SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 205
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५२. सेसं तहेव निरवसेसं जाव संवेहो त्ति । (श० २४१३३२) ८३. जइ संखेज्जवासाउयसण्णिमणुस्सेहितो ? ८४. संखेज्जवासाउयाणं जहेव असुरकुमारेसु उववज्ज माणाणं तहेव नव गमगा भाणियव्वा, ८५. नवरं-जोतिसियठिति संवेहं च जाणेज्जा। सेसं तं चेव निरवसेसं १-९। (श० २४।३३३) ८२. शेष तिमज कहिवो सहू रे, जाव संवेध लगेह । युगल तिरी जोतिषि विषे रे, उपजे तेम कहेह ।। ए मनुष्य युगलियो जोतिषी ने विषे ऊपज, तेहनां सात गमा कह्या । ज्योतिषी में संख्याता वर्ष नों सन्नी मनुष्य ऊपज, तेहनों अधिकार' ८३. संख वर्षायुषवंत जदि रे, सन्नी मनुष्य छै जेह । जोतिषि ने विषे ऊपजै रे, इत्यादिक पूछेह ।। ८४. संख वर्षायू सन्नो मनु रे, जिमहिज असुर विषेह । ऊपजतां ने आखिया रे, तिम नव गमा कहेह ।। ५५. णवरं स्थिति जोतिषि तणी रे, अथवा कायसंवेह । उपयोगे करि जाणवू रे, शेष तिमज सहु जेह ।। वा० . संख्यात वर्षायु सन्नी मनुष्य असुर में ऊपज, तिहां असुर नी स्थिति प्रथम, चतुर्थ, सप्तम गमके जघन्य १० सहस्र वर्ष, उत्कृष्ट १ सागर जाझी। द्वितीय, पंचम, अष्टम गमके जघन्योत्कृष्ट १० सहस्र वर्ष । तृतीय, षष्ठम, नवम गमके जघन्योत्कृष्ट १ सागर जाझी । तिहां ए असुर नी स्थिति कही अनैं इहां संख्यात वर्षायुष सन्नी मनुष्य जोतिषी नै विषे ऊपज, तिहां जोतिषी नी स्थिति इम कहिवी प्रथम, चतुर्थ, सप्तम गमके जघन्य पल्य नों आठमों भाग, उत्कृष्ट १ पल्योपम लक्ष वयं । अनै द्वितीय, पंचम, अष्टम गमके जघन्योत्कृष्ट पल्य नों आठमों भाग । अन तृतीय, पष्ठम, नवम गमके जघन्योत्कृष्ट १ पल्योपम लक्ष वर्ष स्थिति में ए विशेष जाणवो। अन कायसंवेध भव आश्रयी नवही गम के जघन्य बे, उत्कृष्ट अठ। अनै काल आश्रयी प्रथम गम के जघन्य प्रधक मास पल्य नों आठमों भाग, उत्कृष्ट ४ कोड़ पूर्व ४ पल्पोपम ४ लक्ष वर्ष १। द्वितीय गमके जघन्य पृथक मास पल्य नों थाठमों भाग, उत्कृष्ट ४ कोड पूर्व पल्य नां आठमा ४ भाग २ । तृतीय गमके जघन्य पृथक मास १ पल्योपम लक्ष वर्ष, उत्कृष्ट ४ कोड़ पूर्व ४ पल्योपम ४ लक्ष वर्ष ३ । चतुर्थ गमके जघन्य पृथक मास पल्य नों आठमों भाग, उत्कृष्ट ४ पृथक मास ४ पल्योपम ४ लक्ष वर्ष ४ । पंचम गमके जघन्य पृथक मास पल्य नों आठमों भाग, उत्कृष्ट ४ पृथक मास पल्य नां आठमा ४ भाग ५ । षष्ठम गमके जघन्य पृथक मास १ पल्योपम १ लक्ष वर्ष, उत्कृष्ट ४ पल्योपम ४ लक्ष वर्ष ६ । सप्तम गमके जघन्य कोड़ पूर्व पल्य नों आठमों भाग, उत्कृष्ट ४ कोड़ पूर्व ४ पल्योगम ४ लक्ष वर्ष ७, अष्टम गमके जघन्य कोड़ पूर्व पल्य नों आठमों भाग, उत्कृष्ट ४ कोड पूर्व पल्य नां आठमा ४ भाग ८ । नवम गमके जवन्य १ कोड़ पूर्व १ पल्योपम १ लक्ष वर्ष, उत्कृष्ट ४ कोड़ पूर्व ४ पल्योपम ४ लक्ष वर्ष ९ए कायसवेध जाणवू । जोतिपी में च्यार ठिकाणां रो ऊपज-युगलियो तिथंच १. संख्यात वर्षायुष सन्नी तिथंच २, युगलियो मनुष्य ३, संख्यात वर्षायुष सन्नी मनुष्य ४ । असन्नी तिर्यंच न जावै। सोरठा ५६. देव जोतिषी मांय, युगल तिरिक्ख उपजै तस् । सातूं गमे कहाय, जघन्योत्कृष्टज दोय भव ।। १. देखें परि० २, यंत्र १४७ श० २४, उ० २३, ढा० ४३१ १९१ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003622
Book TitleBhagavati Jod 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages360
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy