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________________ १४. सो चेव अप्पणा उक्कोसकालट्ठितीओ जाओ, तस्स तिसु वि गमएसु १५. जहा तस्स चेव उक्कोसकालट्ठितीयस्स असुरकुमारेसु उववज्जमाणस्स, १६. नवरं-नागकुमारट्ठिति संवेहं च जाणेज्जा। सेसं तं चेव ७-९। (श० २४११५७) १४. तेहिज सन्नी मनु युगलियो, निज उत्कृष्ट स्थितिवंत । सप्तम अष्टम नवम जे, ए त्रिहं गमे उदंत ।। १५. जिम तेहिज मनु युगल नां, जेष्ठ स्थितिक नां जेह। असुर विषे ऊपजतां थकां, गमा तीन कह्या तिम लेह ।। १६. णवरं नागकुमार नीं, स्थिति अनैं संवेध । बुद्धि सूं विचारी जाणवू, शेषं तं चेव न भेद ।। ___वाल-हिवै नागकुमार नी स्थिति अनै कायसंवेध नयूँ ही गमे जूओ-जूओ कहै छै । तिण में सन्नी मनुष्य युगलियो नागकुमार नै विषे ऊपजे तिण में प्रथम ने सातमे गमे जघन्य १० हजार वर्ष नागकुमार नी स्थिति में विषे ऊपज, उत्कृष्ट देश ऊण बे पल्योपम नी स्थिति नै विषे ऊपज। अनै दूजे, पंचमे, गमे जघन्य-उत्कृष्ट १० हजार वर्ष नाग नी स्थिति नै विषे ऊपजै । अने तीजे, नवमे गमे जघन्य-उत्कृष्ट देश ऊण बे पल्योपम नाग नी स्थिति में विषे ऊपजै । चउथे गमे जघन्य दश हजार स्थिति नै विषे ऊपजै, उत्कृष्ट एक कोड़ पूर्व जामी स्थिति नै विषे ऊपजै । अनै छठे गमे जघन्य-उत्कृष्ट कोड पूर्व जाझी स्थिति नै विषे ऊपज। सोरठा १७. प्रथम गमे इम जोड़, कायसंवेध जघन्य अद्ध । साधिक पूर्व कोड़, वर्ष सहस्र दश अधिक फुन ।। १८. उत्कृष्ट अद्धा माग, देश ऊण पल्य पंच जे। देसूण बे पल्य नाग, तीन पल्य मनु युगल स्थिति ।। १९. द्वितीय गमे सुजोड़, जघन्य थकी अद्धा इतो। ___ साधिक पूर्व कोड़, वर्ष सहस्र दश अधिक फुन ।। २०. उत्कृष्ट अद्धा तास, तीन पल्य मन् युगल स्थिति । वली सहस्र दश वास, नाग तणी ए जघन्य स्थिति ॥ २१. तृतीय गमे अवधार, अद्धा जघन्य थकी इतो। देश ऊण पल्य च्यार, न्याय विचारी लीजिये ।। २२. उत्कृष्ट अद्धा चीन, देश ऊण पल्य पंच जे। मनुष्य युगल पल्य तीन, देश ऊण बे नाग स्थिति ।। २३. तुर्य गमे इम जोड़, जघन्य काल तम् एतलो। साधिक पूर्व कोड़, वर्ष सहस्र दश अधिक फुन ।। २४. उत्कृष्ट अद्धा तास, साधिक पूर्व कोड़ बे। लीजो न्याय विमास, तुर्य गमो छै ते भणी॥ २५. पंचम गम इम जोड़, जघन्य अने उत्कृष्ट अद्धा । साधिक पूर्व कोड़, वर्ष सहस्र दश अधिक फुन ।। २६. षष्ठम गमे सुइष्ट, साधिक पूर्व कोड़ बे। जघन्य अने उत्कृष्ट, कायसंवेध समान ए॥ २७. सप्तम गम अवलोय, जघन्य अद्धा ए जाणवू । तीन पल्योपम सोय, वर्ष सहस्र दश अधिक फुन ।। *लय : तारा हो प्रत्यक्ष मोहनी श. २४, २०३, ढा.४१९ ७३ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003622
Book TitleBhagavati Jod 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages360
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size18 MB
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