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________________ ८७. जघन्य गमे सुजोय, तीन णाणत्ता तेहनां। अवगाहन नों होय, आयू नैं अनुबंध नों। ५८. अवगाहना जघन्य, पृथक धनुष्य नी पेखियै । उत्कृष्टी तसु जन्य, साधिके धनुष्य अठार सय ।। ८९. आयु जघन्योत्कृष्ट, भाग आठमों पल्य नों। आयू जितोज इष्ट, अनुबन्ध कहियै तेहनों ।। ९०. उत्कृष्ट गमे विचार, दोय नाणत्ता दाखिया। आय अनबंध सार, तीन पल्योपम जाणवं ।। ९१. उपजै जोतिषि माय, संख्यायू सन्नी तिरि । भव नव गमे कहाय, जघन्य दोय उत्कृष्ट अठ।। ९२. जघन्ये गमे कहाय, नारकवत अठ णाणत्ता । पिण सुभ अध्यवसाय, उत्कृष्ट गम बे णाणत्ता ।। ९३. युगल मनुष्य उपजेह, अमर जोतिषी ने विषे । भव सातूं गमकेह, जघन्य अनें उत्कृष्ट बे।। ९४. जघन्य गमे त्रिण इष्ट, धुर अवगाहन नाणत्तो। जघन्य अनें उत्कृष्ट, साधिक नवसौ धनुष्य नी ।। ९५. आयू नै अनुबंध, भाग आठमों पल्य नों। तीन गमा नों संध, एक गमो जघन्यो कह्यो ।। ९६. उत्कृष्ट गम पिण तीन, त्रिण गाऊ अवगाहना । आयु अनुबंध चीन, तीन पल्योपम जाणवू ।। ९७. जोतिषि में उपजेह, संख्यायू सन्नी मनु । भव नव गमे कहेह, जघन्य दोय उत्कृष्ट अठ। ९८. पंच णाणत्ता पेख, जघन्ये गमे सुजाणजो। तसु अवगाहन देख, जघन्योत्कृष्ट अंगुल पृथक । ९९. भजनाइं त्रिण ज्ञान, समुद्घात धुर पंच फुन । आयु अनुबंध मान, मास पृथक नों प्रभु का ।। १००. उत्कृष्ट गमेज तीन, अवगाहन धन पांचसौ। आयु अनुबंध चीन, कोड़ पूर्व नों आखियो । १०१. असन्नी विण चिहुं स्थान, अमर जोतिषी उत्पत्ति । तास नाणत्ता जान, असुर विषे उपजै तिमज ।। १०२. *सेवं भंते ! स्वामजी रे, चउवीसम शतकेह। उद्देशक तेवीसमो रे, अर्थ थकी कह्यो एह ।। १०३. च्यारसी इकतीसमी रे, जोतिषी नीं ए ढाल । भिक्षु भारीमाल ऋषिराय थी रे, 'जय-जश' हरष विशाल ।। चतुविशतितमशते त्रयोविंशोद्देशकार्थ : ॥२४॥२३॥ १०२. सेवं भते ! सेवं भंते ! त्ति। (श०२४१३३४) *लय : राम पूछ सुग्रीव ने रे १९२ भगवती जोड़ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003622
Book TitleBhagavati Jod 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages360
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size18 MB
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