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________________ १७. नवरं नागकुमारट्ठिति संवेहं च जाणेज्जा २ । (श० २४.१४८) १९. तत्र जघन्या नागकुमारस्थितिर्दशवर्षसहस्राणि । (वृ०प० ८२२) २०. संवेधस्तु कालतो जघन्या सातिरेकपूर्वकोटी दशवर्षसहस्राधिका। (वृ०५० ८२२) २१. उत्कृष्टः पुनः पल्योपमत्रयं तैरेवाधिकमिति । (वृ०प० ८२२) २२. सो चेव उक्कोसकालद्वितीएस उववण्णो, तस्स वि एस चेव वत्तब्वया, नवरं --ठिती। २३. जहणेणं देमूणाई दो तिण्णि पलिओवमाई। पलिओवमाइं, उक्कोसेणं १७. पिण णवरं नागकुमार नों, स्थिति में वलि कालसंवेह रे। ते बुद्धि सूं विचारी जाणवो, सूत्र ने अनुसारे जेह रे ।। सोरठा १८. प्रथम द्वार में लेह, कति स्थितिके ऊपजै । चरम द्वार संवेह, ए बिहुँ आगल आखियै ।। १९. स्थिति जघन्य उत्कृष्ट, नागकुमार तणीं कही। वर्ष सहस्र दश इष्ट, तेह विषे ए ऊपजै ।। २०. कायसंवेध सुजोड़, काल थकी जे जघन्य ए। साधिक पूर्व कोड़, वर्ष सहस्र दश अधिक फुन । २१. फुन उत्कृष्टो काल, तीन पल्योपम तिरि स्थिति । वर्ष सहस्र दश न्हाल, नाग जघन्य स्थिति जाणिय ।। ओघिक में उत्कृष्ट (३) २२. *तेहिज युगल उत्कृष्टी स्थिति विषे, नाग विषे ऊपनों संपेख रे। तेहनों पिण एहिज वारता, . - णवर स्थिति में इतरो विशेख रे ।। २३. जघन्य स्थिति ते युगल नीं, देश ऊण पल्योपम बेह रे । उत्कृष्ट तीन पल्य स्थितिक जे, युगल नाग विषे उपजेह रे ।। वा०-इहां जघन्य स्थिति देश ऊण दोय पल्योपम, एह अवसप्पिणी नां सुषमा नामे बीजा आरा नां केतला एक भाग गयां तिर्यंच नों आउखो देश ऊण दोय पल्य नों । ते मरी नागकुमार नै विषे उत्कृष्ट आउखै ऊपजे ते तिर्यच युगलिया नां देव आउ संबंधिया आउखा बरोबर देवता नों आउखो बांधे । उत्कृष्टो तीन पल्योपम-एह देवकुरु आदि देई तियंच युगलिया नां तीन पल्योपम नां आउखा नों धणी नागकुमार नै विषे देश ऊण दोय पल्योपम नै उत्कृष्ट आउखा नै विषे ऊपज । ए युगलिया ने आऊखा थकी देवता नै ओछे आऊखे ऊपने छते अत्र जघन्य देश ऊणो दोय पल्योपम युगलिया नों आउखो कह्यो ते किम ? अन कोड़ पूर्व जामो किम न कह्यो ? उत्तर-इहां ओधिक नै उत्कृष्ट तीजा गमा नों कथन छ । ते तिर्यंच युगलिया नी ओधिक स्थिति नों धणी नागकुमार नै विषे उत्कृष्ट आउखे ऊपज ते नाग कुमार नों देश ऊणों दोय पल्योपम उत्कृष्टो आउखो छ तेहनै विषे युगलियो ऊपजे, ते जघन्य देश ऊणों दोय पल्योपम आउखा वालोईज ऊपज, पिण ओछा आउखा वालो न ऊपजे, ते माट कोड़ पूर्व जामो आउखो न कह्यो । अनै जघन्य देश ऊणों दोय पल्योपम नों धणी ऊपजै एहवू कह्यो । २४. शेष परिमाणादिक जिके, पूर्व कह्यो तिमज अवलोय रे । जाव भवादेश लग जाणवो, जधन्य उत्कृष्टा भव दोय रे ।। २५. हिव काल आश्रयी जघन्य अद्धा, देश ऊण च्यार पल्य माग रे । देश ऊण दोय पल्य तिरि स्थिति, देसूण बे पल्य नाग रे ॥ *लय: चम्पा नगरी नां बाणिया वा०-तथा 'ठिई जहन्नेणं दो देसूणाइ पलिओवमाइ' ति यदुक्तं तदवसप्पिण्यां सुषमाभिधान द्वितीयारकस्य कियत्यपि भागेऽतीतेऽसंख्यातवर्षायुषस्तिरश्चोऽधिकृत्योक्तं, तेषामेवैतत्प्रमाणायुष्कत्वात् एषामेव च स्वायु:-समानदेवायुर्बन्धकत्वेनोकृष्टस्थितिषु नागकुमारेषुत्पादात् । तिन्नि पलिओवमाइ' ति, एतच्च देवकुर्वाद्यसंख्यातजीवितिरश्चोऽधिकृत्योक्तं, ते च त्रिपल्योपमायुषोऽपि देशोनद्विपल्योपममानमायुर्बध्नन्ति यतस्ते स्वायुषः समं हीनतरं वा तद्बध्नन्ति न तु महत्तरमिति । (वृ०प० ८२२, ८२३) २४. सेसं तं चेव जाव भवादेसो ति । २५. कालादेसेणं जहणेणं पलिओवमाई। देसूणाई चत्तारि श०२४, उ०३, ढा०४१८ १९ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003622
Book TitleBhagavati Jod 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages360
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size18 MB
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