर्त | कोडपूर्व जाझो १पल्य १कोडपूर्व जाझो० हजार वर्षकोडपूर्व जाझो हजारवर्ष १ कोटपूर्व जाझोपल्य १ कोडपूर्व जाझो १पल्य ३पल्य मला ३पल्य | ३पल्य पहली ३पल्य १० हजार वर्ष ३पल्य १० हजार वर्ष अक,आयु ३पल्या हजार वर्ग पल्य१पल्य ११ १२ १३ ज्ञा द्वार कषाय द्वार इन्द्रिय द्वार समुदपातद्वार| १६ वेदनाद्वार| वेदद्वार आयुद्वार अध्यवसाय द्वार अनुबंध द्वार नाणत्ता कायसवेध द्वार ४४ जघन्य उत्कृष्ट | जघन्य | उत्कृष्ट उत्कृष्ट काल - २ । पृथक कोडपूर्व मला कोडपूर्व केवलजी पृथका मास १पृथक मास १० हजार वर्ष १पृथक मास १० हजार वर्ष १पृथक मारा१पल्या | ४ कोडपूर्व४ पल्य ४ कोडपूर्व ४० हजार वर्ष ४ कोडपूर्व ४ पल्य पृथक पृथक मास पृथक् पृथक मास । मास ايه له अवज्ञान, समु.आयु.अनु. १पृथक मास १० हजार वर्ष १पृथक मास हजार वर्ष १पृथक मास१पल्य ४पृथक मास ४ पल्य ४ पृथक मास ४० हजार वर्ष ४ पृथक मास४ पल्य به कोडपूर्व | कोडपूर्व | कोडपूर्व | कोडपूर्व केवल वर्जी अव.आयु. अनुबंध | १ कोळपूर्व १० हजार वर्ष १ कोडपूर्व १० हजार वर्ग | १ कोहपूर्व १पल्य ४ कोटपूर्व ४ पल्य ४ कोडपूर्व ४० हजार वर्ग ४ कोडपूर्व ४ पल्य गमा ३२७ Jain Education Intemational Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्योतिषी में ४ ठिकाणां नां ऊपजे-तिथंच युगलियो १, संख्याता वर्ष नां सन्नी तिथंच पंचेंद्विय २, मनुष्य युगलियो ३. संख्याता वर्ष नां सन्नी मनुष्य ४ । १४५ ज्योतिषी में तिर्यंच युगलियो ऊपजै तेहनों यंत्र (१) गमा २०द्वार नी संख्या संघयण द्वार अवगाहना द्वार सवाण द्वार लेश्या द्वार दृष्टि द्वार ज्ञान-अज्ञान द्वार योग द्वार उपयोग उपपात द्वार जघन्य | उत्कृष्ट परिमाण द्वार जघन्य जघन्य उत्कृष्ट ६ गाऊ १२.३ उपजै ओधिक नै ओधिक अयपाव पल्य १पल्या १लाख वर्ष ओधिक नैं जघन्य अधपाव पल्य आधपाव पल्य | ओधिक नै उत्कृष्ट | १पल्य १ लाख १पल्य १लाख वर्ष संख्याता ऊपजै अपमनाराय धनुष्य समचौरंस पहली मिथ्या नियमा संख्याता १वज पृथक ६ गाऊ १२.३ ऊपज वर्ग उप अषम नाराच । समचौरंस पहली नियमा ४ अधपाद पल्य अपपाय पल्य १बज पृथक जयन्यन ओधिक 1xगमा टूटा अामनाराच अनुष्य जाझी समचौरस पहली मिथ्या नियमा १२.३ बज ऋषम नाराब | धनुष्य | गाऊ समचौरस मिथ्या नियमा उत्कृष्ट नै ओविक आपपाव पल्य १पल्य १ लाख वर्ष उत्कृष्ट न जयन्य अपपाद पल्ल उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट | १पल्य१लाख १पल्य१लाख वर्ष १४६ ज्योतिषी में मनुष्य युगलियो ऊपजै तेहनों यंत्र (२) गमा २० धार नी संख्या उपपात द्वार संघयण द्वार अवगाहना द्वार संठाण द्वार लेश्या द्वार | दृष्टिद्वार ज्ञान-अज्ञान द्वार योगद्वार उपयोग परिमाण द्वार जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट जघन्य । उत्कृष्ट १२.३ ३ गाऊ १ | ओधिक नै ओधिक | अधपाच पल्य | १पल्य १ लाख वर्ष ओधिक नैं जघन्य अवपाद पत्य | अथपाव पल्य संख्याता ऊपजै १वज ६सी ऋषभ नाराच |धनुष्य जाझी १ समचौरंस पहली गिध्या |ओधिकनै उत्कृष्ट १पल्य १ लाख १पल्य १ लाख १गाऊ ३गाऊ संख्याता ऊपजे १वज पभनाराय कर्म ऊपज माझी समचौरंस पहली निध्या नियमा अधपाव पल्य | अधपाद पल्य ४ ५ जघन्य नै ओधिक x गमा टूटा |X गगा टूटा १२३ ऊपज संख्याता ऊपजे १वज ऋषभ नाराध | धनुष्य जाझी | धनुष्य जाझी समचौरंस पहली मिथ्या नियमा १२.३ संख्याता उत्कृष्ट नै ओधिक | अपधावपल्य | १पल्य १ लाख वर्ष उत्कृष्ट नै जघन्य आधपाय पल्प | अपपाव पल्य उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट १पल्य १ लाख १पल्य १ लाख १बज ऋषभ नाराच | गाऊ गाऊ । समचौरस पहली मिथ्या नियमा १४७ ज्योतिषी में संख्याता वर्ष नों सन्नी तिर्यंच पंचेंद्रिय ऊपजै तेहनों यंत्र (३) गमा २० द्वार नी संख्या परिमाण द्वार संघयण द्वार संठाण द्वार लेश्या द्वार दष्टिदार जान-अज्ञानदार योगद्वार उपपात दार उत्कृष्ट अवगाहना द्वार जघन्य उत्कृष्ट जघन्य १२३ ओषिक नै ओधिक| अपपाव पल्य ओधिक जघन्य अघपाव पल्य | ओधिक नै उत्कृष्ट १पल्य १ लाख वर्ष १पल्य१लास व अपपाव पल्य १पल्य१लास व आंगुलनों असंख भाग १हजार योजन रुपजे मजना जयन्यन ओधिक जघन्य जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट १पत्य १ लाख वर्ष अयपाव पल्य १पत्य लाख वर्ष असंख ऊपजे आंगुल्लों असंख भाग पहजार धनुष्य आपापल्या निध्या नियमा १पल्य १ लाख वर्ष उत्कृष्ट नै ओधिक अघपाव पल्य १पल्य १ लाख वर्ष | १२.३ उत्कृष्ट नै जान्य अधपाव पल्य अधपाव पल्य ऊपजै उत्कृष्ट में उत्कृष्ट | पल्य १ लाख वन १पल्य १ लाख वर्ष असंख ऊपज आंगुलनों असंखभाग १हजार योजन मजना भजना ३२८ भगवती-जोड़ (खण्ड-६) Jain Education Intemational Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ कषाय द्वार इन्द्रिय द्वार समुदयात द्वार| वेदना द्वार| वेद द्वार | १८ ६ अध्यवसाय द्वार अनुबंध द्वार | जघन्य उत्कृष्ट नाणता आयुद्वार जधन्य उत्कृष्ट कायसंवेषद्वार जघन्य उत्कृष्ट जघन्यकाल उत्कष्ट काल ३पल्य २स्त्री अपपाय पुरुष | पल्य अचपाव पल्य पहली अधपाव पल्य अधपाव पल्य | ३पल्य१पल्य १ लाख वर्ष अधपाव पल्य अधपाव पल्य ३पल्य अधपान पल्य भूडा ३पल्य - २ २स्त्री पुरुष १पल्य १लाख दर्द भला भंडा १पल्य ३पल्य १लाख वर्ष १पल्य १लाख वर्ष १पल्य | ३ पल्य १पल्य१लाख वर्ष १लाख वर्ष पहली आयु. अनु रस्सी | अधपाव | अधपाव मला - २ अधपाद पल्य पहली अपपाव पल्य अपपाव पल्य अघपाव पल्य | अघपाव पल्य अधपाय पल्य अद.आयु. अनु ३ ३पल्य ३पल्य ३पल्य ३पल्य पहली २स्त्री पुरुष । २ आयु अनुबंध ३पल्य अधपाव पल्य ३पल्य१पल्यालाख वर्ष ३पल्य अघपाव पल्य ३पल्य अपपाव पल्य ३पल्य १पल्य १ लाख वर्ष ३पल्य १पल्य १ लाख वर्ष | १३ १४ १५ । १७ संज्ञा द्वार | काय द्वार इन्द्रिय द्वार समुदपात द्वार| वेदना द्वार| वेद द्वार | आय द्वार | जघन्य | उत्कृष्ट अध्यवसाय द्वार अनुबंध द्वार नाणत्ता कायसवेध द्वार असंख्याता जघन्य उत्कृष्ट जघन्य | उत्कृष्ट जघन्य काल उत्कृष्ट काल अयपाव।३पल्य अधपाव |३पल्य पहली २स्त्री पुरुष भला भंडा २ १२ अधपाव पल्य अधपाद पल्य अधपाव पल्य अधपाव पत्य ३पल्य१पल्य १ लाख वर्ष ३पल्य अधणाव पल्य । २स्त्री १पल्य ३पल्य ३पल्य पहली भला भंडा १पल्य लाख वर्ष १पल्य १ लाख वर्ष १पल्य ३पल्यपल्य१लास वर्ष १लाख वर्ष १लाख वर्ष अव, आयु.