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प्रकाशकीय
तेरापंथ आचार्यों के सम्यक् निर्देशन में जैन आगमों के सुव्यवस्थित वृहत् शोध कार्यों का सम्पादन जैन साहित्य के इतिहास का स्वर्णिम अध्याय है ।
साहित्य की बहुविध दिशाओं में आगम-ग्रन्थों पर श्रीमज्जयाचार्य ने जो कार्य किया है वह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। प्राकृत आगमों को राजस्थानी जनता के लिए सुबोध करने की दृष्टि से उन्होंने उनका राजस्थानी पद्यानुवाद किया जो सुमधुर रागनियों में गुम्फित है ।
प्रथम आचारांग की जोड़, ज्ञाता की जोड़, उत्तराध्ययन की जोड़, अनुयोगद्वार की जोड़, पनवणा की जोड़, संजया, नियंठा की ढालें- ये कृतियां उक्त दिशा में जयाचार्य के विस्तृत कार्य की परिचायक हैं।
'भगवई' आगम साहित्य में सबसे विशाल ग्रन्थ है । विषयों की दृष्टि से यह एक महान उदधि है । जयाचार्य ने इस अत्यन्त महत्त्वपूर्ण आगम ग्रन्थ का भी राजस्थानी भाषा में गीतिकाबद्ध पद्यानुवाद किया। यह राजस्थानी भाषा का सबसे बड़ा ग्रंथ माना गया है । इसमें मूल के साथ टीका ग्रंथों का भी अनुवाद है और वार्तिक के रूप में अपने मंतव्यों को बड़ी स्पष्टता के साथ प्रस्तुत किया गया है ।
भगवती जोड़ का प्रथम खण्ड जयाचार्य निर्वाण शताब्दी के अवसर पर "जैन वाङ्मय" के चतुर्दश ग्रंथ के रूप में सन् १९८१ में प्रकाशित हुआ था। इसका दूसरा खण्ड सन् १९८६ में, तीसरा खण्ड सन् १९९० में, चौथा खण्ड सन् १९९४ में तथा पांचवां खण्ड सन् १९९५ में प्रकाशित हुआ । अब उसी ग्रन्थ का यह छठा खण्ड पाठकों के हाथों में सौंपते हुए अति हर्ष का अनुभव हो रहा है।
प्रथम खण्ड में उक्त ग्रंथ के चार शतक, द्वितीय खण्ड में पांचवें से आठवें शतक तक, तृतीय खण्ड में नौवें से ग्यारहवें शतक तक, चतुर्थ खण्ड में बारहवें से पन्द्रहवें शतक तक, पांचवें खण्ड में सोलहवें से तेइसवें शतक तक संग्रहीत हैं । प्रस्तुत ग्रंथ में मात्र एक चौबीसवां शतक है एवं परिशिष्ट में उसी शतक को यंत्रों के रूप में प्रस्तुति दी गयी है । प्रस्तुत खण्ड में मूल राजस्थानी कृति के सुविधा के साथ-साथ मूल कृति के
इससे पाठकों को समझने की
साथ संबंधित आगम पाठ और टीका गाथाओं के सामने दी गयी है। विशेष मंतव्य की जानकारी भी हो सकेगी।
इस ग्रन्थ का कार्य गणाधिपति गुरुदेव श्री तुलसी के तत्वावधान में हुआ है और इससे जुड़ा महाश्रमणी साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा का अथक श्रम ग्रंथ के प्रत्येक पृष्ठ पर स्पष्ट अनुभूत होता है ।
जैन विश्व भारती, लाडनूं
२७ फरवरी, १९९६
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ताराचन्द रामपुरिया मंत्री
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