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________________ ३१. जइ संखेज्जवासाउयसण्णिमणस्से हिंतो उववज्जति कि पज्जत्तसंखेज्ज ? अपज्जत्तसंखेज्ज ? ३२. गोयमा ! पज्जत्तसंखेज्ज, नो अपज्जत्तसंखेज्ज । (श० २४११५८) २८. उत्कृष्ट अद्धा चीन, देश ऊण पल्य पंच जे । मनुष्य युगल पल्य तीन, देश ऊण बे नाग स्थिति ।। २९. अष्टम गम इम न्हाल, जघन्य अने उत्कृष्ट ही। तीन पल्योपम काल, वर्ष सहस्र दश अधिक फुन । ३०. नवम गमे इम संच, जघन्य अनें उत्कृष्ट ही। देश ऊण पल्य पंच, बिहुँ भव उत्कृष्टी स्थिति ।। नागकुमार में संख्यात वर्ष नों सन्नी मनुष्य ऊपजे, तेहनों अधिकार' ३१. *जो संख वर्षायु मनुष्य सन्नी, ऊपजै नाग विषेह । तो पर्याप्तो स्यूं ऊपजै, के अपर्याप्तो ऊपजेह ? ३२. जिन कहै पर्याप्ता थकी, असुर विषे ऊपजत गोयमजी ! अपजत थी नहीं ऊपजै, वलि गोतम पूछंत प्रभुजी ! ३३. वर्ष संख्यायु पर्याप्तो, सन्नी मनुष्य छै जेह । ऊपजवा नै जोग्य छ, नागकुमार विषेह । ३४. ते कितै काल स्थितिक विषे ऊपजै? जिन कहै जघन्य सुइष्ट । वर्ष सहस्र दश स्थितिक में, देसूण बे पल्य जिष्ट ।। ३५. इम जिम असुरकुमार में, एहिज मनु उपपात । तास लब्धि नव गम विषे, आखी ते सर्व सुजात ।। ३६. णवरं जे नागकुमार नीं, स्थिति अछै ते कहेह । वलि तसु कायसंवेध ही, बुद्धि सूं विचारी लेह । वा०-संख्यात वर्षायु सन्नी मनुष्य असुरकुमार में ऊपजता नै परिमाणादिक लद्धी कही, तिम कहिवी। तिमहिज णाणत्ता जघन्य गमे ५ --अवगाहना जघन्य-उत्कृष्ट पृथक आंगुल नी १। तीन ज्ञान नै तीन अज्ञान नी भजना २। समुद्घात पांच पहिली ३ । आउ जघन्य-उत्कृष्ट पृथक मास ४, अनुबंध आउ जेतो ५। उत्कृष्ट गमे ३-अवगाहना जघन्य-उत्कृष्ट ५०० धनुष्य नी १, आउ जघन्य-उत्कृष्ट कोड पूर्व २, अनुबंध आउखा जेतो ३। भव जघन्य २, उत्कृष्ट ८ । णवरं नागकुमार नी स्थिति अनै कायसंवेध में फेर छ, ते नवं ही गर्म कहै छ--प्रथम, चउथे ने सातमे गमे जघन्य १० हजार वर्ष नागकुमार नी स्थिति नै विषे ऊपजै, उत्कृष्ट देश ऊण बे पल्योपम नी स्थिति नै विषे ऊपजै। दूजे, पांचमे, आठमे, गमे जघन्य-उत्कृष्ट १० हजार वर्ष नाग नी स्थिति नै विषे ऊपजै । तीजे, छठे, नवमे गमे जघन्य-उत्कृष्ट देश ऊण बे पल्योपम नी नाग नीं स्थिति नै विषे ऊपज । ३३. पज्जत्तसंखेज्जवासाउ यसण्णिमणुस्से णं भंते ! जे __ भविए नागकुमारेसु उववज्जित्तए, ३४. से णं भंते ! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा ? गोयमा ! जहण्णणं दसवाससहस्सद्वितीएसु, उक्को सेणं देसूणदोपलिओवमट्टितीएसु उबवज्जेज्जा । ३५. एवं जहेव असुरकुमारेसु उववज्जमाणस्स सच्चेव लद्धी निरवसेसा नवसु गमएसु, ३६. नवरं-नागकुमारट्ठिति संवेहं च जाणेज्जा १-९ । (श० २४११५९) सोरठा ३७. प्रथम गमे संवेह, बे भव अद्धा जघन्य थी। वर्ष सहस्र दश लेह, पृथक मास अधिको वली। ३८. उत्कृष्ट अद्धा जोय, अष्ट भवां नों आखियो। ___कोड़ पूर्व चिउं होय, देश ऊण अष्ट पल्य फुन ।। *लय : तारा हो प्रत्यक्ष मोहनी १. परि० २, यंत्र २५ ७६ भगवती जोड़ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003622
Book TitleBhagavati Jod 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages360
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size18 MB
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