अनु. रस्त्री अघपाव भला अपपाव पल्प अघपाव पल्य] अधपाद पत्य अघपावपत्य पहली अधपाव पल्प अधपाव | अघमाव पल्य पुरुष अन, आयु.अनु रस्त्री अलापल्य | ३पल्य पहली अब, आयु अनुबार 3पल्य आपाव गला ३पल्यधपावल्य शल्य १पल्यालास वर्ष ३पल्यपल्य१लाख वर्ष उपत्य जपाव पल्य ३पल्यपल्य १ लाख वर्ग १ १२ कवायदार संज्ञा द्वार न्द्रिय द्वार समुदधात द्वार| वेदना द्वार | वेद द्वार अध्यवसाय द्वार अनुबंधद्वार नाणत्ता आयुद्वार जघन्य उत्कृष्ट कायसंवेषद्वार जघन्य काल । उत्कृष्ट काल असख्याता जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त कोडपूर्व | अंतर्मुहूर्त | कोडपूर्व पहली भंडा ५अंतर्मु अधपाव पल्य ४कोडपूर्व ४ पल्य४ लाख वर्ष १अतम अघपाव पल्य ४ कोडपूर्व अधपाव पल्य १अंतर्मु१पत्य१लाख वर्षकोडपूर्व ४ पल्य४ लाख वर्ष २ । ३ अंतर्मुहत अंतर्मुहूर्त मता अंतर्गत अंतर्मुहूर्त पहली अव लेश्या दृष्टि ज्ञान-अज्ञान समु. आय.आय.अन. १अंतर्मु अवपाव पल्य अंतर्मु४ पल्य४ लास वर्ष १अंतर्मु अघपाव पल्य ४ अंतर्मु ४ अपपाव पल्य १अंतर्मु.१पल्य १ लाख वर्ष ४ अंतर्मु ४ पल्य ४ लाख वर्ष । २ । ३ | कोडपूर्व | कोडपूर्व | भता | कोडपूर्व | कोडपूर्व । पहली भूख आयु अनुबंध १कोडपूर्व अपपाद पल्य ४ कोडपूर्व ४ पल्या४ लाख वर्ष १ कोडपूर्व अधपाद पल्य ४ कोडपूर्व अधपाव पल्य १ कोडपूर्व १पल्य १ लाख वर्ष ४ कोडपूर्व ४ पल्य ४ लास वर्ष गमा ३२६ Jain Education Intemational Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४८ ज्योतिषी में संख्याता वर्ष नों सन्नी मनुष्य ऊपजै तेहनों यंत्र (४) गमाः २० द्वार नी राख्या उपपात टार संपयन द्वार अवगाहना द्वार मंडाणटार लेश्या द्वार | दृष्टिद्वार ज्ञान-अज्ञानदार योगद्वार उपयोग द्वार परिमाण द्वार उत्कृष्ट उत्कृष्ट ५ १२.३ ओधिक नै ओधिक | अधपाव पल्य ओधिक नै जघन्य अघपाव पल्य ओधिक नै उत्कृष्ट १पल्य१लाख वर्ष १पल्य१लाख वर्ष अपपाव पल्य १पल्य १ लाख वर्ष संख्याता ऊपजै पृथक आगुल ५सी धनुष्य भजना अपधावपल्य संख्याता जघन्य नै औधिक जघन्य जघन्य जपन्य नै उत्कृष्ट १पल्य १ लाख वर्ष अधपाद पल्य १पल्य १ लाख वर्ष रूप पृथक आंगुल पृथक आंगुल भजना १पल्यलाय वर्ष उत्कृष्ट नै ओधिक अधपाद पल्य १पल्य १ लाख वर्ष - १२.३ | उत्कृष्ट जपन्य | अधपाव पल्य अधपावपल्य ऊपजे उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट | १पल्य १ लाख वर्ष |पल्य १ लाख वर्ष संख्याता ऊपजे धनुष्य ५सी धनुष्य बजाना १. प्रथम दो देवलोक में ४-४ ठिकानां ना ऊपजै - तिथंच युगलियो १. संख्याता वर्ष ना सन्नी तिर्यच पंचेंद्रिय २. मनुष्य युगलियो ३. संख्याता वर्ष नां सन्नी मनुष्य ४. तीसरे से आठवें देवलोक तक २-२ ठिकाना ना ऊपजे-संख्याता वर्ष ना सन्नी तिथंच पंचेंद्रिय १. संख्याता वर्ष ना सन्नी मनुष्य २. नौये देवलोक से सर्वार्थसिद्ध तक १-१ ठिकानां ना ऊपज-संख्याता वर्ष ना सम्नी मनुष्ण। १४६ पहले देवलोक में तिर्यंच युगलियो ऊपजै तेहनों यंत्र (9) गमा २० द्वार नी संख्या परिमाण द्वार संघयण द्वार संठाण द्वार लेश्या द्वार दृष्टि वार ज्ञान-अज्ञानद्वार योग द्वार | उपयोग द्वार उपपात द्वार जघन्य । अवगाहना द्वार जघन्य उत्कृष्ट उत्कृष्ट १ २ ओधिक ओपिक ओधिक नै जयन्य १पल्य । ३पल्य १२.३ संख्याता ऊपजै नाराच गाड समचौरंस पहली नियमा ओधिक नै उत्कृष्ट ३पल्य ३पल्य १२.३ संख्याता ऊपजे पृथक धनुष्य २सम्यक गिध्या कपमनाराच गाऊ समचौरंश पहली नियमा नियमा जघन्य नै औधिक १पल्य १२.३ २गाक २राग्यक संख्याता ऊपजै पृथक धनुष्य अपम नाराच समचौरंस पहली नियमा नियमा xगमा टूटा |xगमा टूटा १पल्य ૧૨૩ संख्याता सम्यक उत्कृष्ट नै औधिक उत्कृष्ट न जपन्य उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट ३पल्य १पल्य उपल्य प्राम नाराय गाऊ समचौरस नियमा नियमा ३पल्य १५० दूजै देवलोक में तिर्यंच युगलियो ऊपजै तेहनों यंत्र (२) गमा २०द्वार नी संख्या उपपातद्वार परिमाण द्वार संघयण द्वार अवगाहना द्वार संठाण द्वार । लेश्या द्वार | दृष्टिद्वार ज्ञान-अज्ञानद्वार । जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट ३ १ |पल्य संख्याता पृथक ओधिक नै औधिक १पल्य जाझो १२.३ ओधिक जघन्य १पल्य जाझो १पत्य जाझो। ऊपजै ऋषभ नाराच रामचौरंस पहली मिथ्या नियमा नियमा ओधिक नै उत्कृष्ट | ३पल्य पृथक १२.३ ऊपजे सम्यक मिध्या प्रामनाराय समचौरस पहली नियमा ४ जघन्य ओधिक १पल्य जाझो १पल्य जाझो संख्याता पृथक २ सम्यक १२.३ ऊपजे ऋषम नाराध गाऊ जाझी समचौरंस पहली नियमा नियमा ५xगमा टूटा ६xगगा टूटा २सम्यक उत्कृष्ट नै ओधिक | १पल्य जाझो | ३पल्य १२.३ उत्कृष्ट जपन्य | १चल्य जाझो | पल्य जाझो | ऊपजे | उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट ३पल्य ३पल्य पृथक धनुष्य ऋषभ नाराब पहली नियमा नियमा ३३० भगवती-जोड (खण्ड-६) Jain Education Intemational Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संज्ञा द्वार कषायनार इन्द्रियादार समुद्रात द्वार| वेदना द्वार| वेद द्वार आयु द्वार अध्यवसाय द्वार अनुबंध द्वार नाणत्ता भव कायसंवैध द्वार जघन्य उत्कृष्ट असंख्याता जघन्य | उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट जघन्यकाल उत्कृष्ट काल कोडपूर्व भला पृथक मास पृथक मास कोडपूर्व पहली १पृथक मास अधपाव पल्य ४ कोडपूर्व ४ पल्य ४ लाख वर्ष १पृथक मारा अधपाव पल्य ४ कोडपूर्व ४ अषपाव पल्य १पृषकमासपपल्य१लाख वर्ष ४ कोडपूर्वपल्य४ लाख वर्ष भला पृथक पृथक मास पहली पृथक पृथक मास मास अव ज्ञान,समु २ १पृथक् मास अपपाव पल्य vधकमास४ पल्य ४लाखदर्ष १पृथक गास अपपाव पल्य ४ पृथकमास ४ अघपाव पल्य १पृथक् मासपल्य१लाख वर्ष ४ पृथकमास ४पला ४ लाख वर्ष २ । ३ | कोडपूर्व | कोडपूर्व जला कोडपूर्व कोडपूर्व पहली धुंडा अव आयु. २ १कोळपूर्व अधघाव पल्य १कोडपूर्व अधपाव पल्य १कोडपूर्त १पल्या सात वर्ष ४ कोडपूर्व ४ पल्य ४ लाख वर्ष |४कोडपूर्व ४ अधपाय पल्य ४ कोडपूर्व ४ पल्य ४ लाख वर्ष १३ १४ १६ इन्द्रिय द्वार | समुदधात द्वार| वेदना द्वार | वेद द्वार संज्ञा द्वार कवाय द्वार । आयुद्वार अध्यवसाय द्वार अनुबध द्वार नाणता कायसंवैध द्वार जघन्य उत्कृष्ट असंख्याता जघन्य उत्कृष्ट जघन्य | उत्कृष्ट। जघन्य कात उत्कृष्ट काल | १पल्य पल्य १पल्य। ३पल्य १पल्य १पल्य १पल्य १पल्य ३पल्य ३पल्य ३पल्य १पत्य पहली भंडा | पल्य ३ पल्य भला ३पल्या आयु.. अनु ३ पल्य ३पल्य ३पल्य ३पल्य ३ पहली २स्सी पुरुष १पल्य १पल्य १पल्य २ स्त्री पुरुष . |xx यु ३ पल्य ३पल्य आयु अनुवप ३ पल्य १पला ३पल्य १पल्य ३पल्य ३ पल्ल ३पल्य ३पल्य ३पल्य १पल्य ३पल्य ३पल्य १६ १२ |कवायदार इन्द्रियादार ज्ञा द्वार समुदघात द्वार वेदनाद्वार वेद द्वार ____ आयु द्वार अध्यवसाय द्वार अनुबंध द्वार जघन्य । उत्कृष्ट कायसवेध द्वार जपन्य | उत्कृष्ट | जघन्य काल उत्कृष्ट काल |१पला जाझोपल्याजाझोपल्य३पल्य १पल्य जाझोपल्य जाझोपल्य१पल्य जाझो २त्री १पल्य जाझो ३पल्य मला १पल्य पल्य पहली ३पल्य पल्य मला रस्त्री पुरुष २आयु.अनु ३पल्य३पल्य पहली मुंडा १पल्य १पल्य १पल्य |१पल्य जामो १पल्य जाझोपत्य जाझोपपत्य जाझो जामो जाडो जाझो अब.आयु.अनु ३पल्य ३पल्य ३पल्य आयु 4000 ३पल्या पत्य जाडो ३पल्य ३ पल्य ३पत्न्य३पल्य ३पल्टपल्य जाओं ३पल्य ३ पल्य अनुबंध गमा ३३१ Jain Education Intemational Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५१ पहले दूजे देवलोक में संख्याता वर्ष नां सन्नी तिर्यंच पंचेंद्रिय ऊपजै तेहनों यंत्र (३) १ उपपात द्वार दूसरे में जघन्य संघयण द्वार सठाण द्वार लेश्या द्वार दृष्टि द्वार ज्ञान-अज्ञान द्वार योग द्वार गना पहले में - जघन्य उत्कृष्ट उपयोग द्वार परिमाण द्वार जघन्य उत्कृष्ट अवगाहना द्वार जघन्य भजना | आंगुलनों असंख भाग भजना | १ १पल्य २ सागर १पल्य जा. २सागर जा. २ |१पत्य | पल्य १पल्य जा. १पल्य जा. २सागर २सागर | २सागर जा.२सागर जा. ३ १२३ ऊपज १हजार योजन ऊपजे |२सागर जा. पृथक ४पहली २सम्यक | नियमा | नियमा १पल्या २सागर । १पल्यजा. १पल्य जा. सागरसागर २सागर जा. १२.३ ऊपजे ऊपजे आंगुलनों असंख भाग २सागर जा. १२३ भजना १पल्यासागर १पल्य जा. १पल्यपल्य १पल्य जा. सागर २ सागर | सागर जा. भजना |२सागर जा. १पला जा. २सागरजा .. आंगुलनों असंखभाग ऊपजे ऊपजे योजन १५२ प्रथम देवलोक में मनुष्य युगलियो ऊपजै तेहनों यंत्र (४) गमा २० द्वार नी संख्या उपपात द्वार संघयण द्वार अवगाहनाद्वार सठाण द्वार लेश्या द्वार दृष्टि द्वार ज्ञान-अज्ञान द्वार योग द्वार उपयोग परिमाण द्वार उत्कृष्ट उत्कृष्ट उत्कृष्ट १२.३ २सम्यक २ ओधिकनै औधिक ओधिकनै जघन्य १पल्य १पल्य ३पल्य १पल्य संख्याता ऊपजै ऊपजे माम नाराब गाऊ समचौरंस नियमा नियमा ३ ओधिक नै उत्कृष्ट ३पल्य ३पल्य बज १.२.३ ऊपजे संख्याता ऊपजै २सम्यक मिया वापभन्दाराच गाऊ गाऊ समचौरंस नियमा नियमा जघन्यन ओधिक १पल्य १पल्य संख्याता १गाठ २सम्यक ऋामनाराब १पल्य राख्याता उत्कृष्ट नै ओधिक उत्कृष्ट नै जघन्य उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट सम्यक मिथ्या ऋामनारा सगचौरस पहली नियमा ३पल्य ३३२ भगवती-जोड़ (खण्ड-६) Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ कषाय द्वार इन्द्रिय द्वार समुदपात द्वार वेदना द्वार देदवार आयु द्वार आध्यवसाय द्वार अनुबंध द्वार नाणत्ता जघन्य उत्कृष्ट असंख्याता अंतर्मुहूर्त कोडपूर्व अंतर्मुहूर्त पहली श पहली |अतर्भुत अंतर्मुहूर्त - अब लेश्या दृष्टि ज्ञान-अज्ञान् सगु. आयु, अध्य, अनु कोडपूर्व कोडपूर्व मला कोडणूर्व कोतपूर्व आए अनुबंध २० कायसंवेध द्वार पहले मैं दूसरे में | उ. जाटन्यकाल अपनाकाल १ १ पल्य १आपल्य १.अंतर्गु र सागर ४ कोडपूर्व सागर । ४ोडपूर्व ४ पल्या ४ कोडपूर्व : सागर अंतर्नु.१पल्यवाओ १अंग पत्य जाने १९.२ सागर जाझो उत्कृष्ट काल कोडपूर्व सागरजाझा ४ कोडपूर्व ४ चल्य जाझो कोडपूर्व सागर जाझी १अंत.१पत्य १.अंतम पल्य १अंतर्मुर नागर ४ अंतसागर ४ अंतर्ग,४ पल्या ४ अंतररागर अतर्यपत्य जाझो अंतर्मुसागरजाम्रो १अंतर्गचल्य जाझो अंतk४ पल्य जाझो १ अंतर सागर जाझो | ४ .८ सागर जाझो १कोडपूर्व १ पत्य १कोडपूर्व १ पल्य १कोडपूर्व र सागर ४ कोडपून सागर ४ कोडपूर्व ४ गल्प ४ कोडपूर्व सागर १ कोडपू १पल्या गाझो ४ कोहपूर्व : सागर जाझो ५ कोउपापल्य जाझे ४ कोडपूर्व ४ पत्य जाझो ५ कोडपूर्व र शागर नाझो | ४ कोडपूर्व ८ सागर जामो कषाय द्वार इन्द्रिय द्वार १५ समुदपात द्वार वेदनाद्वार वेद द्वार आयुद्वार १८ १९ अध्यवसाय द्वार अनुबंध द्वार असख्याता | जघन्य उत्कृष्ट । कायसंवेध द्वार जघन्य उत्कृष्ट जधन्दकाल उत्कृष्ट काल २खी १चल्य ३पल्य २२ २२ ३पल्य३पल्य उपल्यपल्य पहली १पल्य १पल्य भला ३पल्य ३पल्य३पल्य रखी पुरुष पहली अव आयु. अनु १पल्य |१पल्य१पल्य १पल्य १पल्य अब, आयु, अनु. ३पल्यपल्य ३पल्य ३पल्य रखी पुरुष अव, आयु, अनुबंध ३पल्य १पल्य ३पल्य १पल्य पन्यपल्य ३पल्यपल्य ३पल्य १पल्य ३पत्य ३पल्य गमा ३३३ Jain Education Intemational Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५३ दूसरे देवलोक मे मनुष्य युगलियो ऊपजै तेहनों यंत्र (५) गमा २०द्वार नी संख्या परिमाण द्वार संघयण द्वार अवगाहना द्वार संठाण द्वार लेश्या द्वार | दृष्टि द्वार ज्ञान-अज्ञानदार योग द्वार उपपात द्वार जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट १गाऊ १ २ ओधिक ओधिक ओधिक नै जयन्य १पल्य जाझ ३पल्य १पल्य जाझोपल्य जाझो १२३ ऊप सख्याता ऊपजे १वज ऋाम नाराय २ सम्यक मिया गाऊ समचौरंस पहली नियमा निया ३ ओधिक नै उत्कृष्ट उपल्य |३पाय १२.३ ऊपजे सम्यक मिथ्या ऋपम नाराच गाऊ समचौरस पहली नियमा नियमा ४ जघन्य नै ओधिक १पल्य जाझो | १पत्य जाझो १.२.३ संख्याता गाऊ जाझी १गाऊजाझी ऊपजे ऋषभ नाराष रामचौरंस पहली | सम्यक निध्या नियमा नियमा १२.३ संख्याता उत्कृष्ट नै ओधिक उत्कृष्ट नै जघन्य उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट | १पल्य जाझे ३पल्य पत्य जाझोपल्या जाझो उपल्य ३पल्य ऋषभ नाराच गाऊ समचौरस पहली नियमा १५४ पहले दूजै देवलोक में संख्याता वर्ष नां सन्नी मनुष्य ऊपजै तेहनों यंत्र (६) १ उपपात द्वार गमा पहले में दूसरे में परिमाण द्वार संघयण द्वार जघन्य उत्कृष्ट| जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट अवगाहनादार संठाण द्वार। लेश्या द्वार दृष्टिदार ज्ञान-अज्ञानद्वार योग द्वार उपयोग ર? ४भजना कपल्य रसागर |१पल्य जाझो २सागर जाझो १ पल्प जाझो १षल्य जाझो रसागर २सागर २सागर जाझो २सागरजाझो संख्याता उपजे पृथक आंगुल ५सी धनुष्य ३भजना पृथक भजना १पल्य २सागर १पल्य १पल्य २सागर रसागर १पल्य जाझो रसगर जाझो १पल्य जाझो १पल्य जाझो २सागर जाझो |२सागर जाझो १२.३ ऊपजे संख्याता ऊपजे पृथक आंगुल संख्याता ४ भजना | ५ भजना १पल्य | २ सागर |१पल्य जाझो | सागर जाझो १पल्य १पल्य १पल्य जाझो |१पल्य जाझो २सागर २सागर २ सागर जाझो २सागर जाझो १२.३ ऊपजे ५ सौ धनुष्य धनुष्य ३३४ भगवती-जोड़ (खण्ड-६) Jain Education Intemational Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 99 संज्ञा द्वार X 99 शाद्वार ४ १२ कषाय द्वार x ४ x x x ४ १३ इन्द्रिय द्वार ५ १२ कषाय द्वार ४ ५ ५ ५ X X ५ १३ इन्द्रिय द्वार ५ ५. अं १४ समुद्धात द्वार 19 ५ 3 पहली 3 पहली ३ पहली X X 3 पहली १५ वेदना द्वार २ ६ केवल वर्जी ५. पहली २. ६] केवल वर्जी २ १४ समुद्घात द्वार ७ २ ~ xx १६ वेद द्वार ३ २. स्त्री पुरुष २. स्त्री पुरुष २ स्त्री पुरुष X X २ स्त्री पुरुष १५ वेदना द्वार २ १७ आयु द्वार उत्कृष्ट ३ पल्य जघन्य १ पल्य जानो ३ पल्य १ पत्य जाझो X X ३ पल्य १६ वेद द्वार ३ ३ पल्य 3 २ २ २ १ पल्य जाझो X X 1 २ ३ पल्य जघन्य २ २ २ २ भव १८. अध्यवसाय द्वार असंख्याता 225 JUU ८ उत्कृष्ट E भूंडा भला भूंडा भला मूंडा X X भला मूंडा जघन्य पृथक् मास पृथक् मारा कोडपूर्व १९ अनुबंध द्वार जघन्य १ पल्य जाझी ३. पल्य १पल्य जानो X ३ पल्य 949 आयु द्वार उत्कृष्ट ३ पल्य कोटपूर्व जघन्य काल उत्कृष्ट पृथक् मास को पूर्व ३ पल्य १] पल्य X ३ पल्य × १ कोमपूर्व १ पल्य १ कोडपूर्व १ पल्य १ कोडपूर्व २ सागर १ पृथक मास १ पल्य [१] पृथक मास १ पल्य १ पृथक मास र सागर १ पृथक मास १ पल्य १ पृथक मास १ पल्य १ पृथक मास २ सागर प्रथम देवलोक में ३ अव., आयु. अनु अब., आयु. अनु X X १८ अध्यवसाय द्वार असंख्याता मला 3 अब, आयु अनुबंध नाणता मूंडा भला मूंडा भला ड उत्कृष्ट काल ४ कोडपूर्व ८ सागर ४ कोडपूर्व ४ पल्य ४ कोडपूर्व ६ सागर ४ पृथक मास सागर ४ पृथक मास ४ पल्य ४ पृथक् मास सागर ४] कोडपूर्व सागर ४ कोडपूर्व ४ पल्य ४ कोडपूर्व सागर ८ जघन्य २ २ २ x x ~~? जघन्य २० कायसंवेध द्वार भव पृथक् मास पृथ्थक मास कोडपूर्व उत्कृष्ट २ २ २ २ X X २ २ २ १६ अनुबंध द्वार जघन्य काल १ पल्य जाझो १ पल्य जानो १ पल्य जाझो १ पल्य जाझो ३ पल्य ३ पल्य ३. पल्य १ पल्य जाझो ३ पान्यपत्य जो ३ प ३ पला जघन्य काल उत्कृष्ट कोडपूर्व पृथक् मास कोडपूर्व १ पल्य जाझो १ पत्य जाझो १ पल्य जानो पल्य जाझी २० कायसंवेध द्वार १ पृथक मास १ पद जानो १ पृथक मास १ पल्य जाझो १ पृथक मास २ सागर जाझो दूसरे देवलोक में १. पृथक मास १ पल्य जाझो १ पृथक मास १ पल्य जाझो १ पृथक मास २ सागर जाझो १ कोडपूर्व १ पल्य जानो १ कोडपूर्व १ पल्य जानो १ कोडपूर्व २ सागर जाझो ३ पल्य३ पल्य ३ पल्य १ पल्य जाझो [३] पल्य३ पत्य उत्कृष्ट काल १ ३ पल्य ३ पल्य ३ पल्य १ पय जाझो ३ पल्य ३ पल्य नाणत्ता ५ अव ज्ञान समु. आयु. अनु. अब.. आयु अनुबंध X ६ उत्कृष्ट काल ४ कोडपूर्व सागर जाझो ४ कोडपूर्व ४ पल्य जाझो ४ कोडपूर्व सागर जाझो ४ पृथक मास ४ पृथक मास ४ पृथक मास सागर जाझो ४ पल्य जाझो सागर जानो ८ ४ कोडपूर्व सागर जाझो ४ कोडपूर्व ४ पल्य जाझो ४ कोडपूर्व सागर जाझो गमा ३३५. Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५५ तीजे चौथे पांचवें देवलोक में संख्याता वर्ष नां सन्नी तिर्यंच ऊपजै तेहनों यंत्र (७) १ उपपात द्वार गमा तीसरे में । | चौथेमे पांचवे में परिमाण द्वार जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट संघयण द्वार अवगाहना द्वार संठाणद्वार लेश्या द्वार दृष्टि द्वार शान-अज्ञान द्वार योग द्वार उपयोग द्वार उत्कृष्ट | सा. १० सा. - १२.३ ३भजना- ३ ७सागर२सा. जा २ सागर २सा. जा ४सागर ७सा. जा ७सा जा. २सा जा. साजा. संखया असंख तीजे चौथे आंगुलों देवलोक में | असंख 1५ संधवणी पजे] भाग योजन १० सा. सा. २सम्यक नियमा २नियमा EE 555 ऊपजे संखया असंख ऊपजे । देवलोक में ५संघवनी ऊपजे पृथक धनुष्य २सा जा ७सा जा. १० सा. १२.३ ३मजना ३भजना FEE ७सा. २सा. सा. जा ७सा, साजा संखया असंख उप आंगुलनों असंख १हजार योजन सा.जा. १५६ छठे सूं आठवें देवलोक में संख्याता वर्ष नों सन्नी तिर्यंच ऊपजै तेहनों यंत्र (८) गमा उपपात द्वार आठवें में परिमाण द्वार उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट जयन्य | उत्कृष्ट संघयण द्वार अवगाहना द्वार नादार | सठाण द्वार | लेण्या द्वार । दृष्टिद्वार ज्ञान-अज्ञानद्वार योग द्वार छठे मे सातवें में जपन्य | उत्कृष्ट जघन्य उपयोगहार १.सा. १२.३ भजना ३मजना ११० सागर १४ सागर | १४ सागर २० सागर 40 सागर १४ सागर ३४ सागर १४ सागर सागर १७ सागर | १७ सा. सागर " सागर | छते देवलोक में५ संघयणी उपजै हजार योजन असंख ऊपजे | आंगुलनों असंय भाग आंदुलना पृथक २सम्यक नियमा २नियमा ४० सागर ४ सागर ५ सागर सागर सागर १४ सागर १४सागर सागर सागर अपने असंख | ४सागर "सागर सातवें आंठवें देवलोक में संघदनी ऊपजै भाग संखया भजना ३भजना 10 सागर |१४ सागर ६० सागर | सागर १४ सागर १४ सागर सागर १४ सागर ७ सागर । सागसा १४ सागर १७ सा. १४ सागर १८ सा. सा. १२.३ अपज सा. आंगुलनों असंख योजन ऊपजै भाग ३३६ भगवती-जोड़ (खण्ड-६) Jain Education Intemational Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संज्ञा द्वार कवायदार इन्द्रिय द्वार समुद्घातद्वार वेद द्वार आयुद्वार आध्यवसाय द्वार अनुबंध द्वार नामत्ता जघन्य उत्कृष्ट असंख्याता जघन्य उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त | कोडपूर्व अंतर्मुहूर्त फोडपूर्व पहली भंडा ३पहली अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त अव., लेश्या, दृष्टि, ज्ञान-अज्ञान,समु. आयु.अध्य,अनु. कोडपूर्व | कोडपूर्व कोडपूर्व कोटपूर्व आयु अनुबंध २० कायसंवेध द्वार तीसरे देवलोक में चौथे देवलोक में पांचवें देवलोक में जपन्य काल उत्कृष्ट काल जघन्य काल उत्कृष्ट काल जघन्य काल उत्कृष्ट काल १ अंतर्ग, २सागर १ अंत सागर १ आ.७ सागर ४ कोडपूर्व २८ सागर ४ कोडपूर्व - सागर ४ कोडपूर्व २८ सागर १अंतर्मु.२सागर जाझो १अंत २सागरजाझो १अंतर्मु.