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________________ दूहा १. सौधर्म देवा हे प्रभु! किहो थकी उपजंत ? स्यूं नारक थी ऊपजे ? इत्यादिक पूछत ॥ २. भेद जूजुआ एहनां जिम जोतिषि उद्देश | आतम कहिवो इहां, हिव धुर तिरि मिथुनेस || पहले देवलोक में तिथंच युगलियो ऊपजं, तेहनों अधिकार' *भाव वैमाणिक नां सुणो ॥ (ध्रुपदं ) ३. प्रभु ! असंख वर्षायु सन्नी तिरि, सोहम्म कल्प विषेह जी । जे पवा योग्य ते प्रभु ! किते काल स्थितिके उपजेह जी ? ढाल : ४३२ ४. जिन कहै गोयम जपन्य थी, इक पत्य स्थितिक विषेह जी। उत्कृष्ट तीन पत्योपम स्थितिक विषे उपजेह जी ॥ सोरठा ५. जघन्य पल्य आख्यात, सौधर्मे स्थिति जघन्य थी । पल्प थी हीण न यात तिण सूं पल्पोपम कही || ६. तीन पल्य उत्कृष्ट, तेह विषे उपजै को। यद्यपि इहां गरिष्ठ, बहुतर छेथे उदधि लग || ७. तो पिण युगल तिर्यच, त्रिण पल्य आयुवंत जे । निज आयू बी रंच अधिक न बांधे सुर स्थिति ॥ ८. * प्रभु ! इक समय ते किता ऊपजै ? शेष परिमाणादि सोय जी । जिम जोतिषि में तिरि युगलियो, ऊपजता में अवलोव जी ॥ ९. तिहां का तिम कहि इहां, नवरं विशेष सम्यकदृष्टि पण पर्ज, मिच्छदिट्ठी पिण १०. मिश्र दृष्टि तिरि युगलियो, तेह वैमानिक एह जी । उपजेह जी ॥ मांहि जी । ऊपजवूं नहीं तेहनों, मिश्रदृष्टि युगल में नांहि जी ॥ *लय : मम करो काया माया १. देखें परि० २ यंत्र १४९ ११. तिहाँ जोतिषी मांय, सम्यगदृष्टि न पाय, १२. समदृष्टी तिर्यंच, आयू-बंध विरंच, १२. हां युगल तियंच, वैमानिक में संच, एह Jain Education International सोरठा ऊपजता तिण सूं ए इक वैमानिक तिरि-युगल में । नहि ऊपजै ॥ अपर आयु समदृष्टी विशेषज देव नुं । बांधे नयी || पिण ऊपजै । जाणवूं || १. सोहम्मदेवा णं ते मोहित उवति कि एहिती वजति ? २. भेदो जहाजोय उद्देसए ( ० २४०३३५) णं ३. असंखेज्जवासा उयसष्णिपंचिदियति रिक्खजोणिए भंते! जे भविए सोहम्मगदेयेसु उपस्थितए से पं भंते! केवतिकाद्विती? ४. गोमा ! जग पलिओचमसीएस उनको तिपलिभोवमद्वितीए उपवण्या ( ० २४१३२६) ५. 'जहनेणं पलिओ मट्ठिइएस' त्ति सौधर्मे जघन्येनायाप (बृ० प० ८५२) ६७. उनको पिलिजमा विद्यपि सौधर्मे बहुतरमायुष्यमस्ति तचायुत्कर्षस्त्रिपत्यपमायुष एवं तिर्यञ्चो भवन्ति तदनतिरिक्त च देवानन्तीति, ( वृ० प० ८५१) ८. ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति ? अवसेसं जहा जोइसिएसु उववज्ज माणस्स, ९. नवसम्मदी विमिच्छादिट्ठी ि १०. नो सम्मामिट्ठी । For Private & Personal Use Only श० २४, उ० २४, ढा० ४३२ १९३ www.jainelibrary.org
SR No.003622
Book TitleBhagavati Jod 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages360
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size18 MB
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