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________________ १११. *शेष तिमज कहिवूं सगलोई, कायसंवेध साधिक सागर एक संघाते करि संबंध सोरठा कायसंवेधज ११२. प्रथम गमे पहिछाण, वर्ष सहस दश जाण, अंतर्मुहूर्त अधिक ११३. उत्कृष्ट अदा जोड़, साधिक सागर चिउं फुन चिउं पूर्व कोड़, अठ भव स्थिति ११४. द्वितीय गमे इम लेख, जघन्य थकी अद्धा वर्ष सहस्र दश देख, अंतर्मुहूर्तं अधिक ११५. उत्कृष्ट बढा जास, कोड़ पूर्व चितं तिरि चालीस सहस्र वास, असुर तणी ए जघन्य ११६. तृतीय गमे पहिछाण, अद्धा जघन्य थकी साधिक सागर जाण, अंतर्मुहूर्त्त अधिक ११७. उत्कृष्ट अद्धा काल, चि साधिक चिउं असुर । कोड़ पूर्व चिउं न्हाल तिर्यंच भव उत्कृष्ट स्थिति || ११८ तु गमे संवेह, वर्ष सहस्र दश स्थिति । असुर अंतर्महुतं एह, सन्नी तिरि भव जघन्य थी ॥ ११९ उत्कृष्ट अद्धा धार, चिरं साधिक सागर असुर । सागर अंतर्मुहूर्त च्यार, चिउं तिरि भव ए जघन्य स्थिति || १२०. पंचम गमे जघन्य, अंतर्मुहूर्त्त तिरि भवे । वर्ष सहस्र दस जन्य, बिहूं भव अद्धा जपन्य स्थिति || १२१. उत्कृष्ट अद्धा धार, अंतर्मुहूर्त प्यार वर्ष चालीस हजार, अष्ट भवे ए जघन्य गमे संवेह, १२२. षष्टम अंतर्मुहूर्त्त तिरि साधिक सागर लेह, षष्टम गम ए जघन्य १२३. उत्कृष्ट अद्धा धार, साधिक सागर चिउं अंतर्मुहूर्त प्यार, षष्टम गम उत्कृष्ट १२४. सप्तम गमे सुजोड़, जघन्य अद्धा संवेध तिरि भव पूर्व कोड़ वर्ष सहस्र दवा १२५. उकृष्ट अढा जोड़, चिडं साधिक सागर तिरि भव चिरं पुव्व कोड़, अष्ट भवां नों १२६. अष्टम गमे सुजोड़, जघन्य थकी अद्धा तिरि भव पूर्व को वर्ष सहस्र दश असुर १२७. उत्कृष्ट अद्धा संच, वर्ष सहल सहस्र चालीस चिरं पुण्व कोड़ तियंच, अष्ट भवा नों काल 1 ए । १२. नवमे गमे सुम्हाल जघन्य थकी अद्धा इतो । साधिक सागर काल, कोड़ पूर्व बलि अधिक हो || १२९. उत्कृष्ट अढा जोर, साधिक सागर चिरं असुर तिरि भव चिरं पुव्व कोड़, अठ भव उत्कृष्ट काल स्थिति ॥ * लय धन्य प्रभु रामजी ६० भगवती जोड़ Jain Education International विषेह बे । जेह वे ।। जघन्य अद्ध । फुन ।। असुर । असुर उत्कृष्ट ए ॥ इतो । फुन ॥ भवे। स्थिति ॥ कह्यो । फुन ।। तिरि । स्थिति ।। भवे । अद्धा || असुर । अद्धा || नों । स्थिति । असुर । काल ए । इतो। स्थिति || ही । १११. सेसं तं चैव । संवेहो साति रेगेण सागरोवमेण कायध्वो १-९ । (१०२४१२३) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003622
Book TitleBhagavati Jod 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages360
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size18 MB
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