७ सागर जाझो ४ कोडपूर्व २८ सागरजाझो | अंतर्मुसागर ४ कोडपूर्व सागर जाझों | १अंतर्मु, ७ सागर ४ कोडपूर्व २८ सागर जाझो | १अंतर्मु, १० सागर ४ कोडपूर्व ४० सागर ४ कोडपूर्व २८ सागर ४ कोडपूर्व ४० सागर IAN WANA १ २सागर १अंत सागर १अंतर्मु७ सागर ४ अंतर्मु २८ सागर ४ अंतर्मसागर ४ अंत २८ सागर १अंतर्मु. २सागर जाझो १अंतर्मु २ सागर जाझो १अंत ७ सागर जाझो ४ अंतर्मु २८ सागर जाझो । १अंतर्मसागर ४ अंतर्मु ४० सागर [४ अंतर्मु सागर जाझो १अंतर्मु सागर ४ अंतर्मु२८ सागर 1४ अंतर्मु२८सागर जाझो । १ अंतर्मुसागर | |४ अंतर्मुसागर १ कोटपूर्व २ सागर १कोडपूर्व सागर १कोडपूर्व ७सागर ४ कोडपूर्व २८ सागर ४कोडपूर्व सागर ४ कोडपूर्व २८ सागर १को पूर्व रसागरजाझी ४कोडपूर्व २८ सागर जाझो । १कोडपूर्व ७ सागर | कोडपूर्व ४० सागर १कोडपूर्व २सागर जाझो ४कोडपूर्व सागरजामो १कोडपूर्व ७ सागर कोडपूर्व २८ सागर १कोडपूर्व ७ सागर जाझो | ४ कोडपूर २८ सागर जाम्रो | १ कोडपूर्व १० सागर | ४ कोडपूर्व ४० सागर | संज्ञा द्वार कवाय द्वार | इन्द्रिय द्वार | समुदपात द्वार वेदना द्वार वेद द्वार आयु द्वार नाणता अध्यवसाय द्वार असंख्याता अनुबंध द्वार जघन्य जघन्य उत्कृष्ट उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त कोडपूर्व अंतर्मुहूर्त | कोडपूर्व भंडा ३पहली ३ | अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त अब.. दृष्टि ज्ञानअज्ञान, समु. आयु. आय. अनु ३ | कोडपूर्व कोडपूर्व कोडपूर्व । कोडपूर्व भला भंडा पहली आयु अनुबंध २० कायसंवेध द्वार छठे देवलोक में सातवें देवलोक में आठवे देवलोक में उत्कृष्ट काल जघन्य काल उत्कृष्ट काल जधन्य काल उत्कृष्ट काल WANI १अंतर्मुसागर १अंतर्ग, सागर १ अंतर्मु.४ सागर ४ कोडपूर्व ५६ सागर ४ कोडपूर्व ४० सागर ४ कोडपूर्व ५६ सागर १अंतर्मु.१४ सागर १अंतर्गु, १४ सागर १अंतर्मु.७ सागर | ४ कोडपूर्व ६८. सागर [४ कोडपूर्व ५६ सागर ४ कोडपूर्व ६८ सागर १ अंत सागर १अंतर्मु, १७ सागर १अंत १८ सागर | ४ कोडपूर्व०२ सागर ४ कोडपूर्व ६८ सागर ४ कोडपूर्व ७२ सागर १ अंत, सागर १ अंतर्मु सागर १ अंत. १४ सागर ४ अंतर्मु ५६ सागर ४ अंतर्मु, ४० सागर ४ अंत ५६ सागर १अंतर्मु, १४ सागर १अंतर्मु. १४ सागर १अंत १७ सागर |४ अंतर्मु.६८ सागर ४ अंतर्मु५६ सागर | ४ अंतर्मु६८ सागर १अंतर्मु ा सागर १ अंतर्मु, १७ सागर १ अंतर्मु, १ सागर ४ अंतर्मु ७२ सागर | ४ अंतर्मुसागर ४ अंतर्मु, ७२ सागर १कोडपूर्व १० सागर १कोडपूर्व १० सागर १ कोडपूर्व १४ सागर | ४ कोडपूर्व ५६ सागर ४ कोडपूर्व ४० सागर कोडापूर्व ५६ सागर १कोडपूर्व ४ सागर १ कोडपूर्व १४ सागर १कोडपूर्व १७ सागर |४ कोडपूर्व ६८ सागर |४कोडपूर्व ५६ सागर ४ कोडपूर्व ६. सागर १कोडपूर्व सागर ४ कोडपूर्व ७२ सागर १कोडपूर्व १७ सागर | ४ कोडपूर्व ६८ सागर १कोडपूर्व १, सागर |४ कोडपूर्व ७२ सागर गमा ३३७ Jain Education Intemational Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५७ तीजै सूं बारहवें देवलोक में संख्याता वर्ष नों सन्नी मनुष्य ऊपजै तेहनों यंत्र (६) १ उपपात द्वार तीसरे मे चौथे में पांच में सातवे में | आठवे में | गमा नौवे में | दसर्वे मे । ग्यारहवें में बारहम , एज २. जसजसस.. सा रूसा. अधिक नै अधिक अधिक जघन्य ओधिक नै उत्कृष्ट ३ स. जययनअधिक FRE जपन्य उत्कृष्ट |RRKI88 उत्कृष्ट ने ओधिक उत्कृष्ट जघन्य २ स. । उत्कृष्ट नै उत्कृष्टस kkk रासस पास रूस कायसवेधद्वार तीसरे 4 चे 934 गमा भव 16 २२ ३२- षक वर्ष २ सागर | कोडपूर्व २८ सागर पक र सागर | कोडपूर्व सागर धकृवर्ष सागर ४ कोडपूर्व सागर । १ १ १ का २ सा. जा. | ४ कोहपूर्व सा जा. धक वर्ष २ सा. जा. I४ कोडपूर्व ८ सजा ७स.ज ४ कोहपूर्व सा.ज १पृथक वर्ष ७ सागर १पृथक वर्ष ७ सागर १पृषक व सागर ४ कोडपूर्व ४० सागर | ४ कोडापूर्व २. सागर । |४ कोडार्व भ सागर श्यक सागर भक सागर १ पृथक वर्ष १४ सागर कोडपूर्व ५६ सागर | | ४ कोटपूर्व ४० सागर | ४ कोडपूर्व ५६ सागर १४ सगर | ४ कोहपूर्व समर सागर | ४ कोडपूर्व सार पपृथक वर्ष १७ सागर | ४ बेवपूर्वक / 1- 1- १पक वर्ष २ खगर | पृथक वर्ष २८ सागर । १पृषकक्ष२ स.ज पृथक वर्ष २ सागर ४ पृथक वर्ष ८ सागर १२ सजा पृथक वर्ष सागर | पृथक् वर्ष २८ सागर | १पृषक वर्व सा जा. ४ पृषक सा जा ४ वर्ष ६ सा जा गृहक वर्ष २. सा, जा. १पृथकवा सागर १पृथक वर्व ७ सागर १पृषक वर्व सागर |४पक्व ० सम्म १पक वर्ष खगर | पृथक वर्ष २८ सागर १क वर्ष सागर | ४षक वर्ष ४० सागर | १धक वर्ग १ सागर ४पृथक वर्ष ५६ सागर ४ पृषा ४७ समर ४ पृथक वर्ष ५६ सागर १श्यक व ४ सगर १पृथक वर्ष ४ सागर पथक वर्ष १७ सागर ४पृथक वर्ष ६८ ४ पृथक्त मा ४पृथक संसार | MmIII १ कोडपूर्व २ सागर कोटपूर्व २ सागर १कोडपूर्व सागर |४ोडपूर्व र सागर ४कोडपूर्व सागर | ४ को पूर्व सागर १ कोतपूर्व २ सा.जा. १ कोटपू२स.ज १ कोटपूर्व सा. जा ४ कोटपूस साज. | ४ कोटपूर्व - साजा ४ कोस.ज. Maa - राजा १कोडपूर्व७ सागर १कोडपूर्वसागर १कोडा सागर को पूर्वक सागर । मलाई के सागर । : मेरी ४ कोडपूर्व ४० सागर ४ोडपूर्व रसागर ४ कोठपूर्व सागर १ को क सागर १कोल्यू सागर कोडपूर्व ४ सागर ४ कोडपूर्व ५६ सागर ४ कोड ४० सागर ४कोडपूर्व ५६ सागर १ कोडपूर्व १४ सागर १कोडपूर्व ४ सागर १ कोठपूर्व सागर ४ कोडपूर्व ६ सय | ४ को पूर्व सास ४ झेडपूलै 2 ३८ भगवती-जोड़ (खण्ड-६) Jain Education Intemational Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३ परिभान द्वार संघयण द्वार ज्ञान-अशन द्वार अवगाहना द्वार | संठाण | लेश्या दृष्टि द्वार द्वार | द्वार जघन्य ११ १२ योग उपयोग संज्ञा | कवाय इन्द्रिय | समुद्घात | वेदना द्वारद्वार | द्वार | द्वार द्वार द्वार द्वार जघन्य उत्कृष्ट ३ आयुद्वार अध्यवसाय अनुबंध द्वार द्वार जघन्य उत्कृष्ट असंख्याता जघन्य उत्कृष्ट |पृथक कोड भला मक कोड वर्ष पूर्व मुंडा वर्ष पूर्व पृथक् हाथ ५सै धनुष्य बी |भजनामजना हाल १२. ३संख्याता तीजै चौथे कपरूपजै संघयणी उपक्षे पांच छ५ १.२.३ संख्याता संधयणी उपजै ऊपजे ऊपजे सात, आठ संघयगी ऊपज नवमा सूं बार १.२.३ संख्याता ३ संधयणी ऊपजै उपजै | ऊपजै। पृथक हाथ पृथक हाथ प्रियक पृथका वर्ष | वर्ष | भला भंडा पृथक वर्व पृथक वर्ष बजी अब.आयु अनु ५ ५सै भजना ३४ज ४ ५ चल | २ | ३ कोडपूर्व कोडपूर्व भला कोडपूर्व कोडपूर्व ३ अब.आयु,अनु धनुथ धनुष्य की आठवें में दसर्व ग्यारहवें बारहवें में पृथक वर्ष पृथक वर्ष । वृषक वर्ष सागर ४ कोडपूर्व ७२ सागर सागर कोडपूर्व ६८ सागर सागर ४ कोडपूर्व ७२ सागर २ पृथक वर्ष सागर कोडपूर्व ५७ सागर २ पृथक वर्ष सागर ४ कोडपूर्व सागर २ पृथक वर्ष १६ सागर ४ कोडपूर्व ५७ सागर २ पृथक् वर्ष १६ सागर ४ कोडपूर्व ५० सागर | २ पृथक वर्ष २० सागर ४ कोडपूर्व ६३ सागर २ पृथक वर्ष १६ सागर ४ कोडपूर्व ५७ सागर | २ पृथक वर्ष २० सागर ४ कोडपूर्व ६० सागर २ पृथक बर्ष २० सागर | ४ कोडपूर्व ६० सागर | २ पृथक बर्ष २१ सागर | कोडपूर्व ६३ सागर पृथक वर्ष २१ सागर | ४ कोडपूर्व ६६ सागर २ पृथक वर्ष २१ सागर | ४ कोडपूर्व ६३ सागर २ पृथक वर्ष २१ सागर | ४ कोडपूर्व ६६ सागर १ पृथक वर्ष सागर | पृथक वर सागर पृथक वर्ष ५८ सागर ४ पृथक वर्ष ५० सागर र पृथक वर्ष १ सागर पृषक वर्ष ६० सागर २ पृथक वर्ष २० सागर | पृथक व ६३ सागर २ पृथक वर्ष २१ सागर | पृथक वर्ष ६६ सा. पृथक वर्ष १७ सागर |४ पृथक वर्ष ६८ सागर ३ 10२ पृथक वर्ष १ सागर पृथक वर्ष ५४ सागर | २ पृथक वर्ष १६ सागर ४ पृथक वर्ष ५७ सागर २ पृथक वर्ष २० सागर | पृथक वर्ष ६० सागर २ पृथक वर्ष २१ सागर | पृधक वर्ष ६३ सा पृथक वर्ष १८ सागर | पृथक वर्ष ७२ सागर ३ पृथक वर्ष १६ सागर थक वर्ष ५७ सागर | २ पृथक वर्ष २० सागर | ४ पृथक वर्षे ६० सागर र पृथक वर्ष २१ सागर | ४ पृथक वर्ष ३ सागर २ पृथक वर्ष २२ सागर ४ पृथक वर्ष ६६ सा. कोडपूर्व ७ सागर कोडपूर्व ७ सागर कोडपूर्व सागर |४ कोडपूर्व ७२ सागर ४ कोडपूर्व ६८ सागर ४ कोडपूर्व ७२ सागर 1२ कोडपूर्व १. सागर ४ कोडपूर्व ५७ सागर २कोडपूर्व १८ गर ।४ कोडपूर्व ५४ सागर ७२ कोडपूर्व सागर ४ कोडपूर्व १७ सागर २कोडपूर्व १६ सागर 1२ फोडपूर्व १९ सागर २ कोडपूर्व २० सागर ४ कोडपूर्व ६० सागर | २ कोपूर्व २० सागर ४ कोडपूर्व सागर | २ कोडपूर्व २० सागर ४ कोडपूर्व सागर २ कोडपूर्व २१ सागर ४ कोडपूर्व ६३ सागर ४ कोडपूर्व ६० सागर ४ कोडपूर्व ६३ सागर २ कोडपूर्व २१ सागर |४ कोदपूर्व ६६ सागर २ कोडपूर्व २१ सागर ४ कोडपूर्व ६३ सागर २ कोडपूर्व ससागर | कोडपूर्व ६६ सागर गमा ३३६ Jain Education Intemational Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४० १५८ नौ ग्रैवेयक में संख्याता वर्ष नों सन्नी मनुष्य ऊपजै तेहनों यंत्र (१०) गमा २० द्वार नौ संख्या ~~~~~~ | UW | १ २ ओधिक मैं जघन्य ३ ४ ५ 19 ६ 9 २ 3 ५ www 19 L ओधिक नै ओधिक गमा २० द्वार नी संख्या ६ ओधिक नै उत्कृष्ट जघन्य नै ओधिक १ जघन्य नै जघन्य ४ जघन्य नै उत्कृष्ट उत्कृष्ट नै ओधिक ६ जघन्य नै उत्कृष्ट उत्कृष्ट नै जघन्य उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट अधिक नै ओधिक ओधिक नै जघन्य औधिक नै उत्कृष्ट जघन्य नै ओधिक जघन्य नै जघन्य 1. गमा २० द्वार नौ संख्या उत्कृष्ट नै ओधिक उत्कृष्ट नै जघन्य उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट ओधिक नै ओधिक जघन्य नै ओधिक जघन्य उत्कृष्ट नै ओधिक १ उपपात द्वार २२ सागर २२ सागर ३१ सागर २२ सागर २२ सागर ३१ सागर २२ सागर २२ सागर ३१ सागर १५६ चार अनुत्तर विमान में सन्नी मनुष्य ऊपजै तेहनों यंत्र (११) १ उपपात द्वार उत्कृष्ट जघन्य ३१ सागर ३१ सागर ३३ सागर ३१ सागर ३१ सागर ३३ सागर ३१ सागर ३१ सागर ३३ सागर जघन्य ३३ सागर भगवती जोड (खण्ड-६) उत्कृष्ट ३३ सागर ३१ सागर ३३ सागर ३१ सागर ३१ सागर २२ सागर ३१ सागर ३१ सागर २२ सागर ३१ सागर ३३ सागर ३१ सागर ३३ सागर ३३ सागर ३१ सागर ३३ सागर १ उपपात द्वार उत्कृष्ट ३३ सागर ३१ सागर ३३ सागर ३३ सागर जघन्य ३३ सागर १२.३ ऊपजै ३३ सागर १२.३ ऊपजै १२.३ ऊपजै १६० सर्वार्थसिद्ध में सन्नी मनुष्य ऊपजै तेहनों यंत्र (१२) २ परिमाण द्वार जघन्य १२.३ ऊपजै १२.३ ऊपजै २ परिमाण द्वार ૧૨૩ ऊपजै जघन्य उत्कृष्ट १२.३ ऊपजै संख्याता ऊपजे १२.३ ऊपजै संख्याता ऊपजै १२.३ ऊपजै संख्याता ऊपजै उत्कृष्ट संख्याता ऊपजै संख्याता ऊपजै संख्याता ऊपजै परिमाण द्वार उत्कृष्ट संख्याता ऊपजै संख्याता ऊपजै ३ संघयण द्वार ६ संख्याता ऊपजे २ वज ऋषम नाराच, ऋषभ नाराय २ वज्र ऋषभ नाराय ऋषभ नाराय २ बजे ऋषभ नाराच, ऋषभ नाराच 3 संपवण द्वार ६ १ वजे ऋषभ नाराच १ वज्र ऋषभ नाराच १ वज्र ऋषभ नाराच ३ संघवण द्वार ६ १ वज्र ऋषभ नाराय १वज ऋषभ नाराच १वज ऋषभ नाराय ४ अवगाहना द्वार उत्कृष्ट जधन्य पृथक् हाथ पृथक हाथ ५. सौ धनुष्य जघन्य पृथक् पृथक हाथ ४ अवगाहना द्वार ५. सौ धनुष्य जघन्य पृथक् हाथ ५. सौ धनुष्य पृथक् हाथ पृथक हाथ ५. सौ धनुष्य ५. सौ धनुष्य उत्कृष्ट अवगाहना द्वार उत्कृष्ट ५. सौ धनुष्य पृथक हाथ ५.सी धनुष्य 金进 धनुष्य पृथक् हाथ ५. सौ धनुष्य ५ संठाण द्वार ६ ६ ५. संठाण द्वार 葛 ६ w 13 ५. संठाण द्वार ६ 6 ६ ६ ६ लेश्या द्वार ६ ६ w लेश्या द्वार ६ ६ लेश्या द्वार ६. ७ दृष्टि द्वार ३ ३ 1 दृष्टि द्वारा 3 ३ w my 3 दृष्टिद्वार 3 3 ३ ज्ञान-अज्ञान द्वार ३ ५ ४ भजना ४ भजना - भजना ५ भजना ज्ञान-अज्ञान द्वार ३ ४ भजना ४ भजना ५ ४ भजना 3 भजना ४ भजना ३ भजना भजना भजना ज्ञान-अज्ञान द्वार 3 भजना ३ भजना ३ भजना 3 भजना ३ भजना ३ भजना १ योग द्वार 3 3 3 योग द्वार 3 3 m योग द्वार 3 ३ ३ उपयोग द्वार २ २ उपयोग द्वार २ उपयोग द्वार | Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११ १६ १५ समुदपात द्वार | वेदना द्वार | संज्ञा द्वार | कषाय द्वार इन्द्रिय द्वार १६ वेद द्वार | अध्यवसाय द्वार अनुबंध द्वार २० कायसवेध द्वार नाणत्ता आयु द्वार जधन्य उत्कृष्ट असंख्याता जघन्य | उत्कृष्ट जघना उत्कृष्ट जधन्यकाल उत्कृष्ट काल भला | पृथक | कोडपूर्व सर्व पृथक कोडपूर्व भंड वर्व २ पृथक वर्ष २२ सागर |४कोडपूर्व सागर २ पृथक् वर्ष २२सागर | ४ कोडपूर्व ६६सागर २ पृथक वर्ष ३१ सागर | ४कोडपूर्व ३सागर पृथक पृथक भला पृथल | पृथक । वर्ष वर्ष अद.