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६. जइ सण्णिपंचिदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति
-कि संखेज्जवासाउय ? असंखेज्जवासाउय ? ७. गोयमा ! संखेज्जवासाउय, असंखेज्जवासाउय जाव उववज्जति ।
(श० २४।१४५)
६. जो सन्नी पं. तिरि थकी, ऊपजे नाग मझार ।
स्यूं संख्यायुष थी हुदै, के असंख्यायुष थी धार? ७. जिन कहै संख्यायु थकी, नाग विषे उपजत ।
वर्ष असंख्यायु थकी, जाव उपजवो हुंत ।। नागकुमार में तियंच युगलियो ऊपज, तेहनों अधिकार'
ओघिक ने ओधिक [१] *वारु जय-जय ज्ञान जिनेंद्र नों, एतो जयवंता जिनराज रे। शिष्य गोयम जय जश गुणनिला,
ए तो प्रत्यक्ष भव दधि पाज रे ।। (ध्र पदं) ८. असंख्यात वर्ष नों आउखो, तिरि सन्नी पंचेंद्री जेह रे।
प्रभ ! ऊपजवा नै जोग्य छ, नागकुमार विषेह रे ।। ९. प्रभु ! किता काल स्थितिक विषे ऊपजे?
जिन भाखै जघन्य थी जोय रे। दश सहस्र वर्ष स्थितिक विषे, उत्कृष्ट देसूण पल्य दोय रे ।।
८. असंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं
भंते ! जे भविए नागकुमारेसु उववज्जित्तए। ९. से णं भंते ! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा ?
गोयमा ! जहण्णणं दसवाससहस्सट्टितीएसु, उक्कोसेणं देसूणदुपलिओवमद्वितीएसु उववज्जेज्जा ।
(श० २४१४६)
सोरठा १०. उत्तर दिशि नां सोय, नागकुमार निकाय नीं।
देश ऊण पल्य दोय, उत्कृष्ट स्थितिक में विषे ।।
१०. 'उक्कोसेणं देसूणदुपलिओवमट्ठिईएस' ति यदुक्तं
तदीदीच्यनागकुमारनिकायापेक्ष या, यतस्तत्र द्वे देशोने पल्योपमे उत्कर्षत आयुः स्यात् ।।
(वृ०प० ८२२) ११. ते णं भंते ! जीत्रा एगसमएणं केवतिया उववज्जति ?
अवसेसो सो चेव असुरकुमारेसु उववज्जमाणस्स
गमगो भाणियव्यो। १२. जाव भवादेसो ति। कालादेसेणं जहण्णेणं
सातिरेगा पुवकोडी दसहिं वाससहस्सेहि अन्भहिया।
१४. उक्कोसेणं देसूणाई पंच पलिओवमाई।
११. *प्रभु ! एक समय किता ऊपजै?
अवशेष तिमज अवधार रे। असुर में ऊपजतां गमो आखियो,
कहिवो तिमहिज विचार रे ।। १२. जाव भवादेश लग जाणवू, काल आश्रयी जघन्य कहाय रे । पूर्व कोड़ जाझेरो जाणवू, दश सहस्र वर्ष अधिकाय रे ॥
सोरठा १३. साधिक पूर्व कोड़, जघन्य भव स्थिति तिरि युगल ।
वर्ष सहस्र दश जोड़, नागकुमार जघन्य स्थिति ॥ १४. “उत्कृष्ट थकी देश ऊण जे, पंच पल्योपम जोय रे। तिरि युगल पल्योपम त्रिण कही,
नाग देश ऊण पल्य दोय रे॥ १५. सेवै कालज एतलो, गति आगति एतलो काल रे। ओघिक नै ओधिक गमो, दाख्यो युगल नाग नों दयाल रे ।।
ओधिक नै जघन्य (२) १६. तेहिज युगल जघन्य काल स्थिति विषे,
ओ तो ऊपनों नाग विषेह रे। तेहनी पिण एहिज वारता, धुर गमे भाखी जेह रे ॥ *लय : मोरी तूंबी देवो नी हो सेठजी अथवा चम्पानगरी नां बाणिया १. परि० २, यंत्र २२ ६८ भगवती जोड़
१५. एवतियं काल सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा १।
(श० २४११४७)
१६. सो चेव जहण्णकालट्ठितीएस उववण्णो, एस चेव
वत्तव्वया।
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