आयु. २ पृथक वर्ष २२सागर | ४ पृथकवर्ष ६३सागर २ पृथक वर्ष २२ सागर |४पृथकवर्ष ६६सागर २ पृथकृवर्ष सागर vधकवर्ष सागर कर्जा ३ कोडपूर्व | कोडपूर्व | मला मुंडा कोडपूर्व | कोडपूर्व अब आय २कोडपूर्व २२ सागर २ कोडपूर्व २२ सागर २ कोड़पूर्व ३१सागर |४कोडपूर्व सागर ४कोडपूर्व ६६ सागर ४ कोडपूर्व सागर १५ वेदना द्वार १६ वेद द्वार संज्ञादार २० कायसवेध द्वार कषाय द्वार इन्द्रिय द्वार समुदधात द्वार | आयुद्वार अध्यवसाय द्वार अनुबंध द्वार नाणत्ता असंख्याता | जपन्य | उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट जघन्य काल उत्कृष्ट काल |जघन्य | उत्कृष्ट पृथक कोडपूर्व पृथक | कोडपूर्व वर्ष मला मुंडा । ५ २ पृथक वर्ष ३१ सागर | कोडपूर्व ६६ सागर २ पृथक वर्ष ३१ सागर | कोडपूर्व ६२ सागर २ पृथक वर्ष ३३ सागर कोठपूर्व ६६ सागर मला पृषक पृथक |पृथक । पृथक वर्ष | वर्व वर्ष अव.आयु २पृथक वर्ष ३१ सागर २धक वर्ष ३१ सागर २ पृथक वर्ष ३३ सागर पृथकवर्ष ६६ सागर ३ पृषकवर्ष ६२ सागर ३ पृषकवर्ष ६६ सागर ६ केवल | ३ कोडपूर्व | कोडपूर्व बला कोडपूर्व | कोडपूर्व मुंडा अव.आयु. २कोडपूर्व ३१सागर २ कोजपूर्व ३१ सागर २ कोडपूर्व सागर ३ कोडपूर्व ६६ सागर ३कोडपूर्व ६२ सागर ३ कोहपूर्व ६६ सागर संज्ञा द्वार कषाय द्वार । इन्द्रिय द्वार | समुद्रात द्वार | अध्यवसाय द्वार अनुबंध द्वार नाणत्ता कायसंवैध द्वार वेद द्वार ३ आयुद्वार जघन्य| उत्कृष्ट असंख्याता जघन्य उत्कृष्ट जघन्या उत्कृष्ट उत्कृष्ट काल कोडपूर्व केवल बर्जी कोडपूर्व ३ ३ २ पृथक वर्ष | ३३ सागर | २ कोडपूर्व ३३ सागर मुंडा वर्ष पृथक भला पृथक ३ २ पृथक वर्ष | सागर | पृथकवर्ग | सागर बजी वर्ष अव..आयु.अनु ३ कोटपूर्व | कोडपूर्व भला केवल वजी कोडपूर्व | कोडपूर्व ३ ३ कोडपूर्व | 0 सागर |२ कोडपूर्व ३७ सागर अव.. आयु, अनु गमा ३४१ Jain Education Intemational Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ घरां में ३२१ ठिकाणां नां ऊपजै तेह में नाणत्ता पड़े तेहनों विवरो। तिथंध पंथेंद्रिय मनुष्य पृथ्वी वनस्पति वायु बेइंद्रिय तेइंद्रिय पारिदिर ज. उ. | ज. उ. ज. उ. 1000 १ रतनप्रभा २ सक्करप्रभा ३ बालुकाप्रमा ४ पंकप्रभा ५ गाभा ६ तमप्रभा • तमतमा असुरकुमार नागकुमार सुपर्णकुमार " विद्युतकुमार १२ अग्निकुमार १३ डीपकुगर १४ उदधिकुमार १५ दिवगार १६ वायुकुमार । २ । २२ २ २ । २ठिकाणा में ऊपरी २ ठिकाणा में ऊपरी २ ठिकाणा में ऊपजे २ ठिकाणा में ऊपरी २ठिकाणा में ऊपरी २ ठिकाणा में ऊपजे १ठिकाणा में ऊपजै ५ ठिकाणां में ऊपज ५ ठिकाणां में ऊपजे ५ ठिकाणां में ऊपरी ५ ठिकाणां में ऊपजे ५ठिकाणां में कप ५ ठिकाणा में ऊपरी ५ ठिकाणां में ऊपजे ५ ठिकाणां में ऊपजे ५ ठिकाणां में ऊपजे ५ ठिकाणां में अपने ५ ठिकाणां में ऊपते ५ ठिकाणां में ऊपजे ५ ठिकाणां में ऊपजे ५ ठिकाण में ऊपज VWWWWWW002420x4000 ANNNNNNNNNNNN به به به به له لا اله انه له نه به شه له له فه له له نده به 30MMANANAWNAANA يه نه نه نه نه نه به २० सौधर्मभुर स ईशानर सर्व जाणता तिथंच पंचेंद्रिय मनुष्य पृथ्वी अप वनस्पति तेइंद्रिय चरिदिए उज NAAM 04 لعبة نيد نه ४३ सन्नीगना ४ ठिकाण ऊपौ3 - सन्नी तिर्यव पंथेन्दिवस ठिकाणा में ऊपजे, ५ असन्नी तिर्यंच पंचेन्द्रिय सठिकाणां में रूपजै। ४६ तिर्यंच युगलियो १४ ठिकाणां मैं ऊपरी # मनुष्य युगलियो ठिकाणां में ऊपजे ४६ असन्नी मनुष्य ठिकाणां में रूपजे (जयन्य उत्कृष्ट गमां नहीं हु।) सर्व नाणत्ता २ | ३२ ३२ २ । ३२ २६ ज्योतिषी विद्युत दिक स्तनित सौपन ईशान | ५३ सर्व नाणत्ता - ३४२ भगवती-जोड (खण्ड-६) Jain Education Intemational Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - नियंच पंचेंदिया मनुष्य | अप वनस्पति बेइंदिय तेइंदिय चरिदिय - ज. उ. 9 ज. स. له له يه ليه MMMM. ८८८ccc २२ पृथ्वीकाय २३ अपकाय ४ उकाय १५ वायुकाव २६ वनस्पतिकाय ७बेइन्द्रिय २८ तेइन्द्रिय र चररिन्द्रिय 30 सनत्सुर म महेन्द्रसुर ब्रह्मसुर .३ लान्तकसुर AMANNNNN WW.ANIN MANMMMM ليه يه 999 يه يه १० ठिकाणां में ऊपजै १० ठिकाणा में ऊपजे ६ ठिकाणा में ऊपजै ६विकाणां में ऊपजै १० ठिकाणां में ऊपजै 40 ठिकाणां में ऊपजै ठिकाणां में ऊपजे ठिकाणां में ऊपजै २ठिकाणा में उपजै २ठिकाणा में ऊपजै २ ठिकाणां में उपजे २ठिकाणां में रुपये २ठिकाणा में उपजे २ठिकाणां में उपजै १ विकाणां में ऊपजै १ठिकाणां में ऊपगै १ठिकाणा में ऊपजै १ ठिकाणां में कफ १ठिकाणां में ऊपजै ठिकाणां मैं ऊपजे ठिकाणां में ऊपजै rrrrrrrrrrrxxxxx ANHAINNNNNNANCEx AUWWWWWWANWAAAAAAxx १५ सहसारसुर ३६ आणतसुर पाणतसुर आरणसुर ३६ अच्युतर 10वेयक ४ अनुत्तर विमान सर्वार्थसिद्ध सर्व नाणत्ता सक्कर ० 5Nm . مانده به به به قوه - Mummm ४ ३६ 29 ४० ३६ आणत सन्त लानाक सहझार पाणत आरण अच्युत । ४३ ४ ४ अनुतर | सर्वार्थसिद्ध अवेयक | जउ ज. उ. ज उ. ज. उ. उ. ज. उ. ज. . ज | ३३ ३३ गमा ३४३ Jain Education Intemational Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ दंडक में गमा अनै नाणत्ता २४ दंडक के नाम नारकी अगर स्तनित 12 गमा नी संख्या | जयन्य उत्कृष्ट गर्ने नाणता नी संख्या से बनस्पति बेइंद्रिय वारिदिय तिर्थव पंर्वेदिय ज्योतिषी वैमानिक सर्वसंख्या २००५ १४५ २०६ १९६० असुरादि ० भदनपति, व्यंतर, ज्योतिषी, साधन अने देशान-१४ ठिकाण नियंच युगलियो उपजे तिण र तीजे गरे २-२ नाणता पहै। इम २०. नाणता हु। एठिकाणे मनुष्य गुगलियो ऊपजता तीजे गमे-नाणता पई, म नानता हु। बि पुगलियां ना तीजे गया आश्री ७० नाणसा हवै। ए नाणता उपयुक्त शिवाय जाणवा। ए १९९० नाणसा जघन्य अने उत्कृष्ट गना आश्री कल्या। तेह में अधिक गगा ना नाणता मेला कीधा २०६० नाणसा हुवे। तथा असन्नी मनुष्य मनुष्य में ऊपजता दूजे तीजे गर्ने १-१ जाणतो, ए२ नाणता भेला कीयां २०७० नाणता हुदै। ए नाणता नी संख्या कही। तिण में न्यून-अधिक आया हुवै तो बहुभुत विचारी लीज्यो। ३४४ भगवती-जोड़ (खण्ड-६) Jain Education Intemational Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रज्ञापुरुर्ष जयाचार्य छोटा कद, छरहरा बदन, छोटे-छोटे हाथ-पांव, श्यामवर्ण, दीप्त ललाट, ओजस्वी चेहरा- यह था जयाचार्य का बाहरी व्यक्तित्व। अप्रकंप संकल्प, सुदृढ़ निश्चय, प्रज्ञा के आलोक से आलोकित अंतःकरण, महामनस्वी, कृतज्ञता की प्रतिमूर्ति, इष्ट के प्रति सर्वात्मना समर्पित, स्वयं अनुशासित, अनुशासन के सजग प्रहरी, संघ व्यवस्था में निपुण, प्रबल तर्कबल और मनोबल से संपन्न, सरस्वती के वरद्पुत्र, ध्यान के सूक्ष्म रहस्यों के मर्मज्ञ-यह था उनका आंतरिक व्यक्तित्व। तेरापंथ धर्मसंघ के आद्यप्रवर्तक, आचार्य भिक्षु के वे अनन्य भक्त और उनके कुशल भाष्यकार थे। उनकी ग्रहण-शक्ति और मेधा बहुत प्रबल थी। उन्होंने तेरापंथ की व्यवस्थाओं में परिवर्तन किया और धर्मसंघ को नया रूप देकर उसे दीर्घायु बना दिया। उन्होंने राजस्थानी भाषा में साढ़े तीन लाख श्लोक प्रमाण साहित्य लिखा। साहित्य की अनेक विधाओं में उनकी लेखनी चली। उन्होंने भगवती जैसे महान् आगम ग्रंथ का राजस्थानी भाषा में पद्यमय अनुवाद प्रस्तुत किया। उसमें ५०१ गीतिका है। उसका गंथमान है. साठ हजार पद्य प्रमाण। • जन्म-१८६० रोयट (पाली मारवाड़) ० दीक्षा-१८६९ जयपुर ० युवाचार्य पद-१८९४ नाथद्वारा ० आचार्य पद-१९०८ बीदासर ० स्वर्गवास-१९३८ जयपुर sonal Use Only Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Founायुवराजायल-maaमार्थवादमाजापो.मीfasnaमरजितागोमानीataमोगाशिककरमिकामडकीसएगो रमीमुखकरिनारायवलनमाररामग Puranरमीalamपजाजीरादीनामालानापश्यनीतिमटिकाटिपिएपरिशजीबोकवीवरीमागमी कनीषीयपक्रया कयाक्षिणादामादा नमाजlanमामीनामारजी दासीमायलेजीऊपोएलोरपिसापक टीजीययावतकरे:-अदिवदेनेगवजागोलायुलवानरश्माहिमाटाजदबामस्थ Sonumनकालादिमादि-यादिवोसमनीपीमिantोकरायकरसादिकनातागोतागुलवृधनकशिवाय कुर्कश्मसाहटमनमोरीवलवाए29ममुकपनमधुमक्षellmaaRAIL मामानामनायायक-नरमावियलनुमुक्टोजीऊपनीपूर्वण्टनोपकमपएंकराजीबा एजनरकटेदीलसमाधिस्टीतए-अवगुणवतरदीनलमा महिपारकाटीनएजटायाम नाविनयम-नागपुरुषपणजीएनजीसपोपूर्वकपनोजीरप्पपलिसरपवाससहीतकालकरीकालमररनतारीएकरसागर याममपजनरकममा शीएzaaamanar avatma नकारनामामाजीमावसनीवार सजीवपिलरमाजीएमयानंतीवार सेवन गौतमकट कपाट श्रमanaमहावीरजीवागविलवाणगो ऊपजवालागातसुकपनाकशिवम naविवरेसार वारसदेशकमानमीजीबोगसोमामी किनारीमानकविण्यथ लगोजेदममय सोयरे वानरकर्कटमीकको दममय जोयरे नारनवकदिनी 6 जवादरविmananामा दे वीजीवनी एकारणलोयर किमाहियेनारकपणे निरणयवतसुजोयरे वी२५नुश्मसावी पत्र nिadकार अरमशकविला तिमन समानरे विचार विलकाले तिलसमययावतगीतमसा वालागोन्दालरेकदियतेदनऊपना क्रियानिष्टाकालरे वितणधी पनवानाmaa नजाविनयकामनाम नाममदाईक्सरमगन याकार्यममयते लिए समयकपनी नेदरमिष्टाकालनसमयक क्रियानिष्टानाएवेनासमय जामोद वारसमजी-अंतररदिनवनीकरीनुगेन नामजी गोयमपणासदामा क मानिनवागरे वशमाकपनों रश्याएaaaaसानिमार वीजगमकप नागकदमागमरानश्मी-ययनामागसदिएवियर्थसमाजपनामा देवीवरजोइजेपरवेदना असंतवासवेदीएवी-साकार वदनी सकारातमान यर्थ विल यमनजी डिलीयमनुष्यतनुतेदविवपदमा हिसिका शारीरीनागद निनामविधेसरकप यक असतवतेखुजलेसमये गोलायलादिक लेण्यामनारकीनीयकारणभारकीपाकिमक विनकदेवाउपनदीगो निदानामजन्मदिम नयावसानिमितमतविक्षनादिक करी 3 दिवालिदानियवक्षनेकदै श्रमणसमवेत श्रीमहावीरस्वामीश्मदेवानरादिक नारकीय aalafaiपुण्मादिक्करिलीयोनागमणीजनमेष-स्वादिकमनकारीयोवलिमनमामो ऊपजताताने नरके कपनाजकदिय किया कानगुनिष्टकानएकिना-यानेदशीकपजवाना arelainसेवना नाममणीधरनेद दिननसाची तिकीमादिककरिसीय नेकयोहको गाहनेकपनाकदीजिएससजेवानमसननगमी नरकमासनोपदिलोसमययनवालागा सोसवतोय सफलसेवकवदनी देव-विलिमार पूर्वमिजादिक-सुरनिकटकीकीबाटव एकियाकाल-ग्रनेतलेजसमकपनीएनिष्टांकालाकियाकानमिष्टाकालनासमयएक Janmनी-दवानामविष-समस्नेकपानगवान जिनकदेवनागोयमा अमरकपजे-बानगोय क्रियाकालनोजेसमय दिनसमयनिष्टाकासनोलान्यायनिककालनीअदथकीकपालामा बीयरित्रनिदायकी नीकलदसीमनजिनकदेवतामी शनिको जानकरैर-गोयतेदनेकपनोंक दिये रसीदवारहिवदेशाभिमसनसनिसिपमतमानकाम जाना किनीमनवनीएवीयवारीमलिविधीपर्णपाने मशिक्षकरिया पारधारोष जीजरदीतपूर्वतीधरै जाशीजाए कपनबालागाऊपनाकटियपिमान Jamana (अमन्दानगोकदिवनिदिजरीवसूलमलिनोविज्ञानमा सुस्पतमहाईिका दिनदेनगनजीटक के-लोयवलकहकमोरीयो तर हिजएसोय पतियार नदी मे पनवनिक दैवतानपने श्वेदेवदेगी एवमना पिटिसाबू मेमतेविनोमयानगोतमविचरतारमयसुदेश दोयमानगमकमी-जानी करियरको मान वनिकाननागपात जोमातासमयजेहाय लपवन मासवधना शिवीकाऽया इमदिनकटिदावनस्पतिजाल जावमनुयनादेमकलगवननिदादायिग्राण 001Pाधनोंचमानधनकुजकत्वदा समयूनिकरमागउकटकालमाना जावद्या वनस्सनियर सर्वबंधतरदोबोयरुखकरवंदाय एवमेवफा बीनी मममयकरिनालाय काanaमसाग थिवीकाचिकतादिरदेशवेधकुरतावरी नायिकामादिस्सर नीममयनीनादिरवियगतिक विजीविटी वनस्पतिमादिर मावीनअपनानदानमयाम गावनियनिमूटर पृथिवा विकिरनापूधमसमयमवरदेवादिना यसमय स्यमादापिकनाजालवा तीमय सर्वधर खडागसबनीबीकी-नियमादिक मादिरसुदामन JAIEDIEnesयकालकवकरित जयदेशाने याजिमकाया वरदिनवनि प्रवियदकरितादिश्वनस्पनि पनी यसमयमamsमहानांना या 04-RERAanR.. 19लिन असमीmananाकाल Taranवल्याने नयाaafanardan 2Tia परमडिया2tGRAATERIABRSmitraa शक्षिीय बंशना र सायनांतर Tatianायाmcisilapa AARATमाटीदार RahaBR-ममममक (मालय IRRयकैसावल्या Rganaial- समयानुरागम ममममय माता कानास्पाती AURAalandमार देर कामारयाग Rennरकोरियमययन पम Naaसर्णिलीमाईदा Rasanामासमयकोबरामयसमययक दिलील-३२ कसागर समयमारक एकडाराका सन्यायक 1am arikacharacारमागरमसुम्म स यकीकदि02- pan/ यामनीय समय ऊशारदार RAAN0030जयममय-DRARARमय Sesamaaकिमानसामानाकाकाnuasm fala 220 125/ ग ममराकाReg5A naiyaHRA D /5मानकमारवादनां Raisifata3मरणस्परिकालयकaaAAPatamrapa.2016 ghniकायमा समय खुडा 12कायदा20RRRAPoसुटगमधAIRA235 ConstigRREmausafa नायिका m fasna.PDF कीरगर मय गनाकारसमय एकरकममराषिकनासकाममय मनिमलिमुडागLADRIBulandaunीनलमा Homजारब ariasannaahee मामासमAmगनदासमय लो यस्कयroinfom adastaske12मयधिकरlaPAसमय नमसतिस समय की खरा/ Rमराकारमा सजिएकमnaamavarpali अटाएका Maniski मर गमनका जनने RSRJhani मsasia (गशाला उErafASE IRANक लाकाainaal -विमरसिमककालय मराटानमन्सासमयसामुगमरममय PARमयकलीकटी २१गमनाय अकरमययकारकरASA समाasanaxnagmRoरानमन मारिकसरी मनासमयाmRE मा२२ मालमeDai २७मा मममम मारन याधिक रनसहितवदरदेशबंधकरतोमरी पूधिकादिक मदरसागन विनिमयसमयमा खरगापमममय अवारकावकात्किएE मि. वनसक्तिदायारेसर्ववधदिनसमय दिनीयदेशवचनोटारे सध्या दिकर (Gudaरा मनुष्य 1RAPARIR (०२१मागमbiDtabanमोरार सारिका/ an 43m 2पल्याएमजात रुमकडमा उहथिवीकारतरक्षाबेश्य रोगायपूर्ववचनोलरकालय साazAREAtandarambaal कामकाजमादकमी RR